Wednesday, September 17, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 138

छठ पूजा विशेष – बिहार का सीताचरण मंदिर, जहाँ हैं देवी सीता के चरण चिह्न

देवी सीता ने भी किया था छठ

वाल्मीकि व आनंद रामायण के साथ मुंगेर गजेटियर में भी है इसका उल्‍लेख

लोक आस्था का महापर्व छठ शुक्रवार से शुरू हो गया है। 28 अक्टूबर को नहाय-खाय व 29 को खरना है। 30 को संध्याकालीन अर्घ्य है और 31 अक्टूबर को सुबह का अर्घ्य है। इस महापर्व की शुरुआत मुंगेर की धरती से हुई थी। लंका से विजयी प्राप्त कर लौटने के समय माता सीता भगवान श्रीराम और लक्ष्मण के साथ मुंगेर में रुकी थीं। यहां माता सीता ने महापर्व छठ का अनुष्ठान किया था। इसका वर्णन वाल्मीकि व आनंद रामायण में भी है। माता सीता के आज भी पवित्र चरण चिह्न मौजूद हैं। अब यह स्थान सीताचरण (जाफर नगर) के नाम से जाना जाता है। यहां मंदिर का निर्माण 1974 में हुआ है।
वाल्मीकि रामायण के अनुसार जब भगवान राम वनवास के लिए निकले थे, तब वे मां सीता और लक्ष्मण के साथ स्थानीय मुद्गल ऋषि के आश्रम आए थे। उस वक्त मां सीता ने गंगा मां से वनवास काल सकुशल बीत जाने की प्रार्थना की थी। वनवास व लंका विजय के बाद भगवान राम व मां सीता फिर से मुद्गल ऋषि के आश्रम आए थे। वहां ऋषि ने माता सीता को सूर्य उपासना की सलाह दी थी। उन्हीं के कहने पर मां सीता ने वहीं गंगा नदी में एक टीले पर छठ व्रत किया था। माता सीता ने (वर्तमान) सीता कुंड में स्नान भी किया था।

कैसे पहुंचे मंदिर

सीताचरण मंदिर जाने के लिए नाव ही एकमात्र सहारा
गर्मी के दिनों में गंगा में पानी कम होने की वजह से पानी नहीं होता है। ऐसे में जाफरनगर से पैदल पहुंच सकते हैं।
हर वर्ष सात से आठ माह यह मंदिर पानी में डूबा रहता है। दूसरे रास्ते से जाना चाहे तो करीब सड़क मार्ग से बेगूसराय जिले के बलिया होते हुए रास्ता है।
मुंगेर गजेटियर में भी उल्लेख
सीताचरण मंदिर गंगा के बीच एक शिलाखंड पर स्थित है। इस शिलाखंड पर चरणों के निशान है, इसे माता सीता का चरण माना जाता है।दोनों स्थानों के चरण चिन्ह के अग्रभाग में चक्र के निशान हैं। इसका उल्लेख 1926 में प्रकाशित मुंगेर गजेटियर में भी किया गया है। सीता चरण की दूरी कष्टहरनी घाट से नजदीक है। मुंगेर किला से से करीब दो मील की दूरी पर गंगा बीच स्थित है। गजेटियर के अनुसार पत्थर में दो चरणों का निशान है, जिसे सीता मां का चरण माना जाता है। यह पत्थर 250 मीटर लंबा और 30 मीटर चौड़ा है। यह जनपद पहले ऋषि मुद्गल के नाम पर मुद्गलपुर था। बाद में इसी के अपभ्रंश का नाम मुंगेर पड़ा।

 

छठ पूजा विशेष – भगवान विश्वकर्मा ने नौ लाख वर्ष पूर्व देव सूर्य मंदिर का किया निर्माण

