Tuesday, September 16, 2025
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श्रीकृष्ण के पौत्र और बाणासुर की बेटी का जहाँ हुआ विवाह, होगा जीर्णोद्धार

उत्तराखंड के उखीमठ में भगवान श्रीकृष्ण के वंशजों से जुड़ी स्मृतियां मौजूद हैं । यहाँ श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और असुर बाणासुर की बेटी उषा का विवाहस्थल मौजूद है। अब ये विवाह स्थल किस हालत में है और बदरी केदार मंदिर समिति की इसके जीर्णोद्धार के लिए क्या योजना है ।

उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों का होगा सौंदर्यीकरण
उत्तराखंड: उत्तराखंड को इसलिए देवभूमि कहा जाता है क्योंकि यहां पर हिंदू सभ्यता और सनातन धर्म के कई ऐसे पौराणिक स्थल मौजूद हैं जो कि सनातन धर्म के अनुयायियों के लिए भगवान का सीधा प्रमाण हैं । ऐसा ही एक प्रमाण है भगवान श्री कृष्ण के पोते अनिरुद्ध और दैत्य राज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह स्थल ये स्थान ऊखीमठ के पास मौजूद है। दुर्भाग्य की बात है कि आज यह पौराणिक धरोहर खंडहर के रूप में है। जल्द ही इसे बदरी केदार मंदिर समिति द्वारा भव्य स्वरूप दिया जाएगा । क्या है इसकी पूरी रूपरेखा आपको बताते हैं ।
उत्तराखंड के पौराणिक मंदिरों का होगा कायाकल्प
हिंदू मान्यता से जुड़े विभिन्न युगों के प्रमाण उत्तराखंड में मौजूद: जैसा कि नाम से ही चरितार्थ होता है कि देवभूमि उत्तराखंड देवों की भूमि रही है। उत्तराखंड में अनगिनत ऐसे प्रमाण हमें देखने को मिलते हैं जो कि सीधे तौर से सनातन धर्म के धर्म ग्रंथों और हिंदू देवी देवताओं के होने का स्पष्ट प्रमाण माने जाते हैं । देवभूमि उत्तराखंड में मौजूद कई ऐसे पौराणिक स्थल मंदिर और स्मृतियां मौजूद हैं जो कि आदिकाल से संबंध रखती बताई जाती हैं. बात चाहे त्रिजुगीनारायण भगवान शंकर और गौरी माता के विवाह स्थल की हो या केदारनाथ मंदिर की बात हो । बदरीनाथ मंदिर की बात हो या भागीरथ ने जहां पर गंगा को धरती पर बुलाया था, उस गोमुख की बात हो. पाताल भुवनेश्वर और लाखामंडल जैसे असंख्य सक्षम प्रमाण देवभूमि उत्तराखंड में देखने को मिलते हैं । ये पौराणिक स्थल सीधे तौर से हिंदू धर्म ग्रंथों में लिखी बातों को चरितार्थ करते हैं ।
इस तरह दिखेंगे पौराणिक मंदिर
धर्मग्रंथों में वर्णित स्वर्ग को बताते हैं देवभूमि उत्तराखंड: हिंदू धर्म के कई धर्मगुरु इस बात का भी जिक्र करते हैं कि धर्म ग्रंथों में जब स्वर्ग का जिक्र किया जाता है तो उसका संबंध देवभूमि उत्तराखंड से ही है । ऐसे ही प्रमाणों को चरितार्थ करता हुआ एक और पौराणिक स्थल देवभूमि उत्तराखंड के उखीमठ के पास मौजूद है । कहा जाता है कि यहां भगवान श्री कृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह हुआ था । आज यह स्थल एक खंडहर के रूप में उखीमठ में मौजूद है । इसके पौराणिक महत्व को हिंदू अनुयायियों के सामने लाने के लिए और देवभूमि उत्तराखंड में देश-विदेश से आने वाले पर्यटकों के लिए उजागर करने के लिए एक बार फिर से इसका जीर्णोद्धार किया जा रहा है ।
ओंकारेश्वर मंदिर का ये है महत्व: ईटीवी से खास बातचीत करते हुए बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि देवभूमि उत्तराखंड के उखीमठ में मौजूद ओंकारेश्वर मंदिर का अपना एक पौराणिक महत्व है । भगवान केदारनाथ के शीतकालीन में जब कपाट बंद हो जाते हैं तो भगवान केदारनाथ की चल विग्रह डोली को उखीमठ स्थित ओंकारेश्वर मंदिर में रखा जाता है और पूरे शीतकालीन के दौरान भगवान केदारनाथ की पूजा अर्चना उखीमठ की ओंकारेश्वर मंदिर में की जाती है ।
ओंकारेश्वर मंदिर का ब्लू प्रिंट
जोशीमठ में है पंच केदारों का गद्दीस्थल: इसके अलावा जोशीमठ में पंच केदारों का भी गद्दी स्थल है । यही नहीं बदरी केदार मंदिर समिति के अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उखीमठ में एक और पौराणिक स्थल है जो कि आज जीर्णशीर्ण अवस्था में है । इसका पौराणिक महत्व हिंदू धर्म के अनुयायियों के लिए और पूरे सनातन धर्म के लिए बेहद महत्वपूर्ण है । मंदिर समिति के अध्यक्ष ने बताया कि उखीमठ में मौजूद कोठा भवन प्राचीन हिंदू सभ्यता का एक बड़ा प्रमाण है । इसमें भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध और दैत्यराज बाणासुर की पुत्री उषा का विवाह मंडप मौजूद है जो कि काफी जीर्ण शीर्ण अवस्था में है । इसे एक बार फिर से एक भव्य स्वरूप देने के लिए कवायद शुरू की गयी है ।
पौराणिक स्थलों का होगा जीर्णोद्धार : दरअसल उत्तराखंड में केदारनाथ धाम और बदरीनाथ धाम में पुनर्निर्माण के बाद अब उत्तराखंड में मौजूद ऐसे तमाम पौराणिक और ऐतिहासिक स्थलों के जीर्णोद्धार की कवायद शुरू की जा रही है जो उपेक्षित हैं । बीकेटीसी अध्यक्ष अजेंद्र अजय ने बताया कि उखीमठ में मौजूद इन तमाम पौराणिक धरोहरों के जीर्णोद्धार, विस्तारीकरण और सुंदरीकरण के लिए कार्य योजना तैयार की गई है । तीन अलग-अलग फेस में डीपीआर तैयार की जा रही है । पहले चरण की डीपीआर तैयार की जा चुकी है जो की 5 करोड़ रुपए की है । इसके बाद दूसरे चरण और तीसरे चरण की डीपीआर का काम शुरू होगा । इस पुनर्निर्माण और सौंदर्यीकरण के लिए देश की कई प्रतिष्ठित संस्थाएं आगे आ रही हैं जो कि अपने सीएसआर के माध्यम से इसमें आर्थिक सहयोग कर रही हैं । मंदिर समिति द्वारा इन संस्थाओं के साथ अनुबंध भी किए जा रहे हैं । मंदिर समिति के अनुसार मार्च में उखीमठ स्थित इन पौराणिक मंदिरों के पुनर्निर्माण की नींव रख दी जाएगी और भूमि पूजन किया जाएगा ।

