Saturday, December 20, 2025
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प्रेत का बयान

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 नागार्जुन

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“ओ रे प्रेत -”

कडककर बोले नरक के मालिक यमराज
-“सच – सच बतला !
कैसे मरा तू ?
भूख से , अकाल से ?
बुखार कालाजार से ?
पेचिस बदहजमी , प्लेग महामारी से ?
कैसे मरा तू , सच -सच बतला !”
खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़
काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढाँचा
नचाकर लंबे चमचों – सा पंचगुरा हाथ
रूखी – पतली किट – किट आवाज़ में
प्रेत ने जवाब दिया –

” महाराज !
सच – सच कहूँगा
झूठ नहीं बोलूँगा
नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के
पूर्णिया जिला है , सूबा बिहार के सिवान पर
थाना धमदाहा ,बस्ती रुपउली
जाति का कायस्थ
उमर कुछ अधिक पचपन साल की
पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था
-“किन्तु भूख या क्षुधा नाम हो जिसका
ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको
सावधान महाराज ,
नाम नहीं लीजिएगा
हमारे समक्ष फिर कभी भूख का !!”

निकल गया भाप आवेग का
तदनंतर शांत – स्तंभित स्वर में प्रेत बोला –
“जहाँ तक मेरा अपना सम्बन्ध है
सुनिए महाराज ,
तनिक भी पीर नहीं
दुःख नहीं , दुविधा नहीं
सरलतापूर्वक निकले थे प्राण
सह न सकी आँत जब पेचिश का हमला ..”

सुनकर दहाड़
स्वाधीन भारतीय प्राइमरी स्कूल के
भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत की
रह गए निरूत्तर
महामहिम नर्केश्वर |

गणेश चतुर्थी पर गणपति को खिलाइए मोदक

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केसरी मोदक

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सामग्री- केसर- 2-3 चुटकी मैदा- 3 कप रवा- 3 कप चाशनी- 6-7 चम्‍मच नारियल- 1-1 ½ कप (पाउडर) इलायची- 1-2 चम्‍मच (पाउडर) घी- 1 चम्‍मच नमक- स्‍वादअनुसार तेल- 2-3 कप

विधि– 1. एक कटोरी में थोड़ा सा दूध लीजिये और उसमें केसर डाल कर 15 मिनट के लिये भिगो दीजिये। 2. अब मैदा लीजिये और उसमें रवा मिला दीजिये, उसके बाद केसर भी डाल दीजिये और पांच मिनट तक अच्‍छे आटे को सांन लीजिये। अब आटे में नमक और पानी मिला दीजिये और फिर से 10 मिनट तक सानिये और किनारे रख दीजिये। 3. एक डीप फ्राइंग पैन लीजिये और उसे गैस पर रखिये, फिर उसमें चीनी की चाशनी डालिये। इसे पैन पर अच्‍छी तरह से फैलाइये और फिर उसमें नारियल पाउडर, इलायची पाउडर डाल कर कुछ मिनट तक भूनिये। फिर घी डालिये और मिक्‍स कर के गैस से पैन को उतार लीजिये और ठंडा होने दीजिये। 4. अब आटे की गोलियां बनाइये और अपनी हथेलियों से उसे दबा कर उसमें नारियल का मिक्‍सचर भरिये। हर गोली में 1 चम्‍मच भरियेगा और फिर आटे को चारो ओर से एक साथ ला कर दबा दीजियेगा। 5. फ्राइंग पैन लीजिये और तेल गरम कीजिये, फिर सारे तैयार मोदक को उसमें गोल्‍ड रंग आने तक तल लीजियेगा। जब यह हो जाएं तब इसे अपने महमानों को सर्व कीजिये।

 

गुड़ नारियल मोदक

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सामग्री – 2 कप चावल का आटा, 1 कप से थोड़ा ज्यादा कद्दूकस किया गुड़, 2 कप कद्दूकस किया ताजा नारियल, एक बड़ा चम्मच खसखस, आधा चम्मच इलायची पाउडर, घी

