Sunday, March 16, 2025
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परिवार और हम – मैनेज करने से कुछ भी मैनेज नहीं होता…बोलना जरूरी है सही समय पर..

पहली कड़ी

परिवार को लेकर बहुत सी बातें कही जाती हैं । संयुक्त परिवारो का विघटन हुआ और एकल परिवार बने मगर एकल परिवारों में समस्याओं का स्वरूप बदल गया । ऐसी स्थिति में यह जानने की जरूरत है कि कहां कुछ छूट रहा है। जीवन में परफेक्ट कुछ भी नहीं होता मगर एक तरफ हम पेशेवर जीवन में लगातार कोशिश करते हैं क्योंकि वहां मामला हमारी व्यक्तिगत प्रगति का है मगर अपने सम्बन्धों के प्रति वह ईमानदारी नहीं है। परिवार का मतलब ही पति – पत्नी और बच्चे तक सिमट कर रह जाता है तो आप बच्चे से पारिवारिक संस्कारों के सीखने की उम्मीद कैसे कर सकते हैं । सम्बन्धों का रसायन शास्त्र बहुत जटिल होता है मगर एक बात तय है कि जबरन बांधा वहां जाता है जहां स्वार्थ हो। जो आपसे प्रेम करते हैं वह आपको उन लोगों से कभी दूर नहीं होने देते जिनको आप पसन्द करते हैं। परिवार श्रृंखला पर यह दृष्टिकोणाक्त्मक पड़ताल जाहिर है कि अलग – अलग बिन्दुओं को छूने का प्रयास है, समझने की चेष्टा है । बहुत सी बातें कड़वी होंगी जो सम्भवतः बहुतों के गले नहीं उतरे मगर संवाद जरूरी है..और संवाद मूड देखकर नहीं होता । ठहरकर आकलन करने की जरूरत है। आज इस संवाद की कड़ी में हम दो किश्तें जारी कर रहे हैं…आगे बातचीत जारी रहेगी। बातें अपने अनुभवों के आधार पर हैं और इनसे सहमत होना कतई आवश्यक नहीं है मगर इस चर्चा में हमें एक दृष्टिकोण से नहीं बल्कि कई दृष्टिकोण से सोचने की और बात करने की जरूरत है । अगर बातें काम की लगीं तो हमारा सौभाग्य होगा ...सम्पादक 

