Tuesday, September 16, 2025
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50 साल में पूरी की पीएचडी! मिलिए 76 साल के विद्यार्थी से

पत्‍नी और पोती के सामने मिली उपाधि

नयी दिल्‍ली । कुछ करने की इच्‍छा हो तो उम्र कोई बाधा नहीं है। निक एक्‍सटेन इसका जीता-जागता उदाहरण हैं। वह 76 साल के हो चुके हैं। 1970 में वह पीएचडी में एनरोल हुए थे। 50 साल बाद उन्‍होंने इसे पूरा किया है। 14 फरवरी को उन्‍हें डॉक्‍टर ऑफ फिलॉसफी (पीएचडी) की उपाधि से नवाजा गया। एक्‍सटेन को अपनी पत्‍नी क्‍लेयर और 11 साल की पोती फ्रेया के सामने यह सम्‍मान मिला। 1970 में एक्‍सटेन को पिट्सबर्ग यूनिवर्सिटी में मैथमैटिकल सोशॉलजी से पीएचडी करने के लिए फुलब्राइट स्‍कॉलरशिप मिली थी। लेकिन, वह पीएचडी पूरी किए बिना 5 साल बाद ब्रिटेन लौट गए। अब यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिसल ने उन्हें डॉक्‍ट्रेट की डिग्री से नवाजा है।
एक्‍सटेन के नाम के आगे अब डॉक्‍टर लग चुका है। जब उन्‍हें डॉक्‍ट्रेट की डिग्री से नवाजा गया तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था। कई साल पहले उनकी यह चाहत पूरी हो गई होती। लेकिन, ऐसा नहीं हो सका। फिर भी उन्‍होंने इस ख्‍वाहिश को मन में जिंदा रखा। डॉ एक्‍सटेन ने ब्रिसल यूनिवर्सिटी से फिलॉसफी में एमए किया। तब उनकी उम्र 69 साल थी। फिर उन्‍होंने इसी विश्‍वविद्यालय से फिलॉसफी में पीएचडी की। 75 साल की उम्र में पिछले साल यह पूरी हुई। 14 फरवरी को यूनिवर्सिटी के दीक्षांत समारोह में उन्‍हें उपाधि दी गई।
डॉ न‍िक एक्‍सटेन ने क्‍या कहा?
ब्रिसल यूनिवर्सिटी ने डॉक्‍टर एक्‍सटेन का एक बयान जारी किया है। इसमें उन्‍होंने कहा कि कुछ समस्‍याएं बहुत बड़ी होती हैं जो जिंदगी का काफी समय ले लेती हैं। इन्‍हें समझना आसान नहीं होता है। काफी सोच-विचार की जरूरत पड़ती है। इसे समझने में मुझे 50 साल लग गए। एक्‍सटेन की रिसर्च की नींव में वो आइडिया हैं जो पांच दशक पहले अमेरिका में काम करते हुए उन्‍होंने महसूस किए। यह मानव व्‍यवहार को समझने के लिए नई थ्‍योरी है जो हर एक व्‍यक्ति रखता है। एक्‍सटेन कहते हैं कि इसमें बिहेवियर साइकॉलजी के नजरिये को बदलने की क्षमता है।
साथी छात्रों का जताया आभार
डॉ निक एक्‍सटेन ने 50 साल बाद पीएचडी पूरी करने पर ब्रिसल यूनिवर्सिटी और साथी छात्रों का आभार जताया। उन्‍होंने कहा कि उनके साथी छात्र काफी कम उम्र के थे। लेकिन, उन्‍होंने कभी निक को उम्र का एहसास नहीं होने दिया। इन युवा छात्रों के पास अपार आइडिया हैं। उन्‍हें इन साथियों से बात करना बहुत पसंद है। डॉ निक एक्‍सटेन अभी सोमरसेट के वेल्‍स में अपनी पत्‍नी के साथ रहते हैं। उनके दो बच्‍चे और चार पोती-पोते हैं।
निक एक्‍सेटन के गाइड प्रोफेसर समीर ओकाशा ने कहा कि उन्‍हें पीएचडी करते हुए देखना बेहद शानदार था। यह उनके लिए भी बिल्‍कुल अलग तरह का अनुभव था। ओरिजनल पीएचडी शुरू करने के बाद इसे पूरा करने में उन्‍होंने आधी सदी लगाई। यह उनके जज्‍बे और चाहत को दिखाता है। उनकी जगह शायद कोई और होता तो काफी पहले इस चाहत को छोड़ चुका होता।

नील मोहन बने यूट्यूब के नये सीईओ

नयी दिल्ली । दुनिया की सबसे पॉपुलर वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म यूट्यूब के नए सीईओ का ऐलान हो गया है। यूट्यूब की पैरेंट कंपनी अल्फाबेट इंक ने नए सीईओ के नाम की घोषणा की। कंपनी की पूर्व सीईओ सुसान वोज्स्की के इस्तीफे के बाद भारतीय मूल के अमेरिकी नागरिक नील मोहन को ये जिम्मेदारी सौंपी गई है। आपको बता दें कि नील मोहन यूट्यूब के पहले ऐसे कर्मचारी हैं, जिन्हें प्रमोशन के बाद कंपनी के सीईओ की कमान सौंपी गई है।
कौन हैं नील मोहन
भारतीय मूल के नील मोहन यूट्यूब के नए सीईओ और वाइस प्रेसिडेंट हैं। साल 2008 में नील यूट्यूब के साथ जुड़े थे। साल 2013 में कंपनी ने उन्हें 544 करोड़ रुपये का बोनस दिया था। यूट्यूब की मूल कंपनी अल्फाबेट की सीईओ सुंदर पिचाई भी भारतवंशी है। उन्होंने साल 2015 में चीफ प्रोडक्ट ऑफिसर की जिम्मेदारी मिली। उनके काम को देखते हुए उन्हें शुरुआत से ही वोज्स्की का उत्तराधिकारी माना जा रहा था। उनके भीतर लीडरशिप क्वालिटी से वोज्स्की प्रभावित थी। नील मोहन ने स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की है। उन्होंने अपने करियर की शुरुआत ग्लोरफाइड टेक्निकल सपोर्ट से की थी। उन्होंने एसेंचर में सीनियर एनालिस्ट के पद पर काम किया है। इसके अलावा उन्होंने डबलक्लिक इंक में 3 सालों तक कीम किया। इसके बाद उन्होंने करीब ढाई साल वाइस प्रेसिडेंट बिजनेस ऑपरेशन की जिम्मेदारी संभाली। उनके पास माइक्रोसॉफ्ट में काम का भी अनुभव है। साल 2008 में गूगल ने डबलक्लिक का अधिग्रहण कर लिया, जिसके बाद नील गूगल में शामिल हो गए।
वोज्स्की ने गैरेज से की थी कंपनी की शुरूआत
54 साल की सुसान वोज्स्की ने अपने ध्यान देने के लिए पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने परिवार, स्वास्थ्य और निजी जीवन पर ध्यान देने के लिए यूट्यूब पर अपने सफर को विराम दे दिया। साल 2014 में उन्होंने यूट्यूब के सीईओ की जिम्मेदारी संभाली। वोज्स्की ने 25 साल पहले अपने गैरेज से इस कंपनी की शुरूआत की थी। आज यूट्यूब सबसे बड़ा और लोकप्रिय वीडियो स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म बन गया है।

