Sunday, August 3, 2025
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आईसीएआई के ईस्टर्न इंडिया रीजनल काउंसिल पहला कार्बन न्यूट्रल सम्मेलन सम्पन्न

कोलकाता । आईसीएआई के ईस्टर्न इंडिया रिजनल काउंसिल (ईआईआरसी) की ओर से कोलकाता के विश्व बांग्ला कन्वेंशन सेंटर में दो दिवसीय (23 और 24 दिसंबर, 2022) 47वें क्षेत्रीय सम्मेलन का आयोजन किया गया है। जिसका विषय था “उत्तिष्ठत जाग्रत – अपने भीतर के परिवर्तन को जागृत करना” इस सम्मेलन में संस्था के देशभर से 2500 से अधिक सदस्यों के साथ फाइनेंस प्रोफेशनल्स के अलावा अन्य लोगों ने भाग लिया।

आईसीएआई और ईआईआरसी द्वारा आयोजित 47वें क्षेत्रीय सम्मेलन का उद्घाटन आईसीएआई के माननीय अध्यक्ष सीए (डॉ.) देबाशीष मित्रा ने किया। इस मौके पर सीए रंजीत कुमार अग्रवाल (परिषद के सदस्य), आईसीएआई और ईआईआरसी के अध्यक्ष सीए रवि कुमार पटवा के अलावा समाज के कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्ति भी मौजूद थे।

मौके पर सीए (डॉ.) देवाशीष मित्रा (माननीय अध्यक्ष, आईसीएआई) ने अपने संबोधन में, वैश्विक प्रौद्योगिकी के विकास और स्थिरता पर जोर दिया। उन्होंने सम्मेलन के कार्बन तटस्थता पहलू की प्रशंसा की, जिससे सामाजिक और सामुदायिक लाभ मिलेगा। जी20 शिखर सम्मेलन 2023 पर बात करते हुए उन्होंने “एक पृथ्वी एक परिवार एक भविष्य” के आदर्श वाक्य को दोहराया और भारत के नेतृत्व और इस नेक काम के लिए संस्थान के प्रयासों की विस्तृत जानकारी दी। उन्होंने यह भी कहा कि आईसीएआई भविष्य की युवा पीढ़ी के लिए अपने अधिकारों का उपयोग राष्ट्र की सेवा करने और समाज की भलाई के लिए करता आया है।

सम्मेलन का विषय “उत्तिष्ठत जाग्रत – भीतर के परिवर्तन को जागृत करना” था। इसमें चर्चा हुई कि चार्टर्ड अकाउंटेंसी का यह क्षेत्र प्रौद्योगिकी पर अधिक जोर देने के साथ बड़े पैमाने पर बदलाव के दौर से गुजर रहा है। इन परिवर्तनों के अनुकूल होने और दुनिया भर के व्यवसायों के लिए विश्वसनीय सलाहकारों के रूप में अपनी मौजूदगी बनाए रखने के लिए दुनिया भर में व्यवसायों और ग्राहकों की जरूरतों को पूरा करने के लिए यह पेशा लगातार विकसित हो रहा है। जैसे-जैसे विश्व की अर्थव्यवस्था तेजी से जटिल होती जा रही है, व्यवसाय और संगठन उन्हें वित्तीय सलाह और मार्गदर्शन प्रदान करने के लिए तेजी से सीए पर भरोसा कर रहे हैं। इसके कारण चार्टर्ड एकाउंटेंट्स अब विश्व स्तर पर हो रहे बदलाव के बारे में जागरूक होना होगा और बदलते परिवेश के लिए खुद को और भी सुसज्जित करना होगा।

