-मेट्रो रूट का ब्लूप्रिंट मैंने तैयार किया था : ममता
कोलकाता। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को कोलकाता में विभिन्न मेट्रो रेलवे परियोजनाओं का उद्घाटन किया। प्रधानमंत्री ने तृणमूल पर निशाना साधते हुए कहा कि दागी मंत्रियों को हटाये जाने से संबंधित विधेयक की प्रतिय़ां फा़ड़ने से सरकार चुप नहीं बैठेगी। हर हाल में तृणमूल सरकार की विदाई तय है। उन्होंने जेसोर रोड मेट्रो स्टेशन से नोआपाड़ा -जय हिंद विमानबंदर मेट्रो सेवा, सियालदह-एस्प्लेनेड मेट्रो सेवा और बेलेघाटा-हेमंत मुखोपाध्याय मेट्रो सेवा को हरी झंडी दिखाई और फिर मेट्रो में यात्रा की। इस दौरान प्रधानमंत्री मोदी ने मेट्रो परियोजनाओं में शामिल श्रमिकों और स्कूली छात्रों से बातचीत की। केंद्रीय मंत्री रवनीत सिंह और शांतनु ठाकुर ने उनका अभिनंदन किया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि आज एक बार फिर मुझे पश्चिम बंगाल के विकास को गति देने का अवसर मिला है। अभी मैं नोआपाड़ा से बिमानबंदर तक कोलकाता मेट्रो का आनंद लेकर आया हूं। इस दौरान बहुत सारे साथियों से मुझे बातचीत करने का अवसर भी मिला। हर किसी को खुशी है कि कोलकाता का पब्लिक ट्रांसपोर्ट वाकई अब आधुनिक हो रहा है। उन्होंने कहा कि आज यहां 6 लेन के एलिवेटेड कोना एक्सप्रेसवे का भी शिलान्यास किया गया है। हजारों-करोड़ रुपए के इन सभी प्रोजेक्ट्स के लिए कोलकातावासियों को और पूरे पश्चिम बंगाल के लोगों को बहुत-बहुत बधाई। ये कनेक्टिविटी कोलकाता और पश्चिम बंगाल के बेहतर भविष्य की नींव को मजबूत करेगी। कोलकाता जैसे हमारे शहर भारत के इतिहास और हमारे भविष्य, दोनों की समृद्ध पहचान हैं। आज जब भारत, दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी इकॉनोमी बनने की तरफ आगे बढ़ रहा है, तब कोलकाता समेत इन शहरों की भूमिका बहुत बड़ी है। पीएम मोदी ने कहा कि आज के इस कार्यक्रम का संदेश मेट्रो के उद्घाटन और हाइवे के शिलान्यास से भी बड़ा है। ये आयोजन इस बात का भी प्रमाण है कि आज का भारत अपने शहरों का कैसे कायाकल्प कर रहा है। यह गर्व की बात है कि भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा मेट्रो नेटवर्क है। 2014 से पहले देश में केवल 250 किलोमीटर मेट्रो रूट थे। आज यह आंकड़ा 1,000 किलोमीटर से ज्यादा हो गया है। कोलकाता में भी सात नए स्टेशनों के जुड़ने से मेट्रो नेटवर्क का विस्तार हुआ है। ये विकास कोलकातावासियों के जीवन और आवागमन को और भी आसान बना देंगे। उन्होंने आगे कहा कि भारत सरकार पश्चिम बंगाल के विकास के लिए हरसंभव प्रयास कर रही है। आज पश्चिम बंगाल देश के उन राज्यों में शामिल हो चुका है, जहां रेलवे का शत-प्रतिशत बिजलीकरण हो चुका है। लंबे समय से पुरुलिया से हावड़ा के बीच मेमू ट्रेन की मांग हो रही थी, भारत सरकार ने जनता की ये मांग भी पूरी कर दी है। इसी बीच, मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया कि इन परियोजनाओं की योजना, ब्लूप्रिंट और शुरुआती कार्यों में राज्य सरकार और स्वयं उनकी अहम भूमिका रही है। प्रधानमंत्री के आगमन से कुछ घंटे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सोशल मीडिया एक्स पर लिखा कि जब मैं रेल मंत्री थी, तब कोलकाता में कई मेट्रो रेल कॉरिडोर की योजना और मंजूरी का प्रबंध किया था। इन परियोजनाओं का ब्लूप्रिंट मैंने तैयार किया, फंडिंग सुनिश्चित की और काम शुरू करवाया। मैंने यह भी तय किया कि जोका, गड़िया, एयरपोर्ट, सेक्टर-फाइव जैसे हिस्सों को एक इंट्रा-सिटी मेट्रो ग्रिड के तहत जोड़ा जाए। गौरतलब है कि, ममता बनर्जी वर्ष 1999 में एनडीए सरकार में रेल मंत्री थीं। उनके अनुसार, इस दौरान मेट्रो की इन रूटों की नींव रखी गई थी। उन्होंने यह भी रेखांकित किया कि अगर राज्य सरकार का पूर्ण सहयोग न होता तो इन परियोजनाओं का क्रियान्वयन संभव नहीं था। उन्होंने कहा कि राज्य सरकार ने जमीन उपलब्ध कराई, पक्की सड़कों का इंतजाम किया, विस्थापितों के पुनर्वास की व्यवस्था की और कार्यान्वयन में हरसंभव मदद दी। हमारे सचिव लगातार मेट्रो अधिकारियों के साथ तालमेल बनाए रखे।
