नयी दिल्ली । भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। हर रोज लाखों लोग भारतीय रेल से यात्रा करते हैं। इस समय वंदे भारत, वंदे मेट्रो और रैपिडएक्स (Rapidx) ट्रेनों के कारण भारतीय रेलवे सुर्खियों में है। भारतीय रेलवे से जुड़े कई रोचक फैक्ट्स हैं। रेल से यात्रा करते समय आपके मन में भी कई सारे सवाल आते होंगे। जैसे- रेलवे ट्रैक पर गिट्टियां क्यों बिछी होती हैं। जंक्शन, टर्मिनस और सेंट्रल का क्या मतलब है। रिजर्वेशन में सीटों का आवंटन किस तरह से होता है, इनमें से एक सवाल का जवाब आज हम आपको देने वाले हैं। हम बताएंगे कि रेलवे ट्रैक पर गिट्टी क्यों बिछी होती है। आइए जानते हैं।
इस तरह तैयार होता है रेलवे ट्रैक
ट्रेन की पटरी के नीचे कंक्रीट के बने प्लेट होते हैं। इन्हें स्लीपर कहा जाता है। इन स्लीपर के नीचे गिट्टी बिछी होती है। इसे बलास्ट कहा जाता है। इसके नीचे अलग अलग तरह की दो लेयर में मिट्टी डली होती है। इन सबके नीचे साधारण जमीन होती है। रेलवे ट्रैक साधारण जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर होते हैं। पटरी के नीचे कंक्रीट के बने स्लीपर, फिर पत्थर और इसके नीचे मिट्टी डली होती है। इस तरह एक रेलवे ट्रैक बनता है।
ट्रेन के वजन को संभालते हैं पत्थर
रेलवे पटरी के नीचे बिछी गिट्टी खास तरह की होती है। ये नुकीले पत्थर होते हैं। अगर इनकी जगह गोल पत्थरों का उपयोग किया जाए, तो वे एक दूसरे से फिसलने लगेंगे और पटरी अपनी जगह से हट जाएगी। ये नुकीले होने के कारण एक दूसरे में मजबूत पकड़ बना लेते हैं। जब ट्रेन पटरी से गुजरती है, तो ये पत्थर आसानी से ट्रेन के वजन को संभाल लेते हैं। ट्रेन का वजन करीब 10 लाख किलो तक होता है। इस वजन को केवल पटरी नहीं संभाल सकती। ट्रेन के वजन को संभालने के लिए लोहे की पटरियों के साथ ही कंक्रीट के बने स्लीपर और गिट्टी मदद करती हैं। सबसे अधिक वजन इस गिट्टी पर ही होता है।
कंपन सहकर करते हैं सुरक्षा
रेलवे ट्रैक पर ट्रेन काफी स्पीड से दौड़ती है। इससे कंपन्न पैदा होता है। इस कारण पटरियों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। कंपन्न कम करने के लिए और पटरियों को फैलने से बचाने के लिए ट्रैक पर पत्थर बिछाए जाते हैं। पटरी पर बिछे पत्थर कंक्रीट के बने स्लीपर को एक जगह स्थिर रहने में मदद करते हैं। यह गिट्टी नहीं होगी तो कंक्रीट से बने स्लीपर मजबूती से अपनी जगह पर बने नहीं रह पाएंगे।
पटरियों पर नहीं भरता पानी
रेलवे ट्रैक पर बिछी गिट्टी के कई सारे फायदे हैं। बरसात के समय पानी जब ट्रैक पर गिरता है, तो वह गिट्टियों से होते हुए जमीन में चला जाता है। इससे रेलवे ट्रैक पर जलभराव नहीं हो पाता है।
बिना गिट्टी के होगा यह नुकसान
