Thursday, September 18, 2025
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बिहार के हाजीपुर के जूते पहनकर जंग लड़ रहे रूसी सैनिक

पटना । जब भी बिहार की बात करते हैं तो लोग उसे काफी पिछड़ा हुआ जगह मानते हैं. लेकिन बिहार अब अपनी तस्वीर बदल रहा है। बिहार का शहर हाजीपुर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी जगह बना रहा है । हाजीपुर मुख्य रूप से वर्षों से अपने केले के लिए मशहूर है, लेकिन अब यहां रूसी सैनिक के लिए निर्माण किए हुए जूते के लिए चर्चा में है।  यूक्रेन और रूस का युद्ध वर्ष 2022 से चल रहा है।  यह युद्ध एक बार फिर से चर्चा में है क्योंकि बिहार से बनकर जाने वाली जूते पहनकर ही रूसी सैनिक यूक्रेन के खिलाफ मैदान में लड़ते हैं। हाजीपुर की एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कंबटेंस एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड रूसी सैनिक के लिए जूते बना रही है। यह कंपनी चर्चा में इसलिए भी बनी हुई है क्योंकि इस कंपनी में काम कर रहे कर्मचारियों में से 70  प्रतिशत महिलाएं हैं। लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के युवा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉक्टर विभय कुमार झा ने बताया कि हाजीपुर में बनने वाली जूते का उपयोग अब रूस की सेना करेगी। डॉ विवेक ने कहा बिहार तेजी से तरक्की की ओर बढ़ रहा है जिसमें पटना के बाद हाजीपुर बिहार का दूसरा सबसे तेजी से विकसित होने वाला शहर है।  इसकी सराहना केंद्र मंत्री चिराग पासवान से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने किया है. यह भारत के उद्योग के विकास में बड़ा कदम हो सकता है.

यह जूते सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं। यह जूते खासतौर से रूसी सैनिक के जरूरत के अनुसार बनाए जाते हैं।  रूसी सैनिक चाहते हैं कि जूता हल्का हो और आसानी से फिसलने वाला ना हो। साथ ही यह जूते बेहद कम तापमान जैसे -40 डिग्री सेल्सियस जैसे ठंडे मौसम की स्थिति का सामना आसानी से कर सके। यह जूते रूसी सैनिक के हर जरूरत पर खरे उतर रहे हैं। यह कंपनी 2018 में बिहार के हाजीपुर में शुरू की गई थी। इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य बिहार में नए रोजगार पैदा करना है. यह कंपनी रूस के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है। कंपनी दिन प्रतिदिन नई ऊंचाइयों को हासिल कर रही है। बिहार की यह कंपनी कुल 300 कर्मचारियों पर चलती है. जिसमें से 70 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएं हैं। पिछले वर्ष इस कंपनी ने करीब 100 करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया था. जिसमें से 1.5 मिलियन जोड़ी जूते का निर्माण किया गया था। हाजीपुर की यह कंपनी कई यूरोपीय बाजार के लिए डिजाइनर जूते का भी निर्माण करती है।

मानवी मधु कश्यप बनीं देश की पहली ट्रांसजेंडर दरोगा

पटना । बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग ने दरोगा के 1275 पदों पर वैकेंसी का रिजल्ट जारी कर दिया है। इस परीक्षा में 822 पुरुष और 450 महिला समेत 3 ट्रांसजेंडर अभ्यर्थी भी चयनित हुए हैं। यह पहला मौका है, जब दारोगा भर्ती में ट्रांसजेंडर का चयन हुआ है, इनमें से दो ट्रांसमैन और एक ट्रांसवुमन है। बांका जिले की मानवी मधु कश्यप देश की पहली ट्रांसवुमन दरोगा बन गई हैं। अपनी इस उपलब्धि से उन्होंने अपने पंजवारा गांव समेत पूरे देश को गौरवान्वित किया है। इस कामयाबी के खास अवसर पर उन्हें रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी सभी शुभकामनाएं दे रहे हैं।

उन्होंने बताया कि, समाज ने कभी ट्रांसजेंडरों को प्राथमिकता नहीं दी। हर जगह सिर्फ स्त्री और पुरुष नजर आते हैं। आपको किसी भी क्षेत्र में ट्रांसजेंडर नहीं दिखाई पड़ेंगे, इसलिए यहां तक का मेरा सफर बहुत चुनौतीपूर्ण रहा। मधु ने अच्छे अंक से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने साल 2022 में भागलपुर तिलकामांझी यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। फिर पुलिस विभाग की तैयारी करने के लिए वो पटना पहुंचीं और शिक्षक गुरु रहमान के मार्गदर्शन में तैयारी शुरू की।

मधु ने बताया कि, यह सफलता हासिल करने के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा। हमारी तरह और लोग भी हर काम के लिए सक्षम होते हैं, बस जरूरत है तो अवसर और सपोर्ट की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अपने शिक्षकों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि, इन सबके योगदान की वजह से मैं यहां तक पहुंच सकी हूं। मेरा लक्ष्य बीपीएससी और यूपीएससी कंप्लीट करना है।

