Tuesday, September 16, 2025
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नींबू से चमकाएं घर – आँगन

नींबू अपने चटपटे और खट्टे स्वाद की वजह से खाने में खूब इस्तेमाल किया जाता है. लेकिन इसके कुछ खास गुणों के कारण इसका इस्तेमाल सौंदर्य बढ़ाने के लिए और घर की सफाई में भी खूब किया जाता है। आइए जानें, नींबू के ऐसे ही गुणों के बारे में जो आपके घर के हर कोने के चमका देंगे…

माइक्रोवेव को साफ करने के लिए एक कप पानी में नींबू के टुकड़े काटकर इसे माइक्रोवेव में 15 मिनट के लिए गर्म होने के लिए रख दें। इसके बाद इसे निकाल ने और माइक्रोवेव को किचन टॉवल से साफ कर लें। यह एक बार फिर से नया सा हो जाएगा।

कूड़े के डिब्बे से बदबू हटाने के लिए नींबू के रस को अच्छी तरह से इसमें डालें और फिर ठंडे पानी से इसे धो दें।

 कपड़ों से दाग हटाने के लिए नींबू के टुकड़े को उस दाग पर रगड़े और फिर इसे धोकर धूप में सूखा लें. दाग गायब हो जाएगा। सब्जी काटने के चॉपिंग बोर्ड से फल और सब्जी के दाग हटाने के लिए नींबू के टुकड़े को इस पर रगड़ने से दाग और सब्जी की महक दोनों निकल जाएगी।

बाथरूम में लगे स्टील के नल में लगे दाग हटाने में भी नींबू बहुत काम आता है।

सिंक साफ करने के लिए नींबू को नमक में नि‍चोड़ कर एक गाढ़ा पेस्‍ट बना लें और उसको साबुन के घोल के साथ मिला कर सिंक की सफाई करें।

आप खिड़कियों के शीशे, शीशे के दरवाजे और यहां तक कि अपनी कार के शीशों को भी नींबू की मदद से साफ कर सकती हैं।

 

ये हैं दुनिया की इकलौती महिला महावत

महावत शब्द सुनते ही हमारी आंखों के सामने एक ऐसे शख्स का चेहरा उभर जाता है जो छोटी धोती पहनता हो, हाथ में एक लकड़ी पकड़े होता हो और सिर पर पगड़ीनुमा कपड़ा बांधे रखता हो मगर इस कल्पना में महिला कहीं नहीं होती। हाथियों को अपने इशारों पर चलाने का काम पुरुषों का ही माना जाता रहा है लेकिन पार्वती बरुआ दुनिया की इकलौती और अकेली ऐसी महिला हैं जो हाथियों को अपने हिसाब से चलाती हैं। महावत के रूप में वे दुनिया की अकेली महिला हैं और उन्हें उनके इस काम के लिए लाइफटाइम अचीवमेंट अवॉर्ड भी मिल चुका है।

असम के गौरीपुर के एक राजघराने से ताल्लुक रखने वाली पार्वती को शुरू से ही जानवरों से खास लगाव था। खासतौर पर हाथि‍यों से। उनका यही प्यार उनकी जिंदगी का लक्ष्य बन गया और उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी जानवरों की सेवा में लगाने का फैसला कर लिया। वो एशियन एलीफैंट स्पेशलिस्ट ग्रुप, आईयूसीएन की सदस्य भी हैं. उनकी जिंदगी पर कई डॉक्यूमेंट्री बन चुकी हैं. वो हाथि‍यों को बचाने के लिए भी काफी सक्रिय रहती हैं।

 

आइसक्रीम की मिठास से दें गर्मी को मात

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सामग्री – एक लीटर गाढ़ा दूध, दो केले, एक छोटा चम्मच कोको पाउडर, एक बड़ा चम्मच कसी हुई चॉकलेट, दो बड़े चम्मच चीनी, आवश्यकतानुसार कटे बादाम व पिस्ता।

विधि – केलों को छीलकर उन्हें बड़े-बड़े टुकड़ों में काट लें। मिक्सी में केले के टुकड़े व चीनी मिलाकर फेंटें, दूध, कोको पावडर व चॉकलेट मिलाकर थोड़ा और फेंटें। तैयार मिश्रण को ट्रे में डालकर जमने के लिए फ्रीजर में रख दें। जम जाने पर कटे हुए बादाम डालकर सर्व करें।

मिक्स फ्रूट आइसक्रीम

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सामग्री – एक कप संतरे का रस, एक कप अनन्नास का रस, आधा कप अनार का रस, आधा कप सेब का रस, आधा कप अंगूर का रस, दो कप कंडेस्ड मिल्क, एक बड़ा चम्मच नींबू का रस।

विधि – सभी रस मिलाकर आंच पर चढ़ाएं और तब तक पकने दें जब तक वह आधा न रह जाए। ठंडा होने पर उसमें कंडेंस्ड मिल्क डालकर अच्छे से मिक्सर में फेंटें और जमने के लिए फ्रीजर में रख दें।

