Tuesday, December 16, 2025
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जिंदगी के लिए जरूरी है दोस्तों का साथ

        रेखा श्रीवास्तव

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हमें अपने जीवन में कुछ रिश्ते जन्म के साथ ही मिल जाते हैं, और कुछ रिश्ते समाज या दुनियादारी के नाते हमें बड़े होने पर सौंप दिया जाता है। पर इस दुनिया में केवल एक ही रिश्ता है, जिसे हम चुनते हैं और हमें हमेशा उनकी जरूरत पड़ती है। जिस दिन हम अपने घर से पहला कदम स्कूल जाने के लिए निकालते हैं, तो सबसे पहले हमें परिवार के बाद एक महत्वपूर्ण रिश्ता मिलता है, जो जिंदगी भर खुशियां देता रहता है। वह रिश्ता है दोस्ती का।

दोस्ती ही एक मात्र ऐसा रिश्ता है, जिसमें कोई जाति, कोई धर्म या कोई अमीर-गरीब, काला-गोरा नहीं होता है। यह रिश्ता केवल सच्चे मन से होता है और एकदम खुलापन होता है। इस रिश्ते की मिठास जिंदगी भरी बनी रहती है। इस रिश्ते को खास महत्व देने के लिए अगस्त महीने के पहले रविवार को दोस्ती दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस दिन की शुरुआत अगस्त महीने के आगमन से ही हो जाती है, और दोस्ती और प्यार की महक बिखरने लगी है। वातावरण में भी जैसे दोस्ती का खुमार महसूस होने लगा है। एक तरफ सावन की बहार, और दूसरी तरफ दोस्ती की खुशबू यानी पूरी तरह से माहौल खुशनुमा हो गया है।

दोस्ती का सिलसिला शुरू रखने के लिए इंटरनेट के युग में आजकल फेसबुक और व्हाट्सअप बहुत सक्रिय है। इसके अलावा स्कूल, कॉलेज, कार्यालय और आस-पास रहने वालों में से भी दोस्त की सूची घटती- बढ़ती रहती है। इसके अलावा रोज-रोज मिलने वाले अपरिचित भी कब हमारे दोस्तों की सूची में शामिल हो जाता है, पता ही नहीं चल पाता है। इस बारे में मैं एक बात बताना चाहती हूँ कि मेरी छोटी बेटी इति ने स्कूल जाना शुरू किया है, और रोज उसके नये दोस्त बन रहे हैं। वह छोटी सी बेटी शाम को अपने दोस्तों के नाम और उसके बारे में बताते हुए काफी खुश रहती है, ठीक इसी तरह हम अपने पूरे जीवन भर दोस्त की तलाश करते रहते हैं, और हमें हर पल एक नया दोस्त मिलता रहता है। उसमें से कुछ छूट जाते हैं और कुछ वास्तव में दोस्त बन कर हमारे जीवन में खुशियां बिखरने लगते हैं।

इस दोस्ती भरे माहौल में एक नयापन दिख रहा है, कि आजकल रक्षा बंधन की तरह यह भी रेशम के धागे से बांधा जा रहा है। स्कूल-कॉलेज के बच्चे फ्रेंडशीप बैंड एक-दूसरे की कलाई पर बांध कर दोस्ती दिवस मना रहे हैं। चॉकलेट, आइसक्रीम एक-दूसरे को खिलाकर दोस्ती जैसे रिश्ते को और मजबूत कर रहे हैं। दोस्ती के नाम पर अब लड़के-लड़कियों का भेद लगभग खत्म हो गया है। यह एक अच्छा संकेत है। रिश्ते में विश्वास और अपनापन भी बढ़ा है। पति-पत्नी के रिश्ते में भी दोस्ती की अहम भूमिका है। बल्कि अगर माँ-बेटा, पिता-बेटी, सास-बहू सहित सभी रिश्ते में अगर दोस्ती हो जाये, तब वह रिश्ता और भी मजबूत हो जायेगा।

(लेखिका वरिष्ठ पत्रकार हैं)

विद्यासागर विवि में प्रेमचंद जयंती पर विचार गोष्ठी एवं साहित्यिक प्रतियोगिता

मिदनापुर – विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से प्रेमचंद जयंती का आयोजन विभागीय कक्ष में किया गया। इस अवसर पर उद्घाटन गीत सुजाता सिंह ने प्रस्तुत किया। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने प्रेमचंद को भारतीय समाज का यथार्थवादी लेखक माना। प्रेमचंद ने अपना सारा जीवन साहित्य सृजन में लगाया। आज के संदर्भ में प्रेमचंद विषय पर रत्ना कुमारी, अमर सिंह, प्रियंका अग्रवाल, राफिया खातून, पंकज सिंह, चंदना मंडल, अनिल कु. सरोज, खूशबू यादव, सुजाता सिंह, बरखा देवी, प्रियंका गुप्ता ने अपने मत व्यक्त किया।

