Wednesday, September 17, 2025
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कैंसर की दवाओं पर हजारों गुना मुनाफा कमा रहे अस्पताल – रिपोर्ट

225 की दवा 2600 में बिक रही
नयी दिल्ली । कैंसर जैसी गंभीर बीमारी अब आम बनती जा रही है। आप भी अपने आस-पास कई ऐसे लोगों को जानते होंगे, जिन्हें कैंसर है। भारत में कैंसर के मरीज काफी बढ़ रहे हैं। इस साल भारत में कैंसर के दर्ज मरीजों की संख्या 19 से 20 लाख रहने का अनुमान है। हालांकि, फिक्की एवं ईवाई की एक रिपोर्ट के अनुसार, कैंसर के मरीजों की वास्तविक संख्या रिपोर्ट हुए मामलों से 1.5 से 3 गुना अधिक हो सकती है। कैंसर जितना आम हुआ है, इसका इलाज उतना ही पहुंच से दूर होता जा रहा है। अगर मरीज गरीब परिवार से है, तो पहले तो पूरा इलाज ही नहीं मिल पाता। अगर इलाज कराया भी जाए, तो उस पर आने वाले खर्च से परिवार कई वर्षों के लिए कर्ज में डूब जाएगा।
पहुंच से दूर हो रहा निजी अस्पतालों में इलाज
बात निजी अस्पतालों की करें, तो वहां के खर्चे परिजनों की धड़कने बढ़ा देते हैं। कैंसर के महंगे इलाज के पीछे एक बड़ा कारण दवाओं की भारी-भरकम कीमते हैं। अस्पताल इन दवाओं को एमआरपी पर बेचकर भारी मार्जिन कमा रहे हैं। यह मार्जिन इतना है कि आप सुनकर चौंक जाएंगे। हिंदुस्तान की एक रिपोर्ट के अनुसार, निजी अस्पताल द्वारा बेची गई दवाओं पर ट्रेड मार्जिन 2,000 फीसदी से भी अधिक होता है। कई मामलों में यह 5,000 फीसदी तक भी होता है। यहां बताते चलें कि जो दवाएं आवश्यक दवाओं की लिस्ट में शामिल होती हैं, उनकी कीमतें सरकार ड्रग प्राइस कंट्रोल ऑर्डर (डीपीसीओ) के माध्यम से तय करती है।
जमकर फीस वसूल रहे अस्पताल
निजी अस्पताल जिस तरह से मरीजों से भारी-भरकम फीस वसूलते हैं, उससे कोई भी यह समझ सकता है कि वे जमकर मलाई लूट रहे हैं। एलायंस ऑफ डॉक्टर्स फॉर एथिकल हेल्थकेयर से जुड़े डॉ. जीएस ग्रेवाल ने दवाओं पर अस्पतालों एवं केमिस्ट को हासिल होने वाले ट्रेड मार्जिन को लेकर एनपीपीए को हाल में एक दस्तावेज सौंपा है। इस दस्तावेज में दो दर्जन दवाओं का ब्योरा दिया गया है। इन दवाओं की वास्तविक कीमत और एमआरपी में भारी अंतर है। निजी अस्पताल इन दवाओं को एमआरपी पर मरीजों को बेच रहे हैं और भारी मुनाफा कमा रहे हैं।
225 की दवा 2600 में बेच रहे
रिपोर्ट के अनुसार, जो दस्तावेज पेश किये गए हैं, वे दवाओं की वास्तविक कीमत और एमआरपी में 2,000 फीसदी तक का अंतर बता रहे हैं। जैसे- हेपेटाइटिस सी के इलाज में काम आने वाली दवा एल्बुमिन अस्पतालों को 3900 रुपये की पड़ती है। लेकिन इस दवा पर एमआरपी 6605 रुपये लिखी हुई है। अस्पताल मरीजों को एमआरपी पर ही यह दवा बेचते हैं। हेपेटाइटिस सी की ही दूसरी और भी दवाएं हैं, जिनमें अस्पताल भयंकर ट्रेड मार्जिन कमा रहे हैं। रेटलान इंजेक्शन अस्पताल को 225 रुपये में सप्लाई होता है और इसकी एमआरपी 2600 रुपये है। यह इंजेक्शन ब्लीडिंग रोकने में काम आता है। माइहेप ऑल की बात करें, तो यह अस्पतालों को 6800 रुपये में मिलती है। अस्पताल इस दवा को 17,500 रुपये एमआरपी पर बेचते हैं। माइहेप इंजेक्शन अस्पतालों को 2150 रुपये में मिलता है। इसकी एमआरपी 12000 रुपये है। मायडेक्ला जो अस्पतालों को 750 रुपये में सप्लाई होती है, उसकी एमआरपी 5000 रुपये है।
2000 फीसदी का मुनाफा
अस्पताल कई दवाओं पर 2,000 फीसदी का मुनाफा कमा रहे हैं। एनपीपीए को सौंपे दस्तावेज में बताया गया कि कैंसर में काम आने वाली जेमसेटाबीन 1जीएम को अस्पताल 900 रुपये में खरीदते हैं और 6597 रुपये में बेचते हैं। इसके अलावा अस्पतालों को 1350 रुपये में मिलने वाले एंटी कैंसर इंजेक्शन पीसिलिटैक्स 260 एमजी का एमआरपी 11946 रुपये है। इसी तरह ऑक्सीप्लाटीन 100 इंजेक्शन 1090 में खरीदा जाता है और 5210 रुपये एमआरपी पर बेचा जाता है। इसी तरह कई दूसरी दवाओं पर अस्पताल 2,000 फीसदी तक का मुनाफा कमा रहे हैं।

