Sunday, December 21, 2025
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करवा का व्रत

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– यशपाल

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कन्हैया लाल अपने दफ्तर के हमजोलियों और मित्रों से दो-तीन बरस बड़ा ही था, परन्तु ब्याह उसका उन लोगों के बाद ही हुआ था। उसके बहुत अनुरोध करने पर भी साहब ने उसे ब्याह के लिये सप्ताह भर से अधिक छुट्टी न दी थी। लौटा तो उसके अन्तरंग मित्रों ने भी उससे वही प्रश्न पूंछे जो प्रायः ऎसे अवसरों पर पूंछॆ जाए हैं और फिर वही परामर्श उसे दिये जो अनुभवी लोग नव-विवाहितों को दिया करते हैं।

हेमराज को कन्हैया लाल समझदार मानता था। हेमराज ने समझाया- बहू को प्यार तो करना ही चाहिये , पर प्यार में उसे बिगाड़ लेना या सर चढा लेना भी ठीक नहीं है। औरत सरकश हो जाती है, तो आदमी को उम्र भर जोरू का गुलाम ही बना रहना पड़ता है। उसकी जरूरतें पूरी करो पर रखो अपने काबू में। मार-पीट बुरी बात है पर यह भी नहीं कि औरत को मर्द का डर ही न रहे। डर उसे रहना ही चाहिये….मारे नहीं तो कम से कम गुर्रा तो जरूर दे। तीन बात उसकी मानो तो एक बात में न भी कर दो। यह न समझ ले कि जो चाहे कर या करा सकती है। उसे तुम्हारी खुशी या नाराजगी की परवाह रहे। हमारे साहब जैसा हाल न हो जाय।…..मैं तो देखकर हैरान रह गया। एम्पोरियम से कुछ चीजें लेने के लिये जा रहे थे तो घरवाली को पुकार कर पैसे लिये। बीवी ने कह दिया – ‘कालीन इस महीने रहने दो। अगले महीने सही’, तो भीगी बिल्ली की तरह बोले- ‘अच्छा!’ मर्द को रुपया पैसा अपने हांथ में रखना चाहिये। मालिक तो मर्द है।

कन्हैया के विवाह के समय नक्षत्रों का योग ऎसा था कि ससुराल वाले लड़की की विदाई कराने के लिये किसी तरह तैयार न हुये। अधिक छुट्टी नहीं थी इसलिये गौने की बात ‘फिर पर ही टल गई थी। एक तरह से अच्छा ही हुआ। हेमराज ने कन्हैया को लिखा पढा दिया कि पहले तुम ऎसा मत करना कि वह समझे कि तुम उसके बिना रह नहीं सकते, या बहुत खुशामद करने लगो। …..अपनी मर्जी रखना समझे। औरत और बिल्ली की जात एक। पहले दिन के व्यवहार का असर उस पर सदा रहता है। तभी तो कहते हैं कि ‘गुर्बारा वररोज़े अव्वल कुश्तन’- बिल्ली के आते ही पहले दिन हाथ लगा दे तो फिर रास्ता नहीं पकड़ती। ….तुम कहते हो, पढी लिखी है, तो तुम्हें और भी चौकस रहना चाहिये। पढी लिखी यों भी मिजाज दिखाती हैं।

निःस्वार्थ भाव से हेमराज की दी हुई सीख कन्हैया ने पल्ले बांध ली थी। सोंचा मुझे बाजार होटल में खाना पड़े या खुद चौका बर्तन करना पड़े तो शादी का लाभ क्या? इसलिये वह लाजो को दिल्ली ले आया था। दिल्ली में सबसे बड़ी दिक्कत मकान की होती है। रेलवे में काम करने वाले, कन्हैया के जिले के बाबू ने उसे अपने क्वार्टर का एक कमरा और रसोई की जगह सस्ते किराये पर दे दी थी। सो सवा साल से मजे में चल रहा था।

लाजवन्ती अलीगढ में आठवी जमात तक पढी थी। बहुत सी चीज़ों के शौक थे। कई ऎसी चीज़ों के भी जिन्हें दूसरे घरों की लड़कियों या नई ब्याही बहुओं को करते देखकर मन मसोस कर रह जाना पड़ता था। उसके पिता और भाई पुराने खयाल के थे। सोंचती थी, ब्याह के बाद सही। उन चीज़ों के लिये कन्हैया से कहती। लाजो के कहने का ढंग ऎसा था कि कन्हैया का दिल इन्कार करने को न करता, पर इस ख्याल से कि वह बहुत सरकश न हो जाय, दो बातें मानकर तीसरी पर इन्कार भी कर देता। लाजो मुंह फुलाती तो सोंचती कि मनायेंगे तो मान जाऊंगी, आखिर तो मनायेंगे ही। पर कन्हैया मनाने की अपेक्षा डांट ही देता। एक-आध बार उसने थप्पड़ भी चला दिया। मनौती की प्रतीक्षा में जब थप्पड़ पड़ जाता तो दिल कटकर रह जाता और लाजो अकेले में फूट फूट कर रोती। फिर उसने सोंच लिया- ‘चलो, किस्मत में यही है तो क्या हो सकता है?’ वह हार मानकर खुद ही बोल पड़ती।

कन्हैया का हांथ पहली दो बार तो क्रोध की बेबसी में ही चला था, जब चल गया, तो उसे अपने अधिकार और शक्ति का सन्तोष अनुभव होने लगा। अपनी शक्ति अनुभव करने के नशे से बड़ा नशा और दूसरा कौन सा होगा? इस नशे में राजा देश पर दॆश समेटते जाते थे, जमींदार गांव पर गांव और सेठ बैंक और मिल खरीदते जाते हैं।इस नशे की सीमा नहीं। यह चस्का पड़ा तो कन्हैया लाल के हांथ उतना क्रोध आने की प्रतीक्षा किये बिना भी चल जाते।

मार से लाजो को शारीरिक पीड़ा तो होती ही थी, पर उससे अधिक होती थी अपमान की पीड़ा। ऎसा होने पर वह कई दिन के लिये उदास हो जाती थी। घर का सब काम करती। बुलाने पर उत्तर भी दे देती। इच्छा न होने पर भी कन्हैया की इच्छा का विरोध नहीं करती, पर मन ही मन सोंचती रहती, इससे तो अच्छा है मर जाऊं। और फिर समय पीड़ा को कम कर देता। जीवन था तो हंसने और खुश होने की इच्छा भी फूट ही पड़ती और लाजो हंसने लगती। सोंच यह लिया था, ‘मेरा पति है, जैसा भी है मेरे लिये तो यही सब कुछ है। जैसे वह चाहता है वैसे ही मैं चलूं।’ लाजो के सब तरह आधीन हो जाने पर भी कन्हैया की तेजी बढती ही जा रही थी। वह जितनी अधिक बेपरवाही और स्वच्छन्दता लाजो के प्रति दिखा सकता, अपने मन में उसे उतना ही अधिक अपनी समझने और प्यार का सन्तोष पाता।

क्वांर के अन्त में पड़ोस की स्त्रियां करवा चौथ के व्रत की बात करने लगीं। एक-दूसरे को बता रही थी उनके मायके से करवे में क्या आया। पहले बरस लाजो का भाई आकर करवा दे गया था। इस बरस भी वह प्रतीक्षा में थी। जिनके मायके शहर से दूर थे, उनके यहां मायके से रुपये आ गये थे। कन्हैया अपनी चिट्ठी-पत्री दफ्तर के पते से ही मंगाता था। दफ्तर से आकर उसने बताया, ‘तुम्हारे भाई ने करवे के दो रुपये भेजे हैं।’

करवे के रुपये आ जाने से लाजो को सन्तोष हो गया। सोंचा भईया इतनी दूर कैसे आते? कन्हैया दफ्तर जा रहा था तो उसने अभिमान से गर्दन कन्धे पर टेढी कर और लाढ के स्वर में याद दिलाया–‘हमारे लिये सरघी में क्या-क्या लाओगे….?’ और लाजो ने ऎसे अवसर पर लायी जाने वाली चीजे याद दिला दीं। लाजो पड़ोस में कह आई कि उसने भी सरघी का सामान मंगाया है। करवा चौथ का व्रत भला कौन हिन्दू स्त्री नहीं करती? जनम जनम यही पति मिले, इस्लिये दूसरे व्रतों की परवाह न करने वाली पढी लिखी स्त्रियां भी इस व्रत की उपेक्षा नहीं कर सकतीं।

