Thursday, December 18, 2025
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आदिवासी समाज के बीच एक अनूठा दिन

दिव्या गुप्ता

-दिव्या गुप्ता

टाटानगर की यात्रा जब शुरू हुई तो शुरुआत सामान्य ही थी । समय पर भागलपुर से ट्रेन हावड़ा के लिए मिल गई थी। हावड़ा से जनशताब्दी एक्सप्रेस में टिकट पहले से ही ले रखा था, पर सुबह 03.30 बजे हावड़ा पहुँचकर पता चला, वह देर से चलने वाली है । खैर, दूसरी ट्रेन में लड़ते-भिड़ते जनरल बोगी में जगह लेकर मैं जमशेदपुर पहुँच गई। जमशेदपुर पहुँचकर पता चला कि इस तरफ़ की ट्रेन हमेशा ही देर करती है । जमशेदपुर में ठंड बहुत थी। चूंकि स्टेशन से ‘विकास भवन’की ज़्यादा दूरी नहीं थी, इसलिए आसपास का बाज़ार ज़्यादा नहीं देख पाई। जमशेदपुर के ‘विकास भवन’ में कार्यशाला का प्रारंभ सामान्य तरीके से जैसे हर बार होता है, वैसे ही हुआ । विकास भवन के पीछे फल

और सब्ज़ियों का बगीचा था। इसमें टमाटर,मिर्च,पालक, लहसुन, लौकी, अमरूद, केला आदि लगे हुए थे। विकास भवन में जितने दिनों तक हम थे, हमने इसी बगीचे की सब्जियाँ खाईं।

तीसरे दिन हमलोग क्षेत्र-भ्रमण के लिए गए। जमशेदपुर एक शहर है जिसमें सामान्य शहर की तरह जो भी सुविधाएँ होनी चाहिए थीं, वे उपलब्ध थीं। परंतु उसका गाँव उससे थोड़ा अलग है। हमारा उद्देश्य गाँव की तरफ़ जाना था। मैं, ‘संवाद’संस्था की कार्यकर्ता श्रावणी आंटी के साथ ‘पटकीता’ गाँव गई। गाँव के रास्ते में सड़क के दोनों ओर पेड़-पौधे और झाड़ियाँ थे। मानो हम किसी जंगल की तरफ़ बढ़े जा रहे हैं। आसपास ज़्यादा लोग नहीं थे। फिर धीरे-धीरे आबादी और बसावट आते गये। बीच-बीच में सड़क के किनारे जंगल आता था। हम गाँव की तरफ बढ़ रहे थे तो हमने रास्ते में सड़क किनारे मिट्टी के घर में दो बहनों को दीवार पर रंग द्वारा सजावट करते हुए देखा । मैं उनके पास गई तो उनके चेहरे पर जिज्ञासा और एक मुस्कान थी। हमने उनका नाम पूछा, एक लड़की का नाम नेहा, दूसरी का नाम मोनिका और उसके भाई का नाम विशाल था। जब हमने उनसे इस सजावट का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पाँच साल में एक बार एक त्योहार आता है। उसी की तैयारी चल रही है। दोनों ने कहा कि जितने भी रिश्तेदा रहैं, कल सभी आएँगे। जिन बहनों का विवाह हो चुका है, वह भी अपने पति के साथ और बुआ भी अपने परिवार के साथ आएँगी। मेरे लिए आश्चर्य की बात यह थी कि उनके पास रंग, तूलिका के अलावा किसी तरह का कोई भी साँचा न था। वे दीवार पर रेखाएँ भी धागे द्वारा बना रहीं थीं। उनकी उम्र बारह-चौदह वर्ष से अधिक न होगी। उनके साथ उनका भाई भी था जो छह-सात वर्ष का था। वे साथ मिलकर कलाकारी कर रहे थे। उन बच्चियों ने किसी शिल्पी से कुछ सीखा होगा, यह मुझे नहीं लगता। उन्होंने अपने जीवन में परिवार और आसपास के लोगों से ही सीखा होगा ‌ ।पहले पारम्परिक रंग फूल एवं मिट्टी से बनाया जाता था परंतु अब बाज़ार की सुविधा के कारण बना-बनाया रंग ही वे लेआते हैं और अपनी  मिट्टी की दीवार पर अपनी कला बिखेरते हैं।

इससे थोड़ी दूर पर एक और घर मिला जिसमें एक गृहिणी अपने घर की दीवार पर पारम्परिक और आधुनिक मिश्रित कला बिखेर रही थीं। वे कुछ अधिक समृद्ध थे। घर मिट्टी का था, परंतु जगह अधिक थी। हमें घर के अंदर जाकर छत की खपरैल ठीक करते हुए  पुरुष दिखे। उनके रसोईघर में चूल्हे और मिट्टी के बर्तन थे। कई सुराहियाँ बाँस से लटकी हुई नज़र आईं जो वास्तव में कबूतर के घोंसले थे। जहाँ हम खड़े थे उसके पास एक अंधेरा कमरा था जिसमें बिना पूछे मैं चली गई। शायद वहाँ जाना निषेध था। उसमें एक ओर पत्ते से बने दोने और पत्तल रखे हुए थे। दूसरी तरफ चार-पाँच मिट्टी की सुराही थी। उसके अंदर चावल था जिसे सड़ाया जा रहा था। इसका प्रयोग अगले दिन के त्योहार में पुरुषों को प्रसाद के रूप में देने के लिए किया जाता है। इसे वहाँ की सामान्य भाषा में ‘हँड़िया’ कहा जाता है। इसे अधिक पीकर आदिवासी समाज में लोग नशा करते हैं। इस नशे ने ही कई तरह से आदिवासियों का जीवन नष्ट किया है। जिस गाँव हम जा रहे थे, उस गाँव में ज़्यादातर लोग खेती से अपना जीवन यापन करते हैं। खेती और हँड़िया ही इनके जीवन की दिनचर्या बनती जा रही है।

