Wednesday, September 17, 2025
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‘हिंदी नाटक और रंगमंच चुनौतियाँ एवं संभावनाएं’ दो दिवसीय राष्ट्रीय रंग संगोष्ठी

कोलकाता । पश्चिम बंगाल हिंदी अकादमी सूचना एवं संस्कृति विभाग, पश्चिम बंग सरकार द्वारा आयोजित द्वितीय दो दिवसीय राष्ट्रीय रंग संगोष्ठी का आयोजन रवींद्र सदन के बंगला अकादमी में आयोजित की गयी। चार सत्रों में विभाजित संगोष्ठी का विषय “हिंदी नाटक और रंगमंच चुनौतियाँ एवं संभावनाएं ” था। इस कार्यक्रम का उद्घाटन रंग निर्देशिका और अभिनेत्री अनुभा फतेहपुरिया ने किया। विशिष्ठ अतिथि के रुप में प्रसिद्ध फिल्म निर्माता, निर्देशक व अभिनेता प्रेम मोदी ने सिनेमा और रंगमंच पर अपनी बात रखते हुए कहा, ‘थियेटर ही अच्छे कलाकार को बनाता है अच्छे कलाकार की जन्मभूमि थियेटर ही है। संगोष्ठी में बीज वक्तव्य सुमन कुमार ने दिया। उन्होने कहा, ‘बहुत कुछ है बोने के लिए धरती पर क्या बोना है, यह हमें ही देखना है। अगर प्रेम बोयेंगे तो प्रेम और घृणा बोयेंगे तो घृणा ही मिलेगी। हमें कल्पनाओं में देखा हुआ बड़ा सपना हमें ,यथार्थ में बदलने की कोशिश करनी चहिए। हमारे समाज में रंगमंच का होना बहुत जरूरी है । वक्ता के रुप में कोलकाता से डॉ. अरुण होता ने कहा कि भाषा कभी भी हमारे सामने रुकावट बन कर नहीं आती विरोध करना हमारे लिए बहुत बड़ी चुनौती है हमारी रचना में प्रतिरोध का होना अनिवार्य है वरना हमारे लेखन का कोई उद्देश्य नहीं रह जाता।रंगकर्मी एवं लिटिल थेस्पियन की निदेशक अभिनेत्री उमा झुनझुनवाला ने कहा कि कलाकार ,निर्देशक, नाट्यकर्ता और रंगमंच से जुड़ी हर एक चीज की जानकारी होनी चाहिए। नाटक में जितनी जरूरत अभिनेता ,निर्देशक ,मंच, लाइट और बाकी सब चीजों की होती है,उतनी ही जरूरत दर्शकों की भी होती है। प्रथम सत्र का सफल संचालन डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने किया ।

दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ. प्रताप सहगल ने की। मुख्य वक्ता के रूप में उपस्थित डॉ. गीता दूबे ने नाटक के अनुवाद पर अपनी बात रखते हुए कहा कि अनुवाद की समीक्षा करना कठिन है अनुवाद करना ऐसा होता है जैसे इतर एक शीशी से दूसरे शीशी में करने पर भी उसकी सुगंध पहले वाली शीशी में रह जाती है। जितेंद्र पात्र ने प्रकाशन पर अपनी बात रखते हुए कहा कि नाटक का रूपांतरण हर बार अलग-अलग तरीके से होता रहा है लेकिन इसे कहीं ना कहीं से व्यापारिक क्षेत्र की दृष्टि से भी देखा जा सकता है। इस सत्र के अध्यक्ष प्रताप सहगल ने अनुवाद रूपांतरण प्रकाशक और मौलिक नाटकों पर बात करते हुए कहा कि काव्य ही काव्य का मूल है जो मंच पर नाटक करते हैं और जो पाठकों है उनके अंदर भी गतिशीलता होनी चाहिए। रस की अवधारणा भरत मुनि में थी। धीरे-धीरे रस की अवधारणा खत्म होने के कगार पर है पर पाठक अभी भी पढ़ते समय रस खोजते हैं। नाटक की पहली शर्त यह होनी चाहिए कि कि जब एक अभिनेता मंच पर जाए तो वह भावनाओं से परिपूर्ण होकर जाए ना कि अपने अंदर अहिंसा लेकर जाए। दूसरे सत्र का संचालन प्रो. अल्पना नायक ने किया।

तीसरे सत्र की अध्यक्षता महेश जायसवाल ने की। वक्ता राजेश कुमार ने नुक्कड़ नाटकों पर बात करते हुए कहा कि व्यक्तिगत शैली की तरह नुक्कड़ नाटक होना चाहिए। डॉ प्रज्ञा ने नुक्कड़ नाटक की राजनीतिक और सामाजिक चेतना पर अपनी बात रखी तथा। इस सत्र के अध्यक्ष  महेश जायसवाल ने कहा कि नाटक साहित्य का एक मुख्य अंग है और हम साहित्य से अलग नाटक को नहीं देख सकते है। तीसरे सत्र का संचालन इतु सिंह ने किया। अंत में इस तीनों सत्र का धन्यवाद ज्ञापन पश्चिम बंगाल हिंदी अकादमी, कला विभाग की संयोजिका उमा झुनझुनवाला ने किया।

