Friday, March 14, 2025
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कहीं खास तो नहीं बन गया वो खास दोस्त

 

कभी-कभी दो फ्रेंड्स में से एक बेहद परेशान व डिस्टर्ब रहने लगता है, किसी से बात नहीं करता और खोया रहता है, दोस्तों की बेहद कोशिश के बावजूद वह ‘कुछ नहीं’ कहकर बात को टाल देता है। यहां तक कि अपने सबसे अच्छे दोस्त जो अपोजिट सेक्‍स का है, को भी नहीं बताता… और सब दुविधा में आ जाते हैं कि आखिर वजह क्‍या है। ऐसे में पहला सवाल यही होता है कि ‘‘क्या यह खलल इश्क का है या दोस्ती को नाम-ए-मोहब्बत दिये जाने की गुस्ताखी की जा रही है…

अगर ऐसे हालात आ जाएं तो आराम से सोचें कि इसके पीछे की वजह क्या हैं और क्यों आप इस प्यार व दोस्ती के रिश्ते को लेकर इतनी उलझन में आ फंसे हैं। ऐसे डाउट अक्सर जिन्दगी में दस्तक देते रहते हैं, जहां हमें दो राहों के बीच खड़े होकर किसी एक को चुनना होता है और दोनों ही हमें अच्छे लगते हैं। ऐसे में यह तय करना पूरी तरह से आपके ही हाथों में होता है कि कौन सा रास्ता सही है। इन हालातों के उत्पन्न होने की वजहों को समझे व परखें की क्यों आप इस उलझन में फँसी हैं और क्या वे वजहें सचमुच इतनी मजबूत हैं कि आप जिनकी वजह से ‘‘ मै प्यार में हूं’’ जैसा अहम फैसला ले सकें।

अगर आप सोच रही हैं कि आपका रिश्‍ता दोस्ती से थोड़ा ज्यादा और प्यार से थोड़ा कम है, तो जाग जाएं ऐसा कोई रिश्‍ता नहीं होता। या तो आप किसी से प्यार करते हैं या फिर नहीं। अब आप दोनों के बीच कौन सा रिश्ता है यह फैसला तो आपको ही करना पडेगा। मन में दोनों रिश्तों को लेकर जो संदेह से उससे जल्द से जल्द बाहर आना होगा नहीं, तो यह बनी बनाये दोस्ती के रिश्ते के टूटने का डर रहता है।
उम्र के एक खास पड़ाव पर प्यार सभी को होता है। पर इस बात का ध्‍यान रखें कि अपना प्यार भरा दिल सबके सामने खोल कर न रखें। ये खतरनाक साबित हो सकता है, क्योंकि यह बात तब तक ही ठीक है, जब आपको यह पता हो कि आप उन्‍हें प्‍यार करते हैं, लेकिन अगर आप खुद दुविधा में हैं तो अपने उस दोस्त को अपनी कन्फयूजन के बारे में बताने से पहले उसके बारे में एक बार जरूर सोचें कि इस बारे में बताने पर उसकी क्या प्रतिक्रिया होगी। अगर वह आपको ज्यादा भ्रमित कर सकता है, तो उसे बताने से परहेज ही करें।

यह स्पष्ट करें की क्या इस वक्त आप प्यार जैसे जज्बातों को समय दे सकती हैं या नहीं।

अपने आप से सवाल करें आपको अपने दोस्त में क्या चाहिए एक सच्चा दोस्त या प्यार।

जितना हो सके उतना जल्दी निर्णय लें क्योंकि जितना समय आप लेगें कन्फूजन उतनी ही बढती जाएगी साथ ही यह आपकी दोस्ती पर बुरा असर भी डाल सकता है

इस विषय में अपने अच्छे दोस्तों की सलाह अवश्य लें क्योंकि आप इन हालातों को केवल अपने नजरिए से ही देखते है दूसरों से भी इस विषय में सलाह करें तो अच्छा होगा।