प्रेमचंद पर केन्द्रित साहित्य प्रश्न प्रतियोगिता में क्रमश: पहला स्थान मौसमी गोप, अनुराधा मनीषा घोष, दूसरा सुजाता सिंह, के. अनुशा राफिक और तीसरा स्थान सुषमा शर्मा, जी. स्वाती और प्रिया शर्मा को मिला।

आशु भाषण प्रतियोगिता में क्रमश: पहला, दूसरा एवं तीसरा स्थान मौसमी गोप, के अनुशा. एवं प्रियंका अग्रवाल को मिला।

संयोजक संजय जायसवाल ने कहा कि प्रेमचंद ने जीवन की समग्रता को कथा का आधार बनाते हुए नैतिक मूल्यों को जीवन और समाज में स्थापित करने का प्रयास किया। कार्यक्रम का सफल संचालन मौसमी गोप ने किया।

अगर तहेदिल से निभाना है दोस्ती का रिश्ता

आप चाहते हैं, कि आपका कोई बहुत अच्छा  दोस्त हो, या आप किसी के खास दोस्त बन सकें, तो आपको कुछ विशेष बातों का ध्यान रखना चाहिए, जो आपकी दोस्ती की उम्र को बढ़ा देती हैं। जरूर पढ़ें यह खास बातें – 

दोस्ती के लिए एक बात हमेशा पता होना चाहिए, कि यह रिश्ता विश्वास, प्यार, त्याग और शेयरिंग पर टिका होता है। अगर आप अपने अंदर इन खूबियों को महसूस करते हैं, तो बेशक आपकी दोस्ती लंबी चलने वाली है।

देने की कला होने के साथ, पाने की उम्मीद न रखना बहुत महत्वपूर्ण है। क्योंकि उम्मीद पूरी नहीं होने पर नकारात्मक भावना प्रबल हो जाती है। इसके लिए मानसिक रूप से हमेशा तैयार रहें।

खुद से ज्यादा दूसरों को अहमियत दें, इससे आप किसी के लिए में आसानी से जगह बना सकते हैं। इसके साथ ही न कहने का तरीका भी आना चाहिए।

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मुस्कुराहट को अपने जीवन में स्थान दें। मुसकुराता चेहरा सभी को आकर्षि‍त करता है, और दोस्ती करने के लिए प्रेरित करता है

दोस्ती निभाना और विश्वास को बनाए रखना महत्वपूर्ण है। अगर आपको यह कला आती है, तो खूबसूरत दोस्ती के लिए तैयाररहें।

अहम को त्यागकर, किसी की भावनाओं को समझना हर किसी के बस की बात नहीं होती। इसके लिए रिश्ता निभाने का जज्बा चाहिए।इस बात का ध्यान रहना चाहिए।
हर पल किसी की मदद के लिए तैयार रहना, ईश्वर का एक उपहार है। अगर आपको यह उपहार मिला है, तो उससे अपनी दोस्ती के रि‍श्ते के सजाएं।

सच्चा दोस्त अपने साथी को हर अच्छाई और बुराई के साथ स्वीकार करता है, आपमें भी यह गुण होन चाहिए, तभी आप एक अच्छे दोस्त बन सकते हैं।
सामने वाले के अच्छे गुणों की प्रशंसा की से प्रोत्साहित करना और अवगुणों को शालीनता के साथ समझाना, एक अच्छे दोस्त की पहचान होती है। अगर आप भी ऐसे हैं, तो बेहतर दोस्त हो सकते हैं।
  हर हाल में दोस्त का साथ देना, और बुरे वक्त में उसका साथ न छोड़ना, यह काम एक सच्चा दोस्त ही कर सकता है। अगर आप यह कर सकते हैं, तो दोस्ती की दुनिया में आपका स्वागत है।

 

 

सही आहार से कम करें आर्थराइटिस का दर्द

आर्थराइटिस की वजह से होने वाला जोड़ों का दर्द रोगी के जीवन का ढर्रा ही बदल देता है। मगर अपने खानपान में कुछ परिवर्तन करके रोगी इस दर्द से काफी हद तक राहत पा सकता है। एक नजर डालते हैं ऐसे खाद्य पदार्थों पर, जो जोड़ों के दर्द में राहत प्रदान कर सकते हैं।

