Sunday, July 27, 2025
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महानगर की कुकरी वर्कशॉप में पहुँचे शेफ संजीव कपूर

हाल ही में प्रख्यात शेफ संजीव कपूर कोलकाता पहुँचे। वे मीडिया कनेक्ट द्वारा आयोजित कुकरी वर्कशॉप में पहुँचे थे जहाँ उन्होंने लोगों को कई तरह के व्यंजनों की विधि सिखायी। इस कार्यशाला में उन्होंने लोगों को प्रैक्टिकल डेमो और संजीव कपूर को खाना बनाते देखने का मौका मिला।

Mr. Sanjeev Kapoor teaching the participants at cookery workshop by Sanjeev Kapoor organized by Media Connect_1

इस वर्कशॉप की खासियत शाकाहारी व्यंजन विधियों में थी जिसे लोगों ने काफी पसंद किया। कार्यशाला में सलाद से लेकर चीज केक से लेकर कई तरह की सब्जियाँ बनाना संजीव कपूर ने सिखाया। मीडिया कनेक्ट के सह प्रमुख अंकित अग्रवाल तथा प्रेरणा कोठारी ने लोगों के उत्साह पर खुशी जतायी।

पायरिया : जल्द उपचार, बेहतर निदान

पूरे शरीर के स्वास्थ्य को लेकर चिंतित रहने वाले लोग भी अक्सर इस संपूर्ण स्वास्थ्य में दांतों को जोड़ना भूल जाते हैं। दिन में केवल एक बार ब्रश कर लेना ही ओरल केयर नहीं है। ओरल केयर के लिए हर बिंदु पर ध्यान देना जरूरी है, अन्यथा तकलीफ गंभीर हो सकती है।

क्या है पायरिया?

पेरियोडोन्टाइटिस या पायरिया, मुंह की एक ऐसी समस्या है जो इलाज न मिलने पर गंभीर रूप ले सकती है। इस समस्या में मसूड़े की अंदरूनी परत और हड्डियां, दांतों और दांतों के खांचे से दूर हो जाती हैं, इसके कारण छोटे-छोटे गड्ढेनुमा संरचना बन जाती है और इसमें संक्रमण पैदा करने वाले कारक पनपने लगते हैं। यह संक्रमण सड़न पैदा करता है और इस स्थिति में 2झ पैदा होने से मुंह से बहुत बुरी बदबू आने लगती है। यही नहीं इससे उस स्थान पर हड्डी के भी क्षतिग्रस्त होने का खतरा हो जाता है। यही नहीं संक्रमण के बढ़ने पर मसूड़ों से खून आने लगता है और पस भी पड़ सकता है।

लक्षण जो नजर आते हैं:

दांतों की यह समस्या एक दिन में न तो पनपती है न ही इसके लक्षण एक दिन में नजर आते हैं। पायरिया के संबंध में भी यही बात लागू होती है। इसके लक्षण कई दिनों बाद सामने आते हैं। और एक बार लक्षण सामने आने के बाद तेजी से समस्या और बढ़ने लगती है। इसके मुख्य लक्षणों में दांतों में दर्द, खून आना, मसूड़ों में सूजन या उनका फूल जाना, दांतों में गैप आना या दांतों का हिलना, दांतों और मसूड़ों के बीच पॉकेट का बन जाना, हरे, पीले, काले या ग्रे रंग के टार्टर का दांतों पर जमा हो जाना, दांतों की जड़ें दिखने लगना तथा मसूड़ों का सिकुड़ जाना आदि शामिल हैं।

ये हैं कारण

ओरल हेल्थ को लेकर सजग रहना पूरे शरीर के लिए फायदेमंद हो सकता है। विशेषज्ञों की मानें तो दांतों या मसूड़ों से जुड़ी तकलीफें दिल तक पर असर डाल सकती हैं। पायरिया के संदर्भ में तकलीफ के पैदा होने के पीछे के मुख्य कारण हैं-

