Tuesday, March 18, 2025
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होली पर कविताओं के सदाबहार रंग

भारतेंदु हरिशचंद्र

कैसी होरी खिलाई।
आग तन-मन में लगाई॥
पानी की बूँदी से पिंड प्रकट कियो सुंदर रूप बनाई।
पेट अधम के कारन मोहन घर-घर नाच नचाई॥
तबौ नहिं हबस बुझाई।
भूँजी भाँग नहीं घर भीतर, का पहिनी का खाई।
टिकस पिया मोरी लाज का रखल्यो, ऐसे बनो न कसाई॥
तुम्हें कैसर दोहाई।
कर जोरत हौं बिनती करत हूँ छाँड़ो टिकस कन्हाई।
आन लगी ऐसे फाग के ऊपर भूखन जान गँवाई॥
तुन्हें कछु लाज न आई।

(भारतेन्दु जी की रचना ‘मुशायरा’ से)

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  •    नजीर अकबराबादी

जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली की।
और दफ़ के शोर खड़कते हों तब देख बहारें होली की।
परियों के रंग दमकते हों तब देख बहारें होली की।
ख़ूम शीश-ए-जाम छलकते हों तब देख बहारें होली की।
महबूब नशे में छकते हो तब देख बहारें होली की।

हो नाच रंगीली परियों का, बैठे हों गुलरू रंग भरे
कुछ भीगी तानें होली की, कुछ नाज़-ओ-अदा के ढंग भरे
दिल फूले देख बहारों को, और कानों में अहंग भरे
कुछ तबले खड़कें रंग भरे, कुछ ऐश के दम मुंह चंग भरे
कुछ घुंगरू ताल छनकते हों, तब देख बहारें होली की

गुलज़ार खिलें हों परियों के और मजलिस की तैयारी हो।
कपड़ों पर रंग के छीटों से खुश रंग अजब गुलकारी हो।
मुँह लाल, गुलाबी आँखें हो और हाथों में पिचकारी हो।
उस रंग भरी पिचकारी को अंगिया पर तक कर मारी हो।
सीनों से रंग ढलकते हों तब देख बहारें होली की।

और एक तरफ़ दिल लेने को, महबूब भवइयों के लड़के,
हर आन घड़ी गत फिरते हों, कुछ घट घट के, कुछ बढ़ बढ़ के,
कुछ नाज़ जतावें लड़ लड़ के, कुछ होली गावें अड़ अड़ के,
कुछ लचके शोख़ कमर पतली, कुछ हाथ चले, कुछ तन फड़के,
कुछ काफ़िर नैन मटकते हों, तब देख बहारें होली की।।

ये धूम मची हो होली की, ऐश मज़े का झक्कड़ हो
उस खींचा खींची घसीटी पर, भड़वे खन्दी का फक़्कड़ हो
माजून, रबें, नाच, मज़ा और टिकियां, सुलफा कक्कड़ हो
लड़भिड़ के ‘नज़ीर’ भी निकला हो, कीचड़ में लत्थड़ पत्थड़ हो
जब ऐसे ऐश महकते हों, तब देख बहारें होली की।।

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हरिवंश राय बच्चन

तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
देखी मैंने बहुत दिनों तक
दुनिया की रंगीनी,
किंतु रही कोरी की कोरी
मेरी चादर झीनी,
तन के तार छूए बहुतों ने
मन का तार न भीगा,
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।
अंबर ने ओढ़ी है तन पर
चादर नीली-नीली,
हरित धरित्री के आँगन में
सरसों पीली-पीली,
सिंदूरी मंजरियों से है
अंबा शीश सजाए,
रोलीमय संध्या ऊषा की चोली है।
तुम अपने रँग में रँग लो तो होली है।

होली के रंगों में छिपे हैं संस्कृति के रंग

होली रंगों का त्योहार है। होली के संदर्भ में कहा जाता है कि…

वंदितासि सुरेंद्रेण शंकरेण च। अतस्त्वं पाहिं नो देवि, भूते भूतिप्रदा भव।।

यानी इंद्र, ब्रह्मदेव, शंकर ने आपको वंदन किया है। हे देवी, आप ही हमारा रक्षण कर, हमें ऐश्वर्य प्रदान करें। इस मंत्र का जाप कर होली के दिन रंगोत्सव मनाने की प्रक्रिया को शुरू करना चाहिए।

