Tuesday, December 16, 2025
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15 की उम्र में मजदूर का बेटा बना आईआईटी का छात्र

जोधपुर.राजस्थान के जोधपुर जिले के बिलाड़ा के पास एक छोटे से गांव के रहने वाले सुनील ने सिर्फ 15 साल 11 माह की उम्र में ही आईआईटी में एडमिशन ले लिया है। जब वह डेढ़ साल का था तभी स्कूल जाने लगा था और 13 साल में 10वीं व 15 की उम्र में 12वीं पास कर लिया था।  – सुनील का जन्म 20 जुलाई 2000 को हुआ था, वह आने वाले 20 जुलाई को 16 साल का होगा, लेकिन इससे पहले ही फर्स्ट अटेम्ट में आईआईटी कानपुर के लिए सिलेक्शन हो गया है।

सुनील दूसरा सबसे छोटा आईआईटीयन है। पहले स्थान पर दिल्ली का सहल कौशिक है, जो 2010 में मात्र 14 साल में आईआईटी पहुंचा था। सुनील के पिता प्रकाशचंद्र बताते हैं कि वे सुनील के जन्म से पहले से ही कमठा मजदूर का काम करते हैं। उन्होंने सुनील जब डेढ़ वर्ष का था तो आसपास के बच्चों को देखकर स्कूल जाने की जिद करने लगा। इस पर उसे स्कूल में एडमिशन दिलवा दिया। सुनील के पिता ने बताया कि वह हर बार क्लास में फर्स्ट आता था। इसके बाद मैंने सेविंग करनी शुरू कर दी, क्योंकि मुझे लग गया था कि एक दिन वह किसी बड़े कॉलेज में जाएगा। पैसे बचाकर सुनील के पिता ने सुनील को 11वीं में पढ़ने के लिए जोधपुर भेजा। दो साल वह जोधपुर में पढ़ा।

इसके बाद एक वर्ष कोटा में रहकर आईआईटी की तैयारी की और इस बार आईआईटी एडवांस में ओबीसी में 1039वीं व सामान्य वर्ग में 5804वीं रैंक हासिल की। उसे 3 जुलाई को काउंसलिंग के बाद कानपुर आईआईटी में प्रवेश मिल गया। वह सिविल में बीटेक करेगा, लेकिन उसका सपना आईएएस बनना है। सुनील ने दसवीं में 85.33 और 12वीं में 88.60 अंक हासिल किए। आईआईटी जेईई की तैयारी के लिए एक वर्ष कोटा रहा। पिता ने तीन वर्ष में उस पर 4 लाख रुपए से ज्यादा खर्च किए। सुनील की मां मांगीदेवी नरेगा में काम करती हैं।

 

सोशल मीडिया पर हुए दुर्व्यवहार की शिकायत अब महिलाये कर सकती है दर्ज !

महिला एवं बाल विकास मंत्री, मेनका गाँधी ने बीते मंगलवार को घोषणा की है, कि सोशल मीडिया पर महिलाओ के ऊपर भद्दे कमेंट और बदसलूकी करने वालो के ऊपर अब कार्यवाही की जाएगी। जिन महिलाओ के पोस्ट के ऊपर भद्दे कमेंट या उनके साथ बदसलूकी की गयी है वो महिलाये अपने फेसबुक और ट्विटर पेज पर  हैशटैग #ImTrolledHelp  के साथ अपनी शिकायत दर्ज करा सकती है। या फिर अपनी शिकायत सीधे मेनका गाँधी को मेल भी कर सकती है।

मेनका गाँधी ने आगे  कहा कि ये शिकायते सीधे राष्ट्रीय महिला आयोग के पास भेजी जायेंगी और इसके साथ ही राष्ट्रीय महिला आयोग सोशल मीडिया पर होने वाले महिलाओ के साथ दुर्व्यवहार पर निगरानी भी रखेगा।

मेनका गाँधी ने ट्वीट किया “ क्या आप भी उन महिलाओ मेंसे एक है जिसके साथ ऐसा दुर्व्यवहार किया गया है? तो मुझेइस बारे में [email protected] पर  सूचना दीजिये 

मेनका जी का ये ट्वीट अभी बीते दिनों घटित हुयी एक घटना के सन्दर्भ में आया है, जिसमे एक प्रसिद्ध बॉलीवुड गायिका सोना महापात्रा को सलमान खान के बॉलीवुड कलाकारों के रेप से पीड़ित महिला के  साथ तुलना करने वाले बयांन की आलोचना करते हुए किये गए ट्वीट की वजह से सलमान खान के प्रसंशको की नाराजगी और  सोशल मीडिया पर बदसलूकी का सामना करना पड़ा।

