Saturday, July 26, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 800

शक्ति – द विमेन इन मीडिया को मिली नयी कार्यकारिणी

मीडिया में कार्यरत महिलाओं को साथ लाने और उनके हितों को ध्यान में रखकर शक्ति – द विमेन इन मीडिया का गठन एक साल पहले किया गया था। गत रविवार को संस्था की बैठक में दूसरी कार्यकारिणी का गठन सर्वसम्मति से किया गया। बैठक में सर्वसम्मति से लोकप्रिय आर जे नीलम को शक्ति – द विमेन इन मीडिया का अध्यक्ष चुना गया।

IMG-20160626-WA0025

संस्था की उपाध्यक्ष भारती जैनानी तथा आफरीन हक बनायी गयी हैं जबकि सचिव पद का दायित्व अर्पिता विश्वास तथा सुषमा त्रिपाठी सम्भालेंगी। सँयुक्त सचिव के पद पर रेनु सिंह तथा बासवदत्ता सरकार लायी गयी हैं।

IMG-20160626-WA0032

सँयुक्त कोषाध्यक्ष सुतपा दत्त भण्डारी तथा अन्नू राय को बनाया गया है। इसके अतिरिक्त कार्यकारिणी में वनिता झारखंडी, श्रुति जायसवाल, निधि गुप्ता, शिल्पी सिन्हा, शाइस्ता नाज और शबाना परवीन भी शामिल हैं।

हार की जीत

 –  सुदर्शन

pandit sudarshan

माँ को अपने बेटे और किसान को अपने लहलहाते खेत देखकर जो आनंद आता है, वही आनंद बाबा भारती को अपना घोड़ा देखकर आता था। भगवद्-भजन से जो समय बचता, वह घोड़े को अर्पण हो जाता। वह घोड़ा बड़ा सुंदर था, बड़ा बलवान। उसके जोड़ का घोड़ा सारे इलाके में न था। बाबा भारती उसे ‘सुल्तान’ कह कर पुकारते, अपने हाथ से खरहरा करते, खुद दाना खिलाते और देख-देखकर प्रसन्न होते थे। उन्होंने रूपया, माल, असबाब, ज़मीन आदि अपना सब-कुछ छोड़ दिया था, यहाँ तक कि उन्हें नगर के जीवन से भी घृणा थी। अब गाँव से बाहर एक छोटे-से मन्दिर में रहते और भगवान का भजन करते थे। “मैं सुलतान के बिना नहीं रह सकूँगा”, उन्हें ऐसी भ्रान्ति सी हो गई थी। वे उसकी चाल पर लट्टू थे। कहते, “ऐसे चलता है जैसे मोर घटा को देखकर नाच रहा हो।” जब तक संध्या समय सुलतान पर चढ़कर आठ-दस मील का चक्कर न लगा लेते, उन्हें चैन न आता।

खड़गसिंह उस इलाके का प्रसिद्ध डाकू था। लोग उसका नाम सुनकर काँपते थे। होते-होते सुल्तान की कीर्ति उसके कानों तक भी पहुँची। उसका हृदय उसे देखने के लिए अधीर हो उठा। वह एक दिन दोपहर के समय बाबा भारती के पास पहुँचा और नमस्कार करके बैठ गया। बाबा भारती ने पूछा, “खडगसिंह, क्या हाल है?”

खडगसिंह ने सिर झुकाकर उत्तर दिया, “आपकी दया है।”

“कहो, इधर कैसे आ गए?”

“सुलतान की चाह खींच लाई।”

“विचित्र जानवर है। देखोगे तो प्रसन्न हो जाओगे।”

“मैंने भी बड़ी प्रशंसा सुनी है।”

“उसकी चाल तुम्हारा मन मोह लेगी!”

“कहते हैं देखने में भी बहुत सुँदर है।”

“क्या कहना! जो उसे एक बार देख लेता है, उसके हृदय पर उसकी छवि अंकित हो जाती है।”

“बहुत दिनों से अभिलाषा थी, आज उपस्थित हो सका हूँ।”

बाबा भारती और खड़गसिंह अस्तबल में पहुँचे। बाबा ने घोड़ा दिखाया घमंड से, खड़गसिंह ने देखा आश्चर्य से। उसने सैंकड़ो घोड़े देखे थे, परन्तु ऐसा बाँका घोड़ा उसकी आँखों से कभी न गुजरा था। सोचने लगा, भाग्य की बात है। ऐसा घोड़ा खड़गसिंह के पास होना चाहिए था। इस साधु को ऐसी चीज़ों से क्या लाभ? कुछ देर तक आश्चर्य से चुपचाप खड़ा रहा। इसके पश्चात् उसके हृदय में हलचल होने लगी। बालकों की-सी अधीरता से बोला, “परंतु बाबाजी, इसकी चाल न देखी तो क्या?”

दूसरे के मुख से सुनने के लिए उनका हृदय अधीर हो गया। घोड़े को खोलकर बाहर गए। घोड़ा वायु-वेग से उडने लगा। उसकी चाल को देखकर खड़गसिंह के हृदय पर साँप लोट गया। वह डाकू था और जो वस्तु उसे पसंद आ जाए उस पर वह अपना अधिकार समझता था। उसके पास बाहुबल था और आदमी भी। जाते-जाते उसने कहा, “बाबाजी, मैं यह घोड़ा आपके पास न रहने दूँगा।”

बाबा भारती डर गए। अब उन्हें रात को नींद न आती। सारी रात अस्तबल की रखवाली में कटने लगी। प्रति क्षण खड़गसिंह का भय लगा रहता, परंतु कई मास बीत गए और वह न आया। यहाँ तक कि बाबा भारती कुछ असावधान हो गए और इस भय को स्वप्न के भय की नाईं मिथ्या समझने लगे। संध्या का समय था। बाबा भारती सुल्तान की पीठ पर सवार होकर घूमने जा रहे थे। इस समय उनकी आँखों में चमक थी, मुख पर प्रसन्नता। कभी घोड़े के शरीर को देखते, कभी उसके रंग को और मन में फूले न समाते थे। सहसा एक ओर से आवाज़ आई, “ओ बाबा, इस कंगले की सुनते जाना।”

आवाज़ में करूणा थी। बाबा ने घोड़े को रोक लिया। देखा, एक अपाहिज वृक्ष की छाया में पड़ा कराह रहा है। बोले, “क्यों तुम्हें क्या कष्ट है?”

अपाहिज ने हाथ जोड़कर कहा, “बाबा, मैं दुखियारा हूँ। मुझ पर दया करो। रामावाला यहाँ से तीन मील है, मुझे वहाँ जाना है। घोड़े पर चढ़ा लो, परमात्मा भला करेगा।”

“वहाँ तुम्हारा कौन है?”

