Tuesday, September 16, 2025
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कामदुनी को ढाई साल बाद मिला न्याय

पश्चिम बंगाल के बहुचर्चित कामदुनी गैंगरेप और हत्या मामले में कोलकाता की एक अदालत ने तीन अभियुक्तों को फांसी की सज़ा सुनाई है। इस मामले के तीन अन्य अभियुक्तों को उम्र क़ैद की सज़ा दी गई है। इससे पहले अदालत ने गुरुवार को इन छह अभियुक्तों को दोषी करार दिया था। अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संचिता सरकार ने सज़ा पर दो दिनों तक हुई बहस और दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद शनिवार को खचाखच भरी अदालत में यह फ़ैसला सुनाया. इस मामले में सबूतों के अभाव में दो अभियुक्तों को बरी कर दिया गया था। सरकारी वकील अनिंद्य रंजन ने कहा, “अदालत ने हमारी दलीलें स्वीकार करते हुए इसे दुर्लभतम मामला मानकर दोषियों को सर्वोच्च सज़ा सुनाई है. इससे हम संतुष्ट हैं।” उत्तरी 24-परगना ज़िले के बारासात में 7 जून 2013 को कॉलेज से घर लौट रही 21 साल की छात्रा का नौ लोगों ने अपहरण कर लिया था. उसे एक सुनसान जगह पर ले जाकर उसके साथ सामूहिक बलात्कार किया गया और बाद में उसकी हत्या कर दी थी। अगले दिन एक खेत से छात्रा का शव बरामद किया गया था।15newskamduni

घटना के बाद अगले दिन से ही कामदुनी के लोगों ने न्याय व दोषियों को कड़ी सज़ा दिए जाने की मांग में विरोध प्रदर्शन शुरू किया था। इसके लिए कामदुनी प्रतिवादी मंच नामक एक संगठन भी बनाया गया था। मामले में नौ लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। उनमें से एक की बीते साल मौत हो गई थी। अदालत ने अंसार अली, शेख़ अमीन अली और सैफ़ुल अली को गैंगरेप और हत्या का दोषी मानते हुए मौत की सज़ा सुनाई है जबकि अमीनुर इस्लाम, शोख़ इनामुल और भोलानाथ को आजीवन कारावास की सज़ा दी है। बचाव पक्ष ने इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ हाईकोर्ट में अपील करने की बात कही है। कुछ दिन पहले अदालत के अभियुक्तों को दोषी करार दिए जाने के बाद से ही विभिन्न मानवाधिकार और महिला संगठन उनको फांसी देने की मांग करते हुए अदालत के बाहर प्रदर्शन कर रहे थे। शनिवार को भी अदालत के बाहर भारी तादाद में पुलिसकर्मियों को तैनात किया गया था। इस घटना के ख़िलाफ़ विरोध का चेहरा बनी टुम्पा कयाल ने कहा, “हम अदालत के फैसले से ख़ुश हैं. लेकिन बाकी दोनों अभियुक्तों को भी फ़ांसी मिलनी चाहिए थी।

खास है आकाशवाणी का नया चैनल रागम

शास्त्रीय संगीत समझना इतना आसान नहीं है मगर जो समझते हैं और संगीत की गहरी समझ होती है। संगीत का ककहरा ही शास्त्रीय संगीत से आरम्भ होता है। ऐसे में शास्त्रीय संगीत के प्रशंसकों को आकाशवाणी ने बेहद शानदार तोहफा दिया है 24 घंटे का शास्त्रीय संगीत चैनल लाकर जिसका नाम है रागम। 26 जनवरी से यह चैनल प्रसारित होने लगा है।

आज भी भारत की आबादी के लगभग 40 प्रतिशत के पास ही इंटरनेट की सुविधा है और वह भी हर जगह हर समय काम नहीं करती क्योंकि अनेक गांवों और कस्बों में बिजली ही गायब रहती है. लेकिन बैटरी से चलने वाला ट्रांज़िस्टर रेडियो हर जगह और हर वक़्त चल सकता है इसीलिए आकाशवाणी के प्रसारण देश के कुल इलाके के 92 प्रतिशत तक और कुल आबादी के 99.19 प्रतिशत तक पहुंचते हैं। फिर, दूरदर्शन के डीडी भारती चैनल को छोड़ कर किसी भी अन्य टीवी चैनल पर संगीत या साहित्य से जुड़ा कोई गंभीर कार्यक्रम प्रसारित नहीं किया जाता। जाहिर है कि संगीतप्रेमियों के लिए आकाशवाणी सुनना अनिवार्य-सा है।