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मेनका गाँधी ने इंडियन एक्सप्रेस को दिए अपने इंटरव्यू में बताया, “ गायिका के साथ सोशल मीडिया पर  हुए इस तरह के दुर्व्यवहार को नोटिस किया गया और तुरंत इस सन्दर्भ में आगे कार्यवाही करते हुए उस व्यक्ति का ट्विटर अकाउंट बंद करवा दिया गया। सोशल मीडिया पर काफी भद्दे कमेंट्स किये गये थे। इस बात का पता चलते ही हमने तुरंत राष्ट्रीय महिला आयोग को इस मामले में दखल देने को कहा और सम्बंधित व्यक्ति द्वारा  इस तरह की अभद्र टिप्पणिया करने के लिए तुरंत कार्यवाही करने को कहा।”
लेखिका अपर्णा जैन ने वर्ष 2014 में अपने ट्विटर अकाउंट में अनजान व्यक्ति के ट्विटर अकाउंट से बलात्कार करने की धमकियां मिलने के बाद साइबर सेल में अपनी शिकायत दर्ज करवाई थी।
अपर्णा ने टाइम्स ऑफ़ इंडिया को बताया, “ मुझे इस बात की बेहद ख़ुशी है कि किसी ने इस मामले में ध्यान दिया ,कि सच में ये एक समस्या है। पर एक बार शिकायत दर्ज करने के बाद वो आगे क्या करेंगे … क्या इसके बाद भी उन्हें पुलिस के पास जाना पड़ सकता है?”
उच्चतम न्यायालय की वकील करुना नंदी का कहना है, “जबसे राष्ट्रीय महिला आयोग को महिला अधिकारों के उल्लंघन की जाँच में सिविल कोर्ट की तरह कार्यवाही करने का अधिकार दिया गया है , तबसे ही इस तरह के मामलो में आनेवाली शिकायतों की संख्या में भारी इजाफा हुआ है। “

वो आगे कहती है कि अगर आयोग पुलिस को सीधे शिकायत दर्ज करने के लिए कहे तो इस मामले को लोग ज्यादा गंभीरता से लेंगे और ऐसा करने से पहले कई बार सोचेगे।
पर विडम्बना यह है कि, मंत्रीजी को उनके सम्बंधित ट्वीट के बाद बड़ी संख्या में उनके पुरुष फालोवार्स के द्वारा लिंग समानता के नाम पर उपहास का पात्र बनाया गया।

बॉलीवुड के प्रसिद्ध गायक अभिजीत भटटाचार्य जिन पर बीते दिनों पत्रकार स्वाति चतुर्वेदी के साथ सोशल मीडिया पर बदसलूकी करने का आरोप है, ट्वीट करते है, “मै भी एक आदमी, एक बेटा, एक पिता, एक भाई हूँ और मुझे सोशल मीडिया पर कुछ महिला पत्रकारों और उनके कुछ पाकिस्तानी दोस्तों के द्वारा गाली गलौज  का सामना करना पड़ा और उन्होंने मेरे देश को भी गाली दी तब मुझे कहाँ पर अपनी शिकायत दर्ज करनी चाहिए? ”
मेनका गाँधी ने सोशल मीडिया पर इस तरह की बदसलूकी की घटनाओ पर पहले भी कई बार अपने विचार व्यक्त किये है। इस साल मई में उन्होंने कहा था, “सरकार सोशल मीडिया पर महिलाओ के साथ हो रहे अभद्र व्यवहार पर कड़ी कारवाही करने पर विचार कर रही है।”

(साभार – द बेटर इंडिय़ा)

एक दिन की दावत नहीं बच्चों को उनकेे पैरों पर खड़े होने का हुनर दीजिए

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  • – माधवीश्री

अभी हाल में राजधानी के एक रेस्तरां में एक महिला द्वारा कुछ गरीब बच्चों को भोजन करवाने में बाधा पहुंचाने हेतु एक खबर बहुत तेजी से प्रसारित हुई। आज से कुछ साल पहले की बात होती तो मैं रेस्तरां वाले को बहुत कोसती , उस महिला को बहुत धन्यवाद देती उसके कोमल ह्रदय के लिए, बच्चों के प्रति उनके मन में बसी उदारता के लिए पर कुछ सालो में मुझमे कुछ परिवर्तन आये हैं जिसके कारण मेरे सोचने का नज़रिया बहुत कुछ बदल गया है। यह उस बदले हुए सोच का परिणाम है कि मैं यह सोच रही हूँ कि इस एक दिन की दावत से इन बच्चों के जीवन में क्या परिवर्तन आएगा ? आनेवाले दिनों में ये क्या बनेंगे ? आनेवाले दिनों में यह एक दिन की दावत उन्हें क्या बनने  के लिए प्रेरित करेगी ? अवश्य ही विवेकानंद , भगत सिंह , मार्क जुबेरबरक , स्टीव जॉब, अब्दुल कलाम  ऐसा कुछ बनने के लिए प्रेरित तो नहीं करेगी।  अगर हम इन सभी  प्रसिद्ध हस्तियों के जीवन में नज़र डाले  तो हम पाएंगे कि सभी ने मुश्किलों और तकलीफों का सामना अपने जीवन में किया पर उनसे कभी हार नहीं मानी।  डट कर उसका मुकाबला किया और  उस पर विजय प्राप्त की।  तभी वे हमारे लिए प्रेरणा का स्रोत्र है।  उनका जीवन हमें कठनाइयों से लड़ने की राह दिखता है।  सपने देखना सीखता है और उस सपने को हासिल करने के लिए काम करना और मजबूत होना सीखता है।

मैं  उक्त महिला के हमदर्दी के बारे में सोच  रही थी , उसकी इस एक दिन की पार्टी से बच्चे क्या सीखेंगे अपने जीवन में यही कि  कोई एक अमीर आएगा उनेह किसी बड़े रेस्तरां ले जायेगा और उनके एक दिन का जीवन धन्य  हो जायेगा।  आगे चल कर वे भी अपने बच्चों के लिए यही सपने बुनेगे – आश्रित होने के सपने। यह एक खतरनाक स्थिति है।  निजामुद्दीन या दिल्ली के कई रेड लाइट सिग्नल पर खड़े हुए ऑटो में बैठे लोगो से हक़ से भीख मंगाते बच्चे मुझे डरा जाते है।  भीख मांगना कभी हक़ नहीं हो सकता।  तनख्वाह मांगना , मज़दूरी मांगना हक़ हो सकता है।  पर इन बच्चों में मैंने भीख को हक़ की तरह मांगते हुए देखा हैं और भीख न मिलने पर वे आपको छूने लगते है या चिकोटी काटने लगते हैं।  यह और भी भयानक स्थिति है।  क्या मीडिया कभी इस एंगल से सोचेगा?