अगर रेलवे ट्रैक पर गिट्टी नहीं बिछाई गई, तो वहां घास और पौधे उग आएंगे। इससे रेलवे ट्रैक पर ट्रेन चलाने में दिक्कत हो सकती है। रेलव ट्रैक पर बिछी गिट्टी इससे बचाती है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
रेल की पटरियों के नीचे क्यों बिछे होते हैं पत्थर? जानिए क्या हैं इस गिट्टी के फायदे
नहीं रहे मुहम्मद अली से दो-दो हाथ करने वाले कौर सिंह
चंडीगढ़ । पूर्व एशियाई मुक्केबाजी चैंपियन कौर सिंह का हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक अस्पताल में गुरुवार को निधन हो गया। वह 74 वर्ष के थे और कई स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करा रहे थे। भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद वह पंजाब के संगरूर जिले में अपने पैतृक गांव खनाल खुर्द में रह रहे थे। जो लोग कौर सिंह के बारे में नहीं जानते हैं, बता दें कि वह लीजेंड मुहम्मद अली से एक प्रदर्शनी मैच में भिड़े थे।
कौर सिंह ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 6 स्वर्ण पदक जीते थे जिसमें 1982 एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक शामिल था। उनके यादगार मैचों में से एक मुकाबला मुक्केबाजी लीजेंड मुहम्मद अली के साथ चार राउंड का प्रदर्शनी मैच था जो 27 जनवरी 1980 को दिल्ली में लड़ा गया था। सिंह ने नयी दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों में हैवीवेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था।
इस महीने पंजाब सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में चार महान खिलाड़ियों की जीवन गाथा प्रकाशित करने की योजना की घोषणा की थी जिसमें कौर सिंह एक थे। तीन अन्य खिलाड़ी हॉकी ओलम्पियन बलबीर सिंह सीनियर, महान एथलीट मिल्खा सिंह और भारत के पहले अर्जुन अवॉर्डी और ओलिंपियन एथलीट गुरबचन सिंह रंधावा हैं। उन्हें नौंवीं और दसवीं कक्षा की शारीरिक शिक्षा की किताबों में शामिल किया गया है।
वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, ‘कौर सिंह का निधन देश के लिए एक बड़ा नुकसान है। मैंने सम्बंधित अधिकारियों को उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव लाने के निर्देश दिए हैं। हम उनके परिवार को हरसंभव मदद करेंगे।’ उनकी उपलब्धियों के लिए कौर सिंह को 1982 में अर्जुन पुरस्कार, 1983 में पद्मश्री और 1988 में विशिष्ट सेवा पदक प्रदान किया गया था।
गोबर, मिट्टी, प्लास्टिक बोतलों से इन लड़कियों ने बना डाला एयरकंडीशंड घर!
