Saturday, September 20, 2025
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प्रेमचंद भारतीयता के लेखक हैं-शुभ्रा उपाध्याय

कोलकाता । कोलकाता का प्रतिष्ठित कॉलेज खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की ओर से प्रेमचंद जयंती के अवसर पर ‘प्रेमचंद स्मृति व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। इस अवसर पर कॉलेज के आचार्य डॉ सुबीर कुमार दत्त ने कहा कि यह व्याख्यनमाला विगत बारह वषों से आयोजित हो रहा है। उन्होंने हिंदी विभाग की सक्रियता की प्रशंसा करते हुए आमंत्रित वक्ता एवं श्रोताओं के प्रति आभार प्रकट किया। विभागाध्यक्ष डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने प्रेमचंद के लेखन और चिंतन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि प्रेमचंद भारतीयता के लेखक हैं। मुख्य वक्ता क्वींस कॉलेज की प्रोफेसर डॉ शुभा श्रीवास्तव ने प्रेमचंद के लेखन में उपस्थित समग्रता पर सारगर्भित व्याख्यान दिया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के पात्र हमारे समाज के पात्र हैं। उनके प्रति प्रेमचंद की प्रतिबद्धता निरंतर बनी रही। उन्होंने विशेष रूप से ‘प्रेमाश्रम’ का समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया।उन्होंने प्रेमाश्रम की समस्याओं के साथ उसकी प्रासंगिकता पर प्रकाश डाला। कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो.राहुल गौड़ और धन्यवाद ज्ञापन विभाग की शिक्षिका मधु सिंह ने दिया।

प्रेमचंद जयंती पर मुक्तांचल के 34वें अंक का लोकार्पण

कोलकाता । ‘विद्यार्थी मंच’ द्वारा रविवार प्रेमचंद जयंती के अवसर पर ‘मुक्तांचल’ त्रैमासिक पत्रिका के 34वें अंक का लोकार्पण समारोह आयोजित किया गया इसके साथ ही प्रेमचंद पर एक परिचर्चा का भी आयोजन किया गया।  इस कार्यक्रम की अध्यक्षता खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज की हिंदी विभागाध्यक्ष शुभ्रा उपाध्याय ने की। कार्यक्रम की शुरुआत सरस्वती वंदना से हुई जिसे श्रद्धा गुप्ता ने प्रस्तुत किया। इसके पश्चात मंचासीन सभी विद्वानों ने मुक्तांचल पत्रिका के जुलाई अंक का लोकार्पण किया।

‌मुक्तांचल पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा ने पत्रिका के 34वें अंक के बारे में बताते हुए कहा कि यह पत्रिका लोगों से जुड़ने और जोड़ने का कार्य कर रही है।  उन्होंने कहा कि स्वयं को विकसित करने का एक विशेष जरिया साहित्य है क्योंकि साहित्य में सबकुछ समाहित है। इसके साथ ही उन्होंने आपसी संवाद से ‘साहित्यिक माहौल’ बनाने की पहल पर विशेष बल दिया।

प्रेमचंद जयंती कार्यक्रम के प्रथम वक्ता डॉ. विनय मिश्र ने वर्तमान समय में प्रेमचंद की लोकप्रियता पर बात करते हुए कहा कि भारतीय समाज व्यवस्था को समझने में प्रेमचंद का साहित्य सदैव अमर रहेगा। उन्होंने प्रेमचंद की रचनाओं के माध्यम से स्त्री, दलित, जातिवाद और संप्रदायवाद की समस्यायों को उठाते हुए उसे वर्तमान परिप्रेक्ष्य में देखने की बात कही।

‌कार्यक्रम में मौजूद दूसरे वक्ता जीवन सिंह ने अपने वक्तव्य की शुरुआत प्रेमचंद की प्रासंगिकता से करते हुए कहा कि आज जो समाज में घट रहा है, उसकी भनक प्रेमचन्द को सौ वर्ष पहले हो चुकी थी। अन्य भाषा की रचनाओं से तुलना करते हुए उन्होंने बताया कि आज प्रेमचंद को पढ़ना क्यों जरूरी है। प्रेमचंद के समग्र साहित्य में वर्तमान भारत की समस्यायों पर गहरी चिंता दिखाई पड़ती है। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि आज की पीढ़ी को जरूरत है भारतीय समाज की कुव्यवस्था से लड़ने की।