इस तरह हमलोग पटकिता गाँव पहुँचे ।इस‌ गाँव के प्रधान की मृत्यु होने के कारण सचिवालय में ताला लगा था। सचिवालय के बाहर गुनगुनी धूप में मासूम बकरी के बच्चे आपस में खेलते दिखे। गाँव में जाते ही मोबाइल का नेटवर्क गायब हो गया था। जब मैंने एक ग्रामीण महिला से पूछा कि ‘नेटवर्क किस तरफ आएगा?’ तो उन्होंने इमली के पेड़ की तरफ़ इशारा किया। मैं उस ओर नेटवर्क की तलाश में निकल पड़ी। नेटवर्क का तो ज़्यादा पता न चला पर इमली ज़रूर मिल गयी। वह ऊपर पेड़ पर लटक रही थी। मुझे आस‌पास झाड़ दिखे पर वैसा कोई डंडा नहीं दिखा जिससे मैं इमली तोड़ सकूँ। मैंने एक-दो पत्थर भी उठाकर मारा, पर असफल रही। तभी दो लड़कियाँ मेरी ओर आती हुई मुझे दिखाई दीं। एक लड़की विवाहित गृहिणी लग रही थी और दूसरी कॉलेज की विद्यार्थी। मुझे देखते ही उन्होंने यह‌ तो समझ लिया कि मैं बाहर से आई हूँ। उन्होंने पूछा आप यहाँ क्यों आईं हैं? मैंने अपने आने का उद्देश्य बताया। इसके साथ ही इमली पाने की लालसा भी ज़ाहिर की। उस लड़की ने अगल-बगल देखा और एक लकड़ी उठा लाई और एक से दो बार के वार  में ही उसने इमली तोड़कर मुझे दे दिया । उसने इमली तोड़ने से पूर्व मुझसे यह पूछा भी था कि आपको कितनी इमली चाहिए? ज़्यादा लेकर खराब नहीं करनी है। यही हमारे यहाँ का सिद्धांत है। इमली तोड़कर देने के बाद वह तो चली गई और जाते-जाते अपने अंदर के आदिवासी मन की एक सीख मुझे दे गई। मुझे लगा शहर ने ज़्यादा से ज़्यादा जमा करने की प्रवृत्ति दी है जबकि यहाँ किसी बात की लूट की कोई होड़ नहीं मची है ।

इमली खट्टी और कच्ची थी जिसे मैंने खा लिया। सामने एक सुंदर साफ-सुथरा तालाब था। मैं तालाब और उसमें खिले कमल देखने के लिए बढ़ चली। उसके आगे दूर एक पहाड़ था। प्रकृति की सुंदर छवि धूप में खिलखिला रही थी। जाने का मन न था पर देर ज़्यादा न हो इसीलिए मैं वापस लौट आई। लौटते ही एक स्थानीय निवासी से भेंट हुई। उनसे गाँव की व्यवस्थाए वं नियम के संबंध में मेरी काफ़ी बातचीत हुई। उस व्यक्ति ने स्वयं घर से भागकर विवाह किया था परन्तु आदिवासी महिलाओं को ऐसा अधिकार नहीं है। उसके तीन बच्चे थे। सारी बातचीत का विषय सगोत्रीय विवाह न होना ,पुरुषों का ज़मीन पर अधिकार, हल चलाने के अधिकार, छत छाने के अधिकार से संबंधित था। इन सारी व्यवस्था में जब मैंने बदलाव के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा कि इन सब के बीच कोई परिवर्तन करें तो संभव हो सकता है। अकेले हमारे करने से नहीं होगा। उन्होंने यह भी बताया कि आप आदिवासी हो या न हो। आप यहाँ रहना चाहें तो रह सकते हैं। खेतों में काम करना होगा और सामुदायिक तौर पर सहयोग के साथ रहना होगा।

जहाँ मैं बात कर रही थी उसी के ठीक सामने वाले घर की महिला गोबर से अपना आँगन लीप रही थी। वह चापाकल से पानी भरने आईं थीं। उनसे बात करते हुए पता चला कि यह इमली का पेड़ इनका ही है। उनके घर की तरफ़ बढ़ते हुए, उन्होंने अपने आँगन के बगीचे दिखाए। उनके घर के पुरुषों से भी काफ़ी बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि सामाजिक व्यवस्था में पुरुष – वर्चस्व पर अकेले नहीं सोचा जा सकता है। सभी के सामुदायिक प्रयोग से परिवर्तन संभव हो पाएगा । वे अपने स्तर पर अपनी पत्नी की सहायता करते हैं। उनका पुत्र आठ-दस वर्ष का है जिसका नाम विष्णु है। वह मेरा दोस्त बन गया । जब मैंने उससे पीने के लिए पानी माँगा तो वह अंदर चला गया और थोड़ी देर से पानी लेकर आया। पानी गर्म था। उसमें मिट्टी की ख़ुशबू आ रही थी। उसने मुझे चूल्हे में लकड़ी जलाकर झरने का पानी गर्म करके दिया था। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था कि इतने छोटे लड़के को चूल्हा जलाने आता है। विष्णु के पिता ने बताया कि हम अपने बच्चों को साथ-साथ खेतों में ले जाते हैं। घरेलू कामों में सहयोग के लिए कहते हैं। यह उनके जीवन जीने का तरीका है। उनका मत है कि जैसे विद्यालयी शिक्षा आवश्यक है, वैसे ही घर, खेत, द्वार के काम जीवन में शिक्षा का हिस्सा है। इससे अपने परिवार, समाज, परंपरा और जीवनशैली के प्रति आस्था एवं विश्वास बच्चों में बढ़ते हैं। उनके आँगन में उबले धान सूखने के लिए रखे हुए थे जिसे कोई बच्चा हाथ नहीं लगा रहा था क्योंकि उसके सूखने का महत्त्व और ज़रूरत वे जानते थे।

इसके अलावा मैंने देखा। अंदर संयुक्त परिवार की गृहस्थी जमी हुई थी। भ्रमण का दिन बृहस्पतिवार था। इस दिन पूरे घर को गोबर से लीपकर चावल पीसकर आँगन, चौखट,द्वार पर अल्पना बनायी जाती है। उस घर की महिलाओं से बातचीत के दौरान उन्होंने यह बताया कि उन्हें समाज में नीचे और कम अधिकार की सहायिका माना जाता है। उनके जन्मगत इस भेद को दूर करने की नियति का इंतज़ार उन्हें भी है। इसके बाद मैंने एक-दो घरों के बगीचे से संतरे तोड़े। किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं थी क्योंकि शर्त यही थी कि आप चीज़ खराब न करें।

हम उस गाँव से आगे एक ‘बिदु-चाँदन पुस्तकालय’ भी गए। वह छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षा से लेकर खेलकूद तक के प्रशिक्षण की व्यवस्था मुफ़्त में करता है। यह पुस्तकालय उस गाँव में नौकरी करने वाले लोग अपने सहयोग से चलाते हैं। इस पुस्तकालय को किसी प्रकार का कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता है। विद्यार्थियों से भी कोई राशि नहीं ली जाती है। लगभग सात-आठ वर्षो से यह चल रहा है। मिरजा हाँसदा पुस्तकालय के एक कार्यकर्ता हैं जिनसे हमारी मुलाक़ात हुई ।वे सरकारी विद्यालय के बच्चों को पढ़ाते हैं। ‘बिदु-चाँदन’आदिवासी समाज में सरस्वती की तरह माने जाते हैं। मान्यता है कि संथाली भाषा की ‘ओलचिकी’ लिपि इन्होंने ही बनाई थी। बिदु-चाँदन प्रेमी-प्रेमिका थे। वे गाँववालों से बचकर एक दूसरे से वार्तालाप के लिए दीवार पर कुछ प्रतीक चिह्न बनाते थे, जिसे केवल ये दोनों ही समझते थे। इस तरह‘ओलचिकी लिपि’का जन्म हुआ। पं. रामचंद्र मुर्मू ने सन् 1925 में संथाली भाषा की लिपि ‘ओलचिकी’ को सबके सामने प्रस्तुत किया था ।

