Sunday, August 17, 2025
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‘ऑपरेशन सिंदूर’ : असम के उद्यमी ने भारतीय सेना के लिए तैयार की विशेष चाय

गुवाहाटी । पाकिस्तान में भारतीय सेना के ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के एक्शन से देशभर में गर्व और उत्साह की लहर है। इसी जज़्बे को शब्दों और कार्यों में बदलते हुए असम के गुवाहाटी स्थित एक उद्यमी ने अनोखे तरीके से भारतीय सेना को सलाम किया है। भारतीय सेना की वीरता को सलाम करते हुए एक विशेष चाय ‘सिंदूर: द प्राइड’ लॉन्च की गई।
शहर के प्रमुख चाय उद्यमी और एरोमिका टी के निदेशक रंजीत बरुआ ने भारतीय सेना की वीरता को सलाम करते हुए एक विशेष चाय “सिंदूर द प्राइड” लॉन्च की है। यह चाय 7 मई को भारतीय सेना के पाकिस्तान और पीओके स्थित आतंकियों के ठिकाने पर की गई ‘ऑपरेशन सिंदूर’ की स्मृति में तैयार की गई है। भारतीय सेना ने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ के जरिए पाकिस्तान को पहलगाम हमले के बाद करारा जवाब दिया है।
सिंदूर भारतीय समाज में सम्मान और गौरव का प्रतीक है । रंजीत बरुआ ने बताया कि “सिंदूर भारतीय समाज में सम्मान और गौरव का प्रतीक है। मैंने इसी भावना को समर्पित करते हुए यह विशेष चाय पैकेट तैयार किया है। यह किसी व्यावसायिक मंशा से नहीं, बल्कि भारतीय सेना को सलाम करने के उद्देश्य से किया गया है।” इस चाय में हलमारी गोल्डन ऑर्थोडॉक्स और सीटीसी चाय का मिश्रण किया गया है
इस चाय में हलमारी गोल्डन ऑर्थोडॉक्स और सीटीसी चाय का मिश्रण किया गया है। इसका रंग सिंदूर जैसा लाल होता है, जो परंपरा और बलिदान का प्रतीक है। साथ ही, यह पैकेट विशेष रूप से भारतीय सेना को उपहार स्वरूप भेंट किए जाएंगे।
बरुआ यह चाय पैकेट सेना को सौंपने की योजना बना रहे हैं। बरुआ ने बताया कि वह अगले सप्ताह यह चाय पैकेट सेना को सौंपने की योजना बना रहे हैं। उनका मानना है कि जैसे हर खुशी के मौके पर हम चाय के साथ जश्न मनाते हैं, वैसे ही देश की इस बड़ी सैन्य सफलता को भी एक कप विशेष चाय के साथ याद किया जाना चाहिए।

 