“दुगार्दत्त वैद्य का नाम आपने सुना होगा। मैं उनका सौतेला भाई हूँ।”

बाबा भारती ने घोड़े से उतरकर अपाहिज को घोड़े पर सवार किया और स्वयं उसकी लगाम पकड़कर धीरे-धीरे चलने लगे। सहसा उन्हें एक झटका-सा लगा और लगाम हाथ से छूट गई। उनके आश्चर्य का ठिकाना न रहा, जब उन्होंने देखा कि अपाहिज घोड़े की पीठ पर तनकर बैठा है और घोड़े को दौड़ाए लिए जा रहा है। उनके मुख से भय, विस्मय और निराशा से मिली हुई चीख निकल गई। वह अपाहिज डाकू खड़गसिंह था।बाबा भारती कुछ देर तक चुप रहे और कुछ समय पश्चात् कुछ निश्चय करके पूरे बल से चिल्लाकर बोले, “ज़रा ठहर जाओ।”

खड़गसिंह ने यह आवाज़ सुनकर घोड़ा रोक लिया और उसकी गरदन पर प्यार से हाथ फेरते हुए कहा, “बाबाजी, यह घोड़ा अब न दूँगा।”

“परंतु एक बात सुनते जाओ।” खड़गसिंह ठहर गया।

बाबा भारती ने निकट जाकर उसकी ओर ऐसी आँखों से देखा जैसे बकरा कसाई की ओर देखता है और कहा, “यह घोड़ा तुम्हारा हो चुका है। मैं तुमसे इसे वापस करने के लिए न कहूँगा। परंतु खड़गसिंह, केवल एक प्रार्थना करता हूँ। इसे अस्वीकार न करना, नहीं तो मेरा दिल टूट जाएगा।”

“बाबाजी, आज्ञा कीजिए। मैं आपका दास हूँ, केवल घोड़ा न दूँगा।”

“अब घोड़े का नाम न लो। मैं तुमसे इस विषय में कुछ न कहूँगा। मेरी प्रार्थना केवल यह है कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना।”

खड़गसिंह का मुँह आश्चर्य से खुला रह गया। उसका विचार था कि उसे घोड़े को लेकर यहाँ से भागना पड़ेगा, परंतु बाबा भारती ने स्वयं उसे कहा कि इस घटना को किसी के सामने प्रकट न करना। इससे क्या प्रयोजन सिद्ध हो सकता है? खड़गसिंह ने बहुत सोचा, बहुत सिर मारा, परंतु कुछ समझ न सका। हारकर उसने अपनी आँखें बाबा भारती के मुख पर गड़ा दीं और पूछा, “बाबाजी इसमें आपको क्या डर है?”

सुनकर बाबा भारती ने उत्तर दिया, “लोगों को यदि इस घटना का पता चला तो वे दीन-दुखियों पर विश्वास न करेंगे।” यह कहते-कहते उन्होंने सुल्तान की ओर से इस तरह मुँह मोड़ लिया जैसे उनका उससे कभी कोई संबंध ही नहीं रहा हो।

बाबा भारती चले गए। परंतु उनके शब्द खड़गसिंह के कानों में उसी प्रकार गूँज रहे थे। सोचता था, कैसे ऊँचे विचार हैं, कैसा पवित्र भाव है! उन्हें इस घोड़े से प्रेम था, इसे देखकर उनका मुख फूल की नाईं खिल जाता था। कहते थे, “इसके बिना मैं रह न सकूँगा।” इसकी रखवाली में वे कई रात सोए नहीं। भजन-भक्ति न कर रखवाली करते रहे। परंतु आज उनके मुख पर दुख की रेखा तक दिखाई न पड़ती थी। उन्हें केवल यह ख्याल था कि कहीं लोग दीन-दुखियों पर विश्वास करना न छोड़ दे। ऐसा मनुष्य, मनुष्य नहीं देवता है।

रात्रि के अंधकार में खड़गसिंह बाबा भारती के मंदिर पहुँचा। चारों ओर सन्नाटा था। आकाश में तारे टिमटिमा रहे थे। थोड़ी दूर पर गाँवों के कुत्ते भौंक रहे थे। मंदिर के अंदर कोई शब्द सुनाई न देता था। खड़गसिंह सुल्तान की बाग पकड़े हुए था। वह धीरे-धीरे अस्तबल के फाटक पर पहुँचा। फाटक खुला पड़ा था। किसी समय वहाँ बाबा भारती स्वयं लाठी लेकर पहरा देते थे, परंतु आज उन्हें किसी चोरी, किसी डाके का भय न था। खड़गसिंह ने आगे बढ़कर सुलतान को उसके स्थान पर बाँध दिया और बाहर निकलकर सावधानी से फाटक बंद कर दिया। इस समय उसकी आँखों में नेकी के आँसू थे। रात्रि का तीसरा पहर बीत चुका था। चौथा पहर आरंभ होते ही बाबा भारती ने अपनी कुटिया से बाहर निकल ठंडे जल से स्नान किया। उसके पश्चात्, इस प्रकार जैसे कोई स्वप्न में चल रहा हो, उनके पाँव अस्तबल की ओर बढ़े। परंतु फाटक पर पहुँचकर उनको अपनी भूल प्रतीत हुई। साथ ही घोर निराशा ने पाँव को मन-मन भर का भारी बना दिया। वे वहीं रूक गए। घोड़े ने अपने स्वामी के पाँवों की चाप को पहचान लिया और ज़ोर से हिनहिनाया। अब बाबा भारती आश्चर्य और प्रसन्नता से दौड़ते हुए अंदर घुसे और अपने प्यारे घोड़े के गले से लिपटकर इस प्रकार रोने लगे मानो कोई पिता बहुत दिन से बिछड़े हुए पुत्र से मिल रहा हो। बार-बार उसकी पीठपर हाथ फेरते, बार-बार उसके मुँह पर थपकियाँ देते। फिर वे संतोष से बोले, “अब कोई दीन-दुखियों से मुँह न मोड़ेगा।”

 

 

मौसम को बदलने दें, कपड़ों को नहीं

मौसम के अनुसार आपके कपड़ों का कलेक्शन चेंज हो यह हर किसी के लिए मुमकिन नहीं है। आप मौसम और माहौल अनुसार कुछ कपड़े तो नए खरीद सकते हैं, लेकिन सिरे से सबकुछ बदलना बेहद खर्चीला भी होता है। ऐसे में आप ये बातें ध्यान रखेंगी तो पैसा भी बचाएंगी और अपडेट भी रहेंगी…

indian-street-style-fashion-2014-17

क्वालिटी पर ध्यान

हर कपड़ा जो आप खरीदें उसकी फिटिंग तो परफेक्ट होनी चाहिए लेकिन क्वालिटी में तो जरा समझौता नहीं करें। खराब क्वालिटी के कपड़े एक मौसम ही निकाल लें यह मुश्किल हो जाता है तो नए मौसम में नई खरीदी जरूरी हो ही जाएगी। इसलिए उत्तम किस्म के फेब्रिक को ही अपनी अलमारी में जगह दें।

mixmatch._AC_CT10_SR520,720_

 

दिखाएं क्रिएटिविटी

अपने अनुसार कपड़ों में बदलाव शुरू करें। थोड़ा क्रिएटिव होना यहां बेहद काम आएगा। पुरानी ड्रेसेस को अपने हिसाब से ऑल्टर करें। जरा-सा दिमाग लगाएंगी तो ड्रेस पूरी तरह से बदल जाएगी। पुरानी ड्रेसेस में बो लगाएं, स्ट्रैप या हेमलाईन एडजस्ट करें। चंद बटन भी लगाए जा सकते हैं, जो एक टी-शर्ट को नया कर सकते हैं और नाइट गाऊन को स्टाइलिश बना सकते हैं।

Salwar-Kamiz

खुद तैयार करवाएं

जब भी नया खरीदने निकलें तो यह भी ध्यान रखें कि क्या इसे टेलर से भी बनवाया जा सकता है। अगर खुद सिलाई जानती हैं तो इससे बेहतर क्या होगा कि आप अपनी नई ड्रेस खुद सिलें। एक लोकल टेलर चुनें और उसकी मदद से हर मौसम के लिए खुद के लिए बिल्कुल नया लुक तैयार करवाएं। ये बेहद सस्ता भी पड़ेगा।

