जगन्नाथ रथयात्रा के पहले प्रभु जगन्नाथ को 108 कलशों से शाही स्नान कराया जाता है। फिर 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। आखिर उन्होंने क्यों एकांत में 15 दिन के लिए रखा जाता है और उसके बाद ही रथयात्रा प्रारंभ होती है? आओ जानते हैं इस रहस्य को।
कथा के अनुसार प्रभु जगन्नाथ के कई भक्तों में से एक थे माधवदास। बचपन में ही उनके माता पिता शांत हो गए थे तो बड़े भाई के आग्रह पर उन्होंने विवाह कर लिया और अंत में भाई भी उन्हें छोड़कर संन्यासी बन गए तो उन्हें बहुत बुरा लगा। फिर एक दिन पत्नी का अचानक देहांत हो गया तो वे फिर से अकेले रह गए। पत्नी के ही कहने पर वे बाद में जगन्नाथ पुरी में जाकर प्रभु की भक्ति करने लगे।
माधवदास के संबंध में बहुत सारी कहानियां प्रचलित है उन्हीं में से एक कहानी है प्रभु जगन्नाथ के 15 दिन तक बीमार पड़ने की कहानी। प्रभु जगन्नाथ रथयात्रा के 15 दिन पहले बीमार पड़ जाते हैं और 15 दिन तक बीमार रहते हैं।
माधवदासजी जगन्नाथ पुरी में अकेले ही रहते थे। वे अकेले ही बैठे बैठे भजन किया करते थे और अपना सारा काम खुद ही करते थे। प्रभु जगन्नाथ ने उन्हें कई बार दर्शन दिए थे। वे नित्य प्रतिदिन श्री जगन्नाथ प्रभु का दर्शन करते थे और उन्हीं को अपना मित्र मानते थे। एक बार माधवदास जी को अतिसार (उलटी-दस्त) का रोग हो गया। वह इतने दुर्बल हो गए कि चलना-फिरना भी मुश्किल हो गया। फिर भी अपना सारा काम खुद किया करते थे।
उनके परिचितों ने कहा कि महाराज हम आपकी सेवा करें तो माधवदासजी ने कहा कि नहीं, मेरा ध्यान रखने वाले तो प्रभु श्रीजगन्नाथजी है। वे कर लेंगे मेरी देखभाल, वही मेरी रक्षा करेंगे।
फिर धीरे धीरे उनकी तबीयत और बिगड़ गई और वे उठने-बैठने में भी असमर्थ हो गए तब भगवान श्रीजगन्नाथ जी स्वयं सेवक बनकर इनके घर पहुंचे और माधवदासजी से कहा कि हम आपकी सेवा करें। उस वक्त माधवदासजी की बेसुध से ही थे। उनका इतना रोग बढ़ गया था की उन्हें पता भी नहीं चलता था कि कब मल-मूत्र त्याग देते थे और वस्त्र गंदे हो जाते थे।
भगवान जगन्नाथ ने उनकी 15 दिन तक खूब सेवा की। उनके गंदे कपड़ों को भी धोया और उन्हें नहलाया भी। जब माधवदास जी को होश आया, तब उन्होंने तुरंत पहचान लिया कि यह तो मेरे प्रभु ही हैं। यह देखकर माधवदासजी ने पूछा, प्रभु आप तो त्रिलोक के स्वामी हैं, आप मेरी सेवा कर रहे हैं। आप चाहते तो मेरा रोग क्षण में ही दूर कर सकते थे। परंतु आपने ऐसा न करके मेरी सेवा क्यों की?
प्रभु श्री जगन्नाथ जी ने कहा- देखो माधव! मुझसे भक्तों का कष्ट नहीं सहा जाता। इसी कारण तुम्हारी सेवा मैंने स्वयं की है। दूसरी बात यह कि जिसका जैसा प्रारब्द्ध होता है उसे तो वह भोगना ही पड़ता है। मैं नहीं चाहता था कि तुम्हें प्रारब्ध का भोगना न पड़े और फिर से जन्म लेना पड़े। अगर उसको भोगेगे-काटोगे नहीं तो इस जन्म में नहीं तो उसको भोगने के लिए फिर तुम्हें अगला जन्म लेना पड़ेगा। इसीलिए मैंने तुम्हारी सेवा की। परंतु तुम फिर भी कह रहे हो तो अभी तुम्हारे हिस्से के 15 दिन का प्रारब्ध का रोग और बचा है तो अब 15 दिन का रोग मैं ले लेता हूं और अब तुम मुक्त हो। इसके बाद प्रभु जगन्नाथ खुद 15 दिन के लिए बीमार पड़ गए।
इस घटना की स्मृति में तभी से रथयात्रा के पूर्व प्रभु जगन्नाथ बीमार पड़ जाते हैं। तब 15 दिन तक प्रभु जी को एक विशेष कक्ष में रखा जाता है। जिसे ओसर घर कहते हैं। इस 15 दिनों की अवधि में महाप्रभु को मंदिर के प्रमुख सेवकों और वैद्यों के अलावा कोई और नहीं देख सकता। इस दौरान मंदिर में महाप्रभु के प्रतिनिधि अलारनाथ जी की प्रतिमा स्थपित की जाती हैं तथा उनकी पूजा अर्चना की जाती है। 15 दिन बाद भगवान स्वस्थ होकर कक्ष से बाहर निकलते हैं और भक्तों को दर्शन देते हैं। जिसे नव यौवन नैत्र उत्सव भी कहते हैं। इसके बाद द्वितीया के दिन महाप्रभु श्री कृष्ण और बडे भाई बलराम जी तथा बहन सुभद्रा जी के साथ बाहर राजमार्ग पर आते हैं और रथ पर विराजमान होकर नगर भ्रमण पर निकलते हैं।
आखिर क्यों रथयात्रा से पहले 15 दिन तक एकांतवास में रहते हैं भगवान जगन्नाथ?