(साभार – नवभारत टाइम्स)

आधार बनवाए 10 साल हो गए? एक बार अपडेट करा लें

नयी दिल्‍ली । अगर आपने 10 साल से पहले आधार बनवाया था तो उसे अपडेट करा लें। भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण (यूआईडीएआई ) ने यह अपील की है। यूआईडीएआई ने उन लोगों से अपने दस्तावेजों एवं जानकारियों को अद्यतन (अपडेट) कराने का आग्रह किया है जिन्होंने अपना आधार दस साल से पहले बनवाया था और उसके बाद कभी अपडेट नहीं कराया है। यूआईडीएआई ने एक बयान में कहा कि सूचनाएं अद्यतन करने का काम ऑनलाइन या आधार केंद्रों पर जाकर दोनों तरीकों से किया जा सकता है। हालांकि उसने इसे अनिवार्य नहीं बताया है। उसने कहा, ‘ऐसे व्यक्ति जिन्होंने अपना आधार दस साल पहले बनवाया था एवं उसके बाद इन सालों में कभी अपडेट नहीं करवाया है, ऐसे आधार नंबर धारकों से दस्तावेज अपडेट करवाने का आग्रह किया जाता है।’
निकाय ने कहा कि यूआईडीएआइई ने इस संबंध में आधार धारकों को दस्तावेज अपडेट की सुविधा निर्धारित शुल्क के साथ प्रदान की है और आधार धारक व्यक्तिगत पहचान प्रमाण और पते के प्रमाण से जुड़े दस्तावेजों को आधार डाटा में अपडेट कर सकता है।
बयान में कहा गया है कि इन दस साल के दौरान, आधार संख्या किसी व्यक्ति की पहचान के प्रमाण के रूप में उभरी है और आधार संख्या का उपयोग विभिन्न सरकारी योजनाओं एवं सेवाओं का लाभ उठाने के लिए किया जा रहा है। यूआईडीएआइई ने कहा कि इन योजनाओं एवं सेवाओं का लाभ उठाने के लिए, लोगों को व्यक्तिगत नवीनतम विवरण से आधार डाटा को अपडेट रखना है ताकि आधार प्रमाणीकरण व सत्यापन में कोई असुविधा नहीं हो।
यूआईडीएआइई ने कहा कि इन योजनाओं एवं सेवाओं का लाभ उठाने के लिए, लोगों को व्यक्तिगत नवीनतम विवरण से आधार डाटा को अपडेट रखना है ताकि आधार प्रमाणीकरण व सत्यापन में कोई असुविधा नहीं हो।