 

रोमांच और शौर्य की कहानियाँ सुनाता बिहार का रोहतास गढ़ किला

रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेराव 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाज़े हैं। जिनमें मुख्य घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है।
इतिहास किस्सों और कहानियों से भरा होता है। कई बातें सच होती हैं तो कई बनावटी लेकिन यही चीज़ें ही तो उसे लोगों में मशहूर करती है। आज हम आपको बिहार जिले के ऐतिहासिक किले के सफ़र पर लेकर जा रहे हैं। बिहार नाम सुनकर आमतौर पर कोई यहां के ऐतिहासिक किले के बारे में नहीं सोचता इसलिए आज हम आपको बिहार के रोहतासगढ़ किले के बारे में गहराई से बताने जा रहे हैं।
रोहतास गढ़ का किला बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम से लगभग 55 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। कहा जाता है कि सोन नदी के बहाव वाली दिशा में पहाड़ी पर स्थित इस प्राचीन और मज़बूत किले का निर्माण त्रेता युग में अयोध्या के सूर्यवंशी राजा त्रिशंकु के पौत्र (बेटे का बेटा) व राजा सत्य हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व ने कराया था। इतिहासकारों की मानें तो किले की चारदीवारी का निर्माण शेरशाह ने सुरक्षा को देखते हुए कराया था ताकि किले पर कोई भी हमला न कर सके। बताया जाता है कि स्वतंत्रता संग्राम की पहली लड़ाई (1857) के समय अमर सिंह ने यहीं से अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह का संचालन किया था।
रोहतास गढ़ किले का इतिहास
रोहतास किले का इतिहास बहुत ही लंबा और रोचक है। हालाँकि इस किले से जुड़ी हुई कई बातें अस्पष्ट भी हैं। इस किले का संबंध 7 वीं शताब्दी के राजा हरिश्चंद्र के पुत्र रोहिताश्व से किया जाता है। मध्य काल के भारत में यह किला पृथ्वीराज चौहान ने जीत लिया था। इस किले को ज़्यादा महत्व तब मिला जब इस किले को शेर शाह सूरी ने साल 1539 में एक हिन्दू राजा से जीत लिया था। जब शेर शाह सूरी का शासन था तब इस किले की पहरेदारी करने के लिए 10,000 सैनिक तैनात किए गए थे। जानकारी के अनुसार, शेर शाह सूरी के शासन में उसके एक सैनिक हैबत खान ने किले के परिसर में जामा मस्ज़िद का निर्माण भी करवाया था।
साल 1588 में यह किला अकबर के जनरल मान सिंह के नियंत्रण में आ गया। उसने खुद के लिए इस किले में एक शानदार ‘तख्ते बादशाही’ नाम का महल भी बनवाया था। उसने अपनी पत्नी के लिए आइना महल और किले के द्वार के रूप में हथिया पोल का निर्माण करवाया था। महल के बाहर के परिसर में जामा मस्जिद, हब्श खान का मकबरा और सूफी सुलतान का मकबरा भी बनाया गया। मान सिंह महल के करीब आधे किमी. की दूरी पर पश्चिम दिशा में राजपुताना शैली में बनाया हुआ भगवान गणेश का मंदिर भी है।
बक्सर की लड़ाई के बाद अंग्रेज़ों ने किले पर कब्ज़ा जमा लिया। उन्होंने किले के कई हिस्सों को तबाह कर दिया। अगर सैन्य दृष्टि से देखा जाए तो यह किला पहाड़ के सबसे ऊपरी दिशा में बसा हुआ है। आपको इस किले में हिन्दू और मुस्लिम की बहुत सारी इमारतें देखने को मिलेंगी जो इस किले के इतिहास की याद दिलाती है।
दो हज़ार फीट की उंचाई पर स्थित इस किले के बारे में कहा जाता है कि कभी इस किले की दीवारों से खून टपकता था। फ्रांसीसी इतिहासकार बुकानन ने लगभग दो सौ साल पहले रोहतास की यात्रा की थी। उस समय उन्होंने पत्थर से निकलने वाले खून की चर्चा एक दस्तावेज़ में की थी। उन्होंने कहा था कि इस किले की दीवारों से खून निकलता है। वहीं, आस-पास के रहने वाले लोग भी इसे सच मानते हैं। वे तो ये भी कहते हैं कि बहुत पहले रात में इस किले से आवाज़ भी आती थी। इस आवाज़ को सुनकर हर कोई डर जाता था। हालांकि, किले से आने वाली आवाज़ और दीवारों से खून निकलने की बात अंधविश्वास है या सच- ये रहस्य तो इतिहास में ही छुपा हुआ है। जिसकी चर्चा आज किस्से-कहानियों के रूप में होती है।
रोहतास किले में घूमने के लिए स्थान
रोहतास गढ़ का किला काफी भव्य है। किले का घेराव 28 मील तक फैला हुआ है। इसमें कुल 83 दरवाज़े हैं जिनमें मुख्य घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है। प्रवेश द्वार पर बने हाथी की मूर्ती, दरवाजों के बुर्ज, दीवारों पर पेंटिंग देखने में बहुत अद्भुत प्रतीत होती है। रंगमहल, शीश महल, पंचमहल, खूंटा महल, आइना महल, रानी का झरोखा, मानसिंह की कचहरी आज भी यहां मौजूद हैं। परिसर में ऐसी ही कई इमारतें हैं जो की काफ़ी सुंदर है जिसका मज़ा आप यहां आकर ही उठा सकते हैं।
1. आइना महल – यह महल मान सिंह की पत्नी के नाम पर है। इस महल को ऐना महल कहा जाता है। यह महल बीच में आता है।
2. रोहतासन मंदिर – महल के करीब एक मील की दूरी पर उत्तर पूर्वी दिशा में दो मंदिरों के अवशेष देखने को मिलते है। एक मंदिर भगवान शिव का है जिसे रोहतासन मंदिर कहते हैं। यहां की सारी सीढ़ियां तोड़ दी गयी हैं। अब यहां सिर्फ 84 सीढ़ियां ही अच्छी हालत में है जिन पर चढ़कर मंदिर तक पंहुचा जा सकता है।
3. जामा मस्जिद और हब्श खान का मकबरा – महल के आजू-बाजू के इलाके में जामा मस्जिद, हब्श खान का मकबरा और सूफी सुलतान का मकबरा है। यहाँ खड़े स्तंभ पर प्लास्टर की शैली में कई सारे गुबंद बनाए गए है जो की राजपुताना शैली की याद दिलाते हैं। यहां पर सभी गुबंद को छत्री भी कहा जाता है।
4. हथिया पोल – इस किले के मुख्य द्वार को हथिया पोल या हथिया द्वार भी कहा जाता है। इस द्वार को हथिया द्वार इसलिए कहा जाता है क्यूंकि द्वार पर हाथी की बहुत सारी प्रतिमा है। उन प्रतिमाओं की वजह से द्वार बहुत ही ज़्यादा सुंदर दिखता है। यह द्वार किले का सबसे बड़ा किला है और इसे साल 1597 में बनाया गया था।
5. गणेश मंदिर – मान सिंह महल के पश्चिम दिशा में आधे किलोमीटर की दूरी पर गणेश मंदिर है। इस मंदिर में जाने के लिए दो तरफ़ से रास्ते बनाए गए हैं।
6. हैंगिंग हाउस – पश्चिम की दिशा में ही गुफा जैसी बनी हुई इमारत दिखती है। लेकिन इस गुफ़ा के कोई सबूत नहीं मिल पाए हैं। यहाँ के लोग इस इमारत जैसी गुफा को हैंगिंग हाउस कहते है। यहाँ से 1500 फीट नीचे की दूरी पर एक बहुत बड़ा झरना भी है। रोहतासगढ़ जलप्रपातों (झरनों) के लिए भी प्रसिद्ध है जो कैमूर की पहाड़ियों से पूर्व की ओर गिरते हैं और सोन नदी में मिल जाते हैं।

