Monday, September 15, 2025
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अमेरिकी टैरिफ के बाद नये बाजार तलाशने में जुटा भारत

40 देशों में निर्यात बढ़ाने की कोशिश

नयी दिल्ली । अमेरिका की ओर से भारतीय निर्यात पर 50 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद, भारत ने 40 देशों में निर्यात बढ़ाने के लिए कोशिशों को तेज कर दिया है। इन देशों में यूके, स्पेन, फ्रांस, जर्मनी और इटली का नाम शामिल है। यह जानकारी एक वरिष्ठ अधिकारी की ओर से दी गई।
इन प्रयासों में ट्रेड फेयर, वायर-सेलर मीट्स और सेक्टर-विशेष प्रमोशन कैंपेन शामिल हैं। अन्य देशों में नीदरलैंड, पोलैंड, कनाडा, मैक्सिको, रूस, बेल्जियम, तुर्की, संयुक्त अरब अमीरात और ऑस्ट्रेलिया शामिल हैं। वरिष्ठ अधिकारी ने आगे बताया कि वाणिज्य मंत्रालय भारत के निर्यात में विविधता लाने और वैश्विक बाजारों में अपनी उपस्थिति को मजबूत करने के लिए नए सिरे से प्रयास के तहत इस सप्ताह निर्यातकों के साथ परामर्श की एक श्रृंखला आयोजित करने वाला है।
सूत्रों ने कहा कि इन बैठकों में कपड़ा, केमिकल और जेम्स एवं ज्वेलरी सहित प्रमुख क्षेत्रों के उद्योग प्रतिनिधि एक साथ आएंगे। इन बैठकों में चर्चाएं सीमित उत्पादों और बाजारों पर निर्भरता कम करने की रणनीतियों और नए भौगोलिक क्षेत्रों में प्रवेश के लिए एक रोडमैप तैयार करने पर केंद्रित रहने की उम्मीद है। यह कदम ऐसे समय उठाया गया है जब सरकार प्रस्तावित एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन पर काम तेज कर रही है, जिसका उद्देश्य निर्यातकों को लक्षित समर्थन और बाजार संबंधी जानकारी प्रदान करना है। वाणिज्य सचिव सुनील बर्थवाल ने इस महीने की शुरुआत में कहा था कि अमेरिका द्वारा घोषित शुल्कों में भारी वृद्धि के बाद, सरकार देश के निर्यात को अन्य देशों में विविधता लाने के प्रयास कर रही है। सरकार मुक्त व्यापार समझौतों को तेजी से लागू करने और यूरोपीय संघ, ब्रिटेन, ओमान, आसियान, न्यूजीलैंड, पेरू और चिली जैसे मौजूदा समझौतों की समीक्षा करने की कोशिश कर रही है। उन्होंने कहा कि एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम के लिए विदेशों में मिशनों को संगठित करके शीर्ष 50 आयातक देशों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने के लिए कदम उठाए जा रहे हैं। आगे कहा कि विभिन्न एक्सपोर्ट प्रमोशन स्कीम्स पर भी प्रयास तेज किए जा रहे हैं। वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय ने निर्यात केंद्रित उद्योगों की सहायता के लिए 25,000 करोड़ रुपए की योजानओं का प्रस्ताव तैयार किया है, जिसका मुख्य उद्देश्य छह वर्ष की अवधि के लिए एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के तहत कपड़ा, रत्न एवं आभूषण और समुद्री उत्पादों जैसे श्रम-प्रधान क्षेत्रों में छोटे निर्यातकों की फंडिंग करने में सहायता करना है। एक वरिष्ठ अधिकारी ने पुष्टि की कि प्रस्ताव को मंजूरी के लिए वित्त मंत्रालय के पास भेज दिया गया है, जिसके बाद इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा और फिर यह लागू होगा। इन योजनाओं को विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) के नियमों के अनुरूप तैयार किया गया है और यह ट्रे़ड फाइनेंस और निर्यातकों के लिए बाजार पहुंच में सुधार पर ध्यान केंद्रित करेंगी।