मुख्य वक्ता मिदनापुर कॉलेज ( ऑटोनामस ) के हिंदी प्राध्यापक डॉ. रणजीत सिन्हा ने प्रेमचंद के महत्त्व को उजागर करते हुए बताया कि प्रेमचंद ने भोगे हुए यथार्थ से अपने साहित्य की भूमि तैयार की। उन्होंने वही लिखा जो समाज ने भोगा था। प्रेमचंद के पात्र आज भी हमारे इर्द-गिर्द जीवित है। वर्तमान समय में चल रहे तमाम विमर्शों के स्त्रोत प्रेमचंद के साहित्य में मिल जाते हैं।

इसी कड़ी में अगले वक्ता विवेक लाल ने प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा करते हुए कहा कि आधुनिक हिंदी साहित्य में चेतना रूपांतरण के सबसे महत्वपूर्ण रचनाकार प्रेमचंद है। प्रेमचंद अपनी दूरदर्शी दृष्टि के कारण सदैव नवीन रहेंगे और आज जरूरत है प्रेमचंद के पाठक को अपने अंदर इंकलाब की चेतना लाने की।

इस अवसर पर उपस्थित श्रीप्रकाश गुप्ता ने कहा कि आज के विद्यार्थी एवं युवा वर्ग को पाठ्यक्रम से इतर भी प्रेमचंद को पढ़ने एवं समझने की जरूरत है क्योंकि समाज में परिवर्तन तभी संभव है जब आज की युवा पीढ़ी प्रेमचंद को नवीन नजरिये से पढ़ेगी।

कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रही डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद के यहाँ जैसी आत्मीयता और संवेदना मिलती है वैसा अन्यथा मिलना मुश्किल है। आज भी जब हम विमर्शों की बात करते हैं तो हमें सबसे पहले प्रेमचंद के पास जाने की जरूरत है।

कार्यक्रम में मौजूद रितेश पांडे और जीवन सिंह जी ने अपनी स्वरचित कविता का पाठ करके कार्यक्रम को आंनदमय कर दिया।  इसके साथ ही अक्षिता साव, अभिषेक पांडे, प्रीति साव एवं श्रद्धा गुप्ता ने भी अपनी स्वरचित कविता तथा ग़ज़लों को प्रस्तुत किया।

अंत में नगीनालाल दास ने धन्यवाद ज्ञापन देकर कार्यक्रम में मौजूद सबके प्रति आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम का कुशल संचालन परमजीत कुमार पंडित ने किया।  कार्यक्रम में मौजूद सुशील कुमार पांडे, विनोद यादव, विनीता लाल, सरिता खोवाला, बलराम साव, शनि चौहान एवं रानी तांती समेत अनेक विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों ने अपनी सक्रिय भागीदारी निभायी।

रपट – रानी तांती, शोथार्थी, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय 