  • मुंह की साफ-सफाई ठीक से न होना
  • दांतों के बीच खाने के कण फंसे रह जाना
  • ठीक से ब्रश न करना या बहुत कड़क ब्रिसिल्स वाले ब्रश का उपयोग करना
  • कैविटी का बनना
  • जल्दी-जल्दी टूथपेस्ट बदलना
  • गुटखा, तंबाकू, सिगरेट, शराब, पान, सुपारी की लत होना
  • दांतों को बार-बार कुरेदना
  • बार-बार पेट की समस्या होना
  • हॉर्मोनल चेंजेस
  • अनुवांशिक कारण
  • किसी ऑटोइम्यून समस्या के कारण, आदि।

उपचार जरूरी है

इस समस्या से बचाव का सबसे सहज तरीका है ओरल हेल्थ पर ध्यान देना। जिसमें दिन में कम से कम दो बार सुबह और रात को सोने से पहले, ब्रश करना, समय-समय पर डेंटिस्ट से दांतों का चेकअप करवाना, दांतों को नुकसान पहुंचाने वाली किसी भी चीज से दूर रहना, जैसे गुटखा, तंबाकू, शराब, सिगरेट, सुपारी, कोल्डड्रिंक, आदि, यदि ओरल हेल्थ से जुड़ी कोई समस्या आपकी फैमिली हिस्ट्री का हिस्सा है तो उसे लेकर सतर्कता बरतना, आदि।

बचाव के उपाय अपनाने के साथ ही समस्या होते ही उसका तुरंत निदान करना भी आवश्यक है। इस तकलीफ के लिए दांतों की सफाई के साथ ही, स्केलिंग, रूट प्लानिंग तथा औषधियों का उपयोग उपचार के लिए किया जाता है। इसके अलावा यदि केस गंभीर अवस्था में है तो सर्जरी का विकल्प भी होता है। इ

 

पर्यावरण को सहेजकर रखेंगे ये गैजेट्स

तकनीक की दुनिया में कई ऐसे गैजेट्स व एप्स सामने आए हैं, जो न केवल हमारी जीवनशैली आसान बना रहे हैं बल्कि पर्यावरण को भी सहेजकर रखने में मदद कर रहे हैं। एयर प्यूरिफायर हो या फिर प्रदूषण का स्तर बताने वाली एप, इन सभी के साथ हम पर्यावरण के प्रति जागरूक रह सकते हैं।

पौधे वाला ग्रीटिंग कार्ड

आम ग्रीटिंग कार्ड से अलग किसी पर्यावरण प्रेमी को आप “गिफ्ट-अ-ग्रीन” ग्रीटिंग कार्ड भेंट कर सकते हैं। कनाडा की एक कंपनी ने ऐसा ग्रीटिंग कार्ड बनाया है, जिसके आप पौधे भी लगा सकते हैं। यह एक पाउच की तरह ही है, जिसमें मिट्टी और बीज उपलब्ध है। आपको केवल पाउच खोलकर पानी डालना होगा। दो सप्ताह बाद इसमें पौधे लग जाएंगे। इस पाउच के ऊपर ग्रीटिंग कार्ड के संदेश भी लिखे हुए हैं।

पानी बचाएगा “वॉटरपेबल”

अमेरिका के फ्लोरिडा शहर की एक कंपनी ने पानी की बचत के लिए “वॉटरपेबल” नामक एक छोटी-सी डिवाइस बनाई है। इसे मुख्य रूप से शावर में उपयोग किए जाने वाले पानी को कम करने के लिए बनाया गया है। सेंसर से चलने वाली यह डिवाइस खुद के आस-पास बहने वाले पानी का विश्लेषण करती है और पिछले बार की तुलना में हर बार पानी की मात्रा की जानकारी देती है। कंपनी का दावा है कि इस डिवाइस के उपयोग से 90 हजार गैलन तक पानी की बचत हो सकती है।