अवसर की बात, उस दिन कन्हैया ने लंच की छुट्टी में साथियों के साथ ऎसे काबू में आ गया कि सवा तीन रुपये खर्च हो गये। उसने लाजो को बताया कि सरघी का सामान घर नहीं ला सका। कन्हैया खाली हांथ घर लौटा तो लाजो का मन बुझ गया। उसने गम खाना सीखकर रूठना छोड़ दिया था, परन्तु उस सांझ मुंह लटक ही गया। आंसू पोंछ लिये और बिना बोले चौके बर्तन के काम में लग गई। रात के भोजन के समय कन्हैया ने देखा कि लाजो मुंह सुजाये है, बोल नहीं रही है, तो अपनी भूल कबूल कर उसे मनाने या कोई और प्रबन्ध करने का आश्वासन देने के बजाय उसने उसे डांट दिया।

लाजो का मन और भी बिंध गया। कुछ ऎसा ख्याल आने लगा–इन्हीं के लिये तो व्रत कर रही हूं और यही ऎसी रुखाई दिखा रहे हैं।…..मैं व्रत कर रही हूं कि अगले जनम में भी इनसे ही ब्याह हो और इन्हें मैं सुहा ही नहीं रही हूं…। अपनी उपेक्षा और निरादर से भी रोना आ गया। कुछ खाते न बना। ऎसे ही सो गई।

तड़के पड़ोस में रोज की अपेक्षा जल्दी ही बर्तन भांडे खड़कने की आवाज आने लगी। लाजो को याद आने लगा–शान्ति बता रही थी कि उसके बाबू सरघी के लिये फेनियां लाये हैं, तार वाले बाबू की घरवाली ने बताया कि खोये की मिठाई लाये हैं। लाजो ने सोंचा, उन मर्दों को ख्याल है कि हमारी बहू हमारे लिये व्रत कर रही है; इन्हें जरा भी ख्याल नहीं है।

लाजो का मन इतना खिन्न हो गया कि उसने सरघी में कुछ भी न खाया। न खाने पर पति के नाम पर व्रत कैसे न रखती! सुबह सुबह पड़ोस की स्त्रियों के साथ उसने भी करवे का व्रत रखने वाली रानी और करवे का व्रत रखने वाली राजा की प्रेयसी दासी की कथा सुनने और व्रत के दूसर उपचार निबाहे। खाना बनाकर कन्हैयालाल को दफ्तर जाने के समय खिला दिया। कन्हैया ने दफ्तर जाते समय देखा कि लाजो मुंह सुजाये है। उसने फिर डांटा–‘मालूम होता है दो चार खाये बिना तुम सीधी नहीं होगी।’

लाजो को और भी रुलाई आ गई। कन्हैया दफ्तर चला गया तो वह अकेली बैठी कुछ देर रोती रही। क्या जुल्म है! इन्हीं के लिये व्रत कर रही हूं और इन्हीं को गुस्सा आ रहा है।…जन्म जन्म में ये ही मिलें इसी लिये मैं भूखी मर रही हूं।….बड़ा सुख मिल रहा है न ! ….अगले जन्म में और बड़ा सुख दॆंगे!….ये ही जन्म निबाहना मुश्किल हो रहा है। इस जन्म में तो इस मुसीबत से मर जाना अच्छा लगता है, दूसरे जन्म के लिये वही मुसीबत पक्की कर रही हूं।…

लाजो पिछली रात भूखी थी, बल्कि पिछली दोपहर से पहले ही खाया हुआ था। भूंख के मारे आंते कुड़मुड़ा रही थीं और उस पर पति का निर्दयी व्यवहार। जन्म जन्म, कितने जन्म तक उसे यह व्यवहार सहना पड़ेगा! सोंचकर लाजो का मन डूबने लगा। सिर में दर्द होने लगा तो वह धोती के आंचल से सिर बांधकर खाट पर लेटने लगी तो झिझक गई–करवे के दिन बान पर नहीं लेटा या बैठा जाता। वह दीवार के साथ फर्श पर ही लेट रही।

लाजो को पड़ोसनों की पुकार सुनाई दी। वे उसे बुलाने आईं थी। करवा चौथ का व्रत होने के कारण सभी स्त्रियां उपवास करने पर भी प्रसन्न थीं। आज करवे के कारण नित्य की तरह दोपहर के समय सीने-पिरोने का काम नहीं किया जा सकता था; करवे के दिन सुई, सलाई और चरखा छुआ नहीं जाता था। काज से छुट्टी थी और विनोद के लिये ताश या जुऎ की बैठक जमाने का उपक्रम हो रहा था। वे लाजो को भी इसी के लिये बुलाने आईं थीं। सिर-दर्द और बदन टूटने की बात कहकर वह टाल गई और फिर सोंचने लगी–ये सब तो सुबह सरघी खाये हुये हैं। जान तो मेरी ही निकल रही है। …फिर अपने दुखी जीवन के कारण मर जाने का ख्याल आया और कल्पना करने लगी कि करवा चौथ के दिन उपवास किये हुये मर जाये, तो इस पुण्य से जरूर अगले जन्म में यही पति मिले….

लाजो की कल्पना बावली हो उठी। वह सोंचने लगी–मैं मर जाऊं तो इनका क्या है, और ब्याह कर लेंगे। जो आयेगी वह भी करवा चौथ का व्रत करेगी। अगले जनम में दोंनो का ब्याह इन्हीं से होगा, हम सौतें बनेंगी। सौत का ख्याल उसे और भी बुरा लगा। फिर अपने आप समाधान हो गया–नहीं पहले मुझसे ब्याह होगा, मैं मर जाऊंगी तो दूसरी से होगा। अपने उपवास के इतने भयंकर परिणाम से मन अधीर हो गया। भूख अलग व्याकुल किये थी। उसने सोंचा–क्यों मैं अपना अगला जनम बरबाद करूं? भूख के कारण शरीर निढाल होने पर भी खाने का मन नहीं हो रहा था, परन्तु उपवास के परिणाम की कल्पना से मन क्रोध से जल उठा; वह उठ खड़ी हुई।

कन्हैया लाल के लिये उसने जो सुबह खाना बनाया था उसमें से बची दो रोटियां कटोरदान में पड़ी थीं। लाजो उठी और उपवास के फल से बचने के लिये उसने मन को वश में करके एक रोटी रूखी ही खा ली और एक गिलास पानी पीकर फिर लेट गई। मन बहुत खिन्न था। कभी सोंचती — यह मैंने क्या किया! ….व्रत तोड़ दिया। कभी सोंचती ठीक ही तो किया, अपना अगला जन्म क्यों बरबाद करूं? ऎसे पड़े पड़े झपकी आ गई।

कमरे के किवाड़ पर धम-धम सुनकर लाजो ने देखा, रोशन दान से रोशनी की जगह अन्धकार भीतर आ रहा है। समझ गई दफ्तर से लौटे हैं। उसने किवाड़ खोले और चुपचाप एक ओर हट गई।

कन्हैया लाल ने क्रोध से उसकी ओर देखा-‘अभी तक पारा नहीं उतरा! मालूम होता है झाड़े बिना नहीं उतरेगा।’
लाजो के दुखे दिल पर और चोट लगी और पीड़ा क्रोध में बदल गई। कुछ उत्तर न दे वह घूमकर फिर दीवार के सहारे फर्श पर बैठ गई।
कन्हैया लाल का गुस्सा भी उबल पड़ा-‘यह अकड़ है!….आज तुझे ठीक ही कर दूं।’ उसने कहा और लाजो को बांह से पकड़, खींचकर गिराते हुये दो थप्पड़ पूरे हांथ के जोर से ताबड़तोड़ जड़ दिये और हांफते हुये लात उठाकर कहा, ‘और मिजाज दिखा?.. खड़ी हो सीधी।’

लाजो का क्रोध भी सीमा पार कर चुका था। खींची जाने पर भी फर्श से नहीं उठी। और मार खाने के लिये तैयार होकर उसने चिल्लाकर कहा, ‘मार ले मार ले! जान से मार डाल! पीछा छूटे! आज ही तो मारेगा! मैंने कौन सा व्रत रखा है तेरे लिये जो जनम जनम मार खाऊंगी। मार, मार डाल!’

