Sunday, December 21, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 719

सिर्फ 8 कोर्ट के सहारे चैंपियन गढ़ रहे गोपीचंद

0

हैदराबाद। पीवी सिंधू के रियो ओलिंपिक में रजत पदक जीतने के बाद एक बार फिर पूर्व ऑल इंग्लैंड चैंपियन पुलैला गोपीचंद की अकादमी चर्चा में है।

चार साल पहले लंदन ओलिंपिक में उनकी शिष्य रही साइना नेहवाल ने भी कांस्य पदक जीतकर देश का मान बढ़ाया था। सभी जगह चर्चा है कि आखिर गोपीचंद अपने आठ कोर्ट की अकादमी इतने बढ़े सिंधू, साइना व श्रीकांत जैसे विश्वस्तीय खिलाड़ी तैयार कैसे करते है। 2012 के नेशनल चैंपियन और 2016 के उपविजेता सौरभ वर्मा विस्तार से अकादमी के बारे में जानकारी दी।

कड़ा अभ्यास सत्र – अकादमी में सीनियर खिलाड़ियों की पूरी बैच होती है। बैडमिंटन की प्रैक्टिस का समय सुबह 4.30 से 6.30 तक होता है। इसके बाद कुछ एक्सरसाइज के बाद 8.30 से 10 बजे तक फिर कोर्ट पर प्रैक्टिस की जाती है। प्रैक्टिस मैच पर जोर बुधवार और शनिवार को खिलाड़ियों के बीच प्रैक्टिस मैच खेले जाते है। इसका समय यह सुबह 7 बजे से 11 बजे तक निर्धारित है। मैच एकल व युगल होते है।

फिटनेस जरुरी है – शाम को 4 से 7 बजे तक फिटनेस ट्रेनिंग होती है, जिसमें कभी जिम में एक्सरसाइज और रंनिंग कराई जाती है। हर दिन के हिसाब से अलग-अलग कार्यक्रम तय किया जाता है।

न्यूट्रीशियन तय करते है खान-पान – अकादमी में खिलाड़ियों की प्रेक्टिस एक जैसी हो सकती है, लेकिन खान-पान सभी खिलाड़ियों का अलग-अलग होता है। हर खिलाड़ी के शरीर की स्थिति के अनुसार तय किया जाता है किह उसे क्या डाइट दी जाए। इसके लिए न्यूट्रीशियनिस्ट है। प्रेक्टिस के दौरान फास्ट फूड, बिरयानी, आइसक्रीम आदि मना थी। सिंधू का घर वहीं है तो वह अपने घर जाती थी।

कैंप में सिर्फ 16-20 बच्चों दो-तीन एकड़ में अकादमी बनी है। वहां आठ कोर्ट हैं। कैंप के दौरान सिर्फ 16-20 बच्चे ही होते हैं। वैसे अकादमी में बहुत से बच्चे हैं।

 

मदर टेरेसा को वेटिकन में पोप फ्रांसिस ने घोषित किया संत

0

13 देशों के राष्ट्राध्यक्ष और एक लाख से अधिक लोग इस पल के गवाह बने। भारतीय विदेश मंत्री सुषमा स्वराज, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी समारोह में भाग लिया। समारोह में पहुंचे भारतीयों ने तिरंगा भी लहराया। भारत के गिरजाघरों में इस मौके पर विशेष प्रार्थना सभाएं हुईं।

सुबह सेंट पीटर्स बैसीलिका के सामने दया की प्रतिमूर्ति के सम्मान में प्रार्थना सभा आयोजित की गई। यहां पर मदर टेरेसा की पहचान बनी नीले बॉर्डर वाली साड़ी में उनकी आदमकद प्रतिमा लगी थी। इस मौके पर पोप फ्रांसिस ने कहा, “मदर टेरेसा ने वंचितों की सेवा करके चर्च की परंपरा को आगे बढ़ाया। सेवा कार्य से उन्हें ईश्वरीय शक्ति प्राप्त हुई, उसे उन्होंने लोगों की भलाई में लगाया।” समारोह में पूरे इटली से करीब 1,500 बेघर लोगों को बस से रोम लाया गया। सिस्टर्स ऑफ चैरिटी की 250 ननों और पादरियों ने इन्हें पिज्जा भोज परोसा।

डाक टिकट जारी

मदर टेरेसा के नाम पर केंद्र सरकार ने डाक टिकट जारी किया। मुंबई में आयोजित समारोह में केंद्रीय संचार राज्यमंत्री मनोज सिन्हा ने यह डाक टिकट जारी किया। ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने एक सड़क का नामकरण मदर टेरेसा के नाम पर किया।

इन दो चमत्कारों से बनीं संत

कैथोलिक चर्च की परंपरा में माना जाता है कि ईश्वर कुछ पवित्र आत्माओं को धरती पर लोगों की सेवा और चमत्कार करने के लिए भेजता है। ऐसे लोगों को संत की उपाधि देने से पहले चर्च उनसे कम से कम दो चमत्कारों की अपेक्षा करता है। मदर टेरेसा से जुड़े मामलों में दो को चमत्कार माना जाता है।