जलेबी…मिष्ठान जो श्रीराम को अत्यन्त प्रिय है

जलेबी प्राचीन समय से ही भारतीयों की सबसे पसंदीदा मिठाइयों में से एक रही है। यह भारत की मिठाई है और यहीं से पूरी दुनिया में लोकप्रिय हुई। जलेबी को प्राचीन भारत में कर्णशष्कुलिका या शष्कुली कहा जाता था और कहते हैं कि यह मिष्ठान भगवान श्रीराम को भी बहुत पसंद है। शायद यही कारण है कि हर शुभ अवसर पर यह मिष्ठान बनाया जाता था। फिर वह वह श्रीराम का जन्मोत्सव हो या दशहरे का दिन या फिर दीपावली। जलेबी को कुण्डलिनी भी कहते हैं।
अगर बात भारतीय इतिहास की हो तो मराठा ब्राह्मण पंडित रघुनाथ सूरी ने 17वीं शताब्दी में भोजनकुतूहल नामक पुस्तक लिखी थी, जिसमें भोजन से संबंधित सभी जानकारियां दी गई है और यह किताब पाक कला और आयुर्वेद का एक आदर्श मिश्रण मानी जाती है। इस पुस्तक में भी श्रीरामजन्म के समय प्रजा में जलेबियां बंटवाने का जिक्र किया गया है. कई जगह जलेबी को शष्कुली’ ही लिखा गया है।
भावप्रकाश प्राचीन भारतीय औषधि शास्त्र के अंतिम आचार्य कहे जाने वाले भाव मिश्र द्वारा लिखे गए प्रसिद्ध आयुर्वेदिक ग्रन्थ भावप्रकाश के कुछ श्लोकों में जलेबी को बनाने की विधि और उसके फायदों के बारे में बताया गया है। भावप्रकाश के अनुसार, “जलेबी कुण्डलिनी को जगाने वाली, पुष्टि, कांति और बत देने वाली धातुवर्धक, वीर्यवर्धक, रुचिकारक और इंद्रिय सुख और रसेंद्रिय को तृप्त करने वाली होती है।”
कुण्डलिनी
नूतनं घटमानीय तस्यान्तः कुशलो जनः प्रस्थार्थपरिमाणेन दघ्नाऽम्लेन प्रलेपयेत्॥१३०|| दिप्रस्थां समितां तत्र दध्याम्लं प्रस्थसम्मितम् पुतमराव घोलवित्वा घंटे क्षिपेत् ॥ १३८|| आतपे स्यापयेत्तावद् यावद्याति तदम्लताम्
परिभ्राम्य परिभ्राम्य सुसन्तप्ते घृते क्षिपेत्
पुनः पुनस्तदावृत्त्या विदध्यान्मण्डलाकृतिह९४०|| कर्पूरादिसुगन्धे च स्नापयित्वोद्धरेत्ततः॥११|| एषा कुण्डलिनी नाम्ना पुष्टिकान्सिबलप्रदा ततस्तत्प्रक्षिपेत्पात्रे सच्छिदे भाजने तु तत्३९३५|| धातुवृद्धिकरी वृष्या रुच्या चेन्द्रियतर्पणी॥९४२॥
तो सुपक्वां घृतान्त्रीत्वा सितापाके तनुद्रवे
नयापटाकर उसके भीतर ॥ १३२ ॥ आपसेर खट्टा दहीसे लेप करावे उसमें दोसेर मैदा ओर एकसेर सट्टा दही ॥ १२२ ॥ पावभर प्रत इनकों पोलकर हमें इसकों पूपमें रखे तस्तक जबतक सट्टापन इसमें न आये ॥ १२४ ॥ अ नन्तर छेकवाले बरतन में उसको दाल उसको प्रमारकर जलते वे पीयें
लेखक शरदचंद्र पेंढारकर ने भी जलेबी का प्राचीन भारतीय नाम ‘कुण्डलिका बताया है। संस्कृत में लिखी ‘गुण्यगुणबोधिनी किताब में भी जलेबी बनाने की विधि बताई गई है। जैन धर्म के ग्रन्थ कर्णयकथा’ में जलेबी भगवान महावीर को नेवेद्य लगाने वाली मिठाई बताया गया है।

वहीं, तुर्की के मोहम्मद बिन हसन की तरफ से अरबी भाषा में लिखी गई ‘किताब-अल-तबिक में जलेबी को जलाबिया लिखा गया है। हिंदी में जलेबी को जलवल्लिका’ कहा जाता है।लगभग हर जगह के लोग दूध, दही या रबड़ी के साथ रसभरी, गोल गोल घुमावदार जलेबियां बड़े चाव से खाते हैं।