देश का ऐतिहासिक देव सूर्य मंदिर बिहार की विरासत है। मंदिर के इतिहास पर नजर डालें तो मंदिर का निर्माण नागर शैली में हुआ है। काले पत्थरों को तरासकर मंदिर का निर्माण कराया गया है। देश में भगवान सूर्य के कई प्रख्यात मंदिर हैं परंतु देव में छठ करने का अलग महत्व है। मंदिर को लेकर कई किंवदंती है। औरंगाबाद से 18 किलोमीटर दूर देव सूर्य मंदिर करीब 100 फीट ऊंचा है। मान्यता है कि मंदिर का निर्माण त्रेता युग में नौ लाख वर्ष पहले भगवान विश्वकर्मा ने स्वयं किया था। मंदिर के मुख्य पुजारी सच्चिदानंद पाठक मंदिर को त्रेतायुगीन बताते हैं। मंदिर विश्व धरोहर में शामिल होने के कतार में है।
सूर्यकुंड तालाब है कुष्ठ निवारक
त्रेतायुग में राजा एल थे। वे इलाहाबाद के राजा थे। जंगल में शिकार खेलते देव पहुंचे। शिकार खेलने के दौरान राजा को प्यास लगी। देव स्थित तालाब का जल ग्रहण किया। राजा कुष्ठ रोग से ग्रसित थे। राजा के हाथ में जहां-जहां जल का स्पर्श हुआ वहां का कुष्ठ ठीक हो गया था। राजा गड्ढे में कूद गए जिस कारण उनके शरीर का कुष्ठ रोग ठीक हो गया। रात में जब राजा विश्राम कर रहे थे तभी सपना आया कि जिस गड्ढा में उसने स्नान किया था उस गड्ढा के अंदर तीन मूर्ति दबे पड़े हैं। राजा ने जब गड्ढा खोदा तो ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश की मूर्ति मिली जिसे मंदिर में स्थापित किया। इस सूर्यकुंड तालाब को कुष्ठ निवारक तालाब कहा जाता है।
तीन स्वरूपों में विराजमान हैं भगवान सूर्य
देव में छठ करने का अलग महत्व है। यहां भगवान सूर्य तीन स्वरूपों में विराजमान हैं। मंदिर के गर्भगृह में भगवान सूर्य, ब्रह्मा, विष्णु एवं महेश के रूप में है। मंदिर में स्थापित प्रतिमा प्राचीन है। सर्वाधिक आकर्षक भाग गर्भगृह के उपर बना गुंबद है जिस पर चढ़ पाना असंभव है। गर्भगृह के मुख्य द्वार पर बाईं ओर भगवान सूर्य की प्रतिमा और दाईं ओर भगवान शंकर की गोद में बैठे मां पार्वती की प्रतिमा है। ऐसी प्रतिमा सूर्य के अन्य मंदिरों में नहीं देखा गया। गर्भगृह में रथ पर बैठे भगवान सूर्य की अद्भुत प्रतिमा है। मंदिर के मुख्य द्वारा पर रथ पर बैठे भगवान सूर्य की प्रतिमा आकर्षक है।

पश्चिमाभिमुखी है मंदिर का मुख्य द्वार
देशभर में स्थित सूर्य मंदिरों का मुख्य द्वार पूरब होता है परंतु देव सूर्य मंदिर का द्वार पिश्चमाभिमुख है। कहा जाता है कि औरंगजेब अपने शासनकाल में अनेक मूर्तियों को तोड़ते हुए देव पहुंचा। मंदिर तोड़ने की योजना बना रहा था तभी लोगों की भीड़ एकत्रित हो गई। लोगों ने ऐसा करने से मना किया परंतु वह इससे सहमत नहीं हुआ। औरंगजेब ने कहा कि अगर तुम्हारे देवता में इतनी ही शक्ति है तो मंदिर का द्वार पूरब से पश्चिम हो जाए हम इस मंदिर को छोड़ देंगे। ऐसा ही हुआ। सुबह में लोगों ने देखा तो मंदिर का प्रवेश द्वार पूरब से पश्चिम हो गया था।

देव में माता अदिति ने की थी पूजा
देवासुर संग्राम में जब असुरों के हाथों देवता हार गए थे तब देव माता अदिति ने तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति के लिए देवारण्य में छठी मैया की अराधना की थी। प्रसन्न होकर छठी मइया ने उन्हें सर्वगुण संपन्न तेजस्वी पुत्र होने का वरदान दिया था। इसके बाद अदिति के पुत्र त्रिदेव रूपेण आदित्य भगवान जिन्होंने असुरों पर देवताओं को विजय दिलायी। कहते हैं कि उस समय सेना षष्ठी देवी के नाम पर इस धाम का नाम देव हो गया और छठ का चलन प्रारंभ हुआ।

स्नान के बाद चंदन लगाते हैं भगवान सूर्य

देव सूर्य मंदिर में विराजमान भगवान सूर्य प्रत्येक दिन स्नान कर चंदन लगाते हैं। नया वस्त्र धारण करते हैं। आदिकाल से यह परंपरा चलती आ रही है। प्रत्येक दिन सुबह चार बजे भगवान को घंटी बजाकर जगाया जाता है। जब भगवान जग जाते हैं तो भगवान स्नान करते हैं। भगवान के ललाट पर चंदन लगाते हैं। फूल-माला चढ़ाने के बाद खुश होने के लिए आरती दिखाई जाती हैं। भगवान को आदित्य हृदय स्रोत का पाठ सुनाया जाता है। भगवान को तैयार होने में 45 मिनट का समय लगता है। जब भगवान तैयार हो जाते हैं तो पांच बजे श्रद्धालुओं के दर्शन के लिए पट खोल दिए जाते हैं। रात नौ बजे तक भगवान श्रद्धालुओं के लिए गर्भगृह के आसन पर विराजमान रहते हैं। रात नौ के बाद भगवान का पट बंद कर दिया जाता है।

