Wednesday, September 17, 2025
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अब घरेलू प्रवासी कहीं भी दे पाएंगे वोट, चुनाव आयोग विकसित किया रिमोट वोटिंग सिस्टम

नयी दिल्ली । पिछले साल 29 दिसबंर को चुनाव आयोग ने वोट प्रतिशत बढ़ाने की दिशा में बड़ा कदम आगे बढ़ाया, जब आयोग ने रिमोट ईवीएम या आरवीएम सिस्टम को डेवलेप किया। इसकी मदद से प्रवासी नागरिक बिना गृह राज्य आए वोट डाल पाएंगे। चार साल पहले टीओआई ने ‘लॉस्ट वोट्स’ मुहिम के जरिए उन लाखों प्रवासी भारतीयों की परेशानी को उजागर किया था, जो वोट देना चाहते थे लेकिन इसके लिए भारत आना उनके लिए मुश्किल था। इस सिस्टम के सामने आने के बाद ऐसे लोग भी वोट डाल पाएंगे। चुनाव आयोग ने देश की सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीतिक पार्टियों को रिमोट वोटिंग सिस्टम की लीगल, प्रशासनिक और तकनीकी पहलुओं की जानकारी देने के लिए पत्र लिखा है। आयोग ने 31 जनवरी तक इन पार्टियों से इस पर फीडबैक भी मांगा है। लेकिन आखिर ये रिमोट वोटिंग सिस्टम है क्या और ये कैसे काम करेगा? आइए बताते हैं।

रिमोट वोटिंग की जरूरत
भारत में करीब एक तिहाई आबादी वोट नहीं देते हैं। 2019 के लोकसभा चुनाव में करीब 30 करोड़ लोगों ने वोट ही नहीं दिया। ये संख्या अमेरिका की कुल आबादी के बराबर है। चुनाव आयोग ने लोगों के वोट न देने के तीन कारण बताए। इसमें शहरों में चुनाव के प्रति उदासीनता, युवाओं की कम भागीदारी और प्रवासी नागरिकों का दूर रहना शामिल है। रिमोट वोटिंग सिस्टम इन्हीं प्रवासी लोगों के लिए काम करेगा।

क्या कहते हैं नियम?
फिलहाल समस्या यह है कि लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 की धारा 19 के तहत मतदाता केवल उसी निवार्चन क्षेत्र में वोट डाल सकता है, जहां को वो निवासी है। अगर आप नौकरी या पढ़ाई की वजह से किसी दूसरी शहर या राज्य में शिफ्ट हो गए हैं, तो आपको उस जगह का नया वोट बनवाना होगा और पुरानी वोटर लिस्ट से अपना नाम भी हटवाना पड़ेगा। लेकिन ये प्रक्रिया काफी जटिल है इसलिए कई लोग नए सिरे से वोट बनवाने की जहमत नहीं उठाते। इसकी सबसे बड़ी ये है कि वो ये नहीं जानते कि नई जगह पर वो कितने वक्त तक रहेंगे।

नियम यह भी है कि वोटर्स को मतदान केंद्र पर जाकर ही वोट देना होता है। पोस्टल बैलेट का ऑप्शन केवल चुनाव ड्यूटी में लगे कर्मचारी, आवश्यक सेवाओं में लगे सरकारी कर्मचारी, 80 साल से ज्यादा उम्र के बुजुर्ग, दिव्यांग और कोविड पॉजिटिव वोटर्स के लिए है। 2015 में घरेलू प्रवासियों को मतदान के अधिकार से वंचित करने के एक मामले की सुनवाई करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से रिमोट वोटिंग के ऑप्शन पर विचार करने के लिए भी कहा था।

चुनाव आयोग ने क्या कदम उठाए?
सुप्रीम कोर्ट के विचार के बाद 29 अगस्त 2016 को चुनाव आयोग के पैनल के प्रतिनिधियों और राजनीतिक पार्टियों के बीच इसे लेकर चर्चा शुरू हुई। आयोग के पैनल ने टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (टीआईएसएस) की एक स्टडी को देखा, जिसमें घरेलू प्रवासन से मतदान पर पड़ने वाले असर का अध्ययन किया गया था। इस स्टडी में सरकारी मंत्रालय, संगठनों और एक्सपर्ट्स के साथ चर्चा करके एक रिपोर्ट तैयार की गई थी।

प्रवासी मतदाताओं के लिए इंटरनेट वोटिंग, प्रॉक्सी वोटिंग, तय तारीख से पहले मतदान और पोस्टल बैलेट जैसे समाधानों पर विचार किया गया, लेकिन चुनाव आयोग ने इनमें से किसी की सिफारिश करने से परहेज किया। इसके बजाय आयोग ने मतदाता सूची की तरफ फोकस किया ताकि किसी भी व्यक्ति के दो वोट न बन पाएं।

बाद में चुनाव आयोग ने आईआईटी मद्रास और अन्य संस्थानों के प्रतिष्ठित तकनीकी एक्सपर्ट्स के परामर्श से रिमोट वोटिंग पर एक रिसर्च प्रोजेक्ट शुरू किया। इस प्रोजेक्ट में मतदाताओं को उनके निवास स्थान से दूर मतदान केंद्रों पर टू-वे इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग सिस्टम का इस्तेमाल करके बायोमेट्रिक डिवाइस और वेब कैमरे की मदद से वोट डालने की अनुमति दी।

आरवीएम के लिए अब जोर क्यों?
पिछले साल मई में मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने उत्तराखंड के सुदूर मतदान केंद्रों का दौरा किया। इस दौरान उन्होंने 18 किलोमीटर की यात्रा की। उन्होंने पहली बार जाना कि कम मतदान होने के पीछे घरेलू प्रवासन कितना बड़ा कारण है। इसके साथ ही प्रवासी मतदाता केवल इसलिए वोट नहीं दे पाते क्योंकि वो वोटिंग वाले दिन अपने क्षेत्र में नहीं पहुंच पाते। इसके बाद चुनाव आयोग ने रिमोट वोटिंग सिस्टम को अंतिम रूप देने के लिए एक समिति का गठन किया और 29 दिसंबर को सभी राजनीतिक पार्टियों के सामने ड्राफ्ट पेश किया, जिसमें इस सिस्टम के तमाम पहलुओं का जिक्र है।

चुनाव आयोग ने ईवीएम की आपूर्ति करने वाले दो पीएसयू भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) और इलेक्ट्रॉनिक्स कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (ईसीआईएल) के साथ काम किया। आयोग ने ईवीएम के मौजूदा ‘एम3’ मॉडल पर आधारित रिमोट वोटिंग सिस्टम को मजबूत और फुलप्रूफ बनाने के लिए इन संस्थाओं के साथ काम किया। ईसीआईएल ने अब आरवीएम का एक प्रोटोटाइप विकसित किया है जो एक रिमोट पोलिंग बूथ से 72 निर्वाचन क्षेत्रों के लिए मतदान करा सकता है। आरवीएम ईवीएम की तरह ही नॉन नेटवर्क डिवाइस है। चुनाव आयोग का दावा है कि बिल्कुल सुरक्षित है।

कैसे काम करता है आरवीएम?
इसे समझने के लिए मान लीजिए कि आप उत्तर प्रदेश में पैदा हुए हैं और वहीं आपका वोट है। लेकिन नौकरी के सिलसिले में आपको महाराष्ट्र में रहना पड़ रहा है। अब वोटिंग वाले दिन महाराष्ट्र में ही एक खास वोटिंग स्टेशन होगा, जहां से आप उत्तर प्रदेश में अपने नेता को चुन पाएंगे। इस वोटिंग स्टेशन से आप तो वोट डाल ही पाएंगे साथ में उत्तर प्रदेश के अन्य विधानसभा के लोग भी वोट दे पाएंगे। शुरुआत में ये रिमोट वोटिंग सिस्टम इस साल होने वाले विधानसभा चुनावों में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लगाए जा सकते हैं। आरवीएम वोटिंग स्टेशन पर कई निवार्चन क्षेत्र की जानकारी होगी। जैसे ही निर्वाचन क्षेत्र को चुनेंगे सभी उम्मीदवारों की सूची सामने आ जाएगी। इसे देखकर प्रवासी लोग वोट दे पाएंगे।

क्या चुनौतियां बाकी हैं?