पहला मामला बंगाल की महिला मोनिका बेसरा का है, जिसने बताया कि 2002 में मदर की प्रार्थना से उसके पेट का कैंसर ठीक हुआ था। दूसरे चमत्कार के विषय में ब्राजील के मार्सीलिओ हेडाड एंड्रीनो ने बताया कि 2008 में पत्नी फरनांडा द्वारा मदर की प्रार्थना करने से उनका ब्रेन ट्यूमर खत्म हो गया था।

खास बातें

-10,000 से अधिक संत हैं कैथोलिक चर्च के

-29 लोगों को पोप फ्रांसिस ने घोषित किया संत

-1234 में संत बनाने की प्रक्रिया को पोप ग्रेगोरी नौवें ने अंतिम रूप दिया था

-1588 से प्रक्रिया में आंशिक परिवर्तन किया गया। तब से लगातार जारी है

संत यानी क्या

संत यानी सीधे ईश्वर का हिस्सा। इसका अर्थ है कि व्यक्ति ने पूरा जीवन इतने पवित्र तरीके से जिया कि अब वह स्वर्ग में स्थान पा गया है। अब वह ईश्वर के साथ मध्यस्थता कर चमत्कार करता है। उस व्यक्ति के आदर्श और बातें सीधे ईश्वर की बातें मानी जाती हैं। संत घोषित होने पर अब मदर टेरेसा को औपचारिक रूप से कैथोलिक धर्म सिद्धांतों में स्थान मिल जाएगा।

मदर टेरेसा के बारे में जाने कुछ खास बातें

मदर टेरेसा को 1971 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ प्रदान किया गया था। 1988 में ब्रिटेन ने ‘आर्डर ऑफ द ब्रिटिश एम्पायर’ की उपाधि प्रदान की।

कोलकाता से शुरू हुए मिशनरीज ऑफ चैरिटी का लगातार विस्तार होता रहा। मदर टेरेसा के निधन के समय तक इसका प्रसार 610 मिशन के तहत 123 देशों में हो चुका था। दुनियाभर में तीन हजार से ज्यादा नन इससे जुड़ी हुई हैं।

मदर टेरेसा ने कई आश्रम, गरीबों के लिए रसोई, स्कूल, कुष्ठ रोगियों की बस्तियां और अनाथ बच्चों के लिए घर बनवाए। 5 सितंबर, 1997 को दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया। निधन के पश्चात पॉप जॉन पॉल द्वितीय ने उन्हें ‘धन्य’ घोषित किया था।

जानें संत घोषित करने की पूरी प्रक्रिया

संत घोषित करने की प्रक्रिया की शुरुआत उस स्थान से होती है, जहां वह रहे या जहां उनका निधन होता है। मदर टेरेसा के मामले में यह जगह है कोलकाता। प्रॉस्ट्यूलेटर प्रमाण और दस्तावेज जुटाते हैं और संत के दर्जे की सिफारिश करते हुए वेटिकन कांग्रेगेशन तक पहुंचाते हैं।

कांग्रेगेशन के विशेषज्ञों के सहमत होने पर इस मामले को पोप तक पहुंचाया जाता है। वे ही उम्मीदवार के ‘नायक जैसे गुणों’ के आधार पर फैसला लेते हैं।

अगर प्रॉस्ट्यूलेटर को लगता है कि उम्मीदवार की प्रार्थना पर कोई रोगी ठीक हुआ है और उसके भले-चंगे होने के पीछे कोई चिकित्सीय कारण नहीं मिलता है, तो यह मामला कांग्रेगेशन के पास संभावित चमत्कार के तौर पर पहुंचाया जाता है, जिसे धन्य माने जाने की जरुरत होती है।

संत घोषित किए जाने की प्रक्रिया का यह पहला पड़ाव है। चिकित्सकों के पैनल, धर्मशास्त्रियों, बिशप और चर्च के प्रमुख (कार्डिनल) को यह प्रमाणित करना होता है कि रोग का निदान अचानक, पूरी तरह से और दीर्घकालिक हुआ है और ऐसा संत दर्जे के उम्मीदवार की प्रार्थना के कारण हुआ है।

इससे सहमत होने पर कांग्रेगशन इस मामले को पोप तक पहुंचाता है और वे फैसला लेते हैं कि उम्मीदवार को संत घोषित किया जाना चाहिए। मगर, संत घोषित किए जाने के लिए दूसरा चमत्कार भी होना चाहिए।

मदर की प्रशंसा में ममता ने गाए टैगोर के गीत

मदर टेरेसा के शहर कोलकाता का प्रतिनिधित्व कर रहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने खास अंदाज में साथ गए लोगों के साथ संत घोषणा के समारोह में शिरकत की। मदर टेरेसा की पहचान बनी नीले बॉर्डर की साड़ी पहने ममता ने रोम से सेंट पीटर्स बैसीलिका तक का छह किलोमीटर का सफर पैदल प्रभातफेरी के रूप में पूरा किया।