कन्हैया लाल का लात मारने के लिये उठा पांव अधर में ही रुक गया। लाजो का हांथ उसके हांथ से छूट गया। वह स्तब्ध रह गया। मुंह में आई गाली भी मुंह में रह गी। ऎसे जान पड़ा कि अंधेरे में कुत्ते के धोखे से जिस जानवर को मार बैठा था उसकी गुर्राहट से जाना कि वह शेर था; या लाजो को डांट या मार सकने का अधिकार एक भ्रम ही था। कुछ क्षण वह हांफता हुआ खड़ा सोंचता रहा फिर खाट पर बैठकर चिन्ता में डूब गया। लाजो फर्श पर पड़ी रो रही थी। उस ओर देखने का साहस कन्हैया लाल को न हो रहा था। वह उठा और बाहर चला गया।

लाजो फर्श पर पड़ी फूट-फूटकर रोती रही। जब घन्टे भर रो चुकी तो उठी। चूल्हा जला कर कम से कम कन्हैया के लिये तो खाना बनाना ही था। बड़े बेमन से उसने खाना बनाया। बना चुकी तब भी कन्हैया लाल लौटा नहीं था। लाजो ने खाना ढक दिया और कमरे के किवाड़ उढकाकर फिर फर्श पर लेट गई। यही सोंच रही थी, क्या मुसीबत है ये ज़िन्दगी। यही झेलना था तो पैदा ही क्यों हुई थी? मैंने क्या किया था जो मारने लगे।

किवाड़ों के खुलने का शब्द सुनाई दिया। वह उठने के लिये आंसुओं से भीगे चेहरे को आंचल से पोंछने लगी। कन्हैया लाल ने आते ही एक नज़र उसकी ओर डाली। उसे पुकारे बिना ही वह दीवार के साथ बिछी चटाई पर चुपचाप बैठ गया। कन्हैया लाल का ऎसे चुप बैठ जाना एक नई बात थी, पर लाजो गुस्से में कुछ न बोल रसोई की ओर चली गई। आसन डाल थाली कटोरी रख खाना परोस दिया और लोटे मॆं पानी लेकर हांथ धुलाने के लिये खड़ी थी। जब पांच मिनट हो गये कन्हैया लाल नहीं आया तो उसे पुकारना ही पड़ा, ‘खाना परस दिया है।’

कन्हैया लाल आया तो हांथ नल से धोकर झाड़ते हुये भीतर आया। अब तक हांथ धुलाने के लिये लाजो ही उठकर पानी देती थी। कन्हैया लाल दो ही रोटी खाकर उठ गया। लाजो और देने लगी तो उसने कह दिया , ‘बस हो गया, और नहीं चाहिये।’ कन्हैया लाल खाकर उठा तो रोज की तरह हांथ धुलाने को न कहकर नल की ओर चला गया।

लाजो मन मारकर स्वयं खाने बैठी तो देखा कद्दू की तरकारी बिल्कुल कड़वी हो रही थी। मन की अवस्था ठीक न होने से हल्दी नमक दो बार पड़ गया था। बड़ी लज्जा अनुभव हुई, ‘हाय इन्होंने कुछ कहा भी नहीं! यह तो जरा कम ज्यादा होने पर डांट देते थे।’

लाजो से दुःख में खाया नहीं गया। यों ही कुल्ला कर, हांथ धोकर इधर आई कि बिस्तर ठीक कर दे, चौका फिर समेट देगी। देखा तो कन्हैया लाल स्वयं बिस्तर झाड़ कर बिछा रहा था। लाजो जिस दिन से इस घर में थी ऎसा कभी नहीं हुआ था।

लाजो ने शर्मा कर कहा, ‘मैं आ गई रहने दो। किये देती हूं।’ और पति के हांथ से दरी चादर पकड़ ली। लाजो बिस्तर ठीक करने लगी तो कन्हैया लाल दूसरी तरफ से मदद करता रहा। फिर लाजो को सम्बोधन किया, तुमने कुछ खाया नहीं। कद्दू में नमक ज्यादा हो गया है। सुबह और पिछली रात भी तुमने कुछ नहीं खाया था। ठहरो मैं तुम्हारे लिये दूध ले आऊं।’

लाजो के प्रति इतनी चिन्ता कन्हैया लाल ने कभी नहीं दिखाई थी। जरूरत भी नहीं समझी थी। लाजो को उसने अपनी चीज़ समझा था। आज वह ऎसे बात कर रहा था जैसे लाजो भी इन्सान हो; उसका भी ख्याल किया जाना चाहिये। लाजो को शर्म तो आ रही थी अच्छा भी लग रहा था। उसी रात से कन्हैया लाल के व्यवहार में एक नर्मी सी आ गई। कड़े बोल की तो बात ही क्या, बल्कि एक झिझक सी हर बात में, जैसे लाजो के किसी बात के बुरा मान जाने की या नाराज हो जाने की आशंका हो। कोई काम अधूरा देखता तो स्वयं करने लगता। लाजो को मलेरिया बुखार आ गया तो उसने उसे चौके के समीप नहीं जाने दिया। बर्तन भी खुद साफ कर दिये। कई दिन तो लाजो को बड़ी उलझन और शर्म मालूम हुई, पर फिर पति पर और अधिक प्यार आने लगा। जहां तक बन पड़ता, घर का काम उसे नहीं करने देती। प्यार से डांट देती, ‘यह काम करते मर्द अच्छे नहीं लगते….।’

उन लोगों का जीवन कुछ दूसरी ही तरह का हो गया। लाजो खाने के लिये पुकारती तो कन्हैया जिद करता, ‘तुम सब बना लो, फिर एक साथ बैठकर खायेंगे।’ कन्हैया पहले कोई पुस्तक या पत्रिका लाता था तो अकेला मन ही मन पढा करता था। अब लाजो को सुनाकर पढता या खुद सुन लेता। यह भी पूंछ लेता ‘तुम्हें नींद तो नहीं आ रही है?’

साल बीतते मालूम न पड़ा। फिर करवा चौथ का व्रत आ गया। जाने क्यों लाजो के भाई का मनी आर्डर करवे के लिये न पहुंचा था। करवा चौथ से पहले दिन कन्हैया लाल द्फ्तर जा रहा था। लाजो ने खिन्नता और लज्जा से कहा, ‘भैया करवा भेजना शायद भूल गये।’

क्न्हैया लाल ने सांत्वना के स्वर में कहा, ‘तो क्या हुआ? उन्होंने जरूर भेजा होगा। डाकखाने का हाल आजकल बुरा है। शायद आज आ जाये या और दो दिन बाद आये। तुम व्रत उपवास के झगड़े में न पड़ना। तबीयत खराब हो जाती है। यों कुछ मगाना ही है तो बता दो । लेते आयेंगे। पर व्रत उपवास से होता क्या है। सब ढकोसले हैं।’

‘वाह, यह कैसे हो सकता है! हम तो जरूर रखेंगे व्रत। भैया ने करवा न भेजा तो न सही। बात तो व्रत की है, करवे की थोड़ी है।’ लाजो ने बेपरवाही से कहा।

सन्धया-समय कन्हैया लाल आया तो रूमाल में बंधी छोटी गांठ लाजो को थमाकर बोला, ‘लो, फेनी तो मैं ले आया हूं, पर व्रत-व्रत के झगड़े में न पड़ना।’ लाजो ने मुस्कुराकर रुमाल लेकर अलमारी में रख दिया। अगले दिन लाजो ने समय पर खाना तैयार करके कन्हैया को रसोई में पुकारा, ‘आओ, खाना परस दिया है।
कन्हैया ने जाकर देखा, खाना एक ही आदमी का परोसा था- ‘और तुम?’ उसने लाजो की ओर देखा।

‘वाह मेरा तो व्रत है! सुबह सरघी भी खा ली। तुम अभी सो ही रहे थे।’ लाजो ने मुस्कुराकर प्यार से बताया।
‘यह बात….! तो हमारा भी व्रत रहा।’ आसन से उठते हुये कन्हैया लाल ने कहा।
लाजो ने पति का हांथ पकड़कर समझाया, ‘क्या पागल हो, कहीं मर्द भी करवा चौथ का व्रत करते हैं! ….तुमने सरघी कहां खाई?’ नहीं, नहीं यह कैसे हो सकता है!’ कन्हैया नहीं माना, ‘तुम्हें अगले जन्म में मेरी जरूरत है तो क्या मुझे तुम्हारी नहीं है? या तुम भी व्रत न रखो आज!’
लाजो पति की ओर कातर आंखो से देखती हार मान गई। पति के उपासे दफ्तर जाने पर उसका हृदय गर्व से फूला नहीं समा रहा था|