आधा सेट होने पर दोबारा मिक्सर में चलाकर जमने के लिए रख दें। जमने पर उसमें स्ट्रॉबेरी सॉस व चॉकलेट सॉस से सजाकर सर्व करें।

 

 

अब पहनें फ्लेयर्ड पैंट्स

flaired pants 3अगर अभी तक आपके पास फ्लेयर्ड पैंट का एक भी पेयर मौजूद नहीं है तो देर ना करें और इसे आज ही अपने वॉर्डरोब का हिस्सा बनाएं। भारतीय फैशन में शामिल हुए फ्लेयर्ड पैंट्स काफी वर्सटाइल (ये इंडियन और वेस्टर्न आउटफिट, दोनों के साथ अच्छे लगेंगे), आरामदायक और कूल लुक वाले होते हैं।  जानिए इसे पहनने के खास तरीके –

एसिमेट्रिकल कुर्ते के साथ –इस सीज़न एसिमेट्रिकल कुर्ते हर तरफ छाए हुए हैं। चूड़ीदार या लेगिंग्स की जगह फ्लेयर्ड पैंट्स पहनें और अपने कुर्ते को दें एक नया लुक।

क्रॉप्ड जैकेट और फॉर्मल शर्ट के साथ –क्या आप कुछ ऐसा ढूंढ रही हैं, जो देखने में स्टाइलिश तो हो लेकिन आपके ऑफिस में भी पहनने के लिए परफेक्ट हो? तो फ्लेयर्ड पैंट्स आपकी इस चाहत को पूरा करने में मदद करेगा। फ्लेयर्ड पैंट्स को एक फॉर्मल या अपनी कोई पुरानी व्हाइट शर्ट के ऊपर ट्रेक्सचर्ड क्रॉप्ड जैकेट के साथ पेयर करें। बस और क्या आप हो गई तैयार।

क्रॉप टॉप के साथ –बीच या पूल पार्टी में जाना है? तो अपने फ्लेयर्ड पैंट्स को क्रॉप टॉप के साथ पहनें और एक कूल रिजॉर्ट लुक के लिए इसे एक लंबे और फ्लोइंग जैकेट के साथ पेयर करें।3044d10bed121213b271606e6359fbd6

शर्ट कुर्ती के साथ –इस सीज़न कुर्ते के स्टाइल में काफी बदलाव देखने को मिले हैं। शर्ट के इन स्टाइल को ज़्यादा इंडियन लुक देने का काम किया गया है और ये ऑफिस जाने वाली औरतों के बीच काफी पॉपुलर हो रहे हैं। अपने शर्ट कुर्ती को एक कॉन्ट्रास्टिंग प्रिंटेड पैंट्स के साथ पेयर करें।

फ्रंट-स्लिट कुर्ती के साथ –फ्लेयर्ड पैंट्स फ्रंट स्लिट वाली कुर्ती का बेस्ट पार्टनर माना जाता है। ये आपको ट्रेंडी लुक देते हुए आपकी शालीनता को भी बनाए रखेगा। इस लुक के लिए कुर्ती और फ्लेयर्ड पैंट्स का कॉन्ट्रास्टिंग कलर कॉम्बिनेशन बेस्ट रहेगा।

अनारकली के साथ – चूड़ीदार के साथ प्रिंटेड टाइटस. स्ट्रेट-फिट पैंट्स और हां, फ्लेयर्ड पैंट्स पहनना ट्रेंड में है। इसके साथ कॉन्ट्रास्टिंग कलर और फैब्रिक पहनें।

स्ट्रेट-फिट कुर्ती के साथ –स्ट्रेट-फिट कुर्ती का फ्लेयर्ड पैंट्स बेस्ट पार्टनर है। ये शरीर के निचले हिस्से पर सही तरह से फिट होकर देता है बैलेंस्ड लुक। ये आपके ऑफिस या कैज़ुअल डे आउट, दोनों के लिए एक परफेक्ट ऑप्शन है।

टक्ड-इन शर्ट के साथ –फ्लेयर्ड पैंट्स टक्ड-इन फॉर्मल या कॉलर्ड शर्ट के साथ काफी अच्छे लगेंगे, खासकर ऑफिस में।Anita Dongre 4

काफ्तान के साथ – कभी बीच पर पहने जाने वाले आउटफिट के तौर पर जाने जाना वाला काफ्तान आज इंडियन ड्रेसिंग का हिस्सा बन चुका है। ये अब टाइट्स और सिगरेट पैंट्स जैसे कई अलग-अलग लोअर्स के साथ पेयर किए जा रहे हैं। यहां तक कि अब इसे बिना लोअर के एक ड्रेस की तरह भी पहना जा रहा। इस सीज़न, डिज़ाइनर्स ने काफ्तान को फ्लेयर्ड पैंट्स के साथ पेयर कर उसे दिया है बोहो-शीक लुक।

