Monday, September 15, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 100

एक बहन बनी दरोगा, दूसरी ने पास की नीट परीक्षा

उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले की दो बहनों ने कामयाबी की नई इबारत लिखी है । एक बहन का चयन यूपी पुलिस दरोगा (एसआई) के पद पर हुआ तो दूसरी ने नीट परीक्षा पास कर ली है । इस उपलब्धि के बाद उनके घर पर बधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है । सफलता की यह कहानी हाथरस जिले के सहपऊ कस्बा के मोहल्ला बनियाना का है। मोहल्ले में रहने वाले रिटायर्ड पुलिस निरीक्षक वेद प्रकाश वार्ष्णेय की दो बेटियों ने यह उपलब्धि हासिल की है । एक बेटी प्राची वार्ष्णेय का पुलिस उपनिरीक्षक के पद पर सेलेक्शन हुआ है जबकि दूसरी आयुषी नीट परीक्षा पास करके एमबीबीएस कर रही हैं । वेद प्रकाश वार्ष्णेय का कहना है कि उन्होंने कभी बेटे और बेटियों ने भेद नहीं किया । उनकी तीन बेटियां बड़ी हैं और बेटा सबसे छोटा है जो अभी 12वीं में पढ़ता है ।

बड़ी बहन ने भी किया है गणित में पीजी

पुलिस उपनिरीक्षक (एसआई) प्राची और नीट परीक्षा पास करने वाली आयुषी ने ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन बदायूं से किया है । प्राची का सपना अभी पुलिस में अधिकारी बनने का है । वहीं आयुषी डॉक्टर बनकर गरीबों की सेवा करना चाहती हैं । सबसे बड़ी बहन उमा ने गणित में पोस्ट ग्रेजुएशन किया है। वह शिक्षिका बनना चाहती हैं ।

वन स्टेशन-वन प्रोडक्ट योजना : स्थानीय कारीगरों और छोटे उद्यमियों को होगा लाभ

कोलकाता। रेल मंत्रालय ने भारत सरकार के लोकल के लिए वोकल विजन को बढ़ावा देने, स्थानीय/स्वदेशी उत्पादों के लिए एक बाजार प्रदान करने और वंचितों के लिए अतिरिक्त आय अवसर पैदा करने के उद्देश्य से वन स्टेशन वन प्रोडक्ट योजना शुरू की है। योजना के तहत, रेलवे स्टेशनों पर ओएसओपी आउटलेट्स को स्वदेशी/स्थानीय उत्पादों को प्रदर्शित करने, बेचने और उच्च दृश्यता देने के लिए आवंटित किया जाएगा। पूर्व रेलवे के सीपीआरओ कौशिक मित्रा ने यह जानकारी दी। उन्होंने कहा कि ओएसओपी योजना स्थानीय कारीगरों, कुम्हारों, हथकरघा बुनकरों, आदिवासियों को आजीविका और कौशल विकास के अवसर प्रदान करने और स्थानीय व्यापार और आपूर्ति श्रृंखला में मदद करने में सफल रही है। योजना का पायलट 25 मार्च को शुरू किया गया था और 1 मई तक देश के 21 राज्यों और 3 केंद्र शासित प्रदेशों में 785 ओएसओपी आउटलेट्स के साथ 728 स्टेशनों को कवर किया गया है।
पूर्व रेलवे में विभिन्न स्टेशनों पर 57 स्टॉल
पूर्व रेलवे में अब 4 मंडलों में विभिन्न स्टेशनों पर 57 स्टॉल संचालित हो रहे हैं। हावड़ा, सियालदह, आसनसोल, मालदा। जिनमें से हावड़ा मंडल में 21, मालदा मंडल में 7, आसनसोल मंडल में 7 और सियालदह मंडल में 22 स्टॉल हैं। पूर्व रेलवे ने ओएसओपी स्टालों की स्थापना के लिए पहले से ही 380 स्टेशनों की पहचान की है। वन स्टेशन वन प्रोडक्ट उस स्थान के लिए विशिष्ट हैं और इसमें स्वदेशी जनजातियों द्वारा बनाई गई कलाकृतियां, स्थानीय बुनकरों द्वारा हथकरघा, विश्व प्रसिद्ध लकड़ी की नक्काशी जैसे हस्तशिल्प, कपड़े पर चिकनकारी और जरी-जरदोजी का काम, या मसाले चाय, कॉफी और अन्य संसाधित/अर्द्ध शामिल हैं। बंगाल की तांत साड़ी, भागलपुर सिल्क साड़ी, टेराकोटा उत्पाद, बांस उत्पाद और जूट उत्पाद इस योजना के तहत उत्पाद श्रेणियों में शामिल हैं।

नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल में अब मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवा

