Monday, September 15, 2025
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ऑपरेशन सिंदूर : जानिए रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम कैसे बना ‘सुदर्शन’ चक्र

नयी दिल्ली । राफेल जेट और रूसी S-400 मिसाइल सिस्टम भारत के लिए दो ऐसे अहम हथियार साबित हुए हैं, जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और मौजूदा भारत-पाकिस्तान संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन दोनों हथियारों को भारत के रक्षा बेड़े में शामिल करने के लिए न सिर्फ आंतरिक विरोध झेला, बल्कि अमेरिका समेत कई वैश्विक दबावों का भी डटकर सामना किया । 8 और 9 मई की दरम्यानी रात पाकिस्तान की सेना ने ड्रोन और मिसाइलों के ज़रिए भारत पर बड़ा हमला करने की कोशिश की। लेकिन भारत की वायु रक्षा प्रणाली—खासतौर पर S-400 और आकाश मिसाइल सिस्टम—ने इस हमले को पूरी तरह नाकाम कर दिया। पाकिस्तान द्वारा श्रीनगर, जम्मू और जैसलमेर जैसे कई स्थानों को निशाना बनाकर दागी गई मिसाइलों में से एक भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई। भारत ने 2018 में रूस से करीब 5 अरब डॉलर के सौदे में S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदने का फैसला लिया था। उस वक्त अमेरिका ने खुले तौर पर इस सौदे का विरोध किया था और यहां तक कि प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी। ट्रंप प्रशासन और बाद में बाइडन प्रशासन, दोनों ही भारत को इस सौदे से पीछे हटने के लिए कहते रहे। मगर मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं किया। अब तक एस-400 की तीन स्क्वाड्रन भारत में तैनात की जा चुकी हैं और कुछ और इस साल आनी बाकी हैं। यह सिस्टम 600 किलोमीटर तक के दायरे में कई हवाई लक्ष्यों को एकसाथ ट्रैक और नष्ट कर सकता है। भारतीय वायुसेना में इसे ‘सुदर्शन चक्र’ कहा जाता है, जो लड़ाकू विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों को खत्म करने में सक्षम है। इसी तरह राफेल लड़ाकू विमान, जिन्हें भारत ने 2020 से फ्रांस से सरकारी समझौते के तहत हासिल किया, ने भारतीय वायुसेना की ताकत को कई गुना बढ़ा दिया। इन विमानों में लगी लंबी दूरी की एससीएएलपी मिसाइलों ने पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को निशाना बनाया, वो भी सीमा पार किए बिना। इस हमले में मोस्ट वांटेड आतंकी मौलाना मसूद अजहर का परिवार और उसका भाई अब्दुल रऊफ अजहर—जो IC-814 हाईजैकिंग का मास्टरमाइंड था—मार गिराया गया। हालांकि, राफेल डील को लेकर कांग्रेस पार्टी, खासकर राहुल गांधी ने 2019 के चुनावों में मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को पूरी तरह सही ठहराया और कीमत व प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं पाई। आज ये दोनों हथियार भारत की सुरक्षा नीति की रीढ़ बन चुके हैं और मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों का नतीजा हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा को किसी भी राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय दबाव से ऊपर रखा।

 

कोलकाता में सभी रूफटॉप रेस्टोरेंट्स बंद करने का आदेश

मछुआ अग्निकांड के बाद बड़ा फैसला

कोलकाता । कोलकाता नगर निगम ने शहर के सभी रूफटॉप रेस्टोरेंट्स को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया है। शुक्रवार को ‘टॉक टू मेयर’ कार्यक्रम के बाद मेयर फिरहाद हकीम ने यह जानकारी दी। मछुआ इलाके के ऋतुराज होटल में भीषण अग्निकांड में 15 लोगों की मौत के बाद नगर निगम ने यह सख्त कदम उठाया है। मेयर ने साफ कहा कि छत सार्वजनिक स्थल है और इसे किसी भी प्रकार के निजी व्यवसाय के लिए इस्तेमाल करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। उन्होंने कहा कि नीचे की जमीन जिस तरह बेची नहीं जा सकती, उसी तरह छत भी नहीं बेची जा सकती। यह आम जनता की सुरक्षा का सवाल है। नगर निगम ने इस संबंध में पहले ही एक दिशा-निर्देश जारी किया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि किसी भी परिस्थिति में छत का व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता। साथ ही सभी रूफटॉप रेस्टोरेंट्स को तत्काल हटाने का निर्देश दिया गया है।