पार्टी के लिए –सही फैब्रिक और एम्बेलिश्मेंट वाले फ्लेयर्ड पैंट्स आपके लिए बन सकता है एक लाजबाब पार्टी आउटफिट। इसे शॉर्ट कुर्ती और दुपट्टे या फ्लोइंग जैकेट और स्लिट स्लीव्स के साथ पेयर करें।

 

फ़ीफ़ा में पहली बार महिला महासचिव

विश्व फ़ुटबॉल को संचालित करने वाली संस्था फ़ीफ़ा के इतिहास में पहली बार इसकी महासचिव के रूप में एक महिला को चुना गया है। सेनेगल की 54 वर्षीय फातिमा सांबा जूफ़ सैम्यूरा ने 21 वर्षों तक संयुक्त राष्ट्र में काम किया है और वो जून से फीफा के लिए काम करेंगी। सैम्यूरा, ज़ैरूम वाल्क का स्थान लेंगी जिन्हें पिछले साल भ्रष्टाचार के आरोपों में बर्खास्त कर दिया गया था। सैम्यूरा की नियुक्ति की घोषणा करते हुए फीफा के अध्यक्ष जानी इन्फैनटिनो ने कहा कि वो संस्था के लिए एक ताज़ा हवा के झोंके की तरह होंगी जो बाहर से हैं और संस्था में नई भी हैं।

 

 

‘नौसेना कैप्टन जो साथियों की जान बचाता रहा…’

भारतीय नौसेना में ऐसा कोई लिखित आदेश नहीं है कि अगर कोई युद्ध पोत डूब रहा हो, तो उसका कैप्टन भी उसके साथ जल समाधि ले. ये महज़ एक नौसैनिक परंपरा है और उसका हाल की नौसैनिक लड़ाइयों में कभी भी पालन नहीं किया गया है.

1982 के फ़ॉकलैंड युद्ध में ब्रिटेन और अर्जेन्टीना दोनों पक्षों के कुल सात युद्धपोत डुबोए गए, लेकिन सभी के कैप्टन न सिर्फ़ बच निकले बल्कि बाद में उन्होंने अपने संस्मरण भी लिखे। 23 मई, 1941 को लार्ड माउंटबेटन का पोत ‘एचएमएस केली’ नौसैनिक एक्शन में डूब गया, लेकिन वो अपने पोत के साथ समुद्र के गर्त में नहीं समाए लेकिन कैप्टन महेंद्रनाथ मुल्ला दूसरी मिट्टी के बने थे। 6 दिसंबर, 1971 के आसपास भारतीय नौसेना को संकेत मिले कि एक पाकिस्तानी पनडुब्बी दीव के तट के आसपास मंडरा रही है। नौसेना मुख्यालय ने आदेश दिया कि भारतीय जल सीमा में घूम रही इस पनडुब्बी को तुरंत नष्ट किया जाए और इसके लिए एंटी सबमरीन फ़्रिगेट आईएनएस खुखरी और कृपाण को लगाया गया. दोनों पोत अपने मिशन पर आठ दिसंबर को मुंबई से चले और नौ दिसंबर की सुबह होने तक उस इलाक़े में पहुँच गए, जहाँ पाकिस्तानी पनडुब्बी ‘हंगोर’ के होने का संदेह था।

लंबी दूरी से टोह लेने की अपनी क्षमता के कारण ‘हंगोर’ को पहले ही खुखरी और कृपाण के होने का पता चल गया. यह दोनों पोत ज़िग ज़ैग तरीक़े से पाकिस्तानी पनडुब्बी की खोज कर रहे थे. हंगोर ने उनके नज़दीक आने का इंतज़ार किया. पहला टॉरपीडो उसने कृपाण पर चलाया। हंगोर के कैप्टन लेफ़्टिनेंट कमांडर तसनीम अहमद याद करते हैं, “पहला टॉरपीडो कृपाण के नीचे से गुज़रा लेकिन फट नहीं पाया. इसे आप एक तरह की तकनीकी नाकामी कह सकते हैं. भारतीय जहाज़ों को हमारी पोज़ीशन का पता चल चुका था, इसलिए मैंने हाई स्पीड पर टर्न अराउंड करके खुखरी पर पीछे से फ़ायर किया. डेढ़ मिनट की रन थी और मेरा टॉरपीडो खुखरी की मैगज़ीन के नीचे जा कर फटा और दो या तीन मिनट के भीतर जहाज़ डूबना शुरू हो गया। “खुखरी में परंपरा थी कि सभी नाविक ब्रिज के पास इकट्ठा होकर रात आठ बजकर 45 मिनट के समाचार एक साथ सुना करते थे, ताकि उन्हें पता रहे कि बाहर की दुनिया में क्या हो रहा है। समाचार शुरू हुए, “यह आकाशवाणी है, अब आप अशोक बाजपेई से समाचार…” समाचार शब्द पूरा नहीं हुआ था कि पहले टॉरपीडो ने खुखरी को हिट किया. कैप्टन मुल्ला अपनी कुर्सी से गिर गए और उनका सिर लोहे से टकराया और उनके सिर से ख़ून बहने लगा। दूसरा धमाका होते ही पूरे पोत की बत्ती चली गई. कैप्टन मुल्ला ने मनु शर्मा को आदेश दिया कि वह पता लगाएं कि क्या हो रहा है। मनु ने देखा कि खुखरी में दो छेद हो चुके थे और उसमें तेज़ी से पानी भर रहा था. उसके फ़नेल से लपटें निकल रही थींउधर सब लेफ़्टिनेंट समीर कांति बसु भाग कर ब्रिज पर पहुँचे. उस समय कैप्टेन मुल्ला चीफ़ योमेन से कह रहे थे कि वह पश्चिमी नौसेना कमान के प्रमुख को सिग्नल भेजें कि खुखरी पर हमला हुआ है। इससे पहले कि बसु कुछ समझ पाते कि क्या हो रहा है, पानी उनके घुटनों तक पहुँच गया था. लोग जान बचाने के लिए इधर उधर भाग रहे थे. खुखरी का ब्रिज समुद्री सतह से चौथी मंज़िल पर था. लेकिन मिनट भर से कम समय में ब्रिज और समुद्र का स्तर बराबर हो चुका था।