पीएम ने मेट्रो की नयी सेवाओं को दिखाई हरी झंडी
स्ट्रीट डॉग के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
-टीकाकरण व नसबंदी के बाद छोड़े जा सकते हैं
नयी दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय बेंच ने आवारा कुत्तों के मामले पर दो जजों की बेंच के आदेश में बदलाव करते हुए कहा है कि दिल्ली में आवारा कुत्तों को शेल्टर होम से तभी छोड़ा जाएगा जब उन्हें टीका (इम्युनाइजेशन) लग जाएगा और बधियाकरण हो जाएगा। जस्टिस विक्रम नाथ की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा कि शेल्टर होम से आवारा कुत्तों को छोड़ने पर लगी रोक को इस बदलाव के साथ हटाया जा रहा है। उच्चतम न्यायालय ने साफ किया कि जो कुत्ते आक्रामक स्वभाव के हैं और उन्हें रेबीज की बीमारी है उन्हें शेल्टर होम से नहीं छोड़ा जाएगा। न्यायालय ने कहा कि सड़कों पर आवारा कुत्तों को खाना नहीं खिलाया जा सकता है। आवारा कुत्तों को खिलाने के लिए जगह नगर निगम की ओर से तय किया जाए। न्यायालय ने कहा कि वो इस मसले पर विस्तृत सुनवाई करेगा और पूरे देश के लिए एक नीति तैयार करेगा।
न्यायालय ने १४ अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था। इसके पहले ११ अगस्त को जस्टिस जेबी पारदीवाला की बेंच ने दिल्ली-एनसीआर की सड़कों और गलियों को आवारा कुत्तों से मुक्त कराने के लिए सख्त दिशा-निर्देश जारी किए थे। जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम और नई दिल्ली नगरपालिका परिषद समेत एनसीआर में संबंधित प्राधिकार को निर्देश दिया था कि वो शहर को, गलियों को आवारा कुत्तों से मुक्त करें। जस्टिस पारदीवाला की बेंच ने कहा था कि सभी स्थानों से आवारा कुत्तों को उठाया जाए। इन आवारा कुत्तों को डॉग शेल्टर होम में रखा जाए। जस्टिस पारदीवाला के इस फैसले का पशु अधिकार कार्यकर्ताओं ने काफी विरोध किया था। इसके बाद चीफ जस्टिस के निर्देश पर उच्चतम न्यायालय की तीन सदस्यीय बेंच ने १४ अगस्त को सुनवाई की थी।
दागी जनप्रतिनिधि विधेयक पेश, संसद में हंगामा, जेपीसी को भेजा गया
नयी दिल्ली। गंभीर आपराधिक मामलों में गिरफ्तार होने पर अब प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को पद से हटाया जा सकेगा। केंद्र सरकार इसके लिए कानून बनाने जा रही है। गृहमंत्री अमित शाह ने आज लोकसभा में इस संबंध में तीन विधेयक पेश किए। इसके मुताबिक, प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्री 30 दिन तक हिरासत में रहते हैं तो उनको बर्खास्त कर दिया जाएगा। विपक्ष ने इसका विरोध करते हुए सदन में हंगामा किया। बाद में इन विधेयकों को आगे विचार के लिए संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजा गया।गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में तीन विधेयक- संविधान (130वां संशोधन) विधेयक, 2025; केंद्रशासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 विचार के लिए रखे। विधेयक के प्रावधानों के अनुसार भ्रष्टाचार और अन्य गंभीर मामलों में जेल में बंद प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और मंत्रियों को 30 दिन के बाद पद से हटाया जा सकता है। हालांकि रिहा होने पर वे दोबारा पदभार ग्रहण कर सकते हैं। विधेयक के उद्देश्य में कहा गया है कि ऐसा नैतिक उत्तरादायित्व सुनिश्चित करने के लिए किया गया है। संविधान संशोधन विधेयक के अलावा अन्य दो विधेयक केन्द्रशासित प्रदेशों और जम्मू-कश्मीर में इस तरह के प्रावधानों से जुड़े हैं। विधेयक पेश किए जाने का एआईएमआईएम के असद्दुदीन