फादर्स डे पर विशेष : और एक पिता ने अपना लीवर देकर बचा लिया अपने कलेजे का टुकड़ा
अमेजन में डिलिवरी का काम करते हैं सौरभ, उपचार के लिए की गयी क्राउंड फंडिंग
सोशल मीडिया पर पोस्ट किया तो साथ आए लोग, गाृयक अरिजीत ने की आर्थिक सहायता
चेन्नई के अपोलो में कोलकाता के तनीश की सफल पीडियाट्रिक लीवर ट्रांसप्लांट सर्जरी
कोलकाता । पिता चट्टान होता है और साधनहीन होने पर भी समय आने पर अपनी संतान की रक्षा के लिए खुद ईश्वर के सामने खड़ा हो जाता है । कुछ घटनाएं ऐसी होती हैं जो आपको परेशान करती हैं और तब ईश्वर आपकी सहायता के लिए स्वयं आ जाता है और आप हर बाधा को पार कर जाते हैं। यह घटना आपके चेहरे पर मुस्कान भी ला देगी और मानवता पर, ईश्वर पर आपका विश्वास बढ़ा देगी । यह घटना सोशल मीडिया की सकारात्मकता की शक्ति बताती है । घटना मुर्शिदाबाद के सौरभ की है जो अमेजन में डिलिवरी का काम करते हैं…वेतन मात्र 12 हजार और तब एक दिन उनको अपने मासूम बेटे की बीमारी का पता चलता है । इससे वह विचलित जरूर होते हैं मगर हिम्मत नहीं हारते । उनके दोस्त, परिजन और सोशल मीडिया के साथ आने वाले शुभचिंतक उनके लिए ईश्वर की तरह खड़े हो जाते हैं और वह अपना लीवर देकर अपने बच्चे को सौरभ बचा लेते हैं । अमेजन के लिए डिलिवरी का काम करने वाले सौरभ घोष की जिन्दगी में भी ऐसा ही तूफान आया जब उनको अपने नन्हें बेटे की बीमारी का पता चला । ऐसी स्थिति में सोशल मीडिया पर क्राउंड फंडिंग से उनको आर्थिक सहायता मिली जिसके लिए प्रख्यात गायक अरिजीत सिंह भी सामने आए । अन्ततः सबकी कोशिशें रंग लायीं, कोलकाता के तनीश का उपचार चेन्नई के अपोलो अस्पताल में हुआ । सौरभ ने अपना लीवर दिया । चिकित्सकों के अनुसार लीवर का एक छोटा अंश निकाला गया । पिता और बच्चा…दोनों स्वस्थ हैं । अपोलो हॉस्पिटल, चेन्नई ने गर्व के साथ अपोलो में कोलकाता के उस बच्चे में पीडियाट्रिक लिवर ट्रांसप्लांट के लिए सफल रोबोटिक डोनर हेपेटेक्टोमी की घोषणा की । प्रत्यारोपण में उनके पिता सौरभ घोष द्वारा दान किए गए लीवर का एक हिस्सा शामिल था, जिसके परिणामस्वरूप छोटे बच्चे के लिए जीवन रक्षक प्रक्रिया हुई। लिवर ट्रांसप्लांट प्रोग्राम के प्रमुख डॉ. एलानकुमारन के नेतृत्व में सर्जिकल टीम ने इसका प्रदर्शन किया । मास्टर तनिश घोष पर किया गया सफल प्रत्यारोपण अपोलो अस्पताल, चेन्नई में उपलब्ध उन्नत चिकित्सा क्षमताओं पर प्रकाश डालता है। डॉ. एलानकुमारन, ने 2000 से अधिक लीवर प्रत्यारोपण और 5000 से अधिक लीवर सर्जरी की है । उन्होंने लीवर की बीमारियों और अस्पताल की व्यापकता पर प्रकाश डाला। डॉ. एलानकुमारन ने हमारे देश में लिवर की बीमारियों के बढ़ते प्रसार पर प्रकाश डाला और अपोलो में उपलब्ध प्रगति के लिए आभार व्यक्त किया।” उन्होंने कहा “दाता हेपेटेक्टोमी में रोबोटिक तकनीक का उपयोग हमें परिशुद्धता बढ़ाने और आक्रमण को कम करने में सक्षम बनाता है, जिसके परिणामस्वरूप हमारे रोगियों के लिए बेहतर परिणाम और कम वसूली का समय होता है। यह ऐतिहासिक उपलब्धि लीवर प्रत्यारोपण के क्षेत्र में हमारे द्वारा की गई उल्लेखनीय प्रगति को दर्शाती है।” कोलकाता से ताल्लुक रखने वाले मास्टर तनिश घोष