Wednesday, September 17, 2025
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पीएम ने 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयां राष्ट्र को समर्पित कीं

गुजरात में कोटक महिंद्रा बैंक की डिजिटल बैंकिंग इकाइयां जारी कीं
कोलकाता । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गत 16 अक्टूबर को भारत की आजादी के 75 वें वर्ष के उत्सव, आजादी का अमृत महोत्सव के तत्वावधान में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयां (डीबीयू) राष्ट्र को समर्पित कीं। कोटक महिंद्रा बैंक लिमिटेड (“केएमबीएल” / “कोटक”) ने सरकार की “75 जिलों में 75 डिजिटल बैंकिंग इकाइयों (डीबीयू)” पहल में भागीदारी करते हुए गुजरात के सूरत और मेहसाणा में दो डिजिटल बैंकिंग इकाइयां शुरू कीं। सूरत और मेहसाणा जिलों में डीबीयू समुदायों को डिजिटल रूप से सक्षम और वित्तीय रूप से सशक्त बनाएंगे।
केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण और युवा मामले एवं खेल मंत्री अनुराग सिंह ठाकुर ने कोटक महिंद्रा बैंक के मेहसाणा डीबीयू का उद्घाटन किया।  उन्होंने कहा, “ डिजिटल क्रांति की परिकल्पना प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 2014 में जन धन और आधार जैसी पहल के साथ की थी। आज 75 डीबीयू का शुभारंभ एक कदम आगे है और यह सुनिश्चित करेगा कि डिजिटल बैंकिंग का लाभ हर नुक्कड़ और कोने या देश तक पहुंचे।
कोटक महिंद्रा बैंक के ग्रुप प्रेसिडेंट, कंज्यूमर बैंक के प्रमुख एवं ग्रुप मैनेजमेंट काउंसिल के सदस्य विराट दीवानजी ने कहा, “पिछले 75 वर्षों में, देश ने दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में गिने जाने के लिए एक लंबा सफर तय किया है। डीबीयू के माध्यम से वित्तीय सशक्तिकरण में तेजी लाने के लिए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी की खोज, और इस तरह एक वित्तीय रूप से मजबूत, सुरक्षित और आत्मानिर्भर भारत के सपने में योगदान करना।
इस साल की शुरुआत में पेश किए गए केंद्रीय बजट के दौरान प्रस्तावित, “75 जिलों में 75 डीबीयू” पहल का उद्देश्य भारतीयों के बीच डिजिटल बैंकिंग अपनाने में तेजी लाना है। सूरत और मेहसाणा में स्थित केएमबीएल के डीबीयू भारत में डिजिटल अपनाने में तेजी लाने वाले अच्छी तरह से सुसज्जित, अच्छी तरह से जुड़े, डिजिटल रूप से समावेशी केंद्र हैं। प्रत्येक डीबीयू स्वयं सेवा (इसे स्वयं करें) के साथ-साथ सहायता प्राप्त मोड के माध्यम से ग्राहक जुड़ाव प्रदान करता है।
स्वयं सेवा क्षेत्रों में, ग्राहक नकद निकासी, नकद जमा, चेक जमा, पासबुक और स्टेटमेंट प्रिंटिंग, खाता पूछताछ, और बैंकिंग और उत्पाद जानकारी आदि जैसे विभिन्न लेनदेन को निष्पादित करने के लिए 24×7 स्वचालित उपकरणों का उपयोग कर सकते हैं। स्वयं सेवा क्षेत्र हैं निर्बाध पहुंच सुनिश्चित करने के लिए स्मार्ट टैबलेट के साथ स्थापित। सहायता प्राप्त क्षेत्रों में (व्यवसाय के घंटों के दौरान ग्राहकों के लिए उपलब्ध), ग्राहक पूर्ण पैमाने पर बैंकिंग सेवाओं (बिना टेलर सेवाओं) तक पहुंच सकते हैं – जिसमें खाता खोलना, ऋण आवेदन / वितरण *, डिजिटल ऑनबोर्डिंग, सरकारी सेवाएं और योजनाएं, आधार सेवाएं आदि शामिल हैं।