* फाइबर

आर्थराइिटस के कारण होने वाली जोड़ों की सूजन को कम करने में फाइबर की प्रचुरता वाला आहार कारगर हो सकता है। शोधों में पाया गया है कि भोजन में फाइबर की मात्रा बढ़ाने से शरीर में सी-रिएक्टिव प्रोटीन (सीआरपी) का स्तर घट जाता है। सीआरपी सूजन का सूचक होता है। फल और हरी सब्जियां फाइबर का श्रेष्ठ स्रोत होती हैं। खास तौर से गाजर, संतरे, स्ट्रॉबेरी का सेवन बढ़ाने से जोड़ों की सूजन में काफी लाभ होते पाया गया है।

अच्छी वसा

यह तो आप जानते ही होंगे कि सारी वसा स्वास्थ्य के लिए खराब नहीं होती। आर्थराइिटिस की सूजन को कम करने में ओमेगा-3 फैटी एसिड लाभदायक होते हैं। इन्हें मछली, अलसी, अखरोट, सोयाबीन, पालक आदि के माध्यम से लिया जा सकता है। इसके अलावा ऑलिव ऑइल भी फायदा दे सकता है। यह भी पाया गया है कि धीमी आंच पर, देर तक पकाया गया भोजन आर्थराइटिस के रोगियों के लिए, तेज आंच पर झटपट पकाए गए भोजन की तुलना में बेहतर होता है। कारण यह कि तेज आंच पर झटपट पकाए गए भोजन में ‘एडवांस्ड ग्लायकेशन एंड प्रोडक्ट्स” निर्मित हो जाते हैं, जो जोड़ों सहित पूरे शरीर में सूजन बढ़ाने का काम करते हैं।

* फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रॉकली आदि

फूलगोभी, पत्तागोभी, ब्रॉकली व इनसे मिलती-जुलती सब्जियों में मौजूद सल्फोराफेन नामक यौगिक ऑस्टियो आर्थराइटिस के कारण होने वाली कार्टिलेज (उपास्थि/ नर्म हड्डी) की क्षति को कम करता है।

* प्याज-लहसुन

प्याज, हरी प्याज और लहसुन में ‘डायएलाइल डायसल्फाइड” नामक यौगिक होता है, जो अन्य रोगों के अलावा आर्थराइटिस में भी लाभप्रद होता है। यह यौगिक कार्टिलेज को नुकसान पहुंचाने वाले एन्जाइम्स पर लगाम लगाता है और इस प्रकार जोड़ों में दर्द कम करने में योगदान करता है।

* अदरक

अदरक में दर्द व सूजन दूर करने के गुण होते हैं। इसका प्रभाव नॉन-स्टेरॉइडल एंटी-इंफ्लेमेट्री ड्रग्स से मिलता-जुलता होता है। हां, यदि आप रक्त को पतला करने वाली दवाई लेते हैं, तो अदरक का सेवन अपने डॉक्टर से पूछकर करें क्योंकि यह इस दवाई के कार्य को प्रभावित कर सकता है।

* हल्दी

हल्दी के फायदों की लंबी सूची में एक फायदा यह भी है कि इससे जोड़ों की सूजन व दर्द में राहत मिलती है। हल्दी में मौजूद करक्यूमिन जोड़ों की बीमारियों से संबद्ध सूजन को नियंत्रित करने में मददगार होता है।

* विटामिन-सी

विटामिन-सी में मौजूद एंटी-ऑक्सिडेंट्स ऑस्टियोआर्थराइटिस को तेजी से बढ़ने नहीं देते। इसलिए आर्थराइटिस के रोगियों को संतरे, टमाटर, अमरूद, स्ट्रॉबेरी, कीवी आदि का सेवन जरूर करना चाहिए।

* विटामिन-डी

शोध में पाया गया है कि आहार में विटामिन-डी का सेवन करने वाले लोगों में रूमेटॉइड आर्थराइटिस होने की संभावना कम हो जाती है और यह ऑस्टियो आर्थराइटिस की बढ़त को भी रोकता है। तैलीय मछलियों में विटामिन-डी पाया जाता है।

इसके अलावा कुछ डेयरी उत्पादों में भी प्रोसेसिंग के दौरान विटामिन-डी जोड़ा जा सकता है। मगर दिक्कत यह है कि खुद डेयरी उत्पाद आर्थराइटिस का दर्द व सूजन बढ़ा सकते हैं। इसलिए विटामिन-डी के लालच में इनका सेवन करना उल्टे नुकसान कर सकता है। बेहतर यही है कि विटामिन-डी को ध्ाूप के माध्यम से ही ग्रहण किया जाए।

 