स्टॉकहोम वर्ल्ड वॉटर वीक में बजा ‘नमामि गंगे’ का डंका

– सराहे गये नदी संरक्षण के प्रयास

नयी दिल्ली/लखनऊ। नदियां और जल संसाधन सतत विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं और इनका पुनर्जीवन राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की सर्वोच्च प्राथमिकता बनी हुई है। नदी पुनर्जीवन और जल संरक्षण में राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन की अग्रणी पहलों ने इसे वैश्विक जल संवाद में एक प्रमुख आवाज बना दिया है। इस वर्ष स्टॉकहोम वर्ल्ड वॉटर वीक में इसकी भागीदारी भारत की बढ़ती भूमिका को उजागर करती है, जो जल संबंधी वैश्विक चुनौतियों के समाधान में अहम योगदान दे रही है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल वॉटर इंस्टीट्यूट (एसआईडब्ल्यूआई) ने वर्ष 1991 से आयोजित यह प्रतिष्ठित आयोजन अब वैश्विक नीति निर्धारकों, वैज्ञानिकों, उद्योग विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के लिए सबसे प्रभावशाली मंच बन चुका है। गंगा के विस्तृत प्रवाह वाले प्रदेश के रूप में उत्तर प्रदेश नमामि गंगे कार्यक्रम का प्रमुख केंद्र रहा है। वाराणसी में रिवरफ्रंट विकास, कानपुर में सीवेज शोधन संयंत्रों की स्थापना तथा छोटे एवं मझाेले नगरों में सामुदायिक भागीदारी आधारित पहलें इस अभियान को सफलतापूर्वक आगे बढ़ा रही हैं। इस प्रतिष्ठित सम्मेलन का केंद्र बिंदु बना “नदी शहरों की पुनर्कल्पना: जलवायु-संवेदी और बेसिन-केंद्रित शहरी विकास”, जिसमें राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी), राष्ट्रीय शहरी कार्य संस्थान (एनआईयूए) और जर्मन विकास सहयोग (जीआईजेड) ने मिलकर नेतृत्व किया। इस सत्र में विशेषज्ञों ने जोर दिया कि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण की चुनौतियों के बीच, नदी-केंद्रित विकास ही शहरों को टिकाऊ और सुरक्षित बना सकता है। राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन के महानिदेशक राजीव कुमार मित्तल ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि नमामि गंगे मिशन ने भारत में नदियों के पुनरुद्धार के लिए एक ऐतिहासिक नीतिगत बदलाव की नींव रखी है। उन्होंने बताया कि इस मिशन के तहत अब तक 40 हजार करोड़ रुपये का भारी निवेश किया जा चुका है, जो गंगा और उसकी सहायक नदियों को उनके प्राचीन रूप में पुनः स्थापित करने की दिशा में तेज़ी से कार्य कर रहा है। उन्होंने कहा कि नमामि गंगे मिशन एक जीवित उदाहरण है, जो यह साबित करता है कि जब आधुनिक तकनीक और नवाचार का संगम होता है, तो नदियों को पुनः जीवनदायिनी बनाने में सफलता प्राप्त की जा सकती है। उन्होंने बताया कि मिशन के अंतर्गत की गई पहलें, जैसे हाइब्रिड एनीटी मॉडल आधारित एसटीपी, सोलर पावर्ड ट्रीटमेंट प्लांट और मृदा जैव प्रौद्योगिकी, वैश्विक मानकों को स्थापित करने में योगदान दे रही हैं। श्री मित्तल ने इस बात पर भी जोर दिया कि इस कार्यक्रम को एक विशाल जन आंदोलन में बदला गया है, जिसके सकारात्मक परिणाम अब सामने आ रहे हैं। वैश्विक सहयोगों की अहमियत को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि विश्व बैंक, जीआईजेड, सी-गंगा, नीदरलैंड्स और डेनमार्क का सहयोग नदी विज्ञान, जल सुरक्षा और प्रबंधन में उत्कृष्टता को बढ़ावा देने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। सम्मेलन में विशेषज्ञों ने यह स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन और शहरीकरण की समस्याओं का हल केवल नदी-बेसिनों के संरक्षण और प्रबंधन में ही छुपा है। इस संदर्भ में भारत की ‘नमामि गंगे’ पहल को आदर्श उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया गया, जिसे अन्य देशों के लिए अनुकरणीय माना गया। प्रदूषण नियंत्रण, जैविक खेती, आर्द्रभूमि संरक्षण और जलवायु-स्मार्ट शहरी विकास जैसे कदमों ने इस मिशन को वैश्विक स्तर पर प्रेरणा का स्रोत बना दिया है। विशेषज्ञों ने इस बात पर जोर दिया कि अब समय आ गया है जब शहरों को केवल उपभोक्ता के रूप में नहीं, बल्कि नदी-बेसिनों के सक्रिय संरक्षक के रूप में कार्य करना होगा। जलवायु परिवर्तन के दौर में नदियों का संरक्षण अनिवार्य बन चुका है और इसके लिए नदी-केंद्रित शहरी विकास को अपनाना होगा। सत्र के समापन में यह महत्वपूर्ण संदेश सामने आया, जब शहर मिलकर काम करेंगे और सीमा पार सोचेंगे, तो नदियों को बचाया जा सकता है और उन्हें समृद्ध भी किया जा सकता है। यही स्थिरता और समृद्धि का वास्तविक आधार होगा, जो भविष्य की पीढ़ियों के लिए जल सुरक्षा और पारिस्थितिक संतुलन सुनिश्चित करेगा।