जलेबी खाने के फायदे
क्या मीठा खाने के भी फायदे हो सकते हैं? हाँ.. हो सकते हैं, लेकिन तभी जब गीठा संयम में और सही तरीके से खाया जाए, और फिर हर तरह की मिठाई तो रोहत के लिए फायदेमंद नहीं होती, लेकिन पुराने समय में जलेबियों को बनाने का जो तरीका बताया गया है, वह सेहत के लिए अच्छा माना गया है. कई प्राचीन किताबों में जलेबी को औषधीय मिठाई का दर्जा दिया गया है। इसे खाने के कई तरह के शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक फायदे बताए गए है । जलेबी खाने के अध्यात्मिक फायदे जलेबी (जल.एबी) शरीर में मौजूद जल के ऐब यानी दोष को दूर करती है। इसकी बनावट शरीर की कुण्डलिनी चक्र के जैसी होती है, अघोरी, संतों के अनुसार, जलेबी खाने से शरीर में अध्यात्मिक शक्ति, सिद्धि और ऊर्जा का विकास होता है, जिससे स्वाधिष्ठान चक्र को जगाने में सहायता मिलती है। आज भी गाँवों में और शहरों में भी गरमागरम दूध-जलेबी का नाश्ता करना पसंद करते हैं। कहा जाता है कि शुद्ध घी में बनीं गरमागरम दूध-जलेबी का सेवन करने से जुकाम में आराम होता है। दूध या दही के साथ गर्म जलेबियां त्रिदोष यानी वात, पित्त और कफ को दूर करने में सहायक है।
जिन लोगों को सिरदर्द की समस्या रहती हो, वे सुबह गर्म जलेबियों का सेवन करें और तुरंत पानी न पीयें तो उनके सभी तरह के मानसिक दोष खत्म हो जाते हैं। सुबह जलेबियों का सेवन करने से पीलिया और पांडुरोगों में भी आराम होता है.गर्म जलेबियों को चर्म रोगों में भी फायदेमंद बताया गया है. पैरों की एड़ियां या बिवाई फटने की परेशानी में लगातार का दिनों तक जलेबियों का सेवन करने से आराम होता है।
हमारा परामर्श तो यह है कि मधुमेह या डायबिटीज के मरीज जलेबियों का सेवन न करें या डॉक्टर या सही जानकार की सलाह से ही करें। कई लोगों को लगता है कि जलेबी और इमरती एक ही मिठाई है, लेकिन ये सच नहीं है क्योंकि दोनों को बनाने की मूल सामग्री अलग है।
जलेबी बनाने में मैदे का प्रयोग होता है औए उसका स्वाद सिर्फ मीठा होता है। इमरती उड़द दाल के आटे से बनती है और ये भले ही मीठी लगती हो लेकिन इमरती का स्वाद जलेबी के स्वाद से कही ज्यादा अलग होता है। जलेबी करारी होती है और इमरती उरद दाल की वजह से उतनी करारी नही बनती है।
(साभार प्रिंसली डॉट कॉम और क्योरा डॉट कॉम)

जब दिव्यांगों ने लिया अंगदान करने का संकल्प

निप एवं अनुभव के नेत्र एवं अंगदान शिविर में 100 लोगों ने की भागीदारी

कोलकाता । स्वयंसेवी संस्था “एनआईपी” और “अनुभव” द्वारा हाल ही में नेत्र व अंगदान को लेकर जागरूकता कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में 100 लोगों ने स्वेच्छामूलक नेत्र व अंगदान किया। इनमें कई दिव्यांग लोग भी शामिल हैं। इस मौके पर एनआईपी के सचिव देबज्योति राय ने कहा कि समाज में रहनेवाले दिव्यांग भी इस समाज का अंग हैं।

हमें उनको दूसरों की सहायता करने के लिए प्रेरित करने की जरूरत है जिससे वे अपना सर्वश्रेष्ठ दे सकें। हरिदेवपुर अनुभव वेलफेयर सोसायटी के अध्यक्ष सुशांत भट्टाचार्य ने कहा कि 100 लोगों ने इस आयोजन में नेत्र एवं अंगदान किया। इस कार्यक्रम में लोगों की बड़ी संख्या में मौजूदगी इसकी सफलता को बयां करती है।

वसुंधरा

कविता कोठारी

शत-शत नमन तुमको, हे वसुंधरा।
तुमसे ही हैं ये जीव सारे ओ धरा।
तुमने ही जीवनदान है सबको दिया।
सुख-भाग सबको बाँटती हो ओ धरा।
सुख और दुख समरूप से हो झेेलती।
उर में छिपा लेती हो निज दुख ओ धरा।
सबको तुम्हीं हो बाँटती अमृत-सुधा,
पर मिला तुमको गरल-विष ओ धरा।
उफ़ न करती तुम रही हँसती सदा।
जग ने कहाँ समझा है तुमको ओ धरा।

