श्रीमोहन तिवारी को शुभजिता सृजन प्रहरी सम्मान -2023 कोलकाता । शुभजिता प्रहरी सम्मान – 2023 का आयोजन गत 24 मार्च को महाबोधि सोसायटी सभागार में किया गया । शुभजिता वेब पत्रिका द्वारा आयोजित इस समारोह में वर्ष 2023 के लिए यह सम्मान सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष श्रीमोहन तिवारी को प्रदान किया गया । सम्मान स्वरूप स्मृति चिह्न, अभिनंदन पत्र, शुभादि विचार पोस्टर, शॉल एवं माला पहनाकर उनको सम्मानित किया गया । समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ साहित्यकार एवं श्री बड़ाबाजार कुमारसभा पुस्तकालय के पूर्व अध्यक्ष डॉ. प्रेमशंकर त्रिपाठी ने कहा कि चाहे किसी भी विचारधारा को मानने वाले हों, हृदयपंथी बनकर सभी के हृदय तक पहुँचने का प्रयास करें । आज पठनीयता एवं विश्वसनीयता का संकट है मगर आज भी समाज में कुछ व्यक्ति ऐसे हैं जिनकी सक्रियता हमें आश्वस्त करती है । यह किसी रचनाकार, कृति, संस्था का सम्मान नहीं है, यह उस व्यक्तित्व का सम्मान है जिन्होंने इन सभी चीजों को बनने, संवरने एवं सहेजने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी । यह एक परम्परा का सम्मान है । उन्होंने आशा व्यक्त की कि शुभ सृजन प्रकाशन ऐसा प्रकाशन समूह बनेगा जिससे संसाधनहीन युवा लेखकों को भटकना न पड़े ।
समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित शिक्षाविद् एवं सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय की मंत्री दुर्गा व्यास ने सम्मानित व्यक्तित्व श्रीमोहन तिवारी को मौन साधक की तरह पुस्तकों के संरक्षण में सक्रिय रहने वाला बताया । उनके अनुशासित व्यक्तित्व के निर्माण में श्रीराम तिवारी का महत्वपूर्ण योगदान है ।
कलकत्ता विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग की प्रोफेसर डॉ. राजश्री शुक्ला ने कहा कि पुस्तकालय मनुष्य के स्वाध्याय को प्रेरित करने वाला स्थान है । अगर हम हर दिन थोड़ा – थोड़ा पढ़ें तो सृजन का संसार आगे बढ़ेगा । स्कॉटिश चर्च कॉलेज की प्रोफेसर डॉ. गीता दूबे पुस्तकालय का पुस्तकाध्यक्ष सब विषयों का विशेषज्ञ होता है । किताबों को बचाने एवं संरक्षित करने की जरूरत है । प्रधान अतिथि उमेश चन्द्र कॉलेज के हिन्दी विभागाध्यक्ष डॉ. कमल कुमार ने आयोजन की प्रशंसा करते हुए पुस्तकालय संस्कृति के संरक्षण पर जोर दिया ।
शुभजिता सृजन प्रहरी सम्मान पाने वाले सेठ सूरजमल जालान पुस्तकालय के पुस्तकाध्यक्ष श्रीमोहन तिवारी ने सम्मान पाने पर आभार व्यक्त करते हुए कहा कि वे अपने कार्य को और अधिक बेहतर बनाकर उसे विस्तार देने का प्रयास करेंगे ।
इस अवसर पर शुभ सृजन प्रकाशन के लोगो का अनावरण भी किया गया । विवेक तिवारी एवं शुभस्वप्ना मुखोपाध्याय ने काव्य पाठ किया । समारोह में स्वागत भाषण देते हुए शुभजिता की सम्पादक एवं शुभ सृजन नेटवर्क व शुभ सृजन प्रकाशन की प्रमुख सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया ने कहा कि शुभजिता प्रहरी सम्मान की परिकल्पना समाज को बेहतर बनाने में सक्रिय लोगों को सामने लाने के उद्देश्य से की गयी है । समाज में पुस्तक एवं पुस्तकालय संस्कृति का महत्व सामने रखने एवं इसके संरक्षण की भावना प्रथम शुभजिता सृजन प्रहरी सम्मान के चयन का आधार रही । शुभ सृजन प्रकाशन में भी युवाओं की कलम को धारधार बनाने की चेष्टा रहेगी । धन्यवाद ज्ञापन सुरेन्द्रनाथ इवनिंग कॉलेज की प्राध्यापिका दिव्या प्रसाद ने किया । समारोह का संचालन पूजा सिंह ने किया । समारोह को सफल बनाने में प्रीति साव, सपना खरवार एवं पीहू पापिया का विशेष योगदान रहा ।
कोलकाता । ‘साहित्यिकी’ की ओर से होली प्रीति मिलन संगोष्ठी ‘ जनसंसार ‘ के सभाकक्ष में आयोजित की गई । कार्यक्रम का आरंभ मंजु रानी गुप्ता के स्वागत संभाषण से हुआ। उन्होंने कहा कि होली की धूम समाप्त हो गई है किन्तु फागुनी बयार अभी भी हृदय के तारों को झंकृत कर रही है।
कार्यक्रम का संचालन संस्था की वरिष्ठ सदस्या दुर्गा व्यास ने कवि पद्माकर की चंद पंक्तियों से किया। उन्होंने अपने वक्तव्य में स्पष्ट किया कि हमारी लोक-संस्कृति त्योहारों से ही जीवित है। त्योहार सौहार्द्र ,प्रेम और एकता को बढ़ावा देते हैं । रेखा ड्रोलिया ने रचना पाठ करते हुए राधा-कृष्ण की प्रेमाभिव्यक्ति को शब्द दिया। वसुंधरा मिश्रा ने ‘होली आई’ गीत में कान्हा-राधा के प्रेम को मधुर कंठ से गीतबद्ध किया। श्रद्धा टिबड़ेवाल ने काव्य पाठ किया और सविता पोद्दार ने ‘ बसंत ओ बसंत घर मेरे आना ‘ काव्य पाठ कर बसंत की प्रतीक्षा की। गीता दूबे ने अपने वक्तव्य में कहा कि होली मन की अर्गलाओं को खोलने का त्योहार है।, सामूहिकता का उत्सव है। उन्होंने अवधी लोकगीत का मधुर गायन किया। सरिता बैंगानी ने राधा-कृष्ण की प्यार- मनुहार भरी होली पर गीत प्रस्तुत किया । मंजु गुटगुटिया ने राजस्थानी लोकगीत गाया तथा विद्या भंडारी ने लज्जाशील स्त्री की प्रेमाभिव्यक्ति, लोकगीत के माध्यम से की । मंजु रानी गुप्ता ने स्वरचित रचना ‘फागुनी बयार’ द्वारा प्रकृति सौंन्दर्य को जीवंत कर दिया। मीतू कनोड़िया ने अपने काव्य पाठ में प्रेम रंग को सबसे मधुर बताया।
