Monday, June 30, 2025
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अप्रैल में 2.25 लाख महिलाएं पहली बार ईपीएफओ का हिस्सा बनीं

जुड़े17.20 नए लाख सदस्य जुड़े
नयी दिल्ली । सेवानिवृत्ति कोष का प्रबंधन करने वाले निकाय ईपीएफओ से अप्रैल के महीने में शुद्ध आधार पर 17.20 लाख सदस्य जुड़े जिनमें से करीब आधे लोग पहली बार इसके सामाजिक सुरक्षा दायरे का हिस्सा बने। श्रम मंत्रालय ने आंकड़ों में कहा कि अप्रैल, 2023 में कर्मचारी भविष्य निधि संगठन (ईपीएफओ) से जुड़ने वाले नए सदस्यों में से 54.15 प्रतिशत कर्मचारी 25 साल से कम उम्र के हैं। यह संगठित कार्यबल में युवा आबादी की बढ़ती भागीदारी को दर्शाता है।
ईपीएफओ के अस्थायी रोजगार आंकड़ों से पता चलता है कि कई प्रमुख मानदंडों में खासा सुधार आया है। अप्रैल में कुल 17.20 लाख नए सदस्य ईपीएफओ से जुड़े जबकि मार्च में 13.40 लाख नए कर्मचारी इसका हिस्सा बने थे। इनमें से दोबारा ईपीएफओ का हिस्सा बनने वाले सदस्य मार्च में 10.09 लाख थे लेकिन अप्रैल में यह संख्या बढ़कर 12.50 लाख हो गई।
अपनी नौकरी बदलने वाले कर्मचारी ही दोबारा ईपीएफओ का सदस्य बनते हैं। हालांकि, अप्रैल में नौकरियां छोड़ने वाले कर्मचारियों की संख्या 11.67 प्रतिशत घटकर 3.77 लाख रही। अप्रैल में ईपीएफओ के अंशधारक बनने वाले नए कर्मचारियों में 3.48 लाख महिलाएं रहीं जबकि मार्च में यह संख्या 2.57 लाख थी। खास बात यह है कि अप्रैल में करीब 2.25 लाख महिलाएं पहली बार ईपीएफओ का हिस्सा बनीं।

 

दुर्गोत्सव 2023 – मोहम्मद अली पार्क में ‘खूटी पूजा’ सम्पन्न

कोलकाता । मोहम्मद अली पार्क के ‘यूथ एसोसिएशन’ द्वारा रथ यात्रा के शुभ अवसर पर ‘खूंटी पूजा’ आयोजित की गयी । इसके साथ ही दुर्गापूजा के तैयारियाँ आरम्भ हो गयीं । मोहम्मद अली पार्क का यूथ एसोसिएशन अपने पूजा मंडप की अपनी अनूठी शैली और सामाजिक कार्यों के लिए विशेष रूप से प्रसिद्ध है, जिसकी तैयारियां समिति पूरे वर्ष करती रहती है। इस मौके पर मौजूद सम्मानित हस्तियों में तापस रॉय (विधायक),  राजेश सिन्हा (पार्षद), रेहाना खातून (पार्षद), स्मिता बक्सी (पूर्व विधायक), संजय बक्सी (पूर्व विधायक) के अलावा समाज के कई विशिष्ट लोग मौजूद थे। मोहम्मद अली पार्क की यूथ एसोसिएशन की पूजा इस वर्ष अपने 55वें में प्रवेश कर रही है । सुरेंद्र कुमार शर्मा (महासचिव, मोहम्मद अली पार्क दुर्गा पूजा कमेटी) ने कहा, वर्षों से इस आयोजन की भारी सफलता के कारण ही हमें विभिन्न क्षेत्रों से अबतक कई पुरस्कार प्राप्त हो चुके हैं। मोहम्मद अली पार्क की यूथ एसोसिएशन की पूरी टीम इस वर्ष भी एक बार फिर से इस बारह पूजा के आयोजन को सफल बनाने के लिए पूरी तरह से चार्ज है। पिछले कई वर्षों से हमारे पूजा मंडप में हर दिन लाखों लोग आते हैं।