1. कानूनी चुनौतियां
रिमोट वोटिंग सिस्टम के सामने पहली चुनौती तो कानूनी नियम में संसोधन की जरूरत होगी। इसके लिए जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 और 1951 में संशोधन करना पड़ेगा। इसके साथ ही रजिस्ट्रेशन ऑफ इलेक्टर्स रूल-1960 में भी बदलाव करना होगा। इसमें प्रवासी नागरिकों की दूसरे राज्य में रहने की अवधि और वजह को भी लिखना होगा। साथ ही रिमोट वोटिंग को भी परिभाषित करना होगा।

2. प्रशासनिक चुनौतियां
इसके साथ रिमोट वोटर्स की गणना, रिमोट लोकेशन पर मतदान की गोपनियता, रिमोट वोटिंग स्टेशन की संख्या और स्थान तय करना, दूर-दराज के मतदान केंद्रों के लिए मतदान कर्मियों की नियुक्ति, और मतदान वाले राज्य के बाहर के स्थानों में मॉडल कोड लागू करना।

3. तकनीकी चुनौतियां
रिमोट वोटिंग की प्रक्रिया, मतदाताओं को आरवीएम सिस्टम की समझ,दूर-दराज के बूथों पर डाले गए वोटों की गिनती करना और मतदान वाले राज्य में रिटर्निंग अधिकारियों को नतीजे भेजना।

कैसे होगी रिमोट वोटिंग?
1 रिमोट मतदाताओं को एक तय समय में ऑनलाइन या ऑफलाइन आवेदन के लिए रजिस्ट्रेशन करना होगा।
2 रिमोट मतदाताओं द्वारा दी गई जानकारी को उनके गृह निर्वाचन क्षेत्र में वेरिफाई किया जाएगा।
3 बहु निर्वाचन क्षेत्रों के दूरस्थ मतदान बूथ चुनाव स्थल के बाहर स्थापित किए जाएंगे।
4 मतदान केंद्र पर वोट डालने वाले के वोटर आईडीकार्ड को आरवीएम पर मतपत्र प्रदर्शित करने के लिए स्कैन किया जाएगा।
5 मतदाता आरवीएम पर अपनी पसंद के प्रत्याशी का बटन दबाएंगे।
6 वोट रिमोट कंट्रोल यूनिट में राज्य कोड, निर्वाचन क्षेत्र संख्या और उम्मीदवार संख्या के साथ दर्ज किया जाएगा।
7 वीवीपीएटी राज्य और निर्वाचन क्षेत्र कोड के अलावा उम्मीदवार का नाम, प्रतीक और क्रम संख्या जैसे विवरण के साथ पर्ची प्रिंट करेगा।
8 मतगणना के दौरान आरवीएम की रिमोट कंट्रोल यूनिट उम्मीदवारों के क्रम में प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतों को पेश करेगी।
9 मतगणना के लिए नतीजे गृह राज्य में रिटर्निंग अधिकारियों के साथ शेयर किए जाएंगे।

अब होवित्जर और रॉकेट सिस्टम भी संभालेंगी महिलाएं

आर्टिलरी रेजिमेंट्स में तैनाती की तैयारी कर रही सेना

नयी दिल्‍ली । वे राफेल जैसा फाइटर जेट उड़ाती हैं, युद्धपोतों का जिम्‍मा संभालती हैं। जल्‍द ही आप महिलाओं को बोफोर्स होवित्जर, के-9 वज्र जैसी तोपें चलाते देखेंगे। भारतीय सेना एक अहम बदलाव की तैयारी में है। महिला अधिकारियों को सेना में परमानेंट कमिशन पहले ही मिल चुका है। अब उन्‍हें आर्टिलरी रेजिमेंट में शामिल करने की तैयारी है। 12 लाख सैनिकों वाली भारतीय सेना में आर्टिलरी की भूमिका ‘कॉम्‍बेट सपोर्ट आर्म’ की है। फिर भी चीन और पाकिस्‍तान से लगती सीमाओं पर आर्टिलरी यूनिट्स तैनात हैं। एक वरिष्‍ठ सै‍न्‍य अधिकारी के अनुसार, यह कवायद सेना को जितना हो सके, जेंडर न्‍यूट्रल बनाने की दिशा में है। हालांकि, अभी महिला अधिकारियों को इन्‍फैंट्री की ‘कॉम्‍बेट आर्म्‍स’, आर्मर्ड रेड कॉर्प्‍स (टैंक) और मेकेनाइज्‍ड इन्‍फैंट्री में रखने की योजना नहीं है। इसी तरह, नौसेना ने भी अभी पनडुब्बियों से महिलाओं को दूर रखा है।

भारतीय सेना में 280 से ज्‍यादा आर्टिलरी रेजिमेंट्स हैं। इनके पास 105 एमएम फील्‍ड गन्‍स, बोफोर्स होवित्‍जर, धनुष, सारंग से लेकर नई एम-777 अल्‍ट्रा-लाइट होवित्‍जर और K-9 वज्र जैसी सेल्‍फ-प्रोपेल्‍ड गन्‍स का जिम्‍मा है। स्‍वदेशी पिनाका मल्‍टी-लॉन्‍च रॉकेट सिस्‍टम और रूसी स्‍मर्च एंड ग्रैड यूनिट्स भी आर्टिलरी का हिस्‍सा हैं।

सेना में अभी खासी कम है महिलाओं की भागीदारी
आर्म्‍ड फोर्सेज में महिला अधिकारियों की भर्ती 1990s से होती आई है। इसके बावजूद, तीनों सेनाओं के कुल 65,000 अधिकरियों में महिलाओं की संख्‍या 3,900 से थोड़ी ही ज्‍यादा है। सेना में 1,710 महिला अधिकारी हैं तो वायुसेना में 1,650 और नौसेना में 600 महिला ऑफिसर्स हैं। इसके अलावा, मिलिट्री मेडिकल स्‍ट्रीम में करीब 1,670 महिला डॉक्‍टर्स, 190 डेंटिस्‍ट्स और 4,750 नर्सेज हैं। बहुत वक्‍त तक अड़ंगा रहा, अब हर बंधन तोड़ रहीं महिलाएं
लंबे वक्‍त तक सैन्‍य नेतृत्‍व बड़े पैमानें पर महिलाओं की भर्ती का विरोध करता रहा। उन्‍हें ‘ऑपरेशन, प्रैक्टिकल या कल्‍चरल प्रॉब्‍लम्‍स’ के आधार पर कॉम्‍बेट रोल असाइन करने या परमानेंट कमिशन देने में आनाकानी हुई। लेकिन महिलाओं ने हार नहीं मानी। अक्‍सर सुप्रीम कोर्ट की मदद मिली, अब वे एक-एक करके रुकावटें दूर कर रही हैं। उदाहरण के लिए, पिछले साल अगस्‍त से खड़कवासला स्थित नैशनल डिफेंस एकेडमी में 19 महिला कैडेट्स (आर्मी से 10, आईएएफ से 6 और नेवी की 3) तीन साल का कोर्स कर रही हैं।

महिला सैन्‍य अधिकारी अब लीगल और एजुकेशन विंग से इतर आठ नई शाखाओं में परमानेंट कमिशन पा सकती हैं। इनमें आर्मी एयर डिफेंस, सिग्‍नल्‍स, इंजिनियर्स, आर्मी एविएशन, ईएमई, आर्मी सर्विस कॉर्प्‍स, आर्मी ऑर्डनेंस कॉर्प्‍स और इंटेलिजेंस कॉर्प्‍स शामिल हैं।