1856 में वाजिद अली शाह की गद्दी छिनी और अगले साल ही मुग़ल राजवंश की प्रतीकात्मक सत्ता भी ख़त्म हो गई। नतीजतन तानरस खां जैसे चोटी के गायक को दिल्ली छोड़ कर हैदराबाद में शरण लेनी पड़ी। बहुत से संगीतकार कलकत्ता (कोलकाता) और बंबई (मुंबई) में बस गए क्योंकि वहां उन्हें संगीतरसिक सेठों का प्रश्रय मिलने लगा था। 1947 तक आते-आते राजाओं-नवाबों का दौर ख़त्म हो गया और राष्ट्रीय आंदोलन के दौरान पैदा हुई सुधारवादी और नैतिकतावादी दृष्टि के कारण संगीतजीवी पुरुष और महिला कलाकारों के प्रति विरोध का भाव भी बढ़ने लगा। संगीतकारों को मिलने वाला पारंपरिक सामंतवादी संरक्षण बंद हो गया और बड़े-बड़े संगीतकारों को रोटियों के लाले पड़ने लगे।

ऐसी आपदा में ऑल इंडिया रेडियो ने ही उन्हें सहारा दिया। भारत में रेडियो का युग 1923 में शुरू हो चुका था और 1936 के आते-आते ऑल इंडिया रेडियो की स्थापना हो गई थी। उसने प्रसिद्ध संगीतकारों को आमंत्रित करके उनके कार्यक्रम प्रसारित करना शुरू किया जिसके कारण उन्हें देश भर में सुना जाने लगा और उन्हें देशव्यापी ख्याति मिलने लगी।

रेडियो के आगमन से पहले संगीत की प्रस्तुति एक जगह तक सीमित थी और उसे कुछ श्रोता ही सुन सकते थे। ग्रामोफोन के आने से रिकॉर्ड की हुई प्रस्तुति को किसी भी समय और किसी के भी द्वारा सुनना संभव हुआ लेकिन उस समय तकनीकी सीमाओं के कारण केवल साढ़े तीन या चार मिनट के रिकॉर्ड ही बनते थे और कलाकार को अपनी कला को इसी सीमा में बंधकर पेश करना होता था। वहीं रेडियो पर आधे घंटे-एक घंटे की प्रस्तुति भी संभव थी।

दुर्भाग्य से उस समय बहुत कम प्रस्तुतियां रिकॉर्ड की जाती थीं और अधिकांश का प्रसारण लाइव ही होता था। अनेक महान गायकों-वादकों की 1930 और 1940 के दशक की प्रस्तुतियां लाइव प्रसारण के साथ ही हवा हो गईं। ऑल इंडिया रेडियो ने बहुत-से अच्छे संगीतकारों को नौकरियां भी दीं जिनके कारण उनकी नियमित आय की व्यवस्था हो गई।

1950 के दशक में बी वी केसकर सूचना एवं प्रसारण मंत्री बने और दस साल तक वे इस पद पर रहे। एक विद्वान और प्रखर राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ केसकर स्वयं ध्रुपद गायन में प्रशिक्षित थे। उन्होंने प्रति वर्ष आकाशवाणी संगीत सम्मेलन और प्रति सप्ताह संगीत का राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया।

इन कार्यक्रमों की इतनी प्रतिष्ठा थी कि बड़े-बड़े संगीतकार इनमें शिरकत करने की आकांक्षा रखते थे क्योंकि इन प्रसारणों को देश भर में न केवल संगीत रसिक बल्कि संगीतकार भी सुनते थे।

बताया जाता है कि संगीत के राष्ट्रीय कार्यक्रम में जब पहली बार अली अकबर खां ने अपना वादन प्रस्तुत किया था। उस समय अली अकबर खां आकाशवाणी के लखनऊ केंद्र में नौकरी करते थे. रविशंकर जैसे चोटी के सितारवादक आकाशवाणी वाद्यवृंद के निदेशक थे। मल्लिकार्जुन मंसूर का आकाशवाणी से इतना लगाव था कि गले के कैंसर के कारण कष्ट झेलते हुए भी मृत्यु से केवल बारह दिन पहले उन्होंने धारवाड़ केंद्र जाकर अपनी अंतिम प्रस्तुति रेकॉर्ड कराई थी। राग था ‘मियां की मल्हार’ और बंदिश थी ‘करीम नाम तेरो’.