विदा हुए बापू की हत्या के अंतिम चश्मदीद रहे ‘मदान साहब’

नयी दिल्ली । के. डी. मदान 30 जनवरी 1948 को भी 5, अल्बुकर्क रोड (अब 5, तीस जनवरी मार्ग) पर अपनी आकाशवाणी की रिकॉर्डिंग मशीनों के साथ पहुंच गए थे। समय रहा होगा शाम के 4-4:30 बजे का। उन्हें गांधी जी की प्रार्थना सभा की रिकॉर्डिंग करनी होती थी, जिसे आकाशवाणी रात के 8:30 बजे प्रसारित करती थी। के. डी. मदान साहब आकाशवाणी में काम करते थे। बिड़ला हाउस में प्रार्थना सभा का सिलसिला सितंबर,1947 से शुरू हुआ था और तभी से मदान साहब रिकॉर्डिंग के लिए आने लगे थे। उस मनहूस दिन मदान साहब के सामने ही नाथूराम गोडसे ने बापू को गोलियों से छलनी किया था। उन्हीं मदान साहब का गुरुवार 16 जनवरी को राजधानी में निधन हो गया। वे 100 साल के थे।
पुलिस ने रात को तुगलक रोड थाने में कनॉट प्लेस के एम-96 में रहने वाले नंदलाल मेहता से पूछकर गांधी जी की हत्या की एफआईआर दर्ज की थी। उस समय मदान साहब भी वहां पर थे। एफआईआर एएसआई डालू राम ने लिखी थी। नंदलाल मेहता प्रार्थना सभा में रोज शामिल होते थे। मदान साहब के जेहन में 30 जनवरी 1948 की यादें अंत तक जिंदा रहीं। उन्हें याद था, जब गोडसे ने बापू पर गोलियां चलानी शुरू कर दी थीं। वह बताते थे, ‘जब बिड़ला हाउस के भीतर से गांधी जी प्रार्थना सभा में शामिल होने के लिए निकले तब मेरी घड़ी के हिसाब से 5:16 बजे थे। हालांकि कहा जाता है कि 5:17 बजे बापू पर गोली चली। तो मैं समझता हूं कि गांधी जी बिड़ला हाउस से प्रार्थना सभा स्थल के लिए 5:10 बजे निकले होंगे। उस दिन बापू से मिलने सरदार पटेल भी आए थे।’
20 जनवरी, 1948 को भी हुआ था एक हमला
गांधी जी पर 20 जनवरी 1948 को भी बिड़ला हाउस में हमला हुआ था। उस दिन भी मदान साहब वहां पर थे। पता चला कि वो एक क्रूड देसी किस्म का बम था, जिसमें नुकसान पहुंचाने की ज्यादा क्षमता नहीं थी। फिर बापू पर 30 जनवरी को जानलेवा हमला हुआ। मदान साहब वहां अपनी रिकॉर्डिंग मशीन के साथ थे। मदान साहब के शब्दों में, ‘तभी पहली गोली की आवाज आई। मुझे ऐसा लगा कि दस दिन पहले जो पटाखा चला था, वैसा ही हुआ है। उसी एहसास में था कि दूसरी गोली चली। मैं साजोसामान छोड़कर उस तरफ भागा, जहां काफी भीड़ थी। वहां काफी लोग इकट्ठा थे। मैं और आगे आया, तभी तीसरी गोली चली, जो मैंने अपनी आंखों से देखा। बाद में पता चला कि गोली मारने वाले का नाम नाथूराम गोडसे था। उसने खाकी कपड़े पहने थे। उसका कद काफी कुछ मेरे जैसा ही था। डीलडौल भी मेरी जैसी ही थी। तीसरी गोली चलाने के बाद उसने दोबारा हाथ जोड़े। मैंने सुना था कि पहली गोली चलाने के बाद भी उसने हाथ जोड़े थे। उसके बाद वहां पर एकत्र लोगों ने उसे पकड़ लिया। उसने किसी भी तरह का विरोध नहीं किया, बल्कि अपनी रिवॉल्वर भी लोगों के हवाले कर दी।’
मदान साहब बताते थे, ‘गांधी जी का आदेश था कि कोई भी पुलिसवाला उनकी प्रार्थना सभा में नहीं होगा, लेकिन जब 30 जनवरी का हादसा हुआ तो कुछ लोगों ने पुलिस को इत्तिला की होगी। पुलिस वहां आई और हत्यारे को पुलिस के हवाले कर दिया। मैंने उसे ले जाते हुए देखा।’ मदान साहब थाने में गांधी जी की हत्या की एफआईआर लिखवाने में नंदलाल मेहता को सहयोग कर रहे थे। वह 31 जनवरी 1948 को गांधी जी की अंतिम यात्रा में पैदल ही बिड़ला हाउस से राजघाट तक गए थे। बेशक, मदान साहब के निधन से गांधी हत्याकांड की अंतिम कड़ी भी टूट गई है ।