इस दौरान उन्होंने रवींद्रनाथ टैगोर की कविताओं का गायन भी किया। इस दौरान उनके साथ बंगाली स्टाइल के कुर्ता-धोती में सांसद डेरेक ओब्रायन और कुर्ता-पायजामा में सुदीप बंद्योपाध्याय भी थे। ममता ने टैगोर के जिन बांग्ला गीतों का गायन किया उनमें- अगुनेर पोरोसमोनी…, बिश्वपिता तुमी हे प्रभू… और मंगलदीप जेले…थे। इन गीतों में मदर टेरेसा के किए कार्यों और उनसे पैदा हुई प्रसिद्धि की झलक मिलती है।

सोनिया ने जताई खुशी

नई दिल्ली में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहा कि संत की उपाधि मदर टेरेसा द्वारा किए गए सेवा कार्य पर दुनिया की मुहर जैसी है।

“कोलकाता की मदर टेरेसा को हम संत घोषित करते हैं। अब सभी चर्च उनका संत के रूप में सम्मान करेंगे।”

– पोप फ्रांसिस, रोमन कैथलिक समुदाय के सर्वोच्च धर्मगुरु

“मदर टेरेसा को संत की उपाधि से विभूषित किया जाना एक यादगार और गौरवपूर्ण क्षण है।”

– नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

×

प्रतिक्रिया दें
English HindiCharacters remaining

या निम्न जानकारी पूर्ण करें
नाम*

ईमेल*

Word Verification:*
Please answer this simple math question.
=
Click Here!

SOCIAL CONNECT

NaiDunia

ShareThis Copy and Paste
×
×

– See more at: http://naidunia.jagran.com/world-mother-teresa-proclaims-as-saint-by-pope-francis-in-vatican-city-810866?src=p1_w#sthash.0duLGvq9.dpuf

बेटी की शादी के लिए जोड़े पैसों से ऑटो चालक पिता ने बेटी को दी 5 लाख की राइफल

0
अहमदाबाद के एक ऑटोरिक्शा ड्राईवर, मनीलाल गोहिल ने अपनी बेटी मित्तल के निशानेबाज़ी के जूनून को पूरा करने के लिए, उसकी शादी के लिए जमा किये धन से उसके लिए 5 लाख की राइफल खरीद दी।जब वो बन्दूक का लाइसेंस बनवाने स्थानीय कमिश्नर के ऑफिस गए तो वहां मौजूद पुलिस वाले उनके इस कदम से बहुत ही आश्चर्यचकित और प्रसन्न हुए और मनीराम की सराहना की और लाइसेंस के लिए ज़रूरी मंजूरी दिलाने में मदद की।

मित्तल जो अपने माता पिता और भाई के साथ अहमदाबाद में गोमतीपुर चॉल में रहती हैं, एक राष्ट्रीय स्तर की निशानेबाज़ हैं। निशानेबाज़ी से उनका जुड़ाव 4 साल पहले हुआ जब वो शहर के ही राइफल क्लब में गयी और वहाँ उन्होंने कुछ निशानेबाज़ों को निशाना लगाते देखा।

सबसे बड़ी बात तो ये कि इतनी गरीबी और सीमित संसाधनों के बावजूद मनीराम ने उसके इस ख़र्चीले शौक को सीखने की इच्छा का आदर किया। मनीराम एक ऐसे इंसान हैं, जो अपने परिवार का पेट पालने के लिए बहुत मेहनत करते हैं।

मनीराम ने अपनी बेटी को निशानेबाज़ी सीखने के लिये क्लब में भर्ती करा दिया, जहाँ वो एक किराये की रायफल से अभ्यास करती थी। ट्रेनिंग के शुरुवात में ही उसने राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में कांस्य पदक जीता, तभी उसके खेल के प्रति सहज रुझान का पता चल गया था।

मित्तल के लिए अगली चुनौती थी अपनी खुद की रायफल खरीदना जिससे कि उनकी ट्रेनिंग सुचारू रूप से चलती रहे और वो अंतर्राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिता में भाग ले सकें।
उसके गरीब स्नेहिल पिता और भाई के लिए 50 मीटर मारक क्षमता वाली जर्मन रायफल खरीदने के लिए धन जुटाना मुश्किल काम था।

ऐसे समय में मनीराम ने फैसला किया कि अपनी बेटी की शादी के लिये पैसे बचाने से ज़्यादा ज़रूरी है उसके सपनों को पूरा करना। मनीराम ने मित्तल की शादी के लिए बचाये धन से उसके लिये एक रायफल खरीद दी।

6 महीने की कड़ी मेहनत और परिवार के लोगों द्वारा बचाये गए धन से, आज मित्तल के पास अपनी खुद की एक नयी जर्मन रायफल है। इसकी 1 बुलेट (गोली) 31 रूपये की आती है और अगर मित्तल किसी टूर्नामेंट में भाग लेती हैं तो कम से कम 1000 राउंड गोलियों की ज़रुरत पड़ेगी। मित्तल टूर्नामेंट में भाग लेना चाहती हैं। उसकी यात्रा में भी खासी लागत लगेगी , इसलिए परिवार का संघर्ष अभी ख़त्म नहीं हुआ हैं। मित्तल ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया कि, “मेरे पिता और मेरे परिवार ने मेरे महंगे शौक को पूरा करने के लिए बहुत से त्याग किये हैं। अब इस राइफल के मिलने के बाद मैं अंतर्राष्ट्रीय स्तर में भाग लेने और अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए कड़ी मेहनत करूंगी।“

 

भारत की पहली महिला नाई, शांताबाई की अद्भुत कहानी!  