Indian-E-commerce-YourStory

महंगा भी है जरूरी

बुरे कपड़े और खराब फिटिंग की ड्रेस खरीदने से बेहतर है एक अच्छा खरीदें भले वो थोड़ा महंगा हो। यह चंद महंगे कपड़े कई साल का इंतजाम कर देते है। इन्हें चुनने में खूब वक्त लगाएं, बार-बार बाजार जाएं। हर संभव परख करें। ट्रायल भी लें। फिर जाकर कुछ महंगा खरीदें और कुछ साल उसका मजा लें।

blue-printed-kurta-with-dupatta-1-product

अदला-बदली

आजकल हर चीज की अदला-बदली संभव हो गई है। शुक्र कीजिए आपके एंड्रायड फोन में ऐसे एप्स हैं जो पुरानी चीजों की अच्छी कीमत दिला रहे हैं। किसी और का कपड़ा आपको पहनना पसंद नहीं है तो क्या हुआ अपना नापसंद पीस बेचा तो जा सकता है। दोस्त अक्सर चीजें बदल लेते हैं। यह विकल्प कतई बुरा नहीं है।

Silver-Golden-Black-Colored-Stole

एक्सेसरीज होंगी मददगार

ऑनलाइन खरीदी कई बार बेहद मददगार साबित होती है। इसे अपनी स्मार्ट शॉपिंग में जरूर शामिल करें। खासतौर पर एक्सेसरीज तो यही से लें। कम कीमत के साथ इनसे बिलकुल नया लुक मिल जाता है। स्कार्फ, बेल्ट, इयरिंग्स और शूज के बारे में सोचें तो ऑनलाइन दुकानों पर जरूर झांके।

 

महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े हुए गाँव को विकसित किया इस डॉक्टर दम्पति ने !

डॉ. रविन्द्र कोल्हे और डॉ. स्मिता कोल्हे ने मेलघाट के वासियों की ज़िन्दगी बदल दी है। उन्होंने उस इलाके की स्वास्थ्य सुविधाओं को एक नया आयाम दिया है और लोगों को बिजली, सड़क और प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र उपलब्ध कराये हैं। आईये जाने उनके इस अद्भुत सफ़र की कहानी।

सन १९८५ की बात है जब श्री. देवराव कोल्हे रेलवे में काम करते थे। उनके पुत्र रविन्द्र, नागपुर मेडिकल कॉलेज से MBBS कर रहे थे। शेगांव में हर कोई रविन्द्र की पढाई ख़त्म होने का इंतज़ार कर  रहा था क्यूंकि रविन्द्र परिवार के पहले डॉक्टर होते पर उस वक़्त किसीको ये कहाँ पता था कि ये लड़का डॉक्टरी करके पैसे कमाने के बजाय एक अलग ही रास्ता चुनेगा।

डॉ.  रविन्द्र कोल्हे महात्मा गाँधी और विनोबा भावे की किताबों से बहुत प्रभावित थे। जब तक उन्होंने अपनी पढाई ख़त्म की, उन्होंने निश्चय कर लिया था कि वो अपने हुनर का इस्तेमाल पैसों के लिए नहीं बल्कि जरुरतमंदो की मदद के लिए करेंगे। उनके आगे सिर्फ यही सवाल था कि शुरुआत कहाँ से की जाये ?

पर जल्दी ही उन्हें जवाब मिल गया, जब उन्होंने डेविड वर्नर की पुस्तक का शीर्षक देखा –“Where There is No Doctor” ( जहां कोई डॉक्टर नहीं है)। इस किताब के प्रथम पृष्ठ पर  ४ लोगों की तस्वीर थी जो एक मरीज़ को अपने कंधे पर उठाये चले जा रहे थे , और उस तस्वीर के नीचे लिखा था – “Hospital 30 miles away” (अस्पताल तीस किलोमीटर की दूरी पर है )।

डॉ. कोल्हे ने निश्चय किया कि वे अपनी सेवायें ऐसी जगह को देंगे जहाँ दूर तक कोई स्वास्थ्य सुविधा नहीं है। और इसके लिए उन्होंने बैरागढ को चुना, जो महाराष्ट्र के मेलघाट में स्थित है। मेलघाट की यात्रा अमरावती से शुरू होती थी और हरिसाल पर जाकर ख़त्म होती थी जहाँ से बैरागढ पहुँचने के लिए ४० किलोमीटर पैदल चलना पड़ता था।

डॉ. कोल्हे के एक प्रोफेसर, डॉ. जाजू के मुताबिक वैसे सुदूर इलाके में काम करने वाले किसी भी डॉक्टर को तीन चीज़ें आनी चाहिए- पहला बिना सोनोग्राफी या खून चढाने की सुविधा के प्रसव कराना, दूसरा- बिना एक्स-रे के निमोनिया को पहचानना , और तीसरा- डायरिया का इलाज़ करना। डॉ. कोल्हे ने मुंबई जाकर ६ महीने तक ये तीन चीज़ें सीखी और बैरागढ के लिए चल पड़े।

पर जल्दी ही डॉ. कोल्हे को समझ आ गया कि सिर्फ उनकी MBBS की डिग्री से वो लोगों की समस्याओं को हल नहीं कर सकते।

एक आदमी का एक हाथ विस्फोट में उड़ गया था। हादसे के १३ दिन बाद वो मेरे पास इलाज के लिए आया। मैं सर्जन नहीं था इसलिए मैं उसकी मदद नहीं कर सका। तब मुझे लगा कि ऐसे मरीजों को बचाने के लिए मुझे और पढने की जरुरत है, “ डॉ. कोल्हे ने बताया।

डॉ. कोल्हे १९८७ में MD करने चल दिए। उन्होंने अपनी थीसिस मेलघाट में व्याप्त कुपोषण पर की। उनकी थीसिस ने लोगों का ध्यान इस समस्या की तरफ खीचा ,बी बी सी ने इस खबर का प्रचार किया।

डॉ. कोल्हे अब मेलघाट लौटना चाहते थे ,पर इस बार अकेले नहीं।

वो एक सच्चा साथी चाहते थे। उन्होंने अपने लिए लड़की ढूंढना शुरू किया पर उनकी चार शर्तें थी। पहला – लड़की पैदल  ४० किलोमीटर चलने को तैयार हो (जितनी दूरी बैरागढ़ जाने के लिए तय करनी होती थी)। दूसरा – वो ५ रूपये वाली शादी को तैयार हो (उन दिनों कोर्ट मैरिज ५ रूपये में होती थी)।

तीसरा -वो ४०० रूपये में पुरे महीने गुज़ारा कर सके ( डॉ. कोल्हे हर मरीज़ से एक रुपया लेते थे और हर महीने ४०० मरीज़ देखते थे)।

और आखरी शर्त ये थी कि अपने लिए तो नहीं पर कभी दूसरों के भले के लिए भीख भी मांगना पड़े तो वो उसके लिए तैयार हो।

करीब १०० लड़कियों द्वारा ठुकराए जाने के बाद आखिरकार डॉ. स्मिता, जो नागपुर में एक जानी मानी डॉक्टर थी, ने डॉ.कोल्हे का प्रस्ताव सभी शर्तों के साथ स्वीकार कर लिया। और इस तरह १९८९ में मेलघाट को उसका दूसरा डॉक्टर मिल गया ।

पर बैरागढ़ में एक चुनौती उनका इंतज़ार कर रही थी। लोगों ने डॉ. रविन्द्र को स्वीकार कर लिया था  और दो साल उनके साथ रहने के बाद उनपर भरोसा भी करने लगे थे पर डॉ. स्मिता, जिन्होंने आते ही औरतो के हक़ के लिए लड़ना शुरू कर दिया था, को लोग स्वीकार नहीं कर पा रहे थे।पर फिर कुछ ऐसा हुआ जिसकी वजह से डॉ. स्मिता ने भी सभी गाँव वालो का विश्वास और प्यार जीत लिया।

