Monday, June 9, 2025
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युवा सपने..समाज और स्मार्ट फोन की आभासी दुनिया

शुभजिता फीचर डेस्क
युवा इस दुनिया की उम्मीद हैं और भविष्य भी। सशक्त और सकारात्मक युवा सशक्त समाज और देश की जरूरत है। युवा होना सपनों का जागना है…उनको पूरा करने का प्रयास है मगर सपने इतनी आसानी से कहां पूरे हो पाते हैं। बचपन से ही विषम परिस्थितियों में जी रहे बच्चे, अपने आस – पास पुरुष की विकृत पितृसत्तात्मकता को जब देखते हैं और देखते हैं कि समाज में तो सिर्फ शक्ति का वर्चस्व है तो वही बातें उनको आदर्श लगती हैं। हम नैतिकता की जितनी भी बातें कर लें मगर हमारे आचरण में वह अगर दूर – दूर तक नहीं दिखती तो युवाओं से हम नैतिकता की उम्मीद भला कैसे कर सकते हैं। हम कब जान पाते हैं कि युवाओं के मन में क्या चल रहा होता है, उनके सपने क्या होते हैं । हमें यह पता होता है कि हम यह न कर सके, वह न कर सके मगर बतौर अभिभावक आप खुद ही सोचिए कि कब आपने बच्चों से उनको समझकर बात की, कब उनके प्रति संवेदनशील हुए, कब उनके सपनों को समझा और जब नहीं समझा तो यह उम्मीद क्योंकि आपका बच्चा आपको आपके मन की हर बात बताए। आप सही और गलत का निर्णय अपने समय को ध्यान में रखकर ले रहे हैं जबकि समय आगे निकल चुका है। हम यह नहीं कहते कि आधुनिक समय की हर बात अच्छी है मगर कुछ बातें तो अच्छी हो ही सकती हैं। सामंजस्य…सिर्फ आप नहीं बैठाते..आपके बच्चे भी बैठाते हैं। सपनों को पूरा करने में बाधक यह समाज भी है और यह खुलासा हुआ है आईकू द्वारा जारी एक रिपोर्ट में। यह रिपोर्ट तकनीक से जुड़े युवा समाज की, उसके सपनों की पड़ताल करती है और उसकी चुनौतियों पर भी बात करती है। आइए रिपोर्ट में प्राप्त तथ्यों पर डालते हैं नजर –
पश्चिम बंगाल में युवाओं को सामाजिक समर्थन पूरे देश की तुलना में औसतन बेहतर है। अगर राष्ट्रीय स्तर पर 62 प्रतिशत है तो बंगाल में 50 प्रतिशत है।
-पश्चिम बंगाल में 75 प्रतिशत युवा प्रसिद्धि और पहचान की चाहत से होते हैं प्रोत्साहित और उनको कला से प्रेम है। पश्चिम बंगाल में, परफोर्मिंग आर्ट को आगे बढ़ाने के इच्छुक लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से 3 गुना अधिक है।
वीवो ग्रुप के सब-स्मार्टफोन ब्रांड आईकू ने साइबरमीडिया रिसर्च के साथ अपनी पहली द आईकू(iQOO) क्वेस्ट रिपोर्ट 2024 जारी की की है, जो  आज के युवाओं के सपनों, कॅरियर और आकांक्षाओं के ट्रेट्स और ट्रेंड्स पर आधारित है। रिपोर्ट इस आशावादी पीढ़ी के सपनों और जुनून की यात्रा को सामने लेकर है, जो दुनिया भर में सबसे बड़ी पीढ़ी में से एक है। इसमें 20-24 साल की उम्र के 6,700 की प्रतिक्रियाओं के उत्तर  शामिल हैं, जो भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ब्राजील, मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया जैसे 7 देशों से हैं। रिपोर्ट में तीन क्षेत्रों को शामिल किया गया है। जेन जी क्वेस्टर्स की भावना और अपने सपनों को पूरा करने की प्रेरणा, उनके जुनून की खोज में आने वाली बाधाएं और रुकावटें, और उनके हितों को आगे बढ़ाने वाले कॅरियर विकल्प शामिल है।
आज के युग में, प्रसिद्धि और सफलता ने एक नया आयाम ले लिया है, जिसे अब आपकी ऑनलाइन लोकप्रियता से मापा जाता है। सोशल मीडिया और प्रभावित करने वाले संस्कृति की तेज़ गति वाली दुनिया में यह पलक झपकते ही गायब हो जाती है।  जेन जी जनरेशन के लोगों को 15 मिनट की प्रसिद्धि का स्वाद चखने की लालसा होने के साथ, यह विषय भी सवाल उठाता है कि क्या यह कॅरियर केवल आकर्षक है या नैतिक भी है।
रिपोर्ट में  जेन जी के लिए सफलता का क्या अर्थ है, इसके विभिन्न पहलुओं की गहराई से पड़ताल की गई है। इसमें क्वेस्टर्स की ड्राइव, जुनून और महत्वाकांक्षा को एक क्वांटिटी मीट्रिक – क्वेस्ट इंडेक्स या “क्यू आई” से समझाया गया है। परिणामों से पता चलता है कि भारत का क्वेस्ट इन्डेक्स 9.1 है, इसके बाद मलेशिया 8.7 क्यूआई , थाईलैंड और अमेरिका 8.2 क्यूआई, इंडोनेशिया 8.1 क्यूआई, यूनाइटेड किंगडम 8 क्यू आई और ब्राजील 7.8 क्यू आई के साथ आता है।
रिपोर्ट में पश्चिम बंगाल से संबंधित कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:
-पश्चिम बंगाल में 98 प्रतिशत युवा सोशल मीडिया स्टार बनने का सपना देखते हैं।
– पश्चिम बंगाल में 75 प्रतिशत  युवा प्रसिद्धि और पहचान की इच्छा से प्रेरित होते हैं।
– पश्चिम बंगाल में 88 प्रतिशत युवाओं का अंतिम लक्ष्य एक नेटवर्थ हासिल करना है।
– पश्चिम बंगाल में  जेन जी अपने लक्ष्यों को पूरा करने के लिए राष्ट्रीय औसत की तुलना में दोगुनी पहल करते हैं।
-पश्चिम बंगाल में  जेन जी (Gen Z) को मिलने वाला सामाजिक समर्थन राष्ट्रीय औसत से अधिक है, जबकि सामाजिक दबाव केवल 50 प्रतिशत है, जो राष्ट्रीय स्तर पर 62 प्रतिशत है।
पश्चिम बंगाल में परफोर्मिंग आर्ट के क्षेत्र में करियर बनाने की इच्छा रखने वाले लोगों की संख्या राष्ट्रीय औसत से तीन गुनी है।
पश्चिम बंगाल में  जेन जी के बीच वैज्ञानिक क्षेत्र में रुझान राष्ट्रीय औसत से 3.5 गुना अधिक है।
 पश्चिम बंगाल में 87% लोग अपनी विरासत छोड़ना चाहते हैं, जबकि 81% दूसरों के लिए प्रेरणा बनना चाहते हैं।
 पश्चिम बंगाल में 80 प्रतिशत लोगों ने अपने सपनों को पूरा करने के लिए नौकरी या कॅरियर बदला है, जबकि 76 प्रतिशत ने आगे बढ़ने के लिए छात्रवृत्ति के लिए आवेदन किया है।
– पश्चिम बंगाल में 78 प्रतिशत लोगों का मानना है कि उनका व्यक्तिगत जुनून और रुचि उनकी सबसे बड़ी प्रेरणा है।
– 97 प्रतिशत लोगों को लगता है कि असफलता उन्हें काफी हद तक हतोत्साहित करती है। हालांकि, 95 प्रतिशत यह भी महसूस करते हैं कि असफलता उन्हें सीखने के अवसर प्रदान करती है।
वहीं रिपोर्ट के कुछ प्रमुख ‘वैश्विक और भारतीय’ तथ्य इस प्रकार हैं:
•भारत में 43 प्रतिशत और विश्व स्तर पर 46 प्रतिशत रेस्पोंडेंट्स अपने करियर में सफल होने के लिए वर्क-लाइफ बैलेंस छोड़ने को तैयार हैं।
•पुरुषों की तुलना में महिलाओं में से दोगुनी संख्या में यह महसूस होता है कि लिंग उनके सपनों को पूरा करने में बाधा डालता है।
•भारतीय जेन जेड में से केवल 9 प्रतिशत ही उद्यमिता अपनाना चाहते हैं क्योंकि वे कार्य जीवन में स्थिरता और सुरक्षा चाहते हैं।
•19 प्रतिशत भारतीय बड़ी कंपनियों में करियर की उन्नति को स्टार्टअप्स के बजाय पसंद करते हैं।
•चार में से एक भारतीय उत्तरदाता नए युग के जॉब क्षेत्र जैसे कंटेंट क्रिएशन, डेटा विश्लेषण, एआई और साइबर सुरक्षा की ओर अधिक इच्छुक हैं।
•भारतीय युवा मेहनती हैं, वे अपने वैश्विक साथियों की तुलना में दोगुनी पहल करते हैं।
•84 प्रतिशत भारतीय क्वेस्टर्स का मानना है कि उनकी नौकरी उनके लक्ष्यों के अनुरूप है, जबकि विश्व स्तर पर यह संख्या 72% है।
•91 प्रतिशत भारतीय उत्तरदाताओं का मानना है कि गैप ईयर उनके सपनों और आकांक्षाओं को पूरा करने में उनकी मदद कर सकता है।
•46 प्रतिशत लोगों को अपने पसंद के करियर को आगे बढ़ाने में वित्तीय बाधाओं का सामना करना पड़ता है। हालांकि, 90% से अधिक लोगों को बाधाओं के बावजूद अपने सपने को पूरा करने का विश्वास है।
•65 प्रतिशत असफलता को एक सीखने के अवसर के रूप में देखते हैं, और 60% का मानना है कि यह उन्हें उनके सपनों की ओर धकेलता है।
•51 प्रतिशत क्वेस्टर्स ने कहा कि वे अपनी खोज का समर्थन करने के लिए उच्च शिक्षा ग्रहण करेंगे, जबकि 32 प्रतिशत का मानना है कि उन्हें अपने सपनों का समर्थन करने के लिए प्रासंगिक नौकरियां करनी चाहिए।
आईकू और साइबर मीडिया रिसर्च (सीएमआर) द्वारा संयुक्त रूप से किए गए एक अध्ययन में 7 देशों – भारत, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, ब्राजील, मलेशिया, थाईलैंड और इंडोनेशिया के 20 से 24 साल के 6700 युवाओं के विचारों को शामिल किया गया है। इस प्राथमिक शोध से पता चलता है कि 62 प्रतिशत भारतीय युवा अपने सपनों को पूरा करने के लिए अपने शौक और अन्य रुचियों को छोड़ने को तैयार हैं। रिपोर्ट के सभी निष्कर्ष इस बात पर केंद्रित हैं कि कैसे आज की स्नैप सेवी  जेन जी अपनी महत्वाकांक्षाओं को पूरा करने की तीव्र इच्छा से प्रेरित है।  रिपोर्ट पर टिप्पणी करते हुए, आईकू इंडिया के सीईओ निपुण मार्या ने कहा, “आईकू  में क्वेस्ट की स्पिरिट है, जो हर कम्युनिकेशन में जेन जी के साथ । सीमाओं को आगे बढ़ाने और अधिक प्रयास करने के लिए समर्पित ब्रांड के रूप में, आईकू इन मूल्यों को अपने जेन जी दर्शकों तक पहुंचाता है। सपनों का समर्थन करने की हमारी प्रतिबद्धता को मजबूत करते हुए, पिछले साल, आईकू ने कानपुर से भारत के पहले 23 साल के एक चीफ गेमिंग ऑफिसर को शामिल किया। हम युवाओं को अपने जुनून को आगे बढ़ाने के अवसर प्रदान करने के लिए प्रतिबद्ध हैं। ब्रांड सक्रिय रूप से उन पहलों में शामिल होता है जो व्यक्तियों को अपनी क्षमता का एहसास करने में मदद करते हैं और यह रिपोर्ट उस दिशा में एक प्रयास है। इसका उद्देश्य जेन जी को कई चुनौतियों के बावजूद अपने खुद की खोज पर निकलने और अपने सपनों को प्राप्त करने के लिए प्रेरित करना है। रिपोर्ट के निष्कर्ष जेन जी को बेहतर ढंग से समझने में महत्वपूर्ण इनसाइट प्रदान करते हैं, जिससे हम उनकी जरूरतों को अधिक प्रभावी ढंग से पूरा कर सकते हैं।”
रिपोर्ट पर अपने विचार साझा करते हुए, साइबर मीडिया रिसर्च (सीएमआर) के इंडस्ट्री रिसर्च ग्रुप के  प्रभु राम ने कहा कि आज की जटिल और डिजिटल दुनिया में, आज के युवा अभूतपूर्व चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। साइबर मीडिया रिसर्च (सीएमआर) इन बदलते उपभोक्ता पैटर्न को समझने में अग्रणी रहा है। आईकू द्वारा कमीशन किए गए द क्वेस्ट रिपोर्ट के लिए सीएमआर के रिसर्च ने एशिया, यूरोप, उत्तरी अमेरिका और दक्षिण अमेरिका के युवाओं के दृष्टिकोण को खोजा है, जिससे उनके मनोदशा और उनकी खोजों में जरुरी इनसाइट मिले हैं। बड़े सपनों के साथ स्पष्टता और फोकस के उच्च स्तर और एक हसलर माइंडसेट भारत के आज के युवाओं की स्थिति को रेखांकित करते हैं। क्वेस्ट रिपोर्ट में वैश्विक मंच पर भारत की जबरदस्त क्षमता पर प्रकाश डाला गया है तथा इस उल्लेखनीय पीढ़ी को प्रेरित करने वाले आशावाद को रेखांकित किया गया है।
यह सही है कि स्मार्ट फोन, सोशल मीडिया की चकाचौंध युवाओं को आकर्षित कर रही है। निश्चित रूप से अभिव्यक्ति का सशक्त माध्यम सोशल मीडिया पर मिलता है मगर उस ट्रोलिंग और आभासी गालियों का क्या किया जाए। ऑनलाइन दुनिया में डूबकर दिखावे से भरी दुनिया को अंतिम सत्य मान लेने वालों को कौन बताएगा कि सत्य का ठोस धरातल कुछ अलग होता है। वहां सहानुभूति मिल सकती है मगर जीवन के कठोर धरातल पर हर किसी को अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी। युवाओं को सही मार्गदर्शन की जरूरत है…उनको समझने की जरूरत है और यह काम हम सबको ही करना पड़ेगा।