पौधों में खुद पानी डालेगी मशीन

यह एक ऐसा उपकरण है, जो तय समय पर खुद ही आपके पौधों को पानी डालेगा। इसमें लगा वाटर गेज पानी के स्तर की स्थिति बताता रहेगा और कम होने पर तुरंत अलर्ट दे देगा। एक बार में यह अपने आप ही दो सप्ताह तक पौधों में पानी डाल सकेगा।

“क्लैरी” एयर प्यूरिफायर

अमेरिका की एक कंपनी ने “क्लैरी” नामक एयर प्यूरिफायर बनाया है, जो हवा को स्वच्छ रखने के साथ-साथ घर में सजावट के तौर पर भी रखा जा सकता है। उपकरण में कुछ पौधे भी लगे हैं, जिसमें हवा को स्वच्छ करने के लिए “बायो फिल्टर” क्षमता है। इसमें वाई-फाई सुविधा भी है। प्यूरिफायर के साथ मिलने वाली एप से आप स्मार्टफोन पर घर में प्रदूषण के स्तर की लाइव रिपोर्ट हासिल कर सकते हैं।

 

नशे से मुक्ति के लिए जरूरी है ध्यान

हमें इस बात को समझना चाहिए की किसी भी प्रकार के नशे की लत आम तौर पर रातों रात नहीं होती अपितु यह एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसका असर कुछ वर्षों पूर्व दिखाई पडऩे लगती है।

हाल ही में एक ऑस्ट्रेलियाई युवा लडक़े द्वारा आइस ड्रग नामक नशीले द्रव्य के प्रभाव में अपनी ही आंखों को निकालकर खा जाने की भयंकर खबर ने समस्त जगत को हिलाकर रख दिया है और हमें गहराई से यह सोचने पर मजबूर कर दिया की इस तरह के प्रलोभन जो हमारे जीवन के लिए घातक हैं, उनके अंदर इस तरह फंसना, कहां की समझदारी है?

वर्ष 2012 में भारत सरकार के स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा किये गये सर्वेक्षण के आंकड़े यह दर्शाते हैं कि 15-19 वर्ष की आयु के 28.6 प्रतिशत लडक़े तंबाकू का सेवन करते हैं और 15प्रतिशत लडक़े शराब के आदी है। इसी प्रकार से 15-19 वर्ष की आयु की 5.5प्रतिशत लड़कियां तबाकू का सेवन करती हैं और 4 प्रतिशत शराब की आदी हैं।

क्या यह चौंकाने वाली बात नहीं है। इससे भी अधिक चौंकाने वाली बात है हमारे समाज द्वारा इन बच्चों की मदद करने के बजाय उनका तिरस्कार कर उन्हें समाज से बाहर निकालना। समाज के एक अंग के रूप में हमें इस बात को समझना चाहिए की किसी भी प्रकार के नशे की लत आम तौर पर रातों रात नहीं होती अपितु यह एक क्रमिक प्रक्रिया है, जिसका असर कुछ वर्षों पूर्व दिखाई पडऩे लगती है।

ऐसे नशेड़ी शुरू-शुरू में जिज्ञासावश अपने मनोरंजन के लिए नशीली दवाओं का सेवन कर उसका आनंद उठाते हैं, परन्तु थोड़े ही समय में वह एक ऐसी कठिन आदत में तदील हो जाती है जो आगे चल कर उनके विनाश का कारण बनती है। सामाजिक वैज्ञानिकों के अनुसार ऐसे नशेडिय़ों की शारीरिक, मानसिक और आर्थिक हालत तो खराब होती ही हैं, किन्तु उसके साथ-साथ सामाजिक वातावरण भी प्रदूषित होता है और उनके परिवार की सामाजिक स्थिति को भी भारी नुकसान पहुंचता है। ऐसे व्यक्ति फिर सभी के लिए बोझ स्वरुप बन जाते हैं और समाज में एवं राष्ट्र के लिए उनकी उपादेयता शून्य हो जाती है।

