नयी दिल्ली । नीता की कहानी एक ऐसी साहसी महिला की है, जिन्होंने भाग्य के आगे हार मानने से इनकार कर दिया। उन्होंने अपनी तकदीर खुद लिखने का फैसला किया। 14 साल की उम्र में शादी, 15 साल की उम्र में मां, फिर 34 साल की उम्र में तलाक के बाद नीता आज 13 बसों वाली कंपनी ‘श्री नीता ट्रैवल्स’ की मालकिन हैं। उन्होंने समाज के तानों और मुश्किलों का सामना करते हुए यह मुकाम हासिल किया है। आइए, यहां नीता की सफलता के सफर के बारे में जानते हैं।अक्सर समाज में शादी को महिलाओं का अंतिम लक्ष्य माना जाता है। लेकिन, कई महिलाओं के लिए यह बंधन बन जाता है। वे चुपचाप दुख सहती हैं। हिंसा झेलती हैं। समाज के डर से दबी रहती हैं। दुख की बात है कि इस बंधन को तोड़ना आसान नहीं होता। सामाजिक बदनामी का डर, आर्थिक असुरक्षा और बच्चों के भविष्य की चिंता के कारण कई महिलाएं असफल और दर्दनाक रिश्तों में बंधी रहती हैं। हालांकि, कुछ महिलाएं हिम्मत जुटाती हैं। इन परिस्थितियों से बाहर निकलकर अपने लिए एक नया रास्ता बनाती हैं।
नीता की कहानी ऐसी ही एक महिला की है। वह महाराष्ट्र की रहने वाली हैं। उनकी शादी सिर्फ 14 साल की उम्र में हो गई थी। 15 साल की उम्र तक वह मां बन गई थीं। उनकी जिंदगी संघर्षों से भरी थी। अपने तीन बच्चों के लिए उन्होंने सालों तक एक हिंसक रिश्ता सहा। हर बार जब उनके पति ताना मारते थे तो नीता के अंदर एक आग जल उठती थी। यह आग उन्हें खुद को साबित करने की प्रेरणा देती थी। इसी प्रेरणा ने उन्हें अपना रास्ता चुनने के लिए प्रोत्साहित किया। नीता ने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी। उन्होंने अपने स्कूटर चलाने के कौशल को व्यवसाय में बदलने का फैसला किया। उन्होंने स्कूली बच्चों को लाना ले जाना शुरू कर दिया। हालांकि, सफलता की राह आसान नहीं थी। उद्योग में उनके पुरुष सहयोगियों ने उन्हें एक खतरे के रूप में देखा। उन्होंने उनके खिलाफ साजिश रची। पति को उनके खिलाफ उकसाया। जब पति ने कहा, ‘मैं तुम्हें जान से मार दूंगा’ तो नीता ने हिम्मत दिखाई और अपने तीन बच्चों के साथ उस जीवन से नाता तोड़ने का फैसला किया। तब उनकी उम्र 34 साल की थी। इसके बाद उन्होंने पढ़ाई भी शुरू कर दी। अपने बच्चों के साथ खुद को शिक्षित किया। आठ साल बाद नीता की मेहनत रंग लाई। आज वह ‘श्री नीता ट्रैवल्स’ के तहत 13 बसों की मालकिन हैं। उनकी बेटियां आत्मनिर्भर हो गई हैं। उनका बेटा कनाडा में एक सफल जीवन जी रहा है।
14 की उम्र में शादी, 34 में तलाक… आज 13 बसों की मालकिन
बिहार का एक अनोखा आरोग्य मंदिर, जो बन गया है अस्पताल
-विपिन कुमार पाठक ने की थी इस मंदिर की स्थापना
-वैदिक चिकित्सा से इलाज
मुजफ्फरपुर । बिहार के मुजफ्फरपुर में एक अनोखा मंदिर है, जो वैदिक चिकित्सा के लिए प्रसिद्ध है। इस मंदिर का नाम आरोग्य मंदिर है। यहां बिना दवा के, सिर्फ नस के एक पॉइंट को दबाकर असाध्य रोगों का इलाज किया जाता है। लोग यहां दमा, कब्जियत, मधुमेह और कई अन्य बीमारियों से छुटकारा पा रहे हैं। यह मंदिर देश ही नहीं, दुनिया भर में अपनी पहचान बना चुका है। इसकी स्थापना विपिन कुमार पाठक ने की थी। उनका लक्ष्य था लोगों को स्वस्थ करना। आरोग्य मंदिर, मुजफ्फरपुर के अखाड़ाघाट में स्थित है। यह गायत्री मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। अब यह वैदिक चिकित्सा के कारण आरोग्य मंदिर के नाम से मशहूर हो गया है। यहां उत्तर प्रदेश, झारखंड, मुंबई, और