नयी दिल्ली । दो सहेलियों ने गोबर, मिट्टी और प्लास्टिक की बोतलों से इको-फ्रेंडली घर बनाया है। भीषण गर्मी में भी यह अपने आप ठंडा बना रहता है। इसमें कूलर, पंखे और एयरकंडीशनर की जरूरत नहीं पड़ती है। उन्हें एक स्कूल से इस तरह का घर बनाने का आइडिया आया था। इस स्कूल में प्लास्टिक की बोतलों का इस्तेमाल बच्चों के बैठने की कुर्सियों में किया गया था। इसके बाद उन्होंने हॉस्टल, कूड़ाघर, ग्रॉसरी शॉप, सड़क जहां से भी हुआ प्लास्टिक की बोतलों को बटोरना शुरू कर दिया। एक समय लोगों ने उन्हें भंगड़ वाली तक कहकर चिढ़ाना शुरू कर दिया था। लेकिन, इन दोनों को पता था कि वे क्या कर रही हैं। उन्होंने किसी भी बात को नहीं सुना और अपना काम जारी रखा। सीमेंट से बनने वाले मकानों की तुलना में यह आधी कीमत में बन जाता है।
इन दोनों सहेलियों का नाम नमिता कपाले और कल्याणी भ्राम्बे है। ये औरंगाबाद की रहने वाली हैं। इन्होंने अलग तरह का घर बनाया है। यह इको-फ्रेंडली है। इसे बनाने में 16,000 प्लास्टिक की बोतलें, गोबर और मिट्टी का इस्तेमाल हुआ है। पूरा घर बनाने में 12-13 टन प्लास्टिक लगी है। नमिता और कल्याणी को 2021 में इस तरह का घर बनाने की धुन सवार हुई थी। उन्होंने गुवाहाटी में एक स्कूल देखा था। यह स्कूल प्लास्टिक की बोतलों से बच्चों के बैठने की कुर्सियां बना रहा था। इसके बाद दोनों ने सड़कों, कूड़ेवालों, होटलों और ग्रॉसरी शॉप्स से प्लास्टिक की बोतलों को जुटाना शुरू किया। जब लोगों ने उन्हें ऐसा करते देखा तो दोनों को भंगड़ वालियां कहने लगे। लेकिन, जब उनका काम सामने आया तो लोगों के सुर बदल गए। वही लोग नमिता और कल्याणी की तारीफ के पुल बांधने लगे।
नमिता और कल्याणी ने जिन प्लास्टिक बोतलों को जुटाया था, उन्हें प्लास्टिक के बैगों में ठूंस दिया गया था। फिर अतिरिक्त हवा निकालकर बोतलों की पैकिंग कर दी जाती थी। प्लास्टिक बोतलों से बनी ईंट को एक के ऊपर एक लगाया गया। फिर मिट्टी और गोबर से दीवारों को प्लास्टर किया गया। छत को बांस और लकड़ी से तैयार किया गया।
घर बनाने में लगा डाली अपनी पूरी बचत
दोनों सहेलियों ने अपने इको-फ्रेंडली घर को ‘वावर’ नाम दिया है। इसका मतलब होता है खेत या खुली जगह जहां लोग आ जा सकते हैं। नमिता और कल्याणी के घर में दो चौकोर कमरे हैं। ये आंशिक तौर पर खुले हुए हैं। एक गोल झोपड़ी है। गर्मियों में इस घर में किसी एसी की जरूरत नहीं पड़ती है न सर्दियों में हीटर की। नमिता और कल्याणी का दावा है कि सीमेंट की तुलना में मिट्टी, गोबर और प्लास्टिक से बने इस घर को बनाने की लागत आधी आती है। नमिता और कल्याणी का यह घर दौलताबाद के पास सांबाजी में बना है। दोनों ने अपनी 7 लाख रुपये की सेविंग से इसे बनाया। इसमें परिवार वालों ने भी कुछ मदद की।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
आगरे का किला, अंग्रेजों ने मलबा डालकर किया था निर्माण, वहां निकलीं सीढ़ियां-दरवाजा
आगरा । आगरा किला के रहस्यों पर से एक बार फिर पर्दा उठा है। मुगल सल्तनत की बुलंदी की गवाही देते आगरा किला के अमर सिंह गेट पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) को काम के दौरान प्राचीन दरवाजा और सीढ़ियां मिली हैं। दरवाजे से होकर यह सीढ़ियां आगरा किला की प्राचीर पर पहुंचती हैं। यह निर्माण मुगल काल का है।