श्रद्धालुओं की उमड़ती है भीड़
कार्तिक एवं चैत छठ में लाखों की संख्या में श्रद्धालु व्रत करने पहुंचते हैं। छोटा सा कस्बा भक्तों की संख्या से पट जाता है। यहां लाखों श्रद्धालु छठ करने झारखंड, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, छतीसगढ़, महाराष्ट्र समेत देश के अन्य राज्यों से आते हैं। मान्यता है कि जो भक्त यहां भगवान सूर्य की आराधना करते हैं उनकी मनोकामना पूर्ण होती है।

(साभार – दैनिक जागरण)

शुभजिता दीपोत्सव – पटाखे चलाएं मगर सावधानी से

दीपावली हर किसी को खुशियां, मस्ती और जश्न मनाने के ढेरों मौके देती है, लेकिन कई बार छोटी-छोटी लापरवाहियों से त्योहार की सारी खुशियों पर नजर लग जाती है। कई बच्चे दौड़-भाग में गिर जाते हैं, जिससे हाथों-पैरों में चोट लग जाती है। कुछ बच्चे बड़े-बड़े बम, रॉकेट बिना बड़ों की उपस्थिति में जलाने लगते हैं, जिससे हाथ-पैर जलने की संभावना बढ़ जाती है। दिवाली के दिन इस तरह की दुर्घटनाएं आम हैं। ऐसे में पटाखे जलाते समय जरूरी है कुछ सेफ्टी टिप्स और फर्स्ट एड के बारे में जान लेना, ताकि समय रहते सही उपचार

हाथ-पैर जलने पर क्या करें
बच्चों के हाथ-पैर यदि पटाखे जलाते समय जल जाएं, तो 10 मिनट तक नल के नीचे हाथ-पैर पर पानी डालें। इससे जलन कम होगी।त्वचा को ठंडक मिलेगी।
जले हुए जगह को कपड़े या तौलिए से रगड़ें नहीं, बल्कि उसके ऊपर जल्दी से कोई एंटीसेप्टिक क्रीम लगाएं। इससे जली हुई त्वचा को आराम मिल जाएगा।
उसके बाद मेडिकल पट्टी से जली हुई त्वचा को कवर कर दें, ताकि धूल-मिट्टी घाव पर ना चिपके। घाव खुला छोड़ने से संक्रमण होने का खतरा बढ़ जाता है।
यदि ज्यादा जल गया है, तो डॉक्टर से जरूर मिल लें
हो सकता है जलने पर डॉक्टर टेटनस का इंजेक्शन लगाने की सलाह दे। इससे शरीर में संक्रमण नहीं फैलता।

हाथ-पैर जलने पर क्या ना करें
जलने पर बर्फ ना लगाएं। इससे त्वचा छिल सकती है।
कुछ लोग घरेलू उपचार में जले हुए स्थान पर टूथपेस्ट लगाने के लिए कहते हैं, आप भूलकर भी ऐसा ना करें।
त्वचा पर छाले हो जाएं, तो उन्हें नाखून से छेड़ें नहीं, इससे जलन होने के साथ ही इंफेक्शन भी हो सकता है।

शुभजिता दीपोत्सव – देवी लक्ष्मी के साथ गणपति और सरस्वती की पूजा

 दीपावली का पर्व हर साल कार्तिक मास की अमावस्या को मनाया जाता है। इस बार ये तिथि 24 अक्टूबर, सोमवार को है। इस पर्व से जुड़ी कई परंपराएं पुरातन समय से चली आ रही है। हालांकि इन परंपराओं में आंशिक परिवर्तन जरूर आया है, लेकिन फिर ये आज भी अपना अस्तित्व बचाए हुए है। आज हम आपको दीपावली से जुड़ी कुछ ऐसी ही परंपराओं के बारे में बता रहे हैं और उनमें छिपे कारणों को भी.

