Monday, June 30, 2025
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इन फलों से बनाएं सामान्य पानी को स्वादिष्ट

हम सभी को पता है कि पानी हमारे सेहत के लिए कितना महत्वपूर्ण होता है, खासकर गर्मी के मौसम में तापमान बढ़ने पर पानी पीना हमारे शरीर के लिए ज्यादा जरूरी हो जाता है। वहीं बेस्वाद पानी पीने से अक्सर हम उब जाते हैं और पानी को स्वादिष्ट बनाने के विकल्प को तलाशने लगते हैं।आपका शरीर लगभग हर काम के लिए पानी का उपयोग करता है। स्वस्थ त्वचा, बालों और नाखूनों के लिए यह महत्वपूर्ण है। यह शरीर के तापमान को नियंत्रित करने, जोड़ों को लुब्रिकेट करने में भी मदद करता है। ऐसे में आज हम आपके लिए कुछ ऐसे टिप्स लेकर आए हैं, जिसीक मदद से आप अपने पानी के स्वाद को और ज्यादा बेहतर बना पाएंगे। जिससे आप या आपके परिवार के अन्य सदस्य पानी पीने से कटराएंगे नहीं और इस भीषण गर्मी में हाइड्रेटेड रहेंगे। पानी में स्वाद जोड़ने के कुछ तरीके ये रहे

ताजे फल डालें
खट्टे फल, जैसे नींबू, संतरे, आपके पानी के स्वाद को बढ़ा सकते हैं। लेकिन अन्य फलों के स्वाद भी आपके पानी के स्वाद को बढ़ा सकते हैं। फ्रेस रसभरी या तरबूज को अपने पानी में मैश करके भी आप मिला सकते हैं। आप चाहे तो खीरा, और फ्रेस पुदीना के पत्ते भी अपनी पानी में मिला सकते हैं। इससे आपके पानी का स्वाद बदल जाता है और गर्मी में पानी पीने का मजा दोगुना हो जाता है।
रस का प्रयोग करें
किसी भी फल का रस पानी का स्वाद बढ़ाने के लिए एक अच्छा आधार है। अपने पानी में एक स्वाद जोड़ने के लिए आप ऐसे फलों के रस को चुने जो जो पूरी तरह से प्राकृतिक हों, जिनमें कोई अतिरिक्त चीनी न हो। फ्रेस और नेचुरल फलों के रस आपके स्वाद को बढ़ाने के साथ आपके सेहत के लिए भी फायदेमंद होते हैं।
बर्फ के साथ करें क्रिएटिविटी
कुछ लोगों का कहना है कि बर्फ के पानी का स्वाद नॉर्मल पानी की तुलना में ज्यादा बेहतर होता है। अगर ये सच हो तो फ्लेवर्ड आइस क्यूब्स आपके पानी के स्वाद को और ज्यादा बेहतर बना सकते हैं। फ्रेस फ्रूट्स, पुदीना, या खीरे के आइस क्यूब्स तैयार करें। और फिर आइस क्यूब को पानी में मिलाकर पिएं।
दालचीनी या अदरक का पानी
सिंपल पानी को और ज्यादा स्वादिष्ट बनाने के लिए उसमें एक छोटी चुटकी पिसी हुई दालचीनी या ताजा अदरक का एक टुकड़ा मिलाएं। इससे आपका पानी न सिर्फ स्वाद में बेहतर होगा, बल्कि आपके सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद होगा।
वॉटर इन्हेंस ड्रॉप्स
तरल बूंदों या पाउडर मिश्रण जैसे प्राकृतिक पानी का स्वाद बढ़ाने वाले पदार्थों का उपयोग करें, जिनमें कोई अतिरिक्त शक्कर या मिठास न हो। मार्केट में ये आपको विभिन्न स्वादों में उपलब्ध हैं और आपकी पसंद के अनुसार पानी में मिलाए जा सकते हैं।

अगर आफ्टर शेव के बाद त्वचा को निखारना है और रखना है नर्म

कई पुरुषों को शेव करना नहीं है क्योंकि दाढ़ी बढ़ाने का चलन जोरों पर है लेकिन अभी भी बहुत से लोग शेव करना पसंद करते हैं। कुछ पुरुष खुद को गुड लुक देने के लिए हर रोज शेविंग करते हैं। रोजाना शेविंग करने से पुरुषों की त्वचा रफ और रुखी हो जाती है।
रफनेस से बचने के लिए पुरुष ऑफ्टर शेव का इस्तेमाल करते हैं। लेकिन कई लोग रोजाना ऑफ्टर शेव का इस्तेमाल करने से कतराते हैं और इसके अन्य विकल्प की तलाश में रहते हैं। ऐसे में आज हम आपके लिए कुछ ऐसी नेचुरल चीजों की जानकारी लेकर आए हैं जिनके इस्तेमाल से स्किन स्मूद और ग्लोइंग रहेगी और आफ्टरशेव लोशन के साइड इफेक्ट से भी बचा जा सकता है। ये सारी चीजें आपको अपने घर में आसानी से मिल जाएंगी। तो आइये जानते हैं इन चीजों के बारे में…
ऐलोवेरा
ऐलोवेरा में मौजूद एंटी इंफ्लेमेटरी गुण मौजूद होता है, जिससे शेविंग के कारण आए रैशेज और जलन को कम करने में मदद करता है। शेविंग के बाद ऐलोवेरा के जेल को निकालकर चेहरे पर पूरी तरह से लगा लें और 10 मिनट के लिए छोड़ दें। फिर ठंडे पानी से मुंह धो लें। इससे आपको राहत मिलेगी।
फिटकरी
दाढ़ी बनाने के बाद फिटकरी का प्रयोग बरसों से होता आ रहा है। आज भी कुछ लोग शेव के बाद फिटकरी से चेहरे को साफ करते हैं। दरअसल फिटकारी में कीटाणुनाशक तत्व होने के साथ-साथ एंटी-फंगल गुण भी मौजूद होते हैं। होता यूं है कि शेविंग ब्रश या रेजर के इस्तेमाल से फंगल इंफेक्शन की संभावना काफी बढ़ जाती है लेकिन फिटकरी के इस्तेमाल से आप इन दोनों प्रकार के संक्रमण से बच सकते हैं।
केला
केले में मौजूद मिनरल्स स्किन को सॉफ्ट और स्मूथ बनाता है। शेविंग के बाद स्किन की रफनेस और ड्रायनेस दूर हो जाती है। इसके लिए आप केले को मैश करके उससे अपने चेहरे पर मसाज करें। फिर 10 मिनट बाद गुनगुने पानी से मुंह धो लें।
आलू
आलू का रस चेहरे पर कॉटन बॉल की मदद से लगाएं या फिर इसके स्लाइस से चेहरे की स्किन को हल्का प्रेशर देते हुए रगड़ें। दोनों तरीके से स्किन को खराब होने से बचाते हैं। आलू में कई सारे विटामिन और मिनरल्स होते हैं जो त्वचा में पोषक तत्व भर उसमें नमी बनाए रखते हैं।
बर्फ
कई बार शेविंग करते हुए चेहरे पर रेजर के कट्स लग जाते हैं। इसकी वजह से चेहरे से खून बहने लगता है, त्वचा पर रेडनेस, जलन और घाव हो जाता है। बर्फ शेविंग के बाद होने वाली इन समस्याओं से राहत दिला सकता है। इसके लिए एक आइस क्यूब लें, शेविंग के बाद इससे अपने चेहरे की मसाज करें। बर्फ से त्वचा को ठंडक मिलती है, जलन कम होती है।
काली चाय
काली चाय शेविंग के बाद स्किन के लिए काफी फायदेमंद होता है। इसमें मौजूद टैनिक एसिड स्किन को जलन और लाल पड़ने से बचाता है। त्वचार की खुजली और जलन को दूर करता है। ठंडी काली चाय को स्किन पर कॉटन से लगाएं या टी बैग भिगोकर चेहरे पर मसाज करें।
नारियल का तेल
नारियल का तेल भी शेविंग के बाद होने वाली जलन, रेडनेस को कम करने में कारगर माने जाते हैं। इसके लिए नारियल तेल को हल्के हाथों से चेहरे पर लगाएं, कुछ देर त्वचा पर लगा रहने दें। फिर पानी से धो लें। इससे त्वचा नरम और हाइड्रेट होगी। रेडनेस, जलन भी शांत होगी।
हल्दी का पानी
ये एक बेहतरीन एंटीसेप्टिक है। शेविंग के बाद कटने, छिलने व जलन से राहत मिलती है? शेविंग के बाद इसे स्किन में लगाने से स्किन में ग्लो आता है। इसके लिए आप एक कप पानी में आधा चम्मच हल्दी घोलकर कॉटन की सहायता से फेस पर लगाएं।
सेब का सिरका
यह भी एक ऐसी चीज है जो अमूमन सभी घरों में मिल जाती है। एप्प्ल साइडर विनेगर (सेब का सिरका) में एंटी इंफ्लेमेटरी गुण पाए जाते हैं जो शेविंग के बाद जली या खुरदरी हो गई स्किन को सॉफ्ट बनाने का काम करते हैं। एक कटोरी में थोड़ा पानी लेकर उसमें एक चम्मच सिरका मिलाएं और कॉटन बॉल की मदद से चेहरे पर लगाएं। सूखने पर ठंडे पानी से चेहरा धो लें।
शहद
शेविंग के बाद आप अपनी त्वचा को शहद से मसाज कर सकते हैं। इसके लिए आप शहद में 5 से 6 बूंद गुलाब जल मिक्स कर दें, अब इसे अपने हाथों में लेकर चेहरे को अच्छी तरह मसाज करें। मसाज करने के बाद 10 से 15 मिनट के लिए छोड़ दें और फिर गीले तौलिए की मदद से पोंछ दें। आप चाहें तो पानी से सिंपल फेस वॉश भी कर सकते हैं।