जहाँ रजनी शर्मा ने राधा-रुक्मिणी के साथ कृष्ण की प्रेमरस पगी होली का चित्रण किया, वहीं संगीता चौधरी ने स्वप्न में श्याम संग होली खेलने का दृश्य, मधुर गीत में प्रस्तुत किया । चंदा सिंह ने हनुमान संग श्री राम की होली खेलने का सचित्र काव्य पाठ प्रस्तुत किया।
रेणु गौरीसरिया ने केदारनाथ अग्रवाल की सुप्रसिद्ध रचना ‘बसंती हवा’ का तथा सुषमा हंस ने कविता तिवारी की रचना ‘आज़ादी का क्या मतलब है ‘ काव्य- पाठ किया ।
विद्या भंडारी ने धन्यवाद ज्ञापन करते हुए अपने वक्तव्य में कहा कि पर्व हमारी सांस्कृतिक विरासत हैं और ये प्रेम व एकता का प्रसार करते हैं । हास-परिहास, लोकगीतों व काव्यपाठ जैसे विविध रंगों से कार्यक्रम सफल व सार्थक रहा। कार्यक्रम के आरंभ में पद्मश्री से सम्मानित डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र जी के निधन पर एक मिनट का मौन रखा गया।
कोलकाता। भारतीय भाषा परिषद की ओर से ‘पुस्तक संवाद’ श्रृंखला का आयोजन परिषद के पुस्तकालय में किया गया। इस अवसर पर पुस्तकालय के पाठकों, विभिन्न विश्वविद्यालयों तथा कॉलेजों के विद्यार्थियों और युवाओं के साथ ‘प्रसाद का आंसू और छायावाद’ विषय पर मूर्धन्य आलोचक प्रो. शम्भुनाथ का संवाद हुआ। प्रो. शम्भुनाथ ने कहा कि छायावाद में अनुभूति की प्रधानता है। अनुभूति की प्रधानता का अर्थ है व्यक्ति की प्रधानता । छायावाद के पहले इंडिविजुअलिटी नहीं मिली थी मैथिलीशरण गुप्त ” मैं ” नहीं लिखी जाती थी । छायावाद से मैं इंडिविजुअलिटी आई। इसमें वैयक्तिकता के साथ राष्ट्रीय जागरण और विश्व बोध की प्रधानता है। विमला पोद्दार ने कहा कि हम चाहते हैं लोग पुस्तकालय में आए। इस संस्था से जुड़ने का लाभ मिले। इससे साहित्य का सम्मान बढ़ता है। इस अवसर पर मुस्कान गिरि ने सरस्वती वंदना की प्रस्तुति दी। संचालन आदित्य गिरि ने किया । धन्यवाद ज्ञापन डॉ संजय जायसवाल ने कहा कि ‘आँसू’ में कवि ने अपनी वेदना को करुणा से जोड़ते हुए सार्वभौम सत्य और संवेदना का विषय बनाया है। प्रसाद मन की उदात्तता और व्यापकत्व में जगत का आनंद देखते हैं। कार्यक्रम में डॉ अवधेश प्रसाद सिंह, डॉ शुभ्रा उपाध्याय, सुरेश शॉ,डॉ पायल,प्रो.नवनीता दास सहित भारी संख्या में विद्यार्थी और युवा उपस्थित थे। इस अवसर पर परिषद की ओर से डॉ कुसुम खेमानी ने ओडिया साहित्यकार मिहिर साहू को सम्मानित किया।
कोलकाता। सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से पुस्तक लोकार्पण एवं मिलनोत्सव कार्यक्रम का आयोजन किया गया।इस अवसर पर अवधेश प्रसाद सिंह की पुस्तक ‘रूस यूक्रेन युद्व 2022’ का लोकार्पण किया गया।इस अवसर पर फिल्म समीक्षक मृत्युंजय जी ने कहा कि कोई लेखक युद्ध के विषय मे लिखता है चाहे कविता हो कहानी , वह शांति की मांग करता है। प्रो. मंजुरानी सिंह ने कहा कि युद्ध समाप्त नहीं हुआ , लेकिन हम युद्ध नहीं शांति चाहते हैं, साहित्य के माध्यम से। जो युद्घ कर रहा है वो नहीं जानता कितना अमानवीय कार्य कर रहा है। जीवन और भविष्य दाव पर लग जाता है। युद्ध में शहादत स्त्रियों और बच्चों की होती है। इस पुस्तक के लेखक अवधेश सिंह ने कहा कि इसलिए भी यह पठनीय है कि युद्ध के माध्यम से रूस और यूक्रेन को समझाया है।
प्रो.शम्भुनाथ ने कहा कि जब समाज में हार्मोनी टूट जाती है तब युद्ध होता है। आलोचक प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि युद्ध शुरू करना आसान है समाप्त करना मुश्किल है।युद्ध शुरू करने वाला भी नहीं जानता यह कब और कैसे समाप्त होगा। इस अवसर पर डॉ अजय राय ने कबीर, निराला, प्रसाद आदि की कविताओं पर संगीतबद्ध प्रस्तुति की। इसके अलावा पंकज सिंह, राज घोष, प्रिया श्रीवास्तव और आदित्य तिवारी ने कविता पाठ और डॉ रमाशंकर सिंह, डॉ शिप्रा मिश्रा,डॉ राजेश मिश्र, कालीचरण तिवारी, सेराज खान बातिश, मधु सिंह, सूर्यदेव रॉय और राजेश सिंह ने लोक गीत प्रस्तुत किया और रेशमी सेन शर्मा, काजल और सपना खरवार ने नृत्य प्रस्तुत किया तथा वाद्ययंत्र पर दिव्यंदु भट्टाचार्य और अभिषेक यादव ने साथ दिया। फोटोग्राफी प्रतियोगिता में शिखर सम्मान – नेहा ठाकुर, कलकत्ता विश्वविद्यालय, प्रथम स्थान- दीपक चौधरी, हावड़ा विश्वविद्यालय, द्वितीय स्थान- संयुक्त रूप से ऋतिक रोशन, दिल्ली विश्वविद्यालय और रेशमी रॉय, बेथून कॉलेज, तृतीय पुरस्कार- चंदन रे, प्रथम विशेष- अकांक्षा साव, द्वितीय विशेष- अंजलि शर्मा को मिला। धन्यवाद ज्ञापन रामनिवास द्विवेदी ने दिया।
