Sunday, June 29, 2025
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श्रावण मास विशेष – इन देशों में मौजूद हैं भगवान शिव के प्रसिद्ध मंदिर

देवों के देव ‘महादेव’ यानी भगवान शिव की साधना या पूजा हमें हर दुख और भय से मुक्ति दिलाती है । हिंदू धर्म में महादेव की साधना करने से सुख एवं समृद्धि पाई जा सकती है. आज से सावन का महीना शुरू हो गया है । ऐसा माना जाता है कि भगवान शिव को ये माह अति प्रिय है और इसमें पूजा-साधना करने से विशेष फल की प्राप्ति होती है । भगवान शिव की उपासना के अलावा उनके मंदिरों में दर्शन करने से भी जीवन में सुख और समृद्धि आती है । क्या आप जानते हैं कि भारत ही नहीं देश के बाहर भी कई ऐसे शिव मंदिर हैं जो दर्शनीय हैं –
गुप्तेश्वर मंदिर ऑस्ट्रेलिया
ऑस्ट्रेलिया के न्यू साउथ वेल्स में भगवान शिव को समर्पित है मुक्ति गुप्तेश्वर मंदिर । इस मंदिर का संबंध 13वें ज्योतिर्लिंग से है । सावन के दौरान यहां खासी रौनक देखने को मिलती है ।
नेपाल का पशुपतिनाथ मंदिर
कहते हैं कि इस मंदिर का संबंध पांडवों से हैं और ये भगवान शिव को समर्पित है । नेपाल की राजधानी काठमांडू में मौजूद इस मंदिर में शिव की प्रसिद्ध प्रतिमा है जिसे बड़ी रोचक धार्मिक कथा जुड़ी हुई है । मंदिर में दर्शन के लिए हजारों की संख्या में देसी और विदेशी यात्री या श्रद्धालु आते हैं । पशुपतिनाथ न सिर्फ शिव के दर्शन बल्कि अपनी खूबसूरती के लिए भी चर्चित है ।
श्रीलंका में है मुन्नेस्वरम मंदिर
पौराणिक कथाओं के मुताबिक इस मंदिर का संबंध भगवान राम और रावण से माना जाता है । कहा जाता है कि भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त करके यहीं पर भगवान शिव की पूजा की थी । इसी कारण ये मंदिर रामायण काल से जुड़ा हुआ है । इस मंदिर में दर्शन करने से मनोकामनाएं पूर्ण हो सकती हैं ।
इंडोनेशिया में प्रमबनन मंदिर
इंडोनेशिया में हिंदू धर्म के लोग ज्यादा संख्या में मौजूद हैं और यहां कई मंदिर भी हैं । इनमें से एक इंडोनेशिया के जावा में प्रमबनन मंदिर है । यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज साइट के रूप में पहचाने जाने वाले इस मंदिर का परिसर काफी बड़ा है । रोचक बात है कि इसमें करीब 240 मंदिर मौजूद हैं ।
पाकिस्तान में कटासराज शिव मंदिर
कहा जाता है कि पाकिस्तान के इस शिव मंदिर का इतिहास 900 साल पुराना है । इस मंदिर का इतिहास भगवान शिव और माता सति के अलावा पांडवों से भी जुड़ा हुआ है । कहते हैं कि मां सती ने खुद को अग्नि को समर्पित किया था उस दौरान भगवान शिव के कुछ आंसू यहां गिरे थे । तभी यहां अमृत कुण्ड सरोवर बन गया था । शिवरात्रि और सावन के दौरान इस मंदिर में अलग ही रौनक रहती है ।