जब आकाशवाणी में पहले-पहल ऑडिशन और उसके बाद ग्रेड दिए जाने का चलन शुरू हुआ तो बहुत-से नामी कलाकार फेल हो गए या उन्हें बहुत निचला ग्रेड दिया गया। बनारस की मशहूर ठुमरी गायिका बड़ी मोती बाई फेल हो गई थीं और सारंगीनवाज शकूर खां को निचला ग्रेड मिला था।

कारण यह था कि रागसंगीत को शास्त्रीयता प्रदान करने वाले विष्णु नारायण भातखण्डे के शिष्य श्रीकृष्ण नारायण रातनजनकर परीक्षक थे और वे उस्तादों से सैद्धान्तिक प्रश्न करते थे। घरानेदार उस्ताद अपने फन में माहिर थे और उसे “करत की विद्या” समझते थे पर उन्हें उसके सैद्धान्तिक पक्ष की जानकारी नहीं थी। उनसे यह उम्मीद करना दुराग्रह ही था, जिसे बाद में बहुत कुछ छोड़ दिया गया।

अनेक अमूल्य रिकॉर्डिंग नष्ट हो जाने के बाद भी आकाशवाणी के संग्रहालय में हजारों दुर्लभ रिकॉर्डिंग हैं। उम्मीद है कि उन्हें इस नए चैनल पर सुनवाया जाएगा।

 

प्रेम और ज्ञान का विस्तार हो

फरवरी का महीना, रुमानियत का ही नहीं ज्ञान का भी महीना है। वसंत कदम रख रहा है और ज्ञान की देवी सरस्वती का आगमन भी होने वाला है मगर इसे बाजार का करिश्मा कहिए या कुछ और संत वेलेन्टाइन ने कुछ ऐसी दस्तक दी है कि पूरा हवा में वेलेंटाइन समा गया है। मजे की बात यह है कि क्रिसमस और वेलेंटाइन डे, इन दोनों उत्सवों में लाल रंग पर खास जोर दिया जाता है और भारतीय संस्कृति में भी लाल रंग का विशेष महत्व है। प्रेम हो तो लज्जा की लालिमा और क्रोध हो तो आँखों में अँगारे, सूर्य की सिन्दूरी लालिमा, लाल चूड़ियाँ, लाल जोड़ा, लाल बिन्दी, कितना कुछ लाल है, कहने का मतलब यह है कि जो हम पश्चिम से उधार ले रहे हैं, वह कहीं अधिक विस्तृत रूप में हमारे पास मौजूद है, फर्क यह है कि हम वेलेंटाइन्स डे के अगले दिन एनिमी डे नहीं मनाते। प्रेम में ईश्वर छुपा होता है मगर उस प्रेम का अर्थ प्रिय पर कब्जा जमाना या उसके व्यक्तित्व को छीनना हरगिज नहीं होता।

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प्रेम औदात्य है और जहाँ औदात्य नहीं, जहाँ प्रिय की न का मतलब उस पर तेजाब फेंकना हो, वहाँ प्रेम कैसा? प्रेम रोमांस ही नहीं बल्कि मातृत्व है, दोस्ती है और इसका स्वरूप तो इतना बड़ा है कि इसकी व्याख्या नहीं की जा सकती मगर आज तोहफों के इस दौर में जब इश्क को तोहफों की कीमत से तौला जा रहा हो और रिश्ते फायदा देखकर बनाए जाने लगे हों तो वहाँ कबीर, मीरा, तुलसी, निराला और बच्चन और भी प्रासंगिक जान पड़ते हैं। अच्छा लगता कि जब कोई स्त्री की बात करता है मगर तकलीफ तब होती जब उसमें भी सस्ती लोकप्रियता बटोरने की सनक होती है। प्रेम की कोई भाषा नहीं होती, संवेदना की भाषा नहीं होती मगर उसका प्रभाव स्थायी और सार्वभौमिक होता है। माँ भारती, सृजन की शक्ति दे और प्रेम सकारात्मकता का संचार करे, यही कामना है।