भार्गवस्त्र स्वदेशी ड्रोन रोधी प्रणाली का सफलतापूर्वक परीक्षण

नयी दिल्ली । भारत ने स्वदेशी रूप से विकसित की गई नई ड्रोन रोधी प्रणाली भार्गवस्त्र का सफलतापूर्वक परीक्षण किया गया है। यह कम लागत वाली ‘हार्ड किल मोड’ में काम करने वाली प्रणाली है, जिसे सोलर डिफेंस एंड एयरोस्पेस लिमिटेड (एसडीएएल) ने डिजाइन और विकसित किया है। इसका उद्देश्य ड्रोन झुंडों (स्वार्म ड्रोन) से उत्पन्न बढ़ते खतरे को कुशलता से समाप्त करना है। 13 मई को ओडिशा के गोपालपुर स्थित सीवर्ड फायरिंग रेंज में इसका परीक्षण किया गया, जिसमें भारतीय थल सेना की वायु रक्षा (एएडी) शाखा के वरिष्ठ अधिकारी भी मौजूद रहे। तीन परीक्षणों के दौरान कुल चार माइक्रो रॉकेट दागे गए- पहले दो परीक्षणों में एक-एक रॉकेट और तीसरे में दो रॉकेटों को मात्र दो सेकंड में सल्वो मोड में दागा गया। सभी रॉकेटों ने अपने लक्ष्य हासिल किए और अपेक्षित प्रदर्शन किया।भार्गवस्त्र में दो परतों वाली सुरक्षा प्रणाली है, पहले में अनगाइडेड माइक्रो रॉकेट होते हैं जो 20 मीटर के घातक दायरे में झुंड रूपी ड्रोन को समाप्त कर सकते हैं और दूसरे में पहले से परीक्षण किए गए गाइडेड माइक्रो-मिसाइल हैं जो सटीक हमले में सक्षम हैं। यह प्रणाली छोटे ड्रोन को 2.5 किलोमीटर दूर से पहचान और समाप्त कर सकती है। इसकी खास बात यह है कि इसे उच्च पर्वतीय क्षेत्रों (5000 मीटर से अधिक ऊंचाई) समेत किसी भी इलाके में आसानी से तैनात किया जा सकता है। यह प्रणाली मॉड्यूलर है, यानी इसमें अतिरिक्त सॉफ्ट किल तकनीक जैसे जैमिंग और स्पूफिंग को भी जोड़ा जा सकता है। इसका रडार, ईओ ( इलेक्ट्रो ऑप्टिकल )  और आरएफ रिसीवर सेंसर उपयोगकर्ता की जरूरत के अनुसार कॉन्फिगर किए जा सकते हैं। यह प्रणाली मौजूदा नेटवर्क-सेंट्रिक वॉरफेयर ढांचे में भी आसानी से एकीकृत की जा सकती है। इसमें एक अत्याधुनिक कमांड एंड कंट्रोल सेंटर भी है, जो सी 4I (कमांड, कंट्रोल, कम्युनिकेशन, कंप्यूटर और इंटेलिजेंस) तकनीक से लैस है। खास बात यह है कि इसका रडार 6 से 10 किलोमीटर दूर तक के सूक्ष्म हवाई खतरों को पहचान सकता है और ईओ /आईआर सेंसर के माध्यम से कम रडार क्रॉस-सेक्शन (एलआरसीएस) वाले लक्ष्यों को सटीकता से ट्रैक किया जा सकता है। इससे ऑपरेटर को झुंड या व्यक्तिगत ड्रोन को पहचानने और नष्ट करने में आसानी होगी। भार्गवस्त्र वैश्विक स्तर पर एक उल्लेखनीय नवाचार है। इसकी ओपन-सोर्स आर्किटेक्चर इसे अद्वितीय बनाती है क्योंकि दुनिया के कई विकसित देश इस प्रकार की माइक्रो-मिसाइल तकनीक पर काम कर रहे हैं, लेकिन अब तक ऐसा कोई भी बहु-स्तरीय और लागत-प्रभावी प्रणाली, जो ड्रोन झुंड को नष्ट कर सके, तैनात नहीं की गई है। यह “मेक इन इंडिया” मिशन के लिए एक और बड़ी उपलब्धि है और भारत की वायु रक्षा क्षमताओं को और अधिक सुदृढ़ बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।

