Saturday, August 16, 2025
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सिंधु घाटी सभ्यता का हिस्सा रही है हमारी बांधनी

-मौमिता भट्टाचार्य

भारत में कई तरह के कपड़े और उनसे बने पारंपरिक परिधानों का क्रेज कभी भी कम नहीं होता है। लेकिन इन दिनों पारंपरिक कपड़ों से मॉडर्न या यूं कहे फ्यूजन परिधानों का फैशन हर किसी के सिर चढ़कर बोल रहा है। भारत के देसी फैशन को दुनिया भर के सामने लाने और उन्हें फैशन स्टेटमेंट बनाने में अंबानी परिवार के योगदान को कम नहीं आंका जा सकता है। हाल ही में परिवार की लाडली ईशा अंबानी की कुछ तस्वीरें सोशल मीडिया पर खुब पसंद की जा रही है, जिसमें वह बांधनी के कपड़े से बना फ्यूजन गाउन में नजर आ रही है। इस गाउन में ईशा किसी देसी राजकुमारी जैसी ही दिख रही हैं। लेकिन बांधनी, जिसे बंधेज भी कहा जाता है, क्यों इतना खास है कि ईशा अंबानी ने उसे अपने इस लुक के लिए चुना?
क्या है बांधनी का इतिहास और किस तरह से यह बन गया भारत का फैशन स्टेटमेंट?
सबसे पहले समझ लेते हैं कि बांधनी है क्या? बांधनी कपड़े या फेब्रिक का कोई प्रकार नहीं बल्कि यह प्रिंट का प्रकार है। बांधनी को अंग्रेजी के Tie & Dye की छोटी या फिर शायद बड़ी या फिर जुड़वा बहन समझा जा सकता है। कुछ मिलाकर यह कहा जा सकता है कि बांधनी, बंधेज और Tie & Dye एक ही परिवार का हिस्सा या एक ही इंसान के अलग-अलग नाम हैं।
गुजरात, राजस्थान, पंजाब और सिंध प्रांत के कई हिस्सों में सफेद कपड़ों को बड़े ही कलात्मक तरीके से बांधकर रंगों में डूबोकर जटिल कलाकृतियां बनायी जाती है। इन राज्यों में बांधनी या बंधेज प्रिंट की साड़ियां, दुपट्टे, सलवार सूट से लेकर अब तो गाउन, कुर्ते, कुर्तियां और यहां तक कि को-ऑर्ड सेट, जंप सूट, मिड लेंथ फ्रॉक और न जाने कितनी कुछ बनायी जाती है।


अब जरा इसके इतिहास पर नजर डाल लें
बांधनी की शुरुआत आधुनिक भारत में नहीं बल्कि करीब 5000 साल पहले हुई मानी जाती है। कहा तो यहां तक जाता है कि सिंधु घाटी सभ्यता की खुदाई में भी बांधनी जैसी प्रिंट के मिलने के सबूत मिल चुके हैं। इतना ही नहीं, अजंता की उन गुफाओं में जहां भगवान गौतम बुद्ध के जीवन को दर्शाया गया है, वहां भी कई चित्रों में बांधनी जैसे प्रिंट दिखाई दिये हैं। इससे साबित होता है कि करीब 6वीं शताब्दी में भी भारत में बांधनी और बंधेज की मौजूदगी थी।
बांधनी में मुख्य रूप से लाल और नीले रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। आपने भी नीली रंग की इंडिगो साड़ियों में खासतौर पर स्कूल और ऑफिस जाती महिलाओं को जरूर देखा होगा और लाल रंग तो भारत में सुहाग का प्रतीक होता है। इसके अलावा श्रावण के महीने में महिलाएं हरी बांधनी की साड़ियां और दुपट्टे में खूब सजती हैं।
कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि बांधनी पिछले 5000 सालों से फैशन में थी, है और उम्मीद की जा रही है कि यह आगे भी रहने वाली है। तो जरा एक बार अपनी अलमारी को भी टटोल लिजीए और चेक किजीए… आपके पास बंधेज प्रिंट में कौन सी ड्रेस, साड़ी या सलवार सूट रखी हुई है।
और अगर नहीं है तो गुजरात के भूज, जामनगर, पोरबंदर, राजकोट, राजस्थान के जयपुर, उदयपुर, अजमेर, बीकानेर, चुरु आदि शहरों का जरूर रूख किजीए। क्योंकि यहां आपको मिल जाएंगे ओरिजीनल बंधेज से बनी सूती, मलमल या फिर सिल्क के ड्रेस मटेरियल, साड़ी, दुपट्टा या फिर फेब्रिक…जिनसे सिलवा सकेंगी आप अपनी मनपसंद कोई फ्यूजन ड्रेस। ठीक वैसे ही, जैसा ईशा अंबानी ने हाल ही में पहना बंधेज का गाउन।