 

‘सभी को जीवन में सकारात्मक उर्जा चाहिए’

कोलकाता । एमसीसीआई ने आहार की आदतें एवं मधुमेह को लेकर एक विशेष सत्र आयोजित किया । इस अवसर पर आध्यात्मिक वैज्ञानिक डॉ. आदर्शचन्द्र मुनि जी मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित थे । उन्होंने कहा कि अध्यात्म अस्तित्व का मूल है और सभी को जीवन में सकारात्मक उर्जा चाहिए । सकारात्मक उर्जा जागृत करने के लिए सभी को उनके हृदय, आंतरिक ज्ञान और शांति का अनुसरण करना चाहिए । जैन धर्म पूरी तरह आध्यात्मिकता पर केंद्रित है । उन्होंने कहा कि बीच – बीच में उपवास करने पर ब्लड शुगर नियंत्रित रहता है । स्वागत भाषण एमसीसीआई की हेल्थ केयर काउंसिल के चेयरमैन राजेन्द्र खंडेलवाल ने दिया । उन्होंने स्वस्थ जीवन के लिए स्वस्थ आदतें अपनाने पर जोर दिया ।

फादर्स डे पर एआईएफसीआर एवं इस्पात ने की पदयात्रा

कोलकाता । आयुष्मान इनिशिएटिव फॉर चाइल्ड राइट्स (एआईएफसीआर) ने फादर्स डे पर इस्पात के सहयोग से वॉक यानी पदयात्रा आयोजित की । गत 18 जून रविवार को फादर्स डे पर करुणामयी से सॉल्टलेक सिटी सेंटर तक यह पदयात्रा चली । इस पदयात्रा में प्रख्यात खिलाड़ी दिव्येंदु बरुआ, सायन भट्टाचार्य, पं. मलार घोष, गायक सुमित राय, मल्लिका घोष, अधिवक्ता अम्मर जाकी, अधिवक्ता सप्तदीप सिंह और महानगर के सरोगेट पिता अभिषेक पॉल ने भी भाग लिया । एआईएफसीआर के मानद सचिव अरिजीत मित्रा बच्चे के जीवन में पिता के महत्व और कार्यक्रम के उद्देश्य पर प्रकाश डाला । इस्पात के सचिव रितेश बसाक ने कहा कि कार्यक्रम का उद्देश्य अभिभावक के रूप में पिता की भूमिका के प्रति जागरुकता लाना ही कार्यक्रम का उद्देश्य है । ग्रैंडमास्टर दिव्येंदु बरुआ ने कहा कि पिता का आदर करने पर जोर देते हुए कहा कि पिता सिर्फ परिवार के लिए रोटी ही नहीं कमाता । कार्यक्रम का समापन सुमित राय के गायन एवं अन्य सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ हुआ ।

पिता

डॉ. वसुंधरा मिश्र

पुरुषार्थ और पुरुषत्व का बीज है पिता
अपनी रचनात्मक ममत्व से माँ रचती मुझे
चलना सिखाया भले ही माँ ने
पिता की हथेलियों ने हर कदम पर संभाला मुझे
समाज और घर का सेतु बन
सजगता और निडरता की डोर थमाई मुझे
कोमलता और कठोरता के साथ
संघर्षशील बनने की प्रक्रिया में लगाया मुझे
पिता तो परिभाषित स्वयं है
वह आकाश है, पुरुष है, अधिकार है
एक व्यक्तित्व है, सृष्टि का एक पहिया है
जीवटता है, चट्टानों के बीच रिसती हुई जलधारा है
पिता परमेश्वर का अंश है, उष्णता का एकांश है
सृष्टि का एक पहिया है जो प्रकृति के गर्भ की स्थिति है
वह मेरा पिता है वह अंश है मुझमें ।