महिलाओं के लिए ये हैं कर बचाने वाली योजनाएं

नयी दिल्ली । भारत में कर छूट के लिए कई योजनाएं है जिनका लाभ आप आसानी से उठा सकते हैं। इन टैक्स बचत योजनाओं में महिलाओं के लिए विशेष स्कीम होती है जिसके बारे में कई बार महिलाओं को जानकारी नहीं होती।
महिलाओं के लिए इन योजनाओं पर सावधानीपूर्वक विचार करना और उनका लाभ उठाना महत्वपूर्ण है। प्रभावी कर योजना उन्हें अपनी आय का प्रबंधन करने, पैसे बचाने और अपने वित्तीय लक्ष्य हासिल करने में मदद कर सकती है। आज हम आपको इन्हीं योजनाओं के बारे में सारी जानकारी अपने इस लेख के जरिए देने जा रहे हैं ऐसे में नीचे दिए गए हमारे सुझावों पर गौर करें…
– महिलाएं अपनी आय पर 50,000 रुपये तक की मानक कटौती का दावा कर सकती हैं।
– आयकर अधिनियम की धारा 80 सी के तहत, महिलाएं सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ), राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र (एनएससी), और कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) जैसी कर-बचत योजनाओं में 1.5 लाख रुपये तक बचा सकती हैं।
– धर्मार्थ संस्थानों को किया गया दान धारा 80G के तहत कटौती के लिए पात्र है।
– धारा 80डी के तहत स्वयं, पति/पत्नी, बच्चों और माता-पिता के लिए स्वास्थ्य बीमा पॉलिसियों के लिए भुगतान किए गए प्रीमियम पर कर बचत का लाभ उठाया जा सकता है।
1. सुकन्या समृद्धि योजना: अगर आपकी बेटी 10 साल या उससे कम उम्र की है, तो आप उसके नाम पर इस योजना में तब तक निवेश कर सकते हैं जब तक वह 21 साल की नहीं हो जाती। यह धारा 80सी के तहत उच्च रिटर्न और कर छूट प्रदान करती है।
2. गृह ऋण पर टैक्स छूट: गौरतलब है कि अगर किसी महिला के नाम पर होम लोन लिया गया है तो टैक्स छूट का दावा किया जा सकता है। धारा 24 के तहत सालाना 2 लाख रुपये तक के ब्याज भुगतान पर कटौती का दावा किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, धारा 80EEA के तहत, पहली बार घर खरीदने वाले होम लोन के ब्याज पर 1.5 लाख रुपये तक की अतिरिक्त कटौती का दावा कर सकते हैं।
3. इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम (ईएलएसएस): इक्विटी-लिंक्ड सेविंग स्कीम के तहत महिलाओं को म्यूचुअल फंड में निवेश करने पर लाभ मिलेगा। ऐसा धारा 80 सी तहत संभव है।
4. सार्वजनिक भविष्य निधि (पीपीएफ): महिलाओं के लिए पीपीएफ एक बेहतरीन योजना है। बता दें कि पीपीएफ एक दीर्घकालिक निवेश योजना है जो धारा 80सी के तहत कर छूट के साथ 1.5 लाख रुपये तक के वार्षिक निवेश की अनुमति देती है।
5. राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस): एनपीएस धारा 80सीसीडी(1बी) के तहत 50,000 रुपये तक की अतिरिक्त कटौती प्रदान करता है। ऐसे में महिलाएं इसका लाभ उठा सकती हैं।
(साभार – लोकमत न्यूज)