गणेश चतुर्थी पर विशेष : अनूठा है राजस्थान का इश्किया गणेश मंदिर

राजस्थान की धरती पर जब भी बात कला, संस्कृति और मंदिरों की होती है तो यह प्रदेश अपनी ऐतिहासिक और धार्मिक धरोहर के कारण विशेष महत्व रखता है। यहां कई मंदिर ऐसे हैं जिनकी मान्यताएं और परंपराएं उन्हें आम मंदिरों से अलग बनाती हैं। जोधपुर स्थित इश्किया गणेश मंदिर भी ऐसा ही एक अद्वितीय मंदिर है, जो प्रेम और आस्था का संगम माना जाता है। इस मंदिर का नाम जितना अनोखा है, उतनी ही दिलचस्प इसकी ऐतिहासिक और धार्मिक कहानियां भी हैं।
मंदिर का इतिहास और स्थापत्य – इश्किया गणेश मंदिर का इतिहास सदियों पुराना माना जाता है। कहा जाता है कि इसे मारवाड़ के पुराने राजाओं ने बनवाया था। यह मंदिर स्थानीय लोगों और राजघरानों के लिए विशेष धार्मिक स्थल रहा है। मंदिर में स्थित गणेशजी की मूर्ति को स्वयंभू माना जाता है, अर्थात यह मूर्ति स्वयं प्रकट हुई थी। इस मूर्ति में अद्भुत दिव्य शक्तियां होने का विश्वास किया जाता है।

क्यों पड़ा इश्किया गणेश नाम?
मंदिर का नाम “इश्किया गणेश” इसलिए पड़ा क्योंकि यहां प्रेमी युगल भगवान गणेश की पूजा करते हैं और अपने रिश्ते में सफलता की कामना करते हैं। “इश्किया” शब्द का अर्थ ही प्रेम से जुड़ा हुआ है। यही कारण है कि यह मंदिर प्रेम और आस्था दोनों का प्रतीक बन गया है।

मंदिर से जुड़े रोचक किस्से

प्रेमी युगलों की मनोकामना पूरी होती है – मान्यता है कि जो प्रेमी यहां गणेशजी की पूजा करते हैं, उनकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं और विवाह में आने वाली बाधाएं दूर हो जाती हैं।
दुष्ट आत्माओं से रक्षा – एक समय था जब इस क्षेत्र में दुष्ट आत्माओं का भय था। लोगों ने गणेशजी से प्रार्थना की और उन्हें सुरक्षा का आशीर्वाद मिला। तभी से मंदिर का महत्व और बढ़ गया।
चमत्कारिक मूर्ति – यहां की गणेश प्रतिमा को चमत्कारिक माना जाता है और भक्त विश्वास करते हैं कि यह प्रतिमा उनके जीवन की हर कठिनाई को दूर करती है।
परंपरा: शादी का कार्ड चढ़ाने की अनोखी रस्म –
इस मंदिर की सबसे बड़ी विशेषता है शादी का कार्ड चढ़ाने की परंपरा। यहां नवविवाहित जोड़े और प्रेमी युगल अपने विवाह का कार्ड भगवान गणेश को अर्पित करते हैं। यह विश्वास है कि ऐसा करने से गणेशजी उनके रिश्ते को स्वीकार कर उन्हें आशीर्वाद देते हैं। यह परंपरा समय के साथ मजबूत होती चली गई और अब यह मंदिर हर प्रेमी के लिए आशा और विश्वास का केंद्र बन गया है।
धार्मिक मान्यताएं – यहां आकर भगवान गणेश की पूजा करने से विवाह में आ रही रुकावटें दूर हो जाती हैं। यही कारण है कि जोधपुर के लोग किसी भी शुभ कार्य की शुरुआत इस मंदिर से करते हैं। उनका विश्वास है कि गणेशजी की कृपा से कार्य में कोई विघ्न नहीं आता।

(साभार – खास खबर)

