Wednesday, September 17, 2025
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महात्मा गांधी और दरभंगा महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह

भवनाथ झा

महात्मा गांधी के हृदय में मिथिला के प्रति सदैव अपार स्नेह और भक्ति थी। मेरा अनुमान है कि महात्माजी जब बारह या तेरह वर्ष के रहे होंगे, तब उन्हें मिथिला के स्वर्णिम अतीत का ज्ञान हो गया होगा। उन्होंने स्वयं अपनी आत्मकथा में लिखा है:“जब मैं शायद बारह या तेरह साल का था, मेरे पिता पोरबंदर सुदामापुरी में बीमार थे। उस समय रामभक्त लड्ढा महाराज उनके पलंग के पास बैठकर प्रतिदिन तुलसीकृत रामायण का पाठ करते थे। उनकी आवाज़ उनकी भक्ति भावना की तरह ही मधुर थी। जब उन्होंने दोहा और चौपाई गाना शुरू किया तो उन्होंने श्रोताओं को आसानी से मंत्रमुग्ध कर दिया। वे स्वयं रामायण पढ़ने की कृपा से कुष्ठ रोग से मुक्त हो गये थे। उस समय उनकी रामायण भक्ति का मुझ पर बहुत प्रभाव पड़ा। आज मैं तुलसीकृत रामायण को साधना साहित्य का सर्वोत्तम ग्रन्थ मानता हूँ।”

और मैं जानता हूं कि अपनी किशोरावस्था के उसी अमिट प्रभाव के कारण गांधीजी ने अपने लेखों और भाषणों में अनेक स्थानों पर विदेह जनक, विदेहभूमि और सती सीता के प्रति अपनी अपार श्रद्धा को खुलकर व्यक्त किया है।

हालाँकि, यह त्रेतायुग की गौरवशाली विदेह भूमि का स्वप्न ज्ञान था, जिसे गांधीजी ने नेतल (नेतल, दक्षिण अफ्रीका) में अपने प्रवास के दौरान आंशिक रूप से साकार करना शुरू किया। यह अब कोई दबा हुआ सत्य नहीं है कि दक्षिण अफ्रीका में महात्माजी के सत्याग्रह संघर्ष को सफल बनाने में दरभंगा के महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह बहादुर और खंडबाला के कुलदीप का भी कम योगदान नहीं था। यद्यपि राजनीतिक विडम्बना के फलस्वरूप मिथिला का वास्तविक इतिहास कुछ शताब्दियों तक जानबूझ कर या उपेक्षित रूप से अन्धकार में रखा गया, फिर भी संतोष की बात है कि कुछ वर्षों तक डॉ. जगदीश चन्द्र झा, डॉ. जटाशंकर झा तथा डॉ. उपेन्द्र ठाकुर प्रतिष्ठित इतिहासकारों द्वारा विशेष जांच की जा रही है। इस बीच, पटना की स्थिति ‘मुझे पूरी उम्मीद है कि महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह स्मारक समिति के तत्वावधान में किए गए जांच कार्य से निकट भविष्य में कई लंबे समय से भूले हुए ऐतिहासिक तथ्य प्रकाश में आएंगे।

इस बीच, उक्त समिति के कार्यालय सचिव पंडित श्री राजेश्वर झाजी द्वारा प्रस्तुत पुस्तिका ‘महाराज लक्ष्मीश्वर सिंह’ (पृष्ठ 27) से कुछ उद्धरणों का मैथिली अनुवाद मैं नीचे दे रहा हूँ। इससे यह स्पष्ट होता है कि महाराजा लक्ष्मीश्वर सिंह बहादुर ने न केवल श्री ह्यूम (कांग्रेस) को निरन्तर आर्थिक सहायता दी, बल्कि महात्मा गांधी को भी उदारतापूर्वक धन दिया। मिथिलेश की उदारता और देशभक्ति से उत्साहित होकर महात्मा गांधी ने जुलाई 1897 में निम्नलिखित आशय का एक पत्र लिखा:

‘मैं आपका ध्यान संसद के ‘भारत विरोधी विधेयक’ से संबंधित प्रति की ओर आकर्षित करना चाहता हूं, जिसे भारतीयों के अनुरोध पर महामहिम चैंबर लेन को भेजा गया है। यद्यपि राज्यपाल ने विधेयक पर अपनी सहमति दे दी है, और यह अब अधिनियमित हो गया है, फिर भी सम्राट को किसी भी औपनिवेशिक कानून को पलटने का अधिकार है। नेटाल में भारतीयों की पीड़ा और उनकी दयनीय स्थिति में तब तक सुधार नहीं हो सकता जब तक आप अपने प्रयास दुगुने नहीं कर देते।

महाराजा ने उन्हें कितनी तत्परता से प्रोत्साहित किया, इसका अनुमान 12 अगस्त 1897 की निम्नलिखित तालिका से स्वतः ही लगाया जा सकता है:
“मैं श्री गांधी को सभी कागजात भेजने के लिए धन्यवाद देता हूं और उन्हें सूचित करता हूं कि समय-समय पर मुझे पत्र और कागजात भेजने के लिए मैं उनका बहुत आभारी हूं। उनसे पूछिए कि नेटाल सिचुएशन के भारतीयों के बचाव के लिए उन्होंने क्या कार्यक्रम निर्धारित किया है, उन्हें मुझसे सहायता मिलती रहेगी।

महात्मा गांधी और राज दरिभंगा के बीच ऐसा ही रिश्ता था। यह संभव है कि जांच के परिणामस्वरूप कई और भूले हुए तथ्य सामने आ सकें।

हालाँकि, ये मिथिला के बारे में गांधीजी की खुशी भरी भावनाएँ थीं। लेकिन मिथिला में उनका पहला पदार्पण 1917 में हुआ जब मिथिला के चंपारण निवासी राजकुमार शुक्ल ने उनसे गांधीजी को कलकत्ता से पटना और मुजफ्फरपुर होते हुए चंपारण लाने का आग्रह किया, जिसका उद्देश्य लोगों को तिनकठिया प्रथा के शोषण और उत्पीड़न से मुक्ति दिलाना था। निलहा साहब. महात्माजी अपनी आत्मकथा में लिखते हैं

