Tuesday, September 16, 2025
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आर्थिक सर्वेक्षण 2025: वित्त वर्ष 26 में 6.3- 6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती है अर्थव्यवस्था

 नयी दिल्ली ।  वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में आर्थिक सर्वेक्षण 2024-25 पेश किया गया। सर्वेक्षण में बताया गया कि वित्त वर्ष 2025-26 में वैश्विक अनिश्चितता के बीच भारत की जीडीपी 6.3-6.8 प्रतिशत की दर से बढ़ सकती है। सर्वेक्षण में बताया गया कि युद्ध और तनाव के कारण भू-राजनीतिक जोखिम बने हुए हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को खतरा बना हुआ है।”

 वैश्विक सर्विस निर्यात में देश सातवें स्थान पर –सर्वेक्षण में आगे कहा गया, “भारत का सर्विस ट्रेड सरप्लस में होने के – कारण समग्र व्यापार खाते संतुलन में बना हुआ है। मजबूत सर्विसेज के निर्यात के कारण वैश्विक सर्विस निर्यात में देश सातवें स्थान पर पहुंच गया है, जो इस सेक्टर में भारत की प्रतिस्पर्धात्मक क्षमता को दिखाता है।” आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक महंगाई नियंत्रण में है। वित्त वर्ष 25 के अप्रैल- दिसंबर की अवधि में औसत महंगाई कम होकर 4.9 हो गई है, जो कि वित्त वर्ष 24 में 5.4 प्रतिशत थी।

चुनौतियों के बावजूद भारत में महंगाई प्रबंधन के सकारात्मक संकेत –सर्वेक्षण में कहा गया कि महंगाई को स्थिर करने में सरकार के सक्रिय नीतिगत हस्तक्षेप महत्वपूर्ण रहे हैं। इन उपायों में आवश्यक खाद्य पदार्थों के लिए बफर स्टॉक को मजबूत करना, समय-समय पर खुले बाजार में सामान जारी करना और आपूर्ति की कमी के दौरान आयात को आसान बनाने के प्रयास शामिल हैं। चुनौतियों के बावजूद भारत में महंगाई प्रबंधन के लिए सकारात्मक संकेत मिल रहे हैं। भारतीय रिजर्व बैंक और अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) का अनुमान है कि भारत की खुदरा महंगाई धीरे-धीरे वित्त वर्ष 2026 में लगभग 4 प्रतिशत के लक्ष्य के अनुरूप हो जाएगी।

देश में कृषि क्षेत्र की स्थिति मजबूत –सर्वेक्षण के मुताबिक, कृषि क्षेत्र की स्थिति मजबूत बनी हुई है। 2024 में खरीफ सीजन का खाद्यान्न उत्पादन 1647.05 लाख मीट्रिक टन (एलएमटी) तक पहुंचने की उम्मीद है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 89.37 एलएमटी की वृद्धि दर्शाता है।उच्च मूल्य वाले सेक्टर जैसे बागवानी, पशुधन और मत्स्य पालन कृषि विकास के प्रमुख चालक बने हुए हैं। पीएम किसान के तहत 1 अक्टूबर तक, 11 करोड़ से अधिक किसानों को लाभ हुआ है, जबकि 23.61 लाख पीएम किसान मानधन के तहत नामांकित हैं।

पढ़ने के संकट को पर्यावरण संकट जैसी चुनौती के रूप में देखना होगा : डॉ. शंभुनाथ

कोलकाता पुस्तक मेला में पढ़ने के संकट पर चर्चा

कोलकाता । कोलकाता पुस्तक मेला हर साल की तरह पुस्तक प्रेमियों का एक सांस्कृतिक उत्सव बना हुआ है। इस साल वाणी प्रकाशन, नई दिल्ली और कोलकाता की भारतीय भाषा परिषद द्वारा पुस्तक मेला के प्रेस कार्नर में आयोजित परिचर्चा में पढ़ने के संकट पर चर्चा हुई। चर्चा में वरिष्ठ लेखक डा. शंभुनाथ, रांची से आए प्रसिद्ध कथाकार रणेंद्र, बांग्ला पत्रकार शिवाजी प्रतिम बसु, कवि– इंजीनियर सुनील कुमार शर्मा, वरिष्ठ लेखक मृत्युंजय श्रीवास्तव, कहानीकार शर्मिला बोहरा जालान और आशीष झुनझुनवाला ने हिस्सा लिया। वरिष्ठ लेखक शंभुनाथ ने कहा कि पढ़ने के संकट को पर्यावरण संकट जैसी चुनौती के रूप में देखना होगा। पुस्तकें हमारे सोचने और कल्पना की शक्ति को विकसित करती हैं। पुस्तकें सूचनाओं तक सीमित न रखकर ज्ञान तक पहुंचाती हैं। निश्चय ही पुस्तकों के बिना मनुष्य संवेदनहीन और अकेला होता जाएगा। इसलिए पुस्तकें न पढ़ना धीमी आत्महत्या है। संचालन करते हुए प्रो. संजय जायसवाल ने कहा कि इधर वीडियो गेम और मोबाइल में डूबे रहना युवाओं और विद्यार्थियों को पढ़ने से ही विमुख नहीं करता, उनकी पारिवारिकता और सामाजिकता को भी संकुचित कर देता है। शर्मिला बोहरा जालान ने कहा कि पढ़ने की संस्कृति बनी हुई है, पर अब वह डिजिटल माध्यम की तरफ खिसक गई है।
विद्यासागर विश्वविद्यालय के पूर्व–कुलपति और बांग्ला पत्रकार शिवाजी प्रतिम बसु ने कहा कि पढ़ने से पाठक की आलोचनात्मक दृष्टि बनती है। कवि सुनील कुमार शर्मा का कहना था, नई तकनीक के आने के बावजूद पुस्तकों का अपना महत्व है। सवाल है कि हम कैसी चीजें की पढ़ने की आदत डाल रहे है और विचारशील पुस्तकों में कितनी रुचि है। मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि पढ़ने की संस्कृति के खतरे में पड़ने का अर्थ है कि किसी भाषा के शब्दकोश और संविधान का खतरे में पड़ना। रांची से आए वरिष्ठ कथाकार ने कहा कि पुस्तकें पढ़ने से जिज्ञासा बढ़ती है, जबकि विश्वविद्यालयों में हिंदी की पढ़ाई अब इस तरह सीमित कर दी गई है कि साहित्यिक पुस्तकों की व्यापक जरूरत प्रायः खत्म कर दी गई है।
पुस्तक मेला में वाणी प्रकाशन से धर्मवीर भारती की जन्मशती पर आई पुस्तकों के नए संस्करण, कुसुम खेमानी की ’लावण्यदेवी’ के अंग्रेजी अनुवाद और शंभुनाथ की नई पुस्तक ’हिंदू धर्म : भारतीय दृष्टि’ का लोकार्पण किया गया।
भारतीय भाषा परिषद और वाणी प्रकाशन की ओर से आरंभ में आशीष झुनझुनवाला ने प्रेस कार्नर में अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि अंग्रेजी के दुनिया के पाठकों मातृभाषा की पुस्तकें पढ़नी चाहिए। अंत में श्री घनश्याम सुगला ने धन्यवाद किया। प्रेस कार्नर में विशेष रूप से उपस्थित थे रामनिवास द्विवेदी, उदयराज सिंह, उदयभानु दुबे, मंजु श्रीवास्तव,राज्यवर्धन, प्रो. अमित राय, डॉ चित्रा माली, डॉ संजय राय,प्रो.आदित्य गिरी, आदित्य विक्रम सिंह,प्रो.दीपक कुमार, प्रो. पीयूष कांति, डॉ.धीरेंद्र प्रताप सिंह,प्रो.एकता हेला, डॉ.मधु सिंह, विकास कुमार, रूपेश यादव।इस अवसर पर सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से विशाल साव, सुषमा कुमारी, आदित्य तिवारी,चंदन भगत, महिमा केशरी, संजना जायसवाल, फरहान अज़ीज़ ने पुस्तक संस्कृति पर विभिन्न कवियों की कविताओं पर आधारित कविता कोलाज प्रस्तुत किया।

