Thursday, August 21, 2025
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राष्ट्रीय शिक्षा नीति :  कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज में हिन्दी पठन – पाठन पर कार्यशाला आयोजित

कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज के हिन्दी विभाग एवं आई.क्यू.ए.सी. तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग स्नातक अध्ययन बोर्ड का संयुक्त आयोजन 
कोलकाता । राष्ट्रीय शिक्षा नीति लागू होने के बाद पाठ्यक्रम में काफी परिवर्तन आ रहा है । कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज के हिन्दी विभाग एवं आई.क्यू.ए.सी. तथा कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग स्नातक अध्ययन बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में इसे लेकर गत 13 जुलाई को एक दिवसीय कार्यशाला आयोजित की गयी । कार्यशाला का विषय नई शिक्षा नीति में हिन्दी पठन – पाठन एवं पाठ्यक्रम था । कार्यशाला का उद्धाटन कलकत्ता विश्वविद्यालय के इंस्पेक्टर ऑफ कॉलेजेस डॉ. देवाशीष विश्वास, कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सत्या उपाध्याय, कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग स्नातक अध्ययन बोर्ड की अध्यक्ष डॉ़. राजश्री शुक्ला, कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की संचालन समिति की सदस्य मैत्रेयी भट्टाचार्य ने किया ।  इस कार्यशाला के बारे में जानकारी देते हुए कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की प्राचार्या डॉ. सत्या उपाध्याय ने कहा कि नया सत्र नयी शिक्षा नीति के अनुरूप प्रारम्भ होने वाला है ।और करिकुलम क्रेडिट फ्रेमवर्क के तहत यू जी बोर्ड पाठ्यक्रम निर्धारित करता है, इसी के तहत यह पहली कार्यशाला आयोजित की गयी है । लगभग 70 प्राध्यापक – प्राध्यापिकाओं ने भाग लिया । लोकतांत्रिक पद्धति से विचार कर पाठ्यक्रम तैयार किया जा रहा है और सभी अपने सुझाव लेकर आए, सक्रिय प्रतिभागिता की । हमारे पाठ्यक्रम से देश की संस्कृति, साहित्य, सब प्रभावित होते हैं, इसलिए यह एक बड़ा दायित्व है । देश और समाज की प्रगति के लिए पाठ्यक्रम की महत्वपूर्ण भूमिका होती है । वहीं कार्यशाला में मूल वक्तव्य रखते हुए कलकत्ता विश्वविद्यालय के इंस्पेक्टर ऑफ कॉलेजेस डॉ. देवाशीष विश्वास पाठ्यक्रम की संरचना के बारे में विस्तार से बताया । कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग स्नातक अध्ययन बोर्ड की अध्यक्ष डॉ़. राजश्री शुक्ला ने कार्यशाला के आयोजन हेतु कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज की सराहना की । उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मूल भावना को ध्यान में रखते हुए और कलकत्ता विश्वविद्यालय के नीतियों को ध्यान में रखकर आगे बढ़ना है । इसके लिए हिन्दी के प्राध्यापक वर्ग की राय को लेने के लिए कार्यशाला आयोजित की गयी है और उनसे लिखित सुझाव माँगे जा रहे हैं ।

कार्यक्रम के उद्घाटन सत्र का संचालन कलकत्ता गर्ल्स कॉलेज के हिन्दी विभाग के डॉ. धनंजय साव तथा तकनीकी सत्र का संचालन डॉ. नवारुणा भट्टाचार्य ने किया । नई शिक्षा नीति में हिंदी पठन-पाठन एवं पाठ्यक्रम पर अपने महत्वपूर्ण विचारों को व्यक्त किया गया। किस सेमेस्टर में कितना पेपर पढ़ना होगा । कोर और मल्टी डिसिप्लनरी ,सी.वी.ए.सी.आदि सभी विषयों पर विचार किया गया । नई शिक्षा नीति में एक दो तीन और चार वर्ष तक भिन्न – भिन्न डिग्री ली जा सकती है।बीच में विषय भी परिवर्तन कर सकते हैं। पहले वर्ष में 100 लेवल मतलब सरल पेपर 200 लेवल कुछ कठिन पेपर और 300 लेवल थोड़ा कठिन पेपर दिया जाएगा।क्रेडिट आदि पर विचार किया गया। कई शिक्षक और शिक्षिकाओं ने अपने बहुमूल्य सुझाव दिए जो विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए महत्त्वपूर्ण रहे। अभी दो सत्रों के पठन-पाठन पाठ्यक्रम बने हैं। तीन साल के पाठ्यक्रम को बनाया जाएगा।बाह्य संरचनाओं और परीक्षा पद्धति और विषयों को लेकर जो बाधाएं आएंगी उस पर ध्यान आकर्षित किया गया। कलकत्ता विश्वविद्यालय हिंदी विभाग डॉ राजश्री शुक्ला, सेंट पाल कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ कमलेश पांडेय ने अपने वक्तव्य रखे। हिंदी कार्यशाला में हिंदी के विभिन्न पहलुओं पर विचार रखे गए। कार्यशाला में सभी शिक्षकों और शिक्षिकाओं के प्रश्नों और पेपर बनाने पर सुझाव आए हैं जिन्हें लिखित रूप में हिंदी विभाग स्नातक अध्ययन बोर्ड को दिया जाएगा। इस अवसर पर शिक्षायतन कॉलेज, स्कॉटिश चर्चकॉलेज, खिदिरपुर कॉलेज, खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज, विद्यासागर कॉलेज, गोखल मेमोरियल कॉलेज, जयपुरिया कॉलेज,लाल बाबा कॉलेज, रानी बिरला गर्ल्स कॉलेज आदि बत्तीस कॉलेजों के हिंदी अध्यापक और अध्यापिकाओं की उपस्थिति रही।