विदेशी कंपनी की नौकरी का ऑफर ठुकराकर ड्रैगन फ्रूट्स की खेती से कमा रहे लाखों

कौशांबी । सिराथू तहसील के युवा किसान रवींद्र पांडेय ने खेती को मुनाफे का सौदा करके दिखाया है। कैक्टस प्रजाति के पौधे ड्रैगन फ्रूट्स की खेती ने किसान की जिंदगी बदल दी है। 62 हजार रुपये की लागत लगा कर युवा किसान मौजूदा समय में 4 लाख रुपये सालाना कमा रहे हैं। गणित विषय से स्नातक रवींद्र ने विदेशी कंपनियों के ऑफर छोड़ कृषि को अपना कॅरियर बना कर बेरोजगार युवाओं के लिए मिसाल बन गए है। टेगाई गांव निवासी सुरेश चंद्र पांडेय पेशे से किसान है, उनके 3 बेटे है। बड़ा बेटा प्रवीण कुमार नौसेना में सैनिक है।
रवींद्र कुमार ने स्नातक की पढ़ाई गणित विषय से कर मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने का सपना संजोया था। सबसे छोटा बेटा अवनीश पांडेय अभी प्रयागराज से पढ़ाई कर रहा है। रवींद्र पांडेय ने बताया कि बीएससी की पढ़ाई पूरी कर वह नौकरी की तैयारी कर रहे थे। इसी दौरान 7 साल पहले कृषि गोष्ठी में उनकी मुलाकात तत्कालीन डीएम अखंड प्रताप सिंह ने हुई। जिन्होंने उन्हें कैक्टस प्रजाति के पौधे ड्रैगन फ्रूट्स के बारे में बताया। पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर उसने 10 बिस्वा खेत में ड्रैगन फ्रूट्स की नर्सरी तैयार कराई। इसके बाद उनके जीवन में बदलाव का नया सवेरा लेकर आया। अब वह उन्नतशील खेती कर ड्रैगन फ्रूट्स और पौध बेच कर 4 लाख सालाना कमा रहे है।
विदेशी विशेषज्ञों से सीखा तरीका
रवींद्र पांडेय के मुताबिक पिता सुरेश चंद्र पांडेय के मदद से उन्होंने 62 हजार रुपये खर्च कर 400 पौध ड्रैगन फ्रूट्स की पौध रोपित की। पहले चरण के 2 वर्ष में रासायनिक खाद का प्रयोग करने के चलते पौध में अपेक्षा कृत फल नहीं आए, जिसको लेकर वह काफी निराश हुए। रवींद्र ने उसका हल खोजने के लिए इंटरनेट पर विदेशों में ड्रैगन फ्रूट्स की खेती करने वाले किसानों से संपर्क किया। जिन्होंने उन्हें खेत में रासायनिक खाद का प्रयोग बंद कर जैविक खाद का प्रयोग में लाने की सलाह दी। इसके प्रयोग के बाद उन्हें उम्मीद से अधिक अच्छे परिणाम मिले। मौजूदा समय में खेत में फल लगने का खरीददार इंतजार करते है। इसके अलावा ड्रैगन फ्रूट्स के पौधे गैर जनपद से आकर किसान खरीद कर ले जाते है, जो अच्छी आमदनी का जरिया है।
डेंगू के मरीज के लिए भी है ड्रैगन फ्रूट्स फायदेमंद
कृषि वैज्ञानिक मनोज सिंह ने बताया कि ड्रैगन फ्रूट्स में एंटीऑक्सीडेंट भरपूर मात्रा में होता है। इसके अलावा इसमें कई अन्य गुण जैसे फेनोलिक एसिड, फाइभर, फ्लेवोनोइड पाया जाता है, जो डायबिटीज को कंट्रोल करने में प्रभावी है। ड्रैगन फ्रूट्स डायबिटीज के साथ-साथ दिल को हेल्दी बनाए रखने में मदद करता है। डेंगू मरीज के लिए यह फल राम बाण औषधि के रूप के प्रयोग में लाइ जाती है।
रिपोर्ट – अशोक विश्‍वकर्मा
(साभार – नवभारत टाइम्स)

बांग्ला साहित्य और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर संगोष्ठी

कोलकाता । साहित्य अकादेमी द्वारा अकादेमी सभागार, कोलकाता में ‘‘बांग्ला साहित्य और भारतीय संग्राम’’ विषयक द्विदिवसीय संगोष्ठी आयोजित की गयी। संगोष्ठी का उद्घाटन नेताजी सुभाष मुक्त विश्वविद्यालय, कोलकाता के कुलपति प्रो. रंजन चक्रवर्ती द्वारा किया गया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद की प्रारंभिक अवधारणा और बांग्ला साहित्य पर इसके प्रभाव की चर्चा करते हुए 1920-30 के दौरान प्रकाशित बांग्ला साहित्य में उसके चित्रण को संदर्भित किया। संगोष्ठी का बीज भाषण करते हुए प्रख्यात विद्वान श्री शमीक बंद्योपाध्याय ने स्वतंत्रता की अवधारणा, संदर्भ और महत्ता पर विचार करते हुए बंकिमचंद्र के ‘बंगदर्शन’, रवींद्रनाथ ठाकुर के ‘नैवेद्य’ और काजी नजरूल इस्लाम के ‘सर्वहारा’ को संदर्भित किया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रख्यात साहित्यकार और अकादेमी के महत्तर सदस्य श्री शीर्षेन्दु मुखोपाध्याय ने कहा कि साहित्य के प्रभाव की बात करते हुए हमें यह भी याद रखने की जरूरत है कि आखिर साहित्य पढ़नेवालों की संख्या कितनी थी। आरंभ में औपचारिक स्वागत करते हुए अकादेमी के सचिव डॉ. के. श्रीनिवासराव ने रंगलाल से आरंभ करके भारतीय स्वतंत्रता विषयक अभिव्यक्तियों को मुखर करनेवाले साहित्यकारों का अद्यतन उल्लेख किया। संगोष्ठी में आरंभिक वक्तव्य रखते हुए अकादेमी में बांग्ला भाषा परामर्श मंडल के संयोजक डॉ. सुबोध सरकार ने रवींद्रनाथ ठाकुर के ‘घरेबाइरे’ और नजरूल इस्लाम की ‘विद्रोही’ कविता तथा रवींद्रनाथ एवं गाँधी को संदर्भित करते हुए अपनी बात रखी। सत्र का संचालन करते हुए अकादेमी के क्षेत्रीय सचिव डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश ने सत्रांत तें औपचारिक धन्यवाद ज्ञापन किया।