साहित्य व संस्कृति के रंग से सजी मुंशी प्रेमचंद जयंती

कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद जयंती देश भर में उत्साह के साथ मनाई गयी। बंगाल में कई शिक्षण संस्थानों एवं संगठनों के साथ संस्थाओं ने कई कार्यक्रम आयोजित किए। प्रस्तुत है कुछ कार्यक्रमों की झलक –
प्रेमचंद भारत को जानने की खिड़की हैं:शंभुनाथ
कोलकाता। भारतीय भाषा परिषद और सांस्कृतिक पुनर्निर्माण मिशन की ओर से प्रेमचंद जयंती के अवसर ‘प्रेमचंद और आज का विश्व’ विषय पर राज्य स्तरीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया।कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए भारतीय भाषा परिषद के निदेशक डॉ. शम्भुनाथ ने कहा कि प्रेमचंद भारत को जानने की खिड़की हैं। उनका कथा साहित्य भारतीय आत्मा की खोज है जो संकुचित राष्ट्रवाद के वर्तमान युग में भी मानवतावादी प्रेरणा देता है। रवींद्र भारती विश्वविद्यालय के प्रो. हितेंद्र पटेल ने कहा कि प्रेमचंद ने 1919 से 1936 के बीच की अपनी साहित्यिक यात्रा में उस युग का ऐतिहासिक यथार्थ चित्रित किया है। किसान को साहित्य के केंद्र में रखकर उन्होंने अपने समय का सबसे क्रांतिकारी कार्य किया है। यांत्रिक संस्कृति के मुकाबले में साहित्यिक संस्कृति के निर्माण के क्रम में उनकी भूमिका ऐतिहासिक है।विश्वभारती, शांतिनिकेतन के प्रो. राहुल सिंह ने कहा कि प्रेमचंद की  वैचारिक और रचनात्मक यात्रा में एक बदलाव दिखता है।वे जहाँ से लेखन शुरू किये थे उससे बिलकुल अलग जगह ले जाकर खत्म करते हैं।  प्रेमचंद का अंतिम चरण (1930-31) सबसे महत्वपूर्ण है। अपने तमाम सुधारवादी रास्तों को जिनकी वकालत वे अपनी शुरुआती रचना में करते हैं, खुद उसे खारिज कर देते हैं।इस संदर्भ में एक मोहभंग भी देखने को मिलता है। कलकत्ता विश्वविद्यालय की प्रो. राजश्री शुक्ला ने कहा कि प्रेमचंद का व्यक्तित्व उदार था, जिसमें विपरीत विचारधारा वाले साहित्यकारों के महत्व का स्वीकार भी था। उनका लेखन आज भी इसलिए प्रासंगिक है क्योंकि इनके शब्दों के पीछे आंतरिक ईमानदारी थी। डॉ. रामप्रवेश रजक ने कहा कि प्रेमचंद जब लिख रहे थे तब देश को आजादी नहीं मिली थी। उनके लिखने का उद्देश्य स्वराज प्राप्ति था। युवा आलोचक डॉ. इतु सिंह ने कहा कि प्रेमचंद के संपादकीय लेखों में भारत के उस दौर के राजनीतिक इतिहास का ही नहीं विश्व के राजनीतिक परिदृश्य का विश्वसनीय ब्यौरा मिलता है।  प्रियंकर पालीवाल ने कहा कि प्रेमचंद आज भी हमारे सबसे समर्थ भाषा शिक्षक हैं। उनका साहित्य पुनर्निर्माण का साहित्य है। वे हमें मानसिक दासता और साम्प्रदायिकता के खिलाफ सचेत करते हैं तथा महाजनी सभ्यता अर्थात्‌ पूंजीवाद के खतरों से आगाह करते हैं। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए मृत्युंजय श्रीवास्तव ने कहा कि दुनिया में जैसे जैसे दुर्दिन गहरा होता जाएगा, प्रेमचंद अधिक काम के सिद्ध होते जाएंगे। प्रेमचंद वह एक ऊंचा टीला हैं जिस पर खड़े होकर दुनिया को स्कैन किया जा सकता है। इस अवसर पर कलकत्ता विश्वविद्यालय से पूजा गुप्ता, प्रेसीडेंसी विश्वविद्यालय से बृजेश प्रसाद, कल्याणी विश्वविद्यालय से पवन कुमार, सेंट जेवियर्स से रेशमी सेन शर्मा, विद्यासागर विश्वविद्यालय से रूपेश कुमार यादव और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय से कंचन भगत ने आलेख पाठ किया। इसके अलावा संस्कृति नाट्य मंच द्वारा प्रेमचंद की कहानी ‘हिंसा परमो धर्म:’ पर आधारित नाटक का मंचन हुआ।प्रो.संजय जायसवाल ने कहा प्रेमचंद ने सांप्रदायिक ताकतों को चिह्नित करते हुए उनसे बचने का संदेश दिया है।आज के धार्मिक पाखंड और अंधविश्वास के इस दौर में प्रेमचंद की रचनाएं भरोसे की जमीन हैं।मिशन के संरक्षक श्री रामनिवास द्विवेदी ने कहा संस्कृतिकर्मियों की यह प्रस्तुति प्रासंगिक है।यह मंचन आदमियत का आख्यान है।इस अवसर पर प्रो. अमित राय,कवि राज्यवर्धन, प्रो.चित्रा माली,राकेश सिंह, प्रो.एकता हेला,प्रो.मंटू दास,शिक्षक गोविंद चौधरी, अमरजीत पंडित, प्रो.विनय मिश्र, प्रो.संजय राय,संजय दास,उमा डगवान, रवि अग्रहरि,प्रो.नवोनीता दास ,शुभम पांडे,सुषमा कुमारी, ज्योति चौरसिया, सपना खरवार, अनुराधा महतो,स्वीटी महतो  सहित बड़ी संख्या में साहित्य एवं कला प्रेमी उपस्थित थे।डॉ कुसुम खेमानी ने अपनी शुभकामनाएं दी।कार्यक्रम का सफल संचालन प्रो. लिली शाह एवं धन्यवाद ज्ञापन श्रीमती विमला पोद्दार ने किया।
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गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार व ‘पड़ाव’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था ने मनायी प्रेमचंद जयंती
नैहट्टी, उत्तर चौबीस परगना। गत 30 जुलाई मंगलवार को संध्या 4.30 बजे प्रेमचंद-जयंती की पूर्व संध्या पर गरीफा मैत्रेय ग्रंथागार व ‘पड़ाव’ साहित्यिक एवं सांस्कृतिक संस्था के संयुक्त तत्वावधान में एक अंतरंग संगोष्ठी का आयोजन किया गया । संगोष्ठी की अध्यक्षता वरिष्ठ कवयित्री, कथाकारा, आलोचक, समाजसेवी एवं संपादक डॉ. इंदु सिंह द्वारा किया गया। संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता के रूप में उपस्थित रहें पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार एवं वक्ता के रूप में उपस्थित रहें बैरकपुर राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ कॉलेज, हिंदी विभाग के डॉ. बिक्रम कुमार साव। संगोष्ठी का आरंभ प्रेमचंद के छायाचित्र पर श्रद्धा सुमन अर्पित करके किया गया। इसके बाद टीटागढ़ एंगलो वर्नाकुलर हाई स्कूल उच्च माध्यमिक के शिक्षक पप्पू रजक द्वारा प्रेमचंद की कहानी ‘गिल्ली-डंडा’ की एकल नाट्य वाचन प्रस्तुत किया गया। संगोष्ठी सत्र में ‘प्रेमचंद की रचनाओं का लोकपक्ष’ विषय पर अपनी बात रखते हुए डॉ. बिक्रम कुमार साव ने प्रेमचंद के रचनाओं का मूल्यांकन साहित्य की सांख्यिकी के आधार पर किया और बताया की किस प्रकार से प्रेमचंद अपनी रचनाओं में एक रचनात्मक समीकरण तैयार करते हैं। उनके रचनाओं का लोकपक्ष बहुत ही मजबूत है और वे मानवीय संबंधों और संवेदनाओं के गणित के गणितज्ञ हैं।