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कविता सृजन और प्रतिरोध की जमीन है : रामनिवास द्विवेदी
कोलकाता । 48वां कोलकाता पुस्तक मेला में सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन और आनंद प्रकाशन के संयुक्त तत्वावधान में आनंद प्रकाशन बुक स्टॉल संख्या-462 पर आयोजित काव्य उत्सव में कविता पाठ किया गया। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन के संरक्षक श्रीरामनिवास द्विवेदी ने कहा कविता सृजन और प्रतिरोध की जमीन है। कविताएं हमारे भीतर मनुष्यता का भाव भरती हैं।इस अवसर पर शंभुनाथ , अभिज्ञात, मृत्युंजय श्रीवास्तव, मंजु श्रीवास्तव, अतुल कुमार, महेश जायसवाल, शुभ्रा उपाध्याय, शिप्रा मिश्रा, मनोज मिश्र, संजय जायसवाल, विकास कुमार जायसवाल, शिव प्रकाश दास, रूपेश यादव,रेशमी सेनशर्मा, सूर्य देव रॉय, सुषमा कुमारी, आदित्य तिवारी ने अपनी स्वरचित कविताओं का पाठ किया। इस अवसर पर दिनेश त्रिपाठी, डॉ. सुशीला ओझा, डॉ. सुशील पाण्डेय, राजेश पाण्डेय, सौमित्र आनन्द, संजय दास, विनोद यादव, डॉ. अश्विनी झा, प्रीति सहित अन्य साहित्य व पुस्तक प्रेमी उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन रूपेश कुमार यादव एवं धन्यवाद ज्ञापन नीलकमल त्रिपाठी जी ने दिया।
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नीता बाजोरिया द्वारा लिखित ‘अर्बन क्रॉनिकल्स 4’ का लोकार्पण

कोलकाता । नीता बाजोरिया की प्रशंसित अर्बन क्रॉनिकल्स श्रृंखला की नवीनतम पुस्तक “अर्बन क्रॉनिकल्स 4” का बहुप्रतीक्षित विमोचन सफलता पूर्वक कोलकाता के “द क्रिएटिव आर्ट्स” में हुआ। इस मौके पर साहित्यिक हस्तियों और कलाकारों की एक प्रतिष्ठित सभा ने इस कार्यक्रम की शोभा कई गुना बढ़ाई। जिससे शहरी कहानी कहने के उभरते परिदृश्य पर व्यावहारिक चर्चाओं, समारोहों और चिंतन से भरी शाम एक सुनहरी महफिल में तब्दील हो गई। विमोचन कार्यक्रम में शामिल होने वाले समाज की प्रतिष्ठित हस्तियों में आलोकानंद रॉय (नृत्य शिक्षाविद् और कोरियोग्राफर) मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित रहीं। उन्होंने शहरी जीवन की जटिलताओं को पकड़ने में कला के महत्व पर प्रकाश डाला। इस मौके पर हर्ष मोहन चट्टोराज (प्रसिद्ध ग्राफिक उपन्यासकार) ने समकालीन कहानी कहने में ग्राफिक उपन्यासों की उभरती भूमिका पर अपने विचार साझा किए। वहीं रमनजीत कौर (अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार विजेता) थिएटर निर्देशक और आर्टप्रेन्योर ने सार्वजनिक चेतना को आकार देने में कला की भूमिका पर एक विचारोत्तेजक चर्चा के माध्यम से कार्यक्रम का संचालन किया। पुस्तक विमोचन कार्यक्रम को सफल बनाने में नमित बाजोरिया एमडी कुचीना (लेखक के पति), प्रणय पोद्दार, मानद वाणिज्यदूत (केन्या गणराज्य), अरुणाभा करमाकर (चित्रकार) सिद्धार्थ सेन (लेखक), विधि बेरी (स्वास्थ्य और कल्याण कोच) के अलावा कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इसमें शामिल हुए। कलमोस द्वारा प्रकाशित और वेस्टलैंड बुक्स द्वारा विशेष रूप से वितरित अर्बन क्रॉनिकल्स 4 पुस्तक में एक आकर्षक ग्राफिक उपन्यास के प्रारूप में तीन मार्मिक लघु कथाएँ शामिल हैं। इसकी कहानियाँ शहरी जीवन की जटिलताओं का पता लगाती हैं। प्रत्येक कथा आधुनिक सामाजिक विषयों को दर्शाती है, जो पहचान, रिश्तों और हलचल भरे शहरी वातावरण में रहने की चुनौतियों को हर समय छूती है। कार्यक्रम की शुरुआत पुस्तक के अनावरण के साथ हुआ। पुस्तक लॉन्च के बाद एक आकर्षक पैनल चर्चा भी हुई, जिसमें ग्राफिक उपन्यास, साहित्य और शहरी संस्कृति के बीच के अंतर संबंधों पर चर्चा की गई। कोलकाता की लेखिका और ग्राफिक उपन्यासकार नीता बाजोरिया ने अर्बन क्रॉनिकल्स 4 के पीछे की प्रेरणा और रचनात्मक प्रक्रिया को साझा किया। पैनलिस्टों ने समकालीन साहित्य में दृश्य कला की भूमिका और ग्राफिक उपन्यास प्रारूप के एक शक्तिशाली उपकरण के रूप में विकसित होने के तरीके पर चर्चा की, जो उस दुनिया को दर्शाता है जिसमें हम रहते हैं।