आज से 2074 वर्ष पूर्व भारत में एक बहुत ही पवित्र राजा हुए थे जिनका नाम महाराजा विक्रम था, महाराजा विक्रम के नाम पर ही भारतीय वर्ष का नाम विक्रम वर्ष रखा गया था। यह वर्ष विक्रम वर्ष 2074 है। महाराजा विक्रम से पूर्व वर्ष भगवान कृष्ण के नाम पर था; इस प्रकार से यह 5,118 वाँ वर्ष है।
भारत के नव वर्ष की प्रणाली
नव वर्ष की प्रणाली ब्रह्माण्ड पर आधारित होती है, यह तब शुरु होता है जब सूर्य या चंद्रमा मेष के पहले बिंदु में प्रवेश करते हैं। आज, चंद्रमा मेष राशि में प्रवेश कर चुका है और दिन बाद अर्थात 13 अप्रैल को सूरज मेष राशि के पहले बिंदु में प्रवेश करेगा, जिस दिन हम बैसाखी मनाते हैं, यह भी एक नए साल का दिन है।
इस प्रकार में भारत के आधे भाग में नव वर्ष चंद्रमा के आधार पर मनाया जाता है और आधे भाग में सूर्य के आधार परमनाया जाता है, इनमें कोई समानता नहीं है क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति अपनेअनुसार नव वर्ष मनाने के लिए स्वतंत्र है।पंजाब में बैसाखी, बंगाल में पोयला बैशाख) , उड़ीसा में पण संक्रांति, तमिलनाडु में पुथेंदू, असम में बिहू और केरल राज्यों में नव वर्ष सौर कैलेण्डर के अनुसार मनाया जाता है । इस दिन बैसाखी होती है। कर्नाटक में युगादि, महाराष्ट्र में गुड़ीपड़वा, आंध्र प्रदेश में उगादी और कई अन्य भारतीय राज्यों में आज के दिन उत्सव मनाते हैं, अर्थात् चंद्र कैलेंडर के अनुसार। दी आर्ट ऑफ़ लिविंग में, हम हर दिन उत्सव मनाते हैं।
प्राचीन काल में एक समय था जब पूरी दुनिया में हर व्यक्ति एक ही कैलेंडर मानता था; चंद्र कैलेंडर, आज भी, तुर्की और ईरान में, लोग चंद्र कैलेंडर ही मानते हैं; इसके अनुसार मार्च से नए वर्ष की शुरुआत होती है परंतु लंदन के राजा किंग जॉर्ज, जनवरी से नव वर्ष शुरू करना चाहते थे क्योंकि वह उस माह में पैदा हुए थे। यह उनका नव वर्ष था, इसमें कोई संदेह नहीं है, लेकिन उसने पूरे ब्रिटिश साम्राज्य पर यह नव वर्ष लागू कर दिया ! यह घटना आठवीं या नौवीं शताब्दी में किसी समय हुई थी, लेकिन लोगों ने अप्रैल में नए साल का जश्न मनाना बंद नहीं किया तो किंग जॉर्ज ने इसे अप्रैल फुल डे कहा। उन्होंने कहा कि अप्रैल में नव वर्ष मनाने वाले लोग मूर्ख होते हैं, और इसी तरह अप्रैल 1 को फूल्स डे के रूप में जाना जाने लगा।
नीम के पत्ते और गुड़ का महत्व
नए वर्ष के दिन, परंपरा के अनुसार थोड़ी नीम के पत्ते, जो बहुत कड़वे होते हैं और गुड़, जो मीठा है, को मिलाकर खाया जाता है। इसका अर्थ यह है कि जीवन कड़वा और मीठा दोनों प्रकार का है और आपको दोनों को ही स्वीकार करना होगा।
समय आपको कड़वे और मीठे दोनों प्रकार के अनुभव देता है। यह मत सोचो कि केवल दोस्त ही आपके जीवन में मिठास लाते हैं, दोस्त कड़वाहट भी ला सकते हैं। और यह भी मत सोचो कि दुश्मन हमेशा कड़वाहट लाते हैं, दुश्मन भी कुछ मिठास ला सकते हैं इसलिए, जीवन सभी विपरीत तथ्यों का मिश्रण है; जैसे यह यहां है, ठंड है और फिर भी अभी तक थोड़ी गर्मी है, है ना ? यहाँ चारों ओर बर्फ है, फिर भी यह सुखद है नव वर्ष ऐसे ही शुरू होता है।
क्या आप जानते हैं कि सभी महीनों और दिनों के नाम संस्कृत में हैं?
सप्ताह के दिनों को सात ग्रहों के नाम पर रखा गया था। जैसे कि आप कहते हैं
रविवार, तो यह सूर्य का दिन है सोमवार चंद्रमा का दिन है।
मंगलवार मंगल है,
बुधवार बुध है,
गुरूवार बृहस्पति होता है,
शुक्रवार शुक्र है और
शनिवार को शनि का दिन है।
ये सात ग्रह हैं जिनके नाम पर सप्ताह के दिनों के नाम दिए गए थे। दरअसल, यह सब संस्कृत में है। प्राचीन कैलेंडर, प्राचीन भारत में संस्कृत में बनाया गया था; वहां से यह कैलेण्डर मिस्र (Egypt) को गया।
बारह महीनों के नाम बारह राशि चिन्हों के नाम पर रखे गए थे, अर्थात् प्रत्येक नक्षत्र में सूर्य की स्थिति (मेष, वृषभ, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या; आदि इसी प्रकार से, महीनों के नामों की व्यवस्था की गई थी)। इस प्रकार, महीनों के नाम संस्कृत के शब्दों के अनुरूप हैं।
दशअंबर दिसंबर है; दश का अर्थ संस्कृत में दस होता है, अंबर का अर्थ है आकाश, दशंबर का तात्पर्य दसवें आकाश से है। नवअंबर नवंबर है, जिसका तात्पर्य है नौंवा आसमान। अक्तूबर अष्टमबर है, तात्पर्य आठवें आसमान से है। सितंबर का तात्पर्य सातवें आसमान से है। देखिए, यदि सिर्फ एक ही शब्द ऐसा हो तो इसे संयोग माना जा सकता है परंतु यदि सभी नाम इसी प्रकार से मिलते हैं तो यह संयोगवश नहीं हो सकता।
शष्ठ का अर्थ होता है छठवाँ, अर्थात्, अगस्त यह आठवाँ महीना नहीं है, अगस्त छठा महीना है (यदि आप मार्च से शुरू करते हैं)। यदि आप फरवरी में आते हैं, तो हम अक्सर कहते हैं कि साल का अंत खत्म होता है! फरवरी माह का आखिरी महीना है, बारहवाँ महीना। मार्च नए साल का पहला महीना है।
चंद्र नववर्ष और चंद्र कैलेंडर क्या है ?