संगोष्ठी का प्रथम सत्र ‘बांग्ला साहित्य और स्वतंत्रता संग्राम: अभिव्यक्ति एवं स्वीकार्यता’ पर केंद्रित था। इस सत्र में प्रो. अचिंत्य विश्वास, डॉ. पायल बसु और प्रो. सुमिता चक्रवर्ती ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। संगोष्ठी का द्वितीय सत्र ‘1947: तत्कालीन बांग्ला साहित्यकार, चिंतक एवं स्वतंत्रता संग्रामी: पारस्परिक संबंध’ विषय पर केंद्रित था, जिसके अंतर्गत सर्वश्री अभ्र घोष, बारिदबरण घोष एवं गौतम घोषाल ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। संगोष्ठी का तृतीय सत्र ‘1947 के पूर्ववर्ती बांग्ला साहित्य में स्वतंत्रता संघर्ष का चित्रण’ विषय पर केंद्रित था, जिसमें श्रीमती अनुराधा राय, श्री देवेश चट्टोपाध्याय और श्रीमती उर्मि रायचौधुरी ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। सत्रों का संचालन अकादेमी के कार्यक्रम अधिकारी डॉ. मिहिर कुमार साहू ने किया। प्रथम दिन की अंतिम प्रस्तुति के रूप में फिल्म्स डिविजन, भारत सरकार के सौजन्य से ‘इंडिया इंडिपेंडेंट’ शीर्षक वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया।
साहित्य अकादेमी द्वारा अकादेमी सभागार, कोलकाता में ‘‘बांग्ला साहित्य और भारतीय संग्राम’’ विषयक द्विदिवसीय संगोष्ठी के अंतिम दिन समापन भाषण देते हुए विद्यासागर विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. शिवाजी प्रतिम बसु ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के संदर्भ में  राष्ट्रीयता की अवधारणा और बांग्ला साहित्य पर इसके प्रभाव पर अपने विचार प्रस्तुत किए। उन्होंने कहा कि  बांग्ला साहित्य का विकास प्रति-उपनिवेशवादी राष्ट्रीयता के समय में हुआ। उन्होंने कहा कि बंकिमचंद्र ने जिस राष्ट्रवाद की नींव रखी, उसे हिंदू राष्ट्रवाद के नाम से जाना जाता है, जबकि रवींद्रनाथ ठाकुर ने राष्ट्रवाद के प्रचलित सिद्धांत पर सवाल उठाए। इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो. तपोधीर भट्टाचार्य ने राष्ट्रवादी बांग्ला साहित्य का आधुनिक दृष्टि से मूल्यांकन प्रस्तुत किया। इस अवसर पर समाहार वक्तव्य देते हुए डॉ. सुबोध सरकार ने स्वतंत्रता के विभिन्न स्वरूपों की चर्चा की। इस सत्र का संचालन अकादेमी के क्षेत्रीय सचिव डॉ. देवेंद्र कुमार देवेश ने किया।
समापन सत्र के पूर्व आयोजित संगोष्ठी के पाँचवें सत्र में श्री अशोक मुखोपाध्याय, श्री चंदन सेन और प्रो. गोपा दत्त भौमिक ने ‘1947 के बाद के बांग्ला साहित्य में चित्रित स्वतंत्रता संघर्ष’ विषयक अपने आलेख प्रस्तुत किए। छठा सत्र ‘साहित्य: हथियार अथवा दर्पण’ विषय पर केंद्रित था। इस सत्र में श्री अशोक कुमार गांगुली, प्रो. इप्शिता चंदा एवं प्रो. समर्पिता मित्र ने अपने आलेख प्रस्तुत किए। इन सत्रों का संचालन डॉ. मिहिर कुमार साहु ने किया। संगोष्ठी की अंतिम प्रस्तुति के रूप में फिल्म्स डिविजन, भारत सरकार के सौजन्य से ‘इंडिया विंस फ्रीडम’ शीर्षक वृत्तचित्र का प्रदर्शन किया गया।