गुलाल लगाना

आज्ञाचक्र (मस्तिष्क) पर गुलाल लगाना, पिंड बीज के शिव को शक्ति तत्व का योग देने का प्रतीक है। गुलाल से आने वाली तरंगे, रंगों के रूप में आती हैं जो शरीर की सात्विक तरंगों के रूप में कार्य करने की क्षमता बढ़ाती है। मस्तिष्क से ग्रहण होने वाला शक्तिरूपी चैतन्य संपूर्ण देह में संक्रमित होता है। इससे वायुमंडल में भ्रमण करने वाली चैतन्य तरंगें ग्रहण करने की क्षमता बढ़ जाती है। इस विधि द्वारा जीव चैतन्य के स्तर पर अधिक संस्कारक्षम बनता है।

होली में नारियल डालना

नारियल के माध्यम से वायुमंडल के कष्टदायक स्पंदनों को खींचकर, उसके बाद उसे होली की अग्नि में डाला जाता है। इस कारण नारियल में संक्रमित हुए कष्टदायक स्पंदन होली की तेजोमय शक्ति की सहायता से नष्ट होते हैं और वायुमंडल की शुद्धि होती है।

त्रेतायुग के प्रारंभ में श्रीविष्णु ने धूलिवंदन (रंगों से होली खेलना) किया। इसका अर्थ है कि उस युग में श्री विष्णु ने अगल-अलग तेजमय रंगों से अवतार कार्य का आरंभ किया।

धूलिवंदन यानि धुलेंडी

होली के दूसरे दिन अर्थात धूलिवंदन के दिन कई स्थानों पर एक-दूसरे के शरीर पर गुलाल डालकर रंग खेला जाता है। होली के दिन प्रदीप्त हुई अग्नि से वायुमंडल के रज-तम कणों का विघटन होता है। इस दिन हर तरफ आनंद होता है।

इस दिन रंगों से खेली जाने वाली होली से आपसी वैमनस्यता, आपसी मतभेद दूर होते हैं और खुशियां, आपसी सद्भाव का आगाज होता है ।

होली के संदर्भ में कुछ अन्य जानकारी

भविष्य पुराण के अनुसार, ढुण्ढा नामक राक्षसी गांव-गांव जाकर बालकों को कष्ट देती थी। उन्हें कई तरह के रोगों से ग्रस्त कर देती थी। उसे गांव से बहार भगाने के लिए कई लोगों ने प्रयास किए, किंतु वे सभी विफल रहे। अंत में उसे गालियां और शाप दिए गए। इस पर वह प्रसन्न होकर गांव से भाग गई और लोगों ने एक दूसरे पर रंग डालकर खुशियां मनाईं। उत्तर भारत में ढुण्ढा राक्षसी की अपेक्षा पूतना को होली की रात जलाते हैं।

 

रंगों का मजा लें मगर त्वचा का रहे ख्याल

होली की कल्पना रंग और गुलाल के बगैर नहीं की जा सकती मगर त्वचा के लिए कई बार यही परेशानी खड़ी कर देते हैं। केमिकल युक्त रंगों से एलर्जी और रिएक्शन जैसी समस्या होने लगती है। इनमें कई तरह के रासायनिक और विषैले पदार्थ मिले होते हैं, जो त्वचा, नाखून और मुंह से शरीर में प्रवेश कर अंदरूनी हिस्सों को क्षति पहुंचा सकते हैं। डॉक्टर्स के मुताबिक हर साल होली के बाद एलर्जी के सैकड़ों मामले आते हैं। इसलिए होली खेलने के पहले बचाव की तैयारी कर लेना चाहिए।

त्वचा रोग विशेषज्ञों के अनुसार केमिकल युक्त रंगों से त्वचा रूखी हो जाती है। त्वचा की अंदरूनी सतह तक नुकसान पहुंचता है। जलन, चकते, एक्जिमा जैसी समस्याएं होती है। बच्चों की त्वचा ज्यादा संवेदनशील होती है। इसलिए बच्चों में समस्या ज्यादा देखी जाती है।

प्राकृतिक रंग सबसे बेहतर 

त्वचारोग विशेषज्ञ डॉ. दिलीप हेमनानी कहते हैं प्राकृतिक रंग होली के लिए सबसे अच्छे होते हैं। इनसे दुष्प्रभाव नहीं होता है। लोग जान-बूझकर पक्के केमिकल रंगों का प्रयोग करते हैं, जिससे त्वचा संबंधी समस्याएं होने लगती हैं। रंग निकालते वक्त भी लोग ज्यादा रगड़ते हैं। इससे एलर्जी बढ़ जाती है। रंग निकालने के लिए डिटर्जेंट का प्रयोग भी नहीं करना चाहिए।