जब पीएम बनने पर भी तीन मूर्ति भवन में रहने से लाल बहादुर शास्त्री ने किया इनकार

नयी दिल्ली । भारत के दूसरे प्रधानमंत्री स्वर्गीय लाल बहादुर शास्त्री की आज पुण्यतिथि है। छोटा कद, साफ-सुथरी छवि और सादगी भरा व्यक्तित्व। लाल बहादुर शास्त्री को जब भी हम याद करते हैं हमारे जहन में यह तस्वीर सहसा ही सामने आ जाती है। शास्त्री डेढ़ साल तक भारत के प्रधानमंत्री रहे। इस छोटे से कार्यकाल में लाल बहादुर शास्त्री ने जो शोहरत और सम्मान हासिल किया वह अपने-आप में काबिले तारीफ था। उनसे जुड़े किस्से आज भी मशहूर हैं। चाहे वह पीएम बनने के बाद तीन मूर्ति भवन में न रहने का फैसला हो, पीएम रहने के बावजूद दुकानदार से सस्ती साड़ी की मांग या ट्रेन के कूलर को निकलवाने का आदेश। आज हम उनकी जिंदगी से जुड़े किस्सों को आपके सामने लेकर आए हैं।

प्रधानमंत्री कैसे बने शास्त्री
यह तो सब जानते हैं कि लाल बहादुर शास्त्री देश के दूसरे प्रधानमंत्री थे। लेकिन क्या आपको पता है कि आखिर किन हालात में शास्त्री जी को पीएम बनाया गया था। हम आपको बताते हैं। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू के निधन के बाद पीएम की रेस में दो लोगों का नाम सबसे आगे चल रहा था। एक थे मोरारजी देसाई और दूसरे थे लाल बहादुर शास्त्री। यहां गौर करने वाली बात यह है कि नेहरू अपने अंतिम दिनों में बहुत हद तक लाल बहादुर शास्त्री पर निर्भर थे। उनपर नेहरू खुलकर भरोसा करते थे। वहीं दूसरी ओर मोरारजी देसाई पीएम की दौड़ में आगे तो थे लेकिन ज्यादातर नेता सहमत नहीं थे। बातचीत के बाद नेताओं का मानना था कि मोरारजी देसाई एक विवादास्पद पसंद हो सकते हैं। देसाई की आक्रामक छवि और मनमर्जी से फैसले लेने की आदत पर नेताओं को आपत्ति थी। जिसके बाद जिस नाम सबकी आम सहमति बनी वो थे लाल बहादुर शास्त्री। नेहरू के निधन के बाद इस पद पर बैठना शास्त्री के लिए आसान नहीं था। नेहरू का कद हर कोई मैच नहीं कर सकता था। लेकिन शास्त्री ने पीएम रहते हुए इस खालीपन को भरने में कोई कमी नहीं आने दी।

तीन मूर्ति में क्यों नहीं रहे शास्त्री जी
भारत के दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री किसी भी सूरत में तीन मूर्ति भवन में रहने के पक्ष में नहीं थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद तीन मूर्ति भवन लालबहादुर शास्त्री को आवंटित हुआ, लेकिन उन्होंने वहां शिफ्ट करने से मना कर दिया था। शास्त्रीजी तीन मूर्ति में मोटे तौर पर दो कारणों के चलते जाने के लिए तैयार नहीं थे। पहला, शास्त्री जी का तर्क था कि वे जिस पृष्ठभूमि से आते हैं, उसे देखते हुए उनका तीन मूर्ति में रहना ठीक नहीं रहेगा। दूसरा, वे तीन मूर्ति भवन में इस आधार पर भी जाने के लिए राज़ी नहीं हुए क्योंकि वे मानते थे कि देश तीन मूर्ति भवन को नेहरू जी से भावनात्मक रूप से जोड़कर देखता है। इसलिए वहां पर उनका कोई स्मारक बने। यह जानकारी शास्त्री जी की पत्नी ललिता शास्त्री ने खुद इस बात का जिक्र 1988 में अपने जनपथ स्थित आवास में किया था। मैं जिस पृष्ठभूमि से आता हूं उसे देखते हुए मेरा तीन मूर्ति में रहना ठीक नहीं होगा। तीन मूर्ति भवन को देश नेहरू जी से भावनात्मक रूप से जोड़कर देखता है। इसलिए वहां उनका कोई स्मारक बनना चाहिए।

दुकानदार से सस्ती साड़ी की मांग
एक बार लाल बहादुर शास्त्री जी अपनी पत्नी के लिए साड़ी खरीदने एक दुकान में गए। प्रधानमंत्री के पद पर थे सो दुकानदार भी अपने पीएम को देखकर काफी खुश हुआ। शास्त्री जी ने कहा कि उन्हें 5-6 साड़ियां चाहिए। दुकानदार तुरंत एक से बढ़कर एक साड़ियां दिखाने लगा। साड़ियां काफी महंगी थी। शास्त्री जी ने दुकानदार से सस्ती साड़ियां दिखाने को कहा। साड़ीवाले ने कहा कि आप पधारे यह तो मेरा सौभाग्य है। लेकिन शास्त्री जी ने कहा कि मैं दाम देकर साड़ियां ले जाउंगा। सो जितना कह रहा हूं उसपर ध्यान दो और सस्ती साड़ियां दिखाओ। दुकानदार ने प्रधानमंत्री की बात मानते हुए सस्ती साड़ियां दिखाईं और शास्त्री जी कीमत अदा कर वहां से चले गए।

ट्रेन से निकलवा दिया कूलर
यह उस समय की बात है जब शास्त्री जी रेल मंत्री के पद पर थे। एक दिन अचानक उन्हें किसी काम से मुंबई जाना पड़ा। ट्रेन में उनकी टिकट फर्स्ट क्लास में बुक की गई थी। पहले तो शास्त्री जी बैठ गए लेकिन उन्हें सफर के दौरान ठंडी लगने लगी। जबकि बाहर गर्म हवाएं और लू चल रही थी। शास्त्री जी बोले कि अंदर ठंडक है लेकिन बाहर काफी गर्मी है। उनके पीए कैलाश बाबू ने कहा कि आपकी सुविधा के लिए कूलर लगवाया है। इतना सुनते ही शास्त्री जी ने अपने पीएम की तरफ देखकर पूछा कि तुमने कूलर लगवाया और मुझे बताया भी नहीं। और लोगों को गर्मी नहीं लगती क्या? पीएम शास्त्री जी ने कहा कि आगे गाड़ी रुकने पर कूलर निकलवा देना। तब मथुरा स्टेशन पर गाड़ी रुकते ही सबसे पहले कूलर निकलवा दिया गया।

56 किलो सोने की कहानी शास्त्री जी को तौलने के लिए
यह घटना 16 दिसंबर 1965 की है। राजस्थान के चित्तौड़गढ़ के छोटी सादड़ी में पीएम की यात्रा होनी थी। उस समय गणपत लाल अंजना ने शास्त्री जी को तौलने के लिए 56.863 किलो सोना इकट्ठा किया था मगर लाल बहादुर शास्त्री की यात्रा नहीं हो पाई। ताशकंद समझौते के बाद उनका निधन हो गया था। इसके बाद अगले साल 26 जनवरी 1966 को गणपत लाल आंजना ने उस वक्त की सरकार के गोल्ड बॉन्ड स्कीम के तहत सोना जमा कराकर रसीद ले ली थी। इसके बाद इस सोने के कई दावेदार पैदा हो गए। मामला कोर्ट तक गया। 55 साल इसकी कानूनी लड़ाई चली जिसके बाद राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार के पक्ष में मामला गया।