आज बात परिवार व्यवस्था और पारिवारिक सम्बन्धों को लेकर करनी है। कलियुग का हवाला देकर सारा ठीकरा युवा पीढ़ी पर फोड़ दिया जाता है इसलिए बात जरूरी है। बात स्त्रियों की भूमिका और उनकी रसोई वाली राजनीति पर भी होगी और चालाकी से भरी चुप्पी पर भी होगी । पारिवारिक सेटिंग और अंडरस्टैंडिंग से उत्पन्न चुप्पी पर होगी। मतलब सम्बन्धों की आड़ में सौदेबाजी और अवसरवादिता पर भी होगी…आज चीरफाड़ होगी । इस बातचीत में अपने अनुभवों के आधार पर ही बात करनी है। कम्पनी टूटती है क्योंकि बॉस अपने कर्मचारियों को अपने अधीनस्थ विश्वासपात्रों के हाथों में उनके हाल पर छो़ड़ देता है और वह देखने की जहमत नहीं करता कि उनके अधीनस्थ बच्चों के साथ कैसा सलूक करते हैं। ठीक इसी तरह खानदान व परिवार टूटते हैं क्योंकि परिवार का मुखिया तब चुप रहता है जब उसे बोलना चाहिए और परिवार की इकाई में होने वाले घटनाक्रमों से या तो अनजान बना रहता है या जानबूझकर निष्क्रिय बना रहता है क्योंकि जो हो रहा है उसकी निजी जिन्दगी को क्षति नहीं पहुंच रही ।  आज बात परिवार व्यवस्था और पारिवारिक सम्बन्धों को लेकर करनी है। कलियुग का हवाला देकर सारा ठीकरा युवा पीढ़ी पर फोड़ दिया जाता है इसलिए बात जरूरी है। बात स्त्रियों की भूमिका और उनकी रसोई वाली राजनीति पर भी होगी और चालाकी से भरी चुप्पी पर भी होगी । पारिवारिक सेटिंग और अंडरस्टैंडिंग से उत्पन्न चुप्पी पर होगी। मतलब सम्बन्धों की आड़ में सौदेबाजी और अवसरवादिता पर भी होगी…आज चीरफाड़ होगी । इस बातचीत में अपने अनुभवों के आधार पर ही बात करनी है। कम्पनी टूटती है क्योंकि बॉस अपने कर्मचारियों को अपने अधीनस्थ विश्वासपात्रों के हाथों में उनके हाल पर छो़ड़ देता है और वह देखने की जहमत नहीं करता कि उनके अधीनस्थ बच्चों के साथ कैसा सलूक करते हैं। ठीक इसी तरह खानदान व परिवार टूटते हैं क्योंकि परिवार का मुखिया तब चुप रहता है जब उसे बोलना चाहिए और परिवार की इकाई में होने वाले घटनाक्रमों से या तो अनजान बना रहता है या जानबूझकर निष्क्रिय बना रहता है क्योंकि जो हो रहा है उसकी निजी जिन्दगी को क्षति नहीं पहुंच रही । इमोशनल अटैचमेंट या तो महज औपचारिकता मात्र है…या खानदान के दूसरे सदस्य उस पर हावी होकर अपना स्वार्थ सिद्ध करते हैं । कम्पनी, संस्थान या परिवार का संचालन करना एक बहुत बड़ा दायित्व है, वहां सबको साथ लेकर चलना पड़ता है, कड़े फैसले लेने पड़ते है, अनुशासन लाना पड़ता है, जवाबदेही तय करनी पड़ती है । जाहिर है कि आप सबको एक साथ खुश नहीं कर सकते इसलिए जो सही है…उसके साथ लेकर बस आगे बढ़ना ही उचित है । अगर आपके होते हुए किसी के साथ कुछ गलत हो रहा है तो यह विफलता पीड़ित की नहीं, स्वयं आपकी है । इतिहास उंगली आप पर उठाएगा और आप अपनी जिम्मेदारी से बच नहीं सकते । यदि सभी के होते हुए सीता को निर्वासन होता है तो यह विफलता किसी और की नहीं कौशल्या और जनक की है । उन सभी लोगों की है जिन्होंने यह देखा। अगर भीष्म पितामह, द्रोण के होते हुए लाक्षागृह और चीरहरण जैसी घटनाएं हो रही हैं तो विफलता पांचाली की नहीं बल्कि हस्तिनापुर के बड़ों की है । छोटों को निर्भय होकर संरक्षण देना और उनको आगे ले जाना बड़ों की जिम्मेदारी है।
जिस परिवार में बड़ों के होते हुए बच्चों को भटकना पड़ा । किसी स्त्री अथवा पुरुष को प्रताड़ित किया जाए और खानदान के होते हुए उस पर इतने अत्याचार हों कि वह तड़पती हुए चल बसे तो इसका पाप तो उन बड़ो को ही लगेगा जिन्होंने प्रताड़ित करने वालों, छीनने वालों से जवाब नहीं मांगा जिसने दोषियों को कठघरे में खड़ा नहीं किया। परिवार के किसी सदस्य का सामान कोई कर्मचारी जांच करे तो यह अपमान खुद आपका है।
अगर भरा – पूरा परिवार होते हुए भी परिवार के किसी सदस्य का जीवन एकाकी ही रह जाए, कोई अपनी समस्याओं से अकेले जूझ रहा हो..तो किसी फ्लैट के अपार्टमेंट में बंद रहना और कुनबे में रहना, अलग कैसे हुआ । घर में भाई – बहनों को अपनी जिम्मेदारी खुद उठाने के लिए तैयार रहना चाहिए..आप अपने भाई या पिता का दायित्व हो सकते हैं मगर अपनी भाभी या अपने जीजा की जिम्मेदारी नहीं हैं क्योंकि यह आपके भाई या बहन की निजी जिन्दगी है तो अपने निजी खर्च और जिम्मेदारियां खुद उठाना सीखिए । हर एक रिश्ते में एक समय के बाद दूरी रहनी जरूरी है । आपको समझना होगा कि विवाह के बाद उस व्यक्ति का अपना एक परिवार है…अपनी मर्यादा रखते हुए सम्बन्ध निभाइए..आत्मनिर्भर रहेंगे तो कोई आप पर हावी नहीं होगा, कोई अहसान नहीं जताएगा। किसी भी विवाद में अपने जीवनसाथी को मत आने दीजिए, उसे अपने भाई – बहनों के साथ खुद सुलझाइए…उनके लिए कुछ करने के लिए आपको किसी की अनुमति की जरूरत नहीं होनी चाहिए । अगर भाई अपनी बहनों को कुछ देने से पहले अपनी पत्नियों की अनुमति मांगते हैं या उनका चेहरा देखते हैं तो ऐसे भाइयों या ऐसी बहनों का क्या काम? अगर बहनों का अपमान होने पर बहनों को कोई फर्क इसलिए न पड़े कि उनका विवाह हो गया है तो ऐसी बहनों की जरूरत क्या है? परिवार वह होता है जहां एक का दुःख, तकलीफ, अपमान, पीड़ा दूसरे की पीड़ा बन जाए…यह हमारी पुरानी पीढ़ी में था इसलिए दूर होने पर भी रिश्ते बने रहे..फिर आज क्या हुआ ? कोई आपके परिवार में दुःखी है, बदहाली में है तो आप आराम से कैसे जी सकते हैं ? सोशल मीडिया पर सुनियोजित रूप से मौसी को परम प्रिय बनाया जा रहा है तो बुआ – फूफा, ननदें, देवर खलनायक साबित किए जा रहे हैं । जो लड़कियां या लड़के शादी के बाद एकछत्र राज्य चाहते हैं, उनसे हमारा विनम्र निवेदन है कि अगर आप मीशो से नहीं आईं या आए तो आपका जीवनसाथी भी फ्लिपकार्ट से डिलिवर नहीं किया गया। उसका पालन – पोषण किया गया है और वह आपकी सास – ननद या जेठ अथवा देवर ने किया है । आपको कोई अधिकार नहीं है कि अपनी कुंठित मानसिकता के लिए किसी का बसा – बसाया परिवार तोड़ डालें । अगर आपको सास – ननद, देवर नहीं चाहिए तो प्लीज डोंट गेट मैरेड….। अलग होकर भी आप अपने परिवार के लिए मटर जरूर छीलेंगी तो सास – ननदों के साथ मटर छीलने में आपत्ति क्यों है? आपको किसने अधिकार दे दिया कि आपकी ननद कब आएगी, कब तक रहेगी…अपने घर से क्या लेगी या क्या नहीं लेगी…ये आप तय करें…जबकि आप अपने मायके में अपने माता – पिता के साथ अपनी भाभी का यह व्यवहार नहीं सह पा रहीं । आपके अधिकार आपके पति पर हैं..आप अपने देवर – ननदों के जीवन से जुड़े फैसले नहीं ले सकतीं, ठीक उसी प्रकार जैसे आपके पति तय नहीं करेंगे कि आपके भाई – बहन जिंदगी कैसे जीएंगे । अगर अपने मायके को कुछ देना है तो वह आप अपनी कमाई से दीजिए । आप अपने मायके से कुछ नहीं मांगेंगी…अच्छी बनी रहेंगी और ससुराल में हिस्सा हड़पने के लिए चालें चलती रहेंगी….नॉट फेयर । यह घर आपके पिता ने नहीं बनाया…आपके पति के पिता ने बनाया है जो आपकी ननद के भी पिता हैं…इस रिश्ते में दरार डालकर अपना घर बसाने से बाज आइए और अधिकार मांगना है तो अपने मायके से मांगिए….फिर देखिए कि आपके वह अपने कितने अपने हैं । बहनों का अधिकार उनके भाइयों पर होता है, भौजाइयों पर अधिकार मत जताइए…हुक्म मत चलाइए…मानिए कि रिश्ते में दूरी है और उसे बने रहना चाहिए । मजे की बात यह है कि सोशल मीडिया पर देवरानी व जेठानी व सास को लेकर मेलजोल और अंडर स्टैंडिंग वाले मीम बन रहे हैं… क्या आपको नहीं लगता कि यह बड़े ही सुनियोजित तरीके से हो रहा है…यह अनायास नहीं है……अपना कॅरियर, अपना परिवार..अपना फ्यूचर मगर आपको यह सब करने के लिए जरूरत दूसरों की पड़ रही है….सोलह श्रृंगार करके कैमरे पर इतराने वाली वधुएं जरा बताएं..अगर इतनी ही तकलीफ है रिश्तेदारों से तो शादी ही क्यों की? मां की गालियां और चप्पल अमृत समान है और मां जैसी बुआ कुछ कह दे तो उसने जीना हराम कर रखा है…वाह रे हिप्पोक्रेट जेनेरेशन तो अब बुआ को लेकर मीम बनाना बंद करो यूट्यूबरों । जीवन में परफेक्ट कुछ नहीं होता…अगर कुछ बुरा होता है तो वह है मौकापरस्त होना…आप खुद स्वार्थी हैं तो दूसरों से दरियादिली की उम्मीद क्यों? आपके पति के पास अपनी बहन को देने के लिए समय चाहिए…वह आपके भाई..आपके माता – पिता की इज्जत करे मगर अपने भाई – बहनों का पक्ष ले तो वह खलनायक बन गया….गजब हैं जी आप।