इस तरह बचें दुष्प्रभाव से 

– होली के दिन आप पूरे शरीर को ढंकने वाले कपड़े पहनें। अच्छा होगा कि कपड़ों के अंदर स्विम सूट पहन लें जिससे होली का रसायनयुक्त रंग अंदर जाने से बचें।

– होली खेलने से पहले अपने शरीर पर तेल या फिर मॉइश्चराइजर लगाएं और 15 मिनट शरीर को सोखने दें। इसके बाद वाटरप्रूफ सनस्क्रीन लगाकर होली खेलें।

– बालों पर अच्छा तेल लगाएं जिससे रंग और धूल से बचाव हो सके। तेल के अलावा होंठों को हानिकारक रंगों से बचाने के लिए लिपबाम लगाएं।

– नाखूनों और उनके अंदर तैलीय वस्तु लगाएं। महिलाएं नेलपॉलिश भी लगा सकती हैं।

– आंखों को रंगों से बचाएं क्योंकि इनमें मौजूद पोटेशियम हाईक्रोमेट नामक हानिकारक तत्व नुकसान पहुंचा सकता है। यदि कुछ रंग आंख में चला जाए तो आंखों को तब तक पानी से धोएं जब तक रंग ठीक से निकल न जाएं।

– रंग खेलने के बाद त्वचा रुखी हो जाती है, तो इसके लिए शरीर पर मलाई और बेसन का पेस्ट बनाकर लगाया जा सकता है। यदि आपके शरीर पर कोई घाव या चोट है तो होली न खेलें। इससे रंगों में मिले रासायनिक तत्व घाव के माध्यम जरिये शरीर के रक्त में मिलकर नुकसान पहुंचा सकते हैं।

ऐसे छुड़ाएं रंग

बनाना पैक: केला मैश कर नीबू का रस मिलाएं। इसे त्वचा पर मलकर छोड़ दें और सूखने के बाद पानी के छींटें मारकर स्क्रब करें। इससे रंग भी उतर जाएगा और त्वचा की नमी भी नहीं जाएगी।

बेसन पैक: बेसन में नीबू का रस व मलाई डालकर पेस्ट बनाएं और त्वचा पर स्क्रब की तरह मसाज करें। फिर हल्के गुनगुने पानी से धो लें। इससे रंग भी उतर जाएगा और त्वचा पर निखार भी आएगा।

जौ या चोकर का स्क्रब: गेहूं के चोकर या जौ के आटे में दूध मिलाकर त्वचा पर मलें। इससे रंग आसानी से निकल जाएगा।

मसूर-दूध: मसूर की दाल को रातभर भिगोकर रखें और पीसकर दूध मिलाएं। इस पैक को त्वचा पर लगाकर छोड़ दें और फिर हल्के गर्म पानी के साथ स्क्रब करें।

कच्चा पपीता पैक: कच्चे पपीते को पीस लें। इसमें थोड़ा दूध, मुल्तानी मिट्टी और जैतून का तेल मिलाएं। इसे चेहरे और गर्दन पर लगाकर 20 मिनट बाद साफ कर लें। पैक के साथ रंग भी उतर जाएगा।

दही-बेसन पैक: बालों से रंग निकालने के लिए दही में बेसन और नीबू का रस मिलाकर सिर की मसाज करें। फिर शैंपू से धो लें।

 

सुबलक्ष्मी के नाम अमजद अली ने बनाया राग  

 

विख्यात सरोद मेस्त्रो अमजद अली खान ने क्लासिकल डांसर सुबलक्ष्मी को प्रपोज किया तो उन्होंने कई महीनों के इंतजार के बाद शादी के लिए हां की। बाद में अमजद अली ने अपनी पत्नी के नाम एक सुबलक्ष्मी राग ही बना दिया।

सात पीढ़ियों से उस्ताद अमजद अली खां का सरोद वादन जारी है। उन्होंने क्लासिकल डांसर सुबलक्ष्मी से शादी की है। सुबलक्ष्मी से उनकी मुलाकात कोलकाता में 40 साल पहले हुई थी। इस मुलाकात के बाद अमजद अली ने उनके सामने शादी का प्रस्ताव रखा तो उन्होंने छह महीने बाद सहमति दी।

अपना कैरियर छोड़ा सुबलक्ष्मी ने

हालांकि शादी में परेशानियां जरूर आई, लेकिन उनका सफर जारी है। सुबलक्ष्मी ने अपने पति अमजद अली खान और दोनों बेटों अमान औऱ अयान के लिए अपनी डांसिंग कैरियर छोड़ दिया। खुद उस्ताद अमजद अली मानते हैं कि, वो और दोनों बेटे अंतरराष्ट्रीय स्तर के सरोद वादक हैं तो उसके पीछे सुबलक्ष्मी की मेहनत और समर्पण है।