दोस्ती – सड़क हादसे में घायल स्वीटी को बचाने के लिए आगे आए उसके 8 दोस्त

सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल हुई बीटेक फाइनल ईयर की छात्रा स्वीटी की हालत में लगातार सुधार हो रहा है। इसका श्रेय डॉक्टरों के साथ उनके दोस्तों को भी जाता है। इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे आठ दोस्तों के ग्रुप ने स्वीटी के लिए दिन रात एक कर दिए और आर्थिक तंगी के कारण इलाज रुकने नहीं दिया। इन दोस्तों ने अपने एग्जाम की तैयारी छोड़कर सोशल मीडिया और अन्य माध्यम से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद 10 दिन में 40 लाख रुपये स्वीटी के इलाज के लिए एकत्र कर लिए ताकि पैसों की तंगी के कारण उसके इलाज में रुकावट न आए। इनमें 11 लाख रुपये की मदद पुलिस विभाग ने की। आज स्वीटी पूरे होश में हैं और आईसीयू से जनरल वॉर्ड में शिफ्ट हो चुकी है।

स्वीटी को अपने दोस्तों पर गर्व है। उधर, दोस्त आशीर्वाद मणि त्रिपाठी समेत अन्य ने बताया कि एक्सीडेंट के दौरान बीटेक फाइनल ईयर के एग्जाम शुरू हो गए। हमें एग्जाम से ज्यादा टेंशन स्वीटी की थी। एग्जाम तो फिर भी आ जाएंगे, लेकिन दोस्त के इलाज में लापरवाही नहीं कर सकते थे। स्वीटी उनकी क्लासमेट है और अच्छी दोस्त है। दोस्ती का फर्ज निभाने के लिए उन्होंने मदद की है।

पहले जुटाए एक लाख रुपये मगर जरूरत थी…

पिता ने बताया कि सेक्टर डेल्टा टू के पास स्वीटी का एक्सीडेंट होने के बाद उसे कैलाश अस्पताल में भर्ती कराया गया था। आर्थिक तंगी के चलते इतना महंगा इलाज कराना उनके के लिए संभव नहीं था। इस दौरान स्वीटी के कॉलेज के आठ दोस्त फरिश्ता बनकर आए और मदद में जुट गए। इनमें आशीर्वाद मणि त्रिपाठी, करण पांडे, आदर्श सिंह, राज श्रीवास्तव, अनुभव यादव, राजमणि, चंदन सिंह, शुभम, प्रतीक ने उन्हें आश्वासन दिया कि वह पूरी मदद करेंगे और स्वीटी को कुछ नहीं होने देंगे। सभी दोस्तों ने चंदा एकत्र किया और कुछ मदद कॉलेज से ली। करीब एक लाख रुपये जमाकर इलाज शुरू कराया। इस दौरान डॉक्टर्स ने स्वीटी के इलाज में 30 लाख से अधिक का खर्च का अनुमान बताया। इसके बाद दोस्तों ने स्वीटी के इलाज के लिए दिन रात एक कर लोगों से मदद की गुहार लगाई। तमाम वॉट्सऐप ग्रुप, टि्वटर, फेसबुक, इंस्टाग्राम समेत अन्य सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर स्वीटी की फोटो और उसके पिता का अकाउंट नंबर वायरल किया। इस पर लोगों ने दुख दर्द को समझते हुए हर रोज 10 रुपये से लेकर लाखों रुपये तक मदद के तौर पर देने शुरू किए। 10 दिन में 29 लाख रुपये दिल्ली एनसीआर समेत देशभर के लोगों ने अकाउंट में ट्रांसफर किए। घटना तेजी से वायरल होने के बाद पुलिस कमिश्नर लक्ष्मी सिंह ने भी स्वीटी के पिता की आर्थिक स्थिति को देखते हुए 10 लाख रुपये पुलिस विभाग और एक लाख रुपये अपनी तरह से दिए। सभी की मदद और दुआ से स्वीटी के स्वास्थ्य में सुधार हो रहा है।

जिस छात्र की कलाकृति को अश्लील बताकर निकाला गया, बना बीएचयू में स्वर्ण पदक विजेता

अहमदाबाद । बिहार के मुजफ्फरपुर जिले के गोदाई फुलकाहां में रहने वाले कुंदन कुमार ने कभी सपने में नहीं सोचा होगा कि वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर पाएगा। जिस कला को वह शिद्दत से चाहता है, वही कला एक दिन उसके लिए परेशानी का सबब बन जाएगी। कुंदन कुमार ने कड़ी मेहनत के बाद वडोदरा की विश्व विख्यात यूनिवर्सिटी महाराजा सयाजीराव विश्विविद्यालय  में प्रवेश तो पा लिया लेकिन इन दिनों कुंदन कुमार बिहार में अपने घर पर रहने को मजबूर हैं। इसकी वजह है कि कुंदन कुमार को एमएसयू ने हमेशा के लिए डिबार (निष्कासित) कर दिया है। हालांकि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) ने अपने पूर्व छात्र को उनके अच्छे अभ्यास के लिए गोल्ड मेडल प्रदान किया है। कुंदन ने कहा, ‘मैं खुशी मनाऊं या अफसोस करूं। यह सही है कि बीएचयू से मुझे गोल्ड मेडल मिला है, लेकिन मैं आज भी अपनी पीजी की पढ़ाई पूरी नहीं कर पा रहा हूं। मैं बीएचयू का गोल्ड मेडलिस्ट हूं और एमएयू के लिए डिबार छात्र।’ कुंदन बताते हैं कि गांव के आसपास ही उन्होंने 12वीं तक पढ़ाई पूरी की थी। एनबीटी ऑनलाइन से बातचीत में कुंदन ने कहा, ‘कला में विशेष रुचि को देखते हुए मेरे शुरुआत के कला शिक्षक गोपाल फलक ने मुझे 12वीं के बाद बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी से बीएफए (बैचलर ऑफ फाइन आर्ट्स) का सुझाव दिया। इसके बाद मैं बीएचयू गया। वह प्रवेश मिला। 2021 में पासआउट होकर एमएसयू के मास्टर ऑफ विजुअल आर्ट़्स के पाठ्यक्रम में प्रवेश लिया। इसी दौरान जब पहला असेसमेंट था तो मैंने न्यूजपेपर की कवरेज के आधार कुछ आर्ट वर्क तैयार किए थे। इन आर्ट वर्क को लेकर जैसे ही आपत्ति आई तो मैंने हटा दिया। इसके बाद मैंने माफी भी मांगी, लेकिन यूनिवर्सिटी ने आनन-फानन में मुझे डिबार कर दिया।’
कैसे हुआ निष्कासन?
अप्रैल, 2022 तक कुंदन की जिंदगी में सबकुछ ठीक चल रहा था। मई महीने में कुंदन ने एमएसयू के अपने डिपार्टमेंट से मिले आर्ट वर्क को तैयार किया और उन्हें इंटरनली असेसमेंट के लिए लगाया। असेसमेंट के बाद उन्हें हटा लिया, लेकिन इधर किसी ने इन आर्ट वर्क्स को सोशल मीडिया के जरिए वायरल कर दिया। 5 मई कैंपस में हिंदू संगठनों और एबीवीपी के हंगामे के बाद यह मामला तूल पकड़ गया। इसके बाद कुंदन कुमार के खिलाफ न सिर्फ एफआईआर दर्ज हुई, यूनिवर्सिटी ने उन्हें पहले अस्थायी तौर डिबार किया और फिर 13 मई को हमेशा के डिबार कर दिया। कुंदन ने यूनिवर्सिटी के फैसले को कोर्ट में चुनौती दी है। कुंदन के केस को गुजरात हाईकोर्ट में लड़ रहे वरिष्ठ वकील हितेश गुप्ता कहते हैं कि उन्हें उम्मीद है कि कुंदन को न्याय मिलेगा। कोर्ट की नोटिस पर यूनिवर्सिटी ने शपथ पत्र के साथ फैक्ट फाइडिंग कमेटी की रिपोर्ट कोर्ट में पेश की है। गुप्ता ने बताया कि अगली सुनवाई 2 फरवरी को है। फैक्ट फाइडिंग कमेटी की रिपोर्ट में उन बातों की पुष्टि हुई है। इसमें भी कहा गया है कि आर्ट वर्क यह इंटरनल असेंसमेंट के लिए था। इस गलत इरादे के साथ कुछ लोगों ने वायरल किया गया।