कई अन्य राज्यों से लोग इलाज कराने आते हैं। नेपाल, श्रीलंका, ऑस्ट्रेलिया और जापान से भी लोग यहां गंभीर बीमारियों से मुक्ति पाने के लिए आते हैं। इस केंद्र में मरीजों को बिना दवा के बीमारियों से छुटकारा मिलता है। आरोग्य मंदिर में कई बीमारियों का इलाज किया जाता है। इनमें दमा, कब्जियत, मधुमेह, कोलाइटिस, अल्सर, अम्ल पित्त, ब्लड प्रेशर, अर्थराइटिस, एग्जिमा, थायराइड, मोटापा और एलर्जी जैसी बीमारियां शामिल हैं। तनाव, अनिद्रा, उच्च रक्तचाप, घबराहट, जोड़ों के दर्द और चर्म रोगों के इलाज में भी यहां सफलता मिलती है। यहां का प्राकृतिक वातावरण लोगों को रोगों से मुक्ति दिलाता है। इससे लोग बहुत खुश होते हैं और मंदिर की प्रशंसा करते हैं।
आरोग्य मंदिर की स्थापना विपिन कुमार पाठक ने की थी। उन्होंने बताया कि बचपन में उनके छोटे भाई और दादी की असाध्य रोग से मृत्यु हो गई थी। इसके बाद उन्होंने लोगों को स्वस्थ करने का संकल्प लिया। उन्होंने मेडिकल की तैयारी शुरू की, लेकिन आर्थिक समस्या के कारण एमबीबीएस में दाखिला नहीं ले पाए। विपिन पाठक ने कहा कि अंग्रेजी इलाज सिर्फ महंगा नहीं होता उसकी पढ़ाई भी काफी महंगी होती है जो एक आम इंसान की पहुंच से बाहर है। फिर उन्होंने महाराष्ट्र से न्यूरोथैरेपी की ट्रेनिंग ली। इसके बाद वे अपने घर में ही लोगों का इलाज करने लगे। शुरू में लोग उनका मजाक उड़ाते थे। लोगों को लगता था कि बिना दवा के सिर्फ हाथों से कोई ठीक नहीं हो सकता। लेकिन जब बीमार लोगों में सुधार होने लगा, तो आसपास के जिलों से भी लोग आने लगे। अब तो दूर-दूर से लोग यहां आते हैं। विपिन पाठक कहते हैं कि वैदिक चिकित्सा एक प्राचीन और पारंपरिक उपचार पद्धति है। इसमें शरीर, मन और आत्मा के संतुलन पर ध्यान दिया जाता है। यह प्राकृतिक और सुरक्षित उपचार पद्धति है। यह शरीर की प्राकृतिक उपचार क्षमता को बढ़ावा देती है। इससे विभिन्न प्रकार के रोगों के इलाज में रोगियों को लाभ मिलता है। विपिन पाठक के अनुसार, वैदिक चिकित्सा में शरीर को स्वस्थ रखने के लिए प्राकृतिक तरीकों का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें दवाइयों का उपयोग नहीं होता। बल्कि, शरीर की ऊर्जा को संतुलित करके रोगों को ठीक किया जाता है।
लागू हो गया नया वक्फ कानून, केंद्र ने जारी की अधिसूचना
नयी दिल्ली । वक्फ संशोधन अधिनियम पूरे देश में 8 अप्रैल से लागू हो गया है। केंद्रीय गृह मंत्रालय की ओर से इसकी अधिसूचना जारी कर दी गई है। इस अधिनियम को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई से पहले केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दाखिल किया है। इसमें कोर्ट से अनुरोध किया गया है कि कोई भी आदेश पारित करने से पहले केंद्र सरकार को भी सुना जाए। भारत सरकार के कानूनी दस्तावेजों में से एक, भारत का राजपत्र है। इसमें सरकार के सभी आदेश और सूचनाएं प्रकाशित होती हैं।केंद्र सरकार की ओर से जारी अधिसूचना में कहा गया है, ‘केंद्र सरकार, वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 (2025 का 14) की उप-धारा (2) की धारा 1 द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते हुए, 8 अप्रैल, 2025 को वह तारीख नियुक्त करती है जिस दिन उक्त अधिनियम के प्रावधान लागू होंगे।’केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक कैविएट दाखिल किया है। कैविएट एक तरह की अर्जी होती है। इसे कोई भी पक्ष हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट में दाखिल कर सकता है। इसका मकसद यह सुनिश्चित करना होता है कि कोई भी आदेश बिना उसे सुने पारित न किया जाए। केंद्र सरकार ने यह कैविएट वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं के खिलाफ दाखिल किया है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने 5 अप्रैल को वक्फ (संशोधन) विधेयक, 2025 को मंजूरी दी थी। इस विधेयक को संसद के दोनों सदनों में बहस के बाद पारित किया गया था। राज्यसभा में 128 सदस्यों ने वक्फ विधेयक के पक्ष में और 95 सदस्यों ने विरोध में वोट दिया। वहीं लोकसभा में 288 सदस्यों ने इसे समर्थन दिया जबकि 232 ने विरोध में मतदान किया।
नहीं रहे ‘राई’ के राजा रामसहाय पांडे
-कमर में मृदंग, पैरों में घुंघरू बांध जापान-फ्रांस तक को नचाया
सागर। बुंदेलखंड के प्रसिद्ध राई नर्तक रामसहाय पांडे का 97 वर्ष की आयु में निधन हो गया। उन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया था। उन्होंने राई नृत्य को 24 देशों में पहचान दिलाई। उनका निधन सागर के एक निजी अस्पताल में हुआ। वे लंबे समय से बीमार थे। उनके निधन पर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने दुख जताया है। रामसहाय पांडे ने 12 साल की उम्र से ही राई नृत्य करना शुरू कर दिया था। उन्होंने इस नृत्य को दुनिया भर में पहचान दिलाई। उन्होंने 24 देशों में अपनी कला का प्रदर्शन किया। भारत सरकार ने उन्हें 2022 में पद्मश्री से सम्मानित किया था। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके निधन पर दुख जताते हुए कहा कि यह मध्य प्रदेश के लिए एक बड़ी क्षति है। रामसहाय पांडे ने 12 साल की छोटी उम्र से ही राई नृत्य करना शुरू कर दिया था। बुंदेलखंड को पिछड़ा इलाका माना जाता था। इसलिए शुरुआत में इस नृत्य को ज्यादा पहचान नहीं मिली लेकिन रामसहाय पांडे ने हार नहीं मानी। उन्होंने अपनी मेहनत से राई नृत्य को पूरी दुनिया में पहुंचाया। उनका जन्म 11 मार्च 1933 को सागर जिले के मड़धार पठा गांव में हुआ था। बाद में वे कनेरादेव गांव में बस गए। यहीं से उन्होंने राई नृत्य की शुरुआत की। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने उनके निधन पर शोक व्यक्त करते हुए लिखा, ‘बुंदेलखंड के गौरव, लोकनृत्य राई को वैश्विक पहचान दिलाने वाले लोक कलाकार पद्मश्री श्री रामसहाय पांडे जी का निधन मध्यप्रदेश और कला जगत के लिए अपूरणीय क्षति है। लोक कला एवं संस्कृति को समर्पित आपका सम्पूर्ण जीवन हमें सदैव प्रेरित करता रहेगा। परमपिता परमेश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत की पुण्यात्मा को अपने श्रीचरणों में स्थान और परिजनों को यह गहन दुःख सहन करने की शक्ति दें।’ रामसहाय पांडे कद में छोटे थे, लेकिन राई नृत्य में उनका कोई मुकाबला नहीं था। जब वे कमर में मृदंग बांधकर नाचते थे, तो लोग हैरान रह जाते थे। उन्होंने जापान, हंगरी, फ्रांस, मॉरिसस जैसे कई बड़े देशों में राई नृत्य का प्रदर्शन किया। रामसहाय पांडे ब्राह्मण परिवार से थे। उनके परिवार में राई नृत्य को अच्छा नहीं माना जाता था। क्योंकि इसमें महिलाओं के साथ नाचना होता है। जब रामसहाय पांडे ने राई नृत्य किया, तो उन्हें समाज से बाहर कर दिया गया था। लेकिन जब उन्होंने इस लोकनृत्य को गांव से निकालकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचाया, तो सभी ने उन्हें अपना लिया। सरकार ने भी उनकी कला को सराहा और उन्हें मध्य प्रदेश लोककला विभाग में जगह दी।