सिविल जज भर्ती के लिए 3 साल की प्रैक्टिस का नियम बहाल

सुप्रीम कोर्ट ने पलटा 23 साल का नियम
नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सिविल जज की भर्ती के लिए आवेदन करने वाले उम्मीदवारों के लिए न्यूनतम तीन साल की वकालत की शर्त को बहाल कर दिया, और कहा कि अदालतों और न्याय प्रशासन के प्रत्यक्ष अनुभव का कोई विकल्प नहीं है। 2002 में, न्यायालय ने सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाओं को आकर्षित करने के लिए तीन साल की शर्त को समाप्त कर दिया था। भारत के मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) भूषण आर गवई और न्यायमूर्ति एजी मसीह और न्यायमूर्ति के विनोद चंद्रन की पीठ ने 2002 के आदेश के बाद से उच्च न्यायालयों के 20 वर्षों के अनुभव का हवाला दिया और कहा कि सिर्फ़ विधि स्नातकों की भर्ती सफल नहीं रही है। इससे कई समस्याएं पैदा हुई। पीठ ने उच्च न्यायालयों से प्राप्त फीडबैक का विश्लेषण किया, जिसमें पता चला कि न्यायाधीश के रूप में भर्ती किए गए नए विधि स्नातक न्यायालयों और मुकदमेबाजी प्रक्रिया को नहीं जानते हैं। पीठ ने कहा कि यदि मुकदमेबाजी से परिचित वकीलों को अवसर दिया जाता है, तो इससे मानवीय समस्याओं के प्रति संवेदनशीलता आएगी और बार में अनुभव बढ़ेगा।” राज्यों और उच्च न्यायालयों से प्रतिक्रिया मांगने के बाद यह आदेश पारित किया गया। अखिल भारतीय न्यायाधीश संघ ने न्यायालय में याचिका दायर कर पूछा कि क्या न्यायिक सेवा में प्रवेश के लिए न्यूनतम तीन वर्ष की विधि प्रैक्टिस को बहाल किया जाना चाहिए। पीठ ने कहा कि केवल एक प्रैक्टिसिंग वकील ही मुकदमेबाजी और न्याय प्रशासन की पेचीदगियों को समझ सकता है। इसने राज्यों और उच्च न्यायालयों को तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया में संशोधन करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने मंगलवार के फैसले के लंबित रहने के दौरान कुछ राज्यों में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित रखा था। इसने कहा कि भर्ती विज्ञापन की तिथि पर लागू नियमों के अनुसार होगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंगलवार का फैसला उन राज्यों पर लागू नहीं होगा जहां सिविल जजों (जूनियर डिवीजन) की भर्ती शुरू हो चुकी है या अधिसूचना जारी हो चुकी है।पीठ ने कहा कि केवल एक प्रैक्टिसिंग वकील ही मुकदमेबाजी और न्याय प्रशासन की पेचीदगियों को समझ सकता है। इसने राज्यों और उच्च न्यायालयों को तीन महीने के भीतर भर्ती प्रक्रिया में संशोधन करने का निर्देश दिया। न्यायालय ने मंगलवार के फैसले के लंबित रहने के दौरान कुछ राज्यों में भर्ती प्रक्रिया को स्थगित रखा था। इसने कहा कि भर्ती विज्ञापन की तिथि पर लागू नियमों के अनुसार होगी। पीठ ने स्पष्ट किया कि मंगलवार का फैसला उन राज्यों पर लागू नहीं होगा जहां सिविल जजों (जूनियर डिवीजन) की भर्ती शुरू हो चुकी है या अधिसूचना जारी हो चुकी है।