काश कुछ लोग इन बच्चों को कुछ हुनर सिखाए, साफ- सफाई के फायदे समझाए ,पढाई लिखाई  सिखाए , इनमे आत्मविश्वास भरे तो शायद इन बच्चों और इस देश दोनों का कल्याण होगा। किसी को हथेली पर धर  कर कुछ नहीं मिलता यह  बात इन बच्चों को सिखानी चाहिए। उनके अंदर यह आत्मविश्वास जगना होगा कि तुम गरीब पैदा तो हुए हो पर इसमें तुम्हारी गलती नहीं है , पर अगर गरीब मरे तो इसमें तुम्हारी  गलती है।  तुम में वह ताक़त है कि तुम अपना कल बदल सकते हो।  किसी रेस्तरां में एक दिन का भोजन कर लेने से इन बच्चों का जीवन नहीं बदल सकता न ही इनमे आत्माविश्वास पनप सकता है जो इनको लम्बी रेस का इंसान बनाए। आज जरूरत है हमको अपने नज़रिए को बदलने कि ताकि हम इन बच्चों का भविष्य सच में बदल सके न कि एक दिन की चांदनी फिर अँधेरी रात वाला हाल हो इनका. क्या मीडिया कभी ठहर कर ऐसा सोचेगा?

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

 

 

 

 

 

यूनिसेफ के साथ प्रियंका चोपड़ा ने छेड़ी बच्चों को आगे बढ़ाने की मुहिम

हाल ही में दिल्ली मे यूनिसेफ की गुडविल एम्बेस्डर अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने यूनिसेफ द्वारा प्रयोजित ” एक न्याय संगत शुरुआत सभी बच्चों के लिए ” नामक मुहिम की शुरुआत की।  इस अवसर पर पत्रकारों और युवा लड़कियों  के सवालों का जबाब देते हुये अभिनेत्री प्रियंका चोपड़ा ने कहा कि लड़कियों के साथ भेद – भाव का सबसे बड़ा कारण ” मानसिक सोच ” हैं।  गलत मानसिक सोच के तहत ही हम ये सोचते हैं कि लड़के लड़कियों से बेहतर हैं , लड़कों से मुखाग्नि लेकर ही परिवार का वंश आगे बढ़ सकता हैं।  ये सारे मानसिक सोच ही हमे पीछे धकेलते है और यही सोच ही समाज मे भेदभाव पैदा करता हैं।  उनोहने कहा कि हम अपने आस -पास के माहौल मे भी लड़कियों की शिक्षा मे योगदान दे सकते है जैसे अपने ड्राइवर , घरेलू कर्मचारी के बच्चों को पढ़ा कर।  जरूरी नहीं कि  हम सारी दूनिया को बदल पाये पर जितना योगदान हम अपने अगल- बगल कर सकते है उतना तो जरूर करे।   इस अवसर पर यूनिसेफ के प्रतिनिधि लुईस जॉर्ज ने कहा कि हमारे पास साफ तौर से मुख्य चुनाव हैं कि या तो हम जो बच्चे पिछड़ गये हैं उनके विकास मे अपना योगदान करे या फिर 2030 मे एक ज्यादा विभाजित और असमान समाज का सामना करे।   एक अँकड़े के मुताबिक अभी 61 लाख बच्चे भारत मे स्कूल से बाहर हैं।  करीब एक करोड़ बच्चे काम मे लगे हैं , 3500 बच्चे रोज मर रहे हैं पांच वर्ष की उम्र से पहले।  भारत मे 42 % जनजातीय बच्चे अविकसित हैं।  भारत  लड़कियाँ भी समान अवसर की हकदार है पर 22 लाख से भी ज्यादा लड़कियों की शादी कम उम्र मे कर दी जाती हैं।

 

कहां से आया ‘ईद-उल-फितर’ शब्द

इस्लाम धर्म में पवित्र रमजान के पूरे महीने रोजे अर्थात् उपवास रखने के बाद ईद-उल-फितर का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार रमजान के अंत में मनाया जाता है। मुस्लिम धर्मावलंबियों के लिए यह अवसर भोज और आनंद का होता है। फितर शब्द अरबी के ‘फतर’ शब्द से बना। जिसका अर्थ होता है टूटना।

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कोई एक निश्चित दिन तय नहीं 

अन्य इस्लामी त्योहारों की तरह रमजान एक दिन विशेष पर नहीं आता है। यह इस्लामी केलेंडर का नौवां महीना होता है। इस प्रकार यह पूरा माह ही त्योहारों की तरह होता है। इबादत या प्रार्थना, भोजन और मेल-मिलाप इस त्योहार की प्रमुख विशेषता है। ईद खुशी का दिन है।