इसके बाद हमने बगल के दूसरे गाँव में ग्रामसभा के प्रधान से मुलाक़ातकी। उनसे बातचीत के दौरान गाँव के बहुत पुराने और वृद्ध व्यक्ति ने ‘बिदु-चाँदन’ के गीतों को अपने पारम्परिक वाद्ययंत्र ‘बनम’ बजाकर सुनाया। ‘बनम’ के तार घोड़े की पूँछ के बाल से बनते हैं। गाँव की व्यवस्था और सामाजिक नियमों पर चर्चा करते हुए स्त्रियों की भागीदारी में परिवर्तन की संभावनाओं को भी कुछ लोगों ने स्वीकार किया। कुछ लोग बिफर गए। उनका मत था कि परंपरा में बहुत से परिवर्तन को स्वीकार किया है परंतु ज़मीन, छत, हल एवं गैर– आदिवासी से विवाह पर महिलाओं को अधिकार देने से उनकी सारी परम्परा का आधार ही नष्ट हो जाएगा। वास्तव में पुरुषों के वर्चस्व के कुछ अंश ही बचे हैं जिन्हें वे बचाए रखना चाहते हैं ।

वहाँ से हम भोजन के लिए गए। हमने पत्ते से बने पत्तल में भोजन किया। वहाँ किसी के भी घर बिना किसी की इजाज़त के जा सकते हैं। उनके सभी घर प्राय: मिट्टी के बने हुए थे। उन पर अपनी पारम्परिक कलाकृतियों द्वारा दीवार सजायी गयी थी । घर के बाहर मिट्टी का चबूतरा बना हुआ था। उन्होंने दीमक से बचाने के लिए पुआल और गोबर मिलाकर लीप रखा था। वे बैलों का प्रयोग छोटे-छोटे खेतों में करते हैं। ट्रैक्टर महिला चला सकती है परंतु पारम्परिक हल को हाथ लगाना भी अपराध माना जाता है। गाँव की मदईत व्यवस्था में नौकरी करने वाले युवाओं के कारण कमी आयी है। खेतों में काम करने वाले पुरुष उन महिलाओं की सहायता करते हैं, जिनके घर में पुरुष नहीं हैं। प्रत्येक घर में वृद्ध,युवा, बच्चे थे। सामूहिकता एवं संयुक्त परिवार थे। आदिवासी ग्रामीण पुरुष अपने ग्राम से जुड़े और खेती-बारी में रहना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं। वह खेती का समय नहो होने पर दिहाड़ी मज़दूरी के लिए गुजरात, बंगाल, राँची, केरल, कर्नाटक कुछ महीनों के लिए चले जाते हैं। या सरकारी योजनाओं के तहत किसी काम में मज़दूरी करने लगते हैं, परंतु धन अर्जित करने के लिए पूरी तरह से शहरों का रुख़ नहीं करते हैं। वह खेती द्वारा जीविकोपार्जन चला रहे हैं। आँगन में ही सब्ज़ी उगाते हैं। केवल तेल, कपड़े और अन्य वस्तुओं के लिए बाज़ार की आवश्यकता महसूस करते हैं।

गाँव में सालगेजी के माता-पिता से भी मेरी मुलाक़ात हुई। वे नब्बे वर्ष से अधिक के हो गए हैं परंतु उनकी सक्रियता में बच्चों-सी चहक थी। उन्होंने बहुत स्नेह एवं प्रेम दिया। मुझे अपने आँगन के संतरे देते हुए उसे खाने का समय और शारीरिक उपयोगिता भी बताई। वे घर के बाहर तक छोड़ने भी आए। उन दोनों के चेहरे की चमक ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उनकी हथेलियों को जब मैंने हाथ लगाया तब लगा काश, मेरे पास कोई जादू होता और उनके हाथों में श्रम के जो महाकाव्य बने हैं, उन्हें मैं खींच लेती।

ग्रामसभा के सदस्यों से भेंट के दौरान कई वृद्ध महिलाएँ किनारे बैठी थीं। उन सभी ने अपने नाम द्वारा अपना परिचय दिया। कई महिलाएँ अपना नाम भूल गई थीं, उनका सोचते हुए अपना नाम बताना इसी का परिचायक है। वे अपने परिवार और दूसरे के लिए करने में इतनी व्यस्त रहीं पूरे जीवन कि उन्हें अपना नाम तक याद नहीं । हम बाहर से जिस आदिवासी समाज को इतना सुंदर और सुसज्जित प्रगतिशील मानते हैं। उनके अंदर वास्तव में पुरुषों का नकारापन, महिलाओं का आश्रय पाने की मजबूरी है। वे काम करती हैं ताकि जीवन में पैसे की कमी कम हो सके। ज़मीनी हकीकत यह है कि हर हाल में पुरुषों का ही अधिकार है। उनकी मजबूरी है कि उन्हें पति, पिता, भाई के आश्रय में ही रहना है। उम्मीद है कि व्यवस्था कभी न कभी बदलेगी।

कई महिलाएँ अब अधिकार की और माँग नहीं कर रही हैं क्योंकि उन्हें घर-बाहर दोनों जगह अकेले काम करना पड़ रहा है। पुरुष नशे में पड़े रहते हैं। यदि हल, छत, ज़मीन का अधिकार भी मिल जाएगा तो पुरुष और भी कुछ नहीं करेंगे ।महिलाएँ पढ़ाई से लेकर काम,अपने परिवार और खुद की आत्मनिर्भरता के लिए करती हैं। ज़मीन पर अधिकार न होने के कारण उनकी सारी मेहनत किसी अन्य के हाथ चली जाती हैं। महिला की मृत्यु पर उन्हें दूर खेतों में दफ़न किया जाता है जबकि पुरुषों को अपने ही आँगन में दफ़नाया जाता है। यदि किसी लड़की ने विवाह नहीं किया है तब भी उसे दूर खेत में ही दफ़न किया जाता है। माना जाता है कि महिला का अधिकार नहीं है। वह दूसरे घर से आई है। उसका इस ज़मीन पर अधिकार नहीं पुत्र का ही संपत्ति पर अधिकार होता है। कमाल की बात है कि महिला राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक होकर सत्ता संभालने का अधिकार प्राप्त कर लेती हैं परंतु उसे हल, छत, ज़मीन पर अधिकार नहीं है ।

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लिटिल थेस्पियन का 14वां राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव 28 फरवरी से