मेयर ने कहा कि जिन रेस्टोरेंट्स का संचालन फिलहाल छत पर हो रहा है, उन्हें बंद करना अनिवार्य है। आग लगने की स्थिति में लोग छत पर जाकर शरण ले सकें, इसके लिए छत तक पहुंच का रास्ता हमेशा खुला रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर पहले ही एक कमेटी गठित कर दी गई है। इस कमेटी में अग्निशमन विभाग, पुलिस और नगर निगम के विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि शामिल होंगे और जल्द ही बैठक कर अगली रणनीति तय की जाएगी। मेयर ने यह भी कहा कि हर चीज़ नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती, लेकिन जहां-जहां हमारी जिम्मेदारी है, वहां हम पूरी सक्रियता से काम कर रहे हैं। इस बीच शहर के एक प्रमुख बहुमंजिला भवन ‘मैग्मा हाउस’ में स्थित रूफटॉप रेस्टोरेंट को नोटिस भेज दी गयी है। मेयर ने बताया कि बोरोज़ के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है कि किन इलाकों में कितने रूफटॉप रेस्टोरेंट्स संचालित हो रहे हैं, ताकि जल्द से जल्द कार्रवाई की जा सके। उन्होंने कहा, “स्टेफन कोर्ट की घटना हम सभी को याद है, जहां कोलैप्सिबल गेट बंद होने के कारण दम घुटने से कई लोगों की जान चली गई थी। ऐसी स्थिति में छत ही अंतिम सहारा होती है, इसलिए वहां कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।मछुआ के फलपट्टी में क्षतिग्रस्त भवन को लेकर मेयर ने कहा कि उस भवन का ऑडिट पहले ही किया जा चुका था। नागरिकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे सतर्क रहें। लोकतांत्रिक देश में सिर्फ सरकार पर ही सारा बोझ नहीं डाला जा सकता।उन्होंने यह भी माना कि नगर निगम में कर्मचारियों की संख्या सीमित है, लेकिन फिर भी जिम्मेदारी निभाने में कोई कमी नहीं रखी जाएगी। वर्तमान में निर्माणाधीन इमारतों पर भी सख्त निगरानी रखी जा रही है। नगर निगम के सूत्रों के अनुसार, जहां भी बिल्डिंग प्लान स्वीकृत किया जा रहा है, वहां असेसमेंट विभाग के साथ समन्वय कर सभी जानकारियां रिकॉर्ड में लाई जा रही हैं।

देश की सुरक्षा के लिए पेगासस का प्रयोग गलत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में सुनवाई के दौरान इस बात पर हैरानी जताई कि अगर सरकार आतंकियों की जासूसी करा रही हैं तो इसमें गलत क्या है? साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे ऐसी किसी भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करेंगे, जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी हो। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि वे ऐसी किसी भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करेंगे, जो देश की सुरक्षा और सुप्रभुता से जुड़ी हो। हालांकि उन्होंने संकेत दिए कि वे निजता के उल्लंघन की व्यक्तिगत आशंकाओं पर विचार कर सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि तकनीकी समिति की रिपोर्ट पर सड़कों पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील दिनेश द्विवेदी ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘सवाल ये था कि क्या सरकार के पास स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है और क्या वह इसका इस्तेमाल कर सकती है? अगर सरकार के पास ये है तो कोई भी उन्हें इसका इस्तेमाल करने से नहीं रोक सकता।’ इस पर पीठ ने कहा कि ‘अगर देश आतंकियों के खिलाफ स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रहा है तो इसमें गलत क्या है? स्पाइवेयर रखना गलत नहीं है, ये किसके खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है, सवाल इसका है। देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। आम नागरिकों का संविधान के तहत निजता का अधिकार सुरक्षित किया जाएगा।’ पीठ ने कहा कि ‘कोई भी रिपोर्ट, जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी हो, उसे छुआ नहीं जाएगा, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर अगर कोई यह जानना चाहता है कि वह रिपोर्ट में शामिल है या नहीं, उसे इसकी जानकारी दी जा सकती है। लेकिन रिपोर्ट को ऐसा दस्तावेज नहीं बनाया जाएगा कि सड़कों पर भी इसकी चर्चा हो।’ अदालत ने कहा कि वे इस बात की जांच करेंगे कि किस हद तक तकनीकी समिति की रिपोर्ट को संबंधित व्यक्ति के साथ साझा किया जा सकता है। इसके बाद पीठ ने मामले पर सुनवाई 30 जुलाई तक के लिए टाल दी।