साहित्यिकी संस्था की दीपावली संगोष्ठी संपन्न 

कोलकाता । कविता,गीत ,व्यंग्य, संस्मरण,आलेख,गीत, गज़ल के साथ साहित्यिकी संस्था की सदस्याओं ने आलोक पर्व दीपावली सम्मेलन मनाया । इस अवसर पर सभी सदस्याओं ने दीपावली पर अपने अपने भावों की एक से बढ़कर एक रचनाओं की प्रस्तुति दी जिसने सभी को बांधा रखा। कार्यक्रम के आरंभ में वरिष्ठ लेखिका डॉ आशा जायसवाल ने दीपावली की अग्रिम शुभकामनाएं देते अपने वक्तव्य में कहा कि प्रकाश ज्ञान का आलोक है, राम की रावण जैसी आसुरी शक्तियों पर विजय प्राप्त करना और फिर दीप उत्सव मनाना मंगल का ही प्रतीक है, वस्तुतः यह त्योहार आसुरी शक्तियों का ही नाश है। संस्था की सचिव डॉ मंजू रानी गुप्ता ने स्वागत भाषण देते हुए सभी सदस्याओं को शुभकामनाएँ दी ।दीपावली के रंगारंग कार्यक्रम में भागीदारी के लिए जिन सदस्याओं ने भाग लिया उनमें कुसुम जैन (कविता), विद्या भंडारी (गीत), सुधा भार्गव (संस्मरण), डॉ मंजुरानी गुप्ता(स्वरचित रचना), डॉ सुषमा हंस (कविता), दुर्गा व्यास (कविता), डॉ गीता दूबे(कविता), नुपुर अशोक (व्यंग्य), डॉ वसुंधरा मिश्र (कविता), मंजु गुटगुटिया (गीत), उषा श्राॅफ(कविता), संजना तिवारी (वक्तव्य), मीना चतुर्वेदी (कविता), संगीता चौधरी (छंदबद्ध रचना), सरिता बैंगानी(गज़ल), बबिता माँधना(कविता), वाणी मुरारका (आलेख), नीता उपाध्याय (कविता), रंजना पाठक (भजन), उर्मिला प्रसाद (गीत), सविता पोद्दार (कविता), चंदा सिंह (कविता), रेणु गौरिसरिया (संस्मरण), रंजना शर्मा (पंडावनी) प्रमुख रहीं। वर्चुअल कार्यक्रम का लाभ यह रहा कि कैलिफोर्निया से वरिष्ठ बाल कथाकार सुधा भार्गव, रांची से व्यंग्यकार नूपुर अशोक और मीना चतुर्वेदी दिल्ली से जुड़ीं और दीपोत्सव की इस दीपमाला में अपनी महत्वपूर्ण रचनाओं की प्रस्तुति दी। इस कार्यक्रम में साहित्यिकी संस्था की निर्देशक कुसुम जैन ने धन्यवाद ज्ञापन किया। रेवा जाजोदिया की गौरवपूर्ण उपस्थिति रही। वाणीश्री बाजोरिया ने भी अपनी स्वरचित कविता सुनाते हुए इस कार्यक्रम का संयोजन और संचालन किया।

मशहूर अभिनेता अरुण बाली का 79 वर्ष की आयु में निधन

कोरोना काल के बाद फिल्म इंडस्ट्री में कई बड़ी हस्तियां हमारे बीच से जा चुकी हैं। वहीं फिर एक बुरी खबर आ रही है कि फिल्मों में शानदार अभिनय करने वाले दिग्गज अभिनेता अरुण बाली का निधन हो गया है। वह 79 वर्ष के थे। सुबह 4:30 पर उन्होंने अंतिम सांस ली है। वह कई हिंदी फिल्मों में काम कर चुके हैं। बता दें कि अभिनेता लगातार कई दिनों से बीमार चल रहे थे और कुछ महीनों पहले ही वह अस्पताल में भर्ती हुए थे।
अरुण बाली की बेटी ने बाद में बताया कि उनके पिता को मियासथीनिया ग्रेविस नाम की एक गंभीर बीमारी थी। ये एक ऑटोइम्यून बीमारी है, जिसमें नर्व्स और मसल्स के बीच बैरियर हो जाता है। उनके निधन से बॉलीवुड में शोक की लहर है। कई सेलेब्स और फैंस उनके लिए सोशल मीडिया पर शोक जाहिर कर रहे हैं।
बता दें कि अभिनेता ने अपने कॅरियर की शुरुआत 90 को दशक में की थी। वह राजू बन गया जेंटलमैन, फूल और अंगारे, खलनायक, थ्री इडियट्स, पानीपत और वेब सीरीज मिर्जापुर में भी नजर आ चुके हैं। इसके अलावा उन्होंने टीवी शो ‘बाबुल की दुआएं लेती जा’, कुमकुम जैसे सीरियल में भी काम किया है। बता दें कि अरुण बाली एक हंसमुख कलाकार थे।