उनकी रचनाएं हमें संवेदनशील बनाती है और यह संवेदनशीलता ही लोकपक्ष है। समाज से, मानव से, मानवेत्तर प्राणियों से, किसान से, मजदूर से, गांव से, जमीन से, मानवीय संबंधों, व्यापारों, व्यवहारों से जुड़ना, उन्हें समझना, पाठकों को उनके प्रति संवेदनशील बना देना ही प्रेमचंद की रचनाओं के लोकपक्ष का मूल उद्देश्य है। संगोष्ठी के विशिष्ट वक्ता पश्चिम बंग राज्य विश्वविद्यालय, हिंदी विभाग के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विनोद कुमार ने  प्रेमचंद के साहित्य में लोकतत्व पर अपनी बात रखते हुए शास्त्र और लोक में अंतर स्पष्ट करते हुए लोक पक्ष की सरलता को व्याख्यायित किया। उन्होंने कहा कि प्रेमचंद सबसे अधिक पढ़ें जाने वाले साहित्यकार हैं जिन्हें अन्य भाषाओं में भी उतना ही पढ़ा जाता है जितना हिन्दी साहित्य में और यह पठनीयता उनके लोकपक्ष के कारण ही संभव है। प्रेमचंद का लोक उनका गांव है। गांव अथवा ग्राम संस्कृति ही मूलतः लोक संस्कृति है। जिसमें अभी भी इमानदारी, जीवंतता और सच्चापन है जो हमें जीवन के तमाम मूल्यों को गहन दृष्टि से देखने की समझ देती है। संगोष्ठी के अध्यक्षीय भाषण में वरिष्ठ कवयित्री, कथाकारा, आलोचक, समाजसेवी एवं संपादक डॉ. इंदु सिंह ने लोक पक्ष क्या है? स्पष्ट करते हुए कहा कि कहानीकार व रचनाकार जो भी लिखता है वह अपने आस-पास के वातावरण, परिवेश के घेरे से अनुभव को लिखता है। उसका वह आयतन ही लोक है। कोई भी रचनाकार अपनी समाज से कट कर नहीं लिख सकता। प्रेमचंद का समाज अथवा लोक किसान, मजदूर, परित्यक्त नारी, शोषित समाज है। इसके हरेक पात्र पूरे लोक का प्रतिनिधित्व करने वाली होती है। धनिया हो या निर्मला सभी अपने पूरे समाज को साथ लिए चलती है। यह उनकी विशेषता है। प्रेमचंद को पढ़ कर भी ऐसा लगता है कि अभी कुछ नहीं पढ़ा है हर बार उनकी कृति हमें नयी सीख देती है। यह नयापन लोकतत्व ही ला सकता है। इस अवसर पर प्रसिद्ध विश्व यात्रा- वृतांत लेखिका एवं कथाकारा माला वर्मा की नवीनतम कहानी-संग्रह ‘हम दोनों’ का लोकार्पण हुआ। कार्यक्रम में शिक्षक डॉ. कार्तिक कुमार साव, शिक्षक सुभाष कुमार साव, शिक्षक विजय चौधरी, विदिप्ता, नैंसी पाण्डेय, हर्ष साव, शुभम साव, चेतन दास, सोंटु चौधरी, रितेश सिंह, पूजा मिश्रा, अफसाना खातून, सुजल चौधरी सहित अन्य महाविद्यालय व विश्वविद्यालय के विद्यार्थीगण उपस्थित रहें। कार्यक्रम का सफल संचालन सावनी कुमारी राम और धन्यवाद ज्ञापन रूद्रकान्त ने किया।
विद्यासागर विश्वविद्यालय में प्रेमचंद जयंती का आयोजन
मिदनापुर . विद्यासागर विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग द्वारा प्रेमचंद जयंती पर “प्रेमचंद और आज का भारत” विषय पर परिचर्चा एवं अंतर महाविद्यालय हिंदी ज्ञान प्रतियोगिता एवं आशु भाषण प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। स्वागत वक्तव्य देते हुए विभागाध्यक्ष डॉ. प्रमोद कु. प्रसाद ने कहा आज मनुष्य-मनुष्य में बँटवारा हो रहा है ऐसे में प्रेमचंद हमारे समक्ष मनुष्यता को चुनने का प्रस्ताव लेकर आते हैं। अध्यक्षीय वक्तव्य देते हुए प्रो. दामोदर मिश्र ने कहा कि प्रेमचंद को मुख्यतः उपन्यासकार के रूप में प्रसिद्धि  मिली जिसके चलते उनका कथेतर साहित्य दब गया है ।प्रेमचंद का लेखन महज आदर्श और यथार्थ का मामला नहीं है बल्कि संवेदनशीलता का भी है। डॉ. पंकज साहा ने कहा प्रेमचंद मानवतावादी कथाकार हैं । उनकी पहली कहानी से अंतिम कहानी तक इसी मानवता के दर्शन मिलते हैं । अतिथि खड़गपुर कॉलेज के विभागाध्यक्ष डॉ. संजय पासवान ने कहा भारत की रीढ़ (किसानों) को तोड़ने की व्यवस्था लगातार जारी है और प्रेमचंद ऐसी व्यवस्था को ख़ारिज करने वाले साहित्यकार हैं। मिदनापुर कॉलेज के डॉ रंजीत सिन्हा ने कहा प्रेमचंद ने जिस तरह आम जनता (जनमानस) को अपने साहित्य में स्थान दिया है वह साहित्य के क्षेत्र में महत्पूर्ण घटना है। राजा नरेन्द्र लाल खान वुमेन कॉलेज की डॉ. रेणु गुप्ता ने कहा भारतीय परम्परा का समर्थन करते हुए उसमें निहित बुराइयों का विरोध करना प्रेमचंद कहीं नहीं भूलते, उनकी दूरदर्शिता आज के समय में जितनी समीचीन है उतनी वह भविष्य के लिए भी सिद्ध होगी। डॉ. संजय जायसवाल ने कहा आज के बुनियादी प्रश्नों को समझने के लिए प्रेमचंद के भारत को जानना होगा। परम्परा के साथ-साथ न्याय को जोड़ने की लड़ाई है प्रेमचंद का साहित्य।इस अवसर पर  क्विज प्रतियोगिता में पहला स्थान विद्यासागर विश्वविद्यालय की लक्ष्मी यादव,सृष्टि गोस्वामी एवं विशाल यादव को दूसरा स्थान राजा नरेंद्र लाल खान कॉलेज की सरस्वती कुमारी, सुहानी मिश्रा एवं ज्योति कुमारी को एवं तीसरा नेहा शर्मा, नीशू कुमारी एवं सत्यम पटेल को मिला।आशु भाषण का पहला स्थान नेहा शर्मा दूसरा बुसरा सनवर एवं तीसरा स्थान संयुक्त रूप से लक्ष्मी यादव और सरस्वती कुमारी को मिला।इस अवसर पर विभाग की शोधार्थी उस्मिता गौड़, सोनम सिंह सहित विभिन्न कॉलेजों से आए विद्यार्थियों ने प्रेमचंद के साहित्य पर विचार रखा।कार्यक्रम का संयोजन विभाग की  शोधार्थी सुषमा कुमारी ने किया। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए डॉ श्रीकांत द्विवेदी ने कहा कि प्रेमचंद भारतीय समाज के प्रतिनिधि लेखक हैं।उनके पात्र लोक की आवाज हैं।
आज भी सबसे अधिक पढ़े जाने वाले लेखक हैं प्रेमचंद-डॉ. अमरनाथ शर्मा
 कोलकाता । कोलकाता के प्रसिद्ध कॉलेज खुदीराम बोस सेंट्रल कॉलेज के  हिंदी विभाग की ओर से प्रेमचंद स्मृति व्याख्यानमाला के अवसर पर ‘प्रेमचंद को कैसे पढ़ें’ विषय पर व्याख्यानमाला का आयोजन किया गया। स्वागत वक्तव्य देते हुए कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ मोहम्मद अफसर अली ने कहा कि वर्तमान युग तकनीक का युग है। इस तकनीक युग की वजह से लोगों के भीतर मानवता खत्म होती जा रही है। ऐसे समय में प्रेमचंद को याद करना बेहद जरूरी है।
विषय का प्रवर्तन करते हुए विभागाध्यक्ष डॉ शुभ्रा उपाध्याय ने कहा कि प्रेमचंद के साहित्य में सभी विमर्श मिलते हैं। उनकी रचनाओं को छोड़कर कोई भी विमर्श शुरू नहीं किया जा सकता है।
इस अवसर पर बतौर मुख्य वक्ता उपस्थित थे कोलकाता विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर एवं विभागाध्यक्ष प्रो. अमरनाथ शर्मा। उन्होंने प्रेमचंद को पढ़ने की विभिन्न दृष्टियों का हवाला देते हुए कहा कि प्रेमचंद को समझने के लिए उनके समय को समझना होगा तभी उनकी रचनाओं के सही संदर्भ को समझा जा सकता है। प्रेमचंद ने जो लिखा है वो अपने समय के आगे का भी है। उनकी भाषा आम जनता की भाषा है।आज के समय में भी सबसे अधिक पढ़े जाने वाले लेखक हैं प्रेमचंद। डॉ. मधु सिंह ने कहा कि प्रेमचंद का लेखन भारतीयता का आख्यान है। वे औपनिवेशिक सत्ता के खिलाफ स्वराज और सामाजिक स्तर पर सुराज की बात करते हैं। कार्यक्रम का सफल संचालन करते हुए विभाग के शिक्षक राहुल गौड़ ने कहा कि प्रेमचंद की रचनाओं से गुजरते हुए हम समाज के प्रत्येक वर्ग से रूबरू हो सकते हैं। धन्यवाद ज्ञापन देते हुए इतिहास विभाग की प्रो. अनामिका नंदी ने कहा कि प्रेमचंद को सिर्फ इसलिए नहीं पढ़ना चाहिए कि वे सिलेबस में हैं बल्कि पाठ्यक्रम के अतिरिक्त और भी रचनाओं को पढ़ना चाहिए।उनकी रचनाओं  से हम जीवन और समाज को समझ सकते हैं।इस मौके पर प्रो. विष्णु सिकदर, प्रो. सुब्रत मल्लिक,प्रो. सिउली विश्वास, प्रो. शर्मिष्ठा मुखर्जी, पुनीता प्रसाद,अमित कौर सहित कॉलेज के विद्यार्थी उपस्थित थे।
प्रेमचंद की रचनाएं एंटीडांट हैं :  डॉ. विक्रम कुमार साव