मॉनसून सीजन में ऐसा रहे आपका स्‍टाइल स्‍टेटमेंट

मॉनसून में क्या पहनें, मुश्किल सवाल है क्योंकि महँगे कपड़ों को आप बारिश और कीचड़ में खराब नहीं करना चाहेंगी। फिर भी कुछ ऐसे उपाय हैं जो बारिश की इस रिमझिम में आपका स्टाइल बचा कर रखेंगे। ऐसे ही कुछ टिप्स हम दे रहे हैं, देख लें क्या पता बात बन ही जाए –

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अपने बॉटम्स को चुनते वक्त बेहद सावधानी रखें। फेमिनिन स्कर्ट्स, शॉर्ट्स भी चुने जा सकते हैं बजाए किसी फुल लेंथ आउटफिट के। पूरी तरह से सफेद को अपनाना रिस्की हो सकता है।

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बड़े या ग्राफिक प्रिंट को कपड़ों पर जगह दें। ट्रॉपिकल प्रिंट्स, पोल्का डॉट्स और फ्लोरल डिजाइन भी सफेद के साथ बेहतरीन तरीके से काम करती है।पूरी तरह सफेद शॉर्ट ड्रेस को बॉम्बर, डेनिम जैकेट या ट्रेंच कोट के साथ टीम करें।

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इससे आपकी ड्रेस बारिश के दागों से तो बची ही रहेगी, और इससे आपको लेयर्स के साथ खेलने की आजादी भी मिलती है। आप लेस वाली ड्रेस भी चुन सकते हैं या लेस लगा सकती हैं। किसी भी हल्के रंग की ड्रेस पर सफेद लेस लगाकर भी बात बन सकती है। सफेद जैसे रंग भी चलन में हैं। जैसे बैज, ब्लश, ऑफ वाईट और क्रीम भी पहना जा सकता है।

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ब्रह्मांड में संगीत की ऐसे हुई थी उत्पत्ति

कहा जाता है कि सभ्यता के साथ संगीत भी परिष्‍कृत हो जाता है। संगीत का अस्तित्‍व ब्रह्मांड की शुरूआत से बताया गया है। प्राचीन समय में ऋषि ईश्वर की आराधना आध्यात्मिक शक्ति से सम्पन्न करते थे। इसलिए वह ऊं स्वर से साधना करते थे। ऊं स्वर का दीर्घ उच्चारण कर लंबी ध्वनि द्वारा नाद स्थापित किया जाता था। इस उच्चारण को आध्यात्मिक ज्ञान की वृद्धि और संगीत उपासना पर्याय माना गया है।

संगीत एक ऐसा माध्यम है जो आध्यात्मिकता को मानव जीवन में बनाए रखता है। आध्यात्म अगर जीवन में जरूरी है तो संगीत के बिना इसका अस्तित्व नजर नहीं आता।

भारतीय संस्कृति के मूल तत्व में जीवन-मरण बोध, पाप-पुण्य, जन्म-पुनर्जन्म, कर्म-विचार, मुक्ति का मार्ग, दार्शनिकता, आध्यात्मिकता, सौन्दर्योपासना कलात्मक-लालित्य, स्थापत्य, चित्रकला नृत्य तथा काव्य कला में संगीत को विशेष महत्व दिया गया है।

संगीत की उत्पत्ति ब्रह्मा द्वारा हुई। ब्रह्मा ने आध्यात्मिक शक्ति द्वारा यह कला देवी सरस्वती को दी। सरस्वती को ‘वीणा पुस्तक धारणी’ कहकर और साहित्य की अधिष्ठात्री माना गया है। इसी आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा सरस्वती ने नारद को संगीत की शिक्षा प्रदान की। नारद ने स्वर्ग के गंधर्व किन्नर तथा अप्सराओं की संगीत शिक्षा दी।

वहां से ही भरत, नारद और हनुमान आदि ऋषियों ने संगीत कला का प्रचार पृथ्वी पर किया। आध्यात्मिक आधार पर एक मत यह भी है कि नारद ने अनेक वर्षों तक योग-साधना की तब शिव ने उन्हें प्रसन्न होकर संगीत कला प्रदान की थी।

आध्यात्मिक ज्ञान द्वारा ही पार्वती की शयन मुद्रा को देखकर शिव ने उनके अंग-प्रत्यंगों के आधार पर रूद्रवीणा बनाई और अपने पांच मुखों द्वारा पांच रागों की उत्पत्ति की। इसके बाद छठा राग पार्वती के मुख द्वार से उत्पन्न हुआ था।

 

ये है फाउंडेशन इस्तेमाल करने का सही तरीका

 