औवेसी, कांग्रेस के मनीष तिवारी, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन, सपा के धर्मेन्द्र यादव और कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने विरोध किया। इन्होंने इसे संविधान के बुनियादी ढांचे, मूलभूत सिद्धांत, संसदीय लोकतंत्र के विरोध में बताया। इसी बीच विपक्षी सदस्यों का हंगामा जारी रहा जिन्होंने गृहमंत्री की तरफ पेपर उछाले और इसके कारण कार्यवाही एक घंटे के लिए स्थगित करनी पड़ी। कार्यवाही 3 बजे दोबारा शुरु होने पर गृहमंत्री ने तीनों विधेयक सदन की मंजूरी के बाद पेश किया। बाद में उन्होंने विधेयकों को संसद की संयुक्त समिति को भेजे जाने का प्रस्ताव किया। संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) में लोकसभा से 21 और राज्यसभा से 10 सदस्य होंगे। अमित शाह ने इस दौरान विपक्षी सदस्यों के आरोपों का जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि विधेयक नैतिकता के मूल्य बने रहें, इसलिए लाया गया है। उन्होंने कहा कि वे भी गुजरात में मंत्री रहने के दौरान जेल गए थे और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था। सभी आरोपों से मुक्त होने तक उन्होंने कोई संवैधानिक पद नहीं ग्रहण किया।
विधेयक को पेश करने की अनुमति के लिए केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने जैसे ही वक्तव्य दिया, विपक्ष की ओर से उनकी तरफ पेपर उछाले गए। इसके बाद कार्यवाही को तीन बजे तक के लिए स्थगित कर दिया गया।
गृहमंत्री अमित शाह ने लोकसभा में संविधान (एक सौ तीसवां संशोधन) विधेयक, 2025; केंद्रशासित प्रदेशों की सरकार (संशोधन) विधेयक, 2025 और जम्मू एवं कश्मीर पुनर्गठन (संशोधन) विधेयक, 2025 तीन विधेयक विचार के लिए रखे। विधेयक पेश किए जाने का एआईएमआईएम के असद्दुदीन औवेसी, कांग्रेस के मनीष तिवारी, आरएसपी के एनके प्रेमचंद्रन, सपा के धर्मेन्द्र यादव और कांग्रेस के केसी वेणुगोपाल ने विरोध किया। इन्होंने इसे संविधान के बुनियादी ढांचे, मूलभूत सिद्धांत, संसदीय लोकतंत्र के विरोध में बताया। अमित शाह ने इस दौरान विपक्षी सांसदों के आरोपों का जवाब भी दिया। उन्होंने कहा कि विधेयक नैतिकता के मूल्य बने रहें, इसलिए लाया गया है। साथ ही उन्होंने यह भी कहा कि वे भी गुजरात में मंत्री रहने के दौरान जेल गए थे और उन्होंने अपने पद से इस्तीफा दिया था। सभी आरोपों से मुक्त होने तक उन्होंने कोई संवैधानिक पद नहीं ग्रहण किया। साथ ही विधेयक को जल्दबाजी में लाए जाने पर शाह ने कहा कि विधेयकों को आगे विचार के लिए संयुक्त समिति को भेजा जाएगा।
ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगाने वाला बिल लोकसभा में पारित
नयी दिल्ली । लोकसभा ने बुधवार को पैसे से खेले जाने वाले ऑनलाइन गेम पर प्रतिबंध लगाने से जुड़ा विधेयक पारित कर दिया। इसका मकसद इन गेम्स की लत, धन शोधन और वित्तीय धोखाधड़ी की बढ़ती घटनाओं पर अंकुश लगाना है। ऑनलाइन गेमिंग संवर्धन और विनियमन विधेयक, 2025, ऑनलाइन मनी गेम्स से संबंधित विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने के साथ-साथ बैंकों और वित्तीय संस्थानों को ऐसे किसी भी गेम के लिए धन की सुविधा प्रदान करने या स्थानांतरित करने से रोकता है। सदन में विपक्षी सदस्यों के विरोध के बीच इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव की संक्षिप्त टिप्पणी के बाद विधेयक को ध्वनिमत से पारित कर दिया गया। विधेयक पारित होने के बाद लोकसभा की कार्यवाही दिन भर के लिए स्थगित कर दी गई। ऑनलाइन मनी गेम वह गेम है जिसे यूजर पैसा और अन्य फायदे जीतने की उम्मीद में पैसा जमा करके खेलता है।