उस्ताद ने बनाए 24 राग

उस्ताद अमजद अली खान ने सरोद वादन के जरिए 24 से ज्यादा राग विकसित किए हैं। उन्होंने एक राग अपनी पत्नी सुबलक्ष्मी के नाम किया है। उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ में गांधी के भजन वैष्णव जन को अपने सरोद के सुर दिए।

उस्ताद ने विकसित किए ये राग

सावन मैहर, हाफिज खान, आहुति, सुबलक्ष्मी, कमलश्री, जवाहरमंजरी, शिवाजंलि, सरस्वती कल्याण, ललिता धानवी, सुहाग भैरव, चंद्र धवनी, स्वर समीर, विभाविरी, किरण रंजिनी, हरि प्रिया कन्नड़, अमीरी तोड़ी, श्याम श्री, प्रियदर्शिनी, मंग्रेश, शांतना, गणेश कल्याण, श्याम गौरी और राहत कौंस।

 

ये हैं भारत की पहली लेडी फाइटर पायलट

 

पटना।भावना कंठ देश की पहली लेडी हैं जो फाइटर प्लेन उड़ाएंगी। वह दरभंगा के घनश्यामपुर के बाऊर गांव की रहने वाली हैं। उनका परिवार फिलहाल दरभंगा शहर के भैरवपट्टी बैंकर्स कॉलोनी में रहता है। परिवार ने पहली बार भावना के कुछ फोटोज दैनिक भास्कर के साथ शेयर किए हैं। तीन भाई बहनों में सबसे बड़ी है भावना…
– भावना कंठ अपने सबसे बड़ी बेटी हैं।

– भावना के पिता तेज नारायण कंठ इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन मथुरा में कार्यरत हैं।
– दादा बौद्ध नारायण कंठ आईओसी की बरौनी रिफाइनरी में इलेक्ट्रिशियन थे।
– भावना ने वर्ष 2009 में डीएवी स्कूल, बरौनी रिफाइनरी, बेगूसराय से दसवीं की परीक्षा पास की।
– भावना ने वर्ष 2014 में बेंगलुरू के बीएमएस कॉलेज से बीटेक किया।
– वर्ष 2015 में भावना का चयन भारतीय वायु सेना के लिये हो गया।

– 18 जून को भावना पहली बार फाइटर जेट उड़ाएगी।

बचपन से फाइटर पायलट बनना चाहतीं
– भावना ने कहा कि बचपन से उसका सपना फाइटर पायलट बनने का था।
– यह ऐसा काम था, जिसे करने की कामना सिर्फ लड़के ही करते थे।
– इसके लिए हमें परिवार का पूरा सपोर्ट मिला।
– घरवालों ने कभी ऐसा फील नहीं होने दिया कि मैं लड़की हूं।
– इसलिए मेरा यह सपना पूरा हुआ।
– यह पहली बार है कि किसी महिला को फाइटर प्लेन उड़ाने की ट्रेनिंग दी गई।

 

ब्रज संस्कृति की पहचान है यमुना

हिंदू पौराणिक ग्रंथों के अनुसार यमुना नदी, यमराज की बहन है। जिसका नाम यमी भी है। यमराज और यमी के पिता सूर्य हैं। यमुना नदी का जल पहले साफ, कुछ नीला, कुछ सांवला था, इसलिए इन्हें ‘काली गंगा और ‘असित’ भी कहते हैं। असित एक ऋषि थे। सबसे पहले यमुना नदी को इन्होंने ही खोजा था। तभी से यमुना का एक नाम ‘असित’ संबोधित किया जाने लगा।

यमुना जिसे यमुनोत्री भी कहा जाता है। यह नदी उत्तरकाशी से 30 किमी उत्तर, गढ़वाल से निकली है। और अंत में इलाहाबाद में गंगा नदी से मिल जाती है। जहां यह त्रिवेणी(गंगा, सरस्वती, जमुना या यमुना) कहलाती है। यमुना की सहायक नदियां चम्बल, सेंगर, छोटी सिन्ध, बेतवा और केन हैं। यमुना के तटवर्ती नगरों में दिल्ली और आगरा के अतिरिक्त इटावा, काल्पी, हमीरपुर और प्रयाग मुख्य है।

जिस तरह भगवान श्रीकृष्ण को ब्रज संस्कृति का जनक कहा जाता है, ठीक उसी तरह यमुना को जननी का स्थान दिया गया है। ब्रह्म पुराण में उल्लेखित है कि, ‘जो सृष्टि का आधार है और जिसे लक्ष्णों से सच्चिदनंद स्वरुप कहा जाता है, उपनिषदों ने जिसका ब्रह्म रुप से गायन किया है, वही परमतत्व साक्षात् यमुना है।’