रामसहाय पांडे जब 6 साल के थे, तभी उनके पिता का निधन हो गया था। उनकी मां अपने बच्चों को लेकर कनेरादेव गांव आ गईं। 6 साल बाद उनकी मां भी चल बसीं। उनका बचपन बहुत मुश्किलों में बीता था। राई नृत्य बुंदेलखंड का सबसे प्रसिद्ध नृत्य है। यह साल भर हर बड़े आयोजन में होता है। इसमें पुरुष और महिलाएं दोनों नाचते हैं। राई नृत्य करने वाली महिलाओं को बेड़नियां और पुरुषों को मृदंगधारी कहते हैं। महिलाएं पैरों में घुंघरू बांधकर और सज-धज कर मृदंग की थाप पर नाचती हैं। इस दौरान पुरुष और महिलाएं देशी स्वांग भी गाते हैं। बुंदेलखंड में शादी और बच्चों के जन्म पर राई नृत्य सबसे ज्यादा होता है।
पत्नी के गहने बेचकर बनाया था चलता-फिरता बिस्तर, सीज हो गयी
-सोशल मीडिया पर नवाब का वीडियो हुआ वायरल
-डेढ़ साल का लगा समय और सवा लाख किए खर्च
मुर्शिदाबाद । मुर्शिदाबाद में एक 27 साल के युवक ने कमाल कर दिया। नवाब शेख नाम के इस युवक ने एक चलता-फिरता बिस्तर बनाया है। यह बिस्तर गाड़ी की तरह चलता है। लेकिन, नवाब की खुशी ज्यादा दिन नहीं टिक पाई। डोमकल पुलिस ने उनकी गाड़ी को जब्त कर लिया है। पुलिस का कहना है कि नवाब ने मोटर व्हिकल्स एक्ट के नियमों का उल्लंघन किया है। अब नवाब पुलिसवालों के सामने गिड़गिड़ा रहे हैं क्योंकि उन्होंने अपना यह बेड ऑन व्हील अपनी पत्नी के गहने बेचकर बनवाया था। नवाब शेख पेशे से पूल कार ड्राइवर हैं। उन्होंने एक ऐसा बिस्तर बनाया है जो गाड़ी की तरह चल सकता है। इस अनोखे बिस्तर में 5×7 फीट का गद्दा, तकिए और चादरें हैं। बिस्तर के पास ही ड्राइवर के बैठने की जगह है। यहां स्टीयरिंग व्हील, रियर-व्यू मिरर और ब्रेक भी लगे हैं। यह ‘बिस्तर गाड़ी’ रानीनगर और डोमकल के बीच चल रही थी। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा हो गई। इससे ट्रैफिक जाम होने लगा। नवाब के फेसबुक पेज पर इस गाड़ी के वीडियो को 2.4 करोड़ से ज्यादा बार देखा गया। बांग्लादेश के एक चैनल पर इसे 20 करोड़ बार देखा गया। नवाब ने बताया कि इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में उन्हें 1.5 साल से ज्यादा का समय लगा। उन्होंने कहा कि मेरा बस एक सपना था कि मैं वायरल हो जाऊं। उन्होंने आगे कहा कि इस प्रोजेक्ट पर उन्होंने लगभग 2.15 लाख रुपये खर्च किए। एक स्थानीय वर्कशॉप से इंजन, स्टीयरिंग, फ्यूल टैंक और एक छोटी कार का बॉडी खरीदा। उन्होंने एक बढ़ई को लकड़ी का बिस्तर बनाने के लिए भी बुलाया था। नवाब महीने में सिर्फ 9,000 रुपये कमाते हैं। फिर भी उन्होंने अपनी पत्नी के गहने बेचकर इस प्रोजेक्ट के लिए पैसे जुटाए। ईद से एक हफ्ते पहले बिस्तर गाड़ी बनकर तैयार हो गई थी। नवाब ने ईद के दिन इसे पहली बार चलाया। पुलिस ने उनसे व्यस्त राजमार्ग पर गाड़ी चलाने से मना किया था, लेकिन उन्होंने पुलिस की बात नहीं मानी।
श्रीरामनवमी विशेष : देश का एक ऐसा बैंक, जहां राम नाम पर मिलता है ऋण
वाराणसी। शिव नगरी काशी का राम रमापति बैंक बताता है कि राम नाम से बड़ा धन कुछ नहीं है, तभी तो यहां पर लोन लेने के लिए अनगिनत लोग आते हैं और कहते हैं ‘पायो जी मैंने राम रतन धन पायो…’। 6 अप्रैल को रामनवमी है, इस अवसर पर आइए जानते हैं विश्वनाथ मंदिर के ठीक पीछे स्थित रामलला के राम बैंक से श्रद्धालु कैसे लोन लेते हैं, इसके क्या-क्या नियम हैं?