दादा ने जीती ट्रॉफी, अब 73 साल बाद पोते पद्भनाभ ने दोहराया इतिहास

नयी दिल्ली । जयपुर के महाराजा मान सिंह द्वितीय ने 1950 में जिस पोलो चैंपियनशिप को जीत देश का नाम ऊंचा किया था उसे 73 साल बाद उनके पोते पद्मनाभ सिंह ने फिर से दोहराया है। मान सिंह के पोते पद्मनाभ ने फ्रांस की सैंट मेस्मे टीम से खेलते हुए 129 डिग्री प्रतियोगिता में मौजूदा चैंपियन कजाक को हराकर खिताबी जीत हासिल की। पद्मनाभ सिंह की टीम ने कजाक के खिलाफ 11 गोल दागकर मैच को अपने नाम किया जबकि उनके विरोधी ने सिर्फ 9 गोल किए।फाइनल मुकाबले में पद्मनाभ का प्रदर्शन काफी दमदार रहा। उन्होंने अपनी टीम के लिए कुल तीन गोल किए। पद्मनाभ पिछले चार साल से सैंट मेस्मे के साथ जुड़े हुए हैं। इस जीत के बाद पद्मभान सिंह ने कहा कि, ‘चैंपियनशिप को जीतना हमारे लिए गर्व की बात है। ऐसा इसलिए भी कि मैं महान पोलो खिलाड़ी महाराजा सवाई मान सिंह की विरासत को जी रहा हूं।’पोलो चैंपियनशिप में ऐतिहासिक जीत के बाद पद्मनाभ सिंह ने कहा कि इस प्रतियोगिता के लिए मैंने जयपुर और अर्जेंटीना में तैयारी की थी। जयपुर में दुनिया के सबसे शानदार पोलो ग्राउंड में से एक हैं। मेरी इस जीत के बाद मुझे उम्मीद है कि जयपुर में युवाओं को इससे हौसला मिलेगा। हालांकि पिछले साल हमें इसी टीम के कजाक के खिलाफ हार मिली थी लेकिन उसे भुलाते हुए इस बार हमने जीत हासिल की है।

अपने दादा जी के समय के खेल के बारे में बात करते हुए पद्मनाभ सिंह ने कहा कि, ‘महाराजा मानसिंह के समय का खेल और आज के समय में पोलो बहुत बदल गया है। पहले के घोड़े के कद काफी बड़े होते थे। आज के घोड़ों का कद छोटा हो गया है। इसके अलावा अब इस खेल में तकनीकों इस्तेमाल होने लगा है। चोट से बचाव के लिए कई तरह के गियर आ चुके हैं जो कि पहले नहीं था। हमारे दादा जीतने उस वक्त इस खेल के लिए ऑस्ट्रेलिया से घोड़े लेकर आए थे।स खेल के जोखिम के बारे में बताते हुए पद्मनाभ सिंह ने कहा, पोलो फार्मूला वन की तरह एक जोखिम भरा खेल है। घोड़े पर बैठकर 40 किलोमीटर की रफ्तार से पोलो खेलना आसान काम नहीं है। इसमें चोटिल होने की संभावना बहुत रहती है।

डायमंड लीग में नीरज चोपड़ा ने जीता सोना, 87.66 मीटर दूर भाला फेंक रचा इतिहास

लुसाने डायमंड लीग में भारत के स्टार जैवलिन थ्रोअर नीरज चोपड़ा ने 87.66 मीटर की दूरी हासिल स्वर्ण पदक अपने नाम किया। नीरज ने यह स्वर्ण पदक अपने पांचवें प्रयास में जीता। इस प्रतियोगिता में नीरज की शुरुआत कुछ खास नहीं रही थी। उनका पहला थ्रो फाउल हो गया था लेकिन इसके बाद नीरज ने दमदार वापसी कर जर्मनी के जूलियन वीबर और चेक गणराज्य के याकूब वादलेज्चे को पीछे को छोड़ते हुए पहला स्थान हासिल किया।

नीरज चोपड़ा का यह 8वां अन्तर्राष्ट्रीय स्वर्ण है। इससे पहले एशियन गेम्स, साउथ एशियन गेम्स और ओलिपिंक जैसी प्रतियोगिताओं में स्वर्ण जीत चुके हैं। वहीं इस साल नीरज चोपड़ा के खाते में यह दूसरा स्वर्ण पदक आया है। इससे पहले नीरज ने दोहा डायमंड लीग में भी स्वर्ण जीता था।

लुसाने डायमंड लीग में नीरज चोपड़ा ने अपनी शुरुआत फाउल से की। हालांकि दूसरा और तीसरा प्रयास उनका दमदार रहा। दूसरे प्रयास में उन्होंने 83.52 मीटर का उन्होंने थ्रो किया जबकि उनका तीसरा थ्रो 85.04 मीटर का रहा लेकिन इन तीन प्रयासों के स्कोर पर आधार जर्मनी के जूलियन वीबर ने 86.20 की दूरी हासिल कर बढ़त बना रखी थी।