प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रवेश परीक्षा से जीएसटी हटी

नयी दिल्ली । जीएसटी काउंसिल की 49वीं बैठक में छात्रों को बड़ी राहत दी गई। नेशनल टेस्टिंग एजेंसी जैसी सरकारी संस्थाएं अपने एंट्रेंस टेस्ट की जो फीस लेती हैं, उस पर परीक्षार्थियों को अब कोई जीएसटी नहीं देना होगा। इस फीस पर छात्रों को अब तक 18 फीसदी जीएसटी देना पड़ता है। यानी अब जेईई, नीट जैसे तमाम एंट्रेंस टेस्टों की फीस कम हो सकती है। इसके अलावा, पेंसिल और शार्पनर पर जीएसटी घटाया गया है। अब तक इन पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है। अब इसे 12 फीसदी कर दिया गया है। जीएसटी काउंसिल ने खुले में बेचे जाने वाले गन्ने की राब (लिक्विड गुड़) पर लगने वाले जीएसटी की दर 18 फीसदी से घटाकर जीरो करने का फैसला लिया है। इसका उत्पादन यूपी जैसे राज्यों में ज्यादा होता है।
इन सामानों के उत्पादन पर लगेगा टैक्स
जीएसटी काउंसिल ने पान मसाला और गुटखा पर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की सिफारिशें मंजूर कर लीं। अभी तक पान मसाला, गुटखा पर मुआवजा सेस इनके बिक्री मूल्य पर लगता था, जिससे राजस्व में नुकसान हो रहा था। इसे रोकने के लिए अब इनके उत्पादन पर टैक्स ले लिया जाएगा। इसका नोटिफिकेशन जल्द जारी होगा। जीएसटी काउंसिल की बैठक के बाद वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि सभी राज्यों को बकाया मुआवजा 16,982 करोड़ रुपये जारी कर दिया जाएगा। ऑनलाइन गेमिंग पर ग्रुप ऑफ मिनिस्टर्स की रिपोर्ट को बैठक में नहीं लिया जा सका।
कारोबारियों को राहत
कारोबारियों को सालाना रिटर्न भरने में देरी होने पर राहत दी गई है। जिन लोगों का कारोबार पांच करोड़ रुपये तक है, अगर वे देरी से सालाना रिटर्न भरते हैं तो अब तक उन पर विलम्ब शुल्क 200 रुपये रोजाना की दर से लगता था। इसे घटाकर अब 50 रुपये रोजाना कर दिया गया है। जिन लोगों का कारोबार 5 से 20 करोड़ रुपये के बीच है, उन्हें विलम्ब शुल्क 100 रुपये प्रतिदिन देना होगा। जिन लोगों का कारोबार 20 करोड़ रुपये से ज्यादा है, उन्हें कोई राहत नहीं दी गई है। उन्हें विलम्ब शुल्क रोजाना 200 रुपये के हिसाब से ही देना होगा।