चतुर्थ सत्र में ‘ शोधर्थियों द्वारा रंगमंच पर शोध – पत्र का पाठ ‘ विषय के अंतर्गत पार्वती कुमारी शॉ ने ‘ अज़हर आलम के मौलिक नाटकों का विश्लेषण ‘पर अपना शोध पत्र प्रस्तुत किया और सुलगते चिनार, नमक की गुड़िया, रूहें और चाक की समीक्षा पेश की । शोधार्थी सोनम सिंह ने अपने शोध पत्र ‘ भीष्म साहनी के नाटक पर में रंगमंचीयता ‘ पर बात रखी और ,माधवी ,हनुस, मुआविजा और कबिरा खड़ा बाजार में नाटकों के संबंध पर विचार रखे। इसी क्रम में आगे डॉ इबरार खान अपने शोध पत्र ‘समकालीन हिंदी उर्दू नाटकों में स्थित भ्रष्टाचार और बेरोजगारी ‘ को प्रस्तुत किया। उन्होंने भ्रष्टाचार और बेरोजगारी से जुड़ी रचना सीढ़ियां ,ताजमहल का उद्घाटन, कानून के ताज़िर , मुआव़जे, जैसे रचनाओं पर अपनी बात रखी। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए रंगकर्मी जितेंद्र सिंह ने कहा कि शोध आगे की और पीछे की इतिहास को एकत्र करता है। संचालन मधु सिंह ने किया।
पंचम सत्र में ‘ आधुनिक रंगमंच के विकास में स्त्रियों का अवदान ‘ विषय के संबंध में संगम पांडेय ने कहा कि नाट्य शास्त्र के परिमार्जन से लेकर आज के आधुनिक रंगमंच में चाहे वह लेखन के क्षेत्र में हो, अभिनय के क्षेत्र में हो या फिर किसी नाट्य संस्था के विकास में स्त्रियों ने आगे बढ़कर काम किया है। प्रवीण शेखर ने कहा कि नाट्य लेखन के क्षेत्र में स्त्रियों ने मौलिक नाटक से लेकर अनुदित और रूपांतरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है- जैसे मन्नू भंडारी, मीरा कांत ,उमा झुनझुनवाला, गुंजन अज़हर , वहीं नाटकों की समीक्षा के क्षेत्र में गिरीश रस्तोगी की मुख्य भूमिका के संबंध में अपना वक्तव्य रखें। अध्यक्षता करते हुए डॉ. सत्या उपाध्याय ने कहा कि आधुनिक रंगमंच के विकास में स्त्रियों ने व्यक्तिगत तौर पर रंगमंच के विकास में लगी हुई हैं। पश्चिम बंगाल में ही प्रतिभा अग्रवाल, उषा गांगुली, चेतना जलान, उमा झुनझुनवाला, कल्पना झा ,अनुभवा फतेपुरिया जैसे रंगकर्मी ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। संचालन करते हुए वसुंधरा मिश्रा ने कहा कि बंगाल की धरती में रंगकर्म को समृद्ध करने में स्त्रियों ने अपना अविस्मरणीय योगदान दिया है।
षष्ट सत्र में भारतीय ‘ आधुनिक हिंदी रंगमंच के पड़ाव और चुनौतियाँ ‘ विषय के संबंध में जे पी सिंह ने कहा कि भारतेंदु युग ,प्रसाद युग और प्रसादोत्तर युग के बाद आधुनिक हिंदी रंगमंच को हम किस नाम से पुकारे, यह प्रश्न अब तक बना है यही भारतीय हिंदी रंगमंच की सबसे बड़ी चुनौती है। वहीं डॉ मृत्युंजय प्रभाकर ने कहा कि भारतीय हिंदी रंगमंच के पड़ाव का विकास तब होगा, जब रंगमंच से कमाने वाले रंगमंच के लिए ख़र्च करेंगे। अध्यक्षता करते हुए प्रताप जायसवाल ने कहा कि नाटक करना आज स्वयं में एक चुनौती है,सच की जुबान है नाटक ,नाटक का मंचित होकर अर्थ का विस्तार होते जाना रंगमंच का एक पड़ाव है। भारतीय रंगमंच में भाषा कभी भी बाध्यता नहीं बनी । दर्शकों का विस्तार को बढ़ाना सबसे बड़ी माँग है आज के रंगमंच की । इस सत्र का संचालन डॉ सुफिया यास्मीन ने किया। अंत में उमा झुनझुनवाला ने कोलकाता के सभी कॉलेज के प्रोफ़ेसरों के प्रति आभार व्यक्त किया और विद्यार्थियों को प्रेरित किया।