मधु ने अपने जैसे और भी ट्रांसजेंडरों को सफलता का मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि, आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरे शिद्दत से मेहनत कीजिए। सफलता का कोई भी शॉर्टकट नहीं होता है। मधु ने ट्रांसजेंडरों के माता-पिता से उन्हें सपोर्ट करने की भी अपील की। उन्होंने कहा कि आप अपने बच्चों को घरों से बाहर मत निकालिए, उन्हें पढ़ाइए-लिखाइए। ताकि वो एक दिन पुलिस विभाग और अन्य क्षेत्रों में चयनित होकर देश की सेवा कर सकें। बता दें, बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग भर्ती में ट्रांसजेंडर के लिए पांच पद आरक्षित थे, लेकिन तीन ही योग्य उम्मीदवार मिल पाए। इससे इनकी बची हुई दो सीटों को सामान्य श्रेणी में शामिल कर दिया गया।

सूखी खांसी से राहत दिलाएंगे ये घरेलू उपाय

बदलते मौसम में आपके शरीर पर कई तरह के संक्रमण होने लगते है, जिसके बाद सूखी खांसी की परेशानी पेश आ सकती है। एक बार किसी को ये बीमारी हो जाए तो आसानी से पीछा नहीं छोड़ती, फिर आपको रातें खांस-खांसकर गुजारनी पड़ी है, जिसके कारण आप सुकून की नींद नहीं ले पाते और फिर अगले दिन थकान, सुस्ती और चिड़चिड़ापन होने लगता है। कई बार दवा और कफ सिरप भी तुरंत असर नहीं कर पाता है, ऐसे में आप कुछ खास घरेलू उपायों का सहारा ले सकते हैं. ये ऐसे नुस्खे हैं जो दादी-नानी के जमाने से चले आ रहे हैं.

सूखी खांसी से निजात पाने के लिए करें ये घरेलू उपाय

 गर्म पानी और शहद – बदलते मौसम में ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए और गर्म पानी का सेवन बढ़ा देना चाहिए। अगर आप एक ग्लास गुनगुने पानी में 4 चम्मच शहद मिलाकर पी जाएंगे तो सूखी खांसी से पूरी तरह निजात मिल जाएगी। आप इसे नियमित भी पी सकते हैं, जिससे कई बीमारियों से बचाव हो जाता है।

अदरक और नमक – अदरक एक ऐसा मसाला है जिसका इस्तेमाल हमारे घरों में काफी ज्यादा होता है, ये सर्दी के खिलाफ किसी रामबाण से कम नहीं है। आप चाहें तो इसे कच्चा चबा सकते हैं या इसका रस भी पी सकते हैं, लेकिन चूंकि अदरक कड़वा होता है इसलिए इसकी कड़वाहट को कम करने के लिए अदरक और नमक को मिक्स करके खा जाएं। इससे सूखी खांसी छूमंतर हो जाएगी।

काली मिर्च और शहद – काली मिर्च और शहद का कॉम्बिनेशन सर्दी-खांसी का दुश्मन माना जाता है, इसके लिए आप 4-5 काली मिर्च के दाने ले लें और उसे पीसकर पाउडर की शक्ल दे दें । अब शहद के साथ मिलाकर इसको खा जाएं. अगर इसका दिन में 2 से 3 बार सेवन करेंगे तो ड्राई कफ से छुटकारा मिल जाएगा।

रथयात्रा विशेष : वह मुस्लिम भक्त, जिसकी मजार पर आज भी रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ

इस बार उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा 7 जुलाई, रविवार से निकाली गयी । भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर अपने मुस्लिम भक्त सालबेग को दर्शन देने जाते हैं। हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है। ऐसी परम्परा तब शुरू हुई जब सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला।

ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है। सलाबेग मुस्लिम था लेकिन वह भगवान जगन्नाथ का बड़े भक्त था। मुख्य तीर्थ से गुंडिचा मंदिर तक की तीन किलोमीटर की यात्रा के दौरान सम्मान के रूप में ग्रैंड रोड पर स्थित सलाबेग की कब्र के पास स्वामी का रथ कुछ देर के लिए रुकता है। मुगल सूबेदार के पुत्र सलाबेग ओडिशा के भक्ति कवियों के बीच विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि उन्होंने अपना जीवन भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया था। वह 17वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए थे। कहते हैं एक बार सालबेग मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव ठीक नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव ठीक हो चुके थे। भगवान के चमत्कास से जब सालबेग ठीक हो गए तो वो जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर गए लेकिन उन्हें किसी ने मंदिर में दाखिल नहीं होने दिया। सालबेग निराश नहीं हुए और मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, इस सबके बावजूद भी उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी मजार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब रथ यात्रा में शामिल एक शख्स ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाया जाए। उस व्यक्ति की सलाह मानकर राजा ने जैसे ही सालबेग का जयघोष करवाया रथ अपने आप चल पड़ा। दरअसल सालबेग की इच्छा के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर उसे दर्शन देने जाते हैं। तभी से हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है।

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 23 जून 2020 को आयोजित होनी थी। प्रत्येक वर्ष इस रथ यात्रा में देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान का रथ खींचने के लिए आते हैं। भक्तों की इसी भीड़ को कोरोना संक्रमण के लिए बड़ा खतरा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष रथ यात्रा पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर 21 लोगों ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओ में ओडिशा के न्यागढ़ जिले का रहने वाला 19 वर्षीय बीए (अर्थशास्त्र) अंतिम वर्ष का छात्र आफताब हुसैन भी शामिल है। सोशल मीडिया पर उसकी तुलना भगवान जगन्नाथ के सबसे बड़े भक्त सालबेग से हो रही है। लोग उसे दूसरा सालबेग बता रहे हैं।