स्त्री-पुरुष के संबंधों और पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता पर प्रश्न है ‘कोई और रास्ता’

शर्मिला बोहरा जालान
स्त्री पुरुष के संबंधों पर हिंदी में कई नाटक लिखे गए हैं और वे चर्चित भी हुए हैं ,लेकिन हर नाटक इन संबंधों को नए अंदाज नए कोण से देखता और नई प्रस्तुति में पेश करता है। पिछले दिनों युवा कथाकार शर्मिला बोहरा जालान ने प्रसिद्ध नाटककार प्रताप सहगल के नाटक को देखने के बाद यह समीक्षा लिखी है।
यह नाटक भी स्त्री-पुरुष के संबंधों पर केंद्रित है और इसे इसकी मुख्य पात्र इंदुके इर्द गिर्द रचा गया है। इस नाटक का निर्देशन प्रसिद्ध रंगकर्मी निलय रॉय ने किया और मुख्य पात्र का अभिनय उमा झुनझुनवाला ने किया है ।शर्मिला जी ने इस नाटक के जरिए स्त्री-पुरुष के संबंधों और पितृसत्तात्मक समाज की मानसिकता को लेकर कुछ सवाल उठाए हैं।
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“चन्द मुलाकातें
आंधी की तरह आईं
और बवंडर की तरह चली गईं |
रह गए यादों के कुछ सब्ज़ पत्ते
कुछ रोशनी की लकीरें
पानी के कुछ छींटे |”
ये पंक्तियाँ उमा झुंझुनवाला की गहरी आवाज़ में तब सुनी जब ‘कोई और रास्ता’ का प्रीमियर शो देखने का सुअवसर मिला |
एक व्यस्त और जटिलताओं से भरे दिन का अंत यदि एक मार्मिक मंचन को देखते हुए हो तो इसे दिन का अच्छा अंत कहेंगे |
14 जुलाई की शाम को सुप्रसिद्ध नाट्य संस्था ‘लिटिल थेस्पियन’ द्वारा आयोजित नाटक ‘कोई और रास्ता’ को ज्ञानमंच प्रेक्षागार में देखा | यह नाटक प्रसिद्ध नाट्यकार प्रताप सहगल द्वारा लिखा गया एकल नाटक है, जिसकी केंद्रीय पात्र है- इंदु | जिसे प्रसिद्ध थिएटर अभिनेत्री, निर्देशिका और लिटिल थेस्पियन की अध्यक्षा उमा झुनझुनवाला ने निभाया है |
असफल प्रेम विवाह, फिर दूसरा विवाह , कोई और रास्ते की तलाश, ये वे शब्द और पद हैं जो अभी हाल में लिखे इस ताजा नाटक के संसार को खड़ा करते हैं | ये ‘कोई और रास्ता’ के कथा सूत्र हैं | प्रेम एक ऐसा भाव है जिसे साहित्य, संगीत, नृत्य, नाटक, चित्रकला मूर्तिकला, सिनेमा ने अपने केंद्र में रखा है | विश्वास से भरे हुए प्रेम के शुरुआती दिन | इंद्रधनुषी रंग से भरा जीवन | लेकिन हर बार प्रेम अपनी पीठ पर छल , प्रवंचना , निराशा, असफलता, अवसाद क्यों लादे रहता है ! यह कौन बता सकता है ! प्रेम का संसार भंगुर ही होता आया है ऐसा किसी नियम के तौर पर नहीं कहा जा रहा पर अक्सर दिखाई देता है | प्रेम की प्रकृतियों में आते परिवर्तनों को इस प्रस्तुति में देखते हैं | प्रेम की पीड़ा, पराजय, असफलता, भटकाव उतार-चढ़ाव को भी |
‘कोई और रास्ता’ प्रेम पर प्रश्न चिन्ह लगाता है तो विवाह संस्था पर भी | ‘कोई और रास्ता’ की शुरुआत इंदु के द्वारा अपनी पीड़ा को बाँटते हुए होती है| इंदु का असफल प्रेम विवाह है| इंदु अपने जीवन की कथा , अपनी भूलों , अपने भटकाव और भ्रम को, दाम्पत्य जीवन की जटिलता, सामाजिक जीवन में पति की भूमिका को, अपने रोजमर्रा के वास्तविक जीवन को दर्शकों के साथ साझा कर रही है| वह पति पत्नी के बीच प्रेम – आशंका , विश्वास -अविश्वास के झंझावात को बता रही है | पति गौतम में वास्तविक सम्मान और समझ नहीं है | यहाँ मोनोलॉग है| संस्कारों से बंधा स्त्री मन उसकी ऊहापोह को व्यक्त किया गया है | क्या खूब अभिनय है उमा झुनझुनवाला का | निर्देशक निलॉय रॉय के मंचीय प्रयोग ने असफल प्रेम विवाह की त्रासदी और मन की दशा को , मंच की साज-सज्जा, उपकरणों के सजीव और जीवंत प्रयोग द्वारा प्रभावशाली ढंग से प्रेषित किया है | श्वेत और श्याम रंग की पोशाक पात्रों को पहनाई गयी है | पर अधिकतर पात्र काली पोशाक पहनते हैं | कास्ट्यूम , स्टेज प्रापर्टी, संगीत और सेट मुख्य किरदार की आतंरिक और बाह्य दुनिया को प्रकट करने में सफल हैं |