नैहाटी/गौरीपुर अंचल की सामाजिक संस्था न्यू कल्याण संघ के तत्वाधान में प्रेमचंद जयंती मनाई गई।  कार्यक्रम का शुभारंभ प्रेमचंद की तस्वीर पर माल्यार्पण और दीपक प्रज्वलित करके किया गया।कार्यक्रम में एंड्रयूज हाई स्कूल के अध्यापक श्री सुभाष साव ने प्रेमचंद की रचनाओं के महत्व को बताते हुए कहा की वर्तमान पीढ़ी के छात्रों के लिए प्रेमचंद की कहानियां बहुत उपयोगी हैं।ये कहानियां विद्यार्थियों के मनोरंजन के साथ-साथ उन्हें नैतिक शिक्षा की तरफ उन्मुख करती है। जगद्दल श्री हरि उच्च विद्यालय के अध्यापक डॉ. कार्तिक कुमार साव ने प्रेमचंद की रचनाओं में वर्णित समस्याओं को वर्तमान संदर्भ में प्रासंगिक बताते हुए अंचल विशेष की समस्याओं को उजागर करते हुए उन समस्याओं पर चिंता व्यक्त किया और प्रशासन एवं प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान आकृष्ट किया।एंग्लो वर्नाकुलर हाई स्कूल उच्च माध्यमिक के अध्यापक श्री पप्पू रजक ने प्रेमचंद के निबंधों का जिक्र करते हुए महाजनी सभ्यता के परिवर्तित रूप को व्याख्यायित किया। गौरीपुर हिंदी हाई स्कूल के अध्यापक श्री राजकुमार साव ने शिक्षा व्यवस्था की दुर्गति का पर्दाफाश करते हुए बताया कि हमे प्रेमचंद के साहित्य में उपस्थित शिक्षा संबंधी विचारों को  क्रियान्वित करना होगा।
कार्यक्रम के विशिष्ट वक्ता बैरकपुर राष्ट्रगुरु सुरेंद्रनाथ कॉलेज, हिंदी विभाग के डॉ. बिक्रम कुमार साव ने कहा की प्रेमचंद की रचनाएं विषहर औषधीय गुणों से संपन्न हैं। जो मनुष्य के भीतर की कलुषता, ईर्ष्या, द्वैष, अहंकार, घमंड, बड़बोलापन, चुगलखोरी,बेईमानी जैसी बीमारियों को दूर करती हैं। हृदयगत भावनाओं और व्यापारों के संक्रमण के उपचार में  उनकी रचनाएं एंटीबायोटिक की तरह काम करती हैं। उनकी रचनाएं हमारे हिंदी साहित्य जगत की ही नहीं बल्कि भारतीय भाषाओं के साहित्य जगत के साथ विश्व साहित्य जगत की एक बड़ी उपलब्धि है।
कार्यक्रम में , काउंसलर आरती देवी माल्लाह, श्री सत्य प्रकाश दुबे, शिक्षक श्याम राजक ,शिक्षक दिनेश दास, शिक्षक चंदन भाई, शिक्षक लालटू साव के साथ संस्था के सदस्य गण उपस्थित रहें।कार्यक्रम के अंत में कार्यक्रम के संयोजक श्री रामचंद्र मल्लाह ने सभी वक्ताओं और श्रोताओं का धन्यवाद ज्ञापित किया।
नैहाटी में प्रेमचंद जयंती का आयोजन
 ‌नैहाटी । नैहाटी कल्चरल सोसायटी द्वारा मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का आयोजन नैहाटी के बंकिम पाठागार में किया गया। इस अवसर पर परिचर्चा के साथ मेधावी विद्यार्थियों को सम्मानित  किया गया। मुख्य अतिथि के रूप में नैहाटी नगरपालिका के महापौर श्री अशोक चटर्जी,उप पौरप्रधान श्री भजन मुखर्जी, सीआईसी श्री कनाईलाल आचार्य एवं पार्षद श्री राजेश साव उपस्थित थे। कार्यक्रम का शुभारंभ मुंशी प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। शुभकामना संदेश देते हुए श्री अशोक चटर्जी ने कहा कि साहित्य को पढ़ना समाज को जागरूक करना है। प्रो.एन चंद्रा राव ने कहा कि मुंशी प्रेमचंद की कहानियों को नये तरीके से पढ़ने की जरूरत है। डॉ.कमल कुमार ने कहा कि विश्व साहित्य में प्रेमचंद का महत्त्व युगांतरकारी है। प्रेमचंद ने उर्दू में लिखना शुरू किया और फिर हिंदी में लिखने लगे। शुरुआती दौर में प्रेमचंद के लेखन पर पुरानी किस्सागोई की शैली का प्रभाव है, पर बाद में वे यथार्थवादी शैली अपना लेते हैं। डॉ.कलावती कुमारी ने कहा कि प्रेमचंद हिंदी के युग प्रवर्तक रचनाकार हैं। उनकी रचनाओं में तत्कालीन इतिहास बोलता है। डॉ.अजित कुमार दास ने कहा कि प्रेमचंद ने हिन्दी उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसने पूरी शती के साहित्य का मार्गदर्शन किया। वे एक संवेदनशील लेखक, सचेत नागरिक, कुशल वक्ता तथा सुधी संपादक थे। संस्था के अध्यक्ष श्री सुबोध गुप्ता ने कहा कि बंकिम चन्द्र चट्टोपाध्याय की नगरी में मुंशी प्रेमचंद जयंती समारोह का आयोजन नैहाटी की सांस्कृतिक विरासत को दर्शाता है, उन्होंने कहा कि श्री अशोक चटर्जी महोदय हमेशा संस्था के गतिविधियों में शामिल रहते हैं। कार्यक्रम का संचालन श्री गोपाल नारायण गुप्ता एवं श्री अमरजीत पंडित ने किया।इस आयोजन में गौरीपुर हिंदी हाई स्कूल,हाजीनगर आदर्श हिंदी विद्यालय, सरस्वती बालिका विद्यालय, आनंद स्वरूप हाई स्कूल,विद्या विकास हाई स्कूल, गुरुकुल ग्लोबल एवं सेंट ल्यूक्स डे स्कूल के दसवीं एवं बारहवीं के प्रथम, द्वितीय एवं तृतीय स्थान पाने वाले विधार्थियों को सम्मानित किया गया।इस अवसर पर प्रो. दीक्षा गुप्ता,प्रो.परमजीत पंडित,शाखा प्रबंधक श्री मंजित कुमार दास, राजभाषा हिंदी अधिकारी श्री पतीत रेड्डी,शिक्षक डॉ. सुशील कुमार पाण्डेय, कन्हैयालाल मूर्ति,श्री राजेश कुमार पाण्डेय,श्री असित कुमार पाण्डेय,श्री संजय राम,श्रीमती शिपाली गुप्ता ,श्री धीरज केशरी,श्री योगेश साव,श्री रोहित गुप्ता,मो.शकील अख़्तर,श्री शम्भु रजक,श्री संजीव पंडित एवं श्री उदय साव समेत बड़ी संख्या में साहित्य प्रेमी उपस्थित थे।संस्था के  चेयरपर्सन श्री राजेन्द्र गुप्ता ने धन्यवाद ज्ञापित करते हुए कहा कि यह आयोजन नैहाटी की प्रतिभाओं को जन -जन तक पहुंचाने वाला कार्यक्रम है। आने वाले समय में यह संस्था और अधिक साहित्यिक-सांस्कृतिक बुनियाद को मजबूती प्रदान करेगा। आयोजन को सफल बनाने में संस्था के कोषाध्यक्ष श्री विकास गुप्ता एवं महासचिव प्रो.मंटू दास की महत्वपूर्ण भूमिका रही।
उमेशचन्द्र कॉलेज में प्रेमचन्द जयंती
कोलकाता । उमेशचन्द्र कॉलेज हिन्दी विभाग, आंतरिक गुणवत्ता और आश्वासन प्रकोष्ठ, राष्ट्रीय सेवा योजना और छात्र परिषद द्वारा ‘ प्रेमचंद जयंती’ के उपलक्ष्य में साहित्यिक कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रेमचंद जयंती के उपलक्ष्य में कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ॰ मो॰ तफ़ज्जल हक़ ने प्रेमचंद के जीवन संघर्ष एवं उनके साहित्य की प्रासंगिकता के संबंध में अपने विचार रखें। हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ कमल कुमार ने प्रेमचंद के कुछ चुनिंदा कहानियों के माध्यम से सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक संवेदना को उजागर किया। प्रो. ज्योति पासवान ने प्रेमचंद के उपन्यासों के माध्यम से तत्कालीन समाज में स्त्री के जीवन, संघर्ष, अस्मिता एवं अधिकार संबंधी बातें रखीं। प्रो. परमजीत ने प्रेमचंद के कहानी कला पर अपने महत्वपूर्ण विचार रखें। कार्यक्रम की शुरुआत प्रेमचंद के चित्र पर माल्यार्पण के साथ हुई। इस अवसर पर राष्ट्रीय सेवा योजना के बच्चों द्वारा विशेष प्रस्तुति के रूप में ’नमक का दरोगा’ कहानी का नाट्य मंचन किया गया। इस नाटक में दीप्तार्घ पाल, गुनगुन गुप्ता, हर्ष गुप्ता, प्रियांशु सिंह, अंकित सिंह, रोहन रजक, आयशा, पवन साव, हर्ष कोठारी, सुमित सराज आदि प्रमुख थे।
कॉलेज के छात्रों गुनगुन गुप्ता, कुमकुम जायसवाल और संजिनी राय ने काव्य आवृत्ति एवं नृत्य प्रस्तुति की। कार्यकम का कुशल संचालन तमोघ्ना दत्त ने किया और धन्यवाद ज्ञापन गौतम दास ने किया। मंच पर उपस्थित थे आंतरिक गुणवत्ता और आश्वासन प्रकोष्ठ को-ऑर्डिनेटर प्रो. रमा दे नाग, एक्सटेंडेड कैंपस की प्रभारी प्रो. मर्सी हेंब्रम, अरुण कुमार बनिक, डॉ. अरूप बख्शी, कावेरी कर्मकार, पूजा मुखर्जी, सोनाली चक्रवर्ती आदि के साथ तृणमूल छात्र परिषद के भूषण प्रसाद सिंह, आनंद रजक, अमित सिंह, सुष्मिता सिंह आदि छात्र उपस्थित थे।