नृत्य की दुनिया में रंग भरती रहीं मृणालिनी साराभाई

मशहूर नृत्यांगना मृणालिनी साराभाई का हाल ही में  97 वर्ष की आयु में अहमदाबाद में निधन हो गया। उन्होंने गुरु रवींद्रनाथ टैगोर की देखरेख में 1938 में शांति निकेतन से पढ़ाई-लिखाई की।aशांति निकेतन से शिक्षा हासिल करने के बाद वह कुछ समय के लिए अमरीका चली गईं. भारत लौट कर आने पर भरतनाट्यम और कथकली नृत्य का प्रशिक्षण लिया। मृणालिनी साराभाई का विवाह भारत में अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक डॉक्टर विक्रम साराभाई के साथ 1942 में हुआ। साल 1947 में उनकी पहली संतान कार्तिकेय का जन्म हुआ। उन्होंने कथकली की अपनी पहली प्रस्तुति दिल्ली में दी. उनके नृत्य की सराहना पूर्व प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू भी किया करते थे। मां की तरह उनकी बेटी मल्लिका साराभाई ने भी नृत्य को अपनाया। मृणालिनी साराभाई ने 1949 में दर्पण संस्थान की स्थापना की और बच्चों को शास्त्रीय नृत्य का प्रशिक्षण देना शुरू किया। अपराजिता उनको नमन करती है

लम्बे समय तक टिकी रहेगी आपकी लिपस्टिक

लिपस्टिक महिलाओं की मेकअप किट का एक बेहद अहम हिस्सा है. इससे चेहरे पर एक अलग ही निखार आ जाता है लेकिन समस्या यह है कि अधिकतर महिलाओं को लिपस्ट‍िक लगाने का सही तरीका ही नहीं पता होता. इस वजह से यह ज्यादा समय तक होंठों पर टिकी नहीं रह पाती। अगर लिपस्‍टिक लगाते समय कुछ बातों का ध्यान रखा जाए तो यह देर तक टिकी रह सकती है –

लिपस्टिक लगाने के लिए सबसे जरूरी है कि आपके होंठ स्वस्थ हों. वरना लिपस्ट‍ि‍क भी फटी-फटी नजर आएगी। होंठों को समय-समय पर स्क्रब की मदद से साफ करती रहें ताकि ये स्मूद रहें और इनको मॉइश्चराइज करते रहना भी जरूरी है। इसके लिए आप किसी भी विश्वसनीय लिप बाम या ग्ल‍िसरीन का इस्तेमाल कर सकती हैं।

लिपस्‍टिक लगाने से पहले हल्के रंग की लिप पेंसिल की मदद से आउट लाइन बना लें. इसके बाद लिपस्ट‍िक लगाना आसान भी हो जाएगा और लिपस्ट‍िक लंबे समय तक टिकी भी रहेगी।

लिपस्ट‍िक का पहला कोट लगाने के बाद उसे हल्का करना भी जरूरी है। इससे लिपस्टिक जम जाती है और इसके फैलने का डर भी नहीं रह जाता। अब आप चाहें तो अपनी इच्छानुसार हल्का या गाढ़ा, दूसरा कोट लगा सकती हैं।

अपने होंठो पर उंगलियों से हल्का पाउडर लगाएं. यह लिपस्ट‍िक को पूरी तरह सेट कर देगा. अगर आपको लग रहा हो कि लिपस्ट‍िक हल्की हो गई है तो एक कोट और लगा सकती हैं।

सौंदर्य विशेषज्ञों के अनुसार लिपस्टिक को फ्रिज में रखने से यह कम पिघलती है और होंठों पर भी लंबे समय तक टिकी रहती है।

 

सारे जहाँ से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिस्ताँ हमारा

ग़ुरबत में हों अगर हम, रहता है दिल वतन में
समझो वहीं हमें भी, दिल हो जहाँ हमारा

परबत वो सबसे ऊँचा, हमसाया आसमाँ का
वो संतरी हमारा, वो पासबाँ हमारा

गोदी में खेलती हैं, जिसकी हज़ारों नदियाँ
गुलशन है जिसके दम से, रश्क-ए-जिनाँ हमारा