जल्दबाजी में कोई ऐसा फैसला न लें कि आपको जीवन भर पछताना पडें।

 

कुछ अलहदा हो अंदाज तो बन जाए बात

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जब भी दोस्तों से आप बात करते होंगे और खासकर अगर आप किसी को पसंद करते हैं तो आपके जेहन में यह जरूर आता होगा कि आप ऐसा क्या करें कि आपकी वो आपको पसंद करें। फिल्मों की बात जाने दें, जिंदगी फिल्म नहीं होती और परदे पर जो दिखता है, वह भी आँखों का धोखा है। परदे पर सिक्स पैक, रोबीला अंदाज और लड़की को किसी भी हाल में पटाना भले ही फिल्म को हिट बनाता हो मगर एक आम लड़की को आप इन बातों से अपना नहीं बना सकते। अच्छा और स्वस्थ शरीर जरूरी है मगर अधिकतर लड़कियाँ अपने हमसफर में अपने पिता सा  संरक्षण तलाशती हैं। वैसे भी सच्चा पुरुष तो वही हो जो लड़कियों का सम्मान करना जानता है। अगर आप इस वैलेंटाइन डे पर किसी खास को प्रपोज करने जा रहे हैं तो इन बातों पर ध्यान दें, शायद बात बन जाए –

लड़कियों को वही लड़के पसंद आते हैं जिन्हें फॉर्मल और कैज़ुअल ड्रेसिंग में अंतर मालूम हो। भड़कीले रंग और बेमेल कपड़े आपको जोकर बना सकते हैं। भले ही वह आपको कुछ न कहे मगर आपका यह अंदाज आपकी लव स्टोरी के लिए बिलकुल फिट नहीं है।

कपड़े जब भी पहनें अपने शरीर के अनुसार पहनें। अगर आप 40 के हैं तो 25 का दिखने के चक्कर में तंग टीशर्ट न पहनें। इससे आपकी हँसी ही उड़ाई जाएगी। नियमित व्यायाम करें और थोड़ा पसीना बहाएं, अब प्यार में तो इतना किया ही जा सकता है। गर्लफ्रेंड के लिए ही नहीं बल्कि यह आपके लिए भी एक सकारात्मक बदलाव होगा औऱ आप कुछ भी पहनेंगे,अच्छा लगेगा। प्रेरणा के लिए एक नजर अदनान सामी और अर्जुन कपूर पर ही डालिए।

रंगों के चयन पर ध्यान दें। जी हां, लड़कियां इस पर भी गौर करती हैं। रंग अपने व्यक्तित्व और प्रोफेशन को ध्यान में रखकर चुनें मगर जबरन बाल लाल – पीले करना और पीले, गुलाबी और बैंगनी कपड़े पहनना, बिलकुल काम नहीं आने वाला। आप हल्के बेबी पिंक, आसमानी, सलेटी, भूरा, समुद्री हरा जैसे रंग जरूर पहन सकते हैं।

आजकल टीवी पर आ रहे परफ्यूम्स और डीओज़ के विज्ञापन आपको सपने जरूर दिखाते हैं मगर इसे असल जिंदगी में न उतारें। बात यह है कि बढ़िया परफ्यूम अच्छा लगता है वरना पसीने की गंध से तो सब आपसे दूर भागेंगे।

आपके जूते साफ और पॉलिश किए हुए होने चाहिए। बेमेल जुराबें न पहनें। जेवर पसंद हैं मगर बैंक की तिजोरी बनने की कोशिश न करें क्योंकि इससे आपकी भव्यता कम बेवकूफी अधिक माना जाएगा। इस तरह के प्रयोगों से आपकी छवि एक दिखावा करने वाले व्यक्ति की ही बनेगी जबकि कम जेवर आपको एक अच्छा लुक देंगे।

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कभी – कभी भारतीय बनें। खासकर त्योहारों या किसी खास मौके पर शेरवानी, कुरता – पायजामा या कलर्ड धोती पहनें। पूरी महफिल में आप अलग दिखेंगे।