नहीं रहे परमाणु वैज्ञानिक एमआर श्रीनिवासन

चेन्नई । परमाणु वैज्ञानिक और परमाणु ऊर्जा आयोग के पूर्व अध्यक्ष डॉ. एम.आर. श्रीनिवासन का मंगलवार को तमिलनाडु के उधगमंडलम में निधन हो गया। वे 95 वर्ष के थे। भारत के सिविल न्यूक्लियर एनर्जी प्रोग्राम के प्रमुख वास्तुकार, डॉ. श्रीनिवासन ने परमाणु ऊर्जा विभाग (डीएई) में करियर सितंबर 1955 से शुरू किया, जो पांच दशकों से भी ज्यादा चला।
उन्होंने डॉ. होमी भाभा के साथ मिलकर भारत के पहले परमाणु अनुसंधान रिएक्टर अप्सरा के निर्माण में काम किया, जो अगस्त 1956 में शुरू हुआ था। 1959 में उन्हें देश के पहले परमाणु ऊर्जा स्टेशन के लिए प्रधान परियोजना इंजीनियर नियुक्त किया गया। 1967 में, उन्होंने मद्रास परमाणु ऊर्जा स्टेशन के मुख्य परियोजना इंजीनियर के रूप में जिम्मेदारी संभाली, जिसने भारत की आत्मनिर्भर परमाणु ऊर्जा क्षमताओं की नींव रखी। 1974 में वे डीएई के पावर प्रोजेक्ट्स इंजीनियरिंग डिवीजन के निदेशक बने और एक दशक बाद न्यूक्लियर पावर बोर्ड के अध्यक्ष का पद संभाला।
उनके नेतृत्व में देश ने अपने परमाणु बुनियादी ढांचे में तेजी से विकास देखा, जिसमें श्रीनिवासन ने भारत भर में प्रमुख बिजली संयंत्रों की योजना, निर्माण और कमीशनिंग की देखरेख की। 1987 में उन्हें परमाणु ऊर्जा आयोग का अध्यक्ष और परमाणु ऊर्जा विभाग का सचिव नियुक्त किया गया। उसी साल वे न्यूक्लियर पावर कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (एनपीसीआईएल) के संस्थापक अध्यक्ष भी बने। उनके कार्यकाल में उल्लेखनीय विस्तार हुआ और उनके मार्गदर्शन में 18 परमाणु ऊर्जा इकाइयां विकसित की गईं, जिनमें सात चालू हो गई थीं और सात निर्माणाधीन थीं। इसके अलावा, चार योजना चरण में थीं।
परमाणु विज्ञान और इंजीनियरिंग के क्षेत्र में उनके अनुकरणीय योगदान के लिए डॉ. श्रीनिवासन को भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सम्मानित किया गया। उनकी बेटी शारदा श्रीनिवासन ने परिवार की ओर से जारी एक बयान में कहा, “दूरदर्शी नेतृत्व, तकनीकी प्रतिभा और राष्ट्र के प्रति अथक सेवा की उनकी विरासत भविष्य की पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी।”
डॉ. श्रीनिवासन की मृत्यु भारत के वैज्ञानिक और तकनीकी इतिहास में एक युग का अंत है। वे अपने पीछे एक ऐसी स्थायी विरासत छोड़ गए हैं, जिसने देश की प्रगति और ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ावा देने में मदद की।

तुलसीदास का काव्य प्रेम का आख्यान है : प्रो.हरिश्चंद्र मिश्र

मिदनापुर । राजा नरेंद्र लाल खान महिला महाविद्यालय (स्वायत्त), मेदिनीपुर, के हिन्दी विभाग की ओर से भक्ति के विकास में तुलसीदास की भूमिका विषय पर एक विशेष व्याख्यान का आयोजन किया गया। इस अवसर पर विषय विशेषज्ञ के तौर पर उपस्थित थे विश्व भारती, शांतिनिकेतन के अवकाश प्राप्त प्रोफेसर हरिश्चंद्र मिश्र । बांग्ला विभाग की प्रोफेसर अनिता साहा ने सभी अतिथियों का स्वागत करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम विद्यार्थियों की शिक्षा को गति देने में सहायक सिद्ध हो सकते हैं।प्रो. मिश्र ने कहा प्रेम के बिना भक्ति का मार्ग नहीं तय किया जा सकता।राम की प्रसिद्धि का संदर्भ सीता के बिना संभव नहीं है।।विभागाध्यक्ष डॉ. रेणु गुप्ता ने अतिथियों एवं विद्यार्थियों का स्वागत किया।इस अवसर पर विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कुमार प्रसाद, डॉ. संजय जायसवाल, डॉ. श्रीकांत द्विवेदी उपस्थित थे। कॉलेज की छात्रा अयंतिका दास की मनमोहक संगीत और बरनाली महाता के नृत्य से कार्यक्रम आरंभ किया गया। इस संगोष्ठी में मिदनापुर कॉलेज, खड़गपुर कॉलेज और विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के विद्यार्थियों, शोधार्थियों एवं शिक्षकों ने उत्साहपूर्वक भाग लिया। कार्यक्रम का सफल संचालन सुश्री रूथ कर ने किया । धन्यवाद ज्ञापित करते हुए शिक्षिका सुमिता भकत ने कहा कि तुलसी का साहित्य राम के बनने की कथा भी है। कार्यक्रम को सफल बनाने में काॅलेज के सभी अधिकारियों का सहयोग मिला।