ऐ आब-ए-रूद-ए-गंगा! वो दिन है याद तुझको
उतरा तेरे किनारे, जब कारवाँ हमारा

मज़हब नहीं सिखाता, आपस में बैर रखना
हिन्दी हैं हम, वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा

यूनान-ओ-मिस्र-ओ- रोमा, सब मिट गए जहाँ से
अब तक मगर है बाकी, नाम-ओ-निशाँ हमारा

कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी
सदियों रहा है दुश्मन, दौर-ए-जहाँ हमारा

‘इक़बाल’ कोई महरम, अपना नहीं जहाँ में
मालूम क्या किसी को, दर्द-ए-निहाँ हमारा

सारे जहाँ से अच्छा, हिन्दोस्ताँ हमारा
हम बुलबुलें हैं इसकी, यह गुलिसताँ हमारा

चेहरा सुना देता है सेहत की दास्तान

 

कहते हैं चेहरा आपकी सेहत की पूरी दास्तां कह देता है। थका, निस्तेज चेहरा कभी भी सेहतमंद शरीर की निशानी नहीं हो सकता। ऐसे में स्किन मैपिंग एक बेहतर तरकीब हो सकती है, जो आपके शरीर के अंदर चल रही गड़बड़ियों की कहानी कह सकता है। चेहरे के अलग-अलग हिस्सों में उभरने वाली इन विभिन्न परेशानियों के आधार पर तय किया जा सकता है कि आखिर इसके पीछे की असली वजह क्या है।

 माथा

माथे पर उभरने वाले पिंपल्स खराब पाचन और पानी की कमी के कारण टॉक्सिन के प्रभाव को दर्शाता है। यदि आपके अधिकांश पिंपल्स इस हिस्से में ही निकलते हैं तो पर्याप्त मात्रा में पानी पीना शुरू करें, उससे लाभ मिलेगा। और शरीर से टॉक्सिन्स भी बाहर निकलते रहेंगे। ग्रीन टी और हर्बल टी टॉक्सिन्स के इस प्रभाव को कम करने का काम करती हैं।

 टी-जोन

टी-जोन के अंतर्गत नाक और माथे का हिस्सा शामिल है। इन हिस्सों में उभरने वाले एक्ने लिवर की खराब कार्यप्रणाली को दर्शाता है। तेल वाले, फैटी फूड इसके लिए जिम्मेदार हो सकते हैं, इसलिए जितना हो सके उतना सेहतमंद खाने का प्रयास करें। इसका अन्य कारण अत्यधिक अल्कोहल हो सकता है, यदि एक रात पहले आपने ड्रिंक किया हो और उसकी अगली सुबह टी-जोन में एक्ने उभर आएं तो इसकी वजह अल्कोहल ही मानी जाएगी।

 आंखों के आस-पास

इस हिस्से की मुलायम त्वचा आपके किडनी की सेहत से जुड़ी है। आंखों के आस-पास के हिस्सों में डार्क सर्कल्स, उम्र से पहले नजर आने वाली झुर्रियां और रैशेज का अर्थ है कि आप कम मात्रा में पानी पी रहे हैं।

गालों का ऊपरी हिस्सा

गालों का ऊपरी हिस्सा फेफड़ों से संबंधित होता है। प्रदूषण और धूम्रपान से इस हिस्से में एक्ने या पिंपल्स की समस्या हो सकती है। हालांकि यह हिस्सा स्मार्टफोन के कारण होने वाले बैक्टीरिया के हमले से भी हो सकता है। ऐसे में अपने फोन को हर दिन कम से कम एक बार एंटी-बैक्टीरिया वाइप्स से जरूर पोछें। गंदे तकिए पर सोने के कारण भी इस तरह की परेशानी हो सकती है।

 गालों का निचला हिस्सा

मुंह में होने वाली परेशानी आपकी स्किन पर स्पष्ट नजर आती है। डेंटल हाइजीन न बनाए रखना इसकी एक वजह हो सकता है। शकर युक्त खाद्य और सोडा लेने से बचें। हेल्दी डेंटल रूटीन चेहरे पर होने वाली परेशानियां या ड्राय स्किन पर होने वाले पैचेस को होने से रोकती है।