साल में एक बार पानी पीता है ये जीव, इसके बाद मुंह में नहीं लेता एक भी बूंद!

पशु-पक्षियों, जानवरों और इंसानों के लिए पानी जीवन का आधार होता है । अगर आप पानी न पिएं तो 1, 2 दिन में आपकी हालत खराब हो जाए । तीन या चार दिन में आप बीमार पड़ने लगेंगे और करीब 1 हफ्ते बाद तो मौत भी हो सकती है ।
जिंदा रहने के लिए पानी बहुत जरूरी है. लेकिन क्या आप जानते हैं दुनिया में एक ऐसा प्राणी भी है, जो साल में सिर्फ एक बार ही पानी पीता है और वो भी एक खास मौके पर? उसके बाद यह प्राणी पानी की एक बूंद भी मुंह में नहीं लेता ।
कौन-सा है ये पक्षी?
जैकोबिन कोयल यानी चातक एक ऐसा पक्षी है जो सिर्फ और सिर्फ बरसात का ही पानी पीता है । इसे पपीहा भी कहा जाता है । भारतीय साहित्य में इसके बारे में लिखा है कि यह बारिश की पहली बूंद को पीता है । अगर चातक पक्षी को साफ पानी की झील में भी डाल दें, तो यह अपनी चोंच बंद कर लेगा और पानी नहीं पियेगा ।
भारत में पाई जाती हैं 2 प्रजातियाँ
भारत में चातक की 2 आबादी पाई जाती हैं । इनमें से एक दक्षिणी इलाकों में रहती है और दूसरी मॉनसूनी हवाओं के साथ अरब सागर को पार करते हुए अफ्रीका से उत्तर और मध्य भारत की ओर रुख करती हुई जाती है ।
कीड़े और फल खाता है
चातक पक्षी का वैज्ञानिक नाम क्लैमेटर जैकोबिनस है. क्लैमेटर का हिंदी में अर्थ होता है चिल्लाना यानी एक ऐसा पक्षी जो काफी मुखर हो । मुख्य रूप से चातक पक्षी कीट खाते हैं, टिड्डे-भृंगे आदि भी इनके भोजन में शामिल होते हैं । हालांकि, कई बार इन्हें फल और जामुन खाते हुए भी देखा गया है ।
दूसरे पक्षियों के घोसले में देता है अंडे
इस पक्षी से जुड़ी एक अनोखी बात यह है कि ये अपने अंडे दूसरे पक्षियों के घोंसले में देता है । दरअसल, चातक अपने मेजबान के तौर पर बब्बलर और बुलबुल जैसे आकार के पक्षियों को देखता है । ऐसे में चातक अपने रंगीन अंडे उनके घोंसलों में रख देते हैं ।
मानसून आने का देता है संकेत
मानसून आने से पहले चातक पक्षी उत्तरी भारत के हिस्सों में पहले ही पहुंच जाता है यानी जिस जगह मानसून आने वाला होता है, चातक पक्षी उस जगह पर पहले ही पहुंच जाता है ।

21 साल के इस शख्स ने खड़ी कर दी 500 करोड़ की कंपनी

रतन टाटा ने भी किया है निवेश, बेचते हैं 90 प्रतिशत तक सस्ती दवा

21 वर्षीय अर्जुन देशपांडे आज करीब 500 करोड़ की वैल्यू वाली एक कंपनी के मालिक है। उन्होंने महज 16 साल की उम्र में लोगों को सस्ती कीमत पर दवाएं मुहैया कराने के लिए ‘जेनरिक आधार नाम से एक कंपनी की स्थापना की थी।
आज उनकी कंपनी के पास पूरी फ्रेंचाइजी की चेन है, जो जेनेरिक दवाएं बेचती है। ये दवाएं आमतौर पर बाजार में उपलब्ध कीमत से करीब 80 से 90 प्रतिशत तक सस्ती होती हैं। मुख्य मुख्यालय वाले इस स्टार्टअप की वैल्यू आज करीब 500 करोड़ रुपये है और दिग्गज उद्योगपति रतन टाटा ने भी इस कंपनी में निवेश किया हुआ है। जेनरिक आधार ने लागत में अच्छी खासी कटौती करने के लिए मार्केटियर्स, डिस्ट्रीब्यूटर्स और स्टॉकिस्ट सहित कई बिचौलियो को हटा दिया है।
इसके चलते यह बेहद कम दाम में दवाओं को बेच पाती है। उदाहरण के लिए शुगर की दवा ग्लिमिपिराइड सामान्य रूप से बाजार में 110 रुपये प्रति स्ट्रिप की दर पर बिकती है। वहीं जेनरिक आधार पर इस दवा को 5 रुपये थोड़े अधिक में बेचती है। सीएनबीसी टीवी -18 ने एक रिपोर्ट में बताया, इसी तरह एंटी-एलर्जी वाली दवा लिवोसेट्रिजीन, आमतौर पर बाजार में 55 रुपये में उपलब्ध है, जेनेरिक आधार पर 6 रुपये प्रति स्ट्रिप की कीमत पर उपलब्ध है।
शुरुआती कुछ सालों में, जेनेरिक आधार ने शहरों में तेजी से विस्तार किया और जिसके बाद देशपांडे को मशहूर शो ‘टेड टॉक’ पर आमंत्रित किया गया। यहां देशपांडे का दिया भाषण काफी वायरल हुआ, जिसने रतन टाटा का ध्यान आकर्षित किया। कंपनी के इनोवेटिव मॉडल से प्रभावित होकर रतन टाटा ने इसमें निवेश करने की ऑफर दिया। तब से, रतन टाटा ने जेनेरिक आधार को देश के कोने-कोन तक पहुंचाने में मदद की है।
अब, स्टार्टअप के पास देश भर में करीब 2,000 स्टोर हैं, जिसमें लगभग 10,000 कर्मचारी हैं। इस साल अप्रैल में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारतीय नागरिकों को सस्ती दवा मुहैया कराने के लिए अर्जुन देशपांडे के समर्पण की सराहना की। उन्होंने कहा कि जेनेरिक आधार का काम अर्थव्यवस्था के विकास में योगदान दे रहा है। साथ ही उन्होंने देशपांडे को “फार्मा का वंडर किड” बताया।
फिलहाल कंपनी बांग्लादेश, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, संयुक्त अरब अमीरात और म्यांमार में अपने कारोबार के विस्तार पर काम कर रही है। देशपांडे ने कुछ समय पहले कहा था, ‘हम जल्द ही दुबई, ओमान, कंबोडिया और वियतनाम में भी अपने स्टोर खोलेंगे।’ इसके अलावा, कंपनी का लक्ष्य पशु चिकित्सा क्षेत्र में भी प्रवेश करते हुए स्टोर्स की संख्या को 3,000 तक बढ़ाना है। 21 वर्षीय सीईओ अर्जुन देशपांडे का मानना है कि पशुओं के लिए कम कीमत पर दवाएं उपलब्ध होने से किसानों का पर वित्तीय दबाव कम होगा। कंपनी ने हाल ही में आंध्र प्रदेश में अपना पहला पशु चिकित्सा स्टोर खोला है।

