Saturday, May 24, 2025
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मातृ दिवस विशेष : मां हैं आप……रखिए अपना ख्याल

मां बनना उन सुखद एहसासों में से एक है, जिसे हर महिला पूरे दिल से निभाना चाहती है, लेकिन कई बार इसके लिए सेहत को नजरअंदाज करने की कीमत भी चुकानी पड़ती है। हालांकि, अपना ख्याल रखने के लिए बहुत ज्यादा समय निकालने की जरूरत नहीं होती। बस इन बातों का ख्याल रखें –
रोज सुबह खुद के लिए निकालें 10 मिनट – भागदौड़ भरा दिन शुरू करने से पहले चाहे तो माइंडफुल ब्रीदिंग कर लें, स्ट्रेचिंग या फिर गरमागर्म चाय के कप के साथ शुरुआत करें। इन छोटे-छोटे पलों से आप बेहतर महसूस करते हैं और पूरे दिन की एक पॉजिटिव शुरुआत हो जाती है।
हाइड्रेट रहें और कोई भी मील छोडें नहीं – डिहाइड्रेशन और खाने का अनियमित पैटर्न थकान और चिड़चिड़ाहट पैदा कर सकता है। इसलिए एनर्जी के स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आस-पास पानी की बोटल और प्रोटीन से भरपूर स्नैक जैसे नट्स या दही रखें।
थोड़ा-थोड़ा मूव करते रहें -आपको पूरा वर्कआउट करने की जरूरत नहीं। सीढ़ियों से आना-जाना कर सकती हैं, वॉक करते हुए कॉल ले सकती हैं या फिर काम के बीच सिर्फ 5 मिनट की स्ट्रेचिंग कर सकती हैं। मूवमेंट करते रहने से मूड अच्छा रहता है और मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है।
नींद से कोई समझौता नहीं -7-8 घंटे की अच्छी नींद लें। अगर छोटे बच्चे के साथ ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा, तो जब बच्चा सो रहा हो तो बीच-बीच में नैप लेने की कोशिश करें या स्क्रीन पर वक्त बिताने की बजाय कोई सुकून देने वाले म्यूजिक के साथ खुद को आराम दें।
नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं – मांएं अक्सर अपनी ही सेहत को नजरअंदाज कर देती हैं। साल में एक बार गाइनेकोलॉजिस्ट को दिखाना, बीच-बीच में खुद अपने ब्रेस्ट जांचना, थायरॉइड या विटामिन- डी की जांच करवाना बेहद जरूरी है।
बिना झिझक मदद को कहें हां – मदद लेना और बीच-बीच में ब्रेक लेना स्वार्थी हो जाना नहीं हैं- यह बहुत जरूरी है। किसी भी बच्चे के लिए मेंटली और फिजिकली हेल्दी मांएं सबसे अच्छा तोहफा है।

प्रेरणा हैं कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह

पहलगाम में पर्यटकों की नृशंस हत्या करने के बदले में भारत की पाकिस्तान पर स्ट्राइक की सफलता की जानकारी देने वाली भारतीय सुरक्षा बलों की दो महिला सैन्य अधिकारियों ने देश में महिलाओं के विपरीत हालात के बीच महिला सशिक्तकरण का सशक्त उदाहरण पेश किया है। देश भर में चर्चित लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिय़ा क़ुरैशी और वायु सेना में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने साबित कर दिया कि महिलाएं अदम्य साहस के साथ किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। निश्चित तौर पर युद्ध जैसी स्थिति के दौरान इन दोनों सैन्य अधिकारियों ने जिस शानदार तरीके से स्ट्राइक का विवरण पेश किया, उससे न सिर्फ महिलाओं में उत्साह का संचार होगा बल्कि हर मुश्किल हालात से निपटने के लिए साहस का उद्गम होगा।  पुणे में साल 2016 में आसियान प्लस देशों का बहुराष्ट्रीय फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास फोर्स 18 में 40 सैनिकों की भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व सिग्नल कोर की महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिय़ा क़ुरैशी ने किया था। कुरैशी को बहुराष्ट्रीय अभ्यास में भारतीय सेना के प्रशिक्षण दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बनने का दुर्लभ गौरव हासिल हुआ। गुजरात निवासी सैन्य परिवार से आने वाली सोफिय़ा क़ुरैशी साल 1999 में 17 साल की उम्र में शॉर्ट सर्विस कमीशन के ज़रिए भारतीय सेना में आई थीं। उन्होंने छह साल तक संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भी काम किया। इसमें साल 2006 में कॉन्गो में एक उल्लेखनीय कार्यकाल शामिल है। उस वक़्त उनकी प्रमुख भूमिका शांति अभियान में ट्रेनिंग संबंधित योगदान देने की थी। सोफिया कुरेशी के अलावा ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी की ब्रीफिंग देने वाली विंग कमांडर व्योमिका सिंह दूसरी चर्चित अधिकारी थीं। व्योमिका सिंह भारतीय वायु सेना में हेलीकॉप्टर पायलट हैं। उनके नाम का मतलब ही आसमान से जोडऩे वाला है। नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) की कैडेट रही व्योमिका सिंह ने इंजीनियरिंग की। उन्हें साल 2019 में भारतीय वायुसेना के फ्लाइंग ब्रांच में पायलट के तौर पर परमानेंट कमीशन मिला। व्योमिका सिंह ने 2500 घंटों से ज्य़ादा उड़ान भरी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में मुश्किल हालात में चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टर उड़ाए हैं। उन्होंने कई बचाव अभियान में भी अहम भूमिका निभाई है। इनमें से एक ऑपरेशन अरुणाचल प्रदेश में नवंबर 2020 हुआ था। इन दोनों महिला सैन्य अधिकारियों ने जिस आत्मविश्वास और दृढ़ता से ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की गाथा पेश कि वह न सिर्फ देशवासियों के दिल-दिमाग में अमिट रहेगी बल्कि तमाम बाधाओं के बावजूद महिलाओं में आगे बढऩे की ललक कायम रखेगी। इनके जज्बे ने साबित कर दिया कि महिलाऐ देश में हर क्षेत्र में तरक्की का परचम लहरा रही हैं, चाहे वह क्षेत्र सैन्य जैसा चुनौतीपूर्ण और साहसिक क्षेत्र ही क्यों न हो। देश में महिला सशिक्तकरण की दिशा में इन दोनों महिलाओं का प्रदर्शन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। महिलाओं के सपने पूरा करने में मदद करेगा। देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं का अग्रणी प्रदर्शन विकसित बनने की दिशा में अग्रसर भारत की नई तस्वीर पेश करता है।