को लिवर की गंभीर स्थिति का पता चला था जिसमें तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता थी। सौरभ घोष, जिन्होंने अपने लीवर का एक हिस्सा दान किया, जिस कारण तनिश को एक नया जीवन मिला| अपोलो अस्पताल, चेन्नई में टीम द्वारा उपयोग किए गए रोबोटिक सर्जिकल दृष्टिकोण ने न्यूनतम इनवेसिव प्रक्रिया की सुविधा प्रदान की, जिससे जोखिम कम हो गया जाता हैं । मास्टर तनिश घोष का सफल रोबोटिक पीडियाट्रिक ट्रांसप्लांट देश भर में लीवर की बीमारियों से पीड़ित रोगियों के लिए आशा की किरण के रूप में काम करता है। अस्पताल बना हुआ है देखभाल की उच्चतम गुणवत्ता प्रदान करने, नवीन तकनीकों को नियोजित करने और ज़रूरतमंद रोगियों के लिए सकारात्मक परिणाम सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है।
आईएनआईएफडी साल्टलेक प्लेटिनम सेंटर के रूप में सम्मानित
कोलकाता । आईएनआईएफडी साल्टलेक को प्लेटिनम सेंटर के रूप में सम्मानित किया गया है। साल दर साल 100 फीसदी जाॅब प्लेसमेंट, अत्याधुनिक बुनियादी ढांचे और औद्योगिक आवश्यकताओं के अनुकूल शिक्षा व्यवस्था हेतु यह सम्मान प्रदान किया गया । दुनियाभर में यहां के छात्रों को लंदन फैशन वीक,डेकोरेक्स इंटीरियर फेयर,न्यूयॉर्क फैशन वीक और लक्मे फैशन वीक में सीधे प्रवेश मिलता है। इसी कड़ी में आईएनआईएफडी साल्टलेक की ओर से 15 से 17 जून 2023 तक लगातार तीन दिनों तक कैंपस में ‘द एनुअल इंटीरियर डिजाइन एक्जीबिशन’इन्फ्यूसियो’23 का आयोजन किया गया। इस वर्ष आईएनआईएफडी ने ‘डायमेंशंन्स’की थीम के साथ प्रदर्शनी तैयार की है। जैसा कि हम सभी जानते हैं कि डायमेंशंन्स के बिना डिजाइन असंभव है,ऐसे में हमारे छात्रों ने अपने सभी प्रदर्शनों में तीनों के साथ-साथ चौथे आयाम का भी उपयोग किया। इस असर पर कुछ प्रसिद्ध ब्रांडों को यहां जर्नी थ्रू टाइम के अनुभव केंद्रों के रूप में दिखाया गया है। प्रदर्शनी का उद्घाटन महानगर कोलकाता में चीनी महावाणिज्यदूत, प्रख्यात डांसर आलोकानंद रॉय समेत अन्य गणमान्य लोगों द्वारा किया गया। प्रख्यात आर्किटेक्ट्स और डिजाइनर जैसे एआर.अयान सेन,आर.राजदीप सिन्हा, राजा सिन्हा, अजीत जैन और दुलाल पॉल ने आईएनआईएफडी साल्टलेक की शोभा बढ़ाई ताकि छात्रों के कार्यों का आकलन किया जा सके और उन्हें उनके मूल्यवान विचारों से अवगत कराया जा सके। इस अवसर पर डॉ. दीपांकर बनर्जी और डेकोफुर के आनंद गुप्ता समेत कई अन्य लोग उपस्थित रहे। आईएनआईएफडी के अनुसार डिजाइन के इस उत्सव के पीछे रेखांकित उद्देश्य तकनीकी सटीकता के साथ-साथ हमारे छात्रों में सौंदर्य बोध पैदा करना है। हमारे विशाल परिसर में पूरे प्रदर्शनी स्थल को हमारे वरिष्ठ छात्रों द्वारा डिजाइन और सजाया गया है,जिसमें गेट,कॉरिडोर,विभिन्न उपयोगिता क्षेत्र मंच आदि शामिल हैं। इन तीन दिनों में प्रदर्शनी को और अधिक रोचक बनाने के लिए, टॉक शो,सांस्कृतिक गतिविधियां,वाद-विवाद आदि आयोजित किया गया। भव्य प्रदर्शनी पुरस्कार समारोह के साथ समाप्त हुई। इसमें हर वर्ग के विद्यार्थियों ने उत्साह और उत्सुकता से भाग लिया।
रिटायर होने के बाद बना डाली 30,000 करोड़ की कंपनी