(स्त्रोेत – नवभारत टाइम्स)

सवा लाख से ज्यादा लोगों को नौकरी देगी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज

नयी दिल्ली । भारत की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर एक्सपोर्टर कंपनी टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज आने वाले वित्त वर्ष यानी साल 2023-24 में सवा लाख लोगों से ज्यादा को नौकरी देगी । ये आईटी सेक्टर में भर्ती को लेकर बहुत बड़ा एलान है और इसका कंपनी को फायदा मिलने का निश्चित अनुमान है ।
हाल में घटी है टीसीएस के कर्मचारियों की संख्या
सॉफ्टवेयर कंपनी के कर्मचारियों की संख्या अक्टूबर-दिसंबर तिमाही में 2,197 घटकर 6.13 लाख हो गई है। दिसंबर 2022 की तिमाही में कुल एंप्लाइज की संख्या में गिरावट आने के बावजूद टीसीएस ने कहा है कि वह वित्त वर्ष 2023-24 में 1.25 लाख से अधिक लोगों को नौकरी देगी। वित्त वर्ष 2021-22 में कंपनी ने 1.03 लाख नए लोगों को नौकरी दी और अक्टूबर-दिसंबर की तिमाही में 2,197 लोगों के कम हो जाने के बावजूद वित्त वर्ष 2023 में अभी तक शुद्ध रूप से टीसीएस लगभग 55,000 लोगों को भर्ती कर चुकी है ।
कंपनी के चीफ एग्जीक्यूटिव डायरेक्टर और मैनेजिंग डायरेक्टर राजेश गोपीनाथन ने कल कहा, “अगर आप भर्तियों के हमारे कुल रुझान को देखेंगे तो हम लगभग समान स्तर पर भर्तियां कर रहे हैं। हमें अगले वित्त वर्ष में 1,25,000 से 1,50,000 तक लोग भर्ती करने चाहिए।” कंपनी के मुख्य मानव संसाधन अधिकारी (चीफ एच आर) मिलिंद लक्कड़ ने कहा कि वित्त वर्ष 2022-23 में अभी तक 42,000 नए लोगों की भर्ती की जा चुकी हैं ।

जोशीमठ के चमकने से दरकने तक की पूरी कहानी

गढ़वाल हिमालय का गजेटियर लिखने वाले अंग्रेज़ आईसीएस अफसर एचजी वॉल्टन ने 1910 के जिस जोशीमठ का ज़िक्र किया है । वह थोड़े से मकानों, रैनबसेरों, मंदिरों और चौरस पत्थरों से बनाए गए नगर चौक वाला एक अधसोया-सा कस्बा है, जिसकी गलियों को व्यापार के मौसम में तिब्बत से व्यापार करने वाले व्यापारियों के याक और घोड़ों की घंटियाँ कभी-कभी गुंजाती होंगी ।
पुराने दिनों में इन व्यापारियों की आमदरफ़्त के चलते जोशीमठ एक संपन्न बाज़ार रहा होगा । अलबत्ता वॉल्टन के समय तक ये व्यापारी अपनी मंडियों को दक्षिण की तरफ यानी नंदप्रयाग और उससे भी आगे तक स्थानांतरित कर चुके थे ।
वॉल्टन तिब्बत की ज्ञानिमा मंडी में, पीढ़ी-दर-पीढ़ी हर साल तिजारत के लिए जाने वाले उन भोटिया व्यापारियों की मंडियों के उन अवशेषों का भी ज़िक्र करते हैं, जो उन्होंने जोशीमठ में देखे थे ।
अलकनंदा नदी की ऊपरी उपत्यका में स्थित जोशीमठ की जनसंख्या 1872 में 455 थी, जो 1881 में बढ़कर 572 हो गयी । सितंबर 1900 में यह संख्या 468 गिनी गई लेकिन उस बार की जनगणना के समय बद्रीनाथ के रावल और अन्य कर्मचारी यहाँ उपस्थित नहीं थे ।
ये अनुपस्थित लोग तीर्थयात्रा के सीजन में यानी नवंबर से मध्य मई के दौरान बद्रीनाथ मंदिर में रह कर श्रद्धालुओं के रहने-खाने और पूजा-पाठ की व्यवस्था किया करते थे ।
जाड़े के मौसम में उन्हें जोशीमठ आना पड़ता, क्योंकि उन दिनों बद्रीनाथ धाम बर्फ के नीचे दब जाता है और कपाट बंद करने पड़ते हैं । कर्णप्रयाग से तिब्बत तक जाने वाला मार्ग चमोली, जोशीमठ और बद्रीनाथ से होता हुआ माणा दर्रे तक पहुँचता है जबकि एक दूसरा मार्ग तपोवन और मलारी होते हुए नीति दर्रे तक ।
परंपरागत रूप से बद्रीनाथ के रावलों और अन्य कर्मचारियों के शीतकालीन आवास के रूप में विकसित हुए जोशीमठ ने धीरे-धीरे गढ़वाल को सुदूर सीमांत माणा और नीति घाटियों की महत्वपूर्ण बस्तियों से जोड़ने वाले मार्ग के एक महत्वपूर्ण पड़ाव का रूप ले लिया होगा । इस के बाशिंदों में पण्डे, छोटे-बड़े व्यापारी और खेती का काम करने वाले साधारण पहाड़ी लोग थे.
जोशीमठ की उत्पत्ति की कहानी
उत्तराखंड के गढ़वाल के पैनखंडा परगना में समुद्र की सतह से 6107 फीट की ऊँचाई पर, धौली और विष्णुगंगा के संगम से आधा किलोमीटर दूर जोशीमठ की उत्पत्ति की कहानी उन्हीं आदि शंकराचार्य से जुड़ी है । आठवीं-नवीं शताब्दियों में की गई जिनकी हिमालयी यात्राओं ने उत्तराखंड के धार्मिक भूगोल को व्यापक रूप से बदल दिया था ।
दक्षिण भारत के केरल राज्य के त्रावणकोर के एक छोटे से गाँव में जन्मे आदि शंकराचार्य ने वेदान्त दर्शन के प्रसार-प्रचार के उद्देश्य से बहुत छोटी आयु में अपनी मलयालम जड़ों से निकल कर सुदूर हिमालय की सुदीर्घ यात्राएँ कीं और असंख्य लोगों को अपना अनुयायी बनाया ।
इन अनुयायियों के लिए उन्होंने चार दिशाओं में चार मठों का निर्माण किया- पूर्व में उड़ीसा के पुरी में वर्धन मठ, पश्चिम में द्वारिका का शारदा मठ, दक्षिण में मैसूर का श्रृंगेरी मठ और उत्तर में ज्योतिर्मठ यानी जोशीमठ ।
जोशीमठ के बाद बद्रीनाथ में नारायण के ध्वस्त मंदिर के पुनर्निर्माण का कार्य पूरा कराने के उपरान्त वे केदारनाथ गए, जहाँ 32 साल की छोटी सी उम्र में उनका देहांत हो गया ।