भारत का अपना देसी इंस्टेंट सुपर फूड सत्तू

सत्तू! नाम सुनते ही मुंह में एक देसी ठंडक सी घुल जाती है, जैसे गर्मी की तपती दोपहर में किसी ने ठंडे सत्तू का घड़ा थमा दिया हो। बिहार, उत्तर प्रदेश, और पूर्वांचल का ये सुपरफूड सिर्फ पेट की आग बुझाने का जुगाड़ नहीं, बल्कि सेहत का खजाना और इतिहास का एक ऐसा नायक है, जिसने सदियों से मेहनतकश लोगों का साथ निभाया है। आइए, सत्तू की इस रोचक यात्रा में गोता लगाएं, जहां हम इसके गुण, इतिहास, और फायदों को थोड़े मजे और ढेर सारी जानकारी के साथ खंगालेंगे।
सत्तू कोई फैंसी सुपरफूड नहीं, जो विदेशी लैब में बनता हो। ये है भुने हुए चने, जौ, या मिक्स अनाज को पीसकर बनाया गया पाउडर, जो बिहार की गलियों से लेकर यूपी के खेतों तक हर जगह राज करता है। इसे पानी या दूध में घोलकर पी सकते हैं, नमक-मिर्च डालकर तीखा बनाएं या गुड़ मिलाकर मीठा—सत्तू हर मूड का साथी है। गर्मियों में ठंडा सत्तू का शरबत और सर्दियों में सत्तू की लिट्टी-चोखा, ये तो बस ट्रेलर है, पूरी फिल्म तो इसके फायदों में छिपी है।
सत्तू को “गरीब का प्रोटीन शेक” भी कहते हैं, क्योंकि ये सस्ता, पौष्टिक, और इतना आसान है कि इसे बनाना किसी रॉकेट साइंस से कम नहीं, फिर भी हर गृहिणी इसे चुटकियों में तैयार कर लेती है। लेकिन सत्तू की सादगी के पीछे छिपा है इसका शाही इतिहास और गुणों का खजाना।
सत्तू का इतिहास: योद्धाओं का भोजन, किसानों का सहारा
सत्तू की कहानी उतनी ही पुरानी है, जितनी भारत की मिट्टी। प्राचीन काल में सत्तू योद्धाओं और यात्रियों का सबसे भरोसेमंद साथी था। भुने चने या जौ को पीसकर बनाया गया ये पाउडर हल्का, टिकाऊ, और पौष्टिक था। इसे पानी में घोलकर तुरंत ऊर्जा मिलती थी, इसलिए सैनिक इसे अपनी पोटली में बांधकर युद्ध के मैदान में ले जाते थे। महाभारत के दौर में भी सैनिकों के राशन में सत्तू का जिक्र मिलता है—सोचिए, अर्जुन भी शायद सत्तू का शरबत पीकर धनुष उठाता होगा!
मध्यकाल में सत्तू किसानों और मजदूरों का सबसे बड़ा सहारा बन गया। खेतों में दिनभर मेहनत करने वाले लोग सत्तू को पानी में घोलकर पीते और घंटों तक भूख-प्यास को बाय-बाय कहते। बिहार और यूपी के गांवों में आज भी सत्तू को “पूरा खाना” माना जाता है, क्योंकि ये पेट भरता है, जेब नहीं खाली करता।
19वीं सदी में जब बिहार और पूर्वांचल के मजदूर ब्रिटिश जहाजों में कैरिबियन और फिजी जैसे देशों में गए, तो सत्तू उनकी थैली में था। ये सत्तू ही था, जो उन्हें लंबी समुद्री यात्राओं में ताकत देता रहा। आज भी बिहार के हर घर में सत्तू की थैली मिल जाएगी, जैसे कोई पुश्तैनी खजाना हो।
सत्तू के गुण: देसी सुपरफूड की ताकत
सत्तू की ताकत को समझने के लिए किसी न्यूट्रिशनिस्ट की डिग्री की जरूरत नहीं। ये सादा सा पाउडर अपने आप में एक पावरहाउस है। आइए, इसके गुणों पर नजर डालें:
प्रोटीन का खजाना: सत्तू में 20-25% प्रोटीन होता है, जो इसे शाकाहारी लोगों के लिए जिम वालों के प्रोटीन शेक का देसी जवाब बनाता है। चने और जौ से बना सत्तू मांसपेशियों को मजबूत करता है और शरीर को ताकत देता है।
फाइबर का फंडा: सत्तू में ढेर सारा फाइबर होता है, जो पाचन को दुरुस्त रखता है। कब्ज की शिकायत? सत्तू का शरबत पीजिए, और अलविदा कहिए पेट की परेशानियों को।
कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स: सत्तू धीरे-धीरे ऊर्जा रिलीज करता है, जिससे ब्लड शुगर लेवल कंट्रोल रहता है। डायबिटीज वालों के लिए ये किसी जादुई औषधि से कम नहीं।
विटामिन और मिनरल्स: सत्तू में आयरन, मैग्नीशियम, और बी-कॉम्प्लेक्स विटामिन्स होते हैं, जो खून की कमी को दूर करते हैं और थकान को भगाते हैं।
कैलोरी का कंट्रोल: सत्तू कम कैलोरी वाला, लेकिन पेट भरने वाला फूड है। वजन घटाने की सोच रहे हैं? सत्तू आपका दोस्त बन सकता है।
हाइड्रेशन का हीरो: गर्मियों में सत्तू का शरबत शरीर को ठंडा रखता है और डिहाइड्रेशन से बचाता है। नींबू, नमक, और जीरा डालकर पीजिए, लू भी शरमाएगी।
सत्तू के फायदे: सेहत, स्वाद, और जेब का दोस्त
सत्तू सिर्फ पेट भरने की मशीन नहीं, ये सेहत का ऐसा खजाना है, जो स्वाद और जेब दोनों को खुश रखता है। आइए, इसके फायदों की माला जपें:
ऊर्जा से भरपूर: सत्तू में कार्बोहाइड्रेट और प्रोटीन का कॉम्बो तुरंत एनर्जी देता है। सुबह का नाश्ता भूल गए? एक गिलास सत्तू का शरबत पीजिए, और दिनभर की बैटरी चार्ज।
पाचन का मसीहा: सत्तू का फाइबर पेट को साफ रखता है और आंतों को खुश। अगर आपका पेट रोज सुबह नखरे करता है, तो सत्तू को अपना गुरु मान लीजिए।
गर्मी का दुश्मन: तपती गर्मी में सत्तू का ठंडा शरबत किसी अमृत से कम नहीं। ये शरीर को हाइड्रेट रखता है और लू से बचाता है।
डायबिटीज का दोस्त: सत्तू का कम ग्लाइसेमिक इंडेक्स ब्लड शुगर को कंट्रोल करता है। डायबिटीज के मरीजों के लिए ये मीठा नहीं, लेकिन मीठी जिंदगी का रास्ता जरूर है।
वजन घटाने का जादू: सत्तू कम कैलोरी में पेट भरता है, जिससे भूख कम लगती है। जिम में पसीना बहाने से पहले सत्तू का शरबत पीजिए, और वजन को अलविदा कहिए।
खून की कमी का इलाज: सत्तू में आयरन और फोलिक एसिड होता है, जो एनीमिया से लड़ता है। खासकर महिलाओं के लिए ये किसी वरदान से कम नहीं।
जेब का दोस्त: सत्तू सस्ता, टिकाऊ, और आसानी से मिलने वाला है। विदेशी सुपरफूड्स की चमक छोड़िए, सत्तू देसी सुपरहीरो है।
सत्तू का स्वाद: लिट्टी-चोखा से लेकर आधुनिक आहार तक
सत्तू सिर्फ शरबत तक सीमित नहीं। बिहार में सत्तू की लिट्टी-चोखा तो ऐसा व्यंजन है, जिसके सामने फाइव-स्टार मेन्यू भी फीका पड़ जाए। सत्तू को पराठे में भरकर, लड्डू बनाकर, या फिर नमकीन स्नैक के तौर पर खाया जाता है। आजकल मॉडर्न कैफे में सत्तू स्मूदी और सत्तू प्रोटीन बार भी ट्रेंड में हैं।
बिहार में सत्तू सिर्फ खाना नहीं, संस्कृति है। शादी-ब्याह में सत्तू की मिठाई, खेतों में सत्तू का शरबत, और बच्चों के टिफिन में सत्तू का लड्डू—ये सब बिहारी जिंदगी का हिस्सा है। सत्तू को “सात सूखे अनाज” से जोड़कर देखा जाता है, जो सात्विक भोजन का प्रतीक है। गांवों में आज भी बुजुर्ग कहते हैं, “सत्तू खा लो, सात दिन तक भूख नहीं लगेगी।”
सत्तू कोई साधारण अनाज नहीं, ये बिहार की मिट्टी से निकला वो हीरा है, जो सदियों से योद्धाओं, किसानों, और आम लोगों का साथी रहा है। इसका इतिहास हमें मेहनत और सादगी की कहानी सुनाता है, इसके गुण सेहत को चमकाते हैं, और इसके फायदे जेब को हल्का नहीं होने देते। गर्मी में ठंडक, भूख में ताकत, और बीमारी में दवा—सत्तू हर रूप में कमाल है। तो अगली बार जब आप सत्तू का शरबत बनाएं, तो उसे सिर्फ प्यास बुझाने का जुगाड़ न समझें। ये वो देसी सुपरफूड है, जो आपके शरीर को ताकत, दिमाग को ठंडक, और दिल को बिहारी गर्व देगा।

(साभार -मेराज नूरी की फेसबुक पोस्ट)