अमूमन लोग रिटायर होने के बाद अपनी बाकी जिंदगी आराम के साथ बिताना चाहते हैं। लेकिन वेंकटसामी जगन्नाथन जब यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस के सीएमडी पद से रिटायर हुए तो उनका कुछ और ही प्लान था। सरकारी इंश्योरेंस कंपनी से रिटायर होने के बाद उन्होंने मई 2006 में देश की पहले स्टैंडअलोन हेल्थ इंश्योरेंस कंपनी स्टार हेल्थ ऐंड अलायड इंश्योरेंस कंपनी की शुरुआत की। तब उनके 12 कर्मचारी चेन्नई में माधा चर्च रोड पर एक छोटे से कमरे में बैठकर काम करते थे। जगन्नाथन ने गत शनिवार को स्टार हेल्थ के नॉन-एग्जीक्यूटिव चेयरमैन एवं डायरेक्टर के पद से इस्तीफा दे दिया। आज इस कंपनी का मार्केट कैप करीब 30,100 करोड़ रुपये है। कंपनी के कर्मचारियों की संख्या करीब 14,000 पहुंच गई है। 78 साल की उम्र में जगन्नाथन एक नया वेंचर शुरू करने की तैयारी में हैं।
जगन्नाथन कहते हैं कि उन्होंने 12 लोगों के साथ किराये के एक मकान में स्टार हेल्थ की शुरुआत की थी। तब उस मकान का किराया 30,000 रुपये था। आज स्टार हेल्थ की वैल्यू 30,000 करोड़ रुपये से अधिक है। इसमें दिवंगत इन्वेस्टर राकेश झुनझुनवाला और उनकी पत्नी रेखा झुनझुनवाला का भी भारी निवेश है। जगन्नाथन ने कहा, ‘मैंने 53 साल पहले इंश्योरेंस की दुनिया में कदम रखा था और पिछले साल रेकॉर्ड प्रॉफिट दिया। स्टार हेल्त का प्रॉफिट 2022-23 में सबसे ज्यादा रहा। इस दौरान कंपनी का प्रॉफिट 619 करोड़ रुपये रहा जबकि फाइनेंशियल ईयर 2022 में कंपनी को 1041 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ था।’
53 साल का कॅरियर
जगन्नाथन ने अपना करियर 1970 को हरक्यूलस इंश्योरेंस के साथ शुरू किया था। राष्ट्रीयकरण के दौरान वह यूनाइटेड के साथ प्रशासनिक अधिकारी के तौर पर जुड़ गए और बाद में कंपनी के सीएमडी के पद तक पहुंचे। यूनाइटेड इंडिया इंश्योरेंस को भी बुलंदियों पर पहुंचाने का श्रेय उनको जाता है। जब साल 2001 में उन्हें कंपनी की कमान मिली थी, तब कंपनी करीब 50 लाख रुपये के नुकसान में थी। अक्टूबर 2004 में जब जगन्नाथन रिटायर हुए तो यह 400 करोड़ रुपये से ज्यादा के मुनाफे में थी। सरकारी कंपनी से रिटायरमेंट के बाद उन्होंने दुबई की कंपनी ईटीए ग्रुप के साथ स्टार हेल्थ की शुरुआत की।
वह कहते हैं, ‘इस कंपनी ने मैंने ए-टु-जेड सब कुछ शुरू किया। हमने हेल्थ सेगमेंट में प्रवेश किया, क्योंकि मध्यम आय वर्ग को वित्तीय सहायता की जरूरत है।’ उन्होंने पैसे बचाने के लिए टाइपराइटर खरीदने के बजाय उन्हें किराये पर लिया। शुरुआत में लोगों को उनके बिजनस के सफल होने पर संदेह था। लेकिन आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु के हेल्थ प्रोग्राम्स ने इस धारणा को बदल दिया। इसके बाद लोगों ने स्टार हेल्थ में दिलचस्पी दिखानी शुरू कर दी। आज पूरे देश में कंपनी के नेटवर्क में करीब 13,000 अस्पताल शामिल हैं। कंपनी की 2021-22 की रिपोर्ट के मुताबिक उसकी 26 राज्यों और चार केंद्र शासित प्रदेशों में मौजूदगी है। कंपनी का 29 फीसदी रेवेन्यू साउथ इंडिया से, 23 परसेंट पश्चिमी राज्यों से 30 परसेंट नॉर्थ इंडिया से और आठ परसेंट पूर्वी भारत से आता है।
उम्र बाधा नहीं