मोक्षनगरी स्थित राम बैंक में लाल रंग की पोटलियों में राम नाम भर-भरकर रखा है, जिसका पैसों से कोई लेना-देना नहीं है, यहां चलता है तो बस राम का नाम। जमा होता है पुण्य और लोन के रूप में मिलता है राम का नाम। हालांकि, लोन लेने और उसे चुकाने के भी सख्त नियम हैं। इनकी संख्या अरबों से ऊपर हो गई है। इस बैंक में बाकायदा कर्मचारी भी नियुक्त हैं, जो प्रक्रियाओं को पूरा करते हैं। लोन लेने के लिए फॉर्म भरा जाता है, जिसमें पूरे नियम लिखे गए हैं।
क्या आप राम बैंक की अनूठी अवधारणा से प्रभावित हैं? –राम रमापति बैंक के मैनेजर सुमित मेहरोत्रा ने राम बैंक की स्थापना से जुड़े किस्से को बयां किया। उन्होंने बताया कि राम बैंक की स्थापना हमारे परदादा छन्नू लाल जी ने की थी। वह साधु-संतों के साथ रहते थे और पूजा-पाठ में लगे रहते थे। उनकी मुलाकात हिमालय के एक बाबा से हुई थी और उन्होंने उनसे कहा था कि तुम्हारे हाथों जगत का कल्याण लिखा है। इसे प्रचार की जरूरत नहीं है। भक्त ही इसका प्रचार करेंगे। इस बैंक की स्थापना 90 साल पहले हुई थी। उन्होंने बताया कि राम रमापति बैंक में लोन कैसे मिलता है और इसके कायदे-कानून क्या हैं, इस पर भी रोशनी डाली। उन्होंने बताया कि राम रमापति बैंक से आप राम के नाम का कर्ज लेते हैं, तो कुछ नियमों का सख्ती के साथ पालन करना पड़ता है। यह लोन वास्तव में धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष चारों को साधने के लिए लिया जाता है। आपको एक बार में सवा लाख राम नाम का कर्ज दिया जाएगा, जब आपने अपने आपको रामलला के शरणागत मान लिया है और रामलला के आगे आकर आपने अपनी विशेष मनोकामना की पूर्ति के लिए राम नाम का अनुष्ठान किया है और यहां के बताए हुए नियमों को मंजूरी दी कि मैं इतने नियमों का पालन करूंगा।
इस पर उन्होंने बताया, लोन लेने से प्रतिदिन सुबह स्वच्छ होकर कम से कम पांच सौ राम नाम लिखना होगा। इसके साथ ही खान-पान के नियम का भी पालन करना होगा। आपको शुद्ध शाकाहारी भोजन करना होगा, जिसमें प्याज, लहसुन भी न हो और मांस, मछली, मदिरा, अंडे वगैरह कुछ भी न हो। उन्होंने आगे बताया कि यदि आप इन नियमों से सहमति जताते हैं, तो आपसे एक प्रार्थना पत्र भरवाया जाता है, जिसमें आपका नाम, पता, उम्र, समेत अन्य विवरण होते हैं। साथ ही एक कॉलम मनोरथ की भी होती है, जिसमें आपको बताना होता है कि आप किस मनोरथ के लिए लोन ले रहे हैं। सुमित मेहरोत्रा ने बताया कि राम नाम लिखने के लिए बैंक की ओर से कागज, कलम, स्याही फ्री में मिलती है। राम बैंक में लोन लेने के लिए केवल बनारस, देश से ही नहीं,बल्कि विदेश से भी लोग यहां आते हैं। श्रद्धा, भक्ति, विश्वास के साथ भगवान से अपनी प्रार्थना करते हैं और वह पूर्ण भी होती है। रामनवमी के अवसर पर राम लला के दर्शन के लिए लाखों की संख्या में लोग यहां आते हैं और फेरी लेते हैं, पूजा करते हैं। रामलला को मक्खन-मिश्री भोग लगाई जाती है और खिलौना भी चढ़ाया जाता है। रामलला के दर्शन के लिए श्रद्धालु रीता त्रिपाठी हमेशा पहुंचती रहती हैं। उन्होंने बताया कि मेरा पूरा बचपन भगवान के प्रांगण में ही गुजरा है। दरअसल, मेरे पिता जी दामोदर दास ओझा राम रमापति बैंक में मैनेजर और पुजारी थे और वह कार्यभार संभालते थे। भगवान के दर्शन करने और सच्चे मन से मनोकामना मांगने से वह जरूर पूरा होता है। राम बैंक विश्वनाथ मंदिर के ठीक पीछे त्रिपुरा भैरवी गली में स्थित है। यहां वाराणसी कैंट रेलवे स्टेशन से सीधे जाया जा सकता है। गोदौलिया से राम बैंक लगभग 300 मीटर दूर है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
