Tuesday, August 5, 2025
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प्रकृति की सुन्दरता के बीच भवानीपुर कॉलेज की पिकनिक

500 विद्यार्थियों ने लिया भाग

कोलकाता । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज की ओर से पांच सौ विद्यार्थियों ने डायमंड हार्बर रोड पर स्थित ईबीजा रिसोर्ट में पिकनिक मनाई। दस ट्रैवलर बसों द्वारा विद्यार्थियों के लिए व्यवस्था की गई। प्रत्येक बस में लगभग 20 शिक्षक और शिक्षिकाओं की देख रेख में विद्यार्थियों को पिकनिक स्थान पर लाया गया। विद्यार्थियों ने खेल, गीत, संगीत अन्त्याक्षरी, साइकिलिंग,जिप लाइन, बोटिंग, डिस्कोथेक, प्रकृति आदि विविध कार्यक्रमों में भाग लिया और आनंद उठाया। ॉ प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, डीन प्रो दिलीप शाह, प्रो दिव्या उदेशी, प्रो चंपा श्रीनिवासन, प्रो विवेक पटवारी, प्रो नितीन चतुर्वेदी, प्रो गोविंद दीवान, डॉ वसुंधरा मिश्र, प्रो हर्षित चोखानी, प्रो उजमा खान, प्रो गार्गी, प्रो चंदन कुमार झा, एनसीसी के कैडट अभिषेक कुमार सिंह, एलटी आदित्य राज और ऑफिसर कैडट अरित्रिका दूबे और गैर शैक्षणिक दिलीप दास ने पिकनिक को सफल बनाने में अपना योगदान दिया। डीन प्रो दिलीप शाह ने जिप लाइन में भाग लेकर विद्यार्थियों का उत्साहवर्द्धन किया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि इस पिकनिक में बीए बीकॉम प्रातःकालीन, मध्याह्न, सांध्य सभी विभागों के छात्र छात्राओं ने अपना नाम दर्ज कराया।

 

फेडरल बैंक ‘स्पीक फॉर इंडिया’ के प्रतिभागी बने भवानीपुर कॉलेज के विद्यार्थी


कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के विद्यार्थियों ने ‘स्पीक फॉर इंडिया’ वाद – विवाद प्रतियोगिता में भाग लिया। कॉलेज के डायरेक्टर जनरल डॉ सुमन मुखर्जी ने दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन किया । प्रत्येक वर्ष फेडरल बैंक द्वारा आयोजित स्पीक फॉर इंडिया वाद विवाद प्रतियोगिता में देश भर के विद्यार्थी भाग लेते हैं। डॉ. सुमन मुखर्जी ने बताया कि यह अमीरी गरीबी जाति धर्म से परे युवाओं का ऐसा मंच।है जो विचारों की स्वतंत्र अभिव्यक्ति के साथ साथ विचार विमर्श को स्थान देता है। अभिनेता एवं निर्देशक अरिंदम सील ने कहा कि यह सही है कि आज के युग में मोबाइल की आवश्यकता है लेकिन ऊर्जा और सृजनात्मकता के लिए युवाओं को मोबाइल से दूर रहकर अपनी शक्ति को केंदित करना होगा ।
कार्यक्रम का आरंभ फेडरल बैंक के प्रमुख संतोष कुमार वीसी ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। बाद में जोनल प्रमुख साबू आर एस ने अध्यक्षीय वक्तव्य में वाद विवाद प्रतियोगिता के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए कहा कि इस प्रकार की प्रतियोगिताओं से युवाओं में आत्मविश्वास, ज्ञान और विचारों का मंथन होता है। वहीं ऐई समय बांग्ला समाचार पत्र के प्रमुख संपादक हीरक बंदोपाध्याय ने भी अपने विचार रखे। इस कार्यक्रम के पार्टनर टाइम्स ऑफ इंडिया रहा। प्रणय किशोर नायक की गरिमामयी उपस्थिति रही। कई कॉलेज के विद्यार्थियों ने इस प्रतियोगिता में भाग लिया। भवानीपुर कॉलेज की छात्रा नम्रता चौधरी का प्रदर्शन सर्वश्रेष्ठ रहा। इस कार्यक्रम की जानकारी देते हुए डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि प्रतिभागियों को विषय वहीं पर दिए गए जिसमें पक्ष और विपक्ष में अपने विचार साझा किए। पुरस्कार और प्रमाणपत्र देकर पुरस्कृत युवा प्रतिभागियों को सम्मानित किया गया ।

 

 

महाशिवरात्रि विशेष – शक्‍ति के बिना अधूरा लगता है शिव को अपना अस्‍तित्‍व

पुरुष और प्रकृति के बीच सामंजस्य स्थापित होने से ही सृष्टि सुचारु रूप से चल पाती है। शिव और शक्ति के प्रतीक शिवलिंग का यही अर्थ है। यहां शिव पुरुष के प्रतीक हैं, और शक्‍ति स्‍वरुप देवी पार्वती प्रकृति की। शिवलिंग के रूप में भगवान शिव बताते हैं कि पुरुष और प्रकृति के बीच यदि संतुलन न हो, तो सृष्टि का कोई भी कार्य भलीभांति संपन्न नहीं हो सकता है। जब शिव अपना भिक्षु रूप, तो शक्ति अपना भैरवी रूप त्याग कर समान्‍य घरेलू रूप धारण करती हैं, तब वे ललिता, और शिव, शंकर बन जाते हैं। इस संबंध में न कोई विजेता है और न कोई विजित है, दोनों का एक-दूसरे पर संपूर्ण अधिकार है, जिसे प्रेम कहते हैं।