कानों के आस-पास

यह हिस्सा भी आपकी किडनी से संबंधित है। इस हिस्से में पिंपल्स या एक्ने की समस्या पर्याप्त मात्रा में पानी न पीने का संकेत हो सकता है और अत्यधिक मात्रा में नमक के सेवन का भी। साथ ही कंडीशनर या तेल सिर धोने के बाद भी पूरी तरह नहीं निकले तो इस हिस्से में एक्ने हो सकते हैं।

 ठुड्डी

इसका संबंध छोटी आंत से है। ऐसे में डाइट अहम भूमिका निभा सकती है। हालांकि हॉर्मोनल परिवर्तनों के कारण भी चेहरे के इस हिस्से में पिंपल्स हो सकते हैं। सोचने की मुद्रा में या चिंता में ठुड्डी को अपनी हथेली पर न टिकाएं, इससे आपके हाथ में मौजूद तेल आपकी ठुड्डी तक पहुंच सकता है।

 

दोहरी मानसिकता को दर्शाने वाला था सनी से लिया गया साक्षात्कार

पूर्व पोर्न स्टार और कनाडा मूल की भारतीय एक्ट्रेस सनी लियोनी का एक इंटरव्यू सोशल मीडिया पर बहस का मुद्दा बन गया है। गूगल पर सबसे अधिक खोजी गयी सनी लियोनी दोहरी मानसिकता की शिकार बनीं और हैरत की बात यह है कि यह सब पत्रकारिता के नाम पर हुआ। अश्लीलता के नाम पर जिस कठघरे में उनको बार – बार खड़ा किया जाता रहा है तो उसके दायरे में अन्य बहुत से अभिनेता और अभिनेत्रियाँ भी आती हैं मगर सनी के अतीत के लिए उनको जानबूझ कर शर्मिंदा करने की कोशश की जाती है। संसद से लेकर टीवी पर हर जगह उनकी चर्चा ही है। हाल ही में उनकी ताजा फिल्म के प्रमोशन के तहत सीएनएन-आईबीएन के भूपेंद्र चौबे को दिए इंटरव्यू में सनी से जिस तरह के सवाल पूछे गए हैं उनको लेकर बॉलीवुड के कई स्टार्स ने ट्वीटर पर चौबे की जमकर आलोचना की।

अभिनेता ऋृषि कपूर ने ट्वीट कर इसे बेहद रूड इंटरव्यू क़रार दिया।

वहीं आलिया भट्ट और दिया मिर्ज़ा ने भी भूपेंद्र चौबे के सवालों को आपत्तिजनक माना।

वैसे वरिष्ठ पत्रकार वीर सांघवी चौबे के समर्थन में दिखे. अपने ट्वीट में चौबे की तारीफ़ करते हुए सांघवी ने साक्षात्कार की दिशा को बिल्कुल सही माना।

हालांकि इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि आपत्तिजनक सवालों के बावजूद सनी ने बेहद शालीनता से सभी सवालों के जवाब दिए।

कई बार लगा कि चौबे के सवाल सनी लियोनी के अतीत को बार-बार उजागर करने की कोशिश था। चौबे ने सनी से सवाल किया कि उन्हें अपने अतीत के किस बात पर सबसे ज़्यादा अफ़सोस है। जवाब में सनी ने कहा कि वो अपनी मां को अंतिम समय में मिल नहीं पाईं जिसका खेद उन्हें हमेशा रहेगा। इस जवाब से असंतुष्ट चौबे ने सवाल को दोहराया तो लगा मानों वो चाह रहे हों कि बतौर पोर्न स्टार काम कर चुकी सनी अपने इस अतीत के लिए माफ़ी मांगे।