0
देश की पहली महिला बारटेंडर शतभी बासु से लेकर देश की पहली महिला वाइन टेस्टर सोवना पूरी तक सभी महिलाये पुरे जोश और जूनून के साथ अपने पसंदीदा व्यवसाय में नाम कमा रही है।

लेकिन, 40 साल पहले एक महिला को पुरुषप्रधान व्यवसाय के बारे में कुछ भी नहीं पता था। अपने परिवार के साथ गाँव में एक अच्छी जिंदगी गुजारना ही उसका सपना था। पर किस्मत ने उसे एक ऐसे मोड़ पर लाके खड़ा कर दिया जहा पुरुषप्रधान दुनिया में उसे अपनी भूखी बच्चियों को पालने के लिये यह व्यवसाय करना पड़ा।ये कहानी है भारत की पहली महिला नाई शांताबाई की।

महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले के हासुरसासगिरी गाँव में रहनेवाली 70 वर्षीय शांताबाई, हम सभी के लिये एक मिसाल है। विपरीत परिस्थितियों में संघर्ष कर शांताबाई ने एक मुकाम हासिल किया है।

  सिर्फ १२ साल की उम्र में शांताबाई की शादी श्रीपती के साथ हुयी। उनके पिता नाई का काम करते थे और उनके पति का भी यही पेशा था।

कोल्हापुर जिले के अर्दल गाँव में श्रीपती अपने 4 भाइयो के साथ 3 एकड़ जमीन में खेती-बाड़ी करता था। सिर्फ खेती पर गुजारा मुश्किल था इसलिये खेती के साथ साथ वो नाई का भी काम करता था। कुछ ही दिनों में जायदाद का बटवारा हुआ और 3 एकड़ जमीन सभी भाइयो में बट गयी। जमीन का हिस्सा कम था इसलिये श्रीपती आसपास के गाँव में जाकर नाई का काम करने लगे।

इतनी मेहनत के बावजूद अच्छी आमदनी ना मिलने की वजह से श्रीपति ने साहुकारो से पैसे उधार लेना शुरू किया।

हासुरसासगिरी गाँव के सभापती हरिभाऊ कडूकर ने जब श्रीपती की परेशानी देखी तो उसे हासुरसासगिरी में आकर रहने के लिये कहा। हरिभाऊ के गाँव में कोई नाई नहीं था इसलिये वो ज्यादा पैसे कमा सकता था।

इस तरह शांताबाई और श्रीपती हासुरसासगिरी गाँव में आकर बस गये। अगले दस साल में शांताबाई ने 6 बेटियों को जनम दिया जिसमे से 2 की बचपन में ही मृत्यु हो गयी। दोनों की जिन्दगी आराम से कट रही थी।

पर अचानक सन 1984 में जब उनकी बड़ी बेटी 8 साल की थी और छोटी एक साल से कम उम्र की थी तब दिल का दौरा पड़ने से श्रीपती का देहांत हो गया।

तीन महीने तक शांताबाई दुसरो के खेत में काम करने लगी। उसे दिन में 8 घंटे काम करने पर सिर्फ 50 पैसे मिलते थे, जिससे घर का खर्चा और 4 बेटियों का गुजारा करना मुश्किल था।

सरकार ने उसे जमीन के बदले 15000 रुपये दिये। इन पैसो का इस्तेमाल शांताबाई ने अपने पति का कर्ज उतारने के लिये किया। फिर भी अपने बच्चो को वो दो वक्त का खाना भी नहीं दे पाती थी। तीन महीनो तक वो खेत में काम करती रही और अपने परिवार का गुजारा करती रही। बड़ी मुश्किल से वो बच्चों को खाना खिलाती थी। इतना ही नहीं कभी कभी वो भूखे ही सो जाते थे।परिस्थितियों से तंग आकर आखिर एक दिन शांताबाई अपना आपा खो बैठी  और उन्होंने अपनी 4 बेटियों के साथ खुद ख़ुशी करने का फैसला कर लिया।

इस बार भी हरिभाऊ कडूकर उनके लिये भगवान साबित हुये। जब शांताबाई अपने जीवन के इस अंतिम चरम पर थी तब हरिभाऊ अचानक एक दिन उनका हाल चाल पूछने आये और उनकी हालत देखकर उन्होंने शांताबाई को अपने पति का व्यवसाय संभालने के लिये कहा। श्रीपती के मौत के बाद गाँव में दूसरा नाई न होने की वजह से शांताबाई अच्छे पैसे कमा सकती थी।