पंकज त्रिपाठी अगली फिल्म में बनेंगे अटल बिहारी वाजपेयी

भारतीय जनता पार्टी के ओजस्वी नेता और देश के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी के 98वें जन्मदिन पर देश विदेश में मनाया गया । इसी मौके पर उनकी जीवनी पर बनने जा रही फिल्म ‘मैं अटल हूं’ की पहली झलक जारी कर दी गई है। इस फिल्म में अटल बिहारी वाजपेयी का किरदार निभाने का मौका अभिनेता पंकज त्रिपाठी को मिला है और पंकज ने इस पहली झलक में अटल का जो रूप धरा है, उसे देखकर सभी हतप्रभ हैं। फिल्म ‘मैं अटल हूं’ की इस तस्वीर में पंकज त्रिपाठी कवि अटल बिहारी वाजपेयी जैसी भंगिमा में दिखते हैं। इस रूप को धरने के लिए पंकज ने कई घंटे तक गहन साधना सा धैर्य मेकअप के दौरान बनाए रखा। फिल्म की निर्माता कंपनियों भानुशाली स्टूडियोज और लेजेंड स्टूडियोज ने पंकज की इस खास छवि को रचने के लिए दिग्गज कलाकारों की मदद ली है। मेकअप और प्रोस्थेटिक्स के इन जानकारों ने अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिन के दिन तक पंकज को इस रूप में लाने के लिए महीनों तक अभ्यास किया है।

अटल बिहारी वाजपेयी की बायोपिक कही जा रही फिल्म ‘मैं अटल हूं’ में पूर्व प्रधानमंत्री के राजनीतिक जीवन के अलावा उनके एक प्रतिष्ठित कवि होने, लोकप्रिय जननेता होने और मानवीय गुणों से भरपूर एक उत्कृष्ट प्रशासक होने की छवियां प्रस्तुत की जाएंगी। उत्कर्ष नैथानी लिखित इस फिल्म पर राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक रवि जाधव काम शुरू कर चुके हैं। विनोद भानुशाली, संदीप सिंह, सैम खान और कमलेश भानुशाली की टीम इस फिल्म को मिलकर बना रही है। फिल्म के सह निर्माताओं के रूप में जीशान अहमद और शिव शर्मा भी इससे जुड़े हुए हैं।पंकज कहते हैं, ‘अटल जी जैसे मानवीय राजनेता को पर्दे पर चित्रित करना मेरे लिए सम्मान की बात है। वह न केवल एक राजनेता थे, बल्कि उससे कहीं अधिक वह एक उत्कृष्ट लेखक और एक प्रसिद्ध कवि थे। उनके नक्शे कदम चलना मेरे जैसे अभिनेता के लिए किसी सौभाग्य से कम नहीं है।’ मराठी फिल्मों ‘नटरंग’ और ‘बालगंधर्व’ के लिए चर्चित रहे राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता निर्देशक रवि जाधव इस फिल्म का निर्देशन करेंगे और ये फिल्म अगले साल अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मशती वर्ष का शुभारंभ करेगी।

नाट्योत्सव से 28वें हिंदी मेला की शुरुआत

प्रसिद्ध रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला को ‘माधव शुक्ल नाट्य सम्मान’