बसंत पंचमी पर बनाइए केसर पेड़ा

सामग्री: 1 लीटर दूध, 1 कप चीनी, 1/2 कप मावा (खोया), 1/2 छोटा चम्मच केसर, 1 चम्मच देसी घी, 1/4 छोटा चम्मच इलायची पाउडर, बादाम और पिस्ता (गार्निश के लिए)
विधि: केसर पेड़ा बनाने के लिए सबसे पहले एक भारी तले की कड़ाही में दूध डालें और उसे मध्यम आंच पर उबालें। दूध को लगातार चलाते रहें ताकि यह तले में न जले। जब दूध आधा रह जाए और गाढ़ा हो जाए, तो इसे आंच से उतार लें। इसके बाद एक छोटे कटोरे में केसर के कुछ धागे लें और उन्हें 1 चम्मच गर्म दूध में भिगो दें। इससे केसर का रंग और सुगंध दूध में अच्छी तरह मिल जाएगी। अब अगर आपके पास ताजा मावा नहीं है, तो आप इसे घर पर भी बना सकते हैं। इसके लिए दूध को धीमी आंच पर गाढ़ा करें और लगातार चलाते रहें। जब दूध पूरी तरह गाढ़ा हो जाए और मावा का रूप ले ले, तो इसे आंच से उतार लें। फिर एक कड़ाही में घी गर्म करें और उसमें मावा डालें। मावा को धीमी आंच पर लगातार चलाते हुए भूनें। जब मावा हल्का सुनहरा हो जाए, तो इसमें गाढ़ा किया हुआ दूध डालें। अच्छी तरह मिलाएं। अब इसमें चीनी डालें और लगातार चलाते हुए मिश्रण को पकाएं। जब चीनी पूरी तरह घुल जाए और मिश्रण गाढ़ा हो जाए, तो इसमें केसर वाला दूध और इलायची पाउडर डालें। अच्छी तरह मिलाएं। मिश्रण को आंच से उतार लें और इसे थोड़ा ठंडा होने दें। जब यह हल्का गर्म रह जाए, तो इसे हाथों से गोल आकार दें और पेड़ा बना लें। आप चाहें तो इसे सांचे में भी डाल सकते हैं। पेड़े को बादाम और पिस्ता के स्लाइस से सजाएं। आप चाहें तो केसर के धागे भी ऊपर से डाल सकते हैं। बस केसर पेड़ा तैयार है। इसे मां सरस्वती को भोग लगाएं और फिर प्रसाद के रूप में बांटकर खाएं।

खुद को निखारिए बासन्ती बहार से

लड़कियों में बसता है वसन्त। जहां पैर रख दें, वहीं बहार आ जाती है। वह मुस्कुरा दें तो प्रकृति खिल जाती है। सब कुछ नीरस है आपके बिना तो दुनिया को अपनी सादगी और सकारात्मकता से सुन्दर बना देना आप ही की जिम्मेदारी है। सजिए, अपने लिए, अपना आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए …दूसरों की नजर से खुद को मत परखिए और वसन्त में बासन्ती हवा की तरह अपने फैशन को निखारिए वसंत के मिजाज से इस तरह –
लहंगा – बसंत पंचमी के दिन पीले रंग की लहंगा चोली पहनना एक क्लासिक और ट्रेंडिंग विकल्प है। यह आउटफिट न सिर्फ ट्रेडिशनल लगता है, बल्कि इसे स्टाइलिश बनाने के लिए आप इसमें कई मॉडर्न ट्विस्ट्स भी जोड़ सकती हैं। जैसे, जरी वर्क या कढ़ाई वाली लहंगा चोली, जिसमें गोटा पट्टी या मिरर वर्क का इस्तेमाल किया गया हो। साथ ही, डुपट्टे को स्टाइलिश तरीके से ड्रेप करके आप अपने लुक को और भी आकर्षक बना सकती हैं।
पीले रंग की साड़ी -साड़ी भारतीय संस्कृति की पहचान है और बसंत पंचमी के दिन पीले रंग की साड़ी पहनना एक बेहतरीन विकल्प है। आप चाहें तो पीले रंग की साड़ी में गोल्डन बॉर्डर या जरी वर्क का चुनाव कर सकती हैं। इसके अलावा, सिल्क साड़ी या जॉर्जेट साड़ी भी इस मौके के लिए परफेक्ट है। साड़ी को स्टाइलिश बनाने के लिए आप ब्लाउज के डिजाइन पर ध्यान दे सकती हैं। ऑफ-शोल्डर ब्लाउज या बैकलेस ब्लाउज जैसे विकल्प आपके लुक को और भी ट्रेंडी बना सकते हैं। साड़ी के साथ मैचिंग ज्वैलरी और बिंदी का चुनाव करके आप अपने लुक को परफेक्ट बना सकती हैं।
 पीले रंग का अनारकली सूट – अनारकली सूट एक ऐसा आउटफिट है जो हर मौके पर खूबसूरती से फिट बैठता है। वसंत पंचमी के दिन पीले रंग का अनारकली सूट पहनना एक शानदार विकल्प हो सकता है। इस आउटफिट को और भी आकर्षक बनाने के लिए आप इसमें जरी वर्क, कढ़ाई या स्टोन वर्क का चुनाव कर सकती हैं। अनारकली सूट के साथ डुपट्टे को स्टाइलिश तरीके से ड्रेप करके आप अपने लुक को और भी खूबसूरत बना सकती हैं। इसके अलावा, मैचिंग ज्वैलरी और स्टाइलिश जूतियों का चुनाव करके आप अपने लुक को परफेक्ट बना सकती हैं।
पीले रंग का इंडो-वेस्टर्न आउटफिट – अगर आप पारंपरिक और मॉडर्न लुक का कॉम्बिनेशन पसंद करती हैं, तो पीले रंग का इंडो-वेस्टर्न आउटफिट आपके लिए बेस्ट हो सकता है। इसके लिए आप पीले रंग का कुर्ता या टॉप पेयर कर सकती हैं, जिसे स्किनी जींस या पलाजो के साथ स्टाइल किया जा सकता है। इसके अलावा, आप पीले रंग का लॉन्ग कोट या जैकेट भी पहन सकती हैं, जो आपके लुक को और भी स्टाइलिश बना देगा। इंडो-वेस्टर्न आउटफिट के साथ स्टाइलिश जूते और मैचिंग एक्सेसरीज का चुनाव करके आप अपने लुक को और भी आकर्षक बना सकती हैं।
 पीले रंग की प्रिंटेड ड्रेस – अगर आप कुछ हल्का और कम्फर्टेबल पहनना चाहती हैं, तो पीले रंग का प्रिंटेड ड्रेस एक बेहतरीन ऑप्शन हो सकता है। इसके लिए आप फ्लोरल प्रिंट्स, ज्यामितीय डिजाइन या एब्स्ट्रैक्ट प्रिंट्स वाले ड्रेस का चुनाव कर सकती हैं। पीले रंग का प्रिंटेड ड्रेस न केवल आपको स्टाइलिश लुक देगा, बल्कि यह आपके लुक को और भी फ्रेश और यंग बना देगा। इसके