यह विधेयक सभी ऑनलाइन सट्टेबाजी और जुआ (सट्टा और जुआ) गतिविधियों को गैरकानूनी घोषित करता है। ऑनलाइन फैंटेसी खेलों से लेकर ऑनलाइन जुआ (जैसे पोकर, रम्मी और अन्य कार्ड गेम) और ऑनलाइन लॉटरी तक इस बिल के कानून बनने के बाद अवैध हो जाएंगे। संसद के दोनों सदनों की ओर से विधेयक पारित हो जाने के बाद, ऑनलाइन मनी गेमिंग की पेशकश या सुविधा प्रदान करने पर तीन वर्ष तक की कैद और/या 1 करोड़ रुपये तक का जुर्माना हो सकता है। केंद्रीय इलेक्ट्रॉनिक्स व सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री अश्विनी वैष्णव ने सदन, खासकर विपक्षी सदस्यों से लोकसभा में विधेयक को सर्वसम्मति से पारित करने का अनुरोध करते हुए कहा, कहा, “ऑनलाइन गेमिंग के तीन खंड हैं। पहला ई-स्पोर्ट्स है जिसमें रणनीतिक सोच, टीम निर्माण और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने की आवश्यकता होती है… दूसरा खंड ऑनलाइन सोशल गेम्स है , चाहे वह सॉलिटेयर हो, शतरंज हो, सुडोकू हो। ये शिक्षाप्रद और मनोरंजक हैं। इन्हें व्यापक रूप से खेला जाता है।” “एक तीसरा वर्ग है, ऑनलाइन मनी गेम , जो समाज में चिंता का कारण है। ऐसे लोग हैं, ऐसे परिवार हैं जो ऑनलाइन मनी गेम के आदी हो गए हैं। वे अपनी मेहनत की कमाई खो देते हैं। एल्गोरिदम कभी-कभी ऐसे होते हैं कि यह जानना मुश्किल होता है कि आप किसके साथ खेल रहे हैं। एल्गोरिदम अपारदर्शी हैं।” मंत्री ने कहा, “कई परिवार तबाह हो गए हैं, कई लोगों ने आत्महत्या कर ली है।”
नेपाल में आईवीएफ क्लिनिक पर सुप्रीम कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक
-सेरोगेसी पर भी लगी पाबंदी
काठमांडू । नेपाल में इन-विट्रो फर्टिलाइजेशन (आईवीएफ) और सरोगेसी प्रथाओं पर देश की सबसे बड़ी अदालत ने अंतरिम रोक लगा दी है। कोर्ट ने इस मामले में।अंतिम फैसला नहीं आने तक देश के सभी आईवीएफ क्लिनिक को बंद करने और सेरोगेसी पर भी रोक लगा दी है। कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट की एकल खंडपीठ ने यह अंतरिम आदेश दिया है। जस्टिस टेक प्रसाद ढुंगाना की एक एकल पीठ ने निःसंतान दंपतियों के लिए चलाए जा रहे आईवीएफ क्लिनिक के संचालन पर रोक लगा दी है। सर्वोच्च अदालत ने अपने फैसले में संबंधित अधिकारियों से कहा है कि वे महिलाओं के डिंब संग्रह, भंडारण और प्रत्यारोपण की अनुमति तब तक न दें जब तक कि रिट को अंतिम रूप नहीं दिया जाता। इसी तरह, अदालत ने सेरोगेसी की चल रही प्रथा की प्रभावी सरकारी निगरानी को लेकर सरकार को 15 दिनों के भीतर हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है। अधिवक्ता अंकिता त्रिपाठी कोर्ट में एक रिट दायर की थी जिसमें तर्क दिया गया है कि आईवीएफ क्लीनिकों की बढ़ती संख्या के बावजूद, शुक्राणु और अंडा दान, भ्रूण उपयोग और सरोगेसी जैसे संवेदनशील मुद्दों की निगरानी करने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं है। इस रिट में यह भी कहा गया था कि एक ही दाता का उपयोग करने वाले कई क्लीनिकों, सहमति के बिना आनुवंशिक सामग्री का उपयोग और सरोगेसी को निरंतर बढ़ावा देता है। सुप्रीम कोर्ट के द्वारा सेरोगेसी को लेकर पहले भी आदेश जारी किया जा चुका है जिसमें सरोगेसी को एक व्यापार के रूप में निषिद्ध किया गया है। अधिवक्ता त्रिपाठी ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश में बांझपन प्रबंधन सेवाओं पर स्वास्थ्य और जनसंख्या मंत्रालय के नए शुरू किए गए दिशा-निर्देश अपर्याप्त बताते हुए ठोस कानून बनाए की तरफ ध्यानाकर्षण किया है। हाल ही में नेपाल सरकार के स्वास्थ्य मंत्रालय ने आईवीएफ क्लिनिक के संचालन को लेकर एक दिशा-निर्देश जारी करते हुए 20 से 35 वर्ष उम्र के पुरुष और महिलो को अंडानुनौर शुक्राणु का दान करने की छूट दी थी। इस कानून की आड़ में कम उम्र की लड़कियों और लड़कों को पैसे का लालच देकर डिंब और शुक्राणु दान का व्यापार होने की आशंका को लेकर रिट दायर की गई थी।
हावड़ा वाले सावधान, कुत्ते पालें नस्लें जान के
-विदेशी कुत्तों के लिए लाइसेंस अनिवार्य!