दिल्ली में यमुना : सदियों से कल-कल बहती यमुना दिल्लीवासियों की जल की आवश्यकताओं की पूर्ति करती है। दिल्ली से चलकर यमुना दनकौर के स्थान पर हिंडन नदी को अपने साथ ले लेती है। फिर पंजाब और उत्तरप्रदेश की सीमा बनती है। एक ओर गुड़गांव, दूसरी ओर बुलन्दशहर। उसके बाद मथुरा में प्रवेश करती है। मथुरा के साथ युगों का इतिहास जुड़ा हुआ है।

प्राचीन समय में यह क्षेत्र शूरसेन जनपद कहलाता है। यहीं यदु के वंशवाले यादव बसे। यहीं शत्रुघ्न ने लवणासुर को मारकर राम-राज्य स्थापित किया। यहीं कृष्ण हुए, वही कृष्ण, जिन्होंने यादव-संघ की रक्षा की वही कृष्ण कन्हैया, जिसके चरित्र से ब्रजभूमि धन्य हो गई थी। जो आज भी है।

 

बच्चों के लिए जरूरी है पूरी नींद

एक नए शोध के अनुसार, नियमित स्कूल जाने वाले बच्चों की तुलना में घर में पढ़ने वाले बच्चे अधिक सोते हैं. इस निष्कर्ष तक पहुंचने के लिए शोध समूह ने 2 हजार 612 छात्रों की नींद से जुड़ी आदतों का आकलन किया. इन बच्चों में 500 बच्चे ऐसे थे जो घर में ही पढ़ते थे।

अध्ययन में अधिक और कम नींद दोनों ही कारकों का आकलन किया गया था।

शोध के अनुसार, घर पर पढ़ने वाले बच्चों की तुलना में निजी और सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले 44.5 प्रतिशत बच्चे नींद पूरी न होने की शिकायत से पीड़ित थे. जबकि घर में पढ़ने वाले बच्चों के लिए यह आंकड़ा 16.3 फीसदी था।

डेनवर के नेशनल ज्वूइश हेल्थ से इस अध्ययन की मुख्य लेखक लीसा मेल्टजर का कहना है कि हमारे यहां एक स्कूल प्रणाली है, जिसका समय बिलकुल निश्चित होता है. कम उम्र के बच्चों का स्कूल जल्दी शुरू होता है, वे जल्दी उठते हैं।

उनके अनुसार, किशोरों को नौ घंटे की नींद की जरूरत है और अगर वे केवल सात घंटे ही सोते हैं, तो सप्ताह के अंत तक वह 10 घंटे कम नींद लेते हैं. जो उनके कामकाज को प्रभावित करता है।

नींद की कमी स्वास्थ्य के साथ ही मानसिक रूप से भी प्रभावित करती है। नींद के अभाव से ध्यान केंद्रित करने और याद करने की क्षमता प्रभावित होती है. ऐसे में शरीर और मानसिक स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद लेना आवश्यक है।

यह शोध पत्रिका ‘बिहेवियरल स्लीप मेडिसिन’ में प्रकाशित हुआ है.

 

पानी की बूंद-बूंद बचाता 80 साल का बुज़ुर्ग

रविवार की एक सुबह, मुंबई के मीरा रोड स्थित एक अपार्टमेंट कॉम्प्लेक्स के सबसे ऊपरी तल्ले पर 80 साल के बुज़ुर्ग पहुंचते हैं.

अगले चार घंटों के दौरान, आबिद सुरती कॉम्प्लेक्स में बने सभी 56 फ़्लैट के डोर-बेल बजाते हैं और हर घर वाले से एक ही सवाल पूछते हैं, “क्या आपके घर में कोई नल टपकता है?”

सुरती के साथ नल ठीक करने वाला एक कारीगर और एक स्वयंसेवी सहायक मौजूद होता है. जो घर वाले नल नहीं टपकने की बात करते हैं, उनसे आबिद सुरती माफ़ी मांग लेते हैं.

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लेकिन जो लोग बताते हैं कि उनके घर में नल टपक रहा है, तो वहां नल ठीक करने वाला उसे ठीक करता है. आबिद सुरती बीबीसी से बताते हैं, “मुझे टपकने वाले नलों से हमेशा दिक़्क़त होती है.”

