Thursday, December 18, 2025
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सुरेश रैना और शिखर धवन की 11.14 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्‍त

-ईडी ने अवैध सट्टेबाजी ऐप मामले में कार्रवाई
नयी दिल्‍ली। प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने कथित अवैध सट्टेबाजी ऐप के संचालन से जुड़े धन शोधन मामले की जांच के सिलसिले में पूर्व क्रिकेटर सुरेश रैना और शिखर धवन की 11.14 करोड़ रुपये की संपत्तियां जब्‍त की हैं। केंद्रीय जांच एजेंसी ने गुरुवार को बताया कि धन शोधन निवारण अधिनियम (पीएमएलए) के तहत शिखर धवन की 4.50 करोड़ रुपये की अचल-संपत्ति और सुरेश रैना के 6.64 करोड़ रुपये के म्यूचुअल फंड निवेश को जब्‍त कर लिया गया है। ईडी को जांच में पता चला है कि दोनों पूर्व क्रिकेटरों ने विदेशी कंपनियों के साथ कॉन्ट्रैक्ट कर अवैध सट्टेबाजी प्लेटफॉर्म 1 एक्स बेट को प्रमोट किया। ईडी का दावा है कि रैना और धवन ने इस एप के जरिए सट्टेबाजी में शामिल होकर अवैध रूप से संपत्ति अर्जित की थी। ईडी ने ऑनलाइन सट्टेबाजी साइट ‘1एक्सबेट’ के मामले में अपनी जांच के तहत युवराज सिंह, सुरेश रैना, रॉबिन उथप्पा और शिखर धवन जैसे क्रिकेटरों और अभिनेता सोनू सूद, मिमी चक्रवर्ती (पूर्व तृणमूल सांसद) और अंकुश हाजरा (बांग्ला सिनेमा) से पूछताछ की थी। इसके अलावा कुछ सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर से भी पूछताछ की गई थी और इनके बयान भी दर्ज किए थे। ईडी ने बताया कि इन दोनों खिलाड़ियों ने वनएक्सबेट और उससे जुड़े सरोगेट ब्रांड्स का जानबूझकर प्रचार किया, जिससे भारत में अवैध सट्टेबाजी को बढ़ावा मिला। इसके साथ ही खिलाड़ियों ने विदेशी कंपनियों के साथ प्रचार अनुबंध किए और उनका भुगतान विदेशी माध्यमों की मदद से लेयर ट्रांजैक्शन के जरिए कराया। अवैध फंड्स की असल पहचान भी छिपाई गई।ईडी ने 1 हजार करोड़ के मनी लॉन्ड्रिंग के एक मामले का खुलासा किया है। इसमें 6,000 से ज्यादा म्यूचुअल खाते और कई असत्यापित भुगतान गेटवे शामिल हैं। ईडी ने अब तक 4 करोड़ रुपए से ज्यादा की धनराशि और 60 बैंक खाते फ्रीज कर दिए हैं। फिलहाल आगे की जांच जारी है।

भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने पहली बार जीता विश्व कप

-52 साल बाद रचा इतिहास
नयी दिल्ली । भारतीय महिला क्रिकेट टीम ने रविवार को फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 52 रन से हराकर पहली बार वर्ल्ड कप का खिताब अपने नाम किया। यह जीत 52 साल के लंबे इंतजार के बाद मिली है। नवी मुंबई के डीवाई पाटिल स्टेडियम में खेले गए फाइनल मुकाबले में हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में टीम इंडिया ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रन से हराकर अपना पहला आईसीसी महिला वनडे विश्व कप खिताब जीत लिया। भारत की इस ऐतिहासिक जीत के बाद पूरे देश में खुशी की लहर दौड़ गई है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह समेत कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों और नेताओं ने टीम इंडिया को बधाई दी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर पोस्ट करते हुए लिखा, “आईसीसी महिला क्रिकेट विश्व कप 2025 के फाइनल में भारतीय टीम की शानदार जीत! फाइनल में उनका प्रदर्शन अद्भुत कौशल और आत्मविश्वास से भरा रहा। टीम ने पूरे टूर्नामेंट में असाधारण टीम वर्क और दृढ़ता दिखाई। हमारी खिलाड़ियों को हार्दिक बधाई। यह ऐतिहासिक जीत भविष्य की चैंपियन खिलाड़ियों को खेलों में भाग लेने के लिए प्रेरित करेगी।” गृह मंत्री अमित शाह ने अपनी बधाई संदेश में कहा, “विश्व विजेता टीम इंडिया को सलाम! यह राष्ट्र के लिए गर्व का क्षण है, जब हमारी बेटियों ने आईसीसी महिला विश्व कप 2025 अपने नाम किया है। देशभर में जश्न का माहौल है और यह ऐतिहासिक जीत अब आने वाली पीढ़ी के लिए प्रेरणा का प्रतीक बन चुकी है।

भारत की जीत पर भावुक हो गयीं झूलन, मिताली व अंजुम

कोलकाता । भारत ने महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहला आईसीसी खिताब जीत लिया। हरमनप्रीत कौर की अगुआई वाली टीम इंडिया ने डीवाई पाटिल स्टेडियम में इतिहास रचते हुए महिला वनडे क्रिकेट की नई विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। 2005 और 2017 में फाइनल में हार झेल चुकी भारतीय टीम ने आखिरकार सपना पूरा कर दिखाया। इस जीत ने देशभर के करोड़ों क्रिकेट प्रेमियों को भावुक कर दिया और महिला क्रिकेट में एक नए युग की शुरुआत की है। वर्ल्ड कप भले ही हरमनप्रीत कौर की कप्तानी में आया है, लेकिन इसके पीछे दशकों का संघर्ष छिपा है। झूलन गोस्वामी, मिताली राज और अंजुम चोपड़ा जैसी दिग्गजों ने अपनी मेहनत से इसकी नींव रखी थी। रविवार को जब भारत चैंपियन बना, तो ये पूर्व खिलाड़ी खुशी के आंसुओं को रोक नहीं पाईं। ट्रॉफी प्रेजेंटेशन के बाद खिलाड़ियों ने मैदान का लैप ऑफ ऑनर लिया। इसी दौरान कमेंट्री बॉक्स में मौजूद झूलन गोस्वामी, मिताली राज और अंजुम चोपड़ा से भारतीय टीम मिली। जश्न में इन तीनों को शामिल किया गया और ट्रॉफी उठाने का सम्मान भी उन्हें सौंपा गया।कप्तान हरमनप्रीत कौर ने जब ट्रॉफी झूलन गोस्वामी को थमाई, तो वह भावुक हो गईं। झूलन की आंखों से आंसू छलक पड़े और वे लंबे समय तक हरमनप्रीत को गले लगाकर रोती रहीं। जीत के बाद झूलन ने एक्स पर लिखा, ‘यह मेरा सपना था, और तुमने इसे सच कर दिखाया। कप अब घर आ गया है।’ झूलन ने आगे खुलासा किया कि स्मृति मंधाना और हरमनप्रीत कौर ने उनसे खास वादा किया था। उन्होंने कहा, ‘वर्ल्ड कप से पहले स्मृति और हरमन ने मुझसे कहा था कि हम यह कप आपके लिए जीतेंगे। पिछले साल 2022 में हम सेमीफाइनल तक नहीं पहुंच पाए थे, लेकिन इस बार जरूर जीतेंगे। आधी रात को वे मेरे कमरे में आईं और बोलीं, हमें नहीं पता अगली बार आप रहेंगी या नहीं, लेकिन हम आपके लिए ट्रॉफी लाएंगे। आज उन्होंने वादा निभाया, इसलिए मैं भावनाओं को काबू नहीं कर पाई।’