अर्द्धनारीश्‍वर होने की कहानी

शक्‍ति के शिव में संयुक्‍त होने को लेकर एक कथा बेहद प्रचलित है। इस कथा के अनुसार शिव-पार्वती विवाह के बाद शिवभक्‍त भृंगी ने उनकी प्रदक्षिणा करने की इच्छा व्यक्त की। शिव ने कहा कि आपको शक्ति की भी प्रदक्षिणा करनी होगी, क्योंकि उनके बिना मैं अधूरा हूं। भृंगी इसके लिए तैयार नहीं हुए। वे देव और देवी के बीच प्रवेश करने का प्रयत्न करते हैं। इस पर देवी, शिव की जंघा पर बैठ जाती हैं, जिससे वे यह काम न कर सकें। भृंगी भौंरे का रूप धारण कर उन दोनों की गर्दन के बीच से गुजर कर शिव की परिक्रमा पूरी करना चाहते हैं। तब शिव ने अपना शरीर शक्ति के शरीर के साथ जोड़ लिया। अब वे अ‌र्द्धनारीश्वर बन गए। अब भृंगी दोनों के बीच से नहीं गुजर सकते थे। शक्ति को अपने शरीर का आधा भाग बनाकर शिव ने स्‍पष्‍ट किया कि वास्तव में स्त्री की शक्ति को स्वीकार किए बिना पुरुष पूर्ण नहीं हो सकता और शिव की भी प्राप्ति नहीं हो सकती, केवल देवी के माध्यम से ही ऐसा हो सकता है।

समभाव और सौंदर्य का अनुभव

पार्वती साधना के माध्यम से शिव के हृदय में करुणा और समभाव जगाना चाहती हैं। पार्वती की साधना अन्य तपस्वियों की तपस्या से भिन्न है। सुर-असुर और ऋषि ईश्वर की प्राप्ति और अपनी इच्छापूर्ति के लिए तपस्या करते हैं। पार्वती किसी भी इच्छा या वरदान को परे रखकर ध्यान लगाती हैं। वे अपने व्यक्तिगत सुख के लिए नहीं, बल्कि संसार के लाभ के लिए तपस्या करती हैं। शिव पुराण के अनुसार, जब पार्वती शिव को पाने के लिए साधना करती हैं, तो शिव उन्हें ध्यान से देखते हैं। वे इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि सती ही पार्वती हैं। वे सोचते हैं कि यदि वे अपनी आंखे बंद कर लेंगे, तो वह काली में बदल जाएंगी और उनका रूप भयंकर हो जाएगा। अगर वे आंखें खोले रहेंगे, तो वह सुंदर और सुरूप गौरी बनी रहेंगी। इसके आधार पर वे यह बताना चाहते हैं कि अगर प्रकृति को ज्ञान की दृष्टि से न देखा जाए, तो वह डरावनी हो जाती है। यदि ज्ञान के साथ देखा जाए तो वह सजग और सुंदर प्रतीत होती है। वहीं पार्वती शिव को अपना दर्पण दिखाती हैं, जिसमें वे अपना शंकर (शांत) रूप देख पाते हैं।

(साभार – दैनिक जागरण)

भारत की वैदिक परम्परा को जन – जन तक पहुँचाकर महर्षि दयानन्द सरस्वती ने दिया राष्ट्रवाद का मंत्र

भारत के महान ऋषि मुनियों की परम्परा में, जिन्होंने इस देश जाति की जाग्रति और उन्नति के लिए अत्यंत विशेष कार्य किया उनमें महर्षि दयानंद सरस्वती जी का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है। महर्षि दयानन्द सरस्वती जी का जन्म १२ फरवरी १८२४ को टंकारा (गुजरात) में हुआ। पिता का नाम करसन जी तिवारी तथा माता का नाम अमृतबाई था। जन्मना ब्राह्मण कुल में उत्पन्न बालक मूल शंकर को शिवरात्रि के दिन व्रत के अवसर पर बोध प्राप्त हुआ। वह सच्चे शिव की खोज के लिए १६ वर्ष की अवस्था में अचानक गृह त्याग कर एक विलक्षण यात्रा पर चल दिए ।

मथुरा में गुरु विरजानन्द जी से शिक्षा प्राप्त की एवं इस मूल बात को समझा कि देश की वर्तमान अवस्था में दुदर्शा का मूल कारण वेद के सही अर्थों के स्थान पर गलत अर्थों प्रचलित हो जाना है। इसी कारण से समाज में धार्मिक आडम्बर, अंधविश्वास, सामाजिक कुरीतियों का जाल फैल चुका है और हम अपने भारत देश में ही दूसरों के गुलाम हैं। देश की गरीबी, अशिक्षा, नारी की दुर्दशा, भाषा और संस्कृति के विनाश को देखकर दयानन्द अत्यन्त द्रवित हो उठे। कुछ समय हिमालय का भ्रमण कर और तप, त्याग, साधना के साथ वे हरिद्वार के कुम्भ के मेले से मैदान में कूद पड़े। उन्होंने अपनी बात को मजबूती और तर्क के साथ रखा। विरोधियों के साथ शास्त्रार्थ वार्तालाप करके सत्य को स्थापित करने का प्रयास किया। उनके जीवन का एक ही लक्ष्य था कि जो सत्य है उसको जानो और फिर उसको मानो उन्होंने “सत्य को ग्रहण करने और असत्य के छोड़ने में सर्वदा उद्यत रहना चाहिए का प्रेरक वाक्य भी दिया। सभी धार्मिक, सामाजिक, राजनैतिक विषयों पर अपनी बात कहने के लिए उन्होंने सत्यार्थ प्रकाश नाम के कालजयी ग्रन्थ की रचना की। उन्होंने पूरे देश का भ्रमण किया और सारा भारत उनका कार्यक्षेत्र रहा। गौरक्षा, हिन्दी रक्षा, संस्कृत भाषा की उपयोगिता, स्वदेश, स्वदेशी, स्वभाषा, स्वाभिमान के सन्दर्भ में उन्होंने पहली बार जागृति पैदा की। जीवन को अक्षुण्ण न समझते हुए उन्होंने अपने कार्यों को आगे बढ़ाने के लिए १८७५ में आर्यसमाज की मुम्बई में स्थापना की।