कोलकाता। आज लघु नाटक की प्रस्तुतियों से सात दिवसीय 28वाँ हिंदी मेला शुरू हो गया। इस बार नाटक में आदिवासी जीवन से जुड़ें विषयों के अलावा ‘अंधेर नगरी’ (भारतेंदु), ‘सद्गति’ (प्रेमचंद), ‘सलाम’ (ओमप्रकाश वाल्मीकि) तथा अन्य सात नाटकों की प्रस्तुति की गई। उद्घाटन समारोह में वरिष्ठ पत्रकार विश्वम्भर नेवर ने कहा कि हिंदी मेला में हिंदी मेला के आयोजकों का संकल्प ही इतने बड़े आयोजन की सफलता की वजह है। इस अवसर पर प्रसिद्ध रंगकर्मी उमा झुनझुनवाला को ‘माधव शुक्ल नाट्य सम्मान’ प्रदान किया गया। उमा झुनझुनवाला ने अपने वक्तव्य में कहा कि यह पुरस्कार सामाजिक स्वीकृति है। नाटक एक बहुत चुनौतीपूर्ण कला है और हम लोगों को कलकत्ते से बड़ा प्यार मिला है। बनारस के प्रसिद्ध रंगकर्मी नरेंद्र आचार्य ने कहा कि हिन्दीत्तर प्रदेश में हिंदी मेला हिंदी के लिए गर्व है।
प्रो संजय जायसवाल ने अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी मेला का उद्देश्य नई पीढ़ी को मातृभाषा से प्रेम तथा उदार राष्ट्रीय संस्कृति से जोड़ना है। डॉ राजेश मिश्र ने वार्षिक विवरण प्रस्तुत करते हुए कहा कि हिंदी मेला के इतने लंबे काल से चलते रहना लेखकों के अलावा साहित्यप्रेमियों और नौजवानों के भारी समर्थन का फल है। हिंदी मेला के संरक्षक रामनिवास द्विवेदी ने कहा कि हिंदी मेला को बड़े कर्मठ संस्कृति कर्मियों और साहित्य प्रेमियों का बल है। ऐसा मेला हिंदी प्रदेशों में भी होना चाहिए। उद्घाटन समारोह के अध्यक्ष डॉ शम्भुनाथ ने कहा कि हिंदी मेला का आयोजन तब से हो रहा है, लिटरेरी फेस्टिवल का नामोनिशान नहीं था। छोटे साधनों से आयोजित ऐसे मेलों से बड़े मूल्यों की रक्षा संभव है। हिंदी मेला भारतीय भाषाओं का आंगन है। बतौर निर्णायक पंकज देवा ने कहा कि हिंदी मेला का यह मंच नाट्य विधा को विद्यार्थियों से जोड़ रहा है। प्लाबन बसु ने कहा कि हमें नाटक कार्यशाला का आयोजन कर इन प्रतिभागियों को प्रशिक्षण देना चाहिए। महेश जायसवाल ने विजयी प्रतिभागियों को भविष्य की संभावना कहा।
नाट्योत्सव का संचालन अनिता राय, नमिता जैन, लिली साहा, श्रीप्रकाश गुप्ता, पूजा गोंड, ज्योति चौरसिया ने किया। इस आयोजन में विशेष रूप से डॉ सुमिता गुप्ता, वेद प्रकाश शर्मा, धर्मेंद्र यादव, वीरू सिंह, निशा राजभर, आकांक्षा साव, हरे कृष्ण यादव सक्रिय थे। नाट्योत्सव में दर्शकों की भारी उपस्थिति थी।
इस वर्ष का शिखर सम्मान- कलाकार मंच, प्रथम- विद्यासागर विश्वविद्यालय, द्वितीय- स्टडी मिशन नाट्य दल, सर्वश्रेष्ठ अभिनेता- चंदन भगत, सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री- प्रज्ञा झा, सर्वश्रेष्ठ निर्देशक- पार्बती रघुनंदन, सर्वश्रेष्ठ बाल कलाकार- रक्षा कुमारी को मिला। धन्यवाद ज्ञापन श्रीप्रकाश गुप्ता ने दिया।

हिन्दी में बद्रीनारायण समेत 23 भाषाओं के साहित्यकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार

साहित्य अकादमी ने इस वर्ष के अकादमी पुरस्कारों की घोषणा कर दी है। हिंदी के लिए इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रसिद्ध कवि बद्री नारायण को दिया जाएगा. बद्री नारायण को उनके कविता संग्रह तुमड़ी के शब्द को साहित्य अकादमी पुरस्कार 2022 के लिए चुना गया है। साहित्य अकादमी के सचिव के. श्रीनिवासराव ने साहित्य पुरस्कारों की घोषणा करते हुए बताया कि इस बर्ष 23 भाषाओं के लिए पुरस्कार देने का निर्णय किया गया है । इनमें 7 कविता संग्रह, 6 उपन्यास, 2 कहानी संग्रह, दो साहित्यिक समालोचना, तीन नाटक, एक आत्मकथा निबंध, एक संक्षिप्त सिंधी साहित्य इतिहास और एक लेख संग्रह की पुस्तक शामिल है। सचिव के. श्रीनिवासराव बताया कि पुरस्कारों की अनुशंसा 23 भारतीय भाषाओं की निर्णायक समितियों द्वारी की गयी । साहित्य अकादमी के अध्यक्ष डॉ. चंद्रशेखर कंबार की अध्यक्षता में आयोजित अकादमी कार्यकारी मंडल की बैठक में आज इन्हें अनुमोदित किया गया। उन्होंने बताया सम्मानित लेखकों को अगले वर्ष मार्च में सम्मानित किया जाएगा । पुरस्कार विजेता को पुरस्कार स्वरूप एक लाख रुपये की नकद राशि, ताम्रफलक और प्रशस्ति पत्र प्रदान किया जाएगा ।