दिवाली पर ‘संदूक’ प्रदर्शनी-सह-बिक्री आरम्भ

कोलकाता । त्योहारी सीजन को देखते हुए रोटरी क्लब ऑफ कलकत्ता महानगर, संदूक द्वारा एक मेगा दिवाली बोनान्ज़ा, लाइफस्टाइल उत्पादों की एक प्रदर्शनी-सह-बिक्री का आयोजन किया गया। इस प्रदर्शनी में फैशन का सबसे अच्छा प्रदर्शन, दिवाली सजावट, गृह सज्जा देखने को मिली। प्रदर्शनी का उद्घाटन आइस स्केटिंग रिंक में किया गया। इस अवसर पर सेलिब्रिटी जोड़ी-बिक्रम घोष और जया सील घोष उपस्थित रहे। वहीं रोटरी क्लब ऑफ कलकत्ता महानगर के अध्यक्ष मनीष बियानी और कोषाध्यक्ष संजय बालोटिया भी उपस्थित रहे। जयपुर, दिल्ली, लखनऊ, बैंगलोर जैसे शहरों से पूरे भारत में चुने गए प्रदर्शकों से मर्चेंडाइज कोलकाता वासियों के लिए उपलब्ध है। इनमें से कुछ उत्पादों में विशेष उत्सव और दुल्हन के वस्त्र, हीरे, मीना, कुंदन और पोल्की आभूषण, अद्वितीय घरेलू सजावट आइटम, दस्तकारी कलाकृतियां, पर्स, बैग, फैशन के सामान, टेबल वेयर और मिट्टी के बर्तन शामिल हैं और दिवाली की सजावट और उपहार देने के समान भी हैं। रमणीय और सौंदर्य की दृष्टि से मनभावन वातावरण प्रदान करने के लिए, मेले के मुख्य द्वार, फ़ोयर और सभी स्टूडियो और स्टालों को विशेष रूप से सजाया गया है। तीन दिवसीय आयोजन की आय का उपयोग रोटरी क्लब ऑफ कलकत्ता महानगर की विभिन्न धर्मार्थ गतिविधियों के लिए किया जाएगा, जिसमें जरूरतमंद बच्चों के लिए मुफ्त हृदय शल्य चिकित्सा, इसके नेत्र अस्पताल हरि चरण गर्ग रोटरी महानगर नेत्रालय, रक्तदान हेल्पलाइन, आपदा राहत में वंचितों के लिए मुफ्त मोतियाबिंद सर्जरी , छात्रवृत्ति और डायलिसिस केंद्र शामिल है।

लक्ष्मी वहीं रहती हैं जहाँ सृजन भी हो और विवेक भी

उत्सव चल रहे हैं…दुर्गा पूजा के बाद दिवाली की तैयारी… माँ लक्ष्मी के स्वागत को सब तैयार हैं। भव्यता…ताम -झाम…ठाठ – बाट…दिवाली ऐसा त्योहार है जो इन सबका मौका देता है। लक्ष्मी की पूजा करते हुए हम सभी चाहते हैं कि घर में उनका वास हो मगर लक्ष्मी का सही अर्थ और सही सन्देश हम नहीं समझते। लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ घर की लक्ष्मी नहीं है। लक्ष्मी का अर्थ सिर्फ गृहिणी होना भर नहीं है बल्कि हर वह स्त्री लक्ष्मी है जो घर से लेकर देश की अर्थव्यवस्था को आगे ले जाने में अपनी भूमिका किसी न किसी तरीके से अपनाती हैं। पता है समस्या क्या है, लक्ष्मी चाहिए सबको मगर खुद लक्ष्मी क्या चाहती हैं, यह कोई नहीं समझना चाहता। राम से लेकर रावण तक, कुबेर से लेकर दुर्योधन तक.हर कोई लक्ष्मी पर अधिकार जताना चाहता है मगर लक्ष्मी चंचला हैं…वह टिकती वहीं हैं…जहाँ उनकी बहन सरस्वती हों…..जहाँ सृजन हो…कोई गुण हो..जहाँ लक्ष्मी और सरस्वती का वास होता है..वहाँ महालक्ष्मी रहती हैं। कहने का मतलब यह कि अपनी लक्ष्मी को सिर्फ मोम की गुड़िया मत बनाइए बल्कि उसे मजबूत, आत्मनिर्भर और सृजनात्मक व्यक्तित्व बनाइए। धन की देवी विवेक और बुद्धि दें…सबका जीवन मंगल करें…यही शुभकामना है…शुभ उत्सव

 

 

 

 

 

 

 

 

 

आदिवासियों के उत्थान में जुटी प्रोफेसर द्वारा स्थापित संस्था बनी सामाजिक प्रयोगशाला

हेमा वैष्णवी 
डॉ. प्रबोध कुमार भौमिक ने विदिशा की स्थापना की, जिसे 100 लोढ़ा परिवार अब घर कहते हैं