देश में पहली बार हिन्दी में डॉक्टरी की पढ़ाई, भोपाल में शुरुआत

भोपाल । देश में पहली बार मध्यप्रदेश में एमबीबीएस की पढ़ाई हिन्दी में होगी। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने भोपाल में रविवार को इसकी 3 किताबों का विमोचन किया। उन्होंने कहा- ये क्षण देश में शिक्षा क्षेत्र के पुनर्निर्माण का क्षण है। सबसे पहले मेडिकल की शिक्षा हिन्दी में शुरू करके शिवराज सिंह ने मोदी जी की इच्छा पूरी की है। देशभर में 8 भाषाओं में पढ़ाई हो रही है। यूजी नीट देश की 22 भाषाओं में हो रही है। 10 राज्य इंजीनियरिंग की पढ़ाई मातृभाषा में करवा रहे हैं।
केंद्रीय मंत्री ने कहा- सोचने की प्रक्रिया अपनी मातृभाषा में ही होती है, इसलिए नेल्सन मंडेला ने कहा था- यदि आप किसी व्यक्ति से उस भाषा में बात करते हो तो वह उसके दिमाग में जाती है। अनुसंधान अपनी भाषा में हो तो भारत के युवा भी किसी से कम नहीं हैं। वो विश्व में भारत का डंका बजाकर आएंगे। मध्यप्रदेश ने मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में कराने संकल्प लिया है। इससे देश में क्रांति आएगी।
कुछ दिनों बाद इंजीनियरिंग की पढ़ाई भी हिन्दी में शुरू होगी। इसके लिए सिलेबस के अनुवाद का काम शुरू हो गया है। छह माह बाद, पॉलीटेक्निक और इंजीनियरिंग की पढ़ाई हिन्दी में करने का मौका मिलेगा।
इससे पहले मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा- आज का दिन ऐतिहासिक है। गरीब परिवारों के बच्चे, जो हिन्दी माध्यम में पढ़कर मेडिकल कॉलेज तो पहुंच जाते थे, लेकिन अंग्रेजी के मकड़जाल में फंस जाते हैं। कई ने तो मेडिकल की पढ़ाई छोड़ दी या फिर आत्महत्या तक पहुंच गए। मैंने एक बच्चे से पूछा- डॉक्टरी की पढ़ाई क्यों छोड़ दी, उसने रोते हुए कहा था- मामा अंग्रेजी समझ नहीं आती। हिन्दी में पढ़ाई ऐसे बच्चों के लिए काम आएगी।
हिन्दी को भी हमने कठिन नहीं बनाया। किडनी को किडनी ही लिखा जाएगा, यकृत नहीं लिखा जाएगा। इसी साल 6 इंजीनियरिंग और 6 पॉलिटेक्टनिक कॉलेज में हिन्दी में पढ़ाई होगी। बाद में आईआईटी में भी हिन्दी में पढ़ाई होगी। आईआईएम की पढ़ाई भी हिन्दी में करवाएंगे।
मंत्री ने कहा- आगे के पाठ्यक्रम का अनुवाद भी करेंगे
चिकित्सा शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने कहा- आजादी के बाद मप्र देश में पहला राज्य होने वाला है, जो हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई करवाएगा। हमने पूरी तरह से शोध करके यह तय किया कि किस तरह से मेडिकल की पढ़ाई हिन्दी में करवा सकते हैं। हमने फर्स्ट ईयर की 3 किताबों का हिन्दी अनुवाद किया है। 97 डॉक्टरों की टीम ने इस पर काम किया है। हम आगे के पाठ्यक्रमों का भी हिन्दी अनुवाद करेंगे। मप्र देश में पहला राज्य है जो हिन्दी में मेडिकल की पढ़ाई करवाएगा।
97 डॉक्टरों ने चार महीने में तैयार की 3 किताबें
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आह्वान पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने यह काम चिकित्सा शिक्षा विभाग को दिया था। प्रदेश के 97 डॉक्टरों की टीम ने 4 महीने तक रात-दिन मेहनत कर अंग्रेजी की किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया है। डॉक्टरों के साथ कम्प्यूटर ऑपरेटर्स की टीम बनाई गई। इस टीम ने 24 घंटे, सातों दिन लगकर एमबीबीएस फर्स्ट ईयर की 5 किताबों का हिन्दी में अनुवाद किया। इस प्रक्रिया में तकनीकी पहलुओं और छात्रों के भविष्य की चुनौतियों का भी ख्याल रखा गया है। इन किताबों को इस प्रकार अनुवादित कर तैयार किया गया है, जिसमें शब्द के मायने हिन्दी में ऐसे न बदल जाएं कि उसे समझना मुश्किल लगे।