कोलकाता ।  लिटिल थेस्पियन, 28 फरवरी 2025 से 5 मार्च 2025 तक ज्ञान मंच में अपना 14वां राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव जश्न-ए-अज़हर आयोजित करने जा रहा है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और अज़हर आलम मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त इस महोत्सव को प्रसिद्ध नाटककार श्री प्रताप सेहगल को समर्पित किया गया है। प्रताप सहगल साहित्यिक जगत के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी यात्रा विचारशील कविताओं और कहानियों से शुरू की थी। अपनी साहित्यिक यात्रा के दौरान, उनकी रुचि नाटक लेखन में बढ़ी, जिसके बाद उन्होंने नाटक लेखन और कविता पर विशेष रूप से समीक्षाएं और आलोचनाएं लिखना शुरू किया। इससे व्याख्या के कई स्तर खुल गए। नाटक में विज्ञान नाटकों के लेखन को पुनर्जीवित करने के लिए जिम्मेदार, उन्होंने अपनी अमिट छाप हर साहित्यिक विधा पर छोड़ी है जिसे उन्होंने लिखा है। नाटककार के रूप में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए, संगीत नाटक अकादमी, भारत सरकार ने उन्हें संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया है। महोत्सव में उनके द्वारा लिखित 9 नाटकों (लिटिल थेस्पियन के सहित) का मंचन किया जाएगा। सेहर, शांतिनिकेतन अपने नाटक कोई और रास्ता का मंचन करेगा, जिसके निर्देशक मृत्युंजय प्रभाकर हैं। दास्तान थिएटर स्टूडियो, ग्वालियर अपने नाटक अन्वेषक का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन आयाज़ खान ने किया है। संतोषपुर अनुचिंतन, कोलकाता अपना नाटक बच्चे बड़े हो रहे हैं, का मंचन करेगा, जिसके निर्देशन गौरव दास हैं । यूनिकॉर्न एक्टर्स स्टूडियो, नई दिल्ली अपना नाटक अंतराल का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन गौरी देवल ने किया है । अनुरगना थिएटर ग्रुप, नई दिल्ली अपने नाटक तीन गुमशुदा लोग का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन अशरफ अली ने दिया है । कमला शंकर धनवंती फाउंडेशन, दिल्ली अपना नाटक रामानुजन का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन हिमांशु हिमनिया ने किया है । समुख, नई दिल्ली अपना नाटक बुल्लेशाह का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन अरविंद सिंह और मंच रंग मंच, अमृतसर अपना नाटक रंग बसंती का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन केवल धालीवाल ने किया है । नाट्य महोत्सव में दो दिनों का रंग संवाद होगा, जिसमें डॉ. अरुण होता (कोलकाता), डॉ. मोहम्मद काज़िम (दिल्ली), डॉ. ऋषि भूषण (कोलकाता), डॉ. विनय मिश्रा (कोलकाता) और श्री आयाज़ खान (ग्वालियर) ‘प्रताप सेहगल के नाटकों में ऐतिहासिक प्रासंगिकता’ विषय पर चर्चा करेंगे, जबकि डॉ. शुभ्रा उपाध्याय (कोलकाता), डॉ. इतु सिंह (कोलकाता), डॉ. रेश्मी पांडा मुखर्जी (कोलकाता), डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव (आसनसोल), श्री अशरफ अली (दिल्ली) और श्री गौरव दास (कोलकाता) ‘प्रताप सेहगल के नाटकों में मानवीय अस्तित्व की खोज’ विषय पर अपने विचार साझा करेंगे। चौथा अजहर आलम मेमोरियल अवार्ड प्रताप सेहगल को प्रदान किया जाएगा। लिटिल थेस्पियन पांच रंगकर्मियों को उनकी रंगकला के प्रति समर्पित सेवा के लिए सम्मानित करेगा: श्री पवन मास्करा (रंग अभिनेता),जीतेंद्र सिंह (नाट्य निर्देशक), सीमा घोष (रंग अभिनेत्री), श्री ख़ुर्शीद इकराम मन्ना (रंग कलाकार) और डॉ. गगन दीप (नाट्य निर्देशक)।इस नाट्य महोत्सव में लिटिल थेस्पियन की दूसरी नाट्य प्रतियोगिता का अंतिम चरण भी होगा, जिसमें प्रतियोगिता के पहले चरण में चयनित तीन सर्वश्रेष्ठ टीमें अपने नाटक प्रस्तुत करेंगी और विजेताओं का चयन एवं उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। दूसरी आलेख लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं की भी घोषणा की जाएगी और उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। कुल मिलाकर, जश्न-ए-अज़हर में रंगमंच के सभी पहलुओं को शामिल गया है।