बसन्त पंचमी पर बनिए बसंत से मनोरम

बसन्त ने कदम रख दिया है और प्रकृति कर रही है मनोरम श्रृंगार। मनुष्य मात्र के मन में तरंग उठ रही है। यह वह मौसम है जब मन झूम रहा है। यह वह मौसम है जब वीणापाणी ने धरती को अपनी कृपा से सजा दिया और दे दिए सुर, स्वर और रंग। दे दी है विवेक और चेतना …यही वह मौसम है जब फूल और भी सुन्दर दिखने लगे हैं तो भला आप क्यों न दिखें मनोरम। बस कुछ बातों का ख्याल रखिए और बन जाइए बसन्त से मनोरम
कुर्ता-पजामा लुक – बसंत पंचमी के मौके पर पारंपरिक कुर्ता-पजामा पहनना हमेशा से एक बेहतरीन विकल्प रहा है। इस बार पीले रंग के सूती या रेशमी कुर्ते को चुनें, जो त्योहार के मिजाज के साथ पूरी तरह मेल खाता हो। कुर्ते पर बारीक कढ़ाई या जरी का काम हो तो लुक और भी आकर्षक बन जाएगा। साथ में सफेद या क्रीम रंग का पजामा और मोजरी जूते पहनकर आप एक परफेक्ट ट्रेडिशनल लुक क्रिएट कर सकते हैं। इस आउटफिट के साथ स्टाइलिश स्टोल या दुपट्टा भी एड किया जा सकता है।
इंडो-वेस्टर्न फ्यूजन – अगर आप पारंपरिकता के साथ आधुनिकता का संगम चाहते हैं तो इंडो-वेस्टर्न फ्यूजन आउटफिट आपके लिए बेस्ट रहेगा। पीले रंग के नेहरू जैकेट को सफेद या बेज रंग की शर्ट और चूड़ीदार पजामा के साथ पेयर करें। इस लुक के साथ कोलोनियल जूते या ऑक्सफोर्ड शूज पहनकर आप एक स्टाइल स्टेटमेंट बना सकते हैं। यह आउटफिट न केवल आरामदायक है, बल्कि त्योहार के मौके पर आपको खास भी बनाता है।
डेनिम जैकेट के साथ काजू कुर्ता – अगर आप यंग और ट्रेंडी लुक पसंद करते हैं, तो काजू कुर्ता और डेनिम जैकेट का कॉम्बिनेशन आपके लिए परफेक्ट है। पीले या गोल्डन शेड के काजू कुर्ते को नीले डेनिम जैकेट के साथ स्टाइल करें। इस लुक के साथ सफेद स्नीकर्स या जूतियां पहनकर आप एक कैजुअल येट स्टाइलिश लुक क्रिएट कर सकते हैं। यह आउटफिट न केवल आपको त्योहार के मिजाज के साथ जोड़ेगा, बल्कि आपकी पर्सनैलिटी को भी निखारेगा।
पीले रंग का शेरवानी लुक – बसंत पंचमी के मौके पर अगर आप किसी शादी या पार्टी में शामिल होने वाले हैं, तो पीले रंग का शेरवानी लुक आपके लिए बेस्ट रहेगा। गोल्डन या मस्टर्ड शेड के शेरवानी को सफेद या क्रीम रंग के चूड़ीदार पजामा के साथ पेयर करें। शेरवानी पर जरी का काम या बारीक कढ़ाई हो तो लुक और भी शानदार बन जाएगा। इस आउटफिट के साथ मोजरी जूते और स्टाइलिश ब्रोच पहनकर आप एक रॉयल लुक क्रिएट कर सकते हैं।
कैजुअल टी-शर्ट और ट्राउजर लुक – अगर आप त्योहार के मौके पर कैजुअल और कम्फर्टेबल लुक पसंद करते हैं, तो पीले रंग की टी-शर्ट और सफेद या बेज रंग के ट्राउजर का कॉम्बिनेशन आपके लिए बेस्ट रहेगा। इस लुक के साथ स्नीकर्स या सैंडल पहनकर आप एक यंग और एनर्जेटिक लुक क्रिएट कर सकते हैं। इस आउटफिट के साथ स्टाइलिश सनग्लासेस और एक ट्रेंडी वॉच पहनकर आप अपने लुक को और भी निखार सकते हैं।
स्टाइलिंग के लिए अपनाएं ये टिप्स – पीले रंग के साथ सफेद, क्रीम या बेज रंग का कॉम्बिनेशन बेहद खूबसूरत लगता है। आउटफिट के साथ मैचिंग एक्सेसरीज जैसे स्टोल, टोपी या बैग का इस्तेमाल करें।जूते चुनते समय कम्फर्ट और स्टाइल दोनों का ध्यान रखें। हेयरस्टाइल और ग्रूमिंग पर भी ध्यान दें, ताकि आपका लुक परफेक्ट बन सके।