– सितंबर तक लागू होगा नियम
हावड़ा । अब से, अगर कोई व्यक्ति घर में विदेशी या संकर नस्ल का कुत्ता पालता है, तो उसे लाइसेंस लेना होगा। हावड़ा नगर निगम एक नया नियम लागू कर रहा है। जानकारी के अनुसार, हावड़ा नगर निगम सितंबर की शुरुआत से लाइसेंस जारी करेगा। इसके लिए पालतू जानवर के मालिक का आधार कार्ड और विदेशी या संकर नस्ल के कुत्ते का टीकाकरण प्रमाणपत्र ज़रूरी होगा। हावड़ा नगर निगम ने पालतू जानवरों के लिए लाइसेंस अनिवार्य कर दिया है। इसके लिए नगर पालिका की वेबसाइट पर आवेदन करना होगा। लाइसेंस 150 रुपये सालाना जमा करके प्राप्त किया जा सकता है। हावड़ा के मुख्य नगर निगम प्रशासक सुजय चक्रवर्ती ने कहा, “कोलकाता नगर निगम के बाद, इस बार हावड़ा नगर निगम क्षेत्र में यह प्रणाली शुरू की जा रही है। लाइसेंस को हर साल नवीनीकृत करना होगा। विदेशी और संकर कुत्तों को घर पर रखने के लिए लाइसेंस प्राप्त करना अनिवार्य किया जा रहा है।” उन्होंने यह भी कहा, “अब से विदेशी पक्षियों को रखने के लिए भी लाइसेंस जारी करने की ऐसी व्यवस्था शुरू की जाएगी।” नगर निगम सूत्रों के अनुसार, अगर कोई लाइसेंस प्राप्त नहीं करता है, तो उसे पहले जागरूक किया जाएगा। अगर वह काम नहीं करता है, तो संबंधित पालतू मालिक के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी। शहरवासियों के हित में पालतू कुत्तों के लिए नगर निगम का लाइसेंस अनिवार्य किया जा रहा है। पता चला है कि साथ ही, हावड़ा नगर निगम शहर के आवारा कुत्तों की नसबंदी के लिए एक संगठन की मदद से काम भी शुरू कर रही है।
पहली बार पूर्णत: अपशिष्ट मुक्त रही अमरनाथ यात्रा
– पर्यावरण-संरक्षण में स्थापित किए कई रिकार्ड
नयी दिल्ली। जम्मू कश्मीर में इस साल की श्री अमरनाथ यात्रा सफाई, प्लास्टिक-मुक्त व्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ऐतिहासिक रही। इस बार यात्रा में करीब 4 लाख श्रद्धालुओं ने भगवान शिव के पवित्र गुफा मंदिर के दर्शन किए। इस यात्रा को पहली बार पूरी तरह से पूर्णत: अपशिष्ट रहित (जीरो वेस्ट) बनाया गया। स्थानीय प्रशासन ने यात्रा को गंदगी रहित बनाने के लिए वैज्ञानिक तरीके से कचरा प्रबंधन किया । यात्रा के दौरान हर दिन करीब 11.67 मीट्रिक टन कचरा पैदा हुआ, लेकिन सारे कचरे का शत प्रतिशत निस्तारण किया गया। गीला कचरा खाद बनाने के लिए भेजा गया और सूखा कचरा रिसाइक्लिंग यूनिट तक पहुंचाया गया। प्रशासन ने 1,016 जगह कूड़ेदान लगाए। हरे रंग के डिब्बे, गीले और नीले, सूखे कचरे के लिए। 65 गाड़ियों ने नियमित रूप से कचरा उठाया। सफाई के लिए 1300 से ज्यादा सफाईकर्मी दिन-रात तैनात रहे। प्लास्टिक पर भी सख्त रोक लगाई गई। एकल-उपयोग प्लास्टिक (एसयूपी) पूरी तरह बंद कर दिया गया। लंगर वालों ने भी इसका इस्तेमाल बंद किया। यात्रियों को 15,000 से ज्यादा जूट और कपड़े के थैले बांटे गए। “प्लास्टिक लाओ, थैला ले जाओ” और “बिन इट, विन इट” जैसे कार्यक्रमों से लोगों को प्लास्टिक के नुकसान और सही तरीके से कचरा फेंकने के बारे में जानकारी दी गई। पूरे यात्रा मार्ग पर 1600 से ज्यादा मोबाइल शौचालय लगाए गए, जिनकी सफाई हर दिन दो बार की गई। हर शौचालय पर क्यूआर कोड लगा था जिससे यात्री तुरंत अपनी प्रतिक्रिया दे सकें। करीब 20 हजार यात्रियों ने फीडबैक दिया, जिससे सेवाओं को बेहतर करने में मदद मिली। गंदे पानी और मल को उठाने के लिए 39 डी-स्लजिंग वाहन लगाए गए और सारा मल प्रोसेस किया गया।