ऑपरेशन सिंदूर …..भारत के पराक्रम की अद्भुत कहानी – भाग -1

नयी दिल्ली । पहलगाम हमले का बदला ले लिया गया। मात्र 25 मिनट के ऑपरेशन सिन्दूर ने पाकिस्तान में कोहराम मचा दिया। जैश –ए- मोहम्मद, लश्कर –ए-तयबा व हिजबुल मुजाहिदीन के 9 ठिकानों को भारतीय फौज ने देर रात ठिकाने लगा दिया। फौज की इस सफलता पर मोदी कैबिनेट ने मेजें थपथपाकर जहां साधुवाद दिया, वहीं रक्षामंत्री राजनाथ सिंह ने हनुमान जी के आदर्शों के पालन की बात कही। छोटे-छोटे एटम बम रखने का दावा करने वाली पाकिस्तान सरकार दिन भर मायूसी की चादर में लिपटी रही। इस बीच जैश के नेता मसूद अजहर के 14 परिजनों के मारे जाने की पुष्टि हुई है।
हनुमान जी के आदर्श का पालन किया : राजनाथ
रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने बुधवार को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के जवाब में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ पर रिएक्शन दिया। उन्होंने सेना की प्रशंसा करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन में भारतीय सेना ने सभी भारतवासियों का मस्तक ऊंचा किया है। भारतीय सेनाओं ने अपने शौर्य और पराक्रम का परिचय देते हुए एक नया इतिहास रच दिया है। उन्होंने कहा कि हमने हनुमान जी के उस आदर्श का पालन किया है, जो उन्होंने अशोक वाटिका उजाड़ते हुए किया था। हमने केवल उन्हीं को मारा, जिन्होंने हमारे मासूमों को मारा। उन्होंने आगे कहा कि भारत की सेना ने सटीकता, सतर्कता और संवेदनशीलता के साथ कार्रवाई की है। हमने जो लक्ष्य तय किए थे, उन्हें ठीक समय, तय योजना के अनुसार सटीकता के साथ ध्वस्त किया है और किसी भी नागरिक ठिकाने को प्रभावित न होने देने की संवेदनशीलता भी हमारी सेना ने दिखाई है। इस दौरान रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने ‘भारत माता की जय’ के नारे भी लगाए।
पीएम ने राष्ट्रपति को दी ऑपरेशन की जानकारी
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने बुधवार को राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात कर उन्हें पाकिस्तान में आतंकी ठिकानों पर भारत की ऐतिहासिक सैन्य कार्रवाई के लिए चलाए गए ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी दी। राष्ट्रपति भवन ने दोनों नेताओं की मुलाकात की तस्वीर एक्स हैंडल पर साझा करते हुए लिखा, “प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु से मुलाकात की और उन्हें ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी दी।”इससे पहले प्रधानमंत्री ने कैबिनेट की बैठक में अपने सहयोगियों को ऑपरेशन सिंदूर के बारे में जानकारी दी और इसे देश के लिए गर्व का क्षण बताया। बैठक की शुरुआत में सभी मंत्रियों ने पाकिस्तान और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में नौ आतंकी शिविरों पर सटीक सैन्य हमला कर बर्बाद करने के लिए प्रधानमंत्री मोदी को बधाई दी।
भारत ने बंद किया करतारपुर कॉरिडोर
पहलगाम हमले के जवाब में भारत ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के तहत पाकिस्तान स्थित नौ आतंकी ठिकानों को तबाह कर दिया है। इस कार्रवाई के बीच, गृह मंत्रालय ने बुधवार को घोषणा की है कि भारत ने अगले आदेश तक करतारपुर कॉरिडोर को बंद कर दिया है। पंजाब के गुरदासपुर के डिप्टी कमिश्नर दलविंदरजीत सिंह ने मीडिया को बताया कि कॉरिडोर एक दिन के लिए बंद रहेगा।उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन को आने वाले दिनों के लिए सरकार से कोई आदेश नहीं मिला है। पाकिस्तान के नरोवाल जिले में ऐतिहासिक श्री दरबार साहिब गुरुद्वारे की तीर्थयात्रा के लिए करीब 150 भारतीय तीर्थयात्री इंटीग्रेटेड चेक पोस्ट (आईसीपी) पर पहुंचे थे, लेकिन बाद में उन्हें घर लौटने के लिए कहा गया।गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक में स्थित आईसीपी करतारपुर कॉरिडोर तक पहुंच की सुविधा प्रदान करता है।
विश्व नेताओं को विदेश मंत्री ने दी जानकारी
पाकिस्तानी आतंकी ठिकानों पर सैन्य कार्रवाई के बाद विदेश मंत्री डॉ. एस. जयशंकर ने विश्व के कई प्रमुख नेताओं से बातचीत की और भारत की स्थिति स्पष्ट की। इन बातचीतों का उद्देश्य भारत की आतंक पर की गई सटीक एवं निर्णायक कार्रवाई की जानकारी देना और आतंक के खिलाफ लड़ाई को मजबूत करना था। विदेश मंत्री ने एक्स पोस्ट में विश्व नेताओं से बातचीत की जानकारी दी। डॉ. जयशंकर ने कतर के प्रधानमंत्री एवं विदेश मंत्री मोहम्मद बिन अब्दुलरहमान बिन जस्सिम बिन जाबिर अल थानी से बातचीत की। जापान के विदेश मंत्री ताकेशी इवाया के साथ हुई बातचीत में डॉ. जयशंकर ने 22 अप्रैल को हुए आतंकी हमले की कड़ी निंदा के लिए जापान का आभार व्यक्त किया।
इसके अतिरिक्त, फ्रांस के विदेश मंत्री जीन-नोएल बैरो और जर्मनी के विदेश मंत्री योहान वेडेपफुल के साथ संयुक्त टेलीफोन वार्ता में डॉ. जयशंकर ने पहलगाम आतंकी हमले के बाद उनके समर्थन के लिए धन्यवाद दिया और आतंकवाद के प्रति ‘शून्य सहिष्णुता’ की नीति पर चर्चा की। स्पेन के विदेश मंत्री होसे मैनुएल अलबारेस के साथ भी बातचीत हुई जिसमें डॉ. जयशंकर ने भारत की दृढ़ और संतुलित सैन्य प्रतिक्रिया को रेखांकित किया।
मसूद अजहर की मां समेत 14 परिजनों की मौत
पाकिस्तान की संघीय सरकार ने माना है कि भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में उनके यहां के 26 लोग मारे गए हैं। दावा किया जा रहा है कि इनमें आतंकी संगठन जैश ए मोहम्मद के प्रमुख मसूद अजहर की मां के अलावा परिवार के अन्य सदस्य भी शामिल हैं। भारत के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ में आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद को बड़ा झटका लगा है। इस हमले में खुद जैश प्रमुख मसूद अजहर के परिवार के 10 सदस्य और उसके चार करीबी सहयोगी मारे गए हैं। खुद अजहर ने इसकी पुष्टि करते हुए दुख जताया और कहा कि अच्छा होता, वो खुद इस हमले में मारा जाता। मसूद अजहर ने एक बयान में बताया कि इस हमले में उसकी बड़ी बहन, मौलाना कशफ का पूरा परिवार, मुफ्ती अब्दुल रऊफ के पोते-पोतियां और बाजी सादिया के पति समेत कई करीबी मारे गए हैं। उसकी सबसे बड़ी बेटी के चार बच्चे गंभीर रूप से घायल हैं। जैश के मुताबिक, मारे गए अधिकतर लोग महिलाएं और बच्चे हैं।
भारत ने पाक का एयर डिफेंस सिस्टम ध्वस्त किया
भारत ने पाकिस्तान की तरफ से बड़े मिसाइल और ड्रोन हमले की कोशिश को नाकाम कर दिया है। भारत की तरफ से जवाबी हमले में पाकिस्तान का एयर डिफेंस सिस्टम पूरी तरह से बर्बाद हो गया है। रिपोर्ट के अनुसार पाकिस्तान ने भारत के 15 शहरों में सैन्य ठिकानों पर हमले की कोशिश की थी। इसके जवाब में भारत की कार्रवाई में लाहौर में एयर डिफेंस सिस्टम को पूरी तरह से बर्बाद कर दिया है। पाकिस्तान की तरफ से जम्मू, अवंतीपोरा, अमृतसर, जालंधर, आदमपुर, लुधियाना, पठानकोट, बठिंडा, चंडीगढ़ समेत 15 शहरों पर हमले की कोशिश की थी। भारत ने पाकिस्तान की मिसाइलों को मार गिराया। गुरुवार की सुबह, भारतीय सशस्त्र बलों ने पाकिस्तान में कई स्थानों पर एयर डिफेंस रडार और सिस्टम को निशाना बनाया। भारत की प्रतिक्रिया भी पाकिस्तान की ही तरह उसी तीव्रता के साथ रही है। भारतीय वायुसेना की एस-400 सुदर्शन चक्र वायु रक्षा मिसाइल प्रणाली को कल रात भारत की ओर बढ़ रहे लक्ष्यों पर दागा गया। कई डोमेन विशेषज्ञों ने एएनआई को बताया कि अभियान में लक्ष्यों को सफलतापूर्वक नष्ट कर दिया गया। आधिकारिक सरकारी पुष्टि का इंतजार है। इस तरह पाकिस्तान के हमले के बाद भारत ने आतंकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दिया है। पाकिस्तान के कई शहरों में विस्फोट की खबर है। लाहौर व कराची के अतिरिक्त चकवाल, घोटकी, गूजरांवाला और उमरकोट जैसे शहरों से भी ड्रोन विस्फोट की खबरें सामने आ रही हैं. अब तक कुल 12 धमाके हो चुके हैं, जिनमें से तीन सिर्फ लाहौर में हुए हैं। लाहौर के एक सैन्य ठिकाने के पास भी ड्रोन ब्लास्ट की पुष्टि हुई है। इन हमलों ने पाकिस्तान के एयर डिफेंस सिस्टम की कमजोरी को उजागर कर दिया है। हाल में पकिस्तान में चैम्पियंस ट्रॉफी के मद्देनजर रावलपिंडी स्टेडियम का पुनरुद्धार किया गया था लेकिन अब यह तबाह हो गया है।
400 ड्रोन भारत ने मार गिराए
36 जगहों को निशाना बनाने की कोशिश की और 300 से 400 ड्रोन दागे। हमले में तुर्की के हथियार इस्तेमाल किये गये। विदेश सचिव विक्रम मिसरी, कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने ऑपरेशन सिंदूर को लेकर नई जानकारी दी। कर्नल सोफिया कुरैशी ने कहा कि 7 और 8 मई की रात को पाकिस्तानी सेना ने सैन्य बुनियादी ढांचे को निशाना बनाने के इरादे से पूरी पश्चिमी सीमा पर कई बार भारतीय हवाई क्षेत्र का उल्लंघन किया। इतना ही नहीं, पाकिस्तानी सेना ने नियंत्रण रेखा पर भारी कैलिबर के हथियारों से भी गोलीबारी की। 36 स्थानों पर घुसपैठ की कोशिश करने के लिए लगभग 300 से 400 ड्रोन का इस्तेमाल किया गया। भारतीय सशस्त्र बलों ने गतिज और गैर-गतिज साधनों का उपयोग करके इनमें से कई ड्रोन को मार गिराया। इस तरह के बड़े पैमाने पर हवाई घुसपैठ का संभावित उद्देश्य वायु रक्षा प्रणालियों का परीक्षण करना और खुफिया जानकारी एकत्र करना था। ड्रोन के मलबे की फोरेंसिक जांच की जा रही है। शुरुआती रिपोर्टों से पता चलता है कि वे तुर्की असिसगार्ड सोंगर ड्रोन हैं। भारत से बार-बार पिटने के बाद पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अब अपनों के निशाने पर आ गए हैं। पाकिस्तान की संसद में शहबाज शरीफ की तुलना गीदड़ से की जा रही है। उन्हें बुजदिल कहा जा रहा है। ये सब आज शुक्रवार को हुआ, जब कुछ घंटे पहले ही सुबह तड़के भारत से भेजे गए ड्रोन ने पाकिस्तान के इस्लामाबाद, लाहौर, सियालकोट समेत कई शहरों को निशाना बनाया। शुक्रवार को पाकिस्तान की नेशनल एसेंबली (संसद) में एक सांसद ने शहबाज शरीफ पर हमला बोला और कहा कि उनकी तरफ से भारत को लेकर एक भी बयान नहीं आया। पाकिस्तानी सांसद ने कहा, मुझे टीपू सुल्तान का एक बयान याद आ रहा है। अगर एक लश्कर (सैन्य टुकड़ी) जिसका सरदार शेर हो और उस लश्कर में गीदड़ हों तो वो सभी शेर की तरह लड़ते हैं। वहीं, अगर शेरों के लश्कर का सरदार अगर गीदड़ हो तो वे नहीं लड़ सकते। वे जंगे हार जाते हैं।’
पाकिस्तानी सांसद इतने पर ही नहीं रुके। उन्होंने शहबाज शरीफ को बुजदिल बता डाला। पाकिस्तानी सांसद ने आगे कहा कि इस वक्त बॉर्डर पर खड़ा फौजी हमारी तरफ उम्मीद से देख रहा है। देश का प्रधानमंत्री आईना होता है। वो उसकी तरफ देख रहा है कि हमारा लीडर दिलेरी से मुकाबला करेगा। उन्होंने कहा कि जब देश का प्रधानमंत्री बुजदिल हो.. मोदी का नाम तक न ले सके, वो बॉर्डर पर खड़े फौजी को क्या पैगाम देगा?