इस बीच नीरज का चौथा प्रयास भी फाउल हो गया। इस कारण वह दबाव में आ गए लेकिन पांचवां प्रयास उनका गोल्डन आर्म साबित हुआ और 87.66 मीटर लंबा थ्रो कर दिया। इस थ्रो के साथ ही वह सबसे आगे हो गए। वहीं उनका अंतिम थ्रो 84.15 मीटर का रहा।नीरज चोपड़ा को जर्मनी के जूलियन वीबर के कड़ी टक्कर मिली। वीबर ने अपने आखिरी प्रयास में 87.03 मीटर का थ्रो फेंका। हालांकि ये दूरी गोल्ड मेडल तक तय नहीं कर पाई और सिल्वर मेडल से उन्हें संतोष करना पड़ा। वहीं चेक गणराज्य के याकूब वादलेज्चे ब्रॉन्ज मेडल के साथ तीसरे स्थान पर रहे।नीरज चोपड़ा ने इसी साल मई में दोहा डायमंड लीग में 88.67 मीटर लंबा थ्रो किया था। इस प्रतियोगिता के बाद उन्हे हैम्स्ट्रिंग हो गई थी। इसके कारण उन्हें कुछ प्रतियोगिताओं से अपना नाम वापस लेना पड़ा। हालांकि इस दौरान नीरज ने अपनी फिटनेस पर पूरा काम किया और स्विट्जरलैंड के लुसाने डायमंड लीग में स्वर्ण जीतकर इतिहास रच दिया ।

मानवता की मिसाल हैं 10 हजार बच्चों की डिलीवरी कराने वाली नर्स

चेन्नै: भारत की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली में नर्स और दाइयों का अहम योगदान हैं। लेकिन भारी और सीमित संसाधनों के चलते इन्हें काफी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। हम आपको एक ऐसी नर्स के बारे में बताने जा रहे हैं, जिन्होंने अपने 33 साल के लंबे करियर में 10,000 से ज्यादा सफल डिलीवरी कराई हैं। हाल ही में तमिलनाडु की रहने वाली रिटायर्ड नर्स ने न्यूज वेबसाइट बीबीसी से बातचीत में अपने अनुभव को साझा किया। नर्स खतीजा बीबी को अपने इस योगदान के लिए सरकार के जरिए सम्मानित भी किया जा चुका है।न्यूज वेबसाइट बीबीसी को दिए इंटरव्यू में 60 वर्षीय खतीजा बीबी कहती हैं, ‘मुझे गर्व है कि मेरे जरिए कराई गई 10,000 शिशुओं की डिलीवरी में एक भी बच्चा मेरे देखते-देखते नहीं मरा’। खतीजा इसे अपने करियर का मुख्य आकर्षण मानती हैं। राज्य के स्वास्थ्य मंत्री मा. सुब्रमण्यन ने बीबीसी को बताया कि खतीजा को हाल ही में एक सरकारी पुरस्कार मिला है, क्योंकि उनकी सेवा के वर्षों के दौरान कोई मृत्यु दर्ज नहीं की गई थी।तीन दशकों के दौरान उन्होंने दक्षिणी राज्य तमिलनाडु के एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में काम किया, भारत उच्च मातृ मृत्यु दर वाले देश से वैश्विक औसत के करीब एक देश में बदल गया है। वह कहती हैं कि उन्होंने लड़कियों के जन्म और कम बच्चे पैदा करने के प्रति लोगों के नजरिए में सकारात्मक बदलाव भी देखा है।साल 1990 में जब खतीजा ने काम करना शुरू किया तो वह खुद गर्भवती थीं। उस दौर को याद करते हुए खतीजा कहती हैं, ‘मैं सात महीने की गर्भवती थी… फिर भी मैं अन्य महिलाओं की मदद कर रही थी। दो महीने के छोटे मातृत्व अवकाश के बाद मैं काम पर लौट आई। मैं जानती हूं कि जब महिलाएं प्रसव पीड़ा से गुजरती हैं तो वे कितनी चिंतित रहती हैं, इसलिए उन्हें सहज और आश्वस्त बनाना मेरी पहली प्राथमिकता है।’

3 साल के लिए ड्रीम-11 बना टीम इंडिया का प्रमुख प्रायोजक

 358 करोड़ में हुई बीसीसीआई के साथ तीन साल की डील!