‘चंपारण राजा जनक की भूमि है। चूंकि यह शहर आम के पेड़ों से भरा हुआ था, अतः 1917 ई. के नवम्बर तक यह नील की खेती से प्रभावित हो गया। मैं स्वीकार करता हूं कि मुझे चंपारण का नाम और उसकी भौगोलिक स्थिति के बारे में जानकारी नहीं थी, इसलिए मैं इसे आसानी से नहीं समझ पाया। यह भी अज्ञात था कि नील की खेती कैसे की जाती है। उन्होंने कहा, “राजकुमार शुक्ल भी एक शोषित किसान थे और हजारों शोषित किसानों के उद्धार के लिए चंपारण से नील की खेती का कलंक मिटाने के लिए मुझे यहां लाए थे।”

अपनी आत्मकथा में उन्होंने चंपारण की आर्थिक, सामाजिक और प्राकृतिक परिस्थितियों के बारे में बहुत कुछ लिखा है, जिससे मिथिला के प्रति उनका नजरिया स्पष्ट होता है। उन्होंने शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए किस प्रकार प्राथमिक विद्यालय खोले, स्वास्थ्य और स्वच्छता के लिए क्या अभियान चलाए तथा अपने सत्याग्रह के फलस्वरूप किस प्रकार मिथिला को नील के कलंक से मुक्त कराने में सफल हुए, इसकी यहां विस्तार से चर्चा नहीं की जा सकती। इसलिए, यह इंगित करना पर्याप्त प्रतीत होता है कि महात्मा अपने अंतिम दिनों तक दरभंगा के महाराजा डॉ. सर कामेश्वर सिंह बहादुर और उनके राज्य प्रबंधक (अब बुजुर्ग) पंडित श्री गिरिंद्रमोहन मिश्र के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़े रहे।

1934 के भूकंप के बाद जब महात्मा जी सरोजिनी नायडू के साथ मिथिला आए तो उन्होंने मिथिलेश का आतिथ्य स्वीकार किया। उस दिन की मधुर स्मृति आज बार-बार पूछ रही है, ‘वह दिन कहां चला गया?’ लेकिन इतिहास चुपचाप उत्तर देता है, ‘समय ऐसा कहता है।’ इसलिए, प्रसिद्धि अमर है। बस यही संतुष्टि है। अब, ‘न तो वह शहर, न ही वह स्थान’। हालाँकि, सहजानंद सरस्वती के जीवन से कुछ पंक्तियाँ इस तरह उद्धृत की जा सकती हैं जिससे स्वाभाविक निबंध को कुछ मजबूती मिले। वह अमर पंक्ति है:

“महात्मा गांधी से शिकायत की गई थी कि दरिभंगा राज में रैयतों पर अत्याचार हो रहा है। यहां तक ​​कि कर वसूली में बहुओं की इज्जत भी तार-तार हो जाती है।’ महात्मा गांधी को यह बात अतिशयोक्तिपूर्ण लगी। उन्होंने कहा कि जहां तक ​​मैं महाराजा के बारे में जानता हूं, मैं कह सकता हूं कि यदि उन्हें यह बात पता होती तो वे इसका समाधान कर देते, विशेषकर तब जब उनके पास श्री गिरिन्द्रमोहन मिश्र जैसे प्रबंधक हों। यह स्वर्गीय मिथिलेश एवं श्रद्धेय पंडित महात्मा गांधी की गिरीन्द्र मोहन मिश्र पर अटूट विश्वास!!

इसके अलावा, महात्मा जी के दरभंगा आगमन के अवसर पर, जब दरभंगा के मिश्रटोला के वरिष्ठ मैथिली साहित्यकार पंडित श्री शशिनाथ चौधरी ने महात्मा जी को दक्षिणी अनाची के गड्ढे में बंधी एक जोड़ी जनऊ दी, तो सुई की सहायता से एक धागे से नौ अलग-अलग धागे निकाले गए। महात्मा जी मिथिला की इस अनूठी हस्तकला से मोहित हो गये। उन्होंने प्रसन्नतापूर्वक कहा, ‘धन्य है यह मिथिला, जहां आज भी शिल्पकला को प्रोत्साहित किया जा रहा है।

इसी प्रकार रामगढ़ कांग्रेस अधिवेशन के अवसर पर अयाची संग्रहालय के संस्थापक एवं मैथिली के प्रख्यात कार्यकर्ता पंडित श्री जयगोविंद मिश्र, ग्राम विष्णुपुर, झंझारपुर मधुबनी, शुद्ध मैथिली पंडित के वेश में महात्मा जी के समक्ष उपस्थित हुए थे। महात्माजी को सूत का एक टुकड़ा दिया और मैथिली में अपनी भेंट प्रस्तुत की। महात्माजी मंत्रमुग्ध हो गए और उन्होंने मिथिला, मैथिली संस्कृति और मिथिला की महिलाओं की शिल्पकला की प्रशंसा की। महात्मा हिन्दी में बोल रहे थे और मिश्र मैथिली में। महात्मा जी मैथिली की मिठास से प्रभावित हुए। मैंने यह बात श्री मिश्रा से सीखी।

इस संबंध में यह ध्यान रखना प्रासंगिक प्रतीत होता है कि उक्त मलमल थान को कांग्रेस प्रदर्शनी में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया गया था। श्री जयगोविंद मुझसे मिलने गांव में आये। मैंने सुझाव दिया कि यह मलमल का थान मैथिली साहित्य परिषद को दे दिया जाए। मैं भी उस समय परिषद से विशेष रूप से जुड़ा हुआ था। और उस समय परिषद के मंत्री श्री भोलालाल दास। दासजी ने इस मलमल थान को ले लिया था और इसे स्वर्गीय मिथिलेश महाराजाधिराज डॉ. सर कामेश्वर सिंह बहादुर के हाथों समर्पित कर दिया था। मिथिलेश ने श्री भोलालाल दासजी को वस्त्रों के उस अमूल्य उपहार के बदले में जो सामग्री दी थी, उससे परिषद ने रघुवंश का मैथिली में अनुवाद (मूलतः कालिदास द्वारा संस्कृत में) बाबू अच्युतानंद दत्त द्वारा प्रकाशित करवाया। यह ऐतिहासिक प्रकाशन आज भी मैथिली साहित्य जगत को अपनी अमर कहानी सुना रहा है। हाँ, सुनने के लिए श्रवण की आवश्यकता है, कृतज्ञता के लिए स्मृति की आवश्यकता है और महात्मा जी के मिथिला प्रेम के विशेष मूल्यांकन के लिए मिथिला के निष्पक्ष इतिहास की आवश्यकता है। मुझे नहीं पता कि यह व्यापक मूल्यांकन कब तक और कैसे संभव होगा।