 इसलिए पहनते हैं ईदगाह पर सफेद पोशाक 

इस दिन की रस्मों में सुबह सबसे पहले नहाना, नए कपड़े पहनना,सुगंधित इत्र लगाना, ईदगाह जाने से पहले खजूर खाना आदि मुख्य है। आमतौर पर पुरुष सफेद कपड़े पहनते हैं। सफेद रंग पवित्रता और सादगी का प्रतीक है। इस पवित्र दिन पर बड़ी संख्या में मुस्लिम अनुयायी सुबह जल्दी उठकर ईदगाह, जो ईद की विशेष प्रार्थना के लिए एक बड़ा खुला मैदान होता है, में इबादत ओर नमाज अदा करने के लिए इकट्ठे होते हैं।

 फितर यानी उपहार देना 

नमाज से पहले सभी अनुयायी कुरान में लिखे अनुसार, गरीबों को अनाज की नियत मात्रा दान देने की रस्म निभाते हैं। जिसे फितर देना कहा जाता है। फितर या एक धर्मार्थ उपहार है, जो रोजा तोडने के उपलब्ध में दी जाती है।

मस्जिद के बाहर नमाज की विशेष व्‍यवस्‍था इसी दिन 

ईदगाह पर इमाम द्वारा ईद की विशेष इबादत और दो रकत नमाज अदा करवाई जाती है। ईदगाह में नमाज की व्‍यवस्‍था इस त्योहार विशेष के लिए होती है। अन्य दिनों में नमाज मरिजदों में ही अदा की जाती है।

 

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा से जुड़े हैं ये रहस्य

जगन्नाथ रथ यात्रा के समापन का दिन ‘नीलाद्रि बिजे’ कहलाता है। यह दिन इस बार 14 जुलाई 2016 के दिन है, इस दिन द्वादशी है। यह वही दिन है जब रथों पर ‘अधर पणा’ (भोग) के बाद भगवान जगन्नाथ को मन्दिर में प्रवेश कराया जाता है इसे ‘नीलाद्रि बिजे’ कहते हैं।

इसके पहले भगवान का स्वर्णाभूषणों से श्रृंगार किया जाता है जिसे ‘सुनाभेस’ कहते हैं। इस तरह यह जगन्नाथ रथ यात्रा पूर्ण होती है। अगले वर्ष के इंतजार में भक्त भावविभोर होकर इस पूरे उत्सव का समापन श्रद्धा पूर्वक करते हैं। जब भक्त गुंदेचा मंदिर के भगवान के दर्शन कर रहे होते हैं उसे ‘आड़प दर्शन’ कहते हैं।

हिंदू पंचांग के अनुसार, आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की दूसरी तिथि को जगन्नाथ रथ यात्रा निकाली जाती है।

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यहां जाती हैं रथ की लकड़ियां और काष्ठ मूर्तियां

जब अषाढ़ माह में अधिकमास आता है, तब पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा ‘नवकलेवर’ उत्सव मनाया जाता है। नवकलेवर उत्सव 13 दिनों तक जारी रहा।

रथ यात्रा के बाद तीनों रथों की पवित्र काष्ठ (लकड़ी) को भक्त अपने घर ले जाएंगे जहां वो सुख, समृद्धि, संपन्नता के लिए पूजाघर में रखेंगे एवं काष्ठ की वर्षभर पूजा करेंगे।

रथ यात्रा में पहली रोचक बात यह है कि ‘नवकलेवर’ में निर्मित मूर्तियों को हर वर्ष जगन्नाथ रथ यात्रा में निकाला जाएगा। यह दौर तब तक जारी रहेगा जब तक अगला नवकलेवर नहीं आता यानी ‘अषाढ़ माह में अधिकमास और जगन्नाथ रथ यात्रा का विशेष संयोग।’

मूर्ति शिल्पकार की हो जाती है मृत्यु

जगन्नाथ रथ यात्रा की दूसरी रोचक बात यह है जब ‘नवकलेवर’ उत्सव के लिए नई काष्ठ मूर्तियां जो शिल्पकार बनाता है उसकी मृत्यु हो जाती है। ‘नवकलेवर’ में वह शिल्पकार भगवान जगन्नाथ, बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र की काष्ठ मूर्तियां बनाता है।

नवकलेवर उत्सव के समापन पर नई मूर्तियों को मंदिर परिसर में ही एक विशेष स्थान पर रखा जाता है। पुरानी मूर्तियों को मंदिर परिसर में विशेष स्थान पर धरती में समाहित कर दिया जाता है। जहां भक्त पुष्प अर्पित करते हैं। यह वही स्थान होता है जहां नवकलेवर उत्सव के दौरान सदियों से समाहित किया जा रहा है।

आश्चर्य की बात यह है कि जब पुरानी मूर्तियों को धरती में समाहित किया जाता है तब उनसे पहले की मूर्तियां उस स्थान पर अदृश्य मिलतीं हैं। यह क्रम सदियों से चला आ रहा है। जिस पर श्रद्धालुओं की आस्था जुड़ी हुई है।

इस तरह नवकलेवर में निर्मित इन तीनों काष्ठ मूर्तियों को हर वर्ष पुरी जगन्नाथ रथ यात्रा में दर्शनार्थ निकाला जाता है। और यह क्रम अगले नवकलेवर उत्सव तक जारी रहता है।