झारखंड में खर्च हुआ बजट का 23 प्रतिशत हिस्सा : कैग

रांची । झारखंड विधानसभा में सोमवार को नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) की रिपोर्ट पेश की गयी। रिपोर्ट में यह खुलाशा हुआ कि राज्य की हेमंत सोरेन सरकार के विभिन्न विभागों ने वित्त वर्ष 2023-24 के दौरान बजट की 23.14 प्रतिशत खर्च ही नहीं किए।
विधानसभा में पेश सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि एक लाख 41 हजार 498.79 करोड़ रुपये के कुल प्रावधानों में से एक लाख आठ हजार 754.44 करोड़ रुपये विभागों द्वारा खर्च किए गए। वहीं, वर्ष 2022-23 के दौरान 57 मामलों में 13 हजार 499.10 करोड़ रुपये के पूरक प्रावधान (प्रत्येक मामले में 0.50 करोड़ रुपये से अधिक) अनावश्यक साबित हुआ, क्योंकि व्यय मूल प्रावधानों के स्तर तक भी नहीं आया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि राज्य का समग्र ऋण-जीएसडीपी (सकल राज्य घरेलू उत्पाद) अनुपात जो 2019-20 में 30.42 प्रतिशत से बढ़कर 2020-21 में जीएसडीपी का 36.23 प्रतिशत हो गया था। यह 2021-22 से घटता रहा और 2023-24 में पांच साल के निचले स्तर 27.68 प्रतिशत पर पहुंच गया।
वर्ष 2023-24 में एक विनियोग (धन का आवंटन) के तहत 268.02 करोड़ का अतिरिक्त खर्च हुआ था। इसे नियमित करने की जरूरत थी। इसके अलावा, वित्त वर्ष 2001-02 से 2022-23 से संबंधित 3.778.41 करोड़ रुपये के अलावा अतिरिक्त संवितरण (किसी विशेष धन या निधि से पैसे का भुगतान करना) को अभी नियमित किया जाना है। रिपोर्ट के अनुसार गैर-प्रतिबद्ध व्यय के भीतर 2023-24 में सब्सिडी 4,831 करोड़ रुपये थी। यह कुल राजस्व व्यय का 6.30 प्रतिशत थी। वहीं 2023-24 के दौरान ऊर्जा पर सब्सिडी, कुल सब्सिडी का एक महत्वपूर्ण हिस्सा (48 प्रतिशत) थी। सीएजी की रिपोर्ट में कहा गया है कि निर्धारित समय अवधि के भीतर सहायता अनुदान के विरुद्ध उपयोगिता प्रमाण पत्र जमा करने की आवश्यकता के बावजूद, 31 मार्च 2024 तक एक लाख 33 हजार 161.50 करोड़ रुपए के 47,367 उपयोगिता प्रमाण पत्र लंबित थे। इसी प्रकार से संक्षिप्त आकस्मिक (एसी) बिल के माध्यम से निकाले गए अग्रिम धन के विरुद्ध विस्तृत आकस्मिक (डीसी) बिल जमा करने की जरूरत के बावजूद, 31 मार्च 2024 तक चार हजार 891.72 करोड़ रुपए के 18,011 एसी बिल के विरुद्ध डीसी बिल लंबित थे। रिपोर्ट में यह भी कहा गया कि झारखंड में 32 एसपीएसई (तीन गैर-कार्यशील सरकारी कंपनियां) थीं। 31 अक्टूबर 2024 तक 30 एसपीएसई, जिनके 107 खाते बकाया थे। इन कंपनियों द्वारा वित्तीय विवरण प्रस्तुत करने के संबंध में निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं किया गया।

कलकत्ता हाईकोर्ट ने कसी पूजा कमेटियों की नकेल

-यूसी पर राज्य सरकार से मांगा जवाब

कोलकाता। कलकत्ता हाईकोर्ट ने सोमवार को पश्चिम बंगाल सरकार से उन दुर्गा पूजा समितियों के संबंध में स्थिति स्पष्ट करने को कहा है, जिन्होंने पिछले वर्ष अदालत के निर्देश के बावजूद खर्च (यूटिलाइजेशन) प्रमाणपत्र जमा नहीं किया। न्यायमूर्ति सुजॉय पाल और न्यायमूर्ति स्मिता दास डे की खंडपीठ ने सवाल किया कि क्या ऐसी समितियों को इस वर्ष भी नया अनुदान या मानदेय दिया जा रहा है? अदालत ने यह भी पूछा, च्च्कितनी समितियों ने खर्च प्रमाणपत्र जमा नहीं किया है? इसके बावजूद क्या उन्हें अनुदान मिल रहा है? राज्य के महाधिवक्ता किशोर दत्ता ने अदालत को बताया कि मार्च २०२३ में सरकार ने रिपोर्ट दी थी कि लगभग ५०० समितियों को अनुदान मिला था, जिनमें से ३६ समितियों ने खर्च प्रमाणपत्र दाखिल नहीं किया। उन्होंने कहा कि अगली सुनवाई में सरकार विस्तृत जवाब पेश करेगी। मामले की अगली सुनवाई बुधवार को होगी। यह याचिका सामाजिक कार्यकर्ता सौरव दत्ता द्वारा दायर जनहित याचिका से जुड़ी है। दत्ता की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता बिकाश रंजन भट्टाचार्य और शमीम अहमद ने दलील दी कि करदाताओं के पैसों का दुरुपयोग किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि विकास कार्यों में उपयोग किए जाने वाले धन को सरकार पूजा समितियों को बांट रही है। हालांकि, राज्य सरकार ने इसका बचाव करते हुए कहा कि यह अनुदान च्जनकल्याणकारीज् है और सेफ ड्राइव, सेव लाइफ अभियान व कोविड-१९ प्रतिबंधों जैसी पहलों में इसका उपयोग किया गया था। गौरतलब है कि यह विवाद ऐसे समय में सामने आया है जब मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस वर्ष राज्यभर की करीब ४० हजार पूजा समितियों को १.१ लाख रुपये का मानदेय देने की घोषणा की है। इसके लिए ४५० करोड़ रुपये से अधिक का प्रावधान किया गया है। पिछले साल समितियों को ८५ हजार रुपये दिए गए थे और ममता ने २०२५ में इसे एक लाख तक बढ़ाने का वादा किया था। लेकिन इस बार उन्होंने वादा से भी आगे बढ़ते हुए अतिरिक्त १० हजार रुपये जोड़ दिए। मुख्यमंत्री ने नेताजी इंडोर स्टेडियम में आयोजकों के साथ बैैठक के दौरान पूजा समितियों के लिए बिजली बिलों पर ८० प्रतिशत छूट देने की भी घोषणा की थी। उल्लेखनीय है कि राज्य सरकार ने २०१८ में पूजा समितियों को १० हजार रुपये के अनुदान और २५ प्रतिशत बिजली बिल छूट के साथ इस पहल की शुरुआत की थी। इसके बाद यह राशि हर साल बढ़ती गई — २०१९ में २५ हजार रुपये, कोविड काल में ५० हजार रुपये, फिर २०२२ में ६० हजार, २०२३ में ७० हजार और २०२४ में ८५ हजार रुपये। अब २०२५ में यह बढ़कर १.१ लाख रुपये तक पहुंच गई है, जो अब तक का सबसे अधिक अनुदान है।