प्रस्तुति : डॉ रमानंद झा रमण, मैथिली साहित्यकार, पटना
स्रोत: मिथिला-मिहिर, 28 सितंबर, 1969/ लक्ष्मीपति सिंह रचना संचयन

नोट : यह आलेख मूल रूप से मैथिली भाषा में हैं। हिंदी के पाठकों के लिए एआई की मदद से ट्रांसलेट किया गया है। असमंजस की स्थिति में मूल आलेख को एक बार देख लिया जाए

(लेख सौजन्य – भवनाथ झा)

कहां लुप्त हो गयी सरस्वती नदी

त्रिवेणी यानी तीन नदियों का संगम गंगा , यमुना , सरस्वती । प्रयागराज में गंगा ,यमुना का मिलन सभी देखते हैं लेकिन सरस्वती का दर्शन नहीं होता ,जबकि सरस्वती को वैदिक सभ्यता की सबसे बड़ी और मुख्य नदी माना जाता है ।कुछ लोगों की मान्यता है कि सरस्वती विलुप्त हो गई है या यमुना से मिलकर अदृश्य रूप से आगे बढ़ी है ।शास्त्रों के अनुसार सरस्वती को पाताल में लुप्त होने की कथा रही है ,महाभारत में भी इस नदी का उल्लेख है । सरस्वती जिस स्थान पर लुप्त हो जाती है उस स्थान को विनाशना तथा उपमज्जना के नाम से संबोधित किया गया है ।
महाभारत में इसे वेद स्मृति ,वेदवती नाम से बुलाया गया है । ये भी उल्लेखित है कि बलराम ने द्वारिका से मथुरा तक की यात्रा इसी नदी से होकर की थी । कर्ण ने सरस्वती नदी के तट पर ही अपना अंतिम दान दिया था । ऋग्वेद में भी इस नदी का उल्लेख मिलता है, इसे यमुना के पूरब  और सतलुज के पश्चिम बहते बताया गया है ।
एक पौराणिक कथा के अनुसार महर्षि वेदव्यास सरस्वती नदी के तट पर गणेश जी को महाभारत को कथा सुना रहे थे ,कथा में कोई बाधा उपस्थित ना हो इसलिए उन्होंने सरस्वती नदी को धीरे बहने का आदेश दिया था पर सरस्वती इस आदेश को ना मानकर अपने वेग को तीव्र गति से आगे बढ़ाती रही क्रोधवश गणेश जी ने सरस्वती नदी को पाताल से बहने का श्राप दे दिया ताकि आगे धरती पर उसका बहाव ही ना रहे ।
परिणामतः सरस्वती विलुप्त हो गई । अब विज्ञान की बात करें तो भौगोलिक आधार पर भौगौलिक परिवर्तन( जलवायु और टेक्टोनिक बदलाव) के कारण 5000 बी.पी में इस नदी के गायब होने का उल्लेख मिलता है । शोधकर्ता माइकल डैनिनो (इतिहासकार) ने अपनी शोध में एक छोटी नदी घग्घर का नाम उल्लेख किया है जिसे सरस्वती कहा है और इसे विलुप्त माना है ।
अब अगर उद्गम और प्रवाह की बात करें तो सरस्वती का उद्गम उत्तराखंड के बद्रीनाथ से निकलकर उसकी प्रवाह  हरियाणा,पंजाब , राजस्थान और गुजरात से होकर बहते हुए अंत में अरब सागर में मिलने का उल्लेख मिलता है ।
कुछ लोग यह भी मानते हैं कि थार के रेगिस्तान के नीचे अभी भी सरस्वती नदी का अस्तित्व शेष है । सवाल यह उठता है कि प्रयागराज के संगम में सरस्वती क्या सिर्फ़ एक परिकल्पना है या सचमुच यमुना की धारा में इसे मिला हुआ मान लिया जाए पर सरस्वती का अस्तित्व क्यों सिमटकर और विलुप्त होकर ही रह गया , यह एक पहेली है जिसकी अलग -अलग व्याख्या की गई है ।