नहीं रहे ओआरएस के जनक डॉ. दिलीप महालनोबिस

बांग्लादेश युद्ध के दौरान बचाई थी लाखों की जान
कोलकाता । ओआरएस के जनक और मशहूर बाल चिकित्सक डॉ. दिलीप महालनोबिस का 88 साल की उम्र में निधन हो गया। वह स्वास्थ्य कारणों के चलते काफी दिनों से कोलकाता के एक प्राइवेट अस्पताल में भर्ती थे। डॉ. दिलीप महालनोबिस को बांग्लादेश युद्ध के दौरान लाइफ सेविंग सॉल्यूशन को विकसित करने और ओरल रीहाइड्रेशन थेरपी (ओआरटी) को प्रचलित करने का श्रेय दिया जाता है।
मुख्य रूप से बाल रोग विशेषज्ञ के रूप में प्रशिक्षित डॉ. महालनोबिस ने 1966 में जनस्वास्थ्य में कदम रखने के साथ ओआरटी पर काम करना शुरू किया था। डॉ. महालनोबिस ने डॉक्टर डेविड आर नलिन और रिचर्ड ए कैश के साथ कोलकाता के जॉन्स हॉपकिंस यूनिवर्सिटी इंटरनैशनल सेंटर फॉर मेडिसिन रिसर्च ऐंड ट्रेनिंग में इसे लेकर रिसर्च की।
मृत्यु दर कम करने में कारगर ओआरएस
टीम ने ओआरएस बनाया जिसकी प्रभावशीलता 1971 के युद्ध तक केवल नियंत्रित परिस्थितियों में ही आजमाई गई थी। आईसीएमआर-एनआईसीईडी के डायरेक्टर शांता दत्त ने बताया, ‘ओआरएस एक महान खोज थी और इसके लिए डॉ. महालनोबिस का योगदान अभूतपूर्व है। बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान कोलेरा (हैजा) से संक्रमित मरीजों की मृत्युदर कम करने में कारगार साबित होने के बाद ओआरएस को वैश्विक रूप से स्वीकार्यता मिली।’
रिफ्यूजी कैंप में फैल गया था कोलेरा
युद्ध के चलते करीब 1 करोड़ लोग जान बचाकर बंगाल के बॉर्डर जिलों में भाग आए थे। उस वक्त बोनगांव स्थित रिफ्यूजी कैंप में हैजा महामारी फैल गई थी और अंत: स्रावी द्रव का स्टॉक भी खत्म हो गया था। इसके बाद डॉ. महालनोबिस ने कैंप में ओआरएस भिजवाए। ओआरएस के चलते रिफ्यूजी कैंप में मरीजों की मृत्युदर 30 फीसदी से घटकर 3 फीसदी तक हो गई।
20 वीं शताब्दी की महान खोज
ओआरएस को मेडिसिन में 20वीं शताब्दी की महान खोज करार दिया गया। डॉ. महालनोबिस को 2002 में यूनिवर्सिटी ऑफ कोलंबिया ऐंड कॉरनेल में पोलिन पुरस्कार और 2006 में थाईलैंड सरकार ने उन्हें प्रिंस महिडोल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। डॉ. महालनोबिस ने कोलकाता स्थित इंस्टिट्यूट ऑफ चाइल्ड हेल्थ को अपनी एक करोड़ की बचत दान की थी। यहीं से उन्होंने बाल चिकित्सक के रूप में अपनी यात्रा शुरू की थी।