शुभजिता पड़ताल : मंडपों में जब खोजने निकले उत्सव की आत्मा

शुभजिता फीचर डेस्क

दुर्गा पूजा बीत चुकी है और दिवाली आ रही है। त्योहार कोई भी हो, उसके केन्द्र में स्त्री रहती है। नवरात्रि के केन्द्र में माँ दुर्गा हैं। बंगाल में तो दुर्गा को बेटी मानकर ही आराधना की जाती है और बेटियों को माँ ही कहा जाता है मगर पीछे मुड़कर आज पूजा का स्वरूप देखती हूँ तो अन्तर दिखता है। अगर आज से 8 -10 साल पहले की बात की जाये तो जाए तो शायद इतनी भव्यता नहीं थी मगर उत्सव की आत्मा अवश्य थी। तब उत्सव में आडम्बर नहीं था मगर उत्साह था। हर साल की तरह इस बार भी पूजा देखने गयी। कुछ पूजा मंडपों की परिक्रमा का विवरण भी दिया मगर शुभजिता की विशेषता यही है कि वह भीड़ में से कुछ अलग खोजती है। करोड़ों के मंडप और हजार टन की प्रतिमाओं के बीच सादगी में जो बात होती है, वह इतनी महत्वपूर्ण है कि उसे बचाये रखना बहुत आवश्यक है। हमारी परिक्रमा का मापदण्ड यह कभी नहीं रहा कि किस पूजा कमेटी के सिर पर किस बड़े नेता का हाथ है या उसने किस प्रतिमा पर कितना अधिक खर्च किया है। महत्वपूर्ण यह है कि उसमें ऐसा क्या है जो हमें अपनी जड़ों चक ले जाता है और सबसे बड़ी बात वह मंडप संदेश क्या दे रहा है।
तो अपनी इस परिक्रमा के पड़ताल में अपने साधनों की सीमा के बीच हमने जो ऐसे मंडप देखे…आज उन पर आपसे बात करेंगे। हम यहाँ यह अवश्य कहना चाहेंगे कि हम जो देख पाए…वह हमारे साधनों की सीमा थी, इसका तात्पर्य यह कतई नहीं है कि दूसरे अन्य मंडप सुन्दर नहीं थे…हम उनकी बात कर रहे हैं जिनको हम देख पाये।
बात दुर्गा पूजा की हो बंगाल के हर मंडप में काम में जुटा कारीगर और कलाकार अपनी पूरी श्रद्धा से काम करता है इसलिए हर एक पूजा मंडप अपने -आप में सुन्दर है मगर जीवन के रंग से सजे मंडप जब सामने आते हैं तो एक वास्तविक अनुभूति होती है, एक सुकून मिलता है, बस हमारे चयन का आधार यही है और यह भी सीमित संसाधन और बजट के रहते हुए भी आप क्या संदेश और सृजनात्मकता ला सकते हैं। भव्यता और बजट हमारे चयन का आधार नहीं था इसलिए बड़े पूजा मंडप इस सूची में आपको नहीं मिलेंगे। इसका अर्थ यह नहीं कि वे सुन्दर नहीं मगर मौलिकता और उत्सव का सुकून…जो बच्चों के चेहरे पर भी मुस्कान ला दे…आपको अपनी जड़ों से मिला दे.वह अवश्य विशेष होता है। हमारे साथ आप भी चलिए देखते हैं –


47 पल्ली युवक वृन्द
इस पूजा मंडप में जाते ही श्यामल सुन्दर धरती की परिकल्पना साकार हो उठी। पूरा मंडप मिट्टी के कुल्हड़ों, बाँस की टोकरियों से सजाया गया था। इस पूजा की थीम थी सृष्टि और माँ की प्रतिमा इतनी मनोहर और भव्य रही कि उशे देखना ही एक अलग अनुभव दे गया।


मध्य कोलकाता सार्वजनीन
यह मंडप अक्सर बच्चों को ध्यान में रखकर बनाया जाता है। यहाँ प्रवेश द्वार पर खड़े गणेश जी आपके चेहरे पर मुस्कान ले आए। अन्दर जाने पर विक्रम – बेताल की जोड़ी के साथ रामकृष्ण परमहंस और मां शारदा दिखे। साथ ही साक्षरता का संदेश देते जानवर भी दिए। प्रतिमा परम्परागत थी और जरी साज इसे सुन्दर बना रहे थे।


संतोष मित्रा स्क्वायर
दिल्ली का लाल किला की प्रतिकृति बना यह मंडप खूब प्रशंसा पा गया। प्रतिमा पारम्परिक मगर आजादी के महोत्सव की थीम से सजा यह मंडप निश्चित रूप से एक प्रेरणा देने वाला था।


कॉलेज स्क्वायर
जब आप वृन्दावन के प्रेम मंदिर को तिरंगे की रोशनी से नहाया देखते हैं तो एक अद्भुत अनुभूति होती है। मंडप को विष्णुवतार की लीलाओं और राधा – कृष्ण की झांकियों से सजाया गया है। तरणताल के निकट बने इस मंडप को इसकी प्रकाश सज्जा के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।


जोड़ासांको 73 पल्ली सार्वजनीन दुर्गा पूजा
आधुनिक जीवन की कंक्रीट की इमारतों में फंसा शहरी मानव थोड़ी शांति चाहता है। किसी आधुनिक आवासीय परिसर की प्रतिकृति इस मंडप के बाहर बना पिंजरा कहीं न कहीं पराधीनता की गाथा कह रहा था और पक्षियों की चहचटाहट अपनी आवाज मुखर रही थी। मंडप को चिड़ियों से ही सजाया गया था।
श्री बांसतल्ला सार्वजनीन दुर्गोत्सव समिति
मंडप लेटर बॉक्स से सजाया गया था और वंदे मातरम् के चित्रण ने इसे और सुन्दर बना दिया। देवी के पीछे तिरंगे की पृष्ठभूमि और शहीदों की तस्वीरों ने देशभक्ति की भावना तरंगित कर दी। यहाँ माँ को भगवा वस्त्रों में दिखाया गया जो कि वंदे मातरम् की थीम के अनुरूप ही था।


गंगाधर बाबू लेन का एथलेटिक क्लब
मंडप की थीम शांति थी। पंडाल के सामने गौतम बुद्ध मुस्कुरा रहे थे और माँ के हाथों में त्रिशूल था और शेष सभी हाथों में कमल सजा था। प्रतिमा छोटी और संदेश बड़ा था।
इसके अतिरिक्त मढुआ, प्रेमचंद बड़ाल स्ट्रीट जैसी जगहों पर भी आकर्षक मंडप देखने को मिले। ऐसे ही दिखा शतदल संघ दुर्गोत्सव का पंडाल जिसे रंग – बिरंगी छतरियों से सजाया गया था।