आबिद सुरती 80 किताबों के लेखक हैं, कार्टूनिस्ट हैं और कलाकार भी हैं. सुरती कहते हैं, “जब मैं किसी दोस्त या रिश्तेदार के घर जाता हूं और अगर मुझे नल के टपकने की आवाज़ सुनाई देती है तो मैं उन्हें ठीक कराने के लिए कहता हूं.”

दरअसल सुरती इसके ज़रिए पानी की एक-एक बूंद बचाना चाहते हैं. उनका बचपन मुंबई के फ़ुटपाथों पर बीता है और उन्होंने अपनी मां को सुबह चार बजे पानी की बाल्टी लिए क़तार में खड़े देखा है.

वह कहते हैं, “मैंने पानी की एक-एक बूंद के लिए लोगों को लड़ते देखा है. जब मैं कहीं भी नल को टपकता हुआ देखता हूं तो बचपन की याद कौंधने लगती है.”

2007 में, उन्होंने अख़बार में प्रकाशित एक न्यूज़ रिपोर्ट देखी जिसमें कहा गया था कि अगर किसी टपकते नल से प्रति सेकेंड एक बूंद पानी भी गिरे तो हर महीने एक हज़ार लीटर पानी बर्बाद हो जाएगा.

सुरती कहते हैं, “यह बात मेरे दिमाग़ से नहीं निकल पाई कि कोई इस तरह से 1000 लीटर पानी बहा सकता है.”

इसके चलते ही उन्होंने ड्रॉप डेड फ़ाउंडेशन बनाया है, यह एक आदमी से चलने वाली ग़ैर-सरकारी संस्था है. जिसकी टैग लाइन है, “प्रत्येक बूंद बचाओ या मर जाओ.” उन्होंने एक प्लंबर को काम पर रखा है और उसके साथ लोगों के घरों के नल और उसकी टोंटियों को ठीक करने का काम करते हैं.

लेकिन ये इतना आसान काम भी नहीं था. अपनी पहली मुश्किल के बारे में वे बताते हैं, “आमतौर पर घर के दरवाज़े महिलाएं खोलती थीं और हम दो पुरुष. वे हमें संदेह से देखतीं और दरवाज़ा बंद कर लेतीं. इसके चलते हमने एक महिला स्वयंसेवी को भी साथ में रखा.”

इसके अलावा आबिद सुरती के दोस्त और परिवार वाले भी इस काम से बहुत ख़ुश नहीं हुए. सुरती बताते हैं, “वे लोग मुझसे कहते हैं, ये कुछ ही बूंदों की बात है, कोई पवित्र गंगा नदी को नाले में नहीं बहा रहा है. वे मुझसे केवल लिखने और चित्रकारी करने को कहते हैं. मैं कुछ बूंद पानी के पानी के पीछे क्यों पड़ा हूं? ये भी पूछते हैं.”

घर वालों को पैसों की भी चिंता होती है कि वे किस तरह से प्लंबर और स्वयंसेवी को भुगतान करते हैं? वे कहते हैं, “अगर आप ईमानदारी से कोई अच्छा काम करना चाहें तो पूरी कायनात आपकी मदद करने लग जाती है. आपके लिए ईश्वर पैसे जुटाने लगते हैं.”

आबिद सुरती ने जब अपने फ़ाउंडेशन की स्थापना का फ़ैसला लिया उन्हीं दिनों उन्हें ख़बर मिली कि उन्हें एक लाख रूपये का हिंदी साहित्य पुरस्कार मिला है.

सुरती बताते हैं, “मेरे ख़र्चे बहुत कम हैं. मैं प्लंबर और स्वंयसेवक को हर दिन पांच-पांच सौ रूपये दिया करता था. कुछ पैसे प्रचार सामग्री पर भी ख़र्च हुए. तो वह पैसा कुछ सालों तक चल गया.”

सुरती आगे बताते हैं, “जब मेरी वित्तीय स्थिति चरमराने लगती है तो भगवान मेरी मदद के लिए उपयुक्त आदमी को भेज देते हैं और बिन मांगे ही मुझे सहायता का चेक मिल जाता है.” इतना ही नहीं अब तो, प्लंबर और स्वयंसेवी साथी भी उनसे पैसा लेने से इनकार कर देते हैं.

आबिद सुरती के मुताबिक़ सालों से की जा रही उनकी कोशिशों के चलते वे कम से कम एक करोड़ लीटर पानी को बचाने में कामयाब हुए हैं. इतना ही नहीं, उनके कई फैंस और फॉलोअर भी बन गए हैं.

हाल ही में बॉलीवुड के सुपरस्टार अमिताभ बच्चन ने उन्हें अपने टेलीविज़न शो में आमंत्रित किया और आबिद सुरती के फ़ाउंडेशन को उन्होंने 11 लाख रुपये की सहायता राशि दी.

