Thursday, August 21, 2025
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दादा ने जीती ट्रॉफी, अब 73 साल बाद पोते पद्भनाभ ने दोहराया इतिहास

नयी दिल्ली । जयपुर के महाराजा मान सिंह द्वितीय ने 1950 में जिस पोलो चैंपियनशिप को जीत देश का नाम ऊंचा किया था उसे 73 साल बाद उनके पोते पद्मनाभ सिंह ने फिर से दोहराया है। मान सिंह के पोते पद्मनाभ ने फ्रांस की सैंट मेस्मे टीम से खेलते हुए 129 डिग्री प्रतियोगिता में मौजूदा चैंपियन कजाक को हराकर खिताबी जीत हासिल की। पद्मनाभ सिंह की टीम ने कजाक के खिलाफ 11 गोल दागकर मैच को अपने नाम किया जबकि उनके विरोधी ने सिर्फ 9 गोल किए।फाइनल मुकाबले में पद्मनाभ का प्रदर्शन काफी दमदार रहा। उन्होंने अपनी टीम के लिए कुल तीन गोल किए। पद्मनाभ पिछले चार साल से सैंट मेस्मे के साथ जुड़े हुए हैं। इस जीत के बाद पद्मभान सिंह ने कहा कि, ‘चैंपियनशिप को जीतना हमारे लिए गर्व की बात है। ऐसा इसलिए भी कि मैं महान पोलो खिलाड़ी महाराजा सवाई मान सिंह की विरासत को जी रहा हूं।’पोलो चैंपियनशिप में ऐतिहासिक जीत के बाद पद्मनाभ सिंह ने कहा कि इस प्रतियोगिता के लिए मैंने जयपुर और अर्जेंटीना में तैयारी की थी। जयपुर में दुनिया के सबसे शानदार पोलो ग्राउंड में से एक हैं। मेरी इस जीत के बाद मुझे उम्मीद है कि जयपुर में युवाओं को इससे हौसला मिलेगा। हालांकि पिछले साल हमें इसी टीम के कजाक के खिलाफ हार मिली थी लेकिन उसे भुलाते हुए इस बार हमने जीत हासिल की है।

अपने दादा जी के समय के खेल के बारे में बात करते हुए पद्मनाभ सिंह ने कहा कि, ‘महाराजा मानसिंह के समय का खेल और आज के समय में पोलो बहुत बदल गया है। पहले के घोड़े के कद काफी बड़े होते थे। आज के घोड़ों का कद छोटा हो गया है। इसके अलावा अब इस खेल में तकनीकों इस्तेमाल होने लगा है। चोट से बचाव के लिए कई तरह के गियर आ चुके हैं जो कि पहले नहीं था। हमारे दादा जीतने उस वक्त इस खेल के लिए ऑस्ट्रेलिया से घोड़े लेकर आए थे।स खेल के जोखिम के बारे में बताते हुए पद्मनाभ सिंह ने कहा, पोलो फार्मूला वन की तरह एक जोखिम भरा खेल है। घोड़े पर बैठकर 40 किलोमीटर की रफ्तार से पोलो खेलना आसान काम नहीं है। इसमें चोटिल होने की संभावना बहुत रहती है।

डायमंड लीग में नीरज चोपड़ा ने जीता सोना, 87.66 मीटर दूर भाला फेंक रचा इतिहास

लुसाने डायमंड लीग में भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने 87.66 मीटर की दूरी हासिल स्वर्ण पदक अपने नाम किया। नीरज ने यह स्वर्ण पदक अपने पांचवें प्रयास में जीता। इस प्रतियोगिता में नीरज की शुरुआत कुछ खास नहीं रही थी। उनका पहला थ्रो फाउल हो गया था लेकिन इसके बाद नीरज ने दमदार वापसी कर जर्मनी के जूलियन वीबर और चेक गणराज्य के याकूब वादलेज्चे को पीछे को छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया।