ये है भारत की सबसे लंबी ट्रेन, लगे है 295 डिब्बे, 6 इंजन लगाने के बाद दौड़ती है ट्रेन

आपने आज तक ट्रेन के जरिए बहुत यात्रा करी होगी । साथ ही आपने भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जाने वाली माल गाडियां भी देखी होंगी जिसके जरिए देश के एक कोने से जरूरी सामान को दूसरे कोने पहुंचाया जाता है । क्या आप यह जानते हैं भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जाने वाली सबसे लंबी मालगाड़ी कौन सी है और उसकी लंबाई कितनी है । अगर नहीं, तो बता दें कि भारतीय रेलवे द्वारा चलाई जाने वाली सबसे लंबी मालगाड़ी सुपर वासुकी है, इसकी लंबाई 3.5 किलोमीटर है ।
ये है सुपर वासुकी की खासियत
सुपर वासुकी को भारतीय स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ के मौके पर 15 अगस्त, 2022 को भारतीय रेलवे द्वारा चलाया गया था । इस ट्रेन में कुल 295 डिब्बे लगे हुए हैं, जिसे 6 इंजनों के द्वारा चलाया जाता है । इस ट्रेन की कुल लंबाई करीब 3.5 किलोमीटर है, जिस कारण इस ट्रेन को एक स्टेशन को क्रॉस करने में 4 मिनट का समय लगता है । इसके अलावा बता दें कि 295 लोडेड वैगेनों वाली ट्रेन जिसे 6 इंजनों द्वारा संचालित किया जाता है । वह कुल 27,000 टन कोयले का भार सहते हुए छत्तीसगढ़ के कोरबा से रवाना होती है और नागपुर के राजनंदगांव तक अपनी दूरी तय करती है । इस दूरी को तय करने में इसे लगभग 11.20 घंटे का समय लगता है ।
मौजूदा ट्रेनों के मुकाबले है तीन गुना क्षमता
दरअसल, सुपर वासुकी को एक मालगाड़ी का रूप देने के लिए पांच मालगाड़ियों के रेक को एक साथ जोड़ा गया है । बता दें कि इस ट्रेन द्वारा ले जाया जाने वाला कुल कोयला एक पूरे दिन के लिए 3,000 मेगावाट बिजली संयंत्र में आग लगाने के लिए पर्याप्त है, जो मौजूदा ट्रेनों की क्षमता से तीन गुना अधिक है । यह ट्रेन एक ही यात्रा में लगभग 9,000 टन कोयला अपने साथ ले जाती हैं ।
ये हैं दुनिया की सबसे लंबी मालगाड़ी
वहीं, दुनिया की सबसे लंबी मालगाड़ी की बात की जाए, तो उसमें ऑस्ट्रेलिया की बीएचपी आयरन ओर का नाम शामिल है, जिसकी लंबाई इसकी तुलना में करीब 7.352 किमी लंबी है ।

सबसे बड़े दानवीरों में जेरोधा वाले निखिल कामत का नाम

34 की उम्र में ही बन गए थे अरबपति, अब दान कर रहे अपनी कमाई
नयी दिल्ली । जेरोधा के सह संस्थापक निखिल कामत का नाम उन भारतीय अमीरों की सूची में शामिल हो गया है, जो अपनी कमाई का ज्यादातर हिस्सा दान करते हैं। निखिल कामत ने ऐलान किया है कि वे अपनी आय का एक बड़ा हिस्सा समाज की भलाई के लिए दान करेंगे। इसी के साथ उनका नाम वारेन बफेट, मेलिंडा फ्रेंच गेट्स और बिल गेट्स की ‘द गिविंग प्लेज’ में भी शामिल हो गया है। जहां दुनिया की अमीर से अमीर लोग अपनी ज्यादातर कमाई दान कर देते हैं। निखिल कामत से पहले इस लिस्ट में अजीम प्रेमजी, किरण मजूमदार शॉ, रोहिणी और नंदन नीलेकणि का नाम इस लिस्ट में है। मतलब इस लिस्ट में शामिल होने वाले निखिल कामत चौथे भारतीय हैं।
कौन हैं निखिल कामत
निखिल कामत ने छोटी उम्र से ही काम करना शुरू कर दिया था। जब उनकी उम्र 17 साल की थी तो उन्होंने फुल टाइम नौकरी करना शुरू कर दिया था। उनका ज्यादातर अनुभव शेयर मार्केट से जुड़ा रहा है। इस डोमेन में उन्होंने करीब 18-19 साल बिताए हैं। उनका कहना है कि निवेश में उनका ज्यादा मन लगता है। अपना ज्यादातर समय वे पब्लिक और पर्सनल दोनों मार्केट में निवेश करने में लगाते हैं. साल 2010 में उन्होंने जीरोधा की स्थापना की और निजी निवेश के लिए Gruhas, हेज फंड ट्रू बीकन, फिनटेक इनक्यूबेटर रेनमैटर और रेनमैटर फाउंडेशन की स्थापना की। ये जलवायु से संबंधित संगठन की मदद करती है। निखिल कामत 34 साल की उम्र में ही अरबपति बन गए थे।
द गिविंग प्लेज क्या है
द गिविंग प्लेज में अब तक 29 देशों के 241 सोशल वर्कर का नाम शामिल है। इनका उद्देश्य लोगों को ज्यादा से ज्यादा दान करने के लिए प्रोत्साहित करना है। जून 2022 में आखिरी सभा के बाद से निखिल कामत के अलावा द गिविंग प्लेज ने रेवेनेल बी करी III (अमेरिका), बेनोइट डेजविले और मैरी-फ्लोरेंस डेजविले (फ्रांस, अमेरिका), माइकल क्रेस्नी (अमेरिका), टॉम और थेरेसा इस ग्रुप का हिस्सा बने हैं। प्रेस्टन-वर्नर (अमेरिका), डेनिस ट्रॉपर और सुसान वोजिकी (अमेरिका) और एंड्रयू विल्किंसन और जो पीटरसन (कनाडा) का नाम भी इस सूची में है।

भवानीपुर कॉलेज ने मनाया “नो अर्थ, नो बर्थ”: प्रकृति के साथ सद्भाव

कोलकाता । भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के प्रातःकालीन वाणिज्य विभाग की ओर से ‘ नो अर्थ, नो बर्थ :लिविंग इन हार्मनी विद नेचर ‘ कार्यक्रम मनाया गया। 24 मई को  जुबली सभागार में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य पर्यावरण के मुद्दों के बारे में जागरूकता बढ़ाना और स्थायी जीवन को बढ़ावा देना था। इसमें ग्लोबल वार्मिंग, वनों की कटाई और वनों की कटाई, जल संरक्षण और वायु प्रदूषण जैसे विषयों पर केंद्रित एक पोस्टर मेकिंग और स्लोगन लेखन प्रतियोगिता शामिल थी।
पर्यावरण अध्ययन की शिक्षिका प्रो. प्रीति शाह और बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन विभाग की प्रो. पृथा चंदा ने इस प्रतियोगिता के निर्णायक रहे। प्रतियोगिता में कुल ग्यारह टीमों ने भाग लिया। प्रत्येक टीम को अपना पोस्टर और स्लोगन पूरा करने के लिए पैंतालीस मिनट का समय दिया गया था।
कार्यक्रम की शुरुआत टीम एक की पोस्टर कला वनीकरण और वनों की कटाई के साथ हुई। उनका नारा, “आज पौधा लगाओ, कल साँस लो,” ने वृक्षारोपण के महत्व को बताया। बाद में, अन्य टीमों ने विभिन्न विषयों पर अपने पोस्टर और नारे प्रस्तुत किए, जैसे, “पानी बचाना और भविष्य की पीढ़ियों के लिए इसका महत्व” उन्होंने “न्यूनतम अपव्यय, उच्चतम उपयोग” जैसे असंख्य नारों का भी इस्तेमाल किया।” वाटर हीरो, कंजर्व टुडे।”, “वाटर आवर बर्थ एंडक्षय?”, “इन्कार करना बंद करो, पृथ्वी मर रही है।”, “अगर पृथ्वी मौजूद है, तो हम मौजूद हैं।”, “ग्लोबल वार्मिंग आज और कल की धरती को जला रही है।”, “ग्लोबल वार्मिंग को रोकने के लिए अपना हिस्सा करें।”, “यदि आपके पास इसे रखने के लिए एक सहनीय ग्रह नहीं है तो एक अच्छे घर का क्या उपयोग है?”
पानी की खपत पर अन्य नारे थे, जैसे “डरने से पहले देखभाल का समय।” वायु प्रदूषण के लिए “प्रदूषण मनुष्य को मारता है और भ्रष्टाचार मानवता को मारता है।” कई अन्य नारे थे। जल संरक्षण, जहां प्रतिभागियों ने जल संरक्षण में व्यक्तिगत प्रयासों के महत्व और ऐसे कार्यों के संचय के प्रभाव के बारे में सीखा। इसी तरह, ग्लोबल वार्मिंग सत्र में पुनर्चक्रण, कम करने और पुन: उपयोग करने और जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करने जैसी तकनीकों पर प्रकाश डाला गया। इसने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभावों को भी कवर किया, जिसमें ग्लेशियरों का पिघलना और ग्रह पर वैश्वीकरण और उपभोक्तावाद का प्रभाव शामिल है।