डॉ. स्मिता जब पहली बार माँ बनने वाली थी तब डॉ. कोल्हे ने निश्चय किया था कि वो उनका प्रसव खुद करेंगे जैसा कि वो गाँव वालों का करते थे। पर किसी कारणवश बच्चे को मैनिंजाइटिस, निमोनिया और सेप्टिसीमिया हो गया। लोगो ने सुझाव दिया कि माँ और बच्चे को अकोला के बड़े अस्पताल में ले जाया जाये। डॉ. कोल्हे ने निर्णय डॉ. स्मितापर छोर दिया पर मन ही मन वो ये ठान चुके थे कि अगर इस वक़्त स्मिता ने गाँव से जाने का फैसला किया तो वो वापस कभी गाँव वालों को अपनी शक्ल नही दिखायेंगे।पर डॉ. स्मिता ने फैसला किया कि वो अपने बच्चे का इलाज़ गाँव के बाकी बच्चों की तरह कराएंगी।इसके बाद गाँव वालों की नज़र में उनकी इज्ज़त और बढ़ गयी।

 “सभी जानते थे कि मेलघाट के बच्चे कुपोषण से मर रहे थे, और लोग निमोनिया, मलेरिया और सांप के काटने से। शोधकर्ताओं ने इन मौतों का कारण तो ढूंढ लिया था पर इसकी असल वजह कोई नहीं जान पाया था जो कि गरीबी थी। वो निमोनिया से मरते थे क्यूंकि जाड़ों में उनके पास खुद को ढकने को कपडे नहीं होते थे। वो कुपोषण से मरते थे क्यूंकि उनके पास कोई काम नहीं था और जब खेती का मौसम नहीं होता था तब उनके पास पैसे भी नहीं होते थे। हम मौत की इन जड़ों का इलाज़ करना चाहते थे डॉ. रविन्द्र कोल्हे कहते हैं ।

 जब डॉ. रविन्द्र और डॉ. स्मिता ने गांववालों का स्वस्थ सुधार दिया तो इन भोले गांववालों को उनमे भगवान् नज़र आने लगा। उन्हें लगा कि इन डॉक्टरो के पास हर चीज़ का इलाज है। अब वो लोग उनके पास अपने बीमार पेड़ पौधे और मवेशियों को भी इलाज के लिए लाने लगे।

चूँकि वहां कोई दूसरा डॉक्टर नहीं था, डॉ. कोल्हे ने अपने एक पशु चिकित्सक मित्र से जानवरों की शारीरिक संरचना के बारे में पढ़ा और पंजाब राव कृषि विद्यापीठ अकोला से कृषि की पढाई की।काफी मेहनत के बाद उन्होंने एक ऐसा बीज बनाया जिस पर फंगस नहीं लगता। पर कोई इसे पहली बार इस्तेमाल नहीं करना चाहता था , इसलिए डॉ. कोल्हे और उनकी पत्नी ने खुद ही खेती करना शुरू कर दिया।

इस डॉक्टर  दम्पति  ने जागरूकता शिविरों का आयोजन करना शुरू किया जिस से खेती की नयी तकनीकों के बारे में लोग जागरूक हों, पर्यावरण की रक्षा हो और सरकार द्वारा की जाने वाली सुविधाओं का लाभ उठा सकें।

उनका सन्देश बिलकुल साफ़ था प्रगति के लिए खेती बहुत जरुरी है और युवाओं के खेती में आने से ही प्रगती होगी। ये सन्देश लोगों की नज़रों में और भी साफ़ हो गया जब  डॉ. कोल्हे का बड़ा बेटा रोहित किसान बन गया।

हमने लाभ आधारित खेती शुरू की। हमने सोयाबीन की खेती शुरू की जो महाराष्ट्र में कहीं नहीं होती थी। इसके अलावा हमने किसानो को मिश्रित खेती करने के लिए प्रेरित किया और उन चीज़ों को उगाया जो उनकी मूलभूत जरुरत थी। आज मैं अपनी किसानी से इतने पैसे कमा रहा हूँ जितना एक आई आई टियन किसी प्राइवेट कंपनी से कमाता है,” रोहित कोल्हे कहते हैं।

 कोल्हे परिवार ने वनों की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया। उन्होंने वातावरण चक्र का भी ध्यान रखा जो हर ४ साल बाद पुनः दोहराया जाता है। अब वे सूखे की भविष्यवाणी भी कर सकते हैं ताकि गाँव वाले इसके लिए तैयार हो सकें। इस दम्पति ने पीडीएस (सार्वजनिक वितरण प्रणाली)  को भी अपने हाथ में लिया ताकि बारिश के वक़्त भी हर किसी को भोजन मिल सके। इस वजह से मेलघाट में कई सालो से अब कोई किसान आत्महत्या नहीं करता।

अगर हम किसी को एक दिन का खाना देते हैं तो उसकी बस एक ही दिन की भूख मिटती है, पर अगर हम उसे कमाना सिखाते हैं तो हम उसे ज़िन्दगी भर का खाना दे देते हैं , और हम यही करना चाहते थे”– कोल्हे दम्पति कहते हैं।

 एक बार पी.डब्लू.डी मिनिस्टर, नितिन गडकरी, जो स्मिता के मानस भाई थे कोल्हे दम्पति से मिलने  उनके घर आये और उनके रहने का ढंग देख कर चौक गए। उन्होंने उनके लिए घर बनाने की इच्छा जाहिर की। स्मिता ने घर के बजाय अच्छी सडके बनाने को कहा और मंत्रीजी ने अपना वादा निभाया। आज मेलघाट के ७० % गाँवो में सड़के बन चुकी है।

मेलघाट महाराष्ट्र के सबसे पिछड़े हिस्सों में से एक है। यहाँ तकरीबन ३०० गाँव हैं और करीब ३५० गैर सरकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। पर वो सिर्फ कुछ चीज़े मुफ्त में बाँटने का काम करती है जब कि डॉ. कोल्हे और डॉ. स्मिता इन लोगों को आत्मनिर्भर बनाना चाहते हैं।

इस डॉक्टर दम्पति की लम्बी लड़ाई ने अब अपना फल दिखा दिया है और अब मेलघाट में अच्छी सड़के हैं , बिजली है और १२ प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र हैं। डॉ. कोल्हे अब किसीसे पैसे नहीं लेते। वो लोगों को सरकारी अस्पताल ले जाकर यथासंभव बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं दिलाते हैं।

इस गाँव में अभी तक कोई सर्जन नहीं है इसलिए डॉ. कोल्हे के छोटे बेटे, राम जो अकोला के सरकारी मेडिकल कॉलेज से MBBS कर रहे  हैं, सर्जन बनने की इच्छा रखते है।

ये दम्पति अभी तक मेलघाट के लोगो को एक बेहतर ज़िन्दगी देने के लिए संघर्ष कर रहा है। उनका अगला मिशन मेलघाट के सभी छोटे छोटे गाँवो में बिजली उपलब्ध कराना है।

धारनी में बिजली तो आ गयी है पर हर १४ घंटे पर लोड शेडिंग होती है। इतना भी काफी होता पर वोल्टेज इतना कम होता है कि किसान अपने पंप तक नहीं चला पाते। इसलिए इस बिजली से उनकी खेती को कोई फायदा नहीं मिलता। अगर हम यहाँ से २ किलोमीटर भी आगे जायें तो वहां बिजली नहीं है। संपर्क इस जगह की सबसे बड़ी कमजोरी है। जिस तरह आप एक महीने तक कोशिश करने के बाद ही हमसे बात कर पाए है ऐसा हर किसी के साथ है। अगर आप हमारे बारे में लिख रहे हैं तो ये ज़रूर लिखें कि इस गाँव के किसानो को बिजली की सख्त ज़रूरत है,” डॉ. कोल्हे जोर देकर कहते हैं।