आदि शंकराचार्य को मिला दिव्य ज्ञान
जोशीमठ की ऐतिहासिक महत्ता इस जन-विश्वास में निहित है कि आधुनिक हिन्दू धर्म के महानतम धर्मगुरु माने जाने वाले आदि शंकराचार्य ने यहाँ शहतूत के एक पेड़ के नीचे समाधिस्थ रह कर दिव्य ज्ञान हासिल किया था।
इसी कारण इसे ज्योतिर्धाम कहा गया । यह विशाल पेड़ आज भी फलता-फूलता देखा जा सकता है और इसे कल्पवृक्ष का नाम दे दिया गया है । फ़िलहाल इस वृक्ष से लगा मंदिर भी टूट चुका है और वह गुफा भी ध्वस्त हो चुकी है, जिसके बारे में कहा जाता है कि वहाँ शंकराचार्य ने साधना की थी ।
जोशीमठ के बारे में अनेक धार्मिक मान्यताएँ प्रचलन में हैं । यहाँ भगवान नृसिंह का मंदिर है, जहाँ भक्त बालक प्रह्लाद ने तपस्या की थी । अनेक देवी-देवताओं के मंदिरों के अलावा यहाँ कई देवताओं, जैसे ब्रह्मा, विष्णु, शिव, गणेश, भृंगी, ऋषि, सूर्य और प्रह्लाद के नाम पर अनेक कुंड भी हैं । ये तथ्य इस छोटे से पहाड़ी नगर को देश के धार्मिक मानचित्र पर एक महत्वपूर्ण बिंदु बनाते हैं ।
कुमाऊं-गढ़वाल से कैसे जुड़ा है जोशीमठ
कुमाऊं-गढ़वाल के इतिहास के बहुत महत्वपूर्ण तार भी इस सुंदर नगर से जुड़े हुए हैं । इस हिमालयी भूभाग पर लंबे समय तक राज्य करने वाले कत्यूरी शासकों की पहली राजधानी भी यहीं थी और ज्योतिर्धाम कहलाती थी । कत्यूरी सम्राट श्री वासुदेव गिरिराज चक्र चूड़ामणि उर्फ़ राजा बासुदेव ने इसे अपनी सत्ता का केंद्र बनाया था ।
एटकिंसन के मशहूर हिमालयन गजेटियर में सर एचएम एलियट के हवाले से फारसी इतिहासकार राशिद अल-दीन हमदानी के ग्रन्थ ‘जमी-उल तवारीख’ का उल्लेख करते हुए कत्यूरी राजा बासुदेव के बारे में लिखा गया है कि वह जोशीमठ में कत्यूरी साम्राज्य का संस्थापक था । कालान्तर में इस राजधानी को कुमाऊँ के पास बैजनाथ ले जाया गया ।
बैजनाथ मंदिर
कत्यूरों की राजधानी के जोशीमठ से बैजनाथ ले जाए जाने के पीछे क्या कारण रहा होगा, इस बाबत एक गाथा प्रचलित है । राजा वासुदेव का एक वंशज राजा शिकार खेलने गया हुआ था । उसकी अनुपस्थिति में मनुष्य का वेश धरे भगवान नृसिंह उसके महल में भिक्षा मांगने पहुँचे ।
रानी ने उनका आदर सत्कार किया और भोजन करा कर राजा के पलंग पर सुला दिया । राजा वापस लौटा तो अपने बिस्तर पर किसी अजनबी को सोता देख कर आग बबूला हो गया और उसने अपनी तलवार से नृसिंह की बांह पर वार किया ।
बांह पर घाव हो गया जिससे रक्त के स्थान पर दूध बहने लगा । घबरा कर राजा ने रानी को बुलाया जिसने उसे बताया कि उनके घर आया भिक्षु साधारण मनुष्य नहीं भगवान था. राजा ने क्षमा माँगी और नृसिंह से अपने अपराध का दंड देने का आग्रह किया । नृसिंह ने राजा से कहा कि अपने किए के एवज में उसे ज्योतिर्धाम छोड़ कर अपनी राजधानी को कत्यूर घाटी अर्थात बैजनाथ ले जाना होगा ।
उन्होंने आगे घोषणा की, “वहाँ के मंदिर में मेरी जो मूर्ति होगी उसकी बाँह पर भी ऐसा ही घाव दिखाई देगा । जिस दिन मेरी मूर्ति नष्ट होगी और उसकी बाँह टूट कर गिर जाएगी । तुम्हारा साम्राज्य भी नष्ट हो जाएगा और दुनिया के राजाओं की सूची में से तुम्हारे वंश का नाम हट जाएगा ।” इसके बाद नृसिंह ग़ायब हो गए और राजा को कभी नहीं दिखाई दिए लेकिन उनकी बात का मान रखते हुए राजा ने वैसा ही किया ।
भगवान नृसिंह का स्थान आदि शंकराचार्य ने लिया
इस कथा के एक दूसरे संस्करण में भगवान नृसिंह का स्थान आदि शंकराचार्य ले लेते हैं, जिनके साथ हुए धार्मिक विवादों के चलते कत्यूरी राजधानी को जोशीमठ से हटाया गया ।
एटकिंसन के गजेटियर में उल्लिखित इस गाथा के दूसरे संस्करण को लेकर आगे कयास लगाया गया है कि आदि शंकराचार्य द्वारा जोशीमठ में ज्योतिर्लिंग की स्थापना किए जाने के बाद ब्राह्मणों और बौद्धों के बीच वर्चस्व कायम करने की होड़ चल रही थी जिसके दौरान सद्यः-प्रस्फुटित शैवमत के अनुयायियों ने दोनों को परास्त कर जनता के बीच अपनी धार्मिक श्रेष्ठता सिद्ध की ।
जोशीमठ के मंदिर में रखी काले स्फटिक से बनी नृसिंह की मूर्ति के बारे में कहा जाता है कि उसका बायाँ हाथ हर साल कमज़ोर होता जाता है । जनश्रुतियों में कत्यूरी राजा को मिले अभिशाप के आगे का हिस्सा यह माना जाता है कि स्वयं भगवान विष्णु ने कहा था कि जिस दिन मूर्ति का हाथ पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो जाएगा, बद्रीनाथ धाम का रास्ता सदा के लिए अवरुद्ध हो जाएगा क्योंकि तब नर और नारायण पर्वत एक दूसरे में समा जाएँगे और भीषण भूस्खलन होगा । उसके बाद बद्रीनाथ के मंदिर को जोशीमठ से आगे भविष्य बद्री नामक स्थान पर ले जाना पड़ेगा.
फूलों की घाटी का रास्ता
गढ़वाल का समग्र इतिहास लिखने वाले विद्वान शिवप्रसाद डबराल तो जोशीमठ को महाभारत के काल से जोड़ते हैं और पाणिनि के ‘अष्टाध्यायी’ को उद्धृत करते हुए तर्क देते हैं कि प्राचीन काल का कार्तिकेयपुर नगर और कोई नहीं यही जोशीमठ था । आज के जोशीमठ को देखने पर वॉल्टन के गजेटियर का जोशीमठ किसी दूसरे युग का सपना सरीखा लगता है.
बीसवीं शताब्दी के उत्तरार्ध में पर्यटन के क्षेत्र में हुई ज़बरदस्त बढ़ोत्तरी के परिप्रेक्ष्य में जोशीमठ इस मायने में बेहद महत्वपूर्ण जगह बन गई कि यहाँ से होकर फूलों की घाटी का भी रास्ता जाता है और हेमकुंड साहिब का भी ।
धार्मिक महत्त्व की कितनी ही अन्य जगहों के मार्ग भी यहीं से शुरू होते हैं. इलाक़े में पर्यटन की अपार संभावनाओं को देखते हुए यहाँ से कुल 12 किलोमीटर दूर स्थित सुन्दर स्थल औली में एक बड़े स्कीइंग सेंटर की शुरुआत की गई जहाँ जाने के लिए 3915 मीटर लंबा रोपवे सिस्टम भी बनाया गया ।
जोशीमठ का सामरिक महत्व
तिब्बत से नज़दीकी होने के कारण इसके सामरिक महत्व को देखते हुए स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने यहाँ अनेक सैन्य व अर्ध-सैनिक बलों की इकाइयों को तैनात किया । इनमें सबसे बड़ा नाम गढ़वाल स्काउट्स का है । गढ़वाल राइफल्स की एक विशिष्ट बटालियन के रूप में तैयार की गई गढ़वाल स्काउट्स एक एलीट इन्फैन्ट्री बटालियन है जिसे लंबी रेंज के सर्वेक्षण और ऊँची जगहों पर युद्ध करने में महारत हासिल है ।
देश की सबसे गौरवशाली सैन्य-संपदाओं में गिनी जाने वाली इस बटालियन का मुख्यालय स्थाई रूप से जोशीमठ में है । 2011 की जनगणना के मुताबिक़ जोशीमठ की आबादी करीब सत्रह हज़ार हो चुकी थी । तमाम सैन्य इकाइयों-टुकड़ियों को गिना जाय तो आज यह आबादी अनुमानतः पचास हज़ार का आँकड़ा छू रही है।
मुकेश शाह जोशीमठ में व्यापार करते हैं. इस नगर में यह उनकी चौथी पीढ़ी निवास कर रही है । उनका मानना है कि बद्रीनाथ मार्ग पर होने के कारण जोशीमठ में व्यापार करने के बेहतरीन मौक़े थे जिसके चलते उनके दादा ने यहाँ आकर बसने का निर्णय लिया ।
आसपास के गाँवों में खूब खेती होती थी जिनसे आलू, राजमा, चौलाई, उगल और कुटू जैसी चीज़ों की भरपूर पैदावार मिलती थी । श्रेष्ठ गुणवत्ता वाली इन चीज़ों की दूर-दूर से मांग आती थी। मुकेश शाह के परिवार ने भी शुरू में यही कार्य किया ।
फ़िलहाल वे हार्डवेयर और होटल जैसे व्यवसायों में संलग्न हैं । इन वजहों से जोशीमठ ने पहाड़ के मूल निवासियों से इतर भी अनेक लोगों को यहाँ बसने के लिए आकर्षित किया । तमाम तरह के मानवीय श्रम और कौशल का काम करने वाले मज़दूर और कारीगर भी यहाँ के रोजमर्रा जीवन में रच-बस चुके हैं.
ठोस चट्टानें नहीं, रेत, मिट्टी और कंकड़-पत्थर
वैज्ञानिक और विशेषज्ञ बताते हैं कि जिस ढाल पर यह ऐतिहासिक नगर बसा हुआ है वह एक बेहद प्राचीन भूस्खलन के परिणामस्वरूप इकठ्ठा हुए मलबे के ढेर से बना है । इसका अर्थ यह हुआ कि इस नगर के घर जिस धरती पर बने हुए हैं उसके ठीक नीचे की सतह पर ठोस चट्टानें नहीं, रेत, मिट्टी और कंकड़-पत्थर भर हैं । ऐसी धरती बहुत अधिक बोझ बर्दाश्त नहीं कर पाती और धंसने लगती है ।
आज से क़रीब आधी शताब्दी पहले गढ़वाल के तत्कालीन कमिश्नर महेश चन्द्र मिश्रा की अध्यक्षता वाली एक कमेटी ने 1976 में प्रकाशित की गई अपनी एक रिपोर्ट में चेताया था कि जोशीमठ के इलाक़े में अनियोजित विकास किया गया तो उसके गंभीर प्राकृतिक परिणाम होंगे ।