विधि – गैस पर एक बर्तन में लगभग सवा कप पानी गर्म करें। एक दूसरे बर्तन में चावल का आटा डालें और गर्म पानी से नर्म आटा गूंदकर उसे 10 मिनट के लिए ढक कर रख दें। अब एक नॉन-स्टिक पैन में कद्दूकस किया गुड़ डालकर धीमी आंच पर 1 से 2 मिनट तक गर्म करके पिघला लें।  उसके बाद गुड़ में नारियल, खसखस और इलायची पाउडर मिलाकर धीमी आंच पर 4 से 5 मिनट के लिए पकाएं। मिश्रण की नमी खत्म होने के बाद ही गैस बंद करें. अब मिक्सचर को ठंडा होने दें। इसके बाद चावल के आटे में आधा चम्मच घी डालकर थोड़ा और गूंद लें। मोदक बनाने के लिए सांचे में थोड़ा घी लगाएं और चावल का आटा सांचे के अंदर के किनारों पर चारों तरफ लगाएं। उसके बाद गुड़ का मिश्रण सांचे के बीच भरें और फिर सांचे के ऊपरी सिरे पर अच्छे से लगा दें। अब सांचा खोलकर मोदक निकाल लें. इसी तरह बाकी सामग्री से सारे मोदक को आकार देकर तैयार कर लें। अब एक बर्तन में पानी गर्म करें और उसके ऊपर स्टील की छलनी में केले का पत्ता रखें. फिर मोदक पर उंगलियों से थोड़ा पानी लगाकर 6 से 7 मोदक केले के पत्ते पर रखकर बर्तन को ढक दें। धीमी आंच पर 8 से 10 मिनट तक मोदक भाप में पकने दें।  इसी तरह सभी मोदक भाप में पकाकर तैयार करें और गणपति को उनकी पसंद का भोग लगाएं।

 

शिक्षा में एक सकारात्मक चिंतन और दृष्टिकोण का होना बेहद जरूरी है

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अध्यापन उनका कार्यक्षेत्र है मगर उनका मन शोध में ज्यादा लगता है। पूरे ब्रह्मांड को जानने की रुचि गहरी है तो इन दिनों वह इसी काम में व्यस्त हैं मगर अपनी संस्था सोदपुर सॉलिडेरिटी सोसायटी और उसकी शाखा भाषा मंच के जरिए वे कला और साहित्य के संबंध को और पुख्ता करती रहती हैं। इसके साथ ही वे एक प्री प्राइमरी स्कूल भी चलाती हैं। हम बात कर रहे हैं लॉरेटो कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर और सोदपुर सॉलिडेरिटी सोसायटी की सचिव राखी राय हल्दर की जिनसे इस बार अपराजिता आपकी मुलाकात करवाने जा रही हैं। प्रस्तुत हैं बातचीत के चुनिंदा टुकड़े –

 घर के वातावरण से मिली अध्यापन की प्रेरणा

पिता वायुसेना में अधिकारी थे और इस वातावरण में उनसे मैंने अनुशासन और सामाजिक कार्य करने की प्रेरणा मिली है। अध्यापन मेरे लिए विद्यालय जीवन से ही सामाजिक कार्य का अंग था। यह पसंद था और यही कारण बना कि मैंने अध्यापन को चुना।

स्त्री चेतना को प्रोत्साहित करने वाले साहित्य में सशक्तीकरण के मोती हैं

साहित्य के सागर में स्त्री रूप के अलग – अलग मोती हैं। मेरा मानना है कि जो साहित्य स्त्रीवाद को नहीं बल्कि स्त्री चेतना को प्रोत्साहित करता है, उसमें सशक्तिकरण के उज्ज्वल मोती हैं। स्त्री चेतना इस बात का एहसास दिलाती है कि दुनियादारी की कड़ी धूप में स्त्री छांव बन सकती है। संवेदनाओं के नम होते ही परिवार की धुरी बनकर स्वाभिमान के साथ जीने की ताकत रखती है। स्त्री चेतना स्त्री को मर्यादा या नियमों का हवाला देकर बाँधने वालों को शालीनता से कड़ा जवाब देना सिखाती है। महादेवी के साहित्य में स्त्री को गरिमामय जीवन दर्शन देने की ताकत है। अनामिका की कविता में स्त्री की मुखरता स्त्री सशक्तीकरण के नए आयाम खोलती है।