 

मिष्टान जो भर दें खुशियों में मिठास

शाही मावा कचौड़ी

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सामग्री-  1 कप मैदा,  2 टीस्‍पून घी, 2 चम्मच दरदरे पिसे हुए काजू और बादाम, 1/3 कप मावा, 4, दरदरा पीसी छोटी इलायची, 1/3 कप पाउडर चीनी, 1 कप शक्कर

गार्निश के लिये – 4 बारीक पतले कटे बादाम, 2 छोटे – छोटे कटे काजू, 2 छोटी इलायची, कचौरियां तलने के लिये घी

विधि- सबसे पहले मैदा, घी और पानी की मददे से आटा गूथ लें। आटे को ज्‍यादा नरम ना करें। इसे 20 मिनट के लिये कपड़े से ढांक कर रख दें।nभरावन बनाने के लिये मावा को हाथों से मसल कर पैन में डाल कर हल्‍का ब्राउन कर के भूनिये। फिर इसमें पिसा काजू और बादाम मिश्रण डाल कर चलाइये। अब इसे अलग निकाल कर इसे ठंडा हो जाने के बाद इसमें शक्‍कर और आधा इलायची पावडर मिलाइये।

कचौड़ी बनाने की विधि –गूथे आटे में से छोटी छोटी लोइयां तोड़ कर उसे बेल कर उसके बीच में 1- 1 1/2 चम्‍मच भरावन रख लीजिये। फिर आटे को चारों ओर से कपड़ कर भरावन को बंद कर दें। अब कचौड़ी को हल्‍के से दोनों हथेलियों से दबा कर हल्‍का सा फैला दें। इसी तरह से सारी कचौड़ियां बनाएं और गरम घी में गोल्‍डन ब्राउन होने तक तल लीजिये। कचौडियों को धीमी और मध्‍यम आंच पर ही तलें। जब कचौडियां तल उठें तब इन्‍हें एक किनारे निकार कर चीनी की चाशनी तैयार कीजिये। गरम चाशनी में इलायची पावडर मिलाइये। फिर उसमें कचौडियों को डिप कीजिये और कुछ समय बाद निकाल कर प्‍लेट में सजाइये। ऊपर से सूखे कटे मेवे कचौडी पर गार्निश कीजिये और सर्व कीजिये।

 

खजूर हलवा

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सामग्री-2कपखजूर,2कपगरमदूध, डेढ़ कप चीनी, आधा कप घी, 1 चम्मच इलायची पाउडर,5 – 6 स्लाइस कटे बादाम

विधि – हल्‍के गरम दूध में खजूर को भिगाइये, करीब 5 घंटे के लिये। उसके बाद इसे मिक्‍सी में गाढा पेस्‍ट पीस लीजिये। अब एक बड़ी थाली या प्‍लेट में घी लगा कर उसे ग्रीस कीजिये। एक पैन में घी गरम करें, उसमें खजूर का पेस्‍ट डालें , फिर चीनी डाल कर उसे तब तक चलाइये जब तक कि वह अच्‍छे से घुल न जाए। अगर जरुरत हो तो उसमें दूध मिलाइये और 20 मिनट तक चलाती रहिये। उसके बाद उसमें इलायची और बादाम के स्‍लाइस डालिये और मिक्‍स कीजिये। 5 मिनट के बाद आंच बंद कर दीजिये। फिर हलवे को घी लगी थाली में पलट दीजिये और जब ठंडा हो जाए तब उसे चाकू कि सहायता से किसी भी आकार में काटिये।

 

 

जी हाँ! लड़के और लड़कियाँ अच्छे दोस्त बन सकते हैं

ऐसा कहना शायद गलत हो कि जमाना बदल रहा है और इस बदलते जमाने में एक लड़का और लड़की दोस्त हो सकते हैं। दोस्ती की इस परिभाषा को जमाने से जोड़कर देखना गलत होगा क्योंकि दोस्त बनाने के लिए वक्त बदलने की कोई जरूरत नहीं होती। ये तो सोच का फर्क होता है और एक लड़का और लड़की की दोस्ती होना कोई नई बात नहीं हैं।

हां, आज के जमाने में इन सब विषयों पर खुलकर बात होने लगेगी है। बॉलीवुड से लेकर हॉलीवुड तक में ऐसी कई फिल्में बनी हैं जो एक लड़के और लड़की की दोस्ती की मिसाल कायम करती हैं. लेकिन अगर आप अभी ये मानते हैं कि एक लड़के और लड़की के बीच दोस्ती नहीं हो सकती तो आइए जानते हैं इस बात में कितनी सच्चाई है…

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दोस्ती विश्वास से बंधी है –कहते हैं कई बार खून के रिश्तों पर दोस्ती का रिश्ता भरी पड़ जाता है। बिना किसी स्वार्थ के बना ये रिश्ता सच में बस विश्वास के धागे से बंधा होता है इसलिए ये जरूरी तो नहीं कि लड़का सिर्फ एक लड़के पर ही विश्वास कर सकता है या फिर एक लड़की किसी लड़के पर कभी विश्वास नहीं कर सकती। न जाने क्यों लोग ऐसी साेच रखते हैं और उसे फिर दूसरों पर थोपने की कोशि‍श भी करते हैं। असल जिंदगी में अब ऐसा नहीं रहा है। लड़के-लड़कियां अच्छे दोस्त भी बनते हैं और ये रिश्ता मजबूती आगे भी बढ़ रहा है।