दुकान से फाउंडेशन चुन कर लगाने का काम बड़ा ही आसान लगता है। लेकिन चेहरे पर एक शेड लाइट या एक शेड डार्क, समझना काफी मुश्‍किल है। जिन लोगों को नहीं पता कि फाउंडेशन क्‍या होता है, उन्‍हें हम बता दें कि फाउंडेशन एक लाइट कलर का लिक्‍विड होता है, जिसे चेहरे पर दाग धब्‍बों और डार्क सर्कल को छुपाने के लिये लगाया जाता है।

फाउंडेशन को हमेशा अपनी स्‍किन टोन से एक शेड लाइट ही खरीदना चाहिये। अगर आपका फाउंडेशन चेहरे के रंग से नहीं मिलेगा तो, यह काफी फेक लगेगा।

चेहरे पर फाउंडेशन हमेशा नेचुरल ही दिखना चाहिये। आइये जानते हैं सती तरीके का फाउंडेशन कैसे चुनें और क्‍या है इसे लगाने का सही तरीका।

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ऑइली स्‍किन के लिये फाउंडेशन 

ऑइली स्‍किन वालों को हमेशा मैट फिनिश फाउंडेशन खरीदना चाहिये, क्‍योंकि दिन खतम होने के बाद आपके चेहरे से निकला हुआ तेल आपके फाउंडेशन को चमकीला बना देगा। इसी तरह से ड्राई स्‍किन वालों को मेट फिनिश फाउंडेशन नहीं खरीदना चाहिये क्‍योंकि इससे उनके स्‍किन पर पैच नज़र आने लगेंगे।

फाउंडेशन लगाने से पहले

सबसे पहले अपने चेहरे को क्‍लींजर से साफ करें और फिर उस पर मॉइस्‍चराइजर लगाएं। मॉइस्‍चराइजर से अपनी स्‍निक को 5 मिनट के लिये मसाज करें, जिससे आपकी स्‍किन पूरी तरह से नम हो जाए। अब 5 मिनट तक का इंतजार करें।

प्राइमर लगाएं

प्राइमर लगा कर चेहरे के पोर्स को भरें। इससे आपका चेहरा ब्राइट दिखेगा और उस पर फाउंडेशन भी अच्‍छे से लगेगा।

फाउंडेशन लगाएं

उंगलियों से चेहरे पर फाउंडेशन लगाएं और फिर उसे फैलाने के लिये स्‍पॉन्‍ज का प्रयोग करें। इससे आपको एक अच्‍छी फिनिशिंग मिलेगी।

कंसीलर

अब आखिर में कंसीलर का प्रयोग करें और अपने डार्क सर्कल तथा दाग धब्‍बों को छुपाएं। अगर आप कंसीलर का प्रयोग फाउंडेशन का प्रयेाग करने के बाद करेंगी तो इससे आपका कंसीलर ज्‍यादा यूज़ में नहीं आएगा और वह बच जाएगा। आपका कंसीलर लगाते वक्‍त उस पर ज्‍यादा प्रेशर नहीं लगाना है इसे बस हल्‍के से लगा लें।

अंत  में मेकअप सेट करें

अब फेस ब्रश ले कर चेहरे से अत्‍यधिक पावडर हट दीजिये। आप चाहें तो एक सेटिंग स्‍प्रे का भी प्रयोग कर सकती हैं, जिससे चेहरे का मेकअप बिल्‍कुल भी फैले नहीं।

 

सावन के व्रत में बनाएं फलाहारी व्यंजन

फलाहारी चीला

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सामग्री – 2 बड़े आलू,1 कप मिक्स आटा (राजगिरा, सिंघाडा, साबूदाना), 1 चम्‍मच कटा हरा धनिया, 2 हरी मिर्च, बारीक कटी हुई ,1 लाल मिर्च पाउडर, 2 चम्मच घी, सेंधा नमक स्वादानुसार

विधि –  आलू को अच्‍छी तरह धो-छीलकर कद्दूकस कर लें। इसके बाद उसमें मिक्‍स आटा, धनिया, नमक और मिर्च मिलाकर घोल बना लें। अब एक नॉन-स्टिक पैन को गर्म करें और उसमें थोड़ा सा घी लगा चिकना कर लें।  तैयार घोल को गर्म पैन पर चीले की तरह फैला दें और हल्‍का घी लगाकर कम आंच पर सेंक लें। अब इसी तरह से बाकी के पेस्‍ट से भी चीले बना लें।  तैयार क्रिस्पी चीलों को फलाहारी हरी चटनी या दही के साथ सर्व करें।

 