मुंबई: फैंटेसी स्पोर्ट्स कंपनी ड्रीम-11 अब टीम इंडिया की मुख्य स्पॉन्सर होगी। भारतीय क्रिकेट टीम की जर्सी पर अब बायजूस की जगह ड्रीम-11 छपा दिखेगा। मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो तीन साल की यह डील 358 करोड़ रुपये में हुई है। पिछले वित्तीय चक्र के खत्म होने-11 के बाद बायूजस ने हटने का फैसला किया था, जिसके बाद बीसीसीआई (भारतीय क्रिकेट बोर्ड) ने अपने नए प्रायोजक के लिए सीलबंद बोलियां आमंत्रित की थीं, जिसमें ‘ड्रीम 11’ भी शामिल था। बीसीसीआई ने अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से इस बात की जानकारी सार्वजनिक की। भारतीय टीम की जर्सी पर ड्रीम-11 का लोगो वेस्टइंडीज दौरे से लग जाएगा। इस दौरे की शुरुआत 12 जुलाई से हो रही है। जहां भारत को दो टेस्ट, तीन वनडे और पांच टी-20 इंटरनेशनल मुकाबले खेलने हैं।

कलेक्टर ने दिखाई राह तो नक्सलियों के गढ़ में आई कलम क्रांति

68 छात्र-छात्राएं बनेंगे डॉक्टर-इंजीनियर

दंतेवाड़ा: नक्सलियों के गढ़ दंतेवाड़ा में बदलाव की बयार बह रही है। दंतेवाड़ा की युवा पीढ़ी ने बदलाव के लिए शिक्षा को चुना है। इसका असर भी दिख रहा है। दंतेवाड़ा के 68 छात्र-छात्राएं डॉक्टर और इंजीनियर बनेंगे। इनमें ड्रॉपर्स बैच से भी बच्चे शामिल हैं, जिन्होंने अपना सपना साकार किया है। नीट और जेईई की परीक्षा पास करने के बाद छात्र-छात्राओं की खुशी देखी जा सकती है। दंतेवाड़ा से पहली बार इतनी बड़ी संख्या में छात्र-छात्राओं ने सफलता हासिल की है। 68 सफल छात्र-छात्राओं में अधिकांश बच्चे ऐसे हैं, जिन्हें 12वीं तक की पढ़ाई के लिए पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिली हैं। दरअसल, सभी छू लो आसमान संस्था में पढ़ाई करते थे। दंतेवाड़ा कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कहा कि हमने पिछले साल इसकी शुरुआत की थी। अधिकांश बच्चे ऐसे होते हैं, जिनकी पढ़ाई अच्छी नहीं होती है। हमने वैसे बच्चों को सेकंड चांस दिया था। पहली बार रिजल्ट इतना अच्छा आया है। कलेक्टर ने कहा कि इनमें 47 बच्चे ड्रॉपर्स बैच के हैं।कलेक्टर ने कहा कि बच्चों के सामने सबसे बड़ी समस्या होती है कि उन्हें करना क्या है। कोई गाइड करने वाला नहीं होता है। कलेक्टर विनीत नंदनवार ने कहा कि मैंने इसे झेला है। मैंने जिले में करीब 2000 से अधिक बच्चों को गाइड किया है। उन्हें मैं बताया कि कैसे आपको पढ़ाई करनी है। इन्हीं चीजों को लेकर हमने मार्गदर्शन कार्यक्रम चलाया है। दंतेवाड़ कलेक्टर विनीत नंदनवार ने बताया कि नक्सल प्रभावित इलाकों से 68 बच्चों ने NEET और JEE में सफलता हासिल की है। उन्होंने बताया कि यह अब तक की सबसे बड़ी उपलब्धि है। इसमें ऐसे बच्चे शामिल हैं जिन्हें 12वीं तक की शिक्षा के लिए पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं मिली। वहीं, एक सफल छात्रा ने कहा कि यहां अलग से पढ़ाई होती है। उसमें मैंने अलग से रुचि दिखाई है। नीट और जेईई की परीक्षा बहुत कठिन होती है। हम सभी बहुत पिछड़े इलाके से आते हैं। प्रशासन की मदद से हमें बहुत अच्छे शिक्षक मिले। यहां कोई शुल्क नहीं लिया जाता है। अब हमारे सपने पूरे होंगे।