आफताब हुसैन के मुताबिक बचपन से ही वह भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। उनके दादा मुल्ताब खान भी भगवान जगन्नाथ के बड़े भक्त थे। उसके दादा ने वर्ष 1960 में इटामाटी (Itamati) में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश के एक मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे त्रिनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। आफताब के अनुसार उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई किताबें पढ़ीं हैं। इसससे भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी आस्था और गहरी हो गई। आफताब बताते हैं कि उनके पिता इमदाद हुसैन, मां राशिदा बेगम और छोटे भाई अनमोल ने कभी उन्हें भगवान जगन्नाथ की अराधना करने से नहीं रोका। मीडिया से बातचीत में आफताब ने बताया कि उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है, इसलिए वह कभी मंदिर के अंदर नहीं गए हैं। आफताब मानते हैं कि ब्रह्माण को बनाने वाले केवल एक हैं भगवान जगन्नाथ, जिसने सबको बनाया है।

सालबेग, 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।

इसके बाद सालबेग ने मंदिर में जागर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी जमार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है।

मंदिर के पुजारी और शहरवासी बताते हैं कि सालबेग यहीं का रहने वाला था। उसकी मां हिंदू थी और पिता मुस्लिम थे। भक्त सालबेग सारा जीवन मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन की आस लगाए रहता था। वह रोज भगवान की जय-जयकार करता हुआ और भावों से भरा हुआ तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता। मगर मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगता है। प्रभु का नाम जपता है और उनके भजन लिखता है। धीरे-धीरे उसके भजन अन्य भक्तों की जुबान पर भी चढ़ने लगते। लोग बताते हैं कि सालबेग के बनाए भगवान के भजन लोगों को आज भी याद हैं।

(साभार – हिमालय गौरव उत्तराखण्ड)

एचआईवी संक्रमण को शत प्रतिशत ठीक करने वाला ट्रायल सफल

केपटाउन । दुनिया भर के एचआइवी और एड्स पीड़ितों के लिए सबसे बड़ी राहत की खबर है। वैज्ञानिकों ने एचआइवी संक्रमण को ठीक करने वाले इंजेक्शन का सफल ट्रायल होने का दावा किया है। साल भर में इस इंजेक्शन की 2 डोज लेनी होगी। इसके बाद एड्स की भी छुट्टी हो जाएगी। बता दें कि दक्षिण अफ्रीका और युगांडा में व्यापक स्तर पर किये गए एक क्लिनिकल ​​​​परीक्षण से पता चला है कि नयी रोग-निरोधक दवा का साल में दो बार इंजेक्शन युवतियों को एचआइवी संक्रमण से पूरी सुरक्षा देता है।

परीक्षण में यह पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या ‘लेनकापाविर’ का छह-छह महीने पर इंजेक्शन, दो अन्य दवाओं (रोज ली जाने वाली गोलियों) की तुलना में एचआइवी संक्रमण के खिलाफ बेहतर सुरक्षा प्रदान करेगा। सभी तीन दवाएं ‘प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस’ (रोग निरोधक) दवाएं हैं। अध्ययन के दक्षिण अफ़्रीकी भाग के प्रमुख अन्वेषक, चिकित्सक-वैज्ञानिक लिंडा-गेल बेकर ने बताया कि कि यह सफलता इतनी महत्वपूर्ण क्यों है और आगे क्या उम्मीद की जाए। लेनकापाविर और दो अन्य दवाओं की प्रभावकारिता का परीक्षण 5,000 प्रतिभागियों के साथ ‘उद्देश्य 1’ परीक्षण युगांडा में तीन स्थलों और दक्षिण अफ्रीका में 25 स्थलों पर किया गया।

5000 लोगों पर ट्रायल सफल

लेनकापाविर (लेन एलए) इंजेक्शन का 5 हजार लोगों पर सफल ट्रायल किया गया। लेनकापाविर एचआईवी कैप्सिड में प्रवेश करता है। कैप्सिड एक प्रोटीन शेल है जो एचआइवी की आनुवंशिक सामग्री और प्रतिकृति के लिए आवश्यक एंजाइमों की रक्षा करता है। इसे हर छह महीने में एक बार त्वचा में लगाया जाता है। पूर्वी और दक्षिणी अफ्रीका में, युवतियां एचआइवी संक्रमणों से सबसे ज्यादा पीड़ित होती हैं। कई सामाजिक और संरचनात्मक कारणों से, उन्हें दैनिक प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस व्यवस्था को बनाए रखना भी चुनौतीपूर्ण लगता है। परीक्षण के यादृच्छिक चरण के दौरान लेनकापाविर लगवाने वाली 2,134 महिलाओं में से कोई भी एचआइवी से संक्रमित नहीं हुई। इस इंजेक्शन की 100 प्रतिशत दक्षता साबित हुई। इन परीक्षणों का महत्व क्या है? यह सफलता बड़ी उम्मीद जगाती है कि लोगों को एचआइवी से बचाने के लिए हमारे पास एक सिद्ध, अत्यधिक प्रभावी रोकथाम का उपाय है।

एचआइवी को खत्म करने की जगी उम्मीद

इस ट्रायल के सफल होने से अब एचआइवी को खत्म करने की उम्मीद जाग उठी है। पिछले वर्ष वैश्विक स्तर पर 13 लाख नए एचआइवी संक्रमण के मामले आए थे। हालांकि, यह 2010 में देखे गए 20 लाख संक्रमण के मामलों से कम है। यह स्पष्ट है कि इस दर से हम एचआइवी के नए मामलों में कमी लाने के लक्ष्य को पूरा नहीं कर पाएंगे जो यूएनएड्स ने 2025 के लिए निर्धारित किया है (वैश्विक स्तर पर 5,00,000 से कम) या संभावित रूप से 2030 तक एड्स को समाप्त करने का लक्ष्य भी पूरा नहीं कर पाएंगे। प्री-एक्सपोजर प्रोफिलैक्सिस (पीईईपी) दवाएं रोकथाम का इकलौता उपाय नहीं है।