नागरिक विमानों को ढाल बना रहा पाक : विक्रम मिसरी
विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने कहा कि पाकिस्तान द्वारा कल रात की गई ये भड़काऊ और आक्रामक कार्रवाइयां भारतीय शहरों और नागरिक बुनियादी ढांचे के अलावा सैन्य प्रतिष्ठानों को निशाना बनाकर की गईं। भारतीय सशस्त्र बलों ने आनुपातिक, पर्याप्त और जिम्मेदारी से जवाब दिया… पाकिस्तान द्वारा किए गए इन हमलों का पाकिस्तानी राज्य मशीनरी द्वारा आधिकारिक और स्पष्ट रूप से हास्यास्पद खंडन उनके कपट और उनकी नई गहराई का एक और उदाहरण है। विक्रम मिसरी ने प्रेस ब्रीफिंग में बताया कि पाकिस्तान ने भारत के खिलाफ उकसावे वाली सैन्य कार्रवाई करते हुए कंधार, उरी, पुंछ, राजौरी, अखनूर और उधमपुर जैसे एलओसी से सटे क्षेत्रों में गोलाबारी की है। इस हमले में भारतीय सुरक्षाबलों को कुछ नुकसान हुआ और चोटें पहुंची हैं, हालांकि जवाबी कार्रवाई में पाकिस्तानी सेना को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा है। मिसरी ने यह भी कहा कि पाकिस्तान ने ड्रोन हमले की असफल कोशिश करने के बावजूद अपने नागरिक हवाई क्षेत्र को बंद नहीं किया, जो कि एक खतरनाक और गैर-जिम्मेदाराना कदम है। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान नागरिक विमानों को ढाल के रूप में इस्तेमाल कर रहा है, जिससे न केवल पाकिस्तान बल्कि इंटरनेशनल फ्लाइट्स की सुरक्षा भी खतरे में पड़ गई है. हराई का एक और उदाहरण है।
चारों तरफ से घिरा पाकिस्तान
पाकिस्तान के लिए आतंकवाद गले की हड्डी बन गया है। पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान के ‘पेंच टाइट’ कर दिए हैं। पाकिस्तान अब चारों तरफ से घिर गया है। एक-एक पैसे को मुहताज इस मुल्क को अब समझ नहीं आ रहा है कि इस मुश्किल से कैसे निकला जाए।
पहलगाम हमले के बाद भारत ने पाकिस्तान को सबक सिखाने की ठान ली है। भारत ने सीमा पर घेराबंदी करने के साथ ही कई ऐसी पाबंदियां लगाई हैं, जिसके बारे में पाकिस्तान ने सोचा तक नहीं था। हर रोज भारत सरकार ‘आतंकिस्तान’ के खिलाफ सख्त फैसले ले रही है। पाकिस्तान अब चौतरफा घिर गया है। PoK और अरब सागर में भारत ने पाकिस्तान को घेर लिया है। खैबर पख्तूनख्वा में तहरीक-ए तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) हमलावार है और बलूचिस्तान में बलूच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) ने पसीने छुड़ाए हुए हैं। बलूच लिबरेशन आर्मी ने बलूचिस्तान में लगातार पाकिस्तान सेना की नाक में दम किया हुआ है। बलूच लड़ाके कभी भी पाकिस्तानी सेना को निशाना बना लेते हैं। अब खबर है कि बलूच विद्रोहियों ने बलूचिस्तान के कलात और मंगोचेर शहर पर अपना कब्जा जमा लिया है। बीएलए के डेथ स्क्वॉड ने सरकारी परिसरों पर कब्जा कर लिया है। कुछ सैन्य और सरकारी अधिकारियों को बंधक भी बनाया है। यह बीएलए द्वारा हाल ही में किए गए हमलों के बाद हुआ है, जिसमें एक आईईडी हमला भी शामिल है जिसमें 10 पाकिस्तानी सैन्यकर्मी मारे गए थे। बीएलए ने हाल के महीनों में अपना संघर्ष तेज किया है। बीएलए पाकिस्तानी सेना के खिलाफ अपने अभियानों में और भी आक्रामक हो गया है। बलूचिस्तान में बीएलए ने पाक फौज की चौकियां तबाह की है। पाकिस्तान सेना ने खबर को दबाने की पूरी कोशिश की है। बलूचिस्तान में इंटरनेट सेवा भी बंद की गई है। बीएलए ने पाक सेना के शिविर पर हमला किया है। सरकारी इमारतों पर कब्जा कर आग के हवाले कर दिया है। गिलगित-बाल्टिस्तान में पाकिस्तान सेना का विरोध हो रहा है। पाकिस्तानी सेना को स्थानीय लोगों ने ही खदेड़ लिया है। जिसके बाद वहां फौजियों की तैनात बढ़ाई गई है।