महानगर में 50 फीट लंबे रावण का दहन, सौरभ दिखे अलग अंदाज में

कोलकाता । सिटी ऑफ जॉय कोलकाता के सॉल्टलेक में दशहरे के मौके पर सबसे ऊंचे रावण के पुतले को जलाने की परंपरा को कायम रखते हुए साल्टलेक सांस्कृतिक संसद कमेटी और सन्मार्ग की ओर से सॉल्टलेक के सेंट्रल पार्क में 50 फीट लंबे रावण, मेघनाथ और कुंभकरण के 40 फीट के पुतले को जलाया गया। इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाने के साथ इस राज्य के नागरिकों को यहां की समृद्ध संस्कृति और परंपरा का जीवंत चित्रण प्रस्तुत करना था। इस कार्यक्रम में बीसीसीआई के अध्यक्ष सौरभ गांगुली, कोलकाता नगर निगम के मेयर फिरहाद हाकिम, अग्निशमन राज्य मंत्री सुजीत बोस, विधायक विवेक गुप्त, साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के अध्यक्ष प्रदीप तोदी, साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के मार्गदर्शक ललित बेरीवाला, साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के सचिव नितिन सिंघी, लक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के अशोक तोदी के साथ इस मौके पर समाज की कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां मौजूद थें।

इस आयोजन में बड़ी संख्या में मौजूद रहकर लोगों ने लंका के राजा राक्षस रावण के पुतले को जलाने के दृश्य का आनंद उठाया। हिंदू धर्म के लोग इस पावन दिन में देशभर में अपने घरों या फिर मंदिरों में विशेष प्रार्थना सभाओं का आयोजन कर देवी देवताओं को प्रसाद अर्पित कर दशहरा उत्सव मनाते हैं। वे राक्षस राजा रावण के पुतलों के साथ मेले का आयोजन कर शाम को रावण के पुतले को जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत का आनंद मनाते हैं। इसके साथ विजया दशमी के दिन से देवी दुर्गा की मुर्तियों को गंगा या तालाब में विसर्जित करने का सिलसिला शुरू हो जाता है।

इस मौके पर साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के अध्यक्ष प्रदीप तोदी ने कहा, बंगाल के गौरव सौरभ गांगुली का इस वर्ष हमारे कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहना हमारे लिए गर्व की बात है। हमने रावण दहन के जरिये रावण का पुतला जलाकर बुराई पर अच्छाई की जीत के जश्न के तौर पर सेंट्रल पार्क मैदान में कई खास इंतजाम किए थे। रावण के 50 फीट ऊंचे पुतले को जलाने के अलावा इस कार्यक्रम में अलग-अलग तरीके के फायर शो का भी आयोजिन किया गया था। साल्टलेक सांस्कृतिक संसद के मार्गदर्शक ललित बेरीवाला ने कहा, इस वर्ष 10वें वर्ष में हम पूर्वी भारत के सबसे बड़े उत्सव दशहरा कार्यक्रम को मना रहे हैं। वार्षिक दुर्गापूजा उत्सव में विजया दशमी, बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं। हमारे इस कार्यक्रम की सफलता के पीछे विभिन्न राज्यों के कलाकारों की मेहनत शामिल है, जिन्होंने दिन-रात कड़ी मेहनत कर उत्कृष्ट प्रदर्शन कर रावण, मेघनाथ और कुंभकरण का पुतला बनाया। इन पुतलों को जलाने से पहले संस्था की तरफ से विधिवत तरीके से कई रस्में भी निभाई गईं, जिसे देखने के लिए 25,000 से अधिक लोगों की भीड़ उमड़ी थी।

 

जब एक बच्चे ने बचायी पंडित नेहरू की जान

नयी दिल्ली । विजयादशमी पर आज पूरे देश में रावण दहन हो रहा है। बरसों से चली आ रही परंपरा के तहत कई जगहों पर रामलीला का मंचन होता है और आज के दिन बुराई पर अच्छाई की विजय का संदेश देते हुए रावण का अंत किया जाता है। कुछ साल पहले तक काफी आतिशबाजी और पटाखे फोड़े जाते थे लेकिन दिल्ली-एनसीआर समेत कई शहरों में प्रदूषण को देखते हुए इसमें काफी कमी करनी पड़ी। लेकिन आज से 70-75 साल पहले दिल्ली की रामलीला में खूब पटाखे फोड़े जाते थे। देश को आजाद हुए तब 10 साल हुए थे और रामलीला में की गई आतिशबाजी के दौरान पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की जान पर बन आई थी। जी हां, आज की पीढ़ी को शायद ही पता हो कि तब एक बच्चे की फुर्ती और सूझबूझ से नेहरू की जान बची थी।

उस पंडाल में नेहरू के साथ विदेशी भी थे। यह सच्ची घटना 1957 की है। 2 अक्टूबर के दिन पुरानी दिल्ली के रामलीला मैदान पर रामलीला देखने के लिए नेहरू आए हुए थे। उनके साथ कुछ विदेशी मेहमान भी थे। आतिशबाजी हो रही थी तभी एक पटाखा उसी शामियाने पर आकर गिरा जिसके नीचे नेहरू और अन्य वीआईपी बैठे हुए थे। सेंकेंडों में आग धधक गई और भगदड़ मच गई। तब आज की तरह सुरक्षा में इतना तामझाम नहीं हुआ करता था। तभी एक किशोर ने नेहरू का हाथ पकड़ा और झट से सुरक्षित स्थान पर ले गया। रामलीला के स्टेज पर उन्हें पहुंचाने के बाद वह शामियाने में भागकर आया और जलते हुए हिस्से को काटकर अलग कर दिया जिससे आग और ज्यादा न फैले।
उस बच्चे की उम्र 14 साल थी और वह स्काउट्स का ट्रूप लीडर था। उसका नाम था हरीश चंद्र मेहरा। नेहरू को बचाने और शामियाने को अलग करने के दौरान वह घायल भी हो गया था। आपको जानकर गर्व होगा कि एक महीने बाद इस बच्चे को बहादुरी का इनाम मिला और प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने तीन मूर्ति भवन में उसे पुरस्कृत किया था। इसके साथ ही बच्चों के लिए वीरता पुरस्कार देने का ऐलान हुआ।
देश के पहले पीएम की जान बचाने वाले हरीश चंद्र मेहरा ने 2014 में एक इंटरव्यू में बताया था कि पंडित नेहरू जैसी हस्ती से सम्मान मिलना गर्व की बात थी। मुझे घर-परिवार और दूरदराज से बधाइयां आई थीं। मीडिया वाले इंटरव्यू लेते और डॉक्यूमेंट्री भी बनी। उन्होंने कहा था कि वह एक ही रात में आसमान के चमकते हुए सितारे बन गए थे।
नेहरू के साथ हाथ मिलाने वाली, पुरस्कृत करते और साथ में उनकी एक अन्य तस्वीर आज भी उस घटना की याद दिलाती है।