नीरज चोपड़ा का यह 8वां अन्तर्राष्ट्रीय स्वर्ण है। इससे पहले एशियन गेम्स, साउथ एशियन गेम्स और ओलिपिंक जैसी प्रतियोगिताओं में स्वर्ण जीत चुके हैं। वहीं इस साल नीरज चोपड़ा के खाते में यह दूसरा स्वर्ण पदक आया है। इससे पहले नीरज ने दोहा डायमंड लीग में भी स्वर्ण जीता था।

लुसाने डायमंड लीग में नीरज चोपड़ा ने अपनी शुरुआत फाउल से की। हालांकि दूसरा और तीसरा प्रयास उनका दमदार रहा। दूसरे प्रयास में उन्होंने 83.52 मीटर का उन्होंने थ्रो किया जबकि उनका तीसरा थ्रो 85.04 मीटर का रहा लेकिन इन तीन प्रयासों के स्कोर पर आधार जर्मनी के जूलियन वीबर ने 86.20 की दूरी हासिल कर बढ़त बना रखी थी।

इस बीच नीरज का चौथा प्रयास भी फाउल हो गया। इस कारण वह दबाव में आ गए लेकिन पांचवां प्रयास उनका गोल्डन आर्म साबित हुआ और 87.66 मीटर लंबा थ्रो कर दिया। इस थ्रो के साथ ही वह सबसे आगे हो गए। वहीं उनका अंतिम थ्रो 84.15 मीटर का रहा।नीरज चोपड़ा को जर्मनी के जूलियन वीबर के कड़ी टक्कर मिली। वीबर ने अपने आखिरी प्रयास में 87.03 मीटर का थ्रो फेंका। हालांकि ये दूरी गोल्ड मेडल तक तय नहीं कर पाई और सिल्वर मेडल से उन्हें संतोष करना पड़ा। वहीं चेक गणराज्य के याकूब वादलेज्चे ब्रॉन्ज मेडल के साथ तीसरे स्थान पर रहे।नीरज चोपड़ा ने इसी साल मई में दोहा डायमंड लीग में 88.67 मीटर लंबा थ्रो किया था। इस प्रतियोगिता के बाद उन्हे हैम्स्ट्रिंग हो गई थी। इसके कारण उन्हें कुछ प्रतियोगिताओं से अपना नाम वापस लेना पड़ा। हालांकि इस दौरान नीरज ने अपनी फिटनेस पर पूरा काम किया और स्विट्जरलैंड के लुसाने डायमंड लीग में स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया ।

मानवता की मिसाल हैं 10 हजार बच्चों की डिलीवरी कराने वाली नर्स

चेन्नै: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में नर्स और दाइयों का अहम योगदान हैं। लेकिन भारी और सीमित संसाधनों के चलते इन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हम आपको एक ऐसी नर्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने 33 साल के लंबे करियर में 10,000 से ज्यादा सफल डिलीवरी कराई हैं। हाल ही में तमिलनाडु की रहने वाली रिटायर्ड नर्स ने न्यूज वेबसाइट बीबीसी से बातचीत में अपने अनुभव को साझा किया। नर्स खतीजा बीबी को अपने इस योगदान के लिए सरकार के जरिए सम्मानित भी किया जा चुका है।न्यूज वेबसाइट बीबीसी को दिए इंटरव्यू में 60 वर्षीय खतीजा बीबी कहती हैं, ‘मुझे गर्व है कि मेरे जरिए कराई गई 10,000 शिशुओं की डिलीवरी में एक भी बच्चा मेरे देखते-देखते नहीं मरा’। खतीजा इसे अपने करियर का मुख्य आकर्षण मानती हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मा. सुब्रमण्यन ने बीबीसी को बताया कि खतीजा को हाल ही में एक सरकारी पुरस्कार मिला है, क्योंकि उनकी सेवा के वर्षों के दौरान कोई मृत्यु दर्ज नहीं की गई थी।तीन दशकों के दौरान उन्होंने दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में काम किया, भारत उच्च मातृ मृत्यु दर वाले देश से वैश्विक औसत के करीब एक देश में बदल गया है। वह कहती हैं कि उन्होंने लड़कियों के जन्म और कम बच्चे पैदा करने के प्रति लोगों के नजरिए में सकारात्मक बदलाव भी देखा है।साल 1990 में जब खतीजा ने काम करना शुरू किया तो वह खुद गर्भवती थीं। उस दौर को याद करते हुए खतीजा कहती हैं, ‘मैं सात महीने की गर्भवती थी… फिर भी मैं अन्य महिलाओं की मदद कर रही थी। दो महीने के छोटे मातृत्व अवकाश के बाद मैं काम पर लौट आई। मैं जानती हूं कि जब महिलाएं प्रसव पीड़ा से गुजरती हैं तो वे कितनी चिंतित रहती हैं, इसलिए उन्हें सहज और आश्वस्त बनाना मेरी पहली प्राथमिकता है।’