विश्व संगीत दिवस – वेदों से हुई है भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की उत्पत्ति वेदों से मानी जाती है। सामवेद में संगीत के बारे में गहराई से चर्चा की गई है। भारतीय शास्त्रीय संगीत गहरे तक आध्यात्मिकता से प्रभावित रहा है, इसलिए इसकी शुरुआत मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य मोक्ष की प्राप्ति के साधन के रूप में हुई। संगीत की महत्ता इस बात से भी स्पष्ट है कि भारतीय आचार्र्यों ने इसे पंचम वेद या गंधर्व वेद की संज्ञा दी है। भरत मुनि का नाट्यशास्त्र पहला ऐसा ग्रंथ था जिसमें नाटक, नृत्य और संगीत के मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया गया है।
भारतीय शास्त्रीय संगीत को पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा जटिल व संपूर्ण संगीत प्रणाली माना जाता है।

भारतीय शास्त्रीय संगीत की शैलियां
भारतीय शास्त्रीय संगीत की दो प्रमुख शैलियां निम्नलिखित हैं-

हिंदुस्तानी शैली
हिंदुस्तानी शैली के प्रमुख विषय ऋंगार, प्रकृति और भक्ति हैं। तबलावादक हिंदुस्तानी संगीत में लय बनाये रखने में मदद देते हैं। तानपूरा एक अन्य वाद्ययंत्र है जिसे पूरे गायन के दौरान बजाय जाता है। अन्य वाद्ययंत्रों में सारंगी व हरमोनियम शामिल हैं। हिंदुस्तानी शैली पर काफी हद तक फारसी संगीत के वाद्ययंत्रों और शैली दोनों का ही प्रभाव है।

हिंदुस्तानी गायन शैली के प्रमुख रूप

  • ध्रुपद: ध्रुपद गायन की प्राचीनतम एवं सर्वप्रमुख शैली है। ध्रुपद में ईश्वर व राजाओं का प्रशस्ति गान किया जाता है। इसमें बृजभाषा की प्रधानता होती है।
  • खयाल: यह हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत की सबसे लोकप्रिय गायन शैली है। खयाल की विषयवस्तु राजस्तुति, नायिका वर्णन, श्रृंगार रस आदि होते हैं।
  • धमार: धमार का गायन होली के अवसर पर होता है। इसमें प्राय: कृष्ण-गोपियों के होली खेलने का वर्णन होता है।
  • ठुमरी: इसमें नियमों की अधिक जटिलता नहीं दिखाई देती है। यह एक भावप्रधान तथा चपल चाल वाला श्रृंगार प्रधान गीत है। इस शैली का जन्म अवध के नवाब वाजिद अली शाह के राज दरबार में हुआ था।
  • टप्पा: टप्पा हिंदी मिश्रित पँजाबी भाषा का श्रृंगार प्रधान गीत है। यह गायन शैली चंचलता व लच्छेदार तान से युक्त होती है।

कर्नाटक शैली
कर्नाटक शास्त्रीय शैली में रागों का गायन अधिक तेज और हिंदुस्तानी शैली की तुलना में कम समय का होता है। त्यागराज, मुथुस्वामी दीक्षितार और श्यामा शास्त्री को कर्नाटक संगीत शैली की त्रिमूर्ति कहा जाता है, जबकि पुरंदर दास को अक्सर कर्नाटक शैली का पिता कहा जाता है। कर्नाटक शैली के विषयों में पूजा-अर्चना, मंदिरों का वर्णन, दार्शनिक चिंतन, नायक-नायिका वर्णन और देशभक्ति शामिल हैं।

कर्नाटक गायन शैली के प्रमुख रूप

  • वर्णम: इसके तीन मुख्य भाग पल्लवी, अनुपल्लवी तथा मुक्तयीश्वर होते हैं। वास्तव में इसकी तुलना हिंदुस्तानी शैली के ठुमरी के साथ की जा सकती है।
  • जावाली: यह प्रेम प्रधान गीतों की शैली है। भरतनाट्यम के साथ इसे विशेष रूप से गाया जाता है। इसकी गति काफी तेज होती है।
  • तिल्लाना: उत्तरी भारत में प्रचलित तराना के समान ही कर्नाटक संगीत में तिल्लाना शैली होती है। यह भक्ति प्रधान गीतों की गायन शैली है।