कैप्टेन मुल्ला ने बसु की तरफ़ देखा और कहा, ‘बच्चू नीचे उतरो.’ बसु पोत के फ़ौलाद की सुरक्षा छोड़ कर अरब सागर की भयानक लहरों के बीच कूद गए. समुद्र का पानी बर्फ़ से भी ज़्यादा ठंडा था और समुद्र में पाँच-छह फ़ीट ऊँची लहरें उठ रही थीं। उधर मनु शर्मा और लेफ़्टिनेंट कुंदनमल भी ब्रिज पर कैप्टेन मुल्ला के साथ थे. मुल्ला ने उनको ब्रिज से नीचे धक्का दिया. उन्होंने कैप्टन मुल्ला को भी साथ लाने की कोशिश की, लेकिन कैप्टन ने इनकार कर दिया। जब मनु शर्मा ने समुद्र में छलांग लगाई, तो पूरे पानी में आग लगी हुई थी और उन्हें सुरक्षित बचने के लिए आग के नीचे से तैरना पड़ा. थोड़ी दूर जाकर मनु ने देखा कि खुखरी का अगला हिस्सा 80 डिग्री का कोण बनाते हुए लगभग सीधा हो गया है. पूरे पोत मे आग लगी हुई है और कैप्टन मुल्ला अपनी सीट पर बैठे रेलिंग पकड़े हुए हैं। जब अंतत: खुखरी डूबा तो बहुत ज़बरदस्त सक्शन प्रभाव हुआ और वह अपने साथ कैप्टन मुल्ला समेत सैकड़ों नाविकों और मलबे को नीचे ले गया. कैप्टन मुल्ला की बेटी अमीता मुल्ला वातल, इस समय दिल्ली के मशहूर स्प्रिंगडेल स्कूल की प्रिंसिपल हैं. उस समय वो महज़ 15 साल की थीं।

अमीता बताती हैं, “उस समय हम दोनों बहनें शिमला के जीज़स एंड मैरी कॉन्वेंट में पढ़ा करते थे. हम लोग छुट्टियों में अपने माता पिता के पास मुंबई आए हुए थे. हम लोग 10 दिसंबर को अपने घर में बैठे हुए थे. कैप्टन कुंते, जो हमारे फ़ैमिली फ़्रेंड थे और बाद में एडमिरल बने, वो हमारे घर आए.।“उन्होंने मुझसे कहा अपनी माँ को बुलाओ. उन्होंने मेरी माँ से कहा हिज़ शिप हैज़ बीन हिट… ये सुनते ही मेरी माँ नीचे ज़मीन पर बैठ गईं. वो सोफ़े पर नहीं बैठीं. उनके मुंह से तुरंत निकला अब वो वापस नहीं आएंगे. इसके बाद वो अजीब तरह से कांपने लगीं. मैं अंदर से कंबल ले आई और उन्हें उढ़ाया. अगले दिन एडमिरल कुरविला की बीवी ने मेरी माँ से कहा कि बचने वालों में कैप्टेन मुल्ला नहीं हैं. उनको आख़िरी बार लोगों को बचाते हुए देखा गया था।”