चंदौली की कोठी पहाड़ी में मिला सम्राट अशोक काल का स्तूप

 पुरापाषाणिक औजार भी मिले

वाराणसी । बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के मुताबिक सर्वेक्षण में चंदौली जिले में कई पुरास्थल मिल रहे हैं। कोठी पहाड़ी में सम्राट अशोक के काल का पाषाण स्तूप, भीखमपुर में बुद्ध व बोधिसत्व और दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजार व शैलाश्रय मिले हैं।
यूपी के चंदौली जिले के तीन स्थानों पर पांच हजार से 50 हजार साल पुराने आदम जाति के साक्ष्य मिले हैं। खोदाई व खोज के दौरान कोठी पहाड़ी में सम्राट अशोक के काल का पाषाण स्तूप, भीखमपुर में बुद्ध व बोधिसत्व और दाउदपुर में पुरापाषाणिक औजार व शैलाश्रय मिले हैं।
काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व विभाग के शोध छात्र परमदीप पटेल के मुताबिक सर्वेक्षण में चंदौली जिले में कई पुरास्थल मिल रहे हैं। सर्वेक्षण में चंदौली जिले की चकिया तहसील के फिरोजपुर, भीखमपुर और दाउदपुर गांवों में पुरातात्विक महत्व की दृष्टि से अनेक पुरास्थल मिले हैं।
उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप
इनमें फिरोजपुर ग्राम की कोठी पहाड़ी में मिला पाषाण स्तूप बेहद महत्वपूर्ण है। इसके साथ ही यहां से बड़ी संख्या में पुरापाषाणिक औजार, मध्यपाषाण काल के उपकरण, मेगालिथिक समाधियां और चित्रित शैलाश्रय मिले हैं। इनका अनुमानित काल क्रम पांच हजार से 50 हजार वर्ष पूर्व तक का माना जा रहा है।
शोध निर्देशक प्रो. महेश प्रसाद अहिरवार ने बताया कि फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी पर मिला स्तूप उत्तर भारत का पहला पाषाण निर्मित स्तूप है। यह मौर्य सम्राट अशोक के समय का बना एक विलक्षण स्तूप है। इस प्रकार के पत्थर के स्तूप सांची और उसके आसपास के क्षेत्र में बहुतायत में मिलते हैं जो अपनी निर्माण शैली और कला सौंदर्य के लिए विख्यात हैं। प्रो. अहिरवार के मुताबिक उत्तर भारत में नये पाषाण स्तूप की खोज ऐतिहासिक और पुरातात्विक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण है, क्योंकि उत्तर भारत में अब तक जितने भी स्तूप मिले हैं, वे सभी ईंट या मिट्टी के बने हैं।
शैलाश्रय में लाल रंग से बनाए आदि मानव
सर्वेक्षण के दौरान भीखमपुर गांव की पहाड़ी में भी प्रागैतिहासिक शैलाश्रय मिले हैं। इनमें आदि मानव द्वारा लाल रंग से बनाए गए कई चित्र और पूरी पहाड़ी के विभिन्न भागों में मगध शैली के उत्कीर्ण विशेष चिह्न मिहे हैं। ऐसे चिह्न मगध शैली के आहत सिक्कों में देखे जाते हैं। इस पहाड़ी की एक प्राकृतिक गुफा से बुद्ध मूर्ति और पहाड़ी की चोटी पर बने आधुनिक मंदिर में बोधिसत्व की प्रतिमा इस क्षेत्र के दीर्घकालीन इतिहास को बताती है। पहाड़ी पर स्थित पुराने भवनों के जमींदोज खंडहरों की बिखरी ईंटों से इसकी पुष्टि हो रही है कि ये प्रतिमाएं कुषाण काली की हैं।
पहाड़ी की तलहटी के ठीक नीचे एक विशाल टीला भी मिला है जहां पर कई तरह की पुरावस्तुएं बिखरी हैं। इसमें छठीं शताब्दी से लेकर पूर्व मध्यकालीन मृदभांड के टुकड़े, कृष्ण लोहित मृदभांड, कृष्ण लेपित मृदभांड, मोटे व पतले गढ़न के लाल मृदभांड और पत्थर के सिल-लोढ़े, चक्कियां, पत्थर के बटखरे मिले हैं। भीखमपुर की तरह फिरोजपुर की कोठी पहाड़ी समीपवर्ती दाउदपुर की पहाड़ी में भी आदि मानव के निवास के लिए उपयुक्त दो चित्रित शैलाश्रय मिले हैं और मध्य पाषाण कालीन पत्थर के उपकरण मिले हैं।