आजादी के बाद पहली बार देश में होगी जाति जनगणना

नयी दिल्ली । देश में आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी। केंद्रीय कैबिनेट ने  जाति जनगणना को मंजूरी दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। देश में इसी साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जाति जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है। हालांकि जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने में एक साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे। देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है। इस हिसाब से 2021 में अगली जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था। 2011 तक जनगणना फॉर्म में कुल 29 कॉलम होते थे। इनमें नाम, पता, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और माइग्रेशन जैसे सवालों के साथ केवल एससी और एसटी श्रेणी से ताल्लुक रखने को रिकॉर्ड किया जाता था। अब जाति जनगणना के लिए इसमें अतिरिक्त कॉलम जोड़े जा सकते हैं। जनगणना एक्ट 1948 में एससी- एसटी की गणना का प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, मार्च 2023 तक 1,270 एससी, 748 एसटी जातियां हैं। 2011 में एससी आबादी 16.6 प्रतिशत और एसटी 8.6 प्रतिशत थी। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर इसके एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आंकड़े ही जारी किए गए हैं।
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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष बने आलोक जोशी

-रॉ के पूर्व चीफ रह चुके हैं
नयी दिल्ली। पाकिस्तान के साथ भारत के तनाव के बीच भारत ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में बदलाव किया है। पूर्व रॉ प्रमुख आलोक जोशी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। बोर्ड में छह और सदस्यों को भी शामिल किया गया है। इसमें पूर्व पश्चिमी वायु कमांडर एयर मार्शल पीएम सिन्हा, पूर्व दक्षिणी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह और रियर एडमिरल मॉन्टी खन्ना सैन्य सेवाओं से रिटायर्ड अधिकारी को शामिल किया गया हैं। राजीव रंजन वर्मा और मनमोहन सिंह भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त दो सदस्य हैं। सात सदस्यीय बोर्ड में बी. वेंकटेश वर्मा सेवानिवृत्त आईएफएस हैं। यह फैसला पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद आया है, जिसमें एक नेपाली नागरिक सहित 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई और कई घायल हो गए। पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके आवास पर बुलाई गई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक में ये फैसला लिया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) में सरकार के बाहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं, जिसमें मुख्य कार्य राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को एक विश्लेषण प्रदान करना तथा उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों के लिए समाधान और नीति विकल्पों की सिफारिश करना है।

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई होंगे भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश

नयी दिल्ली । न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को मंगलवार को भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वे 14 मई को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे, एक दिन पहले ही मौजूदा सीजेआई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। कानून मंत्रालय ने न्यायमूर्ति गवई की भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, सीजेआई खन्ना ने 16 अप्रैल को केंद्र सरकार को उनके नाम की अनुशंसा की थी।न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा और वे 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 23 दिसंबर को पद से मुक्त हो जाएंगे। वे मौजूदा सीजेआई खन्ना के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।

 

दीघा में हुआ प्रभु जगन्नाथ का आगमन, सीएम ने किया मंदिर का उद्घाटन

कोलकाता। बंगाल को अब अपना जगन्नाथ धाम मिल गया है। बुधवार 30 अप्रैल को अक्षय तृतीया के अवसर पर मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने राज्य में समुद्र किनारे बसे शहर दीघा में नवनिर्मित जगन्नाथ मंदिर का लोकार्पण किया।
उन्होंने इसे ‘भारत का गौरव’ बताते हुए कहा-यह राज्य की संस्कृति व पर्यटन को भी नई ऊंचाइयों पर ले जाएगा। यह मंदिर केवल धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण नहीं है। यह बंगाल की जनता के लिए आध्यात्मिक शक्ति व एकता का प्रतीक बनेगा। यह बंगाल की सांस्कृतिक विरासत का नया अध्याय है। यह दीघा को देश को प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में भी विकसित करेगा और आने वाले हजारों वर्षों तक लोगों का समागम स्थल बना रहेगा।’

 

