Sunday, August 17, 2025
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है बुझानी धरा की अगर प्यास तो/पावनी प्रेम गंगा बहा दीजिए’

जालान पुस्तकालय में काव्य गोष्ठी का आयोजन

कोलकाता । सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय के तत्वावधान में गाजीपुर (उत्तर प्रदेश) से पधारे प्रख्यात कवि कामेश्वर द्विवेदी के सम्मान में एक अंतरंग काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर उन्हें अंग वस्त्र और पुष्प गुच्छ देकर सम्मानित किया गया।इस काव्य गोष्ठी की अध्यक्षता भोजपुरी एवं हिंदी के वरिष्ठ कवि रामपुकार सिंह ने की। इस मौके पर कवियों ने सभी रसों की कविताओं की धारा प्रवाहित की।गोष्ठी का कुशल संचालन करते हुए कवि विजय शर्मा ‘विद्रोही’ ने आज के देश के हालात पर कविता सुनायी कि शत्रुओं के गुप्तचरों से/अपने ही कुछ नरों से/ देश आज डरा हुआ है/ कहां पर खड़ा हुआ है। काव्य गोष्ठी के उत्सवमूर्ति कवि कामेश्वर द्विवेदी ने अपनी कविता- है बुझानी धरा की अगर प्यास तो/ पावनी प्रेम गंगा बहा दीजिए सहित अपनी अनेक रचनायें सुना कर श्रोताओं की भरपूूर वाह–वाही लूटी। युवा कवि परमजीत कुमार पंडित ने समाज में हो रहे भटकाव पर अपनी कविता– गहराइयों से भी घने अंधकार में ले जाता है/ जिसके बाद कोई पाठ नहीं/एक अंतहीन, भटकाव–भटकाव–भटकाव की प्रस्तुति की। गोष्ठी में वरिष्ठ कवि हीरालाल जायसवाल ने कई सारगर्भित कविताएं सुनायी। उनकी कविता की बानगी है- असंतोष उभरा है जग में /शांति नहीं मिल पाती है/जीवन के हर क्षेत्र में मां/ अब तेरी याद सताती है । गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवि रामपुकार सिंह ने गांव पर केंद्रित अपनी कविता– सही में गांव है तो हिंद की पहचान है प्यारे/ कहें क्या गांव में ही बसता हिंदुस्तान है प्यारे सुनाई जिसे श्रोताओं ने खूब पसंद किया। मुख्य अतिथि के रुप में उपस्थित उमेशचंद्र कॉलेज के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. कमल कुमार ने कहा कि कविता में कविता की संप्रेषणता सबसे जरूरी है। कविता समाज को, देश को व्यक्ति से जोड़ती है। गोष्ठी में विवेक तिवारी ने दिनकर और जयशंकर प्रसाद की रचनाओं का सुमधुर काव्य पाठ कर सबका मन मोह लिया। गोष्ठी का शुभारंभ कवियित्री हिमाद्री मिश्रा के सुमधुर सरस्वती वंदना ” *वाणी वीणा मधुर बजावे/
सप्त सुरो की माला शुचि सुंदर सरगम स्वर लहरावे” से हुआ। धन्यवाद ज्ञापन पुस्तकालयाध्यक्ष श्रीमोहन तिवारी ने दिया। इस काव्य गोष्ठी में राजकुमार शर्मा, राकेश पांडेय, पूजा चौधरी, चारुस्मिता, एवम् कुमार तेजस सहित अनेक गणमान्य सुधिजन उपस्थित थे।

‘हिंदी भाषा और साहित्य’ विषय पर संगोष्ठी

मिदनापुर। विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग की ओर से ‘हिंदी भाषा और साहित्य’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया। इस अवसर पर मुख्य वक्ता के रूप में विश्वभारती विश्वविद्यालय के पूर्व विभागाध्यक्ष प्रो. रवींद्रनाथ मिश्र ने कहा कि हिंदी भाषा और साहित्य भारतीय संस्कृति के अध्ययन का मार्ग है। संस्कृत भाषा की जननी है। जिस प्रकार माँ बच्चों को भाषा का ज्ञान देती है, उसी प्रकार संस्कृत भी अन्य भाषाओं को जानने में हमारी मदद करती है। उन्होंने कहा साहित्य व्यक्तित्व निर्माण का कारखाना है ।संवाद सत्र में विभाग के विद्यार्थियों और शोधार्थियों ने अपनी जिज्ञासाओं को उनके समक्ष रखा। स्वागत भाषण देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ प्रमोद कुमार प्रसाद ने प्रो. मिश्र का स्वागत करते हुए कहा कि हिंदी भाषा का साहित्य समृद्ध होने के साथ समावेशी भी है। संचालन करते हुए विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि ईश्वरचन्द्र विद्यासागर की जन्मभूमि पर अवस्थित हमारा हिंदी विभाग भारतेंदु और विद्यासागर के बीच के हिंदी- बांग्ला संवाद और सृजन की परंपरा को आगे बढ़ाने के लिए प्रतिबद्ध है।हिंदी भारतीय साहित्य के बीच एक सृजनात्मक एवं सांस्कृतिक पुल है।इस आयोजन को सफल बनाने में विद्यार्थियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए सहायक प्रोफेसर डॉ श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि हिंदी भाषा और साहित्य की जड़ें भारतीयता,ज्ञान और मनुष्यता की ओर जाती हैं।