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार ज्यादातर नशीली दवाओं के नशेड़ी काफी अपरिपक्व स्वभाव के होते हैं और असुरक्षित व्यक्तित्व से ग्रस्त होते हैं, परिणामस्वरूप उनके आत्मविश्वास का स्तर बिलकुल निम्न होता है। मनोचिकित्सा क्षेत्र में की गई शोध के अनुसार ऐसे लोगों को विभिन्न मनोवैज्ञानिक समस्याओं का सामना करना पड़ता हैं, विशेषत: अपने करीबी परिवार से इन्हें काफी जूझना पड़ता है।

पिछले कुछ वर्षों में किए गए अनुसंधान में स्पष्ट रूप से यह साबित हुआ है कि मैडिटेशन (ध्यान धारणा) नशामुक्ति के लिए एक प्रभावी साधन है। शोधकर्ताओं ने नशामुक्ति केंद्र में रखे नशेडिय़ों के एक झुंड की जांच के दौरान यह पाया कि उनमें से जिन्हें मेडिटेशन की तालीम दी गई थी, उनके अंदर सकारात्मक परिणाम देखा गया, जबकि जिन्हें पारंपरिक उपचार दिया गया, वे काफी आक्रामक और फिर सुन्न बन गये।

इसलिए यह कहने में कोई मुश्किलात नहीं होनी चाहिए की ड्रग्स की लत के उन्मूलन के लिए मेडिटेशन यथोचित उपाय है। किन्तु कुछ लोगों के मन में यह प्रश्न उठता है की मेडिटेशन ही क्यों? क्योंकि विज्ञान द्वारा यह सिद्ध किया गया है की यह मस्तिष्क की महत्वपूर्ण कोशिकाओं को सजीव कर व्यक्ति के भीतर आत्म जागरूकता बढ़ाने का कार्य करता है और उसे संयमी बनता है और किसी भी तरह के नशे से मुक्ति के लिए संयम आवश्यक है।

नशे से दूर रहना है तो अपने हितों के प्रति जागरूक रहें : संयम कई समस्याओं का समाधान है, लेकिन जहां तक नशामुक्ति का सवाल है संयम से बेहतर और कोई दूसरा विकल्प नहीं है। वास्तव में यदि हम अपने हितों के प्रति जागरुक रहते हैं तो हम किसी भी नशे की चपेट में आ ही नहीं सकते, पर यदि आ भी जाए तो थोड़ा सा संयम और आत्म प्रेरणा द्वारा हम इस धीमे जहर से सहज ही मुक्त हो सकते हैं। तो आइए आज से यह पाठ पक्का करें कि नशा नाश की जड़ है, अत: इससे बचकर रहने में ही भलाई है। जो समझदार हैं वह नशे को नाश कहकर जीवन का चयन करेगा।

– (साभार)

जो कभी करते थे चोरी, इस लेडी कांस्टेबल ने उन्हें बनाया राष्ट्रीय खिलाड़ी

पटना.जो बच्चे कभी नशे के लिए चोरी करते थे, उन्हें एक महिला कांस्टेबल ने मेडल जीतना सिखा दिया। ये कांस्टेबल हैं- रंजीता कुमारी सिंह जो इंडियन वुमन फुटबॉल टीम की पूर्व खिलाड़ी हैं। रंजीता बिहार के मुंगेर एसएसपी ऑफिस में तैनात हैं। रंजीता बताती हैं- मैं सड़कों पर जब बेघर बच्चों को बोनफिक्स (एक प्रकार की बाम) का नशा करते देखती तो उनके भविष्य के बारे में सोचकर ही कांप जाती थी।