गर्भवती महिला को डॉक्टर के सहायक ने दिया गलत इंजेक्शन!

-स्वास्थ्य आयोग ने दिया इकबालपुर का नर्सिंग होम बंद करने का आदेश 
कोलकाता । कोलकाता के इकबालपुर स्थित एक नर्सिंग होम में एक गर्भवती महिला दर्द की शिकायत लेकर गई थी। कथित तौर पर, उस समय एक डॉक्टर के सहायक ने उसे आरएमओ गलत इंजेक्शन लगा दिया। आरोप है कि घर लौटने के बाद महिला के गर्भ में पल रहे बच्चे की मौत हो गई। इसके बाद महिला के परिवार की ओर से स्वास्थ्य आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई। आयोग ने इस घटना में इकबालपुर नर्सिंग होम को बंद करने का आदेश दिया है। स्वास्थ्य निदेशक को मामले की जांच करने का भी आदेश दिया गया है। आयोग ने महिला को एक लाख रुपये मुआवजा देने का आदेश दिया है। हालाँकि, महिला मुआवजा लेने को तैयार नहीं थी। 6 अगस्त को अलका रॉय नाम की एक महिला ने स्वास्थ्य आयोग में शिकायत दर्ज कराई थी। उसने आरोप लगाया कि गर्भावस्था के दौरान दर्द होने पर वह इकबालपुर नर्सिंग होम गई थी। तभी अविनाश कुमार नाम के एक व्यक्ति ने खुद को आरएमओ बताया। कथित तौर पर, उसने खुद को आरएमओ बताकर उसे एक पर्चा लिखा। उसने महिला को एक इंजेक्शन भी दिया। दर्द शुरू हो गया। महिला घर चली गई। उसके बाद उसका गर्भपात हो गया। शिकायतकर्ता ने बताया कि बाद में महिला को पता चला कि उसका इलाज करने वाला व्यक्ति असल में डॉक्टर नहीं था। इसके बाद स्वास्थ्य आयोग में शिकायत दर्ज कराई गई। नर्सिंग होम के मालिक ने बताया कि उस दिन महिला का इलाज करने वाला व्यक्ति डॉक्टर का सहायक था। डॉक्टर की मेज पर उसका लेटरहेड था। उसने उस पर दवा का पर्चा लिखा था। इसके बाद स्वास्थ्य आयोग ने नर्सिंग होम को बंद करने का आदेश दिया। आयोग ने स्वास्थ्य सेवा निदेशक को जाँच के आदेश दिए हैं। महिला को एक लाख रुपये का मुआवज़ा देने को भी कहा गया है। आयोग के अध्यक्ष, सेवानिवृत्त न्यायमूर्ति असीम कुमार बनर्जी ने कहा, “मुझे यकीन नहीं है कि महिला को दिए गए इंजेक्शन की वजह से उसका गर्भपात हुआ था। स्वास्थ्य निदेशक इस मामले की जाँच करेंगे।” उन्होंने कहा कि महिला को ‘परेशान’ किया गया और उसका इलाज किसी ऐसे व्यक्ति ने किया जो डॉक्टर नहीं था, इसलिए उसे एक लाख रुपये का मुआवज़ा देने का आदेश दिया गया। हालाँकि, शिकायतकर्ता ने कहा कि उसने पैसों के लिए शिकायत नहीं की थी। महिला ने मुआवज़े की रकम नहीं ली। उन्होंने रामकृष्ण मिशन से वह पैसा देने को कहा। मुआवजे के साथ ही नर्सिंग होम को बंद करने का आदेश दिया गया है। आयोग की अध्यक्ष ने बताया कि आदेश के बाद नर्सिंग होम ने नए मरीजों को लेना बंद कर दिया है। इसके बाद अधिकारियों ने आयोग में समीक्षा याचिका के लिए आवेदन किया। नर्सिंग होम खोलने की अनुमति के लिए आवेदन करते हुए अधिकारियों ने कहा कि इसके बंद होने से कई लोगों की आय प्रभावित हुई है। अधिकारियों को डायलिसिस के मरीजों को वापस भेजने के लिए मजबूर होना पड़ रहा है। आयोग की अध्यक्ष ने कहा कि जब तक स्वास्थ्य निदेशक की रिपोर्ट नहीं मिल जाती, तब तक नर्सिंग होम खोलने की अनुमति नहीं दी जाएगी। आयोग 8 सितंबर को समीक्षा याचिका पर सुनवाई करेगा। तब तक नर्सिंग होम बंद रहेगा।