लिटिल थेस्पियन और विद्यार्थी मंच के संयुक्त तत्वावधान में 28वाँ रंग अड्डा

कोलकाता / हावड़ा । पश्चिम बंगाल में हिंदी और उर्दू रंगमंच के लिए विख्यात नाट्य संस्था लिटिल थेस्पियन ने विद्यार्थी मंच के सहयोग से 28वें रंग अड्डा का आयोजन रविवार 19 जनवरी 2025 को हावड़ा स्थित विद्यार्थी मंच के कार्यालय में किया। इस अवसर पर विद्यार्थी मंच की अध्यक्ष एवं मुक्तांचल त्रैमासिक पत्रिका की संपादक डॉ. मीरा सिन्हा और लिटिल थेस्पियन की अध्यक्ष उमा झुनझुनवाला उपस्थित थी। सर्वप्रथम उत्तरपाड़ा यूनियन गर्ल्स हाई स्कूल के हिंदी के अध्यापक प्रकाश कुमार त्रिपाठी (प्रकाश प्रियांशु) ने आलेख पाठ किया। फ्रांसीसी लेखक और नाट्यकार मोलियर के नाटक तरतूफ़ को केंद्र में रखकर उन्होंने अपना आलेख प्रस्तुत किया। उनके आलेख का शीर्षक तरतूफ़ नाटक की प्रासंगिकता; थी। हिंदी विश्वविद्यालय (हावड़ा) की प्राध्यापिका डॉ. रेखा कुमारी त्रिपाठी ने;जयशंकर प्रसाद के नाटकों की नायिकाओं के प्रेम और ईर्ष्या में आंतरिक द्वंद्व; नामक शीर्षक से अपने आलेख का पाठ किया। युवा कवयित्री एवं लेखिका प्रिया श्रीवास्तव ने मोहन राकेश के नाटकों की स्त्री पात्रों के केंद्र में रखकर अपना वक्तव्य प्रस्तुत किया। उनके आलेख का शीर्षक 'मल्लिका, सुंदरी और सावित्री : स्त्री जीवन की त्रासद नायिकाएँ ’ था। आशुतोष कुमार राउत ने विजय तेंदुलकर के नाटकों को केंद्र में रखकर अपना आलेख प्रस्तुत किया। उनके आलेख का शीर्षक था मैं खुरदुरे यथार्थ के साथ ही ठीक हूँ: विजय तेंदुलकर। इन चार आलेखों के वाचन के बाद मोहन राकेश कृत नाटक आधे अधूरे; के उत्तरार्द्ध; का अभिनयात्मक पाठ लिटिल थेस्पियन के रंगकर्मियों द्वारा प्रस्तुत किया गया। इस अभिनयात्मक पाठ में मो. आसिफ़ अंसारी, इंतेखाब वारसी, एनी दास, राधा कुमारी ठाकुर, नव्या शंकर, गुंजन अज़हर और पार्वती कुमारी शॉ ने सहभागिता की। इसके बाद आलोचना सत्र में वरिष्ठ नाटककार एवं रंगकर्मी महेश जायसवाल,विवेक लाल और डॉ. विजया सिंह (प्राध्यापिका, रानी बिरला गर्ल्स कॉलेज) ने इन सभी प्रस्तुत किए गए आलेखों का अपनी-अपनी आलोचनात्मक दृष्टि से विश्लेषण किया। महेश जैसवाल ने पश्चिम बंगाल में
हिंदी और उर्दू नाटक के प्रचार और प्रसार के लिए एस. एम. अज़हर आलम और उमा झुनझुनवाला तथा लिटिल थेस्पियन द्वारा किए गए कार्यों एवं प्रयासों की प्रशंसा की। इस पूरे आयोजन का कुशलतापूर्वक
संचालन लिटिल थेस्पियन की रंगकर्मी पार्वती कुमारी शॉ ने किया। इस अवसर पर विभिन्न विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों के कई छात्र और शिक्षक एवं नाट्यप्रेमी उपस्थित थे। जिनमें सुजाता
साहा, डॉ. अनिता कुमारी ठाकुर (मटियाबुर्ज कॉलेज), सुशील पांडेय, विनोद यादव (जवाहरलाल नेहरू विद्यापीठ बॉयज़ हाई स्कूल), प्रतिमा शुक्ला, रवि श्रीवास्तव, राव्या श्रीवास्तव, उपदेश दर्जी, सरिता खोवाला,
बलराम साव, स्वराज पांडेय, अमित कुमार साव, शिव प्रकाश चौबे आदि प्रमुख व्यक्ति थे। अंत में डॉ. मीरा सिन्हा ने धन्यवाद ज्ञापन किया।

भारत के ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 7.93 प्रतिशत की कमी : रिपोर्ट

नयी दिल्ली । जलवायु पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन की चौथी द्विवार्षिक अपडेट रिपोर्ट (बीयूआर-4) के अनुसार, भारत जलवायु लचीलेपन की दिशा में अपनी यात्रा में महत्वपूर्ण प्रगति कर रहा है और 2019 की तुलना में 2020 में ग्रीनहाउस गैस (जीएचजी) उत्सर्जन में 7.93% की कमी दर्ज की गई है। यह कटौती टिकाऊ और कम कार्बन वाले भविष्य के प्रति भारत की प्रतिबद्धता को रेखांकित करती है, जो 2021 में पार्टियों के 26वें सम्मेलन (सीओपी26) के दौरान की गई 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने की अपनी प्रतिज्ञा के अनुरूप है। यह जानकारी पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने दी। यह उपलब्धि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक प्रगति को सार्थक जलवायु कार्रवाई के साथ जोड़ने की प्रतिबद्धता को दर्शाती हैं।

दरअसल जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान ने पृथ्वी पर जीवन के लिए गंभीर संकट पैदा कर दिया है। जिससे जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए देशों को पेरिस समझौते के तहत राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने के लिए मजबूर होना पड़ा है। इसके जवाब में भारत ने 2021 में कॉप 26 के सम्मेलन में 2070 तक शुद्ध-शून्य उत्सर्जन हासिल करने का संकल्प लिया। भारत की चौथी द्विवार्षिक अपडेट रिपोर्ट (बीयूआर-4) में 2019 की तुलना में 2020 में जीएचजी उत्सर्जन में 7.93 प्रतिशत की कमी पर प्रकाश डाला गया है।

संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (कॉप21) का 21वां सत्र 2015 में पेरिस में हुआ था, जहां 195 देशों ने पेरिस समझौते को अपनाया था। समझौते का उद्देश्य पूर्व-औद्योगिक स्तरों से ऊपर वैश्विक औसत तापमान वृद्धि को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे तक सीमित करना है। साथ ही वृद्धि को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक सीमित करने और ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को जल्द से जल्द करने के प्रयासों को आगे बढ़ाना है। यह 4 नवंबर, 2016 को लागू हुआ, जिसके तहत देशों को अपने जलवायु लक्ष्यों को रेखांकित करते हुए राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित योगदान (एनडीसी) प्रस्तुत करने की आवश्यकता हुई।

प्रगति पर नजर रखने के लिए हर दो साल में भारत यूएनएफसीसीसी को द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर) प्रस्तुत करता है। भारत ने 30 दिसंबर 2024 को यूएनएफसीसीसी को अपनी चौथी द्विवार्षिक अद्यतन रिपोर्ट (बीयूआर-4) सौंपी। भारत ग्लोबल वार्मिंग में न्यूनतम योगदान देने के बावजूद, अपनी बड़ी आबादी और विकासात्मक आवश्यकताओं के कारण महत्वपूर्ण चुनौतियों का सामना कर रहा है। देश अपनी अनूठी परिस्थितियों को पूरा करते हुए कम कार्बन उत्सर्जन और जलवायु आत्मनिर्भरता के निर्माण को लेकर प्रतिबद्ध है।

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार 1850 और 2019 के बीच दुनिया की लगभग 17 प्रतिशत आबादी होने के बावजूद बढ़ती वैश्विक जीएचजी उत्सर्जन में भारत की ऐतिहासिक हिस्सेदारी वार्षिक 4% है। 2019 में भारत की प्रति व्यक्ति वार्षिक प्राथमिक ऊर्जा खपत 28.7 गीगाजूल (जीजे) थी, जो विकसित और विकासशील दोनों देशों की तुलना में काफी कम है।

 