गुमनाम रह गयीं भारत की पहली महिला पहलवान हमीदा बानू

कुश्ती को तो खासतौर पर मर्दों का खेल समझा जाता था. आज भी जहां कई जगहों पर महिलाओं को पुरुषों से कम आंका जाता है। वहीं उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर में करीब 1924 में जन्मीं हमीदा बानू ने 1940-50 के दशक में साबित कर था कि महिलाएं भी कुछ कर सकती हैं। हमीदा बानू को भारत की पहली महिला पहलवान माना जाता हैय़ हमीदा बानू एक ऐसी महिला पहलवान थीं, जो मैदान में उतरती तो अच्छे-अच्छे पहलवान हाथ खड़े कर देते। न सिर्फ महिला पहलवान, बल्कि पुरुष पहलवानों के भी हमीदा बानू के सामने पसीने छूट जाते थे। उनका नाम देखकर ही बड़े-बड़े पहलवान कुश्ती मुकाबले से अपना नाम वापस ले लेते थे.
जब दो पुरुष पहलवानों को हराकर हमीदा बानू गुजरात के बड़ौदा में मुकाबले के लिए पहुंचीं, तो उनके सामने लड़ने वाले पहलवान ने पहले ही अपना नाम कटवा दिया और मैदान छोड़कर भाग गया। वह भारत की ऐसी पहली महिला पहलवान थीं, जिनके सामने इंटरनेशनल लेवल पर खेलने वाले बाबा पहलवान तक भी 2 मिनट नहीं टिक पाए थे। इसके बाद उन्होंने पहलवानी से संन्यास ले लिया था और ऐलान कर दिया था कि अब वह कोई कुश्ती नहीं लड़ेंगे। हमीदा बानू की तुलना अमेरिका की एक बेहद मशहूर पहलवान अमेजन से की जाती थी इसलिए उनका नाम भी ‘अलीगढ़ की अमेजन’ पड़ गया था। हमीदा बानू ने न सिर्फ भारत बल्कि विदेशों में भी अपना लोहा मनवाया था। उन्होंने अपनी जिंदगी में 300 से भी ज्यादा मुकाबलों में जीत हासिल की। इसमें महिला और पुरुष दोनों पहलवानों के साथ खेले गए मुकाबले शामिल हैं। साल 2024 में हमीदा बानू की याद में उनका गूगल डूडल तक बना था।
डरकर मैदान छोड़ देते थे पहलवान
जब शुरुआत में हमीदा मैदान में उतरतीं तो पुरुष पहलवान उनका मजाक बनाते थे। कई बार तो पुरुष पहलवान ये कहकर कि वह उनके साथ लड़ने के योग्य नहीं हैं। उनके साथ लड़ने से भी इनकार कर देते थे लेकिन जैसे-जैसे वक्त बीतता गया, हमीदा ने अपने आप को साबित कर दिया। फिर वह वक्त आया जब पुरुष पहलवान हमीदा बानू से डरकर मैदान छोड़ जाते थे।