हमारी परम्परा पाश्चात्य कजन परम्परा नहीं है । भाई – बहन …भाई बहन होते हैं, हमें कभी समझ ही नहीं आया कि मौसेरा, फुफेरा, चचेरा जैसे शब्द क्या होते हैं और आज की पीढ़ी के लिए …सब कजन हैं। भाई और बहन तो एक दूसरे की ढाल होने चाहिए कि अगर एक पर आंच आए तो दूसरा खड़ा हो जाए क्यों यह सम्बन्ध तो डिफॉल्ट होता है जिसे ईश्वर ने आपको दिया है । गौर कीजिएगा कि शादी के बाद स्त्रियां कुछ नहीं छोड़तीं बल्कि अपनी ससुराल के संसाधनों का उपयोग कर अपने मायके को समृद्ध करती जाती हैं और लड़के इतने बेवकूफ होते हैं कि पत्नी प्रेम के नाम पर अपने सारे सम्बन्धों, अपनी तमाम संवेदनाओं को तिलांजलि दे जाते हैं। मानसिक और भावनात्मक तौर पर अकेले हो जाते हैं या कर दिए जाते हैं और एक दिन अवसाद में चले जाते हैं । विवाह का अर्थ अपनी रीढ़ की हड्डी को गिरवी रख देना नहीं होता और अतुल सुभाष जैसी घटनाएं होती हैं क्योंकि आप तो सबसे लड़कर अलग हो गये तो आपके लिए कौन लड़ेगा? मुझे यह कहने में कोई संकोच नहीं कि असुरक्षा से घिरी किचेन पॉलिटिक्स स्त्रियां दरअसल पहले ही दिन से परिवार के साथ मिलकर रहने में नहीं बल्कि अपना एकछत्र राज्य स्थापित करने में विश्वास रखती हैं । उनका पहला लक्ष्य ही अपने पति को उसके तमाम रिश्तों से अलग कर खुद पर इतना निर्भर बना देना है कि पति उस पर पूरी तरह निर्भर हो जाए। मूर्ख पुरुषों को पता नहीं कि जिस परिवार को छोड़ रहा है, वह उसका रक्षा कवच है । आपको लेकर जितने प्रोटेक्टिव आपके भाई – बहन या आपके घर के लोग होंगे, उतनी आपकी ससुराल वाले कभी नहीं हो सकते इसलिए अपने जीवनसाथी के निजी सम्बन्धों के बीच में न तो आइए और न ही अपने निजी रिश्तों के बीच में कभी अपने जीवनसाथी को आने दीजिए और न ही किसी को अपने जीवनसाथी के बीच में आने दीजिए । सारा खेल यही है कि दायरे खत्म हो गये हैं…सब गड्डमड्ड हो गया है।
हम यह नहीं कहते कि जीवनसाथी का सम्मान मत कीजिए, जरूर कीजिए मगर उसका एक दायरा तय कीजिए, सीमा बांधिए….वह आपका अधिकार है, आपके रिश्ते हैं, आपकी जिम्मेदारी हैं, ईश्वर ने आपको दिए हैं । इनसे न तो कोई आपको दूर कर सकता है और न ही आप खुद इनको खुद से दूर सक सकते हैं । यह आपका जीवनसाथी तय नहीं करेगा कि आपको अपने भाई – बहनों, परिवार या दोस्तों के साथ क्या देना है, कैसे ख्याल रखना है या अपना परिवार कैसे चलाना है….ये सिर्फ और सिर्फ आपका अधिकार है…और इसके लिए कोई आपसे रूठ जाता है तो रूठ जाता है । आप खुद को सुरक्षित और मजबूत कर रहे हैं । अगर आप दो दिन की आई हैं और एकछत्र अधिकार चाहती हैं तो जो आपके पहले जीवनभर आपके साथ के साथ रहा है, उसे हक क्यों नहीं जताना चाहिए ?
सोचती हूं कि मान – सम्मान और अपमान की धारणाएं परिवारों में खासकर स्त्रियों के मामले में एकरेखीय क्यों होती हैं? मसलन युग बीत गये मगर आज भी कहा जाता है कि चीरहरण द्रौपदी का हुआ, वनवास सीता को मिला या फिर श्रीराम वन को गए। व्यक्ति कुछ सही या गलत करे तो उसके सिर पर मान व प्रतिष्ठा का बोझ रख दीजिए मगर उसके साथ कुछ गलत हो तो वह उसका व्यक्तिगत मामला है । किसी खिलाड़ी ने पदक जीता तो वह पूरे देश का हो गया मगर महिलाएं सड़कों पर घसीटी जाएं तो वह अपमान महिलाओं का ही होकर रह गया और वह भी कुछ खिलाड़ियों का..हद है। जब कोई स्त्री अपनी इच्छा से अपना जीवनसाथी चुने तो वह कुलघातिनी कहलाती है, अक्सर मां – बाप की इज्जत का हवाला देकर लड़कियों की पढ़ाई या नौकरी छुड़वा दी जाती है मगर वही लड़की अपनी ससुराल में अकेली पड़ जाती है तो वही घरवाले कहते हैं कि यह तो इसका ही भाग्य था। माने अवसरवादिता की भी कोई हद नहीं है । अभी एक मित्र से 20 साल बाद मिलना हुआ। अब वह अधिकारी बन गया है तो सब उसके पीछे दौड़े चले आ रहे हैं मगर जब वह संघर्ष कर रहा था तो लोग उसके साथ नहीं थे। जब हमारे हिस्से के संघर्ष हमारे अपने हैं, तकलीफें हमारी अपनी हैं तो हर अपने सुखों का बंटवारा किसी भी परिवार या समाज के साथ क्यों करें? अक्सर महेंद्र सिंह धोनी या अमिताभ बच्चन की आलोचना की जाती है कि वह अपने किसी चाचा – काका के साथ खड़े नहीं रहे मगर किसी ने वजह जानने की कोशिश नहीं की । ऐसे में सवाल अस्तित्व का खड़ा होता है कि आप हैं कहां…मैंने खरबूजों और गिरगिटों से भी अधिक तेजी से बदलते रिश्ते -नाते और लोग देखे हैं। जब अचानक आप किसी बड़े पद पर चले आते हैं, आपका नाम होने लगता है तो यही बेशर्म लोग आपके सामने खड़े होकर आपको याद दिलाने लगते हैं कि फलाने समय में ढिमकाने तरीके से इन सबने आपकी कई बार सेवा की थी । किसी व्यक्ति का सम्मान जब समाज का सम्मान है, परिवार का सम्मान है तो उसका अपमान समाज या परिवार का अपमान क्यों नहीं है? सब कुछ जानकर भी दुनियादारी के नाम पर अपना उल्लू सीधा करने वालों को अपराधी क्यों न कहा जाए?
आज भी सच तो यही है कि यही रिश्तेदार होते हैं जब आपको आपके घर में प्रताड़ित होता देखते हैं और मौन साधे रहते हैं बल्कि प्रताड़ित करने वाले से अपने रिश्ते बनाए रखते हैं क्योंकि उनको आपसे कोई लाभ नहीं होने वाला रहता। आप उनकी नजर में कोई पागल होते हैं या बेचारा होते हैं जो अपनी जिद के कारण अकेला है। वह नहीं देखते आपका दर्द. आपकी पीड़ा से उनको कोई मतलब नहीं होता । आप उनकी दुनियादारी के एजेंडे में कहीं फिट नहीं होते इसलिए आपका होना न होना उनके लिए बराबर है। आपको बहिष्कृत किया जाता है, आपको अलग – थलग किया जाता है क्योंकि आप उनके किसी काम के नहीं हैं और यही स्वार्थी लोग आपको परिवार का मतलब समझाने लगते हैं…कभी आपके साथ ऐसा हुआ है? मजे की बात है कि अपनी सास के होते हुए घर की मुखिया बन जाने वाली बहुएं परिवार का राग अलापती हैं । घर में किसी सदस्य का निधन हो गया…और उनकी मृत्यु को एक माह भी न हुआ हो..राख ठंडी भी न पड़ी हों और वह अपने बच्चे का जन्मदिन बाकायदा केक काटकर मना रही हो…और वह भी अपने मायके से अपनी भौजाइयों को बुलाकर अपनी रसोई में केक बनवाकर ….आप खुद सोचिए बच्चा कैसे परिवार से खुद को जोड़ सकेगा । एक बात जान लीजिए आपके परिवार का दर्द जितना आपको या आपके भाई – बहनों को होगा…वह दर्द किसी भी सूरत आपकी पत्नी को नहीं हो सकता । जो पराया है, वह पराया ही रहता है..परायी बहन – बेटियां नहीं…बल्कि क्योंकि उसकी दुनिया आपके इर्द – गिर्द सिमटी है और गलत को गलत कहने का सामर्थ्य और जरूरत पड़ने पर दर्पण दिखाने वाली पत्नियां बहुत दिखती हैं। ऐसी जीवनसाथी आपके पास है तो कद्र कीजिए क्योंकि जो आपसे प्रेम करेगा, वह आपको उन सभी से कभी दूर नहीं करेगा जिनसे आप प्रेम करते हैं, जिनके साथ आपका जीवन गुजरा है । वह आपका दुःख जानकर दुःखी भी होगा और खाई को पाटने का प्रयास करेगा। आमतौर पर लड़कियां लड़कों को खुद पर इतना निर्भर बना देती हैं, अपने होने की आदत डलवा देती हैं कि लड़के इस रिश्ते के आगे कुछ सोच ही नहीं सकते और उसकी ससुराल वाले ऐसा व्यवहार करते हैं कि जैसे आप कहीं के राजकुमार हैं…। जाहिर है आपको पैम्पर होना पसन्द हैं, आपको अपना इगो सन्तुष्ट होता लगता है और कल तक जिन भाई – बहनों की बातें आपको नोकझोंक लगती थीं, अब वह आपको जहर लगती हैं । आप मानसिक रूप से अपने ही परिवार से कटने लगते हैं और अलग – थलग पड़ने लगते हैं मगर दूसरी तरफ आपकी पत्नी का मायका और ससुराल दोनों सही सलामत हैं। उसने कुछ नहीं खोया…आपको अलग लेकर उसने अपनी गृहस्थी बसा ली…बच्चों के साथ आपकी दुनिया बस गयी मगर इस घर में सबसे अधिक हताश अगर कोई है तो वह आप ही हैं…आपकी हिम्मत नहीं होती कि आप अपने अपनों से बात कर लें…भाई – बहनों से बात करने को तरसते हैं मगर आपकी पत्नी को कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि वह घर आपका था, जो रिश्ते खोए हैं, आपने खोए हैं । मां – बाप को छोड़ने का अपराधबोध आपके भीतर है । आपको क्या लगता है कि ऐसी स्थिति में आपके बच्चे कभी परिवार का सही अर्थ समझेंगे..रिश्तों का महत्व समझेंगे और आप उदाहरण देंगे तो किसका देंगे? इस पर भी अगर आपका जीवनसाथी आपकी तकलीफ को नहीं समझ पा रहा तो अब भी वक्त है, जो आपके रिश्ते हैं, उनको समेटना शुरू कीजिए। जो आपके अपने हैं, सीधे फोन घुमाकर बात कीजिए…वैसे ही मिल जाइए जैसे कि आप बचपन में लड़ने के बाद मिल जाते थे…नयी शुरुआत कीजिए…आप एक कदम उठाइए…देखिए कि झक मारकर लोग आपके पास आएंगे । आपकी जरूरत उनको है जो हमेशा से आपके थे, वही आपका रक्षा कवच हैं…वही आपकी दुनिया हैं । इन रिश्तों को समझना आपके बच्चों का हक है …दीजिए ये हक उनको।
संचालक का पहला दायित्व मुद्दों को समग्रता से देखना है क्योंकि एक निरपेक्ष व्यक्ति ही परिवार, देश या समाज को आगे ले जा सकता है। किसी परिवार में एक स्त्री अथवा पुरुष का जीवन नर्क बना दिया जाता है, उसके हिस्से का सुख, उसका परिवार सब छीन लिया जाता है, उसे एक नारकीय जीवन दिया जाता है और अंत में वह दुनिया छोड़ जाती है और यह सब एक समूचा खानदान देखता है और सामान्य बना रहता है जैसे कुछ हुआ ही नहीं हो। इसके बाद फिर यही सब कुछ दोहराया जाता है और लोग फिर से सामान्य बने रहते हैं