एचआइवी की स्वत: जांच, कंडोम तक पहुंच, यौन संचारित संक्रमणों के लिए जांच और उपचार और बच्चे पैदा करने योग्य महिलाओं के लिए गर्भनिरोधक दवाओं तक पहुंच के साथ-साथ पीईईपी प्रदान की जानी चाहिए। लेकिन इन विकल्पों के बावजूद, हम उस बिंदु तक नहीं पहुंचे हैं जहां हम नए संक्रमणों को रोकने में सक्षम हो सकें, खासकर युवा लोगों में।

साल में 2 इंजेक्शन से एचआइवी नहीं आएगा पास

युवाओं के लिए, रोजाना एक गोली लेने या कंडोम का उपयोग करने या संभोग के समय एक गोली लेने का निर्णय बहुत चुनौतीपूर्ण हो सकता है। एचआइवी वैज्ञानिकों और कार्यकर्ताओं को उम्मीद है कि युवाओं को यह पता चलेगा कि साल में केवल दो बार यह ‘रोकथाम निर्णय’ लेने से मुश्किलें कम हो सकती हैं। किसी युवती के लिए साल में सिर्फ दो बार एक इंजेक्शन लगवाना वह विकल्प है जो उसे एचआइवी से दूर रख सकता है।

 

 

क्या है शिवलिंग, कैसे हुई इसकी उत्पत्ति

भारत देश एक हिंदू धर्म प्रधान देश है. हालांकि, यहां पर अन्य कई प्रमुख धर्म भी हैं लेकिन हिंदू धर्म की मान्यता यहां पर ज्यादा है। हमारे हिंदू धर्म में हज़ारों करोड़ो देवी-देवता हैं, जिन्हें अलग-अलग क्षेत्रों के लोग अपने-अपने तरीके से पूजते हैं। मान्यता के अनुसार, इस संसार में कुल 33 करोड़ देवी-देवता हैं। लेकिन कुछ देवी-देवता ऐसे हैं जिनकी मुख्य रूप से पूजा होती है और उन्हीं में से एक हैं भगवान शिव। आज हम सभी लोग जिस शिवलिंग की पूजा करते हैं वो शिव का ही प्रतीक है। आमतौर पर शिवजी के भक्त सावन के महीने में या फिर शिवरात्रि के मौके पर शिवालयों में जाकर शिवलिंग पर दूध, जल, बेलपत्र तथा अन्य पूजा सामग्री चढ़ाकर भोलेनाथ की पूजा-अर्चना करते हैं।

शिवलिंग मतलब शिव भगवान, मगर कैसे? शिवलिंग का शिवजी से संबंध कैसे है? क्या है इसका मतलब? इसकी उत्पत्ति कैसे हुई और क्या मान्यता है? इन सब चीजों के बारे में बहुत कम ही लोगों को जानकारी होती है। ज़्यादातर लोगों को बस इतना ही पता रहता है कि शिवलिंग अर्थात भगबान शिव का प्रतीक। मगर आज हम आपको इसका असल मतलब बताएंगे। हम आपको बताएंगे कि आखिर शिवलिंग का अर्थ क्या है और कैसे इसे शिवजी का प्रतीक मानकर भगवान शंकर की पूजा की जाने लगी।

शिवलिंग, अगर इस शब्द का विच्छेद किया जाए तो अर्थ निकलता है ‘शिव का लिंग’। समान्यतः शिवलिंग एक गोलाकार मूर्ति तल पर खड़ा दिखाया जाता है, जिसे कई जगहों पर योनी की संज्ञा दी गयी है। कई लोग इसे गलत और अश्लील तथ्यों से जोड़ते हैं, मगर ऐसा कुछ भी नहीं है। ऐसी बातें करने वाले लोगों को इसका पूर्ण ज्ञान नहीं होता और वह आधा-अधूरा ज्ञान बांटकर अंधों में काना राजा बनने का प्रयास करते हैं और कई-कई बार तो बन भी जाते हैं। हालांकि, आपकी जानकारी के लिए बता दें कि शिवलिंग का उन तमाम तरह के अर्थों से कोई भी ताल्लुक नहीं है। यह शब्द सुनने में तो हिंदी जैसा लगता है, मगर इसका असल अर्थ संस्कृत में छिपा है। संस्कृत जो कि बहुत ही प्राचीन भाषा है उसमें लिंग का अर्थ ‘चिन्ह’ या ‘प्रतीक’ बताया गया है। जबकि जननेन्द्रिय को संस्कृत मे शिशिन कहा जाता है।

जानकारी के लिए बता दें कि स्कंदपुराण में आकाश को स्वयं लिंग की संज्ञा दी गयी है। आपको बता दें कि शिवलिंग का अर्थ है अनंत। अनंत अर्थात जिसका न कोई अंत है और न ही आरंभ। यदि ध्यान दिया जाये तो संपूर्ण ब्रह्मांड में दो ही चीजें व्याप्त हैं, पदार्थ और ऊर्जा। संसार की सभी वस्तु इन ही दोनों चीजों से बनी है। यहां तक कि हमारा शरीर भी पदार्थ का ही बना है, जबकि हमारी आत्मा ऊर्जा का प्रतीक है। शिवलिंग को अन्य कई नामों से भी जाना जाता है, जैसे प्रकाश स्तंभ, अग्नि स्तंभ, उर्जा स्तंभ, ब्रह्मांडीय स्तंभ आदि।