कोलकाता । अपने मरीजों की समस्याओं को ध्यान में रखते हुए नारायणा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल, जेस्सोर रोड, कोलकाता ने अपनी मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवा शुरू की और अत्याधुनिक कीमोथेरेपी यूनिट के उद्घाटन की घोषणा की। इससे उत्तर 24 परगना और इसके आस-पास के जिलों में अपनी सेवाओं का विस्तार करने और रोगियों को उन्नत कैंसर इलाज मिलेगा । अस्पताल के अनुसार मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवाओं और कीमोथेरेपी की शुरुआत समग्र और रोगी-केंद्रित देखभाल प्रदान करने की दिशा में एक कदम है। कीमोथेरेपी यूनिट उस क्षेत्र में सेवाओं की उपलब्धता प्रदान करेगी जो अब तक उच्च स्तर की कीमोथेरेपी और इम्यूनोथेरेपी तक सीमित पहुंच रखती थी। रोगी की सुरक्षा, आराम और दक्षता पर ध्यान देने के साथ, अस्पताल का उद्देश्य कीमोथेरेपी अनुभव को अनुकूलित करना, संभावित दुष्प्रभावों को कम करना और चिकित्सीय प्रभाव को अधिकतम करना है। मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवाएं टाटा मेमोरियल अस्पताल, मुंबई के डॉ. विवेक अग्रवाल के नेतृत्व में मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट की एक अनुभवी टीम की देखरेख में सुनिश्चित करेगी। नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल, जेस्सोर रोड में मेडिकल एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी विभाग के वरिष्ठ सलाहकार और निदेशक डॉ विवेक अग्रवाल ने कहा कि हम अपनी मेडिकल ऑन्कोलॉजी सेवाओं को शुरू करने से प्रसन्न हैं।
डॉ. चंद्रकांत एमवी, कंसल्टेंट, डिपार्टमेंट ऑफ मेडिकल ऑन्कोलॉजी एंड हेमेटो ऑन्कोलॉजी ने कहा कि हम मरीजों को कैंसर की पूरी उपचार यात्रा के दौरान उन्नत उपचार विकल्प और अनुकंपा सहायता प्रदान करने के लिए तैयार हैं। आर वेंकटेश, ग्रुप सीओओ ने कहा कि नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल, जेस्सोर रोड में मेडिकल ऑन्कोलॉजी सर्विसेज और कीमोथेरेपी यूनिट का आरम्भ होना असाधारण स्वास्थ्य सेवाएं देने के लिए अस्पताल की प्रतिबद्धता में एक महत्वपूर्ण प्रगति है। अस्पताल रोगी परिणामों में सुधार लाने और कैंसर की चुनौतियों का सामना करने वाले व्यक्तियों के लिए देखभाल के उच्चतम मानकों को सुनिश्चित करने के लिए समर्पित है।

मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन पहुँचे दक्षिणेश्वर एवं बेलूर मठ

कोलकाता । मॉरीशस के सातवें राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन अपनी पत्नी के साथ तीन दिवसीय दौरे पर कोलकाता पहुँचे हैं । वे कोलकाता में प्रसिद्ध धार्मिक स्थल दक्षिणेश्वर मंदिर और बेलूर मठ पहुँचे। उन्होंने कोलकाता पोर्ट ट्रस्ट के श्रमिक स्मारक का भी दौरा किया ।
इस दौरान डॉ. स्वपन दासगुप्ता (इंडिया फाउंडेशन की गवर्निंग काउंसिल और खोला हवा के अध्यक्ष), सुशील मोदी (बिहार के पूर्व डिप्टी सीएम और गवर्निंग काउंसिल, इंडिया फाउंडेशन के सदस्य), महामहिम पृथ्वीराजसिंह रूपन जीसीएसके (मॉरीशस के राष्ट्रपति) के स्वागत समारोह और रात्रिभोज की मेजबानी की। इस मौके पर राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस (पश्चिम बंगाल के राज्यपाल) और राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश नारायण सिंह भी मौजूद रहे ।
मॉरीशस के राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन मॉरीशस गणराज्य के राज्य प्रमुख हैं। यह देश एक संसदीय गणतंत्र है। जिसके वर्तमान कार्यालय धारक पृथ्वीराजसिंह रूपन हैं। उन्होंने 2 दिसंबर 2019 को पदभार ग्रहण किया। डॉ. स्वपन दासगुप्ता (गवर्निंग काउंसिल, इंडिया फाउंडेशन और खोला हवा के अध्यक्ष) ने कहा, भारतीयों में से एक के वंशज का स्वागत करना मेरा सौभाग्य है, जिनकी मातृभूमि कोलकाता है।
पृथ्वीराजसिंह रूपन एक अधिवक्ता हैं, जो पहली बार 2000 में नेशनल असेंबली के लिए चुने गए थे। वह कला संस्कृति, सामाजिक एकीकरण और क्षेत्रीय प्रशासन मंत्री भी रहे हैं। 1968 में ब्रिटेन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद से मॉरीशस अफ्रीका में सबसे स्थिर लोकतंत्रों में से एक है।