दूसरी लड़कियों के संघर्ष में साथ दें शिक्षित लड़कियाँ

आज लड़कियों की सबसे बड़ी चुनौती है कि वह आत्मशक्ति को पहचान कर विवेक और कार्यकुशलता के साथ आगे बढ़े। शिक्षित लड़कियों को अपना जीवन सार्थक बनाने की दृष्टि विकसित करनी होगी और खुद को उन लड़कियों का साथ देने के लिए तैयार भी करना होगा जो खुली हवा में साँस लेने के लिए अपने पंख फड़फड़ा रही हैं।

कला का विशुद्ध आनंद प्राप्त करें कलाकार, यही हमारा प्रयास है

सोदपुर सॉलिडेरिटी सोसायटी का विजन और मिशन है कि वह शिक्षा, कला और संस्कृति का व्यावहारिक और सृजनात्मक प्रयासों से लिकास करे। हम चाहते हैं कि कला बड़े प्रमोटरों के चंगुल से बाहर निकले और वह बड़े आयोजनों और दर्शकों की मोहताज न रहे। कलाकार अपनी प्रतिभा के लिए यश और धन कमाने की मानसिकता से दूर कला की विशुद्ध साधना के जरिए सृजन के आनंद का अनुभव करे। हमारी सॉलिडेरिटी डांस अकादमी रवींद्र भारती विश्वविद्यालय, ममता शंकर तथा कलावती देवी की छात्रा नीलांजना सरकार के नेतृत्व में इसी उद्देश्य से काम कर रही है। जीवन शैली से जुड़े सकारात्मक के प्रसार के लिए हर रोज सुबह जनता के लिए निःशुल्क प्राणायाम, ध्यान और संबंधित कार्यशालाएं आयोजित कर रही है। प्री – प्राइमरी स्तर की शिक्षा एवं शिक्षण पद्धति के स्तर पर भी हमारी संस्था व्यावहारिक स्तर पर शोधकार्य कर रही है।

आज शिक्षक और विद्यार्थियों के संबंधों पर बाजार का काला साया है

आज शिक्षक और विद्यार्थियों के संबंधों पर बाजार का काला साया है। दोनों का अहं, शिक्षकों का आजीविका कमाने के लिए पढ़ाने और विद्यार्थियों की आजीविका कमाने के लिए डिग्री हासिल करने की मजबूरी का बोझ दोनों का संबंध ढो रहा है। शिक्षा के केन्द्र में अगर जीवन दर्शन विकसित करने और शिक्षा से हासिल ज्ञान से सार्थक प्रयोग की राहें खोजकर जीवन और समाज को समृद्ध करने का मुद्दा होता तो इस संबंध में श्रद्धा, स्नेह, मैत्री और मिठास होती। शिक्षा अगर विजन दे सके, विद्यार्थियों में सामाजिक – सांस्कृतिक विकास के लिए शोध से रास्ता निकालने की कोशिश की आदत हो तो इस राह से आजीविका कमाने की राह भी निकल सकती है।

जीवन को सार्थक बनाने की चाह होनी चाहिए

हम सब राही हैं। जीवन को सार्थक बनाने की चाहत को कम्पास मानें तो जीवन की नाम उचित – अनुचित के विवेक के माध्यम से किसी उर्वर द्वीप की खोज कर सकती है।