सेठ सूरजमल जालान गर्ल्स कॉलेज में पहली बार कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन

कोलकाता । सेठ सूरजमल जालान गर्ल्स कॉलेज में 14 मई 2025 में पहली बार प्लेसमेंट ड्राइव आयोजित की गयी। कॉलेज ने अपने अंतिम वर्ष के बी.कॉम और बी.ए. की छात्राओं के लिए पहली बार कैंपस प्लेसमेंट ड्राइव का आयोजन किया। यह कार्यक्रम सुबह 9:30 बजे से दोपहर 1:30 बजे तक आयोजित किया गया और यह युवा महिलाओं को करियर के अवसरों और आर्थिक आत्मनिर्भरता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इस पहल का नेतृत्व सीएस आयुषी खेतान ने किया, जो एक कंपनी सेक्रेटरी (सी.एस.), वाणिज्य में स्नातकोत्तर (एम.कॉम) और कॉलेज की पूर्व छात्रा भी हैं। प्राचार्या प्रज्ञा मोहंती और प्रोफेसर लुत्फुन निशा के सहयोग से आयुषी खेतान ने इस पूरी प्लेसमेंट प्रक्रिया को डिज़ाइन और संगठित किया। इस कार्यक्रम की सफलता में प्रोफेसर लुत्फुन निशा के सक्रिय मार्गदर्शन और समन्वय के लिए विशेष सराहना की गई।
इस प्लेसमेंट ड्राइव में निम्नलिखित सात प्रतिष्ठित कंपनियों और फर्मों ने भाग लिया:वी. खंडेलवाल एंड एसोसिएट्स (सी.ए. फर्म), पी.के. शाह एंड एसोसिएट्स (सी.ए. फर्म, शिखा गुप्ता एंड एसोसिएट्स (सी.ए. फर्म), आर्या मेटल्स प्राइवेट लिमिटेड, वेस्टॉक, बीटाफाइन पार्टनर्स, यूनिचॉइस एलएलपी
छात्राओं को पेशेवरों से बातचीत करने, साक्षात्कार में भाग लेने और स्नातक के बाद करियर की संभावनाओं को समझने का अवसर मिला। इस ड्राइव ने न केवल रोजगार के अवसर प्रदान किए बल्कि छात्राओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता और करियर योजना के महत्व को भी समझाया। कॉलेज की पूर्व छात्रा होने के नाते आयुषी का परिश्रम और समर्पण इस कार्यक्रम को सफल बनाने में अहम रहा, और यह महिलाओं के सशक्तिकरण तथा करियर विकास की दिशा में एक मिसाल कायम करता है। उनके योगदान ने यह दर्शाया कि कैसे एक पूर्व छात्रा अपने संस्थान को वापस कुछ देने और नई पीढ़ी का मार्गदर्शन करने के लिए प्रतिबद्ध हो सकती है।