इन लेखकों को मिलेगा सम्मान
अंग्रेजी भाषा में अनुराधा रॉय को उनके उपन्यास ‘ऑल द लाइब्स वी नेवर लिव्ड’ इस वर्ष का साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया जाएगा। पंजाबी भाषा में सुखजीत के कहानी संग्रह ‘मैं अयंघोष नहीं’, उर्दू भाषा के लिए अनीस अशफ़ाक के उपन्यास ‘ख़्वाब सराब’, बोडो में रश्मि चौधरी के कविता संग्रह ‘सानस्रिनि मदिरा’, मैथिली भाषा में अजित आजाद के कविता संग्रह ‘पेन ड्राइव में पृथ्वी’, मणिपुरी में कोइजम शांतिबाला कविता संग्रह ‘लेइरोन्नुंग’, ओडिआ में गायत्रीबाला पांडा के कविता संग्रह ‘दयानदी’, संस्कृत में जनार्दन प्रसाद पाण्डेय ‘मणि’ के कविता संग्रह ‘दीपमणिक्यम’, संताली में कजली सोरेन जगन्नाथ सोरेन के कविता संग्रह ‘साबरनका बालिरे सानन’ के नाम की घोषणा हुई है ।

क्रिसमस पर बनाएं ड्राई फ्रूट केक

सामग्री –  1 कप मैदा, 1/2 कप दही, 1/4 कप दूध, 1 टी स्पून बेकिंग पाउडर, 1/2 टी स्पून बेकिंग सोडा, 2 टेबलस्पून दूध पाउडर, 4-5 टेबलस्पून ड्राई फ्रूट्स (मिक्स), 1 टी स्पून वनीला एसेंस, 2 टी स्पून बादाम कतरन, 1/2 कप घी, 1/2 कप चीनी पाउडर, 1 चुटकी नमक

विधि – ड्राई फ्रूट केक बनाने के लिए आप सबसे पहले एक बरतन में मैदा को लेकर छान लें। फिर आप इसमें बेकिंग पाउडर, दूध पाउडर और बेकिंग सोडा को भी छानकर डाल दें। इसके बाद आप इन सारी चीजों को अच्छी तरह से मिलाकर मिक्चर तैयार कर लें। फिर आप इसमें एक चुटकी नमक डालें और अच्छी तरह से मिला दें। इसके बाद आप एक दूसरे बाउल में दही, चीनी पाउडर और घी डालकर अच्छी तरह से मिला दें। फिर आप दही के मिक्चर में मैदे के मिश्रण को थोड़ा-थोड़ा डालते हुए मिलाएं। इसके बाद आप इसमें ऊपर से दूध डालें और मिलाकर गाढ़ा पेस्ट तैयार कर लें। फिर आप इसमें वनीला एसेंस डालें और अच्छी तरह से मिला लें। इसके बाद आप इस पेस्ट में बारीक कटे ड्राई फ्रूट्स डालें और अच्छी तरह से मिला लें। फिर आप बेकिंग टीन को लेकर घी से अच्छी तरह से ग्रीस कर लें। इसके बाद आप इसमें केक का तैयार बैटर डालें और जमीन पर करीब दो-तीन बार टैप करें। फिर आप मिश्रण के ऊपर बादाम कतरन को लेकर अच्छी तरह से फैला लें। इसके बाद आप इसको प्रीहीट किए ओवन में 180 डिग्री सेल्सियस पर करीब आधा घंटे तक बेक करें। अब आपका स्वाद और पोषण ले भरपूर ड्राई फ्रूट केक बनकर तैयार हो गया है।