चल रही है बदलाव की हवा –आज हम जिस दौर में हैं वहां लड़कियां हर फील्ड में आगे बढ़ रही हैं और कॉलेज से लेकर ऑफिस तक लड़कों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम रही हैं। अब ऐसे में ऐसी सोच रखना की लड़के-लड़कियां दोस्त नहीं बन सकते बेमानी ही लगता है। लैंगिक आधार पर भेदभाव भले ही आज भी मौजूद हो लेकिन लड़के और लड़की की दोस्ती को अब बहुत नॉर्मल तरीके से देखा जाता है। लड़का और लड़की भी अपने रिश्तों को लेकर अधिक सहज होने लगे हैं।

हर आकर्षण प्यार नहीं होता – किसी भी  रिश्ते की शुरुआत आकर्षण से होती है क्योंकि कभी किसी की आदतें अच्छी लग जाती हैं तो किसी का अंदाज और कई बार तो ऐसा भी होता है कि प्यारी मुस्कान से रिश्ते की शुरू करवा दे। लेकिन जब एक लड़का और लड़की एक-दूसरे के आकर्षण में बंध कर दोस्ती करते हैं तो लोग उसे प्यार समझने की गलती कर बैठते हैं। बड़ी बात यह है कि उनमें से ज्यादातर लोग उन दोनों से निजी रूप से परिचित भी नहीं होते। उनके मन में यह बात होती है कि जरूर इनके बीच कुछ होगा.

ऐसे रिश्तों का गवाह बन रहा है सोशल मीडिया –डिजिटल होती दुनिया में सोशल मीडिया खुद में पूरी दुनिया को समेटे हुए है और इननेटवर्किंग साइट्स पर कई तरह की दोस्ती देखने को मिल जाती है जैसे कुछ काम से जुड़े होते तो कुछ दोस्ती के नाते।  यहां पर दोस्ती की कोई सीमा नहीं है, कोई भी किसी का दोस्‍त हो सकता है। चाहे वह बड़ा हो या छोटा, लड़का हो या लड़की. दोस्त सिर्फ दोस्त होता है और अब उससे लड़का-लड़की देखकर दोस्ती नहीं होती.

हां एक लड़का और लड़की दोस्त हो सकते हैं – लोगों की सोच में समय के सा‍थ बदलाव हुआ है. बात चाहे दोस्ती की हो या रिश्तों की, लोग अब खुलकर सोचते है. मगर आज भी ज्यादातर लोग, बल्कि पढ़े-लिखे युवा भी कई बार दोस्ती में इस फर्क को जाहिर करते हैं। एक लड़का और लड़की सिर्फ दोस्त नहीं हो सकते, यह बात अब पुरानी हो चुकी है. फिर भी अगर दोस्ती लड़का-लड़की के बीच है तो उस पर नजर सदा पैनी ही रखी जाती है। लेकिन अब दोस्ती का रिश्ता प्यार और रिलेशनशि‍प पर भी भारी पड़ने लगा है। लड़का और लड़की दोस्ती के इस कंफर्ट को समझने लगे हैं और व्यस्त-तनाव भरी जिंदगी में एक अच्छे दोस्त को कोई नहीं खोना चाहता।  इसलिए इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि दोस्त लड़की है या लड़का, बस सोच और समझ एक होनी चाहिए। हर रिश्ते की अपनी जगह होती है, अपना वजूद होता है. इस रिश्ते की पवित्रता को कहीं न कहीं समाज का एक वर्ग बखूबी समझ रहा है और उसे स्वीकार भी कर रहा है।

 

साठ बर्षो से जल, जंगल और जमीन बचाने की मुहीम चला रहा है झारखंड का ये वाटरमैन !

 

जिंदगी में कुछ भी नहीं बदला लेकिन हजारों गांव वालों की जिंदगीयों में बदलाव लाने का श्रेय इस शख्स को जाता है। 84 साल की उम्र में भी सिमोन ऊरांव सुबह साढ़े चार बजे उठकर खेत और जंगल की ओर निकल पड़ते है, कई तरह की मुसीबतों का सामना कर सिमोन ने अपने गांव के पास सालों पहले पौधारोपण किया था , जो आज जंगल का रूप ले चुके है और रोजाना सुबह उठकर वो इन पेड़ों और पौधो की एक झलक लेने निकल जाते है।

रांची के बेड़ो प्रखण्ड के खक्सी टोली गांव के निवासी सिमोन ऊरांव अपने इलाके में बाबा के नाम से लोकप्रिय है, वहीं मीडिया के बीच में वो वाटरमैन के नाम से जाने जाते है। बेड़ो के इस बाबा ने हजारों परिवारों की जिंदगी खुशियों से भर दी है और इन खुशियों को इन परिवारों तक पहुंचाने के लिए इन इलाकों में गांव के आम लोगों को जोड़कर भारी तादाद में कुआं व तालाब निर्माण, जल संचयन एवं वृक्षारोपण ड्राइव चलाया।