साहित्यिकी संस्था द्वारा वरिष्ठ सदस्याओं के साहित्यिक योगदान एवं समर्पण पर गोष्ठी

कोलकाता । प्रसिद्ध संस्था साहित्यिकी ने अपनी दो वरिष्ठ सदस्याओं डॉ आशा जायसवाल और सरोजिनी शाह के व्यक्तित्व और अनुभवों को केंद्र रख मासिक गोष्ठी का आयोजन किया। सचिव मंजुरानी गुप्ता ने ज़ूम मंच पर उपस्थित सदस्याओं एवं अतिथियों का हार्दिक स्वागत किया। साहित्यिकी की संस्थापिका डॉ सुकीर्ति गुप्ता की स्मृति को नमन करते हुए रेवा जाजोदिया को संचालन के लिए आमंत्रित किया।
रेवा जाजोदिया ने साहित्यिकी संस्था की वरिष्ठ सदस्याओं डॉ आशा जयसवाल एवं सरोजिनी शाह के जीवन के महत्वपूर्ण पक्षों को उजागर करते हुए बताया कि दोनों ने ही अपने जीवन के लगभग आठ दशकों तक की यात्रा की है जिनमें संघर्ष, सुख – दुख, खट्टे – मीठे अनुभव दोनों रहे।
प्रथम वक्तव्य के लिए संस्था की सदस्य प्रसिद्ध व्यंग्यकार नुपूर अशोक को आमंत्रित किया। आशा जी के व्यक्तित्व और उनके साहित्यिक अवदान की चर्चा करते हुए नुपूर अशोक ने कहा कि एक शिक्षिका के रूप में इस उम्र में भी वे अपना कर्तव्य बहुत ही सकारात्मक ऊर्जा लिए कर रही हैं। पुरानी पीढ़ी के लिए जीवन की चुनौतियाँ अलग तरह की होती थीं। अनुशासन, आध्यात्मिक झुकाव, चिन्मय मिशन से जुड़ाव , गीता और उपनिषद की कक्षाएँ लेना आज भी उनके जीवन का अंग है। चेहरे पर हमेशा मुस्कान उनकी ऊर्जा को दर्शाता है। डॉ आशा जायसवाल ने संस्था को धन्यवाद दिया और कहा कि संस्था की स्थापना के समय से ही जुड़ी हूँ और गुरू परंपरा पर विश्वास करती हूँ। जीवन अनुभवों की श्रृंखला है । अपने दृष्टिकोण को बदलने से विचारों में नयापन आता है।
द्वितीय वरिष्ठ सदस्या सरोजिनी शाह का परिचय देते हुए कवयित्री और उद्घोषिका सबिता पोद्दार ने 30 मार्च 1942 में बुलंदशहर में जन्मी सरोजिनी शाह के जीवन का परिचय दिया। जीवंतता, अतिथि परायण और सरलता से पूर्ण उनका व्यक्तित्व रहा । मारवाड़ी परिवार में पली सरोजिनी शाह परिवार में रहकर परिवार की परंपराओं को साधक की तरह अपनाती गई जो उनको एक महत्वपूर्ण इंसान बनाता है।एम ए डिग्री प्राप्त करते ही उनका विवाह हो गया था । विवाह के पश्चात किस तरह पारिवारिक जीवन में चुनौतियों का सामना करना पड़ा और रिश्तों को निभाया, उस पर अपनी बातें रखी। साहित्यिकी से जुड़ कर उन्होंने अपनी साहित्यिक रुचियों को आगे बढ़ाया।
सरोजिनी शाह ने अपने जीवन के कठिन संघर्षों को साझा किया। स्त्रियों के स्वावलंबन और अस्मिता को उन्होंने अपने वक्तव्य में विशेष रूप से रेखांकित किया।
संवाद सत्र में गीता दूबे ने ममतामयी स्वभाव, अहंकार से परे, आडंबरहीन हौसलाअफ़जाई करने वाली आशा जी के कई अनुकरणीय विशेषताओं पर अपने विचार व्यक्त किए । रेणु गौरिसरिया ने रांची में एक साथ गुजारे समय को याद किया।उषा श्रॉफ़, उमा झुनझुनवाला के अतिरिक्त सारिका बंसल, ऋचा अहलूवालिया, शालिनी केडिया आदि ने अपने अंतरंग प्रेरक प्रसंगों को साझा किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए कुसुम जैन ने कहा कि संस्था एक परिवार की तरह है और हम सब का प्यार एक दूसरे की ताकत है, हमारे आपसी संबंध रक्त संबंधों से इतर होते हुए भी हृदय से जुड़े हुए हैं।
संचालन करते हुए रेवा जाजोदिया ने दोनों ही वरिष्ठ सदस्याओं को साहित्य प्रेमी, साधक, रिश्तों को साधने वाली बताया।
ज़ूम ऑनलाइन हुई इस साहित्य गोष्ठी में साहित्यिकी की सदस्याओं ने सक्रिय रूप से भाग लिया। रिपोर्ट डॉ वसुंधरा मिश्र ने दी ।