 

कर्नाटक में नया प्लांट लगाने की तैयारी में फॉक्सकॉन

बेंगलुरू । ताइवान की चिप व स्मार्टफोन बनाने वाली कंपनी फॉक्सकॉन कर्नाटक में एक नया प्लांट लगाने की तैयारी में है । कंपनी का यह नया प्लांट कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में हवाई अड्डे के पास 300 एकड़ में बनाया जा सकता है । इसके लिए कंपनी 700 मिलियन डॉलर का भारी-भरकम निवेश कर सकती है ।
चीन और अमेरिका के बीच तनाव का असर
मनीकंट्रोल की एक खबर में मामले से जुड़े सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि फॉक्सकॉन भारत में अपना स्थानीय उत्पादन तेज करना चाह रही है । इसके लिए कंपनी अब कर्नाटक में 700 मिलियन डॉलर के निवेश से नया प्लांट लगा सकती है । ऐपल के लिए आईफोन बनाने वाली ताइवान की कंपनी फॉक्सकॉन के इस कदम को चीन और अमेरिका के बीच बढ़ते तनाव से जोड़कर देखा जा रहा है । ऐसा माना जा रहा है कि दुनिया की दो शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं के बीच बढ़ते तनाव के कारण फॉक्सकॉन अब चीन से अपना मैन्यूफैक्चरिंग बिजनेस भारत में शिफ्ट कर रही है ।
नए प्लांट में होंगे ये उत्पादन
फॉक्सकॉन की फ्लैगशिप यूनिट होन हाई प्रीसिजन इंडस्ट्री कंपनी आईफोन बनाती है । खबर के अनुसार, अब यही यूनिट बेंगलुरू एयरपोर्ट के पास 300 एकड़ में प्लांट लगाने जा रही है । सूत्रों का कहना है कि कंपनी इस प्लांट में ऐपल के लिए आईफोन बना सकती है । इसके अलावा प्लांट में कंपनी अपने नए इलेक्ट्रिक व्हीकल के लिए भी कुछ पार्ट्स का प्रोडक्शन कर सकती है । हालांकि अभी इस बारे में कंपनी की ओर से सार्वजनिक तौर पर कुछ नहीं कहा गया है ।
कम हो रहा है चीन का दबदबा
अगर यह खबर सच साबित होती है तो यह भारत में फॉक्सकॉन का अब तक का सबसे बड़ा एकल निवेश होगा । आपको बता दें कि अमेरिका के साथ बढ़ते तनाव के बीच चीन में कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स का प्रोडक्शन प्रभावित हो रहा है । अभी तक चीन दुनिया के सबसे बड़े कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स प्रोड्यूसर के तौर पर जाना जाता रहा है । अगर इसी तरह से कंपनियों ने अपना प्रोडक्शन चीन से शिफ्ट किया तो चीन से यह दर्जा छिन सकता है । वहीं इस बदलाव से भारत सबसे बड़े लाभार्थियों में से एक बनकर उभर रहा है ।
मिलेंगे इतने लोगों को रोजगार
खबर में मामले से जुड़े लोगों के हवाले से बताया गया है कि कर्नाटक में प्रस्तावित प्लांट से रोजगार के करीब 01 लाख अवसर पैदा हो सकते हैं । अभी फॉक्सकॉन के चीनी शहर झेंगझोउ स्थित आईफोन प्लांट में करीब 02 लाख लोग काम करते हैं । पीक प्रोडक्शन सीजन में यह आंकड़ा और बढ़ जाता है । कोविड-19 के कारण आए व्यवधान के चलते झेंगझोउ प्लांट में प्रोडक्शन पर असर हुआ है । इस कारण भी फॉक्सकॉन चीन के बजाय अन्य विकल्पों पर गौर कर रही है । कहा जा रहा है कि कंपनियां अनुमान से ज्यादा तेजी से चीन से अपना प्रोडक्शन शिफ्ट कर रही हैं ।