एक ऐलान से मच गई थी हलचल
कुछ ही सालों में हमीदा बानू ने प्रसिद्धि हासिल कर ली।अलीगढ़ से लेकर पंजाब तक उनके नाम की चर्चा होने लगी। वह न सिर्फ भारत में बल्कि विदेशों में भी कुश्ती मुकाबलों में भाग लेने लगीं। हमीदा बानू सबसे ज्यादा तब सुर्खियों में आईं,जब 1954 में उन्होंने एक ऐलान किया कि ‘जो भी मुझे कुश्ती में हरा देगा, मैं उससे शादी कर लूंगी…’ उनके इस ऐलान के बाद हलचल मच गई।
हमीदा बानू के ऐलान के बाद कई पुरुष पहलवान उनसे मुकाबला करने पहुंचे. लेकिन उनके सामने सबने घुटने टेक दिए। इसमें उनका पहला मुकाबला पटियाला के एक कुश्ती चैंपियन से हुआ और दूसरा कोलकाता के चैंपियन के साथ हुआ था लेकिन दोनों को ही उन्होंने पराजित कर दिया था। इसके बाद तीसरे मुकाबले के लिए वह गुजरात पहुंचीं जहां के बड़ौदा में उनका तीसरा मुकाबला एक जाने माने गामा पहलवान से होने वाला था।
हमीदा बानू और गामा पहलवान
हमीदा बानू और गामा पहलवान के मुकाबले को लेकर लोग खूब उत्सुक थे। पहली बार एक पुरुष और एक महिला पहलवान का इतने बड़े स्तर पर मुकाबला होने जा रहा था। इस मुकाबले के लिए किसी फिल्म की तरह पोस्टर छपे और फिल्म की तरह ही मुकाबले का प्रचार हुआ। हालांकि उस समय लोगों को ये बात हजम नहीं हो रही थी कि एक महिला एक पुरुष पहलवान को हरा सकती है।
गामा पहलवान और हमीदा बानू के मुकाबले के लिए कुश्ती का मैदान तैयार हो गया। मुकाबला देखने के लिए बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। स्टेडियम बुरी तरह से भर गया. मुकाबला शुरू होने वाला था लेकिन इससे कुछ देर पहले ही गामा पहलवान ने अपना नाम मुकाबले से वापस ले लिया। इसके बाद अगले दिन खबरों में छपा कि गामा पहलवान ने हमीदा बानू से डरकर अपना नाम वापस ले लिया.
बाबा पहलवान को भी हरा दिया
इसके बाद उनके सामने बाबा पहलवान उतरे, लेकिन वह भी उनके सामने नहीं टिक पाए। हमीदा बानू ने बाबा पहलवान को भी 2 मिनट से कम समय में हरा दिया था। हमीदा ने बाबा पहलवान को महज 1 मिनट 34 सेकंड में ही हरा दिया था। इसके बाद बाबा पहलवान ने हमेशा के लिए कुश्ती से संन्यास ले लिया था और कुश्ती छोड़ने का ऐलान कर दिया था।
हमीदा इतनी मशहूर हो गई थीं कि उनका रहन-सहन भी सुर्खियों में आने लगा था। रिपोर्ट्स के मुताबिक हमीदा बिल्कुल पुरुष पहलवानों की तरह ही कुश्ती करती थीं. उनका वजन भी 105 किलो था और खानपान भी बहुत जबरदस्त था. वह रोज 5 किलो से ज्यादा दूध और 2 किलो से ज्यादा सूप के साथ 2 लीटर से ज्यादा फलों का जूस पीती थीं। इसके अलावा खाने में वह एक मुर्गा, एक किलो मटन और आधा किलो मक्खन के साथ 6 अंडे, एक किलो बादाम, 2 बड़ी-बड़ी रोटियां और 2 प्लेट बिरयानी खाती थीं. ये उनकी एक दिन की खुराक हुआ करती थी। उनकी लंबाई 5 फुट से ज्यादा थी।
हमीदा बानू पर बरसाए पत्थर
हमीदा बानू अपनी नींद के साथ भी कभी समझौता नहीं करती थीं. वह 9 घंटे की नींद लेती थीं और 6 घंटे एक्सरसाइज किया करती थीं. वह बहुत ताकतवर थीं। इसलिए पुरुष पहलवान भी उनके सामने घुटने टेकने पर मजबूर हो जाते थे लेकिन ये बात उस दौर के लोगों को पसंद नहीं आती थी, जिसका उन्हें कई बार सामना भी करना पड़ा। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक एक बार जब महाराष्ट्र के कोल्हापुर में उन्होंने एक पुरुष पहलवान को कुश्ती में हराया तो कुश्ती के शौकीन लोगों ने उन पर पत्थर बरसा दिए थे। उनसे ये बर्दाश्त नहीं हुआ कि एक महिला ने पुरुष पहलवान को कैसे हरा दिया।
वेरा चिस्टिलिन भी नहीं टिक पाईं
हमीदा बानू ने एक ऐसी महिला पहलवान को भी हराया था, जिन्हें ‘फिमेल बियर’ कहा जाता था। उनका मुकाबला रूस की प्रसिद्ध पहलवान वेरा चिस्टिलिन से भी हुआ लेकिन उन्हें भी हमीदा ने एक मिनट से भी कम समय में ही हरा दिया था। उन्होंने वेरा चिस्टिलिन को बहुत प्रभावित किया। वह उन्हें अपने साथ यूरोप ले जाना चाहती थीं। लेकिन ये उनके कोच और पति सलाम पहलवान को पसंद नहीं आया था। दोनों ने शादी कर ली और फिर मुंबई के नजदीक कल्याण में डेरी बिज़नेस शुरू किया। हालांकि हमीदा ने यूरोप जाकर कुश्ती लड़ने की जिद नहीं छोड़ी। बीबीसी, हमीदा बानो के पोते फिरोज शेख के हवाले से लिखता है कि सलाम पहलवान ने हमीदा बानो की इतनी पिटाई की कि उनका हाथ टूट गया। पैर में भी गंभीर चोट आई. इसके बाद कई सालों तक वह लाठी के सहारे चलती रहीं। बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक हमीदा बानू के पोते बताते हैं कि दादी को रोकने के लिए सलाम पहलवान ने उन्हें खूब पीटा था। उन्होंने दादी को इतना मारा था कि उनके हाथ-पैर टूट गए थे। इसके बाद वह कई महीनों तक चल नहीं पाई थीं। ठीक होने के बाद भी वह कई दिनों तक डंडे के सहारे से ही चलती थीं।
गुमनामी में मौत
कुछ साल बाद सलाम पहलवान अलीगढ़ लौट आए और हमीदा बानो कल्याण में ही रहीं और अपना दूध का व्यवसाय करती रहीं। बाद के दिनों उन्होंने सड़क किनारे खाने का सामान भी बेचा। साल 1986 में उनकी गुमनामी में मौत हो गई। कहा जाता है कि यहीं से उनके करियर पर ब्रेक लग गया था और उसके बाद अखबारों में उनकी उपलब्धियां सिर्फ एक इतिहास बन गयी।
(स्रोत – न्यूज 18)