बाल ऐसे ही बनवाएं जो आपके चेहरे पर फबे। अगर दाढ़ी चेहरे पर अच्छी लगती है, तभी रखें। अगर आपको भी मालूम नहीं है और आप फिर भी अपने गालों पर 2 किलो वज़न झेल रहे हैं, तो क्लीन शेव रहें या फिर स्टबल लुक रखें।

काला रंग सदाबहार है। शेरवानी, सूट हो या शर्ट या फिर टी-शर्ट, लड़कियों को लड़के इस रंग में बहुत शानदार लगते हैं।

टाई में लड़के न सिर्फ मेच्योर लगते हैं बल्कि वो समझदार भी लगते हैं, उन्हें देखकर लगता है कि कपड़े पहनने का ढंग है. तो बॉयज़, अगली बार टाई पहनना न भूलें।

बुलेट बाइक और उसपर लेदर जैकेट में लड़का. ओह माय गॉड! लड़के इस लुक में जितने ज़बरदस्त लगते हैं शायद ही किसी और में लगें मगर याद रहे, हेलमेट सिर पर होना चाहिए और तेज रफ्तार से बचें।

सफाई जरूरी है। जब लड़कों के नाखून, पैर गंदे या फिर त्वचा रूखी-खुश्क हो तो लड़कियाँ ही नहीं, हर कोई उनसे दूर भागेगा।

हां, आप कुछ भी पहनें या खुद को कैसे भी स्टाइल करें, सबसे ज़रूरी है आत्मविश्वास। फैशन में एक्सपेरिमेंट हर दिन होते हैं जो उन्हें पूरे एटिट्यूड और कॉन्फिडेंस से पहने वही एक असली जेन्टलमेन होता है।

 

एक मिनट के लिए Google.com के मालिक बने भारतीय छात्र को मिलेंगे 8 लाख रुपये

 सर्च इंजन गूगल ने सन्मय वेद को आठ लाख रुपये का भुगतान किया है। सन्मय वेद एक मिनट के लिए गूगल डॉट कॉम डोमेन नाम के मालिक बन गए थे। हालांकि सन्मय ने भुगतान की पूर्ण राशि दान कर दी।

पिछले साल सितंबर में कच्छ क्षेत्र के मांडवी के रहने वाले सन्मय गूगल डोमेन खोजते समय पाया कि गूगल डॉट कॉम (डोमेन नाम) खरीद के लिए उपलब्ध है। उन्होंने 12 डॉलर में यह डोमेन नाम खरीद लिया और गूगल द्वारा यह बिक्री निरस्त किए जाने से पहले इसके वेबमास्टर टूल्स तक पहुंच हासिल कर ली।
हालांकि सन्मय ने कहा था कि उन्होंने पैसे के बारे में कभी नहीं सोचा और वह मिलने वाली राशि आर्ट ऑफ लिविंग इंडिया फाउंडेशन को दान करना चाहते थे।
गूगल ने एक ब्लॉग पोस्ट में लिखा, ‘आपने सन्मय वेद के बारे में पढ़ा होगा जो गूगल डोमेन्स पर एक मिनट के लिए गूगल डॉट कॉम खरीदने में सफल रहे। सन्मय को हमारी ओर से दिया गया शुरुआती वित्तीय पुरस्कार 6,006.13 डॉलर (करीब 4 लाख) था। जब सन्मय ने यह पुरस्कार राशि दान करने की बात कही तो हमने इस राशि को बढ़ाकर दोगुना कर दिया।’
वेद ने लिंकेडिन पर एक पोस्ट में कहा था कि उन्होंने यह पुरस्कार राशि आर्ट ऑफ लिविंग के शिक्षा कार्यक्रम में दान करने का निर्णय किया।

 