 

राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की दो कविताएं

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  • मैथिली शरण गुप्त

 200px-maithilisharan-guptहम कौन थे, क्या हो गए हैं और क्या होंगे अभी

हम कौन थे, क्या हो गये हैं, और क्या होंगे अभी

आओ विचारें आज मिल कर, यह समस्याएं सभी

भू लोक का गौरव, प्रकृति का पुण्य लीला स्थल कहां
फैला मनोहर गिरि हिमालय, और गंगाजल कहां
संपूर्ण देशों से अधिक, किस देश का उत्कर्ष है
उसका कि जो ऋषि भूमि है, वह कौन, भारतवर्ष है

यह पुण्य भूमि प्रसिद्घ है, इसके निवासी आर्य हैं
विद्या कला कौशल्य सबके, जो प्रथम आचार्य हैं
संतान उनकी आज यद्यपि, हम अधोगति में पड़े
पर चिन्ह उनकी उच्चता के, आज भी कुछ हैं खड़े

वे आर्य ही थे जो कभी, अपने लिये जीते न थे
वे स्वार्थ रत हो मोह की, मदिरा कभी पीते न थे
वे मंदिनी तल में, सुकृति के बीज बोते थे सदा
परदुःख देख दयालुता से, द्रवित होते थे सदा

संसार के उपकार हित, जब जन्म लेते थे सभी
निश्चेष्ट हो कर किस तरह से, बैठ सकते थे कभी
फैला यहीं से ज्ञान का, आलोक सब संसार में
जागी यहीं थी, जग रही जो ज्योति अब संसार में

वे मोह बंधन मुक्त थे, स्वच्छंद थे स्वाधीन थे
सम्पूर्ण सुख संयुक्त थे, वे शांति शिखरासीन थे
मन से, वचन से, कर्म से, वे प्रभु भजन में लीन थे
विख्यात ब्रह्मानंद नद के, वे मनोहर मीन थे।

 

. विजयदशमी

vijayadashami

 

जानकी जीवन, विजय दशमी तुम्हारी आज है,
दीख पड़ता देश में कुछ दूसरा ही साज है।
राघवेन्द्र ! हमेँ तुम्हारा आज भी कुछ ज्ञान है,
क्या तुम्हें भी अब कभी आता हमारा ध्यान है ?

वह शुभस्मृति आज भी मन को बनाती है हरा,
देव ! तुम को आज भी भूली नहीं है यह धरा ।
स्वच्छ जल रखती तथा उत्पन्न करती अन्न है,
दीन भी कुछ भेट लेकर दीखती सम्पन्न है ।।

व्योम को भी याद है प्रभुवर तुम्हारी यह प्रभा !
कीर्ति करने बैठती है चन्द्र-तारों की सभा ।
भानु भी नव-दीप्ति से करता प्रताप प्रकाश है,
जगमगा उठता स्वयं जल, थल तथा आकाश है ।।

दुख में ही हा ! तुम्हारा ध्यान आया है हमें,
जान पड़ता किन्तु अब तुमने भुलाया है हमें ।
सदय होकर भी सदा तुमने विभो ! यह क्या किया,
कठिन बनकर निज जनों को इस प्रकार भुला दिया ।।

है हमारी क्या दशा सुध भी न ली तुमने हरे?
और देखा तक नहीं जन जी रहे हैं या मरे।
बन सकी हम से न कुछ भी किन्तु तुम से क्या बनी ?
वचन देकर ही रहे, हो बात के ऐसे धनी !

आप आने को कहा था, किन्तु तुम आये कहां?
प्रश्न है जीवन-मरन का हो चुका प्रकटित यहाँ ।
क्या तुम्हारे आगमन का समय अब भी दूर है?
हाय तब तो देश का दुर्भाग्य ही भरपूर है !

आग लगने पर उचित है क्या प्रतीक्षा वृष्टि की,
यह धरा अधिकारिणी है पूर्ण करुणा दृष्टि की।
नाथ इसकी ओर देखो और तुम रक्खो इसे,
देर करने पर बताओ फिर बचाओगे किसे ?

बस तुम्हारे ही भरोसे आज भी यह जी रही,
पाप पीड़ित ताप से चुपचाप आँसू पी रही ।
ज्ञान, गौरव, मान, धन, गुण, शील सब कुछ खो गया,
अन्त होना शेष है बस और सब कुछ हो गया ।।

यह दशा है इस तुम्हारी कर्मलीला भूमि की,
हाय ! कैसी गति हुई इस धर्म-शीला भूमि की ।
जा घिरी सौभाग्य-सीता दैन्य-सागर-पार है,
राम-रावण-वध बिना सम्भव कहाँ उद्धार है ?

शक्ति दो भगवन् हमें कर्तव्य का पालन करें,
मनुज होकर हम न परवश पशु-समान जियें मरें।
विदित विजय-स्मृति तुम्हारी यह महामंगलमयी,
जटिल जीवन-युद्ध में कर दे हमें सत्वर जयी ।।

 

 

हर भारतीय को हैंडलूम को प्रोत्साहन देना चाहिए

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नचिकेता सोनी भारतीय हस्तशिल्प के लिए काम कर रहीं युवा उद्यमी हैं जिनका काम लगातार सराहा जाता रहा है। परम्परागत टेक्सटाइल उद्योग को उन्होंने गौर से देखा है और अब वे डिजिटल माध्यमों के माध्यम से आगे बढ़ा रही हैं और ई कॉमर्स कम्पनी के रूप में उनकी एक छोटी सी शुरूआत बंधेज मार्ट एक लोकप्रिय नाम बन चुकी है। नचिकेता न सिर्फ उद्यमी हैं बल्कि उनको रोमांचकारी यात्राएं करने का भी शौक है। उद्यमी और ई कॉमर्स वस्त्र उद्योग प्रोत्साहक नचिकेता सोनी से अपराजिता की बातचीत के प्रमुख अंश –

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चुनौती है मगर मुझे विश्वास है कि आगे बढूँगी

बहुत लम्बा रास्ता है। पश्चिमी संस्कृति की ओर से तेजी से मुड़ रही भारतीय संस्कृति के लिए काम करना बड़ी चुनौती है। मैं जो बनाती हूँ, वह विशुद्ध भारतीय हृदय के लिए होता है मगर मुझे उम्मीद है कि मैं इस कला का प्रसार भारत में ही नहीं विदेशों में भी कर सकूँगी। दरअसल, बहुत कम जगहें ऐसी हैं जहाँ यह काम होता है और बहुत सी महिलाएं इससे जुड़ी हैं। मैं इस कला को प्रोत्साहित करना चाहती हूँ।

हर भारतीय को हैंडलूम को प्रोत्साहन देना चाहिए

मेक इन इंडिया ने निःसंदेह स्टार्ट अप और युवा उद्यमियों को लेकर लोगों की सोच बदली है। महिलाएं अपना व्यवसाय शुरू करने के बारे में सोच सकती हैं और बदलते वक्त के साथ हम भी चल सकते हैं। हम विकास का अंग बन सकते हैं। हाल ही में केन्द्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने हैंडलूम का प्रचार किया। हर भारतीय को हैंडलूम को प्रोत्साहन देना चाहिए।

सरकार से प्रोत्साहन की जरूरत है

हम जैसे कुछ उद्यमी हैंडलूम को आगे ले जाने की कोशिश में जुटे हैं मगर सरकार जब तक आर्थिक सहायता नहीं करती और उत्पादों को लेकर जब तक जागरूकता नहीं आती, तब तक कुछ भी करना सम्भव नहीं है। हमें परम्परागत हैंडलूम को शहरी लुक के अनुसार बनाना होगा जिससे यह परिदृश्य बदल सकता है। टेक्सटाइल का बाजार भी बेहद बड़ा है और यह जिस तरीके से चल रहा है, उसको बदलना बेहद कठिन है मगर आज बहुत से युवा पूरी प्रणाली को बदल रहे हैं।