माताओं से प्रेम करना अच्छी बात है मगर उनकी जवाबदेही भी तय हो

जीवन में क्या सब कुछ पूरी तरह सकारात्मक हो सकता है…क्या कोई भी चीज परफेक्ट हो सकती है ? हमारी समझ से कोई भी चीज, कोई भी रिश्ता परफेक्ट नहीं होता…अच्छे और बुरे पक्ष हर बात के होते हैं मगर हम अपनी संवेदना को चोट नहीं पहुँचाना चाहते इसलिए बुरे पक्ष को नकारात्मक कहकर हवा में उड़ा देना चाहते हैं । मई और जून का महीना पाश्चात्य कैलेंडर के अनुसार माता और पिता को समर्पित है..एक दिन इनके नाम ही होता है । सन्दूकों से पुरानी तस्वीरें निकलती हैं और स्टेटस पर सज जाती हैं, व्यवहार में भले ही आचरण अलग हो । बाजार का जादू ऐसा है कि हर कोई इस रिश्ते पर जमकर खर्च करना चाहता है..आज इस तरह के दिवस फैशन स्टेटमेंट की तरह हैं और एक जैसी नीरस चर्चा हमारी जिन्दगी का हिस्सा बन गयी है ।
कहा गया है कि माता कुमाता नहीं हो सकती मगर गहराई में जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि सन्तान मोह विशेषकर पुत्र मोह की आड़ में माताएं खेल खेलती हैं । पुराने जमाने में जब रनिवास और हरम हुआ करते थे, बहुपत्नीवाद था तो अपने बच्चों को सिंहासन पर बैठाने के लिए दूसरी रानी के बच्चों की हत्या से भी उनको हिचक नहीं होती थी…रामायण में भी भरत के लिए कैकयी ने राम का वनवास माँगा था । माँ की ममता ठीक है मगर ममता की पराकाष्ठा क्या किसी और के अधिकारों पर चलकर सन्तान की इच्छा पूर्ति करना भर है । शादी के पहले बेटों के लिए बेटियों को दबाना, देवरानियों और जेठानियों से लेकर ननद के बच्चों को दबाना, अपने बच्चों को सर्वश्रेष्ठ बताने के लिए तंज कसना यह महिलाओं की आदत है । बच्चा किसी से लड़कर आए, किसी को पीटकर आए, चोरी करके आए या लड़की छेड़कर आए..माताएं उनकी गलतियों को नजरअन्दाज ही नहीं करती बल्कि कवर अप करने के लिए खड़ी हो जाती हैं । क्या यही ममता है..जो माताएं अपने बच्चों की गलतियों को छुपाती हैं, वह आगे चलकर अपराधी ही बनते हैं…किसी और को पीटने वाले बच्चों का गुस्सा जब नियंत्रित नहीं किया जाता तो वह हिंसक ही बनता है और फिर उसे अपनी ताकत का ऐसा नशा हो जाता है कि वह हर किसी से मारपीट करता है, छोटे या बड़े भाई -बहनों को मारता है, फिर पत्नी और बच्चों को मारता है और एक दिन हत्यारा भी बन जाता है तो यह गलती किसकी है कि उस बच्चे को पहली बार ही नियंत्रित नहीं किया गया..निश्चित रूप से वह अधिकतर मामलों में कोई स्त्री ही होती है । जब लड़की किसी लड़की का पीछा करते हैं…उनको घूरते हैं, छेड़ते हैं तो वह भी एक दिन में नहीं होता, ऐसे लड़कों पर नजर रखने वाला, उनको समझाने वाला कोई नहीं होता…जिस अनुशासन से लड़कियों को पराया धन कहकर आत्मनिर्भर बनाया जाता है, लड़कों की परवरिश में वह अनुशासन नहीं होता । लज्जा लड़कियों का गहना है तो क्या लड़कों को बेशर्म होना चाहिए ?
मेरे मित्र अक्सर कहते हैं कि मैं नकारात्मक होकर सोचती हूँ मगर मैं वही सोचती हूँ जो मुझे दिखता है । जिस मानसिक, शारीरिक और आर्थिक दबाव के साथ लड़कियाँ बड़ी होती हैं…लाख दबावों के बाद भी लड़कों पर वह दबाव नहीं होता । लड़कों की समस्याएं होती हैं, वे सैंडविच भी बनते हैं मगर उनको दुलार भी खूब मिलता है । उनको धमकियाँ नहीं मिलतीं कि सास – ससुर क्या कहेंगे या करेंगे..माँ और पत्नी की लड़ाई में अधमरे होते भी हैं तो अन्ततः केन्द्र में वही रहते हैं और जो होता है, उनकी भलाई के लिए होता है । भावनात्मक ब्लैकमेलिंग का खेल माताएं ही अधिक खेलती हैं…और तंज भी उनके तैयार रहते हैं । बहनों को कई तरीके पराया बताया जाता है …यहीं राज है ..ससुराल जाओगी तो पता चलेगा…बैग उठाकर चल देती हो…हम तो यहाँ नौकर बैठे हैं ।
घी मत खाओ, तुम्हारे भाई के लिए रखा है…कमजोर हो गया है …बहनों को भाई का अटेंडेंट माताएं ही बनाती हैं…घर में भोजन से लेकर कमरे और मानसिक और आर्थिक स्तर पर अपनी ही बेटियों के साथ भेदभाव माताएं ही करती हैं…आखिर मातृत्व के नाम पर किस तरह की माताओं को सेलिब्रेट किया जा रहा है ?
क्या यह सही समय नहीं है कि माताओं की जवाबदेही तय की जाए क्योंकि सन्तान को तो अन्ततः देश का नागरिक ही बनना है । कहाँ से आते हैं ऐसे अपराधी जो सीरियल किलर बनते हैं, ठग बनते हैं…हत्यारे बनते हैं…यह एक दिन में तो होता नहीं है…क्या बचपन से ही इनको रोका जाता तो यह अपराधी बनते?
माताओं से प्रेम करना, उनकी सराहना करना, ऐसी माताओं को पूजना..जो बच्चों के जीवन संघर्ष में साथ खड़ी रहती हैं…सही है मगर क्या हम उन माताओं की भी इज्जत करें जो सन्तान मोह के कारण किसी और बच्चे का भोजन छीन लें…किसी और का जीवन नष्ट कर दें..?
अतिरेक को पीछे छोड़कर यह तय करना जरूरी है कि सम्बन्धों के किस रूप को हम प्रोत्साहित करते हैं क्योंकि सम्बन्ध किसी भी रूप में आगे चलकर समाज और देश के विकास को प्रभावित करते हैं और इसलिए किसी भी सम्बन्ध को मानवता और समानता के आधार पर आगे जाना होगा ।

नयी तकनीक से अपोलो हॉस्पिटल ने बचाई मरीज की जान

कोलकाता । आए दिन लोग हृदय संबंधी विभिन्न प्रकार के रोगों की चपेट में आ रहे हैं। ऐसे में हृदय संबंधी रोगों का समय पर इलाज ना करवाना जोखिम भरा होता है। इसी कड़ी में अपोलो हॉस्पिटल चेन्नई ने हृदय रोग से पीड़ित एक मरीज की जान बचाई है। दरअसल 64 वर्षीय एक महिला रोगी को एट्रियल फिब्रिलेशन की समस्या थी। बता दें कि एट्रियल फिब्रिलेशन को आमतौर पर अनियमित दिल की धड़कन के रूप में जाना जाता है जो रक्त के थक्के, स्ट्रोक, हार्ट फेलियर और अन्य हृदय जटिलताओं को जन्म दे सकता है। सामान्य रूप में यह जीवन के लिए कोई खतरा नहीं है। लेकिन ध्यान ना देने या वक़्त पर उपचार न लेने से जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है। ऐसे में हॉस्पिटल में मरीज को इस समस्या से निजात दिलाने के लिए क्रायो बैलून एब्लेशन तकनीक का उपयोग किया और मरीज की जान बचाई। खास बात यह है कि अस्पताल ने चेन्नई में पहली बार इस तकनीक का उपयोग किया। अपोलो मेन हॉस्पिटल्स के इंटरवेंशनल कार्डियोलॉजिस्ट और इलेक्ट्रोफिजियोलॉजिस्ट डॉ ए.एम. कार्तिगेसन क्रायो बैलून एब्लेशन तकनीक का उपयोग ट्रायल के तौर पर 15 रोगियों पर कर चुके हैं। एट्रियल फिब्रिलेशन (एएफ) एक सामान्य हृदय ताल विकार है जो 90 लाख से अधिक भारतीयों को प्रभावित करता है, जिससे स्ट्रोक, दिल की विफलता और मृत्यु का खतरा बढ़जाता है। क्रायो बैलून एब्लेशन टेक्नोलॉजी के कार्यों के बारे में बताते हुए डॉ  कार्तिगेसन ने कहा, क्रायो बैलून एब्लेशन एकनई इंटरवेंशनल प्रक्रिया है जो दिल की लय को नियंत्रित करने के लिए नियोजित कीजाती है। डॉक्टर कार्तिगेसन ने कहा कि दशकों से अपोलो हॉस्पिटल्स लोगों के स्वास्थ्य में सुधार के लिए नई जीवन रक्षक सेवाएं और प्रक्रियाएं ला रहा है। यह नयी प्रक्रिया उस प्रतिबद्धता का ही एक रूप है ।