गुमनाम नायक हैं भारतीय महिलाओं को विश्व विजेता बनाने वाले अमोल मजुमदार

मुम्बई । महिला क्रिकेट वर्ल्ड कप 2025 के फाइनल में भारत ने दक्षिण अफ्रीका को 52 रनों से हराकर पहली बार खिताब अपने नाम किया। हरमनप्रीत कौर की अगुआई वाली टीम इंडिया ने लगातार तीन मैच हारने के बाद टूर्नामेंट में शानदार वापसी की और इतिहास रचते हुए महिला वनडे क्रिकेट की नई विश्व चैंपियन बनने का गौरव हासिल किया। इस जीत का एक ‘साइलेंट हीरो’ भी है, जो पर्दे के पीछे से लगातार भारतीय महिला टीम को सपोर्ट कर रहा था और उन्हें इस काबिल बनाया कि वह इस बड़े टूर्नामेंट को जीत सकें। यह और कोई नहीं बल्कि टीम के हेड कोच अमोल मजूमदार हैं। मजूमदार भारत के उन चुनिंदा क्रिकेटरों में से एक हैं, जो बेहद टेलेंटेड होने के बावजूद भारत के लिए अभी नहीं खेल पाये। मजूमदार कहते हैं कि वे ‘गलत दौर’ में पैदा हुए थे, जब भारतीय टीम में सचिन तेंदुलकर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली और वीवीएस लक्ष्मण जैसे दिग्गज मौजूद थे। फर्स्ट क्लास क्रिकेट में 11 हज़ार से अधिक रन बनाने के बावजूद उन्हें कभी भारतीय सीनियर टीम की जर्सी नहीं मिली। छोटे कद के दाएं हाथ के बल्लेबाज मजूमदार अपनी ताकत की बजाय बेहतरीन टाइमिंग के लिए मशहूर थे। अमोल की प्रतिभा बचपन से ही झलकती थी। शारदाश्रम इंग्लिश स्कूल की टीम में खेलते हुए, जब सचिन तेंदुलकर और विनोद कांबली ने 664 रनों की विश्व ऐतिहासिक साझेदारी की थी, तब अगले बल्लेबाज के रूप में पैड पहनकर पवेलियन में मजूमदार ही बैठे थे। उस दिन उन्हें बल्लेबाजी का मौका नहीं मिला, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी बल्लेबाजी से सभी का दिल जीत लिया। 1993-94 सीजन में रणजी ट्रॉफी डेब्यू किया और हरियाणा के खिलाफ प्री-क्वार्टर फाइनल में नाबाद 260 रन ठोके। यह उनके करियर की सर्वश्रेष्ठ पारी साबित हुई। इसके बाद वे ‘बॉम्बे स्कूल ऑफ बैट्समैनशिप’ की अगली बड़ी उम्मीद बन गए। शुरुआती दिनों में उन्हें ‘भविष्य का तेंदुलकर’ तक कहा जाने लगा। 1994 में भारत अंडर-19 टीम के उप-कप्तान बने और सौरव गांगुली आर राहुल द्रविड़ के साथ इंडिया ए में शानदार प्रदर्शन किया। घरेलू क्रिकेट में लगातार रन बनाने के बावजूद सीनियर टीम में जगह नहीं मिली। 2006-07 सीजन में मुंबई टीम की कप्तानी मिली। खराब शुरुआत के बावजूद टीम को चैंपियन बनाया और सर्वाधिक रनों का अशोक मांकड़ का रिकॉर्ड तोड़ा। अगस्त 2009 में बुच्ची बाबू टूर्नामेंट के लिए चयन न होने पर मुंबई छोड़ दी और असम के लिए खेलने लगे। इसके बाद पांच साल तक असम और आंध्र प्रदेश के लिए प्रोफेशनल क्रिकेटर रहे। 2014 में फर्स्ट क्लास क्रिकेट से संन्यास लिया। संन्यास के बाद कोचिंग में कदम रखा। भारत अंडर-19 और अंडर-23 टीमों के बल्लेबाजी कोच, नीदरलैंड्स क्रिकेट टीम के सलाहकार, आईपीएल में राजस्थान रॉयल्स के बल्लेबाजी कोच और दक्षिण अफ्रीका राष्ट्रीय टीम (भारत दौरे पर) को कोचिंग दी। मुंबई टीम के मुख्य कोच भी बने। 2023 में भारतीय महिला राष्ट्रीय टीम के हेड कोच नियुक्त हुए। उनके नेतृत्व में फोकस रहा: सख्त फिटनेस रूटीन, माइंडसेट ट्रेनिंग, आक्रामक-आधुनिक रणनीति और घरेलू टैलेंट को निखारना। यही फॉर्मूला विश्व कप जीत की नींव बना। अमोल मजुमदार ने 171 फर्स्‍ट क्‍लास मैचों की 260 पारियों में 48.13 की बेहतरीन औसत से 11167 रन बनाए हैं। इस दौरान उन्होंने 60 अर्धशतक और 30 शतक ठोके। वहीं, लिस्‍ट ए में मजूमदार ने 113 मैचों की 106 पारियों में 38.20 की औसत से 3286 रन बनाए हैं। इस दौरान उन्होंने तीन शतक और 26 अर्धशतक लगाए हैं। टी20 क्रिकेट उन्होंने ज्यादा नहीं खेला। 14 टी20 मैचों की 13 पारियों में मजूमदार ने 19.33 की औसत से 174 रन बनाए। इस दौरान उन्होंने एक अर्धशतक लगाया।

महिला विश्व कप : वो लड़कियां, जिन्होंने भारतीय महिलाओं के सपनों को आकाश दिया

आईसीसी महिला विश्व कप जीतकर भारत की बेटियों ने इतिहास रच दिया है। भारतीय कप्‍तान हरमनप्रीत कौर से लेकर शैफाली वर्मा तक, इन सभी विश्‍व विजेताओं ने जोश, जज्‍बे और जुनून के साथ देश का मान बढ़ाया है। भारतीय महिला टीम के पहली बार इस खिताब के जीतने पर महिला क्रिकेट को बढ़ावा मिलने की उम्‍मीद जताई जा रही है। लेकिन, क्‍या आप जानते हैं कि ये बेटियां कैसे घर की दहलीज, सामाजिक और आर्थिक तंगी समेत कितनी बाधाओं को पार कर यहां तक पहुंची हैं। आइये आज आपको इन 16 विश्‍व विजेतओं के सफर के दिलचस्‍प किस्‍से बताते हैं।

लड़कों के खिलाफ खेला करती थीं हरमनप्रीत कौर
भारतीय महिला क्रिकेट टीम की कप्‍तान हरमनप्रीत कौर को कपिल देव की तरह विश्‍व विजेता कप्‍तान के तौर जाना जाएगा। उन्‍हें 2017 विश्व कप सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 171* रनों की पारी के लिए भी याद किया जाता है। हालांकि, उनकी यही एक बड़ी पारी नहीं है। पंजाब के मोगा की इस खिलाड़ी ने हमेशा बड़े मौके अपना सर्वश्रेष्‍ठ दिया है। उनका पहला वनडे शतक 2013 में इंग्लैंड के खिलाफ आया था।
वह 2018 के टी20 विश्व कप में भी शतक लगा चुकी हैं। ये उपलब्धि हासिल करने वाली वह पहली भारतीय महिला खिलाड़ी हैं। उनके पिता हरमंदर भुल्लर चाहते थे कि उनके बच्चों में से कोई एक खेल में शामिल हो और जब हरमनप्रीत का जन्म हुआ तो उन्होंने एक टी-शर्ट खरीदी जिस पर ‘अच्छा बल्लेबाज’ लिखा था, जो भविष्यसूचक साबित हुई। हरमनप्रीत अपने पिता के साथ घर के सामने वाले स्टेडियम में स्थानीय लड़कों के साथ क्रिकेट खेलती थीं।
स्मृति मंधाना ने 9 साल की उम्र में किया राज्य स्तर पर डेब्‍यू
महाराष्ट्र के सांगली के एक क्रिकेट प्रेमी परिवार में जन्मी स्मृति मंधाना की इस खेल में रुचि तब जागी, जब उन्होंने अपने भाई श्रवण को अंडर-16 स्तर पर महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व करते देखा। बाएं हाथ की इस खिलाड़ी ने 9 साल की उम्र में राज्य स्तर पर डेब्‍यू किया और 16 की उम्र में अप्रैल 2013 में बांग्लादेश के खिलाफ भारत के लिए पहला मैच खेला। 2016 में मंधाना होबार्ट में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना पहला वनडे शतक लगाकर सीमित ओवर के फॉर्मेट में एक विश्वसनीय सलामी बल्लेबाज बन गईं।
उन्होंने अगले दशक में कई उपलब्धियां हासिल कीं, जिनमें वनडे में नंबर 1 बल्लेबाज का दर्जा भी शामिल है। जुलाई 2022 में उन्हें भारत की एकदिवसीय टीम की उप-कप्तान नियुक्त किया गया और इस अतिरिक्त ज़िम्मेदारी ने उन्हें एक खिलाड़ी के रूप में और भी बेहतर बना दिया है। स्मृति सर्वाधिक महिला वनडे में शतकों के मेग लैनिंग के रिकॉर्ड से केवल एक शतक (14) पीछे हैं।
महाराष्ट्र के लिए हॉकी भी खेल चुकी हैं जेमिमा रोड्रिग्स
2017-18 के बीसीसीआई पुरस्कारों में जूनियर घरेलू वर्ग में सर्वश्रेष्ठ महिला क्रिकेटर चुने के बाद मुंबई की जेमिमा रोड्रिग्स पहली बार सुर्खियों में आईं। रोड्रिग्स ने 17 साल की उम्र में वडोदरा में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वनडे में भारत के लिए डेब्‍यू किया था। बल्लेबाजी क्रम में ऊपर-नीचे होने के बावजूद 25 वर्षीय इस खिलाड़ी ने किसी भी क्रम पर ढलने की क्षमता दिखाई है। रोड्रिग्स की एक बड़ी खूबी यह है कि वह पहले या दूसरे क्रम की टीम पर अनावश्यक दबाव डाले बिना अपनी पारी की गति को नियंत्रित कर पाती हैं। एक बल्लेबाज के रूप में अपनी प्रसिद्ध प्रतिष्ठा के बावजूद उनके व्यक्तित्व का एक और पहलू उनकी जबरदस्त मानसिक शक्ति है। उन्होंने इंग्लैंड के खिलाफ मैच में बाहर होने के बाद वापसी करते हुए ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ सेमीफाइनल में 134 गेंदों पर नाबाद 127 रन बनाकर भारत को फाइनल में पहुंचाया था। जेमिमा रोड्रिग्स ने अंडर-17 स्तर पर फील्ड हॉकी में महाराष्ट्र का प्रतिनिधित्व किया था।
उत्तर प्रदेश के आगरा की ऑलराउंडर दीप्ति शर्मा का सफर एक थ्रो से शुरू हुआ। वह बचपन में अपने भाई सुमित के साथ स्‍टेडियम में जाया करती थीं। एक बार दीप्ति ने अपनी ओर आती गेंद उठाई और उसे गोली की तरह वापस फेंक दिया। ये थ्रो पूर्व भारतीय खिलाड़ी हेमलता काला की नजर में आ गई और वह क्रिकेट की दुनिया में आ गईं। 17 साल की उम्र में उन्‍होंने भारत के लिए डेब्‍यू किया। उनके भाई सुमित ने एक दशक पहले दीप्ति को पूर्णकालिक प्रशिक्षण देने के लिए अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी थी। वह वनडे क्रिकेट में 150 विकेट पूरे कर चुकी हैं और भारतीयों में केवल झूलन गोस्वामी से पीछे हैं। अपने करियर के शुरुआती दिनों में शीर्ष क्रम में बल्लेबाजी करने के बाद उन्होंने निचले क्रम में अपनी पहचान बनाई है। दीप्ति शर्मा का वनडे में सर्वोच्च स्कोर 188 है, जो किसी भारतीय महिला खिलाड़ी का सर्वश्रेष्ठ स्कोर है। यह स्कोर उन्होंने 2017 में आयरलैंड के खिलाफ बनाया था।ऋचा घोष को टेनिस प्‍लेयर बनाना चाहते थे पिता
पश्चिम बंगाल के सिलीगुड़ी की विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋचा घोष के पिता मानबेंद्र घोष ने उन्‍हें हमेशा पावर हिटर बनने के लिए प्रेरित किया। जहां कोच उसकी बुनियादी बातों पर ध्यान केंद्रित करते थे, वहीं मानबेंद्र ने ऋचा को चौके-छक्के लगाने का प्रशिक्षण लेने के लिए प्रोत्साहित किया। भले ही इसके लिए उनके घर की कुछ खिड़कियां टूटी हुई थीं। पिता पहले चाहते थे कि ऋचा टेबल टेनिस खेले, लेकिन ऋचा ने क्रिकेट पर ज़ोर दिया और बाघाजतिन एथलेटिक क्लब में दाखिला लेने वाली पहली लड़की बनीं। जहां से कोलकाता सर्किट पर पुरुष क्रिकेटरों के साथ उनका सफ़र शुरू हुआ। ऋचा के सफ़र में मदद करने के लिए पिता ने सिलीगुड़ी में अपना व्यवसाय बंद कर दिया और कोलकाता की यात्राओं पर उनके साथ जाने लगे। डब्ल्यूपीएल में रॉयल चैलेंजर्स बेंगलुरु में शामिल होने के बाद से उनकी पावर-हिटिंग में एक-दो पायदान का सुधार हुआ है। ऋचा घोष ने 16 साल की उम्र में अपना टी20I डेब्यू किया था।