रंग

डॉ. वसुंधरा मिश्र

रंग सिर्फ रंग है
जीवन से जुड़ जीवन में घुल जाते हैं
सुख बनकर मुस्कान में
दुख बनकर रुदन में
नृत्य बनकर थिरकन में
मोती बनकर सागर में
वर्ण बनकर शब्द में
सृष्टि चलती रहती धूरी पर
घुला श्वेत रंग सब रंगों में
अध्यात्म आत्मा से जुड़ा
ऋजु पथ का वाहक
तब का शोधक
रंग दिखा दे जीवन के चित्र
रंग रंग है।
गोरे काले श्याम चितकबरे
नीले बैंगनी गुलाबी पीले
रंगों का जीवन से मिलना
जीवन अर्थ सिखाता
सूखा गीला भारी हल्का
सब रंगों का खेल
भिन्न-भिन्न रूपों का रंग
पहचानो रंगी दीवारों को
सुर असुर देव नर किन्नर
सब रंगों का खेल।
जन-जन रंगे रंगों में
रंग बिरंगी बदरंगी राहों में
लगे हैं मन के दर्पण
पहचानो तो हरे गुलाबी
नहीं तो काले मतवाले
खेल दिखाते बलखाते से
रंग रंग के नाच नचाते
नई गति ताल छंद मृदंग भी बचते
उद्भव स्थिति संहार में घुलकर
प्रकृति और जीवन में खिलते
आओ अपने रंगों को एक सकारात्मक आकार में ढालें
आओ अपने रंगों को एक सकारात्मक आकार में ढालें
एक नया इतिहास रचने का संकल्प बनाएं रंग सिर्फ रंग ही तो हैं ।

कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज में अल्यूमनी मीट आयोजित

स्नातक की छात्राओं को विदाई भी दी गयी
कोलकाता । कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज में अल्यूमनी मीट एवं विदाई समारोह आयोजित किया गया । इस अवसर पर कॉलेज की पूर्व छात्राओं एवं शिक्षिकाओं ने कॉलेज को लेकर अपनी स्मृतियाँ ताजा कीं । कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सत्या उपाध्याय ने बताया कि हालांकि कॉलेज में लंबे समय से अल्यूमनी मीट होती रही है परन्तु अल्यूमनी को इस बार व्यवस्थित रूप दिया गया है । इसका पंजीकरण करवाया गया है और पंजीकरण के बाद यह अल्यूमनी मीट आयोजित हुई । हर साल 23 दिसम्बर को कॉलेज में अल्यूमनी मीट आयोजित होगी । डॉ. उपाध्याय ने बताया कि कॉलेज की पूर्व छात्रा फौजिया ने आर्ट्स एवं कॉमर्स संकाय से एक – एक जरूरतमंद छात्राओं को छात्रवृत्ति प्रदान करने की घोषणा की है । कॉलेज की शिक्षिका सुपर्णा भट्टाचार्य ने बताया कि कॉलेज की पूर्व छात्राओं एवं शिक्षिकाओं के साझा प्रयास से अल्यूमनी की गतिविधियाँ संचालित की जाएंगी । कॉलेज में स्नातक स्तर की छात्राओं का विदाई समारोह भी इस मौके पर आयोजित किया गया ।

कोरोना के 2 साल बाद कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज में हस्तशिल्प प्रदर्शनी

कोलकाता । कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज में हस्तशिल्प प्रदर्शनी आयोजित की गयी । प्रदर्शनी में कॉलेज की पूर्व एवं वर्तमान छात्राओं द्वारा निर्मित वस्तुएं प्रदर्शित की गयीं । इन छात्राओं ने पुराने कपड़ों एवं वस्तुओं की रीसाइकलिंग कर उनको नया रूप दिया था और इससे अपने उत्पाद बनाए थे। प्रदर्शित की गयी वस्तुओं में बैग, पर्स, टी कोस्टर एवं कपड़े जैसी चीजें शामिल हैं । कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सत्या उपाध्याय ने बताया कि सबसे पहले 2018 में यह हस्तशिल्प प्रदर्शनी लगायी गयी थी और कोरोना महामारी के 2 साल बाद यह प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है । इसे सफल बनाने में कॉलेज की दो शिक्षिकाओं प्रो. नंदिनी भट्टाचार्य एवं संचिता दत्ता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है । इसके साथ ही कोलकाता एकात्म नामक संस्था भी प्रदर्शनी में शामिल हुईं । इस अवसर पर कॉलेज प्रबंधन समिति की सदस्य मैत्रेयी भट्टाचार्य एवं विभिन्न कई अन्य कॉलेजों की शिक्षिकाओं ने भी प्रदर्शनी देखी एवं छात्राओं का उत्साहवर्द्धन किया ।