बंगाल की रमनिता बनीं शबर जनजाति से स्नातकोत्तर करने वाली बनीं पहली महिला

कोलकाता। बंगाल के पुरुलिया जिले की रहने वाली रमनिता शबर ने पोस्ट ग्रेजुएशन करके इतिहास रच दिया है। वह खेडिय़ा शबर जनजाति से पोस्ट ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला हैं। पुरुलिया के बड़ाबाजार इलाके की रहने वाली रमनिता ने पुरुलिया के सिधु कान्हू बिरसा विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। उसके पिता महादेव दिहाड़ी मजदूर हैं। चार भाई-बहनों में रमनिता सबसे बड़ी हैं। बचपन में ही पढ़ाई के प्रति उसकी दिलचस्पी देखते हुए एक रिश्तेदार ने आर्थिक मदद का हाथ बढ़ाया था।
रमनिता ने पड़ोसी राज्य झारखंड के एक स्कूल से 10वीं की पढ़ाई पूरी करने के बाद पुरुलिया के स्कूल से बारहवीं की पढ़ाई की। इसके बाद झारखंड के एक कालेज से इतिहास में ग्रेजुएशन किया। शबर समुदाय से ग्रेजुएशन करने वाली पहली महिला होने के कारण पुरुलिया जिला प्रशासन की तरफ से उसके सिधु कान्हू बिरसा विश्वविद्यालय से इतिहास में पोस्ट ग्रेजुएशन करने की व्यवस्था की गई। बेटी की इस सफलता से पिता का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है। उन्होंने कहा- ‘मेरी बेटी की जिद सफल हो गई। उसने हमारे समुदाय का मान बढ़ाया है।
शिक्षिका बनने का सपना
रमनिता शिक्षिका बनना चाहती हैं। उन्होंने कहा- ‘मेरी बचपन से ही शिक्षिका बनने की इच्छा है। इसी सपने को पूरा करुंगी। आगे लंबी दूरी तय करनी है। पश्चिम बंगाल खेरिया शबर कल्याण समिति की तरफ से रमनिता की उपलब्धि पर उन्हें सम्मानित किया गया है। रमनिता इस समिति की सदस्या भी हैं। समिति ने कहा हमें रमनिता पर गर्व है।

सर्दी-खांसी और जुकाम में इस्तेमाल करें अजवाइन की पोटली

मॉनसून अपने साथ कई बीमारियों को लेकर आता है। इन बीमारियों से बचाव के लिए हम अच्छी डाइट लेते हैं, साथ ही बीमारियों के लक्षण नजर आने पर दवाईयों को सेवन भी करने लगते हैं। लगातार दवाईयों के सेवन से हमारी इम्युनिटी कमजोर हो सकती है। अगर मॉनसून में आपको भी सर्दी, खांसी और सिरदर्द ज्यादा परेशान करता है, तो आप अपने साथ अजवाइन की पोटली रख सकते हैं। इस मौसम में अजवाइन आपको काफी फायदा पहुंचाएगी। इसके लगातार इस्तेमाल से गले और कफ की परेशानी आपको ज्यादा परेशान नहीं करेगी।
मॉनसून में अजवाइन की पोटली के फायदे
अजवाइन पोषक तत्वों से भरपूर होती है। अजवाइन में एंटीसेप्टिक और एंटीइन्फ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं, जो आपको रोगों से बचाने में मदद करते हैं। अजवाइन में भरपूर मात्रा में फाइबर, मिनरल्स और विटामिन्स मौजूद होते हैं, जो शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं।
मॉनसून के मौसम में अधिकतर लोगों को सर्दी, खांसी और जुकाम का सामना करना पड़ता है। ऐसे में आप घर में अजवाइन की पोटली बनाकर इन रोगों से छुटकारा पा सकते हैं।
आप अजवाइन की पोटली से गले की सिकाई कर सकते हैं, इससे आपको गले के दर्द में आराम मिलेगा।
अगर आपको बुखार है, तो भी अजवाइन की पोटली का इस्तेमाल किया जा सकता है। बुखार या सिरदर्द होने पर आप इस पोटली को फोरहेड के पास या फिर दोनों आईब्रो के बीज सिकाई कर सकते हैं।
नाक बंद होने की स्थिति में भी अजवाइन की पोटली का उपयोग किया जा सकता है। इसके लिए आप इस पोटली को नाक पर लगाएं।
अजवाइन की पोटली कैसे बनाएं?
अजवाइन की पोटली बनाने के लिए एक तवा को अच्छे से गर्म कर लें।
गर्म होने पर इस तवे पर एक चम्मच अजवाइन डालें।
अजवाइन को चारों तरफ से सेकें। जैसे ही अजवाइन सिकने लगे, इसकी खूशबू चारों तरफ फैल जाएगी।
अब एक कॉटन के कपड़े में इस अजवाइन को रखें और कपड़े पर गांठ लगा लें। आपकी अजवाइन की पोटली तैयार है। ध्यान रखें पोटली बनाने के लिए कॉटन के कपड़े का ही इस्तेमाल करना चाहिए।
मॉनसून में अजवाइन के फायदे
अजवाइन अनिद्रा की समस्या को दूर करने में मदद कर सकती है। इसके लिए आप रात को सोने से पहले अजवाइन को गर्म पानी में ले सकते हैं।
कब्ज की समस्या के लिए एक गिलास गर्म पानी के साथ अजवाइन खाएं। कुछ दिनों तक इसे लेने से कब्ज की समस्या दूर हो जाएगी।
कई बार सर्दी की शुरूआत होने पर जोड़ो में दर्द शुरू हो जाता है, इस समस्या से निपटने के लिए 1 चम्मच अजवाइन लें और इसे गर्म पानी पी लें।
अजवाइन में भरपूर मात्रा में एंटीऑक्‍सीडेंटस पाए जाते हैं, जो छाती में जमे कफ से छुटकारा दिलाने में मदद कर सकते हैं।
सिरदर्द में आप अजवाइन को चबाकर खा सकते हैं, इससे आपको सिरदर्द में काफी आराम मिलेगा
ध्यान रखें, अजवाइन के ढ़ेरों फायदे होते हैं। लेकिन अजवाइन का सेवन अधिक मात्रा नहीं करना चाहिए। किसी समस्या बढ़ने पर डॉक्टर से परामर्श अवश्य लें। अपनी कोई भी बीमारी नजरअंदाज न करें।