महिलाओं को अपनी सीमाओं से आगे निकलना होगा

महिलाओं को अपनी सीमाओं से निकलकर कड़ी मेहनत करनी चाहिए क्योंकि वे सोचती हैं, दुनिया उससे बहुत आगे है।

 

 

 

उत्सव के इस आनंद को भारतीयता से उज्ज्वल करें

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या देवी सर्व भूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता, देवी पक्ष का आगमन हो चुका है। नवरात्रि आरम्भ हो चुकी है और समूचा भारत अब उत्सव के इस समय में श्रद्धा और उल्लास के रंग में डूबने – उतराने लगा है। बंगाल के हर गली – नुक्कड़ पर माँ के स्वागत के लिए मंडप सजने लगे हैं और ऐसे ही समय में हम उत्सव के वातावरण में तनाव में भी हैं। सीमा पर सर्जिकल स्ट्राइक कर भारतीय सेना ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी दी है। भारतीय सेना के शौर्य को सलाम। जाहिर है कि बात अब आगे ही बढ़ेगी और सोशल मीडिया पर भी सेना की प्रशंसा के साथ युद्ध को उकसाने वाले संदेश प्रसारित हो रहे हैं। कई ऐसी जानकारियाँ सेना की शक्ति का प्रचार करने के लिए फैलायी जा रही हैं और ऐसा करने वाले लोग खुद को देशभक्त भी बता रहे हैं मगर यह ध्यान रहे कि सोशल मीडिया पर आतंक फैलाने वालों की नजर भी रहती है।

1Indians wearing traditional attire practice Garba, the traditional dance of Gujarat state ahead of Hindu festival Navratri in Ahmadabad, India, Friday, Oct. 9, 2015. Navaratri, the festival of nights, lasts for nine days, with three days each devoted to the worship of Durga, the goddess of valor, Lakshmi, the goddess of wealth, and Saraswati, the goddess of knowledge. Feasting and fasting takes over normal life for millions of Hindus, and many people join in religious dances in the evenings. The festival will begin from Oct. 13. (AP Photo/Ajit Solanki)

बेहतर होता अगर चैनलों पर भी इस तरह की गोपनीय जानकारियों को बढ़ – चढ़कर  न दिखाया जाता। दिक्कत यह है कि हमारे देश में अब तक इसे रोकने के लिए कोई ठोस नीति नहीं बनी है जबकि यह आज की जरूरत है। घर के ड्राइंगरूम में बैठकर उकसाने वाले संदेश फोन से फैलाना बेहद आसान है मगर ऐसा करके आप देश हित में काम नहीं कर रहे बल्कि सीमा पर दिन – रात पहरा देते जवानों की मुश्किलें बढ़ा रहे हैं। याद कीजिए, जब पठानकोट हमला हुआ था तब आतंकी सेना की वर्दी में घुसे थे जो हर गली – मुहल्ले के बाजार में उपलब्ध है। देश हित में इस तरह की चीजों पर रोक लगाना औऱ हमारा सजग रहना बेहद आवश्यक है। युद्ध में अगर कोई मरता है तो वे आम इंसान होते हैं या सेना के जवान होते हैं औऱ राजनेता सिर्फ खेल खेलते हैं। इस समय पाकिस्तान के नेता भी यही कर रहे हैं। युद्ध अंतिम परिणति है औऱ भारत इसे भरसक टालने का प्रयास ही करता रहा है मगर जब अति हो जाए तो जवाब देना जरूरी हो जाता है।

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अगर आप देश की प्रगति में हाथ ही बँटाना चाहते हैं तो आयातित और ब्रांडेड सामानों से आपको परहेज करना सीखना होगा। भारतीय कारीगरों द्वारा देश में तैयार किए गए हस्तशिल्प खरीदें, उनका सामान खरीदें। अगर लाभ बढ़ेगा तो इन उत्पादों की गुणवत्ता और बढ़ेगी, भारतीय कारीगर मजबूत होंगे, देश का धन देश में रहेगा, देशहित में उपयोग होगा और भारतीय अर्थव्यवस्था मजबूत होगी। अर्थव्यवस्था मजबूत हुई तो हम शिक्षा, स्वास्थ्य और रक्षा क्षेत्र में और अधिक खर्च कर सकेंगे और सेना को नए और उन्नत हथियार तथा सुविधाएं मिलेंगे। अतः शुरुआत तो हमें और आपको करनी होगी। शक्ति के इस महान पर्व में आइए हम प्रण लें कि हम स्वदेशी का उपयोग करें। इस विजयादशमी पर असत्य पर सत्य की विजय हो औऱ बुराई नष्ट हो, प्रगति का दीया जल उठे। अपराजिता की यही कामना है। अपराजिता की ओर से आप सभी को नवरात्रि, विजयादशमी और दीपावली की हार्दिक शुभकामनाएं।

पिंक सिर्फ फिल्म नहीं, एक जलता हुआ सवाल है

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देखते समय ‘नो वन किल्ड जेसिका’ याद आती है। वकील के किरदार में को देख ‘दामिनी’ वाले सनी देओल भी याद आते हैं। इन फिल्मों में महिलाओं के साथ हुए अन्याय के खिलाफ न्याय की बातें की गई थी। ‘पिंक’ भी यही बात करती है, लेकिन अलग अंदाज में। इस फिल्म में समाज में व्याप्त स्त्री और पुरुष के लिए दोहरे मापदंड पर आधारित प्रश्न ड्राइविंग सीट पर है और कहानी बैक सीट पर।
 ‘पिंक’ उन प्रश्नों को उठाती है जिनके आधार पर लड़कियों के चरित्र के बारे में बात की जाती है। लड़कियों के चरित्र घड़ी की सुइयों के आधार पर तय किए जाते हैं। कोई लड़की किसी से हंस बोल ली या किसी लड़के के साथ कमरे में चली गई या फिर उसने शराब पी ली तो लड़का यह मान लेता है कि लड़की ‘चालू’ है। उसे सेक्स के लिए आमंत्रित कर रही है।
 यह फिल्म उन लोगों के मुंह पर भी तमाचा जड़ती है जो लड़कियों के जींस या स्कर्ट पहनने पर सवाल उठाते हैं। अदालत में अमिताभ बच्चन व्यंग्य करते हैं कि हमें ‘सेव गर्ल’ नहीं बल्कि ‘सेव बॉय’ पर काम करना चाहिए क्योंकि जींस पहनी लड़की को देख लड़के उत्तेजित हो जाते हैं और लड़कियों के साथ दुर्व्यवहार करने लगते हैं। फिल्म में ये सीन इतना कमाल का है कि आप सीट पर बैठे-बैठे कसमसाने लगते हैं। कई बातें कचोटती हैं। ये उन लोगों के दिमाग के जाले साफ कर देती है जिनकी सोच रू‍ढ़िवादी है और जो लड़कियों के आर्थिक स्वतंत्रता के हिमायती नहीं है।
‘पिंक’ में ये सारी बातें बिना किसी शोर-शराबे के उठाई गई है। फिल्म इस बात का पुरजोर तरीके से समर्थन करती है कि लड़कियों को कब, कहां, क्या और कैसे करना है इसके बजाय हमें अपनी सोच बदलना होगी। इस सोच ने लड़कियों की सामान्य जिंदगी को भी परेशानी भरा बना दिया है। वे अपने घर की बालकनी में भी चैन से बैठ नहीं सकती क्योंकि उन्हें घूरने वाले हाजिर हो जाते हैं।
 कहानी को दिल्ली-फरीदाबाद में सेट किया गया है। यह जगह शायद इसलिए चुनी गई क्योंकि पिछले दिनों यही पर महिलाओं पर हुए अत्याचारों की गूंज पूरे देश में सुनाई दी थी। दिल्ली के नाम से ही कई महिलाएं घबराने लगती हैं।  मीनल (तापसी पन्नू), फलक (‍कीर्ति कुल्हारी) और एंड्रिया (एंड्रिया तारियांग) अपने पैरों पर खड़ी लड़कियां है जो साथ में रहती हैं।
एक रात वे सूरजकुंड में रॉक शो के लिए जाती हैं, जहां राजवीर (अंगद बेदी) और उनके साथियों से मुलाकात होती है। मीनल और उसकी सहेलियों का बिंदास अंदाज देख वे अंदाज लगाते हैं कि इन लड़कियों के साथ कुछ भी किया जा सकता है। राजवीर हद पार कर मीनल को छूने लगता है। मीनल अपने बचाव में उसके सिर पर बोतल मार कर उसे घायल कर देती है। राजवीर एक ऐसे परिवार से है जिसकी राजनीति में गहरी दखल है।
मीनल से बदला लेने के लिए राजबीर और उसके दोस्त पुलिस में शिकायत दर्ज करा देते हैं कि मीनल ने उन पर जानलेवा हमला किया है। साथ ही वह कॉलगर्ल है। लड़कियों को मुसीबत में देख दीपक सहगल (अमिताभ बच्चन) उनकी ओर से केस लड़ने का फैसला करता है।
दीपक सहगल के किरदार के जरिये फिल्म में विचार रखे गए हैं जो थोपे हुए नहीं लगते क्योंकि वो फिल्म की कहानी से जुड़े हुए हैं। इंटरवल के बाद फिल्म कोर्ट रूम ड्रामा में बदल जाती है। पिछले महीने रिलीज हुई ‘रुस्तम’ में भी कोर्ट रूम ड्रामा था, लेकिन हकीकत में ये कैसा होता है इसके लिए ‘पिंक’ देखी जानी चाहिए।

