रेखा। फिल्म अभिनेत्री रेखा। सिर्फ नाम ही काफी है। नाम लेते ही खूबसूरत चेहरा आँखों के सामने आ जाता है। वो रेखा, जिन्हें किस्मत से कुछ भी नहीं मिला। सब मिला मेहनत और लगन से। अपने अविवाहित माँ-पिता की संतान होने के दर्द के साथ ही 10 अक्टूबर यानी आज ही के दिन 1954 को इस धरती पर जन्म लीं। माँ –पिता दोनों ही तमिल फिल्मी दुनिया के थे। इन्होंने भी कई तमिल फिल्में भी कीं। उससे कुछ आगे बढ़ने का ख्वाब लेकर चलने वालीं रेखा ने 1970 में हिंदी फिल्म में कदम रखा। सावन भादो फिल्म से। जहाँ एक मोटी, बदसूरत लड़की दिखी। अगर वही रूप-रंग रह जाता तो रेखा वो रेखा नहीं बन पातीं। लेकिन इस बात को उन्होंने न केवल समझा, महसूस किया बल्कि कारगर साबित किया। योगा और खानपान से जहाँ खुद को इतना खूबसूरत बना लीं, मेकअप कर ऐसा जादू दिखाया जो आज तक बरकरार है। जहाँ भी अगर किसी समारोह में पहुँचतीं हैं तो साड़ी में खूबसूरत सा चेहरा दमकता रहता है। कम उम्र की हीरोइनों में भी इतनी चमक नहीं जितनी 64 उम्र में रेखा के चेहरे पर। और वो भी ऐसा चेहरा जो उन्हें जन्म से नहीं मिला, बल्कि कर्म से मिला। यह इंडस्ट्री किसी भी लड़की को लड़के और प्रेम से बिना जोड़े रह ही नहीं सकता, तो रेखा उससे कैसे छूट सकती थीं। इसलिए जितनी वो खूबसूरत हैं, उतनी ही उनकी प्रेम गाथाएँ हैं। प्रेम गाथाएँ तो भरी पड़ी है, पर सब अधूरी है। हाँ, एक व्यवसायी से शादी जरूर की थीं, पर उस व्यवसायी ने न जाने क्यों आत्महत्या कर लीं। इसलिए यह प्रेम भी उनसे छिन गया। लेकिन वो अपनी चमक और अपनी साज-सज्जा में कोई कमी नहीं की।
ना ही रोनी सूरत बनाकर किस्मत को कोसने लगी। बल्कि अपना कर्म यानी अभिनय करती रहीं, खूबसूरत, दो अंजानें, सिलसिला, उमराव जान, घर-संसार में जहाँ उनकी अदा लोगों को लुभाती हैं, वहीं एक समय बाद कोई मिल गया, क्रिश जैसे फिल्मों में भी उनका अभिनय लोहा मनवा लेता है। अमिताभ बच्चन से अलगाव होने के बावजूद भी टूटन उनके चेहरे पर नहीं दिखी, और वो अपने काम को पूजा मानकर करती रहीं। निगेटिव रोल में भी खिलाड़ियों के खिलाड़ी फिल्म में दिखीं, और वहाँ भी उन्होंने अपना काम बेहतर ढंग से किया। काम के प्रति लगन, मेहनत और समर्पण की वजह से कई पुरस्कार, लाइफ टाइम एचिवमेंट, नेशनल एवार्ड उनकी झोली में है। उन्होंने अपने अकेलेपन को दूर करने के लिए केवल काम का ही सहारा लिया। आज अपने 64वें जन्मदिन पर भी इतनी खूबसूरत दिख रही हैं कि लग रहा है मानों सिलसिला की रेखा ही आजकल बरकरार है। वैसी ही खूबसूरती, वैसा ही प्यार, वैसा ही जादू उनके चेहरे पर आज भी दिखता है। मानों किसी प्यार की रंगत उनके चेहरे पर चढ़ी हुई है और वह खिलखिलाती रहती है ।ना जाने क्यों। नाम एक होने से। या कोई कारण है। मुझे पता नहीं। मेरे मन में उनके प्रति खास आकर्षण रहा है। उनकी खूबसूरत, सिलसिला, दो अंजानें, घर एक मंदिर, घर-संसार, मुकद्दर का सिकंदर, खून भरी मांग, खिलाड़ियों का खिलाड़ी, कोई मिल गया फिल्म कितनी बार देखने के बाद भी आज तक मन नहीं भरा। मन करता है उनकी फिल्मों को देखते ही जाऊँ। एक समय था जब मुझे उनकी फोटो और कलेक्शन को इकट्ठा करने का जुनून था। बांग्ला पत्रिका आनन्दलोक में छपने वाली उनकी जीवनी के लिए पत्रिका खरीदती थी और पढ़ा करती थी। मैं उनकी आत्मकथा को पढते-पढते ही बांग्ला भाषा भी सीख ली। इसकी कुछ प्रतियाँ आज भी पड़ी हो। उनके जीवन के बारे में जितना पढती, जितना जानती, उनको उनका ही पढने, जानने की इच्छा प्रबल हो जाती। उनकी तरह मेहनत करने की इच्छा होती। खूबसूरत दिखने की इच्छा होती। कितने संघर्ष करने के बाद उन्हें कामयाबी मिली। वैसी कामयाबी चाहती। पर उतनी मेहनत नहीं कर पाती। उनकी तरह लक्ष्य निर्धारित नहीं कर पाती हूँ। इसलिए शायद उतनी कामयाबी भी नहीं मिल पा रही है, पर इच्छा जरूर है। मन करता है कि उनकी तरह सुंदर लगूँ, मुस्कुराऊँ, और सारे गिलवे-शिकवे भूलकर जिंदगी को जी लूँ। खुश होकर जी लूँ। सोचती हूँ कि यह जिंदगी तो केवल एक बार ही मिली है, उसे इतने वर्षों तक जैसे-तैसे बिता ली। अब मन करता है कि सदाबहार अभिनेत्री रेखा की तरह रेखा बनूँ। और चेहरे पर मुस्कुराहट, आँखों में प्यार भर कर आगे की काम करते हुए आगे बढ़ती रहूँ। पता नहीं, यह इच्छा पूरी होगी कि नहीं पर इच्छा है कि कुछ ऐसा ही हो और बाकी भरी जिंदगी अच्छे से जी लूँ। मुस्कुराते हुए जी लूँ। वैसे विश यू हैप्पी बर्थ डे रेखा जी।