लव या जिहाद व कागज का टुकड़ा, शॉर्ट फिल्मों की स्क्रीनिंग

कोलकाता । यूट्यूब चैनल शिव जायसवाल फिल्म प्रोडक्शन की ओर से राजार हाट के चिनार पार्क के पार्वती भवन में हाल ही में “लव या जिहाद” और “कागज का टुकड़ा ” दो हिंदी शॉर्ट फिल्मों की स्क्रीनिंग हुई। मौके पर फिल्म के निर्देशक व पटकथा लेखक शिव जायसवाल ने कहा कि प्यार करना कोई गुनाह नहीं है ,यह तो ईश्वर का वरदान है लेकिन प्यार और मोहब्बत साजिश का हिस्सा नहीं होनी चाहिए। धर्मनिरपेक्ष देश भारत में अपनी धार्मिक मान्यताओं के साथ जीना सबका मौलिक अधिकार है। बहन बेटियों को लव जिहाद के साजिशों के प्रति जागरूक करती शॉर्ट फिल्म बनाई है । फिल्म की शूटिंग कोलकाता में हुई है और कोलकाता के जाने माने कलाकारों ने इस फिल्म में अभिनय किया है। भोजपुरी गायिका व अभिनेत्री प्रतिभा सिंह, ए पी आकाश ,अलकरिया हाशमी, डॉ अभिज्ञात ,स्मिथ सिंह, चंदन यादव, संजीव रॉय,सुनील यादव ,निशांत सिंह ,रणधीर साव,राकेश सिंह व शिव जायसवाल ने अभिनय किया। फिल्म की अवधि 25 मिनट है। वहीं दूसरी फिल्म “कागज का टुकड़ा” भी शिव जायसवाल के ही निर्देशन में बनी है । इस फिल्म में एक बूढ़ी महिला के जीवन के घटनाक्रम को दिखाया गया है । । फिल्म में अभिनय करने वाले कलाकार है दादी की भूमिका में सोमा नहा, रघुनंदन जायसवाल की भूमिका में कृष्णा साव,डाकिए की भूमिका में निशांत सिंह और पोस्ट मास्टर की भूमिका में शिव जायसवाल ने जीवन अभिनय किया। कैमरा और एडिटिंग निशांत सिंह ने की है।

मां बनने के बाद आसान बनाएं काम पर वापसी

बच्चे के जन्म के बाद काम पर वापस लौटना इमोशनली और फिजिकली काफी बड़ा बदलाव होता है। साथ ही यह काफी चैलेंजिग भी होता है। कई मांएं एक तय रूटीन की तरफ लौटना और खुलकर जीना चाहती हैं, लेकिन काम पर लौटना अपने साथ हेल्थ से जुड़ी कई सारी समस्याएं भी लेकर आता है, जिस पर अक्सर ध्यान नहीं दिया जाता।
पोस्टपार्टम फटीग है प्रमुख समस्या
इन समस्याओं में सबसे आम पोस्टपार्टम फटीग की समस्या है। रात के समय बच्चे को फीड कराने और हमेशा उनकी देखभाल में लगे रहने की वजह से नींद पूरी नहीं हो पाती, जोकि एनर्जी के स्तर और एकाग्रता पर बहुत बुरा असर डालती है। इसकी वजह से नई मॉम को अच्छी तरह काम करने में परेशानी का सामना करना पड़ता है। अक्सर ऐसा होता है कि यह फटीग या थकान पोस्टपार्टम डिप्रेशन या एंग्जायटी की वजह से और भी बढ़ जाती है। 7 में से 1 महिला इससे प्रभावित होती है और अगर इस पर ध्यान न दिया जाए, तो उनके इमोशनल हेल्थ तथा वर्कप्लेस पर उनकी परफॉर्मेंस बिगड़ सकती है।
मां बनने के बाद होती हैं ये समस्या
मैटरनिटी लीव के बाद भी शारीरिक रूप से स्वस्थ होने में लंबा समय लगता है। कई महिलाओं को लगातार पेल्विक पेन, बैकपेन सताता रहता है या फिर वे सर्जरी की रिकवरी से जुड़ी समस्याओं से जूझ रही होती हैं। ब्रेस्टफीड करा रही मांओं को काम पर फीड कराना खर्चीला और इमोशनली चुनौतीपूर्ण हो सकता है, खासकर अगर वहां पम्पिंग के लिए पर्याप्त जगह या समय ना हो।
“बाउंस बैक” करने का दबाव नई मांओं को अपनी ही सेहत को नजरअंदाज करने, खाना न खा पाने, बीमारी के लक्षणों को टालने या फिर फॉलो-अप के अपॉइंटमेंट मिस कर देने की स्थिति पैदा कर सकता है।
ऐसे मिल सकती है मदद – अपने सहकर्मियों के समर्थन से काफी बड़ा फर्क आ सकता है। फ्लेक्सिबल शेड्यूल, काम की जगह पर ही चाइल्डकेयर की सुविधा, लैक्टेशन के लिए एक अलग कमरा और संवेदनशील सुपरवाइजर्स, इस बदलाव को आसान बनाने में मदद कर सकते हैं। साथ ही मांओं के फिजिकल और मेंटल रिकवरी में भी मदद कर सकते हैं।
नयी मांओं की जिंदगी में काम पर वापसी करना एक बहुत बड़ी उपलब्धि है, लेकिन इसके साथ आने वाली सेहत से जुड़ी समस्याओं को समझना और उन्हें दूर करना भी उतना ही जरूरी है। चाहे परिवार हो या वर्कप्लेस जागरूकता, सहयोग और संवेदना से यह तय किया जा सकता है कि मांएं सिर्फ काम पर वापसी ही नहीं करेंगी, बल्कि स्वस्थ भी रहेंगी।