भारतीय इतिहास का गौरव संरक्षित करने वाली ये माताएं

भारतीय इतिहास बलिदान और त्याग की गाथाओं से भरा पड़ा है। राष्ट्रहित के लिए ऐसी कितनी ही माताएं थी जिन्होंने जगत जननी ,हम सभी की माता, भारत माता के लिए अपने वंशजों की बलिदानी दे दी। साथ ही ऐसी भी माताएं रही जिन्होंने उस समय की विषम परिस्थितियों में अपनी परवरिश और उच्च स्तर की संस्कारवान नैतिक और मौलिक शिक्षा से सिंह के समान वीर वंशज दिए जिन्होंने अपनी विजयी पताकाओं से सम्पूर्ण भारत में परचम लहरा दिया और उनका स्मरण करके आज भी गर्व से मस्तक ऊंचा हो जाता है और स्वाभिमान से रीढ़ की हड्डी सीधी हो जाती है।

चलिए जानते हैं ऐसे ही कुछ मातृ चरित्रों के बारे में – 
जीजामाता 
जितना भारत में छत्रपति शिवाजी महाराज का आदर होता है, उतना ही उन्हें एक शिवाजी से हिन्दवी स्वराज की स्थापना करने वाले छत्रपति शिवाजी महाराज बनाने वाली जीजामाता का होता है। शिवाजी के साथ बचपन से ही परिस्थितियां प्रतिकूल रही। उन्हें अपने पिता का साया नहीं मिल पाया। उनके पिता बीजापुर दरबार में अपनी उपस्थिति देने के कारण अपने परिवार से दूर रहे। ऐसे में जीजामाता ने ही शिवाजी का माता और पिता दोनों के रूप में पालनपोषण किया। उन्हें बचपन से ही मातृभूमि से प्रेम करने, लोककल्याण की नीति अपनाने और स्वाधीनता प्राप्ति के लिए हिन्दवी स्वराज्य की स्थापना के संस्कार दिए। वह जीजामाता की ही शिक्षा और प्रोत्साहन था जिससे एक सोलह वर्ष के वीर बालक ने तोरणा दुर्ग विजयी किया और बाल्यकाल में ही शिवलिंग पर अपने अंगूठे से रक्त चढ़ाकर स्वाधीनता और हिन्दवी स्वराज्य का संकल्प लिया।
माता गुजरी 
माता गुजरी एक ऐसा चरित्र है जिनका नाम उनके त्याग के लिए स्वर्णाक्षरों से लिखा जाना चाहिए। कहते हैं कि भारत की माताओं की कोख से सिंह पैदा होते हैं। माता गुजरी का विवाह बचपन में ही गुरु तेगबहादुर जी से हो गया था। उन्होंने गुरु तेग्बहादुर जी की वीरता को युद्ध में सराहा और कश्मीरी हिन्दुओं की सहायता के लिए उन्होंने ही तेगबहादुर जी को बलिदान देने के लिए भेजने की वीरता दिखाई थी। यह वह वीर माता थी जिन्होंने गुरु गोबिंद सिंह जी को वीरता, धर्मरक्षा, मातृभूमि प्रेम, बलिदान इत्यादि के समान वह निवाले खिलाए जिससे वह आज भी एक महाप्रतापी के नाम से जाने जाते हैं। आनंदपुर के मुगलों के हमले में माता गुजरी अपने पौत्रों साहिबजादे जोरावरसिंह (7 वर्ष) और फतहसिंह (5 वर्ष) के साथ परिवार से बिछड़ गई थी और बाद में मुगलों द्वारा बंदी बना ली गई थी । उन्हें अनेक प्रकार की मानसिक प्रताड़ना और धर्म परिवर्तन के प्रलोभन दिए गए। साहिबजादों ने भी अपनी दादी से वीरता के संस्कार पाए। साहिबजादों को दीवार में चुनवाकर मारा गया, इसके बाद माता गुजरी ने भगवान को शुक्रिया कहा कि उनका पति, उनका पुत्र और उनके पौते सभी धर्मरक्षा हेतु बलिदान हुए। बाद में उनका भी स्वर्गवास हो गया।
पन्ना धाय 
यह वह माता है, जो अगर अपने पुत्र का बलिदान न देती तो आज मेवाड़ का दीपक न जल रहा होता। पन्ना धाय का पूरा नाम पन्ना गुजरी था। धाय उस महिला को कहते हैं जो राजपुत्र को रानी के स्थान पर स्वयं का दूध पिलाती है और एक दासी के रूप में उसकी सेवा और परवरिश करती है। महाराणा संग्राम सिंह जिन्हें महाराणा सांगा के नाम से जाना जाता है, का स्वर्गवास होने के बाद मेवाड़ के दरबार में राजनीतिक उथलपुथल चल रही थी। बनवीर जो महाराणा सांगा का रिश्ते से भाई लगता था, अपने स्वार्थ और राजा बनने की लालसा से कुछ भी करने को तैयार था। उस समय महाराणा सांगा के पुत्र उदयसिंह मात्र 12 वर्ष के थे। वह ही मेवाड़ के भावी राणा बनाए जाने वाले थे। बनवीर मेवाड़ के वंश जो समाप्त करने की इच्छा से उस बालक उदयसिंह को मारने के लिए निकल पड़ा। जब यह बात पन्ना धाय को पता लगी तो उन्हें अपने राष्ट्र मेवाड़ और उसके भविष्य की चिंता हुई। उन्होंने अपने पुत्र चन्दन को उदयसिंह के स्थान पर लेटा दिया। जब बनवीर आया और उसने पूछा कि उदयसिंह कहां है तो उन्होंने अपने लेते हुए पुत्र की ओर इशारा कर दिया।  बनवीर ने उस वीर मां के सामने ही उसके बेटे का गला काट दिया पर वह साहसी माँ इसलिए नही रोई कि कहीं बनवीर को संदेह नहीं हो जाए। इसके बाद पन्ना धाय उदयसिंह को सभी की आंखों से छुपाते हुए कुम्भलगढ़ ले गयी और यहां उदयसिंह आरम्भ में अपनी पहचान छुपाते हुए बड़े हुए। बाद में सभी दूसरे दरबारों ने उदयसिंह को अपना नया राणा मान लिया और वह गद्दी पर बैठे। सोचिए, अगर वह माता अपने पुत्र का अपने राजवंश की रक्षा के खातिर बलिदान नहीं करती तो न ही महाराणा प्रताप होते और न ही मेवाड़।