शांति, संस्कृति एवं शिक्षा का महापर्व है बसंत पंचमी

ललित गर्ग
बसंत पंचमी या श्री पंचमी हिन्दुओं का प्रमुख सांस्कृतिक एवं धार्मिक त्यौहार है। इस दिन विद्या की देवी सरस्वती, कामदेव और विष्णु की पूजा की जाती है। यह प्रकृति के सौंदर्य, नई शुरुआत, और सकारात्मकता का उत्सव भी है। इस दिन देवी सरस्वती की पूजा से मन में शांति और ज्ञान का संचार होता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में शिक्षा, कला, सौन्दर्य और प्रकृति का सम्मान करना कितना महत्वपूर्ण है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी से उल्लेखित किया गया है। प्राचीन भारत और नेपाल में पूरे साल को जिन छह ऋतुओं में बांटा जाता था उनमें बसंत लोगों का सबसे मोहक, मनोरम एवं मनचाहा मौसम था। बसंत पंचमी मन की, जीवन की, संस्कृति की, साहित्य की, संगीत की, प्रकृति की असीम कामनाओं का अनूठा एवं सौन्दर्यमय त्योहार है, जो हर वर्ष माघ मास में शुक्ल पक्ष की पंचमी के दिन मनाया जाता है। दूसरे शब्दों में बसंत पंचमी का दूसरा नाम सरस्वती पूजा भी है। माता सरस्वती को ज्ञान-विज्ञान, सूर-संगीत, कला, सौन्दर्य और बुद्धि की देवी माना जाता है। कहा जाता है कि देवी सरस्वती ने ही जीवों को वाणी के साथ-साथ विद्या और बुद्धि दी थी। इसलिए वसंत पंचमी के दिन हर घर में सरस्वती की पूजा की जाती है, मां सरस्वती की पूजा करने से मां लक्ष्मी और देवी काली भी प्रसन्न होती हैं। बसंत पंचमी के 40 दिन बाद होली का पर्व मनाया जाता है, इसलिए बसंत पंचमी से होली के त्योहार की शुरुआत मानी जाती है।
मान्यता है कि बसंत पंचमी को देवी सरस्वती का जन्म हुआ था। इसी दिन वह हाथों में पुस्तक, वीणा और माला लिए श्वेत कमल पर विराजमान होकर प्रकट हुई थीं। कहा जाता है कि देवी सरस्वती की पूजा सबसे पहले भगवान श्रीकृष्ण ने की थी। मां सरस्वती को बागीश्वरी, भगवती, शारदा, वीणावादनी और वाग्देवी सहित अनेक नामों से पूजा जाता है। देवी भागवत में उल्लेख है कि माघ शुक्ल पक्ष की पंचमी को ही संगीत, काव्य, कला, शिल्प, रस, छंद, शब्द, स्वर व शक्ति की प्राप्ति जीव-जगत को हुई थी। इसीलिये मां सरस्वती को प्रकृति की देवी की उपाधि भी प्राप्त है। पद्मपुराण में मां सरस्वती का रूप प्रेरणादायी है। धर्मशास्त्रों के अनुसार मां सरस्वती का वाहन सफेद हंस है। यही कारण है कि देवी सरस्वती को हंसवाहिनी भी कहा जाता है। देवी सरस्वती विद्या की देवी हैं। देवी का वाहन हंस यही संदेश देता है कि मां सरस्वती की कृपा उसे ही प्राप्त होती है जो हंस के समान विवेक धारण करने वाला होता है। केवल हंस में ही ऐसा विवेक होता है कि वह दूध का दूध और पानी का पानी कर सकता है। हंस दूध ग्रहण कर लेता है और पानी छोड़ देता है। इसी तरह हमें भी बुरी सोच को छोड़कर अच्छाई को ग्रहण करना चाहिए।
सफेद रंग शांति और पवित्रता का प्रतीक है। यह रंग शिक्षा देता है कि अच्छी विद्या और अच्छे संस्कारों के लिए आवश्यक है कि आपका मन शांत और पवित्र हो। सभी को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए कड़ी मेहनत करनी पड़ती है। मेहनत के साथ ही माता सरस्वती की कृपा भी उतनी आवश्यक है। मां सरस्वती हमेशा सफेद वस्त्रों में होती हैं। इसके दो संकेत हैं पहला यह कि हमारा ज्ञान निर्मल हो, विकृत न हो, अहंकारमुक्त हो। जो भी ज्ञान अर्जित करें वह सकारात्मक हो। दूसरा संकेत हमारे चरित्र को लेकर है। कोई दुर्गुण हमारे चरित्र में न हो। मां ने शुभ्रवस्त्र धारण किए हैं, ये शुभ्रवस्त्र हमें प्रेरणा देते हैं कि हमें अपने भीतर सत्य, अहिंसा, क्षमा, सहनशीलता, करुणा, प्रेम व परोपकार आदि सद्गुणों को बढ़ाना चाहिए और क्रोध, मोह, लोभ, मद, अहंकार आदि का परित्याग करना चाहिए। मां सरस्वती को पीले रंग प्रिय है, मान्यतानुसार पीला रंग सुख-समृद्धि और ऊर्जा का प्रतीक माना जाता है। पीला रंग बसंत पंचमी का मुख्य प्रतीक है। पीले रंग को सरस्वती मां का प्रिय रंग भी कहा जाता है। पीले फूलों को मां पर अर्पित किया जाता है, पीले रंग की साज-सज्जा की जाती है और पीले रंग के चावल माता को भोग में चढ़ाने शुभ माने जाते हैं। बसंत पंचमी एक उत्सव ही नहीं बल्कि एक प्रेरणा भी है। बसंत पंचमी सिखाती है कि पुराने के अंत के साथ ही नए का सृजन भी होता है। असल में अंत और शुरुआत एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। बसंत ऋतु के आने से पहले पतझड़ का उदास मौसम होता है, लेकिन बसंत पंचमी के साथ ही बसंत ऋतु भी दस्तक देती है और बसंत ऋतु में पतझड़ से खाली हुए पेड़ पौधों में फिर से एक चमक, एक सुंदरता उतर आती है। जीवन का दस्तूर भी कुछ ऐसा ही है। पतझड़ की तरह खालीपन आता है लेकिन सब्र का दामन ना छोड़ें तो बसंत की बहार भी आती है। पूरे मन एवं आस्था से सरस्वती की पूजा एवं साधना करें ताकि आपकी वाणी मधुर हो, स्मरण शक्ति तीव्र हो, सौभाग्य की प्राप्ति हो, विद्या की प्राप्ति हो। सरस्वती पूजा से पति-पत्नी और बंधुजनों का कभी वियोग नहीं होता है तथा दीर्घायु एवं निरोगता प्राप्त होती है। इस दिन भक्तिपूर्वक ब्राह्मण के द्वारा स्वस्ति वाचन कराकर गंध, अक्षत, श्वेत पुष्प माला, श्वेत वस्त्रादि उपचारों से वीणा, अक्षमाला, कमण्डल, तथा पुस्तक धारण की हुई सभी अलंकारों से अलंकृत सरस्वती का पूजन करें।
बसंत पंचमी के साथ, बसंत ऋतु की शुरुआत होती है, जो फसलों की कटाई के लिए एक अच्छा समय है। फाग के राग की शुरुआत भी इसी दिन होती है। फाल्गुन का अर्थ ही है मधुमास। वो ऋतु जिसमें सर्वत्र माधुर्य ही माधुर्य हो, सौन्दर्य ही सौन्दर्य हो। वृ़क्ष नये पत्तों से सज गये हो, कलियां चटक रही हों, कोयल गा रही हो, हवाएं बह रही हो। ऐसे मधुर मौसम में सरस्वती पूजन वसंत की शुचिता एवं सिद्धि का प्रतीक है, एक ऊर्जा है, एक शक्ति है, एक गति है। लोकमन के आह्लाद से मुखरित वसंत ही महक और फाल्गुनी बहक के स्वर इसका लालित्य है, यही इस त्योहार की परम्परा का आह्वान है, यही इसका अलौकिक सौन्दर्य है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, ऐसा माना जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने इसी दिन ब्रह्मांड का निर्माण किया था। सृष्टि की रचना करके जब उन्होंने संसार में देखा तो उन्हें चारों ओर सुनसान निर्जनता एवं नीरसता ही दिखाई दी। वातावरण बिल्कुल शांत एवं नीरस लगा जैसे किसी की वाणी ही न हो। यह सब देखने के बाद ब्रह्माजी संतुष्ट नहीं थे तब ब्रह्माजी ने भगवान विष्णुजी से अनुमति लेकर अपने कमंडल से पृथ्वी पर जल छिड़का। जल छिड़कने के बाद एक देवी प्रकट हुई। देवी के हाथ में वीणा थी। भगवान ब्रह्मा ने उनसे कुछ बजाने का अनुरोध किया ताकि पृथ्वी पर सब कुछ शांत न हो। परिणामस्वरूप, देवी ने कुछ संगीत बजाना शुरू कर दिया। तभी से उस देवी को वाणी, वीणा और ज्ञान की देवी सरस्वती के नाम से जाना जाने लगा। उन्हें वीणावादिनी के नाम से भी जाना जाता है। ऐसा माना जाता है कि देवी सरस्वती ने वाणी, बुद्धि, बल और तेज प्रदान किया। इसीलिये बसंत पंचमी का सांस्कृतिक और धार्मिक दोनों ही महत्व है। यह ज्ञान, संगीत, कला, सौंदर्यशास्त्र की देवी सरस्वती का त्योहार है। महाभारत के शांति पर्व में उन्हें वेदों की माता कहा गया है। वह अज्ञानता, अविद्या और अंधकार को दूर कर गर्मी, चमक, प्रकाश, माधुर्य, सद्भाव, पवित्रता और प्रसन्नता का संचार करती है।
(साभार – प्रभासाक्षी)