अदहन_के_बहाने_शब्दों_की_समृद्धि…

अदहन गाँवो में दाल या भात बटलोही में बनता है। बटलोही सामान्यतया पीतल या कांसा के हुआ करता है। मिट्टी के चूल्हे पर इसे चढ़ा कर पकाया जाता है। लकड़ी की आग से खाना बनने पर बटलोही की पेंदी में कालिख लग जाती है। करिखा से बचाव हेतु मिट्टी का लेवा लगाया जाता है। लेवा भी गोरिया माटी का। इस हेतु पहले से ही गोरिया माटी की पिंडी बना कर घर में रख लिया जाता है, ताकि दिक्कत नहीं हो लेवा लगाने हेतु। गोरिया माटी का लेवा लगता है फिर चूल्हे पर बटलोही चढ़ाया जाता है। लकड़ी की आग सुलगाई जाती है। चूल्हा पर धुंआ निकलने हेतु खीपटे का उचकुन दिया जाता है। खीपटा खपड़े का टुकड़ा हुआ करता है। जलावन की लकड़ी जरना कहलाती है। जरना भी पूरा सूखा हुआ खन खन होता है नहीं तो मेहराएल जलावन से दिक्कत होती है।
बटलोही में नाप कर अदहन का पानी डाला जाता है। अदहन का पानी जब खूब गर्म हो जाये यानी खौलने लगे तो कहा जाता है कि अदहन हो गया अब चावल या दाल इसमें डाला जाए। अदहन की एक अलग आवाज होती है मानो कोई संगीत हो। स्त्रियां अदहन नाद पर तुरंत फुर्ती से चावल या दाल जो धुल कर रखे होते है उनको बटलोही में डाल देती है। इस डालना को चावल मेराना कहते है । चावल मेराने के पहले चावल के कुछ दाने चूल्हें में जलते आग को अर्पित किया जाता है। अग्नि यानी अगिन देवता को समर्पित। पानी से धुले चावल ही मेराया जाता है। चावल धो कर जो पानी निकलता है वह चरधोइन कहलाता है। क्योंकि चरधोइन में चावल के गुंडे का अंश होता है तो उसे फेंका नहीं जाता है बल्कि गाय,भैंस को पीने हेतु एक घड़े में जमा कर दिया जाता है। चावल जब मेरा दिया गया है तो समआंच पर चावल पकाया जाता है। समय समय पर करछुल से चावल को चलाया जाता है ताकि एकरस पके। चावल जब डभकने लगता है तो उसे पसाया जाता है। यानी माड़ पसाया जाता है। एक साफ बर्तन यानी किसी कठौते या बरगुन्ना में माड़ पसाया जाता है। यह माड़ गर्म गर्म पीने या माड़ भात खाने में जो आनंद होता है वह लिख कर नहीं समझाया जा सकता। माड़ भात सामान्यतया गरीबों का भोजन होता है पर जिसने खाया है उसे पता है कि असली अन्नपूर्णा का आशीर्वाद क्या होता है। भात पसाने हेतु बटलोही पर एक ठकनी डाली जाती है जो तब काठ की होती है। यह भात पसाना भी एक कला होती है नहीं तो नौसिखिया हाथ या पैर ही जला बैठे। ढकनी को एक साफ सूती कपड़े से पकड़ माड़ पसाया जाता है। यह साफ कपड़ा भतपसौना होता है। भोजन जब बन जाये तो भात, दाल ,तरकारी मिला कर अगिन देवता को जीमा कर घर के कुटुंब जीमते है। जीमने हेतु चौका पूरा होता है। गोरिया मिट्टी से ही धरती को एक पोतन से लीप चौका लगता है। इस चौके पर आसन पर बैठ गर्म गर्म भोजन जिसे माँ, दादी बड़े मनुहार से खिलाती है उसका आनंद अलौकिक है।
स्रोत – सोशल मीडिया