गौरा धाय 
इन्होने भी पन्ना धाय की ही तरह अपने वंश का बलिदान देकर मारवाड़ का वंश बचाया था। इनका पूरा नाम गौरा टांक था। जोधपुर के राजा जसवंतसिंह की मृत्यु के बाद उनके पुत्र अजीतसिंह का जन्म हुआ। औरंगजेब की नज़र हमेशा से राजपुताना के साथ साथ दूसरी सभी रियासतों पर थी जिन्होंने अपने स्वाभिमान से अपना ध्वज बुलंद कर रखा था। उसने एक साजिश रची। उसने मारवाड़ के संरक्षक दुर्गादास राठौड़ को पत्र भेजा कि वह अजीतसिंह के जन्म का उत्सव दिल्ली में मानना चाहते हैं। उस समय की स्थितियां इतनी नाजुक मोड़ पर थी कि मारवाड़ औरंगजेब का विरोध नहीं कर सकता था, न चाहते हुए भी मारवाड़ से एक दल दिल्ली गया। औरंगजेब ने आए हुए सरदारों को अनेक प्रलोभन दिए कि अगर वह उससे मिल जाएंगे तो वह उन्हें आधा राज्य दे देगा, पर राष्ट्रभक्त राजपूत उसकी चालों में नहीं फंसे। दुर्गादास राठौड़ इस चाल को समझ गए उन्होंने सभी को एकत्रित कर के बताया कि उनके कक्षों को घेर लिया गया है और हमारे नवजात राजकुमार के प्राण संकट में हैं। यहां  से अगर युद्ध करते हुए निकलते हैं तो एक आघात भी मारवाड़ का वंश समाप्त कर सकता है। ऐसी तनावपूर्ण परिस्थिति में गौरा धाय ने कहा कि उनका पुत्र भी राजकुमार की उम्र का है। अगर उनके पुत्र को राजकुमार के स्थान पर उनके वेश में रख देंगे और वह मेहतरानी के भेष में राजकुमार को टोकरी में रख कर ले जाएंगी तो मारवाड़ का भविष्य सुरक्षित यहां से निकल जाएगा। एक धाय से यह सुनकर दुर्गादास भावुक हो गए उन्होंने कहा कि तुमने साक्षात् जगदम्बा बन हमें संकट से निकाला है। मेवाड़ की पन्नाधाय के समान तुम्हारा बलिदान भी मारवाड़ के इतिहास में सदा अमर रहेगा। गोरा धाय अजीतसिंह को टोकरी में लेकर भेष बदल कर बाहर निकल गई और दुर्गादास राठौड़ जो स्वयं सपेरे के भेष में बाहर थे उन्हें अजीतसिंह को सौंप दिया और मारवाड़ का वंश सकुशल पुनः मारवाड़ आ गया। औरंगजेब ने अपने सैनिकों को कक्ष से अजीतसिंह को लाने को कहा, ,लेकिन अजीतसिंह के भेष में गौरा धाय को पकड़ लिया गया, उसे अजीतसिंह मान कर उनका धर्मान्तरण किया गया और मुग़ल दरबार में ही एक गुलाम के रूप में रख कर प्रताड़ित किया गया। कुछ वर्षों बाद उनकी प्लेग से मृत्यु हो गई। औरंगजेब को जब यह ज्ञात हुआ कि मेवाड़ का वंश सकुशल है और जोधपुर में है तो वह बौखला उठा। वह अचंभित भी हुआ कि भारत की माताएं अपने राष्ट्रप्रेम के भाव के कारण अपने पुत्र का बलिदान देने में तनिक भी नहीं सोचती।
मातोश्री देवी अहिल्याबाई होल्कर
अहिल्याबाई होल्कर को उनके न होने के इतने वर्ष बाद भी ‘मातोश्री’ की उपाधि से सम्मानित किया जाता है। वह प्रजा का अपनी संतान की तरह पालन पोषण करती थी। उनके न्याय की तुलना राजा भोज के न्याय से की जाती है। उन्हें आज भी न्याय की देवी कहा जाता है। आज भी इंदौरवासी उन्हें माता मानते हैं और उनके चित्र अपने घरों में लगाते हैं, उनका प्रातः स्मरण करते हैं, भगवान के बाद उनकी जयकार करते हैं।
उनके बारे में एक प्रसंग पढ़ने को मिलता है जो इंदौरवासियों की जिव्हा पर है। उनके पुत्र मालेराव होल्कर उद्दंड थे। उनकी हरकतों से प्रजा परेशान रहती थी। एक बार वह रथ से जा रहे थे तो मार्ग के बीच में गाय का बछड़ा आ गया। मालेराव ने उसपर रथ चढ़ा दिया और उसकी ओर ध्यान ना देते हुए आगे प्रस्थान किया। इस कारण वह तड़प तड़प कर मर गया और उसकी मां उसी के पास आकर उसे चाटती रही। अहिल्याबाई जब उस मार्ग से निकली तो उन्हें पूरा प्रकरण ज्ञात हुआ। उन्होंने अपनी वधु से पूछा कि अगर कोई तुम्हारे सामने तुम्हारे पुत्र को कुचल दे तो उसका क्या करना चाहिए, उनकी वधु ने कुछ सोचकर कहा कि उसे मृत्युदंड मिलना चाहिए।
अहिल्याबाई ने मालेराव को भी मृत्युदंड का आव्हान किया। उनके हाथ पैर बांध कर उन्हें हाथी से कुचलने की सजा सुनाई। जब वहां कोई भी हाथी को चलाने के लिए तैयार नहीं हुआ तो स्वयं अहिल्याबाई उस पर चढ़कर आगे बढ़ने लगी। तभी वह गाय उनके सामने आ गयी और हटाए जाने के बाद भी बार बार सामने आने लगी। मंत्रियों ने अहल्यामाता को कहा कि आप उस गाय का संकेत समझिए। वह नहीं चाहती कि कोई और मां पुत्रविहीन हो, मालेराव को अपनी भूल ज्ञात हो गई है और वह पश्चाताप भी करेंगे। यह वह माता थी जिन्हें उनकी प्रजा के साथ साथ पशु भी स्नेह और आदर करते थे। वह अपनी प्रजा के हित के लिए अपना सर्वस्व त्याग सकती थी।
(साभार – वेबदुनिया)