लिटिल थेस्पियन का 30वा रंग अड्डा सम्पन्न

कोलकाता । बंगाल में हिंदी और उर्दू रंगमंच के लिए विख्यात नाट्य संस्था लिटिल थेस्पियन ने गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज के हिंदी विभाग के सहयोग से अपना 30वा रंग अड्डा, 6 मई 2025 को कॉलेज परिसर में सफलतापूर्वक आयोजित किया। इस कार्यक्रम का केंद्र बिंदु प्रसिद्ध नाटककार भवभूति, भास, बेर्टोल्ट ब्रेख्त और कालिदास की रचनाएँ थीं। इस रंग अड्डा की मुख्य विशेषता यह रही कि छात्रों का पारंपरिक संस्कृत नाटककारों में अनुसंधान की रुचि बढ़े । छठे और दूसरे सेमेस्टर के छात्रों ने इस रंग अड्डा में भाग लिया। हिंदी विभाग के छात्रों द्वारा स्वागत समारोह के बाद, रंग अड्डा में निम्नलिखित लेख प्रस्तुतियाँ दी गईं: भवभूति की नाट्य कला (अपर्णा बिस्वास, सेमेस्टर 6), भास के नाटकों की भाषा शैली (सुप्रिया चौधरी, सेमेस्टर 6), ब्रेख्त की नाट्य कला (दृष्टि कुमारी, सेमेस्टर 2), ब्रेख्त की कविताएँ (अनिशा बैथा, सेमेस्टर 2)। कालिदास का नाटक ‘अभिज्ञान शाकुन्तलम्’ का मोहन राकेश द्वारा हिंदी रूपांतरण ‘शाकुन्तल’ का संक्षिप्त सार लिटिल थेस्पियन की पार्वती कुमारी शॉ द्वारा प्रस्तुत किया गया। कार्यक्रम का समापन ‘शाकुन्तल’ नाटक के सातवें दृश्य का नाटकीय वाचन के साथ हुआ, जिसे लिटिल थेस्पियन के प्रतिभाशाली कलाकारों ने प्रस्तुत किया: संगीता व्यास, हिना परवेज़, सुधा गौड़, मोहम्मद आसिफ़ अंसारी, विशाल कुमार राउत, नव्या शंकर और गुंजन अज़हर।
इस अवसर पर अमर कुमार चौधरी (हिंदी विभाग, गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज) और छात्र उपस्थित थे। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. रेशमी पंडा मुखर्जी (एसोसिएट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, गोखले मेमोरियल गर्ल्स कॉलेज) द्वारा दिया गया।
इस तरह लिटिल थेस्पियन की संस्थापिका उमा झुनझुनवाला के मार्गदर्शन में लिटिल थेस्पियन युवा पीढ़ी को रंगमंच के प्रति जागरूक कर रहा है।

महिला सैन्य अधिकारियों का मनोबल नहीं गिराना चाहिए : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को केंद्र से कहा कि वह उन अल्प सेवा कमीशन (शॉर्ट सर्विस कमीशन) महिला सैन्य अधिकारियों को सेवा से मुक्त न करे जिन्होंने उन्हें स्थायी कमीशन देने से इनकार किए जाने के फैसले को चुनौती दी है। कोर्ट ने कहा कि ‘‘मौजूदा स्थिति में उनका मनोबल नहीं गिराया’’ जाना चाहिए। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की बेंच ने 69 अधिकारियों द्वारा दायर याचिकाओं को अगस्त में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करते हुए कहा कि अगली सुनवाई तक उन्हें सेवा से मुक्त नहीं किया जाना चाहिए। जस्टिस चंद्रकांत ने कहा कि मौजूदा स्थिति में हमें उनका मनोबल नहीं गिराना चाहिए। वे प्रतिभाशाली अधिकारी हैं, आप उनकी सेवाएं कहीं और ले सकते हैं। यह समय नहीं है कि उन्हें सुप्रीम कोर्ट में इधर-उधर भटकने के लिए कहा जाए।’’ केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि यह सशस्त्र बलों को युवा बनाए रखने की नीति पर आधारित एक प्रशासनिक निर्णय था। उन्होंने शीर्ष अदालत से उन्हें सेवा मुक्त किए जाने पर कोई रोक नहीं लगाने का आग्रह करते हुए कहा कि भारतीय सेना को युवा अधिकारियों की आवश्यकता है और हर साल केवल 250 कर्मियों को स्थायी कमीशन दिया जाना है। कर्नल गीता शर्मा की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कर्नल सोफिया कुरैशी के मामले का उल्लेख किया, जो उन 2 महिला अधिकारियों में से एक हैं जिन्होंने 7 और 8 मई को ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के बारे में मीडिया को जानकारी दी थी। गुरुस्वामी ने कहा कि कर्नल कुरैशी को स्थायी कमीशन से संबंधित इसी तरह की राहत के लिए इस अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा था और अब उन्होंने देश को गौरवान्वित किया है। बेंच ने कहा कि शीर्ष अदालत के समक्ष जो मामला है, वह पूरी तरह कानूनी है और इसका अधिकारियों की उपलब्धियों से कोई लेना-देना नहीं है। शीर्ष अदालत ने 17 फरवरी, 2020 को कहा था कि सेना में स्टाफ नियुक्तियों को छोड़कर सभी पदों से महिलाओं को पूरी तरह बाहर रखे जाने के कदम का बचाव नहीं किया जा सकता और कमांड नियुक्तियों के लिए उन पर बिना किसी औचित्य के कतई विचार न करने का कदम कानून के तहत बरकरार नहीं रखा जा सकता।

चुरका मुर्मू… पाकिस्तान से युद्ध के गुमनाम नायक

कश्मीर के पहलगाम में इस्लामिक आतंकवादियों के हमले में 26 नागरिकों के मारे जाने के बाद भारत-पाकिस्तान के बीच एक बार फिर तनाव चरम पर है। ऐसे समय में देश की सुरक्षा के लिए अपने प्राण न्यौछावर करने वाले वीरों को याद करना और भी जरूरी हो जाता है। चलिए आज हम एक ऐसे गुमनाम देशभक्त बलिदानी के बारे में आपको बताते हैं, जिन्होंने आज से करीब 54‌ साल पहले 1971 में इसी पाकिस्तान सेना का न केवल डटकर मुकाबला किया, बल्कि अपने साहस से हमेशा के लिए अमर हो गए। ये गुमनाम लेकिन प्रेरणादायक नाम है – चूड़का मुर्मू।चूड़का मुर्मू वह साहसी युवक था जिसने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति संग्राम के दौरान पश्चिम बंगाल के सीमावर्ती चाक रामप्रसाद गांव में पाकिस्तानी सेना से लोहा लेते हुए वीरगति प्राप्त की। 2 जुलाई 1951 को तत्कालीन पश्चिम मेदिनीपुर जिले के चक्रमप्रसाद गांव में संथाल जनजाति में जन्मे चुड़का मुर्मू तब महज 20 साल के थे और एक एक होनहार छात्र थे। लेकिन जब गांव पर खतरा मंडराने लगा, तो वह अपने कंधों पर देशभक्ति का दायित्व लेकर आगे बढ़ गए।राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अखिल भारतीय सह प्रचारक प्रमुख रहे अद्वैतचरण दत्त अपनी किताब “अमर शहीद चुड़का मुर्मू” में लिखते हैं, “18 अगस्त 1971 को तड़के ‌ 4:30 बजे लगभग 60 70 पाकिस्तानी सैनिक ‘मुक्ति बहिनी’ का भेष धारण कर चाक रामप्रसाद गांव में घुस आई और बीएसएफ कैंप पर हमला कर दिया। गांव में हड़कंप मच गया, लोग जान बचाकर भागने लगे। लेकिन युवा चूड़का डटा रहा। उसने न केवल गांववालों को चेताया, बल्कि बीएसएफ को भी समय रहते जानकारी दी। तब वहां बीएसएफ के जवानों की संख्या सिर्फ चार थी। जब जवानों को गोला-बारूद ढोने में मदद की जरूरत पड़ी, तो चूड़का ने दो दोस्तों के साथ खुद को इस काम में झोंक दिया।जब पाकिस्तानी सेना ने उन्हें चारों तरफ से घेर लिया, तो उसके साथी भाग निकले और बीएसएफ जवान ने हथियार डाल दिए। लेकिन चूड़का न भागा, न झुका। वह गोला-बारूद लेकर रेंगता हुआ खेतों के बीच पहुंचा और एक-एक कर उन्हें पास के तालाब में फेंकने लगा, ताकि दुश्मनों के हाथ न लगें। अंतिम बॉक्स फेंकते समय वह तालाब में गिर पड़ा, और तभी पाकिस्तानी गोलियों का शिकार बन गया। देश ने युद्ध जीता, बांग्लादेश को आजादी मिली, लेकिन चूड़का मुर्मू ने अपने प्राणों की आहुति देकर मातृभूमि के लिए सर्वोच्च बलिदान दे दिया।अद्वैत चरण दत्त अपनी किताब में लिखते हैं कि जब पाकिस्तानी सैनिकों ने गांव में घुसकर हमले शुरू किया तो बाकी गांव वालों के साथ चूड़का के गुरु हरेन चक्रवर्ती भी वहां से भागने वाले थे। लेकिन तभी चूड़का ने उन्हें रोकते हुए कहा, “मास्टर सब क्या आप भी भागेंगे?” अपने छात्र की ये दृढ़ता और साहस देखकर गुरु चौंक उठे थे और गर्व से भर गए थे।”वर्ष 1982 से ‘चूड़का मुर्मू स्मृति समिति’ हर साल ‘चूड़का मुर्मू आत्म बलिदान दिवस’ मनाती है। इस अवसर पर कबड्डी और तीरंदाजी प्रतियोगिताओं के साथ-साथ मेधावी छात्रों को छात्रवृत्ति देकर नई पीढ़ी में देशभक्ति की भावना जगाई जाती है। वर्ष 2016 में एक ऐतिहासिक पल देखने को मिला, जब पहली बार किसी केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया (केंद्रीय कृषि और संसदीय कार्य राज्य मंत्री) ने गांव पहुंचकर शहीद चूड़का मुर्मू को श्रद्धांजलि अर्पित की थी। स्वयंसेवक चूड़का मुर्मू अद्वैत चरण दत्त अपनी किताब में लिखते हैं कि देश के लिए पाकिस्तानी सेना से भिड़ जाने वाले चूड़का मुर्मू राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवक थे। उन्होंने इस बात का भी जिक्र किया है कि शायद इसी वजह से उनके बलिदान को आज तक सरकारी पहचान नहीं मिल पाई है। किताब के जरिए उन्होंने लिखा है कि चूड़का के बलिदान की गाथा इतिहास के पन्नों में दर्ज है किंतु सरकारी अभिलेखों में नहीं। हम मांग करते हैं कि सरकार अभिलंब उन्हें उचित सम्मान प्रदान करे। दरअसल संघ की शाखाओं से मिले संस्कारों ने चूड़का को देश के लिए मर-मिटने का साहस दिया। आज जब देश एक बार फिर सीमा पर तनाव के दौर से गुजर रहा है, चूड़का मुर्मू का बलिदान हमें याद दिलाता है कि देशभक्ति किसी वर्दी की मोहताज नहीं होती। एक आम युवक भी असाधारण वीरता का परिचय देकर इतिहास रच सकता है।