‘गांधी और सरला देवी चौधरानी’ पर भवानीपुर कॉलेज में चर्चा

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज की लाइब्रेरी में साहित्य अकादमी से पुरस्कृत कथाकार अलका सरावगी का नया उपन्यास ‘गांधी और सरला देवी चौधरानी’ बारह अध्याय पर आधारित चर्चा का आयोजन चार मई को किया गया। कॉलेज के डीन प्रो दिलीप शाह ने अलका सरावगी का स्वागत किया। हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ कविता मेहरोत्रा ने उत्तरीय प्रदान कर उनका सम्मान किया वहीं डॉ मिश्र ने मोमेंटो प्रदान किया । संचालन करते हुए डॉ वसुंधरा मिश्र ने कार्यक्रम की शुरुआत में अलका सरावगी का परिचय दिया और उपन्यास गांधी और सरला देवी चौधरानी पर चर्चा की।डॉ मिश्र ने कई सवाल पूछे जिसमें अलका जी ने बड़ी ही स्पष्टता से उनका निराकरण किया। जैसे बंगाल के मशहूर परिवार रवीन्द्र नाथ टैगोर की भांजी सरला देवी चौधरानी क्या गांधी की आध्यात्मिक पत्नी थीं? यह आपने अपने उपन्यास में किस आधार पर विश्लेषण किया। दो महान व्यक्तित्वों के आंतरिक मामलों को उजागर करने में आपने अपने लेखन में किस प्रकार की सावधानियाँ बरती आदि विभिन्न प्रश्न रहे। रवीन्द्रनाथ टैगोर की भांजी कथाकार स्वर्ण कुमारी की बेटी, बंगाल की दुर्गा और जॉन अॉ आर्क सरला देवी चौधरानी का राजनीतिक संबंध, राष्ट्रीय योगदान, गांँधी के साथ उनका नाम जुड़ना, खादी पहनना, हिंदी का प्रचार-प्रसार, गांधी की करीबी रहीं। गांधी ने उन्हें अपनी आध्यात्मिक पत्नी कहा। इस अवसर पर 25 विद्यार्थियों, शिक्षिकाओं और भारत जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता की अध्यक्ष अंजू सेठिया, नेहा रामपुरिया और रूमा दास एवं मीडिया से मेघा केजरीवाल की सक्रिय उपस्थिति रही ।प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी, प्रो समीक्षा खंडूरी का सहयोग रहा। कार्यक्रम की सूचना दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने अलका सरावगी से उपन्यास पर नम्रता चौधरी, रवि सिंह और कशिश साह ने प्रश्न भी पूछे।