इस अवसर पर प्रो उर्वी शुक्ला ने प्रकृति, ग्लोबल वार्मिंग, जल संरक्षण, वायु प्रदूषण और पृथ्वी के बारे में विभिन्न तथ्यों से संबंधित विषयों पर एक प्रश्नोत्तरी प्रतियोगिता का आयोजन किया। सवालों के सही जवाब देने वाले विद्यार्थियों को चॉकलेट देकर पुरस्कृत किया गया। टीम नौ ने पहला स्थान हासिल किया, टीम चार ने दूसरा स्थान हासिल किया, और टीम तीन ने तीसरा स्थान हासिल किया। पुरस्कार और प्रमाण पत्र डीन ऑफ स्टूडेंट अफेयर्स, प्रो. दिलीप शाह और समन्वयक वाणिज्य विभाग( सुबह)की प्रो. मीनाक्षी चतुर्वेदी द्वारा वितरित किए गए। छात्रों को गमले के साथ एक छोटा पौधा दिया गया जो युवाओं द्वारा पेड़ लगाने के महत्व को दर्शाता है। प्रो. शाह द्वारा प्रशंसा के प्रतीक के रूप में निर्णायकों को पौधों के गमलों से सम्मानित किया गया। कार्यक्रम की रिपोर्ट की आर्यन शॉ ने और जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

भवानीपुर कॉलेज की एनएसएस टीम ने मनाया तम्बाकू निषेध दिवस

कोलकाता । दी भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज एनएसएस टीम द्वारा तम्बाकू निषेध दिवस मनाया गया जिसकी शुरुआत ही स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए की गई। इस अवसर पर क्षेत्रीय निदेशक, एनएसएस, श्री विनय कुमार ने विद्यार्थियों को तम्बाकू निषेध दिवस के महत्व को बताया। गुरु नानक इंस्टीट्यूट ऑफ डेंटल साइंसेज एंड रिसर्च, कोलकाता के प्रो. डॉ. बिस्वरूप चंद्र ने ओरल हेल्थ किस तरह से शरीर को स्वस्थ रखता है, विषय पर अपना वक्तव्य दिया। कार्यक्रम के बाद, एक इंटर-कॉलेज रील मेकिंग प्रतियोगिता हुई, जिसमें प्रथम स्थान: गवर्नमेंट कॉलेज ऑफ आर्ट एंड क्राफ्ट, द्वितीय स्थान: भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज तृतीय स्थान: महिला क्रिश्चियन कॉलेज ने हासिल किया।डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि कार्यक्रम का संयोजन एनएसएस टीम की प्रमुख प्रो गार्गी ने किया।

भवानीपुर कॉलेज में आइक्यूएसी के संयुक्त तत्वावधान में राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 पर अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस

कोलकाता । भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के जुबली सभागार में प्रातः कालीन कॉमर्स विभाग और आई क्यू ए सी के संयुक्त तत्वावधान में अंतरराष्ट्रीय शिक्षा नीति 20 विषय पर कॉन्फ्रेंस का आयोजन किया गया। 27 मई 2023 को इस कॉन्फ्रेंस में देश – विदेश के कई शिक्षाविद, शोधकर्ता, अकादमिक, शैक्षिक संस्थानों के प्रमुख पदाधिकारियों, कॉर्पोरेट और पोलिसी मेकर ने भाग लिया। इस कॉन्फ्रेंस का उद्देश्य है नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति के विषय में विभिन्न जानकारी प्राप्त करना। यह शिक्षा नीति देश के कई राज्यों में लागू भी की गई है। पश्चिम बंगाल राज्य में इसके लागू करने और इसके लिए शिक्षण संस्थानों को क्या क्या कदम उठाने होंगे और किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा इस पर विचार विमर्श किया गया। कई विषयों जैसे शिक्षा के विकास में अकादमिक और फैकल्टी के विभिन्न प्रबंधन विषयक क्षेत्रों में उच्च शिक्षा-चुनौतियां और अवसरों को बदलने में एनईपी की भूमिका, भारतीय शिक्षा प्रणाली का भविष्य और हितधारकों पर प्रभाव, बहुआयामी और उदार शिक्षा का विकास,एनईपी को ध्यान में रखते हुए समावेशी शिक्षा,एनईपी के प्रभावी कार्यान्वयन के लिए अकादमिक नेतृत्वकर्ताओं और शिक्षकों का विकास , वैश्विक संदर्भ में शिक्षा, शिक्षण और सीखने के लिए नई अवधारणाओं में प्रवेश करना, एनईपी के प्रभावी कार्यान्वयन में उद्योग की भूमिका, एनईपी के तहत क्लस्टर मॉडल – उच्च शिक्षा में गेम चेंजर,एनईपी कौशल आधारित शिक्षा और प्रशिक्षण, एनईपी का आकलन और मूल्यांकन,शिक्षार्थियों को वैश्विक बाजार में प्रासंगिक और प्रतिस्पर्धी बनाने आदि पर शिक्षाविदों द्वारा महत्वपूर्ण विचार – विनिमय किए गए। कॉन्फ्रेंस में 65 कॉलेज के प्रमुख पदाधिकारियों ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
इस कार्यक्रम के प्रमुख संरक्षक कॉलेज के अध्यक्ष श्री रजनीकांत दानी, उपाध्यक्ष श्री मिराज डी शाह, सेक्रेटरी श्री प्रदीप सेठ, डीन प्रो दिलीप शाह और कॉमर्स प्रातःकालीन सत्र की कोआर्डिनेटर प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी रहे ।
उद्घाटन सत्र में सन्मार्ग हिंदी दैनिक पत्र के निदेशक पश्चिम बंगाल के विधायक और पूर्व सांसद मुख्य अतिथि विवेक गुप्ता , डीन प्रो दिलीप शाह और विभागाध्यक्षों, टीआईसी डॉ सुभब्रत गंगोपाध्याय आदि की उपस्थिति रही। कॉलेज के रेक्टर डॉ संदीप दान ने विवेक गुप्ता को सम्मानित किया।उन्होंने अपने वक्तव्य में मीडिया से संबंधित कई महत्वपूर्ण विषयों पर विचार व्यक्त किया। कॉलेज के टीआईसी डॉ. सुभब्रत गंगोपाध्याय ने कॉलेज के ट्रस्टी श्री पंकज पारेख का अभिनंदन किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि परिवर्तन प्रकृति का नियम है। शिक्षा में परिवर्तन नए विकास का सूचक है। उद्घाटन सत्र में नई शिक्षा नीति पर बीज वक्तव्य दिया श्री जी. बालासुब्रमण्यम, जो शैक्षिक प्रणाली और नवाचार के संस्थापक हैं। उन्होंने अॉन-लाइन नई शिक्षा नीति 2020 के सभी तकनीकी पक्षों पर प्रकाश डाला। तकनीकी सत्र एक के मॉडरेटर डॉ. परनब मुखर्जी रहे जो पत्रकार, डिबेटर और क्विज मास्टर हैं उन्होंने वक्ताओं से नई शिक्षा के क्षेत्र में विस्तार से कई प्रश्नों को उठाया। इस सेशन में प्रोफेसर डॉ सैकत मैत्रा (पूर्व कुलपति मकौत) , श्री प्रदीप कुमार अग्रवाल (अॉन-लाइन) (हेरिटेज ग्रुप ऑफ इंस्टीट्यूशंस के सीईओ) और डॉ कृष्नेंदु सरकार डायरेक्टर एन एस एच एम ने इस सत्र में नई शिक्षा नीति 20 पर अपने महत्वपूर्ण विचारों को व्यक्त किया ।
भोजनावकाश के पश्चात तकनीकी सत्र 2 का संचालन किया भवानीपुर कॉलेज के डीन प्रो. दिलीप शाह ने। इस सत्र में डरहम विश्वविद्यालय के कला और मानविकी और सामाजिक विज्ञान और स्वास्थ्य के शिक्षाविद डॉ मार्टिन पाउट और डेपुटि कोंसल जनरल ऑस्ट्रेलियन कोन्सुलेट जनरल केविन गोह उपस्थित रहे जिन्होंने विदेश शिक्षा नीति के क्षेत्र में वैश्विक बदलाव पर विचार रखे । इस सत्र में सिंगापुर की जेम्स कुक युनिवर्सिटी की प्रो पेंगजी वांग अॉन-लाइन जुड़ी और मार्केटिंग एंड मैनेजमेंट विषय पर (एमबीए) प्रेजेंटेशन द्वारा अॉन-लाइन अपने विचार व्यक्त किए।
तकनीकी सत्र 3 विभिन्न शिक्षकों और शिक्षिकाओं, शोधकर्ताओं द्वारा उन्नीस से अधिक पेपर की प्रस्तुतियाँ दीं । इस सत्र का संचालन प्रमुख साहित्यकार डॉ. राजश्री शुक्ला, हिंदी विभाग; कलकत्ता विश्वविद्यालय ने किया।इस सत्र में भारतीय भाषा और विदेशी भाषाओं पर विचार किया गया। भवानीपुर कॉलेज के डायरेक्टर जनरल प्रसिद्ध अर्थशास्त्री डॉ सुमन मुखर्जी ने नई शिक्षा नीति 20 पर अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि इस पर शैक्षणिक संस्थानों, विश्वविद्यालयों के साथ साथ विद्यालयों के शिक्षक और शिक्षिकाओं को निरंतर विचार विमर्श करने की आवश्यकता है। सभी वक्ताओं के पेपर आईएसबीएन के तहत पुस्तककार में प्रकाशित किया जाएगा।
इस अवसर पर कोलकाता के प्रमुख कॉलेज के शिक्षाविद और भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के बीकॉम बीए बीएसई एमए एमकॉम और बीबीए विभाग तीनों सत्रों के 200 से अधिक शिक्षक और शिक्षिकाओं ने भाग लिया।
कोलकाता में भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज और आइक्यू ए सी के संयुक्त तत्वावधान में नई शिक्षा नीति पर अंतरराष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस प्रथम पहल है जो प्रातःकालीन सत्र की कोआर्डिनेटर प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी के संयोजन में संपन्न हुआ।कार्यक्रम का संचालन किया डॉ उर्वी शुक्ला ने। सहभागिता प्रो दिव्या उदेशी, प्रो समीक्षा खंडूरी, डॉ वसुंधरा मिश्र, प्रो चंदन झा, प्रो श्रेयसी घोष, सुभाषिश दासगुप्ता, प्रो दर्शना त्रिवेदी , प्रो उज्मा खान आदि प्रातःकालीन कॉमर्स सत्र के सभी शिक्षकों और विद्यार्थियों का महत्वपूर्ण योगदान रहा।कार्यक्रम में प्रश्न भी पूछे गए। धन्यवाद ज्ञापन प्रो मीनाक्षी चतुर्वेदी ने किया ।कार्यक्रम की जानकारी दी डॉ वसुंधरा मिश्र ने ।