 डॉ. रविन्द्र कोल्हे और डॉ. स्मिता कोल्हे के बारे में और जानने के लिए आप मृणालिनी चितले की लिखी  ‘मेळघाटा वरिल मोहराचा गंध’ और डॉक्टर मनोहर नारन्जे के द्वारा लिखित ‘बैरागढ़’ नामक पुस्तके  पढ़ सकते हैं।

(साभार – द बेटर इंडिया)

 

नयी एविएशन पॉलिसी से सस्ता होगा विमान का सफर

 

कैबिनेट ने नई एविएशन पॉलिसी को मंजूरी दे दी है।  हाल ही में पीएम मोदी की अध्‍यक्षता में हुई बैठक में यह फैसला किया गया है । नई पॉलिसी के तहत अब 1 घंटे के सफर के लिए 2500 रुपये का किराया देना होगा, जबकि 30 मिनट के लिए 1200 रुपये देने होंगे. नई पॉलिसी में यात्रियों के हितों का ध्यान रखा गया है।

नई नीति के लागू होने के बाद अब यात्रियों को घरेलू टिकट कैंसिल कराने पर रिफंड पंद्रह दिनों के अंदर मिल जाएगा, जबकि अंतरराष्ट्रीय हवाई टिकट कैंसिल करवाने पर 30 दिन के अंदर रिफंड मिलेगा। अगर कोई यात्री अपना टिकट कैंसिल करवाता है तो कैंसिलेशन चार्ज के तौर पर 200 रुपए से ज्यादा वसूला नहीं जा सकता।

अब विमानन कंपनियों को अंतरराष्‍ट्रीय उड़ानों के लिए 20 विमानों की जरूरत होगी लेकिन अंतरराष्‍ट्रीय सेवा शुरू करने के लिए पांच साल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा। विमान में ओवर बुकिंग होने पर अगर यात्री को सवार नहीं होने दिया जाता है तो उसकी मुआवजा राशि बढ़ाकर 20 हजार रुपए कर दी गई है।

उड़ान के वक्त से 24 घंटे के अंदर फ्लाइ कैंसिल होती है तो मुआवजे की राशि 10 हजार रुपये तक होगी. प्रोमो और स्पेशल फेयर्स समेत सभी पर रिफंड्स लागू होंगे। 15 किलो के सामान के बाद 5 किलो तक के लिए 100 रुपये प्रति किलो से ज्यादा चार्ज नहीं किए जाएंगे.

यात्रियों की संख्या बढ़ाने पर जोर
नई पॉलिसी का मकसद ऐसी उड्डयन अवसंरचना तैयार करना है, जो 2022 तक 30 करोड़ घरेलू यात्रियों को, 2027 तक 50 करोड़ घरेलू यात्रियों को और 2027 तक ही 20 करोड़ अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों को सेवा देने में सक्षम हो। वित्त वर्ष 2014-15 में देश के घरेलू विमान यात्रियों की संख्या 13.932 करोड़ और अंतर्राष्ट्रीय यात्रियों की संख्या पांच करोड़ से अधिक थी.

यात्रियों की बल्ले-बल्ले
यह पॉलिसी अगले महीने 1 जुलाई से ही लागू हो जाएगी। नई सिविल एविएशन पॉलिसी पर सरकार को इतना भरोसा है कि नागरिक उड्डयन मंत्री अशोक गजपतिराजू ने दावा किया कि अगले पांच साल में देश में हवाई यात्रा करने वालों की संख्या सलाना 8 करोड से बढ़कर 30 करोड़ को पार कर जाएगी। नई सिविल एविएशन पॉलिसी में दो बातों पर जोर है. पहला हवाई यात्रा को देश के हर हिस्से में दूर-दराज के छोटे शहरों तक ले जाना और हवाई जहाज के टिकट की कीमत बेहद कम करना जिससे साधारण आदमी भी बेधड़क हवाई यात्रा कर सके.

350 हवाई पट्टियों की पहचान
छोटे शहरों को हवाई मार्ग से जोड़ने के लिए सरकार ने देश में करीब 350 ऐसे हवाई अड्डों और हवाई पट्टियों की पहचान की है, जो वहां हवाई जहाज नहीं जाने की वजह से खाली पड़े हैं। पचास से सौ करोड़ रुपये, हर बेकार पड़े. हवाई अड्डे पर खर्च करके जल्द ही उन्हें उड़ान भरने के लायक बनाया जाएगा. जो राज्य सरकारें अपने यहां बेकार पडे हवाई अड्डों या हवाई पट्टियों को उड़ान भरने के लायक बनाने की पहल करेगीं, केन्द्र सरकरा उन्हें सबसे पहले हवाई यात्रा शुरू करने के लिए चुनेगा।

 

घर बैठकर बढा़एं नाखूनों की खूबसूरती

नाखूनों की खूबसूरती बढ़ाने के लिए ब्यूटीपार्लर जाने की जगह घर पर ही ये टिप्स अपनाएं…

– बार-बार सेनेटाइजर या साबुन से हाथ धोते रहने से नाखून भी ड्राय हो जाते हैं। कोशिश करें कि हर बार हाथ धोने के बाद इन्हें मॉइश्चराइज करें। नारियल के तेल से यह काम आसानी से किया जा सकता है।

– नाखूनों के पोरों को चबाने की आदत है तो तुरंत बदल डालिए क्योंकि यह बैक्टेरिया प्रवेश को रोकने का काम करते हैं। इन्हें भी नाखूनों के साथ मॉइश्चराइज रखना बेहद जरूरी है। ऑलिव या आलमंड ऑइल से इन्हें नई जिंदगी मिल सकती है।

– गर्मी के मौसम में नेल पॉलिश का उपयोग कम से कम करें। खासकर वो जिनमें हार्श कैमिकल्स होते हैं।

– खान-पान को भी नाखूनों पर सीधा असर पड़ता है। कैल्शियम से यह मजबूत होते हैं। विटामिन बी इनके लिए बेहद जरूरी है। खूब पानी पीने से भी यह चमकदार होते हैं।

 

इन्होंने की थी शल्यक्रिया की शुरुआत

शल्य चिकित्सा के पितामह और ‘सुश्रुत संहिता’ के प्रणेता आचार्य सुश्रुत का जन्म 6वीं शताब्दी ईसा पूर्व में काशी में हुआ था। इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की। सुश्रुत राजर्षि शालिहोत्र के पुत्र कहे जाते हैं। उन्होंने शल्य क्रिया के लिए सुश्रुत 125 तरह के उपकरणों का प्रयोग करते थे। सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की खोज की। कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी।

सुश्रुतसंहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है। उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था। सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोडऩे में विशेषज्ञता प्राप्त थी।

मान्यता है कि सुश्रुत ऋषि विश्वामित्र के वंशज थे। कहते हैं कि जब धन्वंतरि काशी नरेश थे तब उन्होंने सुश्रुत को चिकित्सा पद्धित का उपदेश दिया था। जिसके बाद उन्होंने सुश्रुत संहिता लिखा।

प्राचीन भारत में शल्य चिकित्सकों के एक संप्रदाय को ही धन्वंतरि कहा जाता था। इस संप्रदाय के ही एक प्रसिद्ध चिकित्सक सुश्रुत थे, जो चरक के बाद हुए थे।

सुश्रुत ने शल्यक्रिया के लगभग 101 यंत्रों का ज्ञान कराया है। सुश्रुत भारत में ही नहीं, विदेशों में भी विख्यात हुए। चरक संहिता की भांति उनका ग्रंथ सुश्रुत संहिता अन्य देशों में प्रसिद्ध हुआ। सन् 800 ईं. में सुश्रुत संहिता का अनुवाद अरबी भाषा में ‘किताबे सुश्रुत’ नाम से किया गया।