शांताबाई ये सुनकर हैरान हुयी। भला एक महिला नाई का काम कैसे कर सकती है? पर उसके पास दूसरा कोई विकल्प भी नहीं था।

शांताबाई कहती है, “मेरे पास सिर्फ 2 रास्ते थे। एक तो मैं और मेरी बच्चीयाँ खुदख़ुशी कर ले या फिर मैं समाज की या लोगो की परवाह किये बिना अपने पति का उस्तरा उठा लूँ। मुझे मेरे बच्चो के लिये जीना था इसलिये मैंने दूसरा रास्ता चुना।”

शांताबाई अपने पति का व्यवसाय सँभालने लगी।

हरिभाऊ शांताबाई के पहले ग्राहक बने। शुरू-शुरू में गाँव के लोग उनका मजाक उड़ाया करते थे। पर इससे  शांताबाई का हौसला और बढ़ता गया। वो अपने बच्चो को पडोसी के पास छोड़कर आसपास के गाँव में जाकर नाई का काम करने लगी।

कडल, हिदादुगी और नरेवाडी गाँव में नाई नहीं था इसलिये वहा के लोग उनके ग्राहक बन गए।

धीरे धीरे शांताबाई की खबर दूर-दूर तक फैल गयी। इतना ही नहीं उस समय के जाने माने अखबार ‘तरुण भारत’ में भी उनके बारे में लिखा गया।

समाज को प्रेरित करने के लिये शांताबाई को समाज रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अन्य कई संस्थाओं ने भी उनहे पुरस्कार और सम्मान दिया।

शांताबाई को अपने इस काम के लिये विभिन्न पुरस्कारों से नवाजा गया।

सन 1984 में वो सिर्फ 1 रुपये में दाढ़ी और केश-कटाई करती थी।

कुछ ही दिनों में उन्होंने जानवरों के बाल कटाना भी शुरू कर दिया जिसके लिये वो 5 रुपये लेने लगी।

शांताबाई जानवरों के भी बाल काटती थी।

सन 1985 में इंदिरा गाँधी आवास योजना के अंतर्गत शांताबाई को सरकार की तरफ से घर बनाने के लिये पैसे मिले।

शांताबाई ने बिना किसी की मदद लिये अपनी चारो बेटियों की शादी बड़ी धूमधाम से की। वो आज 10 बच्चो की दादी है।

70 साल की उम्र में अब शांताबाई थक चुकी है। वो आसपास के गाँव में जा नहीं सकती इसलिये लोग ही अब उनके पास दाढ़ी और कटिंग के लिये आते है।

शांताबाई बताती है “गाँव में अब सलून है। बच्चे और युवक वही पर जाते है। मेरे पास पुराने ग्राहक ही आते है। अब मैं दाढ़ी और कटिंग के लिये 50 रुपये लेती हूँ और जानवरों के बाल काटने के लिये 100 रुपये लेती हूँ। महीने में 300-400 रुपये कमा लेती हू और सरकार से मुझे 600 रुपये मिलते है। ये पैसे मुझे कम पड़ते है पर जिंदगी में मैंने बहूत मुश्किलें पार की है, इसलिए अब थोड़े में ही गुजारा कर लेती हूँ। मुझे पता है कि जरूरत पड़ने पर मैं मेहनत से कमा सकती हूँ।”

शांताबाई कहती है “इस व्यवसाय ने मुझे और मेरे बच्चो को नयी जिंदगी दी है। जब तक मुझमे जान है मैं उस्तरा हाथ में लिये काम करती रहूंगी।”

अपने साहस और लगन को बढ़ावा देने के लिये शांताबाई हरिभाऊ कडूकर को धन्यवाद देती है। मुश्किल घडी में हरिभाऊ ने उसका साथ दिया इसलिये वो उन्हें अपना प्रेरणास्त्रोत मानती है।हरिभाऊ कडूकर – 2008 में 99 वर्ष की आयु में  हरिभाऊ की मृत्यु हो गयी। हरिभाऊ के परपोते, बबन पाटील आज भी शांताबाई के घर जाकर उनकी देखभाल करते है

(साभार – द बेटर इंडिया)

साल भर में 7 करोड़ महिलाएं बैंकिंग प्रणाली से जुड़ीं

0

बैंकिंग सुविधाओं को लोगों तक पहुंचाने की सरकार की कोशिश और नतीजा यह कि देश में आज 35.8 करोड़ यानी 61 प्रतिशत महिलाएं बैंक खाता धारक हैं। वर्ष 2014 में यह आंकड़ा 28.1 करोड़ था. वैश्विक कंसल्टेंसी ‘इंटरमीडिया’ द्वारा कराए गए सर्वेक्षण के मुताबिक आठ दक्षिण एशियाई देशों और अफ्रीकी देशों में ‘खाताधारक’ महिलाओं में यह सबसे बड़ा उछाल है।

सर्वेक्षण से पता चला है कि भारत में और अधिक महिलाएं बैंकिंग प्रणाली में शामिल हुई हैं। पुरुषों की तुलना में अंतर के मामले में भी महिलाओं ने चार प्रतिशत अंकों से यह फासला पार किया है, जो सर्वेक्षण में शामिल सभी देशों में सबसे तीव्र दर है।