पर्यावरण दिवस विशेष : सनातन है भारतीय परम्परा में पर्यावरण की चिंता

ग्लोबल वार्मिंग तथा जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पन्न होने वाले पर्यावरण संकट की समस्या व इसके समाधान के उपाय पर विचार- विमर्श और इसके प्रति लोगों में जागरूकता पैदा करने के लिए प्रतिवर्ष पांच जून को विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। इसमें कोई शक नहीं कि विज्ञान और नवीनतम प्रौद्योगिकी ने ही ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन द्वारा ग्लोबल वार्मिंग के संकट को गहराया है, लेकिन स्वयं पाश्चात्य विज्ञान के पास भी इस समस्या को कोई समाधान नहीं है। चिन्ता का विषय यह भी है कि पर्यावरण विज्ञान का एक गौरवशाली इतिहास रखने वाला भारत जैसा देश भी विश्व पर्यावरण सम्मेलनों में ग्लोबल वार्मिंग की समस्या का सही मायने में निदान और समाधान रखने में असमर्थ रहा है।

भारतीय परम्परा में पर्यावरण की चिंता आदि सनातन काल से की गयी है। उस समय समस्त प्रकृति ही पूज्य थी। प्रकृति की महता, संरक्षता, पूजा के अनेक प्रसंग वैदिक साहित्य में भरे पड़े है। यजुर्वेद के एक लोकप्रिय मंत्र36/17 में अंकित मन्त्र -द्योः शांतिरंतरिक्षं… । में समूचे पर्यावरण को शान्तिमय बनाने की अद्भुत स्तुति है। स्वस्तिवाचन की इस अद्भुत ऋचा में द्युलोक, अंतरिक्ष और पृथ्वी से शान्ति की भावप्रवण प्रार्थना करते हुए कहा गया है कि जल शान्ति दे, औषधियां-वनस्पतियां शान्ति दें, प्रकृति की शक्तियां – विश्वदेव, सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड शान्ति दे। सब तरफ शान्ति हो, शान्ति भी हमें शान्ति दें। वेद के इस मन्त्र में मनुष्यों को स्पष्ट रूप से आदेश देते हुए कहा गया है कि जैसे प्रकाश आदि पदार्थ शान्ति करने वाले होवें, वैसे तुम लोग प्रयत्न करो।

उल्लेखनीय है कि पर्यावरण एक व्यापक शब्द है, जो उन संपूर्ण शक्तियों, परिस्थितियों एवं वस्तुओं का योग है, जो मानव जगत को परावृत्त करती हैं, तथा उनके क्रियाकलापों को अनुशासित करती हैं। सृष्टि में चारों ओर व्याप्त विराट प्राकृतिक परिवेश को ही पर्यावरण कहा जाता है। परस्परावलंबी संबंध का नाम पर्यावरण है। हमारे चारों ओर विद्यमान वस्तुएं, परिस्थितियां एवं शक्तियां सब हमारे क्रियाकलापों को प्रभावित करती हैं, और उसके लिए एक सीमा, एक दायरा सुनिश्चित करती हैं। इसी सीमा, दायरे को हम पर्यावरण कहते हैं। यह दायरा व्यक्ति, गांव, नगर, प्रदेश, महाद्वीप, विश्व अथवा संपूर्ण सौरमंडल या ब्रह्मांड हो सकता है। इसीलिए आदि ग्रन्थ वेद में द्युलोक से लेकर व्यक्ति तक समस्त परिवेश के लिए शांति की प्रार्थना की है। और इसीलिए वैदिक ग्रन्थों से लेकर वर्तमान के चिंतकों और मनीषियों ने समय-समय पर पर्यावरण के प्रति अपनी चिंता को अभिव्यक्त कर मानव जाति को सचेष्ट करने के प्रति अपने उत्तरदायित्व का निर्वाह किया है। ताकि द्युलोक से लेकर पृथ्वी के सभी जैविक- अजैविक घटक संतुलन की अवस्था में रहें, अदृश्य आकाश अर्थात द्युलोक, नक्षत्रयुक्त दृश्य आकाश अर्थात अंतरिक्ष, पृथ्वी एवं उसके सभी घटक-जल, औषधियां, वनस्पतियां, संपूर्ण संसाधन (देव) एवं ज्ञान-संतुलन की अवस्था में रहें, तभी व्यक्ति और विश्व, शांत एवं संतुलन में रह सकता है।