3 साल के लिए ड्रीम-11 बना टीम इंडिया का प्रमुख प्रायोजक

 358 करोड़ में हुई बीसीसीआई के साथ तीन साल की डील!

मुंबई: फैंटेसी स्पोर्ट्स कंपनी ड्रीम-11 अब टीम इंडिया की मुख्य स्पॉन्सर होगी। भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर अब बायजूस की जगह ड्रीम-11 छपा दिखेगा। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो तीन साल की यह डील 358 करोड़ रुपये में हुई है। पिछले वित्तीय चक्र के खत्म होने-11 के बाद बायूजस ने हटने का फैसला किया था, जिसके बाद बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट बोर्ड) ने अपने नए प्रायोजक के लिए सीलबंद बोलियां आमंत्रित की थीं, जिसमें ‘ड्रीम 11’ भी शामिल था। बीसीसीआई ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस बात की जानकारी सार्वजनिक की। भारतीय टीम की जर्सी पर ड्रीम-11 का लोगो वेस्टइंडीज दौरे से लग जाएगा। इस दौरे की शुरुआत 12 जुलाई से हो रही है। जहां भारत को दो टेस्ट, तीन वनडे और पांच टी-20 इंटरनेशनल मुकाबले खेलने हैं।

कलेक्टर ने दिखाई राह तो नक्सलियों के गढ़ में आई कलम क्रांति

68 छात्र-छात्राएं बनेंगे डॉक्टर-इंजीनियर

दंतेवाड़ा: नक्सलियों के गढ़ दंतेवाड़ा में बदलाव की बयार बह रही है। दंतेवाड़ा की युवा पीढ़ी ने बदलाव के लिए शिक्षा को चुना है। इसका असर भी दिख रहा है। दंतेवाड़ा के 68 छात्र-छात्राएं डॉक्टर और इंजीनियर बनेंगे। इनमें ड्रॉपर्स बैच से भी बच्चे शामिल हैं, जिन्होंने अपना सपना साकार किया है। नीट और जेईई की परीक्षा पास करने के बाद छात्र-छात्राओं की खुशी देखी जा सकती है। दंतेवाड़ा से पहली बार इतनी बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने सफलता हासिल की है। 68 सफल छात्र-छात्राओं में अधिकांश बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें 12वीं तक की पढ़ाई के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिली हैं। दरअसल, सभी छू लो आसमान संस्था में पढ़ाई करते थे। दंतेवाड़ा कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कहा कि हमने पिछले साल इसकी शुरुआत की थी। अधिकांश बच्चे ऐसे होते हैं, जिनकी पढ़ाई अच्छी नहीं होती है। हमने वैसे बच्चों को सेकंड चांस दिया था। पहली बार रिजल्ट इतना अच्छा आया है। कलेक्टर ने कहा कि इनमें 47 बच्चे ड्रॉपर्स बैच के हैं।कलेक्टर ने कहा कि बच्चों के सामने सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें करना क्या है। कोई गाइड करने वाला नहीं होता है। कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कहा कि मैंने इसे झेला है। मैंने जिले में करीब 2000 से अधिक बच्चों को गाइड किया है। उन्हें मैं बताया कि कैसे आपको पढ़ाई करनी है। इन्हीं चीजों को लेकर हमने मार्गदर्शन कार्यक्रम चलाया है। दंतेवाड़ कलेक्टर विनीत नंदनवार ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों से 68 बच्चों ने NEET और JEE में सफलता हासिल की है। उन्होंने बताया कि यह अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसमें ऐसे बच्चे शामिल हैं जिन्हें 12वीं तक की शिक्षा के लिए पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं मिली। वहीं, एक सफल छात्रा ने कहा कि यहां अलग से पढ़ाई होती है। उसमें मैंने अलग से रुचि दिखाई है। नीट और जेईई की परीक्षा बहुत कठिन होती है। हम सभी बहुत पिछड़े इलाके से आते हैं। प्रशासन की मदद से हमें बहुत अच्छे शिक्षक मिले। यहां कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अब हमारे सपने पूरे होंगे।

