Tuesday, December 16, 2025
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तमिलनाडु रक्षा साजोसामान विनिर्माण इकाइयों हेतु औद्योगिक गलियारे का उद्घाटन 

नयी दिल्ली :  देश में रक्षा उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए एक कदम और आगे बढ़ाते हुए रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण ने रविवार को तमिलनाडु रक्षा साजोसामान विनिर्माण इकाइयों के लिए औद्योगिक गलियारे का उद्घाटन किया। सीतारमण ने कहा कि इसको लेकर स्थानीय उद्योग की प्रतिक्रिया काफी उत्साहनक रही है। ‘वे तो यहां तक चाहते थे कि इस गलियारे का विस्तार पलक्कड़ तक किया जाए, लेकिन हमने उनसे कहा है कि अभी यह सिर्फ शहरों तक केंद्रित रहेगा।’’
तमिलनाडु रक्षा औद्योगिक गलियारे को तमिलनाडु रक्षा उत्पादन चतुर्भुज भी कहा जाता है। इसमें नोडल शहर चर्तुभुज बनाते हैं। इन शहरों में चेन्नई, होसुर, सालेम, कोयम्बटूर और तिरुचिरापल्ली आते हैं। रक्षा औद्योगिक गलियारा बनाने का उद्देश्य रक्षा औद्योगिक इकाइयों के बीच संपर्क सुनिश्चित करना है। वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पिछले साल अपने बजट भाषण में दो रक्षा औद्योगिक उत्पादन गलियारे स्थापित करने की घोषणा की थी। सरकार ने उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में गलियारा बनाने का लक्ष्य रखा था। पिछले साल 11 अगस्त को उत्तर प्रदेश रक्षा औद्योगिक गलियारे की शुरुआत अलीगढ़ से हुई थी। इसके तहत रक्षा उत्पादन में 3,732 करोड़ रुपये का निवेश करने की घोषणा की गई थी

भारत में फ्लाइंग कार का सपना होगा साकार, 2021 में होगी लॉन्च

देश में अभी तो इलेक्ट्रिक कारों को लेकर ही जद्दोजहद चल रही है ऐसे में उड़ने-वाली कार यानि फ्लाइंग कार के बारे में सोचना कल्पना से कम नहीं है। हालांकि अब उड़ने वाली कार के दिन बहुत दूर नहीं, गुजरात में आयोजित वाइब्रेंट गुजरात समिट में एक “फ्लाइंग कार” कंपनी पीएएल -वी के मालिक ने कई रोचक जानकारियां दी हैं।
पीएएल -वी हॉलैंड की कंपनी है जिसने विश्व की पहली “फ्लाइंग कार” को बनाया है। हालांकि इस कार की प्री-बुकिंग बाहर कई देशो में शुरू हो चुकी । पीएएल -वी के मुखिया Robert Dingemanse Vibrant Gujarat Summit 2019 कार्यक्रम में पहुंचे, वहां उन्होंने कहा इस फ्लाइंग कार की डिलीवरी 2020 से शुरू होने की उम्मीद है। और हम आशा करते हैं कि भारत में इस कार को 2021 में देखा जा सकेगा।
कार की खासियतें
कार में उड़ने के लिए 197 बीएचपी की पॉवर पैदा करने वाला इंजन दिया गया है। कार एक बार में 1,287 किमी तक चलने में सक्षम है। वहीं इसकी उड़न क्षमता 310 किमी की है। कार की जमीन पर गति 160 किमी प्रति घंटा की होगी जबकि हवा में यह कार 180 किमी प्रति घंटा की गति से उड़ने में सक्षम है। कार को ड्राइव मोड़ से उड़ने में महज 10 मिनट का समय लगता है। कार को लैंड होने के लिए 330 मीटर की जगह चाहिए होगी। कार का वजन 664 किलो है।
पीएएल -वी लिबर्टी की कीमत 4.18 करोड़ है वहीं इसके लिबर्टी पाइनियर संस्करण की कीमत 3.78 करोड़ रूपए और लिबर्टी स्पोर्ट्स मॉडल की कीमत 2.52 करोड़ रूपए है।