वेद के गलत अर्थों की हानि देखकर उन्होंने वेद के वास्तविक भाष्य को दुनिया के सामने रखा और लिंगभेद और जातिभेद से उठकर “वेद पढ़ने का अधिकार सबको है” की घोषणा की।

धार्मिक अंधविश्वासों, सामाजिक कुरीतियों आदि पर जमकर प्रहार किया। स्त्री शिक्षा जो उस समय की सबसे बड़ी जरूरत थी, उसकी उन्होंने सबसे बड़ी वकालत की और समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को उंच-नीच के भेद-भाव के चलते अलग-थलग कर दिया था, उसको उन्होंने समाज की मुख्य धारा के साथ लाने के लिए छुआ-छूत और ऊँचनीच समाज की सबसे बड़ी बुराई बताते हुए उनके जीवन स्तर को उठाने तथा शिक्षा के लिए कार्य करने का आह्वान किया।

अपनी बातों को स्पष्टवादिता से कहने के कारण अनेक लोग उनके विरोधी बन गए और अलग-अलग स्थानों पर, अलग-अलग तरीकों से १७ बार जहर देकर प्राण हरण की कोशिश की। लेकिन दयानन्द ने कभी अपने नाम के अनुरूप किसी को दण्ड देना या दिलवाना उचित न समझा।

अंग्रेज अफसर द्वारा ब्रिटिश साम्राज्य की उन्नति की कामना की प्रार्थना करने पर उनका यह कहना कि मैं तो हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य के शीघ्र समाप्ति की कामना किया करता हूं उनकी निर्भीकता को दर्शाता है।

ब्रह्मचर्य का बल, सत्यवादिता का गुण उनके जीवन की एक विशेष पहचान थी। भक्तों के यह कहने पर कि आप ऐसा न कहें जिससे कि बड़े-बड़े आफिसर नाराज हो जाएं उत्तर में महर्षि दयानन्द का यह कहना कि चाहे मेरी अंगुली की बाती बनाकर ही क्यों न जला दी जाएं मैं तो केवल सत्य ही कहूंगा।

अनेक राजाओं द्वारा जमीन देने की, मन्दिरों की गद्दी देने की इच्छा के बावजूद दयानन्द ने कभी किसी से कुछ स्वीकार करना उचित नहीं समझा। १८५७ के क्रान्ति संग्राम से वे लगातार देश को आजाद कराने के लिए प्रयत्नशील रहे और अपने शिष्यों को इसकी निरन्तर प्रेरणा दी। परिणाम स्वरूप श्यामजी कृष्ण वर्मा, सरदार भगत सिंह के दादा सरदार अर्जुन सिंह, स्वामी श्रद्धानन्द लाला लाजपत राय जैसे महान बलिदानियों की एक लम्बी श्रृंखला पैदा की।

वे देश के नवयुवाओं को कौशल सीखने के लिए जर्मनी भेजने के इच्छुक थे। वे अपने देश में स्वदेशी वस्त्रों के पहनने और कारखाने लगाने के प्रबल पक्षधर थे। उन्होंने अनेक देशी राजाओं के साथ वार्तालाप कर उन्हें स्वदेशी के लिए प्रेरित किया। साथ ही तत्कालीन सभी मुख्य महानुभावों केशवचन्द्र सेन, गुरुदेव रविन्द्रनाथ टैगोर के पिता, महादेव गोविन्द रानाडे, पण्डिता रमाबाई, महात्मा ज्योतिबा फूले, एनिबेसेंट, मैडम ब्लेटवस्की आदि के साथ वार्ता कर उन्हें एक सत्य के मार्ग पर सहमत करने का प्रयास किया। विभिन्न मतों के मुख्य महानुभावों के साथ चर्चा करके सहमति के बिन्दुओं पर एक साथ कार्य करने के लिए आह्वान किया। मानव मात्र की उन्नति के लिए निर्दिष्ट १६ संस्कारों पर विस्तृत व्याख्या लिखी।