जगन्नाथन कहते हैं कि उम्र कभी भी काम के आड़े नहीं आनी चाहिए। अगर आप संकल्प के साथ काम करें तो सफलता आपके कदम चूमेगी। यह सबके लिए मेरा मैसेज है। मैंने हर कदम पर अपना बेस्ट देने की कोशिश की। उन्होंने कहा, ‘मुझे ईटीए ग्रुप का पूरा साथ मिला। उन्होंने कंपनी में कैपिटल डाली। कोरोना के दौरान कंपनी की स्थिति ठीक नहीं रही। मैं उस दौरान कंपनी नहीं छोड़ना चाहता था। अब कंपनी की फाइनेंशियल पोजीशन स्ट्रॉन्ग हो गई है। हर शुरुआत का अंत होता है और हर अंत की शुरुआत होती है। मैं अगले दो महीने में कुछ नया करना चाहता हूं। यह किसी भी इंडस्ट्री में हो सकता है। यह मेरे दिल के काफी करीब है।’
सकारात्मक रहें, खुद को कमतर न समझें
खुद को कमतर आंकना आत्मविश्वास कम करता है और हम लक्ष्य से पीछे रह जाते हैं । वहीं सकारात्मक विचार एवं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाकर आप अपनी क्षमताओं को बढ़ा सकते हैं । आत्मविश्वास को बढ़ाने के लिए आत्म विश्वास का होना जरूरी है.और वह आप इस प्रकार बढ़ा सकते हैं –
नकारात्मक बातें न करें
खुद को लेकर नकारात्मक सोच से हम अपने आप को कम आंकते हैं । इससे निजी विकास बाधित होता है। जितना हो सके अपने अंदर की चीजों को सकारात्मक चीजों में बदलें. ऐसी बातों पर ध्यान दें, जिससे आपका आत्मविश्वास बढ़ता हो ।
असफलता से निराश न हों
हम असफल होने से डरते हैं और यही वजह है कि हम खुद को कम आंकते हैं। असफलता पर सोचने की बजाय आप उससे सीखने की क्षमता रखें। अपनी गलतियों को स्वीकार करें । आपसे क्या गलतियां हुई हैं और उसे कैसे ठीक करना है, इन बातों का विश्लेषण करते रहें.
सकारात्मक लोगों के साथ रहें
हमेशा सकारात्मक लोगों के साथ रहें । ऐसे लोगों को अपना दोस्त बनाएं, जो आपको आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करते हों। उन लोगों के आसपास रहें, जिनसे आप कुछ सीख पाते हैं और जो हमेशा आपको प्रोत्साहित करते हैं।
छोटी सफलताओं को सेलिब्रेट करें
अपनी उपलब्धियों को स्वीकार करें और उनको सेलिब्रेट करें चाहे वे कितनी भी छोटी क्यों न लगें । अपनी उपलब्धियों को पहचानने से आत्मविश्वास बढ़ता है और सकारात्मक रहने में मदद मिलती है। इससे आपको अपनी क्षमताओं के बारे में पता चलता है।
कंफर्ट जोन से बाहर निकलें
अपने आप को हमेशा चुनौती देती रहें। कंफर्ट जोन में रहकर आपका विकास संभव नहीं है । आगे बढ़ने के लिए आपको अपने कंफर्ट जोन से बाहर निकलना जरूरी होगा।
27 साल बाद भारत में होगी मिस वर्ल्ड सौन्दर्य प्रतियोगिता 2023
नयी दिल्ली । मिस वर्ल्ड 2023 ब्यूटी पेजेंट इवेंट का आयोजन इस बार इंडिया में होने वाला है. इंडिया में ये आयोजन 27 साल के लंबे अंतराल के बाद हो रहा है.।
इसकी जानकारी हाल ही में मिस वर्ल्ड ऑर्गनाइजेशन की चेयरपर्सन और सीईओ मिस जूलिया मॉर्ले ने दी है. इससे पहले ये कार्यक्रम साल 1996 में भारत में आयोजित किया गया था ।
इस प्रतियोगिता की जानकारी देते हुए जूलिया मॉर्ले ने बताया कि मुझे ये घोषित करते हुए बहुत खुशी हो रही हूं कि 71वां मिस वर्ल्ड का फिनाले इस बार भारत में होने जा रहा है. इंडिया से मेरा हमेशा से खास लगाव रहा है. 30 साल पहल जब में यहां आई थी तभी भारत में मेरे दिल में बस गया था.