देवी लक्ष्मी के साथ गणपति और सरस्वती की पूजा क्यों?
दीपावली पर देवी लक्ष्मी के साथ बुद्धि के देवता भगवान श्रीगणेश और ज्ञान की देवी सरस्वती की पूजा भी जरूर की जाती है। कारण ये है कि जब देवी लक्ष्मी धन लेकर आए तो उसे संभालने का ज्ञान भी हमारे पास होना चाहिए, ये ज्ञान हमें देवी सरस्वती से प्राप्त होता है और बुद्धि के उपयोग से उसे निवेश करना भी हमें आना चाहिए। ये बुद्धि हमें श्रीगणेश प्रदान करते हैं। इसलिए देवी लक्ष्मी के साथ श्रीगणेश और सरस्वती का विधान बनाया गया।

क्यों देवी लक्ष्मी को चढ़ाते हैं खील?
दीपावली पूजा में देवी लक्ष्मी को खील यानी धान का लावा विशेष रूप से चढ़ाया जाता है। खील चावल से बनती है और उत्तर भारत का प्रमुख अन्न भी है। फसल के रूप में इसे देवी लक्ष्मी को चढ़ाया जाता है। शुक्र ग्रह का प्रमुख धान्य भी चावल ही होता है। शुक्र ग्रह से शुभ फल पाने के लिए भी देवी लक्ष्मी को खील का भोग लगाया जाता है।

क्यों करते हैं दीपदान?
दीपावली के पांच दिनों में दीपदान की परंपरा भी प्रमुख है। इसके पीछे कारण है कि हम प्रकृति के निकट जाएं और उसे समझें। नदी का किनारा पितरों का स्थान माना गया है। यहां दीपक लगाने से पितृ प्रसन्न होते हैं और उनकी कृपा हम पर बनी रहती है। पवित्र नदियों या सरोवर में दीपदान करने से अशुभ ग्रह भी शांत होते हैं और हमें शुभ फलों की प्राप्ति होती है।

क्यों करते हैं झाड़ू की पूजा?
दीपावली पर लक्ष्मी पूजा के दौरान झाड़ू की पूजा भी जरूर की जाती है। इसके पीछे मनोवैज्ञानिक कारण है। झाड़ू से ही हम सुबह-शाम अपने घर को साफ करते हैं और गंदगी को बाहर निकालते हैं। झाड़ू से ही हमारे घर में साफ-सफाई बनी रहती है। जो वस्तु हमारे घर को साफ करने में सहायक होती है, दीपावली पर उसकी पूजा कर उसे धन्यवाद प्रेषित किया जाता है।

अदभुत रामायण में है सीता के काली रूप में अवतार की चर्चा

स्त्री के अपहरण और उसके काली रूप की चर्चा सनातन धर्म के कई ग्रंथों में मिलता है। इसी प्रसंग में बहुत महत्त्वपूर्ण कथा आयी है सीता का काली के रूप में अवतार का। अद्भुत रामायण में यह कथा आयी है। अद्भुत रामायण वर्णित कथा के अनुसार रावण के वध के बाद राज्याभिषेक के उपरान्त सीता ने कहा कि कैकसी से दो पुत्र हुए थे, एक दस सिर वाला और दूसरा सहस्र सिर वाला। अब तक केवल दस सिर वाला रावण ही मारा गया है। वह तो छोटा था. सहस्र सिर वाला रावण पुष्कर द्वीप में रहा करता है। हे राम उसे मारने पर आपकी बड़ाई होगी।

सहस्रबाहु रावण से राम का हुआ था युद्ध

राम ने सीता का प्रस्ताव स्वीकार किया और पुष्पक विमान से पुष्कर क्षेत्र की ओर चल पड़े. विमान पर सीताजी भी साथ थीं। राम की सारी सेनाएं गयी। युद्ध आरंभ होने के पूर्व ही सहस्रमुख रावण ने ऐसा वायव्यास्त्र चलाया कि सारी सेना अपने अपने घर लौटकर राम और सीता की चिन्ता करने लगी। सहस्रबाहु के साथ राम का भीषण युद्ध चला, जिसमें राम मूर्च्छित हो गये।

ब्रह्मा से भी सीता का उग्र काली रूप न हो सका शांत

यह देखकर सीता ने काली का रूप विकराल रूप धारण किया और सहस्रमुख रावण के सभी सिरों को काटकर उन्हें गेंद बना कर खेलने लगीं। उनका यह भयंकर रूप सान्त नहीं हो रहा था। सीता के इस काली रूप को देखकर सभी देवता दौड़ पड़े। ब्रह्माजी ने राम की मूर्छा दूर कर दी, लेकिन सीता का वह विशाल काली रूप उनसे शान्त नहीं हो पाया। तब अंत में सभी देवताओं ने भगवान शिव से प्रार्थना की।