भवानीपुर कॉलेज के युवा लेखक विद्यार्थियों ने साझा किए अपनी पुस्तक यात्रा के अनुभव

कोलकाता ।  भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के बहुत से छात्र छात्राओं में प्रतिभावान लेखक और लेखिकाओं द्वारा अपनी-अपनी पुस्तक के अनुभवों को साझा किया गया । यह कार्यक्रम डीन प्रो दिलीप शाह की प्रेरणा से संपन्न हुआ । बुक रिडिंग सेशन का संयोजन और संचालन करते हुए डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि अभी तक सात से अधिक ऐसे विद्यार्थियों के नाम आए हैं जिनकी किताब, कविताएँ, इ-बुक, व्हाटपैड और डिजिटल बुक प्रकाशित हो चुकी हैं। अंग्रेजी विभाग के सेमेस्टर तीन के विद्यार्थी स्वागत मुखर्जी की सद्य प्रकाशित प्रथम पुस्तक ए वर्ल्ड इज फुल ऑफ लायर दस दिसंबर 22 को प्रकाशित हुई है और कोलकाता पुस्तक मेले में रखी जाएगी जो कॉलेज के लिए गर्व की बात है। इस पुस्तक में मुखर्जी ने बलात्कार, गोद लेना, घरेलू हिंसा, यौनाचार आदि सामाजिक विषयों पर लिखी है जो एक युवा पीढ़ी की नई सोच को दर्शाती है। इस अवसर पर उन्होंने अपनी लेखन यात्रा पर विचार प्रकट किया। रिशिका बुचा सेमेस्टर पांच की छात्रा ने ई-बुक खुशी फाइंड्स खुशी, पेपर बैक दि वे आई सी – बियोंड दी विजन, ए टेल अॉफ चैंज पुस्तकें, आयुष कुमार लोधा सेमेस्टर पांच ने दी वर्डस्लिंगर एंड दी क्विल हाउस, परिवार – एक ताकत अमेजन के हुमरूह पब्लिकेशन द्वारा जनवरी में प्रकाशित होने वाली है। अपने-अपने अनुभवों को साझा किया। अनिमेश आनंद ने अपनी गजल और कविता प्रस्तुति दी।
प्रो दिलीप शाह ने सभी नये लेखकों की पुस्तक का विमोचन और उनका उत्साहवर्धन किया। शेख मोहम्मद जहिरुददीन ने अपनी कविता प्रस्तुति दी ।रिडिंग बुक सेशन के प्रतिनिधि फ़ज़ल करीम ने सभी नए विद्यार्थियों लेखकों का स्वागत किया। कम्युनिकेशन एंड सॉफ्ट स्कील्स ट्रेनर समीक्षा खंडूरी ने धन्यवाद देते हुए पुस्तक संरचना के विषय में बात की। इस कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

कहत ‘भिखारी’ नाई आस नइखे एको पाई, हमरा से होखे के दीदार हो बलमुआ…

पटना । करिके गवनवा, भवनवा में छोड़ि कर, अपने परईलन पुरूबवा बलमुआ, अंखिया से दिन भर, गिरे लोर ढर-ढर, बटिया जोहत दिन बितेला बलमुआ। इन गीतों को सुनकर बिहार के ग्रामीण इलाकों में कभी थके हारे मजदूरों के चेहरे पर रौनक सी आ जाती थी। जी हां, हम बात कर रहे हैं भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले लोक गायक, संगीतकार और नाट्यकर्मी भिखारी ठाकुर की। बिहार के सारण जिले में 18 दिसबंबर 1887 को पैदा हुए भिखारी ठाकुर एक सार्थक लोक कलाकार थे। उन्होंने सामाजिक समस्याओं और मुद्दों पर बोल-चाल की भाषा में गीतों की रचना की। उसे गाया और मंच पर जीवंत किया। आज भिखारी ठाकुर की जयंती है। 10 जुलाई 1971 को अंतिम सांस लेने वाले भिखारी ठाकुर पर वरिष्ठ लेखक संजीव ने एक उपन्यास ‘सूत्रधार’ की रचना भी की है। अपनी जयंती के दिन भिखारी ठाकुर ट्वीटर पर ट्रेंड कर रहे हैं। उनकी जयंती पर उन्हें याद करते हुए सोशल मीडिया पर ईटी नाउ के एंकर प्रशांत पांडेय कहते हैं भोजपुरी गीत संगीत और लोकनाट्य के अनूठे सूत्रधार भिखारी ठाकुर की जयंती है। भिखारी ठाकुर को महापंडित राहुल सांकृत्यायन ने ‘भोजपुरी का शेक्सपीयर’ कहा था।