भाषा और शिक्षक, दोनों का सम्मान बचाने की जिम्मेदारी हमारी और आपकी है

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हिन्दी और शिक्षकों के सम्मान वाला महीना हर साल की तरह हाजिर है। एक बार फिर शिक्षकों का घेराव करने वाले शिक्षकों का गुणगान करेंगे औऱ अगले दिन उनको प्रताड़ित करना शुरू करेंगे। शिक्षकों के सम्मान का यह हाल है कि राज्य को प्रिंसिपल नहीं मिल रहे और जो पद पर हैं, पद छोड़कर भागने पर आमादा हैं। खैर, शिक्षक हैं भी तो कहाँ, जो हैं तो वे समय पर कक्षाएं नहीं लेते और जो कक्षाएं लेते हैं, वो विद्यार्थियों को सुहाते नहीं हैं। उपस्थिति के लिए रोको तो घेराव, फेल हो गए तो भी पास करने के लिए घेराव करेंगे औऱ फिर आंदोलन। इस आंदोलन का तो मतलब ही समझ के बाहर है।

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तकलीफ इस बात की है कि आंदोलन का उद्देश्य सिमट कर रह गया है। अब विद्यार्थी और शिक्षक एक दूसरे के लिए नहीं लड़ते और लड़ते हैं तो भी उसी मसले पर दोनों के हित मिलते हैं। छात्र संगठनों के मुट्ठी भर नेता पूरे छात्र समाज का प्रतिनिधित्व नहीं कर सकते मगर प्रतिनिधि उनको ही माना जा रहा है जो किसी खास दल का झंडा ढोते हैं और आगे चलकर वे शोधार्थी नहीं बल्कि नेता ही बनते हैं। राजनीति को ऐसे ही छात्र नेताओं से कई धुरंधर मिले हैं जो राजनीति के नाम पर अक्सर तोड़फोड़ और हिंसा में यकीन रखने वाले होते हैं या सदन में जिनको विपक्षियों को धक्के मारकर बल प्रयोग से बाहर निकालना आता है। सही मायनों में न तो आज छात्र ही हैं और न ही आदर्श शिक्षक ही, अगर वह हैं तो उनको उँगलियों पर गिनना पड़ता है या फिर चिराग लेकर तलाशना पड़ता है।

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अब बात हो हिन्दी की तो वह भी शिक्षकों, लेखकों, साहित्यिक संगठनों, पुस्तकालयों की धरोहर बन गयी है। रही बात राजभाषा की, तो सार्वजनिक स्थलों पर हिंदी का बैंड बजाने वाले नामपट्ट दिखते हैं मगर राजभाषा सम्मेलनों के हिन्दी पखवाड़े में करोड़ों रुपए फूँकने के बाद भी विद्वता झाड़ने के लिए ऐसी क्लिष्ट हिन्दी इस्तेमाल होती है कि सरस भाषा तो बस मुँह छुपाए घूमने लगती है। अगस्त आते ही सभी सरकारी कार्यालय साल भर की गहरी नींद से जाग पड़ते हैं और किसी आलसी विद्यार्थी की तरह साल भर का काम एक महीने में कर लेना चाहते हैं। हिन्दी के वरिष्ठ आलोचकों को प्रोत्साहन देते कम ही देखा गया है। अखबार अब हिन्दी की जगह हिंग्लिश को हिन्दी मानकर पाठकों को मिलावटी भाषा का घोल पिला रहें हैं क्योंकि इसी की डिमांड है। अब तो हिन्दी को उसी की बोलियों से लड़वाया जा रहा है। क्या बात है कि आपको अच्छी बातें और उपलब्धियाँ नजर ही नहीं आतीं या आप उसे देखना ही नहीं चाहते क्योंकि हिन्दी के सहारे ही आपकी रोटी चल रही है। समय आ गया है कि आम विद्यार्थी को छात्र नेताओं के हाथ से अपने शिक्षक और जनता को तथाकथित बुद्धिजीवियों के हाथ से अपनी वाली हिन्दी छीन लेनी चाहिए।