आमतौर पर, चंद्र नववर्ष 20 मार्च को आता है, ऐसा तब होता है जब नया वर्ष शुरू होता है। हालाँकि यह सब एक ब्रिटिश राजा द्वारा विकृत कर दिया गया था, जिसने अमेरिका और कनाडा सहित लगभग आधा दुनिया पर कब्जा कर लिया और प्रभावित किया था। इसलिए, किंग जॉर्ज ने अपने जन्मदिन के अनुसार नया साल बदल दिया। यह हकीकत है। दुर्भाग्य से, भारत में, बहुत से लोग महीनों के पारंपरिक नाम व अर्थ भूल गए हैं। चंद्र कैलेंडर के अनुसार महीनों के नाम हैं: चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, अषाढ, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ और फाल्गुन। चंद्र कैलेंडर में हर महीने का नाम ब्रह्मांड में हमारी आकाश गंगा के 27 सितारों से मेल खाता है। दो और एक चौथाई सितारे से मिलकर एक नक्षत्र बनता है। इस संख्या को 12 से गुणा करने पर यह 27 सितारों के बराबर आती है।
जब पूर्णिमा का चांद स्पष्ट रूप से सितारों में से किसी एक सितारे के पास आ जाता है, तो उस महीने को उस तारे के नाम से जाना जाता है उदाहरण के लिए, चित्रा के नाम से एक तारा है। जब पूर्णिमा का चांद चित्रा के पास आता है, तो यह चंद्र कैलेंडर का पहला महीना है, अर्थात चैत्र अगला महीना वैशाख का होगा। आश्चर्यजनक है, कि चंद्रमा किस सितारे के नीचे आ रहा है यह देखने के लिए कितनी सटीक गणना की जाती थी, और महीनों की गणना भी कैसे की जाती है।
चंद्र कैलेंडर में, एक महीने में केवल 27 दिन होते हैं। इसलिए, हर 4 सालों में, एक लौंद का महीना होता है, अर्थात् एक अतिरिक्त महीना। जैसे लौंद वर्ष में, आपको फरवरी में 29 दिन मिलते हैं; चंद्र कैलेंडर में, आपको लौंद का एक महीना मिलता है, अर्थात् एक अतिरिक्त महीना।
सौर कैलेंडर में, अंग्रेज़ी कैलेंडर की तरह ही केवल एक दिन अतिरिक्त मिलता है। कभी-कभी, बैसाखी 13 अप्रैल को आती है, और कभी 14 अप्रैल को है। चार वर्षों में एक बार एक दिन का अंतर आता है। (साभार – आर्ट ऑफ लीविंग)
चैत्र और शारदीय नवरात्रि में माता दुर्गा के नौ रूपों की पूजा होती है। इन नौ दिनों में शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चन्द्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री की पूजा होती है। आओ जानते हैं माता के 9 रूपों का क्या है रहस्य।
1. शैलपुत्री- शैलपुत्री का अर्थ पर्वत राज हिमालय की पुत्री। यह माता का प्रथम अवतार था जो सती के रूप में हुआ था।
2. ब्रह्मचारिणी- ब्रह्मचारिणी अर्थात् जब उन्होंने तपश्चर्या द्वारा शिव को पाया था।
3. चंद्रघंटा- चंद्रघंटा अर्थात् जिनके मस्तक पर चंद्र के आकार का तिलक है।
4. कूष्मांडा- ब्रह्मांड को उत्पन्न करने की शक्ति प्राप्त करने के बाद उन्हें कूष्मांड कहा जाने लगा। उदर से अंड तक वह अपने भीतर ब्रह्मांड को समेटे हुए है, इसीलिए कूष्मांडा कहलाती है।
5. स्कंदमाता- उनके पुत्र कार्तिकेय का नाम स्कंद भी है इसीलिए वह स्कंद की माता कहलाती है।
6. कात्यायनी- महर्षि कात्यायन की तपस्या से प्रसन्न होकर उन्होंने उनके यहां पुत्री रूप में जन्म लिया था, इसीलिए वे कात्यायनी कहलाती है।
7. कालरात्रि- मां पार्वती काल अर्थात् हर तरह के संकट का नाश करने वाली है इसीलिए कालरात्रि कहलाती है।
8. महागौरी- माता का रंग पूर्णत: गौर अर्थात् गौरा है इसीलिए वे महागौरी कहलाती है।
9. सिद्धिदात्री- जो भक्त पूर्णत: उन्हीं के प्रति समर्पित रहता है, उसे वह हर प्रकार की सिद्धि दे देती है। इसीलिए उन्हें सिद्धिदात्री कहा जाता है। (साभार – वेबदुनिया)
कोलकाता । लायंस क्लब्स इंटरनेशनल डिस्ट्रिक्ट 322बी1 ने भारतीय संग्रहालय में संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार के सहयोग से “शेप्रेन्यूर 2023” नामक एक महिला संगोष्ठी का आयोजन किया। यह एक पैनल चर्चा थी जिसका विषय था बिल्डिंग बैक: बेटर, बिगर एंड ब्राइटर, जहां प्रमुख मुद्दों को संबोधित किया गया था – पैनलिस्ट के अलग-अलग दृष्टिकोण के बारे में – महिलाओं के जीवन और उनके वास्तविक जीवन के अनुभव, चुनौतियों के बावजूद विकसित होना और वापस आना, दबावों को संभालना और व्यापक बनाना, वे कैसे आसपास के लोगों को प्रेरित और प्रभावित कर सकते हैं और एक सकारात्मक प्रभाव पैदा कर सकते हैं।
संस्था की प्रथम महिला ने एवं मुख्य अतिथि लक्ष्मी आनंद बोस ने कार्यक्रम का उद्घाटन किया। इस वर्ष परिचर्चा में वुडलैंड्स हॉस्पिटल की डॉ. रूपाली बासु, वेस्ट बंगाल स्टेट यूनिवर्सिटी की वीसी महुआ दास, अधिवक्ता राम्या हरिहरन, उद्यमी चैताली दास एवं योजना एवं कल्याण विभाग की डीआईजी कृष्णकली लाहिड़ी ने भाग लिया। इस कार्यक्रम का संचालन सेंट जेवियर्स की डॉ. सुजाता अग्रवाल और सुश्री जोएता बसु ने किया।
कार्यक्रम का संचालन जिलाधिकारी लायन मनोज अग्रवाल के नेतृत्व में किया गया। डीसी महिला अधिकारिता लायन सुमन अग्रवाल द्वारा इसकी खूबसूरती से परिकल्पना की गई थी, जिन्होंने घटना के विवरण के प्रबंधन का भार उठाया था। सीएससीटी लायन दक्ष शाह, लायन रुद्रनाथ चटर्जी और डीसीटी लायन प्रवीण छारिया ने इस आयोजन को सफल बनाने में बहुत मदद की। हर साल मार्च में अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस के मौके पर आयोजित होने वाले इस इवेंट शिप्रेन्योर की यह 7वीं सीरीज है। पूर्व आयोजनों में उनके पास महिला सशक्तिकरण और उनकी यात्रा पर आधारित विभिन्न विषयों पर चर्चा में उल्लेखनीय और सेलिब्रिटी महिला पैनलिस्ट और वक्ता रहे है।