“ग्रीन प्लेज” अभियान में 70 हजार से ज्यादा श्रद्धालुओं ने हिस्सा लिया और सफाई की शपथ ली। सेल्फी बूथ, प्रतिज्ञा दीवारें और स्वच्छता किट ने लोगों को जुड़ने के लिए प्रेरित किया। जिम्मेदार यात्रियों को सम्मानित भी किया गया।
अश्वत्थामा की तपोभूमि कहलाता है देवरिया का यह मंदिर
देवरिया। उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले से करीब 35 किलोमीटर दूर ‘मझौली राज’ में स्थित दीर्घेश्वर नाथ मंदिर महाभारत काल से जुड़ी एक अनूठी मान्यता का केंद्र बन गया है। श्रद्धालु जटाशंकर दुबे ने बताया, “यह मंदिर अश्वत्थामा की तपोभूमि के रूप में प्रसिद्ध है। मान्यता है कि वे आज भी यहां पूजा करने आते हैं। सावन में हर सोमवार को एक से डेढ़ लाख लोग यहां दर्शन करते हैं।”
एक अन्य श्रद्धालु ने कहा कि यह पौराणिक मंदिर है, जहां भगवान शिव ने अश्वत्थामा को दर्शन दिए थे। यहां स्थित पार्वती सरोवर में स्नान करने से त्वचा रोगों का निदान होता है ऐसी मान्यता है। वहीं मंदिर के महंत जगन्नाथ दास जी महाराज ने आईएएनएस के साथ खास बातचीत में बताया कि मंदिर परिसर में स्थित पार्वती सरोवर में सफेद कमल के फूल खिलते हैं, जिन्हें अश्वत्थामा सहस्त्रार्चन पूजा के लिए उपयोग करते थे। उन्होंने कहा, “यह मंदिर प्राचीन और पवित्र है। यहां भक्तों की मनोकामनाएं पूरी होती हैं। सावन में लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए यहां आते हैं।” महंत के अनुसार, यह मंदिर केवल धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि ऐतिहासिक महत्व का भी प्रतीक है। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने करीब चार दशक पहले यहां खुदाई की थी, जिसमें द्वापर युग की मूर्तियां, मृदभांड और प्राचीन सिक्के मिले थे। इन खोजों ने मंदिर की प्राचीनता की पुष्टि की। मंदिर का जीर्णोद्धार मझौली राज परिवार द्वारा कराया गया था, जिसमें तत्कालीन महारानी श्याम सुंदरी कुंवरी ने महत्वपूर्ण योगदान दिया। बाद में बांसुरी बाबा, टेंगरी दास और ब्रह्मलीन बंगाली बाबा जैसे संतों ने मंदिर के विकास में अहम भूमिका निभाई। स्थानीय लोगों का विश्वास है कि महाभारत के योद्धा अश्वत्थामा को यहीं भगवान शिव ने दीर्घायु होने का वरदान दिया था, जिसके कारण इस मंदिर का नाम “दीर्घेश्वर नाथ मंदिर” पड़ा। यह मंदिर श्रद्धालुओं के लिए आस्था और इतिहास का अनूठा संगम है। मंदिर की सबसे रोचक बात यह है कि हर सुबह जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तो शिवलिंग पर पहले से ही बेलपत्र और फूल चढ़े मिलते हैं। स्थानीय लोग मानते हैं कि यह पूजा आज भी स्वयं अश्वत्थामा तीसरे पहर यहां आकर करते हैं।
कोलकाता की टकसाल से निकला था एक रुपये का पहला सिक्का