प्रकृति में परिलक्षित होने वाले जल, वायु, मृदा, पादप और प्राणी आदि सभी वस्तु, परिस्थितियां एवं शक्तियां सम्मिलित रूप में पर्यावरण की रचना करते हैं। अर्थात जीवों की अनुक्रियाओं को प्रभावित करने वाली समस्त भौतिक और जीवीय परिस्थितियों का योग पर्यावरण है। प्रकृति ही मानव का पर्यावरण है और यही उसके संसाधनों का भंडार है। वैदिक ग्रन्थों में उन समस्त उपकारक तत्वों को देव कहकर उनके महत्व को प्रतिपादित किया गया है। आदिकाल से ही इन देवताओं के लिए मनुष्य का जीवन ऋणी हो गया है। यही कारण है कि वैदिक पौराणिक ग्रन्थों में मनुष्य को पितृऋण और ऋषिऋण के साथ-साथ देवऋण से भी उन्मुक्त होने की चेतावनी देते हुए कहा गया है कि मनुष्य अपने कर्तव्य में देवऋण से मुक्त होने के लिए भी कर्तव्य करें। वैदिक ग्रन्थों में उसके लिए यह मर्यादा स्थापित की गई है। पर्यावरण को संतुलित रखने के लिए सूर्य, वायु, वरुण अर्थात जल एवं अग्नि देवताओं की महत्वपूर्ण भूमिका को स्वीकारते हुए इन देवताओं से रक्षा की कामना की गई है। ऋग्वेद 1/158/1, 7/35/11तथा अथर्ववेद 10/9/12 में दिव्य, पार्थिव और जलीय देवों से कल्याण की कामना की गई है।

पर्यावरण शब्द की उत्पत्ति, परि-उपसर्ग के साथ आवरण शब्द की संधि से होती है। आङ्पूर्वक वरण शब्द का प्रयोग भी संस्कृत शब्दार्थ-कौस्तुभ ग्रंथ में हुआ है, जिसका अर्थ है- ढकना, छिपाना, घेरना, ढक्कन, पर्दा, घेरा, चारदीवारी, वस्त्र, कपड़ा और ढाल। कौस्तुभ ग्रंथ में ही संस्कृत के उपसर्ग परि का अर्थ-सर्वतोभाव, अच्छी तरह, चारों ओर तथा आच्छादन आदि के रूप में मिलता है। और आङ् भी संस्कृत का एक उपसर्ग है, जिसका अर्थ, समीप, सम्मुख और चारों ओर से होता है। वरण शब्द संस्कृत के वृ धातु से बना है, जिसका अर्थ, ‘छिपना, चुनना, ढकना, लपेटना, घेरना, बचाना आदि है। इसी प्रकार पर्यावरण – परि+आवरण से बने शब्द का अर्थ, चारों ओर से ढंकना, चारों ओर से घेरना या चारों ओर का घेरा होगा। विभिन्न कोशकारों ने इसका अर्थ- पास पड़ोस की परिस्थितियां और उनका प्रभाव के रूप में माना है। पर्यावरण को आंग्ल भाषा में इन्वायरमेंट कहा जाता है। इन्वायरमेंट शब्द का प्रयोग ऐसी क्रिया जो घेरने के भाव को सूचित करे, के संदर्भ में किया जाता है। विभिन्न कोशों में इसके विभिन्न अर्थ वातावरण, उपाधि, परिसर, परिस्थिति, प्रभाव, प्रतिवेश, परिवर्त, तथा वायुमंडल, वातावरण और परिवेश, अड़ोस-पड़ोस, इर्द-गिर्द, आस-पास की वस्तुएं एवं पर्यावरण आदि किये गए हैं।

वर्तमान सन्दर्भ में पर्यावरण के दो भेद किये जा सकते हैं। पहला, भौतिक अथवा प्राकृतिक पर्यावरण और दूसरा सांस्कृतिक अथवा मानवकृत पर्यावरण। भौतिक अथवा प्राकृतिक पर्यावरण के अंतर्गत वे तत्व सम्मिलित होते हैं, जो जैवमंडल का निर्माण करते हैं। और सांस्कृतिक अथवा मानवकृत पर्यावरण में आर्थिक क्रियाएं, धर्म अधिवास, आवासीय दशाएं एवं राजनीतिक परिस्थितियां आदि सम्मिलित हैं। इससे स्पष्ट है कि प्राणि-जगत को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय तत्व देव केवल पार्थिव ही नहीं है, अपितु उनका स्थान अंतरिक्ष और द्युलोक भी है। वैदिक ग्रन्थों मेंउन सभी से प्राणियों की मंगल-कामना एवं सुरक्षा की कामना की गई है।

पर्यावरण को जानने, पर्यावरण के समस्त रहस्यों से आवरण दूर करने के लिए यह जानना भी आवश्यक है कि पर्यावरण का निर्माण करने वाले समस्त तत्वों की सृष्टि किस क्रम में और किस प्रकार हुई और उसके कारक तत्व कौन से हैं? ऋग्वेद 10/129/ 1-7 में अंकित मन्त्र नासदासीत्रो सदासीत्तदानी…के अनुसार सृष्टि के आरंभ में न सत था न असत। ऋग्वेद 10/121/1 में अंकित मन्त्र- हिरण्यगर्भः समवर्तताग्रे… में सृष्टि के विकास-क्रम को बताते हुए कहा गया है कि सर्वप्रथम जीवों का स्वामीभूत हिरण्यगर्भ अस्तित्व में आया और उसी से सृष्टि का अविच्छिन्न विकास हुआ आदि-आदि। पाश्चात्य विज्ञान के अनुसार चाहे वह सृष्टि उत्पत्ति का समय हो या अन्य कोई समय, प्रकृति सदैव तीन रूपों में विद्यमान रहती है- कण, प्रतिकण एवं विकिरण। ऋग्वेद, 7/33/7में प्रस्तुत वैदिक सिद्धांत के अनुसार प्रकृति में मूल तीन वर्ग विद्यमान हैं -त्रयः कृण्वति भुवनस्य रेत। ये हैं वरुण, मित्र और अर्यमा।

इनकी संयुक्त सत्ता को अदिति कहा गया है, जो अनादि एवं अखंड सत्ता है। व्यक्तिगत रूप से ये आदित्य कहलाते हैं। ये अनादि शाश्वत सत्ता के अंगभूत हैं। अर्यमा उदासीन कण है, जो विज्ञान की विकिरण के फोटांस के अनुरूप है। वरुण और मित्र प्रकृति का द्रव्य भाग बनाते हैं तथा विज्ञान के कण-प्रतिकण का प्रतिनिधित्व करते हैं तथा वे विपरीत आवेश (चार्ज वहन करते हैं। वैदिक परिकल्पनानुसार सृष्टिकाल से दृश्य जगत तक भौतिक पदार्थ पांच अवस्थाओं में निष्क्रमण करते हैं- पहला, शपतथ ब्राह्मण 1/1/1 में अंकित आपः (क्रियाशील) अवस्था-क्वांटम या क्वार्कसूप। दूसरा, ऋग्वेद 10/12/7 का बृहती आपः -प्लाज्मा अवस्था। तीसरा, ऋग्वेद 1/35/2 का अपानपात-नाभिक अवस्था या कॉस्मिक मैटर। चौथा, ऋग्वेद 1/164/36 का अर्ध गर्भ¬¬¬¬¬: -परमाणु अवस्था । और पांचवा, पंचमहाभूतों अर्थात पृथ्वी, जल, तेज, वायु, आकाश का दृश्य जगत।

ब्राह्मण ग्रंथों एवं उपनिषदों में इस सम्बन्ध में अंकित वर्णन वेदों की विषद व्याख्या रूप ही हैं और उन अर्थों का पूरक भी है। तैत्तिरीय ब्राह्मण 2/ 8/ 9/ 6 तथा 1/ 1/ 3/ 1, गोपथ ब्राह्मण 1/ 1/1/2, सामविधान ब्राह्मण 1/1, जैमिनीयोपनिषद ब्राह्मण 7/ 1/1, शतपथ ब्राह्मण 6/ 1/ 1/ 13, जैमिनीय ब्राह्मण 1/68 तथा 2/ 146, ऐतरेय ब्राह्मण 5/ 5/ 7, तांड्य ब्राह्मण 4/1/ 1, तैत्तिरीय संहिता 4/ 1/ 8/ 3), ऐतरेये उपनिषद 1/ 1, तैत्तिरीय उपनिषद 2/ 7/ 10 आदि में भी सृष्टि प्रक्रिया का वर्णन है, जो वेदों में किये गए सृष्टि क्रम के अनुरुप व पूरक है। दर्शन ग्रन्थों एवं वेदांत में भी इसी का अनुसरण किया गया है। मनुस्मृति में वर्णित सृष्टि सिद्धांत, पौराणिक व आयुर्वेद ग्रन्थ भी वैदिक मत की पुष्टि करते हैं।