दुनिया छोड़ चला विष्णु भक्त मगरमच्छ ‘बाबिया

तिरुवनंतपुरम । शाकाहारी मगरमच्छ बाबिया दुनिया को छोड़ चला है। बीते रविवार को बाबिया की मौत हो गई थी। बाबिया नाम का मगरमच्छ दुनिया का पहला ऐसा मगरमच्छ था, जो कि शाकाहारी था। बाबिया की उम्र करीब 70 साल बताई जाती है। बाबिया केरल के कासरगोड जिले स्थित श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर परिसर में बने तालाब में रहता था। जब बाबिया की अंतिम यात्रा निकाली गई तो हर किसी की आंखे नम दिखीं। इसके पीछे की वजह बाबिया की भगवान के प्रति अद्भुत भक्ति को माना जाता था।
भगवान विष्णु का अनन्य भक्त था बाबिया
बाबिया श्री अनंतपद्मनाभ स्वामी मंदिर परिसर में बने तालाब में ही रहा करता था। बाबिया को भगवान विष्णु का अनन्य भक्त बताया जाता था। वह दिन में दो बार तालाब से बाहर निकलकर आता था और मंदिर में जाकर दर्शन करता था। वहीं आने-जाने के दौरान बाबिया ने कभी किसी को कोई नुकसान नहीं पहुंचाया। इसके साथ ही वह खाने में वही प्रसाद खाता था, जो कि भगवान विष्णु को भोग लगाया जाता था।
बाबिया को देखने जुट जाती थी भक्तों की भीड़
बाबिया नाम के मगरमच्छ को लेकर कहा जाता है कि पूरी जिंदगी में उसने कभी भी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाया। तालाब में रहने के बावजूद वहां रहने वाली मछलियों तक को कभी बाबिया ने जरा सा परेशान तक नहीं किया। वह भक्तों के बीच कौतुहल का विषय था। जब भक्त मंदिर में आकर भगवान को भोग लगाते थे और मन्नत मांगते थे तो कोई ऐसा नहीं होता था जो दिल से बाबिया के दर्शन की चाह न रखता हो। सुबह और दोपहर की पूजा के बाद बाबिया को भोजन दिया जाता था, जो कि केवल प्रसाद ही खाता था।
1945 में तालाब में प्रकट हुआ था बाबिया
दुनिया के पहले शाकाहारी मगरमच्छ बाबिया के जन्म की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। उसके जन्म को लेकर बताया जाता है कि बाबिया साल 1945 में तालाब में प्रकट हुआ था। कहा जाता है कि साल 1945 में एक ब्रिटिश सैनिक ने मंदिर में मगरमच्छ को गोली मार दी थी। इसी के कुछ दिन बाद मंदिर के तालाब में बाबिया अपने आप ही प्रकट हो गया था।

बाढ़ ने बढ़ाई मुसीबत, ग्रामीणों ने खुद ही डाली पुलिया

बहराइच । यूपी में बहराइच जनपद में आई भीषण बाढ़ ने न सिर्फ खेत, मकान और झोपड़ियों को अपने आगोश में ले लिया है। बल्कि तमाम रास्ते भी खराब हो गए हैं। नानपारा से मिहीपुरवा मार्ग के बीच काफी बड़ी पुलिया में दरारें आ गई है, जिससे कई दिन से मुख्य मार्ग बन्द है। इसी तरह बढैय्या और मान पुरवा के बीच बनी पुलिया भी बाढ़ की भेंट चढ़ गई। लगभग 25 गांव की लाखों की आबादी प्रभावित हुई है। सामुदायिक सहयोग से गांव के लोंगों ने बना लिया है।
बढैय्या, रामपुर, अग्घरा, दलजीत पुरवा, कोडरी, खाले पुरवा, टेपरा, ऐरनवा व बैबाही आदि गाव के लोग इस पुलिया से होकर ही अपने घर जाते थे। इस पुलिया के टूट जाने से नज़दीक की मुख्य बाज़ार मिहीपुरवा और नानपारा के सारे रास्ते बंद हो गए थे।
मुख्य बाजारों से आवागमन बन्द होने के कारण बाढ़ पीड़ित ग्रामीणों को बहुत परेशानी उठानी पड़ रही थी। तब बढैय्या के लोगो ने गांव में एक सामूहिक बैठक की और यह निर्णय लिया गया कि दान में लकड़ी के पटरे और बल्ली बटोर कर पुलिया का निर्माण कर दिया जाए।
गांव वालो की योजना सफल हुई और पटरे-बल्ली इकट्ठा हो गए तथा श्रम दान से पुलिया बन गई। पुलिया बनने से पैदल, सायकिल और मोटरसाइकिल यात्रियों की समस्याओं का निदान हो गया। कोई गाड़ी मोटर तो नहीं निकल सकती पुलिया से लेकिन आम आदमी को पहले जैसी सुविधा का अनुभव हो रहा है।
इस सम्बंध में उपजिलाधिकारी ज्ञान प्रकाश त्रिपाठी से जब पूछा गया तो उन्होंने कहा कि मैंने अभी पुलिया तो नहीं देखी है, लेकिन सामुहिक योगदान से अगर कोई विकास कार्य होता है तो इसमें कोई बुराई नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि समीक्षा की जा रही जो भी सड़क या पुलिया क्षतिग्रस्त हुई हैं उन्हें शीघ्र ही ठीक करा दिया जाएगा।