अगर सही-सही समझा जाये तो शिवलिंग का सीधा तात्पर्य यह है कि इस संसार में सिर्फ पुरुष का ही वर्चस्व नहीं है और न ही यह सृष्टि पुरुष से ही चल सकती है। पुरुष के साथ-साथ स्त्री का वर्चस्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है और दोनों ही एक-दूसरे के समान तथा पूरक हैं। निश्चित रूप से यह इस संसार को समाज को स्त्री पुरुष के बीच समानता दिखाने का संदेश है। मगर कुछ लोग इस बात की गहराई तक पहुंचे बिना ही कई तरह की मन गढ़ंत बातें करने लगते हैं तथा आधे-अधूरे ज्ञान के साथ लोगों को भ्रमित करते हैं। वैसे इस बात से तो तकरीबन सभी बेहतर वाकिफ होंगे कि इस सृष्टि के रचयिता परमपिता ब्रह्मा जी हैं और भगवान विष्णु को सृष्टि का रक्षक कहा जाता है। बताया जाता है कि संसार में संतुलन पैदा करने के लिए ही शिवलिंग की उत्पत्ति हुई है।

(साभार – क्रिकेट अड्डा)

करामाती बंगाली बाबू, साइंस पढ़ी, मगर बनाई 2000 करोड़ की कूरियर कंपनी

कोलकाता । एक मध्यम वर्गीय परिवार में पैदा हुए शुभाशीष चक्रवर्ती की जीवनयात्रा किसी प्रेरणादायी कहानी से कम नहीं है। साइंस पढ़ने में रुचि थी. साइंस की पढ़ाई जारी रखने के लिए उन्होंने छोटी-मोटी नौकरी की। पढ़ाई और नौकरी का संतुलन बनाए रखने के लिए कठोर तपस्या की। इस तप से फल यह मिला कि वे कॉलेज से कैमिस्ट्री में गोल्ड मेडल लेकर निकले. कभी आर्थिक तंगी झेलने वाले इस बंगाली बाबू की जेब में आज 2,000 करोड़ रुपये की कंपनी है। कंपनी का नाम देश के हर कोने-नुक्कड़ पर तो है ही, विदेशों में भी झंडे झूल रहे हैं। शुभाशीष की दृढ़ संकल्प की कहानी यह संदेश देती है कि पूरी मेहनत (तप) की बदौलत कुछ भी किया जा सकता है। यदि 100 लोगों को केवल एक कूरियर कंपनी का नाम लेने को कहा जाए तो 90 लोगों की जुबान पर पहला नाम डीटीडीसी का ही आएगा. सुभाशीष चक्रबर्ती उसी डीटीडीसी (डीटीडीसी) के संस्थापक हैं। फिलहाल कंपनी में चेयरमैन और मैनेजिंग डायरेक्टर के पद पर हैं। इनकी कूरियर कंपनी के माध्यम से आपने भी कई बार कूरियर भेजा होगा और आपके घर-ऑफिस तक डीटीडीसी ने कूरियर पहुंचाया भी होगा।

अब आपके मन में प्रश्न उठ सकता है कि कैमिस्ट्री में स्वर्ण पदक पाने वाला शख्स आखिर कूरियर के धंधे में कैसे चला गया? और चला भी गया तो कैसे हजारों करोड़ की वैल्यू वाली कंपनी खड़ी कर दी? सच तो यह है कि वे खुद भी नहीं जानते थे कि कूरियर का काम करेंगे शायद कभी सोचा भी नहीं था। एक इंटरव्यू में शुभाशीष चक्रवर्ती ने खुद कहा था- “उन दिनों में साफ था कि अच्छे नंबरों के साथ ग्रेजुएशन करने के बाद एक अदद नौकरी करनी है।”

शुभाशीष चक्रवर्ती कोलकाता के एक मध्यमवर्गीय परिवार में पैदा हुए। रामकृष्ण मिशन रेजिडेंशिल कॉलेज में केमिस्ट्री की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही वे एक बड़ी इंश्योरेंस कंपनी पीयरलेस के साथ काम करने लगे। पीयरलेस पूर्वी भारत में तो अच्छा काम कर रही थी, मगर दक्षिण भारत में उसे कोई नहीं जानता था। सो, कंपनी ने 1981 में शुभाशीष को बैंगलोर भेजा और वहां पीयरलेस का इंश्योरेंस व्यवसाय स्थापित करने को कहा। वे गए और कुछ वर्षों तक इंश्योरेंस में काम करते रहे। मन में एक कसक थी कि अपना व्यवसाय किया जाए। इंश्योरेंस सेक्टर की जानकारी थी, मगर रुचि नहीं थी. कैमिकल्स के बारे में अच्छे से जानते थे, और रुचि भी खूब थी।

ऐसे में 6 साल बाद 1987 में उन्होंने इंश्योरेंस कंपनी को अलविदा कहकर केमिकल डिस्ट्रीब्यूशन कंपनी शुरू की. केमिकल का बिजनेस चल सकता था, मगर चला नहीं। न चलने के पीछे का असली कारण बनी पोस्टल सर्विस. उन्हें कूरियर कंपनी के साथ डील करने में बहुत समस्या हुई। शुभाशीष ने पाया कि पोस्टल सर्विस और ग्राहकों के बीच में एक बहुत बड़ा गैप है। यहीं से पूरा गेम बदल गया। शुभाशीष ने केमिकल से नाता तोड़कर 26 जुलाई 1990 में डीटीडीसी नामक अपनी कूरियर कंपनी शुरू कर दी. आपकी जानकारी के लिए बता दें कि डीटीडीसी का पूरा नाम डेस्क टू डेस्क कूरियर एंड कार्गो है.