दही अरबी

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सामग्री – 250 ग्राम अरबी, उबली हुई, 3 कप दही (1.5 कप दही में 1.5 कप पानी मिला हुआ), 1 चम्मच अजवायन, 1 चम्मच धनिया पाउडर, 1/4 चम्‍मच लाल मिर्च पाउडर,1/4 अमचूर पाउडर, 2-3 चम्‍मच घी, सेंधा नमक स्‍वादानुसार, कुछ पत्‍ते पुदीने

विधि -सबसे पहले उबली हुई अरबी को काट कर अलग रख लें। अब एक कड़ाही में घी डालकर गर्म करें और उसमें अजवाइन डालकर भून लें। गैस की आंच धीमी करें और घी में सारे मसाले डालकर फ्राई कर लें। अब मसाले में अरबी के टुकड़े डालकर तल लें जब त‍क कि वे सुनहरे भूरे न हो जाएं। अरबी में दो कप पानी डालकर चलाएं और फिर उसमें पतला दही डालकर कुछ देर तक चलाते रहें। धीमी आंच पर 15 मिनट तक पकाएं और फिर उसमें नमक मिला दें। पुदीने के पत्‍तों से सजाकर पूरी और पराठे के साथ सर्व करें।

 

 

क्वांटम चेतना और सत्य का अस्तित्व

डॉ. राखी रॉय हल्दर

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आध्यात्मिक चेतना और विज्ञान के परस्पर विरोधी होने की धारणा को चुनौती देती हुई आज क्वांटम-चेतना की अवधारणा सामने आ गई है। मानव शरीर एक पदार्थ है जिसमें क्वांटम कण जटिल प्रक्रिया के तहत पैदा होते हैं और चेतना या विचार के रूप में महसूस किए जाते हैं। चेतना या विचार के जन्म की प्रक्रिया शरीर, दिमाग और क्वांटम कण से सम्बद्ध होने के कारण पदार्थ विज्ञान और जैविक विज्ञान के दायरे को एक साथ स्पर्श करती है। क्लासिकल पदार्थ विज्ञान में दिमाग को समानांतर स्थित कम्प्यूटरों की एक वृहद व्यवस्था के समान माना गया है। जिसका एक-एक बिंदु सूक्ष्म सूत्रों के जरिए स्पेस और समय के बिन्दुओं से जुड़ा हुआ है। क्लासिकल पदार्थ विज्ञान की सीमा तब दृष्टिगोचर होती है जब हम विश्वासों और संस्कारों को जन्म देने में विचार और दिमाग के पारस्परिक सम्बंध को समझने की कोशिश करते हैं। यहीं क्वांटम सिद्धांत की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है।

इस बात का एहसास होना कि भौतिक जगत के पदार्थ सृष्टि, विकास और विनाश की प्रक्रिया से गुजरते हैं, चेतना के उस स्तर की बात है जिस स्तर पर दृश्यमान जगत के तथ्यों के जरिए सत्यों का एहसास होता है। लेकिन  ब्रह्मांड में ऐसे भी तत्व हैं जो अव्यक्त हैं जिन्हें ज्ञानेन्द्रियों या यंत्रों से पकड़ा नहीं जा सकता। इनके होने का स्पष्ट प्रमाण न मिलने के कारण इनका अस्तित्व क्लासिकल विज्ञान में स्वीकृत नहीं है। क्वांटम सिद्धांत वैज्ञानिक तरीके से उन्हीं के अस्तित्व का एहसास दिलाती है। अति सूक्ष्म होने के कारण इनके अस्तित्व को पकड़ने के लिए गणित का सहारा लिया जाता है। साहित्य और समाज में काल चक्र के प्रभाव से मुक्त, विशुद्ध ज्ञान और आनंद के आधार अव्यक्त सच्चिदानंद की बात मिलती है लेकिन इसे पाने या महसूस करने के लिए भक्ति, प्रेम और ज्ञान का रास्ता अपनाने की बात की जाती है। गौर करें कि विज्ञान जहाँ गणित के क्रान्क्रीट रास्ते को अपनाता है वहीं साहित्य एब्स्ट्रैक्ट का रास्ता चुनता है। इस रास्ते को भी इन्द्रियों के लिए बोधगम्य बनाने के लिए अवतारों की कल्पना की गई। इसे समाजशास्त्रीय स्तर पर अव्यक्त को पकड़ने का प्रयास कहा जा सकता है।