स्वच्छता सर्वेक्षण में इंदौर 8वीं बार बना ‘सबसे स्वच्छ शहर’

नयी दिल्ली । स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 के पुरस्कारों की घोषणा के साथ ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंदौर को “सुपर स्वच्छ लीग शहरों” में सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया। इंदौर दस लाख की आबादी वाली श्रेणी में भी सबसे स्वच्छ शहर रहा। स्वच्छ सर्वेक्षण 2024-25 के पुरस्कारों की घोषणा के साथ ही राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने इंदौर को “सुपर स्वच्छ लीग शहरों” में सबसे स्वच्छ शहर घोषित किया। इंदौर दस लाख की आबादी वाली श्रेणी में भी सबसे स्वच्छ शहर रहा, उसके बाद सूरत, नवी मुंबई और विजयवाड़ा का स्थान रहा। स्वच्छ सर्वेक्षण के नतीजे बृहस्पतिवार को घोषित किए गए। तीन से 10 लाख की आबादी वाले शहरों की श्रेणी में नोएडा पहले स्थान पर, चंडीगढ़ दूसरे स्थान पर और मैसूर तीसरे स्थान पर रहा। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने यहां आयोजित एक कार्यक्रम में विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए। केंद्रीय आवास एवं शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल इस कार्यक्रम में शामिल हुए। केंद्रीय आवास और शहरी मामलों के मंत्री मनोहर लाल और अन्य लोग इस कार्यक्रम में शामिल हुए। 10 जुलाई को, केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के 74वें जन्मदिन के अवसर पर उत्तर प्रदेश के लखनऊ में स्वच्छता अभियान चलाया गया। लखनऊ की महापौर सुषमा खारवाल के नेतृत्व में सफाई कर्मचारियों और स्थानीय लोगों ने स्वच्छता अभियान चलाया। समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए, लखनऊ की मेयर सुषमा खरकवाल ने कहा, “आज लखनऊ के लोकप्रिय सांसद और देश के रक्षा मंत्री का जन्मदिन है। आज लखनऊ एक बड़े स्वच्छता अभियान में हिस्सा ले रहा है। यह लखनऊ की जनता की ओर से उन्हें एक तोहफ़ा है।”

तलाक के बाद असम के माणिक ने दूध से नहाकर मनाया जश्न

नलबाड़ी । असम के नलबाड़ी जिले के माणिक अली का एक अनोखा वीडियो सोशल मीडिया पर तेजी से वायरल हो रहा है, जिसमें वह अपने तलाक का जश्न बिल्कुल अलग अंदाज में मनाते दिख रहे हैं। माणिक ने तलाक होने के बाद ‘आजादी दिवस’ मनाया और अपनी खुशी जाहिर करने के लिए दूध से स्नान किया। उनका यह अनोखा जश्न देखकर सोशल मीडिया यूजर्स हैरान रह गए हैं और इस पर तरह-तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे हैं। वायरल वीडियो में माणिक अली अपने घर के बाहर खड़े हैं और उनके पास दूध से भरी चार बाल्टियां रखी हुई हैं। वह एक-एक करके बाल्टियों का दूध अपने ऊपर उड़ेलते हैं और मुस्कुराते हुए कहते हैं, ‘आज मैं आजाद हो गया हूं।’ कुछ लोग जहां उनके तलाक की पूरी कहानी जानने को उत्सुक हैं, वहीं कुछ यूजर्स उनकी इस खुशी में शरीक होते दिख रहे हैं। वीडियो में माणिक अली ने खुद ही इस अनोखे अनुष्ठान के पीछे का कारण बताया। उन्होंने अपनी पूर्व पत्नी का जिक्र करते हुए कहा, ‘वह अपने प्रेमी के साथ भागती रही। मैं अपने परिवार की शांति के लिए चुप रहा।’ स्थानीय लोगों ने भी इस बात की पुष्टि की है कि महिला शादी के दौरान कम से कम दो बार घर से भाग चुकी थी। आखिरकार, दोनों ने आपसी सहमति से कानूनी रूप से अलग होने का फैसला किया। माणिक अली ने खुशी जाहिर करते हुए बताया, ‘मेरे वकील ने मुझे कल बताया कि तलाक हो गया है। इसलिए आज, मैं अपनी आजादी का जश्न मनाने के लिए दूध से नहा रहा हूं।’ यह घटना न केवल उनके निजी जीवन की एक असाधारण अभिव्यक्ति है, बल्कि सोशल मीडिया पर भी बहस का एक नया विषय बन गई है।