महाकुम्भ मेले का आध्यात्मिक एवं आर्थिक महत्व

– प्रहलाद सबनानी
हिंदू सनातन संस्कृति के अनुसार कुंभ मेला एक धार्मिक महाआयोजन है जो 12 वर्षों के दौरान चार बार मनाया जाता है। कुंभ मेले का भौगोलिक स्थान भारत में चार स्थानों पर फैला हुआ है और मेला स्थल चार पवित्र नदियों पर स्थित चार तीर्थस्थलों में से एक के बीच घूमता रहता है, यथा, (1) हरिद्वार, उत्तराखंड में, गंगा के तट पर; (2) मध्य प्रदेश के उज्जैन में शिप्रा नदी के तट पर; (3) नासिक, महाराष्ट्र में गोदावरी के तट पर; एवं (4) उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर। प्रत्येक स्थल का उत्सव, सूर्य, चंद्रमा और बृहस्पति की ज्योतिषीय स्थितियों के एक अलग सेट पर आधारित है। उत्सव ठीक उसी समय होता है जब ये स्थितियां पूरी तरह से व्याप्त होती हैं, क्योंकि इसे हिंदू धर्म में सबसे पवित्र समय माना जाता है। कुंभ मेला ऐसा आयोजन है जो आंतरिक रूप से खगोल विज्ञान, ज्योतिष, आध्यात्मिकता, अनुष्ठानिक परंपराओं और सामाजिक-सांस्कृतिक रीति-रिवाजों और प्रथाओं के विज्ञान को समाहित करता है, जिससे यह ज्ञान में बेहद समृद्ध हो जाता है।
कुम्भ मूल शब्द कुम्भक (अमृत का पवित्र घड़ा) से आया है। ऋग्वेद में कुम्भ और उससे जुड़े स्नान अष्ठान का उल्लेख है। इसमें इस अवधि के दौरान संगम में स्नान करने से लाभ, नकारात्मक प्रभावों के उन्मूलन तथा मन और आत्मा के कायाकल्प की बात कही गई है। अथर्ववेद और यजुर्वेद में भी कुम्भ के लिए प्रार्थना लिखी गई है। इसमें बताया गया है कि कैसे देवताओं और राक्षसों के बीच समुद्र मंथन से निकले अमृत के पवित्र घड़े (कुम्भ) को लेकर युद्ध हुआ। ऐसा माना जाता है कि भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप धारण कर कुम्भ को लालची राक्षसों के चंगुल से छुड़ाया था। जब वह इस स्वर्ग की ओर लेकर भागे तो अमृत की कुछ बूंदे चार पवित्र स्थलों पर गिरीं जिन्हें हम आज हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज के नाम से जानते हैं। इन्हीं चार स्थलों पर प्रत्येक तीन वर्ष पर बारी बारी से कुम्भ मेले का आयोजन किया जाता है।
कुम्भ मेला दुनिया में कहीं भी होने वाला सबसे बड़ा सार्वजनिक समागम और आस्था का सामूहिक आयोजन है। लगभग 45 दिनों तक चलने वाले इस मेले में करोड़ों श्रद्धालु गंगा, यमुना और रहस्यमयी सरस्वती के पवित्र संगम पर स्नान करने के लिए आते हैं। मुख्य रूप से इस समागन में तपस्वी, संत, साधु, साध्वियां, कल्पवासी और सभी क्षेत्रों के तीर्थयात्री शामिल होते हैं। कुंभ मेले में सभी धर्मों के लोग आते हैं, जिनमें साधु और नागा साधु शामिल हैं, जो साधना करते हैं और आध्यात्मिक अनुशासन के कठोर मार्ग का अनुसरण करते हैं, संन्यासी जो अपना एकांतवास छोड़कर केवल कुंभ मेले के दौरान ही सभ्यता का भ्रमण करने आते हैं, अध्यात्म के साधक और हिंदू धर्म का पालन करने वाले आम लोग भी शामिल हैं। कुंभ मेले के दौरान अनेक समारोह आयोजित होते हैं; हाथी, घोड़े और रथों पर अखाड़ों का पारंपरिक जुलूस, जिसे ‘पेशवाई’ कहा जाता है, ‘शाही स्नान’ के दौरान चमचमाती तलवारें और नागा साधुओं की रस्में, तथा अनेक अन्य सांस्कृतिक गतिविधियां, जो लाखों तीर्थयात्रियों को कुंभ मेले में भाग लेने के लिए आकर्षित करती हैं।

महाकुंभ मेला 2025 प्रयागराज में 13 जनवरी, 2025 से 26 फरवरी, 2025 तक आयोजित होने जा रहा है। यह एक हिंदू त्यौहार है, जो मानवता का एक स्थान पर एकत्र होना भी है। 2019 में प्रयागराज में अर्ध कुंभ मेले में दुनिया भर से 15 करोड़ पर्यटक आए थे। यह संख्या 100 देशों की संयुक्त आबादी से भी अधिक है। यह वास्तव में यूनेस्को द्वारा अमूर्त सांस्कृतिक विरासत के रूप में सूचीबद्ध है। कुंभ मेला कई शताब्दियों से मनाया जाता है। प्रयागराज कुंभ मेले का सबसे पहला उल्लेख वर्ष 1600 ई. में मिलता है और अन्य स्थानों पर, कुंभ मेला 14वीं शताब्दी की शुरुआत में आयोजित किया गया था। कुंभ मेला बेहद पवित्र और धार्मिक मेला है और भारत के साधुओं और संतों के लिए विशेष महत्व रखता है। वे वास्तव में पवित्र नदी के जल में स्नान करने वाले पहले व्यक्ति होते हैं। अन्य लोग इन साधुओं के शाही स्नान के बाद ही नदी में स्नान कर सकते हैं। वे अखाड़ों से संबंधित हैं और कुंभ मेले के दौरान बड़ी संख्या में आते हैं। घाटों की ओर जाते समय जब वे भजन, प्रार्थना और मंत्र गाते हैं, तो उनका जुलूस देखने लायक होता है।
कुंभ मेला प्रयागराज 2025 पौष पूर्णिमा के दिन शुरू होता है, जो 13 जनवरी 2025 को है और 26 फरवरी 2025 को समाप्त होगा। यह पर्यटकों के लिए भी जीवन में एक बार आने वाला अनुभव है। टेंट और कैंप में रहना आपको एक गर्मजोशी भरा एहसास देता है और रात में तारों से भरे आसमान को देखना अपने आप में एक अलग ही अनुभव है। कुंभ मेले में सत्संग, प्रार्थना, आध्यात्मिक व्याख्यान, लंगर भोजन का आनंद सभी उठा सकते हैं। महाकुंभ मेला 2025 में गंगा नदी में पवित्र स्नान, नागा साधु और उनके अखाड़े से मिलें। बेशक, यह कुंभ मेले का नंबर एक आकर्षण है। कुंभ मेले के दौरान अन्य आकर्षण प्रयागराज में घूमने लायक जगहें हैं जैसे संगम, हनुमान मंदिर, प्रयागराज किला, अक्षयवट और कई अन्य। वाराणसी भी प्रयागराज के करीब है और हर पर्यटक के यात्रा कार्यक्रम में वाराणसी जाना भी शामिल है।
महाकुम्भ 2025 में आयोजित होने वाले कुछ मुख्य स्नान पर्व निम्न प्रकार हैं –
मुख्य स्नान पर्व 13.01.2025
मकर संक्रान्ति 14.01.2025
मौनी अमावस्या 29.01.2025
बसंत पंचमी 03.02.2025
माघी पूर्णिमा 12.02.2025
महाशिवरात्रि 26.02.2025
प्रयागराज का अपना एक एतिहासिक महत्व रहा है। 600 ईसा पूर्व में एक राज्य था और वर्तमान प्रयागराज जिला भी इस राज्य का एक हिस्सा था। उस राज्य को वत्स के नाम से जाना जाता था और उसकी राजधानी कौशाम्बी थी, जिसके अवशेष आज भी प्रयागराज के दक्षिण पश्चिम में स्थित है। गौतम बुद्ध ने भी अपनी तीन यात्राओं से इस शहर को सम्मानित किया था। इसके बाद, यह क्षेत्र मौर्य शासन के अधीन आ गया और कौशाम्बी को सम्राट अशोक के एक प्रांत का मुख्यालय बनाया गया। उनके निर्देश पर कौशाम्बी में दो अखंड स्तम्भ बनाए गए जिनमें से एक को बाद में प्रयागराज में स्थानांतरित कर दिया गया। प्रयागराज राजनीति और शिक्षा का केंद्र रहा है। इलाहाबाद विश्वविद्यालय को पूरब का ऑक्सफोर्ड कहा जाता था। इस शहर ने देश को तीन प्रधानमंत्रियों सहित कई राजनौतिक हस्तियां दी हैं। यह शहर साहित्य और कला के केंद्र के साथ साथ भारत के स्वतंत्रता आंदोलन का भी केंद्र रहा है।
प्रयागराज में आयोजित हो रहे महाकुम्भ का आध्यात्मिक महत्व तो है ही, साथ ही, आज के परिप्रेक्ष्य में इस महाकुम्भ का आर्थिक महत्व भी है। प्रत्येक 3 वर्षों के अंतराल पर आयोजित होने वाले कुम्भ के मेले में करोड़ों की संख्या में श्रद्धालु ईश्वर की पूजा अर्चना हेतु प्रयागराज, हरिद्वार, नासिक एवं उज्जैन में पहुंचते हैं। प्रयग्राज में आयोजित तो रहे महाकुम्भ की 44 दिनों की इस इस पूरी अवधि में प्रतिदिन एक करोड़ श्रद्धालुओं के भारत एवं अन्य देशों से प्रयागराज पहुंचने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है, इस प्रकार, कुल मिलाकर लगभग 45 करोड़ से अधिक श्रद्धालुगण उक्त 44 दिनों की अवधि में प्रयागराज पहुंचेंगे। करोड़ों की संख्या में पहुंचने वाले इन श्रद्धालुगणों द्वारा इन तीर्थस्थलों पर अच्छी खासी मात्रा में खर्च भी किये जाने की सम्भावना है। जिससे विशेष रूप से स्थानीय अर्थव्यवस्था को तो बल मिलेगा ही, साथ ही करोड़ों की संख्या में देश में रोजगार के नए अवसर भी निर्मित होंगे एवं होटल उद्योग, यातायात उद्योग, पर्यटन से जुड़े व्यवसाय, स्थानीय स्तर के छोटे छोटे उद्योग एवं विभिन्न उत्पादों के क्षेत्र में कार्य कर रहे व्यापारियों के व्यवसाय में भी अतुलनीय वृद्धि होगी। इस प्रकार, देश की अर्थव्यवस्था को भी, महाकुम्भ मेले के आयोजन से बल मिलने की भरपूर सम्भावना है।