नहीं रहे अभिनेता जितेंद्र शास्त्री

कोलकाता । ब्लैक फ्राइडे’, ‘अशोका’ और ‘राजमा चावल’ जैसी फिल्मों का हिस्सा रहे एक्टर जितेंद्र शास्त्री का निधन हो गया है। जितेंद्र शास्त्री के निधन की खबर दोस्त संजय मिश्रा ने ट्विटर पर शेयर की और शोक जताया।
संजय मिश्रा ने जितेंद्र शास्त्री उर्फ जीतू शास्त्री को याद करते हुए अपने ट्विटर हैंडल पर लिखा, ‘जीतू भाई आप होते तो आप कुछ ऐसे बोलते-मिश्रा कभी-कभी क्या होता ना, मोबाइल में नाम रह जाता है और इंसान नेटवर्क से आउट हो जाता है।’ तुम इस दुनिया से दूर चले गए। लेकिन मेरे दिल और दिमाग के नेटवर्क में हमेशा रहोगे। ओम शांति।’
सिने एंड टीवी आर्टिस्ट्स एसोसिएशन ने भी जीतेंद्र शास्त्री के निधन पर शोक जताते हुए उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
जितेंद्र शास्त्री ने सिर्फ फिल्मों में ही काम नहीं किया था, बल्कि थिएटर की दुनिया में भी खूब नाम कमाया। वह ‘लज्जा’, ‘चरस’ और ‘दौर’ जैसी कई फिल्मों में नजर आए। साल 2019 में रिलीज हुई फिल्म ‘इंडियाज मोस्ट वॉन्टेड’ में जितेंद्र शास्त्री एक खबरी का रोल निभाया था जिसमें उन्हें खूब सराहा गया था।

अचार बेचकर पूनम ने बदल दी बमनिया गाँव की तस्वीर

मुरादाबाद । मुरादाबाद की रामगंगा नदी पार स्थित गांव, ऐसा गांव जहाँ कभी ऐसी स्थिति कि लोग अपने बेटियों को रिश्ता इस गांव में करने से कतराते थे। बामुश्किल रिश्ते आ पाते थे। कोई इन स्थितियों को बदलने के लिए कदम उठाने की जहमत नहीं उठाना चाहता था। ऐसे में पूनम देवी यहां ब्याह कर आईं। ठाकुरद्वारा के सूरजनगर से आई पूनम ने इस स्थिति को देखा तो रामगंगा नदी के शांत पानी में पत्थर मारकर हलचल पैदा करने की ठान ली। रुकावटों की परवाह कहां थी। घूंघट छोड़ा और आत्मनिर्भरता की इबारत लिख डाली।
मुरादाबाद का जो गांव बमनिया पट्‌टी कभी बाढ़ की विभीषिका के कारण चर्चा के केंद्र में रहता था, यहां की विकास योजनाओं को लेकर चर्चा में आ गया है। इसके पीछे पूनम रानी की मेहनत को हर कोई मान रहा है। पूनम रानी करीब 20 साल पहले ठाकुरद्वारा के सूरजननगर से शादी के बाद बमनिया पट्‌टी गांव आई थीं। यहां की स्थिति को देखने के बाद पूनम ने घूंघट को छोड़ा और आत्मनिर्भरता को अपनाने का निर्णय लिया। पूनम आगे बढ़ीं तो उन्हें 10 अन्य महिलाओं का साथ मिला। स्वरोजगार से जुड़ीं। इसके बाद सफलता की कहानी लिखी जानी शुरू हो गई।
15 हजार से शुरुआत, 75 हजार पहुंचा टर्नओवर
पूनम रानी ने अपने 10 साथियों के साथ मिलकर वर्ष 2019 में सहारा अश्व कल्याण स्वयं सहायता समूह का गठन किया। इस सेल्फ हेल्प ग्रुप 15 हजार रुपये की लागत से अचार बनाने का काम शुरू किया। आज के समय में इस एसएचजी का टर्नओवर 75 हजार रुपये पहुंच गया है। उन्होंने अपने अचार की कीमत 200 रुपये किलो रखी है। इससे करीब 25 हजार रुपये की आमदनी उन्हें हो जाती है। पति खिलेंद्र सिंह भी पूनम का हर कदम पर साथ दे रहे हैं।