कामदुनी को ढाई साल बाद मिला न्याय

पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित कामदुनी गैंगरेप और हत्या मामले में कोलकाता की एक अदालत ने तीन अभियुक्तों को फांसी की सज़ा सुनाई है। इस मामले के तीन अन्य अभियुक्तों को उम्र क़ैद की सज़ा दी गई है। इससे पहले अदालत ने गुरुवार को इन छह अभियुक्तों को दोषी करार दिया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संचिता सरकार ने सज़ा पर दो दिनों तक हुई बहस और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शनिवार को खचाखच भरी अदालत में यह फ़ैसला सुनाया. इस मामले में सबूतों के अभाव में दो अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था। सरकारी वकील अनिंद्य रंजन ने कहा, “अदालत ने हमारी दलीलें स्वीकार करते हुए इसे दुर्लभतम मामला मानकर दोषियों को सर्वोच्च सज़ा सुनाई है. इससे हम संतुष्ट हैं।” उत्तरी 24-परगना ज़िले के बारासात में 7 जून 2013 को कॉलेज से घर लौट रही 21 साल की छात्रा का नौ लोगों ने अपहरण कर लिया था. उसे एक सुनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी थी। अगले दिन एक खेत से छात्रा का शव बरामद किया गया था।15newskamduni

घटना के बाद अगले दिन से ही कामदुनी के लोगों ने न्याय व दोषियों को कड़ी सज़ा दिए जाने की मांग में विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। इसके लिए कामदुनी प्रतिवादी मंच नामक एक संगठन भी बनाया गया था। मामले में नौ लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। उनमें से एक की बीते साल मौत हो गई थी। अदालत ने अंसार अली, शेख़ अमीन अली और सैफ़ुल अली को गैंगरेप और हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सज़ा सुनाई है जबकि अमीनुर इस्लाम, शोख़ इनामुल और भोलानाथ को आजीवन कारावास की सज़ा दी है। बचाव पक्ष ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही है। कुछ दिन पहले अदालत के अभियुक्तों को दोषी करार दिए जाने के बाद से ही विभिन्न मानवाधिकार और महिला संगठन उनको फांसी देने की मांग करते हुए अदालत के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। शनिवार को भी अदालत के बाहर भारी तादाद में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था। इस घटना के ख़िलाफ़ विरोध का चेहरा बनी टुम्पा कयाल ने कहा, “हम अदालत के फैसले से ख़ुश हैं. लेकिन बाकी दोनों अभियुक्तों को भी फ़ांसी मिलनी चाहिए थी।

खास है आकाशवाणी का नया चैनल रागम

शास्त्रीय संगीत समझना इतना आसान नहीं है मगर जो समझते हैं और संगीत की गहरी समझ होती है। संगीत का ककहरा ही शास्त्रीय संगीत से आरम्भ होता है। ऐसे में शास्त्रीय संगीत के प्रशंसकों को आकाशवाणी ने बेहद शानदार तोहफा दिया है 24 घंटे का शास्त्रीय संगीत चैनल लाकर जिसका नाम है रागम। 26 जनवरी से यह चैनल प्रसारित होने लगा है।

आज भी भारत की आबादी के लगभग 40 प्रतिशत के पास ही इंटरनेट की सुविधा है और वह भी हर जगह हर समय काम नहीं करती क्योंकि अनेक गांवों और कस्बों में बिजली ही गायब रहती है. लेकिन बैटरी से चलने वाला ट्रांज़िस्टर रेडियो हर जगह और हर वक़्त चल सकता है इसीलिए आकाशवाणी के प्रसारण देश के कुल इलाके के 92 प्रतिशत तक और कुल आबादी के 99.19 प्रतिशत तक पहुंचते हैं। फिर, दूरदर्शन के डीडी भारती चैनल को छोड़ कर किसी भी अन्य टीवी चैनल पर संगीत या साहित्य से जुड़ा कोई गंभीर कार्यक्रम प्रसारित नहीं किया जाता। जाहिर है कि संगीतप्रेमियों के लिए आकाशवाणी सुनना अनिवार्य-सा है।