रामनवमी से पहले अयोध्या में भगवान रामलला के ललाट पर हुआ ‘सूर्य तिलक’
90 सेकंड तक चला सफल ट्रायल
अयोध्या । राम नवमी 2025 की तैयारियां अयोध्या में जोर-शोर से चल रही हैं। पूरी अयोध्या को भव्यता से सजाया गया है। राम मंदिर में सुरक्षा के सभी इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं। इस बीच, राम नवमी के पूर्व भगवान राम लला के ललाट पर भगवान सूर्य ने तिलक किया। सूर्य तिलक का ट्रायल शनिवार ठीक दोपहर 12:00 बजे किया गया और यह 90 सेकंड तक चला। इस ट्रायल में आईआईटी रुड़की और आईआईटी चेन्नई के एक्सपर्ट मौजूद रहे। अब 6 अप्रैल 2025 को राम नवमी के दिन ठीक 12:00 बजे भगवान सूर्य फिर से राम लला के ललाट पर तिलक करेंगे और यह ट्रायल सफल रहा है।
अयोध्या के रेंजआईजी, प्रवीण कुमार ने कहा कि राम नवमी पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु अयोध्या आते हैं। सुरक्षा, स्वास्थ्य और अन्य सुविधाएं पूरी की गई हैं। सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए ड्रोन और सीसीटीवी कैमरों का इस्तेमाल किया जाएगा। साथ ही यातायात प्रबंधन भी किया गया है। बयान के अनुसार, राम कथा पार्क के पास आयोजित इन कार्यक्रमों में देश के प्रसिद्ध कलाकारों को आमंत्रित किया गया है। जिलाधिकारी चंद्र विजय सिंह ने कहा कि राम नवमी के दिन श्रद्धालुओं पर सरयू नदी के पवित्र जल की फुहार डाली जाएगी, जिसके लिए ड्रोन का उपयोग किया जाएगा।
जिलाधिकारी ने कहा कि इस पहल से न केवल धार्मिक भावनाओं का सम्मान होगा, बल्कि परंपरा और तकनीक का अद्भुत संगम भी देखने को मिलेगा। इस वर्ष राम नवमी के अवसर पर अयोध्या में दो लाख से अधिक दीप जलाए जाएंगे जो राम कथा पार्क के सामने, पक्का घाट और राम की पैड़ी पर प्रकाशमान होंगे।
सोते समय पैरों में होता है दर्द, इन घरेलू उपायों से पाएं आराम
अपनी व्यस्त दिनचर्या के चलते कई बार लोगों को शारीरिक और मानसिक परेशानियों का सामना करना पड़ता है। व्यस्तता के चलते आम तौर पर लोग अपने शरीर पर ध्यान नहीं दे पाते हैं, जिसके चलते उन्हें कई बीमारियों का सामना करना पड़ता है। इन्हीं में एक है रात को सोते समय पैरों में दर्द होना जिससे कई लोग परेशान रहते हैं। यह दर्द कई बार ऐंठन के चलते, मांस-पेशियों में अकड़ के कारण, मांस-पेशियों के एक के ऊपर एक चढ़ जाने के कारण, पोषण की कमी के कारण, शरीर में पानी की कमी के चलते या लंबे वक्त तक एक ही अवस्था में रहने की वजह से भी हो सकता है। इससे निजात पाने के लिए लोग पेन किलर का सहारा लेते हैं, जो सेहत को नुकसान पहुंचाने का काम करती हैं।
आज हम अपने खास खबर डॉट कॉम के पाठकों को कुछ ऐसे घरेलू उपायों के बारे में बताने जा रहे हैं, जिनकी मदद से रात को सोते समय पैरों में होने वाले दर्द से छुटकारा मिलता है।
सरसों का तेल – पैरों में आई सूजन और दर्द से राहत पाने का सबसे आसान उपाए है पैरों की मालिश। आप अपने पैरों की मालिश सरसों के तेल से करें। सरसों के तेल में ऐसे गुण होते हैं जो दर्द से राहत देते हैं। मालिश करने से पैरों के मसल्स की जकड़न कम होती है साथ ही दर्द में भी आराम मिलता है।
ग्रीन टी – ग्रीन टी का सेवन करने से नसों में होने वाले दर्द में भी राहत मिल सकती है। ये तंत्रिका तंत्र (नर्वस सिस्टम) के स्वास्थ्य को बढ़ावा देती है। इसमें एल-थीनिन होता है, जो मस्तिष्क के स्वास्थ्य के लिए काफी लाभकारी होती है। रोजाना दो से तीन कप ग्रीन टी आपको हाथ-पैरों और नसों में होने वाले दर्द से राहत दे सकती है।