hindi-diwas-6ऐसे लोगों का बहिष्कार करें जो आपकी धरोहर पर कब्जा जमाए बैठे हैं और अब जनता समझाए कि जिसे वे अपनी सम्पति समझे बैठे हैं, वह आदर्श शिक्षक (जिसे कोई नहीं पूछता) और भाषा पूरे विद्यार्थी समाज और आम जनता की  है। इन दोनों को मठाधीशों के कब्जे से बाहर आपकी जिम्मेदारी है। बहिष्कार कीजिए ऐसे शिक्षकों का जो आपको गलत राह पर ले जा रहे हैं और अलगाववाद की भाषा सिखा रहे हैं। बहिष्कार कीजिए ऐसी पार्टियों का, जो बंद और विरोध के नाम पर आपसे शिक्षा का हक छीन रही है। बहिष्कार कीजिए ऐसे साहित्यकारों का जो भाषा को संपत्ति समझते हैं और नए लोगों को सामने नहीं आने देते। बहिष्कार कीजिए उन अखबारों और पत्रिकाओं का जो आपकी भाषा से खिलवाड़ कर रहे हैं और दलील दे रहे हैं कि ये वो आपके लिए कर रहे हैं। बहिष्कार कीजिए ऐसे अधिकारियों का जो हिन्दी की रोटी खाते हैं, उसे लूटते हैं और अपने बच्चों को पढ़ने के लिए विदेश भेज रहे हैं। जो क्लिष्टता से जानबूझ कर भाषा को बोझिल बनाकर उसे आपसे दूर कर रहे हैं और सावर्जनिक स्थलों पर वर्तनी औऱ अशुद्ध भाषा का इस्तेमाल कर आपकी हिन्दी का अपमान कर रहे हैं, जो अपना बाजार जिन्दा रखने के लिए हिन्दी की मौत की दुहाई दे रहे हैं। भाषा और शिक्षा, दोनों की सम्पति नहीं, आम जनता की धरोधर है और जरूरत पड़े तो उसे आगे बढ़कर छीन लेना होगा। इस देश को एपीजे कलाम और गोपी पुलेलाचंद की जरूरत है। बहरहाल अगस्त जाते – जाते सिंगुर के किसानों की उम्मीद और मुस्कान लौटा गया। सुप्रीम कोर्ट ने वाममोर्चा सरकार का वर्ष 2006 भूमि अधिग्रहण कानून अवैध करार दिया और जीत के बाद ममता सरकार अब उत्सव के मूड में हैं। वैसे रास्ते इतने आसान नहीं होंगे क्योंकि टाटा ने अभी हार नहीं मानी है और उसे वर्ष 2011 में ममता सरकार के अध्यादेश पर सुनवाई का इंतजार है। हम तो यही चाहेंगे कि राज्य में कृषि के साथ उद्योग को भी जगह मिले क्योंकि दोनों का रिश्ता विकास और रोजगार से है। आप सभी को अपराजिता की ओर से गणेश चतुर्थी, शिक्षक दिवस और हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं।

 

सरोगेसी बिल को कैबिनेट की मंजूरी, सुषमा बोलीं- जरूरत की चीज बन गई शौक, जानें 10 बड़ी बातें

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कैबिनेट ने सरोगेसी नियमन विधेयक को मंजूरी दे दी है। विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि सरोगेसी विधेयक इसलिए लाया गया है क्योंकि भारत लोगों के सरोगेसी हब बन गया था और अनैतिक सरोगेसी की घटनाएं सामने आती रहती हैं। उन्होंने कहा कि सिर्फ भारतीय नागरिकों को सरोगेसी का अधिकार होगा, यह अधिकार एनआरआई और ओसीआई होल्डर के पास नहीं होगा।

सुषमा स्वराज ने जानकारी दी कि केंद्र पर नेशनल सरोगेसी बोर्ड, राज्य और केंद्र शासित प्रदेश स्तर तक स्टेट सरोगेसी बोर्ड का गठन किया जाएगा। बिल कमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने और निःसंतान दंपती को नीतिपरक सरोगेसी की इजाजत देने के लिए लाया गया है।