स्टार्टअप इंडिया के नौ साल पूरे: 1.59 लाख स्टार्टअप को मान्यता, 16.6 लाख नौकरियां पैदा हुईं

नयी दिल्ली । भारत ने 16 जनवरी को स्टार्टअप इंडिया पहल के 9 वर्ष पूरे होने का उत्सव मनाया है। देश ने अपने उद्यमशीलता परिदृश्य में एक उल्लेखनीय परिवर्तन देखा है। स्टार्टअप इंडिया की परिवर्तनकारी यात्रा 2016 में शुरू हुई थी। राष्ट्रीय स्टार्टअप दिवस के रूप में नामित, यह अवसर एक सुदृढ़ और समावेशी उद्यमशील इकोसिस्टम को प्रोत्साहन देने में देश की प्रगति का उत्सव मनाता है। भारत सरकार की एक प्रमुख पहल के रूप में लॉन्च किए गए स्टार्टअप इंडिया का उद्देश्य नवाचार को प्रोत्साहन देना और देश भर में स्टार्टअप की प्रगति को उत्प्रेरित करना है।

आपको बता दें, 31 अक्टूबर, 2024 तक, डीपीआईआईटी-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप ने विभिन्न क्षेत्रों में 16.6 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा कीं, जो रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। आईटी सेवा उद्योग 2.04 लाख नौकरियों के साथ सबसे आगे है, इसके बाद हेल्थकेयर और लाइफसाइंसेज 1.47 लाख नौकरियों के साथ, और व्यावसायिक और वाणिज्यिक सेवाएं लगभग 94,000 नौकरियों के साथ हैं।

वाणिज्‍य एवं उद्योग मंत्रालय ने एक बयान में बताया कि 15 जनवरी, 2025 तक उद्योग संवर्धन और आंतरिक व्यापार विभाग (डीपीआईआईटी) की ओर से मान्यता प्राप्त 1.59 लाख से अधिक स्टार्टअप के साथ, भारत ने स्वयं को दुनिया के तीसरे-सबसे बड़े स्टार्टअप इकोसिस्टम के रूप में मजबूती से स्थापित किया है। प्रमुख योजनाओं, क्षमता-निर्माण प्रयासों, भास्कर जैसे मंच और स्टार्टअप महाकुंभ जैसे आयोजनों के जरिए पहल के समर्थन ने गैर-मेट्रो शहरों सहित सभी सेक्टर और क्षेत्रों में स्टार्टअप को सशक्त बनाया है। इसके अलावा 100 से अधिक यूनिकॉर्न की ओर से संचालित यह जीवंत इकोसिस्टम, वैश्विक मंच पर नवाचार और उद्यमशीलता को लगातार परिभाषित करता है।

बेंगलुरु, हैदराबाद, मुंबई और दिल्ली-एनसीआर जैसे प्रमुख केंद्रों ने इस परिवर्तन का नेतृत्व किया है, जबकि छोटे शहरों ने देश की उद्यमशीलता की गति में तेजी से योगदान दिया है।

स्टार्टअप इंडिया पहल ने उल्लेखनीय मील के पत्थर हासिल किए

उल्लेखनीय है फिनटेक, एडटेक, हेल्थ-टेक और ई-कॉमर्स में स्टार्टअप ने स्थानीय चुनौतियों का सामना किया है और वैश्विक मान्यता हासिल की है। जोमैटो, नाइका और ओला जैसी कंपनियां भारत के नौकरी चाहने वालों से नौकरी देने वालों की ओर परिवर्तन को दर्शाती हैं, जिससे आर्थिक प्रगति हो रही है। स्टार्टअप इंडिया पहल ने उल्लेखनीय मील के पत्थर हासिल किए हैं जो भारत की अर्थव्यवस्था और समाज पर इसके प्रभाव को प्रकाशित करते हैं।

डीपीआईआईटी-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप की संख्या 2016 में लगभग 500 से बढ़कर 15 जनवरी, 2025 तक 1,59,157 हो गई है।

31 अक्टूबर, 2024 तक, कुल 73,151 मान्यता प्राप्त स्टार्टअप में कम से कम एक महिला निदेशक शामिल है, जो भारत में महिला उद्यमियों के उदय को दर्शाता है।

2016 से 31 अक्टूबर 2024 तक, मान्यता प्राप्त स्टार्टअप्स ने कथित तौर पर 16.6 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां निर्मित की हैं, जो रोजगार निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं।

स्टार्टअप इंडिया पहल की मूल विशेषताएं

ईज ऑफ डूइंग बिजनेस- सरलीकृत अनुपालन, स्व-प्रमाणन, और एकल-खिड़की मंजूरी स्टार्टअप के लिए प्रक्रियाओं को संरेखित करती है।

कर में लाभ-योग्य स्टार्टअप लगातार तीन वित्त वर्ष तक कर छूट का आनंद लेते हैं।

फंडिंग सहायता- ₹10,000 करोड़ का स्टार्टअप्स के लिए फंडों का फंड (एफएफएस) होना शुरुआती चरण की फंडिंग में सहयोग करता है।

क्षेत्र-विशिष्ट नीतियां- जैव प्रौद्योगिकी, कृषि और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों के लिए केंद्रित नीतियां लक्षित प्रगति को बढ़ावा देती हैं।

स्टार्टअप्स की ओर से उद्योग-वार नौकरियां निर्माण की गईं

31 अक्टूबर, 2024 तक, डीपीआईआईटी-मान्यता प्राप्त स्टार्टअप ने विभिन्न क्षेत्रों में 16.6 लाख से अधिक प्रत्यक्ष नौकरियां पैदा कीं, जो रोजगार सृजन में महत्वपूर्ण योगदान दे रही हैं। आईटी सेवा उद्योग 2.04 लाख नौकरियों के साथ सबसे आगे है, इसके बाद हेल्थकेयर और लाइफसाइंसेज 1.47 लाख नौकरियों के साथ, और व्यावसायिक और वाणिज्यिक सेवाएं लगभग 94,000 नौकरियों के साथ हैं।