कोरोना काल में हुआ नुकसान
15 हजार रुपये से बिजनेस स्टार्ट किया तो ऑर्डर आने लगे। काम को बढ़ाना था। लागत राशि कम पड़ रही थी। इस कारण बैंक से लोन लेना पड़ा। उन्होंने एक लाख रुपये का कर्ज लिया। एक साल के भीतर ही देश में कोरोना का आगमन हो गया। इस महामारी देश के अन्य व्यवसाय की तरह उनके स्वरोजगार को भी खासा नुकसान पहुंचाया। काम चौपट हो गया था। लेकिन, फिर साहस बटोरा। महामारी की लहर गुजरी तो उन्होंने अपने व्यवसाय को ऑनलाइन शुरू किया। अब धीरे-धीरे चीजें पटरी पर आने लगी हैं।
पूनम के प्रयास और उनके प्रोडक्ट की तारीफ सोशल मीडिया पर हो रही है। खिलेंद्र सिंह ने अपनी पहुंच का फायदा उठाकर क्षेत्र के दुकानों पर अचार रखवा दिया है। उनकी मार्केटिंग ने पूनम के बिजनेस को स्थापित करने में भूमिका निभाई है। दुकानों पर अचार बिकने के बाद नए ऑर्डर आने लगे हैं। इसके लिए उन्होंने दुकानदारों का वॉट्सऐप ग्रुप तैयार किया है। ऑर्डर को यहां पर लिया जाता है और इसके आधार पर सप्लाई होती है।
पूनम रानी कहती हैं कि हर माह करीब 25 हजार रुपये का कारोबार हो जाता है। इसमें से 10 हजार रुपये मजदूरी में जाते हैं और 15 हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। स्थिति बदलेगी तो कारोबार और बढ़ेगा। लोकल को वोकल बनाने का प्रयास जारी है। काम को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं, सफलता तो मिलेगी ही।

बच्चों को दे रही हैं बेहतर शिक्षा
पूनम ने अपने सेल्फ हेल्प ग्रुप के जरिए आम, आंवला, अदरक, मूली, गाजर, सब्जी और करेला का अचार बनाना शुरू किया। मांग के अनुरूप यहां पर अचारों को तैयार कराया जाता है। इससे आमदनी ने उनके जीवन को बदला है। गांव की महिलाओं के भी। उनके बच्चे भी इससे लाभान्वित हुए हैं। पूनम की बेटी वर्निता बीएससी की पढ़ाई कर रही हैं। वहीं, बेटा जतिन बीफॉर्मा का कोर्स कर रहा है। पति इलेक्ट्रिक गुड्स की दुकान चलाते है। पूनत अपने साथ-साथ गांव की अन्य महिलाओं को स्वरोजगार से जोड़ने का काम कर रही हैं। यह बदलाव की एक शुरुआत मान सकते हैं।

जहां थे चपरासी, उसी विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बने बिहार के कमल किशोर