लीक से हटकर भी फिल्में बननी चाहिए

रेखा श्रीवास्तव

जनवरी का महीना हो। रविवार हो। दोपहर का समय हो और आपको फिल्म देखने की इच्छा हो जाये। और उसके ऊपर आपको टिकट भी आपको फिल्म शुरू होने के दस मिनट पहले आसानी से मिल जाए तो खुद को भाग्यशाली ही समझिये। उस पर से भी काउंटर पर आपसे मनपसंद सीटें पूछे तो सच मानिए यकिन दिलाने के लिए खुद को चिमटी काटनी ही पड़ती है। मेरे साथ ऐसा ही हाल में हुआ। मैं फिल्म देखने पहुंची और देखा कि मल्टीप्लेक्स के एक हॉल में गिने चुने ही कुछ लोग फिल्म देखने आये हैं। यह फिल्म थी संजय बारू की किताब ‘द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर ‘ पर आधारित निर्देशक विजय रत्नाकर गुट्टे की फिल्म’ द ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर ‘। मुझे राजनीति समझ में नहीं आती इसलिए इसको देखने की इच्छा नहीं थी लेकिन पिछले कई दिनों से हो रही चर्चा से मेरे अंदर कोतूहल जाग उठा। मुझे लगा कि चलो राजनीति फिल्म देख कर शायद कुछ राजनीति के बारे में जान सकूं। सच मानिये। बहुत कुछ तो राजनीति के बारे में जान नहीं पायी, लेकिन पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के बारे में बहुत जान पायी। पूर्व पीएम मनमोहन सिंह का किरदार निभा रहे अनुपम खेर के अभिनय को देखकर महसूस हुआ कि एक पीएम भी क्या इस तरह से हो सकते हैं। उनके अंदर की घुटन का मुझे अनुभव हो रहा था। उन्होंने राजनीतिक परिवार की भलाई की खातिर देश के सवालों का जवाब देने के बजाय चुप्पी साधे रखी। फिल्म में कुछ ऐसी बातें भी हैं, जो पूर्व पीएम की इमेज को साफ करने के साथ-साथ धूमिल भी कर रही है। इस फिल्म में दिखाया गया है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह पुस्तक ऐक्सिडेंटल प्राइम मिनिस्टर लिखने के बाद वो अपने प्रिय संजय बारू से नाराज हो गये और उसके बाद उनसे कभी नहीं मिले, क्यों नहीं मिले। उनके प्रिय रहे संजय को अचानक क्यों दूर कर दिया। इत्यादि… इत्यादि सवाल मेरे अंदर चल रहे हैं। 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पीएमओ से जुड़ी जिस दुनिया को दिखाया गया है, उससे मैं उस दौर के बारे में बहुत कुछ समझ पायी। । मनमोहन सिंह का किरदार निभा रहे अनुपम खेर का अभिनय तो जबरदस्त हैं लेकिन कई बार उनका चलना, बोलना अखरता है। कई बार तो हास्यास्पद भी लगता है। ऐसे लग रहा था कि उनके अंदर बहुत कुछ चल रहा है। संजय बारू यानी पुस्तक के लेखक का किरदार निभा रहे अक्षय खन्ना का अभिनय तो बहुत अच्छा है। मुख्य भूमिका में भी वे ही हैं। उन्हें सूत्रधार के रूप में भी दिखाया गया है, पर कई बार उनके बोलने का अंदाज अखरता हैं। समझ में नहीं आता कि उनको इतना ज्यादा फोकस क्यों किया गया है। वो प्रधानमंत्री के मीडिया सलाहकार है। उसके साथ-साथ सबसे बड़ी बात है कि प्रधानमंत्री को समझते हैं। उनके लिए लिखते हैं। सीधे उनके साथ काम करना चाहते हैं। पीएमओ में उनका आना-जाना भी है। वहाँ उनके कई दुश्मन भी हैं, और उनका डंटकर सामना भी करते हैं। इसके बावजूद दर्शक उनके अलग अंदाज में बोलने का रहस्य नहीं जान पाते हैं। वैसे अक्षय खन्ना का अभिनय तो काबिले तारीफ है, लेकिन इसके बावजूद उनका अलग तरह से पेश आना, दर्शकों को कई बार खटकता है। लेकिन फिर भी दर्शकों से संजय का एक जुड़ाव हो जाता है। फिल्म की कहानी कुछ इस तरह से है । कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी (सुजैन बर्नेट) को जीत मिलती है। वह स्वयं पीएम बनना चाहती हैं लेकिन बन नहीं पाती हैं। उनका बेटा राहुल गांधी (अर्जुन माथुर) जो राजनीति को समझ नहीं पा रहा है इसीलिए उसको पीएम नहीं बनाया जा रहा है इसलिए पीएम बनने के लिए मनमोहन सिंह को चुना जाता है। वो पीएम बनते भी हैं। उनमें कई बार ऊर्जा दिखाई भी देती हैं लेकिन वह फिर सिमट जाते हैं। आखिरमें वह इस्तीफा देना चाहते हैं लेकिन उन्हें इजाजत नहीं मिलती। प्रियंका गांधी (आहना कुमरा) अच्छी दिखती हैं। इस फिल्म में उस दौर के कई मुद्दे दिखाये गये हैं। यह भी पता चला कि कैसे प्रधानमंत्री अपनी ही पार्टी के लोगों से अलग होते रहे और त्रस्त होते रहे हैं। निर्देशक विजय रत्नाकार गुट्टे ने इस फिल्म को बहुत ही अच्छे तरीके से बनाया है। फिल्म की कहानी बहुत ही अच्छी है। चुस्त दुरुस्त हैं। इस फिल्म को देखने के बाद किताब को पढ़ने की इच्छा भी जाग रही है। मुख्य कलाकारों में केवल अनुपम खेर, अक्षय खन्ना ही हैं। इसके अलावा मनमोहन की पत्नी का किरदार निभा रही दिव्या सेठ के सीन तो कम हैं, लेकिन उनका अभिनय भी दर्शकों को याद रह जायेगा। इसके अलावा सब गिने-चुने ही हैं और अभिनय भी खास नहीं है। गाना तो केवल एक है, लेकिन अच्छा है। गुनगुनाने का मन करता है। वैसे यह फिल्म प्रेम, रोमांस से अलग हटकर बनी है और एक अलग तरह की भी है, इसलिए मुझे लगता है कि इस तरह की फिल्में बननी चाहिए जिससे लोग प्रेम, रोमांस के अलावा विषय के बारे में भी जान सके।