ब्रिटिश काल में यहां मलबा भरकर उसके ऊपर निर्माण कर दिया गया था। एएसआइ इसे मूल स्वरूप में सहेज रहा है। आगरा किला में पर्यटकों को अमर सिंह गेट से प्रवेश मिलता है। अमर सिंह गेट के अंदर की तरफ बाईं व दाईं तरफ ब्रिटिश काल में मलबा डालकर भर्त करा दी गई थी। आठ से नौ फीट ऊंचाई तक मलबा भर दिया गया था। उसके ऊपर पत्थर का फर्श कर गार्डन बना दिया गया था।
पत्थरों को हटाने के बाद मलबा निकाला
एएसआइ ने तीन वर्ष पूर्व बाईं तरफ के मलबे को हटाकर वहां के फर्श का स्तर रास्ते के बराबर किया था। गेट के दाईं तरफ के भाग को रास्ते के बराबर में करने को कुछ दिन पूर्व काम शुरू किया गया। पत्थरों को हटाने के बाद जब मलबा हटाया गया तो किले की दीवार में बना हुआ दरवाजा नजर आया। दरवाजे में अंदर की तरफ जब मलबा हटाना शुरू किया गया तो वहां सीढ़ियां मिलीं। किले की दीवार में बनी हुई सीढ़ियां, ऊपर की ओर जाता है।
लाल बालुई पत्थर लगाया जा रहा
एएसआइ ने जीने के ऊपर दीवार पर लगे पत्थरों को हटाकर इस रास्ते को पूरा खोल दिया है। यहां अब फर्श पर रेड सैंड स्टोन यानी लाल बलुई पत्थर लगाया जा रहा है। अधीक्षण पुरातत्वविद् डा. राजकुमार पटेल ने बताया कि आगरा किला में विभिन्न कालखंडों में अलग-अलग समय पर निर्माण किए गए हैं। अमर सिंह गेट के बराबर में मलबा हटाने पर मिले मुगलकालीन दरवाजे व जीने को मूल स्वरूप में सहेजा जाएगा।
लाखौरी ईंटों से चिनाई
दरवाजे के पास ब्रिटिश काल की भी सीढ़ियां मिलीं दरवाजे के पास किले की दीवार से लगी सीढ़ियां भी मलबे के नीचे दबी हुई मिली हैं। इसमें नीचे के भाग में मलबा भरा हुआ है और उसके ऊपर लाखौरी ईंटों की चिनाई है। दीवार के कुछ भाग में चूने का प्लास्टर भी है, लेकिन इस प्लास्टर में समौसम मिला हुआ है। ब्रिटिश काल में चूने में समौसम मिलाया जाता था, जिससे इसे निर्माण को ब्रिटिश काल में हुआ माना जा रहा है।
1999 में मिले थे तोप-गोले
एएसआइ को वर्ष 1999 में आगरा किला की खाई में दिल्ली गेट के समीप की गई सफाई में ब्रिटिशकालीन तीन तोपें मलबे में दबी मिली थीं। दिसंबर, 2020 में आगरा किला के दीवान-ए-आम परिसर में नीम का पेड़ गिर गया था। खोखले पेड़ की जड़ों में लोहे के बने दो भारी-भरकम गोले मिले थे। एक गोला लगभग 50 किग्रा का था।
सीढ़ियां में अंदर की तरफ हो रहा है चूने का प्लास्टर
सीढ़ी में अंदर की तरफ चूने के प्लास्टर का काम हो रहा है। इस तरह का प्लास्टर मुगल काल में किया जाता था। यह दरवाजा और सीढ़ी मुगल काल में ही बनाई गई थीं।
एसी मैकेनिक के बेटे ने ठुकराया 6 लाख का ऑफर, सीईटी में बटोरे 99.78 पर्सेन्टाइल