इस प्रकार स्पष्ट है कि सृष्टि की उत्पत्ति और जगत का विकास ही पर्यावरण प्रादुर्भाव है। सृष्टि का जो प्रयोजन है, वही पर्यावरण का भी है। जीवन और पर्यावरण का अन्योन्याश्रय संबंध है। इसीलिए आदिकाल से मानव पर्यावरण के प्रति जागरूक रहा है, ताकि मानव दीर्घायुष्व, सुस्वास्थ्य, जीवन शक्ति, पशु, कीर्ति, धन एवं विज्ञान को उपलब्ध हो सके। अथर्ववेद 19/ 71/1 में यही कामना करते हुए कहा गया है- आयुः प्राणं प्रजां पशुं। अथर्ववेद 3/ 11/ 4 शत जीव शरदो … ।, ऋग्वेद 10/18/4 – शतां जीवंतु शरदः… । तथा यजुर्वेद 25/22 – शतिमिन्नु शरदो अंति में मनुष्य के सौ वर्ष, शताधिक वसंत तक जीने की कामना की गई है। और आशीर्वाद देते हुए कहा है कि हे मनुष्य! बढ़ता हुआ तू सौ शरद ऋतु और सौ बसंत तक जीवित रहे। इंद्र अर्थात विद्युत, अग्नि, सविता अर्थात सूर्य, बृहस्पति अर्थात संकल्पशक्ति और हवन अर्थात यज्ञ तुझे सौ वर्ष तक आयुष्य प्रदान करें। ऋग्वेद 7/66/16 में कहा गया है कि किसी भी तरह सौ वर्ष आरोग्यता और बल के साथ जिएं।
हम सौ वर्ष पर्यंत, ज्ञानशक्ति का विकास करें, सौ वर्ष तक जीवन को ज्ञान के अनुकूल विकसित करें, सौ वर्ष तक वेद को सुनें और प्रवचन करें और आयु भर किसी के पराधीन न रहें। ऋग्वेद 10/18/2 -3 के अनुसार संतान और धन के साथ अभ्युदय को हम प्राप्त होते हुए बाहर से शुद्ध, अंदर से पवित्र तथा निरंतर यज्ञ करने वाले हों। नृत्य, हास्य, सरलता और कल्याणमय श्रेष्ठ मार्ग के आचरण से आयु बढ़ती है। अथर्ववेद 10/3/12 तथा 19/27/8 के अनुसार दीर्घायु प्राप्ति के लिए सर्वप्रथम अपने मन में श्रेष्ठ सद्गुण बढ़ाते हुए राष्ट्रीयता तथा क्षात्रतेज अपने अंदर बढ़ाना चाहिए। प्राणशक्ति के साथ आत्मिक बल धारण करने वाले मृत्यु के वश में नहीं जाते। इसलिए वैदिक सनातन शाश्वत भावना के अनुरूप ही पर्यावरण शुद्धि एवं सुस्वास्थ्य मानव की एक महती आवश्यकता है।
(साभार – नया इंडिया)