विदेश मंत्री ने कहा कि बड़े सितारे जिनके न सिर्फ दो बच्चे हैं, बल्कि एक बेटा और बेटी भी है, वे भी सरोगेसी का सहारा लेते हैं। सिंगल पैरंट्स, होमोसेक्सुअल कपल, लिव-इन में रहने वालों को सरोगेसी की इजाजत नहीं दी जाएगी।

जानें और क्या कहा सुषमा स्वराज ने:

  1. नेशनल सरोगेसी बोर्ड बनाया जाएगा।
  2. स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री की अध्‍यक्षता में बनेगा बोर्ड।
  3. सरोगेसी बोर्ड में होंगे दो सांसद।
  4. गरीब महिलाओं की गोद किराए पर लेना गुनाह।
  5. सिंगल पैरेंट अनाथ बच्‍चे को गोद लें तो बेहतर।
  6. सरोगेसी सिर्फ निसंतान दंपतियों के लिए।
  7. अब सरोगेसी के व्‍यवसायिक इस्‍तेमाल पर बैन।
  8. जो बिल कैबिनेट ने पास किया है उससे अनैतिक इस्‍तेमाल पर रोक लगेगी।
  9. शौक के लिए न करें इसका इस्‍तेमाल।
  10. सरोगेसी बिल पर मोदी सरकार ने इच्‍छा शक्ति दिखाई है।

शाहिद कपूर, मीरा के घर नन्ही परी आई

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मुम्बई, : बॉलीवुड अभिनेता शाहिद कपूर की पत्नी मीरा राजपूत ने आज शाम बेटी को जन्म दिया। शाहिद ने ट्वीट किया, ‘‘वह आ गई है और हमारे पास खुशी का इजहार करने के लिए शब्द नहीं हैं। शुभकामनाओं के लिए आप सभी का धन्यवाद।’’ मीरा को कल खार के हिंदुजा हेल्थकेयर सर्जिकल अस्पताल में भर्ती कराया गया था।

पहले मध्य सितम्बर में बच्चे के जन्म की उम्मीद थी। अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि डिलिवरी सामान्य थी और मां..बेटी दोनों स्वस्थ हैं। दंपति की पिछले वर्ष जुलाई में शादी हुई थी।

 

ओलंपिक की तैयारी के लिए साक्षी ने पीएम मोदी से मांगा खेल का मैदान, ये मिला जवाब

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मुंबई। रियो ओलंपिक में भारतीय एथलिट कुछ खास कमाल नहीं कर पाएं। साक्षी मलिक और पीवी सिंधु को छोड़कर कोई भी भारतीय एथलिट पदक हासिल करने में कामियाब नहीं हो सका। खेलों के प्रति लगाव रखने वाली मुंबई के एक स्कूल की 9वीं की छात्रा ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर खेल के मैदान के लिए जगह मांगी है, ताकि वो ओलंपिक की तैयारी कर सके। नवी मुंबई के पास रहने वाली साक्षी तिवारी ने पीएम मोदी को पत्र लिखकर अपने स्कूल के पास प्लेग्राउंड बनाने के लिए जगह की मांग की। साक्षी ने लिखा कि उनके स्कूल के पास कोई मैदान नहीं है। वह ओलंपिक में जाकर भारत का नाम रोशन करना चाहती है। छात्रा के खत के जवाब में पीएमओ ने स्कूल प्रशासन को पास ही एक जगह दे दी, जहां अब उन्हें खेल का मैदान बनाने की इजाजत मिल गई है। साक्षी ने बताया कि वो पीएम के मन की बात से काफी प्रेरित हुई। उसी कार्यक्रम से उसे पीएम को खत लिखने का विचार आया। साक्षी को अब पीएम की ओर से मदद के तौर पर खेल का मैदान मिल गया है। आपको बता दें कि पीएम मोदी जितना सोशल मीडिया पर एक्टिव रहते हैं उतने ही वो खतों को लेकर भी सजग रहते हैं।

 

महाराष्ट्र के एक किसान की विधवा बनी हिम्मत की मिसाल !