 

महिलाओं को घरेलू हिंसा से लड़ना सिखा रहे हैं सिलीगुड़ी के अधिवक्ता राजेश

लक्ष्मी शर्मा

सिलीगुड़ी । सच ही कहा है किसी ने कि हमारे समाज में भले ही तरक्की कर ली हो हम विकास के बड़े-बड़े दावे कर रहे हैं लेकिन समानता का अधिकार नाम मात्र का एक शब्द बनकर रह गया है। कहने को तो सब कुछ है लेकिन देखा जाए तो कुछ भी नही। शहर तरक्की कर गया सिनेमैक्स, थिएटर, बड़े बड़े मॉल खुल गए लोगों का रहन-सहन बदल गया पर मेरा जीवन वहीं का वहीं बल्कि दिन पर दिन भर से बदतर होता रहा । समझ में नहीं आ रहा था कि मैं कहां जाऊं किसके पास जाऊँ और किससे अपनी मन की बातें साझा करूँ ।
ऐसी ही बदहाली में मेरे जीवन के दिन गुजरते रहे , मैं उत्तर प्रदेश की रहने वाली हूँ, शादी जलपाईगुड़ी जिला में करीबन 12 साल पहले हुई थी । मैं यहां की भाषा से भी अपरिचित थी अनजान थी और न ही मुझे यहां के तौर तरीके नहीं आते थे । ऐसा लगता था जैसे मैं बिल्कुल ही नयी जगह पर आ गई हूँ । आने के बाद से पारिवारिक वातावरण बहुत ही खराब था जो शायद मेरे रहने के लायक भी नहीं था । सास की तानाशाही , पति हमेशा जले – कटे शब्द ही मुझे सुनाते थे । इन सब की मुझे अब आदत हो चुकी थी ।
प्यार के नाम पर कभी भी प्यार नहीं मिला। प्यार के नाम पर मिला तो अपमान और आज सम्मान और अत्याचार और काम करने के बदले में रोटी के टुकड़े। छोटे दो बच्चे होने के कारण मैं कुछ कर भी नहीं पा रही हूँ। मायके में मेरी मां थी तब तक बात भी कर लेती थी। उनके जाने के बाद तो किसी से बात भी नहीं कर सकती । मेरा जीवन जैसे नरक सा बन गया है, मायके वाले किसी भी तरह का कोई भी साथ नहीं देते कहते हैं, कि अब वही तेरा घर है। पति मेरे साथ मारपीट करते है।
कोई ऐसा नहीं था जिससे मैं मदद माँगती या मैं बताती कि मैं किस हालत में हूं। तभी मुझे किसी के माध्यम से हम जैसी महिलाओं के रहनुमा आज की तारीख में मेरे बड़े भाई राजेश अग्रवाल जी का नंबर मुझे मिला और मैंने उनसे फोन पर अपने बारे में डरते डरते सब कुछ बताया । उन्होंने मेरी सारी बात सुनी और कहा कि आप अकेली नहीं है । आप चिंता ना करें आज से आपका भाई आपके साथ है और उस दिन से लेकर आज तक मेरे लिए वह कानूनी लड़ाई लड़ते आ रहे हैं।
तो वही एक बड़े भाई की तरह घर पर आकर मेरी सास को मेरे परिवार वालों को मेरे पति को समझाते हैं। कहते हैं कि परिवार के साथ अच्छे से रहिए कभी धमकाकर तो कभी प्यार से । कभी समाज को बुलाकर आज मैं कह सकती हूं कि मेरे हक के लिए भी कोई है लड़ने वाला जिससे खून का रिश्ता तो नहीं है। लेकिन हां वह अभिभावक की तरह सिर पर जरूर खड़ा है जो मुझ जैसी बहनों के लिए हमेशा खड़े रहते है। यह कहानी घरेलू हिंसा से परेशान एक महिला की है जिन्होंने अपना नाम गुप्त रखने की शर्त पर पत्रकार लक्ष्मी शर्मा से बात की । यह कहानी सिर्फ इसी महिला की नहीं है बल्कि ऐसी कई महिलाएं हैं जिनको सिलीगुड़ी के वरिष्ठ अधिवक्ता राजेश अग्रवाल से सहायता मिली है ।
इस मामले के बारे में बात करने पर अधिवक्ता राजेश अग्रवाल ने कहा कि आज भी समाज कहीं ना कहीं बेटियों को लेकर अपनी वहीं पर संकीर्ण सोच के साथ जी रहा है । बेटी की शादी तो करनी है जरूर लेकिन उनकी विदाई नहीं की जानी चाहिए य, उन्हें कहीं न कहीं यह सोचना चाहिए कि बेटी उनके घर की है । उनकी एक जिम्मेदारी है कि उसके हर सुख- दुख में उसका साथ दें । अगर उसके साथ कुछ गलत हो रहा है तो वह आगे बढ़ कर उसका साथ दें और अन्याय होने से अपनी बेटी को बचाए।
क्या उनका फर्ज यही है कि वह शादी करके उसको छोड़ दें और वह जिंदगी भर तकलीफ में रहे और एक दिन अपनी जीवन लीला समाप्त कर ले ? अगर माता पिता अपनी बेटी का साथ दें तो कि नहीं हम तुम्हारे साथ हैं । तुम्हारे साथ कुछ भी गलत हो तुम हमें बोल सकती हो हमारे घर के दरवाजे तुम्हारे लिए खुले हैं तो वह शायद उस अन्याय का सामना करने में पूरी तरह से समर्थ हो और ससुराल वाले भी इसके मायके वाले तो इसके साथ हैं, तो अन्याय करने से पहले सोचेंगे ।