हिंद महासागर में मौजूद है रहस्यमय ग्रेविटी होल

वॉशिंगटन: आम तौर पर माना जाता है कि हमारी पृथ्वी पूरी तरह गोल है। लेकिन अगर इसका पूरा पानी हटा दिया जाए तो यह जगह-जगह पिचकी और उभरी दिखाई देगी। इसी तरह एक और धारणा है कि पृथ्वी पर सभी जगहों पर गुरुत्वाकर्षण समान है, लेकिन ऐसा नहीं है। वैज्ञानिकों नें हिंद महासागर में एक अनोखी चीज खोजी है, जिसे ग्रेविटी होल कहा जाता है। महासागर की इस गहराई में गुरुत्वकार्षण बल बाकी पृथ्वी से कमजोर पड़ जाता है। ग्रेविटी होल से जुड़ा एक नया अध्ययन सामने आया है, जिसमें दावा किया गया है कि वैज्ञानिकों ने इसके कारण का पता लगा लिया है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ग्रेविटी होल प्राचीन समुद्र के अवशेष हैं, जो करोड़ों वर्ष पहले खत्म हो गया। ग्रेविटी होल पृथ्वी की सबसे रहस्यमय गुरुत्वाकर्षण विसंगति मानी जाती है। इसे इंडियन ओशियन जियोइन लो (IOGL) के नाम से जाना जाता है। यह विशाल ग्रेविटी होल 30 लाख वर्ग किमी का इलाका है जो पृथ्वी की क्रस्ट के नीचे 950 वर्ग किमी तक फैला है। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि IOGL में टेथिस महासागर के स्लैब शामिल हैं।
क्या है टेथिस महासागर
टेथिस महासागर एक प्राचीन महासागर था जो मेसोजोइक युग के दौरान गोंडवाना और लॉरेशिया महाद्वीपों के बीच मौजूद था। यह लंबे समय से खोया हुआ महासागर है जो लाखों साल पहले गृह की गहराई में डूब गया था। स्टडी के प्रमुख लेखक देबंजन पाल और अत्रेयी घोष ने कहा कि अभी तक पहले जो अध्ययन हुए उसमें सिर्फ इस विसंगति के बारे में बताया गया। लेकिन यह नहीं बताया गया कि इसके पीछे का कारण क्या है? अब शोधकर्ताओं ने इसके कारण के बारे में बताने का प्रयास किया है।
तीन करोड़ साल पहले बना था

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस ग्रेविटी होल का जवाब पृथ्वी के क्रस्ट के एक हजार किमी नीचे छिपा है। यहां प्रचीन महासागर के ठंडे घने अवशेष अफ्रीका के नीचे तीन करोड़ साल पहले दब गए थे और गर्म पिघली चट्टानों को ऊपर लाने के कारण बने। हालांकि शोधकर्ताओं का यह दावा कंप्यूटर मॉडल पर बना है, जो शायद पर्याप्त न हो।