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खराब फसल तथा क़र्ज़ की मार की वजह से, पिछले छे महीने में सिर्फ महाराष्ट्र में ही करीब १३००० किसानो ने अपनी जान ले ली। जब इनके रहते इनके परिवार की इतनी बुरी दशा थी, तो ज़रा सोचिये कि इनके जाने के बाद इनके परिवारवालों पे क्या बीत रही होगी। ऐसे ही एक किसान की विधवा है किरण! पर किरण की कहानी हार की नहीं, जीत की कहानी है, हिम्मत की कहानी है! आईये जाने किरण की कहानी उन्ही की जुबानी –

“मैं, किरण द्यानेश्वर बोदडे, गाँव वणी राम्भापुर, जिल्हा अकोला ! दो साल पहले मेरे पति की मौत हो गयी। हमारी ढाई एकर ज़मीन थी। हम सोयाबीन उगाते थे। सब अच्छा चल रहा था। तीन बच्चे हुए, अश्विनी, तेजस्विनी और ओम। हम अपनी छोटी सी दुनिया में खुश थे। पैसे बहुत तो नहीं थे पर जितने थे हम सबके लिए काफी थे।

फिर अचानक गाँव में सुखा पड़ने लगा। पहले साल तो हमने किसी तरह गुज़ारा कर लिया पर अब ये हर साल का किस्सा बन चूका था। २.५ एकर ज़मीन में क्विंटल भर ही सोयाबीन होने लगा जिससे लागत का दाम भी नहीं निकलता था। मेरे पति ने फैसला किया कि दो वक्त की रोटी कमानी है तो अपनी ये बंज़र ज़मीन छोड़कर दुसरो के खेतो में मजदूरी करना ही ठीक होगा। मैंने भी उनके इस फैसले में उनका साथ देते हुए खेती मजदूरी का काम शुरू कर दिया। हम खुश थे। उन्होंने कभी मुझे या बच्चो को किसी चीज़ की कमी महसूस नहीं होने दी। मुझे नहीं पता वो ये सब कैसे कर रहे थे। कर्जा बढ़ता चला जा रहा था पर उनके हंसमुख चेहरे से कभी उनके मन की परेशानी का पता ही नहीं चलता। हम पांचो मिलकर हर मुसीबत का डंटकर सामना कर रहे थे।पर फिर एक दिन उन्होंने इन मुसीबतों का सामना करने की बजाय मर जाना बेहतर समझा। दो साल पहले कर्जो और गरीबी से तंग आकर मेरे पति ने आत्महत्या कर ली।

मैं सिर्फ चौथी पास थी। हिसाब किताब नहीं समझती थी। मुझे नहीं पता था कि पांच लोगो के परिवार को पालने की कीमत इतनी ज्यादा थी कि मेरे पति को अपनी जान से वो कीमत चुकानी पड़ी। हम दोनों मिलकर दिन के २०० रूपये कमा लेते थे। अब मैं दिन के सिर्फ ९० रूपये कमा पाती हूँ। मेरी बड़ी बेटी को मैंने उसकी मासी के पास भेज दिया, वो दसवी में है न। बाकि दोनों बच्चो ने पढाई छोड़ दी। कई बार मुझे अपने पति पर गुस्सा आता है कि वो हमें ऐसे कैसे छोड़कर जा सकते है। कई बार हिम्मत हारते हारते रह जाती हूँ। फिर सोचती हूँ – नहीं! जो गलती मेरे पति ने की वो गलती मैं नहीं करुँगी! मैं जिऊंगी! अपने बच्चो के लिए जिऊंगी!”