अरब के प्रसिद्ध चिकित्सक टेजिस ने अपने ग्रंथों में सुश्रुत का उल्लेख करते हुए उन्हें शल्य-विज्ञान का आचार्य माना है। 9-10वीं शताब्दी के ईरान के महान चिकित्सक राजी ने सुश्रुत संहिता का कई बार वर्णन किया है और सुश्रुत को एक महान चिकित्सक माना है।

 

आसान हुआ ईपीएफ ट्रांसफर, नौकरी बदल रहें हैं तो ये बातें न भूलें

एक समय ईपीएफ ट्रांसफर करवाना बहुत टेढ़ी खीर थी। ईपीएफओ में एक कंपनी से दूसरी कंपनी में ईपीएफ बैलेंस टांसफर करवाने में बहुत दिक्कत होती थी। लेकिन, अब इसकी प्रक्रिया आसान हो गई है। आप ऑनलाइन भी ईपीएफ ट्रांसफर करवा सकते हैं। आसानी से बैलेंस ट्रांसफर करवाने के लिए आपको किन छोटी-मोटी बातों का ध्यान रखना है इस पर विशेष।

गणेश एक प्राइवेट कंपनी में काम करता है। उसने ए कंपनी में 5 साल काम किया। इसके बाद नई कंपनी बी ज्वाइन कर ली। इस कंपनी में वह ज्यादा दिन तक नहीं टिका और इसके बाद उसने एक और नई कंपनी सी ज्वाइन कर ली। गणेश कार्यकुशल है, लिहाजा उसके पास नौकरी की कमी नहीं है। नौकरियां बदलने में भी उसको दिक्कत नहीं आती। लेकिन, गणेश ने एक छोटी सी गलती कर दी। उसने अपना ईपीएफ बैलेंस ए कंपनी से बी कंपनी में ट्रांसफर नहीं करवाया। अब उसे उसकी गलती का अहसास हुआ और वह सभी अकाउंट का ईपीएफ बैलेंस सी कंपनी के अकाउंट में करवाना चाहता है। गणेश की तरह कई और कर्मचारी अपना पीएफ का बैलेंस एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर करवाना चाहते हैं। वे इसकी आसान प्रक्रिया जानना चाहते हैं। शुक्र है ईपीएफओ ने इसकी प्रक्रिया आसान कर दी है।

यूनिवर्सल अकाउंट नंबर (यूएएन) और ऑनलाइन पीएफ ट्रांसफर मेथड से कई दिक्कतें दूर हो गई हैं। दूसरी तरफ ईपीएफ की रकम निकालना भी आसान हो गया है। आप यह काम पुरानी कंपनी के पास जाए बगैर भी कर सकते सकते हैं।

ईपीएफ ट्रांसफर के नियम

  • आप अपना बैलेंस एक अकाउंट से दूसरे में ट्रांसफर करवा सकते हैं
  • ईपीएफ ट्रांसफर करवाने के लिए समय सीमा का कोई बंधन नहीं है
  • आप अपना बैलेंस केवल अपने अकाउंट में ट्रांसफर कर पाएंगे
  • तीसरे व्यक्ति के अकाउंट में बैलेंस ट्रांसफर करवाना संभव नहीं
  • ईपीएफ के साथ कर्मचारी पेंशन स्कीम की रकम भी ट्रांसफर होगी
  • आप आधी अधूरी या कम रकम ट्रांसफर नहीं करवा सकते
  • ईपीएफ की रकम ट्रांसफर करवाने के लिए सत्यापन जरूरी है
  • दोनों अकाउंट में नाम, पिताजी का नाम और जन्म की तारीख एक समान होनी चाहिए।

ईपीएफ ट्रांसफर के तरीके

ईपीएफओ ने ईपीएफ ट्रांसफर का नया तरीका लागू किया है लेकिन पुरानी प्रक्रिया को बंद नहीं किया है। इससे आप इनमें से कोई भी प्रक्रिया चुन सकते हैं। अगर आपको कंप्यूटर का ज्ञान है तो आप टांसफर की ऑनलाइन प्रक्रिया भी अपना सकते हैं। इसके अलावा मौजूदा ऑफलाइन प्रक्रिया तो है ही सही।

ऑफलाइन प्रक्रिया

ऑफलाइन ईपीएफ ट्रांसफर की प्रक्रिया में आपको प्रिंटेड फॉर्म भरना होगा। आपकी मौजूदा कंपनी इस फॉर्म को ईपीएफओ को ट्रांसफर करेगी। इसके बाद ईपीएफओ आपके इस फॉर्म को आपकी पुरानी कंपनी को ट्रांसफर करेगा। पुरानी कंपनी से जानकारी सत्यापित होने पर ईपीएफओ पुरानी कंपनी से पैसाा नई कंपनी में ट्रांसफर कर देगा। इस प्रक्रिया में फॉर्म भौतिक रूप से भेजा जाता है इसलिए इसमें समय ज्यादा लगता है।

आनलाइन प्रक्रिया

ईपीएफ ट्रांसफर के लिए इस प्रक्रिया को अपनाना आसान है। इसमें फॉर्म भौतिक रूप से एक कंपनी से दूसरी कंपनी नहीं भेजा जाता है। ईपीएफ इलेक्ट्रॉनिक तौर पर ट्रांसफर कर दिया जाता है। कंपनी की तरफ से आनलाइन ही सत्यापन कर दिया जाता है। इसमें कम समय लगता है।

ट्रांसफर प्रक्रिया कैसे चुने

ये तो तय है कि आप ईपीएफ ट्रांसफर करने के लिए सबसे आसान प्रक्रिया अपनाएंगे। लेकिन ये आसान प्रक्रिया हर किसी के लिए उपलब्ध नहीं है। आसान प्रक्रिया अपनाने के लिए आपको कुछ शर्तों को पूरा करना पड़ेगा। आप ट्रांसफर करवाने से पहले हर प्रक्रिया की शतोर्ं को पड़ लें। इसके लिए 4 प्रक्रिया हैं।

एक कर्मचारी एक अकाउंट

ये सबसे आसान प्रक्रिया है। इसके लिए ईपीएफओ दिन रात काम करके लोगों के पैसे ट्रांसफर कर रहा है। इसमें आप एक से ज्यादा ट्रांसफर के लिए अर्जी दे सकते हैं। ईपीएफओ के मुताबिक इससे अकाउंट को संगठित किया जा रहा है। ये आनलाइन प्रक्रिया है और इसमें कम कठिनाई आती है।

इनका रखें ध्यान

  • आपने अपना आधार नंबर यूएएन नंबर से लिंक कर दिया है।
  • आपकी कंपनी ने आधार का सत्यापन कर दिया है।
  • आपकी व्यक्तिगत जानकारी का आधार के डेटा से मिलान हो गया है।
  • आपने अपना बैंक अकाउंट नंबर और पैन कार्ड ईपीएफओ को दे दिया है।
  • आपका नाम, जन्म तारीख और पिताजी का नाम सभी अकाउंट में एक सा है।

अगर आप इन शर्तों को पूरा करते हैं तो आप अपना बैलेंस आसानी से एक अकाउंट से दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर करवा सकते हैं।

यूएएन के जरिए ऑटोमेटिक बैलेंस ट्रांसफर

इस प्रक्रिया में आपको कोई भी कदम उठाने की जरूरत नहीं है। ईपीएफ का बैलेंस आसानी से दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर हो जाएगा। ऑटोमेटिक ट्रांसफर के लिए आपको इन शर्तों को पूरा करना पड़ेगा।