अहमदाबाद । भारतीय प्रबंधन संस्थानों में प्रवेश के लिए ली जाने वाली परीक्षा केट में 99.78 पर्सेंटाइल के साथ टॉपर्स में शामिल रजीन मंसूरी ने 6 लाख रुपये की नौकरी का ऑफर ठुकरा दिया। अहमदाबाद के एसी मैकेनिक के बेटे रजीन मंसूरी को इंजीनियरिंग की पढाई के बाद 6 लाख रुपये का सालाना पैकेज मिला था। पहली बार में केट परीक्षा में 96.20 फीसदी अंक के साथ आईआईएम उदयपुर में प्रवेश मिल रहा था, लेकिन उसने फिर से खुद को आजमाया और अब वह हार्वर्ड, स्टेनफोर्ड की तरह नामी संसथान आईआईएम कोलकाता में प्रवेश पाने में सफल रहा।
लक्ष्य पर रहे ध्यान
मन में दृढ़ता और एकाग्रचित्त होकर अपने लक्ष्य को पाने का प्रयास करते रहें तो कुछ भी असंभव नहीं है। अहमदाबाद के एयर कंडीशनर मैकेनिक इरफान मंसूरी के बेटे रजीन ने कॉमन एंट्रेंस एक्जाम केट में 99.78 पर्सेंटाइल हासिल कर खुद को साबित कर दिखाया है।
2021 में हुई केट परीक्षा में उसने 96.20 पर्सेंटाइल हासिल किए लेकिन उसने अपने पसंद के प्रबंधन संस्थान में प्रवेश लेने के लिए एक बार फिर मेहतन का रास्ता अपनाया। इस बार उसे आईआईएम बेंगलुरु व आईआईएम कोलकाता में प्रवेश के ऑफर मिला और उसने कोलकाता को चुना।
रजीन को आईआईएम अहमदाबाद में प्रवेश नहीं मिलने का मलाल अभी भी है। उसे आशा थी कि आईआईएम अहमदाबाद में एडमिशन मिल जाता तो अपने परिवार के करीब रहता। आईआईएम-सी में प्रबंधन से जुड़ी जानकारी सीखने के लिए उसने बेंगलुरु को छोड़कर कोलकाता संस्थान को चुना।
आईआईएम कोलकाता संस्थान की फीस 27 लाख रुपये है लेकिन वह स्कॉलरशिप को भविष्य के लिए सुरक्षित रख शिक्षा लोन के जरिए अपनी पढ़ाई करना चाहता है। रजीन ने बताया कि शेठ सी एन विध्यालय से स्कूली पढाई के बाद उसने अहमदाबाद विश्वविध्यालय से मई 2022 में ही इंजीनियरिंग की पढाई पूरी की।
सालाना 6 लाख रुपये की नौकरी मिल रही थी लेकिन उसने प्रबंधन संस्थान में पढ़ने का मन बनाया। वह बताता है कि पिता की मासिक आय 25 हजार रुपये है। परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है। उसका परिवार अहमदाबाद के पालड़ी इलाके में रहता है।
बंद होने वाला है विंडोज 10! अब नहीं मिलेंगे सॉफ्टवेयर अपडेट
नयी दिल्ली । टेक दिग्गज माइक्रोसॉफ्ट अपने पॉपुलर विंडोज 10 ऑपरेटिंग सिस्टम को बंद करने वाला है। कंपनी ने एक ब्लॉग पोस्ट में इसकी घोषणा कर दी है। कंपनी ने कहा कि वह विंडोज 10 के लिए प्रमुख सॉफ्टवेयर अपडेट जारी नहीं करेगा और विंडोज 10 22H2 ही आखिरी अपडेट होगा, जिसे हाल ही में जारी किया गया था।
2025 तक बंद हो सकता है विंडोज
कंपनी ने कहा कि विंडोज 10 22H2 (Windows 10 22H2) इसका आखिरी ऑपरेटिंग सिस्टम अपडेट होगा। कंपनी अब इसके लिए कोई भी बड़ा अपडेट रोलआउट नहीं करेगी। लेकिन 14 अक्टूबर 2025 तक विंडोज 10 डिवाइस के लिए सिक्योरिटी अपडेट यानी सेफ्टी और बग फिक्स अपडेट मिलते रहेंगे। कंपनी ने कहा कि मौजूदा लॉन्ग-टर्म सर्विसिंग चैनल, या एलटीएससी, रिलीज अभी भी सपोर्ट डेट तक अपडेट प्राप्त करेंगे।
