कोलकाता । बागुईआटी रेल पुकुर यूनाइटेड क्लब के सदस्य इस वर्ष 2025 में 72वें वर्ष में विचारोत्तेजक थीम – “शब्दो” (ध्वनि) के साथ आगंतुकों को मंत्रमुग्ध करने की तैयारी में जुटे हैं। यह थीम प्रकृति और रोज़मर्रा की ज़िंदगी की उन लुप्त होती ध्वनियों को मंडप में पेश करेगी, जो कभी हमारे अस्तित्व को परिभाषित करती थीं, लेकिन अब शहरी अराजकता में यह ध्वनि लुप्त होती जा रही हैं। इस वर्ष क्लब के सदस्य 72वें वर्ष में दुर्गापूजा के उत्सव को और भी यादगार बनाने की तैयारियों में जुटे है। एक जमाने में, पक्षियों की आवाज़ें हमारी दिनचर्या का अभिन्न अंग हुआ करती थीं। भोर होते ही, पक्षियों की चहचहाहट, उगते सूरज का स्वागत करती थी, और शाम ढलते ही, उनकी आवाज़ें घर वापसी का संकेत देती थीं। रात के सन्नाटे में भी, उल्लू और निशाचर पक्षी अपनी आवाज़ों से सन्नाटे को चीरते थे। हालाँकि, आजकल ऐसी आवाज़ें हमारे आसपास बेहद कम सुनाई देती हैं। इस थीम के माध्यम से क्लब के अधिकारी इस बात पर प्रकाश डालने की कोशिश कर रहे है कि, कैसे तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण ने, पेड़ों की बेतहाशा कटाई और कंक्रीट की ऊँची इमारतों के निर्माण ने प्राकृतिक आवासों को नष्ट कर दिया है। पक्षी, जो आश्रय के लिए पेड़ों पर निर्भर थे, धीरे-धीरे लुप्त होते जा रहे हैं – और उनके साथ उनकी आवाज़ें भी अब हमसे दूर हो रही है। क्लब हमें याद दिलाता है कि प्रकृति पर मानवता का अनियंत्रित प्रभुत्व हमें अपरिवर्तनीय पारिस्थितिक क्षति की ओर धकेल रहा है, यह एक ऐसी कीमत है, जो आने वाली पीढ़ियों को चुकानी पड़ेगी। इस अवसर पर बोलते हुए, बागुईहाटीं रेलपुकुर यूनाइटेड क्लब के समिति सदस्य गौरव बिश्वास ने कहा, हमारा थीम ‘शब्दो’ केवल एक कलात्मक रचना नहीं है, बल्कि यह हमारी सामूहिक चेतना का प्रतिबिंब है। पक्षियों और प्रकृति की ध्वनियाँ, जो कभी हमारे दैनिक जीवन का अभिन्न अंग थीं, वे अब अनियंत्रित शहरीकरण के कारण लुप्त होती जा रही हैं। इस थीम के माध्यम से, हम समाज को यह याद दिलाना चाहते हैं कि, ये आवाज़ें केवल पृष्ठभूमि संगीत नहीं हैं, बल्कि यह हमारे पर्यावरण की धड़कन हैं। अगर हम आज इस गंभीर होती जा रही समस्या को लेकर नहीं जागे तो कल की दुनिया खामोश हो जाएगी। दुर्गा पूजा केवल उत्सव का ही नहीं, बल्कि जागरूकता, ज़िम्मेदारी और मानवता के जागरण का भी प्रतीक है।
बंधन बैंक ने लॉन्च किया 10वीं वर्षगांठ पर ‘लिगेसी अकाउंट’
कोलकाता । भारत के सबसे तेजी से बढ़ते यूनिवर्सल बैंकों में से एक, बंधन बैंक ने अपने प्रीमियम उत्पाद, लिगेसी बचत खाता को लॉन्च करने की घोषणा की है। यह खाता उन धनी ग्राहकों के लिए बनाया गया है जो एक बेहतर और विशेष बैंकिंग अनुभव चाहते हैं। यह लॉन्च बैंक के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर पर हुआ है, क्योंकि बैंक ने परिचालन और बैंकिंग उत्कृष्टता के 10 साल पूरे कर लिए हैं। लिगेसी बचत खाते के साथ वर्ल्ड एलीट मास्टरकार्ड डेबिट कार्ड मिलता है, जो घरेलू (साथी के प्रवेश सहित) और अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे के लाउंज, ताज एपिक्योर मेंबरशिप, मुफ्त मूवी और इवेंट टिकट, और चुनिंदा क्लबों में गोल्फ सेशन की सुविधा देता है। लिगेसी बचत खाता वाले ग्राहकों को और भी कई विशेष सुविधाएँ मिलेंगी, जैसे कि समर्पित रिलेशनशिप मैनेजर, लॉकर किराए पर आजीवन छूट, और यात्रा, चिकित्सा, शिक्षा, विरासत और संपत्ति नियोजन जैसी जरूरतों के लिए विशेषज्ञ परामर्श सेवाएँ। यह उत्पाद जीवनशैली, यात्रा