सावित्री गर्ल्स कॉलेज में मनायी गयी विवेकानन्द जयन्ती

कोलकाता : सावित्री गर्ल्स कॉलेज में हाल ही में स्वामी विवेकानन्द की 156वीं जयन्ती मनायी गयी। इस अवसर पर आयोजित कार्यक्रम की कमान कॉलेज की सांस्कृतिक कमेटी तथा एनएसएस शाखा ने उठायी। क़ॉलेज के विभिन्न विभागों के शिक्षक – शिक्षिकाओं ने इस अवसर पर स्वामी जी के व्यक्तित्व तथा कृतित्व पर चर्चा की। वक्ताओं ने स्वामी विवेकानन्द के चरित्र, शिक्षा और मानवता के प्रसार की दिशा में किए गए अवदान को भी सराहा।

इस पूरे आयोजन का दायित्व प्रो. नवनीता सेन तथा प्रो. अल्फिया टुंडावाला ने सम्भाला। इसके साथ ही ह्यूमन डेवलपमेंट विभाग की डॉ. अदिति मण्डल और डॉ. स्वाति मण्डल का भी उल्लेखनीय योगदान रहा। इस अवसर पर छात्राओं ने भी स्वामी जी के योगदान, साहस की चर्चा की और कहा कि स्वामी जी सभी के लिए विशेष रूप से युवाओं के लिए आज भी प्रेरक हैं।
स्वर्णिमा स्वस्तिका तिवारी की रिपोर्ट