विंडोज 11 पर कर सकेंगे अपग्रेड
कोई नया विंडोज 10 फीचर अपडेट नहीं आने के साथ माइक्रोसॉफ्ट आपको विंडोज 11 में अपग्रेड करने की सिफारिश कर रहा है। लेकिन आप सपोर्ट डेट के बाद भी विंडोज 10 का उपयोग कर सकते हैं, लेकिन उस समय के बाद अतिरिक्त सुरक्षा अपडेट मिलना भी बंद हो जाएंगे। ऐसे में आपका सिस्टम असुरक्षित हो जाएगा यानी विंडोज 11 में अपग्रेड करना ही सही विकल्प होगा। बता दें कि माइक्रोसॉफ्ट ने अक्टूबर 2021 में अपने लेटेस्ट ऑपरेटिंग सिस्टम Windows 11 को रोल आउट करना शुरू किया और मई 2022 में इसे सभी सपोर्टेड डिवाइस के लिए जारी कर दिया था। विंडोज 11 को कई नए फीचर्स और कस्टमाइजेशन के साथ पेश किया गया था।
विंडोज 11 के फीचर्स
विंडोज 11 के साथ डिजाइन, इंटरफेस और स्टार्ट मेन्यू को लेकर बड़े बदलाव किए गए हैं। विंडोज स्टार्ट साउंड में भी आपको बदलाव देखने को मिलेगा। विंडोज 11 के साथ वेलकम स्क्रीन के साथ Hi Cortana को हटा दिया गया है और लाइव टाइटल भी आपको नए विंडोज में देखने को नहीं मिलेगा।
ऐसे करें विंडोज 11 डाउनलोड
माइक्रोसॉफ्ट ने विंडोज 10 वाले यूजर्स को Windows 11 का अपडेट जारी कर दिया है, जिसे आप सिस्टम अपडेट में जाकर चेक कर सकते हैं। नए विंडोज के साथ आप माइक्रोसॉफ्ट पीसी हेल्थ एप भी डाउनलोड कर सकते हैं। सिस्टम अपडेट में आपको Download Now का एक बटन दिखेगा जिस पर क्लिक करके बताए गए स्टेप को फॉलो करते हुए आप अपने कंप्यूटर में Windows 11 डाउनलोड कर सकेंगे।
रख हौसला

रख हौसला
कि कोई तेरे लिए नहीं आएगा
ये जिंदगी है इसे सिर्फ तू ही अपने शर्तों पर जी पाएगा।
कितने भरोसे टूटे होंगे और हर बार तू टूट कर फिर जुटा होगा।
तोड़ने -जोड़ने की प्रक्रिया
उम्र भर चलेगी
तय तुझे करना है कि तू अपने सच के साथ कैसे आगे बढ़ेगा
धुंध में डूबी उन धूमिल सपनों की पहचान
जिसे कदम-कदम पर उपेक्षा की अग्निपरीक्षा देनी पड़ी,
हर नागवार उठती ऊंगली को झेलनी पड़ी
उन सब से इतर तेरा फैंटेसी वर्ल्ड है
जो तेरे सपनों को उड़ान देने के लिए
तुम्हें बुला रहा है
पंखों में आगाज़ लिए तू उड़
तिनको से साम्राज्य तुझे रचना होगा
सम्मान और स्वाभिमान के बीच
प्रेम की सीधी राह
तुझे चुनना होगा
रख हौसला कि साथ तेरे कोई नहीं
पर तेरा तू है
इसे तूझे चुनना होगा।
इसे तूझे चुनना होगा।।।
मजदूर और प्रेम

मेरे फटे हुए हाथों में क्या तुम अपनी कोमल हथेली देकर आनंदित हो पाओगी?
क्या मेरे पसीने से लथपथ बदन से सटकर बैठना तुम्हें मंजूर होगा?
क्या मेरे जिस्म से आती गंध को बर्दाश्त कर पाओगी?
क्या मेरे फटे पुराने कपड़ों के साथ तुम्हें सहजता महसूस होगी?