1856 में वाजिद अली शाह की गद्दी छिनी और अगले साल ही मुग़ल राजवंश की प्रतीकात्मक सत्ता भी ख़त्म हो गई। नतीजतन तानरस खां जैसे चोटी के गायक को दिल्ली छोड़ कर हैदराबाद में शरण लेनी पड़ी। बहुत से संगीतकार कलकत्ता (कोलकाता) और बंबई (मुंबई) में बस गए क्योंकि वहां उन्हें संगीतरसिक सेठों का प्रश्रय मिलने लगा था। 1947 तक आते-आते राजाओं-नवाबों का दौर ख़त्म हो गया और राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान पैदा हुई सुधारवादी और नैतिकतावादी दृष्टि के कारण संगीतजीवी पुरुष और महिला कलाकारों के प्रति विरोध का भाव भी बढ़ने लगा। संगीतकारों को मिलने वाला पारंपरिक सामंतवादी संरक्षण बंद हो गया और बड़े-बड़े संगीतकारों को रोटियों के लाले पड़ने लगे।

ऐसी आपदा में ऑल इंडिया रेडियो ने ही उन्हें सहारा दिया। भारत में रेडियो का युग 1923 में शुरू हो चुका था और 1936 के आते-आते ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना हो गई थी। उसने प्रसिद्ध संगीतकारों को आमंत्रित करके उनके कार्यक्रम प्रसारित करना शुरू किया जिसके कारण उन्हें देश भर में सुना जाने लगा और उन्हें देशव्यापी ख्याति मिलने लगी।

रेडियो के आगमन से पहले संगीत की प्रस्तुति एक जगह तक सीमित थी और उसे कुछ श्रोता ही सुन सकते थे। ग्रामोफोन के आने से रिकॉर्ड की हुई प्रस्तुति को किसी भी समय और किसी के भी द्वारा सुनना संभव हुआ लेकिन उस समय तकनीकी सीमाओं के कारण केवल साढ़े तीन या चार मिनट के रिकॉर्ड ही बनते थे और कलाकार को अपनी कला को इसी सीमा में बंधकर पेश करना होता था। वहीं रेडियो पर आधे घंटे-एक घंटे की प्रस्तुति भी संभव थी।

दुर्भाग्य से उस समय बहुत कम प्रस्तुतियां रिकॉर्ड की जाती थीं और अधिकांश का प्रसारण लाइव ही होता था। अनेक महान गायकों-वादकों की 1930 और 1940 के दशक की प्रस्तुतियां लाइव प्रसारण के साथ ही हवा हो गईं। ऑल इंडिया रेडियो ने बहुत-से अच्छे संगीतकारों को नौकरियां भी दीं जिनके कारण उनकी नियमित आय की व्यवस्था हो गई।

1950 के दशक में बी वी केसकर सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने और दस साल तक वे इस पद पर रहे। एक विद्वान और प्रखर राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ केसकर स्वयं ध्रुपद गायन में प्रशिक्षित थे। उन्होंने प्रति वर्ष आकाशवाणी संगीत सम्मेलन और प्रति सप्ताह संगीत का राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया।

इन कार्यक्रमों की इतनी प्रतिष्ठा थी कि बड़े-बड़े संगीतकार इनमें शिरकत करने की आकांक्षा रखते थे क्योंकि इन प्रसारणों को देश भर में न केवल संगीत रसिक बल्कि संगीतकार भी सुनते थे।

बताया जाता है कि संगीत के राष्ट्रीय कार्यक्रम में जब पहली बार अली अकबर खां ने अपना वादन प्रस्तुत किया था। उस समय अली अकबर खां आकाशवाणी के लखनऊ केंद्र में नौकरी करते थे. रविशंकर जैसे चोटी के सितारवादक आकाशवाणी वाद्यवृंद के निदेशक थे। मल्लिकार्जुन मंसूर का आकाशवाणी से इतना लगाव था कि गले के कैंसर के कारण कष्ट झेलते हुए भी मृत्यु से केवल बारह दिन पहले उन्होंने धारवाड़ केंद्र जाकर अपनी अंतिम प्रस्तुति रेकॉर्ड कराई थी। राग था ‘मियां की मल्हार’ और बंदिश थी ‘करीम नाम तेरो’.