हरलीन देओल को चंडीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा
हरलीन देओल ने हिमाचल प्रदेश में जूनियर क्रिकेट में एक कुशल बल्लेबाज और उपयोगी ऑफ-ब्रेक गेंदबाज के रूप में अपनी पहचान बनाई है। हालांकि, सुविधाओं की कमी और अविकसित क्रिकेट संस्कृति के कारण उन्हें चंडीगढ़ शिफ्ट होना पड़ा, जो उनके लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। उन्होंने सबसे पहले महिला टी20 चैलेंज में अपने प्रदर्शन से सुर्खियां बटोरीं और इसी प्रदर्शन के दम पर उन्हें 2019 में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय श्रृंखला के लिए टीम में शामिल किया गया। उनके लिए यादगार पल 2021 में आया, जब उन्होंने अपनी फील्डिंग के लिए सुर्खियां बटोरीं।

नॉर्थम्प्टन में इंग्लैंड के खिलाफ एकदिवसीय मैच खेलते हुए उन्होंने लॉन्ग-ऑफ बाउंड्री पर एक बेहतरीन कैच लपका, जहां उन्होंने अपनी सूझबूझ का इस्तेमाल करते हुए गेंद को समय पर बाउंड्री के अंदर पहुंचाया और फिर कैच लेने के लिए मैदान में वापस आ गईं। हाल ही में देओल को टीम में कुछ स्थिरता मिली और उन्होंने टूर्नामेंट की शुरुआत तीसरे नंबर के बल्लेबाज के रूप में की। इंग्लैंड में देओल के शानदार कैच को ईएसपीएन स्पोर्ट्स सेंटर पर दिखाया गया था और इंस्टाग्राम पर इस पोस्ट को 10 लाख से ज्‍यादा लाइक्स मिले।

प्रतिका रावल जिमखाना में प्रशिक्षण लेने वाली पहली लड़की
दिल्‍ली की सलामी बल्‍लेबाज प्रतिका रावल रोहतक रोड जिमखाना में प्रशिक्षण लेने वाली पहली लड़की हैं। जहां आज 30 लडकियां प्रशिक्षण ले रही हैं। उनके पिता प्रदीप रावल खुद क्रिकेट में रुचि रखते थे और बीसीसीआई-प्रमाणित अंपायर हैं। उन्‍होंने पहले ही तय कर लिया था कि वह अपनी पहली संतान को एथलीट बनाएंगे। प्रतिका मॉडर्न स्कूल में बास्केटबॉल में भी पारंगत थीं। लेकिन 9 साल की उम्र में उन्होंने तय कर लिया था कि क्रिकेट ही उनका रास्ता होगा। हालांकि लॉकडाउन के कारण भारतीय टीम में उनकी प्रगति में देरी हुई, लेकिन उन्होंने प्रदीप के साथ उनकी इमारत की छत पर अस्थायी नेट पर अभ्यास किया। प्रतिका एक मेधावी छात्रा भी रही हैं। उन्‍होंने 10वीं और 12वीं बोर्ड परीक्षाओं में 92 प्रतिशत से ज़्यादा अंक प्राप्त किए। वह मनोविज्ञान में स्नातक भी हैं। शैफाली वर्मा की जगह वनडे टीम में चुने जाने के बाद उन्होंने स्मृति मंधाना के साथ कम समय में ही शानदार ओपनिंग जोड़ी बनाई, हालांकि सेमीफाइनल से पहले चोट लगने के कारण उनका विश्व कप अभियान समाप्त हो गया। प्रतिका के नाम महिला वनडे में सबसे तेज़ 1,000 रन बनाने का रिकॉर्ड है।

धोनी और हरमन को अपना आदर्श मानती हैं उमा छेत्री
असम के गोलाघाट की रहने वाली विकेटकीपर-बल्लेबाज उमा छेत्री बचपन से ही एमएस धोनी और हरमनप्रीत कौर को अपना आदर्श मानती हैं। छेत्री 2025 महिला विश्व कप टीम में भारत के पूर्वोत्तर से एकमात्र खिलाड़ी हैं और जहां तक देश के उस हिस्से में महिला खेल के भविष्य का सवाल है, वे पूरे क्षेत्र की उम्मीदों का प्रतिनिधित्व करती हैं। मूल रूप से रिजर्व के रूप में चुनी गईं छेत्री को यस्तिका भाटिया के चोटिल होने के बाद टूर्नामेंट से बाहर होने के बाद भारतीय टीम में शामिल किया गया। दरअसल, पहली पसंद की विकेटकीपर-बल्लेबाज ऋचा घोष को लगी एक और चोट ने छेत्री के लिए इस विश्व कप में बांग्लादेश के खिलाफ वनडे में पदार्पण का रास्ता साफ किया। छेत्री ने भारत के लिए जुलाई 2024 में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ टी20 अंतरराष्ट्रीय में पदार्पण किया था।

क्रांति गौड़ ने टेनिस-बॉल मैचों से बनाई पहचान
मध्य प्रदेश के छतरपुर ज़िला मुख्यालय से दो घंटे की ड्राइव पर स्थित घुवारा में क्रिकेट प्रशिक्षण की कोई सुविधा नहीं है। लेकिन, एक पूर्व पुलिस कांस्टेबल की बेटी क्रांति गौड़ वहां के एकमात्र मैदान में टेनिस-बॉल क्रिकेट खेलने वाले लड़कों की तरह बनना चाहती थी। क्रांति अनुसूचित जनजाति परिवार में छह भाई-बहनों में सबसे छोटी हैं। उन्‍होंने पहले टेनिस-बॉल मैचों में छक्के जड़ने वाली बल्लेबाज के रूप में अपनी पहचान बनाई और फिर छतरपुर स्थित कोच राजीव बिल्थारे, जो इस क्षेत्र में महिला क्रिकेट को बढ़ावा देते हैं, उनके संरक्षण में आई। परिवार ने लड़कों के साथ क्रिकेट खेलने वाली एक लड़की के बारे में अपमानजनक और पूर्वाग्रही टिप्पणियों को क्रांति के क्रिकेट के सपनों के आड़े नहीं आने दिया। जब परिवार पर मुश्किलें आईं तो उसकी मां ने अपने गहने गिरवी रख दिए। उन्‍होंने इस विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ प्लेयर-ऑफ-द-मैच का पुरस्कार अपने नाम किया।

स्नेह राणा डब्‍ल्‍यूपीएल ऑक्‍शन में रह गईं थी अनसोल्‍ड
उत्तराखंड के देहरादून रहने वाली स्नेह राणा का नाम लगभग वापसी का पर्याय बन गया है। उन्होंने 2014 में डेब्‍यू किया था और 2016 के आसपास उन्हें टीम से बाहर कर दिया गया था। वापसी करने में उन्हें पांच साल लग गए और 2021 में इंग्लैंड में एकमात्र टेस्ट के लिए उन्होंने सफ़ेद जर्सी पहनी। यह उनके पिता भगवान सिंह के निधन के कुछ समय बाद हुआ, जिन्होंने स्नेह के क्रिकेट करियर को आगे बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। बचपन में स्नेह बाहरी गतिविधियों में रुचि रखने वाली और लड़कों के साथ कई खेल खेलने वाली महिला खिलाड़ी थीं। 9 साल की उम्र में उनकी प्रतिभा को पहचानकर उनके पिता ने उन्हें एक क्रिकेट अकादमी में दाखिला दिलाया। स्नेह भारतीय टीम में आती-जाती रहीं, इसलिए उन्होंने घरेलू क्रिकेट में अपनी विविधताओं पर काम किया और अपनी बल्लेबाजी को बेहतर बनाने के लिए पावर-हिटिंग पर भी ध्यान केंद्रित किया। महिला प्रीमियर लीग में गुजरात जायंट्स की कप्तानी करने के बाद उन्हें 2025 सीजन से पहले रिलीज कर दिया गया और नीलामी में भी उन्हें नहीं चुना गया। लेकिन बाद में उन्हें आरसीबी ने एक प्रतिस्थापन के रूप में चुना और उन्होंने बल्ले और गेंद से इतना प्रभावित किया कि उन्हें भारतीय टीम में भी वापस जगह मिल गई।