सीता के काली रूप को शांत करने को आये महादेव

देवताओं ने कहा कि आप ही अब इनके रूप को शान्त करें नहीं तो सृष्टि समाप्त हो जायेगी। भगवान शिव ने देवों की प्रार्थना स्वीकार की और वे पृथ्वी पर लेट गये। काली के रूप में सीता का पैर जब भगवान शिव के हृदय पर पड़ा, तो वह लज्जा के कारण शान्त हो गयीं और उनका सौम्य रूप प्रकट हुआ। फिर वह आद्या शक्ति के रूप में राम से जा मिलीं. इस प्रकार अदभुत रामायण की कथा कहती है कि रावण का वध सीता ने काली का रूप धारण कर खुद किया।

सनातन धर्म की पांच शाखाएं विकसित हुई

साक्त संप्रदाय के जानकार पंडित भवनाथ झा कहते हैं कि इस कथा में हम जिस साम्प्रदायिक समन्वय की भावना देखते हैं, उसने बाद में समाज को एकजुट करने का कार्य किया। इसी के तहत पुराणों में विभिन्न प्रकार की कथाएँ कही गयीं तथा उसी परम देव ब्रह्म के अनेक रूपों में मानवीकरण हुआ। इस पद्धति में पाँच शाखाएँ विकसित हुई- सौर, गाणपत्य, शैव, शाक्त एवं वैष्णव. एक छठी शाखा शाखा भी थी, जो आग्नेय शाखा कहलाती थी। इसमें अग्नि को भी मुख्य देवता माना गया। बाद में चलकर सूर्य तथा गणेश से सम्बन्धित शाखा विलुप्त हो गयी. शेष तीन बचे, जिनमें प्रत्येक शाखा के ग्रन्थ अपनी परम्परा को सबसे ऊपर मानने लगेय़

आगम पद्धति से सनातन की सभी संप्रदायों का समन्वय हुआ

वैदिक काल में सभी लोग वेद के मन्त्रों से परिचित थेय़ लोग उपासना में उन मन्त्रों का व्यवहार करते थे लेकिन धीरे-धीरे जब जनसंख्या बढ़ी और जनता अपने अपने कौलिक धंधे में लग गयी तो वेद मन्त्रों से दूर हुई। अतः उन्हें देवता की उपासना जोड़ने के लिए आगम पद्धति का विकास हुआ। इस आगम पद्धति में पौराणिक तथा तान्त्रिक शाखाएँ हुईं। यह सभी लोगों के लिए पद्धति थी। विगत 1000 वर्षों में सबके समन्वय की भावना आयी। इसके तहत शिव तथा शक्ति का समन्वय स्थापित किया गया, फिर शिव के साथ विष्णु की एकात्मकता के सूत्र खोजे गये।

 

(साभार – प्रभात खबर)

शुभजिता दीपोत्सव – धनतेरस पर निवेश और सकारात्मकता लाता है स्वर्ण

 धनतेरस भारत में दिवाली के पहले दिन मनाया जाता है। हिंदू मान्यताओं के अनुसार इस दिन सोना और चांदी खरीदना शुभ माना जाता है. इस बार धनतेरस 22 अक्टूबर यानी आज शनिवार को मनाया जा रहा है। भारत दुनिया में सोने और चांदी के सबसे बड़े उपभोक्ताओं में से एक है. सोना परंपरागत रूप से भारत में निवेश के सबसे सुरक्षित तरीकों में से एक माना जाता रहा है। मान्यता है कि इस धनतेरस पर सोने की खरीदारी करने से आसपास सकारात्मकता बढ़ती है।

धनतेरस पर लोग क्यों खरीदते हैं सोना-चांदी

धनतेरस दिवाली उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है. इस त्योहार को “धनत्रयोदशी” या “धन्वंतरि त्रयोदशी” भी कहा जाता है।  इस दिन, भक्तों द्वारा भगवान धन्वंतरि की पूजा की जाती है।

भगवान धन्वंतरि की पूजा की क्या है मान्यता

धन्वंतरि चिकित्सा के हिंदू देवता और भगवान विष्णु का अवतार हैं। पुराणों में उनका उल्लेख आयुर्वेद के देवता के रूप में मिलता है. भक्त धन्वंतरि से अपने और दूसरों के लिए विशेष रूप से धनतेरस या धन्वंतरि त्रयोदशी पर अच्छे स्वास्थ्य के लिए उनका आशीर्वाद लेने के लिए प्रार्थना करते हैं। यह भी माना जाता है कि भगवान धन्वंतरि समुद्र मंथन के दौरान अमृत के घड़े के साथ निकले थे, जब देवताओं और राक्षसों ने मेरु पर्वत को हिलाया था। कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान कुबेर और देवी लक्ष्मी का आशीर्वाद पाने के लिए लोग साल के इस शुभ समय के दौरान सोने में निवेश करते हैं, ताकि आने वाले वर्ष में भगवान से आशीर्वाद और जीवन में समृद्धि प्राप्त हो सके।