और वित्तीय लाभों की एक विस्तृत श्रृंखला भी प्रदान करता है। इसके अतिरिक्त, ग्राहक असीमित मुफ्त लेनदेन का लाभ उठा सकते हैं, जिसमें नकद जमा, आरटीजीएस, एनईएफटी और आईएमपीएस शामिल हैं। लिगेसी ग्राहकों को बेहतर बीमा कवरेज भी दिया जाता है, जिसमें ₹1 करोड़ तक का हवाई दुर्घटना बीमा, ₹20 लाख तक का व्यक्तिगत दुर्घटना बीमा, और ₹5 लाख तक का खरीद सुरक्षा शामिल है। इस अवसर पर बोलते हुए, बंधन बैंक के एमडी और सीईओ पार्थ प्रतिम सेनगुप्ता ने कहा , “जैसे ही बंधन बैंक 10 साल पूरे कर रहा है, यह वास्तव में गर्व और कृतज्ञता का क्षण है। लिगेसी बचत खाते के लॉन्च के साथ, हम समावेशी और सतत विकास के अपने उद्देश्य से जुड़े रहते हुए, नवीन समाधान और विश्व स्तरीय अनुभव प्रदान करने की एक नई प्रतिबद्धता के साथ अगले दशक में प्रवेश कर रहे हैं। हम अपनी आगे की यात्रा में अपने ग्राहकों के अटूट विश्वास, अपने कर्मचारियों के समर्पण और हमारे सभी हितधारकों के समर्थन की आशा करते हैं।”
उपराष्ट्रपति का चुनाव जीते सीपी राधाकृष्णन, मिले 452 वोट
नयी दिल्ली । एनडीए के उम्मीदवार सीपी राधाकृष्णन देश के नए उपराष्ट्रपति निर्वाचित हुए हैं। आज हुए मतदान में सीपी राधाकृष्णन को कुल 452 वोट मिले। वहीं विपक्षी गठबंधन इंडिया के उम्मीदवार सुदर्शन रेड्डी को 300 वोट मिले। राधाकृष्णन ने 152 वोटों के अंतर से जीत दर्ज की।उप राष्ट्रपति चुनाव में कुल 98 प्रतिशत मतदान दर्ज किया गया। शाम पांच बजे मतदान समाप्त होने के एक घंटे बाद छह बजे मतगणना प्रारंभ हुई। मतगणना समाप्त होने के बाद देर शाम नतीजे घोषित किए गए। जिसमें एनडीए उम्मीदवार को कुल 452 वोट मिले। जबकि विपक्ष के उम्मीदवार को 300 वोट मिले।इससे पहले मंगलवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, गृह मंत्री अमित शाह, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, कांग्रेस संसदीय दल की प्रमुख सोनिया गांधी, पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे और लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी समेत 769 सांसदों ने उप राष्ट्रपति चुनाव के लिए मतदान किया।
बिहार की महिलाएं पुरुषों से ज्यादा हंसमुख: शोध में हुआ बड़ा खुलासा
नयी दिल्ली । क्या आपने कभी सोचा है कि हंसने जैसी एक सामान्य क्रिया किसी की जिंदगी को कितना बेहतर बना सकती है? हाल ही में राष्ट्रीय महिला एवं बाल विकास विभाग द्वारा किए गए एक शोध में यह बात सामने आई है कि बिहार की महिलाएं पुरुषों की तुलना में कहीं अधिक हंसमुख होती हैं। यह रिपोर्ट न केवल राज्य की सामाजिक मानसिकता को दर्शाती है, बल्कि यह भी बताती है कि मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाए रखने में हंसी की भूमिका कितनी अहम है।
30 से 45 साल की महिलाएं सबसे ज्यादा हंसमुख
रिपोर्ट के अनुसार, सबसे हंसमुख महिलाएं 30 से 45 वर्ष की उम्र वर्ग की हैं। इस आयु वर्ग की अधिकांश महिलाएं या तो नौकरी पेशा हैं या फिर गृहिणी। दिलचस्प बात यह है कि इन महिलाओं का कहना है कि वे दिन के दो से तीन घंटे हंसी-मजाक में बिताती हैं। इससे उनका मानसिक तनाव काफी हद तक कम हो जाता है।
बच्चे हैं हंसमुख रहने की वजह
करीब 20 लाख महिलाओं ने यह भी कहा कि उनके हंसमुख रहने की सबसे बड़ी वजह उनके बच्चे हैं। ऑफिस के व्यस्त माहौल में भी जब वे अपने बच्चों से बात करती हैं, तो उनके चेहरे पर मुस्कान आ जाती है। घर पर भी बच्चों की बातें, उनका खेलना-कूदना, और उनके लिए की जाने वाली तैयारियां महिलाओं को खुशी और ऊर्जा से भर देती हैं।