लिटिल थेस्पियन का दसवां रंग अड्डा आयोजित

कोलकाता । लिटिल थेस्पियन द्वारा आयोजित दसवां रंग अड्डा कोलकाता के सुजाता देवी विद्या मंदिर में गत 26 फरवरी 2023 को सम्पन्न हुआ। लिटिल थेस्पियन के संस्थापक अज़हर आलम और उमा झुनझुनवाला की परिकल्पना की देन है ये रंग अड्डा । ये दोनों हमेशा से चाहते रहे हैं कि नई पीढ़ी में रंग संस्कार का बीज प्रफुल्लित हो। इस रंग अड्डे के केंद्र में फ्रेंच नाटककार मौलियर और 1950 के दशक में भारत में हिंदी साहित्य के नई कहानी साहित्यिक आंदोलन के अग्रदूत मोहन राकेश थे । मौलियर पर समीक्षा पाठ पार्वती रघुनंदन ने किया, वहीं आषाढ़ का एक दिन पर समीक्षा पाठ राधा ठाकुर ने किया।। मोहन राकेश पर आलेख पाठ सुधा गौड़ और प्रियंका सिंह ने किया। आषाढ़ का एक दिन नाटक के एक अंश का पाठ मनोहर कुमार झा, इंतखाब वारसी, विशाल कुमार राउत और प्रियंका सिंह ने किया। मौलियर का नाटक तारतुफ के एक अंश का पाठ संगीता व्यास , पार्वती रघुनंदन, राधा ठाकुर, निताई समादर तथा अमित कुमार यादव ने किया। राजकमल चौधरी की कविता ‘ शव – यात्रा का मृत संगीत ‘ का अभिनयात्मक पाठ उमा झुनझुनवाला और आसिफ़ अंसारी ने किया। स्व रचित कविता का अभिनयात्मक पाठ संगीता व्यास ने किया और निताई समदार ने बांग्ला कविता का पाठ किया | कार्यक्रम में अतिथि के रूप में उपस्थित श्री शिक्षायतन कॉलेज की प्रोफ़ेसर अल्पना नायक ने कहा कि उमा दी एक ऐसा कलाकार वर्ग तैयार कर रहीं हैं जो किसी भी विधा के अंतर्मुखी अर्थ से अभिप्रेरित रहेंगें। अब लिटिल थेस्पियन 12 वां राष्ट्रीय नाट्य उत्सव के आगाज़ की तैयारी में हैं जो 18 मार्च से 23 मार्च तक ज्ञान मंच में आयोजित होगी।

‘प्रोग्राम ऑन एडवांटेज एमएसएमई – द बिग स्ट्राइड्स’

कोलकाता । एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम-पश्चिम बंगाल चैप्टर ने एनसीएलटी कोलकाता बार एसोसिएशन एवं कंसर्न फॉर कलकत्ता और मल्टी कमोडिटी एक्सचेंज ऑफ इंडिया लिमिटेड (एमसीएक्स) ने संयुक्त रूप से ‘एडवांटेज एमएसएमई-द बिग स्ट्राइड्स’ विषय पर एक कार्यक्रम का आयोजन किया। पश्चिम बंगाल में पूरे देश में एमएसएमई की दूसरी सबसे बड़ी संख्या है। एमएसएमई के जरिये उद्योग जगत में पश्चिम बंगाल की प्रतिभा और उद्यमशीलता को दिखाने के उद्देश्य से ही इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन किया गया है। इस कार्यक्रम में शिशिर बाजोरिया (अध्यक्ष, आईआईएम शिलांग), अधिवक्ता नारायण जैन (राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, ऑल इंडिया फेडरेशन ऑफ टैक्स प्रैक्टिशनर्स, एआईएफटीपी, सीए संजीब सांघी (आईसीएआई के ईआईआरसी के उपाध्यक्ष), सीएस डॉक्टर एवं एडवोकेट ममता बिनानी (पूर्व अध्यक्ष, आईसीएसआई और एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम पश्चिम बंगाल चैप्टर की वर्तमान अध्यक्ष, एस एम गुप्ता (एनसीएलटी कोलकाता बार एसोसिएशन के अध्यक्ष), के एस अधिकारी (कंसर्न ऑफ कोलकाता के अध्यक्ष) के अलावा कई अन्य विशिष्ट हस्तियां इस कार्यक्रम में मौजूद थें। इस कार्यक्रम का विषय ‘एमएसएमई के प्रति सरकारी दृष्टिकोण’, ‘एमएसएमई के लिए बुनियादी प्रौद्योगिकी’, ‘एमएसएमई और स्टार्ट अप के लिए आयकर लाभ दिलवाना’ और इसके अलावा ‘एमएसएमई के लिए अन्य कई वित्त योजनाएं’ शामिल थे।

इस मौके पर सीएस डॉक्टर एवं एडवोकेट ममता बिनानी (पूर्व अध्यक्ष आईसीएसआई और एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम पश्चिम बंगाल चैप्टर की अध्यक्ष) ने कहा, एमएसएमई एक ऐसा क्षेत्र है जो न केवल सभी तरह के घरेलू उत्पाद को बढ़ावा देता है, बल्कि 6 करोड़ से अधिक की इकाइयाँ और 11 करोड़ से अधिक श्रमिक के साथ एमएसएमई क्षेत्र कृषि के बाद देश का दूसरा सबसे बड़ा नियोक्ता क्षेत्र होने के कारण यह राष्ट्र के सामाजिक और समान विकास के लिए यह एक बड़ा संबल है। आर्थिक क्षेत्र में पर्याप्त योगदान एवं विकास के साथ सकल घरेलू उत्पाद का लगभग 30% और सभी भारतीय निर्यातों का 45% से अधिक इस क्षेत्र में जाता है। एमएसएमई के बारे में: वैश्विक रैंकिंग इंडेक्स पर भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में एमएसएमई काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह दर्शाता है कि क्षेत्र कितनी तेजी से विकास कर रहा है।