स्टार्टअप महाकुंभ: नवाचार को आगे ले जाने वाला

स्टार्टअप महाकुंभ एक प्रमुख कार्यक्रम है, जो स्टार्टअप्स, यूनिकॉर्न, सूनीकॉर्न, निवेशकों, उद्योग जगत के नेतृत्वकर्ताओं और इकोसिस्टम के हितधारकों को एक छत के नीचे साथ लाता है। यह देश के स्टार्टअप इकोसिस्टम को सुदृढ़ करने के लिए बातचीत को प्रोत्साहन देते हुए भारत की उद्यमशीलता की भावना और तकनीकी कौशल को प्रदर्शित करता है। 2019 में आयोजित पहला संस्करण, 500 से अधिक स्टार्टअप, निवेशकों और उद्योग के नेताओं की उपस्थिति के साथ एक मील का पत्थर साबित हुआ।

स्टार्टअप महाकुंभ 2024 में 48,000 आगंतुकों, 1,300 प्रदर्शकों और 14 देशों के वैश्विक प्रतिनिधिमंडलों के साथ उल्लेखनीय भागीदारी देखी गई, जो भारत के उद्यमशीलता परिदृश्य को आकार देने में इसकी बढ़ती प्रमुखता को रेखांकित करता है।

स्टार्टअप महाकुंभ का पांचवां संस्करण 7-8 मार्च, 2025 को नई दिल्ली में होने वाला है,स्टार्टअप महाकुंभ 2024 में 48,000 आगंतुकों, 1,300 प्रदर्शकों और 14 देशों के वैश्विक प्रतिनिधिमंडलों के साथ उल्लेखनीय भागीदारी देखी गई, जो भारत के उद्यमशीलता परिदृश्य को आकार देने में इसकी बढ़ती प्रमुखता को रेखांकित करता है।

स्टार्टअप इंडिया पहल क्षमता निर्माण को बढ़ावा देने, आउटरीच को प्रोत्साहित करने और इकोसिस्टम सहयोग को सुविधाजनक बनाने के उद्देश्य से कई पहलों के माध्यम से स्टार्टअप्स को अपना सहयोग प्रदान करती है। ये प्रयास पूरे भारत में एक जीवंत और समावेशी उद्यमशील वातावरण की प्रगति सुनिश्चित करते हैं।

 

81 प्रतिसत भारतीय उद्योग जगत ने पीएम इंटर्नशिप योजना के साथ

80 प्रतिशत से अधिक भारतीय उद्योग जगत प्रधानमंत्री की इंटर्नशिप योजना 2024 का समर्थन कर रहा है और अपनी कॉर्पोरेट सामाजिक जिम्मेदारी (सीएसआर) पहलों को इस योजना के साथ जोड़ने के लिए काफी प्रयास कर रहा है। गुरुवार को आई एक रिपोर्ट से यह जानकारी प्राप्त हुई है।

कौशल अंतर पाटने और रोजगार क्षमता बढ़ाने में इंटर्नशिप की बढ़ती भूमिका पर दिया जोर

जी हां, 932 कंपनियों से मिली जानकारी के आधार पर टीमलीज एडटेक की रिपोर्ट में भारत में युवाओं के लिए कौशल अंतर को पाटने और रोजगार क्षमता को बढ़ाने में इंटर्नशिप की बढ़ती भूमिका पर जोर दिया गया है।

76 प्रतिशत अधिक कंपनियां इंटर्नशिप प्रोग्राम में प्रौद्योगिकी भूमिकाओं को दे रही हैं प्राथमिकता

रिपोर्ट में बताया गया है कि 76 प्रतिशत से अधिक कंपनियां अपने इंटर्नशिप कार्यक्रमों में प्रौद्योगिकी भूमिकाओं को प्राथमिकता दे रही हैं, जो उभरती मांगों को पूरा करने के लिए डिजिटल रूप से कुशल प्रतिभाओं पर उद्योग के फोकस को प्रदर्शित करता है। इसके अलावा, 73 प्रतिशत कंपनियां इंटर्नशिप कार्यक्रमों के पूरा होने पर अपने कम से कम 10 प्रतिशत इंटर्न को पूर्णकालिक कर्मचारी के रूप में नियुक्त करने का इरादा रखती हैं।

81 प्रतिशत कंपनियों ने सभी निगमों तक इसके विस्तार की वकालत की

रिपोर्ट में इस योजना के विस्तार के लिए व्यापक समर्थन की भी पहचान की गई है, जिसमें 81 प्रतिशत कंपनियों ने सभी निगमों तक इसके विस्तार की वकालत की है।  अधिकांश उत्तरदाताओं (73 प्रतिशत) ने 1-6 महीने तक चलने वाली लघु-से-मध्यम अवधि की इंटर्नशिप को भी कार्यक्रम दक्षता के साथ सार्थक कौशल विकास को संतुलित करने के लिए इष्टतम माना है। यह योजना भारत इंक की वित्तीय प्रतिबद्धता को भी रेखांकित करती है, जिसमें 34.43 प्रतिशत कंपनियां अपने सीएसआर बजट का 20 प्रतिशत तक इंटर्नशिप कार्यक्रमों के लिए आवंटित करने की योजना बना रही हैं। रिपोर्ट में खुलासा हुआ कि 83.18 प्रतिशत उत्तरदाताओं ने रोजगार क्षमता और कार्यबल की तैयारी को बढ़ाने के भारत के राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ पीएम इंटर्नशिप योजना के संरेखण को मान्यता दी।

योजना कार्यबल चुनौतियों का समाधान करने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी प्रभाव को दर्शाती है