‘भिखारी होना बड़ी बात’
भिखारी ठाकुर के बारे में लोक गायक विष्णु ओझा कहते हैं कि देखिए भोजपुरी में माटी से जुड़े हुए कलाकार रहे भिखारी ठाकुर। बाद के दिनों में कई लोगों ने उनकी नकल करने की कोशिश की, लेकिन कोई भी कामयाब नहीं हो पाया। महेंद्र मिश्र और भिखारी ठाकुर भोजपुरिया माटी की शान हैं। विष्णु ओझा ने भोजपुरी के शेक्सपियर को आधुनिक शिक्षा पाठ्यक्रम में लाने की मांग की। उन्होंने कहा कि भिखारी ठाकुर को लेकर राजकीय लोक संगीत कार्यक्रम और सम्मान समारोह का आयोजन होना चाहिए। भिखारी ठाकुर विरह वेदना, बेटी विदाई और सामाजिक समस्याओं के ताने-बाने को लोक संगीत में पिरो देते थे। उनकी खासियत ये थी कि वे हमेशा सामाजिक मुद्दों में अपना संगीत ढूंढ़ते थे। आज भी जब भी भोजपुरी की चर्चा होती है, भिखारी ठाकुर की चर्चा जरूर होती है।

गरीबी में दिन कटे
शिक्षा की रोशनी से दूर, मजबूरी, मुफलिसी और गरीबी के साथ अपमान का घूट पीकर भिखारी ठाकुर ने अपने को जिस तरह भोजपुरी के शेक्सपियर तक पहुंचाया। उस कालखंड की कहानी बड़ी रोचक है। अध्ययन से पता चला कि नाटक और नचनिया बने भिखारी ठाकुर की स्थिति भी कमोवेश वही रही, जो समाज से बिलग चलकर अपनी एक अलग पहचान बनाना चाहता है। उन्हें शुरू में कुछ लोगों से इज्जत मिली, तो कुछ ने ‘भिखरिया’ कहकर अपमानित किया। प्रसिद्ध लेखकर संजीव ने भिखारी ठाकुर के जीवन पर बहुचर्चित उपन्यास ‘सूत्रधार’ लिखा है। उनके शोध बताते हैं कि जन्म से भिखारी ठाकुर आभाव में अपनी जिंदगी घसीटते रहे। पिता दलसिंगार ठाकुर ने जब पढ़ने को स्कूल भेजा, तब काफी दिनों बाद तक भिखारी ठाकुर को ‘राम गति, देहूं सुमति’ लिखने नहीं आया। जब वे स्कूल पहुंचते, तो उस समय के माट साहब उनसे नाई वाला काम लेने लगते।

घर से बाहर निकले
‘सूत्रधार’ में चर्चा है कि मास्टर लोग भिखारी ठाकुर से कहते कि पढ़ लिखकर क्या करेगा, आखिर जवान होकर हाथ में उस्तरा ही पकड़ना है। अबहिए से पैरैटिस कर ले बचवा। भिखारी ठाकुर को स्कूल में मन नहीं लगा और वे भैंसों के साथ चरवाही में भेज दिए गए। उन्हें पढ़ना नहीं आया, लेकिन उसकी जरूरत उन्हें महसूस जरूर हुई। कोई पत्र पढ़ना होता, तो वे मित्र भगवान साह के पास जाते और कहते कि हमरो के पढ़े सिखा द। ‘सूत्रधार’ में चर्चा है कि भिखारी ठाकुर तीस साल की उम्र में रोजी रोटी के लिए परदेश पहुंचे। उस समय का परदेश यानी कोलकाता। उनके एक रिश्तेदार मेदनीपुर जिला में रहते थे, उस जिले के शहर खड़गपुर, जिसका रेलवे प्लेटफार्म विश्व में सबसे लंबा है। वहां जमीन पर बैठकर नाईगिरी करने वाले की जमात में जम गए। रात में खाली होने के बाद वे रामायण का अध्ययन करते। वहीं पर उनके पड़ोसी रामानंद सिंह ने उन्हें सलीके से जीने और लिखने की प्रेरणा दी। उसके बाद कलाकार मन वाले भिखारी ने भोजपुरी की संस्कृति में क्रांति का अध्याय लिखना शुरू किया।