वैज्ञानिक दृष्टि से चेतना के स्तर की बातों को क्वांटम तत्वों के जरिए समझने की कोशिश की जा रही है। क्वांटम तत्वों की गति आलोक गति से तेज होती है। इसलिए चेतना के स्तर पर घटने वाली घटनाएं नहीं दिखाती। इसलिए भक्ति कहें या पूंजीवादी मूल्य दोनों अपने-अपने युग में फैलकर लोगों के दिलो दिमाग में जम गए लेकिन इनके फैलकर जम जाने की घटना दिखाई ही नहीं पड़ी। सिर्फ, लोगों के व्यवहार या आचरण से इनकी व्यापक रूप से उपस्थिति की सूचना ही मिल पाई। विज्ञान और समाज को जोड़कर देखते हुए कहें तो भक्तिकाव्य में प्राप्त ‘सच्चिदानंद’ की अवधारणा का संबंध क्वांटम स्तर पर गुणात्मक परिवर्तन लाने की कोशिश से था। इस परिवर्तन को लाने के लिए राहों के संधान की कोशिश भी भरपूर की गई। इस कोशिश से उपजी क्वांटम चेतना ही भक्तिकाल को स्वर्ण युग होने का ताज पहनाती है। वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो समय के किसी बिन्दू पर किसी निश्चित उद्देश्य और गतिमयता के साथ निवेश की गई मानसिक ऊर्जा चैतन्य के उदय का कारण बनती है। भक्ति काव्य का लक्ष्य और लक्ष्य को पाने के प्रयास की दिशा एकदम स्पष्ट थी। इसलिए अव्यक्त को पाने का लक्ष्य बलिष्ठ क्वांटम चेतना के विकास का आधार बना।

मानव शरीर एक पदार्थ है। पदार्थ से ऊर्जा पैदा करके ऊर्जा के जरिए चेतना का विकास और चेतना से ब्रह्म चेतना के विकास के स्तर तक पहुँचकर मनुष्य पूर्णता को प्राप्त करता है। यह ब्रह्म ईश्वर या देव नहीं है। यह ब्रह्म प्रकृति की वह अव्यक्त सत्ता है जिसका अंश प्रकृति में सर्वत्र मिलता है। इसलिए ब्रह्मांड से लेकर परमाणु तक में प्रकृति का एक ही नियम दिखता है। ग्रह सूर्य की परिक्रमा करता है और उपग्रह ग्रह है। सूक्ष्म स्तर पर देखें तो परमाणु में इलेक्ट्रॉन उसके नाभिक के चारों ओर विशिष्ट कक्ष में घूमता है। क्वांटम सिद्धांत के जरिए इलेक्ट्रॉन के ऊर्जा के स्तर का अंदाजा लगाया जा सकता है। ब्रह्माण्ड की गतिविधि हो या परमाणु की आतंरिक गतिविधि इनमें ऊर्जा ही सर्वत्र व्याप्त दिखती है। विचार भी ऊर्जा की ही उपज है जो चिंतन प्रक्रिया से पैदा होती है। विचार का पैदा होना क्वांटम स्तर की घटना है। अर्थात् जो सर्वत्र व्याप्त है और जगत को गतिमान रखने का आधार है उसे समाज में भले ही ईश्वर कहा जाए लेकिन वह व्यवहारिक स्तर पर ऊर्जा ही है।

सन् 1920 तक विज्ञान ने चेतना के विषय को दृश्यमान ब्रह्माण्ड के विषय से अलग रखा था। लेकिन सन् 1920 में क्लासिकल मेकैनिक्स से क्वांटम मेकैनिक्स की ओर कदमों ने इस पुरानी प्रथा को तोड़ दिया। आज क्वांटम सिद्धांत के जरिए चेतना की संरचना को समझते हुए भौतिक सत्यों को नए सिरे से समझने की कोशिश शुरू हो गई है। यह कोशिश शरीर आत्मा के संबंध को भी पुनर्व्याख्यायित करने में सहायक सिद्ध होगी। क्वांटम सिद्धांत में ऊर्जा की अलग-अलग इकाइयाँ होने की बात की जाती है। इसके अनुसार सृष्टि के आधारभूत तत्व कण या फिर तरंग दोनों रूपों में सक्रिय हो सकते हैं। इन तत्वों की गति और व्यवहार में नियमितता नहीं होती। क्वांटम तत्वों की स्थिति, गति और दिशा को भौतिक स्तर पर समय के किसी बिंदु पर समझ पाना असंभव है। क्वांटम सिद्धांत से सूक्ष्म जगत और स्थूल जगत के बीच के विशाल अंतर का पता चलता है।