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फिल्म का निर्देशन अनिरुद्ध रॉय चौधरी ने किया है। उनके निर्देशन पर सुजीत सरकार का प्रभाव नजर आता है। गौरतलब है कि सुजीत इस फिल्म से जुड़े हैं। अनिरुद्ध की प्रस्तुति में खास बात यह रही कि उन्होंने उस एक्सीडेंट को दिखाया ही नहीं जिसके कारण मामला अदालत तक पहुंचा। उस घटना का जैसा वर्णन अदालत को बताया जाता है वैसा ही दर्शकों को पता चलता है। इस कारण दर्शक की अपनी कल्पना के कारण फिल्म में दिलचस्पी बढ़ती है। फिल्म के अंत में क्रेडिट टाइटल्स के साथ वो घटनाक्रम दिखाया गया है।
अनिरुद्ध अपनी बात कहने में सफल रहे हैं जिसके लिए उन्होंने फिल्म बनाई। यह फिल्म केवल महिलाओं या लड़कियों के लिए नहीं बल्कि पुरुषों के लिए भी है। मीनल के किरदार के जरिये अनिरुद्ध ने दिखाया है कि महिलाओं को कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ता है।
अनिरुद्ध ने कई बातें दर्शकों की समझ पर भी छोड़ी है। मसलन उन्होंने अमिताभ को मास्क पहने मॉर्निंग वॉक करते दिखाया है जो दिल्ली के प्रदूषण का हाल बताता है और राजनीतिक प्रदूषण की ओर भी इशारा करता है। फिल्म में एक किरदार मेघालय में रहने वाली लड़की का है जो बताती है कि उसे आम लड़कियों की तुलना में ज्यादा छेड़छाड़ का शिकार बनना होता है और यह हकीकत भी है।
फिल्म में दो कमियां लगती हैं। अमिताभ के किरदार के बारे में थोड़ा विस्तार से बताया गया होता तो बेहतर होता। साथ ही फिल्म को थोड़ा सरल करके बनाया जाता तो बात ज्यादा दर्शकों तक पहुंचती।
कुछ दिनों बाद अमिताभ बच्चन 74 वर्ष के हो जाएंगे, लेकिन अभी भी उनके पास देने को बहुत कुछ है। ‘पिंक’ में इंटरवल के बाद वे उन्हें ज्यादा अवसर मिलता है जब फिल्म अदालत में सेट हो जाती है। अमिताभ की स्टार छवि को निर्देशक ने उनके किरदार और फिल्म पर हावी नहीं होने दिया है और बच्चन ने भी अपने अभिनय में इसका पूरा ख्याल रखा है। फिल्म के दो-तीन दृश्यों में तो अमिताभ ने अपने अभिनय से गजब ढा दिया है। खासतौर पर उस सीन में जब वे किसी महिला के ‘नो’ के बारे में बताते हैं। वे कहते हैं कि नहीं का मतलब ‘हां’ या ‘शायद’ न होकर केवल ‘नहीं’ होता है चाहे वो अनजान औरत हो, सेक्स वर्कर हो या आपकी पत्नी हो।
तापसी पन्नू का कद ‘पिंक’ के बाद बढ़ जाएगा और उन्हें फिल्म इंडस्ट्री में गंभीरता से लिया जाएगा। मीनल की दबंगता और झटपटाहट को उन्होंने अच्छे से पेश किया है। फलक के रूप में कीर्ति कुल्हारी प्रभावित करती हैं। एंड्रिया छोटे रोल में अपना असर छोड़ती है। पियूष मिश्रा वकील के रूप में अमिताभ के सामने खड़े रहे और जोरदार मुकाबला किया।
फिल्म का बैकग्राउंड म्युजिक उम्दा है और कई जगह खामोशी का अच्छा उपयोग किया गया है।
जरूरी नहीं है कि हर फिल्म मनोरंजन के लिए ही बनाई जाए। कुछ ऐसी फिल्में भी होती हैं जो अपनी शानदार स्क्रिप्ट और जोरदार अभिनय के कारण आपकी सोच को प्रभावित करती हैं, ‘पिंक’ भी ऐसी ही फिल्म है। जरूर देखी जानी चाहिए।
बैनर : राइजि़ग सन फिल्म्स प्रोडक्शन
निर्माता : रश्मि शर्मा, रॉनी लाहिरी
निर्देशक : अनिरुद्ध रॉय चौधरी
संगीत : शांतनु मोइत्रा
कलाकार : अमिताभ बच्चन, तापसी पन्नू, पियूष मिश्रा, अंगद बेदी, कीर्ति कुल्हारी, एंड्रिया तारियांग
(साभार – वेब दुनिया)

मुझे हर दिन छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता था: तापसी पन्नू

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हाल में रिलीज़ हुई फ़िल्म पिंक में मुख्य किरदार निभाने वाली तापसी पन्नू कहती हैं कि ये फ़िल्म समाज की सच्चाई के करीब है इसलिए लोगों को भा रही है.

वो कहती हैं, “देखिए यह फ़िल्म सच्चाई के क़रीब है, इसलिए हिट हो रही है और लोगों के दिलो को छू रही है. मुझे अपने कॉलेज के दिनों में लगभग हर दिन छेड़छाड़ का शिकार होना पड़ता था और तब चाहकर भी कुछ नहीं कर पाती थी.”

तापसी के मुताबिक, “हमारा समाज इसी तरह का है कि आप किसी लड़के को पलट कर जवाब नहीं दे सकते क्योंकि इसमें बदनामी लड़की की ही होगी लेकिन आज हालात अलग हैं और आज किसी तरह की़ प्रताड़ना सहन करना ग़लत होगा. अगर आपके साथ कुछ ग़लत हो रहा हो तो पलट के जवाब दो, क्योंकि चुप रहना ही सबसे बड़ी कमज़ोरी है.”

तापसी ने पुरुषों से भी अनुरोध किया कि एक औरत उनके घर और देश की 50 फ़ीसदी हिम्मत है ऐसे में उनपर हावी ना हों, बल्कि उनका साथ दें ताकि समाज तरक्क़ी कर सके.

फ़िल्म में एक दमदार किरदार निभा रही कीर्ति कुल्हरि भी मानती हैं कि चाहे वो महिला हो या पुरूष हर किसी को प्यार, रिश्ते और सेक्स को ज़ाहिर करने का हक़ है. अगर किसी ने इन जज्बातों को महसूस किया है तो क्या बुराई है? लड़का हो या लड़की, उसकी वर्जिनिटी उसका निजी मामला है लेकिन भारत में हम इस मामले को सामाजिक और नैतिकता के कठघरे में खड़ा कर देते हैं.”

इस फ़िल्म के अचानक चर्चा में आ जाने से इस फ़िल्म की महिला कलाकारों को ज़रा भी हैरानी नहीं है.

कीर्ति कहती हैं, “हम जब सेट पर पहुंचे और अपने डॉयलॉग समझे, हमें वहां दूसरे लोगों के चेहरे और भाव देख कर समझ आ गया था कि यह फ़िल्म कुछ ऐसा कह रही है जो अलग है.”