देश में लड़कों और लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर हुई बराबर

नयी दिल्‍ली । दशकों से भारत के दामन पर एक दाग लगा रहा है। यहां बेटों को बेटियों पर तरजीह मिलती है। पैदा होने के बाद बेटियां मार दी जाती हैं, ऐसा महिलाओं से जुड़े हर दूसरे लेख में कहा जाता था। धीरे-धीरे ही सही, यह दाग धुल रहा है। 2020 से यह स्थिति बदली है। अब लड़के और लड़कियों, दोनों में शिशु मृत्‍यु दर (इन्फैन्ट मोर्टेलिटी रेट) बराबर हो गयी है।
13 राज्‍यों में लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर लड़कों से कम या बराबर हो गई है। 16 राज्‍य अब भी ऐसे हैं जहां लड़कियों में आईएमआर लड़कों से ज्‍यादा है, हालांकि अंतर कम हो रहा है। शिशु मृत्‍यु दर का मतलब प्रति 1,000 जन्‍मों पर नवजात मृतकों की संख्‍या से है। ग्रामीण भारत में लड़के और लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर का अंतर कम जरूर हुआ है लेकिन लड़कियों की आईएमआर ज्‍यादा है। शहरी भारत में, लड़के और लड़कियों की आईएमआर में अंतर 2011 में काफी ज्‍यादा था। 2020 में लड़कियों की आईएमआर लड़कों से नीचे गिर गई है।
2011 में उत्‍तराखंड को छोड़कर बाकी सारे राज्‍यों में लड़कियों में शिशु मृत्‍यु दर लड़कों से ज्‍यादा थी। वहां पर दोनों दरें बराबर थीं, लेकिन SRS स्‍टैटिस्टिकल रिपोर्ट 2020 दिखाती है कि पांच राज्‍यों और राष्‍ट्रीय राजधानी क्षेत्र में लड़के और लड़कियों में शिशु मृत्‍यु दर बराबर थी। आठ राज्‍यों में लड़कियों की शिशु मृत्‍यु दर लड़कों से कम रही। सभी राज्‍यों में ग्रामीण क्षेत्रों की शिशु मृत्‍यु दर शहरी इलाकों से ज्‍यादा रही।

त्योहारी सीजन में 179 विशेष ट्रेनें चलाएगा रेलवे

नयी दिल्ली । भारतीय रेलवे इस त्योहारी सीजन के दौरान 179 विशेष ट्रेन सेवाएं चलाएगा। रेलवे का कहना है कि प्रमुख रेलवे स्टेशनों पर भीड़ प्रबंधन को प्राथमिकता दी जा रही है। रेल मंत्रालय की ओर से जारी एक बयान के अनुसार, भारतीय रेलवे इस त्योहारी सीजन में छठ पूजा तक यात्रियों की सुविधा और अतिरिक्त भीड़ को कम करने के लिए 179 विशेष ट्रेनों (जोड़े में) को चला रहा है। दिल्ली-पटना, दिल्ली-भागलपुर, दिल्ली मुजफ्फरपुर, दिल्ली-सहरसा आदि रेल मार्गों को देशभर के प्रमुख गंतव्यों को जोड़ने के विशेष ट्रेनों की योजना बनाई गई है।
प्रमुख स्टेशनों पर अतिरिक्त आरपीएफ कर्मियों की तैनाती
बयान में कहा गया है कि अनारक्षित डिब्बों में यात्रियों के व्यवस्थित प्रवेश के लिए आरपीएफ कर्मियों की देखरेख में टर्मिनस स्टेशनों पर कतार बनाकर भीड़ को नियंत्रित करने के उपाय सुनिश्चित किए जा रहे हैं। यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख स्टेशनों पर अतिरिक्त आरपीएफ कर्मियों की तैनाती की गई है।
आपातकालीन ड्यूटी पर तैनात किए गए अधिकारी
इसके मुताबिक ट्रेनों के सुचारू संचालन को सुनिश्चित करने के लिए प्रमुख स्टेशनों पर आपातकालीन ड्यूटी पर अधिकारियों को तैनात किया गया है। प्राथमिकता के आधार पर कर्मचारियों को विभिन्न वर्गों में तैनात किया गया है ताकि यात्रियों की सेवा में किसी भी प्रकार व्यवधान न हो।
बयान के मुताबिक, प्लेटफॉर्म नंबर वाली ट्रेनों के आगमन या प्रस्थान की बार-बार और समय पर घोषणा के लिए उपाय किए गए हैं। इसके अलावा महत्वपूर्ण स्टेशनों पर ‘मे आई हेल्प यू’ बूथ चालू रखे जाएंगे ताकि यात्रियों की उचित सहायता मिल सके। प्रमुख स्टेशनों पर चिकित्सा सहायता के लिए पैरामेडिकल टीम के साथ एंबुलेंस भी उपलब्ध होगी।