कहते है जो खुद की मदद करते है, भगवान् भी उनकी मदद ज़रूर करते है। दो साल तक मजदूरी करके अपने बच्चो का पेट पालने के बाद आखिर किरण को एक नयी राह तब मिली जब एक स्वयं सेवी संस्था ने उनकी मदद करने का प्रस्ताव दिया। इस संस्था की सहायता से किरण अब अपना टिफ़िन सर्विसेज का काम शुरू कर रही है। गाँव में दो फक्टरियां है जहाँ वे डब्बा पहुंचाकर अच्छी आमदनी कर सकती है। हम किरण की हिम्मत और दृढ़ निश्चय को सलाम करते है और उनके और उनके परिवार के उज्जवल भविष्य की कामना करते है।

(साभार – द बेटर इंडिया)

भारतीय मूल के लड़के ने स्तन कैंसर के उपचार का तरीका इजाद किया

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लंदन :भाषा: ब्रिटेन में भारतीय मूल के 16 वर्षीय एक लड़के ने स्तन कैंसर के सबसे खतरनाक रूप के उपचार का एक तरीका ईजाद करने का दावा किया है। स्तन कैंसर के इस रूप पर दवाओं का कोई असर नहीं होता है।
अपने माता पिता के साथ भारत से जाकर ब्रिटेन में बसने वाले कृतीन नित्यानंदम ने उम्मीद जताई है कि उसने ट्रिपल नेगेटिव स्तन कैंसर का उस अवस्था में पहुंचाने का एक तरीका ईजाद कर लिया है जहां उस पर दवाओं का असर हो सके और फिर उसका उपचार किया जा सके।

स्तन कैंसर के कई रूपों का दवाओं से प्रभावी उपचार किया जाता है लेकिन ट्रिपल निगेटिव स्तन कैंसर का उपचार केवल सर्जरी, रेडिएशन और कीमोथेरेपी के संयोजन से किया जाता है जिससे रोगी के जिंदा बचने की संभावना कम रहती है।

संडे टेलीग्राफ ने कृतीन को यह कहते हुये उद्धृत किया, ‘‘मैं एक ऐसा तरीका ईजाद करने की कोशिश कर रहा था जिससे कैंसर के इस रूप को उस अवस्था में पहुंचाया जा सके जहां उस पर दवाओं का असर हो सके।’’

 

तृप्ति देसाई ने हाजी अली दरगाह में चादर चढ़ाई

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मुम्बई, बम्बई उच्च न्यायालय द्वारा हाजी अली दरगाह में मजार के पास महिलाओं के प्रवेश पर रोक हटाने के दो दिन बाद भूमाता ब्रिगेड की कार्यकर्ता तृप्ति देसाई आज दरगाह पहुंचीं और एक चादर चढ़ायी। तृप्ति ने साथ ही घोषणा की कि अब वह केरल के सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के पूजा के अधिकार के लिए संघर्ष करेंगी।
देसाई ने मुम्बई के वरली समुद्रतट के पास में एक टापू स्थित दरगाह के बाहर संवाददाताओं से कहा, ‘‘पिछली बार जब हम यहां हाजी अली दरगाह आये थे तब हमने उच्च न्यायालय में अपने पक्ष में फैसले के लिए दुआ मांगी थी। चूंकि हमारी दुआ सुनी गई और वह कबूल हुई हम हाजी अली बाबा का आशीर्वाद लेने और चादर चढ़ाने के लिए यहां आये।’’ शहर के सबसे महत्वपूर्ण स्थलों में से एक सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की मजार भारतीय..इस्लामी वास्तुकला का एक प्रमुख नमूना है।

तृप्ति ने मुस्लिमों सहित देश के लोगों को उनके समर्थन के लिए धन्यवाद देते हुए दरगाह के ट्रस्ट से अनुरोध किया कि वह उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ उच्चतम न्यायालय नहीं जाये। उन्होंने यद्यपि साथ ही यह विश्वास भी जताया कि यदि ऐसा कोई कदम उठाया भी गया तो उच्चतम न्यायालय महिलाओं के पक्ष में फैसला सुनाएगा।