 

योग दिवस विशेष – महर्षि पतंजलि एवं पतंजलि योग सूत्र से सम्बन्धित कुछ तथ्य

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) एक संत हैं जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व के दौरान कुछ समय रहे थे। इन्हे नागनाथ, गोणिकापुत्र, अहितापति आदि कई नामों से जाना जाता है। “पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र” नामक योग पर अपने ग्रंथ के लिए मशहूर, वह केवल योग के विज्ञान पर एक प्राधिकारी ही नहीं बल्कि एक वैज्ञानिक और डॉक्टर भी थे, जिनकी स्पष्टता और ज्ञान उल्लेखनीय है।

पतञ्जलि परंपरा के अनुसार- महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) “महाभाष्य” ग्रंथ के भी लेखक थे। जो पाणिनि की “अष्टाध्यायी” पर एक प्रदर्शनी थी, हालांकि इस बात के लिए काफी बहस हुई कि क्या दो कार्य “योग सूत्र” और “महाभाष्य” एक ही लेखक द्वारा हैं? इसके अलावा परंपराओं की मान्यता है कि उन्हें एक चिकित्सा पाठ “चरकप्राटिसमस्क्राट” का श्रेय जाता है, जो चरक के चिकित्सा ग्रंथ और संशोधन हैं – हालांकि यह कार्य खो गया था।

इसलिए परम्परा महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) की इस प्रकार प्रशंसा करती है- “मैं विशिष्ट पतञ्जलि (पतंजलि) को झुक कर अपने दोनों हाथों को जोड़ते हुए प्रणाम करता हूं, जिन्होंने योग के माध्यम से मन, भाषण के माध्यम से व्याकरण एवं औषधि के माध्यम से शरीर की अशुद्धताओं को हटाया।”

राजा भोज ने भी महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) की सराहना की है। –

योगेन चित्तस्य पदेन वाचां । मलं शरीरस्य च वैद्यकेन ॥
योऽपाकरोत्तमं प्रवरं मुनीनां । पतञ्जलिं प्राञ्जलिरानतोऽस्मि ॥

मन की चित्त वृत्तियों को को योग से, वाणी को व्याकरण से और शरीर की अशुद्धियों को आयुर्वेद द्वारा शुद्ध करने वाले मुनियों में सर्वश्रेष्ठ महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को में दोनों हाथ जोड़कर नमन करता हूँ। – इस श्लोक को योगाभ्यास के शुरू में गाया जाता है।

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) काशी मंडल में दूसरी शताब्दी के दौरान रहते थे। महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) का जीवन समाधी मंदिर तिरुपत्तूर ब्रह्मपुरेश्वर मंदिर में है ऐसा माना जाता है।

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) की जन्म कहानी

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) से जुडी कई कहानियाँ है।

एक लोकप्रिय कहानी के अनुसार वह ऋषि अत्री और उनकी पत्नी अनुसूया के पुत्र थे।

महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को अनंत का अवतार कहा जाता है, पवित्र नाग जिस पर महाविष्णु योग निद्रा में विश्राम करते हैं।

एक अन्य कथा के अनुसार भगवान विष्णु को शिव का नृत्य देखने के लिए उत्साहित देखकर, आदिशेष नृत्य सीखना चाहता था। ताकि वह अपने भगवान को खुश कर सके, इसके द्वारा प्रभावित होकर भगवान विष्णु ने आदिशेष को आशीर्वाद दिया, और कहा कि भगवान शिव उनकी भक्ति के लिए, उन्हें आशीर्वाद देंगे। वह जन्म लेंगे ताकि वह मानव जाति को आशीर्वाद दे सकें और नृत्य कला का नेतृत्व कर सकें।