यह शहर में सबसे अधिक मांग वाले और प्रतिष्ठित आयोजनों में से एक है क्योंकि यह सभी स्तरों की महिलाओं को नेतृत्व और प्रेरणा देने के लिए प्रेरित करता है। प्रत्येक पैनलिस्ट द्वारा साझा की गई यात्रा वास्तविक और अनूठी है जो दर्शकों को मंत्रमुग्ध रखती है और उन्हें अपनी व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि और कौशल से जोड़ती है।
कोलकाता । बीआईबीएस (बंगाल इंस्टीट्यूट ऑफ बिजनेस स्टडीज) ने सप्लाई चैन में इनोवेशन और परिवर्तन पर एक पैनल चर्चा का आयोजन किया था। इस आयोजन के पीछे का विचार अपने छात्रों को सप्लाई चैन के महत्वपूर्ण घटकों से परिचित कराना था, विशेष रूप से आज के तेजी से बदलते व्यावसायिक परिदृश्य में। यह उन्हें प्रमुख उद्योग विशेषज्ञों से एक अंतर्दृष्टि प्रदान करेगा जो दिल्लीवरी, वॉलमार्ट फ्लिपकार्ट, रिलायंस, डीएचएल, लैंडमार्क समूह जैसे उच्चय ब्रांडों से जुड़े हुए हैं, क्योंकि वे अपने अनुभव साझा करते हैं और उन छात्रों के साथ बातचीत करते हैं जो इस कार्यक्रम का हिस्सा होंगे। संस्थान वास्तव में युवाओं को सप्लाई चैन में इनोवेशन और परिवर्तन पर शिक्षित करना चाहता था। वक्ताओं के पैनल में, उनके पास था श्री सुजोन पालित – सीनियर मैनेजर एचआर -गेटवे ईस्ट रीजन – दिल्लीवेरी श्री सौमोव कुंडू – रीजनल ऑपरेशन डायरेक्टर – ईस्ट – डीएचएल सप्लाई चेन इंडिया प्रा। लिमिटेड श्री सुदीप्तो घोष – एसोसिएट डायरेक्टर- एचआरबीपी – वॉलमार्ट फ्लिपकार्ट श्री आशीष पाठक – योजना प्रबंधक – रिलायंस रिटेल श्री राकेश कुमार – सीनियर मैनेजर सप्लाई चेन – मैक्स रिटेल डिवीजन (लैंडमार्क ग्रुप)। उनके पास छात्रों के साथ एक प्रश्नोत्तर सत्र था। प्रश्नोत्तर सत्र छात्रों को सप्लाई चैन प्रबंधन के क्षेत्र में उद्योग के विशेषज्ञों के मार्गदर्शन के साथ उनके प्रश्नों का उत्तर प्रदान किए गए थे। सभी सम्मानित वक्ताओं से इस बारे में बात हुई कि कैसे भारत के सप्लाई चैन प्रबंधन उद्योग को 2023 और उसके बाद महत्वपूर्ण वृद्धि का अनुभव होने की उम्मीद है, जो इनोवेशन और परिवर्तनों के साथ कई कारणों से प्रेरित है जो सप्लाई चैन प्रबंधन के लिए महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे कंपनियों को कंपेटिटर बने रहने, कुशलता में सुधार करने, काम करने में मदद करते हैं और ग्राहकों की संतुष्टि में वृद्धि होती है। इनोवेशन और परिवर्तन को अपनाने वाली कंपनियां आज के गतिशील कारोबारी माहौल में सफल होने के लिए बेहतर स्थिति में हैं। 2008 में स्थापित बीआईबीएस कोलकाता, अपनी स्थापना के बाद से हमेशा कॉरपोरेट जगत के लिए प्रबंधन प्रतिभा तैयार करने में विश्वास रखता रहा है। लाइव लर्निंग, छात्रों की शिक्षा में उद्योग की भागीदारी और प्रबंधन में वैश्विक स्तर पर सीखने के लिए विश्व नेताओं के साथ सहयोग करके शिक्षा प्रबंधन के बेंचमार्क को फिर से परिभाषित करने का प्रयास किया गया है।
कोलकाता । हमारे देश भारतवर्ष में शादियों की परंपरा को हमेशा आनंददाई माना जाता है। अब बदलते जमाने में भारतीय शादियों में लेटेस्ट फैशन वाले पोशाक किसी फैशन वीक से कम नहीं होता है। इसी विचार को ध्यान में रखते हुए डिजाइनर वंदना एन गुप्ता (महिलाओं के पोशाक) और पंकज कुमार (पुरुषों के पोशाक) के लेटेस्ट कलेक्शन के साथ कोलकाता के राजकुटीर में फैशन शो आयोजित करके अपने शानदार वेडिंग और समर कलेक्शन को प्रदर्शित किया। इस शो की खास बात यह थी कि इस शो में प्रदर्शित होनेवाले कपड़ों को कोई मॉडल नहीं बल्कि डिजाइनर के ग्राहक इन फैशन शो में लेटेस्ट कलेक्शन को प्रदर्शित कर रहे थे। फैशन शो के बाद डिजाइनर वंदना गुप्ता और डिजाइनर पंकज कुमार ने विभिन्न संस्कृति रिवाज के अलावा मेहंदी, संगीत, हल्दी और दुल्हन के लेटेस्ट कपड़ों के कलेक्शन को लॉन्च किया।
बॉलीवुड की जानी-मानी अभिनेत्री भाग्यश्री ने शोस्टॉपर के तौर पर वेडिंग और समर कलेक्शन के ड्रेस में रैंप वॉक किया। वेडिंग एंड समर कलेक्शन वंदना एन गुप्ता, वंदना गुप्ता डिजाइनर कॉउचर और संस्कृति के मालिक पंकज कुमार द्वारा डिजाइन किया गया था। इस शो को क्यूरेट हाई होप्स के निदेशक सौरव हरियाणवी ने किया। इसमें ज्वैलरी पार्टनर – एसके हाउस ऑफ ज्वैलरी फैब्रिक पार्टनर – चंद्रिमा फैशन; ग्रूमिंग और मेकओवर पार्टनर वीएलसीसी थे।
मीडिया से बात करते हुए वंदना गुप्ता (डिज़ाइनर कॉउचर की मालिक) ने कहा, भारत में शादियों का रिश्ता काफी बड़ा महत्व रखता है। आज लोगों में शादी के पोशाक, सजावट, मेकअप के सामान के लिए उनकी जरूरतें और चलन बदल रहा है। पहले, शादियाँ एक ऐसा बंधन था जब लोग पारंपरिक शैलियों के लिए जाना पसंद करते थे, लेकिन अब उनमें से बहुत से लोग इंडो-वेस्टर्न डिज़ाइनों का चयन कर रहे हैं। हमें उम्मीद है कि यह शो शानदार स्टाइल इनपुट और आकर्षक गो-टू लुक देगा।
इस अवसर पर संस्कृति के मालिक पंकज कुमार ने कहा, भारतीय शादी का फैशन विश्व स्तर पर अपनी छाप छोड़ रहा है। इसी कारण दुनिया के विभिन्न हिस्सों में इसकी लोकप्रियता लगता बढ़ रही है। आज के शो में छायाचित्रों के साथ रंगों की एक जीवंत के अनंत ग्लैमर का एक विजयी सूत्र प्रस्तुत किया। जिसका भरपूर लुत्फ शो के दशकों ने भी लिया।
डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र के व्यक्तित्व और कृतित्व की बात आते ही आंँखों के समक्ष एक विशाल कैनवास उभर कर आता है, जहाँ उत्तर प्रदेश और बंगाल की समवेत छवि तो उभरती ही है साथ ही एक मेधावी छात्र, सुसंस्कृत पुत्र,पांडित्य के गुणों से भरपूर एक संवेदनशील और सजग चेहरा उपस्थित हो जाता है। साहित्य लेखक की कलम से निकले शब्दों का वह संदेश है जो व्यष्टिगत होकर समष्टिगत रूप ले लेता है। उसकी सृजनशीलता नये प्रतिमानों को स्थापित करने और नये युग के लिए नये आयाम रचता है।
2018 में भारत सरकार द्वारा हिंदी साहित्य में उल्लेखनीय योगदान के लिए डॉ कृष्ण बिहारी मिश्र को ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। मूर्ति देवी पुरस्कार भारतीय ज्ञानपीठ, महात्मा गांधी सम्मान, विद्या निवास मिश्र सम्मान, साहित्य भूषण से सम्मानित डॉ. मिश्र का लेखन बलिया का मिजाज, पृष्ठभूमि, गांँवों के स्वाभिमान, मूल्यों और मानस को निकट से समझने वाला है।
हिंदी के शिक्षक, साहित्यकार और समीक्षक डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र का जन्म सन् 1936 को बलिहार, बलिया, उत्तर प्रदेश में हुआ। निबंध, पत्रकारिता जीवनी संस्मरण संपादन अनुवाद आदि विविध विधाओं में लिखा।
हिंदी भाषा के प्रति उनका अगाध प्रेम साहित्य का वह स्वर्णाक्षर पृष्ठ है जिनके लिए शब्दकोश के सारे विशेषण भी कम है।संवेदनशील, मूल्य परक और सर्जनात्मक ऊँचाई और भारत की सर्वश्रेष्ठ परंपरागत ‘मनीषा’ के संवाहक डॉ. मिश्र सबसे पहले एक बड़े इंसान हैं। कलकत्ता के बंगवासी कॉलेज में अध्यापक रहे उनके साहित्यिक अवदान की महत्ता और गुणवत्ता हिंदी शिक्षा जगत में अपनी विशिष्ट पहचान रखती है। उम्र के अंतिम पड़ाव की अवस्था में भी साहित्य और समाज के लिए जो व्यक्ति सोचता है कि वह निश्चित ही अपनी माटी को प्रेम करने वाला है।
मैंने जब उनसे पूछा कि आपकी तबीयत कैसी है? तो कहने लगे ‘अब तो बूढ़ा हो गया हूँ।’ सच है कि शरीर से तो बुढ़ापा है लेकिन आंँखों की चमक अभी भी गंँवई खुश्बू से ओतप्रोत है। साहित्यकार की सृजनात्मक शक्ति जब तक सक्रिय है, वह युवा ऊर्जा से भरपूर है। तभी तो एक और नयी पुस्तक ‘सांँझ की जम्हाई और सर्जनशील उजास’ जिसका प्रकाशन लेखक के जन्मदिन के दिन (5,नवंबर, 2017) पर हुआ, मुझे देते हुए बहुत ही उत्साहित लगे। वही पान की लाली से लसित दोनों ओष्ठ और मुढ्ढे पर आराम से बैठ कर फोन की घंटी उठाना। कहीं कोई शिथिलता नहीं,लगा उस छोटे- से कमरे से पूरे देश का संबंध है, भारतीय संस्कृति की गूँज सुनाई पड़ रही थीं।
मैंने कहा कि कलकत्ता में तो कोई भी ऐसी साहित्यिक संस्था नहीं है जिसने आपको नहीं बुलाया होगा। ख़ास कर भारतीय भाषा परिषद्, भारतीय संस्कृति संसद, अपनी भाषा, कुमार सभा पुस्तकालय, मित्र परिषद्,बांधाघाट हनुमान पुस्तकालय, हिंदी बंग परिषद्, राम मंदिर आदि असंख्य गैर सरकारी संस्थाओं और सरकारी संस्थाओं के साथ- साथ सरकारी बैंकों में आपको बड़े ही सम्मान के साथ विशिष्ट अतिथि के रूप में आमंत्रित करते रहे हैं।
मूर्ति देवी पुरस्कार से सम्मानित विद्या संस्कारी और विद्वता के पथ पर चलने वाले हिंदी जगत में आपकी परंपरा के विद्वानों में आपका विशिष्ट स्थान है।
केवल एक संस्था ‘साउथ बेलेघाटा वेलफेयर सोसायटी’ के संस्थापक अध्यक्ष रहे। जिस समय देश में बावरी मस्जिद तोड़ी जा रही थी और उस समय बंगाल में हिंदू – मुस्लिम दोनों ही शरणार्थी बड़ी संख्या में बंगाल में शरण के लिए आए, उस दुख की घड़ी में डॉ मिश्र ने दोनों के लिए ही शिविर का आयोजन किया।’जनसत्ता’ ने ‘घायल संवेदना का दर्द’ शीर्षक से पूरे पृष्ठ का कवरेज दिया जिसे कवर करने के लिए ‘जनसत्ता’ की पूरी टीम आई थी जो बहुत बड़ी बात थी ।
इसमें कोई संदेह नहीं है कि डॉ. मिश्र समाज और समाज की भाषा से सरोकार रखने वाले लेखक रहे हैं। वे रिक्शे वाले से लेकर भंगी और एक जून रोटी खाने वाले सभी से बात करते हैं, जाड़े में ठिठुरने वालों के लिए सोचते हैं। कोलकाता के धनाढ्य लोगों से कहकर उनके लिए कंबल आदि का इंतजाम भी करवाते हैं। साथ ही पढ़ने के लिए, नौकरी के लिए लोगों की यथासंभव मदद भी करते हैं। आज भी हनुमान पुस्तकालय की असंख्य मूल्यवान पुस्तकों के पुनरुद्धार लिए आपके मन को मैंने उद्वेलित होते हुए देखा। इस पुरानी संस्था को बचाने के लिए आपने तुलाराम जालान जी को भी पत्र लिखा था। शिक्षा और साहित्य को समृद्ध करने के साथ – साथ आप अपने जीवन में सदैव ईमानदारी और न्याय का ही पक्ष लेते रहे। आप किसी भी संस्था या संगठन के विचारों से प्रभावित नहीं रहे बल्कि जिस किसी भी मंच ने आपको आमंत्रित किया, वहाँ अपने विचारों और सिद्धातों पर ही अडिग रहे।