चैंपियंस ट्रॉफी का प्रबल दावेदार है भारत : सौरभ गांगुली

वुरा के ब्रांड अम्बास्डर बने
कोलकाता । बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली भारत को चैंपियंस टॉफी के मजबूत दावेदारों में से एक मानते हैं। गांगुली का मानना है कि आज भारत एक मजबूत टीम है और पाकिस्तान को बहुत अच्छा खेल दिखाना होगा। एक संवाददाता सम्मेलन में क्रिकेट, चैंपियंस ट्रॉफी और वर्तमान भारतीय टीम पर बातें करते हुए गांगुली ने पाकिस्तान में खेलने की अपनी यादें भी ताजा कीं । उन्होंने कहा कि 1996, 2004, 2007 में पाकिस्तान जाकर खेलना एक यादगार अनुभव रहा है। उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ बहुत से मैच खेल चुका हूँ। बहुत से विश्व कप में खेल चुका हूँ। 1996 में इंडिपेंडेंस कप फाइनल जहां मैंने शतक बनाया था। 2004 में बतौर कप्तान मेरी पहली सीरीज पाकिस्तान के साथ थी जहां हमने टेस्ट में पाकिस्तान को हराया था । क्रिकेट को लेकर पाकिस्तान के साथ बहुत सी अच्छी यादें जुड़ी हैं। जावेद मियांदाद के छक्के मैंने देखे हैं और उसके बाद भारतीय टीम में वह बदलाव भी देखा है, जिसके बाद वह ऐसी टीम बनी जिसने पाकिस्तान को हर प्रारूप में हराया है। उन्होंने कहा, ‘भारत सीमित ओवरों की बेहद मजबूत टीम है। पाकिस्तान के खिलाफ उसके रिकॉर्ड से पता चलता है कि भारत ने लंबे समय से उसे पर दबदबा बना रखा है। भारत न सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ जीत का प्रबल दावेदार है बल्कि वह टूर्नामेंट जीतने का भी प्रबल दावेदार है।’
आज के समय में 15 -20 साल की बात करें तो यह मुकाबले काफी एकतरफा हो गये हैं और यह मैं पूरे आदर के साथ कह रहा हूँ कि भारतीय टीम आगे बहुत आगे निकल चुकी है। पाकिस्तान को भारत को हराने के लिए बहुत अच्छा खेलना पड़ेगा । मैं भारत को चैंपियंस टॅाफी की टीम नहीं बल्कि ट्रॉफी के मजबूत दावेदार के रूप में देखता हूँ।
चैंपियंस ट्रॉफी के चार दावेदार मेरी नजर में न्यूजीलैंड, जिसने पाकिस्तान को हराया है। अगर भारत पाकिस्तान को हरा देता है तो सम्भवतः पाकिस्तान मुकाबले से बाहर हो जाएगा तो मैं भारत और न्यूजीलैंड को एक ग्रुप से दावेदार के रूप में देख रहा हूँ ।
दूसरे ग्रुप में इंग्लैंड, दक्षिण अंफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अफगानिस्तान हैं। ऑस्ट्रेलिया को लेकर जरा सा चिंतित हूं क्योंकि पैंट कमिंस नहीं हैं, मिचेश स्टार्क नहीं हैं। तीन तेज गेंदबाज नहीं हैं और पाकिस्तान में फ्लैट पिच पर गेंदबाजी करनी होगी। दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में कोई दो टीम । सम्भवतः भारत और न्यूजीलैंड अंतिम दो टीमें फाइनल के लिए हो सकती हैं। ‘भारत बहुत मजबूत टीम है विशेष कर बल्लेबाजी में। पंत बहुत अच्छा खिलाड़ी है लेकिन राहुल का वनडे में शानदार रिकॉर्ड है। इसलिए मुझे लगता है कि गौतम गंभीर राहुल का समर्थन कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इन दोनों में से किसी एक का चयन करना बेहद मुश्किल काम है क्योंकि दोनों ही बेजोड़ खिलाड़ी हैं।’
भारत प्रतिभाओं से भरा पड़ा है। कोई भी अच्छा खेल सकता है। चयनकर्ता और कोच चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। भारत के पास एक नहीं पांच शुभमन गिल हैं जो अच्छा खेल सकते हैं। जडेजा, हार्दिक पांडया, सूर्यकुमार यादव हैं। भारत एक मजबूत टीम है। अभिषेक शर्मा अच्छे खिलाड़ी हैं । गांगुली ने इसके साथ ही उम्मीद जताई कि विस्फोटक सलामी बल्लेबाज अभिषेक शर्मा जल्द ही वनडे क्रिकेट में डेब्यू करेंगे। उन्होंने कहा, ‘अभिषेक शर्मा ने इंग्लैंड के खिलाफ टी20 श्रृंखला में जिस तरह से बल्लेबाजी की वह बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए अविश्वसनीय थी। इसका कोई कारण नजर नहीं आता कि वह वनडे क्रिकेट नहीं खेल सकता है।अभिषेक शर्मा जैसा बल्लेबाज दुनिया की किसी भी टीम में जगह बना सकता है।’दुबई में स्पीनर की जरूरत है तो मोहम्मद शमी, हार्दिक पांडया, कुलदीप फ्लैट पिच पर अच्छा करेंगे।
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18-20 महीने में बंगाल में तीसरा स्टील प्लांट शुरू हो जाएगा
‎कोलकाता । सौरव गांगुली की तीसरी फैक्ट्री पश्चिम मेदिनीपुर जिले में लगाई जा रही है। 0.8 मिलियन टन प्रति वर्ष क्षमता वाले इस स्टील प्लांट की अनुमानित लागत 2500 करोड़ रुपये है। गांगुली ने कहा कि हम तीसरा स्टील प्लांट लगा रहे हैं। दिक्कत यह है कि सबको उम्मीद है कि स्टील प्लांट दो महीने में बनकर तैयार हो जाएगा पर ऐसा तो होता नहीं है। एक फैक्ट्री बनाने में समय लगेगा। उम्मीद है कि अगले 18-20 महीने में उत्पादन शुरू हो जाएगा। 2007 से ही हमारे दो प्लांट हैं जिनमें से एक आसनसोल में और दूसरा पटना में है। यह तीसरा और सबसे बड़ा प्लांट है जिसके लिए बहुत सी चीजों पर अनापत्ति प्रमाणपत्र और मंजूरी लेनी पड़ेगी। हमारे दो प्लांट में 10 हजार लोगों को काम मिला है और बहुत से और लोगों को रोजगार मिलेगा। वुरा से पश्चिम बंगाल को भी फायदा होगा।अहमदाबाद में भी वुरा के प्लांट हैं। वूरा के निदेशक अमित चौधरी ने कहा, “दादा के इस ब्रांड में शामिल होने से न केवल हमारे ब्रांड की मार्केट में उपस्थिति मजबूत होगी, वुरा एक वैश्विक अग्रणी कंपनी है निर्माण रसायनों का निर्माण करती है, जिसमें टाइल और पत्थर के चिपकने वाले, स्टोन केयर सीलर और क्लीनर, विशेष वॉटरप्रूफिंग और आईएसओ, आईएन और ईएन गुणवत्ता मानकों के अनुसार विश्व स्तरीय जर्मन तकनीक के साथ तैयार किए गए विभिन्न निर्माण रसायन शामिल हैं।

समुद्र में डूबी कृष्ण की नगरी द्वारका के साक्ष्य जुटाएगा एएसआई, खोज शुरू

नयी दिल्ली। समुद्र में डूबी भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के सभी पहलुओं और साक्ष्य जुटाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खोज शुरू कर दी है। एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक (पुरातत्व) प्रो. आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में पांच पुरातत्वविदों की एक टीम ने मंगलवार को द्वारका तट पर पानी के नीचे खोज शुरू की। इस टीम में निदेशक (खुदाई एवं अन्वेषण) एचके नायक, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. अपराजिता शर्मा, पूनम विंद और राजकुमारी बारबिना ने प्रारंभिक जांच के लिए गोमती क्रीक के पास एक क्षेत्र का चयन किया है। एएसआई के अनुसार इस अन्वेषण के माध्यम से द्वारका नगरी के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साक्ष्य जुटाया जाएगा। पानी के अंदर की जा रही खोज भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए एएसआई के मिशन में एक महत्वपूर्ण कदम है। एएसआई के नवीनीकृत अंडरवाटर पुरातत्व विंग (यूएडब्ल्यू) को हाल ही में द्वारका और बेट द्वारका में अपतटीय सर्वेक्षण और जांच करने के लिए पुनर्जीवित किया गया है। यूएडब्ल्यू 1980 के दशक से पानी के नीचे पुरातात्विक अनुसंधान में सबसे आगे रहा है। 2001 से विंग बंगाराम द्वीप (लक्षद्वीप), महाबलीपुरम (तमिलनाडु), द्वारका (गुजरात), लोकतक झील (मणिपुर) और एलीफेंटा द्वीप (महाराष्ट्र) जैसे स्थलों पर अन्वेषण कर रहा है। इससे पहले अंडरवाटर पुरातत्व विंग ने 2005 से 2007 तक द्वारका में अपतटीय और तटवर्ती खुदाई की थी। नौसेना और पुरातत्व विभाग की संयुक्त खोज पहले 2005 फिर 2007 में एएसआई के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। वर्ष 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए। गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया गया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला।पुरातत्वविद् प्रो. एसआर राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। उस दौरान उन्‍हें वहां पर बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं।  इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्‍यता के भी कई अवशेष उन्‍होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्‍होंने खुदाई में कई रहस्‍य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।

