सौहार्द की जिम्मेदारी किसी एक की नहीं, सबकी है

बंगाल की राजनीति इन दिनों राम के नाम पर चल रही है और सरकारी सहिष्णुता का एक नया चेहरा सामने आ रहा है। धर्मनिरपेक्ष और बौद्धिक बंगाल में राम के नाम पर बवाल हो रहा है और राज्य की मुखिया हिन्दीभाषियों के खिलाफ जितना गुबार था, सब अपशब्दों में बहा रही हैं। संविधान ने सबको धार्मिक स्वतन्त्रता का अधिकार दिया है और जय श्री राम का नारा भी नया नहीं है। याद रखने वाली बात है कि 1992 में जब बाबरी मस्जिद प्रकरण हुआ तब यहाँ वाममोर्चा की सरकार थी मगर इस तरह की नौबत तब नहीं आयी थी। भाजपा के सहारे जब ममता सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ीं तब भी जय श्री राम के नारे लगते थे, तब भी उनको परहेज नहीं हुआ मगर आज है क्योंकि वर्चस्व टूटता नजर आ रहा है। इस पूरे प्रकरण में जो बात सबसे दुःखद है, वह है इस राज्य में बंगाली और गैर बंगाली का विभाजन, दीदी..आज यही कर रही हैं और इसी पर राजनीतिक रोटियाँ सेंकी जा रही हैं। अगर यह विवाद और गहराता है तो बंगाल में गृह युद्ध की स्थिति आ सकती है और तब केन्द्र को हस्तक्षेप करना पड़ सकता है। दिक्कत यह है कि भाषा और संस्कृति को आधार बनाकर हिन्दीभाषी समाज को अलगाने की जो कोशिश की जा रही है, उसे बुद्धिजीवियों के एक वर्ग का समर्थन भी मिल रहा है। यही विडम्बना है कि इस समाज का बुद्धिजीवी वर्ग अपने हितों को पहले देखता रहा है, वह सत्ता के खिलाफ कभी खड़ा नहीं होता मगर प्रतिरोध करने वालों के सामने बाधक वही हैं। आश्चर्य की बात यह है कि जो ममता अलग राज्यों के मामले में मदद करने की बात घोषणापत्र में करती हैं, उनको दार्जिलिंग के अलग होने से तकलीफ है। दरअसल, यह तकलीफ वर्चस्व की है और यह समय है कि यह तय हो कि बंगाल इस देश का हिस्सा है या वह अलग ही किसी देश के रूप में स्वीकृत होता जा रहा है? यह प्रश्न जातीयता और राष्ट्रीयता के टकराव का भी है। क्या जातीय चेतना इस कदर हावी होने की इजाजत है कि देश पीछे छूट जाये..आखिर अपने ही देश में दोयम दर्जे का नागरिक क्यों बनें..यूपी, बिहार व झारखंड के लोग…स्थिति और विकट हो सकती है मगर सम्भव है कि इसी से कोई रास्ता निकले..यही वह बंगाल है जिसने हिन्दी प्रदेश को उर्वर किया…आखिर क्या वजह है कि जातीयता के नाम पर हम संकुचित होते जाए..क्या होगा जब हिन्दी प्रदेशों में भी इस तरह की आवाजें उठने लगें…दोनों ही सूरतें गलत है…हमें अब रुककर सोचने की जरूरत है कि हम कहाँ जा रहे हैं..और कहाँ पहुँचेंगे…तुष्टीकरण की राजनीति ने ही यह हाल किया है और इसे रोका न गया तो स्थिति और विकट होगी इसलिए समस्या के तूल पकड़ने के पहले समाधान खोजना होगा क्योंकि सौहार्द की जिम्मेदारी किसी एक की नहीं, हम सबकी है।

शुभजिता

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