प्रेरक आईएएस : 10वीं में 44 प्रतिशत लेकिन यूपीएसी दूसरी बार में ही निकाली

पीसीएस प्री में 10 से ज्यादा बार फेल
नयी दिल्ली ।  लगातार फेल होने और बोर्ड परीक्षाओं में खराब प्रदर्शन से मायूस छात्रों को एक आईएएस ऑफिसर की सफलता की कहानी काफी प्ररेणा देने वाली है। आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण ने शुक्रवार को ऐसे वक्त पर अपनी संघर्ष यात्रा सोशल मीडिया पर शेयर की जब बहुत से बच्चे अपना सीबीएसई रिजल्ट खराब आने से निराश थे। अवनीश शरण ने लिखा, ’12 वीं में आपके कितने प्रतिशत अंक आए थे ?’ इसके बाद उन्होंने अपनी संघर्ष की यात्रा के बारे में लिखा – मेरी यात्रा: 10वीं में 44.7 प्रतिशत, 12वीं में 65 प्रतिशत, ग्रेजुएशन में 60 प्रतिशत। सीडीएस और सीपीएफ भर्ती परीक्षा दोनों में फेल हुआ। राज्य लोक सेवा आयोग की परीक्षा में 10 से अधिक बार प्रारंभिक परीक्षा में फेल हुआ। यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा में प्रथम प्रयास में साक्षात्कार तक पहुंचा। दूसरे प्रयास में ऑल इंडिया 77वीं रैंक आई।
आईएएस ऑफिसर अवनीश शरण की सफलता की कहानी बताती है कि असलता में भी सफलता छिपी होती है। असफलता से हासिल होने वाला अनुभव आपको आगे काम आएगा। प्रयास करते रहें, सफलता आपको जरूरी मिलेगी। लक्ष्य के प्रति आगे बढ़ते रहे। लगन के साथ मेहनत करते रहें। नाकामी से न घबराएं।
अवनीश के इस ट्वीट को महज एक दिन में 63 हजार से ज्यादा लाइक मिल चुके हैं। 9 हजार लोग रीट्वीट कर चुके हैं। सोशल मीडिया यूजर्स इस कहानी को बेहद प्रेरणादायी बता रहे हैं। एक यूजर ने लिखा- गिरने के बाद ही जो मजा उठने मे है वो कही नही। एक अन्य ने लिखा, – सर, आजकल 1-2 प्रतियोगी परीक्षा देने के बाद लोग ऐसे निराश हो जाते हैं जैसे निराशा का पहाड़ टूट पड़ा है और तैयारी बीच में छोड़ने का फैसला कर लेते हैं। आप की कहानी आपका संघर्ष प्रेरणादायक है। एक यूजर ने लिखा- प्रयास करने वालों की कभी हार नहीं होती। हम सभों को आपसे कुछ सीख लेनी चाहिए।
अवनीश अकसर अपने ट्वीट से भर्ती परीक्षाओं की तैयारी कर रहे युवाओं को प्रेरित करते रहते हैं। सोशल मीडिया पर अभ्यर्थी उनसे तैयारी के टिप्स लेते नजर आते हैं। 2009 बैच के छत्तीसगड़ कैडर के अधिकारी ने हाल में अपनी सक्सेस स्टोरी के बारे में बताया गया था। पोस्ट में लिखा था, ‘एक लड़के के 10वीं में 44.5 फीसदी, 12वीं में 65 फीसदी और ग्रेजुएशन में 60.7 फीसदी मार्क्स आए।
कुछ दिनों पहले आईएएस अधिकारी अवनीश ने ट्विटर पर अपनी पसंदीदा किताब की एक झलक शेयर की थी। यह वही किताब है जिससे उन्होंने यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी की थी। इस ट्विटर पोस्ट में एएल बाशम द्वारा लिखित पुस्तक ‘द वंडर दैट वाज इंडिया’ के कुछ पेजों की फोटो देखी जा सकती है।
इससे पहले उन्होंने 10वीं की मार्कशीट शेयर की थी जो स्टूडेंट्स को मार्क्स और सफलता के बीच अंतर बता रही थी। बिहार बोर्ड मैट्रिक की 26 साल पहले की इस मार्कशीट में देखा जा सकता है कि अवनीश को 700 में से केवल 314 मार्क्स (44.5 फीसदी) मिले थे। मैथ्स में तो वह फेल होते होते बचे थे। 10वीं में थर्ड डिविजन से पास होने के बावजूद अवनीश यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा पास कर आईएएस ऑफिसर बने।