ज्ञानेश कुमार होंगे नए मुख्य चुनाव आयुक्त, नये कानून से नियुक्त होने वाले पहले सीईसी

नयी दिल्ली। ज्ञानेश कुमार देश के नये मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे। वे राजीव कुमार की जगह लेंगे। कानून मंत्रालय ने इस संबंध में अधिसूचना जारी कर दी। पिछले साल मार्च में चुनाव आयुक्त के रूप में नामित किए गए ज्ञानेश कुमार देश के अगले मुख्य चुनाव आयुक्त होंगे। वे इस साल के आखिर में बिहार विधानसभा चुनाव और अगले साल बंगाल, असम और तमिलनाडु में होने वाले चुनावों की देखरेख करेंगे। इसके साथ ही 2027 में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव मुख्य चुनाव आयुक्त ज्ञानेश कुमार के कार्यकाल में होंगे। केरल कैडर के 1988 बैच के आईएएस अधिकारी ज्ञानेश कुमार, तीन सदस्यीय पैनल में दो आयुक्तों में से वरिष्ठ हैं। इससे पहले सोमवार को मुख्य चुनाव आयुक्त के नाम पर विचार के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में नॉर्थ ब्लॉक में हुई बैठक में केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह और लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी शामिल हुए। पुरानी व्यवस्था के तहत तीन सदस्यी चुनाव आयोग में सबसे वरिष्ठ चुनाव आयुक्त को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया जाता रहा है। हालांकि चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति से जुड़े कानून के तहत अब समिति के माध्यम से नए मुख्य चुनाव आयुक्त का चयन होता है। मुख्य चुनाव आयुक्त और अन्य चुनाव आयुक्त (नियुक्ति, सेवा की शर्तों और कार्यालय की शर्तें) अधिनियम, 2023 के तहत नए मुख्य चुनाव आयुक्त वर्तमान में आयोग में शामिल चुनाव आयुक्त भी हो सकते हैं या फिर कोई नया नाम तय किया जा सकता है। अधिनियम के तहत केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री की अध्यक्षता में एक खोज समिति पांच उम्मीदवारों की एक सूची तैयार करती है। उल्लेखनीय है कि मुख्य चुनाव आयुक्त रहे राजीव कुमार ने यह पदभार वर्ष 2022 में संभाला था। उनके नेतृत्व में चुनाव आयोग ने 2024 में लोकसभा चुनाव संपन्न कराया। इसके अलावा कई राज्यों में विधानसभा चुनाव संपन्न कराए जिनमें जम्मू-कश्मीर, महाराष्ट्र, हरियाणा, कर्नाटक, तेलंगाना, मध्य प्रदेश, झारखंड और इसी साल हुए दिल्ली विधानसभा के चुनाव भी शामिल हैं।

कोल्ड स्टोरेज मालिकों ने की किराया बढ़ाने की मांग

कोलकाता । पश्चिम बंगाल कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन, पूरे बंगाल में कोल्ड स्टोरेज का एकमात्र सक्रिय एसोसिएशन है। संगठन की ओर से 60वां वार्षिक आम बैठक का आयोजन कोलकाता के स्वभूमि हेरिटेज में किया गया, जिसमें बड़ी संख्या में गणमान्य लोगों में सुनील कुमार राणा, (अध्यक्ष, डब्लूबीसीएसए), सुभाजीत साहा (उपाध्यक्ष, डब्लूबीसीएसए), राजेश कुमार बंसल (पूर्व अध्यक्ष, डब्लूबीसीएसए), पतित पावन दे, तरुण कांति घोष, गोबिंद कजारिया (पूर्व अध्यक्ष, डब्लूबीसीएसए), दिलीप चटर्जी, कौशिक कुंडू, प्रदीप लोढ़ा (डब्लूबीसीएसए के जिला समितियों के अध्यक्ष) के साथ समाज में कई अन्य प्रतिष्ठित व्यक्ति इस मौके पर शामिल थे। पश्चिम बंगाल कोल्ड स्टोरेज एसोसिएशन के अध्यक्ष सुनील कुमार राणा ने कहा, आलू उत्पादकों में काफी उत्साह देखा जा रहा है। चालू सीजन में लगभग 5.10 लाख हेक्टेयर भूमि पर आलू की खेती की गई है। उन्होंने चालू सीजन में लगभग 135-140 लाख टन आलू उत्पादन का अनुमान लगाया। पश्चिम बंगाल में घरेलू खपत 65 लाख टन है, शेष स्टॉक को राज्य के बाहर विपणन करने की आवश्यकता है। बाजार में आलू की स्थिर कीमत और नियमित आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए उन्होंने अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे अनलोडिंग अवधि के दौरान प्रत्येक माह 12% की एक समान दर पर संग्रहीत स्टॉक को जारी करने के लिए एक प्रणाली तैयार करें। उन्होंने आवश्यक कार्य योजना तैयार करने और वास्तविक समय के आधार पर स्टॉक की स्थिति की निगरानी के लिए खेती, कटाई, भंडारण और विपणन पर अखिल भारतीय व्यापक डेटा के संग्रह और विश्लेषण की सिफारिश की। किसानों को उचित ग्रेडिंग, इलाज और वर्गीकरण बनाए रखने के लिए सरकारी पहल का सुझाव दिया गया। चूंकि नवंबर से आगे भंडारण अवधि का विस्तार लगभग हर साल आम अनुभव बन गया है, इसलिए उन्होंने अनुरोध किया कि विस्तारित भंडारण अवधि के लिए अतिरिक्त किराए की मात्रा को आवधिक किराया संशोधन के लिए अधिसूचना में शामिल किया जाना चाहिए। कोल्ड स्टोरेज के लिए इनपुट लागत और पूंजी की लागत में आवधिक वृद्धि को देखते हुए, अन्य आलू उत्पादक राज्यों में किराए के बराबर कोल्ड स्टोरेज किराया बढ़ाने की मांग इस कार्यक्रम में की गई। जिसमें वर्तमान दर 230 रुपए से 270/- रुपये प्रति क्विंटल बढ़ाने का प्रस्ताव दिया गया है। उन्होंने उल्लेख किया कि दक्षिण और उत्तर बंगाल के लिए कोल्ड स्टोरेज का किराया क्रमशः 190 रुपये और 194 रुपये करने की विशेषज्ञ समिति की सिफारिश के बावजूद सरकार द्वारा कोल्ड स्टोरेज का किराया संशोधित नहीं किया गया। पिछले 4 वर्षों से किराया 168 रुपये और 172 रुपये है। उन्होंने आशंका जताई कि आगामी सीजन में कोल्ड स्टोरेज का संचालन बाधित हो सकता है, क्योंकि स्टोर मालिक वर्तमान किराया ढांचे के साथ अपनी इकाइयों को संचालित करने के लिए तैयार नहीं हैं। इस कारण से 150 से अधिक कोल्ड स्टोरेज बैंक में एनपीए हैं। उन्होंने यह सुझाव दिया कि कोल्ड स्टोरेज किराया गणना 100% भंडारण क्षमता के बजाय 85% भंडारण क्षमता पर आधारित होनी चाहिए, क्योंकि 100% क्षमता का उपयोग शायद ही कभी किया जाता है। सरकार को उनके संगठन द्वारा किए गए मांग पर जल्द विचार करने का अनुरोध किया गया है।