डीआरडीओ ने किया एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली का पहला परीक्षण

नयी दिल्ली। रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (डीआरडीओ) ने एकीकृत वायु रक्षा हथियार प्रणाली का पहला परीक्षण सफलतापूर्वक पूरा कर लिया है। यह परीक्षण 23 अगस्त की सुबह लगभग 12:30 बजे ओडिशा के समुद्री तट पर किया गया।​ यह एक बहुस्तरीय वायु रक्षा प्रणाली है, जिसमें सभी स्वदेशी त्वरित प्रतिक्रिया वाली सतह से हवा में मार करने में सक्षम मिसाइलें, उन्नत अति लघु दूरी वायु रक्षा प्रणाली मिसाइलें और एक उच्च शक्ति सहित लेजर आधारित निर्देशित ऊर्जा हथियार शामिल हैं।
डीआरडीओ के मुताबिक ​सभी हथियार प्रणाली घटकों को एकीकृत संचालन रक्षा अनुसंधान एवं विकास प्रयोगशाला के केंद्रीकृत कमान व नियंत्रण केंद्र से नियंत्रित किया जाता है, जो इस परीक्षण से जुड़े विकास कार्यक्रम की नोडल प्रयोगशाला है। वीएसएचओआरएडीएस को रिसर्च सेंटर इमारत और डीईडब्ल्यू को सेंटर फॉर हाई एनर्जी सिस्टम्स एंड साइंसेज ने विकसित किया है। उड़ान परीक्षणों के दौरान दो उच्च गति वाले फिक्स्ड विंग मानवरहित हवाई लक्ष्यों और एक मल्टी-कॉप्टर ड्रोन सहित तीन अलग-अलग लक्ष्यों को एक साथ क्यूआरएसएएम, वीएसएचओआरएडीएस तथा उच्च ऊर्जा लेजर हथियार प्रणाली ने अलग-अलग दूरी एवं ऊंचाई पर निशाना बनाकर पूरी तरह से नष्ट कर दिया।मिसाइल प्रणाली और ड्रोन का पता लगाने तथा विनाश प्रणाली, हथियार प्रणाली कमान एवं नियंत्रण के साथ-साथ संचार व रडार सहित सभी हथियार प्रणाली घटकों ने त्रुटिरहित प्रदर्शन किया, जिसकी पुष्टि उड़ान डेटा को कैप्चर करने के लिए एकीकृत परीक्षण रेंज में तैनात रेंज उपकरणों ने की। इस परीक्षण का अवलोकन डीआरडीओ के वरिष्ठ वैज्ञानिकों और सशस्त्र बलों के प्रतिनिधियों ने किया। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ​इस सफल परीक्षण के लिए डीआरडीओ, सशस्त्र बलों और रक्षा उद्योग जगत को बधाई दी है। उन्होंने कहा कि इस अनूठे उड़ान परीक्षण ने देश की बहुस्तरीय वायु रक्षा क्षमता को स्थापित किया है और यह दुश्मन के हवाई खतरों का मुकाबला करने के लिए क्षेत्रीय रक्षा घेरे को सशक्त बनाएगा। रक्षा अनुसंधान एवं विकास विभाग के सचिव और डीआरडीओ के अध्यक्ष डॉ. समीर वी. कामत ने भी सफल उड़ान परीक्षणों में शामिल सभी टीमों को बधाई दी है।