रंजीता ने बताया कि नशा करने वाले कुछ बच्चे तो चोरी तक करने तक लगे थे।  कुछ ऐसे भी थे जो मजदूरी या फेरी लगाने वाले परिवार से थे। इनके जीवन को दिशा देने के लिए रंजीता ने अपना हुनर इन्हें सिखाने की ठानी। वे फुटबॉल खेलती थीं तो बच्चों को ग्राउंड पर बुलाना शुरू कर दिया। यह शुरुआत भी आसान नहीं थी। पहले तो उनके माता-पिता फिर बच्चों की काउंसलिंग करनी पड़ी। बच्चे धीरे-धीरे ग्राउंड पर आने लगे। अब रंजीता इन बच्चों को रोज मुंगेर के पोलो ग्राउंड में सुबह छह से आठ बजे और शाम पांच से अंधेरा होने तक ट्रेनिंग कराती हैं।

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रंजीता का प्रयास अब आकार भी लेने लगा है, उसकी कोचिंग से फुटबॉल सीखे 50 से ज्यादा बच्चे 12 से 16 आयु वर्ग की नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा ले चुके हैं।इनमें नौ बच्चे तो ऐसे हैं, जो कभी नशे की लत के शिकार थे। रंजीता खुद 20 से ज्यादा बच्चों का स्कूलों में एडमिशन करवा चुकी हैं।

रंजीता से फुटबॉल कोचिंग ले रहा शशि कहता है- मैं नशा करता था। दीदी ने कई बार समझाया। फिर ग्राउंड पर आने लगा। नशा कब छूट गया, पता ही नहीं चला। 11वीं में हूं। छह बार नेशनल खेल चुका हूं। एक अन्य स्टूडेंट सुधीर ने कहा- मेरे पिता सफाई कर्मी हैं। आमदनी ज्यादा नहीं थी इसलिए पढ़ाई रुक गई। दीदी ने स्कूल में दाखिला दिलवाया। फुटबॉल भी सिखाया। नेशनल खेल चुका हूं, इसलिए मुंगेर के सबसे अच्छे जिला स्कूल में स्पोर्ट कोटे से 11वीं में एडमिशन मिल गया। रंजीता से कोचिंग लिए हुए 35 बच्चे नेशनल चैंपियनशिप में खेल चुके हैं। 5 बच्चों का स्पोर्ट्स ऑथारिटी ऑफ इंडिया के लिए चयन हुआ है। दो लड़कों की इंडियन आर्मी में खेल की बदौलत नौकरी हो चुकी है। एक लड़के का रेलवे में चयन हुआ है।

कभी लड़ाई-झगड़े करने वाला कुंदन अब गोलकीपर है। बताता है- बड़े भाई अपराधी थे, उनकी हत्या हो गई। मैं भी उसी राह पर था। एक दिन दीदी आईं। पूछा- गोलकीपर बनोगे? मैंने हां कह दी। आज जिला टीम में हूं। एसएससी पास कर लिया है, नौकरी भी मिल जाएगी।

 

जेल में रहकर पिता ने बेटे को दिखायी आईआईटी की राह

कोटा.राजस्थान के कोटा में हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे शिक्षक पिता का बेटा पीयूष अब आईआईटीयन बनेगा। पीयूष की उपलब्धि इसलिए भी खास है क्योंकि उसने पिता के साथ खुली जेल की 8X8 फीट की छोटी से कोठरी में रहकर ही पढ़ाई की।

बेटे की पढ़ाई में कोई कमी न रह जाए इसलिए पीयूष के पिता फूलचंद मीणा दिनभर मजदूरी करते थे। पीयूष शाम 6 बजे से रात 2 बजे तक कोठरी के बाहर ही बैठा रहता था। रिजल्ट आया उसकी एसटी वर्ग में 453वीं रैंक आई।  बता दें कि पीयूष के पिता फूलचंद मीणा सरकारी टीचर थे। 2001 में हत्या के आरोप में फूलचंद, उनके भाई, तीन भांजे व पिता सजा काट रहे हैं।