लड़कों की टीम में खेला करती थीं रेणुका सिंह ठाकुर
हिमाचल प्रदेश के शिमला की रहने वाली रेणुका जब केवल 3 साल की थीं, तब उनके पिता की मृत्यु के बाद उनकी मां सुनीता और उनके भाई विनोद ने उनके सफर को आकार दिया। 2021 में भारतीय टीम में शामिल होने के बाद रेणुका ने बताया था कि उनके पिता को क्रिकेट बहुत पसंद था। उन्होंने मेरे भाई का नाम अपने पसंदीदा क्रिकेटर विनोद कांबली के नाम पर रखा था। रेणुका के पिता सिंचाई एवं जन स्वास्थ्य विभाग में काम करते थे। रेणुका भाई विनोद के साथ गांव के मैदान पर जाती थीं और लड़कों की टीम में खेलती थीं। रेणुका के चाचा भूपिंदर सिंह ठाकुर ने उन्हें धर्मशाला स्थित एचपीसीए महिला आवासीय अकादमी में ट्रायल्स में शामिल होने की सलाह दी थी। वहां उन्होंने अपनी फिटनेस और नियंत्रण में सुधार किया। रेणुका 2022 राष्ट्रमंडल खेलों में 11 विकेट लेकर सबसे ज़्यादा विकेट लेने वाली खिलाड़ी थीं।

सब्जी बेचा करते थे राधा यादव के पिता
मुंबई में जन्मी राधा यादव घरेलू क्रिकेट में बड़ौदा के लिए खेलती हैं और भारतीय टीम में चुनी जाने वाली गुजरात टीम की पहली महिला क्रिकेटर हैं। निस्संदेह, टीम की सर्वश्रेष्ठ क्षेत्ररक्षक, राधा लंबे समय तक टी20I विशेषज्ञ रहीं और 2018 से इस प्रारूप में खेल रही हैं। 2021 में अपना वनडे डेब्यू करने के बाद उन्होंने 2024 तक इस प्रारूप में दोबारा नहीं खेला। अगर नई स्पिनर शुचि उपाध्याय चोटिल न होतीं, तो राधा शायद इस गर्मी में इंग्लैंड दौरे के लिए टीम में जगह नहीं बना पातीं। कोच प्रफुल नाइक ने 2012 में कांदिवली के एक परिसर में युवा राधा को क्रिकेट खेलते देखा और यह बात उनके ज़ेहन में बस गई कि कैसे वह एक लड़के की ओर दौड़ीं, जो आउट होने के बावजूद बल्ला पकड़े हुए था। उन्होंने उनके पिता, जो एक सब्जी विक्रेता थे, को उन्हें क्रिकेटर बनाने के लिए मनाने की पहल की। यादव परिवार एक छोटे से घर में रहता था और खेलों पर खर्च नहीं कर सकता था। नाइक के स्थानांतरित होने पर राधा बड़ौदा चली गईं। राधा ने एक बार लगातार 27 टी20 अंतरराष्ट्रीय मैचों में कम से कम एक विकेट लेने का रिकॉर्ड बनाया था।

विकेटकीपर बनना चाहती थीं अरुंधति रेड्डी
अरुंधति रेड्डी ने 2018 में टी20 अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में पदार्पण किया, लेकिन उन्हें वनडे खेलने का मौका पाने के लिए लंबा इंतज़ार करना पड़ा। 2024 में बेंगलुरु में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ उन्हें 50 ओवरों के मैच में खेलने का मौका मिला और एक साल बाद उन्होंने विश्व कप के लिए जगह बनाई। घरेलू क्रिकेट में हैदराबाद के साथ अपना सफर शुरू करने और अपनी स्वाभाविक एथलेटिक क्षमता से प्रभावित करने के बाद अरुंधति रेलवे में चली गईं। अरुंधति बचपन में एमएस धोनी को अपना आदर्श मानती थीं और विकेटकीपर बनना चाहती थीं, लेकिन उनके कोचों ने उन्हें तेज़ गेंदबाज़ी ऑलराउंडर बनने के लिए प्रेरित किया।

पिता ने बनाया था अमनजोत कौर का पहला बल्ला
बढ़ई भूपिंदर सिंह ने एक शाम देखा कि उनकी बेटी अमनजोत परेशान थी, क्योंकि उनके पड़ोस के लड़के बल्‍ला नहीं होने पर उन्‍हें खेलने नहीं दे रहे थे। वह अपनी दुकान पर गए और देर रात एक लकड़ी का बल्ला लेकर लौटे, जिसे उन्होंने खुद बनाया था। चंडीगढ़ की ये पेस-ऑलराउंडर अमनजोत का ये पहला बल्ला था। तानों के बावजूद भूपिंदर ने उसे खेलने के लिए प्रोत्साहित किया। जब वह 14 साल की हुई तो वह अमनजोत को कोच नागेश गुप्ता के पास ले गए। शुरुआत में उसके लिए जगह न होने के बावजूद नागेश ने उसे अपने साथ ले लिया। अमनजोत अपने टी20I डेब्यू में प्लेयर ऑफ़ द मैच रहीं, लेकिन पीठ में स्ट्रेस फ्रैक्चर और हाथ के लिगामेंट में चोट के कारण उन्हें 2024 का एक बड़ा हिस्सा मिस करना पड़ा। इस साल मुंबई इंडियंस के साथ WPL में अमनजोत ने अपनी वापसी के संकेत दिए। अमनजोत महिला विश्व कप में आठवें या उससे नीचे नंबर पर बल्लेबाजी करते हुए 50+ का स्कोर बनाने वाली केवल दूसरी खिलाड़ी हैं, ये कमाल उन्होंने श्रीलंका के खिलाफ किया था।

एमएसके प्रसाद ने पहचानी श्री चरणी की प्रतिभा
आंध्र प्रदेश के कडप्पा की रहने वाली श्री चरणी जब तीसरी कक्षा में थीं, तब चरणी ने अपने मामा किशोर रेड्डी के साथ उनके घर पर प्लास्टिक के बल्ले से खेलना शुरू किया। इसके बाद उन्‍होंने अपनी उम्र से कहीं बड़े खिलाड़ियों के साथ खेलना शुरू कर दिया। तब उन्‍हें क्रिकेट का सिर्फ शौक था, लेकिन यही चरणी के तेजी से आगे बढ़ने का आधार बना। स्कूल के शुरुआती दिनों से ही वह एथलेटिक्स के प्रति गंभीर थीं। जब वह दसवीं कक्षा में थीं तो उनके शारीरिक शिक्षा प्रशिक्षक नरेश उन्हें गाचीबोवली स्थित भारतीय खेल प्राधिकरण के प्रशिक्षण केंद्र में चयन के लिए हैदराबाद ले आए। भारत के पूर्व चयनकर्ता एमएसके प्रसाद ने उनकी एथलेटिक क्षमता को देखा और उन्हें क्रिकेट में हाथ आजमाने का सुझाव दिया। डब्ल्यूपीएल में चरणी ने इतना प्रभावित किया कि उन्हें वनडे टीम में जगह मिल गई।

पिता ने 10 साल की उम्र में शैफाली का करया था बॉय कट
हरियाणा के रोहतक की रहने वाली शैफाली की कहानी भी कुछ कम दिलचस्‍प नहीं है। पिता संजीव वर्मा ने 10 साल की उम्र शैफाली के बाल बहुत छोटे करवा दिए, ताकि वह लड़कों की एक स्कूल टीम में खेल सके। शैफाली उस टूर्नामेंट की सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी बनी। शैफाली को भारतीय क्रिकेट का ध्यान अपनी ओर खींचने में ज़्यादा समय नहीं लगा। डब्ल्यूपीएल, महिला टी20 चैलेंज के पहले सीजन में 15 साल की उम्र में उनका ज़बरदस्त आक्रामक अंदाज महिलाओं के खेल में पहले कभी नहीं देखा गया था। वह सचिन तेंदुलकर की बहुत बड़ी फैन हैं। उन्होंने पहले अंडर-19 टी20 विश्व कप में महिलाओं के किसी भी आयोजन में भारत को अपना पहला आईसीसी खिताब भी जिताया था। प्रतिका रावल के चोटिल होने बाद उनका वनडे टीम में शानदार कमबैक हुआ है। शैफाली मिताली राज के बाद टेस्ट क्रिकेट में दोहरा शतक लगाने वाली दूसरी भारतीय महिला हैं।

भारतीय महिलाओं के लिए आसान नहीं रहा क्रिकेट विश्व विजेता बनने का सफर

भारत ने अपना पहला महिला क्रिकेट विश्व कप साल 1978 में खेला। साल 1979 से अंतरराष्ट्रीय और घरेलू स्तर पर भारतीय महिला टीम ने नियमित रूप से क्रिकेट खेलना शुरू किया। डब्लूसीएआई ने यह सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी ली कि भारत में लड़कियों के लिए अधिक से अधिक क्रिकेट मैच आयोजित किए जाएं। हालांकि समस्या यह थी कि डब्लूसीएआई एक स्व-वित्तपोषित संस्था थी जो महिला टीम की देखरेख कर रही थी। इसलिए, साल 1986 से 1991 के बीच भारतीय महिला टीम ने एक भी अंतरराष्ट्रीय मैच नहीं खेला क्योंकि उनके पास पैसे नहीं थे। भारत के पहली विश्व कप में निराशाजनक प्रदर्शन के 19 साल बाद साल 1997 में एक और महिला विश्व कप आयोजित हुआ जिसकी मेज़बानी भारत ने की। इसे हीरो होंडा महिला विश्व कप 1997 भी कहा जाता है। भारत ने इस विश्व कप में सेमी फाइनल तक अपनी जगह बनाई। उस समय महिला टीम की हालत उतनी अच्छी नहीं थी। जितनी कि होनी चाहिए थी। भले ही टीम सेमीफाइनल तक पहुंची लेकिन कोई भी व्यक्ति साइट स्क्रीन को हिलाने के लिए मौजूद नहीं था। साल 1998 से 2002 के बीच का समय भारतीय महिला क्रिकेट के लिए बहुत खास था। इस दौर में कई घरेलू टूर्नामेंट भी आयोजित किए गए। उदाहरण के लिए 1999 में एक अंतर-क्षेत्रीय टूर्नामेंट रानी झांसी टूर्नामेंट खेला गया। जिसमें कुल छह टीमों ने हिस्सा लिया और कुल 15 मैच खेले गए।
भारत ने अपना पहला महिला क्रिकेट विश्व कप 1978 में खेला। साल 1978 के विश्व कप के बाद से भारतीय महिला टीम के लिए परिस्थितियां धीरे-धीरे बेहतर होने लगीं। साल 1979 से भारतीय महिला टीम ने नियमित रूप से क्रिकेट खेलना शुरू किया न केवल अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बल्कि घरेलू स्तर पर भी। साल 2003 से 2006 का समय भारत में महिला क्रिकेट के लिए मुश्किलों से भरा था। इसी समय एशिया कप की शुरुआत भी हुई। साल 2004 में खेले गए पहले एशिया कप में केवल दो टीमों भारत और श्रीलंका ने हिस्सा लिया और भारत ने श्रीलंका को 5-0 से हराया। वहीं, साल 2005 में भारत ने पहली बार महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में प्रवेश किया। इस समय तक आईसीसी महिला क्रिकेट की ज़िम्मेदारी नहीं संभालता था, बल्कि आईडब्ल्यूसीसी नामक एक अलग संस्था थी जो महिला क्रिकेट टूर्नामेंट्स का संचालन करती थी।