जनरल इयान कारडोज़ो ने खुखरी के डूबने पर एक किताब लिखी है. जब बीबीसी ने उनसे पूछा कि क्या खुखरी को हंगोर से बचाया जा सकता था तो उनका कहना था, “अगर खुखरी की हिफ़ाज़त में लगे सी किंग हेलिकॉप्टर शाम साढ़े छह बजे के बाद वहाँ से हटा नहीं लिए गए होते. उन हेलिकॉप्टरों की कमान भी कैप्टेन मुल्ला के हाथ में नहीं थी।”“किसी भी नौसेना का ये क़ायदा होता है कि अगर किसी इलाक़े में पनडुब्बी होने का संदेह हो तो पोत ज़िगज़ैग बनाते हुए चलते हैं. खुखरी भी यही कर रहा था जिसकी वजह से उसकी रफ़्तार धीमी हो गई थी. उस समय खुखरी पर नए क़िस्म के सोनार का भी परीक्षण चल रहा था, जिससे उसकी रफ़्तार और धीमी हो गई थी. यही वजह थी कि हंगोर को उसे अपना निशाना बनाने में आसानी हुई.”

जिस समय कैप्टेन मुल्ला की मृत्यु हुई, उनकी पत्नी सुधा मुल्ला केवल 34 साल की थीं। सुधा याद करती हैं, “शादी के बाद मैंने महसूस किया कि ये इतने मेच्योर आदमी हैं कि मेरी बातें तो उन्हें मज़ाक़ लगती होंगीं। इनके जितने भी दोस्त थे सब इनसे उम्र में 15-20 साल बड़े थे।. ये अपनी उम्र वालों को बहुत सतही समझते थे. हालांकि वो मुझसे तेरह साल बड़े थे लेकिन मुझसे बहुत ठीक से पेश आते थे. मेरी किसी भी इच्छा को उन्होंने न नहीं किया. जब हमारी लंदन में पोस्टिंग हुई, तो मैंने कहा कि मैं सारा यूरोप देखना चाहती हूँ. उन्होंने कहा तुम फ़िक्र न करो, मैं बच्चों को देख लूँगा. बच्चे बहुत छोटे हैं. इन्हें घुमाने ले जाने का कोई तुक नहीं है. उन्होंने मुझे सारा यूरोप घुमाया।”कैप्टेन मुल्ला की सोच आम आदमियों जैसी नहीं थी. उन्हें ये क़तई पसंद नहीं था कि जन्मदिन के मौक़े पर उपहार दिए या लिए जाएं. अमीता याद करती हैं, “वो हमसे कहते थे आप जाएंगी जन्मदिन पर और ज़ोर से कहेंगी… हैपी बर्थ डे, मैं बिना गिफ़्ट के आई हूँ, क्योंकि आपने मुझे बुलाया है मेरे गिफ़्ट को नहीं. हमें बड़ी शर्म आती थी. मम्मी से जा कर कहते थे कि कुछ तो दे दो. लोग कहेंगे बहुत ही कंजूस बच्चे हैं. बेचारी मेरी माँ पीछे से टॉफ़ी का एक डिब्बा पकड़ाती थीं. लेकिन वो इस पर भी नज़र रखते थे. हमारे बैरे से पूछते थे कहीं बच्चे टॉफ़ी का डिब्बा तो नहीं ले जा रहे?”अमीता बताती हैं कि कैप्टेन मुल्ला उनका शब्दकोष बढ़ाने के लिए काफ़ी जतन करते थे. वे कहते हैं, “हमारे पिता हमारे साथ स्क्रैबल और क्रास वर्ड बहुत खेलते थे. उससे हम लोगों का शब्दकोष बहुत बढ़ा. उनकी दोस्ती बहुत यूनीक लोगों के साथ होती थी. बेगम अख़्तर हमारे यहाँ आती थीं. वो हारमोनियम बजाते थे और दोनों साथ गाते थे. ऐ मोहब्ब्त तेरे अंजाम पे रोना आया उनकी पसंदीदा ग़ज़ल हुआ करती थी.”“महर्षि महेश योगी भी हमारे यहाँ पधारते थे. एक बार वो अपने पूरे दल के साथ हमारे यहाँ आ कर रुके थे. फ़िल्म के हीरो ‘राज कुमार’ और याक़ूब से भी उनकी गहरी दोस्ती थी. उनका एक ब्रिज सर्किल हुआ करता था जिसमें बौद्धिक लोग भाग लिया करते थे. इससे हमारा रुझान कला, विविधता और तरह तरह के इंसानों से रिश्ता बनाने की तरफ़ बढ़ा.”।सुधा मुल्ला बताती हैं कि कैप्टेन मुल्ला अपना सारा वेतन उनके हाथ में रख देते थे और फिर थोड़ा पैसा अपना मेस बिल और सिगरेट कें ख़र्चे के लिए वापस ले लिया करते थे. मेरे साथ की अफ़सरों की बीवियाँ इस बात पर हैरत भी किया करती थीं. उनका प्रिय वाक्य हुआ करता था मुश्किल है लेकिन मुमकिन है. वो उनसे 6 दिसंबर, 1971 को आख़िरी बार मिली थीं जब वो उनसे मिलने के बाद फिर बाहर से वापस लौट कर आए थे और बोले मेरी पूरी बाँह वाली जर्सी निकाल दो क्योंकि डेक पर तेज़ हवा चलने से सर्दी लगती है।“जब मेरे दोस्त के पति ने आ कर बताया कि महेंद्र सरवाइवर्स में से हैं, तो मेरा माथा ठनका. मैं तभी समझ गईं कि अब ये वापस नहीं आएंगे. मैं ये कल्पना भी नहीं कर सकती थी कि ये मुसीबत में घिरे अपने साथियों को छोड़ कर अपनी जान बचाएंगे. बाद में बचे हुए लोगों ने मुझे बताया कि उन्होंने किसी को लात मार कर नीचे समुद्र फेंका था ताकि उसकी ज़िंदगी बच जाए. उन्होंगे एक सेलर को अपनी लाइफ़ जैकेट भी दे दी.”