प्रकृति और ज्ञान के संगम का पर्व बसन्त पंचमी

रमेश सर्राफ धमोरा
वसंत शब्द का अर्थ है बसंत और पंचमी का पांचवें दिन। इसलिये माघ महीने में जब वसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस महीने के पांचवे दिन यानी पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है।
बसंत पंचमी, प्रकृति और ज्ञान के संगम का पर्व है। यह त्योहार वसंत ऋतु के आगमन पर मनाया जाता है। इस दिन मां सरस्वती की पूजा की जाती है। बसंत पंचमी पर प्रकृति का खिलना और नई फसल आना भी देखा जाता है। बसंत पंचमी एक बहुआयामी त्योहार है जो वसंत ऋतु के आगमन का प्रतीक है और समृद्ध परंपराओं, कृषि महत्व और आध्यात्मिक प्रथाओं से भरा हुआ है। यह एक ऐसा दिन है जब प्रकृति की जीवंतता, देवी सरस्वती की भक्ति और कृषि समुदाय का जीवन उत्सव की एक खूबसूरत तस्वीर में एक दूसरे से जुड़ जाता है।
वसंत शब्द का अर्थ है बसंत और पंचमी का पांचवें दिन। इसलिये माघ महीने में जब वसंत ऋतु का आगमन होता है तो इस महीने के पांचवे दिन यानी पंचमी को वसंत पंचमी के रूप में मनाया जाता है। शास्त्रों में बसंत पंचमी को ऋषि पंचमी के नाम से भी जाना जाता है। बसन्त उत्तर भारत तथा समीपवर्ती देशों की छह ऋतुओं में से एक ऋतु है। जो फरवरी मार्च और अप्रैल के मध्य इस क्षेत्र में अपना सौंदर्य बिखेरती है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार माता सरस्वती जिन्हें विद्या, संगीत और कला की देवी कहा जाता है। है। उनका अवतरण इसी दिन हुआ था और यही कारण है कि भक्त इस शुभ दिन पर ज्ञान प्राप्त करने के लिए उनकी पूजा करते हैं। साथ ही इसे सरस्वती पूजा के नाम से भी जाना जाता है।
सभी शुभ कार्यों के लिए बसन्त पंचमी के दिन अत्यंत शुभ मुहूर्त माना गया है। बसन्त पंचमी को अत्यंत शुभ मुहूर्त मानने के पीछे अनेक कारण हैं। यह पर्व अधिकतर माघ मास में ही पड़ता है। माघ मास का भी धार्मिक एवं आध्यात्मिक दृष्टि से विशेष महत्व है। इस माह में पवित्र तीर्थों में स्नान करने का विशेष महत्व बताया गया है। दूसरे इस समय सूर्यदेव भी उत्तरायण होते हैं। इसलिए प्राचीन काल से बसन्त पंचमी के दिन देवी सरस्वती की पूजा की जाती है अथवा कह सकते हैं कि इस दिन को सरस्वती के जन्म दिवस के रुप में मनाया जाता है।
भारत में पतझड़ ऋतु के बाद बसन्त ऋतु का आगमन होता है। हर तरफ रंग-बिरंगें फूल खिले दिखाई देते हैं। इस समय गेहूं की बालियां भी पक कर लहराने लगती हैं। जिन्हें देखकर किसान हर्षित होते हैं। चारों ओर सुहाना मौसम मन को प्रसन्नता से भर देता है। इसीलिये वसन्त ऋतु को सभी ऋतुओं का राजा अर्थात ऋतुराज कहा गया है। इस दिन भगवान विष्णु, कामदेव तथा रति की पूजा की जाती है। इस दिन ब्रह्माण्ड के रचयिता ब्रह्मा जी ने सरस्वती जी की रचना की थी। इसलिए इस दिन देवी सरस्वती की पूजा भी की जाती है।
बसन्त पंचमी का दिन भारतीय मौसम विज्ञान के अनुसार समशीतोष्ण वातावरण के प्रारंभ होने का संकेत है। मकर सक्रांति पर सूर्य के उत्तरायण प्रस्थान के बाद शरद ऋतु की समाप्ति होती है। हालांकि विश्व में बदलते मौसम ने मौसम चक्र को बिगाड़ दिया है। पर सूर्य के अनुसार होने वाले परिवर्तनों का उस पर कोई प्रभाव नहीं है। हमारी संस्कृति के अनुसार पर्वों का विभाजन मौसम के अनुसार ही होता है। इन पर्वो पर मन में उत्पन्न होने वाला उत्साह स्वप्रेरित होता है। सर्दी के बाद गर्मी और उसके बाद बरसात फिर सर्दी का बदलता क्रम देह में बदलाव के साथ ही प्रसन्नता प्रदान करता है। बसन्त पंचमी का दिन सरस्वती जी की साधना को अर्पित ज्ञान का महापर्व है। शास्त्रों में भगवती सरस्वती की आराधना व्यक्तिगत रूप में करने का विधान है। किंतु आजकल सार्वजनिक पूजा-पाण्डालों में देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित कर पूजा करने का रिवाज चल पड़ा है। मां सरस्वती का प्रिय रंग पीला है। इसलिए उनकी मूर्तियों को पीले वस्त्र, फूल पहनाए जाते हैं। देश में लोग बसंत पंचमी पर पीले कपड़े पहन कर विद्या की देवी मा सरस्वती कि वंदना मंत्र का उच्चारण कर उनकी पूजा करते हैं।