नाटक के केंद्र में है स्त्री, उसकी अस्मिता | पितृसत्तात्मक व्यवस्था | स्त्री ने जब-जब ‘कोई नया रास्ता’ चुना है, उसका जीवन इस प्रयोग से खुशहाल और बेहतर हुआ है | प्रेम भटकाव है तो कभी-कभी कोई और रास्ता चुन लेने पर तसल्ली भी | प्रेम शक्ति देता है तो प्रेमी जब पति बन जाता है सामाजिक स्थिति उसके अंदर के क्रूर और निर्मम व्यक्ति को हमारे सामने खोल कर रख देती है| पुरुष मित्र के रुप में नवीन नामक किरदार जब-जब इंदु के जीवन में आता है उसका जीवन थोड़ा संभलता है , थोडा सहनीय बनता है | नवीन की भूमिका उस सखा की भूमिका है जो उसे हर बार अवसाद से निकालता है | उसकी इच्छाओं, आकांक्षाओं, स्वप्नों को समझता है | इंदु के जीवन की त्रासदी यह है कि उसने प्रेम किया| प्रेम त्रासदी कब बनता है ? प्रेम जब प्रेम नहीं रहता | इंदू की कहानी आम है | पुरानी है| अक्सर पुरानी कहानी से नई पीढ़ी को गुजारना पड़ता है| इंदु नौकरी करती है| नौकरी करना एक बात है | अपने जीवन में घटने वाली दुर्घटना का प्रतिकार करना दूसरी | ऐसा हर स्त्री द्वारा संभव नहीं होता है कि वह पारिवारिक हिंसा का तुरंत प्रतिकार करें | पढ़ी-लिखी, शिक्षित, नौकरीपेशा स्त्री भी दशकों तक पति और उसके घरवालों के द्वारा किए गए अन्याय को झेलती रहती है| उसे अपनी आर्थिक शक्ति का ज्ञान नहीं होता | इस परिदृश्य में नवीन जैसे चरित्र सखा बन कर जीवन को बचाने आते हैं | ‘द सेकेंड सेक्स’ पुस्तक पढने देते हैं | पुराने विचारों से बंधे स्त्री जीवन की गांठे खोलने की कोशिश करते हैं | उसे नया आकाश दिखाते हैं | इंदु ‘द सेकेंड सेक्स’ पुस्तक पढ़ती है | ‘सिमोन द बोउआर’ से प्रभावित होती है | ‘कोई और रास्ता’ इंदु के जीवन को नए आकाश की तरफ ले जाता है |
प्रेम का अस्थायीपन , क्षणभंगुरता उसे साहस प्रदान करती है |
नाटक का प्रारंभ इंदु के द्वारा अपने जीवन के अतीत के पन्नों को पढ़ने से होता है| वह सिलसिलेवार अपनी कहानी सुना रही है| दर्शक उस कहानी से धीरे-धीरे बंधते जा रहे हैं | इंदु का जीवन , उसके एकल संवाद, दर्शक को आसपास के जीवन की स्त्रियों से जोड़ने लगते हैं | दर्शक इंदु की भूमिका में उमा झुनझुनवाला को सुनते हुए उन तमाम स्त्रियों को सुनते हैं जो किसी न किसी फिसलन से लहूलुहान हुई है| सभागार में बैठे दर्शकों का प्रभावशाली प्रस्तुति से तादात्म्य होता है| दर्शकों के मन में कई स्त्रियों का संसार खड़ा हो जाता है जो कहती हैं, यह हमारी ही तो कहानी है | थोड़ी कम, थोड़ी ज्यादा इंदु की कहानी कई स्त्रियों की कहानी है| दर्शक नाटक रस में डूब जाते हैं | स्त्री जीवन की एक पुरानी कहानी नए अनुभवों से दर्शकों को भर देती है |
एक नया रास्ता स्त्री के दिल से होकर निकला है | इंदु ने जब प्रेम किया और मां तथा नवीन के मना करने के बाद भी विवाह किया तो उसने नए रास्ते को ही चुना था और फिर पहले पति के अत्याचार से पीड़ित होकर जब दूसरा विवाह किया तो भी नया रास्ता चुना | रास्ता प्रतीक है| जीवन को गतिमान बनाने का | रास्ते खोलने चाहिए | रास्ता जीवन को, स्त्री जीवन को बदलता है | यह विश्वास यह नाटक हमें दिलाता है।
कोई भी प्रोडक्शन सामूहिक कर्म होता है| कथा, निर्देशन, अभिनय, संगीत, प्रकाश व्यवस्था सब मिलकर किसी भी प्रोडक्शन हो सफल बनाते हैं। संगीत नाटक अकादमी पुरस्कार से सम्मानित मुरारी रायचौधुरी ने इसका संगीत दिया है| तो दिल्ली से प्रसिद्ध निर्देशक निलय रॉय को आमंत्रित किया गया निर्देशन के लिए| इस तरह यह एक सुंदर प्रस्तुति रही |
(साभार – स्त्री दर्पण फेसबुक पेज)