इस संबंध में टीमलीज एडटेक के संस्थापक और सीईओ शांतनु रूज ने कहा, “पीएम इंटर्नशिप योजना कार्यबल चुनौतियों का समाधान करने में सार्वजनिक-निजी भागीदारी के प्रभाव को दर्शाती है। अधिकांश कंपनियों द्वारा तकनीकी भूमिकाओं पर ध्यान केंद्रित करने और सार्थक अवशोषण दरों के लिए प्रतिबद्ध होने के साथ, हम एक रणनीतिक परिवर्तन देख रहे हैं जो पारंपरिक सीएसआर से परे है।” रूज ने कहा, “यह पहल भारत की महत्वपूर्ण रोजगार चुनौतियों का समाधान करते हुए प्रभावी रूप से एक स्थायी प्रतिभा पाइपलाइन तैयार कर रही है।” इसके अलावा रिपोर्ट में दिखाया गया है कि 32.43 प्रतिशत कंपनियों ने विश्वविद्यालयों और अन्य कॉरपोरेट्स दोनों के साथ साझेदारी के लिए मजबूत प्राथमिकता व्यक्त की है। इसके अलावा, 54.05 प्रतिशत कंपनियों को 1-2 वर्षों के भीतर CSR-संचालित इंटर्नशिप से निवेश पर एक मापनीय सामाजिक प्रतिफल ( एसआरओआई) की उम्मीद है, जो इन कार्यक्रमों के मूर्त लाभों के बारे में आशावादी होने का संकेत देता है।
गौरतलब हो, इस योजना की घोषणा 2024 के केंद्रीय बजट में की गई थी, जिसका मकसद अगले पांच वर्षों में शीर्ष-500 कंपनियों में एक करोड़ युवाओं को इंटर्नशिप के अवसर प्रदान करना है। इसके तहत प्रत्येक इंटर्न को 5,000 रुपये का मासिक वजीफा मिलता है, जिसमें कंपनियों को इस वजीफे और संबंधित प्रशिक्षण लागतों के एक हिस्से को कवर करने के लिए CSR फंड का उपयोग करने की अनुमति होती है। मुख्य रूप से बड़ी कंपनियों को लक्ष्य करते हुए, इस योजना ने छोटी कंपनियों को शामिल करने के लिए इसके संभावित विस्तार पर व्यापक चर्चाओं को जन्म दिया है, जिससे युवाओं की रोजगार क्षमता और कार्यबल विकास के लिए अधिक समावेशी और प्रभावशाली दृष्टिकोण का मार्ग प्रशस्त हुआ है।

घरेलू सहायक रखने से पहले रखें इन बातों का ध्यान

पिछले कुछ सालों में बड़े शहरों में हाउस हेल्पर और मेड्स का कल्चर तेजी से बढ़ा है। खासतौर से जिन घरों में पति पत्नी दोनों वर्किंग हैं वहां बिना मेड और हाउस हेल्पर के एक दिन काटना भी मुश्किल हो जाता है। लोग अपने घर और बच्चों को उन हाउस हेल्पर के सहारे छोड़कर दिनभर काम पर रहते हैं। दिल्ली एनसीआर और मुंबई जैसे महानगरों में ये कल्चर बन चुका है। सिंगल फैमिली वाले लोग इस समस्या का सबसे ज्यादा सामना कर रहे हैं। ऐसे में आपको थोडा सतर्क रहने की जरूरत है। अगर आपके घर में कोई हेल्पर रहता है या मेड रहती है तो जान लें कि उसके बारे में आपको कौन-कौन सी चीजें पता होनी चाहिए?

पुलिस वेरिफिकेशन- किसी भी मेड या हेल्पर रखने से पहले उसका पुलिस वेरिफिकेशन जरूर करवा लें। वो मूल रूप से कहां की रहने वाली है या फिर उससे परिवार और पता की पूरी जानकारी होना जरूरी है।

आधार और स्थायी निवास पता करें- आप जिसे भी अपने घर में काम के लिए रख रहे हैं उसका स्थाई निवास का कोई प्रमाण साथ रखें। आधार कार्ड की कॉपी रखें। फोन नंबर और लोकल पता भी जान लें।

कैमरा लगाएं- आजकल सीसीटीवी कैमरा की सुविधा है। इसलिए जब भी घर में कोई मेड या हाउस हेल्पर रखें तो कैमरा जरूर लगवा लें। इससे आप उसकी दिनभर की गतिविधियों पर नजर रख सकते हैं। ऐसे कैमरे भी आते हैं जिन्हें आप ऑफ कर सकते हैं।

कीमती चीजों को लॉक रखें- घर में अगर कैश या ज्वैलरी रखते हैं तो उसे लॉकर में रखें। अपनी जरूरी और कीमती चीजों को किसी अलमारी में बंद करके रखें। इससे किसी वारदात की संभावनाएं कम होती हैं।

संस्था की जानकरी जुटाएं- अगर आप किसी वेबसाइट या संस्था के जरिए मेड रख रहे हैं तो उस साइट के बारे में अच्छी तरह जानकारी हासिल कर लें। कई बार फर्जी साइट्स बनाकर चोरी को अंजाम दिया जाता है। किसी भी अन-रजिस्टर्ड संस्था या कंपनी से हेल्पर न रखें।

किसी दूसरे को घर में न आने दें- नौकर किसी को अपना रिश्तेदार बताकर आपके घर ला रहा है तो ऐसा भूलकर भी न करें। इसकी अनुमति देने से आप मुश्किल में फंस सकते हैं। इस बहाने किसी घटना को अंजाम देने की फिराक हो सकती है।