मीरा रोड पर एक महिला उन्हें टीवी शो के ज़रिए ही पहचानने में कामयाब रही. महिला उनसे कहा, “मैंने आपको अमिताभ बच्चन के साथ टीवी पर देखा था.” आबिद मज़ाक़िया अंदाज़ में कहते हैं, “देखिए, मैं अमिताभ बच्चन को भी लोकप्रिय बना रहा हूं.”

ज़्यादातर निवासी उनके काम की प्रशंसा करते हैं और कहते हैं कि आप शानदार काम कर रहे हैं और ये काम जारी रखिए. सुरती उन लोगों को जल संरक्षण की अहमियत के बारे में बताते हैं और ये संदेश आम लोगों तक पहुंचता दिखता है.

अपने घर में नल टपकने के चार-पांच दिन बाद सुरती को ठीक करने के लिए बुलाने वाले गौरव पांडेय ने बीबीसी से बताया, “पिछले कुछ सालों में मुंबई में पर्याप्त बारिश नहीं हुई है. पानी की कमी है. हम लोग नल टपकने को नज़रअंदाज़ कर देते हैं, क्योंकि हम जागरूक नहीं हैं. अगली बार ऐसा हुआ तो मैं जल्दी ही उसे ठीक कराऊंगा.”

सुरती कहते हैं, “जब पानी की कमी होती है, तो हम सरकार पर आरोप लगाने लगते हैं. लेकिन यह केवल सरकार का काम नहीं है. जल संरक्षण हमारा भी काम है.”

आबिद सुरती अपने आसपास के दुनिया में बदलाव लाने के लिए दूसरे लोगों को भी प्रेरित कर रहे हैं.

वे कहते हैं, “मैं सप्ताह में छह दिन तक काम करता हूं. लिखता हूं, पढ़ता हूं और पेंटिंग करता हूं. सातवें दिन मैं कुछ घंटे निकालकर जागरूकता फैलाने का काम करता हूं और अपने आस पड़ोस के लोगों प्रेरित भी करता हूं.”

आबिद ये भी कहते हैं, “आपको बड़ी योजनाओं की ज़रूरत नहीं है क्योंकि प्रत्येक बूंद की अहमियत है.”

(साभार – बीबीसी)

पत्नी टिव्ंकल काम पर, अक्षय पहुंचे खाना लेकर, घर पर बच्ची को सम्भाला

अक्षय कुमार को फैमिली पर्सन माना जाता है। हाल ही एक बार फिर अक्षय का ये आइडियल हसबैंड वाला अवतार देखने को मिला। दरअसल, अक्षय ने एक दिन अपने काम से छुट्टी ली और घर पर बेटी नितारा को संभाला। दूसरी तरफ उनकी वाइफ ट्विंकल खन्ना अपने काम के सिलसिले में एक शूट पर पहुंचीं। बीवी के लिए लंच लेकर पहुंचे अक्षय…

जब ट्विंकल काम में बिजी थी तो अक्षय उनके लिए लंच लेकर पहुंचे। इस दौरान उनके खास दोस्त जॉन अब्राहम भी उनके साथ थे। इस स्पेशल लंच की एक फोटो शेयर करते हुए अक्षय ने अपने ट्विटर अकाउंट पर लिखा, “Free day today, dropped by the wife’s shoot with a lunchbox in hand, joined in by buddy John. Feeling domesticated”

अक्षय के ट्वीट का जवाब देते हुए ट्विंकल ने लिखा, “And all the girls on my set sort of fainted seeing these two amazing desi boyz!”

 

पति-पत्नी के रिश्ते में जरूरी है सम्मान

कहते हैं रिश्ते तभी लंबे समय तक चल पाते है जब उसमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान की भावना हो। वैसे भी कई बार देखा गया है कि कई पुरुष अपनी पत्नी को अपने सामने कुछ समझते ही नहीं है और बच्चों व दूसरों के सामने उन्हें बेइज्जत करने से बाज नहीं आते। पत्नी भले ही उनसे अधिक योग्य हो या ज्यादा कमाती हो, ज्यादा अच्छी हो या खूबसूरत हो लेकिन पुरुष का दंभ उसे यथोचित सम्मान देने से रोकता है। मित्रों, रिश्तेदारों या घर के कामवालों के सामने भी वे पत्‍नी की इंसल्ट कर बैठते हैं।