‘वैचारिक प्रतिबद्धता की मिसाल, क्रांतिकारी एवं हँसमुख व्यक्तित्व की प्रखर वक्ता थीं प्रो. रेखा सिंह’

कोलकाता । सेठ आनंदराम जयपुरिया कॉलेज की दिवंगत प्राध्यापिका प्रो. रेखा सिंह की स्मृति में उनके मित्रों, सहकर्मियों एवं विद्यार्थियों द्वारा महाजाति सदन एनेक्सी में 15 जुलाई 2023 को स्मरण सभा का आयोजन किया गया । प्रदीप सिंह ने अपने शोक प्रस्ताव में उनके बहुआयामी व्यक्तित्व पर प्रकाश डालते हुए प्रो. रेखा सिंह को श्रद्धांजलि दी। उन्हें याद करते हुए महानगर के शिक्षाविदों, साहित्यकारों एवं विद्यार्थियों ने अपनी स्मृतियाँ साझा की । डॉ. शम्भुनाथ ने डॉ. रेखा सिंह को हँसमुख एवं सरल व्यक्तित्व का बताते हुए कहा कि वह प्रखर वक्ता थीं और उनमें वैचारिक प्रतिबद्धता थी। डॉ. चन्द्रकला पांडेय ने अपनी शिष्या को स्मरण करते हुए कहा कि रेखा सिंह ने हजारों छात्राओं में अपनी प्रतिभा के बीज रोप दिये हैं । डॉ. कमलेश जैन ने उनको जुझारू एवं कर्मठ व्यक्तित्व का बताया । प्रो. हितेन्द्र पटेल ने कहा कि राजनीति में सक्रिय प्रो. रेखा सिंह ने हिन्दीभाषी लड़कियों की पारम्परिक छवि को तोड़ा । बाबू लाल शर्मा ने कहा कि उनमें दूसरों का सहयोग करने की भावना थी । मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि रेखा सिंह की अपने विषय पर गहरी पकड़ थी । डॉ. इतु सिंह ने दुष्यंत की कविता के साथ उनको याद किया । स्मरण सभा में प्रो. रेखा सिंह के सहकर्मी सूरज साव ने उनके क्रांतिकारी व्यक्तित्व को याद किया । इस अवसर पर प्रो. सत्यप्रकाश तिवारी, प्रो. अल्पना नायक, ऋतेश पांडेय, आदित्य गिरी, मधु सिंह समेत कई अन्य लोगों ने अपनी स्मृतियाँ साझा कीं। अलका सरावगी, प्रो. अमरनाथ, प्रो. विभा समेत कई लोगों के शोक संदेशों का पाठ भी किया गया। कुसुम जैन ने अपनी कविता के माध्यम से उन्हें नमन किया। स्मरण सभा का संचालन तान्या चतुर्वेदी ने किया और उनकी सहायता की, मधु सिंह ने। इस अवसर पर प्रो. सिंह की छात्राओं ने उनकी प्रिय कविताओं का पाठ किया एवं गीत प्रस्तुत किये । डॉ. गीता दूबे ने कहा कि रेखा सिंह हमारे बीच हमेशा मौजूद रहेंगी। उन्होंने पूरे साहस और जीवंतता के साथ अपना जीवन जीया।

बारिश में इस तरह सुखाएं गीले कपड़े

हम मानसून का इंतजार करते हैं, क्योंकि तब तक आप गर्मी, पसीना, धूल और प्रदूषण से परेशान रहते हैं, फिर मूसलाधार बारिश अचानक इन सभी समस्याओं को खत्म कर देती है, लेकिन फिर नई समस्याएं भी पैदा हो जाती हैं। इस मौसम में आप गीले कपड़े आसानी से नहीं सुखा सकते क्योंकि कई दिनों तक धूप नहीं मिलती है। कई बार कपड़ों को ठीक से न सुखाने के कारण उनमें नमी रह जाती है, जिससे बदबू आने लगती है। आइए जानें कि बरसात के मौसम में कपड़ों को कैसे सुखाएं।
तौलिये का प्रयोग करें
गीले कपड़ों को सुखाने के लिए आप तौलिए का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप सबसे पहले एक गीले कपड़े को निचोड़ लें, फिर इसे सूखे तौलिये के बीच लपेट लें। अब इसे दोबारा निचोड़ें. ऐसा करने से तौलिए से ज्यादातर नमी निकल जाएगी और फिर आप इसे पंखे के नीचे आसानी से सुखा सकते हैं।
पंखे के नीचे सुखाएं
यह सबसे आम और सरल तरीका है इसलिए इसे लगभग हर घर में आजमाया जाता है। सबसे पहले गीले कपड़ों को निचोड़कर बाथरूम के नल पर लटका दें और अधिकतर पानी निकल जाने दें। जब यह सूख जाए तो इसे छत या टेबल फैन के पास रख दें और पंखे को पूरी गति से चलाएं। तेज हवाओं के कारण कपड़े जल्दी सूख जाते हैं।
अखबार का प्रयोग करें
अगर आप गहरे रंग के कपड़े सुखाना चाहते हैं तो अखबार का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसके लिए आप गीले कपड़े को उल्टा कर लें और फिर उसे अखबार के बीच रखकर मजबूती से दबाएं। अगर कपड़े तुरंत नहीं सूखते हैं तो इस प्रक्रिया को दोहराएं। ध्यान रखें कि इस ट्रिक का इस्तेमाल हल्के रंग के कपड़ों पर नहीं करना चाहिए, क्योंकि अखबार पर छपी स्याही आपकी पसंदीदा पोशाक को खराब कर सकती है।
दबाएँ
जब तमाम कोशिशों के बाद भी कपड़े गीले हों तो उन्हें सुखाने के लिए इलेक्ट्रिक प्रेस का इस्तेमाल करें। आप पहले लिबास को लोहे के बोर्ड पर रखें और धीरे-धीरे उसके ऊपर प्रेस चलाएं। इससे कपड़े जल्दी सूख जाएंगे और आप उन्हें पहनकर तुरंत बाहर जा सकते हैं।
हेयर ड्रायर का प्रयोग करें
अगर सावधानी न बरती जाए तो कई बार डायरेक्ट प्रेस हमारे कपड़ों को नुकसान पहुंचा सकती है, अगर आपको ऐसा डर है तो आप इसकी जगह हेयर ड्रायर का इस्तेमाल कर सकते हैं। इसकी गर्म हवा से कपड़े जल्दी सूख जाते हैं।