इस समय गोनिका नाम की एक सुप्रसिद्ध महिला, जो पूरी तरह योग के लिए समर्पित थी, एक योग्य पुत्र के लिए एक मुट्ठी भर जल के साथ प्रार्थना कर रही थी, जब उसने एक छोटा सांप उसके हाथ में घूमता देखा। वह सांप एक मानव रूप में बदल गया। वह सर्प आदिशेष के अलावा कोई नहीं था। जिसने महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) के रुप में जन्म लिया था।

जहाँ तक जन्म भूमि की बात रही, परंपरा कहती है कि वह किसी भी साधारण स्थान पर पैदा नहीं हुए थे। वह एक ऊँचे स्थान, एक दिव्य खगोलीय निवास से थे। आर्ट ऑफ लीविंग के श्री श्री रविशंकर जी ने महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) को उच्च सम्मान में रखा है। उन्होंने पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र पर एक सरल और सुंदर टिप्पणी दी है। टिप्पणी इसकी प्रमाणिकता और गहराई में उत्कृष्टता देती है।

यह भी पढ़ें – योग के जनक पतंजलि को माना जाता है शेषनाग का अवतार

पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र क्या है? 

पतञ्जलि (पतंजलि) योग सूत्र में महर्षि पतञ्जलि (पतंजलि) ने विभिन्न ध्यानपारायण अभ्यासों को सुव्यवस्थित कर उनकों सूत्रों में संहिताबद्ध किया है। यह सूत्र योग के आठ अंगों को दर्शाते है। इसमें कुल १९५ सूत्र है जिन्हे ४ पदों में विभाजित किया गया है।

  • समाधी पद – इसमें ५१ सूत्र है। – इसके अनुसार मन की वृतियों का निरोध ही योग है।
  • साधना पद – इसमें ५५ सूत्र है। – “क्रिया योग” क्या है और उसके अंगो का वर्णन इस पद में शामिल है। तप, स्वाध्याय, ईश्वर प्रणिधान।
  • विभूति पद – इसमें भी ५५ सूत्र है। – इस अध्याय में संयम का वर्णन है। जिसमे ध्यान, धारणा और समाधी यह योग के आठ अंगो में से अंतिम तीन अंग शामिल है।
  • केवल्य पद – इसमें ३४ सूत्र है। – परम मुक्ति पर आधारित यह अध्याय सबसे छोटा है।

योग के आठ अंग इस प्रकार है – यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधी

पतञ्जलि (पतंजलि) योगसूत्र पर गुरुदेव श्री श्री रवि शंकर जी के प्रवचन पर आधारित विस्तृत लेखों की सूचि निचे दी गयी है।

(साभार – आर्ट ऑफ लीविंग की वेबसाइट)

जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद का क्या है रहस्य?

आषाढ़ माह में भगवान रथ पर सवार होकर अपनी मौसी रानी गुंडिचा के घर जाते हैं। यह रथयात्रा 5 किलो‍मीटर में फैले पुरुषोत्तम क्षेत्र में ही होती है। आषाढ़ शुक्ल दशमी को वापसी की यात्रा होती है। इस बार यह यात्रा 20 जून 2023 को आयोजित होगी, जिसमें 25 लाख लोगों के शामिल होने की संभावना है। कैसे बांटेंगे 25 लाख लोगों को प्रसाद और भोजन? जानिए रहस्य।
दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर :-
500 रसोइए 300 सहयोगियों के साथ मिलकर बनाते हैं भगवान जगन्नाथजी का प्रसाद।
लगभग 20 लाख भक्त कर सकते हैं यहां भोजन।
मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है।
प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती।
कहा जाता है कि मंदिर में प्रतिदिन प्रसाद 20 हजार लोगों के लिए ही बनाया जाता है।
त्योहार वाले दिन 50 हजार लोगों के लिए बनाया जाता है।
कहा जाता है कि यदि किसी दिन लाखों लोग भी आ जाए तो भी वह प्रसाद ग्रहण करके ही जाते हैं।
56 भोग का होता है प्रसाद :-
भोग के लिए रोजाना 56 तरह के भोग तैयार किए जाते हैं।
ये सारे व्यंजन मिट्टी के बर्तनों में तैयार किए जाते हैं।
अद्भुत तरीके से ही पकता है चावल:-
रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं।
सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है।
इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।
अर्थात सबसे ऊपर रखे बर्तन का खाना पहले पक जाता है, यही यहां का चमत्कार है।