केवल 35 प्रतिशत पुरुष ही हंसमुख
जहां 65% महिलाएं हंसने को अपना रोज़ का हिस्सा मानती हैं, वहीं केवल 35% पुरुष ही नियमित रूप से हंसते हैं। पुरुषों में यह अवधि औसतन आधे घंटे से भी कम पाई गई। यह अंतर समाज में पुरुषों की मानसिकता और जिम्मेदारियों के तनाव को दर्शाता है। शोध में यह भी पाया गया कि पुरुष अक्सर तनाव को व्यक्त करने से बचते हैं। वे सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों में इतने उलझे होते हैं कि उन्हें खुलकर हंसने या भावनाएं व्यक्त करने का अवसर कम मिलता है।
बिहार एसआईआर में 12वें दस्तावेज के रूप में आधार कार्ड स्वीकार्य : सुप्रीम कोर्ट
नयी दिल्ली । उच्चतम न्यायालय के जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने सोमवार को केंद्रीय निर्वाचन आयोग को आदेश दिया कि वो बिहार में विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के लिए 12वें दस्तावेज के रुप में आधार कार्ड को स्वीकार करें। सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा कि यह तय होना चाहिए कि आधार कार्ड विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए स्वीकार है या नहीं। तब जस्टिस सूर्यकांत ने कहा कि आप क्या चाहते हैं। आप चाहते हैं कि आधार को नागरिकता के लिए पहचान पत्र माना जाए। तब सिब्बल ने कहा कि नहीं, बीएलओ नागरिकता तय नहीं करते। हम चाहते हैं कि आधार को विशेष गहन पुनरीक्षण में पहचान के रूप में स्वीकार किया जाए, ताकि मतदाता मतदान कर सकें। कपिल सिब्बल ने कहा कि कोर्ट के तीन आदेश हैं कि आधार को 12 वें दस्तावेज के रूप में स्वीकार किया जाएगा, लेकिन बीएलओ स्वीकार नहीं कर रहे हैं। सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने कहा कि इस संबंध में बीएलओ को कोई निर्देश जारी नहीं किया गया है। तब कोर्ट ने निर्वाचन आयोग को निर्देश दिया कि वो बीएलओ को निर्देश जारी करें कि आधार कार्ड भी विशेष गहन पुनरीक्षण के लिए मान्य दस्तावेज है। कोर्ट ने कहा कि निर्वाचन आयोग के अधिकारी इस बात के लिए स्वतंत्र हैं कि वो मतदाताओं की ओर से पेश किए गए आधार कार्ड की सत्यता की जांच करें। कोर्ट ने कहा कि आधार कानून के मुताबिक ये नागरिकता का प्रमाण नहीं है, लेकिन जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा 23(4) के तहत आधार कार्ड को पहचान के एक दस्तावेज के रुप में मान्यता दी गई है। कोर्ट ने निर्वाचन आयोग के उस अंडरटेकिंग को रिकॉर्ड किया कि आधार कार्ड को पहचान के रुप में स्वीकार किया जाएगा। इससे पहले 8 सितंबर को उच्चतम न्यायालय ने विशेष गहन पुनरीक्षण में पैरा लीगल वालंटियर्स ड्राफ्ट वोटर लिस्ट पर दावा-आपत्ति दर्ज करने में मतदाताओं की मदद करने का आदेश दिया था। सुनवाई के दौरान निर्वाचन आयोग ने उच्चतम न्यायालय को बताया था कि ड्राफ्ट सूची को लेकर दावे और आपत्ति कभी भी दाखिल की जा सकती है। इसके लिए कोई समय सीमा निर्घारित नहीं है। कोर्ट ने 22 अगस्त को सुनवाई करते हुए उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि बिहार में मतदाता सूची के विशेष गहन पुनरीक्षण के बाद जिनका नाम वोटर लिस्ट से छूट गया है, वो ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं और इसके लिए फिजिकल जाकर फॉर्म भरना जरुरी नहीं है। जस्टिस सूर्यकांत की अध्यक्षता वाली बेंच ने साफ किया था कि वोटर लिस्ट के लिए निर्वाचन आयोग ने जिन 11 दस्तावेज का जिक्र किया है, उनमें से कोई एक या केवल आधार कार्ड से फॉर्म भरा जा सकता है।
दुकानों के साइनबोर्ड पर नाम बांग्ला में लिखना अनिवार्य