 

कर राजस्व से कई गुना अधिक पेंशन देनदारी, एसबीआई की रिपोर्ट में खुलासा

मुफ्त की घोषणाएं अर्थव्यवस्था के लिए घातक
नयी दिल्ली । पिछले कुछ समय से राजनीतिक पार्टियों द्वारा लोगों को फ्री का लालच देने का चलन चल रहा है। विभिन्न पार्टियां मुफ्त वस्तुएं बांटने या फ्री सुविधाएं देने की घोषणाएं करती हैं। आने वाले समय में ये अर्थव्यवस्था के लिये घातक साबित हो सकती हैं। एक रिपोर्ट में इस बारे में आगाह किया गया है। इसमें सुझाव दिया गया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति ऐसे खर्चों को राज्य की जीडीपी या राज्य के कर संग्रह के एक फीसदी तक सीमित कर दे। राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त में दिये जाने वाले उपहारों को लेकर जारी बहस के बीच एसबीआई के अर्थशास्त्रियों की एक रिपोर्ट में यह बात कही गई।
तीन लाख करोड़ रुपये होगी 3 राज्यों की पेंशन देनदारी
यह रिपोर्ट एसबीआई के मुख्य आर्थिक सलाहकार सौम्य कांति घोष द्वारा लिखी गई है। इस रिपोर्ट में तीन राज्यों का उदाहरण दिया गया है। इसमें कहा गया है कि गरीब राज्यों की श्रेणी में आने वाले छत्तीसगढ़, झारखंड और राजस्थान में सालाना पेंशन देनदारी तीन लाख करोड़ रुपये अनुमानित है। रिपोर्ट के अनुसार, इन राज्यों के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में अगर पेंशन देनदारी को देखा जाए तो यह काफी ऊंचा है। झारखंड के मामले में यह 217 फीसदी, राजस्थान में 190 फीसदी और छत्तीसगढ़ में 207 फीसदी है।
कई राज्यों में पुरानी पेंशन व्यवस्था पर हो रहा विचार
जो राज्य पुरानी पेंशन व्यवस्था फिर से लागू करने पर विचार कर रहे हैं, उनमें भी पेंशन देनदारी काफी अधिक हो जाएगी। हिमाचल प्रदेश में कर राजस्व के अनुपात में पेंशन देनदारी 450 फीसदी, गुजरात के मामले में 138 फीसदी और पंजाब में 242 फीसदी हो जाएगी। बता दें कि पुरानी पेंशन व्यवस्था में लाभार्थी कोई योगदान नहीं करते।
बढ़ रहा राज्यों का कर्ज
रिपोर्ट में बताया गया कि उपलब्ध ताजा सूचना के अनुसार, राज्यों का बजट से इतर कर्ज 2022 में करीब 4.5 फीसदी पर पहुंच गया। इसके अंतर्गत वह कर्ज है, जो सार्वजनिक क्षेत्र की इकाइयां जुटाती हैं और जिसकी गारंटी राज्य सरकारें देती हैं। विभिन्न राज्यों में इस प्रकार की गारंटी जीडीपी के उल्लेखनीय प्रतिशत पर पहुंच गयी है। तेलंगाना के मामले में इस प्रकार की गारंटी का हिस्सा जीडीपी का 11.7 फीसदी, सिक्किम में 10.8 फीसदी, आंध्र प्रदेश में 9.8 फीसदी, राजस्थान में 7.1 फीसदी और उत्तर प्रदेश में 6.3 फीसदी है। इस गारंटी में बिजली क्षेत्र की हिस्सेदारी करीब 40 फीसदी है। अन्य लाभ वाली योजनओं में सिंचाई, बुनियादी ढांचा विकास, खाद्य और जलापूर्ति शामिल हैं।
दायरा तय करे सुप्रीम कोर्ट
रिपोर्ट में कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट की समिति मुफ्त में दिये जाने वाले उपहारों के लिये दायरा तय कर सकती है। यह कल्याणकारी योजनाओं के लिये सकल राज्य घरेलू उत्पाद (जीएसडीपी) या राज्य के अपने कर संग्रह का एक फीसदी अथवा राज्य के राजस्व व्यय का एक फीसदी हो सकता है।
खूब हो रहे चुनावी वादे लेकिन पैसा कहां से आएगा?
रिपोर्ट के मुताबिक, जिन राज्यों में चुनाव होने हैं, उनमें विभिन्न राजनीतिक दल खूब वादे कर रहे हैं। ये वादे राजस्व प्राप्ति और राज्य के कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में क्रमश: हिमाचल प्रदेश में 1-3 प्रतिशत और 2-10 प्रतिशत है, साथ ही यह गुजरात में 5 से 8 प्रतिशत और 8-13 प्रतिशत है। लाभार्थियों के बिना किसी योगदान वाली पुरानी पेंशन व्यवस्था को अपनाने या उसका वादा करने वाले राज्यों में हिमाचल प्रदेश में यह कर राजस्व के प्रतिशत के रूप में 450 प्रतिशत, गुजरात में 138 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 207 प्रतिशत, राजस्थान में 190 प्रतिशत, झारखंड में 217 प्रतिशत और पंजाब में 242 प्रतिशत बैठेगा।
जानिए कितना बढ़ जाएगा राज्यों पर बोझ
झारखंड के मामले में यह 6,005 करोड़ रुपये था। यह इसके जीएसडीपी का 1.7 फीसदी है। इसमें 54,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है। राजस्थान में यह 20,761 करोड़ रुपये था। इसके बढ़कर जीएसडीपी का छह फीसदी हो जाने का अनुमान है। इससे यह बढ़कर 1.87 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा। पंजाब में यह 10,294 करोड़ रुपये था और इसके बढ़कर जीएसडीपी के तीन फीसदी पर पहुंचने का अनुमान है। कुल बोझ में 92,000 करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। हिमाचल प्रदेश में यह 5,490 करोड़ रुपये था। इसके जीएसडीपी के 1.6 फीसदी तथा 49,000 करोड़ रुपये की वृद्धि का अनुमान है। गुजरात में पेंशन बोझ वित्त वर्ष 2019-20 में 17,663 करोड़ रुपये था। इसके उछलकर राज्य जीडीपी के 5.1 फीसदी पर पहुंचने का अनुमान है। इसमें 1.59 लाख करोड़ रुपये की बढ़ोतरी होगी।