फूलचंद सहित 5 लोगों को 2007 में आजीवन कारावास की सजा हो गई। जेल में फूलचंद से जब भी उनकी पत्नी मिलने आती वो उससे बेटे पीयूष मीणा की पढ़ाई पर ध्यान देने को कहते। इस दौरान अच्छे व्यवहार के चलते फूलचंद को कोटा की खुली जेल में रख दिया। इसके बाद उन्होंने पत्नी और बेटे पीयूष को अपने पास ही बुला लिया। पढ़ाई में पैसे की कमी न आए इसलिए फूलचंद ने मजदूरी कर ली। इसके बावजूद कोचिंग में एडमिशन के लिए पैसे कम पड़े तो रिश्तेदारों से उधार लेकर बेटे का एडमिशन करवाया। – पैसों की तंगी के चलते पीयूष को हॉस्टल में नहीं रख सकते थे। पीयूष ने जेल की कोठरी में ही रहकर सालभर पढ़ाई की।

खुली जेल में मीणा की कोठरी इतनी छोटी थी कि उसमें तीन लोग ठीक तरह से रह नहीं सकते थे। इसके चलते उन्होंने बेटे का कोचिंग में एडमिशन करवाने के बाद पत्नी को गांव भेज दिया। पीयूष जेल से ही टेम्पो से कोचिंग पढ़ने जाता था और रोज घर पर 6 से 8 घंटे पढ़ता था।

पीयूष ने बताया कि पिता ने ही मुझे इंजीनियरिंग की तैयारी करने का हौसला दिया। परिवार वालों ने मना किया कि पैसे नहीं है और कोचिंग करना बेकार है। शुरुआत में कोचिंग में रिजल्ट ठीक नहीं रहा तो तनाव में आ गया। सोचा कि अगर सफल नहीं हुआ तो पिता के सम्मान को ठेस पहुंचेगी। पिता ने समझाया कि तनाव नहीं ले और केवल पढ़ाई पर ध्यान दे। पढ़ाई के चलते सालभर किसी रिश्तेदार के यहां नहीं गया, कोई कार्यक्रम अटेंड नहीं किया।

पीयूष ने बताया कि उसका सपना आईएएस बनने कहा है। मेरे रिश्तेदार आरएएस अफसर ने भी शुरुआत में समझाया था कि पहले किसी मुकाम पर पहुंच जाओ। उसके बाद आगे के लिए रास्ते खुले रहेंगे।

 

कभी स्टेशन पर गुजारी थी रातें, अब धूम मचाते हैं इनके गाने

बिहार गया जिले के शशि सुमन की पहचान एक सफल म्यूजिक डायरेक्टर के रूप में होती है। शुरुआती दिनों में शशि ने मुंबई में स्टेशन पर कई रातें गुजारी थी। अब उनके कम्पोज किए गाने बॉलीवुड में धूम मचाते हैं।

शशि ने हालिया रिलीज ‘सरबजीत’ के नंदिया गाने का म्यूजिक कम्पोज किया है। इससे पहले उन्होंने संजय लीला भंसाली की फिल्म ‘मैरीकॉम’ में सात गानों का म्यूजिक कम्पोज किया था। गया जिले के बजौरा गांव में रहने वाले शशि सुमन को बचपन से ही संगीत में रुचि थी।

म्यूजिक के शौक के चलते शशि ने ‘इंडियन आइडल’ और ‘सारेगामापा’ में फाइनल तक का सफर तय किया। इसके बाद शशि ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा। उन्होंने इसके बाद मुंबई में ही रहना पंसद किया। शुरुआती दिनों में जब उनके पास घर नहीं था तो उन्होंने कई रातें स्टेशन पर गुजारी थी।