मैं नहीं दे सकता तुम्हें
पांच सितारा होटल में कैंडल लाइट डिनर
मैं नहीं दिखा सकता किसी एरिस्टोक्रेट मॉल के मल्टीप्लेक्स में तुम्हें सिनेमा
मैं नहीं घुमा सकता समुंद्र के किनारे का रिजॉर्ट
मैं नहीं दे सकता आई फोन या कोई कीमती तोहफ़ा तुम्हें
बस दे सकता हूं सोने से भी शुद्ध और खरा प्यार तुम्हें
एक सुरक्षित हाथों का एहसास तुम्हें
मैंने ही रचा है ये पांच सितारा होटल
ये मॉल, ये मल्टीप्लेक्स
मैंने ही बनाया है
समुंद्र के किनारे का रिजॉर्ट
मेरे पास उपभोग के लिए कुछ भी नहीं
सिर्फ़ ये दोनों हाथ हैं
जो रच सकता है सारे कायनात की कारीगरी को ।
जो रच सकता है सृष्टि के हर आयाम को।
जो रच सकता है धरती के श्रृंगार को ।
मैं अपना हाथ तुम्हें देना चाहता हूं
अगर तुम करो स्वीकार तो
मैं तुम्हारे लिए
सपनों और उम्मीदों की आगाज़ रच सकता हूं।
तुम्हें बेपनाह प्यार कर सकता हूं।।।।।।
मशहूर पाकिस्तानी लेखक तारेक फतह का 73 साल की उम्र में निधन
ओटावा । मशहूर पाकिस्तानी पत्रकार और लेखक तारेक फतह का 73 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें कैंसर हो गया था और लंबे समय से बीमार थे। उनकी बेटी नताशा फतह ने उनके निधन की पुष्टि की है। इससे पहले शुक्रवार को उनके निधन की अफवाह सामने आई थी, जिसके बाद लोगों ने श्रद्धांजलि देना शुरू कर दिया था। देखते ही देखते ट्विटर पर तारेक फतह ट्रेंड करने लगा था। तारेक फतह से सीधे तौर पर जुड़े लोगों ने इसका खंडन किया था। हालांकि इस बार उनके निधन की पुष्टि सीधे तौर पर उनकी बेटी ने की है।तारेक फतह की बेटी ने अपने पिता के निधन पर ट्वीट किया, ‘पंजाब का शेर। भारत का बेटा। कनाडा का प्रेमी। सच बोलने वाला। न्याय के लिए लड़ने वाला। शोषितों और वंचितों की आवाज तारेक फतह ने अपनी मुहिम आगे बढ़ा दी है। उनकी क्रांति उन सभी के साथ जारी रहेगी जो उन्हें जानते और प्यार करते थे। क्या आप इसमें जुड़ेंगे?’ पाकिस्तानी पत्रकार आरजू काजमी ने भी उन्हें श्रद्धांजलि दी है।
पाकिस्तान में हुआ था जन्म
तारेक फतह का जन्म 20 नवंबर 1949 में पाकिस्तान के कराची में हुआ था। 1987 में वह कनाडा चले गए। उन्हें अपनी रिपोर्टिंग के लिए कई तरह के पुरस्कार भी मिल चुके हैं। कनाडा समेत दुनिया की कई प्रमुख पत्रिकाओं और अखबारों में उनके लेख छपते रहे हैं। भले ही उनका जन्म पाकिस्तान में हुआ हो, लेकिन वह पाकिस्तान की कमियों को उजागर करने में पीछे नहीं रहते थे। सेना और कट्टरपंथियों के खिलाफ उन्होंने मोर्चा खोल रखा था, जिसके कारण उनकी सोशल मीडिया पर लाखो फॉलोअर्स थे। 1970 में उन्होंने कराची सन के लिए एक रिपोर्टर के रूप में काम शुरू किया। 1977 में तारेक फतह पर देशद्रोह का आरोप लगा था। जिया-उल हक शासन ने उन्हें पत्रकारिता करने से रोक दिया था। उन्हे अरबी भाषा भी आती थी, और वह कुछ दिन सऊदी अरब में भी रहे।