गरीबी की वजह से सिमोन अपनी स्कूली पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। बचपन में सिमोन गरीबी व अपने घर वालों व गांव वालों की रोजी-रोटी की दिक्कतों से परेशान रहते। वे हमेशा किसी ऐसे उपाय के बारे में सोचा करते, जिससे उनके घर वालों व गांवों वालों की तकलीफ दूर हो और लोगों को भर-पेट खाना मिले और वे आर्थिक उन्नति कर सकें। जब सिमोन युवा हुए तो उस समय देश को नयी-नयी आजादी मिली थी, अंग्रेज़ चले गये और अपनों का शासन आया। परन्तु अपनों के शासन में हालात बहुत नहीं बदले।

गांव के जंगल पर वन विभाग ने दावा कर दिया, ठेकेदार को वन कटाई के ठेके दिये जाने लगे और यह तर्क दिया गया कि जब पुराने पेड़ कटेंगे तो उसकी जगह नये पौधे जन्म लेंगे। लकड़ी तस्करों की जैसे बाछे खिल गई, उनके गांव के आस-पास के जंगल साफ होने लगे, बड़े –बड़े ट्रक उनके गांव में आने लगे। सिमोन उरांव को यह बात नहीं जंची, उनका स्पष्ट मानना था कि गांव के जंगल पर गांव के लोगों का अधिकार है, उन्होंने ग्रामीणों के समर्थन के साथ एलान किया कि वे लोग इस कानून को नहीं मानेंगे. जमीन पर गांव वालों का अधिकार है। बरखा, पानी, जंगल-झाड़ भगवान देते हैं। तीर-धनुष लेकर भी उन्होंने जंगल की कटाई का विरोध किया। सिमोन की अगुवाई में एक गांव से शुरू हुए इस विरोध में लोग जुड़ते चले गए और अंत में जंगल तस्करों को मुंह की खानी पड़ी।

टीबीआई से बात करते हुए पद्ममश्री के लिए चयनित सिमोन ने बताया कि, “गांव के लोगों को संगठित कर मैने वन रक्षा और जल संचयन के मिशन को सफल बनाया है।

सिमोन पुराने दिनों को याद करते हुए शांत हो जाते है। उन्होंने  ने बताया कि शुरूआती दिनों में वन रक्षा के लिए हरिहरपुर के जामटोली, खक्सी टोली, बैरटोली के ग्रामीणों को इकट्ठा किया. इन तीन टोलियों के लोग एक साथ बैठे।

सिमोन ने लोगों को समझाया कि लकड़ी तस्कर इस जंगल को बरबाद कर देंगे। इस बैठक में आसपास के गांवों के 10-10 लोगों को तैयार किया और उन्हें जंगल रक्षा की जिम्मेदारी दी। रक्षा करने वालों को 20 पैला सालाना चावल देने का फैसला लिया गया, जलावन के लिए, घर बनाने के लिए लकड़ी की कटाई पर 50 पैसे का शुल्क तय किया गया। अब वह शुल्क बढ़ा कर दो रुपये कर दिया गया है। सालों से आज भी हर हफ्ते गुरुवार को सुबह छह बजे गांव में बैठक होती है, जिसमें वन रक्षा, जल संचय सहित कई दूसरे विषयों पर चर्चा होती है।

सिमोन बाबा ने गांव वालों के लिए नियम बनाया है कि एक पेड़ काटो तो दस पेड़ लगाओ।

सिमोन बताते है कि तालाब और बांध बनाने का काम 1955 से 1970 तक जोरदार तरीके से किया।लेकिन शुरूआती समय में पानी के तेज बहाव से बांध टूट जाते थे, खासकर मानसून के समय में बारिश बांध को साथ में ले जाती थी, ऐसे समय में सिमोन और गांव के लोगों का साथ देने जल संसाधन विभाग आगे आया और बांध को साइज और ठोस कंक्रीट करने में मदद की। इसके बाद सिमोन ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा। जल संचयन के लिए सैकड़ों बांध बनाये और सभी तालाबों को डैम से जोड़कर जलाशय का निर्माण कर डाला, जिससे आज भी बेड़ों के 51 गांवो में पानी की सप्लाई की जाती है , जो झारखंड के किसी भी गांव के लिए एक दूर का सपना है।

टीबीआई से बात करते हुए सिमोन खुशी जाहिर करते हुए कहते है कि, “हम लोगों ने जंगलों को बचाने और संवारने के लिए बहुत मेहनत की है, ये जंगल के भगवान की मेहरबानी है कि बेड़ों के 1600 परिवार के लोग, 2100 एकड़ जमीन पर तीन तरह के मौसमी फसल उपजा रहे है। इससे एक ओर जहां पलायन रूका है वहीं दूसरी तरफ बड़े शहरों में हम सब्जियों की सप्लाई कर रहे है।

करीब 25000 मैट्रीक टन सब्जियों की सप्लाई यहां से होती है। इन 51 गांवों में सिमोन भगवान की तरह पूजे जाते है। गांव के आस-पास जंगल, जल और जमीन तीनों प्राकृतिक सौंदर्य को बनाए हुए है और यह सब संभव हो पाया है सिर्फ जल संरक्षण और जंगल बचाने के मिशन को सफल बनाकर।

पद्मश्री के लिये चयन होने की बात पर सिमोन बाबा ने बताया कि उन्हे इस बात की खबर एक मीडिया के मित्र से मिली थी।

सिमोन कहते है, “मैने जो कुछ भी किया गांव के लोगों के साथ की वजह से कर पाया इसलिए इस सम्मान के हकदार गांव के लोग है।