भारतीय परम्परा में ऐसा है माता का महत्व

वेदों में ‘मां’ को ‘अंबा’,’अम्बिका’,’दुर्गा’,’देवी’,’सरस्वती’,’शक्ति’,’ज्योति’,’पृथ्वी’ आदि नामों से संबोधित किया गया है। इसके अलावा ‘मां’ को ‘माता’, ‘मात’, ‘मातृ’, ‘अम्मा’, ‘अम्मी’, ‘जननी’, ‘जन्मदात्री’, ‘जीवनदायिनी’, ‘जनयत्री’, ‘धात्री’, ‘प्रसू’ आदि अनेक नामों से पुकारा जाता है ।
‘जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गदपि गरीयसी।’
अर्थात, जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
महाभारत में जब यक्ष धर्मराज युधिष्ठर से सवाल करते हैं कि ‘भूमि से भारी कौन?’ तब युधिष्ठर जवाब देते हैं-
‘माता गुरुतरा भूमेरू।’
अर्थात, माता इस भूमि से कहीं अधिक भारी होती हैं।
इसके साथ ही महाभारत महाकाव्य के रचियता महर्षि वेदव्यास ने ‘मां’ के बारे में लिखा है-
‘नास्ति मातृसमा छाया, नास्ति मातृसमा गतिः।
नास्ति मातृसमं त्राण, नास्ति मातृसमा प्रिया।।’
अर्थात, माता के समान कोई छाया नहीं है, माता के समान कोई सहारा नहीं है। माता के समान कोई रक्षक नहीं है और माता के समान कोई प्रिय नहीं है….
तैतरीय उपनिषद में ‘मां’ के बारे में इस प्रकार उल्लेख मिलता है-
‘मातृ देवो भवः।’
अर्थात, माता देवताओं से भी बढ़कर होती है।
‘शतपथ ब्राह्मण’ की सूक्ति कुछ इस प्रकार है-
‘अथ शिक्षा प्रवक्ष्यामः
मातृमान् पितृमानाचार्यवान पुरुषो वेदः।’
अर्थात, जब तीन उत्तम शिक्षक अर्थात एक माता, दूसरा पिता और तीसरा आचार्य हो तो तभी मनुष्य ज्ञानवान होगा।
‘मां’ के गुणों का उल्लेख करते हुए आगे कहा गया है-
‘प्रशस्ता धार्मिकी विदुषी माता विद्यते यस्य स मातृमान।’
अर्थात, धन्य वह माता है जो गर्भावान से लेकर, जब तक पूरी विद्या न हो, तब तक सुशीलता का उपदेश करे।हितोपदेश-
आपदामापन्तीनां हितोऽप्यायाति हेतुताम् ।
मातृजङ्घा हि वत्सस्य स्तम्भीभवति बन्धने ॥
जब विपत्तियां आने को होती हैं, तो हितकारी भी उनमें कारण बन जाता है। बछड़े को बांधने में मां की जांघ ही खम्भे का काम करती है।
महर्षि वेदव्यास
माता के समान कोई छाया नहीं, कोई आश्रय नहीं, कोई सुरक्षा नहीं। माता के समान इस दुनिया में कोई जीवनदाता नहीं।

क्रिकेटर शुभमन गिल ने दी भारतीय स्पाइडर-मैन पवित्र प्रभाकर को अपनी आवाज!

कोलकाता । सन 2021 में ‘स्पाइडर-मैन: नो वे होम’ की भारी सफलता के बाद, प्रशंसक स्पाइडर-मैन यूनिवर्स में वापसी के लिए उत्साहित हैं। यह मौका भारत के लिए और भी खास है क्योंकि हमारे अपने भारतीय स्पाइडर-मैन पवित्र प्रभाकर इसके द्वारा बड़े पर्दे पर डेब्यू कर रहे हैं।

इस फिल्म के हिंदी और पंजाबी वर्जन में क्रिकेटर शुभमन गिल की आवाज होगी, जो पवित्र के किरदार को भारतीय दर्शकों के लिए और भी खास बना देगी। गिल अपने बल्लेबाजी कौशल के साथ क्रिकेट प्रशंसकों के लिए आकर्षण का केंद्र रहे हैं, और ‘स्पाइडर-मैन: अक्रॉस द स्पाइडर-वर्स’ में पवित्र प्रभाकर के रूप में वह अब पूरे भारत के क्रिकेट प्रशंसकों का दिल जीतने के लिए तैयार हैं। स्पाइडर-मैन को अपना चहेता सुपरहीरो बताने वाले शुभमन गिल ने स्पाइडर-मैन की दुनिया में बड़ी एंट्री ली है। वह किसी भी फिल्म के लिए अपनी आवाज देने वाले पहले स्पोर्ट्स पर्सनालिटी हैं, और वह भी हॉलीवुड की सबसे बड़ी फ्रेंचाइजी में से एक के लिए।