इंटरमीडिया की वरिष्ठ सहयोगी निदेशक, नैथनील क्रेचन ने इंडिया स्पेंड को बताया, ‘भारत और बांग्लादेश में महिलाओं में वित्तीय समावेशन मुख्य रूप से बैंक खातों तक पहुंच द्वारा संचालित होता है, जबकि ज्यादातर तंजानियाई महिलाएं अपनी वित्तीय जरूरतें पूरी करने के लिए मोबाइल धन पर भरोसा करती हैं. यह चलन भारत और बांग्लादेश की तुलना में तंजानिया में महिलाओं द्वारा मोबाइल फोन के ज्यादा प्रयोग के कारण हैं।.’

भारत और तंजानिया ने लैंगिक अंतर को एक साल (2014-15) में सफलतापूर्वक कम किया है। भारत में यह अंतर 12 प्रतिशत से गिरकर आठ प्रतिशत और तंजानिया में 11 प्रतिशत से नौ प्रतिशत रह गया है।

क्रेचन ने कहा है कि हालांकि पहले के मुकाबले भारतीय महिलाओं के ज्यादा बड़े वर्ग तक वित्तीय सेवाओं की पहुंच हो गई है, लेकिन तंजानिया या बांग्लादेश के मुकाबले ‘बेहद कम’ महिलाएं औपचारिक वित्तीय सेवाओं पर भरोसा करती हैं। इस निष्कर्ष का अर्थ है कि भारतीय ज्यादातर साहूकारों, दोस्तों या परिवारों जैसे अनौपचारिक वित्तीय सेवाओं पर भरोसा करते हैं।

इंडिया स्पेंड की जुलाई 2016 की रपट बताती है कि हालांकि कृषि क्षेत्र में ऋण के प्रवाह में वृद्धि हुई है, लेकिन औपचारिक संस्थानों से छोटे ऋण की हिस्सेदारी में तेजी से गिरावट आई है। क्रेचन के मुताबिक, मुख्य रूप से ‘प्रधानमंत्री जन धन योजना’ (पीएमजेडीवाय) के कारण भारत में वित्तीय समावेशन में वृद्धि हुई है. इंडिया स्पेंड की जून 2016 की रपट के मुताबिक, पिछले 21 महीनों में जन धन यानी बुनियादी बचत खातों में 118 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है।

क्रेचन ने कहा, ‘इसमें मजेदार यह है कि यह कार्यक्रम मुख्य रूप से महिलाओं पर केंद्रित नहीं था, फिर भी पीएमजेडीवाय के तहत पुरुषों की तुलना में महिलाओं में वित्तीय समावेशन में ज्यादा तेज गति से वृद्धि हुई है।’

दिल्ली के ‘इंडिकस एनलिटिक्स’ में मुख्य अर्थशास्त्री सुमिता काले ने मई 2016 में समाचार पत्र ‘बिजनेस स्टैंडर्ड’ में लिखा था, ‘यह देखना सुखद है कि पीएमजेडीवाई मिशन निदेशालय ने इस मामले में प्रगति की है कि अब वह सिर्फ खातों की संख्या पर नजर नहीं रख रहा है, बल्कि कई सारे संकेतकों पर भी नजर बनाए हुए है.’

इनमें बैंक खातों को आधार कार्ड्स से जोड़ना, रुपे कार्ड्स, जनधन बैंक खातों में ओवरड्राफ्ट्स के इस्तेमाल के तरीके, बैंक मित्रों को भुगतान और उनकी प्रौद्योगिकी तैयारी जैसे कई संकेतक शामिल हैं।

 

वो जिसने दाना की कहानी दुनिया को बताई

0

पत्नी के शव को कंधों पर 12 किलोमीटर तक लेकर पैदल चलने वाले दाना मांझी की कहानी दुनिया को मालूम नहीं होती अगर टीवी रिपोर्टर अजीत सिंह ने इसे शूट नहीं किया होता।

अजीत सिंह के लिए ‘वो समय बड़ा विदारक था’ हालांकि कालाहांडी के इस मार्मिक कहानी को शूट करने वाले ओडिशा टीवी के रिपोर्टर की ख़ूब आलोचना भी हो रही है।

लोग कह रहे हैं कि 32 साल के अजीत ने मांझी की मदद नहीं की बल्कि उसका फ़ायदा उठाया मांझी की कहानी रिकार्ड कर।

लेकिन अजीत के लिए ये अनुभव कैसा था?