कोलकाता। आज के डिजिटल युग में जब हम महज एक क्लिक में यूपीआई से पेमेंट कर देते हैं, तो शायद ही कोई सोचता हो कि कभी भारत में लेन-देन पूरी तरह सिक्कों और नोटों पर टिका था। लेकिन, क्या आपको पता है कि भारत में पहला ‘एक रुपये का सिक्का’ कब बना था? यह कहानी है 19 अगस्त 1757 की, जब ईस्ट इंडिया कंपनी ने कोलकाता की टकसाल में पहला एक रुपये का सिक्का जारी किया था। साल 1757 भारतीय इतिहास का निर्णायक मोड़ था। इसी साल प्लासी का युद्ध हुआ, जिसमें ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला को हराकर बंगाल पर अपनी पकड़ बना ली। इसके बाद कंपनी ने नवाब से एक संधि की, जिसके तहत उन्हें सिक्के ढालने का अधिकार मिल गया, और उसी अधिकार का इस्तेमाल करते हुए 19 अगस्त को पहली बार भारत में एक रुपये का सिक्का सामने आया। इस सिक्के पर ब्रिटिश सम्राट विलियम 4 की तस्वीर छपी। बाद में, 1857 की क्रांति के बाद जब भारत का शासन ईस्ट इंडिया कंपनी से छिनकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों में गया, तब सिक्कों पर ब्रिटिश मोनार्क की छवि छपने लगी। इस तरह सिक्के न सिर्फ लेन-देन का जरिया बने, बल्कि सत्ता और ताकत का प्रतीक भी। हालांकि, ईस्ट इंडिया कंपनी इससे पहले भी सूरत, बॉम्बे और अहमदाबाद में टकसालें स्थापित कर चुकी थी। लेकिन, एक रुपये का पहला सिक्का विशेष रूप से कोलकाता की टकसाल से ही ढाला गया और फिर इसे बंगाल के मुगल प्रांत में चलाया गया। 1914 से 1918 के बीच, यानी पहले विश्व युद्ध के दौरान, चांदी की भारी कमी हुई। तब सिक्कों की जगह कागज के नोट लाए गए। फिर भी, कंपनी के सिक्के 1950 तक भारत में चलते रहे।
भारत जब 1947 में आजाद हुआ, तब भी ये ही सिक्के चलन में थे। लेकिन 1950 में स्वतंत्र भारत का पहला सिक्का जारी हुआ, जिस पर अशोक स्तंभ के सिंह शीर्ष की छवि थी। आज की पीढ़ी शायद ‘आना’ शब्द से अनजान हो, लेकिन आजादी के शुरुआती दशकों में ‘आना सिस्टम’ प्रचलित था। 1 रुपये में 16 आना और 1 आना में 4 पैसे होते थे। यानी उस दौर में आधा आना, 2 आना और 4 आना जैसे सिक्के खूब चलते थे।
क्रांतिपथ के वीर साधक चाफेकर बंधु
एक मां की तीन संतानें जो हंसते-हंसते चढ़ गईं फांसी
स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में चाफेकर बंधुओं के रूप में पहली बार ऐसा हुआ था जब एक ही मां की तीन संतानें हंसते-हंसते फांसी के फंदे पर चढ़ गईं। छत्रपति शिवाजी महाराज के पराक्रम का संदेश देने तथा गणेश उत्सव में राष्ट्रभक्ति के श्लोक गाने वाले इन वीरोंं का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान अतळ्ल्य था। विवेक मिश्रा का आलेख –
आजादी के योद्धा चाफेकर बंधु स्वाधीनता संग्राम में अपना स्थान रखते हैं । ये हैं दामोदर हरि चाफेकर, बालकृष्ण हरि चाफेकर एवं वासुदेव हरि चाफेकर। पुणे के ग्राम चिंचवड के प्रसिद्ध कीर्तनकार हरिपंत चाफेकर के घर जन्मे चाफेकर बंधुओं ने लोकमान्य तिलक की प्रेरणा से अपने साथी युवकों के साथ मिलकर वर्ष 1894 में हिंदू धर्म रक्षिणी सभा की स्थापना की। इस सभा का प्रारंभ शिवाजी श्लोक व गणपति श्लोक से होता था।