आइन्सटाइन ने ही क्वांटम मैकानिक्स की बात छेड़ी थी। इसी के साथ फोटोन की व्याख्या भी की तथा ‘शोषण’, ‘स्वच्छंद’ तथा ‘विकिरण के नियंत्रित उद्गार’ की अवधारणाएं भी सामने रखी थीं। लेकिन वे क्वांटम के एकाएक बदलने वाले स्वभाव को कभी स्वीकार नहीं कर पाए। उनका यह कथन कि ‘ईश्वर भले ही सूक्ष्म है लेकिन वह पासे का खेल नहीं खेलता’ (subtle is the Lord, but he does not play dice) इस बात का प्रमाण है। यहाँ क्वांटम कणों या लहरों को ही उसकी सर्वव्यापी शक्ति के कारण ईश्वर की संज्ञा दी गई है। वॉन न्यूमैन, विगनर तथा अन्य कई विचारकों का मानना है कि अगर दिमाग में घटित होने वाली क्वांटम स्तर की घटनाओं और विचारों के पास्परिक संबंधों को देखा जाए तो दिमाग और मन के दोहरे स्वरूप को उद्घाटित करने वाला सिद्धांत विकसित किया जा सकता है।

सूक्ष्म और स्थूल दोनों स्तरों पर ब्रह्माण्ड की अलग-अलग सत्ताएँ लगातार अलग-अलग ढंग से एक दूसरे से संपर्क स्थापित कर रही हैं। यह कार्य पदार्थ विज्ञान के नियमों के तहत ही हो रहा है। इस प्रक्रिया में समय और काल के व्यवधान का प्रश्न मायने नहीं रखता। क्योंकि क्वांटम स्तर के कणों की गति और दिशा का अंदाजा लगा पाना प्राय:  नामुमकिन है। चेतना का अस्तित्व इसी स्तर पर मिलता है। नोबेल पुरस्कार प्राप्त पदार्थ वैज्ञानिक प्रोफेसर मैक्सवार्न और प्रोफेसर फ्रांक विल्जेक ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि क्वांटम संबंधी सिद्धांत अद्वैत विज्ञान की मांग करता है। जिसमें प्राकृतिक दर्शन को भी शामिल किया जाना जरूरी है। अन्यथा चेतना संबंधी समस्याओं का समाधान निकाल पाना मुश्किल है। चल और अचल सत्ता के अस्तित्व के रहस्य की व्याख्या अद्वैत विज्ञान के सर्वव्यापी क्वांटम चेतना के जरिए ही की जा सकती है। गौर से देखें तो बाजारवादी मूल्यों ने पहले बुद्धि पर कब्जा जमाकर चेतना को विकृत कर दिया, और इच्छा को हवा देकर जनमानस में कब्जा जमा लिया। जब तक बाजारवादी और सामंतवादी मूल्यों के घालमेल की प्रकृति को समझकर विज्ञान सम्मत ढंग से क्वांटम स्तर पर प्रभाव पैदा करने वाली कार्य प्रणाली के जरिए मानवतावाद को प्रतिष्ठित करने का प्रयास नहीं किया जाएगा तब तक विश्व को बाजारवाद के गिरफ्त से मुक्ति दिला पाना मुश्किल है।

(लेखिका लोरेटो कॉलेज की असिस्टेंट प्रोफेसर तथा सोदपुर सोलिडरिटी सोसायटी की सचिव हैं)

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पो. – सोदपुर,

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दूरभाष – 9231622659

साजिश

डॉ. गीता दूबे

geeta dubey

हे बुद्ध

आजीवन रहे

मूर्ति पूजा के खिलाफ तुम।

करते रहे विरोध

जड़ संस्कारों का,

पर तुम्हारे देवत्व का वैभव

फैला हुआ है

बोधगया के कण कण में।

पूज रहा है तुम्हें

हर एक बौद्ध, अबौद्ध दर्शनार्थी।

एक बार जरूर

नवाता है माथा

तुम्हारी विशाल प्रतिमा के समक्ष

और होठों ही होठों में

बुदबुदाता हुआ

कोई जाना अनजाना मंत्र

मांगता है मन्नत

उनके पूरा होने के विश्वास के साथ।

हे बुद्ध

भला किसकी थी

यह मन्नत

कि जीते जी न सही ,

तुम्हारी मृत्यु के उपरांत

हजारों हजार वर्ष के बाद

बिकें तुम्हारी प्रतिमाएं

हर रंग रूप और आकार में

दुनिया के हर छोटे बड़े बाजार में।

और खरीदनेवाला खरी

अपनी जेब और औकात के अनुसार

खरीदकर तुम्हें

सजा ले

अपने घर की ताखों, दीवारों और शोकेसों में।

बुद्ध

क्या तुम जानते थे अपनी नियति ।

भला किसने रची

यह भयानक साजिश

तुम्हारे खिलाफ।

(कवियत्री स्कॉटिश चर्च कॉलेज की हिन्दी विभागाध्यक्ष हैं)