कोलकाता नगर निगम ने जारी किया निर्देश
कोलकाता । कोलकाता नगर निगम ने शहर में सभी जगहों पर साइनबोर्ड पर बंगाली को अनिवार्य करने का फैसला किया है। अब से, दुकानों, कार्यालयों, बहुमंजिला बाज़ार परिसरों, व्यावसायिक भवनों से लेकर विभिन्न संस्थानों के साइनबोर्ड पर बंगाली मुख्य भाषा होगी। नगर आयुक्त धबल जैन द्वारा हाल ही में जारी एक दिशानिर्देश में कहा गया है कि इस नियम को 30 सितंबर तक लागू करना होगा। दिशानिर्देश में कहा गया है कि साइनबोर्ड के सबसे ऊपर नाम बंगाली में लिखा होना चाहिए। ज़रूरत पड़ने पर नीचे या किनारे पर अन्य भाषाओं का इस्तेमाल किया जा सकता है, लेकिन बंगाली पहले लिखी जाएगी। नगर निगम ने यह भी कहा कि यह कदम कानून विभाग के परामर्श से उठाया गया है। गौरतलब है कि इससे पहले, सरकारी कार्यालयों के साइनबोर्ड और नोटिस पर भी बंगाली का प्रयोग अनिवार्य किया गया था। कोलकाता नगर निगम की मासिक बैठक में भी अलिखित रूप से कहा गया था कि प्रश्न या प्रस्ताव बंगाली में प्रस्तुत किए जाने चाहिए। इस बार, नगर निगम ने उस नीति को स्पष्ट करते हुए एक प्रशासनिक परिपत्र जारी किया है। मेयर फिरहाद हकीम ने हाल ही में शहरवासियों से अपील की थी। उन्होंने कहा, “यह सिर्फ़ भाषा का सवाल नहीं है, बल्कि सांस्कृतिक पहचान का भी मामला है।” इस फ़ैसले का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि कोलकाता और पूरे बंगाली क्षेत्र के लोग अपनी भाषा की मौजूदगी हर जगह महसूस कर सकें। मेयर ने यह सुनिश्चित करने को कहा है कि कोलकाता नगर निगम द्वारा प्रकाशित कोई भी दस्तावेज़ बंगाली भाषा के ज़्यादा इस्तेमाल का संदेश दे। इसके अलावा, कोलकाता नगर निगम की अध्यक्ष माला रॉय ने ज़ोर देकर कहा है कि नगर निगम का सारा कामकाज बंगाली में ही होना चाहिए। उन्होंने पार्षदों को बंगाली के अलावा किसी और भाषा में सवाल न पूछने की ख़ास हिदायत भी दी है। नगर निगम ने व्यापारियों और संस्थानों से इस निर्देश का पालन करने में सहयोग करने का अनुरोध किया है। अधिकारियों ने कहा है कि अगर तय समय सीमा के अंदर इस निर्देश का पालन नहीं किया गया, तो ज़रूरत पड़ने पर कड़ी कार्रवाई की जाएगी। इसके परिणामस्वरूप, अगले कुछ महीनों में कोलकाता की सड़कों, बाज़ारों, ऑफ़िस ब्लॉक और शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के साइनबोर्ड पर बंगाली भाषा की मौजूदगी और भी ज़्यादा साफ़ दिखाई देगी। कई लोगों ने इस कदम का स्वागत किया है। जानकारों के अनुसार, यह न केवल भाषा की गरिमा की रक्षा के लिए, बल्कि आम लोगों के हित में भी एक ज़रूरी फ़ैसला है। इसी हफ़्ते पश्चिम बंगाल विधानसभा में बंगाली भाषा के इस्तेमाल और भाजपा शासित राज्य में बंगाली भाषियों पर हो रहे अत्याचारों पर चर्चा के लिए एक विशेष सत्र आयोजित किया गया था। हालाँकि, सत्र के आखिरी दिन सत्ता पक्ष और विपक्ष, दोनों के विधायकों की नारेबाजी और हंगामे की भेंट चढ़ गया।
शिक्षक दिवस विशेष : बंगाल और बिहार के वर्तमान शिक्षक

आज़ादी के 78 वर्ष में हम प्रवेश कर गए हैं । यूँ ही समाचार के ऐप पर ऊँगली फेरते हुए एक समाचार पर नज़र गई । 13 अगस्त 2025 के दिन प्रभात खबर में छपी एक रिपोर्ट के अनुसार, नन्दन फिल्म हॉल, कोलकाता में एक कार्यक्रम के दौरान मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने पूरे बंगाल के सभी फिल्म हॉल में बांग्ला फिल्म दिखाना अनिवार्य कर दिया है । यह निर्णय बांग्ला फिल्म के लिए है तो, अच्छी बात है । परंतु यदि बांग्ला भाषा के लिए है तो सोचने वाली बात है । 10 वर्ष से जिस राज्य ने विद्यालयों में शिक्षकों की भर्ती न की हो । जिस राज्य के बच्चे बिना शिक्षक के पढ़ रहे हों । जो शिक्षक थे उन्हें भी बेरोज़गार कर दिया गया हो । उस राज्य की भाषा बचाने का काम फिल्म उद्योग ही करेगी । मुख्यमंत्री को भी पता है कि बिना शिक्षक के बच्चे रास्ते में समोसा, पकौड़ी और मूढ़ी बेचकर फिल्म देखने ही जाएँगे । और भाषा बच जाएगी । रोज़गार तो ऐसे ही बनते हैं ।