अपने अधिकारों के प्रति जागरुक हों महिलाएं-प्रतिभा सिंह

कोलकाता । अंतरराष्ट्रीय क्षत्रिय वीरांगना फ़ाउंडेशन, पश्चिम बंगाल की वीरांगनाओं ने अजित सेन भवन में सावन उत्सव-2024 के तहत रंगारंग कार्यक्रम किये, जिसमें जहां कजरी व अन्य लोकगीतों की प्रस्तुति की गयी वहीं दहेज की समस्या, लिव इन रिलेशनशिप के चलन जैसे आज के ज्वलंत मुद्दों पर भी परिचर्चा आयोजित की गयी। कार्यक्रम के समापन सत्र में संगठन के भावी कार्यक्रमों की रूपरेखा तैयार की गयी। संगठन की प्रदेश अध्यक्ष और विख्यात गायिका-अभिनेत्री प्रतिभा सिंह ने इस अवसर पर आह्वान किया कि महिलाएं आज समाज, देश और दुनिया में जो कुछ घट रहा है, उसमें दिलचस्पी लें, उसे जानें और उस पर अपनी राय कायम करें। जो कुछ चल रहा है उसमें से अच्छे और बुरे की पड़ताल करें, अपनी राय बनायें और जो कुछ खारिज करने लायक है उसकी खुलकर आलोचना करें, जो सराहनीय है उसे बढ़ावा दें। सरकार महिलाओं को उनका अधिकार दे रही है किन्तु महिलाएं यदि अपने अधिकारों को नहीं समझेंगी तो उसका लाभ नहीं उठा पायेंगी।
संगठन महासचिव प्रतिमा सिंह, उपाध्यक्ष रीता सिंह, कोषाध्यक्ष पूजा सिंह, सचिव किरण सिंह, पूनम सिंह, संयुक्त सचिव ममता सिंह, उपसचिव सुमन सिंह, सदस्य गुड़िया सिंह, बबिता सिंह,  कोलकाता की अध्यक्ष मीनू सिंह, महासचिव इंदु संजय सिंह, उपाध्यक्ष ललिता सिंह, कोषाध्यक्ष संचिता सिंह, सदस्य मीरा सिंह, गीता सिंह, सुमन सिंह, विद्या सिंह, सरोज सिंह, प्रेमशीला सिंह, रीना सिंह, पूनम सिंह, बालीगंज की अध्यक्ष रीता सिंह, सोदपुर इकाई की अध्यक्ष सुनिता सिंह, महासचिव आशा सिंह, सदस्य जयश्री सिंह, मंजू सिंह, पूजा सिंह तथा वीरांगना नारी शक्ति की पदाधिकारी शकुंतला साव विशेष तौर पर उपस्थित थीं। राकेश पाण्डेय, कुमार सुरजीत और बाल कलाकारों प्रीति सिंह, प्रत्यूष सिंह व श्रेयांश सिंह ने अपने गायन से उपस्थित समुदाय को मंत्रमुग्ध किया।