अजीत कहते हैं, “मुझे कालाहांडी अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि एक आदमी अपनी पत्नी के शव को लेकर पैदल अपने गांव जा रहा है।जन्माष्टमी का दिन था और फ़ोन सुबह पांच बजे आया. मैंने पता किया कि वो किस ओर जा रहा है और मैं शागड़ा गांव वाली सड़क पर तेज़ी से बाइक से निकल पड़ा।”

मांझी अजीत को शागड़ा गांव के पास नज़र आ गए. सुबह सात बज रहे थे।. कालाहांडी अस्पताल के टीबी वार्ड से शागड़ा गांव क़रीब 12-13 किलोमीटर दूर है।

अजीत कहते हैं, “मैंने मांझी से पूरी बात पूछी. उन्होंने बताया कि उनकी पत्नी की मौत रात में 2 बजे हो गई थी और अस्पताल वाले बार बार शव ले जाने को कह रहे थे लेकिन उनके पास महज़ 200-250 रुपये ही थे. उन्हें कोई एंबुलेंस नहीं मिल पाई तो वे अपनी पत्नी के शव को किसी तरह ले जाने की कोशिश कर रहे हैं।”

160825095730_man_carries_wifes_body_624x351_otv_nocredit

अजीत ने मांझी के लिए एंबुलेंस की कोशिश शुरू कर दी। सबसे पहले जिला अधिकारी बृंदा डी को फ़ोन कर।

जिलाधिकारी ने उनसे क्या कहा, “उन्हें कहा कि सीडीएमओ से एंबुलेंस का प्रबंधन करने को कहती हूं।.”

कालाहांडी की जिलाधिकारी बृंदा डी बताती हैं, “अजीत का फ़ोन आया था. इसके बाद कुछ स्थानीय लोगों के भी फ़ोन आए।मैंने अस्पताल के अधिकारी, सीडीएमओ को एंबुलेस की व्यवस्था कराने को कहा भी।”

सीडीएमओ ने एडीएमओ को एंबुलेंस की व्यवस्था करने को कहा और अजीत से कहा गया कि कोशिश हो रही है।

लेकिन इन सबमें वक्त लग रहा था और दिन चढ़ने लगा था, मांझी की 12 साल की बेटी चौला का सुबकना जारी था।

अजीत ने लांजीगढ़ के स्थानीय विधायक बलभद्र मांझी को भी फ़ोन किया, वे भुवनेश्वर में थे. उन्होंने अपना आदमी भेजने की बात कही।

मगर अंत में अजीत ने एक स्थानीय संस्था से मदद मांगी।

और उन लोगों को बताया कि दाना का घर क़रीब 60 किलोमीटर दूर है। जिसके बाद एंबुलेंस उपलब्ध हो पाई.

एंबुलेंस की मदद से ही दाना की पत्नी का शव मेलाघर गांव पहुंच पाया।

लेकिन क्या अजीत को एहसास था कि ये कहानी देश भर को झकझोर देगी?

वो कहते हैं, “मुझे दाना मांझी के लिए अच्छा नहीं लग रहा था। हमारे इलाके में बहुत गरीबी है. मैं उसकी मदद करना चाहता था. लेकिन काफी कोशिश करने के बाद भी दो घंटे में जब सिस्टम से कोई मदद नहीं मिली, तो मुझे लगा कि कहानी करनी चाहिए।मुझे उस वक्त ये बिलकुल एहसास नहीं हुआ था कि ये इतनी बड़ी बन जाएगी.”

अजीत कहते हैं 14 साल की पत्रकारिता के सफ़र में मुझे न तो ऐसी कहानी पहले कभी मिली, ना दिखी और ना ही कभी सुना था।

(साभार – बीबीसी हिन्दी)

गर्भावस्था के दौरान काम करके खुश हूं : करीना

0

मुंबई:भाषा: करीना कपूर मां बनने जा रही हैं, लेकिन उनका कहना है कि वह इस दौरान अपना काम करना जारी रखेंगी।करीना ने यहां संवाददाताओं को बताया, ‘‘ मैं भाग्यशाली हूं। मैं किसी अन्य के लिए टिप्पणी नहीं कर सकती, लेकिन मैं उम्दा भूमिकाएं चुनूंगी और करूंगी। मैं रात में आराम करती हूं और दिन में काम करती हूं।’’ हाल ही में रोहित शेट्टी ने कहा था कि वह ‘गोलमाल 4’ के लिए करीना से संपर्क करने में हिचकिचा रहे हैं क्योंकि करीना मां बनने जा रही हैं। हालांकि वे साथ मिलकर एक गाना कर सकते हैं।

इस बारे में पूछे जाने पर करीना ने कहा, ‘‘ मैं उस बारे में  फिलहाल नहीं सोच रही हूं। और रोहित को मुझसे क्यों डरना चाहिए। वास्तव में मुझे रोहित से डरना चाहिए। जिनके पास मेरे लिए भूमिका है, वे मेरे पास आ सकते हैं।’

 

एटिट्यूड स्किन केयर की नयी रेंज

0

एमवे इंडिया ने हाल ही में एटिट्यूड स्किन केयर की नयी रेंज बाजार में उतारी। इस रेंज में 2 फेशवॉश, तैलीय और शुष्क त्वचा के लिए निर्मित 2 मॉश्चराइजर्स, 1 फुटक्रीम और हैंड एंड बॉडी लोशन शामिल हैं जो युवाओं को ध्यान में रखकर तैयार किए गए हैं। कम्पनी का दावा है कि इसमें विटामिन्स तथा प्राकृतिक तत्व हैं तो त्वचा को नर्म बनाएंगे।