वीरांगनाओं ने की आग से प्रभावित परिवारों की सहायता

हावड़ा :  अंतर्राष्ट्रीय क्षत्रिय वीरांगना फ़ाउंडेशन पश्चिम बंगाल इकाई की ओर से बुधवार को हावड़ा के गोलाबाड़ी थाना अंतर्गत घास बगान के बेचाराम चौधरी लेन की झोपड़पट्टियों में गत 30 दिसम्बर की देर लगी आग से प्रभावित लोगों की सहायता की गयी। आग से खटाल व मूर्ति बनाने के काम से जुड़े सात परिवारों का सब कुछ जलकर खाक हो गया था। उन परिवार को वीरांगना की प्रदेश अध्यक्ष प्रतिभा सिंह के नेतृत्व में संगठन की पदाधिकारियों प्रतिमा सिंह, इंदु सिंह, रीता सिंह, मीनू सिंह, पूजा सिंह, ममता सिंह व सुनीता सिंह ने कम्बल व चूड़ा-गूड़ देकर सहायता की। प्रभावित परिवारों के प्रमुख उमेश यादव, नरेश यादव, महेश सोनकर, केस्टो पॉाल, शिखूर, हरिंदर यादव, वाल्मीकि दूबे और विजय को यह सहायता दी गयी।

साहित्यिकी ने आयोजित की कविता कार्यशाला

कोलकाता : शहर की सुपरिचित संस्था 'साहित्यिकी' की ओर से गत 12 जनवरी को भारतीय भाषा परिषद के सभाकक्ष में प्रातः ग्यारह बजे से कविता कार्यशाला का आयोजन किया गया। इस कार्यशाला में कम्प्यूटर वैज्ञानिक एवं कवियत्री वाणी मुरारका ने श्रोताओं को हिन्दी कविता के लिए निर्मित अनोखे सॉफ़्टवेयर 'गीत- गतिरूप ' से परिचित करावाया। यह सॉफ़्टवेयर छंदबद्ध और मुक्त- छंद की कविता व गजल लिखने में सहायक है। वाणी मुरारका ने 'छंद' में लिखने की सरल विधा के बारे में बताते हुए यह भी स्पष्ट किया कि व्यक्ति अपने अंदर छिपे हुए नैसर्गिक लय व छंद से कैसे परिचित हो सकता है।
कार्यशाला में विभिन्न महाविद्यालयों तथा विश्वविद्यालयों के विद्यार्थियों की सक्रिय भागीदारी रही।संगीत की धुन पर काव्य -सृजन की विधि भी बताई गई। सहभागियो ने तत्काल कविता रचकर अपनी प्रतिभा का परिचय दिया। कवि अज्ञेय,दिनकर,बच्चन,दुष्यन्त आदि कवियो की काव्य पंक्तियों के उदाहरण के माध्यम से वाणी ने बताया कि छंद में कैसे सहजता से लिखा जा सकता है। वाणी के साथ छंद के प्रवाह में बहते हुए सभा में उपस्थित सभी उम्र के सहभागियों ने कविता की कार्यशाला में सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। सहभागियों ने यह भी कहा की इस तरह की कार्यशालाएं समय समय पर आयोजित की जानी चाहिए।
कार्यक्रम का संचालन सहसचिव रेणु गौरीसरिया ने किया एवं अध्यक्ष कुसुम जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया। आशा जायसवाल ने विद्यार्थियों को प्रमाणपत्र प्रदान किया।