जब आकाशवाणी में पहले-पहल ऑडिशन और उसके बाद ग्रेड दिए जाने का चलन शुरू हुआ तो बहुत-से नामी कलाकार फेल हो गए या उन्हें बहुत निचला ग्रेड दिया गया। बनारस की मशहूर ठुमरी गायिका बड़ी मोती बाई फेल हो गई थीं और सारंगीनवाज शकूर खां को निचला ग्रेड मिला था।

कारण यह था कि रागसंगीत को शास्त्रीयता प्रदान करने वाले विष्णु नारायण भातखण्डे के शिष्य श्रीकृष्ण नारायण रातनजनकर परीक्षक थे और वे उस्तादों से सैद्धान्तिक प्रश्न करते थे। घरानेदार उस्ताद अपने फन में माहिर थे और उसे “करत की विद्या” समझते थे पर उन्हें उसके सैद्धान्तिक पक्ष की जानकारी नहीं थी। उनसे यह उम्मीद करना दुराग्रह ही था, जिसे बाद में बहुत कुछ छोड़ दिया गया।

अनेक अमूल्य रिकॉर्डिंग नष्ट हो जाने के बाद भी आकाशवाणी के संग्रहालय में हजारों दुर्लभ रिकॉर्डिंग हैं। उम्मीद है कि उन्हें इस नए चैनल पर सुनवाया जाएगा।

 

प्रेम और ज्ञान का विस्तार हो

फरवरी का महीना, रुमानियत का ही नहीं ज्ञान का भी महीना है। वसंत कदम रख रहा है और ज्ञान की देवी सरस्वती का आगमन भी होने वाला है मगर इसे बाजार का करिश्मा कहिए या कुछ और संत वेलेन्टाइन ने कुछ ऐसी दस्तक दी है कि पूरा हवा में वेलेंटाइन समा गया है। मजे की बात यह है कि क्रिसमस और वेलेंटाइन डे, इन दोनों उत्सवों में लाल रंग पर खास जोर दिया जाता है और भारतीय संस्कृति में भी लाल रंग का विशेष महत्व है। प्रेम हो तो लज्जा की लालिमा और क्रोध हो तो आँखों में अँगारे, सूर्य की सिन्दूरी लालिमा, लाल चूड़ियाँ, लाल जोड़ा, लाल बिन्दी, कितना कुछ लाल है, कहने का मतलब यह है कि जो हम पश्चिम से उधार ले रहे हैं, वह कहीं अधिक विस्तृत रूप में हमारे पास मौजूद है, फर्क यह है कि हम वेलेंटाइन्स डे के अगले दिन एनिमी डे नहीं मनाते। प्रेम में ईश्वर छुपा होता है मगर उस प्रेम का अर्थ प्रिय पर कब्जा जमाना या उसके व्यक्तित्व को छीनना हरगिज नहीं होता।

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प्रेम औदात्य है और जहाँ औदात्य नहीं, जहाँ प्रिय की न का मतलब उस पर तेजाब फेंकना हो, वहाँ प्रेम कैसा? प्रेम रोमांस ही नहीं बल्कि मातृत्व है, दोस्ती है और इसका स्वरूप तो इतना बड़ा है कि इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती मगर आज तोहफों के इस दौर में जब इश्क को तोहफों की कीमत से तौला जा रहा हो और रिश्ते फायदा देखकर बनाए जाने लगे हों तो वहाँ कबीर, मीरा, तुलसी, निराला और बच्चन और भी प्रासंगिक जान पड़ते हैं। अच्छा लगता कि जब कोई स्त्री की बात करता है मगर तकलीफ तब होती जब उसमें भी सस्ती लोकप्रियता बटोरने की सनक होती है। प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, संवेदना की भाषा नहीं होती मगर उसका प्रभाव स्थायी और सार्वभौमिक होता है। माँ भारती, सृजन की शक्ति दे और प्रेम सकारात्मकता का संचार करे, यही कामना है।