(स्त्रोत – बीबीसी हिन्दी)

युवा दिवस पर विशेष – स्वामी विवेकानन्द के प्रेरक विचार

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को कोलकाता (कलकत्ता) में हुआ था। उनका बचपन का नाम नरेंद्रनाथ दत्त था। स्वामी विवेकानंद एक ऐसे संत थे जिनके रोम का हर कण राष्ट्रभक्ति से ओत-प्रोत था।
राष्ट्र के दीन-हीन लोगों की सेवा को ही विवेकानंद ईश्वर की सच्ची पूजा मानते थे। उन्होंने युवाओं के हृदय को जितना झंकृत किया, उतना शायद किसी और ने किया हो। विवेकानंद जी ने करोड़ों देशवासियों को समृद्ध करना ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया था। उन्होंने 4 जुलाई सन्‌ 1902 को देह त्याग किया था। वे भारत के महान संत, आध्यात्मिक गुरु एवं विचारक रामकृष्ण परमहंस के शिष्य थे। आज स्वामी जी की जयंती युवा दिवस के रूप में मनायी जाती है ।
1. खुद को कमजोर समझना सबसे बड़ा पाप है।
2. ब्रह्मांड की सारी शक्तियां पहले से हमारी हैं। वो हमी हैं, जो अपनी आंखों पर हाथ रख लेते हैं और फिर रोते हैं कि कितना अंधकार है।
3. उठो, जागो और तब तक नहीं रुको, जब तक कि लक्ष्य न प्राप्त हो जाए।
4. जिस तरह से विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न धाराएं अपना जल समुद्र में मिला देती हैं, उसी प्रकार मनुष्य द्वारा चुना हर मार्ग चाहे वह अच्छा हो या बुरा, भगवान तक जाता है।
5. किसी की निंदा न करें। अगर आप मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो जरूर बढ़ाएं। अगर नहीं बढ़ा सकते हैं, तो अपने हाथ जोड़िए, अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिए और उन्हें उनके मार्ग पर जाने दीजिए।
6. कभी मत सोचिए कि आत्मा के लिए कुछ असंभव है। ऐसा सोचना सबसे बड़ा विधर्म है। अगर कोई पाप है, तो वो यही है; ये कहना कि ‘तुम निर्बल हो या अन्य निर्बल हैं।
7. अगर धन दूसरों की भलाई करने में मदद करे, तो इसका कुछ मूल्य है अन्यथा ये सिर्फ बुराई का एक ढेर है और इससे जितना जल्दी छुटकारा मिल जाए, उतना बेहतर है।
8. जिस समय जिस काम के लिए प्रतिज्ञा करो, ठीक उसी समय पर उसे करना ही चाहिए, नहीं तो लोगों का विश्वास उठ जाता है।
9. उस व्यक्ति ने अमरत्व प्राप्त कर लिया है, जो किसी सांसारिक वस्तु से व्याकुल नहीं होता।
10. हम वो हैं, जो हमें हमारी सोच ने बनाया है इसलिए इस बात का ध्यान रखिए कि आप क्या सोचते हैं। शब्द गौण हैं, विचार रहते हैं, वे दूर तक यात्रा करते हैं।
11. जब तक आप खुद पर विश्वास नहीं करते, तब तक आप भगवान पर विश्वास नहीं कर सकते।
12. सत्य को हजार तरीकों से बताया जा सकता है, फिर भी हर एक सत्य ही होगा।
13. विश्व एक व्यायामशाला है, जहां हम खुद को मजबूत बनाने के लिए आते हैं।
14. जिस दिन आपके सामने कोई समस्या न आए, आप यकीन कर सकते हैं कि आप गलत रास्ते पर सफर कर रहे हैं।
15. हम जितना ज्यादा बाहर जाएं और दूसरों का भला करें, हमारा हृदय उतना ही शुद्ध होगा और परमात्मा उसमें बसेंगे।
16. एक शब्द में यह आदर्श है कि ‘तुम परमात्मा हो।’
17. भगवान की एक परम प्रिय के रूप में पूजा की जानी चाहिए, इस या अगले जीवन की सभी चीजों से बढ़कर।
18. यदि स्वयं में विश्वास करना और अधिक विस्तार से पढ़ाया और अभ्यास कराया गया होता, तो मुझे यकीन है कि बुराइयों और दु:ख का एक बहुत बड़ा हिस्सा गायब हो गया होता।
19. बाहरी स्वभाव केवल अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप है।
20. यह जीवन अल्पकालीन है, संसार की विलासिता क्षणिक है, लेकिन जो दूसरों के लिए जीते हैं, वे वास्तव में जीते हैं।
21. उठो मेरे शेरों, इस भ्रम को मिटा दो कि तुम निर्बल हो, तुम एक अमर आत्मा हो, स्वच्छंद जीव हो, धन्य हो, सनातन हो, तुम तत्व नहीं हो, न ही शरीर हो, तत्व तुम्हारा सेवक है, तुम तत्व के सेवक नहीं हों।
22. जब भी दिल और दिमाग के टकराव हो तो दिल की सुनो।
23. शक्ति जीवन है तो निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है और संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है तो द्वेष मृत्यु हैं।
24. जीवन का रास्ता बना बनाया नहीं मिलता, इसे स्वयं को बनाना पड़ता है। जिसने जैसा मार्ग बनाया, उसे वैसी ही मंजिल मिलती है।
25. पवित्रता, धैर्य और उद्यम, ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।