उनमें राष्ट्रप्रेम की एक अद्भुत ज्वाला थी, जिसमें तपकर वीर क्रांतिकारियों ने अपने पराक्रम को दर्शाते हुए इस प्रकार कहा था- ‘शिवाजी की कहानी दोहराने मात्र से स्वाधीनता प्राप्त नहीं हो सकती। आवश्यकता इस बात की है कि शिवाजी और बाजीराव की तरह तीव्र गति के साथ कार्य किए जाएं। हमें राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम के युद्ध क्षेत्र में जीवन का खतरा उठाना होगा।’ इसी प्रकार उनके गणपति श्लोक भी देश के युवकों एवं किशोरों को स्वातंत्र्य की खातिर बलिदान होने की प्रेरणा देते थे। ऐसे ही एक श्लोक में कहा गया था- ‘गौ और धर्म की रक्षा के लिए उठ खड़े हो। गुलामी की जिंदगी से शर्मिंदा हो। नपुंसक की तरह धरती का बोझ मत बनो।’ वर्ष 1897 में पुणे में प्लेग महामारी विकराल रूप धारण कर रही थी। महामारी से मुक्ति के लिए जब अंग्रेज अधिकारियों ने कोई खास प्रयास नहीं किया, तो इस स्थिति को देखते हुए तिलक जी के परामर्श से तीनों भाइयों ने क्रांति का मार्ग चुन लिया। साथ ही संकल्प किया कि वे प्लेग कमिश्नर वाल्टर चाल्र्स रैंड और एक अन्य अधिकारी अयस्र्ट का वध करके ही दम लेंगे। 22 जून, 1897 को महारानी विक्टोरिया का 60वां जन्मदिन हीरक जयंती के रूप में पुणे के गवर्नमेंट हाउस में मनाया जाना था। सूचना थी कि अंग्रेज अधिकारी रैंड और अयस्र्ट भी इस आयोजन में सम्मिलित होंगे। इस अवसर का लाभ उठाकर दामोदर हरि चाफेकर एवं बालकृष्ण हरि चाफेकर के साथ उनके मित्र विनायक रानाडे वहां पहुंचे। दामोदर हरि चाफेकर ने कमिश्नर रैंड की बग्घी पर चढ़कर उसे गोली मार दी व बालकृष्ण हरि चाफेकर ने अयस्र्ट को गोलियों से छलनी कर दिया।
जिस भी भारतीय ने यह खबर सुनी उसकी छाती गर्व से चौड़ी हो गई। तब अंग्रेज अधीक्षक ब्रुइन ने ऐलान किया कि जो भी व्यक्ति इन फरार लोगों की सूचना देगा उसे 20 हजार रुपए इनाम मिलेगा। चाफेकर बंधुओं के ही सहयोगी रहे द्रविड़ बंधु (गणेश शंकर एवं रामचंद्र) ने इनाम के लालच में उनका पता ब्रुइन को बता दिया। तत्पश्चात बड़े भाई दामोदर हरि को पकड़ लिया गया, किंतु बालकृष्ण हरि को पकड़ न सके। जिला सत्र न्यायाधीश ने दामोदर हरि को फांसी की सजा सुनाई।
फांसी से पूर्व लोकमान्य तिलक दामोदर हरि से मिले एवं उन्हें गीता की प्रति भेंट की। 18 अप्रैल, 1898 को वही गीता हाथ में लेकर भारतमाता का वीर सपूत फांसी के फंदे पर हंसते-हंसते बलिदान हो गया। तमाम हथकंडों के बाद भी जब पुलिस बालकृष्ण को पकड़ न पाई तो बौखलाए अंग्रेज उनके निरपराध सगे-संबंधियों को परेशान करने लगे। इससे आहत होकर उन्होंने स्वयं गिरफ्तारी दे दी। इस बीच सबसे छोटे भाई वासुदेव हरि चाफेकर ने सहयोगियों के साथ मिलकर 8 फरवरी, 1899 को द्रविड़ बंधुओं को मौत के घाट उतार दिया था। जिसके बाद वासुदेव चाफेकर को उसी वर्ष 8 मई और बालकृष्ण चाफेकर को 12 मई को यरवदा जेल में फांसी दे दी गई।
धन्य है ऐसी मां – भारतीय इतिहास में पहली बार एक ही माता की तीन-तीन संतानों ने वंदे मातरम का जयघोष करते हुए अपने प्राणों की आहुति दे दी थी। जब भगिनी निवेदिता चाफेकर बंधुओं की मां दुर्गाबाई चाफेकर को सांत्वना देने गई तो मां ने निवेदिता से कहा, ‘इसमें शोक कैसा? मेरे बेटे तो दुखियों-पीड़ितों की रक्षा में बलिदान हो गए और इसलिए फांसी चढ़े कि देश का भला हो। बेटी! तुम दुख मत करो, तुम्हारे दुख करने से तो इन हुतात्माओं का निरादर होगा।’ धन्य हैं ऐसी मां जिन्होंने चाफेकर बंधुओं जैसे वीर सपूतों को जन्म दिया!