तापसी आगे कहती हैं, “इस फ़िल्म के कलाक़ार होने के बावजूद इस फ़िल्म को देखने के बाद हम भावुक हुए, रोए, क्योंकि यह सारा भेदभाव, किसी न किसी शक्ल में हमारे साथ होता है.”

फ़िल्म में मेघालय से आई अभिनेत्री एंड्रिया तरांग भी हैं जो बताती हैं, “उत्तर-पूर्व भारत से होने की वजह से वैसे ही मुझे ज़्यादा भेदभाव झेलना पड़ता है और फिर एक लड़की होना भी अपने आप में मुश्किल है ऐसे में इस फ़िल्म से मैं ख़ुद को एक दर्शक के तौर पर जोड़ पाती हूं.”

फ़िल्म में अमिताभ बच्चन के साथ काम करने के अनुभव को लेकर तापसी और कीर्ति तो ज़्यादा डरे हुए नहीं दिखे लेकिन आंद्रिया ने कहा, “मैं एक बार भी उनकी आंखो में आंखे नहीं डाल पाई और मैं इतना घबरा रही थी उनके आगे कि कोर्ट रुम के सीन में मैं उनको देखती ही नहीं थी.”

तीनों ही महिलाएं इस फ़िल्म के बाद अपने आसपास आए लोगों के बर्ताव में भी बदलाव महसूस कर रही हैं और वो कहती हैं कि ऐसी फ़िल्मों की भारत जैसे समाज को बड़ी ज़रूरत है जहां अभी भी लड़की का जींस पहनना गुनाह माना जाता है औऱ बेटी को पराया धन या बोझ समझा जाता है.

 

कामकाजी महिलाओं के लिए दिल्ली निचले स्थान पर, सिक्किम अव्वल

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वाशिंगटन, : भारत में महिलाओं के कार्य करने की स्थिति के लिहाज से पूर्वोत्तर का छोटा राज्य सिक्किम जहां पहले स्थान पर है, वहीं राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली सबसे निचले पायदान पर है। एक रिपोर्ट में यह कहा गया है।

यह रिपोर्ट अमेरिका के प्रमुख शोध संस्थान सेंटर फॉर स्ट्रेटजिक एंड इंटरनेशनल स्टडीज :सीएसआईएस: तथा नाथन एसोसिएट्स ने संयुक्त रूप से तैयार की है। रिपोर्ट में सिक्किम को सर्वाधिक 40 अंक जबकि दिल्ली को केवल 8.5 अंक मिले हैं जो राष्ट्रीय राजधानी की स्थिति को बयां करता है।

राज्यों की रैंकिंग चार मुख्य तत्वों..कारखानों, खुदरा क्षेत्र तथा आईटी उद्योग में महिलाओं के कामकाजी घंटे पर कानूनी प्रतिबंध, यौन उत्पीड़न जैसे महिला कर्मचारियों को प्रभावित करने वाले अपराध को लेकर राज्य की आपराधिक न्याय व्यवस्था की त्वरित प्रतिक्रिया, कुल कर्मचारियों में महिला कामगारों का प्रतिशत तथा राज्य की स्टार्टअप और औद्योगिक नीतियों में महिला उद्यमियों के लिये प्रोत्साहन..के आधार पर की गयी है।

रिपोर्ट के मुताबिक, ‘‘लेकिन कार्य करने के लिहाज से पूर्वोत्तर राज्य सिक्किम सबसे आगे है। इसकी वजह महिला कार्यबल की उंची भागीदारी, महिलाओं के कामकाजी घंटे को लेकर पाबंदी का न होना तथा महिलाओं के खिलाफ अपराध को लेकर कार्रवाई की उच्च दर है।’’ इस सूची में सिक्किम के बाद तेलंगाना :28.5 अंक:, पुडुचेरी :25.6:, कर्नाटक :24.7 अंक:, हिमाचल प्रदेश :24.2: आंध्र प्रदेश :24.0:, केरल :22.2 अंक:, महाराष्ट्र :21.4 अंक:, तमिलनाडु :21.1 अंक: तथा छत्तीसगढ़ :21.1: का स्थान है।

 

ब्रिटिश आर्मी में ट्रांसजेंडर पहली महिला के तौर देगी फ्रंटलाइन पर सेवा

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लंदन.24 साल की ट्रांसजेंडर ब्रिटिश आर्मी की फ्रंटलाइन में सेवा पाने वाली पहली महिला बनी है। कोले एलेन नाम की इस ट्रांसजेंडर महिला ने वर्ष 2012 में स्कॉट गार्ड ज्वाइन किया था। तब वह पुरुष थी। पिछले महीने ही महिला बनने के लिए उसने हॉर्मोन थेरेपी लेना शुरू किया। नाम बदलकर कोले एलेन रखा।

उसे पहले लगा था कि ऐसा करने के बाद वह आर्मी में नहीं रह पाएगी। लेकिन जब उसने करियर ऑफिसर से बात की, उसे कहा गया कि वह अपने उसी राइफलमैन और आर्म ट्रक की ड्राइवर की भूमिका में रह सकती है जिसमें पहले थी।
एलेन ने कहा कि आर्मी में उसके नाम व लिंग परिवर्तन को लेकर सारे पेपर वर्क पूरे किए जा चुके हैं। बस नया पासपोर्ट आना बाकी है, जो जल्दी ही हो जाएगा। ब्रिटिश आर्मी इसी साल फ्रंटलाइन में महिलाओं को शामिल करने वाली थी। लेकिन इसकी आवेदन प्रक्रिया शुरू होने से पहले ही आर्मी को इस भूमिका में पहली महिला मिल गई।

फील्ड आर्मी के कमांडर जनरल सर जेम्स एवरर्ड ने कहा कि ग्राउंड क्लोज कॉम्बैट यूनिट में पहली महिला को पाकर आर्मी गर्व महसूस कर रही है।

 

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजनाः सभी के जीवन को बेहतर बनाने की दिशा में एक बड़ा कदम

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  • अजय महमिया

  • ajay-mahmiaप्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने उत्तर प्रदेश के बलिया में 1 मई, 2016 को प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना की शुरूआत की थी। बाद में 14 अगस्त, 2016 को पश्चिम बंगाल में स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर इस योजना को कोलकाता में नजरूल मंच से शुरू किया गया। देशभर के गांवों को धुआं रहित बनाने के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सपने को साकार बनाने की दिशा में यह पहल की गई थी। अब यह योजना गरीबी रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाली महिलाओं को सम्मान देने के अवसर के रूप में पहचान बना चुकी है। हर घर को एलपीजी कनेक्शन देने वाली यह योजना महिलाओं को एक विशेष पहचान तो देती ही है साथ ही धुआंरहित वातावरण, प्रदूषण में कमी और स्वस्थ जीवन देने में भी मील का पत्थर साबित हो रही है।

पश्चिम बंगाल में लगभग 2 करोड़ 3 लाख परिवार हैं, जिनमें से 1 करोड़ 6 लाख परिवारों को इस योजना से लाभान्वित करने का लक्ष्य रखा गया है। इन परिवारों को 2019 तक प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत लाना है। तेल विपणन कंपनियों (ओएमसी) के राज्य में दस बॉटलिंग प्लांट हैं और वर्तमान एलपीजी ग्राहकों के लिए इनकी संयुक्त क्षमता 990 टीएमटीपीए है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के लक्ष्य को देखते हुए सभी तेल विपणन कंपनियां आने वाले दिनों में अपनी बॉटलिंग क्षमता को बढ़ाएंगी, जिससे कि एलपीजी सिलेंडर की बढ़ती हुई मांग को पूरा किया जा सके। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना में पहले ही साढ़े छह लाख से ज्यादा लोग प्रतीक्षा सूची में हैं। सरकार ने सभी तेल कंपनियों को आदेश जारी कर सिलेंडरों, रेगुलेटरों और सहायक उपकरणों की पर्याप्त संख्या सुनिश्चित करने के लिए कहा है।