पुरुलिया में 900 मेगावाट की हाइड्रो पावर परियोजना में निवेश को इच्छुक है जापान

कोलकाता । मर्चेन्ट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा भारत एवं जापान के आर्थिक सम्बन्धों को लेकर एक परिचर्चा आयोजित की गयी। इस विशेष सत्र को कोलकाता में जापान के कौंसुल जनरल नाकागावा कोइची, जापान की कौंसुलेट जनरल एवं आर्थिक शोधकर्ता कस्तुरा किताबा एवं जापान के वरिष्ठ आर्थिक मामलों के अधिकारी अभिजीत भट्टाचार्य ने सम्बोधित किया। अपने सम्बोधन में कौंसुल जनरल नाकागावा कोइची ने कहा कि कोलकाता और जापान रणनीतिक सम्बन्धों के 70 साल पूरे हो रहे हैं। पिछले वित्त वर्ष में भारत एवं जापान का कुल व्यवसाय 12 बिलियन डॉलर था। भारत में जापान की 1439 पंजीकृत कम्पनियाँ हैं जिसमें से 27 पश्चिम बंगाल में हैं। उर्जा, परिवहन एवं पर्यावरण के क्षेत्र में दोनों देश काम कर रहे हैं। जापान की ओर से भारत में अगले 5 वर्षों में 5 ट्रिलियन येन का निजी निवेश होने की उम्मीद है। उन्होंने कहा कि जापान हरित उर्जा के क्षेत्र में साझीदारी में रुचि रखता है जिसमें ग्रीन हाइड्रोजन एवं इलेक्ट्रिक वाहनों का निर्माण शामिल है। जापान पुरुलिया में 900 मेगावाट की हाइड्रो पावर परियोजना में निवेश करना चाहता है। आधारभूत संरचना पर बात करते हुए नाकागावा ने कहा कि मुम्बई – अहमदाबाद हाई स्पीड रेलवे जापान की वित्तीय साझीदारी वाली महत्वपूर्ण परियोजना है। पश्चिम बंगाल में फूजी सॉऱ्ट न्यू टाउन में सेन्टर ऑफ एक्सीलेंस ला रहा है। जापान ने खड़गपुर एवं सिंगुर में एग्रो फार्मिंग क्षेत्र में भी वित्तीय सहायता दी है। 2017 में जापान की स्टार्ट अप कम्पनी टेरामोटा ने पर्यावरण अनुकूल ई रिक्शा को वित्तीय सहायता दी थी। सत्र में धन्यवाद एमएसएमई पर एमसीसीआई काउंसिल के चेयरमैन संजीव कुमार कोठारी ने दिया।

2030 तक 110 बिलियन टन होगी श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट की क्षमता

कोलकाता । मर्चेंट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री द्वारा हाल ही में एमसीसीआई लॉजिस्टिक कन्क्लेव 2022 आयोजित किया गया। इस कन्क्लेव का विषय लॉजिस्टिक्स बियॉन्ड बाउंड्रीज : रिशेपिंग लॉजिस्टिक्स सेक्टर था कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में बन्दरगाह, जल परिवहन केन्द्रीय राज्य मंत्री शांतनु ठाकुर उपस्थित थे। अपने सम्बोधन में उन्होंने कहा कि विश्व ने पीएलआई एवं राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीतियों को स्वीकार किया है। जल परिवहन इस मामले में बेहद किफायती विकल्प हैं। 2021 में आरम्भ हुआ प्रधानमंत्री गति – शक्ति नेशनल मास्टर प्लान आर्थिक विकास वृद्धि एवं स्थायी विकास का परिवर्तन लाने वाला प्रयास है। यह 7 इंजनों द्वारा संचालित है जिसमें रेलवे, सड़क, बंदरगाह, जलमार्ग, हवाई अड्डे, सार्वजनिक परिवहन और लॉजिस्टिक्स परिवहन माध्यम शामिल हैं । इस मौके पर उपस्थित एशियन डेवलपमेंट बैंक के डिप्टी कन्ट्री डायरेक्टर हो यून जियॉन्ग ने भारत सरकार के साथ पूर्वी तटीय क्षेत्रों में एशियन डेवलपमेंट बैंक के साथ आरम्भ की गयी योजनाओं पर बात की। श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट, कोलकाता के चेयरमैन पी. एल. हरानध ने पी.एम. गति शक्ति योजना और राष्ट्रीय लॉजिस्टिक्स नीतियों की सराहना की। उन्होंने तगा कि श्यामा प्रसाद मुखर्जी पोर्ट की क्षमता 87 मिलियन टन कारगो के वहन की है और यह अभी 60 मिलियन टन कारगो वहन करता है। 2030 तक यह क्षमता बढ़कर 110 बिलियन टन हो जाएगी। उन्होंने कहा कि 2400 करोड़ का निवेश होने की राह पर है और केओपीटी 2030 तक इस पर काम करने लगेगा। 4 हजार एकड़ लैंड बैंक को लेकर पोर्ट परियोजनाओं के लिए निजी क्षेत्रों के साथ काम करने पर विचार किया जा रहा है। स्वागत भाषण देते हुए एमसीसीआई के अध्यक्ष ऋषभ कोठारी ने कहा कि भारत में लॉजिस्टिक्स के क्षेत्र में तकनीक पर दूसरे देशों की तुलना में निवेश कम हो रहा है और इसे बढ़ाने की जरूरत है। एमसीसीआई के वरिष्ठ उपाध्यक्ष ललित बेरीवाला ने इस सन्दर्भ में घरेलू जरूरतों को पूरा करने पर जोर दिया।
उद्घाटन सत्र में धन्यवाद ज्ञापन एमसीसीआई की लॉजिस्टिक्स, शिपिंग, ट्रान्सपोर्ट एवं शिपिंग काउंसिल के चेयरमैन लवेश पोद्दार ने दिया।