इसरो ने किया पैराशूट सिस्टम का सफल परीक्षण
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन ने गगनयान मिशन की तैयारी में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर हासिल किया है। संगठन ने पैराशूट-आधारित मंदन प्रणाली का पहला एकीकृत वायु ड्रॉप परीक्षण (आईएडीटी-01) सफलतापूर्वक पूरा किया है। इस परीक्षण का मुख्य उद्देश्य अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी पर सुरक्षित वापस लाने के लिए आवश्यक सुरक्षा प्रणालियों को प्रमाणित करना था।यह सफल परीक्षण भारतीय वायु सेना, रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन, भारतीय नौसेना और भारतीय तटरक्षक बल के साथ मिलकर किया गया, जो भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक समन्वित और बहु-एजेंसी प्रयास को दर्शाता है। इसरो ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर एक पोस्ट के माध्यम से इस उपलब्धि की घोषणा की, जिसमें इस संयुक्त प्रयास पर जोर दिया गया।इसरो अध्यक्ष वी. नारायणन ने पुष्टि की है कि भारत का पहला मानवरहित गगनयान मिशन, जिसे जी 1 नाम दिया गया है, इस साल दिसंबर में अपनी परीक्षण उड़ान भरेगा। यह मिशन एक अर्ध-मानव रोबोट ‘व्योममित्र’ को लेकर जाएगा, जो अंतरिक्ष में मानव-जैसी गतिविधियों का अनुकरण करेगा। यह उड़ान भविष्य के मानव मिशनों के लिए महत्वपूर्ण डेटा इकट्ठा करेगी। नारायणन ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में बताया कि गगनयान मिशन की तैयारी काफी तेजी से आगे बढ़ रही है, जिसमें 80% से अधिक, यानी लगभग 7,700 परीक्षण पहले ही पूरे हो चुके हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि बाकी बचे 2,300 परीक्षण अगले साल मार्च तक पूरे हो जाएंगे, जिससे मिशन अपनी तय समयसीमा के अनुसार आगे बढ़ सकेगा।

प्रिंटिंग और पैकेजिंग उद्योग को 5 फीसदी जीएसटी स्लैब में लाने की अपील

नयी दिल्ली । देशभर में 2.5 लाख से अधिक प्रिंटिंग और पैकेजिंग उद्यमों का प्रतिनिधित्व करने वाले अखिल भारतीय मुद्रक और पैकेजर महासंघ (एआईएफपीपी) ने शनिवार को अहम वर्चुअल बैठक का आयोजन किया। बैठक का केंद्रबिंदु था-सरकार द्वारा प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) दरों में सुधार, जिसका उद्देश्य मौजूदा बहु-स्तरीय संरचना को सरल बनाकर दो-स्लैब प्रणाली (5% और 18%) लागू करना है। जीएसटी कानून विशेषज्ञ एन.के. थमन ने बैठक में कहा, “प्रिंटिंग और पैकेजिंग भारत की आर्थिक संरचना का अभिन्न हिस्सा है। यदि इस क्षेत्र को 18% के स्लैब में रखा गया, तो इससे नवाचार में रुकावट, लागत में वृद्धि और वैश्विक प्रतिस्पर्धा में गिरावट आ सकती है।” भारत का प्रिंटिंग और पैकेजिंग उद्योग वर्ष 2025 तक 150 अरब अमेरिकी डॉलर तक पहुँचने की राह पर है। पैकेजिंग खंड अकेले साल 2025 में 101 अरब डॉलर का आंकड़ा पार कर सकता है और साल 2030 तक यह 10.73% की वार्षिक वृद्धि दर के साथ 170 अरब डॉलर तक पहुँचेगा। यह क्षेत्र देश के 2.5 मिलियन से अधिक लोगों को प्रत्यक्ष रूप से रोजगार देता है और अप्रत्यक्ष रूप से कागज, स्याही और लॉजिस्टिक्स जैसे सहयोगी क्षेत्रों को भी प्रोत्साहन देता है।
मौजूदा जीएसटी ढांचा और प्रस्तावित प्रभाव वर्तमान में: कार्डबोर्ड, बॉक्स और कागज जैसे उत्पादों पर 12% जीएसटी लागू है (हाल में 18% से घटाया गया)। स्टेशनरी जैसे उत्पाद (लिफाफे, डायरी, रजिस्टर आदि) 18% स्लैब में आते हैं। आवश्यक मुद्रित सामग्री जैसे किताबें 0% या 5% की रियायती दर पर करयोग्य हैं।प्रस्तावित ढांचे में 12% वाले अधिकांश उत्पादों को 5% में शामिल किया जा सकता है, लेकिन चिंता यह है कि कई सेवाएं 18% स्लैब में स्थानांतरित हो जाएंगी, जिससे उत्पादन लागत में 6% तक की बढ़ोतरी हो सकती है।
एआईएफपीपी इस संदर्भ में जीएसटी परिषद् और वित्त मंत्रालय को एक विस्तृत ज्ञापन सौंपेगा। महासंघ का मानना है कि सरकार से सहयोगात्मक नीति मिलने पर यह क्षेत्र न केवल स्थानीय रोजगार को बढ़ावा देगा, बल्कि निर्यात में भी बड़ा योगदान देगा। अखिल भारतीय मुद्रक और पैकिजर महासंघ (एआईएफपीपी) देशभर में फैले प्रिंटिंग और पैकेजिंग व्यवसायों का प्रतिनिधित्व करता है। यह संगठन उद्योग की नीतिगत बाधाओं को दूर करने, नवाचार को बढ़ावा देने और आर्थिक सुधारों के माध्यम से सतत विकास सुनिश्चित करने के लिए कार्यरत है। इस वर्चुअल बैठक का संचालन प्रिंट उद्योग की प्रमुख शख्सियत प्रो. कमल चोपड़ा ने किया और उन्होंने क्षेत्र से जुड़ी बुनियादी हकीकतों और चुनौतियों पर प्रकाश डाला।