आज शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अधिकांश लोगों के पास बुनियादी सुविधाएं और अवसर समान रूप से उपलब्ध हैं, लेकिन जब बुनियादी सुविधाओं की बात आती है तो आदिवासी लोग ऐसा नहीं कह सकते। वहाँ अभी भी खानाबदोश जनजातियाँ और समुदाय मौजूद हैं जो निराश्रित जीवन जीते हैं क्योंकि वर्तमान समाज इन लोगों और उनके जीने के तरीके को समझने में विफल रहता है।
अभी भी ऐसी जनजातियाँ हैं जो अपनी दुनिया में रहना पसन्द करती हैं और बाहरी दुनिया में आने से डरती हैं। इनको सामने लाना, इन समुदायों के सतत उत्थान की दिशा में काम करना समय की मांग है और यह काम शुरू किया प्रो. प्रबोध कुमार भौमिक ने। पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले में वे आदिवासियों के लिए काम करते रहे।
प्रो. प्रबोध ने 1949 में बंगबासी कॉलेज से एन्थ्रोपोलॉजी यानी नृविज्ञान में बीएससी (ऑनर्स) किया, और फिर 1951 में कलकत्ता विश्वविद्यालय से इसी विषय में एमएससी किया। पश्चिम बंगाल के लोधा समुदाय के सामाजिक – आर्थिक जीवन पर पीएचडी पूरी करने के लिए उनके बीच गये।
अपने शोध के माध्यम से उन्होंने बदलाव लाने की मुहिम आरम्भ की और समाज सेवक संघ और उसके बाद 1955 में इंस्टीट्यूट फॉर द सोशल रिसर्च एंड अप्लाइड एन्थ्रोपोलॉजी स्थापित किया जो विदिशा के नाम से जाना जाता था। इसकी स्थापना लोधा समुदाय के विकास एवं उनकी आपराधिक प्रवृत्तियों को बदलने के लिए की गयी थी।
प्रो. प्रबोध ने अपना जीवन आर्थिक सुधार, शैक्षिक प्रगति और जनजातियों के स्थायी जीवन, और आदिवासी लोगों के उत्थान, विशेष रूप से क्षेत्र के लोधाओं के उत्थान के लिए समर्पित कर दिया । उनके निधन के बाद 2003 में, डॉ. प्रदीप कुमार भौमिक, एसोसिएट प्रोफेसर, ग्रामीण विकास केंद्र, आईआईटी, खड़गपुर, प्रो. प्रहोद के निधन के बाद, मानद सचिव के स्थान पर भरे गए।
लगभग छह दशकों की यात्रा के बाद, विदिशा अब लोढ़ा, संताल, मुंडा, महली, कोरा और भूमिज जनजातियों सहित लगभग सौ आदिवासी परिवारों का घर है और यहाँ उनको आत्मनिर्भर बनाने के लिए कई प्रकार के प्रशिक्षण दिये जा रहे हैं। लोधा ही नहीं बल्कि संथाल, मुंडा, महाली, कोरा एवं भूमिज समुदाय के लोग भी इससे लाभान्वित हो रहे हैं। डॉ. प्रदीप के अनुसार यह केन्द्र एक सामाजिक प्रयोगशाला है।
प्रो. प्रबोध ने सरकार के साथ लोधा समुदाय के 20 परिवारों को दहारपुर कृषियोग्य भूमि के वितरण में शामिल थे। खेती और टसर उत्पाद जैसे कई क्षेत्रों में प्रशिक्षण कार्यक्रम, सेमिनार, कार्यशालाएं आयोजित की जाती हैं। एक बायो गैस यूनिट और वर्मीकम्पोस्ट प्लांट स्थापित कर युवाओं को आत्मनिर्भर बनाया गया। 2006 -08 में आदिवासी महिलाओं को रोजगारपरक प्रशिक्षण देते हुए बाटिक प्रिंट का काम सिखाया गया। 90 आदिवासी महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया। आदिवासी संस्कृति को संरक्षित करने के लिए भी विदिशा काम कर रहा है।
विदिशा ने एक इको म्यूजियम और प्रबोध कुमार भौमिक मेमोरियल लाइब्रेरी नामक पुस्तकालय स्थापित किया है। विदिशा  पिछले 37 साल से समाज विज्ञान पर एक जरनल मेन एंड लाइफ प्रकाशित कर रहा है। विदिशा हर साल नवान्न उत्सव आयोजित करता है जिसमें आदिवासी समुदाय सांस्कृतिक कलाएं एवं नृत्य प्रदर्शित किये जाते हैं। अब यह एन्थ्रोपोलॉजी, ग्रामीण विकास और सोशियोलॉजी के विद्यार्थियों के लिए शोध केन्द्र बन गया है।

(साभार – योर स्टोरी हिन्दी)

पति भी जबरन यौन संबंध बनाए तो वो रेप ही है – सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली । यदि कोई महिला विवाहित होने के बावजूद अपनी मर्जी के बगैर गर्भवती होती है तो मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेंसी  एक्‍ट के अंतर्गत इसे दुष्कर्म ही माना जाएगा। किसी विवाहित महिला को उसकी सहमति के बगैर छूना और उसके साथ यौन संबंध बनाना अपराध की श्रेणी में आता है, चाहे ऐसा करने वाला उसका विवाहित पति ही क्‍यों न हो। हम गर्भपात के अधिकार को सिर्फ विवाहित महिलाओं तक ही सीमित नहीं रख सकते। गर्भवती होने पर बच्‍चे को जन्‍म देना है या नहीं, यह अधिकार पूरी तरह सिर्फ स्‍त्री का है। यह स्‍त्री की स्‍वायत्ता और उसकी देह पर उसके संपूर्ण एकाधिकार का मामला है। ऊपर लिखी सारी बातें गुरुवार को एक केस के संबंध में फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट न कही हैं। जस्टिस डीवीई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने अबॉर्शन से जुड़े एक केस पर फैसला सुनाते हुए मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ़ प्रेग्नेंसी (एमटीपी) संशोधन अधिनियम, 2021 के प्रावधानों की व्याख्या करते हुए उपरोक्‍त बातें कहीं