सरल होगी तलाक की प्रक्रिया, जरूरी नहीं होगा 6 महीने तक इंतजार

नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने व्यवस्था दी है कि अगर पति-पत्नी का रिश्ता टूट चुका है और उसमें सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बची है, तो कोर्ट संविधान के अनुच्छेद-142 के तहत तलाक को मंजूरी दे सकता है। इसके लिए छह महीने का इंतजार अनिवार्य नहीं होगा। हालांकि, सुप्रीम कोर्ट को इस बात पर पूरी तरह संतुष्ट होना होगा कि शादी काम नहीं कर रही है और भावनात्मक स्तर पर खत्म हो चुकी है।
छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड मानना जरूरी नहीं
सुप्रीम कोर्ट के पांच जजों की संवैधानिक बेंच ने गत सोमवार को ऐसी शादियों के लिए तलाक का आधार तय किया जो पूरी तरह टूट के कगार पर हैं और सुलह की कोई गुंजाइश नहीं बची है। बेंच ने कहा, आपसी सहमति से तलाक का मामला है तो अदालत को यह अधिकार होगा कि वह हिंदू मैरिज ऐक्ट के तहत तय प्रक्रिया की शर्त हटा दे यानी सुप्रीम कोर्ट छह महीने के कूलिंग ऑफ पीरियड की अनिवार्यता मानने को बाध्य नहीं होगा। ऐसे मामलों में तलाक किसी का अधिकार नहीं होगा। कोर्ट ने यह भी कहा कि वह अपने विशेष अधिकार का प्रयोग कर वैवाहिक विवाद में लम्बित आपराधिक कार्रवाई, गुजारा भत्ते और धारा-498 ए के केस, घरेलू हिंसा के केस भी खारिज कर सकता है।
कोर्ट ने कहा कि तलाक का फैसला देने से पहले ये तथ्य देखने जरूरी होंगे। मसलन शादी संबंध में दोनों कितने दिन रहे । आखिरी बार दोनों में कब संबंध बने । दोनों के बीच आपसी आरोप-प्रत्यारोप कैसे थे । कितनी बार कोशिश की गई कि दोनों में समझौता हो जाए। इसके अलावा आर्थिक, सामाजिक, शैक्षणिक, पति-पत्नी की उम्र आदि देखकर फैसला लेना होगा।
यह है सहमति से तलाक का मौजूदा नियम
हाई कोर्ट के वकील मुरारी तिवारी के मुताबिक हिंदू मैरिज ऐक्ट 1955 में प्रावधान है कि तलाक के लिए पहला मोशन जब दाखिल किया जाता है तो दोनों पक्ष कोर्ट को बताते हैं कि समझौते की गुंजाइश नहीं है और दोनों तलाक चाहते हैं। याचिका में दोनों बताते हैं कि कितना गुजारा भत्ता तय हुआ है और बच्चे की कस्टडी किसके पास है। कोर्ट तमाम बातों को रेकॉर्ड पर लेती है और दोनों से छह महीने बाद आने को कहती है। इस दौरान अगर समझौता नहीं हुआ तो 6 से लेकर 18वें महीने के बीच दोनों सेकंड मोशन के लिए अर्जी दाखिल करते हैं और कोर्ट को बताते हैं कि समझौता नहीं हो सका। इसके बाद कोर्ट तलाक की डिक्री पारित कर देता है।
और एक अजीब फैसला
अगर कोई शख्स अपने शादीशुदा होने और बच्चे का बाप होने की बात बताकर किसी के साथ लिव इन रिश्ते में प्रवेश करता है तो इसे लिव इन पार्टनर धोखा नहीं कह सकता। कलकत्ता हाई कोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान यह बात कही। निचली अदालत ने एक होटल इग्जेक्युटिव पर 10 लाख रुपये का जुर्माना लगाया था। उस पर अपने 11 महीने पुराने लिव इन पार्टनर को छोड़कर जाने और उससे शादी का वादा पूरा न करने पर धोखेबाजी का आरोप लगा था। हाई कोर्ट ने कहा कि अगर लिव इन मामले में छल का आरोप लगाया जाता है तो यह साबित करना होगा कि प्रतिवादी ने संबंध बनाने के लिए जो शादी का वादा किया था, वह झूठा था।

छत्रपति शिवाजी महाराज से है महाराष्ट्र स्थापना से जुड़ी स्वर्ण मुद्रा का सम्बन्ध