हिमालय से भी पुरानी है झारखंड की राजमहल पहाड़ियां

10 से 14 फीट के आदिमानव का था वास
रांची । कार्बन डेटिंग से यह बात प्रमाणित हो चुकी है कि झारखंड स्थित राजमहल की पहाड़ियां हिमालय से भी 500 करोड़ साल पुरानी हैं। यहां मौजूद जीवाश्मों पर देश-विदेश के भूगर्भ शास्त्रियों की ओर से लगातार शोध कर रहे हैं। इस क्रम में जीवन को लेकर कई नए रहस्य सामने आ रहे हैं। झारखंड के एक पुरातत्वविद् पं. अनूप कुमार वाजपेयी ने दावा किया है कि राजमहल की पहाड़ियों में कई रहस्य छिपे है। दुमका जिले की महाबला पहाड़ियों पर आदि मानव के पैरों की छाप, हिरण के खुर, गिलहरी और मछली के जीवाश्म वाले चट्टान हैं। उन्होंने इन पदछापों की उम्र 30 करोड़ साल से भी अधिक होने की संभावना जताई है। इसके साथ ही यह दावा भी किया है कि आदि मानवों की लंबाई 10 से 14 फीट तक रही होगी।
पं. अनूप वाजपेयी के शोध आधारित दावे के बाद झारखंड सरकार के पथ निर्माण विभाग ने यहां दो बोर्ड लगाए हैं, जिसमें यहां जीवाश्म होने की जानकारी दी गई है। वाजपेयी ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से भी मिलकर उन्हें अपने अध्ययन निष्कर्षों से अवगत कराया है। उन्होंने अपने अध्ययन के निष्कर्षों के आधार पर एक पुस्तक भी लिखी है, जिसे दिल्ली की एक प्रकाशन संस्था ने छापा है। इसके बाद जीवाश्मों के अध्ययन में रुचि रखने वाले शोधार्थियों के अलावा पर्यटक इन पदचिन्हों को देखने पहुंच रहे हैं।
चट्टान के अवशेष में आदि मानव के पदचिह्न
जिस चट्टान पर ये अवशेष पाये गये हैं, वह जरमुंडी प्रखंड की झनकपुर पंचायत के बरमसिया में घाघाजोर नदी के किनारे स्थित हैं। बकौल वाजपेयी, पदचिह्नों को देखकर प्रतीत होता है कि आदि मानव कभी इस स्थल के आसपास रहे होंगे इसलिए उनके कदमों के निशान इस जगह पर बने। प्रलय के कारण सब कुछ खत्म हो गया, लेकिन जीवाश्म अब भी राजमहल की पहाड़ियों में बहुतायत में मौजूद हैं।
राजमहल की पहाड़ियों में नौ पदचिह्न मिले
वाजपेयी ने राजमहल की पहाड़ियों की श्रृंखला से जुड़ी महाबला पहाड़ी में ऐसे नौ पदचिन्हों की तलाश की है। इसके अलावा उन्होंने गिलहरी और मछली की आकृति, हिरण के खुर जैसे जीवाश्म की तलाश करने का भी दावा किया है। ये आकृतियां काफी बड़ी हैं और इसके आधार पर उनका अनुमान है कि उस समय के इंसान व अन्य जीव आकृति में भी बड़े रहे होंगे। कथित आदि मानव के पदचिन्हों के दो डग के बीच की दूरी डेढ़ से पौने दो मीटर तक है। पैर का अंगूठा करीब दो इंच से अधिक मोटा है। पंजा करीब एक फीट का है। इसी के आधार पर वह उस दौर के इंसानों की ऊंचाई 10 से 14 फीट होने की संभावना जताते हैं। उनका कहना है कि ये जीवाश्म कार्बोनिफेरस एरा के हो सकते हैं।
2600 वर्ग किलोमीटर में फैली है राजमहल की पहाड़ियां
26 सौ वर्ग किलोमीटर में राजमहल की पहाड़ियां फैली है। जुरासिक काल के फॉसिल्स सबसे पहले भारतीय पुरा-वनस्पति विज्ञान यानी इंडियन पैलियोबॉटनी के जनक प्रो. बीरबल साहनी ने तलाशे थे। वे 1935 से 1945 के बीच फॉसिल्स की तलाश और उनपर रिसर्च मेंयहां दर्जनों बार आये थे। पहाड़ियों के बीच काफी लंबा वक्त गुजारा था। उन्होंने जो फॉसिल्स तलाशे, उनके कई नमूने लखनऊ स्थित बीरबल साहनी संस्थान में संरक्षित करके रखे गये हैं, जो दुनिया भर के भूगर्भशास्त्रियों के लिए रिसर्च का विषय है। बीरबल साहनी के महत्वपूर्ण रिसर्च को देखते हुए जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया ने राजमहल की पहाड़ियों को भूवैज्ञानिक विरासत स्थल का दर्जा दे रखा है।
राजमहल की पहाड़ियों और आस-पास के इलाके में मौजूद फॉसिल्स दुनिया भर में जुरासिक काल पर रिसर्च कर रहे विज्ञानियों की दिलचस्पी का केंद्र हैं। देश-विदेश की कई टीमें सालों भर यहां अध्ययन के लिए पहुंचती रहती हैं। कुछ साल पहले जियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (जीएसआई) से जुड़े वैज्ञानिकों को यहां के कटघर गांव में अंडानुमा जीवाश्म मिले थे, जो रेप्टाइल्स की तरह थे। साहिबगंज, सोनझाड़ी और पाकुड़ जिले के महाराजपुर, तारपहाड़, गरमी पहाड़ बड़हारवा इलाकों में भी बड़ी संख्या में फॉसिल्स मिल चुके हैं।
जुरासिक काल के पेड़ों की पत्तियों की छाप मिली
नेशनल बॉटैनिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट की टीम ने करीब ढाई साल पहले यहां दूधकोल नामक स्थान पर फॉसिल्स की तलाश की थी। उनपर जुरासिक काल के पेड़ों की पत्तियों की छाप (लीफ इंप्रेशन) है। इसके 150 से लेकर 200 मिलियन वर्ष पुराने होने का अनुमान है। झारखंड सरकार ने फॉसिल्स को संरक्षित करने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाया है। साहेबगंज के मंडरो में सरकार ने 16 करोड़ की लागत से फॉसिल्स पार्क का निर्माण कराया है।

गोदरेज ने 100 करोड़ में खरीदा राज कपूर का बंगला

मुम्बई । शोमैन के नाम से मशहूर दिवंगत अभिनेता राज कपूर की एक और प्रॉपर्टी बिक गई है। मुंबई के चेंबूर इलाके में एक एकड़ में फैले उनके बंगले को गोदरेज प्रॉपर्टीज लिमिटेड ने 100 करोड़ रुपये में खरीदा है। कंपनी इस राज कपूर के बंगले को तोड़कर 500 करोड़ रुपये का लग्जरी हाउसिंग प्रोजेक्ट बनाएगी। इस बहुमंजिला इमारत में एक-एक फ्लैट करोड़ों रुपये का होगा। राज कपूर का यह बंगला देवनार फार्म रोड पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के बगल में है। इसे चेंबूर का सबसे महंगा इलाका माना जाता है। चेंबूर बीकेसी (बांद्रा कुर्ला कॉम्प्लेक्स) से अच्छी तरह जुड़ा हुआ एक बेहतरीन आवासीय बाजार है। गोदरेज ग्रुप की इस कंपनी ने इस वित्त वर्ष में देशभर में करीब 15 प्लॉट खरीदे हैं जिन पर करीब 28,000 करोड़ रुपये के प्रोजेक्ट डेवलप किए जा सकते हैं।


गोदरेज प्रॉपर्टीज के एग्जीक्यूटिव चेयरमैन पिरोजशा गोदरेज ने बताया कि जमीन का कुल आकार करीब एक एकड़ है। हम इस पर एक प्रीमियम रेजिडेंशियल प्रोजेक्ट डेवलप करेंगे। इसकी बिक्री से होने वाली आय करीब 500 करोड़ रुपये रहने की उम्मीद है। राज कपूर के पुत्र रणधीर कपूर ने कहा, ‘इस बंगले से हमारी कई यादें जुड़ी हैं और इसका हमारे परिवार के लिए काफी महत्व है। हमें उम्मीद है कि कंपनी इसकी समृद्ध विरासत को अगले चरण में ले जाएगी। गोदरेज प्रॉपर्टीज गोदरेज ग्रुप की सहयोगी कंपनी है। इससे पहले गोदरेज प्रॉपर्टीज ने राज कपूर के आरके स्टूडियो को भी मई 2019 में खरीदा था। इसमें 33 हजार वर्ग मीटर क्षेत्र में अपार्टमेंट और लग्जरी रिटेल स्पेस डेवलप किया जा रहा है। राज कपूर ने 1948 में आरके स्टूडियो की स्थापना की थी। होली और गणेशोत्सव के मौके पर इसमें होने वाले आयोजन बॉलीवुड में खासे लोकप्रिय थे। साल 2017 में आग लगने से आरके स्टूडियो का बड़ा हिस्सा जल गया था। इसके बाद कपूर खानदान ने इसे बेचने का फैसला किया। इससे पहले गोदरेज प्रॉपर्टीज ने मई 2019 में राज कपूर के आरके स्टूडियो को खरीदा था। वहां भी गोदरेज आरकेएस डेवलप किया जा रहा है। इसके इसी साल पूरा होने की उम्मीद है। गोदरेज प्रॉपर्टीज के एमडी और सीईओ गौरव पांडेय ने कहा, ‘राज कपूर का महत्वपूर्ण बंगला अब हमारे पोर्टफोलियो का हिस्सा है। हमें खुशी है कि कपूर परिवार ने हमें यह मौका दिया। पिछले कुछ साल में प्रीमियम डेवलपमेंट्स की माँग में तेजी आई है। इस प्रोजेक्ट से हमें चेंबूर में अपनी स्थिति और मजबूत करने में मदद मिलेगी। इस पर एक शानदार आवासीय परिसर विकसित किया जाएगा ।’