 

भवानीपुर कॉलेज का एनसीसी कैडेट बना विनिमय कार्यक्रम का युवा राजदूत

कोलकाता । भवानीपुर कॉलेज के नंबर वन बेंगाल एयर स्क्वाड्रन एनसीसी बंगाल सीएसयूओ भीष्मलेंदु ने भारत का प्रतिनिधित्व भूटान में एक युवा राजदूत के रूप में किया। उन्होंने एनसीसी यूथ एक्सचेंज प्रोग्राम 2024 में भाग लिया। मेस बिहेवियर क्लासेस से लेकर ग्रैंड क्लोजिंग समारोह तक, अच्छी तरह से स्ट्रक्चर्ड कैंप शेड्यूल, अनुशासन, सांस्कृतिक विरासत और प्रतिष्ठित इंटरैक्शन आदि एक्सचेंज प्रोग्राम किए जिसने इस यात्रा को विशेष बना दिया। 117 वें राष्ट्रीय दिवस समारोह में भूटान के राजा महामहिम जिग्मे खेशर नामग्येल वांगचुक, आई एफ एस अधिकारियों और भूटानी अधिकारियों के साथ यह कार्यक्रम संपन्न हुआ। राष्ट्रीय उद्यानों और मंदिरों में भूटान की सांस्कृतिक विरासत को जानने का अवसर मिला। यह कार्यक्रम दांताक, इमट्रैट, भारतीय दूतावास और डीजी एनसीसी मुख्यालय में हुआ। यह यात्रा भूटान के साथ एक औपचारिक और राजनयिक संबंध जोड़ने में सहायक रही।डॉ वसुंधरा मिश्र ने बताया कि एनसीसी के कैडट सीएसयूओ भीष्मलेंदु ने भूटान की परंपराओं और भारत-भूटान संबंधों के लिए कैमाडरी, अनुशासन और आपसी प्रतिष्ठा को बढ़ावा दिया है।भूटान में भारतीय प्रतिनिधि माननीय ताशी नामग्याल, निदेशक – शिक्षा मंत्रालय, भूटान के साथ दूतावास में भारतीय युवा राजदूत सीएसयूओ भीष्मलेंदु ने देश का गौरव बढ़ाया।

मिसेज बनी जी फाइव की सबसे बड़ी ओपेनर

कोलकाता । जी 5 की पेशकश मिसेज सफलता और तारीफें, दोनों बटोर रही है। यह फिल्म 150 मिलियन से अधिक स्ट्रीमिंग मिनट्स के साथ जी 5 के इतिहास में अब तक का सबसे बड़ी ओपनिंग वीकेंड साबित हुई है। बहुमुखी प्रतिभा की धनी अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा के शानदार अभिनय से सजी यह फिल्म अपनी दमदार कहानी के चलते पूरे भारत में दर्शकों के दिलों को छू रही है। यही कारण है कि यह फिल्म न केवल जी 5 पर रिकॉर्ड व्यूअरशिप हासिल कर रही है, बल्कि गूगल पर सबसे अधिक खोजी जाने वाली फिल्म बन गई है, जिसे गूगल पर उपयोगकर्ताओं ने 4.6/5 की शानदार रेटिंग दी है। इसके अलावा, आईएमडीबी पर भी इस फिल्म को 7.3 की प्रभावशाली रेटिंग मिली है। दर्शकों की जबरदस्त प्रतिक्रिया के साथ, मिसेज जी 5 की सबसे प्रिय फिल्मों में से एक बनकर उभरी है, जिससे यह साबित होता है कि मंच उच्च गुणवत्ता वाली, आकर्षक और विविधतापूर्ण कहानियों को प्रस्तुत करने के प्रति प्रतिबद्ध है। यह फिल्म न केवल जी 5 पर अब तक का सबसे बड़ा ओपनिंग वीकेंड दर्ज करने में सफल रही है, बल्कि अपने विशाल दर्शक समूह के अलावा, फिल्म इंडस्ट्री में भी जबरदस्त सराहना बटोर रही है। फिल्म की अनूठी कहानी और दमदार प्रस्तुतिकरण की प्रशंसा गजराज राव, प्रसिद्ध फिल्ममेकर विक्रमादित्य मोटवाने, वसन बाला, सोनम नायर, सुमित पुरोहित, और लोकप्रिय कलाकारों अली फ़ज़ल, वामीका गब्बी, राधिका मदान, पुलकित सम्राट, श्रिया पिलगांवकर, साकिब सलीम, तिलोत्तमा शोम, अक्षय ओबेरॉय, अमोल पाराशर समेत कई दिग्गजों ने की है। फिल्म की निर्देशक आरती कादव ने अपनी खुशी जाहिर करते हुए कहा, “Mrs. पर काम करना एक अविस्मरणीय यात्रा रही है, और जिस तरह से दर्शकों ने इस फिल्म को सराहा है, उससे मैं अभिभूत हूं।” सान्या ने मुख्य किरदार को जिस ताकत और संवेदनशीलता के साथ निभाया है, उसकी हर जगह प्रशंसा हो रही है, खासतौर पर युवा लड़कियां और महिलाएं इस किरदार से गहराई से जुड़ाव महसूस कर रही हैं। उन्होंने आगे कहा, “मैं अपने निर्माता हरमन बावेजा, बावेजा स्टूडियो और जियो स्टूडियो की आभारी हूं, जिन्होंने मुझ पर भरोसा किया और इस कहानी को कहने में मेरा मार्गदर्शन किया।” दुनिया भर के दर्शकों से मिली जबरदस्त प्रतिक्रिया और मिसेज के साथ दर्शकों का गहरा व्यक्तिगत जुड़ाव, दृष्टिकोणों को चुनौती देने वाली मजबूत कहानियों की शक्ति का प्रमाण है।” फिल्म की सफलता पर अपनी खुशी जाहिर करते हुए, अभिनेत्री सान्या मल्होत्रा ने कहा कि यह देखकर बेहद भावुक और उत्साहित महसूस हो रहा है कि दर्शकों ने मिसेज को इतने प्यार से अपनाया है।” यह फिल्म मेरे दिल के बहुत करीब है, और इसे पूरे देश में लोगों पर प्रभाव डालते हुए देखना वास्तव में संतोषजनक है। मिसेज सिर्फ एक कहानी नहीं, बल्कि एक मजबूत विचार है।”

 