इन आसान तरीकों से करें पीतल की चीजों की सफाई

बाजार में पीतल से बने बर्तन से लेकर मूर्ति तक बिकते हैं। पीतल के बर्तन में पूजा करना शुभ माना जाता है। इसीलिए खासतौर पर मंदिर के बर्तन और मूर्तियां पीतल की बनाई जाती हैं। पीतल की वस्तुएं बहुत खूबसूरत लगती हैं, चाहे वह बर्तन हों या घर की साज-सज्जा की वस्तुएं। पीतल की वस्तुएं कुछ उपयोग के बाद अपनी चमक खो देती हैं। वह काला पड़ने लगता है। ऐसे में क्या आप भी इसका इस्तेमाल बंद कर देते हैं? आपको ऐसा नहीं करना चाहिए. आज इस आर्टिकल में हम आपको पीतल के बर्तन साफ ​​करने का घरेलू तरीका बताएंगे।
सॉस से पोंछ लें
नाश्ते का स्वाद बढ़ाने से लेकर सफाई तक, कई घरेलू कामों में सॉस का इस्तेमाल किया जाता है। कभी-कभी पीतल की मूर्ति की चमक फीकी पड़ जाती है। आप मिट्टी के बर्तनों से लेकर मूर्तियों तक सब कुछ साफ करने के लिए सॉस का उपयोग कर सकते हैं। बस मूर्ति पर चटनी की कुछ बूंदें डालें। थोड़ी देर बाद मूर्ति को साफ गीले कपड़े से पोंछ लें।
सिरके से साफ करें
शौचालय पर पीले दाग हटाने से लेकर दागदार गहनों की सफाई तक हर चीज में सिरके का उपयोग किया जा सकता है। जानिए पीतल की वस्तुओं को सिरके से कैसे साफ और चमकाया जा सकता है। पीतल की वस्तुओं को साफ करने के लिए नीचे दिए गए चरणों का पालन करें। 1/2 कप सिरका1 चम्मच नमक लें । एक कटोरे में 1/2 कप सिरका और 1 चम्मच नमक डालें। अब इस तरल पदार्थ में कपड़े को भिगो लें। इससे मूर्ति को साफ करें । मूर्ति को कुछ देर तक कपड़े से रगड़ें। अंत में मूर्ति को पोंछना न भूलें। आप देखेंगे कि मूर्ति बिल्कुल साफ हो गई है.
बेकिंग सोडा काम करेगा
बेकिंग सोडा एक ऐसी चीज है जिसका इस्तेमाल खाने से लेकर घर की साफ-सफाई और दाग-धब्बे हटाने तक हर चीज में किया जाता है। क्या आपके घर में पीतल की वस्तुओं की चमक फीकी पड़ गई है? पीतल को नया जैसा दिखाने के लिए आप बेकिंग सोडा का इस्तेमाल कर सकते हैं। बेकिंग सोडा के एक बार प्रयोग से पीतल की खोई हुई चमक वापस आ जाएगी।
2-3 चम्मच बेकिंग सोडा और नींबू का रस लें । एक कटोरी में 2-3 बड़े चम्मच बेकिंग सोडा में आधा नींबू का रस निचोड़ लें। अब इसे मिलाएं, ताकि यह पेस्ट बन जाए, अब इस पेस्ट को किसी पुराने ब्रश की मदद से पीतल के बर्तन पर लगाएं। इसे कुछ मिनट तक ब्रश से अच्छे से रगड़ें।
टूथपेस्ट काम करेगा
जिस तरह टूथपेस्ट की मदद से दांतों को साफ किया जाता है। इसी तरह आप टूथपेस्ट का इस्तेमाल जूतों से लेकर बर्तन तक साफ करने के लिए कर सकते हैं। इसके लिए आपको ब्रश पर थोड़ा सा टूथपेस्ट लगाना होगा और उसे पीतल पर रगड़ना होगा। कम से कम 5 मिनट तक साफ करें। अंत में पीतल को साफ गीले कपड़े से पोंछ लें।
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दुनिया का इकलौता पहाड़ जिस पर बने हैं 900 मंदिर

दुनिया विविधताओं से भरी हुई है। इसके अलग-अलग भागों में मौजूद विभिन्न प्रकार की चीजें लोगों का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करती हैं, जिनमें नदी, झरने, झील और पहाड़ भी शामिल हैं और इन्हीं सब चीजों में शामिल है दुनिया का इकलौता पहाड़, जिस पर 900 मंदिर मौजूद हैं।
यह दुनिया का इकलौता पहाड़ है, जिस पर इतनी बड़ी संख्या में मंदिर बने हुए हैं। खास बात यह है कि यह पहाड़ आपको भारत में देखने को मिल जाएगा, जो कि बड़ी संख्या में लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। हालांकि, क्या आपको पता है कि भारत के किस राज्य में यह पहाड़ स्थित है और क्या है इसके पीछे की कहानी। यदि नहीं, तो इस लेख के माध्यम से हम इस पहाड़ के बारे में जानेंगे।
कौन-सा है यह अनोखा पर्वत
दुनिया का यह इकलौता पर्वत पालीताना शत्रुंजय नदी के तट पर शत्रुंजय पर्वत कहलाता है, जिस पर करीब 900 मंदिर बने हुए हैं। अधिक मंदिर होने की वजह से यह लोगों की आस्था का भी केंद्र है। हर साल यहां पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु पहुंचते हैं।
किस राज्य में है यह पर्वत
भारत के यह अनोखा पर्वत गुजरात के भावनगर जिले में स्थित है। यह भावनगर शहर से करीब 50 किलोमीटर दूर दक्षिण-पश्चिम में पड़ता है। यह पर्वत जैन धर्म का प्रमुख तीर्थ है। इस पर्वत पर पहले जैन तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव ने ध्यान किया था और अपना पहला उपदेश भी दिया था। पर्वत का प्रमुख मंदिर भी जैन धर्म के पहले तीर्थंकर को ही समर्पित है।
मंदिर जाने के लिए चढ़नी पड़ती हैं 3000 सीढ़ियां
इस पर्वत पर मुख्य मंदिर अधिक ऊंचाई पर स्थित है। ऐसे में यहां तक पहुंचने के लिए श्रद्धालुओं को करीब 3,000 सीढ़ियों को चढ़ना पड़ता है। इस पर्वत पर 24 में से 23 तीर्थंकर भी पहुंचे थे। ऐसे में धार्मिक दृष्टि से इस पर्वत का अधिक महत्व है।
संगमरमर से बना हुआ है मंदिर
इस पर्वत पर बना मंदिर संगमरमर से बना हुआ है, जो कि यहां आने वाले श्रद्धालुओं को एकाएक अपनी ओर आकर्षित करता है। यहां पहले मंदिर का निर्माण 11वीं शताब्दी में किया गया था। वहीं, मंदिरों को विशेष नक्काशी का ध्यान रखते हुए बनाया गया है। जिस समय इस मंदिर पर सूरज की रोशनी पड़ती है, तो यह मंदिर और भी चमक उठता है। वहीं, चंद्रमा की रोशनी में भी यह मोती जैसा लगता है।
दुनिया के इकलौते शाकाहारी शहर में है मंदिर
भारत में यह मंदिर दुनिया के इकलौते पालीताना शहर में मौजूद है, जो कि कानूनी रूप से शाकाहारी है। इस शहर में मांसाहार का बिल्कुल भी सेवन नहीं किया जाता है, जो कि इसे दुनिया के बाकी शहरों से अलग बनाता है।
(साभार – जागरण जोश)