2.29 लाख दाम, जानिए हार्ली डेविडसन की कहानी

नई दिल्ली: जिस बाइक का युवाओं को बेसब्री से इंतजार था वो अब खत्म हो गया है। Harley-Davidson की सबसे किफायती बाइक हार्ली – डेविडसन एक्स440  भारतीय बाजार में आ गई है। दिलचस्प बात ये है कि कंपनी ने इस बाइक को महज 2.29 लाख रुपये में लॉन्च किया है। इस बाइक को कंपनी के ऑफिशियल डीलरशिप के जरिए बुक किया जा सकता है। इसके लिए 25 हजार रुपये बतौर बुकिंग अमाउंट जाम करने होंगे। बता दें कि ये पहली ऐसी हार्ली-डेविडसन  बाइक है जो पूरी तरह से भारत में बनी है। हार्ली-डेविडसन और हीरो मोटोकॉर्प की साझेदारी से ये पहला मॉडल तैयार किया गया है। लेकिन हार्ली-डेविडसन (Harley-Davidson) बाइक में ऐसा क्या है कि लोग इसके दीवाने हैं। खबरों के मुताबिक, साल 1901 में विलियम एस हार्ली नाम के 21 साल के युवा ने एक फ्लाईव्हील्स के साथ छोटे से इंजन का प्लान बनाया। इस इंजन को एक पैडल साइकिल फ्रेम में यूज के लिए डिजाइन किया गया था। हार्ली और उनके बचपन के दोस्त आर्थर-डेविडसन के भाई वॉल्टर डेविडसन ने मोटर साइकिल पर अगले दो वर्ष तक मेहनत की। ये काम साल 1903 में पूरा हुआ। उन्होंने जो पॉवर साइकिल बनाई वह बिना पैडल के मिडवॉक की साधारण पहाड़ियों को चढ़ने में सक्षम थी। इसके बाद दोनों ने हाईटेक मशीन पर काम शुरू किया। इस पहली हार्ली-डेविडसन बाइक में बड़ा इंजन था। इसी के साथ मशीन का लूप फ्रेम पैटर्न साल 1903 की मिलवॉकी मार्केल मोटरसाइकिल के जैसा था। आज हार्ली-डेविडसन दुनिया की जानी-मानी बाइक कंपनी है और फ़ोर्ब्स के मुताबिक साल 2018 (मई) में इसका मार्केट कैप सात अरब डॉलर तक पहुंच गया था। भारत में इस कंपनी ने हाल में 17 नए मॉडल पेश किए हैं, जिनके दाम 5 लाख रुपये से लेकर 50 लाख रुपये के बीच हैं। इस कंपनी की बाइक सुपरबाइक कही जाती हैं और ज़ाहिर है ज़्यादा दाम की वजह से ये ख़ास और रईस तबके की पहली पसंद हैं।

भारत नौंवी बार बना सैफ फुटबॉल चैंपियन

फाइनल में कुवैत को पेनल्टी शूटआउट में हराया

बेंगलुरु: गत चैंपियन भारत ने फाइनल में कुवैत को हराते हुए नौवीं बार सैफ फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया। दोनों ही टीमें 90 मिनट के बाद एक्स्ट्रा टाइम तक 1-1 के स्कोर पर बराबर थी। ऐसे में मैच का नतीजा पेनल्टी शूटआउट से निकला, जहां भारत ने अपने घरेलू दर्शकों के बीच कतर को 5-4 से हराया। इससे पहले सेमीफाइनल में भी भारत ने लेबनान को पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हराया था। भारतीय टीम दूसरी बार कुवैत से खेल रही थी, इससे पहले ग्रुप-ए में दोनों टीमों का मुकाबला 1-1 से ड्रॉ रहा था। गोलकीपर गुरप्रीत सिंह संधू ने डाइव लगाकर निर्णायक पेनल्टी बचाई और इस तरह भारत ने 5-4 से सैफ फुटबॉल चैंपियनिप का फाइनल जीत लिया। पेनल्टी शूटआउट के पांच दौर के बाद भी स्कोर 4-4 था, जिसके बाद सडन डैथ पर फैसला हुआ। महेश नोरेम ने स्कोर किया और भारत के गोलकीपर गुरप्रीत संधू ने डाइव लगाकर खालिद हाजिया का शॉट बचाकर टीम को जीत दिलाई।