प्रजातन्त्र की आवश्यकता पर योग की आवश्यकता पर पर्यावरण के सन्दर्भ में, हर विषय पर अपनी बात रखी। 6 फुट 9 इंच के ऊँचे कद के साथ गौर वर्णधारी, अद्भुत ब्रह्मचर्य के स्वामी एवं योगी महर्षि दयानन्द सरस्वती ने प्रत्येक व्यक्ति की उन्नति के लिए शारीरिक, आत्मिक और सामाजिक उन्नति को आवश्यक बताया। मात्र 59 वर्ष की आयु में वैदिक सत्य की निर्भीक उदघोषणा के कारण षडयन्त्रों के चलते 1883 के अंत में उन्हें जोधपुर में जहर दे दिया गया। जिस विष से वे अपने शरीर की रक्षा न कर सके। विष देने वाले को अपने पास से धन देकर विदा किया, ताकि राजा उसे दण्डित न कर दे, का विलक्षण उदाहरण दयानन्द की दया में ही मिल सकता है । अन्ततः दीपावली की सायं 30 अक्तूबर 1883 में उनका निर्वाण अजमेर में हुआ।

उनके जीवन की बहुत बड़ी सफलता उनके शिष्यों द्वारा किये गए कार्यों में दिखी हजारों शिष्यों की लम्बी श्रृंखला ने सारे विश्व में उनकी इच्छानुसार अनेकोनेक संस्थाओं की स्थापना की। समाज की कुरीतियों के विरुद्ध कार्य करने के लिए बलिदान देने वाले भी उनके शिष्य थे और देश के लिए बलिदान होने वालों की लम्बी श्रंखला में उनकी शिष्यावली थी। आज उनके द्वारा बनाए गए आर्यसमाज की शिक्षा के क्षेत्र में, सामाजिक कार्यों में स्वास्थ्य सेवा में, महिला उत्थान में, युवा निर्माण में, एवं राष्ट्र के प्रति जिम्मेदारियों के काम में विश्व के 30 देशों और भारत के सभी राज्यों में 10000  से अधिक सशक्त सेवा इकाइयों के साथ सेवारत हैं।

महर्षि दयानंद सरस्वती एवं तदुपरान्त आर्यसमाज द्वारा किए गए कार्य

* महर्षि दयानन्द सरस्वती ने 1875 में बम्बई में की आर्यसमाज की स्थापना
* महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने वेदों का भाष्य किया।
* वेदज्ञान मनुष्यमात्र के ज्ञान का स्रोत की घोषणा
* क्रान्तिकारी ग्रन्थ सत्यार्थ प्रकाश की रचना
* सैकड़ों पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाश
* साहित्य क्षेत्र में करोड़ों पुस्तकों का किया प्रकाशन
* स्वराज्य एवं स्वदेश शब्दों की देन
* गुरुकुलीय शिक्षा पद्धति की पुनर्स्थापना
* पाखंड अंधविश्वास के विरुद्ध जनजागरुकता में आर्यसमाज ने किया कार्य
* उर्दू-अंग्रेजी के स्थान पर संस्क त एवं हिन्दी भाषा की पुनर्स्थापना
* हजारों क्रान्तिकारियों के प्रेरणास्रोत
* छूआछूत के विरुद्ध सफल अभियान का संचालन
* जाति विहीन समाज की स्थापना हेतु निरन्तर संघर्ष
* बाल विवाह का विरोध व विधवा विवाहों का प्रचलन
* स्त्री शिक्षा एवं स्त्री सम्मान का युगान्तरकारी अभियान
* गौ आधारित कषि एवं आर्थिकी का प्रचार

सामाजिक कुरीतियों का विरोध

* जन्मना जातिवाद – छुआछूत
* बाल विवाह
* बहुविवाह
* सती प्रथा
* मृतक श्राद्ध
* पशु बलि
* नर बलि
* पर्दा प्रथा
* देवदासी प्रथा
* वेश्यावृत्ति
* शवों को दफनाना या नदी में बहाना
* मृत बच्चों को दफनाना
* समुद्र यात्रा के निषेध का खण्डन
* अभक्ष्य मांसाहार

समाज सुधार के कार्य की नीव

* कार्य के आधार पर वर्ण व्यवस्था का समर्थ
* अंतरजातीय विवाह
* दलितोद्धार
* विधवा पुन ववाह
* सबके लिए शिक्षा अभियान
* नारी सशक्तिकरण
* नारी को शिक्षा का अधिकार सबको वेद पढ़ने का अधिकार
* गुरुकुल शिक्षा पद्धति का आरम्भ
* प्रथम हिन्दू अनाथालय की स्थापना
* प्रथम स्वदेशी बैंक की स्थापना, पंजाब नेशनल बैंक
* प्रथम गौशाला की स्थापना
* स्वदेशी आन्दोलन आरम्भ और संचालन

 

( साभार – आर्य समाज की वेबसाइट )

एमएसएमई क्षेत्र के लिए कोलकाता में वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम

कोलकाता । एमएसएमई क्षेत्र के विकास और इसपर निर्भर रहनेवालों के लिए व्यापारिक विकास पर रणनीतिक तैयार करना काफी महत्वपूर्ण माना गया है। जानकारी और संसाधनों की कमी के अलावा कोविड के बाद के क्षेत्र में बिक्री/विपणन के असंगठित तरीकों के कारण एमएसएमई क्षेत्र को नए बाजारों की खोज करने और मौजूदा बाजार को बनाए रखने में कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इन समस्याओं और चुनौतियों को ध्यान में रखते हुए केंद्र सरकार के एमएसएमई मंत्रालय की ओर से एमएसएमई क्षेत्र में उत्पादों और सेवाओं की विपणन क्षमता बढ़ाने के लिए खरीद और व्यापारिक सहायता योजना शुरू की गई है। यह योजना वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम (वीडीपी) एमएसई के लिए सार्वजनिक खरीद नीति – 2012 (2018 में संशोधित) के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए बाजार लिंकेज की सुविधा के लिए इस योजना का एक घटक है।

वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय की ओर से अर्ध-सरकार, विभाग और सीपीएसयू, जीईएम कार्यालय के साझा मंच पर एमएसएमई के हितधारकों को केंद्र सरकार के पास लाने के लिए यह एक पहल है। इस पहल को आगे बढ़ाने के लिए कोलकाता में स्थित एमएसएमई डेवलपमेंट फेसिलिटेशन ऑफिस की ओर से सोमवार 13 और मंगलवार 14 फरवरी 2023 को कोलकाता के साल्टलेक स्टेडियम के निकट स्थित निजी होटल में दो दिवसीय कार्यक्रम के दूसरे दिन का उद्घाटन  पी चौधरी (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई, पश्चिम बंगाल सरकार),  यू स्वरूप (आईएएस, निदेशक, एमएसएमई, पश्चिम बंगाल सरकार), डी मित्रा (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई-डीएफओ, कोलकाता) ने संयुक्त रूप से किया।

इस कार्यक्रम में विपणन से संबंधित विभिन्न विषयों पर कार्यशाला सह संगोष्ठी और चुनिंदा एमएसएमई से जुड़े उत्पादों का प्रदर्शन किया गया। सीपीएसयू, केंद्र सरकार के विभागों के साथ एक के साथ एक की बातचीत की व्यवस्था की गयी, जिसमें निम्नलिखित विषयों पर विशेष ध्यान दिया जाएगा:

1. एमएसएमई के लिए सार्वजनिक खरीद नीति पर सत्र – 2012
2. सीपीएसयू और सरकार की ओर से अर्ध-सरकारी विभाग में खरीद विक्रेता पंजीकरण प्रक्रिया पर विशेष सत्र।
3. सरकारी ई-मार्केटप्लेस (जेम) पर सत्र
4. भारत सरकार के एमएसएमई मंत्रालय की विपणन सहायता योजना और अन्य योजनाओं पर विशेष सत्र का आयोजन।
5. जेम पंजीकरण के लिए शिविर
6. सीपीएसयू और अन्य हितधारकों के लिए टेबल स्पेस में उत्पाद प्रदर्शनी
7. सीपीएसयू और अन्य हितधारकों के साथ बातचीत
8. उद्यम रजिस्ट्रेशन के लिए शिविर

इस मौके पर डी मित्रा (संयुक्त निदेशक, एमएसएमई- डीएफओ कोलकाता) ने कहा, हमारा मुख्य उद्देश्य पश्चिम बंगाल राज्य में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के प्रचार और विकास के लिए सहायता प्रदान करना है। पूरे देश के विभिन्न राज्य, सरकार के संगठन, कार्यालय और उद्योग संघ इस वीडीपी में भी शामिल हो रहे हैं। उन्होंने यह भी कहा कि एमएसएमई क्षेत्र का समावेशी विकास रोजगार और राज्य के सकल घरेलू उत्पाद को पूरा करेगा।

वेंडर डेवलपमेंट प्रोग्राम में प्रत्येक दिन 120-150 एमएसएमई और 15-20 एमएसई अपने उत्पादों को प्रदर्शित करने के लिए आते थे। जीआरएसई, हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (एचएएल), भारत हेवी इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीएचईएल), ओएनजीसी, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन लिमिटेड, हल्दिया, बामर लॉरी, एमएसटीसी, ईस्टर्न रेलवे, कोल इंडिया लिमिटेड, दामोदर वैली कॉरपोरेशन (डीवीसी) आदि जैसे बड़े खरीदारों ने इस भव्य आयोजन में भाग लिया।

द हेरिटेज स्कूल के ध्रुव को जनवरी की जी मेन्स परीक्षा में 99.87 पर्सेन्टाइल

कोलकाता । द हेरिटेज स्कूल, कोलकाता के विद्यार्थी ने जी मेन्स की जनवरी में आयोजित परीक्षा में 99.87 पर्सेन्टाइल प्राप्त किए हैं । बारहवीं में विज्ञान लेकर पढ़ रहे ध्रुव के साथ ही इसी बैच के कुणाल सुराना ने 97 पर्सेन्टाइल प्राप्त किए हैं । द हेरिटेज स्कूल, कोलकाता की प्रिंसिपल सीमा सप्रू ने ध्रुव की इस उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त की । हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ प्रदीप अग्रवाल ने कहा कि विद्यालय के शिक्षक – शिक्षिकाओं की कड़ी मेहनत के कारण यह सम्भव हो पाया है ।