कथाकार कपिल आर्य की स्मृति में श्रद्धांजलि सभा 

कोलकाता। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से कोलकाता के दिवंगत कथाकार कपिल आर्य की स्मृति में भारतीय भाषा परिषद में एक श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया गया। इस अवसर पर डॉ आशुतोष ने उनके सहज व्यक्तित्व और लेखन पर विस्तार से चर्चा की। कपिल जी के व्यक्तित्व पर एक ओर आर्यसमाज का और दूसरी ओर प्रगतिशील विचारों का प्रभाव पड़ा। प्रियंकर पालीवाल ने उनके जीवन संघर्ष के विविध पहलुओं पर चर्चा की। सामान्य जीवन का तानाबाना उनके लेखन में दिखता है। युवा कथाकार रवींद्र आरोही ने कहा कपिल जी हमेशा नये लेखकों को प्रोत्साहित करते थे।नगेंद्र कुमार ने कहा वे तमाम तकलीफों के बीच कभी अपनी पीड़ा साझा नहीं करते थे। मैं उनकी अप्रकाशित रचनाओं का संकलन करना चाहता हूँ। जीवन सिंह ने कहा कि मैं उनसे अक्सर प्रगतिशील लेखक संघ के आयोजनों में मिलता था।वे बराबर बांग्ला और हिंदी के बीच अनुवाद के लिए कहते थे। डॉ ब्रजमोहन सिंह ने कहा जब मैं कोलकाता आया तब कपिल जी ने मुझे प्रगतिशील लेखक संघ से जोड़ने का आग्रह किया। उनका भावबोध अपने समय की वैचारिकी से बनता है। वे जातिविहीनता की भी बात करते थे। वरिष्ठ लेखक सेराज खान बातिश ने कहा कि हमारे जैसे नये लेखकों को मंच तक लाते थे।प्रगतिशील लेखक संघ के भीतर की खींचतान के बीच भी वे संगठन के प्रति समर्पित रहे। कवि राज्यवर्धन ने कहा कि मैं जमालपुर प्रगतिशील लेखक संघ से आया था। उनसे जुड़ाव का एक बड़ा कारण कपिल जी का प्रगतिशील लेखक संघ का समर्पित कार्यकर्ता होना था। वे हर वर्ष नियमित कार्यक्रम आयोजित करते थे। रवि प्रताप सिंह ने कहा कि कपिल जी सहज व्यक्तित्व के धनी थे।अपने जीवन के अंतिम समय में कविताएं लिख रहे थे। मृत्युंजय ने कहा कि आज वे भले हमारे बीच नहीं हैं परंतु अपनी रचनाओं के लिए वे हमेशा हमारे बीच रहेंगे। हरेराम कात्यायन ने कहा कपिल जी बहुत जल्दी घुलमिल जाते थे।वे वैचारिक असहमतियों का सम्मान करते थे। रंगकर्मी महेश जायसवाल ने कहा कि कपिल जी विश्वास से भरे लेखक थे ।वे हमारे भीतर उम्मीद भरते थे। प्रो.विमलेश्वर द्विवेदी ने कहा कि कपिल की ख्याति तब हुई जब कमलेश्वर ने सारिका में उनकी कहानी छापी। वे बड़ी निडरतापूर्वक लिखते थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए शंभुनाथ ने कहा कपिल जी से मेरा लगभग पांच दशकों का संबंध रहा है। वे प्रगतिशील लेखक संघ से जुड़े होने के बावजूद वे पार्टी लाइन से अलग थे। वे बांदा में प्रगतिशील लेखक संघ के कमजोर होने के पर वे कमजोर संगठन को छोड़ते नहीं है।उनमें एक वैचारिक दृढ़ता थी। कुसुम खेमानी, उषा किरण आर्य,विनय कुमार,अल्पना नायक,गीता दूबे,अरुण माहेश्वरी और अलका सरावगी ने अपना शोक संवाद भेजकर श्रद्धांजलि अर्पित की। इस अवसर पर श्रीप्रकाश गुप्ता,नारायण दास, सपना कुमारी, चंदन भगत ,विनोद ओझा ,संजय जायसवाल उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन सुरेश शॉ ने किया।

महाशिवरात्रि विशेष – शक्‍ति के बिना अधूरा लगता है शिव को अपना अस्‍तित्‍व

पुरुष और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित होने से ही सृष्टि सुचारु रूप से चल पाती है। शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग का यही अर्थ है। यहां शिव पुरुष के प्रतीक हैं, और शक्‍ति स्‍वरुप देवी पार्वती प्रकृति की। शिवलिंग के रूप में भगवान शिव बताते हैं कि पुरुष और प्रकृति के बीच यदि संतुलन न हो, तो सृष्टि का कोई भी कार्य भलीभांति संपन्न नहीं हो सकता है। जब शिव अपना भिक्षु रूप, तो शक्ति अपना भैरवी रूप त्याग कर समान्‍य घरेलू रूप धारण करती हैं, तब वे ललिता, और शिव, शंकर बन जाते हैं। इस संबंध में न कोई विजेता है और न कोई विजित है, दोनों का एक-दूसरे पर संपूर्ण अधिकार है, जिसे प्रेम कहते हैं।