 

ई नॉलेज सत्र में औद्योगिक नीतियों को लचीला बनाने पर जोर


कोलकाता । मर्चेन्ट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री (एमसीसीआई) ने हाल ही में फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट के डीजी एवं सीईओ डॉ. अजय सहाय के साथ एक वर्चुअल माध्यम पर ई नॉलेज सेशन आयोजित किया। इस अवसर एमसीसीआई के उपाध्यक्ष नमित बाजोरिया ने भारत को विश्व स्तर पर भारतीय व्यापार के 10 प्रतिशत की भागीदारी के लक्ष्य के सन्दर्भ में औद्योगिक नीतियों को लचीला बनाने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि पूर्वी एवं दक्षिण – पूर्वी देशों की तुलना में ग्बोबल वैल्यू चेन में भारतीय भागीदारी कम है। फियो के डीजी एवं सीईओ डॉ. अजय सहाय ने कहा कि मजबूत एवं स्थायी निर्यात के लिए मजबूत निर्माण की जरूरत है। उन्होंने विनिर्माण क्षेत्र में और अधिक एफडीआई की वकालत की। उत्पादों में नयापन और उसके लिए शोध की जरूरत है। धन्यवाद ज्ञापन विदेशी व्यापार से जुड़ी एमसीसीआई की परिषद के चेयरमैन महेश चन्द्र केयाल ने किया।

कोटक चेरी लाया भारत के शीर्ष फंड हाउसों के म्यूचुअल फंड बास्केट

मिलेगी एक क्लिक में कई म्यूचुअल फंड चुनने की सुविधा
कोलकाता । कोटक इन्वेस्टमेंट एडवाइजर्स लिमिटेड (“केआईएएल”) के कोटक चेरी ने अपने प्लेटफॉर्म पर भारत के शीर्ष म्यूचुअल फंड हाउस बास्केट की सुविधा आरम्भ की है। कोटक चेरी के सीईओ, श्रीकांत सुब्रमण्यम ने कहा, “हमने देखा कि निवेशकों की यात्रा उनकी प्राथमिकताओं के अनुसार सही योजनाओं को चुनने में स्पष्टता तक पहुंच से लेकर चुनौतियों से भरी हुई थी। हमारा अनुभव रहा है कि ज्यादातर निवेशक एक भी प्लान नहीं खरीदते हैं, लेकिन विविधता के लिए कई फंड खरीदना पसंद करते हैं। एमएफ बास्केट एक एएमसी द्वारा पेश की जाने वाली म्यूचुअल फंड योजनाओं का एक संयोजन है, जिसका उद्देश्य ऐसी एएमसी द्वारा दी जाने वाली योजनाओं के गुलदस्ते से सही योजना चुनने की परेशानी को कम करना है। ग्राहक कोटक चेरी प्लेटफॉर्म पर पेश किए जाने वाले इन एमएफ बास्केट में 1,000 रुपये से कम राशि के साथ निवेश शुरू कर सकते हैं।
कोटक चेरी पर पेश किए जाने वाले एमएफ बास्केट 
फॉरएवर पोर्टफोलियो: एक मिश्रित परिसंपत्ति पोर्टफोलियो जो इक्विटी, ऋण, सोना और चांदी का संयोजन है।
लार्ज कैप लीडर्स: भारत की सबसे बड़ी कंपनियों पर शुद्ध इक्विटी का खेल।
एक्टिव पैसिव कॉम्बो: एक लार्ज और एक मिड-कैप फंड का कॉम्बो।
कम अस्थिरता वाले म्यूचुअल फंड और उच्च गति वाले फंड का संयोजन।
स्टे देसी, गो ग्लोबल: एक फंड में घरेलू और वैश्विक कंपनियों में सर्वश्रेष्ठ।
फिक्स्ड इनकम बीटर: एएए रेटेड पीएसयू बॉन्ड और राज्य विकास ऋण (एसडीएल) फंड की एक विविध टोकरी जो पूंजी को संरक्षित करने में मदद करती है।