युवा दिवस (12 जनवरी ) पर विशेष : स्वामी विवेकानंदः युवाओं के लिए सच्चे आदर्श और मार्ग दर्शक

बंडारू दत्तात्रेय,  राज्यपाल, हरियाणा

भारत में 19वी सदी में अंग्रेजी शासन का बोल-बाला था और दूनिया हमें हेय दृष्टि से देखती थी। उस समय भारत माता ने एक ऐसे लाल को 12 जनवरी 1863 में जन्म दिया, जिसने भारत के लोगांे का ही नहीं पूरी मानवता का गौरव बढ़ाया। माता-पिता ने बालक का नाम नरेन्द्र रखा। इसके बाद वे आध्यात्म से सरोबोर होकर स्वामी विवेकानंद कहलाए। स्वामी विवेकानंद पश्चिमी दर्शन सहित विभिन्न विषयों के ज्ञाता होने के साथ-साथ एक बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। वह भारत के पहले हिंदू सन्यासी थे, जिन्होंने हिंदू धर्म और सनातन धर्म का संदेश विश्व भर में फैलाया। उन्होंने विश्व में सनातन मूल्यों, हिन्दू धर्म और भारतीय संस्कृति की सर्वाेच्चता स्थापित की।
योगिक स्वभाव से परिपूर्ण, वे बचपन से ही ध्यान का अभ्यास करते थे। श्री रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आने के बाद उनके जीवन में एक बड़ा बदलाव आया। इनका सम्बन्ध गुरु-शिष्य संबंध के रूप में विकसित हुआ। उन्होंने नवंबर 1881 में एक दिन श्री रामकृष्ण परमहंस से पूछा, सर, क्या आपने भगवान को देखा है? उन्हांेने “हाँ“ में उत्तर दिया और कहा कि मैं उन्हें उतने ही स्पष्ट रूप से देखता हूं, जितना कि मैं आपको देख रहा हूं।
श्री रामकृष्ण परमहंस के दिव्य मार्गदर्शन में, स्वामी विवेकानंद ने आध्यात्मिक पथ पर अद्भुत प्रगति की। 11 सितंबर, 1893 को शिकागो में आयोजित विश्व धर्म संसद में उनके भाषण ने दुनिया भर के धार्मिक और आध्यात्मिक सन्तों पर एक अमिट छाप छोड़ी। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत अमेरिकी बहनों और भाईयों के रूप में संबोधित करते हुए की, जिससे पूरा हाल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। उन्होंने कहा जिस गर्मजोशी और सौहार्दपूर्ण माहौल में मेरा स्वागत किया है, उस से मेरा हृदय गद-गद है। भारत भूमि के सभी समुदायों, वर्गों व लाखों-करोड़ों भारतीयों तथा धर्मभूमि की तरफ से मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूं।
उन्होंने कहा था- “मुझे उस धर्म व राष्ट्र से संबंध रखने पर गर्व है जिसने दुनिया को सहिष्णुता और सार्वभौमिकता सिखाई है। हम न केवल सार्वभौमिक सहनशीलता में विश्वास रखते हैं बल्कि सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार करते हैं। मुझे भारतीयता होने पर गर्व है, जिसमें विभिन्न राष्ट्रों के पीड़ितों और शर्णार्थियों को आश्रय दिया है। स्वामी जी का दृढ़ मत था कि सभी मार्ग एक सच्चे ईश्वर की ओर ले जाते हैं, जैसा कि ऋग्वेद में भी उल्लेख किया गया है कि “एकम सत विप्र बहुदा वदन्ति“ अर्थात सत्य एक है; दार्शनिक इसे विभिन्न नामों से पुकारते हैं।
उनके भारतीय धर्मनिरपेक्षता के विचार सभी धर्मों के लिए समान थे। उन्होंने सदैव सार्वजनिक संस्कृति के रूप में धार्मिक सहिष्णुता का समर्थन किया, क्योंकि वे सद्भाव और शांति चाहते थे। यह केवल एक सुझाव नहीं था, बल्कि जाति या धर्म के आधार पर बिना किसी भेदभाव के लोगों की सेवा करने का एक मजबूत इरादा था। उनके विचारों में धर्मनिरपेक्षता के संबंध में तुष्टिकरण के लिए कोई स्थान नहीं था। यह सर्व समावेशी था, जिसका उन्होंने अमेरिका में प्रचार किया और 1893 में विश्व धर्म संसद में ऐतिहासिक व्याख्यान देने के बाद यूरोप का भी व्यापक दौरा किया।
जब वे चार साल बाद अमेरिका और ब्रिटेन की यात्रा कर भारत लौटे तो वेे मातृभूमि को नमन कर पवित्र भूमि में लेट कर लोट-पोट हुए। यह मातृभूमि के प्रति उनके मन में अपार श्रद्धा और मां भारती के प्रति प्रेम था। उन्होंने कहा कि मातृभूमि का कण-कण पवित्र और प्रेरक है, इसलिए इस धूलि में रमा हूं। उन्होंने माना कि पश्चिम भोग-लालसा में लिप्त है। इसके विपरीत आध्यात्मिक मूल्य और लोकाचार भारत के कण-कण में रचा बसा है।
स्वामी विवेकानंद की दिव्यता, नैतिकता, पूर्व-पश्चिम का जुड़ाव व एकता की भावना विश्व के लिए वास्तविक संपत्ति है। उन्होंने हमारे देश की महान आध्यात्मिक विरासत को आगे बढ़ाते हुए एकता की भावना को परिभाषित किया। उनके बारे में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने लिखा है ‘‘स्वामीजी इसलिए महान हैं कि उन्होंने पूर्व और पश्चिम, धर्म और विज्ञान, अतीत और वर्तमान में सामंजस्य स्थापित किया है, देशवासियों ने उनकी शिक्षाओं से अभूतपूर्व आत्म-सम्मान, आत्मनिर्भरता और आत्म-विश्वास आत्मसात किया है।‘‘ इसी ऐतिहासिक संबोधन से प्रभावित होकर प्रख्यात ब्रिटिश इतिहासकार ए.एल. बाशम ने कहा था-स्वामी विवेकानंद जी को भविष्य में आधुनिक दुनिया के प्रमुख निर्माता के रूप में याद किया जाएगा।”
स्वामी विवेकानंद ने युवाओं के लिए कहा था ‘‘उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए‘‘। वे युवाओं में आशा और उम्मीद देखते थे। उनके लिए युवा पीढ़ी परिवर्तन की अग्रदूत है। उन्होंने कहा था- “युवाओं में लोहे जैसी मांसपेशियां और फौलादी नसें हैं, जिनका हृदय वज्र तुल्य संकल्पित है।“ वह चाहते थे कि युवाओं में विशाल हृदय के साथ मातृभूमि और जनता की सेवा करने की दृढ़ इच्छा शक्ति हो। उन्होंने युवाओं के लिए कहा था “जहां भी प्लेग या अकाल का प्रकोप है, या जहां भी लोग संकट में हैं, आप वहां जाएं और उनके दुखों को दूर करें“ आप पर देश की भविष्य की उम्मीदें टिकी हैं।
स्वामी विवेकानंद के आदर्शों से प्रेरित होकर, हमारे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने आत्म निर्भर, स्वस्थ भारत अभियान शुरू किया है, जिस पर 2025-26 तक 64,180 करोड़ रूपए खर्च होगें। इसका उद्देश्य 10 उच्च फोकस वाले राज्यों में 17,788 ग्रामीण स्वास्थ्य और कल्याण केंद्रों को सुदृढ़ करना है। सभी राज्यों में 11,024 शहरी स्वास्थ्य और कल्याण केंद्र स्थापित करना और 602 जिलों और 12 केंद्रीय संस्थानों में विशेष केयर अस्पताल स्थापित करना है। सरकार का यह कदम इस मन्सा को दर्शाता है कि स्वस्थ लोग ही मजबूत राष्ट्र और जीवंत समाज का निर्माण कर सकते हैं।
अपनी भारत यात्रा के दौरान, स्वामी विवेकानंद विशेष रूप से दलितों में भयानक गरीबी और पिछड़ेपन को देखकर बहुत प्रभावित हुए। वह भारत के पहले धार्मिक नेता थे, जिनका यह मानना था कि जनता ही जनार्दन है। जनता की उपेक्षा करने से देश पिछड़ जाएगा। सदियों से चले आ रहे दमन के कारण सामाजिक व्यवस्था को सुधारने की अपनी क्षमता पर उन्होंने प्रश्नचिन्ह लगाया। उन्होंने महसूस किया कि गरीबी के बावजूद, जनता धर्म से जुड़ी हुई है, क्योंकि जनता को यह नही सिखाया गया कि वेदांत के जीवनदायी सिद्धांतों और उन्हें व्यावहारिक जीवन में किस प्रकार से धारण किया जा सकता है।
वे देश की आर्थिक स्थिति में सुधार करने, आध्यात्मिक ज्ञान, नैतिक बल को मजबूत करने में शिक्षा को ही एकमात्र साधन मानते थे। उनके शब्दों में शिक्षा मनुष्य को जीवन में संघर्ष के लिए तैयार करने में मदद करती है। शिक्षा चरित्रवान, परोपकार और साहसी बनाती है।