रिलायंस जियो ने उतारा पहला लैपटॉप ‘जियोबुक’

नयी दिल्ली । रिलायंस जियो ने अपना पहला लैपटॉप ‘जियोबुक’ लॉन्च कर दिया है। सरकार के ई-मार्केटप्लेस (जेम) पोर्टल पर लैपटॉप के स्पेसिफिकेशंस और कीमत रिवील की गई। 2 जीबी रैम वाले इस लैपटॉप की कीमत 19,500 रुपये है।
यहां से खरीद सकेंगे
लैपटॉप सेलिंग के लिए अवेलेबल है, लेकिन इसे हर कोई नहीं खरीद सकता। सरकारी डिपार्टमेंट ही इसे जेम पोर्टल के माध्यम से खरीद सकते हैं। माना जा रहा है कि बाकी जनता दिवाली के बाद से जियोबुक खरीद सकेगी। दिल्ली के प्रगति मैदान में एक से 4 अक्टूबर तक हुई ‘इंडियन मोबाइल कांग्रेस’ में भी जियोबुक को डिस्प्ले के लिए रखा गया था।
32 जीबी की स्टोरेज मिलेगी
जियो लैपटॉप में 2 जीबी की रैम है। इसमें रैम एक्सपांडेबल सपोर्ट नहीं है। इसके अलावा 32GB की स्टोरेज मिलेगी। कंपनी ने इस लो-बजट लैपटॉप में 6 से 8 घंटे की बैटरी बैकअप का दावा किया है। 1.2 किलो के डिवाइस में एक साल की ब्रांड वॉरंटी मिलेगी।
11.6 इंच की एचडी लेड स्क्रीन
जियोबुक में 11.6 इंच की एचडी लेड बैकलिट एंटी-ग्लैयर स्क्रीन मिलेगी। नॉन-टच स्क्रीन डिवाइस में 1366*768 पिक्सल का रेजोल्यूशन है। डिवाइस में यूएसबी 2.0 पोर्ट,यूएसबी 3.0 पोर्ट और एक एचडीएमआई पोर्ट आएगा। इसमें माइक्रो एसडी कार्ड स्लॉट उपलब्ध है, लेकिन टाइप-C पोर्ट नहीं है।
स्नैपड्रैगन 665 प्रोसेसर शामिल
जियोबुक में क्वालकॉम स्नैपड्रैगन 665 ऑक्टा कोर प्रोसेसर इन-बिल्ट है। स्टैंडर्ड फॉर्म फैक्टर से फीचर्ड डिवाइस में मेटलिक हिंज लगी हैं। इसका चैसिस एबीएस प्लास्टिक से बना है। डिवाइस कंपनी के ही जियो ऑपरेटिंग सिस्टम पर वर्क करता है।
वाई – फाई कनेक्टिविटी मिलेगी
डिवाइस में 802.11एसी वाई – फाई कनेक्टिविटी मिलेगी। ब्लूटूथ कनेक्टिविटी फीचर वाले डिवाइस में ब्लूटूथ वर्जन 5.2 शामिल है। डिवाइस 4 जी मोबाइल ब्रॉडबैंड कनेक्टिविटी को भी सपोर्ट कर रहा है। इसमें डुअल इंटरनल स्पीकर और डुअल माइक्रोफोन भी मिलेंगे।
स्टैंडर्ड साइज की-बोर्ड और मल्टी-जेस्चर सपोर्ट करने वाला टचपैड भी आएगा। हालांकि, इसमें किसी भी तरह का फिंगर प्रिंट स्कैनर नहीं है।

 