सृजन यात्रा के नौ वर्ष….पथ पर चलें निरंतर

शुभजिता 13 फरवरी को अपनी सृजन यात्रा का एक और पड़ाव पार कर रही है। 2026 में पूरा एक दशक होने जा रहा है। 2025 में आपकी यह वेब पत्रिका 9 वर्ष पूरे कर चुकी है। जब 2016 में वसंत पंचमी के दिन आज की शुभजिता ने अपराजिता बन चलना आरम्भ किया था, तब कहां पता था कि यहां तक आ सकेंगे। इस पर एक जिद थी कि लीक से हटकर चलना है, पत्रकारिता की सकारात्मकता को सामने रखना है, मुद्दे रखने हैं, सनसनी से बचना है। यह एक विनम्र…बहुत विनम्र शुरुआत थी और हमें कतई उम्मीद नहीं थी कि इसे कोई गम्भीरता से लेगा..यह भी उम्मीद नहीं थी कि लोग जुड़ेंगे..लिखेंगे..किसी अन्य मीडिया संस्थान की तरह हमें कार्यक्रमों में बुलाया जाएगा। हमारे पास था भी क्या उम्मीदों के लिए तो खोने के लिए भी कहां कुछ था। आज मुझे खुद मीडिया में 21 साल हो रहे हैं । पत्रकारिता की दुनिया से बहुत कुछ मिला है..पहचान भी और प्रेम भी..प्रेम इतना मिला कि कड़वाहटें हावी नहीं हो पायीं। इतने संघर्ष और इतनी बाधाएं देखीं कि लगा कि ऐसी जगह हो जहां काम करने का मन करे । अपनी शक्ति भर युवाओं की अभिव्यक्ति को मंच दे सकें हम..प्रतिभाओं को सामने ला सकें। कोरोना काल हमने बहुत कुछ ऐसा किया जो हम करना चाहते थे..संसाधनहीन थे..सार्मथ्यहीन नहीं थे। हमें नहीं पता कि हम कहां तक क्या कर सके हैं क्योंकि यह निर्णय लेना हमारा काम नहीं है..यह फैसला आप करेंगे। हमने शुभजिता का पीडीएफ संस्करण भी निकालना आरम्भ किया। दो दर्जन अंक निकाले भी मगर व्यस्तता व तकनीकी कारणों से इसमें विध्न पड़ते रहे। दरअसल, आर्थिक जरूरतें और आर्थिक दिक्कतें अपनी जगह है और जीवन संचालन एक महती कार्य है इसलिए दोनों कार्य साथ ही संचालित करने पड़ते हैं। आज 10 लाख से अधिक अतिथि इस वेबपत्रिका पर आ चुके हैं। हम दो शुभजिता सृजन प्रहरी तथा तीन शुभ सृजन सारथी सम्मान आयोजित कर चुके हैं। यू ट्यूब पर भी 1 हजार से अधिक सदस्य शुभजिता के चैनल पर हैं। प्रयास जारी है। हो सकता है कि खबरें लाने में थोड़ा विलम्ब हो मगर खबरें आती रहेंगी, यह तय है। इस सृजन यात्रा पर पथ एकाकी भी हो तो भी हम चलते ही रहेंगे क्योंकि यही हमारा कर्म है। फल हमारे हाथ में नहीं है पर जो कर्म है..वह हम करते ही रहेंगे और हमें विश्वास है कि आपका सहयोग हमें मिलता ही रहेगा…एक विनम्र धन्यवाद के अतिरिक्त हम और क्या दें..जब रहीम के शब्दों में –
देनहार कोई और है, भेजत है दिन रैन
लोग भरम हम पर करें, ताते नीचे नैन
शुभजिता का सारा लोहा आप ही हैं, अपनी तो केवल धार ही है. नयी यात्रा पर शुभजिता का नया अवतार…
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अशेष आभार
सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया
सम्पादक, शुभजिता

ऐसी स्थिति में बदल डालिए टूथ ब्रश

सही तरह से ब्रश करने का मतलब सिर्फ सही टूथपेस्ट या ब्रश करने का तरीका नहीं, बल्कि इसमें समय-समय पर टूथब्रश बदलना भी शामिल है। अक्सर लोगों के टूथब्रश के ब्रिसल बुरी तरह से फैल कर खराब हो जाते हैं, फिर भी लोग उसे फेंकते नहीं हैं। नया टूथब्रश न लेने के आलस में या पैसे बचाने के चक्कर में वे उसी पुराने ब्रश को इस्तेमाल करते रहते हैं, जो बिल्कुल सरासर गलत है। जरूरत से ज्यादा ब्रश का इस्तेमाल करने से ब्रश करने का असली मकसद खत्म हो जाता है।ब्रश करने का मकसद है दांतों और ओरल कैविटी की सफाई, जिससे कैविटी और अन्य बीमारियों से बचाव किया जा सके। हालांकि, ज्यादा समय तक एक ही ब्रश का इस्तेमाल करने से उसमें बैक्टीरिया पनपने लगते हैं और सफाई करने की उनकी क्षमता खत्म हो जाती है, जिससे ब्रश साफ करने से ज्यादा ओरल कैविटी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।
टूथब्रश हैबिट को मैनेज करना बहुत जरूरी है। सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रीवेंशन (सीडीसी) और इंडियन डेंटल एसोसिएशन (आईडीए) के अनुसार हर 3 से 4 महीने में टूथब्रश बदल लेना चाहिए। इसके अलावा कुछ और मामलों में भी टूथब्रश बदलना जरूरी हो जाता है, जिनमें निम्न शामिल हैं-
अगर टूथब्रश के ब्रिसल फैल गए हैं या फिर टेढ़े हो गए हैं, तो इन्हें बदल लें।
अगर ब्रश के कुछ ब्रिसल टूट गए हैं, तो टूथब्रश बदलें। टेढ़े-मेढ़े और फैले हुए ब्रिसल दांतों को साफ करने में सक्षम नहीं होते हैं।
अगर बहुत तेजी से ब्रश करते हैं, तो टूथब्रश को हर दूसरे महीने ही बदलना सही होता है। हालांकि, तेज और जोर से ब्रश करना ठीक नहीं होता है और अक्सर बच्चे ही तेजी से ब्रश करते हैं, जिसका ख्याल पेरेंट्स को रखना चाहिए।
अगर आप गंभीर रूप से बीमार हैं, तो इस दौरान आपने जिस ब्रश का इस्तेमाल किया है, उसे बदल देना ही उचित है। क्योंकि बीमारी के दौरान बैक्टीरिया और माइक्रोब्स की मात्रा बढ़ जाती है, जो आपके ब्रश में ट्रांसफर हो जाती है।
अगर आप इलेक्ट्रिक टूथब्रश का इस्तेमाल करते हैं, तो अमेरिकन डेंटल एसोसिएशन (एडीए) के अनुसार इसके हेड को भी हर 3 महीने पर बदल लेना चाहिए। साथ ही इलेक्ट्रिक टूथब्रश को हर 3 से 5 साल में बदल देना चाहिए। कई इलेक्ट्रिक टूथब्रश के ब्रश हेड में कलर इंडिकेटर भी होते हैं, जो कि ब्रश हेड बदलने का संकेत देते हैं।
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