मंदिर के गर्भगृह में हुई मूर्तियों की विधिवत प्राण प्रतिष्ठा
लोकार्पण से पहले मंदिर के गर्भगृह में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र व सुभद्रा की मूर्तियों में विधिवत प्राण प्रतिष्ठा की गई। पुरी जगन्नाथ मंदिर की तरह ही दीघा मंदिर में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और देवी सुभद्रा की मूर्तियां स्थापित की गई हैं, जिसे पत्थर से तराशा गया है। पुरी की तरह इन मूर्तियों के पीछे नीम की लकड़ी से बनी मूर्तियां भी हैं।
घर-घर भेजी जाएगी तस्वीर व प्रसाद
भगवान जगन्नाथ की तस्वीर व प्रसाद को राज्य के घर-घर में पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी। मंदिर के संचालन व रखरखाव की जिम्मेदारी इस्कॉन को सौंपी गई है, जो यहां रोजाना महाभोग प्रसाद का वितरण करेगा। भगवान विष्णु के आठ तत्वों का नीला चक्र मंदिर के शीर्ष पर स्थापित किया गया है। मंदिर में चार प्रवेश द्वार बनाए गए हैं यानी चारों दिशाओं से मंदिर में प्रवेश किया जा सकता है। चारों ओर पांच सौ से अधिक पेड़ भी लगाए गए हैं।

विद्यासागर विवि में डॉ. दामोदर मिश्र का विदाई समारोह

मिदनापुर । विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के वरिष्ठ प्राध्यापक एवं हिंदी विश्वविद्यालय के प्रथम कुलपति प्रो. दामोदर मिश्र के सेवानिवृत्ति के अवसर पर विभाग की ओर से एक साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। कार्यक्रम की शुरुआत नेहा चौबे, ईशा सिंह, तृणा दास और माही साह के स्वागत गीत से हुई। डिजिटल माध्यम से जुड़े हमारे समय के महत्वपूर्ण आलोचक डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि प्रो.दामोदर मिश्र का लेखन और चिन्तन दिशा दिखाने वाला है। डॉ. दामोदर मिश्र ने कहा कि मैं जब हिंदी विभाग में आया तो डीन से लेकर सभी सहकर्मियों से मुझे बहुत सहयोग और आत्मीयता मिली। इस अवसर पर फ़िल्म समीक्षक मृत्युंजय श्रीवास्तव, प्रो. रतन हेंब्रम, डॉ. तपन दे, डॉ. पंकज साहा, हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कु. प्रसाद ,डॉ. रेणु गुप्ता. डॉ. मधु सिंह समेत कई अन्य लोगों ने डॉ. मिश्र के अवदानों को रेखांकित किया। डॉ. संजय जायसवाल ने कहा कि डॉ. दामोदर मिश्र ने हमेशा हमें सीखने के लिए प्रेरित किया है। विभाग की शोधार्थी सोनम सिंह, रूपेश कुमार यादव, सुषमा कुमारी और गायत्री वाल्मीकि ने अपनी बातें रखी। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. श्रीकांत द्विवेदी ने किया। कार्यक्रम के सफल संयोजन में लक्ष्मी यादव, संजना गुप्ता, नसरीन बानो, सृष्टि गोस्वामी, नीशू कुमारी,मदन शाह, मिथुन नोनिया ने विशेष सहयोग दिया।

रेणु की दृष्टि अंचल केंद्रित नहीं बल्कि मूल्य केंद्रित है:शंभुनाथ

भारतीय भाषा परिषद और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र द्वारा आयोजित पुस्तक परिचर्चा
कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद में इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र, रांची एवं भारतीय भाषा परिषद द्वारा डॉ कुमार संजय झा के संपादन में प्रकाशित पुस्तक ‘फणीश्वरनाथ रेणु:समय, साहित्य और समाज के शिल्पी’ पर परिचर्चा आयोजित हुई। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए डॉ. शंभुनाथ ने कहा कि अंचल पर लिखते हुए भी रेणु की दृष्टि भारत माता और वैश्विक मानव-सत्य पर है। रेणु की आंचलिकता पृथकता नहीं पैदा करती है। यही वजह है कि रेणु की दृष्टि अंचल केंद्रिक नहीं बल्कि मूल्य केंद्रिक है। ऑनलाइन माध्यम से जुड़े कमल कुमार बोस ने कहा, “रेणु के साहित्य में आम जन की बातें हैं, जिनमें भारतीय ग्रामीण, जनजातीय समाज और अस्मिता को स्थान दिया गया है।”प्रोफेसर हितेंद्र पटेल ने कहा, “रेणु ग्राम्य समाज का चित्रण गाँव को देश और दुनिया से काट कर नहीं करते। उनके साहित्य में 1946 से 1977 तक का राजनीतिक इतिहास बोल उठता है। सिर्फ मेला आंचल और परिकथा नहीं, दीर्घतपा के माध्यम से वे शरणार्थियों और 1971 के मुक्ति युद्ध की कथा भी कहते हैं, जिनके नारी पात्र हमारे लिए बहुत महत्वपूर्ण सूत्र देने वाले चरित्र हैं।”डॉ संजय जायसवाल ने कहा, “वर्तमान समय में रेणु को और ज़्यादा याद करने की ज़रूरत है।मैला आंचल का नायक का सपना है प्रेम की खेती करना। रेणु भारतीय लोक जीवन की कथा कहने वाले लेखक हैं। रेणु की प्रतिबद्धता सामाजिक और राजनीतिक थी।” कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए पुस्तक के संपादक डॉ कुमार संजय झा ने पुस्तक के प्रकाशन में सहयोग के लिए सभी के प्रति आभार प्रकट किया। इस अवसर पर विमला पोद्दार,प्रो.ममता त्रिवेदी समेत कोलकाता एवं आसपास के साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।