भरतकूप की राम शैया : जहाँ रहे वनवासी राम, चट्टान पर आज भी दिखते हैं निशान

मान्यता है 20 फीट ऊंची शिला पर करते थे विश्राम
चित्रकूट से भरतकूप जाने पर बीच में चित्रकूट पर्वत पर एक विशाल चट्टान दिखाई देगी। नाम है- राम शैया। मान्यता है कि यहां पर वनवास के दौरान भगवान राम और माता सीता रात्रि विश्राम किया करते थे। चट्‌टान पर दो निशान दिखाई देते हैं। पहले निशान की लंबाई 15 फीट और दूसरे की 11 फीट है। माना जाता है कि यहीं पर भगवान राम और माता सीता लेटते थे, जिसकी वजह से निशान बन गए हैं।
यह जगह कामदगिरि से 2 किमी दूर है। लखनऊ से यह स्थान 300 किमी दूर है। उस शिला के दर्शन किए, जिसे राम-सीता के शयन का स्थान बताया जाता है। यहां के मुख्य पुजारी से बात कर शिला से जुड़ा इतिहास भी जाना। आइए आपको भी वहीं ले चलते हैं…
जहां राम-सीता लेटते थे, वहां की चट्टान उसी आकार की हो गई
राम शैया के मुख्य पुजारी पंडित बढ़कू द्विवेदी ने बताया, “राम मर्यादा बनाए रखने के लिए सीता और अपने बीच तरकश रखा करते थे। माता सीता श्रीराम के दाईं तरफ सोती थीं। ये चट्टान उनके आकार में ही पिघली हुई है। दोनों के बगल में रखे धनुष की छवि आज भी चट्टान पर दिखती है।”पुजारी कहते हैं, “तुलसीदास रचित रामायण में यह कहा गया है कि जब राम के छोटे भाई भरत उनसे मिलने चित्रकूट आए, तब रात में वह राम शैया स्थान पर भी मां सीता और राम से मिले थे। उनसे मिलकर वहीं से वह आगे भरतकूप चले गए थे।”
दिन कामतानाथ पर्वत पर और रात चित्रकूट गिरि में बिताते थे राम
वह बताते हैं, ”चित्रकूट में वनवास के दौरान राम, सीता और लक्ष्मण पूरा दिन कामतानाथ पर्वत पर बिताते थे। वहां उनसे मिलने बड़े-बड़े ऋषि और महात्मा आते थे। मुनियों से मुलाकात करने के बाद रात में राम-सीता कामदगिरि से 2 किमी दूर चित्रकूट गिरि पर मौजूद एक बड़ी चट्टान पर विश्राम करने आ जाते थे। उनके छोटे भाई लक्ष्मण पहाड़ी पर चढ़ जाते थे। वहां से रात भर सीता और राम की सुरक्षा करते थे।”
चित्रकूट पर्वत पर हैं 3 हजार नीम के पेड़
राम शैया पर्वत की रखवाली का जिम्मा यहां से सटी ग्राम पंचायत बिहारा के लोगों पर है। बिहारा के रहने वाले जीतेंद्र ने बताया, “राम शैया की देख-रेख के लिए गांव के सभी लोग सहयोग करते हैं। यहां के परिक्रमा मार्ग के सुधार और साफ-सफाई का ध्यान दिया जाता है।”
जीतेंद्र आगे कहते हैं, “पूरे पर्वत पर 3000 से ज्यादा नीम के पेड़ हैं, जो रात में भी ऑक्सीजन छोड़ते हैं। इन पेड़ों को यहां किसी ने रोपा नहीं है, खुद ही उगे हैं। राम शैया के पास धर्म-दीन मंदिर है। यहां आने वाले पर्यटक रुककर विश्राम करते हैं। यहां समय-समय पर भजन-कीर्तन भी होते रहते हैं।”दशहरे पर होता है रावण दहन, आते हैं 50 गांव के लोग
दशहरे पर राम शैया स्थान को एक हफ्ते पहले से सजाया जाता है। यहां रावण का विशाल पुतला बनाकर जलाया जाता है। बिहारा गांव के लवकुश कहते हैं, “शारदीय नवरात्र के बाद दशहरे के दिन राम शैया के पास रावण दहन किया जाता है। यहां उसी दिन भंडारा भी होता है, जिसमें शामिल होने आस-पास के 50 गांव के लोग आते हैं।”
(साभार – दैनिक भास्कर)

 

आरएसएस की विजयादशमी में पहली बार महिला मुख्य अतिथि

नयी दिल्ली । नागपुर में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की विजयादशमी इस बार विशे्ष रही। इस दौरान शस्त्र पूजा की गयी। पहली बार महिला मुख्य अतिथि इस कार्यक्रम में शामिल हुईं। पर्वतारोही संतोष यादव दशहरा कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुईं। संतोष यादव दो बार माउंट एवरेस्ट फतेह करने वाली दुनिया की एक मात्र महिला हैं। अपने भाषण में मोहन भागवत ने कहा कि समाज में सभी के लिए मंदिर, पानी और श्मशान एक होने चाहिए। उन्होंने संघ के स्वयंसेवकों से इसके लिए प्रयास करने की अपील की। मोहन भागवत ने कहा कि ऐसे प्रयास संघ के स्वयंसेवक करेंगे तो समाज में विषमता को दूर किया जा सकेगा।

संघ के दशहरा समारोह में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी, महाराष्ट्र के डिप्टी सीएम देवेंद्र फडणवीस, सरसंघचालक डा। मोहन भागवत मौजूद थे। आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने दशहरे पर अपने भाषण में समाज में एकता की अपील की है। खासतौर पर दलितों के खिलाफ अत्याचार का जिक्र करते हुए मोहन भागवत ने कहा कि कौन घोड़ी चढ़ सकता है और कौन नहीं, इस तरह की बातें अब समाज से विदा हो जानी चाहिए।

मोहन भागवत ने कहा कि जो सारे काम पुरुष करते हैं, वह महिलाएं भी कर सकती हैं। लेकिन जो काम महिलाएं कर सकती हैं, वो सभी काम पुरुष नहीं कर सकते। महिलाओं को बराबरी का अधिकार, काम करने की आजादी और फैसलों में भागीदारी देना जरूरी है। यह जरूरी है कि महिलाओं को सभी क्षेत्रों में बराबरी का अधिकार और काम करने की आजादी दी जाए। हम इस बदलाव को अपने परिवार से ही शुरू कर रहे हैं। हम अपने संगठन के जरिए समाज में ले जाएंगे। जब तक महिलाओं की बराबरी की भागीदारी निश्चित नहीं की जाएगी, तब तक देश की जिस तरक्की को हासिल करने की हम कोशिशें कर रहे हैं, उसे हासिल नहीं किया जा सकता।