शुरुआत में बड़े शहरों पर फोकस करने के बाद जल्दी ही शुभाशीष चक्रवर्ती को समझ आ गया कि कूरियर सर्विस की ज्यादा मांग छोटे शहरों में है. मैसूर, मैंगलोर, और हुबली के साथ-साथ केरल, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश के छोटे शहरों में ज्यादा जरूरत भी है। 1990 में 20,000 रुपये लगाकर शुरू किए गए व्यवसाय को कई समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था। बैंक ने कर्ज देने से मना कर दिया था, क्योंकि वेंचर कैपिटल ही नहीं थी । शुभाशीष ने दिल पर पत्थर रखकर अपनी मां के गहने बेचकर व्यवसाय को चलाना जारी रखा परंतु वह भी कुछ ही महीनों चल सका। फिर से पैसे का संकट आ पड़ा। 1991 में शुभाशीष को एक ऐसा मंत्र सूझा, जिसने पूरी बाजी पलटकर रख दी। उन्होंने फ्रेंचाइजी मॉडल की शुरुआत की। क्षेत्रों को ज़ोन में बांटा गया। एक रीजनल ब्रांच 30 फ्रेंचाइजी संभालने लगी. कुछ ही समय बाद डीटीडीसी ने अपना सॉफ्टवेयर और कंप्यूटर सिस्टम भी फ्रेंचाइजीज़ पर उपबल्ध करवा दिया, ताकि ऑर्डर की रियल-टाइम ट्रैकिंग हो सके। यह एक ऐसी क्रांति थी, ग्राहक जिसकी जरूरत काफी समय से महसूस कर रहे थे। अब कूरियर भेजने वाला यह जान सकता था कि उसका पैकेट कहां तक पहुंचा है और कब वह सही हाथों तक पहुंच जाएगा। फ्रेंचाइजी आइडिया काम कर गया और गाड़ी अच्छे से चल पड़ी। दक्षिण भारत से व्यवसाय की शुरुआत करने वाली यह कंपनी फिलहाल 14,000 पिन कोड्स तक पहुंच रखती है। रिटेल ग्राहकों और बिजनेस दोनों के लिए डिलीवरी सेवाएं मुहैया कराने वाली कंपनी आपके घर से पिकअप कर सकती है और कहीं भी डिलीवरी दे सकती है। डीटीडीसी की वेबसाइट के मुताबिक, इसके नेटवर्क में 14,000 फिजिकल कस्टमर एक्सेस पॉइन्ट हैं. 96 फीसदी भारत के ही हैं. इसके अलावा इंटरनेशनल लेवल पर की उपस्थिति है. दुनिया के 220 डेस्टिनेशन ऐसे हैं, जहां पर डीटीडीसी की सेवाएं उपलब्ध हैं।

डीटीडीसी लगातार आगे बढ़ रही है। कंपनी के पास बड़े-बड़े क्लाइंट हैं, जिनमें विप्रो, इंफोसिस और टाटा ग्रुप की कंपनियां भी शुमार हैं। 2006 तक कंपनी की 3700 फ्रेंचाइजी हो गई थीं और रेवेन्यू 125 करोड़ रुपये थे. इसी समय इसे रिलायंस कैपिटल से 70 करोड़ रुपये का निवेश मिला और यह 180 करोड़ रुपये की कंपनी बन गई। 2010 आते-आते फ्रेंचाइजी की संख्या 5000 हो चुकी थी। इस समय कंपनी की सेल 450 करोड़ रुपये तक पहुंच गई। 2013 में डीटीडीसी ने निक्कोस लॉजिस्टिक्स में 70 फीसदी हिस्सेदारी खरीदी। इसी साल कंपनी ने डॉटज़ोट की लॉन्चिंग की, जोकि ई-कॉमर्स कंपनियों के लिए भारत का पहला डिलीवरी नेटवर्क बना। 2015 में हैदराबाद में ऑटोमेटिक लॉजिस्टिक हब बनाया गया।

2018 का आंकड़ा बताता है कि कंपनी हर साल 150 मिलियन से अधिक पैकेट शिप कर रही है और इसके फ्रेंचाइजी पार्टनर की संख्या 10,700 तक पहुंच गई। चूंकि और भी कंपनियां कूरियर डिलीवर करती हैं तो भी डीटीडीसी के पास लगभग 15 प्रतिशत का मार्केट शेयर है। फिलहाल, एक अनुमान है कि कंपनी का रेवेन्यू 2000 करोड़ के आसपास है। हालांकि इससे जुड़ा कोई आंकड़ा सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं है, मगर कुछ साल पहले एक बड़े मीडिया घराने ने इसके आईपीओ को लेकर एक खबर छापी थी। उस खबर में कहा गया था कि कंपनी 3,000 करोड़ रुपये का एक आईपीओ लाने वाली है। बता दें कि अभी तक कंपनी अपना आईपीओ नहीं लाई है।