हिन्दी क्षेत्र की जनता आज भी धर्म-जाति और समुदायों में विभक्त – डॉ. वैभव सिंह

कोलकाता :  “हिन्दी प्रदेश, नवजागरण और वैचारिक संकट” विषय पर अनहद कोलकाता द्वारा आयोजित वार्षिक व्याख्यान माला में मुख्य वक्ता दिल्ली से आए डॉ.वैभव सिंह ने हिन्दी में नवजागरण की समझ विकसित करने की जरूरत पर बल देते हुए कहा कि नवजागरण के सूत्र अब तक हिन्दी क्षेत्र में पहुँच नहीं पाए हैं और हिन्दी पट्टी तक नवजागरण ठीक उसी तरह से घटित नहीं हुआ जिस तरह यूरोप और बाद में बंगाल और महराष्ट्र में घटित हुआ। उन्होने जोर देकर कहा कि हिन्दी क्षेत्र की जनता आज भी धर्म और जाति और समुदायों में विभक्त है जबकि नवजागरण की परिकल्पना के मूल में मनुष्य को मनुष्य के समुदाय में देखने की बात कही गई है। विदित हो कि अनहद कोलकाता एक वेव पत्रिका है और इस सदी के पहले दशक से ही सक्रिय रही है। अनहद कोलकाता द्वारा आयोजित वार्षिक कार्यक्रम में अध्यक्षता युवा चितंक और आलोचक डॉ. ऋषिकेश राय कर रहे थे। उक्त आयोजन में हिन्दी कविता को अपनी लोक संवलित कविता से समृद्ध करने वाले श्री केशव तिवारी को मनीषा त्रिपाठी स्मृति अनहद कोलकाता सम्मान प्रदान किया गया। श्री केशव तिवारी को अनहद कोलकाता के संपादक-संचालक डॉ. विमलेश त्रिपाठी एवं नीलांबर कोलकाता के महासचिव श्री ऋतेश पाडेय ने ग्यारह हजार रूपए की राशि, प्रशस्ति पत्र एवं स्मृति चिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। केशव तिवारी के सम्मान में प्रदान की गई प्रशस्ति पत्र का वाचन युवा प्राध्यापक श्री संदीप राय ने किया। बाद में अपनी रचना प्रक्रिया पर सम्मानित कवि केशव तिवारी जी ने अपना लंबा वक्तव्य रखा और अपनी कविताओं से दर्शकों का दिल जीत लिया। समापन सत्र में सिक्किम विश्वविद्यालय के संगीत विभाग के प्रोफेसर डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने अपने शास्त्रीय एवं उप शास्त्रीय गायन से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। पूरे कार्यक्रम का संचालन युवा आलोचक पीयूष कांत ने किया और अंततः धन्यवाद ज्ञापन डॉ. विमलेश त्रिपाठी ने किया। उक्त कार्यक्रम में हावड़ा एवं कोलकाता के साहित्यकार, साहित्य प्रेमी एवं भारी संख्या में शोध छात्र एवं छात्राएं मौजूद थीं जिनमें नवज्योति के संचालक प्रभात मिश्रा, नीलांबर कोलकाता के सदस्य ऋतेश पाडेय, ममता पांडेय, मनोज झा, विशाल पांडेय, सुजीत राय, स्मिता गोयल,पूनम सिंह के अलावा युवा कवि नील कमल, आनंद गुप्ता, डॉ.विनय मिश्र एवं गजलकार डॉ. विनोद प्रकाश गुप्ता एवं रौनक अफरोज, राहुल शर्मा, विनोद कुमार, दिवाकर सिंह, युगेश सिंह सहित हावड़ा नवज्योति के सदस्य और छात्र-छात्राएँ एवं भारी संख्या में सुधी श्रोता उपस्थित थे।