माँ बनाती थीं मिड डे मील का भोजन, बेटा बना आईएएस

नयी दिल्‍ली । डोंगरे रेवैया का बचपन काफी मुश्कलों से भरा था। वह पढ़ाई में बेहद तेज थे। लेकिन, घर में आर्थिक तंगी थी। डोंगरे की मां मिड-डे मील का खाना बनाती थीं। दो और भाई-बहनों के साथ उन्‍होंने अकेले ही डोंगरे को पाला-पोसा। आईआईटी मद्रास में पढ़ने के बाद डोंगरे ने गेट क्‍लीयर किया था। इसके चलते उन्हें सरकारी कंपनी में नौकरी मिल गई थी। हालांकि, उनके मन में आईएएस बनने की चाहत लगातार बनी हुई थी। वह अपनी मां को इससे कम कुछ भी नहीं देना चाहते थे। रह-रहकर उन्‍हें अपनी मां का संघर्ष दिखता था। आईआईटी में दाखिले से लेकर आईएएस बनने तक के डोंगरे के सफर में काफी रोड़े आए।
डोंगरे रेवैया तेलंगाना में कुमुराम भीम आसिफाबाद के रहने वाले हैं। एक दिन उनके यहां के जिला कलेक्टर ग्रामीणों की दलीलों को समझने गांव पहुंचे थे। भीड़ के बीच से एक किशोर दो दस्तावेजों के साथ बाहर आया। उस किशोर के एक हाथ में राज्य विश्वविद्यालय का लेटर था। दूसरे में आईआईटी मद्रास का ऑफर लेटर। यह कोई और नहीं डोंगरे रेवैया थे।
अब गेंद कलेक्टरेट के पाले में थी। उसे तय करना था कि वह छात्र का करियर बनाने के लिए आगे बढ़कर मदद करता है कि नहीं। आईआईटी मद्रास में इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें सिर्फ 20 हजार रुपये की आर्थिक मदद की जरूरत थी। क्राउडफंडिंग और कलेक्टरेट की मदद से उन्हें कॉलेज में दाखिले के लिए फीस मिल गई। हालांकि, इससे उन्हें आईएएस अधिकारी बनने की प्रेरणा भी मिली।
दरअसल, आईआईटी जेईई में सफलता के बाद भी पैसे की कमी के कारण डोंगरे ने एडमिशन की उम्मीद लगभग खो दी थी। लेकिन, तत्‍कालीन कलेक्‍टर डॉ. अशोक कुमार ने उनकी बहुत मदद की। तभी उन्‍हें इस बात का भी एहसास हुआ कि अगर वह उस पद पर पहुंचे तो गरीब पृष्ठभूमि के लोगों की मदद कर पाएंगे। लगभग एक दशक बाद 29 साल के डोंगरे ने वही मुकाम पा लिया। यूपीएससी सीएसई 2022 की परीक्षा में डोंगरे ने 961 अंक हासिल कर 410वीं रैंक हासिल की।
जब डोंगरे चार साल के थे, तब उनके पिता का निधन हो गया था। वह अपने पीछे पत्नी और तीन बच्चों को छोड़ गए थे। गुजारा चलाने के लिए उनकी मां ने 1,500 रुपये के मासिक वेतन पर मिड-डे मील कुक के रूप में काम करना शुरू कर दिया।
डोंगरे का जन्‍म तेलंगाना के तुंगडा गांव में हुआ। सरकारी स्कूल में वह पढ़े-लिखे। 2017 में आईआईटी मद्रास से केमिकल इंजीनियरिंग में इंटीग्रेटेड कोर्स पूरा करने के बाद उन्होंने 70वीं रैंक के साथ गेट भी क्‍लीयर किया। इससे उन्हें मुंबई में ऑयल एंड नैचुरल गैस कॉर्पोरेशन लिमिटेड में नौकरी मिल गई। इन सबके बीच भी आईएएस अधिकारी बनने की उनकी चाहत कम नहीं हुई। 2020 में उन्होंने नौकरी के साथ यूपीएससी की तैयारी भी शुरू कर दी। 2021 में उन्‍होंने अपना पहला अटेम्‍प्‍ट दिया था। लेकिन, इसमें वह दो अंकों से चूक गए। अगले अटेम्‍प्‍ट पर फोकस करने के लिए डोंगरे ने नौकरी छोड़ दी। इस साल उनकी 410वीं रैंक आई। उनकी मां के लिए इससे बड़ी खुशी कुछ नहीं थी। यह उनके संघर्ष के सफल होने जैसा था। वह कभी स्‍कूल नहीं गई थीं। लेकिन, यह जरूर चाहती थीं कि बच्‍चे पढ़-लिखकर कामयाब हों।