नृत्य की दुनिया में रंग भरती रहीं मृणालिनी साराभाई

मशहूर नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई का हाल ही में  97 वर्ष की आयु में अहमदाबाद में निधन हो गया। उन्होंने गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की देखरेख में 1938 में शांति निकेतन से पढ़ाई-लिखाई की।aशांति निकेतन से शिक्षा हासिल करने के बाद वह कुछ समय के लिए अमरीका चली गईं. भारत लौट कर आने पर भरतनाट्यम और कथकली नृत्य का प्रशिक्षण लिया। मृणालिनी साराभाई का विवाह भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई के साथ 1942 में हुआ। साल 1947 में उनकी पहली संतान कार्तिकेय का जन्म हुआ। उन्होंने कथकली की अपनी पहली प्रस्तुति दिल्ली में दी. उनके नृत्य की सराहना पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी किया करते थे। मां की तरह उनकी बेटी मल्लिका साराभाई ने भी नृत्य को अपनाया। मृणालिनी साराभाई ने 1949 में दर्पण संस्थान की स्थापना की और बच्चों को शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण देना शुरू किया। अपराजिता उनको नमन करती है

लम्बे समय तक टिकी रहेगी आपकी लिपस्टिक

लिपस्टिक महिलाओं की मेकअप किट का एक बेहद अहम हिस्सा है. इससे चेहरे पर एक अलग ही निखार आ जाता है लेकिन समस्या यह है कि अधिकतर महिलाओं को लिपस्ट‍िक लगाने का सही तरीका ही नहीं पता होता. इस वजह से यह ज्यादा समय तक होंठों पर टिकी नहीं रह पाती। अगर लिपस्‍टिक लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो यह देर तक टिकी रह सकती है –

लिपस्टिक लगाने के लिए सबसे जरूरी है कि आपके होंठ स्वस्थ हों. वरना लिपस्ट‍ि‍क भी फटी-फटी नजर आएगी। होंठों को समय-समय पर स्क्रब की मदद से साफ करती रहें ताकि ये स्मूद रहें और इनको मॉइश्चराइज करते रहना भी जरूरी है। इसके लिए आप किसी भी विश्वसनीय लिप बाम या ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल कर सकती हैं।

लिपस्‍टिक लगाने से पहले हल्के रंग की लिप पेंसिल की मदद से आउट लाइन बना लें. इसके बाद लिपस्ट‍िक लगाना आसान भी हो जाएगा और लिपस्ट‍िक लंबे समय तक टिकी भी रहेगी।

लिपस्ट‍िक का पहला कोट लगाने के बाद उसे हल्का करना भी जरूरी है। इससे लिपस्टिक जम जाती है और इसके फैलने का डर भी नहीं रह जाता। अब आप चाहें तो अपनी इच्छानुसार हल्का या गाढ़ा, दूसरा कोट लगा सकती हैं।

अपने होंठो पर उंगलियों से हल्का पाउडर लगाएं. यह लिपस्ट‍िक को पूरी तरह सेट कर देगा. अगर आपको लग रहा हो कि लिपस्ट‍िक हल्की हो गई है तो एक कोट और लगा सकती हैं।

सौंदर्य विशेषज्ञों के अनुसार लिपस्टिक को फ्रिज में रखने से यह कम पिघलती है और होंठों पर भी लंबे समय तक टिकी रहती है।

 

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा

चेहरा सुना देता है सेहत की दास्तान

 