लेकिन चौबे यहीं नहीं रुके। उन्होंने फिर सवाल दाग़ा कि क्या उनके भारत आ जाने के कारण भारत दुनिया का सबसे ज़्यादा पोर्न देखने वाला देश बन गया है। सनी लियोनी ने सवाल के जवाब में ना कहा। इसके बाद चौबे ने कहा कि उन्हें लग रहा है कि इस साक्षात्कार को करके वो नैतिक रूप से भ्रष्ट हो रहे हैं। जवाब में शालीनता से सनी ने कहा कि अगर चौबे चाहें तो वो अभी उठकर जा सकती हैं। गौर करने वाली बात यह है कि खुद चौबे को भी पता था कि सनी उनके चैनल की टीआरपी का मामला था इसलिए उनको नैतिकता की इतनी ही चिंता थी तो उनको उसी वक्त इस्तीफा देना चाहिए था जब उनको यह साक्षात्कार करने के लिए कहा गया था।

 

रिश्तों में ही सिमटी होती हैं जहाँ भर की खुशियाँ

माता-पिता अथवा घर के बुजुर्ग भी वही हैं और आप भी वही हो, बस दो पीढ़ियों के बीच उम्र के बढ़ते रहने पर थोड़ा-सा फेरबदल नजरिए तथा सोचने-समझने का होने लगता है। कई बार चाहते हुए भी घर के तमाम सदस्य व्यस्तताओं की वजह से आपस में खुलकर स्पष्ट शब्दों में बातचीत तक नहीं कर पाते। एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाएं संवेदनाएं व्यक्त नहीं कर पाते हैं बस यही स्थिति आपसी दूरियां बढ़ाकर रिश्तों में तनाव व अशांति का माहौल दर्शाने लगती है।

रिश्तों की घनिष्ठता प्रगाढ़ता पर भी इसका असर साफ झलकने लगता है, परिवार का दायरा सीमित होने लगता है। इसलिए अपनों से जुड़े रहिए क्योंकि इनके साथ ही आपकी खुशियां भी जुड़ी हुई हैं और इन्हीं से आपका जहां भी है…। दरअसल, हमारी सारी खुशियां ही अपनों से ही होती हैं, इसलिए अपनों से नाता जुड़े होने की वजह से हम खुद को भी खुश रख पाते हैं। इन छोटी-छोटी बातों को अमल में लाकर आप भी पा सकते हैं खुशियां-

माता-पिता कहीं आपसे अलग भी हों तो संभवत: प्रयास कर उनके पास ही रहें। उनके मनमाफिक खानपान व रहन-सहन में थोड़ा बहुत तो सामंजस्य किया ही जा सकता है कि ताकि उनके दिल को ठेस ना पहुंचे, बचपन की तरह आज भी उनका आप पर पूरा-पूरा हक होता है।

छोटे भाई-बहनों को भी आपके स्नेह की हमेशा जरूरत रहती है। इसलिए मौका-बेमौका उनके लिए, उनके करियर के लिए कुछ मदद अवश्य करते रहिए।

आज की तकनीकी दुनिया में दूर रहकर भी उनके कुछ कामों आप अपने दायरे में काफी हद तक पूरा कर सकते हैं, बस इसके लिए कोशिश जरूरी है।

याद करिए! बचपन में माता-पिता आपको कभी किसी बात पर कभी डांटते नहीं थे क्या? कभी कुछ कहा-सुनी भी हो जाती थी तो फिर अब थोड़ी-सी उम्र ज्यादा हो जाने पर आप क्या इतने बड़े हो जाते हैं कि माता-पिता के कहे शब्दों पर ध्यान देकर उनकी बातों का बुरा मान जाते हैं। प्रेम-स्नेह न रखकर दिल को ठेस पहुंचाने वाली बात करने लगते हैं। यदि ऐसा करते हैं तो कदापि ना करें।

आप कितनी भी बड़ी उम्र या पढ़-लिखकर कामयाब हो जाएं परंतु आपके बुजुर्ग तो वही रहते हैं आपके प्रति उनकी भावनाएं, विचार नहीं बदलते हैं आप तो हमेशा उनके लिए बच्चे ही बने रहते हैं। इसलिए अपने व्यवहार को सुधारने की कोशिश कीजिए।

यह मत भूलिए कि आपकी उन्नाति इन बुजुर्ग माता-पिता के आशीर्वाद और दुआओं का ही असर है। यह हमेशा आपके आसपास ताउम्र एक रक्षा कवच के रूप में रहती हैं। फिर इनसे भला दूरी कैसी और मनमुटाव कैसा?