अभिनेता किशोर प्रधान का निधन

मुम्बई :  हिंदी और मराठी फिल्मों के मशहूर अभिनेता किशोर प्रधान का गत शनिवार निधन हो गया। वह 86 साल के थे। उन्हें बॉलीवुड की हिट फिल्म ‘जब वी मेट’ में एक स्टेशन मास्टर की भूमिका में देखा गया था। मशहूर मराठी लेखक और कवि चंद्रशेखर गोखले ने सोशल मीडिया पर किशोर के निधन की जानकारी दी।
फिल्म ‘जब वी मेट’ में एक स्टेशन मास्टर की भूमिका में उन्होंने डायलॉग ‘लड़कियां खुली तिजोरी की तरह होती हैं’ बोला था जो बहुत पॉपुलर हुआ था। किशोर ने करीना कपूर को यह सलाह तब दी थी जब वह आधी रात को फिल्म में लीड रोल कर रहे शाहिद कपूर की वजह से अपनी ट्रेन मिस कर देती हैं। किशोर को आखिरी बार मराठी फिल्म शुभ लगन सावधान में देखा गया था। वहीं, इंडियन एक्सप्रेस ने फिल्म में किशोर के को-स्टार सुबोध भावे से बात की जिस पर उन्होंने बताया ‘हमने फिल्म में साथ काम किया, लेकिन फिल्म के रिलीज होने के बाद से किशोर से मेरी बात नहीं हो पाई, मुझे पता चला था कि उनकी तबियत कुछ ठीक नहीं है, मैं इसलिए नहीं मिल पाया क्योंकि में शूट के लिए शहर से बाहर गया हुआ था, दरअसल मुझे भी उनके निधन का असल कारण नहीं पता है, उनका परिवार उनके निधन से बेहद कमजोर पड़ गया है और उनके अंतिम संस्कार की तैयारी कर रहा है।’
बता दें कि महेश मांजरेकर की फिल्म लालबाग परेल और संतोष मांजरेकर की शिवाजी राव भोंसले बॉलटॉय में उनकी भूमिका को फिल्म आलाचकों ने खूब सराहा था। उन्होंने 100 से भी ज्यादा मराठी थिएटर के नाटकों में काम किया है और 18 अंग्रेजी नाटको में भी वह अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके हैं। गौरतलब है कि स्कूल के दौरान से ही उन्होंने एक्टिंग करना शुरू कर दिया था। पहले वह कॉलेज में एक्ट किया करते थे बाद में उन्होंने खुद का ही थिएटर ग्रुप नटराज शुरू किया था।

कुम्भ मेले में 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग के जरिए समुद्र मंथन होते देख सकेंगे श्रद्धालु

प्रयागराज : अहमदाबाद की कंपनी ब्लिंक 360 ने कुम्भ मेले में लोगों को 3डी प्रोजेक्शन मैपिंग के जरिए समुद्र मंथन और रामायण का वीडियो दिखाने की तैयारी की है। यह एक नई प्रौद्योगिकी है जिसका उपयोग अभी तक विशाल इमारतों पर होता रहा है लेकिन कुंभ में इसका उपयोग हॉल के भीतर छोटे ढांचे पर होगा।

ब्लिंक 360 के प्रबंध निदेशक लोवालेन रोजारियो ने पीटीआई भाषा को बताया, “हमने सबकुछ अपने स्टूडियो में तैयार किया है। हम प्रोजेक्शन मैपिंग की अवधारणा खास तौर पर इस कुम्भ मेले के लिए लेकर आए हैं।”
रोजारियो ने बताया, “समुद्र मंथन की कहानी को पर्दे पर उतारने में हमें डेढ़ महीने का समय लगा और करीब 100 लोगों ने इस परियोजना पर काम किया है। इस फिल्म के लिए वृंदावन के प्रेम मंदिर का सेट तैयार किया गया है। हम इसी सेट पर पूरी फिल्म दिखाएंगे।”
उन्होंने बताया, “यह सिर्फ एक कहानी नहीं है, बल्कि इसमें विजुअल इफेक्ट भी है। यह पूरी फिल्म एनिमेटेड है। प्रोजेक्शन मैपिंग आमतौर पर एक ढांचे पर की जाती है। हमने फोम से एक कृत्रिम मॉडल बनाया है। यह कुल मिलाकर 3जी प्रोजेक्शन होगा। 3डी फिल्म देखने के लिए व्यक्ति को 3डी चश्मा पहनना पड़ता है, लेकिन यहां आपको 3डी चश्मा नहीं पहनना पड़ेगा।”
रोजारियो ने बताया, “हमने स्वयं यह टेक्नोलॉजी पेश की है। अभी तक प्रोजेक्शन मैपिंग का उपयोग विशाल इमारतों पर किया जाता रहा है। लेकिन हमने हॉल के भीतर छोटे ढांचे पर यह शुरू किया है।”
उन्होंने बताया कि कुम्भ मेला क्षेत्र के सेक्टर एक स्थित हॉल में एक शो में 400 लोगों के बैठने की व्यवस्था है। हम एक घंटे में दो शो चलाएंगे और एक शो सात मिनट का होगा। ये वीडियो हिंदी भाषा में हैं और प्रति व्यक्ति 50 रुपये का शुल्क लिया जाएगा। उन्होंने बताया कि कंपनी ने इस आयोजन के लिए करीब डेढ़ करोड़ रुपये का निवेश किया है और हमें लोगों से अच्छी प्रतिक्रिया मिलने की उम्मीद है।