नागपुर । एक मई 1960 को महाराष्ट्र राज्य की स्थापना हुई और भारत के मानचित्र पर स्वतंत्र रूप से ‘महाराष्ट्र’ राज्य अस्तित्व में आया। 30 अप्रैल 1960 को मध्य रात्रि 12 बजे भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महाराष्ट्र राज्य का नक्शा प्रकाशित क‍िया और महाराष्ट्र राज्य के गठन की घोषणा की। पंडितजी ने महाराष्ट्र की बांगडोर यशवंतराव चव्हाण को सौंपकर नए महाराष्ट्र का नेतृत्व सौंपा था। इस शुभ घड़ी को महाराष्ट्र वासियों के लिए यादगार बनाने के मकसद से ‘महाराष्ट्र राज्य स्थापना महोत्सव मुद्रा’ का प्रकाशन किया गया है।
1 मई, 1960 को स्थापना दिवस के उद्घाटन समारोह में उपस्थित सभी गणमान्य व्यक्तियों को महाराष्ट्र राज्य फाउंडेशन महोत्सव सिक्का उपहार में दिया गया था। साथ ही यह मुद्रा बाद में महाराष्ट्र सरकार के सभी कर्मचारियों को वितरित की गयी। यह मुद्रा सोने, चांदी, तांबे और निकल में ढाली गई थी। लेकिन आज महाराष्ट्र की स्थापना के 63वें वर्ष में उस ऐतिहासिक क्षण का साक्षी ‘राजमुद्रा’ दुर्भाग्य से इतिहास बन गया है। समय बीतने और प्रगति की गति के साथ कई बार वित्तीय लाभ के लालच में कई लोगों ने इस शाही सिक्के को सुनार की भट्टी में पिघला दिया। अपने आभूषण बनाते समय बहुत से लोगों ने इसे खो दिया क्योंकि वे मुद्रा के महत्व को नहीं समझते थे।
किसके पास है मूल्यवान संपत्ति ?
चंद्रपुर के एक वरिष्ठ मुद्राशास्त्री और विद्वान अशोक सिंह ठाकुर ने इस अनमोल खजाने को अपने संग्रह में सहेज कर रखा है। 20 साल के लगातार संघर्ष के बाद उन्होंने आज तक इस दुर्लभ सिक्के को बचाने का संकल्प लिया है। आज तक उन्होंने 319 शाही टिकटों का संग्रह करके महाराष्ट्र की स्थापना की ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित किया है।
ठाकुर के संग्रह में 319 सिक्के
अशोक सिंह ठाकुर बताते हैं क‍ि मेरे संग्रह में 20 साल पहले महाराष्ट्र राज्य स्थापना महोत्सव की चांदी की मुद्रा थी। जैसे-जैसे मुझे समय के साथ संदर्भ पुस्तकें और उनके बारे में जानकारी मिलती गई, मुझे प्रिंट के महत्व का एहसास हुआ और इसे अपने संग्रह में पाकर मैं गौरवान्वित महसूस कर रहा था। तब मैंने अपने संग्रह में जोड़ने के लिए इस अनमोल खजाने की उत्सुकता से खोज की। आज मेरे संग्रह में 319 सिक्के हैं। यह मुद्रा सोने, चांदी और निकल से बनी होती है। लेकिन फिर भी मुझे इसमें सोने का सिक्का (सुवर्णा राजमुद्रा) नजर नहीं आता। लेकिन ठाकुर ने कहा कि सरकारी दस्तावेजों में इसका जिक्र है।
उत्सव कैसा है?
इस राजमुद्रा की सतह पर अशोक चक्र खुदा हुआ है और यह राजमुद्रा गोलाकार है। यह शाही मुद्रा ‘महाराष्ट्र राज्य स्थापना महोत्सव’ और वैशाख 11, 1882। 1 मई 1960 को भी आज ही का दिन है। सिक्के के नीचे ‘प्रतिपचंद्रलेखेव वर्धिष्णुर्विश्वा वंदिता’ और ‘महाराष्ट्रस्य राज्यस्य मुद्रा भद्राय राजते’ लिखा हुआ है। ये पंक्तियां छत्रपति शिवाजी महाराज की राजमुद्रा से प्रेरित हैं। यह सिर्फ एक सिक्का नहीं, एक मुद्रा है, बल्कि एक अमूल्य खजाना है, जो हमें महाराष्ट्र की स्थापना के सुनहरे पलों की याद दिलाता है। मुद्राशास्त्री और सिक्का संग्राहक के रूप में ठाकुर ने राय व्यक्त की कि सरकार और नागरिकों को भी इसका संरक्षण करना चाहिए।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