हालांकि साल 2005 में आईडब्ल्यूसीसी का आईसीसी के साथ मर्ज हो गया और आईसीसी ने दुनिया भर के क्रिकेट बोर्ड्स से भी ऐसा ही करने को कहा यानि महिला और पुरुष क्रिकेट के बोर्ड्स का एकीकरण। उस समय का वुमेन्स क्रिकेट एसोसिएशन ऑफ इंडिया उन अंतिम प्रमुख बोर्ड्स में से एक था जिसने खुद को आईसीसी से जोड़ा। इन उपलब्धियों के पीछे के संघर्ष को देखें तो टीम के लिए शुरुआती दिन काफी मुश्किलों से भरे थे । 2004 में खेले गए पहले एशिया कप में केवल दो टीमों भारत और श्रीलंका ने हिस्सा लिया और भारत ने श्रीलंका को 5-0 से हराया। 2005 में भारत ने पहली बार महिला क्रिकेट विश्व कप के फाइनल में प्रवेश किया। 2005 तक का समय महिला क्रिकेट के लिए एक दिलचस्प दौर था न केवल भारत में बल्कि पूरी दुनिया में।
नवंबर 2006 में डबल्यूसीआई को बीसीसीआई में शामिल कर लिया गया और तभी से बीसीसीआई भारत में महिला क्रिकेट का केंद्रीय संचालन बोर्ड बन गया। हालांकि यह प्रक्रिया बिल्कुल भी आसान नहीं थी। बीसीसीआई ने इस एकीकरण का काफी विरोध किया। आईसीसी की कई चेतावनियों के बाद जाकर बीसीसीआई ने डब्ल्यूसीआई को स्वीकार किया। बीसीसीआई के इस विरोध को हम बीबीसी की रिपोर्ट में प्रकाशित भारत की पूर्व कप्तान डायना एडुलजी के एक बयान से समझ सकते हैं, वह बताती हैं कि भारतीय क्रिकेट बोर्ड के एक चुने हुए अध्यक्ष ने उनसे कहा था कि अगर मेरा बस चलता तो मैं महिला क्रिकेट होने ही नहीं देता। डब्ल्यूसीआई के संचालन में विकसित हो रही महिला क्रिकेट टीम, बीसीसीआई के अंतर्गत इंग्लैंड में टेस्ट मैच खेला। इस टेस्ट मैच में भारत ने इंगलेंड को हराकर टेस्ट मैच जीता। एशिया कप में भारत की लगातार जीतों के अलावा देखा जाए तो कुछ प्रदर्शन बहुत अच्छे नहीं रहे और इसके लिए काफी हद तक बीसीसीआई को दोषी ठहराया जा सकता है। इसका एक बड़ा कारण यह था कि उस समय महिला टीम को घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बहुत कम मैच खेलने दिए जाते थे। बीसीसीआई महिला क्रिकेट के विकास को लेकर बहुत गंभीर नहीं था। इसके बाबजूद भारतीय महिला क्रिकेट टीम को एक बार फिर इंग्लैंड जाने का मौका मिला और वहां साल 2014 में खेले गए एकमात्र टेस्ट मैच में इंग्लैंड को हरा दिया। इस टेस्ट में इंग्लैंड की पहली पारी को सिर्फ 92 रनों पर समेट दिया गया और भारत ने 6 विकेट से जीत हासिल की। यह जीत कई मायनों में ऐतिहासिक थी क्योंकि उस मैच में भारत की ओर से खेलने वाली 11 खिलाड़ियों में से 8 का यह पहला टेस्ट मैच था। बीसीसीआई के साथ होकर इस नए दौर में भी, महिला क्रिकेट में बहुत सी असमानताएं थी जैसे कि महिला क्रिकेट टीम के खिलाड़ियों को पुरुष खिलाड़ियों के स्पॉन्सर के बनाए गए ड्रेस में से बाक़ी बचे कपड़ों में खेलना होता था। साल 2015 में पहली बार बीसीसीआई ने महिला क्रिकेटरों को सेंट्रल कॉन्ट्रैक्ट दिए। यह एक सही दिशा में बड़ा कदम था क्योंकि उससे पहले महिला खिलाड़ी केवल दैनिक भत्ते और मैच फीस पर निर्भर थीं। यह इसलिए भी ऐतिहासिक था क्योंकि दुनिया के 8 क्रिकेट बोर्डों में भारत ही एकमात्र ऐसा देश था जहां महिलाओं के लिए कोई केंद्रीय वेतन प्रणाली मौजूद नहीं थी। इसी दौर में आज जो नियमित घरेलू टूर्नामेंट हम देखते हैं जैसे सीनियर वुमेन्स ओ डी आई ट्रॉफी और सीनियर वुमेन्स टी -20 ट्रॉफी उनकी शुरुआत हुई। महिला क्रिकेट में स्प्लिट कैप्टेंसी (विभाजित कप्तानी) का भी दौर शुरू हुआ। साल 2016 में भारत ने पहली बार महिला टी-20 विश्व कप की मेज़बानी की और सबसे यादगार वर्ष 2017 रहा खासकर उस विश्व कप का सेमीफाइनल महिला क्रिकेट का अब तक का सबसे ज़्यादा देखा गया फाइनल मैच था। सिर्फ भारत में ही इस वर्ल्ड कप को लगभग 15.6 करोड़ लोगों ने देखा जिससे टीवी व्यूअरशिप में जबरदस्त उछाल आया। इसके बाद वह समय था जब पहली बार टी-20 चैलेंज टूर्नामेंट का आयोजन हुआ और भारत ने साल 2020 के टी-20 विश्व कप में भी बेहतरीन प्रदर्शन किया। इस मैच को एमसीजी में 86,000 लोगों ने देखा जो कि एक रिकॉर्ड था। साल 2017 के वीमेंस वर्ल्ड कप और 2020 के टी-20 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम फ़ाइनल तक पहुंची । इस कामयाबी से भारतीय खिलाड़ियों को और ज़्यादा एक्सपोज़र मिला। भारत की शीर्ष महिला खिलाड़ियों को वीमेंस बिग बैश टूर्नामेंट और इंग्लैंड में के सुपर लीग और वीमेंस हंड्रेड में खेलने का मौक़ा मिला। साल 2022 में भारतीय टीम ने राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर मेडल जीता। यह एक ऐसा टूर्नामेंट था जिसमें केवल महिला क्रिकेट टीम ने भाग लिया था। यह साल भारतीय क्रिकेट के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ भी था क्योंकि साल 2022 में पुरुषों और महिलाओं की टीमों को समान मैच फीस मिलनी शुरू हुई।