वहीं साल 2022 में मिस वर्ल्ड की विजेता रही कैरोलीना बिएलावस्क ने इस बात पर खुशी जाहिर करते हुए कहा कि ‘भारत खुली बाहों से इस समारोह का स्वागत करने के लिए तैयार है। ‘
बता दें कि इस प्रतियोगिता में 130 से ज्यादा देशों की प्रतिभागी शामिल होंगी. जो इसमें होने वाले कई पड़ावों से गुजरेंगी । वहीं प्रतियोगिता का अंतिम चरण इसी साल के आखिर में नवंबर या दिसंबर में किया जाएगा ।
भारत में अभी तक इस प्रतियोगिता को रीता फारिया, बॉलीवुड अबिनेत्रियों, ऐश्वर्या राय बच्चन, डायना हेडन, युक्ता मुखी, प्रियंका चोपड़ा और साल 2017 में मानुषी छिल्लर ने जीता है । मिस वर्ल्ड 2022 करोलिना बिलावस्का ने बीते दिन गोवा के मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत से मुलाकात की थी ।
किऊल नदी में खुदाई के दौरान मिली 2000 साल पुरानी मूर्ति
लखीसराय । चानन प्रखंड के रामपुर गांव में देर शाम किऊल नदी से बालू उठाव के दरम्यान प्राचीन कालीन एक बड़ी अष्टधातु की मूर्ति किऊल नदी से बरामद हुई है । इसके पूर्व में भी कई मूर्तियां किउल नदी, लाल पहाड़ी और काली पहाड़ी से प्राप्त हो चुकी हैं, जो कि पटना संग्रहालय और लखीसराय के संग्रहालय थाना में रखी हुई हैं । इस संबध में लखीसराय के जिला अधिकारी अमरेन्द्र कुमार ने जानकारी दी है।
अमरेंद्र कुमार ने कहा कि किउल नदी चानन में बालू उठाव के दरम्यान रामपुर गांव के समीप किऊल नदी में बीस फीट खुदाई की गई । बालू उठाव के दरम्यान एक मूर्ति बरामद हुई थी और विशेषज्ञों के अनुसार कि दो हजार वर्ष पुरानी मूर्ति है.
“लोक देवी की मूर्ति बताई जाती है । ये मूर्ति दो हजार वर्ष पूर्व महाराष्ट्र के बौद्ध धर्म के उपासकों द्वारा यहां लाई गई होगी । वहीं लखीसराय में संचालित म्यूजियम एक्सपर्ट का भी कहना है कि मथुरा की रेड स्टोन की मूर्ति है ।
लोगों से डीएम की अपील: प्रेस के माध्यम से जिला अधिकारी ने लखीसराय के लोगों से अपील भी की है. उन्होंने कहा कि अब भी कई स्थानों पर प्राचीनकालीन मूर्तियों को प्रशासन के हवाले नहीं किया गया है । किसी को भी कोई मूर्ति मिलती है तो तुरंत इसकी सूचना दें ताकि समय पर कार्य शुरू हो सके । मूर्ति वापस करने वाले दाता का नाम हम मूर्ति में अंकित करवाएंगे.
बता दें कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मूर्तियों के मिलने की सूचना के बाद अपने देखरेख में यहां काम शुरू करवाया और लखीसराय के लाल पहाड़ी की खुदाई की शुरूआत की गई थी। करीबन दो सौ से अधिक अष्टधातु मूर्तियां मिली और उसे पटना के संग्रहालय में रखा गया. कई मूर्ति लखीसराय संग्रहालय में भी रखी हुई हैं ।
अभिनेत्री पद्मिनी, जिन्होंने सात समन्दर पार खोली नृत्य अकादमी
हिंदी सिनेमा में कई ऐसी अभिनेत्रियाँ हुई हैं, जिन्होंने अपने अभिनय के अलावा नृत्य प्रतिभा से लोगों के दिलों पर राज किया। कुछ हीरोइनें ऐसी रहीं, जिनके हुनर का रंग पूरी दुनिया पर छा गया, और हर किसी ने उनका लोहा माना। ऐसी ही एक अभिनेत्री रहींपद्मिनी। पद्मिनी का पूरा नाम पद्मिनी रामचंद्रन था। भरतनाट्यम में पारंगत पद्मिनी जब डांस करती थीं, तो सभी देखते रह जाते थे। इनके वैजयंतीमाला के साथ राइवलरी के चर्चे खूब आम रहे थे। पद्मिनी की 12 जून को 9वीं जयंती होती है ।