करोड़ों का पैकेज छोड़कर विनीता ने बनायी शुगर कॉस्मेटिक्स

नयी दिल्‍ली । उद्यमी विनीता सिंह अपने शो ‘शार्क टैंक’ के कारण हर घर में जानी जा रही हैं । शुगर कॉस्मेटिक्स की मुखिया विनीता आईआईटी और आईआईएम से पढ़ी हैं। सिर्फ 23 साल की उम्र में उन्‍हें इनवेस्‍टमेंट बैंक में 1 करोड़ रुपये की नौकरी मिल रही थी लेकिन, उन्‍होंने इसे ठुकराकर अपना कारोबार करने का फैसला किया। कारोबार की राह पर चलने का उनका सफर बेहद मुश्किल था। विनीता के सामने भी वे तमाम समस्‍याएं आईं जो किसी उद्यमी के सामने आती हैं। लेकिन, वह हर मुश्किल को पार करती गयीं । आज उनकी कंपनी का कारोबार 500 करोड़ रुपये से ज्‍यादा का है। करीब 10 सालों में उन्‍होंने कामयाबी का यह सफर तय किया है। उन्‍हें आज मामूली कारोबार को ब्रांड बना देने का हर गुर पता है। हालांकि, ये हुनर उन्‍होंने बहुत ठोकरें खाने के बाद सीखा है।
विनीता एक मां हैं। पत्‍नी हैं। बेटी हैं। महिला उद्यमी हैं। एथलीट हैं। शार्क हैं। मेंटर हैं। उनके व्‍यक्तित्‍व के कई पहलू हैं। इन सभी पहलुओं को वह खुलकर जीती हैं। बचपन से वह पढ़ाई-लिखाई में बेहद अच्‍छी थीं। उनका जन्‍म 1983 में गुजरात के आणंद जिले में हुआ। मां पीएचडी। पिता एम्‍स में बायोफिजिस्‍ट। शुरुआती पढ़ाई दिल्‍ली पब्लिक स्‍कूल आरके पुरम से हुई। 2005 में विनीता ने आईआईटी-मद्रास से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में बीटेक की। फिर 2007 में आईआईएम-अहमदाबाद से एमबीए पूरा किया। 2006 में उन्‍होंने ड्यूश बैंक में समर इनटर्नशिप की। पढ़ाई के बाद उन्‍हें 1 करोड़ रुपये की नौकरी मिल रही थी। लेकिन, उन्होंने इसे ठुकरा दिया। नौकरी के बजाय वह अपना लॉन्‍जरी व्यवसाय शुरू करना चाहती थीं। हालांकि, जरूरी फंड न जुटा पाने के कारण महिलाओं के लिए कंज्‍यूमर ब्रांड शुरू करने की इनकी इच्‍छा परवान नहीं चढ़ सकी। यह उनके रास्‍ते में सबसे पहली असफलता थी ।
2007 में शुरू क‍िया पहला स्‍टार्टअप
विनीता को तब यह भी एहसास हुआ था कि कहीं उन्‍होंने नौकरी का प्रस्ताव छोड़कर गलती तो नहीं कर दी। 2007 में उन्‍होंने अपना पहला स्‍टार्ट-अप क्‍वेटजल शुरू किया। यह वेंचर रिक्रूटर्स को बैकग्राउंड वेरिफिकेशन उपलब्‍ध कराने के आइड‍िया पर आधारि‍त था। व‍िनीता बताती हैं क‍ि उन्‍होंने तय कर ल‍िया था क‍ि वह निवेशकों से पैसा नहीं लेंगी। अलबत्ता, अपने पास उपलब्‍ध संसाधनों से कारोबार खड़ा करेंगी। उन्‍होंने 5 साल तक इसी सोच के साथ यह सर्विस ब‍िजनस क‍िया। वह एक करोड़ रुपये की तनख्वाह छोड़कर 10 हजार रुपये की तनख्वाह से काम चला रही थीं । हालांक‍ि, यह आइडिया भी सफल साबित नहीं हुआ। उनके ल‍िए यह काफी मुश्‍क‍िल समय था। 2011 में विनीता की कौशिक मुखर्जी से शादी हो गई। आईआईएम-अहमदाबाद में पढ़ाई के दौरान दोनों की मुलाकात हुई थी।
तीसरे वेंचर से म‍िली असली सफलता
2012 में विनीता ने अपना दूसरा स्‍टार्टअप फैब-बैग शुरू किया। यह सब्‍सक्रिप्‍शन प्‍लेटफॉर्म था जो महिलाओं को ब्‍यूटी प्रोडक्‍ट्स की मंथली डिलीवरी करता था। लेकिन, असली सफलता उन्‍हें मिली शुगर कॉस्‍मेटिक्‍स के साथ। 2015 में सुनीता ने अपने पति के साथ मिलकर इसकी नींव रखी थी। यह कंपनी कॉस्‍मेटिक और पर्सनल केयर प्रोडक्‍ट्स की बिक्री करती है। इसकी प्राइवेट इक्विटी फर्म एल कैटरटन के साथ 5 करोड़ डॉलर की डील हुई। सितंबर 2022 में बॉलीवुड स्‍टार रणवीर सिंह ने कंपनी में निवेश किया। हालांकि, इस रकम का खुलासा नहीं किया गया।
कई मैराथन में ले चुकी हैं ह‍िस्‍सा
विनीता अपनी फिटनेस का भी बहुत ख्‍याल रखती हैं। वह 20 मैराथन और अल्‍ट्रामैराथन में हिस्‍सा ले चुकी हैं। उन्‍होंने 12 हाफ-मैराथन में भाग लिया है। विनीता ने ऑस्‍ट्र‍िया में आयरनमैन ट्रायथलॉन पूरा किया था। 2018 की मुंबई मैराथन में उन्‍होंने 6 महीने की गर्भावस्था में कुल 21 किमी की दौड़ लगाई थी।