सादा जीवन, उच्च विचार के कथन को चरितार्थ करते हुए सिमोन आज भी जल संरक्षण और जंगल बचाने के लिए प्रयासरत है। आज भी वो अकेले जंगलों के चक्कर काटते है और नए पौधों की देख-रेख करते है।

सीमोन कहते है, “हर साल कम से कम 1000 पेड़ लगाना मेरा का मिशन है और मैं जब तक जिंदा रहूँगा पेड़ लगाता रहूँगा। वृक्ष हमें जीवन देते है और ये हमारा काम है कि हम उनकी रक्षा करें।

सिमोन की सादगी और कर्मठता ने ये साबित कर दिया है कि अगर आप में कुछ कर गुजरने का इरादा हो तो कुछ भी मुश्किल नहीं है। सिमोन को पद्मश्री के लिए नामित किया गया है वहीं ग्रामीण विकास विभाग , झारखंड सरकार ने सिमोन को जल-छाजन मिशन का ब्रांड एंबेसडर नियुक्त किया है।

(साभार – द बेटर इंडिया)

 

‘यहां हिंदू मुसलमान एक ही ख़ून है’

भारत प्रशासित कश्मीर के श्रीनगर के रामबाग़ इलाक़े के निवासी पंडित सबा लाल 26 साल बाद कश्मीर लौटे हैं। साल 1990 में कश्मीर में चरमपंथ का दौर शुरू होने के बाद सबा लाल कश्मीर से भाग कर दिल्ली चले गए थे और तबसे वहीं रह रहे हैं। सबा लाल दो दिन से अपनी पत्नी रमा के साथ श्रीनगर के डाउनटाउन में कश्मीरी मुसलमान नज़ीर अहमद के घर में रह रहे हैं। सबा बताते हैं, “मुझे 26 साल बाद लगा कि मैं अपने घर में सोया हूं. मुझे कोई डर नहीं लगा. इन लोगों ने हमारी बहुत सेवा की. हमारा बहुत ख़्याल रखा. जिस तरह पहले हम मुसलमानों के साथ रहते थे, वैसे ही पिछले दो दिनों से यहां रह रहा हूं.”

वो कहते हैं कि यहां हिंदू मुसलमान एक ही ख़ून हैं. उसमें कोई फ़र्क़ नहीं आया है। सबा लाल, 15 कश्मीरी पंडित परिवारों के साथ आए हैं. इन सभी को कश्मीर में ही रहने वाले एक नौजवान डॉक्टर संदीप मावा यहां लाए हैं. इन सभी पंडित परिवारों को उनके घरों के क़रीब रहने वाले मुसलमान भाइयों के घर ही ठहराया गया है।

डॉक्टर संदीप मावा जम्मू-कश्मीर रिकौंसिल फ्रंट के मुखिया हैं. उनका दावा है कि इस फ्रंट को किसी सियासी जमात का समर्थन नहीं है। डॉक्टर संदीप कहते हैं, ”पिछले 27 साल में पंडितों की घर वापसी को लेकर सिर्फ़ सियायत हुई है.”

संदीप आगे कहते हैं कि जब कश्मीर का मुसलमान पंडितों के लिए दिल और दरवाज़े खोल रहा है तो पंडितों को अलग बसाने की क्या ज़रूरत है. यही वजह है कि मैंने पंडितों को एक प्रयोग के तौर पर कुछ दिनों के लिए कश्मीर बुलाया है। उन्होंने बताया, “ये क़दम सिर्फ़ मेरा नहीं है, मेरे दोस्त नज़ीर अहमद भी इस पहल में शामिल है. हम दोनों ने मिलकर इस सोच को आगे बढ़ाया है.”

नज़ीर अहमद कहते हैं, ”कश्मीर को लेकर पंडितों के दिल में जो डर है, वह निकलना चाहिए। ‘उन्होंने बताया, ”हम दोनों ने मिलकर ये योजना बनाई कि क्यों न कुछ दिनों के लिए पंडितों को यहां लाया जाए. उन्हें अपने घरों में रखकर, उनके दिल में कश्मीर का जो डर है वो निकाला जाए, इससे पंडितों की कश्मीर वापसी का माहौल भी बनेगा। नज़ीर अहमद और सबा लाल की बीवियां जसफ़ीदाह और रमा जब एक दूसरे से मिलीं तो दोनों पहली रात सोई ही नहीं.

रमा बताती हैं, “पूरी रात हम कैसे बिछड़े थे, यही बातें करते रहे।”साल 1990 में कश्मीर में हथियारबंद आंदोलन शुरू होने के बाद वहां रहने वाले लाखों पंडित कश्मीर छोड़ कर भारत के दूसरे शहरों में रहने चले गए थे। विस्थापन से पहले कश्मीरी पंडित और मुसलमान एक साथ एक ही बस्तियों में रहते थे। कश्मीर से बाहर रहने वाले कुछ पंडितों का मानना है कि संदीप मावा जैसा फ़ार्मूला पंडितों की वापसी का हल नहीं है। नोएडा में रहने वाले कश्मीरी पंडित डॉक्टर टीको कहते हैं, “हम उस हर पहल का स्वागत करते हैं जो कश्मीरी पंडितों की वापसी का माहौल बनाए, लेकिन 15 परिवारों को कश्मीर में ले जाकर यह कहना कि ये वापसी का हल है, सही नहीं है। ”

 

(साभार – बीबीसी)