माता-पिता बच्चों से कभी कुछ नहीं चाहते सिवाय प्रेम और स्नेह के। बचपन में भी वे आपकी भलाई ही चाहते ही, इसलिए आप कभी इतने बड़े मत बनिए कि बड़े होकर आप उन्हीं के कामों में कमी निकालने लग जाएं।

घर के अन्य बड़े सदस्यों को समय-समय पर याद करते रहिए। मिलने न जाएं तो फोन से ही सही, मगर उनका हालचाल जानते हुए उनसे जुड़े रहना ही अपनों से करीबी बढ़ाता है।

खुद के लिए एक निश्चित दायरा तय करना बिल्कुल गलत है क्योंकि आपकी निजता के साथ अपनों का साथ भी जुड़ा होता है, जिसकी वजह से आप हमेशा रिश्तों को समझ सकते हैं और परिवार में खुशियां भी बनी रह सकती हैं। कोशिश करके तो देखिए, आपको अपने हिस्से की खुशियां यूं ही मिल जाएंगी।

 

खूबसूरती की एक अलग मिसाल हैं लक्ष्मी

आमतौर पर खूबसूरती की जिस परिभाषा को हम देखते-सुनते या अपनाते आए हैं ये उससे हटकर है। शायद आपमें से बहुत से लोग इसे स्वीकार न कर पाएं लेकिन लक्ष्मी ने अपनी अंदरुनी खूबसूरती से सालों से चले आ रहे मापदंडों को तोड़ने की एक बेहतरीन कोशिश की है। उनकी इस कोशिश को एक फैशन ब्रांड ने अपने तरीके से सलाम किया है।

ये वाकई सोच से परे है कि एक लड़की जो एसिड अटैक का शिकार हो चुकी हो, जिसका चेहरा बुरी तरह झुलस चुका हो, जिसके शरीर पर वो दाग आज भी जिंदा हों, वो एक नामचीन फैशन ब्रांड का चेहरा बने।

लक्ष्मी उस वक्त 15 साल की थीं। एक शख्स ने उनको शादी के लिए कहा, लेकिन वह उसमें दिलचस्पी नहीं रखती थीं और उन्होंने इनकार कर दि‍या। लक्ष्मी के इनकार को वह बर्दाश्त नहीं कर सका और बदला लेने के लिए उसने लक्ष्मी पर एसिड फेंक दिया पर ये लक्ष्मी की आत्मशक्त‍ि ही थी जो उन्होंने हार नहीं मानीं। तकलीफ तो बहुत थी, शारीरिक और भावनात्मक दोनों स्तर पर, लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं छोड़ी. आज वह देश में होने वाले एसिड अटैक के खिलाफ और इस हमले की शिकार हुई महिलाओं के लिए काम करती हैं.

लक्ष्मी इससे पहले भी कई कार्यक्रमों में नजर आ चुकी हैं लेकिन इस तरह किसी फैशन ब्रांड को शायद उन्होंने पहली बार पेश किया है। फेस ऑफ करेज नाम के वीवा एंड दीवा के लिए इस कैंपेन का मकसद खूबसूरती को एक अलग रूप में पेश करना था और इसके लिए लक्ष्मी से बेहतर शायद ही कोई चेहरा होता।
एसिड अटैक के बाद उन्हें सैकड़ों सर्जरी से गुजरना पड़ा. बीबीसी को दिए एक इंटरव्यू में लक्ष्मी ने कहा कि ये एक बेहतरीन मौका था जहां मैं खुद को और अपनी जैसी ही महिलाओं को पेश कर सकी. शारीरिक सुंदरता न होने के बावजूद हम किसी से कम नहीं. इससे दूसरी औरतों को आत्मबल मिलेगा और हिम्मत भी.

ये उन अपराधियों के लिए भी एक संदेश था जो ये सोचते हैं कि उनके ऐसा करने से महिलाओं की हिम्मत टूट जाएगी. लक्ष्मी ने इस फैशन ब्रांड के लिए अलग-अलग आउटफिट में पोज शूट कराया.

वहीं लक्ष्मी की जिंदगी भी खूबसूरत हो चुकी है. वह आठ महीने की एक प्यारी बच्ची की मां हैं और उनके पति आलोक दीक्षित भी उन्हीं की तरह एक समाजसेवी हैं