आदर्श, भावना एवं यथार्थ की त्रिवेणी रचती हैं पुस्तकें – अजयेन्द्र त्रिवेदी

कोलकाता। ‘ पुस्तकें आदर्श, यथार्थ एवं भावना की त्रिवेणी रचती हैं। यह भी एक सुखद संयोग रहा कि इस कार्यक्रम में रचनाकार, समीक्षक और पाठक तीनों वर्ग मौजूद हैं जो अपने आप में एक स्वर्णिम त्रिभुज का सृजन कर रहा है। सरोज कौशिक की पुस्तक ‘ पूर्णमिदं ‘ को आदर्श के उच्चतम शिखर पर देखा गया , तो नन्दलाल रौशन की पुस्तक ‘हक में हैं खामोशियाँ ‘ भावनाओं की आकाश गंगा आलोड़ित करती सी नज़र आई और रामनाथ बेख़बर की पुस्तक ‘ ख्वाहिश ‘ की रचनायें यथार्थ की पुष्ट जमीन पर खड़ी हो संघर्ष की विजय गाथा का आह्वान कर रही है। ‘–ये उद्गार हैं विशिष्ट साहित्यसेवी श्री अजयेन्द्र नाथ त्रिवेदी के, जो आज श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय द्वारा आयोजित एक शाम किताबों के नाम के द्वितीय आयोजन में बतौर अध्यक्ष बोल रहे थे।
इस कार्यक्रम में नंदलाल रौशन की कृति ‘ हक में हैं खामोशियॉं ‘,सरोज कौशिक की ‘ पूर्णमिदम् ‘ एवं  रामनाथ बेखबर की ‘ ख्वाहिश ‘ पर विशेष चर्चा हुई। लेखकीय वक्तव्य के पश्चात समीक्षात्मक टिप्पणी डॉ अभिलाषा पांडेय, दुर्गा व्यास, परमजीत पंडित एवं ऋतु डागा ने की।
कार्यक्रम के शुरुआत में कुमारसभा के अध्यक्ष महावीर बजाज ने इस कार्यक्रम की पृष्ठभूमि पर प्रकाश डालते हुए कहा कि ‘परम्परा लुप्त न हो तथा हम अपनी जड़ों से जुड़े रहें ‘ के भाव से यह आयोजन प्रारंभ किया गया। यह महानगर के लेखकों के लिए चर्चा का खुला मंच होगा। पुस्तकों के पठन-पाठन के लिए इससे एक जागरूकता का सृजन होगा।
कार्यक्रम का प्रारंभ श्री उदय यादव ने ‘देश हमें देता है सब-कुछ, हम भी तो कुछ देना सीखें ‘ गीत के सस्वर पाठ से किया। कार्यक्रम का संचालन किया डॉ कमल कुमार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन किया कुमारसभा के मंत्री बशीधर शर्मा ने। सर्वश्री डॉ ऋषिकेश राय, अजय चौबे, नंदकुमार लढा, श्रीमोहन तिवारी, श्रीमती दिव्या प्रसाद एवं श्रीमती गायत्री बजाज ने अतिथियों का स्वागत किया। इस साहित्यिक गोष्ठी में महानगर के कई गणमान्य साहित्यकार एवं विद्वतजन तथा साहित्यप्रेमी सम्मिलित हुए जिन्होंने इस सारस्वत आयोजन की सराहना की।
गोष्ठी में रेणु गौरीसरिया, सुधा जैन, रेखा ड्रोलिया, डॉ सत्यप्रकाश तिवारी, ज्ञान प्रकाश पाण्डेय, जीवनसिंह, संजय मंडल, सीताराम तिवारी, अजय सराफ, अशोक सोनकर, अरविंद तिवारी, मनोज काकड़ा,डॉ आर एस मिश्रा, आदित्य बिनानी, भागीरथ सारस्वत, गुड्डू दूबे, अरुण सोनी, जसवंत सिंह, सुषमा त्रिपाठी, अनिल उपाध्याय, विनोद यादव, बृजेन्द्र पटेल, शनि चौहान, श्रीप्रकाश गुप्त, रुद्रकांत झा, नितिश सिंह, चंद्र कुमार जैन, रानी टांटी, विवेक तिवारी प्रभृति विशेष रूप से उपस्थित थे।

 

रवीन्द्र भारती के जोड़ासांको संग्रहालय में जुड़ेगी इटली दीर्घा

कोलकाता । रवीन्द्र भारती जोड़ासांको संग्रहालय में एक नयी दीर्घा जुड़ने जा रही है । विश्वविद्यालय के इस संग्रहालय में अब इटली की दीर्घा स्थापित होगी । इसे लेकर रवीन्द्रभारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर प्रो. सब्यसाची बसु राय चौधरी एवं कोलकाता में इटली के कौंसुलेट जनरल डॉ. गियानुलुका रुबागोट्टी ने हस्ताक्षर किये । यह समझौता कविगुरु रवीन्द्र नाथ की इटली यात्रा को स्मृतियों को सहेजने के उद्देश्य से किया गया । इस दीर्घा के निर्माण एवं यहाँ लगने वाली प्रदर्शनी का अधिकतर खर्च इटली का वाणिज्य दूतावास वहन करेगा । रवीन्द्र भारती विश्वविद्यालय के वाइस चांसलर सब्यसाची बसु रायचौधरी ने कहा कि कविगुरु रवीन्द्रनाथ तीन बार इटली गये और 10 से अधिक शहरों में गये । कवि गुरु के इस अनुभव को दीर्घा तस्वीरों, दस्तावेजों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाएगा । इसके साथ इटली से सम्बन्धित उनकी कविताएं भी प्रदर्शित किए जाएंगे । उन्होंने कहा कि विदेश मंत्रालय एवं राज्य सरकार भी इस समझौते को लेकर काफी सकारात्मक हैं और यह समझौता भारत – इटली की मैत्री को मजबूत बनाने में सहायक होगा । गौरतलब है कि मार्च के प्रथम सप्ताह में इटली के प्रधानमंत्री जियोर्जिया मेलोनी भारत आ रहे हैं और इसे देखते हुए यह पहल काफी महत्व रखती है । इस अवसर पर भारत में इटली के राजदूत विन्सेंजो डी लुका ने बधाई सन्देश भेजा । उम्मीद है कि कुछ महीनों में यह दीर्घा बनकर तैयार हो जाएगी ।