दहेज लोभियों पर प्रहार
भिखारी ठाकुर ने प्रचलित नाटकों से अलग उन्होंने स्वयं नाटक लिखे, जिसे वे ‘नाच’ या ‘तमासा’ कहते थे, जिनमें समाज के तलछट के लोगों के सुख-दुख, आशा-आकांक्षा का चित्रण होता था। ‘बिरहा बहार’ तुलसीकृत रामचरितमानस की तर्ज पर लिखा हुआ ‘धोबी-धोबिन’ का सांगीतिक वार्तालाप था। उन दिनों दहेज से तंग आकर किशोरियों की शादी बूढ़े या अनमेल वरों के साथ कर दी जाती थी। यह भिखारी का ही कलेजा था, जिसने इनके प्रतिकार में ‘बेटी वियोग’ जैसा मर्मांतक नाटक लिखा। ‘बेटी बेचवा’ के नाम से ख्यात यह नाटक उन दिनों भोजपुर अंचल में इतना लोकप्रिय था कि कई जगहों पर बेटियों ने शादी करने से मना कर दिया, कई जगहों पर गांव वालों ने ही वरों को खदेड़ दिया। भिखारी ठाकुर ने इसी दौरान भोजपुरी में दहेज लोभियों और दुल्हा पर व्यंग्य करते हुए एक गीत लिखा। चलनी के चालल दुलहा सूप के फटकारल हे, दिअका के लागल बर दुआरे बाजा बाजल हे। आंवा के पाकल दुलहा झांवा के झारल हे, कलछुल के दागल, बकलोलपुर के भागल हे। सासु का अंखिया में अन्हवट बा छावल हे, आइ कs देखऽ बर के पान चभुलावल हे।आम लेखा पाकल दुलहा गांव के निकालल हे, अइसन बकलोल बर चटक देवा का भावल हे। मउरी लगावल दुलहा, जामा पहिरावल हे, कहत ‘भिखारी’ हवन राम के बनावल हे।
भोजपुरी के ‘भिखारी’
फार्रवर्ड प्रेस पत्रिका में भिखारी ठाकुर के बारे में प्रकाशित संस्मरण में चर्चा है कि 1964 में धनबाद जिले के कुमारधुवी अंचल में प्रदर्शन के दौरान हजारीबाग जिले के पांच सौ मजदूर रोते हुए उठ खड़े हुए। उन्होंने शिव जी के मंदिर में जाकर सामूहिक शपथ ली कि आज से बेटी नहीं बेचेंगे। यह घटना लायकडीह कोलियरी की थी। भिखारी ठाकुर ने अपने नाच और उसके प्रदर्शनों से समाज में प्रवासियों, बेटियों, विधवाओं, वृद्धों व दलित-पिछड़ों की पीड़ा को जुबान दी। पिटाई और प्रताड़ना तक का जोखिम उठाया। मना करने के बावजूद लोग भिखारी का नाटक देखने जाते। संक्रमण और संधान के घटना बहुल इस युग में गंवई चेतना का भी एक उभार आया था। साहित्य, कला और संस्कृति में इस गंवई चेतना ने कतिपय ऐसे स्थलों को भी अपना उपजीव्य बनाया, जहां हिन्दी साहित्य की नजर तक न गई थी। गदर के शौर्य, भारतीयों की दुर्दशा और गिरमिटिया मजदूरों की हूक तत्कालीन भोजपुरी और अवधी तथा अन्य बोलियों में ही सुलभ है, हिन्दी में नहीं. भिखारी इसी युग की भोजपुरी भाषी जनता के सबसे चहेते, सबसे जगमगाते सितारे थे।
(साभार – नवभारत टाइम्स)