(साभार – वेब दुनिया)

जानिए बलभद्र और सुभद्रा सो जुड़े तथ्य

ओड़ीसा के पुरी में प्रतिवर्ष आषाढ़ द्वितीया पर प्रभु जगन्नाथ की रथयात्रा निकाली जाती है। इस रथयात्रा में श्री बलभद्र और और सुभद्रा जी के रथ भी शामिल होते हैं। आओ जानते हैं देवी सुभद्रा और बलभद्र के बार में अनजाने राज।
बलभद्र 
1. भगवान बलभद्र को बलराम, दाऊ और बलदाऊ भी कहते हैं। बलवानों में श्रेष्ठ होने के कारण उन्हें बलभद्र भी कहा जाता है।
2. बलभद्र को शेषनाग तो भगवान जगन्नाथ अर्थात श्रीकृष्ण को विष्णुजी का अवतार माना जाता है।
3. कहते हैं कि जब कंस ने देवकी-वसुदेव के छ: पुत्रों को मार डाला, तब देवकी के गर्भ में शेषावतार भगवान बलराम पधारे। योगमाया ने उन्हें आकर्षण करके नन्द बाबा के यहां निवास कर रही श्री रोहिणीजी के गर्भ में पहुंचा दिया था। इसलिए उनका एक नाम संकर्षण पड़ा। श्रीकृष्‍ण और बलराम की माताएं अलग अलग हैं लेकिन पिता एक ही हैं। हालांकि देखा जाए तो पहले वे देवकी के गर्भ में ही थे।
4. बलराम जी का विवाह सतयुग के महाराज कुकुदनी की पुत्री रेवती से हुआ था। रेवती बलरामजी से बहुत लंबी थी तो बलरामजी ने उन्हें अपने हल से अपने समान कर दिया था।
5. जगन्नाथ की रथयात्रा में बलभद्रजी का भी एक रथ होता है। यह गदा धारण करते हैं। बलरामजी ने दुर्योधन और भीम दोनों को ही गदा सिखाई थी। उनके लिए कौरव और पांडव दोनों ही समान थे इसलिए उन्होंने युद्ध में भाग नहीं लिया था। मौसुल युद्ध में यदुवंश के संहार के बाद बलराम ने समुद्र तट पर आसन लगाकर देह त्याग दी थी।

सुभद्रा

1. योगमाया के अलावा सुभद्रा भी श्रीकृष्ण की बहन थीं।
2. बलराम चाहते थे कि सुभद्रा का विवाह कौरव कुल में हो लेकिन बलराम के हठ के चलते कृष्ण ने सुभद्रा का अर्जुन के हाथों हरण करवा दिया था। बाद में द्वारका में सुभद्रा के साथ अर्जुन का विवाह विधिपूर्वक संपन्न हुआ।
3. विवाह के बाद वे एक वर्ष तक द्वारका में रहे और शेष समय पुष्कर क्षेत्र में व्यतीत किया। 12 वर्ष पूरे होने पर वे सुभद्रा के साथ इंदप्रस्थ लौट आए।
4. सुभद्रा का पुत्र अभिमन्यु था जिसकी महाभारत के युद्ध में चक्रव्यूह फंसने के कारण दुर्योधन, कर्ण सहित कुल सात आठ लोगों ने मिलकर निर्मम हत्या कर दी थी। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा थी जिसके गर्भ से परीक्षित का जन्म हुआ और परीक्षित का पुत्र जनमेजय था।
5. कहा जाता है कि नरकासुर का वध करने के बाद भगवान श्रीकृष्ण अपनी बहन सुभद्रा से मिलने भाई दूज के दिन उनके घर पहुंचे थे। सुभद्रा ने उनका स्वागत करके अपने हाथों से उन्हें भोजन कराकर तिलक लगाया था।
6. पुरी, उड़ीसा में ‘जगन्नाथ की यात्रा’ में बलराम तथा सुभद्रा दोनों की मूर्तियां भगवान श्रीकृष्ण के साथ-साथ ही रहती हैं।
7. सुभद्रा वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी की पुत्री थीं, जबकि वसुदेकी की दूसरी पत्नी देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण थे। इस तरह श्रीकृष्ण और सुभद्रा के पिता एक ही थे परंतु माताएं अलग अलग थी।