या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता।
या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना॥
या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता।
सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥
माना गया है कि माघ महीने की शुक्ल पंचमी से बसन्त ऋतु का आरंभ होता है। फाल्गुन और चैत्र मास बसन्त ऋतु के माने गए हैं। फाल्गुन वर्ष का अंतिम मास है और चैत्र पहला। इस प्रकार हिंदू पंचांग के वर्ष का अंत और प्रारंभ बसन्त में ही होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। सरसों के फूलों से भरे खेत पीले दिखाई देते हैं। अतः राग रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है।
ग्रंथों के अनुसार देवी सरस्वती विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं। अमित तेजस्विनी व अनंत गुणशालिनी देवी सरस्वती की पूजा-आराधना के लिए माघमास की पंचमी तिथि निर्धारित की गयी है। बसन्त पंचमी को इनका आविर्भाव दिवस माना जाता है। ऋग्वेद में सरस्वती देवी के असीम प्रभाव व महिमा का वर्णन है। मां सरस्वती विद्या व ज्ञान की अधिष्ठात्री हैं। कहते हैं जिनकी जिव्हा पर सरस्वती देवी का वास होता है। वे अत्यंत ही विद्वान व कुशाग्र बुद्धि होते हैं।
प्राचीन कथाओं के अनुसार ब्रह्मा जी ने विष्णु जी के कहने पर सृष्टि की रचना की थी। एक दिन वह सृष्टि को देखने के लिए धरती पर भ्रमण करने के लिए आए। ब्रह्मा जी को सृष्टि में कुछ कमी का अहसास हो रहा था। लेकिन वह समझ नहीं पा रहे थे कि किस बात की कमी है। उन्हें पशु-पक्षी, मनुष्य तथा पेड़-पौधे सभी चुप दिखाई दे रहे थे। तब उन्हें आभास हुआ कि क्या कमी है। वह सोचने लगे कि एसा क्या किया जाए कि सभी बोले और खुशी में झूमे। ऐसा विचार करते हुए ब्रह्मा जी ने अपने कमण्डल से जल लेकर धरती पर छिडका। जल छिडकने के बाद श्वेत वस्त्र धारण किए हुए एक देवी प्रकट हुई। इस देवी के चार हाथ थे। एक हाथ में वीणा, दूसरे हाथ में कमल, तीसरे हाथ में माला तथा चतुर्थ हाथ में पुस्तक थी। ब्रह्मा जी ने देवी को वरदान दिया कि तुम सभी प्राणियों के कण्ठ में निवास करोगी। सभी के अंदर चेतना भरोगी, जिस भी प्राणी में तुम्हारा वास होगा वह अपनी विद्वता के बल पर समाज में पूज्यनीय होगा। ब्रह्मा जी ने कहा कि तुम्हें संसार में देवी सरस्वती के नाम से जाना जाएगा।
कडकड़ाती ठंड के बाद बसंत ऋतु में प्रकृति की छटा देखते ही बनती है। पलाश के लाल फूल, आम के पेड़ों पर आए बौर, हरियाली और गुलाबी ठंड मौसम को सुहाना बना देती है। यह ऋतु सेहत की दृष्टि से भी बहुत अच्छी मानी जाती है। मनुष्यों के साथ पशु-पक्षियों में नई चेतना का संचार होता है। इस दिन पवित्र नदियों में स्नान का विशेष महत्व है। देश के कई स्थानो पर पवित्र नदियों के तट और तीर्थ स्थानों पर बसंत मेला भी लगता है। राजस्थान के शेखावाटी क्षेत्र में तो बसंत पंचमी के दिन से ही लोग समूह में एकत्रित होकर रात में चंग ढफ बजाकर धमाल गाकर होली के पर्व का शुभारम्भ करते है।
बसन्त पंचमी के दिन विद्यालयों में भी देवी सरस्वती की आराधना की जाती है। भारत के पूर्वी प्रांतों में घरों में भी विद्या की देवी सरस्वती की मूर्ति की स्थापना की जाती है और वसन्त पंचमी के दिन उनकी पूजा की जाती है। उसके बाद अगले दिन मूर्ति को नदी, तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। देवी सरस्वती को ज्ञान, कला, बुद्धि, गायन-वादन की अधिष्ठात्री माना जाता है। इसलिए इस दिन विद्यार्थी, लेखक और कलाकार देवी सरस्वती की उपासना करते हैं। विद्यार्थी अपनी किताबें, लेखक अपनी कलम और कलाकार अपने संगीत उपकरणो और बाकी चीजें मां सरस्वती के सामने रखकर पूजा करते हैं।