मातृ दिवस विशेष : मां हैं आप……रखिए अपना ख्याल

मां बनना उन सुखद एहसासों में से एक है, जिसे हर महिला पूरे दिल से निभाना चाहती है, लेकिन कई बार इसके लिए सेहत को नजरअंदाज करने की कीमत भी चुकानी पड़ती है। हालांकि, अपना ख्याल रखने के लिए बहुत ज्यादा समय निकालने की जरूरत नहीं होती। बस इन बातों का ख्याल रखें –
रोज सुबह खुद के लिए निकालें 10 मिनट – भागदौड़ भरा दिन शुरू करने से पहले चाहे तो माइंडफुल ब्रीदिंग कर लें, स्ट्रेचिंग या फिर गरमागर्म चाय के कप के साथ शुरुआत करें। इन छोटे-छोटे पलों से आप बेहतर महसूस करते हैं और पूरे दिन की एक पॉजिटिव शुरुआत हो जाती है।
हाइड्रेट रहें और कोई भी मील छोडें नहीं – डिहाइड्रेशन और खाने का अनियमित पैटर्न थकान और चिड़चिड़ाहट पैदा कर सकता है। इसलिए एनर्जी के स्तर को बनाए रखने के लिए अपने आस-पास पानी की बोटल और प्रोटीन से भरपूर स्नैक जैसे नट्स या दही रखें।
थोड़ा-थोड़ा मूव करते रहें -आपको पूरा वर्कआउट करने की जरूरत नहीं। सीढ़ियों से आना-जाना कर सकती हैं, वॉक करते हुए कॉल ले सकती हैं या फिर काम के बीच सिर्फ 5 मिनट की स्ट्रेचिंग कर सकती हैं। मूवमेंट करते रहने से मूड अच्छा रहता है और मेटाबॉलिज्म भी बेहतर होता है।
नींद से कोई समझौता नहीं -7-8 घंटे की अच्छी नींद लें। अगर छोटे बच्चे के साथ ऐसा करना संभव नहीं हो पा रहा, तो जब बच्चा सो रहा हो तो बीच-बीच में नैप लेने की कोशिश करें या स्क्रीन पर वक्त बिताने की बजाय कोई सुकून देने वाले म्यूजिक के साथ खुद को आराम दें।
नियमित स्वास्थ्य जांच कराएं – मांएं अक्सर अपनी ही सेहत को नजरअंदाज कर देती हैं। साल में एक बार गाइनेकोलॉजिस्ट को दिखाना, बीच-बीच में खुद अपने ब्रेस्ट जांचना, थायरॉइड या विटामिन- डी की जांच करवाना बेहद जरूरी है।
बिना झिझक मदद को कहें हां – मदद लेना और बीच-बीच में ब्रेक लेना स्वार्थी हो जाना नहीं हैं- यह बहुत जरूरी है। किसी भी बच्चे के लिए मेंटली और फिजिकली हेल्दी मांएं सबसे अच्छा तोहफा है।