भागलपुर । ‘जहां चाह है, वहां राह है’ यह साबित कर दिखाया है बिहार के भागलपुर जिले के रहने वाले 42 वर्षीय कमल किशोर मंडल ने। कमल किशोर मंडल जिस विश्वविद्यालय में नाइट गार्ड की नौकरी करते थे, आज उसी विश्वविद्यालय के सहायक प्रोफेसर बन गए हैं। कमल किशोर की सफलता पर उनसे मिलने के लिए हर दिन कई लोग आ रहे हैं। कमल किशोर मंडल ने घर की विपरीत परिस्थितियों में पढ़ाई के लिए जबरदस्त इच्छा शक्ति दिखाई और सहायक प्रोफेसर बनकर सफलता पाई।
भागलपुर कस्बे के मुंडीचक इलाके के रहने वाले कमल किशोर मंडल ने 23 साल की उम्र में 2003 में मुंगेर के आरडी एंड डीजे कॉलेज में नाइट गार्ड के रूप नौकरी शुरू की थी। उस समय कमल किशोर ने पॉलिटिकल साइंस से बीए किया था। लेकिन घर का आर्थिक स्थिति और पैसों की जरूरत के चलते कमल किशोर ने नाइड गार्ड की नौकरी कर ली। लेकिन इससे कमल की पढ़ने में रुचि कम नहीं हुई।
नाइड गार्ड के रूप में शुरू की नौकरी
नाइट गार्ड की नौकरी करते हुए कमल किशोर को अभी बमुश्किल एक महीना बीता होगा कि उनका ट्रांसफर तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय (टीएमबीयू) के अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग (स्नातकोत्तर) में कर दिया। 2008 में उनका पद बदलकर चपरासी कर दिया गया। चपरासी की नौकरी करते हुए कमल किशोर ने विश्वविद्यालय में छात्र-छात्रों को पढ़ते देखा तो उनके मन में भी आगे पढ़ने का विचार उठने लगा।
चपरासी की नौकरी करते हुए पढ़ाई फिर शुरू की
कमल किशोर मंडल ने बताया कि, ‘मैंने अपनी पढ़ाई आगे शुरू करने के लिए विभाग से अनुमति देने का अनुरोध किया तो विभाग ने पढ़ाई की इजाजत दे दी। जल्द ही, मैंने फिर से अपनी पढ़ाई शुरू की और शुरू 2009 में एमए (अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य में) कर लिया।’ कमल किशोर ने 2009 में पीएचडी करने की अनुमति मांगी लेकिन विभाग ने तीन साल बाद 2012 में कमल को पीएचडी करने की सहमति दे दी।
2019 में कमल किशोर ने की पीएचडी
कमल किशोर ने 2013 में पीएचडी शुरू की और 2017 में कॉलेज में थीसिस जमा कर दी। उन्हें 2019 में पीएचडी की डिग्री से सम्मानित किया गया। इस बीच, उन्होंने प्रोफेसर के लिए होने वाले एग्जाम राष्ट्रीय पात्रता परीक्षा (नेट) भी पास की और नौकरियों की तलाश जारी रखी। आखिर में 2020 में किशोर मंडल का इंतजार खत्म हुआ।
2022 में सहायक प्रोफेसर का रिजल्ट हुआ घोषित
बिहार राज्य विश्वविद्यालय सेवा आयोग (बीएसयूएससी) ने टीएमबीयू में संबंधित विभाग में सहायक प्रोफेसर के चार पदों के लिए रिक्तियों का विज्ञापन किया। 12 उम्मीदवारों को इंटरव्यू के लिए बुलाया गया था, लेकिन किशोर मंडल भाग्यशाली थे कि उन्हें टीएमबीयू के उसी अंबेडकर विचार और सामाजिक कार्य विभाग में असिस्टेंट प्रोफेसर के पद पर नियुक्त किया गया, जहां उन्होंने एक चपरासी के रूप में कार्य किया। उनके चयन का परिणाम 19 मई, 2022 को घोषित किया गया था।
पिता टी स्टॉल पर बेचते हैं चाय
कमल किशोर मंडल के पिता गोपाल मंडल अपना परिवार चलाने के लिए सड़क किनारे एक टी स्टॉल पर चाय बेचते हैं। बेटे की सफलता पर गोपाल मंडल खुश हैं। कमल मंडल ने अपनी सफलता को अपने विभाग के अधिकारियों और शिक्षकों को समर्पित करते हैं, जिन्होंने उन्हें आगे पढ़ने के लिए प्रोत्साहित किया। कमल किशोर ने बताया, ‘मैंने कभी भी अपने अध्ययन के रास्ते में गरीबी और पारिवारिक समस्याओं को नहीं आने दिया। मैंने सुबह क्लास अटेंड की और दोपहर में ड्यूटी की। रात के समय कई घंटे पढ़ाई करता था।’