हिंदी की विशिष्ट संस्था भारतीय भाषा परिषद्, कोलकाता से लेखक का जुड़ाव तब से था जब उसकी शुरुआत केमक स्ट्रीट में स्थित एक भाड़े के घर से हुई थी। सीताराम सेकसरिया जी ने अपने स्नेही विद्वान कृष्ण बिहारी मिश्र जी को बुलाया और परिषद् के साथ जुड़ने का वचन लिया। सीताराम सेकसरिया जी और भागीरथ कानोड़िया जी इस संस्थान के कर्णधार रहे और दोनों के ही भरोसे पर खरे उतरे डॉ मिश्र। लेखक के गुरु आचार्य डॉ. हजारीप्रसाद द्विवेदी सीताराम सेकसरिया जी के प्रति आदर भाव रखते थे। भारतीय भाषा परिषद्(1975 में स्थापित) से लेखक का आदिकाल से नाता रहा और सभी प्रमुख साहित्यिक आयोजनों में बतौर विशिष्ट अतिथि या अध्यक्ष के रूप में आमंत्रित भी होते रहे। बीच में संबंध टूटे भी लेकिन सीताराम सेकसरिया के ज्येष्ठ पुत्र अशोक सेकसरिया के कारण फिर जुड़े।यहाँ तक कि डॉ. मिश्र ने इसी संस्था के कर्मचारियों के साथ होने वाली अनीति और दुर्नीति के लिए आंदोलन में भी योगदान दिया। वे सहृदयता की मूर्ति हैं उन्होंने कर्मचारियों के हितों के पक्ष में फैसला करवाया। इसी तरह कहीं भी दुर्निती दिखाई पड़ने पर विरोध प्रकट करने में भी पीछे नहीं हटते।
मंच चाहे किसी भी विचारधारा का हो, जलेस या राजनीतिक, सामाजिक या सांस्कृतिक कोई भी संस्था यदि आमंत्रित करती है तो डॉ. मिश्र पूरी निष्ठा के साथ जाते हैं और अपनी बात रखते हैं। वे साहित्यकार के रूप में अपनी बात कहते हैं।
पत्रकारिता पर उनका शोध ग्रंथ ‘हिंदी पत्रकारिता:जातीय चेतना और खड़ी बोली साहित्य की निर्माण भूमि’ हिंदी साहित्य और पत्रकारिता के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ है। देश के सभी शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों में इस पुस्तक का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में होता रहा है। इसके अतिरिक्त’ पत्रकारिता :इतिहास और प्रश्न ‘,’ गणेश शंकर विद्यार्थी’, ललित निबंध संग्रह ‘बेहया का जंगल’ , ‘मकान उठ रहे हैं’ , ‘आंगन की तलाश’ , ‘अराजक उल्लास’ , ‘नेह के नाते अनेक’ ,’ हिंदी साहित्य: बंगीय भूमिका’ आदि विशिष्ट पुस्तकें लेखक की हिंदी सेवा का प्रमाण है।
एक और कालजयी ग्रंथ ‘कल्पतरु की उत्सव लीला ‘की रचना लेखक की अमूल्य देन है जो समाज की नब्ज को समझते हुए साहित्य में एक नया अध्याय है। हिंदी साहित्य में रामकृष्ण परमहंस के विचारों और चिंतन की आवश्यकता को समय की मांग समझते हुए लेखक ने बंगाल में रहकर परमहंस पर लिखने का साहस किया। यह खतरा एक संवेदनशील और सजग साहित्यकार ही उठा सकता है। आधुनिकता की आंँधी में भारत की युवा पीढ़ी के समक्ष परमहंस के अध्यात्म को प्रतिष्ठित कर समाज को अपनी संस्कृति और अध्यात्म के संरक्षण के लिए संदेश दिया है। इसी ग्रंथ को भारतीय ज्ञानपीठ ने सर्वोच्च पुरस्कार ‘मूर्ति देवी’ से सम्मानित किया। पुरस्कार समारोह का आयोजन भारतीय भाषा परिषद् के सभागार में हुआ जो लेखक के चाहने वालों से भरा हुआ था।
हरिवंश जी (सांसद) प्रमुख संपादक प्रभात खबर ने अपने लेख में लिखा था , ‘डॉ. मिश्र से उनका परिचय उनके ललित निबंध संग्रह ‘बेहया का जंगल’ के माध्यम से हुआ जो सर्जनात्मक ऊंँचाई और भारत की सर्वश्रेष्ठ परंपरा गत मनीषा की झलक है। हिंदी पत्रकारिता की समृद्ध परंपरा, मूल्य, त्याग और तेज को सामने लाने का काम जिस तरह से कृष्ण बिहारी मिश्र जी ने किया और कर रहे हैं, वैसा कोई दूसरा नाम हिंदी विद्वानों में दिखाई नहीं देता, पर उनके इस योगदान का महत्व तो बाद में जाना, समझा या आत्मसात कर पाया। ‘
हिंदी से संबंधित किसी भी विषय पर आपका वक्तव्य हिंदी के प्रकांड विद्वानों आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी, आचार्य नंददुलारे वाजपेयी, आचार्य विश्वनाथ प्रसाद मिश्र, आचार्य चंद्र बलि पांडेय, डॉ. विद्यानिवास मिश्र जैसे विद्वानों के सूत्रों को जोड़ता हुआ लगता है। आचार्य डॉ हजारीप्रसाद द्विवेदी के शिष्य भला पीछे कैसे रह सकते हैं? डॉ. मिश्र का व्यक्तित्व भारतीय परंपरा के श्रेष्ठ मूल्यों, आदर्शों और सत्यों पर टिका है, यही कारण है कि जब वे किसी संस्थान में अपना अध्यक्षीय भाषण देते हैं तो उसमें लेखक का गंभीर अध्ययन , चिंतन झलकता है।
भारतीय संस्कृति संसद संस्था, कोलकाता ने’ कल्पतरु की उत्सव लीला’ ग्रंथ पर ‘मेरी सृष्टि मेरी दृष्टि’ कार्यक्रम का आयोजन किया जो उनकी रचनाशीलता और चिंतन पर आधारित था। लगभग दो घंटे तक आपका वक्तव्य लोग सुनते रहे। तन और मन से संवेदनशील लेखक का व्यक्तित्व एक अभिभावक जैसा है।उत्तर प्रदेश, बिहार, राजस्थान का हिंदी साहित्य जगत और समाज डॉ. मिश्र को अपने ही परिवार का समझता है और उनके पास उनके घर में मिल कर अपना सौभाग्य समझते हैं। एक बार कवि और लेखक अशोक वाजपेयी जी की पत्नी कोलकाता आईं और आपसे मिल कर गईं तो अपने छोटे घर के प्रति कहीं-न-कहीं आपको लगा कि उन्हें कष्ट होगा, परंतु यह लेखक का सदा से भ्रम रहा है कि मेरा छोटा कमरा कहीं किसी को परेशान न करे।परंतु आज जिन्होंने भी डॉ. मिश्र के साहित्यिक कृतित्व और व्यक्तित्व से सरोकार रखा है, उन्हें इस बात का पता है कि यह छोटा – सा कमरा उनके जीवन में क्या महत्व रखता है। यह लेखक के लिए विद्या मंदिर है, आपके गुरु हजारीप्रसाद द्विवेदी भी इस कमरे में रहे हैं, अज्ञेय जी, ब.व.कारंत आदि विद्वानों का आगमन होता रहा है।इस कमरे का वातावरण विशुद्ध साहित्यिक और अध्यात्म की सुरभि से सुरभित है। भारतीय मनीषा रचनाकारों को “कविर्मनीषी परिभूः स्वयंभू” मानती है जो भारतीय संस्कृति के अनुरूप ही है। रचनाकार ऋषि-मुनियों मुनियों की परंपरा का निर्वहन करने वाला स्वयंभू सदृश होता है।