अर्द्धनारीश्‍वर होने की कहानी

शक्‍ति के शिव में संयुक्‍त होने को लेकर एक कथा बेहद प्रचलित है। इस कथा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के बाद शिवभक्‍त भृंगी ने उनकी प्रदक्षिणा करने की इच्छा व्यक्त की। शिव ने कहा कि आपको शक्ति की भी प्रदक्षिणा करनी होगी, क्योंकि उनके बिना मैं अधूरा हूं। भृंगी इसके लिए तैयार नहीं हुए। वे देव और देवी के बीच प्रवेश करने का प्रयत्न करते हैं। इस पर देवी, शिव की जंघा पर बैठ जाती हैं, जिससे वे यह काम न कर सकें। भृंगी भौंरे का रूप धारण कर उन दोनों की गर्दन के बीच से गुजर कर शिव की परिक्रमा पूरी करना चाहते हैं। तब शिव ने अपना शरीर शक्ति के शरीर के साथ जोड़ लिया। अब वे अ‌र्द्धनारीश्वर बन गए। अब भृंगी दोनों के बीच से नहीं गुजर सकते थे। शक्ति को अपने शरीर का आधा भाग बनाकर शिव ने स्‍पष्‍ट किया कि वास्तव में स्त्री की शक्ति को स्वीकार किए बिना पुरुष पूर्ण नहीं हो सकता और शिव की भी प्राप्ति नहीं हो सकती, केवल देवी के माध्यम से ही ऐसा हो सकता है।

समभाव और सौंदर्य का अनुभव

पार्वती साधना के माध्यम से शिव के हृदय में करुणा और समभाव जगाना चाहती हैं। पार्वती की साधना अन्य तपस्वियों की तपस्या से भिन्न है। सुर-असुर और ऋषि ईश्वर की प्राप्ति और अपनी इच्छापूर्ति के लिए तपस्या करते हैं। पार्वती किसी भी इच्छा या वरदान को परे रखकर ध्यान लगाती हैं। वे अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि संसार के लाभ के लिए तपस्या करती हैं। शिव पुराण के अनुसार, जब पार्वती शिव को पाने के लिए साधना करती हैं, तो शिव उन्हें ध्यान से देखते हैं। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सती ही पार्वती हैं। वे सोचते हैं कि यदि वे अपनी आंखे बंद कर लेंगे, तो वह काली में बदल जाएंगी और उनका रूप भयंकर हो जाएगा। अगर वे आंखें खोले रहेंगे, तो वह सुंदर और सुरूप गौरी बनी रहेंगी। इसके आधार पर वे यह बताना चाहते हैं कि अगर प्रकृति को ज्ञान की दृष्टि से न देखा जाए, तो वह डरावनी हो जाती है। यदि ज्ञान के साथ देखा जाए तो वह सजग और सुंदर प्रतीत होती है। वहीं पार्वती शिव को अपना दर्पण दिखाती हैं, जिसमें वे अपना शंकर (शांत) रूप देख पाते हैं।

(साभार – दैनिक जागरण)

भारत की वैदिक परम्परा को जन – जन तक पहुँचाकर महर्षि दयानन्द सरस्वती ने दिया राष्ट्रवाद का मंत्र

भारत के महान ऋषि मुनियों की परम्परा में, जिन्होंने इस देश जाति की जाग्रति और उन्नति के लिए अत्यंत विशेष कार्य किया उनमें महर्षि दयानंद सरस्वती जी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का जन्म १२ फरवरी १८२४ को टंकारा (गुजरात) में हुआ। पिता का नाम करसन जी तिवारी तथा माता का नाम अमृतबाई था। जन्मना ब्राह्मण कुल में उत्पन्न बालक मूल शंकर को शिवरात्रि के दिन व्रत के अवसर पर बोध प्राप्त हुआ। वह सच्चे शिव की खोज के लिए १६ वर्ष की अवस्था में अचानक गृह त्याग कर एक विलक्षण यात्रा पर चल दिए ।

मथुरा में गुरु विरजानन्द जी से शिक्षा प्राप्त की एवं इस मूल बात को समझा कि देश की वर्तमान अवस्था में दुदर्शा का मूल कारण वेद के सही अर्थों के स्थान पर गलत अर्थों प्रचलित हो जाना है। इसी कारण से समाज में धार्मिक आडम्बर, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों का जाल फैल चुका है और हम अपने भारत देश में ही दूसरों के गुलाम हैं। देश की गरीबी, अशिक्षा, नारी की दुर्दशा, भाषा और संस्कृति के विनाश को देखकर दयानन्द अत्यन्त द्रवित हो उठे। कुछ समय हिमालय का भ्रमण कर और तप, त्याग, साधना के साथ वे हरिद्वार के कुम्भ के मेले से मैदान में कूद पड़े। उन्होंने अपनी बात को मजबूती और तर्क के साथ रखा। विरोधियों के साथ शास्त्रार्थ वार्तालाप करके सत्य को स्थापित करने का प्रयास किया। उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था कि जो सत्य है उसको जानो और फिर उसको मानो उन्होंने “सत्य को ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए का प्रेरक वाक्य भी दिया। सभी धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर अपनी बात कहने के लिए उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नाम के कालजयी ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया और सारा भारत उनका कार्यक्षेत्र रहा। गौरक्षा, हिन्दी रक्षा, संस्कृत भाषा की उपयोगिता, स्वदेश, स्वदेशी, स्वभाषा, स्वाभिमान के सन्दर्भ में उन्होंने पहली बार जागृति पैदा की। जीवन को अक्षुण्ण न समझते हुए उन्होंने अपने कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए १८७५ में आर्यसमाज की मुम्बई में स्थापना की।

वेद के गलत अर्थों की हानि देखकर उन्होंने वेद के वास्तविक भाष्य को दुनिया के सामने रखा और लिंगभेद और जातिभेद से उठकर “वेद पढ़ने का अधिकार सबको है” की घोषणा की।