(साभार – प्रभासाक्षी)

फायदेमंद है गर्म पानी पीना

पानी इंसान के शरीर की सबसे बड़ी जरुरत है। पानी से हमारा शरीर पूरे दिन तरोताजा रहता है। अगर पानी को गर्म करके पीते हैं, तो यह और भी ज्यादा फायदेमंद है। रोजाना सुबह खाली पेट गर्म पानी पीने से शरीर के कई रोग यूं ही मिट जाते हैं। ये हैं गर्म पानी पीने के फायदे

मेटाबॉलिज्म और पाचन तंत्र में सुधार – सुबह-सुबह गर्म पानी पीने से शरीर में रक्त प्रवाह बेहतर होता है, जिससे मेटाबॉलिज्म और पाचन तंत्र में सुधार होता है।

शरीर को करता है डिटॉक्स –आप इसे बॉडी में फिल्टरेशन भी कह सकते हैं। गर्म पानी शरीर का तापमान बढ़ाता है, जिससे पसीने के जरिए शरीर से गंद बाहर आता है और फिर शरीर की अंदरूनी सफाई से स्किन ग्लो करती है।

 ब्लड सर्कुलेशन में सुधार – गर्म पानी पीने से शरीर में ऑक्सीजन का प्रवाह तेज होता है, जिससे ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है।इससे हार्ट संबंधी बीमारियों का खतरा कम होने लगता है।

शरीर रहता है हाइड्रेट – शरीर में पानी की कमी भी महसूस नहीं होती है। साथ ही बॉडी टेंपरेचर कंट्रोल में रहता है, जिससे दिनभर थकान और आलस्य महसूस नहीं होती है।

वजन कम करने में मददगार  -गर्म पानी मेटाबॉलिज्म में सुधार करता है, जिससे कैलोरी बर्न होती है।

चेहरे पर आता है निखार –अगर आप गर्म पानी रोजाना पिएंगे, तो इससे आपके चेहरे पर नूर सा निखार आने लगेगा।

गर्म पानी से बॉडी से विषाक्त बाहर जाता है और फिर इससे पेट साफ होता है। पेट साफ होने से शरीर में कोई रोग नहीं पैदा होता है।

सत्यजित राय फिल्म एवं टेलीविजन इंस्टीट्यूट में नुक्कड़ नाटक

कोलकाता । गणतंत्र दिवस के अवसर पर सत्यजीत राय फिल्म एण्ड टेलीविजन इंस्टिट्यूट में चित्रांकन एवं स्वच्छता पर केंद्रित नुक्कड़ नाटक की प्रस्तुति हुई।इस अवसर पर विभिन्न शिक्षण संस्थानों के विद्यार्थियों ने चित्रांकन प्रतियोगिता में हिस्सा लिया। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन द्वारा स्थापित संस्कृति नाट्य मंच की ओर से स्वच्छता अभियान पर नुक्कड़ नाटक प्रस्तुत किया गया। इस अवसर पर सत्यजित राय फिल्म एंड टेलीविजन इंस्टीट्यूट के नोडल अधिकारी प्रो. हितेश कुमार ने नाटक के निर्देशक डाॅ.इबरार खान, वरिष्ठ आलोचक मृत्युंजय श्रीवास्तव एवं
विद्यासागर विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के प्रो. संजय जायसवाल का स्वागत किया। सभी अतिथियों ने स्वच्छता अभियान पर बल देते हुए यह संकल्प लिया कि हमें अपने घर की तरह अपने परिवेश को भी स्वच्छ रखना चाहिए।इस नाटक में विशाल कुमार साव, प्रज्ञा झा, फरहान अजीज, संजना जयसवाल, आदित्य तिवारी, अभिषेक यादव, सुषमा कुमारी, काजल हेला, शिखा सिंह, महिमा केशरी, मो. अरबाज, मो. सरफराज खान, सोहेल खान, अनुश्री साव ने अभिनय किया।इस अवसर पर सभी कर्मचारियों के साथ दर्शक भी मौजूद थे। कार्यक्रम का सफल संचालन एवं धन्यवाद ज्ञापन संस्था के राजभाषा अधिकारी संजय दास ने किया।