समाज- साहित्य-संस्कृति और रवीन्द्रनाथ टैगोर

डॉ. वसुन्धरा मिश्र
भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता

मनुष्य की सारी मानसिकता, देश और काल के व्यवधान को चीरकर क्यों कहाँ और कैसे अपना सामंजस्य और आश्रय खोज लेती है और अनजाना अनदेखा क्षितिज सारी दूरी समाप्त कर अपने सतरंगी स्वरूप से जीवन को श्रीमंडित कर देती है। जॉन स्ट्रैची ने प्रसिद्ध दार्शनिक ह्यूम पर लिखते हुए मानवता के दो गुणों पर चर्चा करते हुए यही पाया कि किसी भी व्यक्ति को उसका व्यक्तित्व और कर्तृत्व की श्रेष्ठता ही उसे महान बनाता है और उसके जीवन – लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम समर्पण और गहरी लोकोत्तर मानवीय संवेदना। ये दोनों गुणों से ही निःस्पृहता, त्याग, संकल्प और प्रेम उद्भूत होते हैं जो अनासक्त और निष्काम कर्म का संपादन कर मनुष्य को वास्तविक उच्चता, गहनीयता और श्रेष्ठता से विभूषित करते हैं।
प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक ताओ के शब्दों में मौन अस्तित्व और कर्तृत्व ही महानता की उज्जवल आभासें स्वतः युक्त होकर आलोक रेखा बन जाती है, वे ही वस्तुतः सारस्वत और महान हैं। उनका व्यक्तित्व न खंडित होता है और न विभक्त। सर्वात्म समर्पण और लक्ष्य पर लगी उनकी निर्मिमेष दृष्टि उन आदर्शों का सूत्रपात करती है जिनसे समाज अपना मार्ग निर्धारित कर आगे बढ़ता है।
शील, परोपकार, मानवीय संवेदना ही मनुष्यत्व है जिसके लिए महर्षि व्यास ने कहा है’ परोपकार :पुष्पाय पापाय पर पीडनम्’ सचमुच वही मनुष्य पुण्यव्रती होता है।
जब हम किसी साहित्यकार का मूल्यांकन करते हैं तो हम उसका आकलन उनकी उत्कृष्ट रचनाओं से करते हैं न कि विफलताओं से, जिनसे होकर वह गुजरता है।इतना ही नहीं, जब हम महान संस्कृतियों और सभ्यताओं की ओर देखते हैं तो हमें उनमें विश्वजनीन मूल्यों के तत्वों की खोज करनी चाहिए ताकि ये तत्व मानवता की सच्ची विरासत बन सकें।
मनुष्य प्रेम और सृजन के लिए पैदा हुआ है, न कि घृणा और विनाश के लिए। नये राष्ट्रों के अभ्युदय से, पराधीन लोगों की स्वातंत्र्य-संबंधी उत्कट भावना से, विश्व की संपदा में गरीब लोगों की अधिकाधिक हिस्सा पाने की मांग से, कतिपय राष्ट्रों द्वारा जातिभेद की नीति अपनाने से और गरीब तथा अमीर राष्ट्रों के बीच बढ़ती विषमता से यह संसार तनावों से भर गया है।
आज विश्व को आध्यात्मिक दृष्टि की ओर उन्मुख करने की आवश्यकता है। भारत ने संसार में इतने कार्य किए हैं, फिर भी हम किसी आशंका से भयभीत हैं। यही कारण है कि मनुष्य का स्वरूप द्वंद्वात्मक है। उसमें महान कार्य करने का भी सामर्थ्य है तो बुरे कार्य करने में भी उतना ही समर्थ है। आज मनुष्य की रचनात्मक भूमिका में कमी आती जा रही है, उसे फिर से अपनी शक्ति को सकारात्मक रूप देने की आवश्यकता है।
विज्ञान, उद्योग, शिक्षा और संस्कृति हमें भौतिक और बौद्धिक स्तरों पर जोड़ते हैं। हमें मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जिसमें मानव गरिमा और स्वतंत्रता के शाश्वत मूल्य अन्तर्ग्रथित हैं। मानवीकरण की ओर बढ़ते विश्व में सांस्कृतिक विविधता सौन्दर्य और रचनात्मकता को जन्म देती है।
साहित्य, धर्म, सौन्दर्य शास्त्र, शिक्षा, ग्रामोद्धार, राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीयता, अंतर्जातीय संबंध श्रृंखला आदि सभी विषयों को साहित्य और संस्कृति में समेटने का महत्वपूर्ण कार्य किया है साहित्य मनीषी कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने (१८६१-१९४१)।वे पूर्ण मानव कहे जाते हैं जिन्होंने दो राष्ट्रों के राष्ट्र गीत लिखे जो अपने-आप में ही विलक्षण बात है। उनकी उपस्थिति सिर्फ साहित्यिक ही नहीं बल्कि संस्कृति नायक की भी रही है। व्यक्ति से कवि को विच्छिन्न करना भी आसान नहीं है।
शिशिर कुमार घोष ने भारतीय साहित्य के निर्माता रवीन्द्र नाथ ठाकुर साहित्य अकादमी से (१९८६) प्रकाशित पुस्तक में लिखा है कि एक नहीं, उन्हीं के शब्दों में, रवीन्द्र नाथ अनेक हैं। वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति के व्यक्ति थे। जीवन के उत्तरार्द्ध में उन्होंने कहा कि मैं आपमें से ही एक हूँ। पिता महर्षि देवेन्द्र नाथ की चौदहवीं संतान थे और नौकरशाही की छाया में पले बढे़। पिता के कठोर अनुशासन में बच्चे अपना जीवन बिताते थे। हर्ष और विस्मय के विशाल कैनवास में उन्होंने बचपन से ही अपने साहित्य, संगीत और भाषा के भावों को गढ़ लिया था। भानुसिंहेर पदावलि आदि उनकी बाल्यावस्था की रचनाधर्मिता के श्रेष्ठ नमूने हैं। उन्होंने निबंध, नाटक, कहानी, उपन्यास, गीत, दर्शन आदि सबपर लिखा।
रहस्यवादी, आध्यात्मिक यथार्थ की अनुगूँज उनके साहित्य की आंतरिक बनावट है। ‘विराट् लघु प्रतिच्छायित है, अनंत रूपों में’।
जमींदार घराने के राजकुमार के रूप में कई कार्य चाहे जमींदार का हो, शिक्षा का हो, संपत्ति के बंँटवारे का हो, बंगभंग का मामला हो, राजनीति का हो, ग्रामीण उत्थान का हो या एक विश्व के निर्माण के पक्षधर का हो, वे विविध विषयों के ज्ञाता थे। रवीन्द्र नाथ ठाकुर का जीवन तनावों और कौतूहलों से भरा था, लेकिन वह जीवन की अंतिम घड़ी तक न केवल रचनात्मक बल्कि जीवंत भी बने रहे।
रवींद्र नाथ मानते हैं कि भीतर के यथार्थ की चेतना जब बाहर के यथार्थ से संपर्क का माध्यम बनती है तो वह कल्पना और गहन अनुभूति से आती है। इसके लिए अहं के विस्तार को जाना जाए और अपनी अनंतता के साथ उस पार का भी दर्शन किया जाए। कहा जा सकता है कि कला पुल है, छोटे ‘अहं’ और बड़े ‘अहं’ के बीच का पुल। (पृष्ठ ७८, शिशिर घोष
)
कला ही हमारी मानवता को परिभाषित करती है, हमारे सामाजिक सरोकार बढ़ाती है और हमें ऊँचा तथा आगे बढ़ाती है। हमारे सच्चे स्वरूप का प्रतीक, यह सभ्यता और संस्कृति की हृदयस्थली भी है। कवि की ये पंक्तियाँ देखें – –
हे सुंदरता, स्वनामधन्य,
जगत तुम्हारा प्रकाशमय
हो उठेगा एक दिन,
और तुम्हारे बाद नहीं होगी किसी
देवता की स्तुति,
एक बार तुम्हें देखना, जानना काफ़ी है –
एक बार में फूंँक देती है मृत्यु
जीवन की लौ।
फिर भी आशिरसिंचित हैं हम सब। ‘(पृष्ठ ७९-८०,शिशिर घोष)
रवीन्द्र नाथ ठाकुर सिर्फ लेखक ही नहीं, संपूर्ण कलाकार थे। अनंत, विपुल और अनुपम कारयित्री प्रतिभा के पीछे जो व्यक्ति खड़ा है – उसके व्यक्तित्व और कृतित्व पर भरोसा करना ससीम – असीम के बीच की कोई अद्भुत लीला जैसा दीखता है! एक ख़ास रूमानी लक्षण।
क्षेत्रीय धारा से बढ़कर अनंत क्षितिज तक जा पहुँचने वाला व्यक्तित्व। उसकी निष्ठा किसके प्रति अधिक प्रगाढ़ थी :आकाश के प्रति कि नीड़ के, पंखों के प्रति कि जड़ों के?
अतिरेक और सुदूर का अन्वेषक यह कवि पृथ्वी का कवि भी था – दुनिया से जुड़ा हुआ, पर दुनियावी नहीं। धार्मिक कम, प्रकृति पूजक अधिक। पृष्ठ ९२, शिशिर घोष।
मैं का आँचल ढलने दो
आने दो चेतनता की शुद्ध ज्योति
कुहेलिका चीरती
दिखाती चेहरा
शाश्वत सत्य का। पृष्ठ ९६।
समाज साहित्य और संस्कृति एक दूसरे में गूँथी वे कड़ियाँ हैं जो मानवीय मूल्यों और आदर्श के नए शिल्प विधान गढ़तीं हैं। इस संदर्भ में रवीन्द्रनाथ ठाकुर को लेने का कारण यह है कि वे केवल बंगाल के ही नहीं बल्कि विश्व के कवि रचना के स्तंभ थे।
कॉपीराइट, डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता पश्चिम बंगाल