पद्मिनी का जन्म 12 जून 1932 को तिरुवनंतपुरम में हुआ था। उनकी दो और बहनें थीं, ललिता और रागिनी। इन तीनों बहनों को ‘ट्रावनकोर सिस्टर्स’ कहा जाता था। पद्मिनी ने 16 साल की उम्र में एक्टिंग की दुनिया में कदम रखे थे। फिल्मों में आने के बाद पद्मिनी ने तमिल और तेलुगू से लेकर हिंदी, मलयालम, और यहां तक कि रूसी भाषा की फिल्मों में भी खूब काम किया था।
पद्मिनी ने अपने कॅरियर में राजकुमार, प्रेम नजीर, शम्मी कपूर, राज कपूर, एनटी रामाराव और रेखा के पिता व एक्टर जैमिनी गणेशन तक के साथ काम किया। बॉलीवुड में पद्मिनी ‘मेरा नाम जोकर’ और ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में नजर आई थीं। 1960 में आई ‘जिस देश में गंगा बहती है’ में पद्मिनी की जोड़ी राज कपूर के साथ थी। पद्मिनी ने अपने एक्टिंग करियर की शुरुआत 1948 में बॉलीवुड फिल्म ‘कल्पना’ से की थी। इसके बाद उन्होंने अन्य भाषाओं की फिल्मों में काम किए।
अमेरिका को दी सबसे बड़ी शास्त्रीय नृत्य अकादमी
मात्र 16 साल की उम्र में करियर शुरू करने वालीं पद्मिनी ने दुनियाभर में अपनी सफलता का परचम लहराया। उनकी जिंदगी की कहानी किसी प्रेरणा से कम नहीं है। साल 1961 में पद्मिनी ने अमेरिका के रहने वाले फिजिशयन से शादी कर ली, और फिर फिल्मों को अलविदा कह दिया। वह पति के साथ अमेरिका जाकर बस गईं और गृहस्थी पर ध्यान देने लगीं।
वार्नर ब्रदर्स संग काम करता है बेटा
पद्मिनी ने 1963 में एक बेटे को जन्म दिया, जिसका नाम प्रेम रामचंद्रन है और वह अभी वार्नर ब्रदर्स के साथ काम करता है। साल 1977 में पद्मिनी ने न्यू जर्सी में एक क्लासिकल डांस स्कूल खोला, जिसका नाम ‘पद्मिनी स्कूल ऑफ आर्ट्स’ रखा। आज पद्मिनी के इस स्कूल की गिनती अमेरिका के सबसे बड़े शास्त्रीय नृत्य संस्थानों में होती है।
14 की उम्र में शादी, 18 साल तक दो बेटियों की मां और अब आईपीएस
दसवीं से स्नातक तक दूरस्थ शिक्षा केन्द्र से की पढ़ाई
चेन्नई । किसी भी हुनर को सीखने, पढ़ाई करने के लिए उम्र मायने नहीं रखती । पढ़ाई करना भी ऐसा ही एक हुनर है जो आपको हर ओर से रौशन करता है. ये कहानी आईपीएस बन चुकी एन अंबिका की । अंबिका का सफर ज़िंदगी के उस मोड़ से शुरू हुआ, जहां पहुंचकर ज्यादातर लोगों को लगता है, अब कुछ नहीं कर सकते । वह यही ज़िंदगी है. लेकिन अंबिका ने उस मुश्किल दौर से अपने सफर की शुरुआत की ।
एन अंबिका तमिलनाडु से हैं. उनकी शादी जब हुई, तब उनकी उम्र 14 साल थी । पति पुलिस में कांस्टेबल थे । 18 साल तक की उम्र तक वे दो बेटियों की मां बन गई थीं । ज़िंदगी खुशी से बीत रही थी. लेकिन कब कहां क्या बात कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित कर जाए, इसका अंदाजा हम में से किसी को नहीं है । दो बच्चों की मां अंबिका कांस्टेबल पति के साथ गणतंत्र दिवस पर गईं थी. वहां देखा, पति ने अधिकारियों को सैल्यूट किया । वो लम्हा उनके मन में ठहर गया.
अंबिका ने पति से पूछा, उन्होंने जिन लोगों का सैल्यूट किया, वे कौन थे । पति ने बताया वे सीनियर अधिकारी थे. वैसा ही सीनियर अधिकारी बनने का ख्वाब उन्होंने मन में बसा लिया । बचपन में छूटी पढ़ाई फिर से शुरू की । गृहस्थ जीवन में रम चुकी दो बच्चों की मां रेगुलर तो पढ़ने नहीं जा सकी, डिस्टेंस मोड से पढ़ाई शुरू की. 10वीं, 12वीं, और स्नातक की पढ़ाई की । .