जिस राज्य ने नवजागरण की मिसालें दीं हो । वह राज्य ही अपनी संस्कृति और शिक्षा नष्ट कर रहा है । किसी भी शिक्षक की बहाली किसी भी संस्थान, विद्यालय, महाविद्यालय और विश्वविद्यालय में हो उसकी रिपोर्ट और मेरिट सार्वजनिक कर दी जाए तो धांधली की संभावना कम हो जाती है । पर बंगाल की सरकार को अपने ही राज्य की परीक्षा कराने और नौकरी की बहाली निकालने के लिए समय नहीं है । पश्चिम बंगाल का ‘स्कूल सर्विस कमीशन’ हो या ‘कॉलेज सर्विस कमीशन’ न तो बहाली के बाद मेरिट साझा करता है और न ऐसी सूचना देता है कि चयनित अभ्यर्थी का मेरिट और चयन का आधार क्या रहा है या कितने नंबर से अभ्यर्थी पिछड़ा है । बंगाल में अंतिम बार 2016 में विद्यालयों में शिक्षक भर्ती हुई थी । इसमें बंगाल सरकार के शिक्षा मंत्री पार्थ चटर्जी के भ्रष्टाचार और रिश्वत के कारण नौ वर्षों के बाद उच्च न्यायालय एवं उच्चतम् न्यायालय ने रद्द कर दिया । 2020 में ‘कॉलेज सर्विस कमीशन’ द्वारा सहायक प्राध्यापक की नियुक्ति के लिए आवेदन आया था । 2022 में उसका साक्षात्कार हुआ । जितने अभ्यर्थियों का चुनाव हुआ उनके मेरिट और योग्यता साझा नहीं हुई । केवल नाम की सूची आ गई । जो चयनित नहीं हुए उन्हें कभी नहीं पता चलेगा कि उनकी कमियाँ क्या थी ?
मैं तीन वर्षों से बिहार में हूँ । यह राज्य मेरे कार्य-क्षेत्र के अलावा कुछ नहीं लगता । मुझे बिहार की व्यवस्था और समाज की रुढ़िवादी नीति से काफी शिकायत है । यहाँ की शिक्षा व्यवस्था पर कई वर्षों से सरकार ने ध्यान नहीं दिया है । इसके साथ ही बाढ़ इसकी व्यवस्था और रसातल में डाल देती है । परंतु इन तीन वर्षों में चुनाव के ही कारण शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया आरंभ हुई । सरकार को भी लगा कि चुनाव में वोट के लिए यह ज़रूरी है । यहाँ की शिक्षक भर्ती और विश्वविद्यालय की बहाली में जिस तरह से हर अभ्यर्थी का नाम और मेरिट सार्वजनिक किया जाता है, वह उम्मीद देती है कि मेरिट का महत्त्व है । अभी बीते दो-तीन वर्षों से ढाई लाख शिक्षकों की बहाली हुई है, ये शिक्षक जिन छात्रों का निर्माण करेंगे निसंदेह वे उन छात्रों से ज़्यादा शिक्षित और आलोचनात्मक दृष्टि रखेंगे जिन्हें शिक्षक नहीं मिले थे । बिहार ने न केवल राज्य योग्यता परीक्षा कराया इनके साथ खाली पदों पर कई स्तर पर बहाली भी की । जिनका चुनाव नहीं उन्हें पता है कि कितने नंबर से वे रह गए । इसी प्रकार 2023 में बिहार विश्वविद्यालय में शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया में मेरिट जारी की गई । मैं ऐसा नहीं कहती कि इसमें भ्रष्टाचार नहीं हुआ होगा । यह भ्रष्टाचार मेरिट में आए शिक्षकों द्वारा जगह के स्तर पर हो रही है न कि नौकरी के लिए । आजकल पटना गाँधी मैदान के पास कई अभ्यर्थी आंदोलन कर रहे हैं । यह आंदोलन टी.आर.ई. 04 परीक्षा करवाने के लिए हो रहा है । न कि नियुक्ति में धांधली के लिए ।