साहित्य सेवी भाषाई संस्कारों से युक्त डॉ. मिश्र गुरु परंपरा को निभाने वाले अपने विद्या कर्म के लिए समर्पित हैं। एसी रूम में गांँव की सोंधी खुश्बू नहीं आती, महानगर में रहकर गांँव को सहेजने का दुष्कर कार्य बहुत कम लोग ही कर पाते हैं, डॉ मिश्र ने इसका पुरजोर प्रयास किया।
कोलकाता में भोजपुरी संस्था की ओर से आयोजित कार्यक्रम में राजनेता और गायक मनोज तिवारी के आगमन पर आपकी उपस्थिति उस कार्यक्रम की शोभा बनी। मुझे स्मरण आता है राजस्थान ब्राह्मण संघ के कार्यक्रम’ परंपराओं में आस्था’ में डॉ. मिश्र मेरे कहने से आए थे और वह आशीर्वाद ही था।आपके कर – कमलों से लोकार्पण करवाने के लिए संस्था अपने को गौरवान्वित समझती है। ‘परंपराओं में आस्था’ पुस्तक मेरे और परम विदूषी दुर्गा व्यास के संपादन में लिखी गई थी, समाज का बड़ा कार्यक्रम था आपकी उपस्थिति मात्र से ही कोलकाता का हिंदी समाज स्वयं को भाग्यशाली मानता है।
यह भी सच्चाई है कि डॉ. मिश्र बड़े ही नाजुक प्रकृति के भी हैं, जब तक तबियत ठीक नहीं समझते, संस्था के आमंत्रण को स्वीकृति नहीं देते।
कोलकाता के हिंदी साहित्य जगत में कलकत्ता विश्वविद्यालय के प्रबुद्ध विद्वानों में आचार्य कल्याण मल लोढा और डॉ विष्णुकांत शास्त्री जैसे प्रकांड पंडितों का भरपूर हाथ रहा है, लेकिन डॉ. मिश्र एक कॉलेज में अध्यापन करते हुए भी साहित्य साधना में एक साधक की तरह रत रहे। साहित्यिक यात्राओं से भी कतराते रहे, कोलकाता के सेठ- साहूकारों से भी दूर रहे। यह अलग बात है कि आपकी विद्वता और ईमानदारी ने कोलकाता के गरीब से लेकर अमीर तक के लोगों के दिल जीते हैं। उसी का परिणाम है कि आपको सभी हिंदी संस्थाएँ आमंत्रित करने में अपना सौभाग्य समझती हैं। कोलकाता का हिंदी जगत डॉ. मिश्र के साहित्यिक व्यक्तित्व से लाभान्वित है। हिंदी के विद्यार्थियों को कभी भी हिंदी उच्च शिक्षा या पीएचडी में कोई असुविधा होती है तो वे सलाह लेते हैं, काम रुकता नहीं है।
भारतीय संस्कृति संसद, कोलकाता की हिंदी की एक और संस्था है जो भारतीय संस्कृति की परंपरा को अक्षुण्ण रखने तथा साहित्य -संगीत – कला की त्रिवेणी को विकसित करने के लिए अनवरत सक्रिय कार्य कर रही है। इसका प्रमुख कारण है कि यहाँ विगत साठ वर्षों से मूर्धन्य साहित्यकारों, कला, संगीत और संस्कृति के विद्वानों को आमंत्रित किया जाता रहा है। 8 मई, 1955 में इस संस्था की स्थापना स्वनामधन्य श्री माधोदासजी, श्री रामनिवास ढंढारिया, श्री हरि प्रसाद माहेश्वरी, श्री गोकुल दासजी जैसे महापुरुषों के सद्प्रयास से हुआ। बंगाल के विश्रुत विद्वान एवं मूर्धन्य इतिहास विद् डॉ. कालीदास जी नाग संस्था के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए। देश के वरिष्ठ एवं विशिष्ट साहित्यकार, विचारक, समीक्षक, कवि सभी भारतीय संस्कृति संसद के आमंत्रण को सहर्ष एवं सोत्साह स्वीकार करते थे। डॉ. हरिवंशराय बच्चन ने संसद के आमंत्रण पर लिखा था कि मेरी नई उपलब्धि का सम्मान जहाँ होना चाहिए था, वहाँ तो मुझे अँगूठा दिखाया जा रहा था और कलकत्ता में हिंदी की एक साहित्यिक संस्था मेरा सम्मान करना चाहती थी।धर्म तल्ला में स्थित यह संस्था काव्य – कथा – कला – संगीत-संस्कृति आदि के महत्वपूर्ण सेमिनार आयोजित करती रही है।
वर्तमान समय में इस संस्था का संरक्षण डॉ. विट्ठल दास मूँधड़ा जी कर रहे हैं। पं. जसराज जी और डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र जी का सम्मान एक साथ इसी संस्था ने किया।भारत का कोई भी ऐसा विद्वान नहीं है जिसे संसद ने आमंत्रित न किया हो। हिंदी के प्रचार – प्रसार के लिए संसद निरंतर कार्य शील है। डॉ. मिश्र कोलकाता के वरिष्ठ साहित्यकार हैं जिनका रचना – संसार बड़ा फलक लिए हुए है। डॉ. विद्यानिवास मिश्र की हार्दिक इच्छा थी कि डॉ. मिश्र रामकृष्ण परमहंस पर कुछ लिखें। डॉ. विद्यानिवास मिश्र ने यह इच्छा उस समय व्यक्त की जब कृष्ण बिहारी मिश्र के साथ वे माँ के दर्शन के लिए दक्षिणेश्वर के काली मंदिर के उसी प्रांगण में थे, जहांँ माँ भवतारिणी का विशाल परिसर था। संभवतः डॉ. विद्यनिवास मिश्र माध्यम बने थे। डॉ. मिश्र ने बंगाल के परमहंस की बतकही शैली को बंगाल की संस्कृति के रंग में नहाये बलिया की माटी से बने अपनी बोली और भाषा को बचाने का भगीरथ प्रयास ‘कल्पतरु की उत्सव लीला’ के बहाने किया जो आपके वृद्धावस्था की ऊर्जा का द्योतक है।
डॉ. मिश्र से मैंने कहा आपने जो लिखा वह अवकाश प्राप्ति के पश्चात लिखा, पहले लिखते तो आपकी पुस्तकों की संख्या बढ़ जाती। उन्होंने मुस्कराते हुए कहा कि समझती हो न वसुंधरा, ठाकुर की कृपा हुई है उसी माँ ने आदेश दिया है, तभी लिखा गया। जो लिख गया उसी माँ की कृपा है …… वही लिखवाती है। एक जगह वे कहते हैं, ‘कोयल अपनी बोली नहीं भूलती चाहे वह महानगर में ही क्यों न रहती हो।’ मुझे लगता है कि डॉ. मिश्र की यही गंँवई संवेदना आधुनिक युग जीवन जीने वालों के लिए ऐसी सीख है जो हमें मनुष्य बनाने की ओर ले जाती है।पद्मश्री से सम्मानित डॉ. कृष्ण बिहारी मिश्र का साहित्य हिंदी भाषा की संवेदना के प्रति संकल्पबद्ध है और आने वाले युग में इसकी अनिवार्य भूमिका रहेगी।
7 मार्च 2023 में आपने भौतिक जगत् छोड़ दिया और एक नई अनजानी राह पर चल पड़े। ईश्वर से प्रार्थना है कि आपकी आत्मा को शान्ति मिले। विनम्र श्रद्धांजलि।