आरबीआई के रेपो रेट बढ़ाने का एमसीसीआई ने किया स्वागत

कोलकाता । मर्चेंट्स चेम्बर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री ने कहा कि आरबीआई की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर में 25 आधार अंकों (बीपीएस) की वृद्धि करके सही कदम उठाया है और यह बढ़ती मुद्रास्फीति को उलटने के रूप में कार्य कर सकता है।
एमसीसीआई के अध्यक्ष नमित बाजोरिया ने आरबीआई के नीतिगत फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा, मौजूदा वैश्विक आर्थिक स्थिति के संदर्भ में रेपो दर में 25 बीपीएस की वृद्धि से विकास और मुद्रास्फीति के बीच संतुलन बनने की संभावना है। जैसा कि आपूर्ति पक्ष की स्थिति में सुधार देखा जा रहा है, मुद्रास्फीति धीरे-धीरे गिरनी चाहिए। .
अपने पूंजीगत व्यय पर स्थिर रहने के लिए सरकार की प्रतिबद्धता के साथ राजकोषीय विवेक, जैसा कि केंद्रीय बजट में स्पष्ट किया गया है, हमें अगले वित्तीय वर्ष में 6.4 प्रतिशत की वृद्धि दर का अनुमान लगाने वाले आरबीआई के आशावाद को साझा करने का विश्वास दिलाता है। पिछले 10 महीनों में, रेपो दर में संचयी 250 बीपीएस की बढ़ोतरी की गई है और अल्पकालिक मुद्रा बाजार दरों में 300 बीपीएस से अधिक की वृद्धि हुई है । बाजोरिया ने ट्रेड रिसीवेबल्स डिस्काउंटिंग सिस्टम (टीआरईडीएस) के विस्तार का स्वागत किया क्योंकि इससे एमएसएमई को काफी मदद मिलेगी।

बीएचएस में सरस्वती पूजा एवं गणतंत्र दिवस का आयोजन

कोलकाता । गत 26 जनवरी 2023 को छात्रों के वापस जीवंत होने के साथ, बिड़ला हाई स्कूल csx परिसर में गणतंत्र दिवस और सरस्वती पूजा समारोह मनाया गया। स्कूल प्रबंधन द्वारा छात्रों, कर्मचारियों, अभिभावकों और अन्य लोगों को उत्सव का हिस्सा बनने के लिए आमंत्रित किया गया था। सबसे पहले स्कूल के महासचिव, मेजर जनरल वीएन चतुर्वेदी ने उप महासचिव कर्नल टी. बेरा और प्रिंसिपल लवलीन सैगल की उपस्थिति में ध्वजारोहण किया । समारोह की शुरुआत स्कूल के जूनियर और सीनियर वर्ग द्वारा सांस्कृतिक प्रस्तुति से हुई । कार्यक्रम की शुरुआत राग भैरवी से स्कूल प्रार्थना गीत के माध्यम से हुई। माँ सरस्वती का आशीर्वाद लेने के लिए नृत्य की प्रस्तुति की गयी । स्कूल की प्रिंसिपल लवलीन सैगल ने इस बात पर जोर दिया कि किसी व्यक्ति और संस्था को सफलता के पथ पर चलने के लिए आध्यात्मिक आशीर्वाद की कितनी आवश्यकता है। परम्परागत परिधान में सजे छात्रों ने हॉल में हुजूम जमाया और देवी को ‘पुष्पांजलि’ अर्पित की। इस पवित्र दिन पर ‘प्रसाद’ वितरण के साथ पूजा समाप्त हुई।

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में रूबेला टीकाकरण अभियान

कोलकाता । पश्चिम बंगाल सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण विभाग ने सभी शिक्षण संस्थानों को खसरा और रूबेला की रोकथाम के लिए स्कूलों में टीकाकरण शिविर आयोजित करने का निर्देश दिया है। कारण यह है कि कई बच्चों को 15 साल की उम्र में भी खसरा हो रहा है। यह पश्चिम बंगाल सरकार की पहल पर खसरा के लिए एक तरह की बूस्टर खुराक है और पूरी तरह से मुफ्त है। राज्य सरकार के निर्देश को ध्यान में रखते हुए सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल ने गत 28 जनवरी को नर्सरी से दसवीं कक्षा तक के छात्राओं के लिए टीकाकरण अभियान का आयोजन किया जिसमें 609 छात्राओं को टीका लगाया गया।

 

सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में वार्षिक क्रीड़ा समारोह


कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में नर्सरी एवं किंडरगार्टन कक्षाओं के लिए वार्षिक क्रीड़ा समारोह आयोजित किया गया । छात्राओं ने इस अवसर पर आयोजित खेलकूद में उत्साह के साथ भाग लिया । आकर्षक परिधानों, सुमधुर संगीत , रोचक दौड़ जैसी प्रतियोगिताओं ने कार्यक्रम को आनंददायक बना दिया ।

 

सुशीला बिड़ला में गणतंत्र दिवस


कोलकाता । सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में गणतंत्र दिवस मनाया गया । इस अवसर पर समारोह के मुख्य अतिथि कर्नल (सेवानिवृत्ति) टी. आर. बेरा उपस्थित थे । राष्ट्रीय रंग से रंगे सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति की गयी । कार्यक्रम में स्कूल की निदेशक शर्मिला बोस, प्रिंसिपल कोइली दे, हेडमिस्ट्रेस विदिशा पांजा उपस्थित थीं। समारोह में स्कूल की शिक्षिकाओं एवं विद्यार्थियों के साथ अभिभावक एवं शिक्षाकर्मी उपस्थित थे ।

 

 

प्रेम कोई भावना नहीं है, प्रेम तो आपका अस्तित्व है

प्रेम कोई भावना नहीं है, प्रेम तो आपका अस्तित्व है। हर व्यक्त्ति के परे प्रेम है। व्यक्त्तित्व बदलता है। शरीर, मन और व्यवहार हमेशा बदलते रहते हैं। हर व्यक्त्तित्व से परे अपरिवर्तनशील प्रेम है; वह प्रेम तुम हो। जब स्वयं को खो दोगे, तो स्वयं को पा लोगे। घटना के पीछे की घटना ज्ञान है। वस्तु के पीछे की वस्तु अनन्त है। व्यक्त्ति के परे व्यक्त्ति प्रेम है। वस्तु के परे अनन्त है। व्यक्त्ति के परे प्रेम है। घटना, व्यक्त्तित्व और वस्तु में फँस जाना माया है। घटना, व्यक्त्तित्व और वस्तु के परे देखना प्रेम है। देखने का जरा सा ही फेर है।