अनीश दयाल सिंह बने डिप्टी एनएसए

नयी दिल्ली । सीआरपीएफ और आईटीबीपी के पूर्व महानिदेशक अनीश दयाल सिंह को नया उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार (एनएसए) नियुक्त करते हुए आंतरिक मामलों को संभालने का दायित्व सौंपा गया है। आधिकारिक सूत्रों ने यह जानकारी दी। मणिपुर कैडर के 1988 बैच के भारतीय पुलिस सेवा (आईपीएस) अधिकारी सिंह दिसंबर 2024 में सेवानिवृत्त हुए थे। इस भूमिका के लिए उनके पास व्यापक अनुभव है। उन्होंने भारत-तिब्बत सीमा पुलिस (आईटीबीपी) और हाल ही में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) का नेतृत्व करने से पहले इंटेलिजेंस ब्यूरो (आईबी) में लगभग 30 वर्षों तक सेवाएं दी हैं। अधिकारियों के अनुसार, सिंह उप एनएसए के रूप में जम्मू-कश्मीर, नक्सलवाद और पूर्वोत्तर उग्रवाद समेत देश के आंतरिक मामलों के प्रभारी होंगे। रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (रॉ) के पूर्व प्रमुख राजिंदर खन्ना अतिरिक्त एनएसए हैं, जबकि सेवानिवृत्त आईपीएस अधिकारी टीवी रविचंद्रन और पूर्व आईएफएस अधिकारी पवन कपूर दो सेवारत उप एनएसए हैं।
सीआरपीएफ प्रमुख के रूप में सिंह के कार्यकाल के दौरान नक्सलवाद का मुकाबला करने में प्रगति, 30 से अधिक अग्रिम परिचालन ठिकानों की स्थापना और वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों में चार नयी बटालियनों की शुरुआत जैसी पहल हुईं। उन्होंने 2024 के लोकसभा चुनावों और केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में पहले विधानसभा चुनाव के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने में सीआरपीएफ की भूमिका की भी देखरेख की।

भारत सरकार बनाएगी नया एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन

-25,000 करोड़ का गेम चेंजर प्लान कर रही तैयार
नयी दिल्ली । केंद्र सरकार ने भारत से निर्यात को बढ़ावा देने के लिए एक बड़ा कदम उठाने की तैयारी कर ली है। बजट 2025 में घोषित एक्सपोर्ट प्रमोशन मिशन के तहत सरकार 2025 से लेकर 2031 तक देश के निर्यातकों को करीब 25,000 करोड़ रुपये की वित्तीय मदद देने की योजना पर काम कर रही है।
सूत्रों के मुताबिक, इस योजना का मुख्य उद्देश्य देश के निर्यातकों को सस्ता और आसान कर्ज उपलब्ध कराना है, ताकि वे वैश्विक बाजार में मजबूती से टिक सकें, खासकर अमेरिका जैसे देशों द्वारा लगाए गए टैक्स से उत्पन्न चुनौतियों का सामना कर सकें। कॉमर्स मिनिस्ट्री ने इस योजना का प्रस्ताव वित्त मंत्रालय की एक्सपेंडिचर फाइनेंस कमेटी (ईएफसी) को भेजा है। ईएफसी की मंजूरी मिलने के बाद इसे कैबिनेट की मंजूरी के लिए भेजा जाएगा। योजना को वित्त वर्ष 2025 से लागू करने की तैयारी है। इस मिशन का मकसद अगले छह वर्षों (2025-31) में भारत के निर्यात क्षेत्र में समावेशी, व्यापक और टिकाऊ विकास को बढ़ावा देना है। खासतौर पर एमएसएमई (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम) को ग्लोबल बाजार में सक्षम बनाने के लिए यह योजना अहम मानी जा रही है।