भारतीय सर्व समाज महासंघ ने वितरित कीं 250 सिलाई मशीनें और टैबलेट

नयी दिल्ली । भारतीय सर्व समाज महासंघ द्वारा सिलाई मशीन वितरण एवं उपहार वितरण कार्यक्रम आयोजित किया गया । इस वितरण समारोह में 250 गरीब महिलाओं को सिलाई मशीन ,10 बालिकाओं को टेबलेट फोन सहित सैकड़ों लोगों को ऑफिस बैग सहित कुल 500 लोगों को उपहार दिए गए । सभा को संबोधित करते हुए केन्द्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले भारत सरकार ने संस्था की सराहना की । उन्होंने कहा कि आज जब लोग समाज को तोड़ने का काम कर रहे है ऐसे में इस संस्था के अध्यक्ष रामकुमार वालिया समाज को जोड़ने का कार्य कर रहे है । सभा को संबोधित करते हुए वरिष्ठ भाजपा एवं पूर्व राष्ट्रीय उपाध्यक्ष श्याम जाजू, दिल्ली विधान सभा के पूर्व अध्यक्ष डा, योगा नंद शास्त्री एव भारत सरकार के वरिष्ठ अपर सचिव शांत मनु ने संस्था की गतिविधियों एवं अध्यक्ष द्वारा किये जा रहे प्रयासों को सराहा । संस्था के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवम पूर्व राज्य मंत्री उत्तराखंड राम कुमार वालिया ने कहा कि महिलाओं को अपने काम से आत्म निर्भर बनाने हेतु ही आज सिलाई मशीन वितरण का कार्य किया गया है । उन्होंने कहा कि भारतीय सर्व समाज महासंघ, के अब लगभग 3 लाख पचास हजार सदस्य हैं। हमें यह तथ्य साझा करते हुए भी खुशी हो रही है कि भारतीय सर्व समाज महासंघ (बीएसएसएम इंडिया) की उपस्थिति पूरे भारत में है। हमारे द्वारा अलग अलग समय पर स्वास्थ्य देखभाल और स्वच्छता, शिक्षा, जागरूकता कार्यक्रम, टूल-किट का वितरण, स्वीइंग मशीन, संगठित स्वच्छता अभियान (स्वच्छता-अभियान), टैबलेट का वितरण जैसे विभिन्न क्षेत्रों में “बीएसएसएम-इंडिया” द्वारा 10 लाख से अधिक लोगों की मदद की गई है। लड़कियों के लिए लैपटॉप, सार्वजनिक शौचालय का निर्माण, महिला सशक्तिकरण, वरिष्ठ नागरिकों की देखभाल, ग्रामीण विकास और जबकि संसाधन, ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में सुधार का कार्य और उनमें आवश्यक वस्तुओं को वितरित करने का कार्य कर चुके है I इस अवसर पर अन्य वक्ताओं में दिल्ली के पूर्व विधायक सुरेंद्र कमांडो ,वरिष्ठ समाज सेवी मनोज तोमर , बी.के. सिंह चौधरी बीरेंद्र सिंह ,भारतीय सर्व समाज महासंघ के राष्ट्रीय कोर्डिनेटर तथा पूर्वी उत्तर प्रदेश के प्रभारी जितेंद्र गौड़ धोबी ,पश्चिम उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष राजकुमार रावल , महा मंत्री नरेश रावल पंजाब के कोर्डिनेटर सरदार देवेंद्र सिंह समेत कई अन्य गण्यमान्य अतिथि उपस्थित थे। यह जानकारी संस्था की मीडिया संयोजक (पश्चिम बंगाल) चंद्रप्रभा भाटिया ने दी ।