भारतीय स्पाइडर-मैन, पवित्र प्रभाकर को अपनी आवाज देने के बारे में बताते हुए, शुभमन कहते हैं, “मैं स्पाइडर-मैन को देखते हुए बड़ा हुआ हूं, और वह निश्चय ही अधिक सबसे ज्यादा रिलेटेबल सुपरहीरो में से एक है। चूंकि इस फिल्म से स्क्रीन पर भारतीय स्पाइडर-मैन की शुरुआत हो रही है, हमारे अपने भारतीय स्पाइडर-मैन पवित्र प्रभाकर की, हिंदी और पंजाबी भाषाओं में आवाज़ बनना मेरे लिए एक शानदार अनुभव था। मैं पहले से ही खुद को सुपर ह्यूमन महसूस कर रहा हूं। मुझे इस फिल्म की रिलीज का बेसब्री से इंतजार है।”

हल्दीघाटी लिखकर महाराणा प्रताप की गाथा जन -जन तक पहुँचाने वाले श्याम नारायण पांडेय

वाराणसी । अपने हर काव्य में वीरता का सजीव चित्रण करने वाले कवि श्याम नारायण पाण्डेय ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान भी अपने उपाख्यानों से लोगों में अप्रतिम जोश का संचार किया था…

स्वातंत्र्य पूर्व भारत के वीर रस के सुविख्यात कवि श्याम नारायण पाण्डेय एक अप्रतिम कवि होने के साथ-साथ अपनी परम ओजस्वी वाणी के द्वारा वीर रस के अन्यतम प्रस्तोता भी थे। यह उनकी वाणी का ही प्रभाव था कि उनको सुनने वाला श्रोता, किसी चलचित्र को देखता हुआ सा मंत्रमुग्ध हो जाया करता था- ‘वैरी दल को ललकार गिरी, वह नागिन सी फुफकार गिरी। था शोर मौत से बचो-बचो, तलवार गिरी तलवार गिरी।।’

कवि श्यामनारायण पाण्डेय का जन्म सन् 1907 में डुमरांव गांव, मऊ, उत्तर प्रदेश में हुआ था। गांव में ही अपनी प्रारंभिक शिक्षा के बाद उन्होंने काशी आ कर संस्कृत का अध्ययन किया और यहीं रहते हुए काशी विद्यापीठ से हिंदी में साहित्याचार्य किया। सन् 1991 में 84 वर्ष की अवस्था में वह कैवल्यधामवासी हुए।

कवि श्यामनारायण पाण्डेय वस्तुत: हमारे धरोहर कवियों की पंक्ति में अग्रगण्य थे जिनकी वाणी में उनके संस्मरणों को उनकी मृत्यु के पूर्व आकाशवाणी गोरखपुर ने सहेजकर रख लिया था।

कहते हैं कि देश के लिए गौरव भावना बीजरूप में बालमन में यदि विकसित की जाती है तो उसका प्रभाव अचूक होता है। यही कारण था कि प्रचंड ओज के कवि श्यामनारायण पाण्डेय जितने लोकप्रिय देश के लिए मर मिटने की भावना से लबरेज आजादी के मस्तानों के बीच में रहे, आगे चलकर वह- उतने ही मान्य उन नन्हें-मुन्हें बच्चों के बीच भी हुए जो अपनी पाठ्य पुस्तकों की ‘चेतक और महाराणा प्रताप की सचित्र कविताओं’ का पाठ पूरे जोशो-उमंग के साथ छोटे-छोटे तिरंगों को हाथ में लिए गणतंत्र और स्वतंत्रता दिवस के अवसरों पर विशेष रूप से किया करते रहे।

जन्मभूमि के स्वातंत्र्य के प्रति तड़प और उसके प्रति गौरव भावना का ज्वाजल्यमान दृष्टांत हल्दीघाटी के उपाख्यानों में हम एक-एक कर पाते हैं। राणा प्रताप के स्वाभिमान का ओजस्वीपूर्ण वर्णन असंख्य लोगों को उनका मुरीद बनाता है।

स्वतंत्रता आंदोलन का वह युग, एक ऐसा युग था जब देश में व्याप्त उथल-पुथल को हिंदी कविता का विषय बनाकर कवि अपने दोहरे दायित्व का निर्वहन कर रहे थे। वह एक ओर तो राष्ट्र के प्रति अपने स्वधर्म का निर्वाह राष्ट्रीय भावनाओं को अपनी कविता का विषय बना कर रहे थे तो वहीं दूसरी ओर वह राष्ट्रव्यापी स्वातंत्र्य चेतना को युवाओं की धड़कनों में अपनी कलम के द्वारा अनवरत उद्दीप्त कर रहे थे। स्वाभाविक था कि उर्वर प्रज्ञा भूमि के चलते कवि ने तत्युगीन समस्याओं को अत्यधिक संवेदनशीलता के साथ ऐतिहासिक सांचे में रखकर समूचे युग के सामने एक दृष्टान्त रखा। इसके पीछे जो महनीय उद्देश्य कार्य कर रहा था वह यही था कि राष्ट्रीय भावनाओं से ओत-प्रोत कविताओं की कोख में स्वातंत्र्य चेतना का विकास होता रहे और यही कारण था उनके हर काव्य, महाकाव्य में क्रांति कामना चरितार्थ हुई है।