प्रेम के प्रकार 

प्रेम के तीन प्रकार होते हैं:

  1. प्रेम जो आकर्षण से पैदा होता है।
  2. जो सुख सुविधा के लोभ से पैदा होता है।
  3. और, दिव्य प्रेम।

प्रेम जो आकर्षण से पैदा होता वह क्षणिक होता हैं क्योंकि वह अज्ञान या सम्मोहन के कारण से होता है। इसमें आपका आकर्षण से जल्दी ही मोह भंग हो जाता है और आप ऊब जाते हैं। यह प्रेम धीरे-धीरे कम होने लगता है और भय, अनिश्चिता, असुरक्षा और उदासी लाता है।

जो प्रेम सुख सुविधा से मिलता है वह घनिष्टता लाता है परन्तु उसमें कोई जोश, उत्साह, या आनंद नहीं होता है। उदाहरण के लिए आप एक नए मित्र की तुलना में अपने पुराने मित्र के साथ अधिक सुविधापूर्ण महसूस करते हैं क्योंकि वह आपसे परिचित है।

दिव्य प्रेम सदाबहार होता है 

दिव्य प्रेम सबसे उच्च कोटि का प्रेम है। यह सदाबहार होता है और सदा नवीन बना रहता है। आप जितना इसके निकट जाएँगे उतना ही इसमें अधिक आकर्षण और गहनता आती है। इसमें कभी भी थकान नहीं आती है और यह हर किसी को उत्साह में रखता है।

सांसारिक प्रेम सागर के जैसा है, परन्तु सागर की भी सीमा होती है। दिव्य प्रेम आकाश के जैसा है जिसकी कोई सीमा नहीं है। सागर की सीमा से आकाश की ओर की ऊँची उड़ान भरो। ईश्वरीय प्रेम सभी संबंधो से परे है और इसमें सभी संबंध सम्मिलित होते हैं।

पहली नज़र का प्रेम क्या होता है 

अक्सर लोग पहली नज़र में प्रेम को अनुभव करते हैं। फिर जैसे समय गुजरता है, यह कम और दूषित हो जाता हैं और घृणा में परिवर्तित होकर गायब हो जाता है। जब प्रेम में ज्ञान की खाद डाली गई हो तो वही प्रेम वृक्ष बन जाता हैं प्राचीन प्रेम का रूप लेकर जन्म जन्मांतर साथ रहता है। वह हमारी स्वयं की चेतना है। आप इस वर्तमान शरीर, नाम, स्वरूप और संबंधो से सीमित नहीं हैं। आपको अपना अतीत और प्राचीनता पता न हो लेकिन बस इतना जान लें कि आप प्राचीन हैं। यह भी पर्याप्त है।

प्रेम स्वीकार कैसे करें

कई बार प्रेम उलझा हुआ लगता है क्योंकि लोगों को यह पता ही नहीं कि प्रेम को कैसे स्वीकार किया जाये। कोई आपके पास आकर कहने लगता है, मैं आपको बहुत प्यार करता/करती हूं। बस‌ थोड़ी ही देर में आप अपने कान बंद कर लेना चाहते हैं और कहने लगते हैं, ‘बस करो, मेरे लिये यह सब बहुत भारी हो रहा है, मैं इससे भागना चाहता हूं। बात तो यह है कि वह व्यक्ति प्यार में भी घुटन महसूस करने लगता है। यह इसलिए कि हम अपने भीतर कभी उतरे ही नहीं। हमने कभी महसूस भी नहीं किया कि हम कौन हैं। हमें यह पता ही नहीं कि हम ऐसी एक चीज़ से बने हुए हैं, जिसका नाम प्रेम है। जब हम अपने खुद के साथ जुड़े हुए नहीं हैं तो फिर दूसरे के साथ जुड़ पाना इतना स्वाभाविक नहीं हो पाता। और इसलिए, दूसरा कोई आपसे जुड़ना चाहे तो आप इतने बेचैन हो जाते हैं। क्योंकि आप तो महसूस करते हैं कि आप खुद के साथ ही नहीं मिल पाये हैं इसलिए प्यार को कैसे स्वीकार किया जाये यह आप समझ नहीं पाते।

प्रेम करना एक कला है 

आपके पास प्रेम देने की कुशलता होनी चाहिए। प्रेम देने का कौशल यानी प्यार में डूब जाना, केवल कोशिश करना नहीं। प्रेम कोई कार्य नही है, वह तो आपके मन की अवस्था है। आपको उसमें बिना कोई शर्त के रहना है। देखिये, मै यहां आपके लिये बिना कोई शर्त के उपस्थित हूं। अब यहां आकर उसको स्वीकार करना आप पर ही निर्भर है। आपकी अंदर की ताकत की वजह से लोग आपको बेहतर समझ सकते हैं। उसी तरह आप किसी को बेहद प्यार करते हैं, आप यह उन्हें समझाने की जबरदस्ती नहीं कर सकते। यह सब हो पाने के लिये आपको थोड़ा समय बीत जाने देना होगा क्योंकि आपको पता ही है ऐसे मामले में जबरदस्ती करने से और बाकी समस्यायें खड़ी हो सकती हैं।