।हालांकि भारत में अभी भी मैरिटल रेप कानूनन अपराध नहीं है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट की यह टिप्‍पणी इस विषय पर लगातार उठाए जा रहे सवालों और सुप्रीम कोर्ट में दायर की जा रही याचिकाओं का स्‍पष्‍ट जवाब तो है। पीठ में जस्टिस चंद्रचूड़ के अलावा एएस बोपन्‍ना और जेबी पारदीवाला भी शामिल थे। तीन जजों की पीठ ने एकमत से ये फैसला सुनाया. सुप्रीम कोर्ट एक 25 साल की अविवाहित लड़की की याचिका पर सुनवाई कर रहा था। लड़की ने दिल्‍ली हाईकोर्ट में अपनी 24 हफ्ते की प्रेग्‍नेंसी को टर्मिनेट करने की अनुमति के लिए याचिका दायर की थी, जिसे हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया था। मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्‍नेंसी एक्‍ट में 2021 में हुए संशोधन के तहत गर्भपात करवाने की अवधि को बढ़ाकर 24 हफ्ते कर दिया गया था, लेकिन मौजूदा प्रावधानों के तहत यह अधिकार सिर्फ तलाकशुदा, विधवा और कुछ अन्‍य श्रेणी की महिलाओं के लिए ही है। अविवाहित सिंगल महिलाओं के लिए अभी भी इस कानून में गर्भपात की अवधि 20 सप्‍ताह है, जिसे उक्‍त महिला ने पहले हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में सुनौती दी।

इस केस पर सुनवाई करते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा, “रेप का अर्थ है बिना आपसी सहमति के यौन संबंध बनाना और विवाहित महिला भी रेप की इस परिभाषा के दायरे में आ सकती है। करीबी पार्टनर के द्वारा की जाने वाली हिंसा हमारे समाज का एक सच है। कोई भी प्रेग्‍नेंसी जो सह‍मति के विरुद्ध जबरन सेक्‍स के कारण हुई हो, वह रेप है।” भारतीय संविधान की धारा 375 में रेप को परिभाषित किया गया है, लेकिन रेप की इस परिभाषा के दायरे में मैरिटल रेप नहीं आता। यदि विवाह संस्‍था के भीतर कोई पुरुष अपनी पत्‍नी के साथ बलपूर्वक जबर्दस्‍ती करता है और उसकी इच्‍छा के विरुद्ध संबंध बनाता है तो वह महिला आईपीसी की किसी धारा के अंतर्गत रेप का मुकदमा दायर नहीं कर सकती। इसी साल दिल्‍ली हाईकोर्ट में मैरिटल रेप पर दायर की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए दोनों जजों की राय बिलकुल भिन्‍न थी। याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दायर करते हुए आईपीसी (भारतीय दंड संहिता) की धारा 375 के तहत मैरिटल रेप को अपवाद माने जाने को संवैधानिक रूप से चुनौती दी थी। सुनवाई के दौरान एक जज का मानना था कि विवाह के भीतर भी मर्जी के बगैर जबर्दस्‍ती संबंध बनाना रेप के दायरे में आता है और दूसरे जज का कहना था कि विवाह के भीतर बन रहे संबंधों को रेप के दायरे से अलग रखा जाना चाहिए। केंद्र सरकार ने भी 2017 में हाईकोर्ट के जवाब मांगने पर कहा था कि मैरिटल रेप को कानूनन अपराध के दायरे में रखने का नकारात्‍मक असर विवाह संस्‍था पर पड़ेगा। दुनिया के 150 देशों में रेप कानून के मुताबिक में मैरिटल रेप अपराध के दायरे में आता है और उसके लिए वैसी ही सजा का प्रावधान है, जो रेप के लिए है। दुनिया के 24 देशों में मैरिटल रेप को लेकर कोई स्‍पष्‍ट कानून नहीं है. 19 देशों ऐसे हैं, जहां मैरिटल रेप कानून जुर्म नहीं है।  इथियोपिया, इंडोनेशिया, ब्रूनेई, जॉर्डन, म्‍यांमार, तंजानिया, फिलिस्‍तीन, श्रीलंका, ईरान, ईराक, सीरिया, जमैका, ओमान, जॉर्डन और नाइजीरिया जैसे देश उन्‍हीं 19 देशों की फेहरिस्‍त में शामिल हैं। जहां विवाह के भीतर पति के द्वारा की जा रही जबर्दस्‍ती किसी यौन अपराध की श्रेणी में नहीं आती. दुर्भाग्‍य से भारत भी दुनिया के उन 19 देशों की सूची में शामिल है।