रक्षाबंधन पर बना लें यह मिठाइयां 

राखी या रक्षा बंधन का पर्व भाई-बहन के स्नेह और प्रेम का त्योहार है। और इस त्योहार को और अधिक खास बनाने के लिए इसके लिए इस दिन हर घर में अलग-अलग तरह की मिठाइयां और नमकीन बनाए जाते हैं। घर के छोटे हो या बड़े सभी बहुत ही उत्साहपूर्वक इस पर्व को मनाते है। आइए इस भाई-बहन के स्नेह पर्व रक्षाबंधन के खास मौके पर आप बना लें ये मिठाइयां –
1. घेवर
सामग्री : डेढ़ कटोरी मैदा, दो कप पानी, डेढ़ बड़ा चम्मच जमा गाढ़ा घी, डेढ़ कप बर्फ का ठंडा पानी, घी, सवा दो कटोरी शक्कर, गुलाब पत्ती, चुटकी भर पीला रंग, कटे हुए पिस्ता व बादाम, एक मटका रखने वाली रिंग।
विधि : सबसे पहले जमा हुआ गाढ़ा घी लेकर एक बर्तन में बर्फ के ठंडे पानी के साथ खूब फेंटिए। करीबन 5 मिनट बाद घी में से पानी बाहर निकल जाता है। अब पानी निथारकर इसमें थोड़ा-थोड़ा कर मैदा मिलाकर फेंटिए। जब भजिए से भी पतला घोल तैयार हो जाए तब छोटी कड़ाही में मटका रखने वाली रिंग रखें। इसमें घी डालकर गर्म करें। जब घी अच्छी तरह गर्म हो जाए तब रिंग के बीच में धीरे-धीरे धार-सी बनाते हुए मैदे का घोल छोड़ें। रिंग करीब आधा डूबा होना चाहिए। हल्का बादामी होने लगे, तब सलाई की सहायता से घेवर उठा लीजिए। घेवर पर 3-4 बार डेढ़ तार की गर्म चाशनी डालें और तैयार राजस्थान के घेवर को मेवे से सजाकर पारंपारिक व्यंजन पेश करें।
2. रस मलाई
सामग्री : 200 ग्राम ताजा पनीर या दो लीटर दूध, पौन लीटर दूध (अलग से), दो चम्मच मिल्क पाउडर, एक चम्मच नींबू रस, एक चम्मच फैट फ्री दही, बारीक कटे बादाम व पिस्ते, दो कप शकर, पांच कप पानी, 4-5 केसर के लच्छे।
विधि : 2 लीटर दूध उबाल लें और इसमें दही व नींबू रस मिला लें। पांच-दस मिनट उबालें। फिर तैयार पनीर को पानी से निथार लें और साफ कपड़े में बांधकर रात भर रख दें। इस पनीर के एक से डेढ इंच मोटे गोले बना लें। एक पैन में पांच कप पानी और एक कप चीनी डालकर उबालें। उबलने के बाद इसमें पनीर के गोले डालकर करीब 15 मिनट तक उबालें। दूसरे पैन में दूध में एक कप शकर डाल लें। मिल्क पाउडर मिलाएं और आधा होने तक उबाल लें। ध्यान रहे कि दूध पैन के तल में न चिपके। दूध थोड़ा ठंडा होने पर उसमें पनीर के तैयार गोले डाल दें। ऊपर से इलायची पाउडर, बादाम-पिस्ता व केसर मिला लें और फ्रिज में ठंडा करके सर्व करें। यह बंगाल की लोकप्रिय मिठाई है। इसे घर पर बना कर आप त्योहार का खास आनंद उठा सकते हैं।
3. रवा लड्डू
सामग्री : 500 ग्राम रवा, 500 ग्राम घी, 400 ग्राम शकर का बूरा, 25 ग्राम किशमिश, 25 ग्राम चारोली, एक चम्मच इलायची पाउडर, गुनगुना पानी आवश्यक्तानुसार।
विधि : सबसे पहले रवे को छानकर उसमें 2-3 बड़े चम्मच मोयन डालकर अच्छी तरह मिला लें। अब रवे को गुनगुने पानी से कड़ा गूंथ लें।
एक कड़ाही में घी गरम रखें। अब गूंथे आटे के बड़े-बड़े मुठिए बनाकर धीमी आंच पर तल लें। अब तले मुठिए को हाथ से बारीक मसलकर उसका रवा तैयार करके चलनी से छान लें। सारे मुठिए का जब रवा तैयार हो जाए तब उसे थोड़ी देर ठंडा होने के लिए रख दें। अब रवे में शकर का बूरा, इलायची पाउडर व चारोली मिला दें। आवश्‍यकतानुसार और घी मिला लें ताकि उनके लड्‍डू आसानी से बन जाए। अब लड्‍डू बनाते समय ऊपर से एक-एक किशमिश चिपका दें। लीजिए तैयार रवा लड्‍डू से अपना त्योहार मनाएं।
4. मक्खन बड़ा
सामग्री : मैदा 500 ग्राम, चीनी 1 किलो, घी, 1 कप दही, 1 चुटकी मीठा सोडा, इलायची पाउडर, पिस्ता, चांदी का वरक।
विधि : सबसे पहले मैदा व सोडा छान लें। अब 200 ग्राम घी गुनगुना करके मैदे में डालें व दही से गूंध लें। रोटी के आटे जैसा, छोटे-छोटे चपटे गोले बनाएं व ऊपर से चाकू से क्रॉस या हल्का-सा निशान बना दें। एक कड़ाही में घी गर्म करके धीमी आंच पर सभी बड़ों को सुनहरे होने तक तल लें। अब चीनी में 2 कप पानी डालें एवं दो तार की चाशनी बना लें। जब चाशनी थोड़ी ठंडी हो जाए तब मक्खन बड़े डालें व 10 मिनट रखने के बाद छलनी में निकाल लें। ऊपर से वरक एवं पिस्ता से सजाएं और खस्ता एवं स्वादिष्ट मक्खन बड़े पेश करें।
5. घेवर रबड़ी
सामग्री : 2 कप मैदा, 3 कप चीनी, 2 टी स्पून घी, थोड़े-से ड्रायफ्रूट्स व चांदी के वर्क, घी तलने के लिए, दूध व केसर।
विधि : सबसे पहले मैदे में 2 टी स्पून घी डालकर दूध से पतला घोल तैयार कर लें। एक तई यानी चपटी कढ़ाई में घी गर्म करें। इसमें स्टील का रिंग रखें व 1 चम्मच घोल को धीरे-धीरे डालते जाएं। घोल रिंग के आसपास चिपकता जाएगा। 1/2 इंच मोटा होने पर घोल डालना बंद करें। गुलाबी होने तक सिंकने दें। निकालकर छलनी पर रखें। चीनी की 1 तार की चाशनी तैयार करें व चम्मच से घेवर के ऊपर फैलाएं व चांदी के वर्क, केसर, ड्रायफूट्स से सजाकर सर्व करें। अब रक्षाबंधन के पावन पर्व पर घेवर रबड़ी को भाई को खिलाएं और त्योहार का आनंद लें।
6. नारियल लड्‍डू
सामग्री : 150 ग्राम सूखे खोपरे का बूरा, 200 ग्राम मिल्‍कमेड, 1 कप गाय के दूध की ताजी मलाई, आधा कप गाय का दूध, इलायची पाउडर, 5 छोटे चम्मच मिल्‍क पाउडर, कुछेक लच्छे केसर, चांदी का बरक। भरावन की सामग्री : 250 ग्राम मिश्री बारीक पिसी हुई, पाव कटोरी पिस्ता कतरन, 1 चम्मच मिल्‍कमेड, दूध मसाला 1 चम्मच।
विधि : सबसे पहले खोपरा बूरा, मिल्कमेड, दूध, मिल्क पाउडर और पिसी इलायची को अच्छी तरह मिला लें। तत्पश्चात माइक्रोवेव में 5-7 मिनट तक इसे माइक्रो कर लें। अब भरावन सामग्री को अलग से एक कटोरे में मिक्स कर लें। एक छोटी कटोरी में 4-5 केसर के लच्छे कम पानी में गला दें। अब माइक्रोवेव से निकले मिश्रण को 10-15 तक सूखने दें, फिर उसमें भरावन मसाला सामग्री डालकर मिश्रण को अच्छी तरह मिलाएं और उसके छोटे-छोटे लड्डू बना लें। सभी लड्‍डू तैयार हो जाने पर उनके ऊपर केसर का टीका लगाएं, चांदी के बरक से सजाएं और लाजवाब महाराष्ट्रीयन नारियल के लड्‍डू पेश करें।

इंद्र देव सहित इन भगवानों ने भी निभाया था राखी का रक्षा वचन

सावन माह की पूर्णिमा के दिन रक्षा बंधन का पर्व मनाया जाता है। इस बार 19 अगस्त 2024 सोमवार के दिन यह त्योहार मनाया जाएगा। बहन अपने भाई की कलाई पर राखी यानी रक्षा सूत्र बांधती है जिससे भाई की रक्षा होती है और तब भाई भी बहन को रक्षा का वचन देता है। प्राचीन काल या पौराणिक काल में इस राखी के बंधन को भगवानों ने भी निभाया था, जानते हैं ऐसे ही किस्सें।
1. सबसे पहले भगवान इंद्र अपना राज्य असुर वृत्रा के हाथों गंवाने के बाद उसके विरुद्ध जब युद्ध के लिए जाने लगे तो भगवान बृहस्पति के अनुरोध पर इंद्र देव की पत्नी सचि ने उन्हें रक्षासूत्र बांधकर संग्राम में विजय होने के साथ-साथ उनकी रक्षा की प्रार्थना की थी। इंद्र ने इस बंधन की लाज रखी और वृत्तासुर को हराकार घर लौटे।
2. येन बद्धो बलिः राजा दानवेन्द्रो महाबलः। तेन त्वामभिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल॥ इस श्लोक का हिन्दी भावार्थ है- “जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेन्द्र राजा बलि को बांधा गया था, उसी सूत्र से मैं तुझे बांधती हूं, तू अपने संकल्प से कभी भी विचलित न होना।”
दरअसल, भगवान वामन ने महाराज बलि को वचन के सूत्र में बांधकर उससे तीन पग भूमि मांगकर उन्हें पाताललोक का राजा बना दिया तब राजा बलि ने भी वर के रूप में भगवान से रात-दिन अपने सामने रहने का वचन भी ले लिया था। भगवान को वामनावतार के बाद पुन: लक्ष्मी के पास जाना था लेकिन भगवान ये वचन देकर फंस गए और वे वहीं रसातल में बलि के यहां रहने लगे। उधर, इस बात से माता लक्ष्मी चिंतित हो गई। ऐसे में नारदजी ने लक्ष्मीजी को एक उपाय बताया। तब लक्ष्मीजी ने राजा बलि को राखी बांधकर अपना भाई बनाया और अपने पति को अपने साथ ले आईं। उस दिन श्रावण मास की पूर्णिमा तिथि थी। तभी से यह रक्षा बंधन का त्योहार प्रचलन में हैं।
3. एक और वृत्तांत के अनुसार यमराज की बहन यमुना ने राखी बांध कर उन्हें अजरता और अमरता के वरदान से संपूर्ण किया था।
4. शिशुपाल का वध करते समय सुदर्शन चक्र से भगवान श्रीकृष्ण की तर्जनी में चोट आ गई थी तो कहते हैं कि द्रौपदी ने लहू रोकने के लिए अपनी साड़ी फाड़कर उनकी अंगुली पर बांध दी थी। यह द्रोपदी का बंधन था। इसके बाद जब द्रौपदी का जब चीरहरण हो रहा था तब श्रीकृष्‍ण ने इस बंधन का फर्ज निभाया और द्रौपदी की लाज बचाई थी।
5. जब युधिष्ठिर ने भगवान कृष्ण से पूछा कि मैं सभी संकटों को कैसे पार कर सकता हूं, तब कृष्ण ने उनकी तथा उनकी सेना की रक्षा के लिए राखी का त्योहार मनाने की सलाह दी थी।
(साभार – वेबुदुनिया)

आरजीकर कांड : न्याय की मांग आधी रात सड़क पर उतरी नारी शक्ति

कोलकाता। कोलकाता के सरकारी आरजी कर अस्पताल की स्नातकोत्तर प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ दुष्कर्म व उसकी हत्या की घटना के खिलाफ कोलकाता व राज्य के जिलों में बुधवार आधी रात को महिलाएं-लड़कियां सड़कों पर उतरीं और उन्होंने न्याय की मांग की। इस विरोध प्रदर्शन में पुरुष भी शामिल थे। जिस अकेली युवती के आह्वान पर आधी रात को सड़कों पर महिलाएं उतरीं उनका नाम रिमझिम सिन्हा है। प्रेसिडेंसी विश्वविद्यालय की पूर्व छात्रा व वर्तमान शोधार्थी महिला चिकित्सक से साथ दुष्कर्म व हत्या की घटना का इंसाफ चाहती हैं। पश्चिम बंगाल के दुर्गापुर में आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल बलात्कार-हत्या की घटना के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया गया। प्रदर्शनकारी महिलाओं ने पीड़िता को श्रद्धांजलि भी दी। दरअसल 10 अगस्त की रात को उन्होंने फेसबुक पर पोस्ट करके लड़कियों से आधी रात को सड़क पर उतरने का आह्वान किया था। इसका उन्हें लड़कियों की ओर से जबरदस्त समर्थन मिला। इस कार्यक्रम का नाम लड़कियां रात पर कब्जा करें दिया गया था। कार्यक्रम का नारा था स्वंतत्रता दिवस की आधी रात महिलाओं की आजादी के लिए। लड़कियों ने इस कार्यक्रम के लिए अनेक वाट्सएप ग्रुप बनाया था। कोलकाता में कॉलेज स्ट्रीट से लेकर बागुईआटी से लेकर न्यूटाउन से लेकर श्यामबाजार की सड़कों पर सैलाब उमड़ा। देश भर में इस आन्दोलन की गूंज सुनाई दी और महिलाओं का ऐतिहासिक विरोध भी दर्ज हुआ।

न चलती बस में, न अपने घर, न ऑफिस में… मेरी आजादी क‍िस ड‍िब्‍बे में बंद है?