लिटिल थेस्पियन का 24वां रंग अड्डा

कोलकाता । “रंग अड्डा का मुख्य उद्देश्य छात्रों को रंगमंच से जुड़ी बारीकियों को बताने के साथ-साथ रंगमंच से जुड़े विशिष्ट व्यक्ति, नाटककार, निर्देशक आदि के बारे में बताना भी है l स्कूल तथा कॉलेज में नाटक भी कहानी कि तरह ही पढ़ाया जाता रहा है l नाटक के प्रति रुचि पैदा करना भी रंग अड्डा का उद्देश्य है” कहती हैं वरिष्ठ रंगकर्मी और लिटिल थेस्पियन की निर्देशिका, संस्थापिका उमा झुंझुनवाला | गत  23 जून रविवार 2024, को सुजाता देवी विद्या मंदिर हाजरा के प्रांगण में लिटिल थेस्पियन का 24वां रंग अड्डा सम्पन्न हुआ l जून माह का रंग अड्डा भुवनेश्वर, मुद्राराक्षस, देवेन्द्र राज अंकुर, सुरेश भारद्वाज और विष्णु प्रभाकर पर केंद्रित था l विष्णु प्रभाकर के एकांकियों में लोकतान्त्रिक स्वर की अनुगूँज विषय पर आलेख पाठ सीमा शर्मा ने लिखा था जिसका पाठ उनकी  अनुपस्थिती में पार्वती कुमारी शॉ ने किया l मुद्राराक्षस के नाटक आला अफ़सर पर आलेख राधा  कुमारी ठाकुर ने प्रस्तुत किया l कहानी के रंगमंच की अवधारणा और देवेंद्र राज अंकुर पर आलेख पाठ सुधा गौड़ ने प्रस्तुत किया l सुरेश भारद्वाज पर एक साक्षात्कार पर संक्षिप्त चर्चा संगीता व्यास ने प्रस्तुत किया l भुवनेश्वर के नाटक ताम्बे का कीड़ा का अभिन्यात्मक पाठ संगीता व्यास, हीना परवेज, पार्वती कुमारी शॉ, राधा कुमारी ठाकुर, इंतखाब वॉरसी, दानिश वारिस खान, , मो. आसिफ़ अंसारी ने किया l 24वें रंग अड्डे का संचालन पार्वती कुमारी शॉ ने किया l अंत में उमा झुंझुनवाला ने घोषणा की 25 वा रंग अड्डा (सिल्वर जुबली) बड़ी धूम धाम से तथा बड़े पैमाने पर मनाया जायेगा जिसमें चर्चित नाटककार, निर्देशक तथा नाटक से जुड़े व्यक्तित्व को शामिल किया जायेगा तथा उनके द्वारा थिएटर कार्यशाला करवायी जायेगी, जिससे नाटक के प्रति प्रेम रखने वालों को लाभ होगा l  यह कार्यक्रम दिन भर चलेगा l इसमें एक पुस्तक भी आएगी जिसमें अभी तक के रंग अड्डे में प्रस्तुत आलेखों का संकलन होगा l

डॉ. गीता दूबे को शुभजिता सृजन प्रहरी सम्मान -2024

कोलकाता । गत 20 जून 2024 की संध्या को भारतीय भाषा परिषद में ‘साहित्यिकी’ एवं ‘शुभजिता’ के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गोष्ठी में संस्था कवि- आलोचक डॉ गीता दूबे को शुभजिता की ओर से ‘सृजन प्रहरी’ सम्मान प्रदान किया गया एवं शुभ सृजन प्रकाशन द्वारा सद्य प्रकाशित पुस्तक “विस्मृत नायिकाएँ” पर विस्तार से चर्चा हुई। इस शोधपरक पुस्तक में हिंदी साहित्य की उन 35 विस्मृति के अंधकार में गुम सृजनशील कवयित्रियों का उल्लेख है, जिनकी इतिहास में उपेक्षा या अनदेखी हुई है।
साहित्यिकी संस्था की संस्थापिका डॉ सुकृति गुप्ता जी को उनकी पुण्यतिथि पर याद करते हुए श्रद्धांजलि दी गयी। संस्था की सचिव डॉ मंजू रानी गुप्ता ने अतिथियों का स्वागत करते हुए शुभजिता की संस्थापिका और संचालक सुषमा त्रिपाठी को शुभजिता प्रहरी सम्मान डॉ. गीता दूबे को देने के लिए साधुवाद दिया। रानी बिड़ला गर्ल्स कॉलेज की प्राध्यापिका डॉ विजया सिंह ने अभिनंदन पत्र का पाठ किया। मुख्य अतिथि डॉ चन्द्रकला पाण्डेय ने अपनी शिष्या डॉ गीता दूबे को उत्तरीय पहना कर स्मृति चिन्ह प्रदान किया। उन्होंने कहा कि अविस्मरणीय शाम में विस्मृत नायिकाओं पर चर्चा करना सचमुच महत्वपूर्ण है। हमें पुरानी शब्दावली में नहीं जीना है। डॉ. शुभ्रा उपाध्याय ने गीता दूबे को अभिनंदन पत्र प्रदान करते हुए उन्हें बधाई दी। सदस्य वक्ता डॉ इतु सिंह नें पुस्तक के बारे में विस्तार से बताते हुए कहा कि इसमें रत्नावली, जुगलप्रिया, विरंचि कुँवरि, आम्रपाली आदि अनेक स्त्री रचनाकारों की दास्तान है जिनका लेखन उनके समकालीन पुरुष रचनाकारों से कहीं भी कमतर नहीं, बावजूद इसके उनको इतिहास में यथोचित स्थान नहीं मिला। गीता दूबे ने हिंदी साहित्य के इतिहास को देखते हुए हाशिये पर पड़ी हुई बुद्धिमती स्त्री रचनाकारों को केंद्र में लाने की कामयाब कोशिश की है। अतिथि वक्ता डॉ शुभ्रा उपाध्याय के अनुसार “विस्मृत नायिकाएँ” आधी आबादी की भूली दास्तानों का इनसाइक्लोपीडिया है। पुस्तक में उद्घृत पैंतीस नायिकाओं पर विशद प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि विस्मृत नायिकाएँ हिन्दी साहित्य के इतिहास का कृष्णपक्ष है और गीता दूबे ने इस पुस्तक के माध्यम से एक नई खिड़की खोली है। पुस्तक में भावपक्ष, कलापक्ष, शब्द चयन ,शिल्प आदि सभी कुछ उत्कृष्ट है। डॉ. गीता दूबे नें सम्मान के लिए शुभजिता प्रकाशन की संस्थापिका एवं कार्यक्रम की संचालिका सुषमा त्रिपाठी को धन्यवाद देते हुए अपनी गुरु डॉ. चन्द्रकला मैम के प्रति श्रद्धा व्यक्त करते हुए कहा कि हर स्त्री के अपने संघर्ष होते हैं। हमें पूरे परिवेश को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। अपने अध्यक्षीय वक्तव्य में कुसुम जैन जी ने डॉ गीता दूबे के लेखन कौशल तथा दृष्टि की तारीफ करते हुए उनके लेखन को मन को छूने वाला बताया। संस्था की अध्यक्ष विद्या भण्डारी ने लेखिका की बेबाकी की प्रशंसा करते हुए उन्हें बधाई दी तथा सभी का आभार ज्ञापन कर कार्यक्रम का समापन किया।
रिपोर्टिंग – मीतू कानोडिया

लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स” बनी बंगाल महिला प्रो टी-20 लीग 2024 की चैंपियन

कोलकाता । लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स ने बंगाल महिला प्रो टी-20 लीग 2024 के बेहद रोमांचक मुकाबले में चैंपियन टीम बनी। उसने टूर्नामेंट के फाइनल मैच में मुर्शिदाबाद कुइंस टीम को 5 रन से हराकर यह धमाकेदार जीत हासिल की। पूरे टूर्नामेंट में इस टीम के खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाते हुए प्रभावशाली प्रदर्शन कर विजेता टीम बनी। ​​मीता पॉल की अगुआई में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स के खिलाड़ियों ने अपनी बैटिंग एवं मैदान में फिल्डिंग दोनों में शानदार प्रदर्शन किया, जिससे महिला क्रिकेट में उनकी स्थिति मजबूत हुई। ईडेन गार्डन्स क्रिकेट स्टेडियम में रोमांचक फाइनल में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स ने मुर्शिदाबाद कुइंस को 5 रन से हराकर बंगाल प्रो टी20 लीग का उद्घाटन महिला खिताब अपने नाम किया। कप्तान मीता पॉल ने 24 रन बनाए, लेकिन मुख्य बल्लेबाजी इप्सिता मंडल ने की, जिन्होंने 32 गेंदों पर 37 रन बनाए। आखिरी ओवर में 13 रन चाहिए थे, ममता किस्कू ने पहली गेंद पर ही अद्रिजा का विकेट ले लिया। अगली दो गेंदों पर पांच रन आने के बाद, प्रियंका पर मुर्शिदाबाद को जीत दिलाने की जिम्मेदारी थी। लेकिन किस्कू ने धैर्य बनाए रखा और आखिरी गेंद पर प्रियंका का बेशकीमती विकेट हासिल किया और कोलकाता ने मैच 5 रन से जीत लिया। राज्य के एक प्रख्यात उद्योगपति लक्स कोज़ी के संस्थापक एवं क्रिकेट के शौकीन साकेत तोदी ने कहा, “महिला बंगाल प्रो टी-20 लीग 2024 के उद्घाटन संस्करण में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स की जीत से हम बेहद खुश हैं एवं गर्व का अनुभव कर रहे हैं। यह जीत हमारी टीम के खिलाड़ियों और कोचों से लेकर सहयोगी स्टाफ तक हमारी पूरी टीम के समर्पण और कड़ी मेहनत का नतीजा है। हमें उनकी इस उपलब्धि पर बेहद गर्व है। वहीं, स्टील उद्योग के जाने-माने उद्योगपति और श्याम स्टील के निदेशक और जाने-माने समाजसेवी ललित बेरीवाला ने कहा, महिला बंगाल प्रो टी- 20 लीग 2024 में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स की जीत टीम वर्क की शक्ति का जीता जागता उदाहरण है। पूरे टूर्नामेंट में टीम के हर खिलाड़ी ने अहम योगदान दिया। हम उनकी प्रतिबद्धता, दृढ़ता और एक-दूसरे के प्रति अटूट समर्थन के लिए बेहद आभारी हैं। यह जीत पूरी टीम की है और हम उनकी सफलता का जश्न मनाने के लिए उत्सुक हैं। वहीं दूसरी तरफ, कप्तान अभिषेक पोरेल की अगुआई में खेले गये पुरुष श्रेणी के टूर्नामेंट में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स पुरुष क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बंगाल प्रो टी- 20 लीग 2024 में सेमीफाइनल मैच तक पहुंच सकी। हालांकि इस वर्ष पुरुष श्रेणी में यह टीम फाइनल तक का सफर नहीं कर सकी, लेकिन इस पूरे टूर्नामेंट में पुरुष टीम का प्रदर्शन दमदार रहा। आगामी सीजन में टीम के खिलाड़ियों को इस प्रदर्शन का लाभ अवश्य मिलेगा।