(साभार – राजभवन हरियाणा की वेबसाइट पर प्रकाशित लेख)

कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण की हमेशा याद आएगी

कोलकाता । भारतीय भाषा परिषद के पुस्तकालय कक्ष में अपने समय के प्रसिद्ध कवि ध्रुवदेव मिश्र पाषाण की स्मरण सभा की गई। उनका देहावसान विगत 7 जनवरी को हुआ था। उनके 15 से अधिक कविता संग्रह प्रकाशित हैं। वे एक समय कोलकात के साहित्यिक गतिविधियों के एक प्रमुख केंद्र हुआ करते थे। स्मरण सभा में कई विद्वानों एवं रचनाकारों ने उनकी साहित्यिक निरंतरता और तेजस्वी व्यक्तित्व की सराहना की। उनकी कविताओं में प्रगतिशील स्वर हमेशा मुखर रहा है। अपने अंतिम समय तक भी वे रचनारत थे। कोलकाता के उनके कई मित्रों ने आज अपना स्मरण सुनाते हुए कवि पाषाण के प्रति अपनी श्रद्धांजलि अर्पित की।
स्मरण सभा में डा. शंभुनाथ, प्रो.हितेंद्र पटेल, प्रो.राजश्री शुक्ला, मृत्युंजय श्रीवास्तव, डॉ. गीता दूबे, सेराज खान बातिश, डॉ सत्यप्रकाश तिवारी,रावेल पुष्प, दुर्गा व्यास, कुसुम जैन, मीनाक्षी संगनेरिया, सत्यप्रकाश भारतीय,नीलकमल, वसुंधरा मिश्र, लक्ष्मण केडिया, रामनिवास द्विवेदी, नसीम अजीजी, प्रदीप जीवराजका आदि ने उनके कृतित्व का स्मरण करते हुए श्रद्धांजलि व्यक्त की। सभा में सुषमा त्रिपाठी, सुरेश शॉ, फरहान और सुषमा कुमारी, जीवन सिंह आदि उपस्थित थे। स्मरण सभा को संचालन किया प्रो. संजय जायसवाल ने।

बंगाल की धरती पर गूंजे राजस्थानी लोक गीत

कोलकाता । भारत जैन महामंडल लेडिज विंग द्वारा राजस्थानी लोक गीतों का कार्यक्रम आयोजित किया गया। दिनांक 11.1.25 को शस्य श्यामला बगं भूमि पर भारत जैन महिला मंडल द्वारा आयोजित राजस्थानी लोक गीतों की मधुर गीत गंगा बही, ऐसा लग रहा था मानो बंगाल की धरती पर राजस्थान उतर आया हो। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथियों में राजस्थान सूचना केंद्र के निदेशक श्री हिंगलाज दान रतनू, ताजा टी वी के निदेशक श्री विश्वंभर नेवर, साहित्य प्रेमी दुर्गा व्यास, हिन्दी प्रोफेसर डाक्टर वसुंधरा मिश्र की गरिमामयी उपस्थिति रही। ताजा टीवी के डायरेक्टर वरिष्ठ संपादक विश्वंभर नेवर जी और राजस्थान सूचना केंद्र के निदेशक ने अपना वक्तव्य रखा और राजस्थानी लोक गीत और वहां की समृद्ध परंपरा पर गर्व जताया। डॉ वसुंधरा मिश्र ने बाई सा रा बीरा गीत गाकर राजस्थान के संबंधों को मीठा बताया। शिक्षाविद दुर्गा व्यास ने संस्था द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम को राजस्थानी भाषा प्रेम का दीप जलाया कहकर प्रशंसा की। राजस्थानी गायिकाओं में मृदुला कोठारी,इंदु चांडक, संजु कोठारी,शशि कंकानी अतिथि महिला कलाकारों ने अपने कई परंपरागत हिचकी, बंगड़ी,प्रेम, विरह और श्रृंगार के लोकगीतों से कार्यक्रम में चार चांद लगा दिए और जोरदार रंग जमाया।
भारत जैन महिला मंडल की बहनों सुमित्रा सेठिया,मंजु छाजेङ, चंदा प्रह्लादका, सुप्यार पुगलिया,मीना सोनी … ने खुबसूरत राजस्थानी गीत प्रस्तुत किए। विलुप्त हो रही राजस्थानी भाषा,संस्कृति को जीवित रखने का बेमिसाल प्रयास किआ। कार्यक्रम का शुभारंभ अध्यक्ष चंदा गोलछा, सरोज भंसाली, कल्पना बाफना अंजु बैद द्वारा नवकार मंत्रोच्चार के साथ गायन किया। जैन महामंडल लेडिज विंग कोलकाता की सदस्याओं में सुमित्रा सेठिया, सुप्यार पुगलिया,मीना सोनी,मंजु छाजेड ने राजस्थानी गीत गाए। अंजु सेठिया ने कार्यक्रम का संचालन राजस्थानी भाषा में किया। कार्यक्रम के पश्चात राजस्थानी केशरिया चाय और नाश्ते का सुन्दर प्रबंध किए गया। इस अवसर पर प्रसिद्ध विदूषी डॉ राज्यश्री शुक्ला, साहित्य अकादमी के सदस्य रावेल पुष्प, बांग्ला लेखिका बेबी करनमा की गरिमामय उपस्थिति रही।

प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार से सम्मानित हुए कोलकाता के अनीश सरकार

कोलकाता । कोलकाता के तीन साल आठ महीने के अनिश सरकार ने प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार जीतकर इतिहास रच दिया है। दुनिया के सबसे कम उम्र के फिडे रेटिंग प्राप्त खिलाड़ी बनने वाले अनिश को गुरुवार को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन के सांस्कृतिक केंद्र में आयोजित समारोह में इस प्रतिष्ठित पुरस्कार से सम्मानित किया। इसे लेकर अनीश के परिजनों, उसके पड़ोसियों और जानने वालों में खुशी की लहर है।
राष्ट्रपति ने 14 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के 17 बच्चों को सात अलग-अलग श्रेणियों में प्रधानमंत्री राष्ट्रीय बाल पुरस्कार प्रदान किया। इनमें सात लड़के और 10 लड़कियां शामिल थीं। सबसे कम उम्र के विजेता के रूप में अनिश ने इस समारोह में सभी का ध्यान खींचा। कोलकाता के कैखाली इलाके के रहने वाले अनिश सरकार ने केवल तीन साल आठ महीने की उम्र में फिडे रेटिंग हासिल कर एक नया विश्व रिकॉर्ड बनाया। इस उपलब्धि के लिए उन्होंने तीन अलग-अलग फिडे रेटेड खिलाड़ियों के खिलाफ जीत दर्ज की। इससे पहले यह रिकॉर्ड भारत के ही तेजस तिवारी के नाम था, जिसे अनिश ने तोड़ दिया। अनिश की मां के अनुसार, जब वह सिर्फ दो साल आठ महीने के थे, तभी शतरंज के प्रति उनका गहरा लगाव देखा गया। अप्रैल 2024 में अनिश को ग्रैंडमास्टर दिव्येंदु बरुआ के शतरंज प्रशिक्षण केंद्र में दाखिला दिलाया गया। यहां से उनकी शतरंज की यात्रा ने नई ऊंचाइयों को छुआ। अनीश सप्ताह में तीन दिन, बुधवार, शुक्रवार और शनिवार को, दोपहर 12 बजे से रात आठ बजे तक शतरंज का गहन अभ्यास करते हैं। प्रशिक्षण के दौरान वे एक घंटे का ही ब्रेक लेते हैं। उनके माता-पिता कैखाली से चक्रबेरिया के इस केंद्र तक रोजाना चार घंटे का सफर तय करते हैं।
अनिश की मां ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि इतनी कम उम्र में यह उपलब्धि उनकी कल्पना से परे थी। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि अनिश की इस सफलता को बरकरार रखने और ग्रैंडमास्टर बनने तक का सफर चुनौतीपूर्ण होगा। अनीश की मां ने बताया कि वह एक गृहिणी हैं और अनीश के पिता पेशे से शिक्षक हैं। हालांकि, वे अपने बेटे की सफलता के बावजूद अपना नाम मीडिया में नहीं लाना चाहते थे। गौरतलब है कि अनिश एंटाली स्थित सेंट जेम्स स्कूल के छात्र हैं। उनके माता-पिता ने अपना नाम गुप्त रखने का अनुरोध किया है। उन्होंने कहा, “जिस दिन अनिश ग्रैंडमास्टर बनेगा, उसी दिन हम अपना नाम सार्वजनिक करेंगे।” इस सफलता के साथ, अनिश न केवल कोलकाता बल्कि पूरे देश के लिए गर्व का विषय बन गए हैं। उनका यह सम्मान बाल प्रतिभाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है।

काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता सम्पन्न

कोलकाता । रानी बिड़ला गर्ल्स काॅलेज, कोलकाता में छात्र सप्ताह समारोह के अंतर्गत हिंदी विभाग द्वारा काव्य आवृत्ति प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। इस आयोजन में विधार्थियों ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया। विधार्थियों को शुभकामना संदेश देती हुई डाॅ.पुष्पा तिवारी ने कहा कि काव्य की बेहतर आवृत्ति ही संवेदनाओं की सही अभिव्यक्ति कर सकती है। आंतरिक गुणवत्ता आश्वासन प्रकोष्ठ की समन्वयक प्रो.सुष्मिता दास ने कहा कि काव्य आवृत्ति से विधार्थी अपने विचारों और मनोभावों को व्यक्त करता है। निर्णायक के तौर पर भूगोल विभाग के प्रोफेसर शायन दत्ता उपस्थित थे। कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ.विजया सिंह ने एवं धन्यवाद ज्ञापन विभागाध्यक्ष प्रो.मंटू दास ने किया।

इमरान ज़की को सेंट जेवियर्स कॉलेज एल्युमिनी रियूनियन का ज़ेवेरियन पुरस्कार 

कोलकाता । सेंट जेवियर्स कॉलेज कलकत्ता एलुमनी एसोसिएशन के पूर्व मानद सचिव और उपाध्यक्ष इमरान जकी को एनुअल एल्युमिनी रियूनियन डिनर, “संगम 2024” के दौरान अनुकरणीय सेवाओं के लिए प्रतिष्ठित ज़ेवेरियन पुरस्कार से सम्मानित किया गया। कॉलेज और एल्युमिनी कमिटी में इमरान जकी के उत्कृष्ट योगदान के लिए उन्हें इस गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया है। सेंट जेवियर्स कॉलेज ग्राउंड में कई प्रतिष्ठित गणमान्य व्यक्तियों की उपस्थिति में आयोजित इस समारोह में फादर डोमिनिक सैवियो (सेंट जेवियर्स कॉलेज के प्रिंसिपल और सेंट जेवियर्स कॉलेज कलकत्ता एलुमनी एसोसिएशन के अध्यक्ष), फादर जयराज वेलुस्वामी (सेंट जेवियर्स स्कूल और कॉलेज के रेक्टर), फादर रोशन (सेंट जेवियर्स स्कूल के प्रिंसिपल) के साथ अन्य प्रतिष्ठित पूर्व छात्रों और सेंट जेवियर्स परिवार के सदस्य इस मौके पर मौजूद थे।
मीडिया से बात करते हुए इमरान जकी ने कहा, “मैं अनुकरणीय कार्य और सेवाओं के लिए ज़ेवेरियन पुरस्कार प्राप्त करने पर खुद को बहुत ही विनम्र और सम्मानित महसूस कर रहा हूँ। यह सम्मान सिर्फ़ मेरे लिए नहीं, बल्कि सेंट जेवियर्स के पूरे पूर्व छात्र समुदाय के लिए है, जिनकी लगन और समर्पण हमारे प्रिय संस्थान के भविष्य को आकार देते रहते हैं। मैं इतने सारे उल्लेखनीय व्यक्तियों की सेवा करने और उनसे जुड़ने का अवसर पाकर आभारी हूँ। मैं सेंट जेवियर्स कॉलेज का समर्थन करने के लिए प्रतिबद्ध हूं, क्योंकि हम एक साथ एक उज्जवल भविष्य का निर्माण करने की दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।”
 इमरान जकी पूर्व छात्र संघ का एक अभिन्न अंग रहे है। उन्हें पूर्व छात्रों में आपसी संबंधों को बढ़ावा देने, प्रमुख पहलों को व्यवस्थित करने और उनकी अटूट प्रतिबद्धता के लिए सम्मानित किया गया है। उन्होंने संस्थान की विरासत के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। हमेशा से ही कॉलेज और उसके वैश्विक पूर्व छात्रों के बीच आपसी संबंध को मजबूत करने में उनके नेतृत्व और समर्पण को महत्वपूर्ण माना गया है।

भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज के डायरेक्टर जनरल अर्थशास्त्री डॉ सुमन मुखर्जी का निधन 

कोलकाता । डॉ सुमन मुखर्जी का निधन प्रो (डॉ.) सुमन के. मुखर्जी, एक प्रतिष्ठित अर्थशास्त्री और सम्मानित शिक्षक, का 26 दिसंबर, 2024 को 75 वर्ष की आयु में हृदय गति रुकने से निधन हो गया।  2 अगस्त 1949 को जन्मे डॉ. मुखर्जी ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा कलकत्ता बॉयज़ स्कूल से पूरी की और सेंट जेवियर्स कॉलेज कोलकाता से स्नातक की उपाधि प्राप्त की।  उन्होंने दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से अर्थशास्त्र में एमए की पढ़ाई की, जहां उन्हें पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और नोबेल पुरस्कार विजेता अमर्त्य सेन जैसे दिग्गजों का मार्गदर्शन मिला, जिन्होंने उनकी पीएचडी थीसिस की प्रस्तावना लिखी थी।
डॉ मुखर्जी का शैक्षणिक करियर चार दशकों तक फैला रहा, इस दौरान उन्होंने विभिन्न संस्थानों में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने 1970 के दशक में सेंट जेवियर्स कॉलेज में अपनी शिक्षण यात्रा शुरू की, और युवा दिमागों के पोषण के लिए 24 साल समर्पित किए। उन्होंने एक्सएलआरआई जमशेदपुर और भारतीय समाज कल्याण और व्यवसाय प्रबंधन संस्थान (आईआईएसडब्ल्यूबीएम), कलकत्ता विश्वविद्यालय में प्रोफेसर पद पर भी कार्य किया। उनकी नेतृत्वकारी भूमिकाओं में जे.डी. बिड़ला इंस्टीट्यूट और कलकत्ता बिजनेस स्कूल, और भारतीय विद्या भवन इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट साइंस, कोलकाता में प्रिंसिपल और डीन के रूप में निदेशक के रूप में कार्य करना शामिल था।
2012 में, डॉ मुखर्जी भवानीपुर एजुकेशन सोसाइटी कॉलेज में महानिदेशक के रूप में शामिल हुए, जहाँ उन्हें उनके दूरदर्शी नेतृत्व और शिक्षा के प्रति समर्पण के लिए सम्मानित किया गया। उनके सहकर्मी और छात्र उन्हें एक मार्गदर्शक के रूप में याद करते हैं जिन्होंने अपनी बुद्धि और करुणा से अनगिनत लोगों के जीवन को छुआ।  शिक्षा जगत से परे, डॉ मुखर्जी एक चर्चित अर्थशास्त्री थे, जो केंद्रीय बजट सहित आर्थिक मुद्दों के व्यावहारिक विश्लेषण के लिए जाने जाते थे। वह ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन के फेलो और यूएसएईपी के तहत पर्यावरण फेलो थे। उनकी अंतर्राष्ट्रीय व्यस्तताओं में संयुक्त राज्य अमेरिका, ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया में सम्मेलनों में पेपर प्रस्तुत करना और सेलिंगर स्कूल ऑफ बिजनेस एंड मैनेजमेंट, लोयोला कॉलेज, बाल्टीमोर, यूएसए और न्यूकैसल बिजनेस स्कूल, यूको, ग्रेट ब्रिटेन नॉर्थम्ब्रिया विश्वविद्यालय जैसे संस्थानों में विजिटिंग प्रोफेसर के रूप में कार्य करना शामिल था।
डॉ. मुखर्जी ने ‘द टेक्स्टबुक ऑफ इकोनॉमिक डेवलपमेंट’ लिखी और राष्ट्रीय शैक्षिक कार्यक्रमों में योगदान दिया, यूजीसी के मुक्त विश्वविद्यालय कार्यक्रम के लिए आर्थिक विकास और योजना पर 18 कार्यक्रम प्रस्तुत किए। उनके परिवार में उनकी पत्नी सुदक्षिणा मुखर्जी और दो बेटे शोमिक कुमार मुखर्जी और श्रुतोर्सी मुखर्जी हैं।  डॉ. मुखर्जी का निधन शैक्षणिक और आर्थिक समुदाय के लिए एक गहरी क्षति है। एक शिक्षक, मार्गदर्शक और अर्थशास्त्री के रूप में उनकी विरासत भावी पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी

बंगाल कला, संस्कृति को संरक्षित करने वाली धरती है :  कैलाश खेर 

कोलकाता । भवानीपुर कॉलेज में साहित्य ,कला और संगीत महोत्सव “उमंग 24” का समापन समारोह प्रसिद्ध गायक कैलाश खेर जी के गीतों की लाइव प्रस्तुति से हुई जो एक महत्वपूर्ण कार्यक्रम रहा । इस वर्ष कॉलेज को नैक में ए ग्रेड प्राप्त हुआ और भवानीपुर ग्लोबल विश्वविद्यालय बनने की मंजूरी भी मिली। इस वर्ष की महत्वपूर्ण उपलब्धियां रहीं। कैलाश खेर (जन्म 7 जुलाई 1973) एक भारतीय संगीतकार और गायक हैं। वह भारतीय लोक संगीत और सूफी संगीत से प्रभावित संगीत शैली में गाने गाते हैं। वह शास्त्रीय संगीतकार कुमार गंधर्व, हृदयनाथ मंगेशकर, भीमसेन जोशी और कव्वाली गायक नुसरत फतेह अली खान से प्रेरित हैं।
प्रत्येक वर्ष की तरह भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज में “उमंग” – 24 का आगाज़ हो चुका है। कोलकाता की एलगिन रोड फिर से जाम हो गई। 25-26-27-28 दिसंबर 2024 के चारों दिन कोलकाता और बाहर से आए कॉलेज के प्रतिभागियों के लिए अहम दिन रहे। 29 दिसम्बर प्रसिद्ध गायक पद्मश्री से सम्मानित कैलाश खेर जी के गीतों का रोमांचक अनुभव रहा । अपनी दमदार आवाज़ और संगीत की अपनी अनूठी शैली के साथ, खेर ने खुद को भारत के सबसे लोकप्रिय पार्श्व गायकों में से एक के रूप में स्थापित किया है।भवानीपुर कॉलेज के पास नार्दर्न पार्क में लगभग दस हजार विद्यार्थियों ने कैलासा लाइव का आनंद लिया। “उमंग” केवल वार्षिकोत्सव नहीं है, वह युवा प्रतिभाओं का महोत्सव है, प्रतिभाओं का चुनाव उत्सव है।
कार्यक्रम कैलासा लाइव में पद्मश्री कैलाश खेर को वाइस-चेयरमैन मिराज डी शाह और उनकी पत्नी शालिनी डी शाह ने माँ दुर्गा की मूर्ति मोमेंटो रूप में प्रदान कर उनका सम्मान किया। कोलकाता के प्रतिष्ठित कॉलेजों के उमंग में भाग लेने वाले प्रतिभाशाली विद्यार्थियों ने इस अवसर का आनंद लिया । इसमें तीस से अधिक स्पॉन्सर्स ने अपना योगदान दिया। सुप्रसिद्ध गायक कैलाश खेर ने अपने गीतों से विद्यार्थियों, अतिथियों तथा बंगाल के सांस्कृतिक वातावरण को समृद्ध किया। तेरी दिवानी, सैंया जैसे अपने लोकप्रिय गीतों की लाइव प्रस्तुति दी। सुर सम्राट कैलाश खेर के गीत हर युवा के हृदय में बसे हुए हैं,उसका आनंद लिया साथ में अपने स्वर मिलाए, डांस किए,हजारों मोबाइल की रोशनी से पूरा नार्दर्न पार्क जगमगा उठा था। कैलाश खेर ने अपनी नृत्य भंगिमाओं से स्तब्ध कर दिया। सभी खेर की एक झलक पाने के लिए लालायित हो उठे।
कॉलेज के वाइस चेयरमैन मिराज डी शाह स्वयं पूरे आयोजन पर नजर रखे हुए थे। कॉलेज के रेक्टर और डीन प्रो दिलीप शाह ने अपने वक्तव्य में बताया कॉलेज के विद्यार्थियों की गतिविधियों के विषय में बताया और कैलाश खेर जी को बधाई और शुभकामनाएँ दी ।इस अवसर पर खेर ने कहा कि बंगाल के भवानीपुर कॉलेज में सुनने वाले हैं। बंगाल संदेश रसगुल्ला का प्रदेश है जो खुश और रस, आनंद देने वाला है। बंगाल की धरती पर एक बार गाने वाला देश विदेश के किसी भी कोने में जाकर अपना गीत सुना सकता है। बाहुबली के लिए गीत गाने वाले कैलाश खेर को सामने पाकर सभी श्रोता खुशी से भर उठे। कैलासा लाइव के पूर्व 25 को भवानीपुर कॉलेज कैम्पस में डिजाइन एकेडमी की ओर से फैशन शो , 27 दिसंबर को रिडल्स बैंड का शानदार प्रदर्शन हुआ था।
देखा जाए तो यह कार्यक्रम भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए संदेश था कि वे भी अपने अपने क्षेत्र में विशिष्टता प्राप्त करें। पिछले दो महीने से कॉलेज के विद्यार्थियों में “उमंग” में भाग लेने की तैयारियाँ जोर शोर से चल रही हैं। क्रिसेंडो, फ्लेम, इन – एक्ट, फैशनिस्टा आदि और अन्य विद्यार्थियों में छिपी प्रतिभाओं को निखारने का काम “उमंग” करता है।
25-26 -27-28 -29 दिसंबर 2024 पांच दिन हर विद्यार्थी के लिए सचमुच उमंग, उत्साह – ऊर्जा से भर देने वाले अवसर होते हैं।25 दिसम्बर को
इस वर्ष प्रो दिलीप शाह ने “उमंग” की थीम “आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और आई” रखी जिसमें बदलते भारत और विश्व की तस्वीर कैसी होगी इसी थीम पर ही सभी कार्यक्रम किए जा रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस तकनीकी ने मैं यानि व्यक्ति की सार्थकता को चुनौती दी है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस मनुष्य की उपस्थिति को भी नकार रहा है। वर्चुअल युग में आने वाला समय कैसा होगा इस पर विद्यार्थियों के विभिन्न प्रदर्शन हुए । “उमंग” की मंच सज्जा भी इसी थीम पर आधारित रही जो हर वर्ष आकर्षण का केंद्र रहता है।
इस वर्ष भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज कोलकाता के लगभग 84से अधिक कॉलेजों के प्रतिभागियों के बेहतरीन प्रदर्शन को मंच देने का महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है जो पूरे पश्चिम बंगाल के लिए एक मिसाल है।
इस अवसर पर विशेष ध्यान देने की बात है कि इस बार बाहर से छह कॉलेज और युनिवर्सिटी के प्रतिभागी विद्यार्थियों का समूह भी आया है। उमंग में शिक्षा साहित्य संस्कृति कला आदि विभिन्न क्षेत्रों में सांस्कृतिक आदान प्रदान किया गया और अपनी-अपनी विभिन्न प्रतिभाओं का प्रदर्शन किया ।
“उमंग” केवल उमंग नहीं है वह एक ऐसा महोत्सव है जो विद्यार्थियों के व्यक्तित्व में व्यवस्था, संगठन, नेतृत्व और आत्मविश्वास को विकसित करता है। चुने गए मिस्टर उमंग को पूरे देश में एक पहचान मिलती है।
शैक्षणिक संस्था के माध्यम से इवेंट को किस तरह व्यवस्थित और संगठित करके सफल बनाया जाता है इस प्रकार की शिक्षा दी जाती है। कॉलेज के सभी कमरों, वालिया सभागार, जुबली हॉल, प्लेसमेंट हॉल और कॉलेज टर्फ का इन चार दिनों तक भरपूर उपयोग होता है।प्रो दिलीप शाह ने बताया कि हर दिन 20 -22 इवेंट समानांतर चले। सभी कार्य विद्यार्थियों द्वारा किए जाते हैं और उनका निर्देशन डीन ऑफिस द्वारा किया जाता है जहांँ प्रमुख डीन प्रोफेसर दिलीप शाह एवं प्रोफ़ेसर मीनाक्षी चतुर्वेदी का विशेष योगदान रहता है ।
डॉ वसुंधरा मिश्र भवानीपुर कॉलेज से हिंदी मीडिया प्रभारी ने बताया कि उमंग – 2024 में 75 से अधिक कॉलेजों के 90 इवेंट्स संपन्न किए गए जिनमें 4000 प्रतिभागी हिस्सा लिया । नृत्य, संगीत, खेल, सृजनात्मक लेखन बांग्ला, हिंदी और अंग्रेजी, शास्त्रीय, आधुनिक लोक संगीत, लोक नृत्य, पाश्चात्य नृत्य, नाटक स्ट्रीट प्ले, फैशन शो आदि विभिन्न इवेंट्स चार दिनों तक चले और
खेल में क्रिकेट, टग अॉफ वार, योग, फुटबाल, कबड्डी,खो खो, फिटनेस, बॉलीबॉल, बास्केटबाल चेसबॉक्सिंग आदि की प्रतियोगिताएं हो चुकी हैं। सभी कॉलेज के विजेता छात्र – छात्राओं को उमंग में सम्मानित किया गया ।
उमंग24 के प्रमुख प्रतिनिधियों ने बताया कि सभी कॉलेज से आए प्रतिनिधियों और प्रतिभागियों को हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराईं गईं हैं और सभी का यथायोग्य स्वागत किया गया । उमंग में 277 से अधिक विद्यार्थी वोलिंटियर्स ने पांच दिनों तक चलने वाली प्रत्येक गतिविधियों के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाई ।
विशेष रूप से देश विदेश के विभिन्न कॉलेज के विद्यार्थियों ने उमंग24 में भाग लिया । के आई आई टी, भुवनेश्वर, सनबीम कॉलेज बनारस, क्रिया युनिवर्सिटी बैंगलोर, क्राइस्ट युनिवर्सिटी, यशवंतपुर, बीएचयू वाराणसी, सेंट जेवियर्स बर्धमान प्रमुख हैं और विदेश से एम्सटर्डम युनिवर्सिटी के प्रतिभागियों ने हिस्सा लिया है जो उमंग को विशिष्ट पहचान दिलाता है। भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज के वरिष्ठ उपाध्यक्ष मिराज डी शाह ने विद्यार्थियों को उमंग 24 की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ दी।