इन  तरीकों से आप भी कर सकती हैं आने वाले कल की तैयारी

0

भारत में ऐसी हाउसवाइव्स की तादाद बहुत ज्यादा है जो अपने पति पर निर्भर हैं और किसी भी तरह के वित्तीय फैसलों में उनकी भागीदारी न के बराबर हैं। इसके बावजूद वह घर की मैनेजर होती हैं और उनकी जिम्मेदारी अपने घर के बजट को मैनेज करने की होती है।

पिछले कुछ सालों में महंगाई तो बढ़ी है लेकिन उस अनुपात में सैलरी नहीं बढ़ी है. लेकिन कई बार जब घर में कोई इमर्जेंसी आती है जैसे, पति की जॉब छूट जाना या कोई हेल्थ प्रॉब्लम तो ऐसे वक्त में महिलाओं को फाइनेंशियल प्लानिंग ही काम आती है ।

मनी फ्लो मैनेजमेंट
ज्यादातर घरों में हाउसवाइव्स केवल ग्रॉसरी की खरीदारी तक ही सीमित हो जाती हैं लेकिन हाउसवाइव्स को इसके आगे बढ़ते हुए फाइनेंस को मैनेज करने का तरीका पता होना चाहिेए। इससे पता चलेगा कि कहां आपको ज्यादा खर्च करना है और कहां बचाना है। यह कोई रॉकेट साइंस नहीं और न ही इसके लिए किसी एक्सपर्ट की सलाह की जरूरत है। आप इसे खुद से या अपने पति के सलाह से भी कर सकती हैं।

खर्च नियंत्रित करना
अब जब आप मनी फ्लो मैनेजमेंट करना जान गईं हैं तो अब बारी है खर्चों पर कंट्रोल करने की, जैसे- अगर आपके घर का बिजली का बिल 2 हजार हर महीने आता है तो आपको सोचने की जरूरत है कि कैसे आप इसे कम कर सकती हैं। अगर आप हर रोज वॉशिंग मशीन का इस्तेमाल करती हैं तो हफ्ते में 3-4 दिन ही इस्तेमाल करें. ऐसी ही कई चीजों का ध्यान रखकर आप खर्चों में कटौती कर सकती हैं।

घर बैठे कमाएं पैसेबचत, बचत और सिर्फ बचत
हमेशा पैसों की बचत के बारे में सोचें. इसके लिए सबसे पहला कदम है एक अकाउंट खोलना। इसके अलावा आप सरकार की ओर से चलाई जा रही जीवन ज्योति जैसी तमाम तरह की योजनाओं में भी अपना रजिस्ट्रेशन करवा कर फायदा उठा सकती हैं। आप चाहें तो महंगी ब्रांडेड दवाओं की जगह सस्ती जेनेरिक दवाओं का इस्तेमाल करके भी पैसे बचा सकती हैं।

अगर आप पढ़ी लिखी हैं इसके बावजूद घर की जिम्मेदारियों के चलते आप अपने पति की कोई मदद नहीं कर पा रही हैं तो घर बैठे पैसे कमाने की तरकीब ढूंढना शुरू कर दें। आप फ्रीलांसर की तरह काम कर सकती हैं। इसके अलावा अगर आपकी पेंटिंग, डांसिंग, टीचिंग जैसी कोई हॉबी है तो आप इसके लिए अलग से क्लास चला सकती हैं और घर में क्लास लेकर पैसे कमा सकती हैं।

निवेश करें
निवेश की पहली सीढ़ी है बचत। अगर आप हर महीने पैसे बचाती हैं तो आपको सोचना चाहिए कि महंगाई को काटते हुए कैसे आप अपने पैसे को बढ़ा सकती हैं। कभी भी पैसे को अकाउंट में या घर पर भी खाली पड़े नहीं देना चाहिए। उसे फिक्स या फिर रिकरिंग डिपॉसिट में निवेश करना चाहिए। अगर आपका पैसा 10 हजार से बढ़कर 11 हजार भी हो जाता है तो यह एक फायदे का सौदा है।

 

70 फीसदी नूडल्स में नमक की मात्रा बहुत अधिक : अध्ययन

0

नयी दिल्ली – भाषा: देश में मिलने वाले 70 फीसदी नूडल्स में नमक की मात्रा बहुत अधिक होती है और इससे जुड़ी पोषण सूचना पैनल की सूची में भारत नौवें स्थान पर है।

एक रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत उन देशों की सूची में नौंवे स्थान पर जहां इंस्टैंट नूडल्स में नमक की मात्रा बहुत अधिक पाई जाती है।
‘जॉर्ज इंस्टीट्यूट फॉर ग्लोबल हेल्थ’ साल 2012 से 2016 के दौरान 765 नूडल उत्पादों के नमूने लिए और रिपोर्ट तैयार की। उसने कहा कि दुनिया भर में पाए जाने वाले नूडल्स में नमक की मात्रा बहुत अधिक और अनावश्यक है।