‘कचरे से कमाई’ के नये रास्ते खुलेंगे, दौड़ेगी कार, आईआईटी इंदौर का कमाल

प्लास्टिक कचरे से हरित हाइड्रोजन गैस बनाने का आसान और असरदार तरीका खोजा

इंदौर । इंदौर के भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) ने पीईटी प्लास्टिक के कचरे से हरित हाइड्रोजन गैस बनाने का आसान और असरदार तरीका खोज निकाला है। आईआईटी प्रबंधन के मुताबिक तीन बरस की मेहनत से संपन्न यह अनुसंधान न केवल प्लास्टिक अपशिष्ट के निपटारे की वैश्विक समस्या हल कर सकता है, बल्कि ‘कचरे से कमाई’ के नये रास्ते भी खोल सकता है।
आईआईटी के रसायन विज्ञान विभाग के प्रोफेसर संजय के. सिंह ने बृहस्पतिवार को बताया,”हम पानी में प्लास्टिक के कचरे को बारीक टुकड़े, उत्प्रेरक और अन्य पदार्थ डालकर 160 डिग्री सेल्सियस तापमान पर गर्म करते हैं। इस रासायनिक प्रक्रिया से निकलने वाली 100 प्रतिशत शुद्ध हाइड्रोजन गैस को इकट्ठा कर लिया जाता है।”
उन्होंने बताया कि रासायनिक प्रक्रिया के जरिये पीईटी प्लास्टिक के 33 किलोग्राम कचरे से एक किलोग्राम शुद्ध हाइड्रोजन गैस बनाई जा सकती है और माना जाता है कि इतना हरित ईंधन हाइड्रोजन से चलने वाली कार को 100 किलोमीटर तक दौड़ाने के लिए काफी है। केंद्र सरकार ने इस साल की शुरुआत में 19,744 करोड़ रुपये का प्रावधान करते हुए राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन अभियान को हरी झंडी दी थी।
ताकि भारत को इस ईंधन के उत्पादन का वैश्विक केंद्र बनाया जा सके। इस महत्वाकांक्षी अभियान के तहत वर्ष 2030 तक देश में कम से कम 50 लाख टन हरित हाइड्रोजन बनाने की सालाना क्षमता विकसित करने का लक्ष्य तय किया गया है। आईआईटी इंदौर के एक अधिकारी ने कहा कि हरित हाइड्रोजन बनाने के संस्थान के अनुसंधान से इस लक्ष्य को हासिल करने में मदद मिल सकती है।

निर्माता को थी 25 हजार की जरूरत, किस्मत से मिला10 लाख का चेक, साबित हुई युद्ध पर बनी कालजयी फिल्म

पहले फिल्मों को हिट कराने के लिए मजबूत स्क्रिप्ट, अच्छा अभिनय और निर्देशन कौशल ही फिल्म को कामयाब बनाने का एक सरल तरीका हुआ करता था । इन सब के आधार पर साल 1964 में धर्मेंद्र और बलराज साहनी स्टारर फिल्म ‘हकीकत’ बनाई गई थी । देवानंद के बड़े भाई फिल्म निर्माता चेतन आनंद की इस फिल्म को भारतीय सिनेमा में युद्ध पर बनी सबसे कालजयी फिल्म माना जाता है । इस फिल्म को बनाने से पहले चेतन आनंद महज 25 हजार रुपए ना होने को लेकर काफी परेशान थे लेकिन बाद में कुछ ऐसा हुआ कि उनके हाथ में सीधा दस लाख का चैक आ गया था ।
बात उस दौर की जब चेतन आनंद इस फिल्म को बनाने की तैयारी में थे और उनके पास फिल्म के लिए 25 हजार रुपए कम पड़ रहे थे । कोई फाइनेंसर भी मदद के लिए तैयार नहीं था। चेतन आनंद की पत्नी उमा की एक सहेली ने बताया कि उनके मामा प्रताप सिंह कैरो पंजाब के मुख्यमंत्री हैं, हम उनसे मदद ले सकते हैं । अगले दिन चेतन आनंद मुख्यमंत्री कैरो के सामने थे और मदद की गुहार लगा रहे थे। उन्होंने चेतन को 1962 के चीन युद्ध में पंजाब के शहीद हुए जवान पर फिल्म बनाने का सुझाव दिया । इसके बाद चेतन ने ‘हकीकत’ की कहानी उन्हें सुनाई और मुख्यमंत्री ने पंजाब के वित्त सचिव को आदेश दिया कि इन्हें 10 लाख रुपए का चेक दे दो । कहां वह 25 हजार के लिए तरस रहे थे और मिल गए दस लाख रुपए. ये दिलचस्प किस्सा अनु कपूर के शो ‘सुहाना सफर विद अनु कपूर’ में खुद अनु ने सुनाया था ।
कालजयी साबित हुई युद्ध पर बनी फिल्म
25 हजार की जगह 10 लाख का चैक पाकर चेतन आनंद का ये फिल्म बनाने का सपना हकीकत में बदल चुका था । निर्माता ने भी फिल्म ‘हकीकत’ इतनी शिद्दत के साथ बनाई कि वह फिल्म और गाने आज भी लोगों की आंखें नम कर देते हैं । इस फिल्म से बलराज साहनी, धर्मेन्द्र, विजय आनंद, प्रिया राजवंश, अमजद खान के पिता जयंत, शेख मुख्तार और सुधीर आदि कलाकार अहम भूमिकाओं में नजर आए थे । ‘हकीकत’ एक तरह से बॉलीवुड की पहली युद्ध फिल्म थी. फिल्म में धर्मेंद एक सैनिक की भूमिका में नजर आए थे । इस फिल्म ने न सिर्फ धर्मेंद्र की एक अलग इमेज गढ़ी बल्कि उस समय की चर्चित हीरो राजकपूर, देवआनंद और राजेंद्र कुमार को तगड़ी टक्कर भी दी थी ।