 

झारखंड के रेलवे स्टेशन को चमकाने वाली ‘सोहराई’ ने बदली जयश्री की तकदीर

रांची । झारखंड की सोहराई कला 10 हजार साल पुरानी है। रांची की जयश्री इंदवार इस प्राचीन लोक कला को फिर से राष्ट्रीय फलक पर पहचान दिलाने में जुटी हैं। खास बात यह है कि जयश्री इंदवार इस काम को अकेले न करके महिलाओं को एक समूह से जोड़कर कर रही हैं। जयश्री के ऐसा करने से महिलाएं झारखंड समेत देश के कई राज्यों में सोहराई कला को जीवंत तो बना ही रहे हैं। ऐसा करके वे खुद भी आत्मनिर्भरता की राह पर चल रही हैं।
पक्के मकान बनने से सोहराई कला का महत्व हुआ कम
बढ़ते शहरीकरण के इस दौर में सोहराई कला के समक्ष कई चुनौतियां आने लगी। मिट्टी के घरों की जगह पक्के मकानों ने अपना आकार ले लिया। इन वजहों से भित्ति चित्र यानी सोहराई पेंटिंग को इन अट्टालिकाओं में जगह नहीं मिल पा रही। इस लोक कला को बढ़ावा देने के लिए जयश्री ने वर्ष 2005 में प्रयास शुरू किया। शुरुआती दिनों में जयश्री के साथ महिलाओं का इतना बड़ा समूह नहीं था। वे पहले कपड़ों पर सोहराई पेंटिंग करती थी लेकिन लोगों की रूचि नहीं होने के कारण जयश्री ने कुछ नया करने का सोचा और दीवारों को ही अपनी कला प्रदर्शनी का जरिया बनाना शुरू कर दिया। इस काम में जब जयश्री को सफलता मिलने लगी तब उन्होंने महिलाओं की एक टीम बनाई जिसे ‘स्तंभ’ ट्रस्ट का नाम दिया। इस ट्रस्ट के माध्यम से आज सैकड़ों महिलाएं जयश्री इंदवार के साथ में काम कर रही हैं। सोहराई कला को पहचान दिला रही हैं और आर्थिक रूप से मजबूत भी बन रही है।
रांची रेलवे स्टेशन को सजाने और संवारने का काम
जयश्री इंदवार और इनकी टीम की ओर से बनाई गई पेंटिंग ने झारखंड में अपनी एक अलग पहचान बनाई है। रांची रेलवे स्टेशन को जयश्री और उनकी टीम ने हाल ही में सोहराई पेंटिंग से सजाने और संवारने का काम किया है। इसके अलावा हटिया रेलवे स्टेशन और गोमो स्टेशन समेत कई सरकारी भवन, पर्यटन स्थल और अन्य कई जगहों पर यदि आपको सोहराई पेंटिंग दिख रही हो तो मान लीजिए की इनमें से अधिक से अधिक चित्रकारी रांची की जयश्री इंदवार और उनकी स्तंभ ट्रस्ट की ओर से महिलाओं ने ही किया है।
कई जिलों की महिलाओं को लोक कला में प्रशिक्षण
जयश्री इंदवार समय-समय पर पेंटिंग एग्जिबिशन, वर्कशॉप और विभिन्न शैक्षणिक संस्थाओं के माध्यम से भी इस कला को आगे बढ़ाने के लिए दिन रात प्रयास करती रहती हैं। झारखंड के कई जिले जैसे रांची, गुमला और लोहरदगा समेत अन्य इलाकों की सैकड़ों महिलाओं और युवतियों को जयश्री ने पहले प्रशिक्षित करने का काम किया और उसके बाद उन्हें इस कला से जोड़ा है। हाथों में हुनर आ जाने से आज कई महिलाएं आर्थिक रूप से स्वावलंबी बन गई हैं। सोहराई पेंटिंग की अच्छी डिमांड होने की वजह से अब इन्हें रोजगार के लिए भटकने की भी जरूरत नहीं पड़ रही है।
राज्यपाल और कई हस्तियों ने किया सम्मानित
एक कलाकार की कला तब और अधिक निखरती है जब समाज उसे सराहने का काम करता है। झारखंड के लुप्त हो रही चित्रकला को अपने जुनून के बल पर फिर से एक मुकाम पर ले जाने वाली जयश्री इंदवार को कई जगहों पर सम्मानित भी किया गया। जयश्री इंदवार के काम को तब और अधिक पहचान मिली जब रेल मंत्री पीयूष गोयल ने उन्हें सम्मानित किया था। राज्य के तत्कालीन राज्यपाल द्रौपदी मुर्मू, रमेश बैस, राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री रघुवर दास और ट्राईबल एसोसिएशन समेत कई जानी-मानी हस्तियों और संस्थाओं ने अलग-अलग मौकों पर जयश्री इंदवार को सम्मानित किया।
सोहराई कला के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण का संदेश
सोहराई कला को आगे बढ़ाने में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही जयश्री इंदवार की पहचान सिर्फ यहीं तक सीमित नहीं है, बल्कि सामाजिक सरोकारों से भी जयश्री इंदवार पूरी तरह से जुड़ी हुई रहती हैं। बात नारी सशक्तीकरण की हो या फिर पर्यावरण संरक्षण की। इन जैसे तमाम मुद्दों पर जयश्री इंदवार काम करने के लिए पहली कतार में खड़ी रहती हैं। बात यदि घर की की जाए तो उनके इस काम में उनके पति संजय और बच्चों का भी पूरा प्रोत्साहन रहता हैं।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

रेल की पटरियों के नीचे क्यों बिछे होते हैं पत्थर? जानिए क्या हैं इस गिट्टी के फायदे