नौकरी के लिए खाड़ी देशों में जाने वालों की संख्या 5 साल में 62 फीसदी गिरी

नयी दिल्ली : भारतीयों को खाड़ी देशों में प्रवास करने की मंजूरी साल 2017 के मुकाबले, 2018 के नंवबर माह (11 अवधि तक) तक 21 फीसदी कम हुई है। ये संख्या 2.95 लाख है। इससे पहले 2014 में ये संख्या 7.76 लाख थी। जो 2018 में 62 फीसदी तक कम हो गई है। ये आंकड़े ई-माइग्रेट इमिग्रेशन डाटा से लिए गए हैं। जो ईसीआर (इमिग्रेशन चेक रिक्वायर्ड) रखने वाले श्रमिकों को प्रवासन की मंजूरी देता है।
साल 2018 के दौरान बड़ी संख्या में लोग यूएई गए थे। जो कुल प्रवास करने वालों की संख्या का 35 फीसदी (1.03 लाख) है। इसके अलावा 65 हजार श्रमिक सऊदी अरब और 52 हजार श्रमिक कुवैत गए हैं। इससे पहले 2017 में भारतीय श्रमिकों के लिए खाड़ी देशों में सबसे पसंदीदा जगह सऊदी अरब था। 22 अगस्त 2017 में निताकत स्कीम आने के बाद विश्लेषण किया गया तो पता चला कि श्रमिकों की संख्या घटने लगी है। जिसमें भारतीय श्रमिक भी शामिल हैं। यह स्कीम स्थानीय श्रमिकों के संरक्षण के लिए लाई गई थी। इससे पहले 2014 में 3.30 लाख श्रमिक सऊदी अरब गए थे जो कि पहले के मुकाबले काफी कम संख्या थी।
केवल कतर ही ऐसा देश है जहां बीते सालों के मुकाबले 2018 में प्रवासियों के जाने की संख्या बढ़ी है। 2018 में कतर में प्रवास करने के लिए 32,500 को मंजूरी दी गई है। यह संख्या 2017 में 25,000 हजार थी। जो कि अब 31 फीसदी बढ़ गई है। मुंबई स्थित लेबर रिक्रूटर का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि कतर 2022 में फुटबॉल वर्ल्ड कप आयोजित करने वाला है। इसलिए यहां श्रमिकों की मांग बढ़ी है। हालांकि ऐसी खबरें भी आई हैं कि यहां भारतीय श्रमिकों को काम के बदले भुगतान नहीं किया जा रहा है। खबर ये भी आई है कि एक कन्सट्रक्शन एजेंसी ने करीब 600 श्रमिकों को वेतन नहीं दिया है।
वाशिंगटन हेडक्वार्टर थिंक थैंक, द मिडल ईस्ट इंस्टीट्यूट का कहना है कि करीब 6-7.5 लाख भारतीय श्रमिक प्रवासी कतर में काम कर रहे हैं। ये संख्या कतर के स्थानीय श्रमिकों से दो गुना अधिक है। हालांकि बीते कुछ सालों में कतर ने भी श्रमिकों के संरक्षण के लिए कई योजनाओं की शुरुआत की है।
एक सवाल के जवाब में बीते साल दिसंबर में विदेश मंत्रालय ने कहा था कि श्रमिकों की संख्या गिरने का मुख्य कारण खाड़ी देशों में आर्थिक मंदी का होना है। ऐसा इसलिए क्योंकि तेल के दामों में उतार चढ़ाव आया है। इसके अलावा ये देश सरकारी और निजी दोनों क्षेत्रों में पहले अपने नागरिकों को काम देते हैं, बाद में किसी और देश के नागरिकों को। बता दें बड़ी संख्या में भारतीय श्रमिक जिनके पास ईसीआर पासपोर्ट होता है, वो खाड़ी देशों में टूरिस्ट वीजा पर जाते हैं। इसके बाद ये अपने वीजा को रोजगार वीजा में बदलवा लेते हैं।