फिल्म के गाने आज भी कर देते हैं आंखें नम
फिल्म के गाने कैफी आजमी ने और संगीत मदन मोहन ने दिया था । साल 1964 में बनी फिल्म ‘हकीकत’ के कई गाने काफी हिट साबित हुए थे. होके मजबूर मुझे उसने भुलाया होगा.., जरा सी आहट होती है तो दिल सोचता है, कहीं वो तुम तो नहीं…, मैं ये सोचकर उसके दर से उठा था, इसके अलावा खासतौर पर इस फिल्म का सबसे लोकप्रिय गाीत साबित हुआ था ‘कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ हुआ था। इस गाने के लिए कैफी साहब ने कहा था कि जब फिल्म खत्म हो जाएगी, उसके बाद ये गीत सिनेमाघरों में बजेगा…
ये गीत था फिल्म की असली जान
कैफी साहब की बात से चेतन बिल्कुल वाकिफ नहीं थे उन्होंने कहा था कि फिल्म खत्म होने के बाद तो दर्शक सिनेमा हॉल से चले जाएंगे, गाना कौन सुनेगा । तब उन्होंने कहा था कि ये गीत ही फिल्म की असली जान है और जब दर्शक घर जाने के लिए खड़े हो जाएंगे, जब हॉल में आवाज गूंजेगी…’कर चले हम फिदा जाने तन साथियों, अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों’ असल में दर्शक उन तमाम शहीदों के सम्मान में खड़े रहेंगे और उन्हें श्रद्धांजलि देंगे ।
बता दें कि जैसा कैफी साहब ने कहा ऐसा ही हुआ फिल्म खत्म होने पर गीत हॉल में गूंजता तो लोगों की आंखें नम हो जाती थीं । आज भी लोग इस गाने को सुनते हैं तो उनकी आंखें नम हो जाती है । कैफी आजमी का ये प्रयोग किसी चमत्कार से कम नहीं था । हिंदी सिनेमा में ऐसा पहली बार हुआ था कि कोई गाना फिल्म खत्म होने के बाद बजता है । चेतन आनंद की इस फिल्म को दूसरी सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म के पुरस्कार से भी नवाजा गया था ।

भारत ही नहीं कई देशों और कई भाषाओं में लिखी गई है रामायण

सबसे प्रतिष्ठित और प्रभावशाली हिंदू महाकाव्यों में से एक, रामायण एक मनोरम कथा है जो दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रेरित और मार्गदर्शन करती रहती है। यह भगवान राम की कहानी, उनके वीरतापूर्ण कारनामे और अपनी प्यारी पत्नी सीता को राक्षस राजा रावण के चंगुल से बचाने की उनकी खोज को बताता है। भगवान राम की वीरतापूर्ण यात्रा की इस कालजयी कहानी को विभिन्न भाषाओं में संजोया और दोहराया गया है, जो इसकी सार्वभौमिक अपील और गहरे प्रभाव को दर्शाती है। आज आपको बताएंगे रामायण को दुनिया भर में कितनी भाषाओं में इसकी प्रस्तुतियां की गई है…

उत्पत्ति और लेखकत्व:-
रामायण की उत्पत्ति का पता प्राचीन भारत में लगाया जा सकता है, पारंपरिक रूप से ऋषि वाल्मिकी को इसके मूल लेखक के रूप में मान्यता दी गई है। हालाँकि, महाकाव्य की स्थायी लोकप्रियता और गहन नैतिक शिक्षाओं ने अनगिनत कवियों और विद्वानों को कहानी को अपने अनूठे तरीकों से दोबारा कहने के लिए प्रेरित किया है। इसके परिणामस्वरूप विभिन्न भाषाओं और सांस्कृतिक संदर्भों में रामायण का उल्लेखनीय प्रसार हुआ है।

विभिन्न प्रकार की प्रस्तुतियाँ:-
विभिन्न क्षेत्रों की सांस्कृतिक बारीकियों और भाषाई स्वादों को ध्यान में रखते हुए, रामायण को कई भाषाओं में लिखा और दोहराया गया है। कुछ प्रमुख संस्करणों में शामिल हैं:

वाल्मिकी रामायण:-
ऋषि वाल्मिकी द्वारा रचित मूल रचना, प्राचीन संस्कृत में लिखी गई, इसका मूल संस्करण बनी हुई है। वाल्मिकी की काव्य प्रतिभा और गहन अंतर्दृष्टि ने बाद के पुनर्कथन के लिए आधार तैयार किया।