रिश्तों के बीच पुल बनिए, दीवार बनना सही नहीं

सोशल मीडिया पर जिस तरह के कंटेंट महिलाएं बना रही हैं और अपने पारिवारिक झगड़ों का उपयोग टीआरपी पाने और फॉलोवर बढ़ाने के लिए कर रही हैं, उसके दूरगामी परिणाम कुछ अच्छे नहीं है। हैरत की बात यह है कि इसमें लड़के भी साथ दे रहे हैं। अधिकतर कंटेंट आजादी के नाम पर सास-बहू की आलोचना के लिए या बहू के अधिकारों की रक्षा के नाम पर उनकी गलतियों को जस्टीफाई करते हुए बनाए जाते हैं। मां का घर है मायका मगर ससुराल आपके सास-ससुर के नाम पर है यानी शाब्दिक दृष्टि से भी यह घर आपके पति से अधिक उनके माता -पिता का है। भारतीय परिवारों की समस्या यह है कि अपने मायके में एडजस्ट करने वाली लड़कियां और माता- पिता की प्रतिष्ठा के लिए समझौते करने वाली लड़कियां भी ससुराल में पहले दिन से ही अपनी एक अलग दुनिया बनाने लगती हैं जिसमें वह, उनके पति व बच्चे होते हैं, और कोई नहीं। वह यह मान लेती हैं कि वह इस घर में आ गयी हैं तो अब पति पर, पति के जीवन पर, पति की इच्छाओं पर तो उनका अधिकार है, बस पति के रिश्तेदार उनके कुछ नहीं लगते। वहीं माता-पिता अब भी उसी पुरानी दुनिया में जी रहे हैं, उनको अब भी अब भी अपना बेटा 24 घंटे अपने पास चाहिए। जिन औरतों को रिश्तों के बीच पुल बनना चाहिए, वह अब दीवार बन रही हैं तो कलह स्वाभाविक है। कामकाजी लोगों को उनकी ही भाषा में समझाया जाना चाहिए…क्या जब आप नये दफ्तर से जुड़ते हैं तो क्या पहले ही दिन बॉस बन जाते हैं या अपनी मेहनत से, अपनी लगन से बरसों तक मेहनत करने के बाद आपको वह जगह मिलती है? क्या आप जहां काम करते हैं, उस कम्पनी के मालिक होने का दावा कर सकते हैं कि दो दिन में कम्पनी आपके नाम कर दी जाए? अब घर का मामला देखिए…जिस गृहस्थी को पाने के लिए आप मरी जा रही हैं, पहली बात, वह गृहस्थी आपने नहीं बनायी, वह आपके सास-ससुर की जीवन भर की तपस्या का फल है। जिस तरह एक कर्मचारी की जिम्मेदारी और अधिकारों को धीरे – धीरे बढ़ाया जाता है, वैसे ही विश्वास होने पर सास-ससुर खुद आपको आगे बढ़ाते हैं। आपको जो सफल, संस्कारी पति मिला है, वह उनकी परवरिश का नतीजा है। उसे जो सहयोग मिला है, वह उसके भाई-बहनों व परिवार के कारण है और इसे बनाने में आपकी कोई भूमिका नहीं है। जिस तरह आपकी कम्पनी में आपके सीनियर्स की भूमिका है और आपकी इच्छा मात्र से उनको नहीं हटाया जा सकता, आपके बॉस आपकी खुशी के लिए उनको हाशिए पर नहीं डाल सकते। ठीक उसी प्रकार परिवार में आपकी इच्छा मात्र से आपके पति अपने माता-पिता,भाई-बहन व रिश्तेदारों को सिर्फ इसलिए नहीं हटा सकते कि आपको यह पसंद नहीं हैं। समस्या यह है कि लड़कियां गृहस्थी का हिस्सा नहीं बनना चाहतीं मगर उनको दूसरों की बनाई गृहस्थी को नोंचकर अपनी दुनिया बनानी है। तुर्रा यह है कि उनको इस पर भी ससुराल से प्यार चाहिए…नहीं मिलेगा बहिन।
हमारे घरों में जब भी कोई नववधू आती है, तो उसके लिए सबसे अच्छा कमरा देवर या ननद ही खाली करते हैं क्योंकि नयी बहू को कष्ट नहीं होना चाहिए मगर बहू को इस बात से ऐतराज है कि उसके आने के बाद भी पति अपनी मां की देखभाल क्यों कर रहा है, पापा के चश्मे, भाई की पढ़ाई और बहन की नौकरी की चिंता उसे क्यों करनी है, आपकी सोच पर तरस ही खाया जा सकता है बहन। सच तो यह है कि कोई बहन अपने भाई का घर नहीं तोड़ती, कई लड़कियां तो कलह से बचने के लिए अपने मायके तक जाना छोड़ देती हैं। और क्या चाहिए आपको….अगर कोई देवर या ननद साथ रहता है तो उसे अपने घर में अजनबी की तरह रहें….अहसान मानें कि उनको उनके ही घर में भाई-भाभी रहने दे रहे हैं। सोशल मीडिया पर बाकायदा रील्स चलती है कि रिश्ते बनाए रखने के लिए भौजाइयों को थैंक यू बोला जाए। तो अब यह बताइए कि बात-बात पर जेठ, जेठानी, सास-ससुर, देवर व ननद को छोटी – छोटी बातों के लिए जलील करने वाली बहुओं व भौजाइयों की इज्जत कैसे व कहां तक की जानी चाहिए? कई बहुएं तो अपनी जिम्मेदारी अपने पति व बच्चों तक समझती हैं, काम उनके लिए करती हैं….पति के कारण सास-ससुर एक्सटेंशन मोड में हैं…देवर या ननद की तो गिनती ही नहीं है। कई औरतें तो अपने तानों से ही देवर और ननद की आत्मा और अधिकारों को खत्म कर देती हैं। ननद से इनको घर के काम में सहयोग की उम्मीद होती है और शिकायत ननदों की ही अपने मायके में करनी होती हैं। इनके घर में पैर रखते ही आठवीं में पढ़ने वाली ननद को युवा और पराया मान लिया जाता है। स्नातक में पढ़ते हुए लड़के देखे जाने लगते हैं क्योंकि घर का बोझ इनके पति पर है, सब उनकी कमाई खा रहे हैं। मैडम को कोई बताए कि वह जिसके भरोसे इस घर में हैं, उसके और भी रिश्ते हैं दुनिया में। क्या यह स्वार्थपरता नहीं है। घर में कोई आयोजन हो तो मायके के लोग पहले बुलाए जाएंगे और पति के भाई-बहन घर में रहते हुए ही कोने में रखे जाएंगे और उनके सारे काम अहसान जताते हुए होंगे। उस पर सारी दुनिया के सामने आपके चेहरे पलट जाएंगे। मुझे लगता है कि यह सही समय है कि भाई-भौजाइयों से बचाने के लिए देवर-ननद के पक्ष में कानून बनाए जाए। आज बड़ी तेजी से वृद्धाश्रम बढ़ रहे हैं, लाचार होते माता-पिता को घर से निकालने के लिए बच्चों को लानतें भेजी जा रही हैं मगर रुककर सोचिए इन बच्चों ने यह सीखा किससे है? कहीं ऐसा तो नहीं है आज के माता-पिता जब खुद युवा थे तो हर प्रकार की शक्ति इनके पास थी तो क्या उन्होंने यही बर्ताव अपने माता -पिता के साथ नहीं किया होगा । बहुएं अपने पति को लेकर ससुराल को कोसती हुईं अलग होती हैं, अपने पति को अपनों से दूर करती हैं, बच्चों को दादा-दादी, बुआ – चाचा से दूर करती हैं, जो मौन आर्तनाद इन टूटे कलेजों से निकलता है, जो हूक निकलती है, जिस तरह वह तड़पकर जी रहे होते हैं और अंतिम सांस तक अपनी संतानों को आपके कारण नहीं देख पाते, ये हूक ईश्वर तक जाती है, कर्म लौटते हैं और जो खेल आपने कल खेला था, आज वही खेल आपके साथ खेला जा रहा है तो हैरत कैसी? बच्चों ने जो किया, बुरा किया मगर वृद्ध -वृद्धाओं से भी पूछा जाना चाहिए कि अपने समय में इन्होंने अपने बुजुर्गों के साथ कैसा बर्ताव किया। अधिकतर सफल औरतें अपने माता-पिता को अपनी कमाई का अंश देना चाहती हैं जिससे उनके माता-पिता को हाथ न पसारना पड़े। वह चाहती हैं कि उनके भाई की कमाई का हिस्सा उनकी भाभी की जगह माता-पिता को मिले। अच्छी बात है मगर तब आपको गुस्सा क्यों आता है जब आपके पति अपने माता-पिता को अपनी कमाई सौंपते हैं और अपने भाई-बहनों को तोहफे देते हैं।
मेरी समझ में तो होना चाहिए कि लड़का हो या लड़की, यह सुनिश्चित करना उनकी जिम्मेदारी है कि उनके रहते माता-पिता व जब तक भाई-बहन आर्थिक रूप से उन पर आश्रित हैं, उनको हाथ पसारना नहीं पड़े। एक सीमा के बाद भाई -बहन को भी बहुत अधिक जरूरत पड़ने पर ही बड़े भाई-बहनों की मदद लेनी चाहिए मगर माता-पिता? अपनी कमाई का दस प्रतिशत हिस्सा यानी पांच – पांच प्रतिशत अपने माता-पिता को दीजिए जिससे उनको आपकी पत्नी से नहीं मांगना पड़े। इसके बाद जरूरी है तो 10 प्रतिशत, 5-5 प्रतिशत के अनुपात में भाई-बहनों को दीजिए। जो बहन व भाई कमाते हैं, अपनी कमाई का दस प्रतिशत घर में दें। 5 प्रतिशत माता-पिता को व 5 प्रतिशत अपने घर के बच्चों को दें। छोटे- छोटे खर्च उठाएं। बहू परिवार को अपना समझे, सास-ससुर से ईर्ष्या मत कीजिए और न ही प्रतियोगिता कीजिए क्योंकि वह आपके घर में जाकर नहीं रह रहीं हैं, आपको इस घर का भविष्य बनाकर लाई हैं, कल आप ही रहेंगी…। अगर आप अपने पति-बच्चों व परिवार के बीच पुल बनेंगी तो यकीन मानिए कल को ये लोग आपके पीछे चट्टान की तरह खड़े रहेंगे। जो व्यवहार आप अपने लिए अपने लिए चाहती हैं, वही व्यवहार अपनी ननदों के साथ कीजिए। हो सकता है कि आप जिन चीजों को लेकर परेशान हों, वह परेशानी ये लोग दूर दें।