मुल्ला चाहते तो अपनी लाइफ़ जैकेट पहन कर अपनी जान बचा सकते थे लेकिन उन्हें मालूम था कि खुखरी के लोवर डेक पर सौ से ऊपर नाविक फ़ंसे हुए थे और वो उन्हें चाह कर भी नहीं बचा सकते थे. उन्होंने तय किया कि वो अपने साथियों और जहाज़ के साथ जल समाधि लेंगे। अमीता मुल्ला कहती हैं, “जिस तरह से वो गुज़रे हैं उसकी वजह से मैं बहुत अलग क़िस्म की इंसान बनी. वो इसके अलावा कुछ और कर ही नहीं सकते थे. उनका जो मिज़ाज था जो उनका वैल्यू सिस्टम था उसमें वो कोई ऐसी चीज़ कर ही नहीं सकते थे कि वो दूसरों को उनके हाल पर छोड़ कर अपनी जान बचा लें. अगर वो ऐसा नहीं करते तो वो पापा नहीं होते वो कोई और इंसान होता. उनके इस फ़ैसले से यह साफ़ हो गया कि ही वाज़ वाट ही सेड ही वाज़.”

 

(साभार – बीबीसी)

सेहत बनाएं सलाद के साथ

बेबीकॉर्न-मशरूम सलाद

baby corn mashroom salad

सामग्री – 250 ग्राम बेबी कॉर्न, 250 ग्राम मशरूम, 2 बारीक कटी लाल मिर्च, 2 बारीक कटे टमाटर, 3 बारीक कटी प्याज, 1 बारीक कटा बड़ा चम्मच अदरक, 1 बारीक कटा हुआ लहसुन, 2 बड़े चम्मच स्वीट चिली सॉस, 2 बड़े चम्मच सोया सॉस, 1 बड़ा चम्मच नींबू का रस , 1 बड़ा चम्मच चीनी , नमक स्वादानुसार 

विधि – एक भारी तले के पैन बेबी कॉर्न और मशरूम डालकर हल्‍का उबाल लें। इसका पानी छानकर इसे अलग रख दें। अब एक बाउॅल में लहसुन, अदरक, स्वीट चिली सॉस, सोया सॉस, नींबू का रस, नमक, चीनी और लाल मिर्च एक साथ अच्‍छी तरह मिलाकर अलग रख लें। अब उबाले गए बेबीकॉर्न और मशरूम को काटकर तैयार सामग्री में मिला दें। बेबीकॉर्न और मशरूम सलाद तैयार है।

fruit salad

फ्रूट सलाद

 सामग्री – 1 चौकोर टुकड़ों में कटा खीरा, 1 चौकोर टुकड़ों में कटा हुआ सेब, 1 कप अनार के दाने
1 कप चौकोर टुकड़ों में पपीता, 1 चम्मच बारीक हरा धनिया, 1 चम्‍मच नींबू का रस,1 कप अंकुरित स्‍प्राउट्स,
स्‍वादानुसार नमक, स्‍वादानुसार कालीमिर्च पाउडर।

विधि  कटे हुए फलों को एक बॉउल में निकाल कर रख लें। अब एक पैन में 2 मिनट के लिए अंकुरित स्‍प्राउट्स को थोड़े से पानी डालकर उबाल लें। 2 मिनट के बाद इसे पानी से निकालकर छान लें और ठंडा कर लें। उबले हुए स्‍प्राउट्स को फलों के साथ अच्‍छी तरह मिक्‍स कर लें। अब फ्रूट सलाद में नींबू का रस, नमक और काली मिर्च पाउडर डालकर फिर से अच्‍छी तरह मिला लें। फ्रूट सलाद तैयार हैं. इसे नाश्‍ते में या फिर स्‍नैक्‍स में सर्व करें

ध्‍यान दें। आप चाहें तो इसे पत्‍तागोभी के पत्‍तों से सजा सकते हैं और आप इसमें अपनी पसंद के फल भी डाल सकती हैं।

 