चौथे ‘वाद संवाद’ में पहुँचे अभिनेता पंकज त्रिपाठी

कोलकाता । ‘सन्मार्ग”- ‘वाद संवाद’ के चौथे संस्करण में”आरक्षण – न्यायसंगत समाज नहीं बनाता” विषय पर परिचर्चा आयोजित की गयी । इस कार्यक्रम को मुख्य अतिथि बॉलीवुड अभिनेता पंकज त्रिपाठी ने सम्बोधित किया । इसके अलावा इसके वक्ताओं में, उदित राज (अध्यक्ष, असंगठित श्रमिक और कर्मचारी कांग्रेस), गुरु प्रकाश (राष्ट्रीय प्रवक्ता, भाजपा), सुबोधकांत सहाय (पूर्व गृह मंत्री), परमहंसिनी आयुर्वेद के संस्थापक डॉ. पीयूष द्विवेदी, डॉ. तारा दूगड़ (साहित्यकार), नैना मोरे (सेलिब्रिटी मोटिवेशनल स्पीकर) ने कार्यक्रम को सफल बनाया। इसका संचालन वरिष्ठ पत्रकार मनोज्ञा लोईवाल ने किया। इसके अलावा इस कार्यक्रम में विभिन्न प्रतिष्ठित हस्तियों ने भाग लिया जिनमें विवेक गुप्ता (विधायक और सन्मार्ग समूह के चेयरमैन), रुचिका गुप्ता (कार्यकारी निदेशक, सन्मार्ग ग्रुप), विक्की राज सिकारिया (सम्पन्न ग्रुप), अमित सरावगी (एमडी, अनमोल फीड्स प्राइवेट लिमिटेड), पश्चिम बंगाल के एमएसएमई डेवलपमेंट फोरम की अध्यक्ष, सीएस व अधिवक्ता डॉक्टर ममता बिनानी, ऑस्टिन प्लाईवुड के निदेशक निशांत अग्रवाल और कुशल भारत समूह के प्रबंध निदेशक नरेश अग्रवाल इसमें शामिल थे।

फ्रेंड्स ऑफ ट्राइबल्स सोसाइटी की युवा विंग एकल युवा के एकल रन के चौथे संस्करण पहुँचीं मैरी कॉम 

कोलकाता । फ्रेंड्स ऑफ ट्राइबल्स सोसाइटी’ की युवा शाखा ‘एकल युवा’ द्वारा गत 8 जनवरी को कोलकाता के गोदरेज वाटरसाइड में अपने वार्षिक कार्यक्रम एकल रन मैराथन का आयोजन किया गया। इस मैराथन में 3500 से ज्यादा प्रतिभागियों ने 21 किमी, 10 किमी, 5 किमी और 3 किमी की अपनी चुनी हुई श्रेणी में दौड़ लगाई। इस मैराथन में हर आयु वर्ग के लोगों ने भाग लिया।

एकल मैराथन दौड़ का उद्घाटन ओलंपिक में मुक्केबाजी में विश्व चैंपियन मैरी कॉम ने किया। इसके अलावा बृजेश दमानी (राष्ट्रीय स्नूकर चैंपियन और एशियाई खेलों की रजत पदक विजेता), सजन बंसल (एमडी, स्किपर लिमिटेड), सज्जन भजनका (अध्यक्ष, सेंचुरी प्लाइबोर्ड्स), अजय पटोदिया (सीएफओ, डॉलर इंडस्ट्रीज लिमिटेड), लक्स इंडस्ट्रीज लिमिटेड के एमडी प्रदीप कुमार तोदी, इडेन ग्रुप के निदेशक अनिरुद्ध मोदी, बिमल सरावगी (अनमोल इंडस्ट्रीज), सुरेंद्र अग्रवाल (एमडी, ऑस्टिन प्लाईवुड), ई-वेंट के एमडी रमेश सरावगी, एडिबल ग्रुप के एमडी बिजय कुमार अग्रवाल, बिमल चौधरी (अनमोल बिस्कुट प्राइवेट लिमिटेड के प्रबंध निदेशक), रमेश बागला (लॉजिकल लैम्प्स प्रा. लिमिटेड), ईशु हिरावत (सेकेंड रनर अप, मिसेज वर्ल्ड इंटरनेशनल 2022), रिवर्स फैक्टर के संस्थापक और सीईओ करण कक्कड़, युविका धर (योग रत्नमणि), शिवानी अग्रवाल (केटलबेल चैंपियन), आशीष बजाज (साइकिलिस्ट), राहुल देव बोस (अभिनेता), देवाशीष सेन (एमडी, हिडको लिमिटेड), अजीत कुमार टेटे (डीआईजी, बीएसएफ), मनोज्ञा लोईवाल (वरिष्ठ पत्रकार और एंकर), एड्रियन प्रैट (कार्यवाहक महावाणिज्यदूत यूएसए-कोलकाता) के अलावा कई अन्य प्रतिष्ठित हस्तियां इस मैराथन में शामिल हुए। इस अवसर पर एकल युवा के अध्यक्ष गौरव बागला ने कहा, एक रन का हिस्सा बनकर इसमें शामिल होना और इसे पूरा करना किसी के लिए भी एक बड़ी उपलब्धि हासिल करने जैसी बात है। यह एकल रन हमेशा से ही कोलकातावासियों के लिए काफी आकर्षक रहता आया है। इस मैराथन में टीशर्ट, मेडल, गुडी बैग और खाने के डिब्बे भी सभी प्रतिभागियों को दिये गये। विजेता व उपविजेता को स्मृति चिन्ह देकर सम्मानित किया गया। इस कार्यक्रम को संगठन के यूट्यूब चैनल ( एफटीएस भारत) पर लाइव स्ट्रीम किया गया। इससे किसी कारण वश इसमें शामिल न होनेवाले इसकी झलकियों को देख सके और इसके महत्व को समझ सके।

इसके प्रमुख सदस्य: गौरव बागला (एकल युवा के अध्यक्ष), विकास पोद्दार (सचिव), एकल युवा बोर्ड के सदस्यों में अभय केजरीवाल, अंकित दीवान, रौनक फतेसरिया, ऋषभ सरावगी, रोहित बुचा, विनय छुघ, योगेश चौधरी, मनमोहन मलानी, श्याम पटवारी और वैभव पांड्या इस आयोजन को सफलत बनाने में मुख्य रूप से सक्रिय रहे। कार्यक्रम का आयोजन किशन केजरीवाल (एफटीएस के अध्यक्ष), नीरज हरोदिया (एफटीएस के सचिव और एकल युवा के संरक्षक), प्रदीप रावलवासिया (एसएचएसएस के अध्यक्ष) और सुभाष मुरारका (एसएचएसएस के सचिव) ने किया।