राघवेश अस्थाना के उपन्यास “अमरत्व” को पढ़ते हुए

डॉ वसुंधरा मिश्र

“अमरत्व” किसी को श्राप किसी को वरदान राघवेश अस्थाना का उपन्यास बहुत ही रोचक तथ्यों से भरा हुआ है। इसमें सनातन और पौराणिक कथाओं और उपन्यासकार की वर्षों की यात्रा के अनुभवों को अट्ठाइस अध्यायों में पिरोया गया है। कथाकार के लेखन का आरंभ बचपन की स्मृतियों में ही जन्म ले चुका था जिसका निचोड़ यह उपन्यास है। लेखक वाराणसी स्थित ‘खोजवांँ आदर्श पुस्तकालय’ के पाठक रहें हैं जहां लाइब्रेरियन पंडित जी द्वारा विभिन्न पुस्तकों को पढ़ने का अवसर प्राप्त हुआ। लेखक पर मामा स्वर्गीय श्री लक्ष्मी चंद्र श्रीवास्तव और दीदी पद्मजा अस्थाना का वरद हस्त रहा जिनकी प्रेरणा मिलती रही। महान फिल्मकार गुरु स्वर्गीय श्री के. बालचंदर और गुरु व्यंग सम्राट अशोक चक्रधर के ऋणी हैं लेखक।उपन्यास का
पहला पड़ाव अरुल है जहां से चित्रकूट के घने वन में रिशेल के साथ नायक घने वन में अंधाधुंध भागा जा रहा है और उसके पीछे डकैत गालियां देते हुए दौड़े चले आ रहे हैं। जो एक स्वप्न है और फिर नायक अपना परिचय देता है। मॉरीशस के ट्रीओले गाँव में जन्मे अरुलबुद्धन है जिसकी माँ तमिल और पिता भोजपुरी अंचल के हैं । भारत से एग्रीमेंट करके जो भी भारतीय लोगों का परिवार मॉरिशस में बसा है वे गिरमिटिया के नाम से जाने जाते हैं।
दुनिया के किसी भी कोने में रह लें लेकिन उसका जन्म किस लिए हुआ है उसे भविष्य में क्या करना है और किस उद्देश्य के लिए भगवान ने भेजा है ।उसकी मृत्यु भी उसके हाथ में नहीं है। कोई सुपर पावर है जिसके निर्देश पर व्यक्ति अपनी जीवन यात्रा को पूर्ण करता है। कहा गया है – – सब कुछ, चाहे वह ज्ञान, धन, शक्ति, या सुख हो, सब कुछ परमेश्वर के हाथ में है, और वह सब कुछ देने वाला है। यह श्लोक इसी बात को दर्शाता है कि उस ईश्वर के हाथ में ही सब कुछ है – – वयं विश्वतो जनेभ्यः सर्वगुणैरुत्कृष्टमिन्द्रं परमेश्वरं परि हवामहे, स एव वो युष्माकमस्माकं च केवलः पूज्य इष्टोऽस्तु।”अर्थात जो हम सभी लोगों से श्रेष्ठ है, इंद्र, परमेश्वर, हम उसकी स्तुति करते हैं, वह आपके लिए भी, हमारे लिए भी, केवल पूजनीय और इष्ट है।मॉरिशस में अरुलबुध्दन का स्वामी शाश्वत जी से मिलना और नीदरलैंड की रिशेल के साथ हिमालय की यात्रा का कार्यक्रम बन जाना इत्तफ़ाक नहीं है यह किसी प्रारब्ध का संदेशा था ऐसा प्रतीत हो रहा था। लगा कि स्वामी जी ने अरुल के मन की बात पढ़ ली और इतनी भीड़ में भी उसे ही अपने आश्रम में बुलाया और उसको भारत की आध्यात्मिक जानकारी के निमित्त बने। अरुल के लिए यह सब एक स्वप्न जैसा था ।स्वामी जी भी मानो किसी के आदेश का पालन कर रहे हों।