धार्मिक अंधविश्वासों, सामाजिक कुरीतियों आदि पर जमकर प्रहार किया। स्त्री शिक्षा जो उस समय की सबसे बड़ी जरूरत थी, उसकी उन्होंने सबसे बड़ी वकालत की और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को उंच-नीच के भेद-भाव के चलते अलग-थलग कर दिया था, उसको उन्होंने समाज की मुख्य धारा के साथ लाने के लिए छुआ-छूत और ऊँचनीच समाज की सबसे बड़ी बुराई बताते हुए उनके जीवन स्तर को उठाने तथा शिक्षा के लिए कार्य करने का आह्वान किया।

अपनी बातों को स्पष्टवादिता से कहने के कारण अनेक लोग उनके विरोधी बन गए और अलग-अलग स्थानों पर, अलग-अलग तरीकों से १७ बार जहर देकर प्राण हरण की कोशिश की। लेकिन दयानन्द ने कभी अपने नाम के अनुरूप किसी को दण्ड देना या दिलवाना उचित न समझा।

अंग्रेज अफसर द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की उन्नति की कामना की प्रार्थना करने पर उनका यह कहना कि मैं तो हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य के शीघ्र समाप्ति की कामना किया करता हूं उनकी निर्भीकता को दर्शाता है।

ब्रह्मचर्य का बल, सत्यवादिता का गुण उनके जीवन की एक विशेष पहचान थी। भक्तों के यह कहने पर कि आप ऐसा न कहें जिससे कि बड़े-बड़े आफिसर नाराज हो जाएं उत्तर में महर्षि दयानन्द का यह कहना कि चाहे मेरी अंगुली की बाती बनाकर ही क्यों न जला दी जाएं मैं तो केवल सत्य ही कहूंगा।

अनेक राजाओं द्वारा जमीन देने की, मन्दिरों की गद्दी देने की इच्छा के बावजूद दयानन्द ने कभी किसी से कुछ स्वीकार करना उचित नहीं समझा। १८५७ के क्रान्ति संग्राम से वे लगातार देश को आजाद कराने के लिए प्रयत्नशील रहे और अपने शिष्यों को इसकी निरन्तर प्रेरणा दी। परिणाम स्वरूप श्यामजी कृष्ण वर्मा, सरदार भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह, स्वामी श्रद्धानन्द लाला लाजपत राय जैसे महान बलिदानियों की एक लम्बी श्रृंखला पैदा की।

वे देश के नवयुवाओं को कौशल सीखने के लिए जर्मनी भेजने के इच्छुक थे। वे अपने देश में स्वदेशी वस्त्रों के पहनने और कारखाने लगाने के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने अनेक देशी राजाओं के साथ वार्तालाप कर उन्हें स्वदेशी के लिए प्रेरित किया। साथ ही तत्कालीन सभी मुख्य महानुभावों केशवचन्द्र सेन, गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता, महादेव गोविन्द रानाडे, पण्डिता रमाबाई, महात्मा ज्योतिबा फूले, एनिबेसेंट, मैडम ब्लेटवस्की आदि के साथ वार्ता कर उन्हें एक सत्य के मार्ग पर सहमत करने का प्रयास किया। विभिन्न मतों के मुख्य महानुभावों के साथ चर्चा करके सहमति के बिन्दुओं पर एक साथ कार्य करने के लिए आह्वान किया। मानव मात्र की उन्नति के लिए निर्दिष्ट १६ संस्कारों पर विस्तृत व्याख्या लिखी।

प्रजातन्त्र की आवश्यकता पर योग की आवश्यकता पर पर्यावरण के सन्दर्भ में, हर विषय पर अपनी बात रखी। 6 फुट 9 इंच के ऊँचे कद के साथ गौर वर्णधारी, अद्भुत ब्रह्मचर्य के स्वामी एवं योगी महर्षि दयानन्द सरस्वती ने प्रत्येक व्यक्ति की उन्नति के लिए शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति को आवश्यक बताया। मात्र 59 वर्ष की आयु में वैदिक सत्य की निर्भीक उदघोषणा के कारण षडयन्त्रों के चलते 1883 के अंत में उन्हें जोधपुर में जहर दे दिया गया। जिस विष से वे अपने शरीर की रक्षा न कर सके। विष देने वाले को अपने पास से धन देकर विदा किया, ताकि राजा उसे दण्डित न कर दे, का विलक्षण उदाहरण दयानन्द की दया में ही मिल सकता है । अन्ततः दीपावली की सायं 30 अक्तूबर 1883 में उनका निर्वाण अजमेर में हुआ।

उनके जीवन की बहुत बड़ी सफलता उनके शिष्यों द्वारा किये गए कार्यों में दिखी हजारों शिष्यों की लम्बी श्रृंखला ने सारे विश्व में उनकी इच्छानुसार अनेकोनेक संस्थाओं की स्थापना की। समाज की कुरीतियों के विरुद्ध कार्य करने के लिए बलिदान देने वाले भी उनके शिष्य थे और देश के लिए बलिदान होने वालों की लम्बी श्रंखला में उनकी शिष्यावली थी। आज उनके द्वारा बनाए गए आर्यसमाज की शिक्षा के क्षेत्र में, सामाजिक कार्यों में स्वास्थ्य सेवा में, महिला उत्थान में, युवा निर्माण में, एवं राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों के काम में विश्व के 30 देशों और भारत के सभी राज्यों में 10000  से अधिक सशक्त सेवा इकाइयों के साथ सेवारत हैं।