त्वचा को ध्यान में रखकर परिधान चुनें पुरुष

आमतौर पर बेहतरीन लुक पाने के लिए महिलाओं के पास परिधान से लेकर मेकअप तक कई विकल्प मौजूद रहते हैं। पुरुष अक्सर स्मार्ट दिखने के लिए कपड़ों पर ही ज्यादा फोकस करते हैं।
वहीं अधिकतर पुरुष फैशन के अनुसार ही परिधान चुनते हैं। हालांकि जरूरी नहीं है कि फैशन में मौजूद हर ड्रेस आप की करेगी. ऐसे में व्यक्तित्व पर फबेगी। अपनी त्वचा के मुताबिक परिधान चुन सकते हैं।
दरअसल, ज्यादातर पुरुष अपने त्वचा को नजरअंदाज करके फैशन ट्रेंड को फॉलो करते हैं। त्वचा के अनुसार आप इस तरह के कपड़े पहन सकते हैं –
गेहुंआ रंग
गेहुंआ रंग वाले पुरुषों के लिए ब्राउन, टैन, खाकी, पीला, ग्रे, नारंगी, नेवी ब्लू और हरे कलर के वस्त्र सही रहेंगे। गेहुंआ रंग के पुरुषों पर सुनहरे रंग के कपड़े और आभूषण भी अच्छे लगेंगे।
सांवला रंग
अगर आपका रंग सांवला है तो आप मटमैला, क्रीम, ब्लू, खाकी, ग्रे, ऑरेंज, लाल, मरून, गुलाबी और गहरे पर्पल रंग के कपड़े आजमा सकते हैं। सांवले पुरुषों को पीला और हरे रंग के परिधान पहनने से बचना चाहिए।
गोरा रंग
गोरे पुरुषों पर अमूमन सारे रंग अच्छे लगते हैं मगर नीला, हरा, गुलाबी और पर्पल और भी अच्छे लगेंगे। इसके गहरा नीला और लाल रंग भी गोरे रंग के पुरुषों पर काफी जंचता है।
फुटवियर का चुनाव
वैसे तो त्वचा के रंग का फुटवियर से कोई लेना-देना नहीं है. लेकिन परफेक्ट लुक पाने के लिए ड्रेस से मैचिंग फुटवियर पहनना भी जरूरी होता है। ऐसे में आप अपनी सुविधा और ओकेजन के अनुसार स्लीपर, शूज, लोफर, स्नीकर जैसे फुटवियर पहन सकते हैं।

ऐसे साफ करें काले-गंदे चूल्हे हो या फिर लोहे की कढ़ाई

घरों में दिवाली की सफाई होना शुरू हो गई है। ऐसे में किचन का कैबिनेट हो या फिर पुराने बर्तन सभी लोग इस दौरान गंदी चीजों को साफ कर रहे हैं। किचन में स्टोव खाना पकाने के लिए इस्तेमाल किया जाता है।
ऐसे में कई बार इस पर खाना गिर जाता है और फिर चूल्हा बूरी तरह से गंदा हो जाता है। जिसे साफ करना काफी मुश्किल होता है। वहीं कुछ चीजों को लोहे के बर्तन में पकाया जाता है और इसे भी साफ करना डिफिकल्ट है। ऐसे में दोनों चीजों की चमक वापस लाने के लिए आप कुछ हैक्स को अपना सकते हैं।

गंदा स्टोव साफ करने के तरीके
इसे साफ करने के लिए आपको चाहिए बेकिंग सोडा और विनेगर। इसके लिए बेकिंग सोडा में विनेगर को मिक्स करें और एक पेस्ट तैयार करें। अच्छे से जब पेस्ट बन जाए तो इसे स्टोव पर स्प्रेड करें। कुछ देर रुकें और फिर स्क्रबर की मदद से इसे साफ करें। आपको इसे हल्के हाथों से ही रगड़ना है। अच्छे से स्क्रब हो जाने के बाद इसे गीले कपड़े से साफ करें। आप देखेंगे की स्टोव पहले से ज्यादा चमक गया है।
लोहे की कढ़ाई कैसे साफ करें
लोहे की कढ़ाई में अक्सर जंग लग जाती है। ऐसे में इसको साफ करने के लिए आप क्लीनिंग हैक को अपना सकते हैं। इसके लिए सबसे पहले पैन या कढ़ाई को अच्छे से साफ करें और फिर इसे कपड़े से पोंछ कर सुखा लें। अब इसमें तेल डालें और इसे कपड़े की मदद से पूरी तरफ करें। तेल को अच्छे से सब तरफ लगाएं।ऐसा करने पर आप बर्तनों को जंग लगने से बचा सकते हैं।