नयी दिल्ली । भारत दुनिया का चौथा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है। हर रोज लाखों लोग भारतीय रेल से यात्रा करते हैं। इस समय वंदे भारत, वंदे मेट्रो और रैपिडएक्स (Rapidx) ट्रेनों के कारण भारतीय रेलवे सुर्खियों में है। भारतीय रेलवे से जुड़े कई रोचक फैक्ट्स हैं। रेल से यात्रा करते समय आपके मन में भी कई सारे सवाल आते होंगे। जैसे- रेलवे ट्रैक पर गिट्टियां क्यों बिछी होती हैं। जंक्शन, टर्मिनस और सेंट्रल का क्या मतलब है। रिजर्वेशन में सीटों का आवंटन किस तरह से होता है, इनमें से एक सवाल का जवाब आज हम आपको देने वाले हैं। हम बताएंगे कि रेलवे ट्रैक पर गिट्टी क्यों बिछी होती है। आइए जानते हैं।
इस तरह तैयार होता है रेलवे ट्रैक
ट्रेन की पटरी के नीचे कंक्रीट के बने प्लेट होते हैं। इन्हें स्लीपर कहा जाता है। इन स्लीपर के नीचे गिट्टी बिछी होती है। इसे बलास्ट कहा जाता है। इसके नीचे अलग अलग तरह की दो लेयर में मिट्टी डली होती है। इन सबके नीचे साधारण जमीन होती है। रेलवे ट्रैक साधारण जमीन से थोड़ी ऊंचाई पर होते हैं। पटरी के नीचे कंक्रीट के बने स्लीपर, फिर पत्थर और इसके नीचे मिट्टी डली होती है। इस तरह एक रेलवे ट्रैक बनता है।
ट्रेन के वजन को संभालते हैं पत्थर
रेलवे पटरी के नीचे बिछी गिट्टी खास तरह की होती है। ये नुकीले पत्थर होते हैं। अगर इनकी जगह गोल पत्थरों का उपयोग किया जाए, तो वे एक दूसरे से फिसलने लगेंगे और पटरी अपनी जगह से हट जाएगी। ये नुकीले होने के कारण एक दूसरे में मजबूत पकड़ बना लेते हैं। जब ट्रेन पटरी से गुजरती है, तो ये पत्थर आसानी से ट्रेन के वजन को संभाल लेते हैं। ट्रेन का वजन करीब 10 लाख किलो तक होता है। इस वजन को केवल पटरी नहीं संभाल सकती। ट्रेन के वजन को संभालने के लिए लोहे की पटरियों के साथ ही कंक्रीट के बने स्लीपर और गिट्टी मदद करती हैं। सबसे अधिक वजन इस गिट्टी पर ही होता है।
कंपन सहकर करते हैं सुरक्षा
रेलवे ट्रैक पर ट्रेन काफी स्‍पीड से दौड़ती है। इससे कंपन्न पैदा होता है। इस कारण पटरियों के फैलने की संभावना बढ़ जाती है। कंपन्न कम करने के लिए और पटरियों को फैलने से बचाने के लिए ट्रैक पर पत्थर बिछाए जाते हैं। पटरी पर बिछे पत्थर कंक्रीट के बने स्लीपर को एक जगह स्थिर रहने में मदद करते हैं। यह गिट्टी नहीं होगी तो कंक्रीट से बने स्लीपर मजबूती से अपनी जगह पर बने नहीं रह पाएंगे।
पटरियों पर नहीं भरता पानी
रेलवे ट्रैक पर बिछी गिट्टी के कई सारे फायदे हैं। बरसात के समय पानी जब ट्रैक पर गिरता है, तो वह गिट्टियों से होते हुए जमीन में चला जाता है। इससे रेलवे ट्रैक पर जलभराव नहीं हो पाता है।
बिना गिट्टी के होगा यह नुकसान
अगर रेलवे ट्रैक पर गिट्टी नहीं बिछाई गई, तो वहां घास और पौधे उग आएंगे। इससे रेलवे ट्रैक पर ट्रेन चलाने में दिक्कत हो सकती है। रेलव ट्रैक पर बिछी गिट्टी इससे बचाती है।
(साभार – नवभारत टाइम्स)

नहीं रहे मुहम्मद अली से दो-दो हाथ करने वाले कौर सिंह

चंडीगढ़ । पूर्व एशियाई मुक्केबाजी चैंपियन कौर सिंह का हरियाणा के कुरुक्षेत्र में एक अस्पताल में गुरुवार को निधन हो गया। वह 74 वर्ष के थे और कई स्वास्थ्य समस्याओं का इलाज करा रहे थे। भारतीय सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद वह पंजाब के संगरूर जिले में अपने पैतृक गांव खनाल खुर्द में रह रहे थे। जो लोग कौर सिंह के बारे में नहीं जानते हैं, बता दें कि वह लीजेंड मुहम्मद अली से एक प्रदर्शनी मैच में भिड़े थे।
कौर सिंह ने अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में 6 स्वर्ण पदक जीते थे जिसमें 1982 एशियाई खेलों का स्वर्ण पदक शामिल था। उनके यादगार मैचों में से एक मुकाबला मुक्केबाजी लीजेंड मुहम्मद अली के साथ चार राउंड का प्रदर्शनी मैच था जो 27 जनवरी 1980 को दिल्ली में लड़ा गया था। सिंह ने नयी दिल्ली में 1982 के एशियाई खेलों में हैवीवेट वर्ग में स्वर्ण पदक जीता था।
इस महीने पंजाब सरकार ने स्कूली पाठ्यक्रम में चार महान खिलाड़ियों की जीवन गाथा प्रकाशित करने की योजना की घोषणा की थी जिसमें कौर सिंह एक थे। तीन अन्य खिलाड़ी हॉकी ओलम्पियन बलबीर सिंह सीनियर, महान एथलीट मिल्खा सिंह और भारत के पहले अर्जुन अवॉर्डी और ओलिंपियन एथलीट गुरबचन सिंह रंधावा हैं। उन्हें नौंवीं और दसवीं कक्षा की शारीरिक शिक्षा की किताबों में शामिल किया गया है।
वित्त मंत्री हरपाल चीमा ने शोक व्यक्त करते हुए कहा, ‘कौर सिंह का निधन देश के लिए एक बड़ा नुकसान है। मैंने सम्बंधित अधिकारियों को उनका पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव लाने के निर्देश दिए हैं। हम उनके परिवार को हरसंभव मदद करेंगे।’ उनकी उपलब्धियों के लिए कौर सिंह को 1982 में अर्जुन पुरस्कार, 1983 में पद्मश्री और 1988 में विशिष्ट सेवा पदक प्रदान किया गया था।