धीरे-धीरे बंगाल भी जंगल राज वाला बिहार होता जा रहा है । जिन बातों के लिए बंगाल में ‘बिहारी’ शब्द गाली की तरह प्रयुक्त होता था । बंगाल की राजनीति उन्हीं बातों को अपनाकर बंगाल की बनी बनाई व्यवस्था को बर्बाद कर रहा है । 2016 के बाद से कोई शिक्षक बहाली नहीं ङुई । जिनक नौकरी चली गई उस गलती को सुधारने के लिए सरकार 2025 में पुन: परीक्षा करवा रही है । यह परीक्षा नौ वर्षों से नियुक्त शिक्षकों का अपमान है । इनके साथ ही नौ वर्षों से जिन विद्यार्थियों ने एक भी शिक्षक भर्ती की प्रक्रिया नहीं देखी, वे दस नंबर का अनुभव प्रमाण कहाँ से लाएँगे? 100 नंबर की परीक्षा में 60 नम्बर लिखित, 20 नम्बर साक्षात्कार, 10 नम्बर मेरिट और 10 नम्बर अनुभव । इसका अर्थ है नए अभ्यर्थियों को ऐसे ही छाँट देना है । यह परीक्षा केवल उन शिक्षकों को भरने क लिए है जिनकी नौकरी गई है । कॉलेज में भी भर्ती की कोई सूचना नहीं आई है । पश्चिम बंगाल लोक सेवा आयोग की परीक्षा भी 7-8 वर्षों से नहीं हुई है । एक व्यवस्थित और सुचारु ढंग से बंगाल सरकार नौकरी के लिए परीक्षा नहीं करवाती है ज़्यादातर भाई – भतीजावाद के भेंट या रिक्तता की भेंट चढ़ जाता है । कलकत्ता विश्वविद्यालय की वर्तमान कुलपति प्रो. शांता दत्ता का अट्ठाइस अगस्त के दिन विश्वविद्यालय की परीक्षा रद्द न करना । उम्मीद जताता है कि शिक्षा व्यवस्था में अभी भी क्रांति बची हुई है । स्त्री शिक्षा और सुरक्षा के लिए के लिए बंगाल का नाम रहा है । वह आज की राजनीति और भ्रष्ट व्यवस्था उतना ही बदनाम कर रही है । राजा राममोहन राय, ईश्वरचंद्र विद्यासागर और स्वामी विवेकानंद की बनाई नवजागरण की विरासत को धीरे-धीरे बर्बाद करने का काम चल रहा है ।
बिहार में नीतिश हो या लालू जनता खुले आम आलोचना कर सकती है । पश्चिम बंगाल में राज्य सरकार की आलोचना को बंगाल की अस्मिता और भाषा से जोड़ कर देखा जाता है । बंगाल में आम जनता, बच्चों एवं स्त्रियों के साथ राजनीति भयावह रूप ले लेती है । चुनाव के दौरान पटाखों को कूड़े में डालकर आम जनता को शिकार बनाया जाता है । बंगाल सरकार भी शिक्षा व्यवस्था सुधारने के लिए मानक कदम नहीं उठा रही है । महिलाओं की दशा तो दिन-प्रतिदिन बिगड़ रही है । जिस राज्य की महिला उदाहरण थी वह आज पीड़ित बन रही हैं ।
अतिथि शिक्षकों की हालत तो एक रोज़ के मज़दूरों से भी बदत्तर है । रोज का मज़दूर भी पाँच सौ रुपए लेता है परनंतु बंगाल के अतिथि शिक्षकों को एक कक्षा के लिए दो सौ-ढाई सौ रुपए दिये जाते हैं । मुफ्त का अनाज भी सभी को नहीं मिलता । जिन्हें मिल रहा है वे और किसी वस्तु की उम्मीद न करें । गाय के समान खूँटे से बँध कर खाए और चुप रहें । केंद्र सरकार और राज्य सरकार दोनों ही न शिक्षा और न चिकित्सा पर ध्यान देती है । मोदी जी ने अयोध्या का मंदिर बनाया तो ममता जी ने पूरी के तर्ज पर दीघा में जगन्नाथ मंदिर । शिक्षा और चिकित्सा प्राथमिक होना चाहिए । दक्षिण के राज्यों में भी राजनीति है परन्तु वे शिक्षा और चिकित्सा को महत्त्व अधिक देते हैं । आज पूरा देश ही बेहतर इलाज के लिए दक्षिण भारत की ओर जा रहा है । हिन्दी की दशा तो थाली में पड़े बैंगन के समान हो गई है । मतलब कि केवल उपयोग में आ रही है परन्तु स्वीकृति नहीं मिल रही है । भाषा थोपने के मैं भी खिलाफ हूँ परन्तु वास्तविकता यह भी है कि हिन्दी से 60% से ज्यादा लोग और लगभग सभी राज्य समझते हैं परन्तु राजनीति की रोटी कभी ठंडी न पड़े इसलिए हिन्दी का प्रयोग कर हिन्दी के विरोध में प्रदर्शन करते हैं । कुछ बेचना है या मनोरंजन करना है तो हिन्दी याद आती है । इसके बाद सभी अपने भाषा के प्रति सजग हो जाते हैं । मुझे हिन्दी को राष्ट्र भाषा का दर्जा नहीं दिलाना है पर हम जिस भाषा से काम चलाते हैं उनके प्रति कृतज्ञता बोध तो होना ही चाहिए । इतने वर्षों के विरोध के बावजूद यह अपने आप जनसंपर्क की भाषा बनी है । परन्तु इसके प्रति दोहरी नीति मुझे नहीं समझ आती ।