आखिर क्यों करते हैं पुरूष ऐसा

हमारे देश में लड़कियों को बचपन से यह बात सिखाई जाती है कि समाज में लड़के के जन्म को सेलिब्रेट किया जाता है। मुण्डन, थाली या परात बजाना लड़के के जन्म पर होता है। प्रारंभ से ही लड़कों को ज्यादा अहमियत दी जाती है और इसलिए उसके मन में ‘महत्वपूर्ण’ होने की अवधारणा विकसित हो जाती है। वे स्वयं को सबसे अधिक सर्वश्रेष्ठ समझने लगते हैं।

सामान्यत: लड़कियों या महिलाओं का एक्सपोजर पुरुषों जितना नहीं होता, इसलिए उनकी जानकारी व नॉलेज घर के बाहर के क्षेत्रों में कम होती है। पुरुष इसी बात से स्वयं को अधिक निपुण समझने लगते हैं। कई बार पुरुषों की हीन भावना भी उन्हें आक्रामक होने को विवश करती है। स्वयं से योग्य या सुंदर पत्‍नी होने पर वो उसकी खीज पत्‍नी को गाहे-बगाहे बेइज्जत करके निकालते हैं। स्त्री को कमतर समझने पर या उसके ऊपर रौब गांठने की मन:स्थिति भी पुरुष को पत्‍नी के सम्मान को ठेस पहुंचाने के लिए उकसाती है।

क्या हो सकता है?

कई बार चिढ़कर या जानबूझकर कोई भी पति अपनी पत्नी को चोट पहुंचाने या मन दुखाने के लिए बेइज्जती करता है तो कई बार आदतवश भी ऐसा कर बैठता है।

बुरी तरह से ट्रीट होना हममें से किसी को भी पसंद नहीं आता फिर घर की लक्ष्मी का तिरस्कार, कई मामलों में उसकी रूचि खत्म कर सकता है। कभी-कभी स्थितियां जब बस के बाहर हो जाती हैं तो पत्‍नी भी मौके और बहाने ढूंढ सकती हैं पति के अपमान के। ऐसे में दोनों के रूचिपूर्ण संबंध खत्म हो सकते हैं। यदि दोनों वर्किंग है तो ईगो क्लेश होकर ब्रेकअप जैसी स्थिति आ जाती है।

क्यों दें सम्मान?

दूसरे को सम्मान देना तो हमारी तहजीब व संस्कृति है इसमें भला शर्म कैसी? पत्‍नी तो अर्ध्दांगिनी है। आपके बराबर की सुख-दुख की साझीदार। उससे अभद्र तरीके से बोलने का अधिकार आपको कदापि नहीं है। पत्‍नी यदि होम मेकर भी है तो भी उसकी अपनी अहमियत है। उसे सम्मान देना आपका फर्ज है। दूसरों को सम्मान देने से स्वयं, आपके संस्कार पता चलते हैं। अक्सर फलों से लदी डाली ही झुकी होती है, इसलिए हमेशा नमना सीखें। वाद-विवाद से नेगेटिव एनर्जी जेनरेट होती है, संबंध बिगड़ते हैं। ऐसे में आप अपने बच्चों के लिए अच्छा उदाहरण कभी नहीं बन पाएंगे। स्वयं की श्रेष्ठता प्रमाणित करने के लिए कभी भी अपशब्दों का सहारा लेने से काम नहीं बनेगा।

बदलनी होंगी कुछ आदतें

  • यदि आप भी आज तक पत्‍नी को कमतर समझते आ रहे हैं तो प्रण कीजिए कि अपनी आदत बदलेंगे।
  • शुरुआत उसके हर काम को एक्नॉलेज करने से करें।
  • शुक्रिया-धन्यवाद कहने से पत्‍नी का मनोबल बढ़ेगा।
  • यदा कदा तारीफ करें तो बड़प्पन आपका ही झलकेगा।
  • पत्‍नी से ऊंची आवाज में बात करना या छोटी-छोटी गलतियों के लिए उसे डांटना बंद कर दीजिए।
  • बच्चों से भी मम्मी से ऊंची आवाज में बात करने को मना करें।
  • पत्‍नी की राय किन्हीं मुद्दों पर आपसे अलग है तो धैर्यपूर्वक उसकी बात सुने, हो सकता है वह सही हो।
  • शुरुआत में हिचक हो सकती है पर घबराए नहीं, ऐसा करने से आप सुदृढ़ दाम्पत्य की ओर ही कदम बढ़ाएंगे।
  • पति-पत्‍नी के रिश्ते की धुरी प्रेम, विश्वास व सम्मान ही है। इनमें से एक भी यदि कम हुआ तो रिश्ता बिगड़ते देर नहीं लगती।