विवाह मानवीयता का परिशोधन और परिवर्धन है :डॉ. सोमा बंदोपाध्याय

कोलकाता । राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई कोलकाता द्वारा आयोजित संगोष्ठी में “वर्तमान समय में विवाह के बदलते स्वरूप” विषय पर देश के महत्वपूर्ण साहित्यविदों, पत्रकारों, नाट्यकार ने अपने वक्तव्य रखे। विषय प्रवेश करते हुए छपते छपते हिंदी दैनिक कोलकाता और ताजा टीवी के निदेशक वरिष्ठ संपादक विश्वंभर नेवर ने विषय प्रवेश करते हुए प्रमुख आंकड़ों को रखते हुए भारत के हिंदू विवाह, संस्कार, इतिहास को बताते हुए अरैंज मैरिज से लेकर कानूनी रुप से स्वीकृत विवाह और सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर बात रखी। विश्वंभर नेवर ने कहा कि वर्तमान समय में विवाह के स्वरूप में बहुत अधिक परिवर्तन हैं जो समाज के ढांचे को भी तेजी से बदल रहे हैं ।
व्यंगकार और साहित्यकार विशिष्ट वक्ता नुपूर अशोक ने बताया कि विदेश और भारत की मानसिकता में बहुत अंतर है। अब विवाह में दिमाग का रोल अधिक है दिल का कम। पेशे से शिक्षिका और सक्रिय रूप से कई संस्थानों से जुड़ीं दुर्गा व्यास ने भारतीय संस्कृति में विवाह संस्कार के विभिन्न पहलुओं पर अपने विचार व्यक्त करते हुए लिव इन रिलेशनशिप और समलैंगिक विवाह को विवाह माना ही नहीं।
प्रसिद्ध अभिनेत्री, नाट्यकार, नाट्य लेखिका, युवाओं से जुड़ी कवयित्री उमा झुनझुनवाला ने अपने वक्तव्य में कहा कि पिछले दो वर्षों में कोरोना काल से विवाह की सोच में बहुत परिवर्तन हुए।नए संस्कार अब टुकड़ों में आ रहे हैं।
वर्तमान समय में विवाह के बदलते स्वरूप विषय को समसामयिक विषय बताते हुए कहा कि भारत विविधताओं का देश है। आज युवक-युवतियाँ अपनी इच्छा से सभी कार्य कर रहे हैं वे अपना स्थान स्वयं बनाते जा रहे हैं।
ओडिशा महिला आयोग की पूर्व सदस्य वरिष्ठ वकील नम्रता चढ्ढा ने कहा कि भारत में विवाह के विभिन्न व्यक्तिगत विचार और कोर्ट में तलाक के मुकदमों की चर्चा विभिन्न प्रकार के मानसिक, शारीरिक, आर्थिक और राजनीतिक शोषणों का सामना करना पड़ता है। भारत में हिंदू मुस्लिम सिख ईसाई पारसी बौद्ध सभी लोगों के अलग अलग विवाह के नियम हैं। आदिवासियों और ग्रामीण और नगर महानगर में विविधता है।
मुख्य वक्ता के रूप में डायमंड हार्बर विश्विद्यालय और शिक्षण प्रशिक्षण से संबद्ध कुलपति प्रो सोमा बंदोपाध्याय ने अपने बहुमूल्य विचार रखते हुए कहा कि विवाह का अर्थ अर्थात विशेष रूप से निर्वाह करना है। विवाह के संदर्भ में अपनी कविता हवाओं में बादलों में /… इस मन ने उस मन को दी सम्मति सुनाई। भारत में विवाह एक पवित्र बंधन है वहीं पश्चिम में तीन अंगूठियाँ महत्वपूर्ण होती हैं जो सगाई शादी और पीड़ा यात्राओं से संबधित है। विवाह मानवीय पहले प्रवृत्तियों का परिशोधन और परिवर्धन है।
कार्यक्रम का संचालन किया राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई कोलकाता की अध्यक्ष डॉ वसुंधरा मिश्र ने जो भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की हिंदी प्रवक्ता हैं। संचालन के दौरान कई प्रश्न उठाए गए। वर्तमान समय में विवाह के बदलते स्वरूप में विवाह की कानूनी अधिकतम आयु सीमा लड़की की 18 वर्ष और लड़के की 21 वर्ष हो गई है। शहरों में कॅरियर बनाने में युवा युवक अधिक ध्यान दे रहे हैं जिससे उनके सामाजिक जीवन में रिक्तता आई है। एक दूसरे को समय नहीं दे पाते हैं और बच्चों पर भी असर पड़ता है। माता-पिता और युवा पीढ़ी को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
प्रश्नोत्तर सत्र का संचालन किया डॉ सुषमा हंस ने। डॉ मंजूरानी गुप्ता, सुषमा त्रिपाठी, कविता कोठारी, सीमा भावसिंहका आदि कई सदस्यों ने प्रश्न पूछे जिनका उत्तर नम्रता चढ्ढा ने दिए।
राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन के राष्ट्रीय महासचिव और नई पीढ़ी के संस्थापक शिवेंद्र प्रकाश द्विवेदी ने नयी पीढ़ी और राइटर्स एंड जर्नलिस्ट्स एसोसिएशन महिला इकाई की सभी सदस्याओं और प्रमुख अतिथि वक्ताओं को धन्यवाद देते हुए कहा कि आधुनिक समाज के बदलते हुए विभिन्न विषयों पर चर्चा करना हमारा कर्तव्य और धर्म है। संवाद होने से समस्याओं का समाधान मिलता है। यह कार्यक्रम जूम पर ऑनलाइन हुआ। इस कार्यक्रम का संचालन और संयोजन डॉ वसुंधरा मिश्र ने किया ।