मेरी पत्रकारिता की नौकरी का पहला साल था और मैं एक इवन‍िंगर अखबार में काम करती थी। ईवन‍िंगर यानी वो अखबार जो सुबह छपता है और दोपहर बाद लोगों के हाथ में आ जाता है। दिसंबर का महीना था, 17 तारीख को इस अखबार की सालग‍िरह थी और हम पार्टी मूड में ही थे।
सुबह 7 बजे ऑफिस पहुंचे कि क्राइम र‍िपोर्टर ने कहा, ‘मैडम (हमारी एड‍िटर) एक रेप केस है, बड़ा मामला है, इसे ही लीड लीजि‍ए।’ ईवन‍िंगर अखबार में वैसे भी क्राइम ज्‍यादा चलता है तो हम भी चुप हो गए। सुबह नहीं पता था कि क्‍या हुआ है, पर दोपहर तक आते-आते हर टीवी चैनल की लीड यही ‘बलात्‍कार की घटना’ बन चुकी थी। ये साल था 2012 और ये घटना थी, निर्भया गैंग रेप. कॉलेज से निकलते ही ये मेरी पहली नौकरी थी और मुझे स‍िखाया गया था, एक अच्‍छे र‍िपोर्टर को हर इवेंट, घटना हमेशा ऑब्‍जेक्‍ट‍िव होकर ही कवर करनी चाहिए पर मुझे इस घटना के दौरान ऐसा नहीं हुआ। 17 तारीख के पूरे द‍िन जैसे-जैसे समय बढ़ता गया, इस घटना से जुड़ी ड‍िटेल न्‍यूज चैनलों पर आने लगीं और हर नई ड‍िटेल के बाद मेरे पेट में अजीब सा दर्द, गले में खसखसाहट, आंखों में पानी, हाथों में बेचैनी सी बढ़ने लगी। सड़कों पर चल रहे आंदोलनों से लेकर दि‍ल्‍ली की बसों में इस घटना पर अचानक शुरू होती बहस तक, मैंने सब कवर क‍िया और यकीन मान‍िए हर बार उस दर्द की बात करते हुए शरीर में स‍िरहन महसूस की ।
आज 15 अगस्‍त है. साल है 2024. मैं अब एक बच्‍चे की मां बन गई हूं, अब भी पत्रकार हूं और एक मीड‍िया संस्‍थान में काम करती हूं। प‍िछले कुछ द‍िनों से कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल में ट्रेनी डॉक्टर से रेप और हत्या की घटना की खबरें सोशल मीड‍िया में छाई हुई हैं। इस घटना के खिलाफ बुधवार की रात लड़कियां और महिलाएं कलकत्ता की सड़कों पर उतर आईं. न‍िर्भया कांड के बाद भी लड़क‍ियां, मह‍िलाएं, कॉलेज स्‍टूडेंट सड़कों पर उतरे थे। 2012 से 2024 तक, देश की सरकार बदली है, कानून में बदलाव हुए हैं, व्‍यवस्‍थाएं बदली हैं. बहुत बदलाव हुए हैं। सबसे बड़ा बदलाव कि इस बार द‍िल्‍ली नहीं बल्‍कि कोलकाता में ये घटना हुई है. इन 12 सालों में मैंने जमीनी तौर पर यही बदलाव देखा है कि बलात्‍कार की जगह बदल रही हैं, बाकी कुछ नहीं बदला. बाकी सब वही का वही है. सालों से मैं लड़कि‍यों के ल‍िए यही ताने सुन रही हूं कि ‘ऐसे कपड़ें पहनेंगी तो क्‍या होगा, रात में घर से बाहर जाने की क्‍या जरूरत है… अब बॉयफ्रेंड बनाओगी तो यही होगा… क‍िसने कहा था, वहां जाने के लि‍ए…’. इन तानों में भी बदलाव नहीं आया है।
आज आजादी की 78वीं सालग‍िरह पर, एक मह‍िला होने के नाते मेरे द‍िल में हजारों सवाल उमड़ रहे हैं. मेरे आसपास कई सारे लोग पारंपरिक पर‍िधान पहनकर इस द‍िन का जश्‍न मना रहे हैं. लेकिन आप मुझे आजादी कम देंगे। मैं चलती बस में, पब्‍ल‍िक ट्रांसपोर्ट में, अपने ऑफिस में या अपने घर में… मैं अपना स्‍वतंत्रता द‍िवस कहां मनाऊँ? मेरी आजादी कहां बंद है आखिर? सालों से हम अपनी बेट‍ियों को ‘दूसरे घर के ल‍िए’ तैयार करते आ रहे हैं, पर क्‍यों हम अपने बेटों को सड़कों पर चलने के लि‍ए, ऑफिसों में काम करने के लि‍ए तैयार नहीं कर पा रहे… क्‍यों हम उन्‍हें नहीं स‍िखा पा रहे एक ‘आजाद औरत’ का सम्‍मान करना…? चोरी, डकैती या हत्‍या की तरह ‘बलात्‍कार’ सिर्फ एक क्रिम‍िनल एक्‍ट‍िव‍िटी नहीं है बल्‍कि ये सोशल स‍िस्‍टम के फेलि‍यर का नंगा सच है। आप सालों से औरतों को ‘सही तरीके से ब‍िहेव कैसे क‍िया जाए’, ‘क्‍या पहनना है’ जैसी भतेरी चीजें सिखा रहे हैं, पर एक समाज में ऐसे मर्द क्‍यों हमें नजर नहीं आते जो बलात्‍कार की इस भयावह घटना को अंजाम देने से पहले सालों तक अपनी पत्‍नी या मां को मार रहे हैं। कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज के मेडिसिन विभाग में पीजी सेकेंड ईयर की स्टूडेंट रही ट्रेनी की रेप करने से पहले आरोपी संजय रॉय के ख‍िलाफ भी मामले दर्ज थे। पुलि‍स के बयान के अनुसार इस आदमी के मोबाइल में ह‍िंसक सेक्‍शुअल सामग्री म‍िली है. पुलि‍स का कहना है कि ऐसी सामग्री क‍िसी का देखना सामान्‍य बात नहीं है. जब ये सामान्‍य नहीं था, तो इस असामान्‍य व्‍यक्‍ति को पहले क्‍यों कोई पहचान नहीं पाया?
पीएम मोदी ने आज लाल क‍िले की प्राचीर से कहा, ‘मैं आज लाल क़िले से अपनी पीड़ा व्यक्त करना चाहता हूं. हमें गंभीरता से सोचना होगा। हमारी माताओं, बहनों, बेटियों के प्रति जो अत्याचार हो रहे हैं, उसके प्रति जन सामान्य का आक्रोश है. इसे देश को, समाज को, हमारी राज्य सरकारों को गंभीरता से लेना होगा।’ दरअसल इन सवालों के पीछे भी हमारा सोशल फेलियर ही है. ‘तेज आवाज’ में बोलती औरत पर चारों तरफ से आवाज उठ जाती है. लेकिन गाल‍ियां देकर, एक-दूसरे से बात करते, गुस्‍से में पत्‍नी पर हाथ उठाते, चीखते हुए, नाराजगी में या गुस्‍से में चीजें फेंकते मर्द ‘नॉर्मल’ हैं। ‘ह‍िंसक पोर्नोग्राफी देखना…’ अब ये काम लड़के नहीं करेंगे तो कौन करेगा… यही वो मर्द हैं या कहें काफी हद तक इस ब‍िहेव‍ियर को ‘नॉर्मल’ मानने वाली औरतें भी, ज‍िन्‍हें सि‍नेमाई पर्दे पर हीरो से थप्‍पड़ खाती हीरोइन, या हीरो का जूता चाटने को मजबूर होती लड़की पसंद आती हैं। एक दलील ये भी है कि Not All Men… हां ब‍िलकुल सही है. सभी मर्द ऐसे नहीं हैं, पर मैं कैसे पहचानूं… मैं कैसे अपनी बेटी या खुद अस्‍पताल में, ऑफ‍िस में या ऐसी ही क‍िसी जगह ड्यूटी करने रात में जाऊं ? काश, मैं और मेरे देश की बेट‍ियां भी अपनी आजादी का जश्‍न मना सकें जो शायद क‍िसी ड‍िब्‍बे में बंद है… आप सब को आजादी की सालगिरह मुबारक हो.
(साभार – न्यूज 18)