दलबीर कौर को रणदीप में दिखा अपना भाई सरबजीत

दलबीर कौर अपने भाई सरबजीत सिंह पर तब फिल्म बनाना चाहती थीं जब वे पाकिस्तान की जेल में थे, लेकिन यह अब संभव हो पाया है जब उन्हें मरे दो साल होने को हैं।

‘सरबजीत’ फिल्म में लीड रोल कर रहे रणदीप हुडा से जब दलबीर कौर ने मुलाकात की तो पाया वे उनके भाई के किरदार के लिए एकदम परफेक्ट हैं। ओमंग कुमार निर्देशित ‘सरबजीत’ उस भारतीय की कहानी है जिसकी मौत पाकिस्तानी जेल में साथ में बंद कैदियों से हुई झड़प में हो गई थी।

दलबीर का कहना है ‘रणदीप कमाल के हैं। उन्होंने मेरे भाई का किरदार बेहतरीन तरीके से निभाया। जब मैं पहली बार उनसे मिली तो मुझे उनमें मेरा भाई ही नजर आया। जब मैंने उन्हें देखा तो वे एक जेल में थे और मैं अपने आंसू रोक नहीं पाई थी। मैं बुरी तरह रोई थी। मेरा ब्लड प्रेशर बढ़ गया था और लगभग बीमार हो गई थी। मेरे लिए वो लम्हे जबरदस्त रूप से भावुक कर देने वाले थे। मैंने उन्हें बताया था कि मुझे शक है कि मैं यह फिल्म देख पाऊंगी। अब मैं फिर भी ठीक महसूस कर रही हूं।’

पाकिस्तानी कोर्ट ने सरबजीत को आतंकवाद फैलाने और जासूसी का दोषी ठहराया था। उनकी मौत 49 साल की उम्र में हुई। ऐश्वर्या राय बच्चन इस फिल्म में दलबीर का किरदार निभा रही हैं। दलबीर ने अपने भाई की आजादी के लिए दो दशक तक लड़ाई लड़ी।

दलबीर ने बताया ‘मैं ऐश्वर्या से मिली और उन्हें बताया कि मैं बेहद खुश हूं कि वे मुझ पर आधारित रोल कर रही हैं। उन्होंने मुझपर काफी रिसर्च किया है। अपनी तरफ से पूरा न्याय किया, वे अद्भुत कलाकार हैं।’

उन्होंने बताया ‘जब सरबजीत जेल में थे तो कुछ लोग उन पर फिल्म बनाना चाहते थे। क्योंकि उन्हें लग रहा था कि इससे उन्हें छड़ाने के आंदोलन को हवा मिलेगी और सरकार पर भी दबाव बनेगा। लेकिन मैं उन दिनों उस मनोस्थिति में नहीं थी कि किसी को मंजूरी दे सकूं।’

उन्होंने आगे कहा ‘जब मैंने सुना कि ओमंग फिल्म बनाना चाहते हैं तो मैंने पूछा यह कौन है! मुझे बताया गया कि उन्होंने ‘मैरी कॉम’ बनाई है। मैंने मुलाकात की और अब मुझे खुशी है कि उनके जैसी हस्ती ने यह फिल्म बनाई।’ दलबीर की इच्छा है कि गलत इल्जामों के कारण जेल में बंद दोनों देश के बाशिंदों को इससे फायदा मिले।

 

अवसाद से जुड़े कुछ मिथक व कुछ तथ्य

इंसान का निराशाजनक स्थितियों से घिर जाना उसके पूरे स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव डालता है। उस पर यदि ऐसी स्थितियों को ठीक से समझा न जाए या इन्हें इलाज करवाने की बजाय नजरअंदाज किया जाए तो तकलीफ और भी बढ़ सकती है। खासतौर पर मानसिक उलझनों को समझने में अक्सर लोग ऐसा ही रवैया अपनाते हैं। डिप्रेशन या अवसाद भी इसी श्रेणी में आता है। जानिए कुछ मिथक और कुछ तथ्य इसी संदर्भ में।

व्यस्तता तो सबसे अच्छा इलाज है

हर केस में नहीं। अक्सर लोग यह समझते हैं और राय भी देते हैं कि डिप्रेशन होने पर खुद को काम में सिर से पैर तक व्यस्त कर लेना बेहतर उपाय है। यह बात केवल डिप्रेशन के माइल्ड केसेस में कुछ हद तक मददगार हो सकती है लेकिन गंभीर या गहन डिप्रेशन के मामलों में यह उल्टा असर भी कर सकता है। विशेषज्ञों के अनुसार बहुत ज्यादा काम करने लगना क्लीनिकल डिप्रेशन का लक्षण भी हो सकता है और ऐसे में मरीज के और भी निराशा में डूबते चले जाने की आशंका हो सकती है। खासतौर पर इस तकलीफ से पीड़ित पुरुषों में यह लक्षण देखा जाता है।