जानिए, जगन्नाथ पुरी मंदिर की 13 आश्चर्यजनक बातें

पुरी का जगन्नाथ मंदिर भक्तों की आस्था केंद्र और विश्वभर में प्रसिद्ध है। यह हिन्दुस्तान ही नहीं, बल्कि विदेशी श्रद्धालुओं के भी आकर्षण का केंद्र है। मं‍दिर का स्थापत्य इतना भव्य है कि दूर-दूर के वास्तु विशेषज्ञ इस पर रिसर्च करने आते हैं। प्रस्तुत हैं आपके लिए 13 आश्चर्यजनक चर्चित तथ्य-
1. मंदिर की ऊंचाई 214 फुट है।
2. पुरी में किसी भी स्थान से आप मंदिर के शीर्ष पर लगे सुदर्शन चक्र को देखेंगे तो वह आपको सदैव अपने सामने ही लगा दिखेगा।
3. मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज सदैव हवा के विपरीत दिशा में लहराता है।
4. सामान्य दिनों के समय हवा समुद्र से जमीन की तरफ आती है और शाम के दौरान इसके विपरीत, लेकिन पुरी में इसका उल्टा होता है।
5. मुख्य गुंबद की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है।
6. मंदिर के अंदर पकाने के लिए भोजन की मात्रा पूरे वर्ष के लिए रहती है। प्रसाद की एक भी मात्रा कभी भी व्यर्थ नहीं जाती, लाखों लोगों तक को खिला सकते हैं।
7. मंदिर की रसोई में प्रसाद पकाने के लिए 7 बर्तन एक-दूसरे पर रखे जाते हैं और सब कुछ लकड़ी पर ही पकाया जाता है। इस प्रक्रिया में शीर्ष बर्तन में सामग्री पहले पकती है फिर क्रमश: नीचे की तरफ एक के बाद एक पकती जाती है।
8. मंदिर के सिंहद्वार में पहला कदम प्रवेश करने पर ही (मंदिर के अंदर से) आप सागर द्वारा निर्मित किसी भी ध्वनि को नहीं सुन सकते। आप (मंदिर के बाहर से) एक ही कदम को पार करें, तब आप इसे सुन सकते हैं। इसे शाम को स्पष्ट रूप से अनुभव किया जा सकता है।
9. मंदिर का रसोईघर दुनिया का सबसे बड़ा रसोईघर है।
10. मंदिर का क्षेत्रफल 4 लाख वर्गफुट में है।
11. प्रतिदिन सायंकाल मंदिर के ऊपर स्थापित ध्वज को मानव द्वारा उल्टा चढ़कर बदला जाता है।
12. पक्षी या विमानों को मंदिर के ऊपर उड़ते हुए नहीं पाएंगे।
13. विशाल रसोईघर में भगवान जगन्नाथ को चढ़ाए जाने वाले महाप्रसाद का निर्माण करने हेतु 500 रसोइए एवं उनके 300 सहायक-सहयोगी एकसाथ काम करते हैं। सारा खाना मिट्टी के बर्तनों में पकाया जाता है। हमारे पूर्वज कितने बड़े इंजीनियर रहे होंगे, यह इस एक मंदिर के उदाहरण से समझा जा सकता है।

(साभार – वेब दुनिया)