हिंद महासागर में मौजूद है रहस्यमय ग्रेविटी होल

वॉशिंगटन: आम तौर पर माना जाता है कि हमारी पृथ्वी पूरी तरह गोल है। लेकिन अगर इसका पूरा पानी हटा दिया जाए तो यह जगह-जगह पिचकी और उभरी दिखाई देगी। इसी तरह एक और धारणा है कि पृथ्वी पर सभी जगहों पर गुरुत्वाकर्षण समान है, लेकिन ऐसा नहीं है। वैज्ञानिकों नें हिंद महासागर में एक अनोखी चीज खोजी है, जिसे ग्रेविटी होल कहा जाता है। महासागर की इस गहराई में गुरुत्वकार्षण बल बाकी पृथ्वी से कमजोर पड़ जाता है। ग्रेविटी होल से जुड़ा एक नया अध्ययन सामने आया है, जिसमें दावा किया गया है कि वैज्ञानिकों ने इसके कारण का पता लगा लिया है।
वैज्ञानिकों का मानना है कि यह ग्रेविटी होल प्राचीन समुद्र के अवशेष हैं, जो करोड़ों वर्ष पहले खत्म हो गया। ग्रेविटी होल पृथ्वी की सबसे रहस्यमय गुरुत्वाकर्षण विसंगति मानी जाती है। इसे इंडियन ओशियन जियोइन लो (IOGL) के नाम से जाना जाता है। यह विशाल ग्रेविटी होल 30 लाख वर्ग किमी का इलाका है जो पृथ्वी की क्रस्ट के नीचे 950 वर्ग किमी तक फैला है। जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि IOGL में टेथिस महासागर के स्लैब शामिल हैं।
क्या है टेथिस महासागर
टेथिस महासागर एक प्राचीन महासागर था जो मेसोजोइक युग के दौरान गोंडवाना और लॉरेशिया महाद्वीपों के बीच मौजूद था। यह लंबे समय से खोया हुआ महासागर है जो लाखों साल पहले गृह की गहराई में डूब गया था। स्टडी के प्रमुख लेखक देबंजन पाल और अत्रेयी घोष ने कहा कि अभी तक पहले जो अध्ययन हुए उसमें सिर्फ इस विसंगति के बारे में बताया गया। लेकिन यह नहीं बताया गया कि इसके पीछे का कारण क्या है? अब शोधकर्ताओं ने इसके कारण के बारे में बताने का प्रयास किया है।
तीन करोड़ साल पहले बना था

शोधकर्ताओं के मुताबिक इस ग्रेविटी होल का जवाब पृथ्वी के क्रस्ट के एक हजार किमी नीचे छिपा है। यहां प्रचीन महासागर के ठंडे घने अवशेष अफ्रीका के नीचे तीन करोड़ साल पहले दब गए थे और गर्म पिघली चट्टानों को ऊपर लाने के कारण बने। हालांकि शोधकर्ताओं का यह दावा कंप्यूटर मॉडल पर बना है, जो शायद पर्याप्त न हो।