यह तो मन का वहम है

यह बात सबसे ज्यादा भारतीय परिवेश पर लागू होती है। हमारे यहां मानसिक उलझनों को लेकर हमेशा टालने वाला रवैया अपनाया जाता है और इन तकलीफों के इलाज को लेकर चुप्पी साध ली जाती है। मानसिक समस्याओं को बीमारी की श्रेणी में मानने और उसका इलाज करवाने वाले लोगों की संख्या उंगली पर गिनने लायक है। जबकि ठीक किसी अन्य बीमारी या तकलीफ की तरह ही डिप्रेशन के पीड़ित को भी दवाइयों और इलाज की आवश्यकता होती है। ब्रेन की स्कैनिंग में डिप्रेशन स्पष्ट दिखाई देता है। नर्व्स तक सिगनल्स ले जाने वाले ब्रेन के केमिकल्स असंतुलित हो जाते हैं। यह मन का वहम नहीं एक बीमारी है।

पुरुष अवसादग्रस्त नहीं होते

एक बहुत बड़ी भ्रान्ति जो दुनियाभर में लोगों के दिमाग में रहती है, लेकिन असल में डिप्रेशन का स्त्री-पुरुष से कोई लेना-देना नहीं होता। दोनों ही इसके शिकार हो सकते हैं। हां, चूंकि आदमी अपनी भावनाएं खुलकर प्रकट नहीं कर पाते, अत: उनमें डिप्रेशन के लक्षण गुस्से, चिड़चिड़ाहट, रेस्टलेस होने आदि के रूप में सामने आते हैं।

अवसाद के पीड़ित बहुत रोते हैं

यह भी हर केस के साथ जरूरी लक्षण नहीं होता। डिप्रेशन के पीड़ित कई लोग न तो रोते हैं न ही और कोई स्पष्ट लक्षण दर्शाते हैं। बल्कि वे स्थितियों को लेकर ब्लैंक हो जाते हैं और खुद को भीतर ही भीतर दूसरों पर बोझ समझकर जीने लगते हैं लेकिन सामने कुछ नहीं आने देते।

डिप्रेशन बढ़ती उम्र के कारण आता है

अगर ऐसा होता तो पूरी दुनिया में ढेर सारे टीनएजर और युवा इस तकलीफ से पीड़ित न होते। यह समस्या किसी भी उम्र के व्यक्ति को चपेट में ले सकती है। यह फैमिली हिस्ट्री में भी हो सकता है लेकिन सही इलाज, सकारात्मक माहौल, अच्छे दोस्तों या परिवार से संवाद, एक्सरसाइज और पोषक खान-पान और खुद पर विश्वास से लड़ाई जीती जा सकती है।

 

जानिए सिंहस्‍थ कुंभ में शामिल हुए किन्‍नर

सिंहस्थ महाकुंभ में पहली बार उज्जैन के दशहरा मैदान से किन्नर अखाड़े की पेशवाई निकाली गई. इसकी अगवानी किन्नर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी और सनातन गुरु अजय दास ने की। लक्ष्मी टीवी कलाकार, भरतनाट्यम नृत्यांगना और सामाजिक कार्यकर्ता हैं और किन्नरों के अधिकार के लिए काम करती हैं।

किन्नरों के बारे में कुछ रोचक जानकारी…

किन्नर अखाड़े का मुख्य उद्देश्य किन्नरों को भी समाज में समानता का अधिकार दिलवाना है। किन्नर अपने  आराध्य देव अरावन से सालमें एक बार विवाह करते है.।हालांकि ये विवाह मात्र एक दिन के लिए होता है. अगले दिन अरावन देवता की मौत के साथ ही उनका वैवाहिक जीवन खत्म हो जाता है। अगर किसी किन्नर की मृत्यु हो जाए तो उसका अंतिम संस्कार बहुत ही गुप्त तरीके से किया जाता है। ज्योतिष के अनुसार वीर्य की अधिकता से पुरुष (पुत्र) उत्पन्न होता है. रक्त (रज) की अधिकता से स्त्री (कन्या) उत्पन्न होती है. वीर्य और रज समान हो तो किन्नर संतान उत्पन्न होती है। किन्नरों का जिक्र धार्मिक ग्रंथों में भी मिलता है. महाभारत युद्ध को पाड़वों को जिताने का योगदान शिंखडी को भी जाता है। महाभारत के अनुसार एक साल के अज्ञातवास को काटने के लिए अर्जुन को एक किन्नर बनना पड़ा था। एक मान्यता है कि ब्रह्माजी की छाया से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है. दूसरी मान्यता है कि अरिष्टा और कश्यप ऋषि से किन्नरों की उत्पत्ति हुई है। कुंडली में बुध, शनि, शुक्र और केतु के अशुभ योगों से व्यक्ति किन्नर या नपुंसक हो सकता है. फिलहाल देश में किन्नरों की चार देवियां हैं।