प्रेरणा हैं कर्नल सोफिया कुरैशी और विंग कमांडर व्योमिका सिंह

पहलगाम में पर्यटकों की नृशंस हत्या करने के बदले में भारत की पाकिस्तान पर स्ट्राइक की सफलता की जानकारी देने वाली भारतीय सुरक्षा बलों की दो महिला सैन्य अधिकारियों ने देश में महिलाओं के विपरीत हालात के बीच महिला सशिक्तकरण का सशक्त उदाहरण पेश किया है। देश भर में चर्चित लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिय़ा क़ुरैशी और वायु सेना में विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने साबित कर दिया कि महिलाएं अदम्य साहस के साथ किसी भी चुनौती को स्वीकार करने के लिए तैयार हैं। निश्चित तौर पर युद्ध जैसी स्थिति के दौरान इन दोनों सैन्य अधिकारियों ने जिस शानदार तरीके से स्ट्राइक का विवरण पेश किया, उससे न सिर्फ महिलाओं में उत्साह का संचार होगा बल्कि हर मुश्किल हालात से निपटने के लिए साहस का उद्गम होगा।  पुणे में साल 2016 में आसियान प्लस देशों का बहुराष्ट्रीय फील्ड प्रशिक्षण अभ्यास फोर्स 18 में 40 सैनिकों की भारतीय सेना की टुकड़ी का नेतृत्व सिग्नल कोर की महिला अधिकारी लेफ्टिनेंट कर्नल सोफिय़ा क़ुरैशी ने किया था। कुरैशी को बहुराष्ट्रीय अभ्यास में भारतीय सेना के प्रशिक्षण दल का नेतृत्व करने वाली पहली महिला अधिकारी बनने का दुर्लभ गौरव हासिल हुआ। गुजरात निवासी सैन्य परिवार से आने वाली सोफिय़ा क़ुरैशी साल 1999 में 17 साल की उम्र में शॉर्ट सर्विस कमीशन के ज़रिए भारतीय सेना में आई थीं। उन्होंने छह साल तक संयुक्त राष्ट्र की शांति सेना में भी काम किया। इसमें साल 2006 में कॉन्गो में एक उल्लेखनीय कार्यकाल शामिल है। उस वक़्त उनकी प्रमुख भूमिका शांति अभियान में ट्रेनिंग संबंधित योगदान देने की थी। सोफिया कुरेशी के अलावा ऑपरेशन सिंदूर की कामयाबी की ब्रीफिंग देने वाली विंग कमांडर व्योमिका सिंह दूसरी चर्चित अधिकारी थीं। व्योमिका सिंह भारतीय वायु सेना में हेलीकॉप्टर पायलट हैं। उनके नाम का मतलब ही आसमान से जोडऩे वाला है। नेशनल कैडेट कोर (एनसीसी) की कैडेट रही व्योमिका सिंह ने इंजीनियरिंग की। उन्हें साल 2019 में भारतीय वायुसेना के फ्लाइंग ब्रांच में पायलट के तौर पर परमानेंट कमीशन मिला। व्योमिका सिंह ने 2500 घंटों से ज्य़ादा उड़ान भरी है। उन्होंने जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर भारत में मुश्किल हालात में चेतक और चीता जैसे हेलीकॉप्टर उड़ाए हैं। उन्होंने कई बचाव अभियान में भी अहम भूमिका निभाई है। इनमें से एक ऑपरेशन अरुणाचल प्रदेश में नवंबर 2020 हुआ था। इन दोनों महिला सैन्य अधिकारियों ने जिस आत्मविश्वास और दृढ़ता से ऑपरेशन सिंदूर की सफलता की गाथा पेश कि वह न सिर्फ देशवासियों के दिल-दिमाग में अमिट रहेगी बल्कि तमाम बाधाओं के बावजूद महिलाओं में आगे बढऩे की ललक कायम रखेगी। इनके जज्बे ने साबित कर दिया कि महिलाऐ देश में हर क्षेत्र में तरक्की का परचम लहरा रही हैं, चाहे वह क्षेत्र सैन्य जैसा चुनौतीपूर्ण और साहसिक क्षेत्र ही क्यों न हो। देश में महिला सशिक्तकरण की दिशा में इन दोनों महिलाओं का प्रदर्शन महत्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। महिलाओं के सपने पूरा करने में मदद करेगा। देश के विभिन्न क्षेत्रों में महिलाओं का अग्रणी प्रदर्शन विकसित बनने की दिशा में अग्रसर भारत की नई तस्वीर पेश करता है।