आतंक के खिलाफ है हमारे देश की जंग, पाक की जनता और मीडिया भी साथ आए

यह समय बहुत नाजुक और बहुत हद तक निर्णायक है। आतंक के खिलाफ एक निर्णायक लड़ाई की शुरुआत है। आज का दिन खास है क्योंकि हमारे अभिनन्दन लौट रहे हैं। पुलवामा के बाद भारतीय वायु सेना ने जो पराक्रम दिखाया, वह हमारे लिए गर्व का विषय है मगर इसके साथ ही हमें सजग रहने की भी जरूरत है। 350 आतंकी मार गिराए गए हैं मगर सबसे ज्यादा जरूरी है कि आतंक की जड़ें जहाँ हैं, उनको खोज निकाला जाए और खत्म किया जाए। इस काम में अब पाकिस्तान की जनता को मदद करनी होगी, पाक मीडिया को आगे आने होगा। अब शुक्रगुजार हैं कि अभिनन्दन के मामले में उन्होंने अपनी सरकार पर दबाव बनाया मगर शांति प्रक्रिया तब तक पूरी नहीं हो सकती जब तक आपकी सरकार और सेना आतंकवाद को अपना प्रश्रय देना बंद नहीं करती। अगर आप यह कदम पहले उठाते तो शायद हमारे रिश्ते इतने तल्ख नहीं होते और न ही दोनों देशों के इतने जवान शहीद होते। अब जरूरी है कि पाकिस्तान की जनता भी अपना हस्तक्षेप जारी रखे। एक जंग हम लड़ रहे हैं, अपने मुल्क दहशतगर्दी को रोकने के लिए आप भी कदम बढ़ाइए। हमने आतंकी ठिकानों पर हमला बोला, पाक ने हमारे सैन्य ठिकानों पर हमला किया। युद्ध की तरह पत्रकारिता के भी कुछ मूल्य होते हैं। भारत ने कभी युद्ध नहीं चाहा,इस बार भी नहीं चाहता मगर जब आपके जवानों की जान निरन्तर जाती रहे, आतंकी हमले होते रहें, बातचीत के बावजूद आतंकियों को पनाह दी जाती रहे तो एक सशक्त राजनीतिक हस्तक्षेप जरूरी होता है। अगर ऐसा न किया जाए तो न सिर्फ आपका दुश्मन आपको हल्के में लेने लगता है बल्कि सेना का मनोबल भी टूटता है। आखिर ये जवान किसके लिए अपनी जान दाँव पर लगा रहे हैं, हमारे और आपके लिए, तो जरूरी है कि एक बार उनके बारे में सोचा जाए।
पाक सेना की जिद और गुरूर का नतीजा पाकिस्तान की आम जनता को झेलना पड़ रहा है। अभी पाक सेना शांति की बात कर रही है मगर इस स्थिति के लिए जिम्मेदार कौन है? पाक सरकार और सेना, दोनों से यह प्रश्न है कि आपने हाफिज सईद, मसूद अजहर और दाउद जैसे न जाने कितने दहशतगर्दों को पनाह दी, उससे आपको हासिल क्या हुआ? क्या वे आपके लिए इतने महत्वपूर्ण हैं कि आप अपनी जनता की जरूरतों को भी भूल जाएं? इमरान खान खुद खेल की दुनिया में रह चुके हैं, वह खुद जानते हैं कि भारत में उनके खेल के कितने प्रशंसक हैं,फिर वह उसी खतरनाक रास्ते पर क्यों चल रहे हैं? ये कैसी मैत्री है कि एक तरफ आप ऐटम बम गिराने की धमकी दे रहे हैं और दूसरी तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ा रहे हैं और दूसरी तरफ हमारी सीमा पर गोली और बम चलवा रहे हैं। आखिर आप पर कैसे भरोसा किया जाए जबकि आपने हर बार धोखा ही दिया है। कभी कन्धार, कभी संसद हमला, कभी 26 नवम्बर, कभी उड़ी, कभी पठानकोठ और अब पुलवामा। पहले खुद को इस लायक तो बनाइए कि आप पर विश्वास करने की वजह बने। हमारा देश शांति का देश है, युद्ध नहीं चाहते हम मगर आपको भी यह सुनिश्चित करना होगा कि आप अपने देश और जनता की खुशहाली चुनते हैं या उन आतंकियों को, जो आज आपके मुल्क की दुर्दशा का कारण बन रहे हैं। इमरान खान तय करें कि उनकी जवाबदेही अपनी जनता के प्रति है कि मसूद अजहर और हाफिज जैसे आतंकियों के प्रति..जब तक इस सवाल का जवाब हमारा पड़ोसी मुल्क नहीं खोज लेता और सही उत्तर नहीं खोज लेता…वह कभी आगे नहीं बढ़ सकता। इतिहास को एक अच्छी दिशा में मोड़ना इस वक्त इमरान खान के हाथ में है।
एक सवाल हमारे देश में बैठे पाक परस्त लेखकों, बुद्धिजीवियों और पत्रकारों से है कि आखिर राष्ट्र से प्रेम करना अन्ध भक्ति कैसी हो सकती है? आखिर आपको मानवता और शांति जैसे शब्द आतंकियों, अलगाववादियों के मरने पर ही क्यों याद आते हैं? वायु सेना की एयर स्ट्राइक के बाद इनके चेहरे पर किसी प्रकार की खुशी नहीं दिखी बल्कि वे सवाल ही उठाते रहे?
हमारे अनुभव यही कहते हैं कि पााकिस्तान पर भरोसा नहीं किया जा सकता। इस समय ठहरकर सभी को यह सोचने की जरूरत है कि कहीं आपसी और निजी हित राष्ट्रहित पर भारी तो नहीं पड़ रहे? इसका सबूत है कि रक्षा मंत्रालय और सेना के अनुरोध के बावजूद सोशल मीडिया पर धड़ल्ले से विंग कमाण्डर की तस्वीरें शेयर की जाती रहीं। देश हित में कम, अपने मत स्थापित करने के लिए बातें की जा रहीं। जिन बातों को गोपनीय रखना था, वे सब अखबारों में छापे गए और थोड़े दिन की शांति के बाद विपक्ष ने हमला बोल दिया। हम मानते हैं कि लोकतन्त्र में प्रश्न करने का अधिकार सभी को है मगर यह भी सच है कि यह समय हमारे साथ खड़े रहने का है, एक दूसरे पर उँगली उठाने के लिए भी हमारा सुरक्षित होना जरूरी है। इस पूरे प्रकरण में महिला सशक्तीकरण का नया रूप दिखा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के अतिरिक्त विदेश मंत्री सुषमा स्वराज तथा रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने जिस तरीके से स्थिति सम्भाली, वह महिला सशक्तीकरण की नयी परिभाषा रचती है। हमें इसी परिभाषा की जरूरत है। बहरहाल हमारे देश में कुछ दिन में ही चुनाव घोषित होने जा रहे हैं। एक सजग नागरिक बनकर सही फैसला लेने की बारी आपकी है।

शुभजिता

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