 


 

10 रुपये प्रति शेयर में 62.90 लाख इक्विटी शेयर ला रहा है द्रोनाचार्य एरियल
द्रोनचार्य एरियल इनोवेशन ने बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के साथ अपनी आरम्भिक पेशकश के लिए ड्राफ्ट रेड हियरिंग प्रॉस्पेक्टस (डीआरएचपी) फाइल किया है। कम्पनी 10 रुपये प्रति शेयर के हिसाब से 62.90 लाख इक्विटी शेयर लाने की योजना बना रही है। डीआरएसपी द्वारा प्रस्तावित इक्विटी शेयर बीएसई के एसएमई प्लेटफॉर्म पर सूचीबद्ध होते हैं।
द्रोनाचार्य एरियल इनोनेशन के डेटा सॉल्यूशन कम्पनी है जो मल्टी सेंसर ड्रोन सर्वे, ड्रोन की डेटा प्रोसेसिंग, ड्रोन डिलिवरी के उच्च कन्फिगरोशन हार्डवेयर के लिए का पूरा इको सिस्टम उपलब्ध करवाती है। प्रस्तावित शेयरों के माध्यम से कम्पनी ड्रोन एवं अन्य उपकरण खरीदेगी। 2017 में इसे प्रतीक श्रीवास्तव ने शुरू किया था। पुणे की यह कम्पनी डीजीसीए और आरपीटीओ सर्टिफाइड कम्पनी है। 6 माह में इसने 150 ड्रोन पायलटों को प्रशिक्षित किया है। जून 2022 में कम्पनी की कुल आय 308.96 लाख रुपये रही और शुद्ध लाभ 72.06 लाख रुपये का रहा।

शुभजिता दीपोत्सव – पार्क स्ट्रीट में खुला तनिष्क का मिआ स्टोर

कोलकाता । तनिष्क ने महानगर के पार्क स्ट्रीट में अपने ब्रांड मिआ का नया स्टोर खोला है। स्टोर का उद्घाटन अभिनेत्री ऋचा शर्मा और टाइटन कंपनी लिमिटेड के सीईओ (आभूषण) अजय चावला ने संयुक्त रूप से किया।
नए स्टोर के उद्घाटन के मौके पर मिआ तनिष्क के सभी ज्वेलरी उत्पादों पर 20% तक की छूट की घोषणा की है। ग्राहक 21 से 23 अक्टूबर 2022 तक इस आकर्षक छूट का लाभ उठा सकते हैं। इस स्टोर में फैशनेबल 14 कैरेट और 18 कैरेट आभूषणों का बड़ा संग्रह उपलब्ध है। इसके अलावा यहां चमकीले रंग के पत्थरों से लेकर चमकदार सोने, चमचमाते हीरे और चमकते चांदी तक के आकर्षक आभूषण उपलब्ध हैं। अपने ट्रेंडी और अत्याधुनिक फैशन के नवीनतम कलेक्शन संग्रह के लिए जाने जाने वाले ब्रांड के रूप में मिआ तनिष्क में झुमके, अंगूठियां, पेंडेंट, हार, चूड़ियाँ और कंगन की अनगिनत आकर्षक डिज़ाइन मौजूद हैं, जिन्हें बोल्ड, न्यूनतम और स्टाइलिश स्पर्श के साथ विशिष्ट रूप से बनाए गए हैं।
इस अवसर पर अभिनेत्री ऋचा शर्मा ने कहा, ‘मुझे विश्वास है कि अभी दिवाली के समय में ज्वेलरी की खरीदारी के लिए यह आज के हर पीढ़ी का वन स्टॉप डेस्टिनेशन बन सकता है। इस आउटलेट में आकर्षक ज्वेलरी डिजाइनों की एक विस्तृत श्रृंखला उपलब्ध है। इस मौके पर मिया तनिष्क के क्षेत्रीय व्यापार प्रबन्धक आलोक रंजन भी इस अवसर पर उपस्थित थे।