फटे-पुराने कपड़ों को इको-फ्रेंडली बैग में बदली रही हैं 93 साल की दादी, 35,000 मुफ्त बांटे
नयी दिल्ली । बीते कई सालों से मधुकांता भट्ट फटे-पुराने कपड़ों को इको-फ्रेंडली बैग में बदल रही हैं। इसका मकसद प्लास्टिक बैग का विकल्प देना है। इससे इन फटे-पुराने कपड़ों का भी इस्तेमाल हो जाता है। मधुकांता की उम्र 93 साल हो चुकी है। उन्हें सिलाई करना बहुत पसंद है। वह अब तक 35,000 से ज्यादा कपड़ों के बैग मुफ्ट बांट चुकी हैं। 2015 से एक दिन भी ऐसा नहीं गया जब उन्होंने बैग न सिला हो। सुबह नहाकर पूजा और फिर ब्रेकफास्ट करने के बाद वह सीधे अपनी सिलाई मशीन पर बैठ जाती हैं। वह चाहती हैं कि धरती से प्लास्टिक का बोझ जितना कम हो सकता है हो। मधुकांता कहती हैं कि वह खाली नहीं बैठ सकती हैं।
शादी के बाद आ गई थीं हैदराबाद
मधुकांता का जन्म गुजरात के जामनगर में एक छोटे से गांव में 1930 में हुआ था। गांव में लड़कियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था। लिहाजा, उन्हें भी कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली। 18 साल की उम्र में उनकी शादी हो गई थी। शादी के बाद वह पति के साथ हैदराबाद आकर रहने लगीं। उन्हें सिर्फ गुजराती ही बोलनी आती थी। ऐसे में उनका फोकस सिर्फ बच्चों पर हो गया। मधुकांता के चार बेटियां और एक बेटा है। उन्होंने बच्चों को पढ़ाने-लिखाने में कसर नहीं छोड़ी। सिलाई के प्रति उनका रुझान काफी पहले से था। लेकिन, उन्हें कोई औपचारिक ट्रेनिंग नहीं मिली।
1955 में जोड़-बटोरकर खरीदी सिलाई मशीन
बच्चे स्कूल जाने लगे तो मधुकांता के बचपन की ख्वाहिशें हिलोरे मारने लगीं। 1955 में उन्होंने बचत करके सिलाई मशीन ली। तब इसकी कीमत 200 रुपये थी। जोड़-बटोरकर मशीन तो वह ले आईं लेकिन लंबी ट्रेनिंग लेने का उनके पास पैसा नहीं था। लिहाजा, उन्होंने एक महीने का कोर्स किया। इसमें मशीन रिपेयर करने और इसके कामकाज का तरीका सिखाया जाता था। सिलाई, कटाई और डिजाइनिंग उन्होंने दूसरों को देख-देखकर सीख लिया।
35,000 से ज्यादा बैग मुफ्त बांट चुकी हैं
कुछ ही महीनों में मधुकांता मशीन चलाने में बिल्कुल ट्रेंड हो गईं। फिर वह अपने और बच्चों के कपड़े सिलने लगीं। पड़ोसियों के ब्लाउज और पेटिकोट भी वह सिल दिया करती थीं। उनके बेटे नरेश कुमार भट्ट बताते हैं कि मधुकांता आसपास के दर्जियों और फर्नीचर बनाने वालों से कतरन और फटे-पुराने कपड़े जुटाती हैं। फिर इन कपड़ों से बैग बना देती हैं। वह अब तक 35,000 से ज्यादा बैग बना चुकी हैं। इन्हें मधुकांता ने निःशुल्क बांटा है। मधुकांता कहती हैं कि वह खाली नहीं बैठ सकती हैं। खाली बैठना उन्हें सबसे ज्यादा परेशान करता है।