श्यामनारायण पाण्डेय ने बहुत सी उत्कृष्ट काव्यसर्जनाएं की हैं। ‘हल्दीघाटी’, ‘जौहर’, ‘तुमुल’, ‘रूपान्तर’, ‘आरती’, ‘जय हनुमान’, ‘परशुराम’, ‘जय पराजय’, ‘गोरा-वध’ इत्यादि जिनमें प्रमुख हैं। इनमें ‘हल्दीघाटी’ सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ। राजस्थान की ऐतिहासिक रणभूमि ‘हल्दीघाटी’ जो अकबर और महाराणा के युद्ध की साक्षी थी। कहते हैं की हल्दीघाटी की मिट्टी जो कि हल्दी की तरह पीली थी, भीषण युद्ध के कारण रक्त निमज्जित होकर लाल हो गई। उसी को आधार बनाकर लिखा गया था ‘हल्दीघाटी’ महाकाव्य उस समय के सर्वश्रेष्ठ सम्मान ‘देव पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया था। हल्दीघाटी महाराणा प्रताप और अकबर के बीच हुए प्रसिद्ध ऐतिहासिक युद्ध पर निबद्ध किया गया है। प्रताप के ऐतिहासिक त्याग, आत्म बलिदान, शौर्य, स्वतंत्रता के प्रति प्रतिबद्धता एवं जातीय गौरव के उद्बोधन ‘हल्दीघाटी’ में उस दौर की आजादी के दीवाने युवाओं के बीच खासी लोकप्रियता अर्जित की। सन् 1939 का समय, वह समय था जब भारत का स्वतंत्रता आंदोलन अपनी परिपक्वता की ओर बढ़ रहा था। ऐसे समय में ‘हल्दीघाटी’ ने युवाओं के उबाल खाते रुधिर में एक पवित्र आहुति का कार्य किया और ‘हल्दीघाटी’ तत्कालीन विद्यार्थियों और स्वतंत्रता के पुजारियों का कंठमाल बन गई।

‘जौहर’ में चित्तौड़ की रानी पद्मिनी का हृदयहारी आख्यान है। रानी पद्मिनी जो न सिर्फ राजपूती स्वाभिमान का अपितु भारतीय नारी के उस गौरव का प्रतीक हैं जो अपने सतीत्व और सम्मान के स्वातंत्र्य की रक्षा हेतु हंसते-हंसते जौहर की ज्वाला में कूदकर प्राणों को स्वाहा कर देती है। आजादी के उसी युग में यह उस अप्रतिम भाव का द्योतक नहीं तो और क्या है, कि जब स्वातंत्रता की अभीप्सा लिए तरुण दीवाने किसी भी प्रकार के बलिदान यहां तक कि आत्माहुति देने में भी पीछे नहीं हटते थे।

श्यामनारायण पाण्डेय जी की कृतियों की विशेष बात यह है कि यदि वह पौराणिक आख्यान को भी अपने काव्य का आधार बनाते हैं तो भी उसकी विषयवस्तु के चुनाव में वह ओज तथा वीर रस को ही प्रमुखता देते हैं। वह वीरता जो उस युग की पहचान थी। वह ओजस्विता जो पराधीन भारत में भी स्वाभिमान और राष्ट्रगौरव के भाव से भारतीय जन-मन को ओत-प्रोत रखा करती थी। यहां ‘तुमुल’ और ‘परशुराम’ का उल्लेख समीचीन होगा। जब तुमुल के अंतर्गत दो पराक्रमी और विलक्षण व्यक्तित्व के धनी युवाओं लक्ष्मण और मेघनाद के बीच धर्मयुद्ध हुआ तो वस्तुत: उसके माध्यम से भारतीय संस्कृति और समाज के उद्दात्त प्रतिमानों को उपस्थापित किया गया है। वहीं परशुराम विष्णु के ही रौद्र अवतारस्वरूप धर्मसंस्थापनार्थ की भावभूमि पर रचे-बसे एक ऐसे व्यक्तित्व हैं जो अपनी प्रतिबद्धताओं के पालनार्थ कुछ भी कर सकते हैं-‘

आखों से बहती अग्निसरित्,

मुख तेज वर्तुलाकार हार।

जिह्वा पर बुदबुद शिवस्तोत्र,

रुधिरेच्छु भयंकर परशुधार।।’

स्वाभाविक था कि उस युग का जनमानस अपनी मातृभूमि के लिए सर्वस्व समर्पण के सहज भाव से आप्लावित होता। ‘जय हनुमान’ भी उसी प्रतिकार का प्रतीक है जो उस दौरान गांधी जी के ‘करो या मरो’ के आह्वान के बाद ‘करेंगे या मरेंगे’ के रूप में कोटि-कोटि आवाज बनकर उद्घोषित हो उठा-

‘ज्वलल्लाट पर प्रचण्ड तेज वर्तमान था,

प्रचण्ड मानभंगजन्य क्रोध वर्धमान था।

ज्वलंत पुच्छबाहु व्योम में उछालते हुए,

अराति पर असह्य अग्निदृष्टि डालते हुए।

उठे कि दिग्दिगंत में अवण्र्य ज्योति छा गई,

कपीश के शरीर में प्रभा स्वयं समा गई।।

पाण्डेयजी के काव्य में भाव और अलंकारों का हम अद्भुत सम्मिश्रण पाते हैं। वह अपने समय में कवि सम्मेलनों के शीर्षस्थ कवि थे। कहा जाता है कि उनके शौर्यपूर्ण काव्य को उन्हीं की ओजस्वी वाणी में सुनने की इच्छा लिए श्रोतागण मीलों-मील पैदल चलकर पहुंचा करते थे। कवि पाण्डेयजी के व्यक्तित्व का एक पक्ष यह भी था कि वे बहुत स्पष्टवक्ता थे। कविधर्म के विशेष गुणों से अलंकृत होने के बावजूद चारणधर्मिता या चाटुकारिता को उन्होंने स्वयं से कोसों दूर रखा था। आज आजादी का अमृत महोत्सव मनाते हुए कवि श्यामनारायण पाण्डेय जैसे दुर्धर्ष कवि योद्धा का पावन स्मरण अनिवार्य प्रतीत होता है।

(साभार – दैनिक जागरण पर प्रकाशित डॉ. श्रुति मिश्रा का आलेख)