द्रौपदी मुर्मू : दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की पहली आदिवासी राष्ट्रपति

नयी दिल्ली । भारत के 75 साल के इतिहास में पिछले डेढ़ दशक को महिलाओं के लिए खास तौर से विशिष्ट माना जा सकता है। जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करने वाली महिलाएं इस दौरान देश के शीर्ष संवैधानिक पद तक पहुंचने में कामयाब रहीं और 2007 में प्रतिभा देवी सिंह पाटिल के देश की पहली महिला राष्ट्रपति बनने का गौरव हासिल करने के बाद अब द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्रपति बनना देश की लोकतांत्रिक परंपरा की एक सुंदर मिसाल है।
क्या कभी किसी ने सोचा था कि दिल्ली से दो हजार किलोमीटर के फासले पर स्थित ओडिशा के मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के छोटे से गांव उपरबेड़ा के एक बेहद साधारण स्कूल से शिक्षा ग्रहण करने वाली द्रौपदी मुर्मू एक दिन असाधारण उपलब्धि हासिल करके देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर विराजमान होंगी और देश ही नहीं दुनिया की बेहतरीन इमारतों में शुमार किया जाने वाला राष्ट्रपति भवन उनका सरकारी आवास होगा।
यहां यह उल्लेख करना प्रासंगिक होगा कि द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी राष्ट्रपति होंगी। महिलाओं का प्रतिनिधित्व करने के साथ साथ वह देश की कुल आबादी के साढ़े आठ फीसदी से कुछ ज्यादा आदिवासी समुदाय का प्रतिनिधित्व करती हैं, लेकिन जनजाति की बात करें तो वह संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती हैं। भील और गोंड के बाद संथाल जनजाति की आबादी आदिवासियों में सबसे ज़्यादा है।
द्रौपदी मुर्मू का जन्म 20 जून 1958 को ओडिशा के मयूरभंज जिले के बैदापोसी गांव में एक संथाल परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम बिरंचि नारायण टुडु है। उनके दादा और उनके पिता दोनों ही उनके गाँव के प्रधान रहे।
मुर्मू मयूरभंज जिले की कुसुमी तहसील के गांव उपरबेड़ा में स्थित एक स्कूल से पढ़ी हैं। यह गांव दिल्ली से लगभग 2000 किमी और ओडिशा के भुवनेश्वर से 313 किमी दूर है। उन्होंने श्याम चरण मुर्मू से विवाह किया था। अपने पति और दो बेटों के निधन के बाद द्रौपदी मुर्मू ने अपने घर में ही स्कूल खोल दिया, जहां वह बच्चों को पढ़ाती थीं। उस बोर्डिंग स्कूल में आज भी बच्चे शिक्षा ग्रहण करते हैं। उनकी एकमात्र जीवित संतान उनकी पुत्री विवाहिता हैं और भुवनेश्वर में रहती हैं।
द्रौपदी मुर्मू ने एक अध्यापिका के रूप में अपना व्यावसायिक जीवन शुरू किया और उसके बाद धीरे-धीरे सक्रिय राजनीति में कदम रखा। साल 1997 में उन्होंने रायरंगपुर नगर पंचायत के पार्षद चुनाव में जीत दर्ज कर अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत की।
उनके राष्ट्रपति बनने पर दुनियाभर के नेताओं ने इसे भारतीय लोकतंत्र की जीत करार दिया है। अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने संदेश में कहा कि एक आदिवासी महिला का राष्ट्रपति जैसे पद पर पहुंचना भारतीय लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है। उन्होंने कहा कि मुर्मू का निर्वाचन इस बात का प्रमाण है कि जन्म नहीं, व्यक्ति के प्रयास उसकी नियति तय करते हैं। वहीं, ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने कहा कि द्रौपदी मुर्मू का राष्ट्र प्रमुख पद पर पहुंचना उनकी ऊंची शख्सियत का ही परिणाम है। फ्रांस के राष्ट्रपति एमैनुएल मैक्रों ने मुर्मू को राष्ट्रपति बनने पर बधाई दी। वहीं, हाल ही में श्रीलंका में राष्ट्रपति चुनाव हारने वाले डलास अल्फापेरुमा ने कहा कि आजादी के बाद जन्म लेने वाली एवं जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश की राष्ट्रपति को बधाई। नेपाल के प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा ने कहा कि दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की राष्ट्रपति निर्वाचित होने पर वह द्रौपदी मुर्मू को बधाई देते हैं। द्रौपदी मुर्मू के भारत की पहली आदिवासी राष्ट्रपति बनने के भले कितने भी राजनीतिक अर्थ लगाए जाएं लेकिन इस बात में दो राय नहीं कि यह जातीय और सांस्कृतिक रूप से दुनिया के सबसे अनोखे देश के लोकतांत्रिक सफर में एक खूबसूरत पड़ाव है।