जब कोई आपसे प्रेम न करे तो क्या करें

जब लोग आपको प्रेम और सम्मान देते हैं तब आप विवश होकर शिष्टाचार निभाते हैं क्योंकि आप उन्हें व्यथित नहीं करना चाहते। पर जब वे आपको सम्मान और प्रेम नहीं देंगे, तब वे आपकी अभिव्यक्त्ति से प्रभावित नहीं होंगे। वे आपको स्वतन्त्र कर देते हैं। इसलिए अगली बार जब कोई आपको प्रेम व सम्मान न दे तो दुखी न हों बल्कि ये जान लें कि आप बहुत सी औपचारिकताओं से मुक्त हो गए, स्वतंत्र हो गए।

प्रेम पर शंका क्यों होती है 

आप केवल अपने जीवन की सकारात्मक चीज़ों पर ही शंका करते हैं? नकारात्मक चीज़ों पर शंका नहीं करते। आप किसी की ईमानदारी पर शंका करते हैं और उसकी बेईमानी पर विश्वास। जब कोई आपसे नाराज़ होता है तो उसकी नाराज़गी पर आपको कोई शंका नहीं होती। पर जब कोई कहे कि वे आपको प्रेम करते हैं तभी शंका आ जाती है और आप सोचने लगते हैं “क्या? सच में वे मुझसे प्रेम करते हैं?”

जब कोई आपके प्रेम पर संदेह करे तो क्या करें 

आप वास्तव में किसके साथ सहज और स्वच्छन्द अनुभव करते हैं ? उनके साथ जो आपके प्रेम पर सन्देह नहीं करता, जो नि:सन्देह विश्वास करता है कि आप उसको प्रेम करते हैं। है ना?

जब कोई आपके प्रेम पर सन्देह करता है और आपको निरन्तर अपने प्रेम को साबित करना है तो फिर यह आपके लिए एक भारी बोझ बन जाता है। वे आपसे प्रश्न करते हैं और आपके प्रत्येक कार्य का स्पष्टीकरण चाहते हैं। आप जो भी करते हैं, उसकी व्याख्या देना मानसिक बोझ है। आपका स्वभाव है बोझ को हटाना, क्योंकि आप चैन नहीं महसूस करते।

आप सदा साक्षी हैं। स्वयं के कार्यों के प्रति भी आप उतने ही साक्षी हैं जितने दूसरों के कार्यों के प्रति। जब लोग आपसे आपके कार्यों का स्पष्टीकरण मांगते हैं तो वे कर्ताभाव से बोल रहे हैं और उस कर्तापन को आप पर थोप रहे हैं। यह बेचैनी लाता है। न तो स्पष्टीकरण माँगें और न ही दें।

प्रेम अधूरा क्यों है 

‘सखा’ जीवन और मत्यु का साथी है – यह कभी साथ नहीं छोड़ता। सखा को केवल प्रियतम चाहिए। उसे ज्ञान या मुक्त्ति की परवाह नहीं। उत्कंठा, तृष्णा के कारण प्रेम अधूरा है। उसका प्रेम असीम है और अनन्तता में कभी पूर्णता संभव नहीं। उसका प्रेम अनन्त अपूर्णता में पूर्ण है। प्रेम के पथ का कोई अंत नहीं।

प्रेम सबसे बड़ी शक्ति है 

प्रेम सबसे बड़ी शक्ति है और वही आपको बिल्कुल कमज़ोर भी बना देती है। इसलिए ईश्वर नहीं चाहते कि आपका प्रेम और विश्वास और अधिक बढ़े। अत्यधिक प्रेम और निष्ठा से आप ईश्वर को कमज़ोर बना देते हैं इसलिए ईश्वर के लिए तो यही अच्छा है कि आपकी श्रद्धा, भक्ति  कम रहे। सब कुछ तो वैसे ही चलता रहेगा।

प्यार को प्यार ही रहने दो, कोई नाम ना दो 

प्रेम को केवल प्रेम रहने दो। उसे कोई नाम न दो। जब आप प्रेम को नाम देते हैं, तब वह एक संबंध बन जाता है, और संबंध प्रेम सीमित करता है। आपमें और मुझमें प्रेम है। बस, उसे रहने दीजिये। यदि आप प्रेम को भाई, बहन, माता, पिता, गुरु का नाम देते हैं, तब आप उसे संबंध बना रहे हैं। संबंध प्रेम को सीमित कर देता है। स्वयं अपने साथ आपका क्या संबंध है? क्या आप अपने भाई, पति, पत्नी या गुरु हैं? प्रेम को प्रेम ही रहने दो। उसे कोई नाम ना दो।

 

सखि वसन्त आया

-सूर्यकान्त त्रिपाठी ‘निराला’

सखि वसन्त आया ।
भरा हर्ष वन के मन,
नवोत्कर्ष छाया ।
किसलय-वसना नव-वय-लतिका
मिली मधुर प्रिय-उर तरु-पतिका,
मधुप-वृन्द बन्दी–
पिक-स्वर नभ सरसाया ।

लता-मुकुल-हार-गंध-भार भर,
बही पवन बंद मंद मंदतर,
जागी नयनों में वन-
यौवन की माया ।
आवृत सरसी-उर-सरसिज उठे,
केशर के केश कली के छुटे,
स्वर्ण-शस्य-अंचल
पृथ्वी का लहराया ।