बर्फ से सिकाई – अगर बहुत अधिक दौड़-भाग करने से आपकी टांगों में दर्द है तो ठंडी पट्टी का इस्तेमाल करना आपके लिए फायदेमंद होगा। ऐसा करने से दर्द तो कम होगा ही, साथ ही अगर सूजन और झनझनाहट है तो उसमें भी फायदा मिलेगा। इसके लिए आप एक पतले कपड़े में बर्फ के कुछ टुकड़ों को डालकर प्रभावित जगह पर 10 से 15 मिनट तक सिकाई करें। दिन में दो से तीन बार ऐसा करना जल्दी फायदा पहुंचाएगा।
मेथी दाना – मेथी दाना पैरों के दर्द में आपको राहत पहुंचा सकता है। मेथी दाना में एंटीऑक्सीडेंट और एंटी-इंफ्लेमेटरी प्रॉपर्टीज होती है, जो दर्द से राहत देने का काम करती है। आप एक बड़ा चम्मच मेथी दाने को दो गिलास पानी में डालकर रात भर के लिए भिगो कर छोड़ दें और सुबह इस पानी को खाली पेट पिएं। इस पानी को प्रतिदिन पीने से आपको पैरों के दर्द में राहत मिलेगी।
एप्पल सीडर विनेगर – जिन लोगों के पैरों में ज्यादा दर्द बना रहता है उनको एप्पल सीडर विनेगर का इस्तेमाल करना चाहिए। यह आपको आपके दर्द से छुटकारा दिला सकता है। इसमें ऐसे तत्व मौजूद होते हैं जो पैरों में आई सूजन और दर्द में राहत पहुंचाने का काम करते हैं। एक कप में 2 चम्मच एप्पल सीडर विनेगर और आधा चम्मच शहद डालकर रोज खाली पेट इसको लें।
गर्मियों में नहीं फटेगा दूध इस तरह
गर्मियों में दूध को फटने से बचाने के लिए कुछ आसान तरीके हैं। सबसे पहले, दूध को हमेशा ठंडे स्थान पर रखें और इसे धूप से दूर रखें। यदि आप दूध को बाहर ले जा रहे हैं, तो इसे एक थर्मस या कूलर में रखें। इसके अलावा दूध को उबालने से पहले इसे अच्छी तरह से हिलाएं और फिर इसे धीमी आंच पर उबालें। इससे दूध के फटने की संभावना कम होती है। आप दूध में थोड़ा सा नमक या चीनी भी मिला सकते हैं, जिससे दूध को फटने से बचाया जा सकता है। इसके अलावा, दूध को स्टोर करने के लिए एक साफ और सूखे बर्तन का उपयोग करें और इसे हमेशा ढक कर रखें। इससे दूध को फटने से बचाया जा सकता है और इसका स्वाद और क्वालिटी बनी रहती है।
दूध को ठंडे स्थान पर रखना
गर्मियों में दूध को फटने से बचाने के लिए, इसे ठंडे स्थान पर रखना बहुत जरूरी है। दूध को हमेशा फ्रिज में रखें और इसे धूप से दूर रखें। यदि आप दूध को बाहर ले जा रहे हैं, तो इसे एक थर्मस या कूलर में रखें। इससे दूध का तापमान नियंत्रित रहता है और इसके फटने की संभावना कम होती है।
दूध को उबालने से पहले हिलाना
दूध को उबालने से पहले इसे अच्छी तरह से हिलाना बहुत जरूरी है। इससे दूध के कण एक समान रूप से फैल जाते हैं और इसके फटने की संभावना कम होती है। दूध को उबालने से पहले इसे कम से कम 2-3 बार हिलाएं। इससे दूध का स्वाद और गुणवत्ता बनी रहती है।
दूध को धीमी आंच पर उबालना
दूध को धीमी आंच पर उबालना बहुत जरूरी है। इससे दूध का तापमान धीरे-धीरे बढ़ता है और इसके फटने की संभावना कम होती है। दूध को उबालने के लिए मध्यम आंच का उपयोग करें और इसे लगातार हिलाते रहें। इससे दूध का स्वाद और गुणवत्ता बनी रहती है।
दूध में नमक या चीनी मिलाना
दूध में नमक या चीनी मिलाना एक अच्छा विकल्प हो सकता है। इससे दूध का स्वाद बढ़ता है और इसके फटने की संभावना कम होती है। दूध में थोड़ा सा नमक या चीनी मिलाएं और इसे अच्छी तरह से हिलाएं। इससे दूध का स्वाद और गुणवत्ता बनी रहती है।
दूध को साफ और सूखे बर्तन में स्टोर करना
दूध को साफ और सूखे बर्तन में स्टोर करना बहुत जरूरी है। इससे दूध का स्वाद और गुणवत्ता बनी रहती है और इसके फटने की संभावना कम होती है। दूध को स्टोर करने के लिए एक साफ और सूखे बर्तन का उपयोग करें और इसे हमेशा ढक कर रखें। इससे दूध का स्वाद और गुणवत्ता बनी रहती है।
अपने प्रति टॉक्सिक न बनें जनाब
दिल तोड़ने को सारा जहां बेकरार है कम से कम हम तो दिल का ख्याल करें