2.29 लाख दाम, जानिए हार्ली डेविडसन की कहानी

नई दिल्ली: जिस बाइक का युवाओं को बेसब्री से इंतजार था वो अब खत्म हो गया है। Harley-Davidson की सबसे किफायती बाइक हार्ली – डेविडसन एक्स440  भारतीय बाजार में आ गई है। दिलचस्प बात ये है कि कंपनी ने इस बाइक को महज 2.29 लाख रुपये में लॉन्च किया है। इस बाइक को कंपनी के ऑफिशियल डीलरशिप के जरिए बुक किया जा सकता है। इसके लिए 25 हजार रुपये बतौर बुकिंग अमाउंट जाम करने होंगे। बता दें कि ये पहली ऐसी हार्ली-डेविडसन  बाइक है जो पूरी तरह से भारत में बनी है। हार्ली-डेविडसन और हीरो मोटोकॉर्प की साझेदारी से ये पहला मॉडल तैयार किया गया है। लेकिन हार्ली-डेविडसन (Harley-Davidson) बाइक में ऐसा क्या है कि लोग इसके दीवाने हैं। खबरों के मुताबिक, साल 1901 में विलियम एस हार्ली नाम के 21 साल के युवा ने एक फ्लाईव्हील्स के साथ छोटे से इंजन का प्लान बनाया। इस इंजन को एक पैडल साइकिल फ्रेम में यूज के लिए डिजाइन किया गया था। हार्ली और उनके बचपन के दोस्त आर्थर-डेविडसन के भाई वॉल्टर डेविडसन ने मोटर साइकिल पर अगले दो वर्ष तक मेहनत की। ये काम साल 1903 में पूरा हुआ। उन्होंने जो पॉवर साइकिल बनाई वह बिना पैडल के मिडवॉक की साधारण पहाड़ियों को चढ़ने में सक्षम थी। इसके बाद दोनों ने हाईटेक मशीन पर काम शुरू किया। इस पहली हार्ली-डेविडसन बाइक में बड़ा इंजन था। इसी के साथ मशीन का लूप फ्रेम पैटर्न साल 1903 की मिलवॉकी मार्केल मोटरसाइकिल के जैसा था। आज हार्ली-डेविडसन दुनिया की जानी-मानी बाइक कंपनी है और फ़ोर्ब्स के मुताबिक साल 2018 (मई) में इसका मार्केट कैप सात अरब डॉलर तक पहुंच गया था। भारत में इस कंपनी ने हाल में 17 नए मॉडल पेश किए हैं, जिनके दाम 5 लाख रुपये से लेकर 50 लाख रुपये के बीच हैं। इस कंपनी की बाइक सुपरबाइक कही जाती हैं और ज़ाहिर है ज़्यादा दाम की वजह से ये ख़ास और रईस तबके की पहली पसंद हैं।

भारत नौंवी बार बना सैफ फुटबॉल चैंपियन

फाइनल में कुवैत को पेनल्टी शूटआउट में हराया

बेंगलुरु: गत चैंपियन भारत ने फाइनल में कुवैत को हराते हुए नौवीं बार सैफ फुटबॉल चैंपियनशिप का खिताब अपने नाम किया। दोनों ही टीमें 90 मिनट के बाद एक्स्ट्रा टाइम तक 1-1 के स्कोर पर बराबर थी। ऐसे में मैच का नतीजा पेनल्टी शूटआउट से निकला, जहां भारत ने अपने घरेलू दर्शकों के बीच कतर को 5-4 से हराया। इससे पहले सेमीफाइनल में भी भारत ने लेबनान को पेनल्टी शूटआउट में 4-2 से हराया था। भारतीय टीम दूसरी बार कुवैत से खेल रही थी, इससे पहले ग्रुप-ए में दोनों टीमों का मुकाबला 1-1 से ड्रॉ रहा था। गोलकीपर गुरप्रीत सिंह संधू ने डाइव लगाकर निर्णायक पेनल्टी बचाई और इस तरह भारत ने 5-4 से सैफ फुटबॉल चैंपियनिप का फाइनल जीत लिया। पेनल्टी शूटआउट के पांच दौर के बाद भी स्कोर 4-4 था, जिसके बाद सडन डैथ पर फैसला हुआ। महेश नोरेम ने स्कोर किया और भारत के गोलकीपर गुरप्रीत संधू ने डाइव लगाकर खालिद हाजिया का शॉट बचाकर टीम को जीत दिलाई।