महर्षि दयानंद सरस्वती एवं तदुपरान्त आर्यसमाज द्वारा किए गए कार्य

* महर्षि दयानन्द सरस्वती ने 1875 में बम्बई में की आर्यसमाज की स्थापना
* महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने वेदों का भाष्य किया।
* वेदज्ञान मनुष्यमात्र के ज्ञान का स्रोत की घोषणा
* क्रान्तिकारी ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश की रचना
* सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाश
* साहित्य क्षेत्र में करोड़ों पुस्तकों का किया प्रकाशन
* स्वराज्य एवं स्वदेश शब्दों की देन
* गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति की पुनर्स्थापना
* पाखंड अंधविश्वास के विरुद्ध जनजागरुकता में आर्यसमाज ने किया कार्य
* उर्दू-अंग्रेजी के स्थान पर संस्क त एवं हिन्दी भाषा की पुनर्स्थापना
* हजारों क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत
* छूआछूत के विरुद्ध सफल अभियान का संचालन
* जाति विहीन समाज की स्थापना हेतु निरन्तर संघर्ष
* बाल विवाह का विरोध व विधवा विवाहों का प्रचलन
* स्त्री शिक्षा एवं स्त्री सम्मान का युगान्तरकारी अभियान
* गौ आधारित कषि एवं आर्थिकी का प्रचार

सामाजिक कुरीतियों का विरोध

* जन्मना जातिवाद – छुआछूत
* बाल विवाह
* बहुविवाह
* सती प्रथा
* मृतक श्राद्ध
* पशु बलि
* नर बलि
* पर्दा प्रथा
* देवदासी प्रथा
* वेश्यावृत्ति
* शवों को दफनाना या नदी में बहाना
* मृत बच्चों को दफनाना
* समुद्र यात्रा के निषेध का खण्डन
* अभक्ष्य मांसाहार

समाज सुधार के कार्य की नीव

* कार्य के आधार पर वर्ण व्यवस्था का समर्थ
* अंतरजातीय विवाह
* दलितोद्धार
* विधवा पुन ववाह
* सबके लिए शिक्षा अभियान
* नारी सशक्तिकरण
* नारी को शिक्षा का अधिकार सबको वेद पढ़ने का अधिकार
* गुरुकुल शिक्षा पद्धति का आरम्भ
* प्रथम हिन्दू अनाथालय की स्थापना
* प्रथम स्वदेशी बैंक की स्थापना, पंजाब नेशनल बैंक
* प्रथम गौशाला की स्थापना
* स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ और संचालन

 

( साभार – आर्य समाज की वेबसाइट )

एमएसएमई क्षेत्र के लिए कोलकाता में वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम

कोलकाता । एमएसएमई क्षेत्र के विकास और इसपर निर्भर रहनेवालों के लिए व्यापारिक विकास पर रणनीतिक तैयार करना काफी महत्वपूर्ण माना गया है। जानकारी और संसाधनों की कमी के अलावा कोविड के बाद के क्षेत्र में बिक्री/विपणन के असंगठित तरीकों के कारण एमएसएमई क्षेत्र को नए बाजारों की खोज करने और मौजूदा बाजार को बनाए रखने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के एमएसएमई मंत्रालय की ओर से एमएसएमई क्षेत्र में उत्पादों और सेवाओं की विपणन क्षमता बढ़ाने के लिए खरीद और व्यापारिक सहायता योजना शुरू की गई है। यह योजना वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम (वीडीपी) एमएसई के लिए सार्वजनिक खरीद नीति – 2012 (2018 में संशोधित) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बाजार लिंकेज की सुविधा के लिए इस योजना का एक घटक है।

वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय की ओर से अर्ध-सरकार, विभाग और सीपीएसयू, जीईएम कार्यालय के साझा मंच पर एमएसएमई के हितधारकों को केंद्र सरकार के पास लाने के लिए यह एक पहल है। इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए कोलकाता में स्थित एमएसएमई डेवलपमेंट फेसिलिटेशन ऑफिस की ओर से सोमवार 13 और मंगलवार 14 फरवरी 2023 को कोलकाता के साल्टलेक स्टेडियम के निकट स्थित निजी होटल में दो दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन का उद्घाटन  पी चौधरी (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई, पश्चिम बंगाल सरकार),  यू स्वरूप (आईएएस, निदेशक, एमएसएमई, पश्चिम बंगाल सरकार), डी मित्रा (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई-डीएफओ, कोलकाता) ने संयुक्त रूप से किया।

इस कार्यक्रम में विपणन से संबंधित विभिन्न विषयों पर कार्यशाला सह संगोष्ठी और चुनिंदा एमएसएमई से जुड़े उत्पादों का प्रदर्शन किया गया। सीपीएसयू, केंद्र सरकार के विभागों के साथ एक के साथ एक की बातचीत की व्यवस्था की गयी, जिसमें निम्नलिखित विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा:

1. एमएसएमई के लिए सार्वजनिक खरीद नीति पर सत्र – 2012
2. सीपीएसयू और सरकार की ओर से अर्ध-सरकारी विभाग में खरीद विक्रेता पंजीकरण प्रक्रिया पर विशेष सत्र।
3. सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) पर सत्र
4. भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय की विपणन सहायता योजना और अन्य योजनाओं पर विशेष सत्र का आयोजन।
5. जेम पंजीकरण के लिए शिविर
6. सीपीएसयू और अन्य हितधारकों के लिए टेबल स्पेस में उत्पाद प्रदर्शनी
7. सीपीएसयू और अन्य हितधारकों के साथ बातचीत
8. उद्यम रजिस्ट्रेशन के लिए शिविर

इस मौके पर डी मित्रा (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई- डीएफओ कोलकाता) ने कहा, हमारा मुख्य उद्देश्य पश्चिम बंगाल राज्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के प्रचार और विकास के लिए सहायता प्रदान करना है। पूरे देश के विभिन्न राज्य, सरकार के संगठन, कार्यालय और उद्योग संघ इस वीडीपी में भी शामिल हो रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एमएसएमई क्षेत्र का समावेशी विकास रोजगार और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद को पूरा करेगा।

वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम में प्रत्येक दिन 120-150 एमएसएमई और 15-20 एमएसई अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए आते थे। जीआरएसई, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीएचईएल), ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हल्दिया, बामर लॉरी, एमएसटीसी, ईस्टर्न रेलवे, कोल इंडिया लिमिटेड, दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) आदि जैसे बड़े खरीदारों ने इस भव्य आयोजन में भाग लिया।