यह सच है कि हर किसी में कुछ विषैले गुण होते हैं। कभी-कभी, किसी न किसी समय, हमने महसूस किए बिना अपने इन गुणों का उपयोग किया है, या तो दूसरों को चोट पहुंचाने के लिए या खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए।
क्या आपको कभी इस बात से दुख हुआ है कि कोई आपके प्रति टॉक्सिक था? जब दूसरे हमारे साथ बुरा व्यवहार करते हैं, तो अनुचित महसूस स्वाभाविक है। लेकिन क्या कभी रुककर आपने ये सोचा है कि आप कितनी बार खुद के प्रति टॉक्सिक थे? कभी-कभी, हम दूसरों को उनके कार्यों के लिए दोषी ठहराने में जल्दबाजी करते हैं और अपने भीतर देखना भूल जाते हैं। यह सच है कि हर किसी में कुछ विषैले गुण होते हैं। कभी-कभी, किसी न किसी समय, हमने महसूस किए बिना अपने इन गुणों का उपयोग किया है, या तो दूसरों को चोट पहुंचाने के लिए या खुद को नुकसान पहुंचाने के लिए। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपका विषैला व्यवहार हर समय होता है या कभी-कभार। जो मायने रखता है, वह है इसे पहचानने में सक्षम होना। क्या आप अपने आप को नुकसान पहुँचा रहे हैं? यहां कुछ संकेत हैं जो आपको सोचने पर मजबूर कर देंगे
नकारात्मक आत्म-चर्चा- यह तब होता है जब आप अपने मन में खुद से निर्दयी या आलोचनात्मक बातें कहते हैं। उदाहरण के लिए, यह सोचना कि, “मैं पर्याप्त अच्छा नहीं हूं” या “मैं हमेशा गड़बड़ करता हूं।” ये विचार आपके आत्मविश्वास को कम कर सकते हैं और आपको अपने बारे में बुरा महसूस करा सकते हैं, भले ही वे सच न हों।
खुद की देखभाल की उपेक्षा करना- यह तब होता है जब आप अपनी बुनियादी ज़रूरतों का ध्यान नहीं रखते हैं, जैसे कि स्वस्थ भोजन खाना, पर्याप्त नींद लेना, या उन चीज़ों को करने में समय बिताना जो आपको पसंद हैं। जब आप खुद की देखभाल की उपेक्षा करते हैं, तो आपका शरीर और मन तनावग्रस्त, थका हुआ और दुखी महसूस कर सकता है।
पूर्णतावाद- पूर्णतावाद का अर्थ है हमेशा हर काम को पूरी तरह से करने की कोशिश करना, भले ही यह संभव न हो। आप अपने लिए अवास्तविक रूप से उच्च मानक निर्धारित कर सकते हैं और जब आप उन्हें पूरा नहीं कर पाते हैं तो परेशान महसूस करते हैं। इससे तनाव हो सकता है और अपनी उपलब्धियों का आनंद लेना मुश्किल हो सकता है।
असफलता का डर –असफलता का डर तब होता है जब आप गलतियां करने या सफल न होने से इतना डरते हैं कि आप नई चीज़ें आज़माने या जोखिम लेने से बचते हैं। यह डर आपको बढ़ने, सीखने या अपने लक्ष्यों तक पहुंचने से रोक सकता है क्योंकि आप इस बात को लेकर बहुत चिंतित रहते हैं कि क्या गलत हो सकता है।
खुद को अलग-थलग करना -इसका मतलब है कि जब आप उदास या तनावग्रस्त महसूस करते हैं तो दोस्तों, परिवार या दूसरों से दूर हो जाना। हालांकि कुछ समय अकेले रहना ठीक है, लेकिन खुद को बहुत ज़्यादा अलग-थलग करने से आप अकेलापन महसूस कर सकते हैं और उन लोगों से दूर हो सकते हैं जो आपकी परवाह करते हैं।
खुद को नुकसान पहुंचाना –खुद को नुकसान पहुंचाना तब होता है जब आप ऐसी चीज़ें करते हैं जो आपकी सफलता या खुशी के रास्ते में आती हैं, भले ही आपको इसका एहसास न हो। उदाहरण के लिए, टाल-मटोल करना, बहुत जल्दी हार मान लेना या खुद पर संदेह करना आपको अपनी पूरी क्षमता तक पहुंचने से रोक सकता है।
जब आप इन व्यवहारों को नोटिस करते हैं, तो आप उन्हें बदलने के लिए कदम उठा सकते हैं। यह आत्म-जागरूकता बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह आपकी खुशी, रिश्तों और सफलता को प्रभावित करती है। खुद और दूसरों के प्रति दयालु होना सीखकर, आप सकारात्मकता, विकास और शांति से भरा जीवन बना सकते हैं।
(साभार – प्रभासाक्षी)