शुरुआती दिनों में शशि सुमन गाना गाते थे तो गांव वाले कहते थे कि गवैया बन गया है। शशि के पिता राम प्रवेश सिंह आरा में डीईओ हैं और उन्हें तबला बजाने का शौक है। उन्होंने ही शशि को तबला बजाना सिखाया और फिर इसके बाद शशि ने तय कर लिया कि उन्हें म्यूजिक में ही आगे जाना है। शशि जब थोड़ा बहुत-गाने बजाने लगे तो वे पढ़ाई छोड़कर म्यूजिक सीखने लखनऊ चले गए।

शशि ने लखनऊ में किराना घराने में संगीत गुरु गुलशन भारती से संगीत की शिक्षा ली है।  इस दौरान सारेगामा का ऑडिशन हुआ था और उसमें शशि ने भाग लिया और उनका सेलेक्शन हो गया। आदेश श्रीवास्तव ने वहीं उन्हें सुना था और प्रकाशा झा की फिल्म राजनीति के लिए ‘मोरा पिया मोसे बोलत नाहीं’ गाने का मौका दिया। इसके बाद वे 2010 में इंडियन आइडल में गये थे। इंडियन आइडल-5 के फाइनलिस्ट रहे शशि सुमन ने इस कार्यक्रम के खत्म होने के बाद मुंबई नहीं छोड़ा और वहीं जम गए। इसके बाद उन्होंने अंधेरी में एक फ्लैट लिया और स्टूडियो खोल दिया।

 

बच्चों को न लगे इंटरनेट की नजर

इस दौर के माता-पिता के पास पारंपरिक जिम्मेदारियों के साथ-साथ अब एक नई जिम्मेदारी भी आन पड़ी है अपने बच्चों को साइबर वर्ल्ड के खतरों से बचाने की। यदि आप अब इस आभासी दुनिया का हिस्सा होने जा रहे हैं तो हम आपको बता सकते हैं कि आप किस तरह अपने बच्चों के साइबर अनुभव को सकारात्मक बना सकते हैं।

पहले आप इस दुनिया का हिस्सा बनें –इस खतरे से लड़ने का सबसे पहला नियम है कि आप सूचनाओं से लैस रहें। इस दुनिया में कूद जाएं और इसके आधारभूत नियमों को समझें। इससे संबंधित लेख पढ़ें, जरूरी हो तो क्लास में जाएं, दूसरे पेरेंटस से चर्चा करें। आपको इसके लिए महारथी होने की जरूरत नहीं है। इसके लिए आप बेसिक्स ही सीख लें। यह ही आपकी मदद करेगा।

बच्चे से संवाद करें –अपने बच्चे से संवाद करें। आप उससे इंटरनेट के खतरे और फायदों की चर्चा करें। अपने बच्चों की इंटरनेट गतिविधियों पर ध्यान दें। जानें कि बच्चे की पसंदीदा वेबसाइट कौन-सी है, वह कौन-से ऑनलाइन गेम्स खेलता है और इंटरनेट पर उसकी रुचियां क्या हैं? और अपने बच्चे से यह पूछने से जरा भी नहीं हिचकें कि वह किससे चैट करता है और वे आपस में किस तरह की बातें करते हैं।

बच्चे को कुछ हिदायतें दें –बच्चे को बताएं कि वह किसी भी हालत में अपनी व्यक्तिगत जानकारी किसी अजनबी को इंटरनेट पर नहीं देगा। साथ ही यह भी कि यदि उसे इंटरनेट पर कुछ भी असुविधाजनक या आपत्तिजनक लगा तो वह तुरंत उसकी जानकारी आपको दे। अगर आप बच्चे को पहले ही हिदायत देंगे तो वह खुद भी सुरक्षात्मक कदम उठा सकेगा।