पर्यावरण दिवस विशेष : प्रकृति संरक्षण की जननी है भारतीय संस्कृति

भौतिक विकास के पीछे दौड़ रही दुनिया ने आज जरा ठहरकर सांस ली तो उसे अहसास हुआ कि चमक-धमक के फेर में क्या कीमत चुकाई जा रही है । आज ऐसा कोई देश नहीं है जो पर्यावरण संकट पर मंथन नहीं कर रहा हो । भारत भी चिंतित है लेकिन, जहां दूसरे देश भौतिक चकाचौंध के लिए अपना सबकुछ लुटा चुके हैं, वहीं भारत के पास आज भी बहुत कुछ है।
पश्चिम के देशों ने प्रकृति को हद से ज्यादा नुकसान पहुँचाया है । पेड़ काटकर जंगल के कांक्रीट खड़े करते समय उन्हें अंदाजा नहीं था कि इसके क्या गंभीर परिणाम होंगे? प्रकृति को नुकसान पहुंचाने से रोकने के लिए पश्चिम में मजबूत परंपराएं भी नहीं थीं ।
प्रकृति संरक्षण का कोई संस्कार अखण्ड भारतभूमि को छोड़कर अन्यत्र देखने में नहीं आता है जबकि सनातन परम्पराओं में प्रकृति संरक्षण के सूत्र मौजूद हैं । हिन्दू धर्म में प्रकृति पूजन को प्रकृति संरक्षण के तौर पर मान्यता है । भारत में पेड़-पौधों, नदी-पर्वत, ग्रह-नक्षत्र, अग्नि-वायु सहित प्रकृति के विभिन्न रूपों के साथ मानवीय रिश्ते जोड़े गए हैं । पेड़ की तुलना संतान से की गई है तो नदी को मां स्वरूप माना गया है । ग्रह-नक्षत्र, पहाड़ और वायु देवरूप माने गए हैं ।
प्राचीन समय से ही भारत के वैज्ञानिक ऋषि-मुनियों को प्रकृति संरक्षण और मानव के स्वभाव की गहरी जानकारी थी । वे जानते थे कि मानव अपने क्षणिक लाभ के लिए कई मौकों पर गंभीर भूल कर सकता है, अपना ही भारी नुकसान कर सकता है इसलिए उन्होंने प्रकृति के साथ मानव के संबंध विकसित कर दिए ताकि मनुष्य को प्रकृति को गंभीर क्षति पहुंचाने से रोका जा सके ।
यही कारण है कि प्राचीन काल से ही भारत में प्रकृति के साथ संतुलन करके चलने का महत्वपूर्ण संस्कार है । यह सब होने के बाद भी भारत में भौतिक विकास की अंधी दौड़ में प्रकृति पददलित हुई है लेकिन, यह भी सच है कि यदि ये परंपराएं न होतीं तो भारत की स्थिति भी गहरे संकट के किनारे खड़े किसी पश्चिमी देश की तरह होती । हिन्दू परंपराओं ने कहीं न कहीं प्रकृति का संरक्षण किया है । हिन्दू धर्म का प्रकृति के साथ कितना गहरा रिश्ता है, इसे इस बात से समझा जा सकता है कि दुनिया के सबसे प्राचीन ग्रंथ ऋग्वेद का प्रथम मंत्र ही अग्नि की स्तुति में रचा गया है ।
हिन्दुत्व वैज्ञानिक जीवन पद्धति है । प्रत्येक हिन्दू परम्परा के पीछे कोई न कोई वैज्ञानिक रहस्य छिपा हुआ है । इन रहस्यों को प्रकट करने का कार्य होना चाहिए । हिन्दू धर्म के संबंध में एक बात दुनिया मानती है कि हिन्दू दर्शन ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत पर आधारित है । यह विशेषता किसी अन्य धर्म में नहीं है । हिन्दू धर्म का सह अस्तित्व का सिद्धांत ही हिन्दुओं को प्रकृति के प्रति अधिक संवेदनशील बनाता है । वैदिक वाङ्मयों में प्रकृति के प्रत्येक अवयव के संरक्षण और सम्वद्र्धन के निर्देश मिलते हैं ।
हमारे ऋषि जानते थे कि पृथ्वी का आधार जल और जंगल है इसलिए उन्होंने पृथ्वी की रक्षा के लिए वृक्ष और जल को महत्वपूर्ण मानते हुए कहा है- ‘वृक्षाद् वर्षति पर्जन्य: पर्जन्यादन्न सम्भव:’ अर्थात् वृक्ष जल है, जल अन्न है, अन्न जीवन है ।
जंगल को हमारे ऋषि आनंददायक कहते हैं- ‘अरण्यं ते पृथिवी स्योनमस्तु’ यही कारण है कि हिन्दू जीवन के चार महत्वपूर्ण आश्रमों में से ब्रह्मचर्य, वानप्रस्थ और संन्यास का सीधा संबंध वनों से ही है ।
हम कह सकते हैं कि इन्हीं वनों में हमारी सांस्कृतिक विरासत का सम्वद्र्धन हुआ है । हिन्दू संस्कृति में वृक्ष को देवता मानकर पूजा करने का विधान है । वृक्षों की पूजा करने के विधान के कारण हिन्दू स्वभाव से वृक्षों का संरक्षक हो जाता है । सम्राट विक्रमादित्य और अशोक के शासनकाल में वन की रक्षा सर्वोपरि थी । चाणक्य ने भी आदर्श शासन व्यवस्था में अनिवार्य रूप से अरण्यपालों की नियुक्ति करने की बात कही है । हमारे महर्षि यह भली प्रकार जानते थे कि पेड़ों में भी चेतना होती है. इसलिए उन्हें मनुष्य के समतुल्य माना गया है ।
ऋग्वेद से लेकर बृहदारण्यकोपनिषद्, पद्मपुराण और मनुस्मृति सहित अन्य वाङ्मयों में इसके संदर्भ मिलते हैं । छान्दोग्यउपनिषद् में उद्दालक ऋषि अपने पुत्र श्वेतकेतु से आत्मा का वर्णन करते हुए कहते हैं कि वृक्ष जीवात्मा से ओतप्रोत होते हैं और मनुष्यों की भाँति सुख-दु:ख की अनुभूति करते हैं ।
हिन्दू दर्शन में एक वृक्ष की मनुष्य के दस पुत्रों से तुलना की गई है-
‘दशकूप समावापी: दशवापी समोहृद:।
दशहृद सम:पुत्रो दशपत्र समोद्रुम:।।
घर में तुलसी का पौधा लगाने का आग्रह भी हिन्दू संस्कृति में क्यों है? यह आज सिद्ध हो गया है । तुलसी का पौधा मनुष्य को सबसे अधिक प्राणवायु ऑक्सीजन देता है । तुलसी के पौधे में अनेक औषधिय गुण भी मौजूद हैं. पीपल को देवता मानकर भी उसकी पूजा नियमित इसीलिए की जाती है क्योंकि वह भी अधिक मात्रा में ऑक्सीजन देता है ।
परिवार की सामान्य गृहिणी भी अपने अबोध बच्चे को समझाती है कि रात में पेड़-पौधे को छूना नहीं चाहिए, वे सो जाते हैं, उन्हें परेशान करना ठीक बात नहीं । वह गृहिणी परम्परावश ऐसा करती है. उसे इसका वैज्ञानिक कारण नहीं मालूम । रात में पेड़ कार्बन डाइ ऑक्साइड छोड़ते हैं, इसलिए गांव में दिनभर पेड़ की छांव में बिता देने वाले बच्चे-युवा-बुजुर्ग रात में पेड़ों के नीचे सोते नहीं हैं ।
देवों के देव महादेव तो बिल्व-पत्र और धतूरे से ही प्रसन्न होते हैं. यदि कोई शिवभक्त है तो उसे बिल्वपत्र और धतूरे के पेड़-पौधों की रक्षा करनी ही पड़ेगी । वट पूर्णिमा और आंवला ग्यारस का पर्व मनाना है तो वटवृक्ष और आंवले के पेड़ धरती पर बचाने ही होंगे ।
सरस्वती को पीले फूल पसंद हैं । धन-सम्पदा की देवी लक्ष्मी को कमल और गुलाब के फूल से प्रसन्न किया जा सकता है । गणेश दूर्वा से प्रसन्न हो जाते हैं । हिन्दू धर्म के प्रत्येक देवी-देवता भी पशु-पक्षी और पेड़-पौधों से लेकर प्रकृति के विभिन्न अवयवों के संरक्षण का संदेश देते हैं ।
जलस्रातों का भी हिन्दू धर्म में बहुत महत्व है । ज्यादातर गांव-नगर नदी के किनारे पर बसे हैं। ऐसे गांव जो नदी किनारे नहीं हैं, वहां ग्रामीणों ने तालाब बनाए थे । बिना नदी या ताल के गांव-नगर के अस्तित्व की कल्पना नहीं है । हिन्दुओं के चार वेदों में से एक अथर्ववेद में बताया गया है कि आवास के समीप शुद्ध जलयुक्त जलाशय होना चाहिए । जल दीर्घायु प्रदायक, कल्याणकारक, सुखमय और प्राणरक्षक होता है. शुद्ध जल के बिना जीवन संभव नहीं है ।
यही कारण है कि जलस्रोतों को बचाए रखने के लिए हमारे ऋषियों ने इन्हें सम्मान दिया । पूर्वजों ने कल-कल प्रवाहमान सरिता गंगा को ही नहीं वरन सभी जीवनदायनी नदियों को मां कहा है । हिन्दू धर्म में अनेक अवसर पर नदियों, तालाबों और सागरों की मां के रूप में उपासना की जाती है । छान्दोग्योपनिषद् में अन्न की अपेक्षा जल को उत्कृष्ट कहा गया है । महर्षि नारद ने भी कहा है कि पृथ्वी भी मूर्तिमान जल है. अन्तरिक्ष, पर्वत, पशु-पक्षी, देव-मनुष्य, वनस्पति सभी मूर्तिमान जल ही है। जल ही ब्रह्मा है. महान ज्ञानी ऋषियों ने धार्मिक परंपराओं से जोड़कर पर्वतों की भी महत्ता स्थापित की है ।
देश के प्रमुख पर्वत देवताओं के निवास स्थान हैं । अगर पर्वत देवताओं के वासस्थान नहीं होते तो कब के खनन माफिया उन्हें उखाड़ चुके होते । विन्ध्यगिरि महाशक्तियों का वासस्थल है, कैलाश महाशिव की तपोभूमि है. हिमालय को तो भारत का किरीट कहा गया है । महाकवि कालिदास ने ‘कुमारसम्भवम्’ में हिमालय की महानता और देवत्व को बताते हुए कहा है- ‘अस्तुस्तरस्यां दिशि देवतात्मा हिमालयो नाम नगाधिराज:.’ भगवान श्रीकृष्ण ने गोवर्धन की पूजा का विधान इसलिए शुरू कराया था क्योंकि गोवर्धन पर्वत पर अनेक औषधि के पेड़-पौधे थे, मथुरा के गोपालकों के गोधन के भोजन-पानी का इंतजाम उसी पर्वत पर था । मथुरा-वृन्दावन सहित पूरे देश में दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा धूमधाम से की जाती है ।
इसी तरह हमारे महर्षियों ने जीव-जन्तुओं के महत्व को पहचानकर उनकी भी देवरूप में अर्चना की है । मनुष्य और पशु परस्पर एक-दूसरे पर निर्भर हैं । हिन्दू धर्म में गाय, कुत्ता, बिल्ली, चूहा, हाथी, शेर और यहां तक की विषधर नागराज को भी पूजनीय बताया है । प्रत्येक हिन्दू परिवार में पहली रोटी गाय के लिए और आखिरी रोटी कुत्ते के लिए निकाली जाती है। चींटियों को भी बहुत से हिन्दू आटा डालते हैं. चिडिय़ों और कौओं के लिए घर की मुंडेर पर दाना-पानी रखा जाता है । पितृपक्ष में तो काक को बाकायदा निमंत्रित करके दाना-पानी खिलाया जाता है ।
इन सब परम्पराओं के पीछे जीव संरक्षण का संदेश है । हिन्दू गाय को मां कहता है. उसकी अर्चना करता है । नागपंचमी के दिन नागदेव की पूजा की जाती है । नाग-विष से मनुष्य के लिए प्राणरक्षक औषधियों का निर्माण होता है । नाग पूजन के पीछे का रहस्य ही यह है । हिन्दू धर्म का वैशिष्ट्य है कि वह प्रकृति के संरक्षण की परम्परा का जन्मदाता है । हिन्दू संस्कृति में प्रत्येक जीव के कल्याण का भाव है । हिन्दू धर्म के जितने भी त्योहार हैं, वे सब प्रकृति के अनुरूप हैं । मकर संक्रान्ति, वसंत पंचमी, महाशिव रात्रि, होली, नवरात्र, गुड़ी पड़वा, वट पूर्णिमा, ओणम्, दीपावली, कार्तिक पूर्णिमा, छठ पूजा, शरद पूर्णिमा, अन्नकूट, देव प्रबोधिनी एकादशी, हरियाली तीज, गंगा दशहरा आदि सब पर्वों में प्रकृति संरक्षण का पुण्य स्मरण है ।
(साभार – आई चौक)