  • नई कंपनी ज्वाइन करने से पहले आपके पास यूएएन नंबर है
  • आपने नई कंपनी को इस नंबर की जानकारी दी है
  • आपकी निजी जानकारी का पूरी तरह से मिलान हो चुका है
  • इसके जरिए सिर्फ एक अकाउंट से दूसरे में रकम ट्रांसफर होगी

इस प्रक्रिया के जरिए नए पीएफ अकाउंट में पैसा ट्रांसफर करवाना उपयोगी होता है। सभी मौजूदा ईपीएफ अकाउंट के यूएएन नंबर जारी कर दिए गए हैं। अपनी निजी जानकारी को चेक करें कि वह सही है। साथ ही अपनी कंपनी को यूएएन नंबर न देना भूले।

ऑनलाइन ट्रांसफर क्लेम पोर्टल

यह भी ईपीएफ ट्रांसफर करने की आसान प्रक्रिया है। इसमें आधार और यूएएन नंबर की जरूरत नहीं होती। आप ओटीसीपी पोर्टल का इस्तेमाल करके ऑनलाइन ईपीएफ ट्रांसफर कर सकते हैं। इस पोर्टल पर आपको प्रोविडेंट फंड ट्रांसफर करने की अर्जी देनी होगी। इसके लिए आपको किसी तरह का डॉक्यूमेंट देने की जरूरत नहीं है। हालांकि इसमें आपकी पुरानी कंपनी को सत्यापन करना होगा। सत्यापन ऑनलाइन हो जाएगा। आपको मौजूदा कंपनी को अर्जी का प्रिंटआउट देना होगा।

इन चीजों का रखें ध्यान

  • आपकी निजी जानकारी का दोनों कंपनियों में मिलान होना चाहिए
  • अकाउंट में किसी तरह की गलती नहीं होनी चाहिए
  • अगर आपकी पुरानी कंपनी को कोई दिक्कत नहीं है तो ईपीएफ आसानी से ट्रांसफर हो जाएगा

ईपीएफ ट्रांसफर का पंरपरागत तरीका

इस प्रक्रिया के जरिए बैलेंस ट्रांसफर करवाने के लिए आपको फॉर्म 13 भरना होगा। इस फॉर्म को आपको अपनी नई या पुरानी कंपनी में देना होगा। वैरिफिकेशन के बाद आपकी कंपनी इस फॉर्म को ईपीएफओ को ट्रांसफर कर देगी। ईपीएफओ जानकारी को वैरिफाई करेगा और पुरानी कंपनी से जानकारी को सत्यापित करवाएगा। सत्यापन होने के बाद ईपीएफओ ईपीएफ बैलेंस दूसरे अकाउंट में ट्रांसफर कर देगा।

इनका रखें ध्यान

  • इस प्रक्रिया में आधार और यूएएन नंबर की जरूरत नहीं है।
  • आपकी निजी जानकारी में अगर कोई गड़बड़ी है तो भी आप इसके जरिए बैलेंस ट्रांसफर करवा सकते हैं।
  • ऐसे केस में आपको व्यक्तिगत जानकारी ठीक करने का फॉर्म देना होगा।
  • इस फॉर्म को आपकी पुरानी कंपनी सत्यापित करेगी।
  • इसके लिए वहीं कंपनी होनी चाहिए जिसने ईपीएफ अकाउंट बनाया है और गलत जानकारी भरी है।

ईपीएफ ट्रांसफर का फॉर्म

ईपीएफ ट्रांसफर के लिए फॉर्म 13 का उपयोग होता है। इस फॉर्म में आपको व्यक्तिगत जानकारी भरनी होती है। आपको पुरानी नौकरी की जानकारी देनी होती है। साथ ही ईपीएफ अकाउंट नंबर भी भरना होता है। इसके अलावा नई कंपनी और नौकरी की जानकारी भरने का भी कॉलम इस फॉर्म में होता है। सभी जानकारी सही भरें।

स्टेटस कैसे जाने

ईपीएफ ट्रांसफर एक महीने से भी कम समय में हो जाता है। लेकिन अगर जरूरत पड़े तो आप स्टेटस भी चेक कर सकते हैं। अगर आपने ऑनलाइन ट्रांसफर की अर्जी दी है तो आप शुरुआत से स्टेटस देख सकते हैं। भौतिक रूप से अगर आपने अर्जी दी है तो आपकी अर्जी रीजनल ईपीएफ ऑफिस पहुंचने के बाद ही आप स्टेटस चेक कर पाएंगे।

पीएफ ट्रांसफर का स्टेटस चेक करने के लिउ आप ऑनलाइन ट्रांसफर क्लेम पोर्टल पर जा सकते हैं। आप अलग से भी ईपीएफ क्लेम स्टेटस में जाकर अपने सभी क्लेम की जानकारी देख सकते हैं। अगर आपको इस प्रक्रिया से स्टेटस नहीं पता चलता है तो आप ग्रीवेंस पोर्टल पर जाकर क्लेम स्टेटस की जानकारी ले सकते हैं। अगर फिर भी पता नहीं चलता है तो सबसे आखिर में आरटीआई लगाकर अपनी अर्जी की स्थिति पता कर सकते हैं।

 

बड़ी खरीदारी’ से पहले खुद से पूछें ये सवाल

बिना सोचे पैसे खर्च करना अमीरों की शान होती है लेकिन मध्यम वर्गीय परिवार के लिए तो कम पैसे में जरूरतों को पूरा करते हुए घर चलाना एक बड़ी चुनौती होती है। यही वजह है कि किसी महीने अगर कुछ बड़ी और महंगी खरीदारी करनी होती है तो घर का बजट पटरी से उतर जाता है और पूरे महीने एडजेस्ट करके चलना पड़ता है। कोई बड़ी खरीदारी जरूरी भी हो और आप नहीं चाहतीं कि इसका घर खर्च पर ज्यादा असर पड़े या फिर भविष्य में इस सामान की वजह से आपको पछताना पड़े, तो अपनी जेब धीली करने से पहले अपने आप से ये 5 सवाल जरूर पूछें.

1.क्या ये मेरे बजट में है?
दरअसल कई बार आप लालच, शौक या किसी से भहकावे में आकर बड़ी खरीदारी कर लेती है जिसकी वजह से पूरे महीने आपको अपनी छोटी-छोटी जरूरतों का त्याग करना पड़ता है। बेहतर है कि ऐसी खरीदारी से पहले अच्छी प्लानिंग करें अगर सामान बजट में हो तभी खरीदें वरना दो-तीन महीने में पैसे इकट्ठे करके सामान खरीदें।

  1. क्या इस सामान की मुझे भविष्य में जरूरत पड़ेगी?
    एक बात हमेशा ध्यान रखें कि जो सामान आप खरीदने जा रही हैं वो ‘वन टाइम यूज’ न हो। अगर भविष्य में भी आपको उसकी जरूरत पड़ने वाली हो तभी खरीदने का फैसला करें क्योंकि एक-दो बार की जरूरत के लिए तो आप किसी से मांगकर भी सामान अरेंज कर सकती हैं।
  2. क्या ये चीज टिकाऊ हैं?
    किसी भी चीज की गुणवत्ता बहुत महत्व रखती है। सामान की गुणवत्ता को परखना भी एक कला है। कुछ लोग ज्यादे पैसे देकर भी अच्छी क्वालिटी के सामान नहीं खरीद पाते और ठगी का शिकार हो जाते हैं। ऐसे में अपने साथ उस सामान के जानकार को साथ ले जाएं या फिर खुद से समझदारी बरतें.
  3. क्या ये इसका वाजिफ मूल्य है?
    कई बार ऐसा होता है कि जो सामान आप खरीद कर लाते है वो दूसरी दुकान या वेबसाइट्स पर कम दाम में मिल रही होती है।ऐसे में कुछ भी बड़ा खरीदने से पहले आपको अच्छे से रिसर्च जरूर कर लेनी चाहिए। कई बार तो वेबसाइट्स पर मिल रहे डिस्काउंट्स ऑफरऔर कूपन से दाम पर काफी फर्क पड़ जाता है।
  4. इसकी रिटर्न पॉलिसी क्या है?
    सामान घर लेने जाने की जल्दबाजी में उसकी रिर्टन पॉलिसी के बारे में जानकारी लेना न भूलें। इतना ही नहीं सामान की गारंटी और वारंटी के बारे में भी ढंग से पूछताछ कर लेनी चाहिए ताकि अगर सामान वारंटी पीरियडके अंदर खराब होता हैं तो फ्री में उसकी सर्विसिंग या एक्सचेंज कर सकें। कई ऐसे दुकानदार होते हैं जो चीजे वापस नहीं करते इसलिए इस सब का जायजा खरीदारी के वक्त ही ले लें।