कम्प्यूटर पर नियंत्रण रखें –ऐसे सॉफ्टवेयर जिनकी मदद से आप अपने कम्प्यूटर पर कुछ साइट्स को ब्लॉक कर सकते हैं, उन्हें खोजकर उनका इस्तेमाल करें। कम्प्यूटर पर बिताने के लिए समय निश्चित कर दें। बच्चे के इंस्टेंट मैसेंजर चैट को भी प्रोटेक्ट करके रखें। इसका यह मतलब कतई नहीं है कि आप उसकी आजादी को कम कर रहे हैं बल्कि यह है कि आप उसकी सुरक्षा कर रहे हैं।

परिवार के साथ इंटरनेट का लाभ लें – आप अपने और अपने बच्चे के साथ-साथ परिवार को भी इंटरनेट से फायदा उठाने के लिए प्रेरित करें। इससे आपके साथ-साथ आपका परिवार भी बच्चे की वर्चुअल दुनिया पर नजर रख सकेगा। अगर परिवार के ज्यादातर सदस्य सोशल मीडिया पर हैं तो बच्चों की थोड़ी-बहुत निगरानी तो आसानी से हो ही सकती है।

 

भारत बना एमटीसीआर का सदस्य

 

भारत अब मिसाइल तकनीक नियंत्रण व्यवस्था (एमटीसीआर) में पूर्ण सदस्य के तौर पर शामिल हो गया है। भारत ने हाल ही में एमटीसीआर से जुड़े दस्तावज़ों पर हस्ताक्षर किए हैं. इस व्यवस्था में पहले से 34 देश सदस्य हैं और भारत इसका 35वां सदस्य बना है। विदेश मंत्रालय से जारी बयान में कहा गया है कि ”भारत एमटीसीआर के सभी 34 देशों का धन्यवाद करता है कि उन्होंने भारत की भागेदारी का समर्थन किया। ”भारत की यह एंट्री ऐसे समय में हुई है जब पिछले दिनों न्यूकलियर सप्लायर्स ग्रुप में भारत को सदस्य नहीं बनाया गया था। एमटीसीआर में चीन सदस्य देश नहीं है। एमटीसीआर, एनएसजी जैसा ही एक ग्रुप है जिसके तहत ये देश मिलकर सामान्य हथियारों, परमाणु हथियारों, जैविक और रासायनिक हथियारों और तकनीक पर नियंत्रण करते हैं। एमटीसीआर का मुख्य उद्देश्य मिसाइलों, संपूर्ण राकेट प्रणालियों, मानवरहित विमानों और इससे जुड़ी तकनीक के प्रसार को रोकना है. इसके अलावा एमटीसीआर व्यापक जनसंहार के हथियारों के प्रसार को रोकने का भी काम करता है।

 

दुनिया को ये बताना चाहती हैं प्रियंका चोपड़ा

प्रियंका चोपड़ा को स्पेन में चल रहे इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकेडमी को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का अवार्ड मिला है। प्रियंका इनदिनों हॉलीवुड की ‘बेवॉच रिबूट’ में ‘ड्वेन ‘द रॉक’ जॉनसन और ज़ैक एफ़रन के साथ शूटिंग में व्यस्त हैं। बेवॉच में वो निगेटिव किरदार में हैं जो उन्हें पसंद है। उन्होंने कि उन्हें अमरीका में आए साल भर ही हुए हैं और अभी लंबी दूरी तय करनी है। वह कहती हैं कि वो दुनिया को यह बताना चाहती हूं कि बॉलीवुड में सिर्फ गाने पर डांस करने वाले हम जोकर नहीं हैं. ‘मैं दुनिया को बताना चाहती हूं कि भारत के कलाकार ‘जोक’ नहीं हैं। ‘”लोग सोचते हैं कि हम हॉलीवुड की नक़ल कर रहे हैं लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं है। हम दुनिया में सबसे तेजी से बढ़ रही इंडस्ट्री में से एक हैं। हम हिंदी बोलते हैं जो सिर्फ़ एक ही देश में बोली जाती है लेकिन हमारी इंडस्ट्री का चालीस प्रतिशत व्यवसाय भारत के बाहर से आता है।.”