तीन साल से बकाया बीएसएनएल का किराया पांच करोड़, तमतमाया हाईकोर्ट

-फंड जारी करने में देरी से नाराज, वित्त सचिव को बुलाया
कोलकाता । कलकत्ता हाईकोर्ट का तीन साल का बीएसएनएल का बिल, जो 5 करोड़ रुपये का है, बकाया है। यह खुलासा सोमवार को हाईकोर्ट प्रशासन की एक रिपोर्ट से हुआ। फंड जारी करने में देरी से नाराज हाईकोर्ट ने वित्त सचिव को आज 29 अक्टूबर को हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल के साथ एक बैठक करने का निर्देश दिया है। यह बैठक जेलों और न्यायिक बुनियादी ढांचे की स्थिति पर चल रही सुनवाई के संबंध में है। सोमवार को हाईकोर्ट प्रशासन ने एक रिपोर्ट सौंपी, जिसमें इस बकाया राशि का जिक्र था। राज्य सरकार ने बेंच को बताया कि इंटरनेट सुविधा के लिए 2.9 करोड़ रुपये की प्रशासनिक मंजूरी जारी की गई है। 5 करोड़ रुपये के कुल बकाया को देखकर बेंच हैरान रह गई। बेंच ने राज्य के वकील से पूछा कि यह राशि क्यों नहीं दी गई। राज्य ने बताया कि यह खाता रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) के पास है और आधी राशि मंजूर हो चुकी है। जस्टिस देबांग्शु बासक और जस्टिस एमडी शबबर रशीदी की डिवीजन बेंच इस मामले की सुनवाई कर रही थी। बेंच ने कहा, “बिल पिछले तीन सालों से बकाया है। क्या राज्य में कोई वित्तीय आपातकाल है? अगर बीएसएनएल बिलों का भुगतान न होने के कारण सेवाएं बंद कर दे तो क्या होगा? तीन साल काफी समय है। उन्होंने बिलों का भुगतान करना जरूरी नहीं समझा… क्या हाईकोर्ट के काम के लिए फंड का आवंटन प्रशासनिक काम के अंतर्गत नहीं आता है?राज्य के वकील ने सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध किया क्योंकि महाधिवक्ता किशोर दत्ता इस मामले में बहस करेंगे। वकील ने कुछ समय मांगा क्योंकि आधी राशि मंजूर हो चुकी है। कोर्ट ने निर्देश दिया, “यदि 29 अक्टूबर को सभी मामले अनसुलझे रहते हैं, तो 6 नवंबर को आगे की बैठकें होंगी, जिसमें वित्त सचिव व्यक्तिगत रूप से उपस्थित रहेंगे। 29 अक्टूबर को, राज्य पेपर बुक्स में प्रत्येक मामले के संबंध में अपना रुख बताएगा।” मामले की अगली सुनवाई 10 नवंबर को तय की गई है।यह मामला राज्य में न्यायिक बुनियादी ढांचे की बदहाल स्थिति को उजागर करता है। हाईकोर्ट का अपना ही बिल तीन साल से अटका हुआ है, जो दिखाता है कि सरकारी विभागों के बीच समन्वय की कितनी कमी है। 5 करोड़ रुपये की राशि कोई छोटी रकम नहीं है, और इसका भुगतान न होना चिंता का विषय है। यह सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार हाईकोर्ट जैसे महत्वपूर्ण संस्थान के लिए भी समय पर फंड जारी करने में सक्षम नहीं है। बीएसएनएल जैसी सेवा प्रदाता कंपनी अगर भुगतान न होने पर सेवाएं बंद कर दे, तो इसका सीधा असर अदालती कामकाज पर पड़ेगा। इससे न्याय मिलने में देरी होगी, जो किसी भी नागरिक के लिए स्वीकार्य नहीं है। हाईकोर्ट ने इस मामले को ‘कोर्ट की अपनी गति’ के तहत उठाया है, जिसका मतलब है कि कोर्ट ने खुद ही इस मुद्दे पर संज्ञान लिया है। यह दर्शाता है कि स्थिति कितनी गंभीर है। वित्त सचिव और रजिस्ट्रार जनरल के बीच होने वाली बैठकें इस समस्या का समाधान निकालने की दिशा में एक कदम हैं। उम्मीद है आज 29 अक्टूबर की बैठक में राज्य सरकार अपना स्पष्ट रुख बताएगी और लंबित बिलों का भुगतान करने के लिए ठोस कदम उठाएगी। अगर फिर भी समस्या हल नहीं होती है, तो वित्त सचिव की व्यक्तिगत उपस्थिति में होने वाली 6 नवंबर की बैठक से कुछ सकारात्मक परिणाम निकलने की उम्मीद है। यह मामला राज्य के वित्तीय प्रबंधन और प्रशासनिक दक्षता पर भी सवाल खड़े करता है।

केंद्र ने दी आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी

-न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (सेवानिवृत्त) होंगी अध्यक्ष
नयी दिल्ली। केंद्र सरकार ने मंगलवार को 8वें केंद्रीय वेतन आयोग के गठन को मंजूरी दे दी। यह आयोग अपने गठन की तिथि से 18 महीनों के भीतर अपनी सिफारिशें देगा। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को मंजूरी दी गयी। सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्वनी वैष्णव ने यहां राष्ट्रीय मीडिया केन्द्र में पत्रकार वार्ता में मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी दी। वैष्णव ने बताया कि 8वां वेतन आयोग एक अस्थायी निकाय होगा। आयोग में एक अध्यक्ष, एक सदस्य (अंशकालिक) और एक सदस्य-सचिव शामिल होंगे। उन्होंने बताया कि यह आयोग अपने गठन की तिथि से 18 महीनों के भीतर अपनी सिफारिशें देगा। सरकार ने जनवरी में केंद्रीय कर्मचारियों के वेतन और अन्य लाभों में बदलावों की जांच और सिफ़ारिश करने के लिए 8वें वेतन आयोग के गठन की घोषणा की थी। न्यायमूर्ति रंजना प्रकाश देसाई (सेवानिवृत्त) आयोग की अध्यक्ष होंगी। प्रोफ़ेसर पुलक घोष सदस्य होंगे और पंकज जैन आयोग के सदस्य-सचिव होंगे। वेतन आयोगों का गठन समय-समय पर केंद्र सरकार के कर्मचारियों के पारिश्रमिक ढांचे, सेवानिवृत्ति लाभों और अन्य सेवा शर्तों के विभिन्न मुद्दों पर विचार करने और उनमें आवश्यक बदलावों पर सिफारिशें करने के लिए किया जाता है। आमतौर पर वेतन आयोग की सिफारिशें हर 10 साल के अंतराल पर लागू की जाती हैं। इसके अनुसार 8वें वेतन आयोग की सिफारिशें अगले साल से अपेक्षित हैं।