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष : बौद्धिक और आध्यात्मिक आंदोलन की चरम परिणति बौद्ध धर्म : बुद्ध के उपदेश

डॉ. वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एजकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता

प्रागैतिहासिक काल से ही भारत विभिन्न जातियों और संस्कृतियों का आश्रय रहा है। विभिन्न प्रवृतियों तथा जीवन विधाओं के संघर्ष और समन्वय के द्वारा भारतीय इतिहास की प्रगति और संस्कृति विकास हुआ है। आर्य तथा आर्येतर जातियों की सांस्‍कृतिक परंपराओं का समन्वय भारतीय सभ्यता के निर्माण की आधार शिला रही है जिसका प्रभाव एक ओर वैदिककालीन समाज रचना पर पड़ा और दूसरी ओर बौद्ध धर्म पर पड़ा जो बौद्धिक और आध्यात्मिक आंदोलन का चरम परिणाम है।
563 ईसा पूर्व के आसपास सिद्धार्थ गौतम का जन्म होता है और थेरवादी बौद्ध मत के अनुसार बुद्ध का परिनिर्वाण 544 ईसा पूर्व हुआ। बुद्ध के उपदेशों ने इस संसार को एक नया अध्याय दिया जो ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की भावना से परिपूर्ण है। यह युग भारतीय विचार जगत में उथल पुथल का युग था। सामाजिक एवं धार्मिक नव चेतना के लिए बुद्ध और महावीर जैसे महापुरुषों ने संसार को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया जो भव व्याधि से पीड़ित मानव के लिए वरदान हो गया। धार्मिक जगत में संघीय जीवन पद्धति का प्रसार हुआ जिसका अवांतरकालीन संप्रदायों में बडा़ प्रभाव पडा़। इस युग में कई नये मतों का प्रदुर्भाव हुआ जिन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़ियों, कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के प्रतिकार का मार्ग प्रशस्त किया। जातिवाद का सर्वप्रथम विरोध करने वाले बुद्ध और महावीर ही थे। वेद और ब्राह्मणों को चुनौती दी। बुद्ध तथा महावीर के धर्मोपदेश जनता की भाषा में दिए गए अतः वे सभी बोधगम्य हो सके। ब्राह्मण ग्रंथ दुरूह होने के कारण जनता के लिए दुर्बोध हो गए थे। अतः नवीन विचारों का जन मानस पर बड़ा अनुकूल प्रभाव पड़ा। भगवान् बुद्ध के धर्मोपदेशों का राजा तथा जनता दोनों ने स्वागत किया। बुद्ध के समकालीन अनेक प्रमुख ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार ही नहीं किया, इस मत के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ बनाया। भगवान् बुद्ध ने सर्व बोधगम्य और सुधारक के रूप में समाज में अपने दर्शन को लोगों में प्रसारित किया। इसी कारण बौद्ध धर्म सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ और वह अपने युग की चेतना को बहुत अधिक प्रभावित कर सका। बौद्ध मत के व्यापक प्रचार के फलस्वरूप बुद्ध निर्वाण के तुरंत बाद बुद्ध वचनों का संकलन राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति की बैठक में, फिर बुद्ध निर्वाण के एक शताब्दी बाद वैशाली में हुई बैठक में हुई ऐसा माना जाता है। सम्राट अशोक के समय पालि पिटक का संकलन कर सद्धर्म अथवा थेरवाद के सिद्धांतों को लिपिबद्ध किया गया जिसका प्रमाण दीपवंश और महावंश ग्रंथों में मिलता है। यह संगीति बैठक बुद्ध निर्वाण के 236 वें वर्ष में पाटलिपुत्र में मोग्गलिपुत्त तिस्स के सभापतित्व में हुई जिसमें एक सहस्र बौद्ध भिक्षु शामिल हुए। कुमार महेंद्र पालि पिटक की एक प्रति लंका ले गए थे। पांचवीं शताब्दी ईसा सन् में लंकाधिपति बट्टगामनी ने उसका पुनः संकलन करवाया जो बहुमूल्य निधि है।
उपनिषद युग के बाद बुद्ध का समय है। गौतम बुद्ध का महत्व संसार व्यापी है, उनके उपदेशों ने पश्चिमी एशिया में धार्मिक, सामाजिक एवं नैतिक क्रांति का सूत्रपात किया था। बुद्ध की ज्ञान एवं कर्म की विचारधारा ने प्रसिद्ध दार्शनिकों एवं शासकों को प्रभावित किया। गौतम बुद्ध के दिव्य आध्यात्मिक एवं नैतिक विचारों से प्रभावित होकर एक ओर अश्वघोष, बुद्ध घोष, कुमार लब्ध, दिंङ्नाग, असंग, वसुबंधु, नागार्जुन, शांति देव जैसे तार्किक और दार्शनिक पुरुष पैदा हुए तो दूसरी ओर अशोक, कनिष्क और हर्ष वर्धन संसार के कल्याण के लिए कर्म योगी पुरुष बने। बुद्ध के निर्वाण के 200 वर्षों के अंदर ही बौद्ध धर्म में हीनयान, महायान, वज्रयान, सहज यान चार संप्रदायों का और अट्ठारह निकायों स्थविरवाद,वज्जिपुत्तक, महीशासक, धर्मोत्तरीय, भद्रपाणिक, छन्नागरिक, सम्मितीय, धर्म गुप्तिक, सर्वास्तिवादी, काश्यपीय, सांक्रातिक, सूत्रवादी, (सौत्रांतिक), महसांघिक, व्यावहारिक, गोकुलिक, प्रज्ञप्तिवादी, बाहुश्रुतिक, चैत्यवादी का विकास हुआ। विभिन्‍न संप्रदायों और मतों के बावजूद भी बौद्ध धर्म आज पूरे विश्व में लोकप्रिय धर्म है। बौद्ध दर्शन का उदय बौद्ध धर्म से माना जाता है। विद्वानों और बौद्ध आचार्यों ने बौद्ध धर्म के दो रूप बताए हैं पहला शुद्ध धार्मिक रूप जिसमें आचार संबंधी नैतिक एवं सामाजिक आदर्शों का सरलतम प्रतिपादन किया गया है। भगवान् बुद्ध के उपदेश एवं शिक्षाएं इसी धार्मिक रूप में मिलती हैं। बौद्ध धर्म का दूसरा दार्शनिक रूप है जिसमें बुद्ध के उपदेशों की दार्शनिक रूपरेखा को आध्यात्मिक व्याख्या के रूप में स्पष्ट किया गया है।
बुद्ध के मूल सिद्धांत या विचार – –
बुद्ध के मूल वचनों या उपदेशों के सिद्धांतों को ही समझने की कोशिश की गई है जो बोधि उपदेश हैं।
बुद्ध के उपदेशों को जानने के लिए बुद्ध के मूल सिद्धांतो को जानना आवश्यक है जिनमें तीन अस्वीकारात्मक हैं और एक स्वीकारात्मक। ये चार सिद्धांत इस प्रकार हैं – –
1-ईश्वर को नहीं मानना अन्यथा मनुष्य स्वयं अपना मालिक है
2- आत्मा को नित्य मानना अन्यथा नित्य एक रस मानने पर उसकी परिशुद्धि और मुक्ति के लिए गुंजाइश नहीं रहेगी।
3-किसी अन्य को स्वतः प्रमाण नहीं मानना अन्यथा बुद्धि और अनुभव की प्रामाणिकता जाती रहेगी।
4- जीवन प्रवाह को इसी शरीर तक सीमित मानना अन्यथा जीवन और उसकी विचित्रताएं कार्य – कारण नियम से उत्पन्न न हो कर सिर्फ आकस्मिक घटनाएँ रह जाएंगी