 

मंकीपॉक्स को लेकर जनस्वास्थ्य से जुड़े कदम, सतर्कता बढ़ाएं: डब्ल्यूएचओ

नयी दिल्ली । दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र के लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) की क्षेत्रीय निदेशक ने सदस्य देशों से मंकीपॉक्स से निपटने के लिए सतर्कता बढ़ाने और जन स्वास्थ्य से जुड़े कदमों को मजबूत करने का रविवार को आह्वान किया।
क्षेत्रीय निदेशक डॉ. पूनम खेत्रपाल सिंह ने कहा कि मंकीपॉक्स तेजी से और कई ऐसे देशों में फैल रहा है, जहां पहले इसके मामले सामने नहीं आए थे, जो बड़ी चिंता का कारण है।
उन्होंने कहा, ‘‘संक्रमण के मामले ज्यादातर उन पुरुषों में पाए गए हैं, जिन्होंने पुरुषों के साथ संबंध बनाए। ऐसे में उस आबादी पर केंद्रित प्रयास करके बीमारी को और फैलने से रोका जा सकता है, जिनमें संक्रमण का खतरा अधिक है।’’
वैश्विक स्तर पर, 75 देशों में मंकीपॉक्स के 16,000 से अधिक मामले सामने आए हैं। डब्ल्यूएचओ दक्षिण-पूर्व एशिया क्षेत्र में, मंकीपॉक्स के चार मामले सामने आए हैं, जिनमें से तीन भारत में और एक थाईलैंड में पाया गया है।
क्षेत्रीय निदेशक ने कहा, ‘‘महत्वपूर्ण बात यह है कि हमारे प्रयास और कदम संवेदनशील तथा भेदभाव रहित होने चाहिए।’’
डब्ल्यूएचओ के महानिदेशक टेड्रोस ए. घेब्रेयसस ने शनिवार को कहा कि 70 से अधिक देशों में मंकीपॉक्स का प्रसार होना एक ‘‘असाधारण’’ हालात है और यह अब वैश्विक आपात स्थिति है।
डॉ सिंह ने कहा, ‘‘हालांकि वैश्विक स्तर पर और क्षेत्र में मंकीपॉक्स का जोखिम मध्यम है, लेकिन इसके अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फैलने का खतरा वास्तविक है। इसके अलावा, वायरस के बारे में अब भी कई बातों का पता नहीं चल पाया है। हमें मंकीपॉक्स को और फैलने से रोकने के लिए सतर्क रहने और तेजी से कदम उठाने को तैयार रहने की जरूरत है।’’
मंकीपॉक्स संक्रमित जानवर के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संपर्क में आने से मनुष्यों में फैलता हैं। एक मनुष्य से दूसरे मनुष्य में यह संक्रमण संक्रमित की त्वचा और श्वास छोड़ते समय नाक या मुंह से निकलने वाली छोटी बूंदों के संपर्क में आने से फैलता है।