डियर युवाओं, परिवार से अच्छा सहयात्री कोई नहीं

मन में विचार आता है कि आज के दौर में स्त्री होने का क्या मतलब है….स्त्री एवं पुरुष के लिए परिवार की परिभाषा कैसे इतनी संकीर्ण हो गयी। बात जब छठ की है तो छठ तो स्वयं ही एक प्रकार से भाई-बहन का पर्व है क्योंकि छठी मइया तो खुद ही सूर्यदेव की बहन हैं…भाई दूज में यम और यमुना भाई – बहन हैं और दीपावली में नरकासुर के वध के बाद जो सुभद्रा कृष्ण के माथे पर तिलक लगाती हैं, वह भी उनकी बहन हैं। इससे पीछे देखिए तो शक्ति नारायण की बहन हैं औऱ सरस्वती शिव की बहन हैं। अशोक सुन्दरी गणेश और कार्तिकेय की बहन हैं और शांता श्रीराम की बहन हैं। कहने का तात्पर्य तो यही है कि हमारे पुराणों में तो भाई-बहन के सम्बन्धों का उल्लेख है मगर सोचने वाली बात यह भी है कि ऐसा क्या हो गया कि बहनों को हाशिये पर रखकर समस्त देवी-देवताओं को पत्नी और बच्चों तक समेटकर बांध दिया गया। शक्ति, शिव, सरस्वती और लक्ष्मी में गहरा सम्बन्ध है, सब के सब एक दूसरे के पूरक हैं, फिर ऐसा किसने किया होगा कि पारिवारिक अवधारणा को अपने स्वार्थ के लिए पति-पत्नी और बच्चों तक सीमित कर दिया जबकि श्रीकृष्ण तो राधा के साथ सुभद्रा और द्रौपदी को भी सिर आँखों पर रखते हैं। वस्तुतः देखा जाए तो शिव परिवार हो राम दरबार या फिर श्रीकृष्ण का परिवार एक संयुक्त परिवार की अवधारणा को सामने रखता है। ये जानना जरूरी है कि वैदिक काल से चली आ रही इस अवधारणा को तहस-नहस कर स्त्री व पुरुष के जीवन से अन्य सभी संबंधों को निकालकर नितांत एकाकी बनाने वाले कौन लोग रहे होंगे और इनमें उनका क्या स्वार्थ रहा होगा। खास बात यह है कि सुभद्रा को कृष्ण से कुछ कहना या मांगना नहीं पड़ता, वह स्वयं ही उसे समझकर उसकी इच्छा पूरी कर देते हैं तो कृष्ण को पूजने वालों के मन में इतनी संवेदनशीलता क्यों नहीं है? छठी मइया ने तो आपको नहीं कहा कि आप अपने माता – पिता समान सास-ससुर से अपने पति को दूर कर दें क्योंकि वह आपकी गृहस्थी के साम्राज्य को फिट नहीं करते। आपको बुरा लगता है जब मायके में बहन के रूप में आपको भाभी जितना सम्मान नहीं मिलता मगर अपनी ससुराल में आप खुद बर्दाश्त नहीं कर पातीं कि आपको छोड़कर आपका पति किसी और की बात सुनें, करें। पता नहीं…लड़के और लड़कियों को यह अहंकार का रोग कहां से लग गया। पता नहीं क्यों कई बार सास-ससुर भी अपनी बहू-बेटे को नहीं समझना चाहते। मैं नहीं समझ पाती कि अनायास सामंजस्य से चलने वाला परिवार वैमनस्य और वर्चस्व का अखाड़ा कैसे बन जाता है? परिवार से दूर रहना और कई बार मायके वालों के कहने में आकर अपनी गृहस्थी बना लेना पहले -पहल बहुत अच्छा लगता है मगर चुनौतियां वहाँ कम नहीं होतीं, बढ़ जाती हैं। आपको ताने कसने वाले कम नहीं होते बल्कि बढ़ जाते हैं। एक समय के बाद आप थक जाती हैं क्योंकि अंततः हम सभी मनुष्य हैं। ससुराल में जो काम आपके साथ चार लोग करते थे, वह सारे काम अब आपको अकेले करने होते हैं, जो खर्च मिल-बांट कर उठा लिया जाते थे…वह सारे खर्च अब आपको खुद करने होते हैं। आपको सुनने वाला कोई नहीं होता, आप किसी के कंधे पर सिर रखकर नहीं रो पाते। पहले वाला प्यार अब खीझ में बदलकर द्वेष और कलह बन जाता है। जिम्मेदारियों के बोझ से दबी आप ठीक से रहना भूल जाती हैं। जिन्होंने आपका घर तोड़ा, गौर से देखिएगा, वह अपने घर नहीं टूटने देते। समझदारी और वैयक्तिता को महत्व देने की जरूरत है और दोनों ओर से दिये जाने की जरूरत है। आप नहीं जानते कि एक पीढ़ी जब साथ रहती है और जुड़ी रहती है तो वह आपका सुरक्षा कवच रहती है, सपोर्ट सिस्टम बनी रहती है। परिवार से दूर रहना सपोर्ट सिस्टम खो देना होता है। बुजुर्गों को थोड़ा सा आदर चाहिए और उनकी जरूरतों को पूरा करते रहने की जरूरत है। आज आपको यह खटक सकता है लेकिन कल्पना कीजिए कि कल आप दोनों भी बूढ़े होंगे और आपके बच्चे आपको ताने मारेंगे। हाथ उठा सकते हैं और आप अपना बचाव भी नहीं कर सकेंगे क्योंकि शरीर और मन से आप थक चुके होंगे। आज जिस तरह से अपने भाई -बहनों से जुड़े रहने के लिए आप अपने पति को कोसती हैं, कल को आपके बेटे को आपकी बहू कोसेगी..तब क्या आपके पास कोई जवाब होगा। मगर भाई या देवर व जेठ ननद, जेठानी, देवरानी, बहन और बुआ के साथ रहते हुए ऐसा करने में वह दस बार सोचेगा…..लिहाज न हो तो भी लिहाज बड़ी चीज है। हिंदू संस्कृति अत्यंत पुरातन होते हुए भी चिर नूतन है, इसकी मान्यताएं आज के वैज्ञानिक युग में भी हमारे जीवन को सार्थक दिशा दिखाती हैं। जीवन मूल्य और संस्कार हमें पुरातन संस्कृति से ही प्राप्त होते हैं ,तथा इस संस्कृति के मूल आधार हैं हमारे सनातन परिवार। अतः सनातन संस्कृति को जागृत और चैतन्य रखने का दायित्व हमारे परिवारों पर ही है। परिवार केवल व्यक्तियों के एकत्र रहने की व्यवस्था का नाम नहीं है, यह समाज की आधारभूत सांस्कृतिक, आध्यात्मिक तथा आर्थिक इकाई है ।प्रत्येक परिवार उत्तम मनुष्य निर्माण की पाठशाला है। भारतीय संस्कृति में परिवार की परिभाषा में तीन-चार पीढ़ियों का समावेश होता था। कल आज और कल का समन्वय ही परिवार कहलाता था। दादा-दादी, माता-पिता, चाचा-चाची, भाई- भाभी, बहन- बहनोई ये सब एक ही छत के नीचे एक परिवार का हिस्सा होते थे। यहां तक कि घर में काम करने वाले सेवक, कर्मचारी, पड़ोसी इन सब से भी पारिवारिक संबंध होते थे। इतना ही नहीं हम तो पशु -पक्षी, पेड़- पौधे, प्रकृति को भी परिवार मानते हैं- तुलसी माता, गौ माता, गंगा मैया आदि।
आपके अहंकार में बच्चों ने रिश्ते नहीं देखे, निभाना नहीं सीखा, झुकना नहीं सीखा। लाड़ -दुलार ने उनको जिद्दी और स्वार्थी बना दिया है । जो बात आज आपको कूल लग रही है, कल वही जी का जंजाल भी बन सकती है क्योंकि कल को अगर कोई भी उल्टा- सीधा कदम उठाता है तो लोग आप पर ताने कसेंगे..कैसे रोकेंगे आप दोनों।
वसुधैव कुटुंबकम् की धारणा हमारी ही संस्कृति की उपज है, अर्थात पूरा विश्व ही हमारा परिवार है, सभी हमारे अपने हैं।
परिवार समाज और देश का अस्तित्व नारी से ही है नारी के बिना परिवार की कल्पना भी नहीं कर सकते। मां ,बहन, पत्नी अथवा बेटी के बिना कोई घर घर नहीं लगता।कहावत है -बिन घरनी घर भूत का डेरा। जिस घर में परिवार के सदस्यों को महिला के हाथ का बना भोजन प्राप्त नहीं होता, जहां मां की कोमल वाणी नहीं गूंजती, जहां बहन का स्नेह सिक्त स्पर्श नहीं मिलता वह घर तो सोने का महल हो तो भी वीरान ही लगता है। आज के सन्दर्भ में देखा जाए तो खाना बनाने का काम महिला-पुरुष मिलकर कर सकते हैं। जिन लड़कियों ने संयुक्त परिवार की मिठास नहीं देखी, जो अपने पारिवारिक यूटोपिया में रहती आ रही हैं, परिवार उनको ही खतरा लगता है। सच तो यह है कि अगर ऐसी स्थिति है तो आपको विद्रोह भी उसी व्यवस्था के भीतर रहकर करना होता है, वरना सोचिए आप कितने तालाब खोद सकती हैं।
ईश्वर ने आपको क्षमता दी है कि आप परिवार को साथ लेकर चल सकें तो आपको यह दायित्व तो निभाना होगा। पेशेवर जगत के लिहाज से देखा जाए तो पूछा जा सकता है कि क्या आप दिक्कत होने पर अपने पति को लेकर ससुराल से अलग हो गयीं, क्या कल को अपनी कम्पनी में दिक्कत होने पर उससे अलग हो जाएंगी या सबको साथ लेकर चलने का प्रयास करेगी। जो प्रयास आप बाहर की दुनिया में करती हैं, वह अपने घर में क्यों नहीं कर सकतीं? आप आर्थिक मामलों में सुझाव देकर सहभागिता कर सकती है। घर की छोटी से छोटी तथा बड़ी से बड़ी समस्याओं से परिवार को बाहर निकालने की हिम्मत और क्षमता हर महिला में होती है। घर में एक महिला जाने अनजाने अनेकों दायित्वों का वहन खुशी-खुशी अपने परिवार के लिए करती है। एक अच्छी भोजन विशेषज्ञा, सेविका, शिक्षिका, चिकित्सक ,समय प्रबंधक, वित्त प्रबंधक आदि के जन्मजात गुण ईश्वर ने उसे दिए हैं। जिसने अपने मां -पिता और बड़ी मां या बड़े बाबूजी या चाचा को साथ देखा है। सुख-दुःख बांटते देखा है, वह कभी इस तरह की वाहियात बातें नहीं करेगा। आप अपने पापा के भाई को चाचा कहने में शर्माती हैं, पति के भाई को देवर कहने में शरमाती हैं तो सबसे पहले तो आपको अपना आकलन और विश्लेषण खुद करना होगा।
यहां एक बात जरूरी है कि सारी भूमिकाओं के निर्वहन की उम्मीद सिर्फ एक महिला से नहीं की जानी चाहिए। घर के बड़े बुजुर्ग जिम्मेदारियां बांट सकते हैं। निष्पक्ष होकर बात सुन सकते हैं और बहुत ज्यादा उम्मीद के बगैर भी अच्छी तरह जी सकते हैं।
इस बात को दिमाग से निकालिए कि स्त्री कोई देवी है। वह मानवी है, उसकी संवेदनाओं का ख्याल रखिए और उसे भी सबकी संवेदनाओं के बारे में सोचना चाहिए। प्यार और आदर दोनों हाथों से बजने वाली ताली है। यह लड़कों और लड़कियों के हाथ में है कि अपने जीवनसाथी को अपने रिश्तों के बीच में किसी कीमत पर नहीं आने दें। यह उम्मीद छोड़ दीजिए कि आपके आने से आपके साथी का जीवन बदल जाएगा। अगर आप 25-30 साल रहकर, सब कुछ छोड़कर आई हैं तो आपकी सास और ननद ने भी अपने जीवन की पूंजी आपको सौंपी है। योगदान दोनों तरफ से है तो अहंकार किसी एक में क्यो और किसलिए? आप क्यों अपने साथी को समंदर से बाहर लाकर कुएं में रखना चाहती हैं। आप अपने पति को साथ रखना चाहती हैं तो उसका एक ही तरीका है, उनको अपने परिवार से और अपने बच्चों को उनके दादा-दाद, चाचा-चाची, बुआ-फूफा या भाई -बहनों से अलग मत करें। बच्चे स्ट्रेस बस्टर होते हैं। आपको उनको भौतिक तौर पर अलग कर भी लें मगर अन्दर ही अन्दर आप अपने साथी को खो रही होती हैं। जीवन की गाड़ी अकड़ से नहीं, संतुलन से चलती है। यही बात सास-ससुर, देवर-देवरानी, ननद- जेठ -जेठानी पर लागू होती है….आप अपनी संतानों की गृहस्थी का सीमेंट बनिए…जहाँ जरूरी हो, वहां हस्तक्षेप जरूर कीजिए मगर उनकी मजबूरियों को समझिए….फिर भी सबसे बड़ी जिम्मेदारी युवाओं की है और उनको यह समझना होगा कि शादी उनकी जिन्दगी का हिस्सा है, पूरी जिन्दगी नहीं है।
परिवार है तो स्वावलंबन है बशर्ते परिवार सामंजस्य की कसौटी पर खरा उतरे। आप घर में ही कोई काम अपने परिवार के सदस्यों के साथ कर सकती हैं या अगर नौकरी भी करती हैं तो निश्चित होकर अपने बच्चों को घर में छोड़ सकती हैं। हम यह नहीं कहते कि मामा-मामी या मौसा-मौसी प्यार नहीं करते मगर वह आपके साथ हमेशा नहीं रह पाएंगे, यह भी सच है। ऐसी स्थिति में आपके जेठ, देवर, देवरानी, ननद जैसे रिश्ते खड़े रहेंगे, याद रखएभले ही आप दोनों को साथ चलना है मगर सफर को आसान बनाना हो तो सहयात्रियों की जरूरत पड़ती है और परिवार से अच्छा सहयात्री कोई नहीं हो सकता। यही बात हमारे हर पर्व-त्योहार सिखाते हैं।