कर्नाटक में सिनेमा टिकटों की अधिकतम कीमत 200 रुपये तय

बंगलुरू । जनता के लिए सिनेमा को और अधिक किफायती बनाने के एक बड़े कदम के तहत, कर्नाटक सरकार ने कर्नाटक सिनेमा (विनियमन) नियम, 2014 में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसके तहत मनोरंजन कर सहित सिनेमा टिकटों की अधिकतम कीमत 200 रुपये प्रति शो तय की जाएगी। यह मूल्य सीमा राज्य के सभी सिनेमाघरों, मल्टीप्लेक्स और सभी भाषाओं की फिल्मों पर लागू होगी। कर्नाटक सिनेमा (विनियमन) (संशोधन) नियम, 2025 के तहत गृह विभाग द्वारा जारी मसौदा अधिसूचना 15 जुलाई को जारी की गई और प्रकाशन की तिथि से 15 दिनों तक जनता की प्रतिक्रिया के लिए खुली है। सुझाव और आपत्तियां गृह विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव, विधान सौधा को प्रस्तुत की जा सकती हैं। टिकट की कीमतों को नियंत्रित करने पर चर्चा कई वर्षों से चल रही है, लेकिन मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने 2025-26 के बजट में इस प्रतिबद्धता को दोहराया था और ₹200 की सीमा स्पष्ट रूप से बताई थी। इस कदम का उद्देश्य, विशेष रूप से शहरी मल्टीप्लेक्स में, अत्यधिक टिकट कीमतों पर अंकुश लगाना और समाज के सभी वर्गों के लिए सिनेमा तक समान पहुंच सुनिश्चित करना है।
यह पहली बार नहीं है जब कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार ने टिकट की कीमतों पर ध्यान दिया हो। 2017-18 के बजट में, पिछली सरकार ने भी एक समान टिकट दरों का प्रस्ताव रखा था और 11 मई, 2018 को एक सरकारी आदेश जारी किया गया था। हालांकि, अदालती रोक के बाद इसे वापस ले लिया गया था। इसके अतिरिक्त, इस वर्ष के बजट में, मुख्यमंत्री ने सार्वजनिक निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल के माध्यम से, बेंगलुरु के नंदिनी लेआउट में कर्नाटक फिल्म अकादमी के स्वामित्व वाले 2.5 एकड़ के भूखंड पर एक मल्टीप्लेक्स मूवी थिएटर कॉम्प्लेक्स विकसित करने की योजना की घोषणा की। कन्नड़ सिनेमा को बढ़ावा देने के लिए राज्य ने एक आधिकारिक ओटीटी प्लेटफॉर्म भी लॉन्च करने की घोषणा बजट में की है।

रूस से युद्ध के बीच यूलिया बनीं यूक्रेन की पहली महिला प्रधानमंत्री

कीव । रूस के साथ चल रहे भयानक युद्ध के बीच यूक्रेन ने अपना नया प्रधानमंत्री चुन लिया है। यूक्रेन की संसद वेरखोवना राडा में बुधवार को लिए गए एक ऐतिहासिक फैसले में यूलिया स्विरीदेंको को देश की नई प्रधानमंत्री चुना गया। संसद में हुए मतदान में 262 सांसदों ने उनके पक्ष में मतदान किया, जबकि 22 ने विरोध किया और 26 सदस्यों ने मतदान से दूरी बनाई। इस प्रकार यूलिया को बहुमत से यूक्रेन का नया प्रधानमंत्री चुना गया। राष्ट्रपति जेलेंस्की ने यूलिया को पूरा समर्थन दिया। स्विरीदेंको की उम्मीदवारी को राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेन्स्की का पूरा समर्थन प्राप्त था। राष्ट्रपति कार्यालय ने मतदान से पहले बयान जारी करते हुए कहा था कि स्विरीदेंको के पास आवश्यक प्रशासनिक अनुभव और संकट प्रबंधन की क्षमता है, जो देश को इस कठिन दौर में आगे ले जा सकती है।
प्रधानमंत्री पद पर चुने जाने के बाद अपने पहले संबोधन में स्विरीदेंको ने कहा, “यह यूक्रेन के लिए बेहद संवेदनशील और निर्णायक समय है। मेरा लक्ष्य युद्धकालीन अर्थव्यवस्था को स्थिर करना, अंतरराष्ट्रीय सहयोग को मज़बूत करना और पुनर्निर्माण प्रयासों को गति देना है।” उन्होंने यह भी ज़ोर दिया कि उनकी सरकार यूरोपीय संघ और नाटो में यूक्रेन की सदस्यता की दिशा में सुधारों को तेज़ी से आगे बढ़ाएगी।