ग्रेजुएशन के बाद सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी शुरू करनी चाही, लेकिन जहां रहती, वहां यूपीएससी परीक्षा की तैयारी के लिए कोचिंग वगैरह की सुविधा नहीं थी । कोचिंग के लिए चेन्नई जाने का फैसला किया । बच्चों को छोड़कर जाना, मां के लिए दुनिया का सबसे मुश्किल काम है । अंबिका के लिए भी था। पति ने यकीन दिलाया. साथ दिया, बच्चों को संभाला, तब वे जा पाईं।
एन. अम्बिका के पति ने उनकी सफलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । जब वह परीक्षा की तैयारी कर रही थी तो उसने अपने बच्चों की देखभाल की, इस समर्थन से वे सपना सच कर सकीं । परीक्षा की तैयारी करने के लिए वह चेन्नई चली गईं । प्रतिदिन समाचार पत्र पढ़ती. उनका मानना है कि अखबार पढ़ना यूपीएससी की तैयारी का एक अनिवार्य हिस्सा है. उम्मीदवारों को परीक्षा के प्रत्येक खंड के लिए केवल एक ही स्रोत का उपयोग करने की सलाह दी है।
प्रत्येक सेक्शन के लिए कई स्रोतों का उपयोग करने से उम्मीदवार भ्रमित हो सकते हैं और उनके रिवीजन का समय सीमित हो सकता है । एन. अम्बिका यह भी सुझाव देती हैं कि अधिक से अधिक प्रश्नों के उत्तर दें और मॉक टेस्ट सीरीज़ में उपस्थित हों ताकि अच्छे उत्तर लिखने के बारे में एक स्पष्ट विचार बने जो अच्छी यूपीएससी रैंक पाने में मदद करेग ।
पिछली गलतियों से सीखते हुए एन. अंबिका ने अपने चौथे प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास की। उसने अपनी हर कोशिश से कुछ न कुछ सीखा । अंबिका को सिविल सेवा परीक्षा के शुरुआती तीन प्रयास में केवल निराशा हाथ लगी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी.उनके पति ने भी नौकरी कर रही औरतों की तरह, नौकरी के साथ घर व बच्चे संभाले. 2008 में सभी की मेहनत रंग लाई. सिविल सेवा परीक्षा के चौथे प्रयास में अंबिका का आईपीएस बनने का सपना पूरा हुआ ।
(स्त्रोत – न्यूज 18)
पुराना किला में एएसआई को मिले 2500 साल पुराने ऐतिहासिक प्रमाण
मौर्य काल में इस्तेमाल किए जाने वाली राज मुद्राएं और सिक्के भी मिले
दिल्ली के मथुरा रोड स्थित पांडवों के गढ़ पुराना किला की खुदाई चर्चा में बनी हुई है। देश में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी जगह पर 2500 साल का इतिहास मिला हो। खास बात है कि यहां भगवान विष्णु, गणेश और माता लक्ष्मी की मूर्तियां भी मिली हैं। इसके अलावा मौर्य काल में इस्तेमाल किए जाने वाली राज मुद्राएं और सिक्के मिले हैं।
कहा जाता है कि यमुना किनारे स्थित प्राचीन किलों में से एक पुराना किला पांडवों की राजधानी थी, लेकिन अबतक की खुदाई में इसका कोई सबूत नहीं मिला था। अब ऑर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया (ASI) ने 2500 साल का इतिहास खोज निकाला है। महाभारत से जुड़े पुराने किले के राज को दुनिया के सामने लाने के लिए एएसआई ने पांचवीं बार किले की खुदाई जनवरी में शुरू की थी।
पुराना किला की खुदाई के पीछे क्या है सरकार की मंशा?
दिल्ली का पुराना किला 300 एकड़ में फैला है लेकिन किले के अंदर की जमीन के भीतर 3000 साल पुरानी सभ्यता मौजूद हैं। किले के बाहर जो शिला लगी हुई है उसपर भी महाभारत काल का जिक्र किया गया है। साथ में इस बात का भी जिक्र है कि ये किला जिस टीले पर स्थित है वो महाभारत काल में इंद्रप्रस्थ रहा होगा।
एएसआई अब उसी का पता लगाना चाहती है लिहाजा खुदाई का काम जारी है। 1954 से लेकर अब तक 4 बार खुदाई हो चुकी है। 5वीं बार दिल्ली के पुराने किले की खुदाई एएसआई कर रहा है। 4 बार की खुदाई के दौरान मुगल काल, सल्तनत काल, राजपूत काल, गुप्त काल, कुषाण काल और मौर्य काल के सबूत मिले थे। एएसआई को उम्मीद है कि मौर्य काल से पहले की जो सभ्यता है उसके सबूत किले के अंदर मौजूद हैं और वो महाभारत काल के हो सकते हैं।
कब-कब हुए महाभारत काल के खोज
पुराना किले की खुदाई 1969, 1973 में पद्मश्री प्रोफेसर बीबी लाल की अगुवाई में हुई थी। इसके बाद साल 2013 और 2014 में एएसआई के वरिष्ठ अधिकारी वसंत कुमार स्वर्णकार की अगुवाई में खुदाई हुई।
खुदाई में मिला करीब 1000 साल पुराना कुआं मिला
भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को यहां मौर्यकालीन कुआं मिला है। इसकी गोलाई करीब 70 सेंटीमीटर है। अभी यहां खुदाई का काम जारी है। उम्मीद है कि कुएं से बहुत से दूसरे अवेशष भी मिल सकते हैं। इससे यहां का इतिहास 2500-3000 साल पहले का हो सकता है। एएसआई इसे अपनी बड़ी कामयाबी मान रहा है। पुरातत्वविदों का कहना है कि पांडव काल की खोज से जुड़ी एएसआई की कोशिश को इससे बल मिलेगा।
खुदाई में अबतक क्या-क्या मिला
कुंठ विष्णु की मूर्ति
टेराकोटा लक्ष्मी की मूर्ति
भगवान गणेश के स्टोन की मूर्ति
अलग-अलग काल की राज मुद्राएं
इंसान और जानवर के कंकाल