 

बॉलीवुड की स्टंट वुमेन गीता टंडन, जिसने नहीं मानी मुश्किलों से हार

मैं ऐश्वर्या राय (जज़्बा), करीना कपूर (उड़ता पंजाब, सिंघम रिटर्न्स), दीपिका पाडुकोण (चेन्नई एक्सप्रेस), परिणिती चोपड़ा (हंसी तो फंसी) जैसी हिरोईन की बॉडी-डबल बनी और खतरों के खिलाड़ी जैसे शो का हिस्सा भी…

मैं बहुत ग़रीब घर से हूं. बड़ी मुश्किल से आठवीं तक की पढ़ाई की थी और दुनिया की कोई समझ भी नहीं थी।

मैं नौ साल की थी जब मेरा मां गुज़र गईं. मेरे पिता पर मेरे साथ मेरी बड़ी बहन और दो छोटे भाइयों की ज़िम्मेदारी थी।

अक़्सर खाने को कुछ नहीं होता था. कई बार दो दिन तक लगातार भूखे रहना पड़ता था. ऐसे में क्या पढ़ाई होती?

बस मैं खेलती ख़ूब थी, वो भी लड़कों के साथ. लड़कों के खेल, जैसे गुल्ली डंडा और क्रिकेट. और ऐसा खेलती थी कि अपने से दो साल बड़े लड़कों को हरा देती थी। फिर 15 साल की उम्र में अचानक मेरे पिता ने मेरी शादी कर दी। मुझे भी लगा ठीक ही है, सर पर छत होगी, खाने को पूरा खाना और एक मां का प्यार पर असल में शादी एक सज़ा बनकर रह गई। प्यार की जगह बस बदसलूकी और मार-पीट मिली। दो बार पुलिस में शिकायत तक की पर कुछ हासिल नहीं हुआ। फिर 17 साल की उम्र में बेटी और दो साल बाद बेटा हुआ. लेकिन बच्चों के बाद भी माहौल नहीं बदला। आखिर मैंने तय किया कि मुझे ये ज़िंदगी नहीं जीनी और मैंने अपने बच्चों के साथ पति का घर छोड़ दिया। कभी बहन और कभी दोस्तों के घर में रही। कुछ दिन गुरुद्वारे में भी गुज़ारने पड़े। इसी दौरान पड़ोस की एक औरत ने मुझे एक फ़्लैट में रहने का मौका दिया, कहा कि ये खाली पड़ा है। पर अगले ही दिन असली बात बताई. बोलीं, इस फ़्लैट के मालिक की पत्नी बीमार रहती है और वो चाहता है कि मैं वहीं रहने लगूं, उसका ख़याल रखूं और बदले में वो मेरे बच्चों की पढ़ाई लिखाई का ख़र्च उठाएगा। मैं समझ गई कि वो आदमी मुझसे क्या चाहता है. मैंने फ़ौरन वो फ़्लैट छोड़ दिया। मैं वो औरत नहीं बनना चाहती थी जैसा समाज अक़्सर अकेली या तलाकशुदा औरतों के बारे में सोचता है। मुझे याद थे मेरे पति के ताने जब वो कहता था कि मैं घर छोड़कर ऐसा क्या कर पाउंगी? आखिर में क्या 50 रुपए के लिए मुझे किसी का बिस्तर गर्म करना होगा? मैं ऐसा नहीं कर सकती थी. पर सबसे बड़ी चुनौती काम ढूंढने की थी। बच्चों को अक़्सर पानी में चीनी घोल कर कहती थी कि ये दूध है। वो रोते-रोते पी लेते थे पर देखा नहीं जाता था। छोटा-मोटा हर काम ले लेती थी. एक जगह रोज़ाना 500 रोटियां बनाने के लिए महीने का 1,200 रुपया मिलता था, वो भी किया। फिर रहने का ठिकाना बदलते-बदलते एक नए इलाके में रहने लगी और औरतों के एक ग्रुप से वास्ता हुआ। वो बहुत तैयार होकर रोज़ कहीं काम करने जाती थी, मैंने उनसे पूछा तो पता चला कि एक मसाज पार्लर जाती हैं। मैं भी उनके साथ हो ली। सास के सर की मालिश खूब की थी मैंने. और बताया गया कि महीने के 10,000 रुपए तक मिलेंगे पर एक ही दिन में पता चल गया कि वहां भी मसाज की आड़ में दरअसल देह व्यापार होता है। मैं भाग खड़ी हुई। घर आकर बहुत रोई, ये सोच कर कि मैं ऐसा काम करने के कितने नज़दीक आकर दूसरी बार बाल-बाल बच गई.

ज़िंदगी के इन कड़वे अनुभवों ने समझदार बना दिया मुझे। अपने पिता की मदद से शादी के फंक्शन में नाचने का काम ढूंढा और धीरे-धीरे दो पैसे कमाने लगी। वहीं दोस्त बने और उन्होंने देखा कि मैं नाचने के लिए नहीं बल्कि खेल-कूद और जांबाज़ी के कारनामों के लिए बनी हूं। शादी के ही एक प्रोग्राम में एक औरत का नंबर मिला जो स्टंट्स करवाती हैं, और उन्हें दो महीने तक फोन कर काम मांगती रही। आखिरकार उन्होंने मुझे बिंदास चैनल के एक शो में एक किले से कूदने का स्टंट करने के लिए बुलाया। बस वहीं से मेरी ज़िंदगी पलट गई। उस दिन एक तार से बंधकर जब छलांग लगाई तो मन में चाहे जितना डर हो, चेहरे पर बहुत हौंसला था.

उसी के बल पर काम मिलता चला गया. भारत में स्टंट करनेवाली औरतें बहुत कम हैं इसलिए मेरे काम की मांग थी और ये काम ख़तरनाक होने के बावजूद मुझे पैसों की ज़रूरत थी। स्टंट के दौरान एक बार चेहरा जल गया, एक और बार रीढ़ की हड्डी फ्रैकचर हुई. पर तीन महीने के बाद मैं कमर पर बेल्ट लगाकर फिर से काम पर निकल पड़ी.

मुझे कार-चेज़ शूट करने में बहुत मज़ा आता है और मेरा सपना है कि मैं कोई हॉलीवुड-स्टाइल स्टंट करूं.। मैंने कोई ट्रेनिंग नहीं ली, बस भगवान से और बच्चों से हिम्मत मिली। आज मेरे बच्चे मुझे हीरो मानते हैं और मुझे इस बात का गुरूर है कि मैंने अकेले अपने दम पर अपने बच्चों को अच्छी परवरिश दी और अब उन्हें अंग्रेज़ी मीडियम के स्कूल में पढ़ा रही हूं।

(साभार – बीबीसी)