भारत के संतों की महिमा अपरंपार है उनकी तपस्या हजारों वर्षों से लगातार चलती आ रही है। इस उपन्यास में स्वामी जी की कही ये पंक्तियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण है, “बस इतना हमेशा स्मरण रहे कि जीव ब्रह्म से अलग नहीं, किसी को कष्ट न पहुंचाओगे आगे आध्यात्मिक शक्तियाँ स्वयं तुम्हारा मार्ग प्रशस्त कर देंगी।” (अमरत्व, पृ. 57)
उपन्यास में प्रेम भी है, प्रेम का अधिकार भी है, ईर्ष्या भी है लेकिन नायक कभी भी अपने लक्ष्य से भटकता नहीं है ।नायक अरुल नीदरलैंड की रिशेल महिला सहयात्री के प्रति सदैव मर्यादा में रहा और सनातन धर्म को गहराई से समझना चाहता है ।विदेशी डेविड भी अरुल की यात्रा को आगे बढ़ाने में सहायक बनता है।
सनातन धर्म और संस्कृति के अनेक चरित्रों, भारतीय वांग्मय, ऋषि मुनियों के शाप और वरदानों की कथाएँ इस उपन्यास का केंद्र बिंदु है। धर्म के मिथकों के विषय में जानकारी दी,माया कहाँ से आई क्या देवताओं की साजिश थी, महाभारत क्या सचमुच धर्मयुद्ध था?, जैन बौद्ध धर्म का आना कहीं ब्राह्मणों के धर्म के वर्चस्व को तोड़ना तो नहीं था, तंत्र मंत्र और आडंबरों का प्रादुर्भाव क्यों हुआ आदि प्रश्नों को उपन्यास में उठाया गया है जो एक सुधि पाठक के मन मस्तिष्क में जिज्ञासा उत्पन्न करते हैं ।
उपन्यास के शीर्षक भी रहस्य, अध्यात्म और उत्सुकता को जगाते हैं। अरुल अन्नू रिशेल सुन्दर सुभूमि, हरिद्वार, हाथी, हिमालय, गुफा, देव प्रयाग, स्विट्जरलैंड, केदारनाथ,नर नारायण, नर्मदा, खर्जुवार्हिका, सरभंगा, चित्रकूट, विदाई, कौन थे वे? आदि बीस अध्याय में उपन्यास की भारत यात्रा का कथानक और सूत्र जुड़े हैं। नायक अरुल विचित्र गुफाओं आदि में जाता है जहाॅं कई संत या ऋषि हजारों वर्षों से विचरण कर रहे हैं ।उनका उद्देश्य अरुल को कष्ट में मदद करना और उसके प्राणों की रक्षा करना था। अरुल कौन है यह भी रहस्य की रचना करता है।
इस पृथ्वी पर अश्वत्थामा, बलि, व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य और परशुराम अभी भी जीवित घूम रहे हैं जो रोमांचित करने वाले विश्वास की सृष्टि करते हैं ।
उपन्यास की भाषा सहज होने के साथ साथ शुद्ध हिंदी, संस्कृत, अंग्रेजी आदि का यथोचित प्रयोग मिलता है। मूर्तिकार वंदना सिंह द्वारा बनाया गया इसका आवरण चित्र बहुत ही आकर्षक और अर्थपूर्ण है जो विषय को स्पष्ट कर रहा है ।उपन्यास पठनीय और रुचिकर है ।उपन्यास के लेखक राघवेश अस्थाना जी ने अपनी भूमिका में स्पष्ट स्वीकार किया है कि यह उपन्यास लेखक के बीस वर्षों के अनुभवों का निचोड़ है।
—डॉ वसुंधरा मिश्र
अंशकालिक हिंदी प्राध्यापिका
भवानीपुर एडुकेशन सोसाइटी कॉलेज, 5,लाला लाजपत राय सरणी, कोलकाता – 700020
मो. 9874977382, ई-मेल – [email protected]