इस योजना को अधिक कारगर बनाने और बड़े स्तर पर लागू करने के लिए प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के अंतर्गत लाभान्वितों को एलपीजी कनेक्शन बांटने के लिए विशेष उज्ज्वला मेलों का आयोजन भी किया जा रहा है। 15 अगस्त से 17 अगस्त, 2016 के बीच सभी एलपीजी वितरण केन्द्रों पर इन मेलों का आयोजन किया जा रहा है। सरकार के आदेश के अनुसार 70वें स्वतंत्रता दिवस समारोह के मौके पर स्थानीय स्वतंत्रता सैनानी, पूर्व सैनिक और शहीद सैनिकों की विधवाओं को इन मेलों में आमंत्रित किया गया है।

इस योजना का मुख्य मंत्र है- स्वच्छ ईंधन, बेहतर जीवन- महिलाओं को मिला सम्मान। राष्ट्रीय स्तर पर अगले तीन सालों में गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को पांच करोड़ एलपीजी कनेक्शन दिए जाएंगे। साथ ही यह योजना इन परिवारों को हर कनेक्शन पर 1600 रुपए की आर्थिक मदद भी देती है। इस योजना के तहत परिवार की महिला मुखिया के नाम पर कनेक्शन दिया जाएगा। तेल विपणन कंपनियां चूल्हे और सिलेंडर के पहले भराव पर ईएमआई की सुविधा भी प्रदान करेंगी।

इस योजना का मुख्य उद्देश्य गरीब परिवारों में इस्तेमाल होने वाले हानिकारक ईंधनों की जगह स्वच्छ और अधिक प्रभावी एलपीजी ईंधन के इस्तेमाल को बढ़ावा देना है। विशेष तौर पर ग्रामीण भारत में महिला सशक्तिकरण को सुनिश्चित करने के लिए बीपीएल परिवार की महिला के नाम पर ही इस योजना के अंतर्गत कनेक्शन दिया जाएगा। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय योजना के अंतर्गत पहचाने गए बीपीएल परिवारों का डाटा सामाजिक, आर्थिक जनगणना में उपलब्ध करा रहा है। इस योजना को आगे ले जाने और इसे जमीनी स्तर पर अधिक प्रभावी बनाने के लिए तेल विपणन कंपनियों ने जिला नोडल अधिकारियों की नियुक्ति की है। ये अधिकारी इस योजना को हर जिले में लागू कराने में वाहक का काम करेंगे।

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केन्द्र सरकार ने उज्ज्वला योजना को राष्ट्रीय स्तर पर लागू कराने के लिए पहले ही 2016-17 वित्त वर्ष में दो हजार करोड़ रुपए आवंटित किए हैं। चालू वित्त वर्ष में सरकार लगभग 1 करोड़ 5 लाख बीपीएल परिवारों को एलपीजी कनेक्शन देगी। अगले तीन सालों में इस योजना के क्रियान्वयन के लिए सरकार ने आठ हजार करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया है। गिव इट अप अभियान के तहत एलपीजी सब्सिडी में बचाई गई राशि इस योजना में इस्तेमाल की जा रही है। देश के इतिहास में पहली बार है कि पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने इस तरह की आसाधारण योजना लागू की है। प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का लक्ष्य महिलाओं को हानिकारक ईंधन से छुटकारा दिलाकर उन्हें सशक्त बनाने की दिशा में आगे ले जाना है। इस योजना का अन्य उद्देश्य हानिकारक ईंधन से होने वाली मृत्यों की संख्या में कमी लाना है और साथ ही लोगों को अस्वच्छ ईंधन से घर में होने वाले वायु प्रदूषण से बचाना है।

गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों की महिला उज्ज्वला योजना केवाईसी आवेदन पत्र को भरकर इस योजना के लिए आवेदन कर सकती है। ऐसे आवेदकों को जरूरी दस्तावेजों के साथ दो पेज का आवेदन पत्र भरना होगा। इस आवेदन पत्र में पत्राचार विवरण, जन धन और अन्य बैंक खाता नंबर, आधार कार्ड नंबर इत्यादि भरना होगा। आवेदकों को किस तरह का सिलेंडर चाहिए यह बात भी इस फॉर्म में उल्लेखित करनी होगी, जैसे कि 14.2 किलोग्राम या फिर 5 किलोग्राम का सिलेंडर। उज्ज्वला योजना के लिए केवाईसी एप्लीकेशन फॉर्म डाउनलोड कर जरूरी दस्तावेजों के साथ नजदीकी एलपीजी आउटलेट पर जमा किया जा सकता है। इस फॉर्म के साथ जमा होने वाले जरूरी दस्तावेजों में निकाय अध्यक्ष या पंचायत प्रधान द्वारा जारी बीपीएल प्रमाण पत्र, बीपीएल राशन कार्ड, वोटर आई कार्ड या आधार कार्ड जैसे एक फोटो पहचान पत्र और आवेदक की हाल ही में खिंची गई पासपोर्ट साइज फोटो शामिल हैं।

भारत में 24 करोड़ से भी ज्यादा परिवार रहते हैं जिनमें से लगभग 10 करोड़ परिवार अभी भी एलपीजी गैस से वंचित हैं और इन लोगों को खाना पकाने के लिए लकड़ी, कोयला और गोबर पर निर्भर रहना पड़ता है। प्रधानमंत्री द्वारा राष्ट्रीय स्तर पर इस योजना की शुरुआत के बाद यह योजना मई में उत्तर प्रदेश, राजस्थान एवं गुजरात और जून 2016 में उत्तराखंड, ओडिशा और बिहार में लागू की गई। पिछले रविवार को पश्चिम बंगाल में इस योजना के राज्य स्तर पर लागू होने से पहले ही पिछले महीने इस योजना का शुभारंभ मध्य प्रदेश में किया गया था। (पीआईबी)

( लेखक *उप-निदेशक (मीडिया एवं कम्युनिकेशन), पीआईबी, कोलकाता है)

 

 

 बंगलुरु की यह २२ वर्षीया ऑटो चालक कर रही है आईएएस की तैयारी

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बंगलुरु की भागती भीड़ में एक औरत चुपचाप लोगों की इस धारणा को बदलने में लगी है कि कोई भी पेशा किसी लिंग विशेष के लिए नही होता। और कई पेशे ऐसे हैं जो महिलाओं के लिए भी उतने ही स्वीकार्य हैं जितने की पुरुषो के लिए।

२२ वर्षीय येलम्मा अपना गुज़ारा ऑटो रिक्शा चला कर करती है । इसके साथ ही अपने सपनो को पूरा करने के लिए वो आईएएस की तैयारी भी कर रही है।

१८ वर्ष की उम्र में ही येलम्मा की शादी जबरन एक फूल वाले से कर दी गयी थी। आज उसके पति इस दुनिया में नही हैं और वो एक बच्चे की माँ है। उसने तय किया कि वह रिश्तेदारों के भरोसे न रह कर  अपने और अपने बच्चे की परवरिश खुद करेगी ।

उसने किराए पर एक ऑटोरिक्शा लेकर अपने देवर से रिक्शा चलाना सीखा।  उसके औरत होने के कारण ऑटोवाले उसे अपना ऑटो किराए पर देने में हिचकिचाते थे  और ज्यादातर लोग मना कर देते थे। आखिरकार एक मैकेनिक, उसे १३० रूपये प्रतिदिन के हिसाब से अपना ऑटो किराए पर देने के लिए तैयार हो गया। वो अब हर दिन सुबह ६ बजे से रात के ८ बजे तक ऑटो चलाती है। इसी बीच में वह अखबार और पत्रिकाएँ भी बाँटती है। फिलहाल वह बारहवीं की परीक्षा की तैयारी कर रही है। उसका उद्देश्य ‘आई ए एस’ की तैयारी करना है। वो चाहती है कि देश की नौकरशाह प्रणाली का हिस्सा बन कर वह अपने जैसी दूसरी महिलाओं की मदद कर सकेगी।

वो कहती है कि हालाँकि पुरुष ऑटो ड्राईवर उस से खुश नही हैं ( उनका कहना है की येल्लमा उनके ग्राहक छीन लेती है ) पर उसके ग्राहकों में उसे बस उत्सुकता और सदभाव ही मिलता है। वो लोग उसे प्रोत्साहित भी करते हैं और मीटर से अधिक पैसे भी दिया करते हैं। येलम्मा हर दिन लगभग ७०० से ८०० रूपये कमा लेती है , किराया और इंधन के पैसे भरने के बाद उसके पास लगभग आधे पैसे बचते हैं।

(साभार – द बेटर इंडिया)