दिव्या गुप्ता (DIBYA GUPTA)
शोधार्थी
भारत में इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या 100 करोड़ के पार
– अप्रैल-जून अवधि में 3.48 प्रतिशत का हुआ इजाफा
नयी दिल्ली। ब्रॉडबैंड ग्रोथ के कारण भारत में इंटरनेट सब्सक्राइबर्स की संख्या 30 जून, 2025 तक 1 अरब को पार कर 1,002.85 मिलियन हो गई, जो मार्च की तुलना में 3.48 प्रतिशत अधिक है। यह जानकारी सरकार की ओर से दी गई। भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (ट्राई) की एक रिपोर्ट के अनुसार, इन 100 करोड़ से अधिक ग्राहकों में से 4.47 करोड़ के पास वायर्ड इंटरनेट कनेक्शन थे, जबकि 95.81 करोड़ के पास वायरलेस कनेक्शन थे। ब्रॉडबैंड सब्सक्राइबर्स की संख्या 3.77 प्रतिशत बढ़कर 979.71 मिलियन हो गई, जबकि नैरोबैंड यूजर्स की संख्या घटकर 23.14 मिलियन रह गई। जून तिमाही में कुल टेलीफोन ग्राहकों की संख्या 1,218.36 मिलियन तक पहुंच गई, जो पिछली तिमाही की तुलना में 1.46 प्रतिशत अधिक है। आधिकारिक प्रेस रिलीज में कहा गया है कि इससे कुल दूरसंचार घनत्व बढ़कर 86.09 प्रतिशत हो गया, जो पिछली तिमाही में 85.04 प्रतिशत था। जनसांख्यिकी के संदर्भ में, शहरी इंटरनेट ग्राहकों की संख्या लगभग 57.94 करोड़ है, जबकि ग्रामीण इंटरनेट ग्राहकों की संख्या 42.33 करोड़ है। आंकड़ों के अनुसार, वायरलेस सेवाओं के लिए मासिक औसत राजस्व प्रति उपयोगकर्ता (एआरपीयू) 186.62 रुपए है, जबकि प्रति वायरलेस ग्राहक औसत उपयोग मिनट (एमओयू) हर महीने 16.76 घंटे है। दूरसंचार क्षेत्र का सकल राजस्व 96,646 करोड़ रुपए तक पहुंच गया, जो पिछली तिमाही से 1.63 प्रतिशत कम है, लेकिन सालाना आधार पर 12.34 प्रतिशत अधिक है। समायोजित सकल राजस्व 81,325 करोड़ रुपए रहा, जो पिछली तिमाही से 2.65 प्रतिशत अधिक है। एक्सेस सेवाओं का समायोजित सकल राजस्व में 83.62 प्रतिशत का योगदान रहा है।
प्रेस रिलीज में आगे कहा गया है कि लाइसेंस शुल्क 2.63 प्रतिशत बढ़कर 6,506 करोड़ रुपए हो गया और पास-थ्रू शुल्क 19.45 प्रतिशत घटकर 10,457 करोड़ रुपए हो गया। सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय (एमआईबी) ने लगभग 912 निजी सैटेलाइट टीवी चैनलों को अपलिंकिंग या डाउनलिंकिंग या दोनों के लिए अनुमति दी है। भारत में डाउनलिंकिंग के लिए उपलब्ध 902 सैटेलाइट टीवी चैनलों में से, 30 जून, 2025 तक 333 सैटेलाइट पे टीवी चैनल हैं।
देश में सड़क दुर्घटनाओं से जीडीपी में 3 फीसदी का नुकसानः गडकरी
नयी दिल्ली। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क सुरक्षा को देश की प्राथमिकता बताते हुए गुरुवार को कहा कि देश में हर साल औसतन 4.80 से 5 लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिसमें लगभग 1.80 लाख लोगों की मौत हो जाती है। इन दुर्घटनाओं से जीडीपी को 3 फीसदी का नुकसान होता है, जो किसी बीमारी या युद्ध से भी अधिक है। गडकरी ने फिक्की के 7वें रोड सेफ्टी अवॉर्ड्स एंड सिम्पोजियम 2025- ‘विजन जीरो: लाइफ फर्स्ट, ऑलवेज’ कार्यक्रम में कहा कि सालाना होने वालाी सभी दुर्घटनाओं में 66.4 फीसदी मौतें 18 से 45 साल के युवाओं की होती हैं, जो देश के भविष्य के लिए गंभीर चिंता है। उन्होंने कहा कि सड़क दुर्घटनाओं में 18 साल से कम उम्र के 10 हजार बच्चों की सालाना मौत होती है, जो चिंता का विषय है। हेलमेट न पहनने से करीब 