ईश्वर को न मानना – – -बच्चे की उत्पत्ति के साथ उसके जीवन का आरंभ होता है।बच्चा शरीर और मन का समुदाय मात्र है। शरीर भी कोई एक इकाई मात्र नहीं बल्कि एक काल में भी असंख्य अणुओं का समुदाय है। अणु भी क्षण क्षण बदल रहा है और उनकी जगह दूसरे उनके समान ही अणु उत्पन्न हो रहे हैं। इस प्रकार शरीर भी परिवर्तित होता जाता है। शरीर की तरह मन भी परिवर्तित होता जाता है। मन का परिवर्तन सूक्ष्म रूप से होता है क्योंकि मन सूक्ष्म होता है और पूर्वापर रूपों का भेद भी सूक्ष्म होता है इसलिए उस भेद को समझना भी दुष्कर है। आत्मा और मन एक ही है और क्षण क्षण दोनों में परिवर्तन होता है। इस कार्य कारण का संबंध जन्म से मरण तक अटूट दिखाई पड़ता है। आकस्मिक रूप से कुछ घटित नहीं होता बल्कि कार्य कारण के सिद्धांत से भी इन्कार करना होता है जिसके बिना कोई बात सिद्ध नहीं की जा सकती। यदि कहें कि माता-पिता से उत्पन्न पुत्र का शरीर, मन उनके अनुरूप ही होगा तो यह पूरी तरह से ठीक नहीं है। प्रतिभाशाली माता-पिता के मंदबुद्धि और मंदबुद्धि माता-पिता के प्रतिभाशाली संतान कैसे होती। जिस प्रकार खान से निकला लोहा भी अलग अलग संस्कार लिए होता है उसी प्रकार प्रतिभाशाली बालक की बुद्धि फौलाद की तरह पूर्व जीवन के अभ्यास का परिणाम कहा जा सकता है। इस शरीर का जीवन प्रवाह एक सुदीर्घ जीवन प्रवाह का छोटा सा बीज का अंश है जिसका पूर्व कालिक प्रवाह चिरकाल से चला आ रहा है बाद के काल तक भी चिरकाल ही रहेगा। जीवन का यह प्रवाह इस शरीर से पूर्व से आ रहा है और पीछे भी रहेगा तो भी अनादि और अनंत नहीं है। इसका आरंभ तृष्णा या स्वार्थपरता से है। तृष्णा के क्षय के साथ ही इसका क्षय हो जाता है।
जीवन प्रवाह में प्रवाहित मनुष्य अपने जीवन को अच्छा बुरा बना सकता है। यह सिद्धांत व्यक्ति के लिए भविष्य को आशा मय बनाने के लिए सुंदर उपाय है।
बुद्ध की शिक्षा और दर्शन इन चारों सिद्धांतों पर अवलंबित है। प्रथम तीन सिद्धांत बौद्ध धर्म को दुनिया के अन्य धर्मों से पृथक करते हैं। ये तीनों सिद्धांत भौतिकवाद और बुद्ध धर्म में समान हैं किंतु चौथी अर्थात् जीवन प्रवाह के इसी शरीर तक परिसीमित न मानना, इसे भौतिकवाद से अलग करता है और साथ ही मनुष्य को अच्छा बनने के लिए विकसित करता है। मनुष्य परतंत्रता से मुक्त हो जीवन के प्रति आशावादी होता है और शील सदाचार के लिए नींव बनाता है। चारों सिद्धांतों का सम्मिलन ही बुद्ध धर्म और धर्म उपदेश है।

ऑपरेशन सिंदूर : जानिए रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम कैसे बना ‘सुदर्शन’ चक्र

नयी दिल्ली । राफेल जेट और रूसी S-400 मिसाइल सिस्टम भारत के लिए दो ऐसे अहम हथियार साबित हुए हैं, जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और मौजूदा भारत-पाकिस्तान संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन दोनों हथियारों को भारत के रक्षा बेड़े में शामिल करने के लिए न सिर्फ आंतरिक विरोध झेला, बल्कि अमेरिका समेत कई वैश्विक दबावों का भी डटकर सामना किया । 8 और 9 मई की दरम्यानी रात पाकिस्तान की सेना ने ड्रोन और मिसाइलों के ज़रिए भारत पर बड़ा हमला करने की कोशिश की। लेकिन भारत की वायु रक्षा प्रणाली—खासतौर पर S-400 और आकाश मिसाइल सिस्टम—ने इस हमले को पूरी तरह नाकाम कर दिया। पाकिस्तान द्वारा श्रीनगर, जम्मू और जैसलमेर जैसे कई स्थानों को निशाना बनाकर दागी गई मिसाइलों में से एक भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई। भारत ने 2018 में रूस से करीब 5 अरब डॉलर के सौदे में S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदने का फैसला लिया था। उस वक्त अमेरिका ने खुले तौर पर इस सौदे का विरोध किया था और यहां तक कि प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी। ट्रंप प्रशासन और बाद में बाइडन प्रशासन, दोनों ही भारत को इस सौदे से पीछे हटने के लिए कहते रहे। मगर मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं किया। अब तक एस-400 की तीन स्क्वाड्रन भारत में तैनात की जा चुकी हैं और कुछ और इस साल आनी बाकी हैं। यह सिस्टम 600 किलोमीटर तक के दायरे में कई हवाई लक्ष्यों को एकसाथ ट्रैक और नष्ट कर सकता है। भारतीय वायुसेना में इसे ‘सुदर्शन चक्र’ कहा जाता है, जो लड़ाकू विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों को खत्म करने में सक्षम है। इसी तरह राफेल लड़ाकू विमान, जिन्हें भारत ने 2020 से फ्रांस से सरकारी समझौते के तहत हासिल किया, ने भारतीय वायुसेना की ताकत को कई गुना बढ़ा दिया। इन विमानों में लगी लंबी दूरी की एससीएएलपी मिसाइलों ने पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को निशाना बनाया, वो भी सीमा पार किए बिना। इस हमले में मोस्ट वांटेड आतंकी मौलाना मसूद अजहर का परिवार और उसका भाई अब्दुल रऊफ अजहर—जो IC-814 हाईजैकिंग का मास्टरमाइंड था—मार गिराया गया। हालांकि, राफेल डील को लेकर कांग्रेस पार्टी, खासकर राहुल गांधी ने 2019 के चुनावों में मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को पूरी तरह सही ठहराया और कीमत व प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं पाई। आज ये दोनों हथियार भारत की सुरक्षा नीति की रीढ़ बन चुके हैं और मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों का नतीजा हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा को किसी भी राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय दबाव से ऊपर रखा।