कहते हैं चेहरा आपकी सेहत की पूरी दास्तां कह देता है। थका, निस्तेज चेहरा कभी भी सेहतमंद शरीर की निशानी नहीं हो सकता। ऐसे में स्किन मैपिंग एक बेहतर तरकीब हो सकती है, जो आपके शरीर के अंदर चल रही गड़बड़ियों की कहानी कह सकता है। चेहरे के अलग-अलग हिस्सों में उभरने वाली इन विभिन्न परेशानियों के आधार पर तय किया जा सकता है कि आखिर इसके पीछे की असली वजह क्या है।

 माथा

माथे पर उभरने वाले पिंपल्स खराब पाचन और पानी की कमी के कारण टॉक्सिन के प्रभाव को दर्शाता है। यदि आपके अधिकांश पिंपल्स इस हिस्से में ही निकलते हैं तो पर्याप्त मात्रा में पानी पीना शुरू करें, उससे लाभ मिलेगा। और शरीर से टॉक्सिन्स भी बाहर निकलते रहेंगे। ग्रीन टी और हर्बल टी टॉक्सिन्स के इस प्रभाव को कम करने का काम करती हैं।

 टी-जोन

टी-जोन के अंतर्गत नाक और माथे का हिस्सा शामिल है। इन हिस्सों में उभरने वाले एक्ने लिवर की खराब कार्यप्रणाली को दर्शाता है। तेल वाले, फैटी फूड इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, इसलिए जितना हो सके उतना सेहतमंद खाने का प्रयास करें। इसका अन्य कारण अत्यधिक अल्कोहल हो सकता है, यदि एक रात पहले आपने ड्रिंक किया हो और उसकी अगली सुबह टी-जोन में एक्ने उभर आएं तो इसकी वजह अल्कोहल ही मानी जाएगी।

 आंखों के आस-पास

इस हिस्से की मुलायम त्वचा आपके किडनी की सेहत से जुड़ी है। आंखों के आस-पास के हिस्सों में डार्क सर्कल्स, उम्र से पहले नजर आने वाली झुर्रियां और रैशेज का अर्थ है कि आप कम मात्रा में पानी पी रहे हैं।

गालों का ऊपरी हिस्सा

गालों का ऊपरी हिस्सा फेफड़ों से संबंधित होता है। प्रदूषण और धूम्रपान से इस हिस्से में एक्ने या पिंपल्स की समस्या हो सकती है। हालांकि यह हिस्सा स्मार्टफोन के कारण होने वाले बैक्टीरिया के हमले से भी हो सकता है। ऐसे में अपने फोन को हर दिन कम से कम एक बार एंटी-बैक्टीरिया वाइप्स से जरूर पोछें। गंदे तकिए पर सोने के कारण भी इस तरह की परेशानी हो सकती है।

 गालों का निचला हिस्सा

मुंह में होने वाली परेशानी आपकी स्किन पर स्पष्ट नजर आती है। डेंटल हाइजीन न बनाए रखना इसकी एक वजह हो सकता है। शकर युक्त खाद्य और सोडा लेने से बचें। हेल्दी डेंटल रूटीन चेहरे पर होने वाली परेशानियां या ड्राय स्किन पर होने वाले पैचेस को होने से रोकती है।

कानों के आस-पास

यह हिस्सा भी आपकी किडनी से संबंधित है। इस हिस्से में पिंपल्स या एक्ने की समस्या पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने का संकेत हो सकता है और अत्यधिक मात्रा में नमक के सेवन का भी। साथ ही कंडीशनर या तेल सिर धोने के बाद भी पूरी तरह नहीं निकले तो इस हिस्से में एक्ने हो सकते हैं।

 ठुड्डी

इसका संबंध छोटी आंत से है। ऐसे में डाइट अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि हॉर्मोनल परिवर्तनों के कारण भी चेहरे के इस हिस्से में पिंपल्स हो सकते हैं। सोचने की मुद्रा में या चिंता में ठुड्डी को अपनी हथेली पर न टिकाएं, इससे आपके हाथ में मौजूद तेल आपकी ठुड्डी तक पहुंच सकता है।