आजादी के बाद रेलवे ; स्टीम इंजन से वंदे भारत तक का तय किया सफर

वैसे तो भारतीय रेलवे का इतिहास आजादी से पहले का है, लेकिन जब सफर की बात आती है तो इसमें बड़े बदलाव आजादी के बाद देखने को मिले। अपने उतार-चढ़ाव भरे सफर के साथ आज भारतीय रेलवे अमृत महोत्सव के गंतव्य तक पहुंच गया है।
दुनिया के लिए मिसाल है भारतीय रेलवे – दुनिया में सबसे बड़े रेल नेटवर्क की जब भी बात आती है तो भारतीय रेलवे का नाम जरूर आता है। भारतीय रेलवे का नेटवर्क लगभग वर्तमान में करीब 1.26 लाख किलोमीटर से ज्यादा का हो गया है। भारतीय रेल नेटवर्क के जरिए हर दिन करोड़ों की संख्‍या में लोग यात्रा करते हैं। भारत में ट्रेनें रोजाना जितनी दूरी तय करती हैं, अगर उसे मापें तो कुल दूरी करीब 36.78 लाख किलोमीटर की होगी। अब अगर इसकी तुलना अंतरिक्ष में धरती का एक चक्‍कर लगाने से करें, तो यह 97 बार पृथ्‍वी का चक्‍कर लगाने जितनी होगी। इसका मतलब है कि भारतीय रेलवे रोजाना धरती के चारों ओर 97 बार चक्‍कर लगाने जितनी दूरी तय करती है।
भारतीय रेलवे का विकास – आजादी के बाद से भारतीय रेलवे ने काफी विकास किया है। भारतीय रेलवे का भाप इंजन से लेकर वंदे भारत तक का यह सफर काफी अनोखा है। उम्मीद है कि आगामी पांच सालों में यह सफर शानदार रहने वाला है। देश के अभी कई रूट्स पर वंदे भारत दौड़ रही है और कुछ सालों में पहाड़ी इलाकों पर भी वंदे भारत दौड़ने लगेगी। अब रेलवे नेटवर्क में कश्मीर, पूर्वोत्तर और लद्दाख जैसे पहाड़ी इलाकों को भी जोड़ा जा रहा है। इसके अलावा आर्थिक विकास के लिए रेलवे डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर का निर्माण हो रहा है। रेलवे के विकास में वंदे भारत की अहम भूमिका है। यह भारत की बड़ी आबादी के लिए महत्वपूर्ण जीवन रेखा है। आने वाले कुछ वर्षों में भारतीय रेलवे विश्व स्तरीय सुविधाओं और अत्याधुनिक तकनीक वाली ट्रेनों से लैस होगा। इसका मतलब है कि रेलवे यात्रियों को और सुगम सुविधाएं मिलेगी।
जल्द दौड़ेगी बुलेट ट्रेन – भारत में वर्ष 2026 तक बुलेट ट्रेन के चलने की संभावना है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बुलेट ट्रेन परियोजना की समीक्षा की थी और बताया था कि साल 2026 तक भारत की पटरियों पर बुलेट ट्रेन दौड़ती हुई दिख सकती है। भारत की पहली बुलेट ट्रेन मुंबई और अहमदाबाद के बीच चलेगी। आज के समय में जहां मुंबई और अहमदाबाद के बीच सफर करने में छह घंटे लगते हैं। वही, बुलेट ट्रेन के बाद यह समय आधा हो जाएगा।
आर्च ब्रिज है उपलब्धि – भारत के चिनाब नदी पर आर्च ब्रिज बन चुका है। इस ब्रिज का निर्माण यूएसबीआरएल प्रोजेक्ट के तहत हुआ। आर्च ब्रिज और अंजी ब्रिज इंजीनियरिंग का एक अद्वितीय उदाहरण पेश करती है। आर्च ब्रिज की वजह से रेल नेटवर्क में कश्मीर को सफलतापूर्वक जोड़ा गया है। आर्च ब्रिज के जरिये देशवासी आसानी से ट्रेन के माध्यम से कश्मीर पहुंच पाएंगे।
भारतीय रेलवे अपने नेटवर्क के विस्तार के साथ यात्रियों की सुरक्षा के लिए भी काम कर रहा है। इसके लिए भारतीय रेलवे द्वारा राजधानी दिल्ली के करीब 118 किलोमीटर और बाकी मंडलों पर भी 1175 किलोमीटर रेलवे ट्रैक पर ट्रेनों की टक्कर को रोकने के लिए आधुनिक तकनीक का इस्तेमाल किया जा रहा है। इस तकनीक का नाम’कवच’ है, इससे ट्रेन हादसे को रोकने में सफलता हासिल होगी।

पीएम ने युवाओं से की राजनीति में आने की अपील

नयी दिल्ली । प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से युवाओं से खास खास अपील करते हुए राजनीति में आने को कहा। उन्होंने एक लाख युवाओं को राजनीति में जन प्रतिनिधियों के रूप में लाने का आह्वान किया, विशेष रूप से उन परिवारों के युवाओं को, जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि न हो। उन्होंने कहा कि इस कदम से जातिवाद और वंशवाद की राजनीति को समाप्त करने में भी मदद मिलेगी।
78वें स्वंतत्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से देशवासियों को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा कि ऐसे युवा जरूरी नहीं कि एक ही पार्टी में शामिल हों, वे अपनी पसंद की किसी भी पार्टी में शामिल हो सकते हैं। उन्होंने कहा कि देश में राजनीति के क्षेत्र में, हम एक लाख जनप्रतिनिधि चाहते हैं। हम एक लाख ऐसे युवाओं को जोड़ना चाहते हैं जिनकी कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं है। मोदी ने कहा कि उनके माता-पिता, भाई-बहन, चाचा-चाची, भतीजे किसी भी पीढ़ी में राजनीति में कभी नहीं रहे हैं। ऐसे प्रतिभाशाली युवा, नया खून। और, चाहे वह पंचायत, नगरपालिका के लिए हों, जिला परिषद के लिए हों या विधानसभा के लिए हों या लोकसभा के लिए हों। उस परिवार की कोई राजनीतिक पृष्ठभूमि नहीं होनी चाहिए ताकि जातिवाद और वंशवाद की राजनीति से छुटकारा मिल सके।”
प्रधानमंत्री ने कहा कि यह कदम नए विचारों और क्षमताओं के साथ राजनीति में ‘नया खून’ लाएगा। उन्होंने कहा कि जब 40 करोड़ देशवासी गुलामी की जंजीरों को तोड़कर देश को आजाद कर सकते हैं तो आज 140 करोड़ ‘परिवारजन’ इसी भाव से समृद्ध भारत भी बना सकते हैं।
उन्होंने कहा कि ‘विकसित भारत 2047’ सिर्फ भाषण के शब्द नहीं हैं बल्कि इसके पीछे कठोर परिश्रम जारी है और देश के सामान्य जन से सुझाव लिए जा रहे हैं। आजादी के आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर करने वाले शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए प्रधानमंत्री ने कहा कि उन्होंने देशवासियों को स्वतंत्रता की सांस लेने का सौभाग्य दिया है और यह देश उनका ऋणी रहेगा। प्रधानमंत्री ने कहा कि आज यह समय है देश के लिए जीने की प्रतिबद्धता का और अगर देश के लिए मरने की प्रतिबद्धता आजादी दिला सकती है तो देश के लिए जीने की प्रतिबद्धता समृद्ध भारत भी बना सकती है। प्रधानमंत्री ने इस बात पर प्रसन्नता जताई कि देश के करोड़ों नागरिकों ने विकसित भारत के लिए अनगिनत सुझाव दिए हैं और इसमें हर देशवासी का सपना उसमें प्रतिबिंबित हो रहा है, हर देशवासी का संकल्प झलकता है। प्रधानमंत्री ने जातिवाद और भाई-भतीजावाद से भारतीय राजनीति को मुक्त करने के लिए अपने जोर को दोहराया।

15 अगस्त की रात आजादी मिलने के बाद सेंट्रल हॉल में सबसे पहले बजाया गया था शंख

नयी दिल्ली । 14 अगस्त 1947 की आधी रात को संसद के सेंट्रल हॉल में देश के सभी बड़ी शख्सियत और नेता एकजुट थे 12 बजने से 5 मिनट पहले पंडित जवाहर लाल नेहरू ने खड़े होकर अपना भाषण शुरू किया था. उनके भाषण के कुछ मिनटों बाद जैसे ही घड़ी की सुई 12 पर पहुंची थी, सेंट्रल हॉल में आजादी का शंखनाद शुरू हो गया था। बता दें शंख वो पहला वाद्य यंत्र था, जो आजादी के मौके पर सबसे पहले सेंट्रल हॉल में बजाया गया था। इसके बाद सेंट्रल हॉल में मौजूद लोग एक-दूसरे के गले लगकर बधाईयां दे रहे थे।
सेंट्रल हॉल में सभी लोग एक दूसरे से मिलकर आजादी की बधाईयां दे रहे थे. उस वक्त बधाइयों का दौर जारी ही था, लेकिन सुचेता कृपलानी खड़े होकर सबसे पहले अल्लामा इकबाल का गीत सारे जहां से अच्छा गया और फिर बंकिम चंद्र चटर्जी का वंदे मातरम गाया था। बता दें कि 60 के दशक में उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी सुचेता कृपलानी बनी थी। सुचेता कृपलानी भारत के स्वतंत्रता संग्राम का प्रमुख महिला चेहरा थी. इसके अलावा वह देश की पहली महिला मुख्यमंत्री भी थीं। उनका जन्म 25 जून 1908 को हरियाणा में हुआ था। उन्होंने महात्मा गांधी के नेतृत्व में स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई थी. उन्होंने लाहौर और दिल्ली में अपनी शिक्षा पूरी की थी। सुचेता कृपलानी ने महात्मा गांधी के साथ मिलकर भारत छोड़ो आंदोलन में भाग लिया था और कई बार जेल गई थीं। वह कांग्रेस पार्टी की बड़ी महिला नेता थीं और उन्होंने भारत की स्वतंत्रता के लिए संघर्ष में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दिया था। स्वतंत्रता के बाद सुचेता कृपलानी भारत की संविधान सभा की सदस्य भी बनी थीं। वहीं साल 1963 में सुचेता कृपलानी उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनने के साथ ही वह स्वतंत्र भारत की पहली महिला मुख्यमंत्री के नाम पर दर्ज हो गया था।1 दिसंबर 1974 को सुचेता कृपलानी का निधन हो गया था।