पान बेचते हैं और बांग्ला में लिख दीं दर्जनों किताबें

राजा राममोहन रॉय रोड, कोलकाता के बीचोंबीच — जहाँ एक ओर ऑटो की तेज़ हॉर्न सुनाई देती है और दूसरी ओर ताज़े पान के पत्तों की ख़ुशबू हवा में घुली होती है — वहीं एक छोटा-सा पान की दुकान है। और उसके काउंटर के पीछे खड़ा है एक ऐसा इंसान जिसकी कहानी असाधारण है।
पिंटू पोहन, उम्र 47 साल, केवल एक पानवाला नहीं हैं। वे बांग्ला भाषा में 12 से अधिक किताबों के लेखक हैं, और ये सारी किताबें उन्होंने इसी दुकान से लिखी हैं। पास के मदनमोहनतला इलाके में गरीबी में पले-बढ़े पिंटू ने दसवीं के बाद पढ़ाई छोड़ दी थी, लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। गुज़ारा करने के लिए कभी हेल्पर बने, कभी फैक्ट्री में काम किया — जो भी मिला, करते रहे।
कई सालों बाद उन्होंने पढ़ाई फिर से शुरू की, ग्रेजुएशन पूरा किया और 2015 में बांग्ला साहित्य में मास्टर डिग्री भी हासिल की। इसी अफरा-तफरी के बीच उन्होंने कहानियाँ लिखीं, जो सानंदा, देश और आनंदमेला जैसी प्रसिद्ध पत्रिकाओं में छपीं। उनकी किताबों में परुल माशी’r छागोल छाना, झिनुककुमार, ठाकुरदार अচर्च्य गल्पो जैसी रचनाएँ शामिल हैं, जो बच्चों और बड़ों — दोनों को समान रूप से प्रभावित करती हैं।
पिंटू ने लंबी काम की घंटियाँ, गरीबी और लम्बर व सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस जैसी गंभीर बीमारियों से जूझते हुए भी हार नहीं मानी। उन्होंने खुद से कंप्यूटर चलाना सीखा, अंग्रेज़ी और हिंदी की समझ विकसित की, और पान बेचते हुए भी लेखन जारी रखा।
पिंटू कहते हैं — “गरीब होना कोई अपराध नहीं है। असली अपराध है ज़िंदगी और सपनों से हार मान लेना।”
एक लेखक। एक योद्धा। एक सपना बुनने वाला जो कोलकाता की भीड़भाड़ भरी सड़क पर कहानियाँ गढ़ता है।
स्रोत: टेलीग्राफ इंडिया

बरगद के पेड़ से शुरू हुआ एशिया के सबसे पुराने स्टॉक एक्सचेंज का सफर

150 साल का हुआ बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई)