तुलसीदास रामायण (रामचरितमानस):-
16वीं सदी के कवि-संत तुलसीदास ने रामचरितमानस को अवधी में लिखा था। यह अपने काव्यात्मक छंदों और भक्ति उत्साह के साथ भक्तों के दिलों में एक विशेष स्थान रखता है।

कम्ब रामायण:-
12वीं शताब्दी में तमिल कवि कंबन द्वारा लिखित, कम्ब रामायण एक उत्कृष्ट तमिल प्रस्तुति है। यह स्थानीय सांस्कृतिक तत्वों को शामिल करते हुए मूल महाकाव्य के सार को खूबसूरती से दर्शाता है।

ऋषि व्यास द्वारा रामायण:-
ऋषि व्यास, जिन्हें महाभारत के संकलन के लिए जाना जाता है, ने संस्कृत में रामायण के एक संस्करण की भी रचना की। उनकी पुनर्कथन महाकाव्य पर विशिष्ट अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण प्रस्तुत करती है।

क्षेत्रीय और वैश्विक प्रभाव:-
रामायण का प्रभाव भारत की सीमाओं से परे कई देशों और संस्कृतियों तक फैला हुआ है। इसका विभिन्न भाषाओं में अनुवाद किया गया है, जिससे इसकी कालजयी शिक्षाओं और मनोरम आख्यानों का प्रसार हुआ है। कुछ उल्लेखनीय उदाहरणों में शामिल हैं:

इंडोनेशिया:-
रामायण, जिसे रामायण काकाविन के नाम से जाना जाता है, इंडोनेशिया में अत्यधिक सांस्कृतिक महत्व रखती है। पुरानी जावानीज़ में लिखी गई, इसने पारंपरिक नृत्य-नाटकों और छाया कठपुतली प्रदर्शनों को प्रेरित किया है।

थाईलैंड:-
थाई रामकियेन रामायण का स्थानीय रूपांतरण है, जो देश के राष्ट्रीय महाकाव्य के रूप में कार्यरत है। इसने थाई और हिंदू-बौद्ध परंपराओं के अनूठे मिश्रण को चित्रित करते हुए थाई साहित्य, कला और प्रदर्शन कला को आकार दिया है।

कंबोडिया:-
रीमकर के रूप में संदर्भित, रामायण का खमेर संस्करण कंबोडिया में अत्यधिक पूजनीय है। इसने कम्बोडियन कला, मूर्तिकला और नृत्य, विशेष रूप से प्रतिष्ठित अप्सरा नृत्य को प्रभावित किया है।

मलेशिया और सिंगापुर:-
रामायण ने मलेशिया और सिंगापुर के सांस्कृतिक ताने-बाने पर अपनी छाप छोड़ी है। मलय रूपांतरण, जिसे हिकायत सेरी राम के नाम से जाना जाता है, ने उनकी साहित्यिक और नाटकीय परंपराओं को समृद्ध किया है।

विरासत:-
कई भाषाओं में रामायण की व्यापक उपस्थिति इसकी स्थायी अपील और सार्वभौमिक विषयों को रेखांकित करती है। यह विविध पृष्ठभूमि के लोगों को प्रेरित करता है, नैतिक मूल्यों को स्थापित करता है, धार्मिकता का पाठ पढ़ाता है और बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाता है। विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों में रामायण की अनुकूलन क्षमता मानव आध्यात्मिकता और सामूहिक मानव अनुभव पर इसके गहरे प्रभाव का प्रमाण है।

ऋषि वाल्मिकी से निकली रामायण ने अपने सार्वभौमिक महत्व को स्थापित करने के लिए भाषाई और सांस्कृतिक बाधाओं को पार किया है। विभिन्न भाषाओं और क्षेत्रों में रामायण के कई संस्करण विभिन्न संस्कृतियों के लोगों के साथ जुड़ने की इसकी क्षमता को प्रदर्शित करते हैं। महाकाव्य की स्थायी विरासत समय और भूगोल से परे, धार्मिकता के मार्ग को प्रेरित करने, मार्गदर्शन करने और रोशन करने की क्षमता में निहित है।
(साभार – न्यूज ट्रैक)

पिता ने उधार पैसे लेकर भेजा ऑस्ट्रेलिया, अरुणा ने पैरा ताइक्वांडो में जीता गोल्ड

लखनऊ । पैरा ताइक्वांडो ओपन चैंपियनशिप-जी4-जी-2 में लखनऊ साई की पैरा खिलाड़ी अरुणा तंवर ने शुक्रवार को गोल्ड जीतकर बड़ी उपलब्धि अपने नाम की है। लखनऊ सेंटर के एनसीओई की अरुणा ने ऑस्ट्रेलिया के ब्रिस्बेन में खेली जा रही चैंपियनशिप में महिला-47 किलोग्राम भार वर्ग में यह कमाल किया है।
अरुणा के मुताबिक, अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में अब उनका अगला टारगेट डब्ल्यूटी प्रेसिडेंट कप ओशिनिया (जी2) और ऑस्ट्रेलिया पैरा ओपन 2023 (जी-1) में भारत के लिए मेडल जीतना है। हालांकि एक ड्राइवर की बेटी अरुणा तंवर का पैरा ताइक्वांडो में यहां तक का सफर आसान नहीं रहा। उन्होंने बताया कि पिता ने उधार रुपयों की व्यवस्था कर ट्रेनिंग के लिए उन्हें यहां भेजा। वहीं, अरुणा तंवर की इस उपलब्धि पर साई लखनऊ सेंटर के वरिष्ठ कार्यकारी निदेशक संजय सारस्वत ने कहा कि अरुणा ने टोक्यो 2020 पैरा ओलिंपिक में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया था और अंतिम आठ में पहुंचने में कामयाब रही थी। अक्टूबर 2023 में चीन के हांगझू में होने वाले पैरा एशियन गेम्स के लिए भी उनका चयन पहले ही हो चुका है।