अंतरिक्ष डॉकिंग में सफलता प्राप्त करने वाला दुनिया में चौथा देश बना भारत 

नयी दिल्ली । भारत ने अंतरिक्ष क्षेत्र में एक और बड़ी उपलब्धि हासिल कर ली। भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने गुरुवार सुबह इतिहास रचते हुए दो उपग्रहों को सफलतापूर्वक अंतरिक्ष में स्थापित कर दिया। इसके साथ ही दुनिया में अमेरिका, रूस, चीन के बाद भारत यह उपलब्धि हासिल करने वाला चौथा देश बन गया। स्पैडेक्स डॉकिंग की सफलता पर इसरो ने टीम और देशवासियों को बधाई दी है। गुरुवार को इसरो ने ट्वीट करके कहा कि अंतरिक्ष यान डॉकिंग सफलतापूर्वक पूरी हुई। यह एक ऐतिहासिक क्षण है। स्पैडेक्स डॉकिंग प्रक्रिया पर इसरो ने कहा कि डॉकिंग की शुरुआत सटीकता से हुई और 15 मीटर से तीन मीटर होल्ड पॉइंट तक पैंतरेबाजी पूरी हुई। इस पूरी प्रक्रिया को सफलतापूर्वक कैप्चर किया गया। भारत अंतरिक्ष डॉकिंग में सफलता प्राप्त करने वाला चौथा देश बन गया। डॉकिंग वह प्रक्रिया है जिसकी मदद से दो अंतरिक्ष ऑब्जेक्ट एक साथ आते और जुड़ते हैं। यह विभिन्न तरीकों का उपयोग करके किया जा सकता है। अंतरिक्ष में ‘डॉकिंग’ प्रौद्योगिकी की तब जरूरत होती है जब साझा मिशन उद्देश्यों को हासिल करने के लिए कई रॉकेट प्रक्षेपित करने की जरूरत होती है। वांछित कक्षा में प्रक्षेपित होने के बाद दोनों अंतरिक्ष यान 24 घंटे में करीब 20 किलोमीटर दूर हो जाएंगे। इसके बाद वैज्ञानिक डॉकिंग प्रक्रिया शुरू करेंगे। ऑनबोर्ड प्रोपल्शन का उपयोग करते हुए टारगेट धीरे-धीरे 10-20 किमी का इंटर सैटेलाइट सेपरेशन बनाएगा। इससे दूरी धीरे-धीरे 5 किलोमीटर, 1.5 किलोमीटर, 500 मीटर, 225 मीटर, 15 मीटर और अंत में 3 मीटर तक कम हो जाएगी, जहां डॉकिंग होगी। डॉक हो जाने के बाद मिशन पेलोड संचालन के लिए उन्हें अनडॉक करने से पहले अंतरिक्ष यान के बीच पावर ट्रांसफर का प्रदर्शन करेगा। सफल डॉकिंग प्रयोग भारत में किए जाने वाले कई मिशन के लिए जरूरी है। भारत की योजना 2035 में अपना अंतरिक्ष स्टेशन स्थापित करने की है। मिशन की सफलता इसके लिए अहम है। भारतीय अंतरिक्ष स्टेशन में पांच मॉड्यूल होंगे जिन्हें अंतरिक्ष में एक साथ लाया जाएगा। इनमें पहला मॉड्यूल 2028 में लॉन्च किया जाना है। यह मिशन चंद्रयान-4 जैसे मानव अंतरिक्ष उड़ानों के लिए भी अहम है। यह प्रयोग उपग्रह की मरम्मत, ईंधन भरने, मलबे को हटाने और अन्य के लिए आधार तैयार करेगा

पीएम ने दी आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी

नयी दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने आठवें वेतन आयोग के गठन को मंजूरी प्रदान की है। जल्द ही इसके अध्यक्ष और दो सदस्यों को नियुक्त किया जाएगा। केंद्रीय सूचना एवं प्रसारण मंत्री अश्विनी वैष्णव ने गुरुवार को कैबिनेट से जुड़ी पत्रकार वार्ता में इसकी जानकारी दी। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री ने आठवें वेतन आयोग को मंजूरी दी है। वेतन आयोग केंद्र सरकार के कर्मचारियों के वेतन और भत्तों की मंजूरी प्रदान करता है। इसकी सिफारिशों पर सरकार कर्मचारियों को वेतन प्रदान करती है। वैष्णव ने बताया कि १९४७ के बाद से नियमित अंतराल पर वेतन आयोग का गठन किया गया है। अब तक सात वेतन आयोग गठित किया जा चुके हैं। सातवें वेतन आयोग की सिफारिश को २०१६ में लागू किया गया था। इसका कार्यकाल २०२६ में पूरा होने जा रहा है। इससे पहले २०२५ में समय से इसकी समीक्षा करने और तय समय पर सिफारिशें लागू करने के लिए वित्त आयोग की स्थापना की गई है।

हिंडनबर्ग रिसर्च ने समेटा अपना कारोबार, उछले अडाणी समूह के शेयर

वाशिंगटन/नयी दिल्ली । गौतम अडाणी, जैक डोर्सी और कार्ल इकान समेत कई अरबपति कारोबारियों को निशाना बनाने वाली हिंडनबर्ग रिसर्च ने अपना कारोबार समेट लिया है। इसके संस्थापक नाथन एंडरसन ने गुरुवार को कंपनी बंद करने की घोषणा की। हिंडनबर्ग रिसर्च कंपनी के फाउंडर नाथन एंडरसन ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्सन’ पोस्टं पर जारी बयान में कहा कि उन्होंने कंपनी को बंद करने का फैसला लिया है। उन्होंने लिखा कि हमारी प्लानिंग थी कि हम जिन विचारों पर काम कर रहे थे, उन्हें पूरा करने के बाद कंपनी को बंद कर दिया जाए। आखिरकार वह दिन आज आ गया है। दरअसल, जनवरी 2023 में अडाणी समूह के शेयरों को लेकर सनसनीखेज आरोपों के कारण ये अमेरिकी शॉर्ट सेलर फर्म चर्चा में आई थी। इस फर्म के मालिक शॉर्ट सेलर नाथन एंडरसन ने गौतम अडाणी, जैक डोर्सी और कार्ल इकान समेत कई अरबपति कारोबारियों को निशाना बनाते हुए उनके खिलाफ झूठे आरोप लगाए थे। कंपनी ने अपनी रिपोर्ट्स के जरिए ना केवल भारत के अडाणी समूह बल्कि अमेरिका की कई बड़ी कंपनियों को भी निशाना बनाया। उल्लेिखनीय है कि यह कंपनी 2017 में स्थापित हुई थी। इसका मुख्य काम शेयर बाजार की गड़बड़ियों, अकाउंट मिस मैनेजमेंट और हेरफेर का पता लगाना था। अब, हिंडनबर्ग रिसर्च के बंद होने के साथ एक दौर खत्म हो रहा है, जो लंबे समय से शॉर्ट-सेलिंग और खुलासों के खेल का हिस्सा था। खबर के बाद
शुरुआती कारोबार के दौरान अदाणी ग्रुप की सभी कंपनियों में अच्छा उछाल दिखा। अदाणी पावर के शेयर की कीमत में 9.2 प्रतिशत (599.9 रुपये प्रति शेयर), अदाणी ग्रीन एनर्जी के शेयर की कीमत में 8.8 प्रतिशत (1,126.8 रुपये प्रति शेयर), अदाणी एंटरप्राइजेज के शेयर की कीमत में 7.7 प्रतिशत (2,569.85 रुपये प्रति शेयर), अदाणी टोटल गैस के शेयर की कीमत में 7.1 प्रतिशत (708.45 रुपये प्रति शेयर), अदाणी एनर्जी सॉल्यूशंस के शेयर की कीमत में 6.6 प्रतिशत (832 रुपये प्रति शेयर) और अदाणी पोर्ट्स के शेयर की कीमत में 5.4 प्रतिशत (1,190 रुपये) की वृद्धि हुई। हालांकि, बाद में मुनाफावसूली के चलते इनमें कुछ करेक्शन भी हुआ।