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (बीएसई) 9 जुलाई को 150 साल का हो गया। एशिया के पहले स्टॉक एक्सचेंज की स्थापना 9 जुलाई, 1875 को दक्षिण मुंबई में टाउन हॉल के पास हुई थी। हालांकि, इससे दो दशक पहले बीएसई का सफर 1855 में तब शुरू हुआ था, जब बरगद के पेड़ के नीचे कॉटन की खरीद-बिक्री करने के लिए ट्रेडर्स मिलते थे। इस स्थान पर समय के साथ-साथ ट्रेडर्स की संख्या बढ़ती चली गई और बड़ी संख्या में ट्रेडर्स के आने के चलते 9 जुलाई, 1875 को नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन की स्थापना हुई, जो आगे चलकर बीएसई बना। बीएसई की स्थापना जापान के मौजूद टोक्यो स्टॉक एक्सचेंज से भी तीन साल पहले हुई थी। इस कारण बीएसई को एशिया का सबसे पुराना स्टॉक एक्सचेंज भी कहा जाता है।
बीएसई के मुख्य संस्थापकों में प्रेमचंद रॉयचंद भी शामिल थे, जिन्हें बंबई का ‘कॉटन किंग’ कहा जाता था।
रिपोर्ट्स के मुताबिक, शुरुआत में नेटिव शेयर एंड स्टॉक ब्रोकर्स एसोसिएशन के सदस्यों की संख्या 318 थी। इसका प्रवेश शुल्क एक रुपया था।
रिपोर्ट्स के अनुसार, बीएसई के लिए मौजूदा भूमि 1928 में खरीदी गई थी, जबकि बिल्डिंग का निर्माण 1930 में शुरू हुआ था। फिर आजादी के बाद 1957 में सिक्योरिटीज कॉन्ट्रैक्ट (रेगुलेशन) एक्ट (एससीआरए) के जरिए बीएसई को आधिकारिक तौर पर मान्यता दी गई।
मौजूदा बीएसई बिल्डिंग – पीजे टावर्स का निर्माण 1970 में हुआ था।
इस बिल्डिंग का नाम बीएसई के पूर्व चेयरमैन फिरोज जमशेदजी जीजीभॉय के नाम पर रखा गया, जिन्होंने 1966 से 1980 तक बीएसई का कामकाज संभाला था।
बीएसई ने 1986 में 100 के आधार के साथ भारत का पहला स्टॉक इंडेक्स सेंसेक्स लॉन्च किया गया।
सेंसेक्स ने पहली बार 1,000 का आंकड़ा 1990 में छुआ था। इसके बाद 1999 में पहली बार 5,000 और 2007 में 20,000 और 2024 में 80,000 का आंकड़ा पार किया था। मौजूदा समय में बीएसई दुनिया के बड़े स्टॉक एक्सचेंजों में से एक है, जिस पर 4,100 से ज्यादा कंपनियां सूचीबद्ध हैं और इसका बाजार पूंजीकरण 461 लाख करोड़ रुपए से अधिक हो गया है।

आईलीड ने सुंदरबन में पुनर्जीवित किया ‘लाइफलाइन हॉस्पिटल’

कोलकाता ।आईलीड ने सुंदरबन के गोसाबा द्वीप पर बंद पड़े एक अस्पताल को पुनर्जीवित कर स्वास्थ्य सेवा में क्रांतिकारी बदलाव की शुरुआत की है, जिससे अब 10 लाख से अधिक लोगों को लाभ मिलेगा। यह पहल शिक्षा, स्वास्थ्य और नवाचार के संगम के रूप में क्षेत्र में आशा और उपचार का संदेश लेकर आई है। आईलीड के एलाइड हेल्थ साइंसेज विभाग ने हाल ही में स्वास्थ्य शिविरों का आयोजन किया, जिनमें थैलेसीमिया जांच, रक्तदान अभियान और नेत्र परीक्षण शामिल थे। साथ ही, जीवन रक्षक संसाधनों की त्वरित उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए एक स्थानीय ब्लड बैंक की भी स्थापना की जा रही है। परियोजना में ऑप्टोमेट्री, क्रिटिकल केयर टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटल मैनेजमेंट, मीडिया साइंस और इंटीरियर डिज़ाइन जैसे पाठ्यक्रमों के स्नातक और स्नातकोत्तर छात्र शामिल हैं। छात्र न केवल स्वास्थ्य सेवा प्रशिक्षण में भाग लेंगे, बल्कि अस्पताल के इन्फ्रास्ट्रक्चर की सुंदरता बढ़ाने और रोगी संचार की योजना बनाने में भी सहयोग करेंगे।  आधुनिक चिकित्सा उपकरण आरबी डायग्नोस्टिक प्राइवेट लिमिटेड के अग्रवाल एवं गोयनका परिवार के द्वारा दान किए जा रहे हैं। यह अस्पताल नॉन-प्रॉफिट लेकिन सस्टेनेबल मॉडल पर संचालित होगा, जिसमें आईलीड की स्वास्थ्य टीम और प्रशिक्षित छात्र मिलकर संचालन करेंगे। इसके अलावा, टेलीमेडिसिन विशेषज्ञों और स्थानीय स्वास्थ्यकर्मियों का भी सहयोग प्राप्त होगा। इससे सुंदरबन के लोगों को दीर्घकालिक, विश्वसनीय और सुलभ स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध हो सकेंगी।  आईलीड के एलाइड हेल्थ साइंसेज कोर्सेज ऑप्टोमेट्री, क्रिटिकल केयर टेक्नोलॉजी, हॉस्पिटल मैनेजमेंट और मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी जैसे क्षेत्रों में विशेषज्ञता प्रदान करते हैं, जो छात्रों को स्वास्थ्य सेवा में प्रभावशाली भूमिका निभाने में सक्षम बनाते हैं।