30,000 और सीट बेल्ट न लगाने से 16,000 मौतें सालाना होती हैं। इन आंकड़ों को कम करने के लिए सरकार ने नई बाइक खरीदने वालों को दो हेलमेट देने की अनिवार्यता लागू की है। साथ ही, जागरूकता फैलाने के लिए अमिताभ बच्चन के साथ सालाना कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि सड़क सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिए शंकर महादेवन का एक गीत 22 भाषाओं में अनुवादित कर स्कूली बच्चों तक पहुंचाया जा रहा है। इसके लिए बड़े पैमाने पर डिजिटल अभियान भी शुरू किया गया है। उन्होंने वाहन सुरक्षा को मजबूत करने के लिए ऑटोमोबाइल इंजीनियरिंग में सुधार का भी जिक्र किया। उन्होंने कहा कि ऑटोमोबाइल उद्योग में इस बदलाव से परफेक्शन आया है, जिससे वाहन दुर्घटनाओं में कमी की उम्मीद है। ट्रक ड्राइवरों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए जो 16-18 घंटे लगातार गाड़ी चलाते हैं, उनके केबिन में एसी अनिवार्य किया गया है। गर्मी और थकान से होने वाली अस्वस्थता को कम करने के लिए फटीग और स्लीप डिटेक्शन सिस्टम पर भी काम चल रहा है। उन्होंने बसों की सुरक्षा को लेकर कहा कि पहले बस बॉडी कोड में खामियां थीं, जिसे सुधारने में समय लगा। अब विश्वस्तरीय बस बॉडी कोड को अनिवार्य कर दिया गया है, ताकि यात्रियों की सुरक्षा सुनिश्चित हो। नेशनल हाई-वे पर हर दुर्घटना के कारणों का विश्लेषण कर सुधार की कोशिश की जा रही है। दुर्घटना पीड़ितों को तुरंत अस्पताल पहुंचाने वालों को प्रोत्साहित करने के लिए 25 हजार रुपये का इनाम और हर दुर्घटना में न्यूनतम 1.5 लाख रुपये या 7 दिन का अस्पताल खर्च बीमा में शामिल करने का फैसला लिया गया है।
हीटवेव को बंगाल में मिला प्राकृतिक आपदा का दर्जा
– मृतक के परिजनों को मिलेगा मुआवजा
कोलकाता । पश्चिम बंगाल सरकार ने हीटवेव से होने वाली मौतों को अब प्राकृतिक आपदा की श्रेणी में शामिल करते हुए पीड़ित परिवारों को २ लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्णय लिया है। राज्य सचिवालय सूत्रों के मुताबिक, हाल ही में हुई च्स्टेट एग्जीक्यूटिव कमेटीज् की बैठक में यह फैसला लिया गया। पिछले कुछ वर्षों में पुरुलिया, बांकुड़ा, पश्चिम मिदनापुर, झाड़ग्राम, पश्चिम बर्दवान और बीरभूम जैसे जिलों से हीटवेव और लू के कारण कई मौतों की खबरें सामने आई थीं। अगस्त में मुख्य सचिव मनोज पंत की अध्यक्षता में एक बैठक हुई थी, जिसमें तय किया गया कि हीटवेव या लू से मौत की स्थिति में भी परिवार को आर्थिक सहायता दी जाएगी। सरकार जल्द ही इस संबंध में औपचारिक अधिसूचना जारी करेगी। मुआवजा पाने के लिए पोस्टमार्टम रिपोर्ट अनिवार्य होगी और केवल यह पुष्टि होने के बाद कि मौत हीटस्ट्रोक से हुई है, राशि जारी की जाएगी। एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हीटवेव से मौतों को प्राकृतिक आपदा घोषित करने के बाद मुआवजा राशि राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष से दी जाएगी। इस कोष के वार्षिक आवंटन का करीब १० प्रतिशत हिस्सा ऐसी परिस्थितियों में खर्च किया जा सकता है। गौरतलब है कि अब तक राज्य सरकार बिजली गिरने, आगजनी, नाव हादसा, पेड़ गिरने और मकान ढहने जैसी घटनाओं में मौत होने पर दो लाख रुपये का मुआवजा देती रही है। इसके साथ ही, बंगाल सरकार ने अब कुल १४ तरह की घटनाओं को प्राकृतिक आपदा घोषित किया है, जिनमें हीटवेव, नदी कटाव, भारी बारिश, जंगली जानवरों का हमला, करंट लगना, जंगल में आग, जहरीले जीव-जंतु के काटने या हमले से मौत जैसी परिस्थितियां शामिल हैं।