Tuesday, April 22, 2025
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लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स” बनी बंगाल महिला प्रो टी-20 लीग 2024 की चैंपियन

कोलकाता । लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स ने बंगाल महिला प्रो टी-20 लीग 2024 के बेहद रोमांचक मुकाबले में चैंपियन टीम बनी। उसने टूर्नामेंट के फाइनल मैच में मुर्शिदाबाद कुइंस टीम को 5 रन से हराकर यह धमाकेदार जीत हासिल की। पूरे टूर्नामेंट में इस टीम के खिलाड़ियों ने अपनी प्रतिभा का जौहर दिखाते हुए प्रभावशाली प्रदर्शन कर विजेता टीम बनी। ​​मीता पॉल की अगुआई में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स के खिलाड़ियों ने अपनी बैटिंग एवं मैदान में फिल्डिंग दोनों में शानदार प्रदर्शन किया, जिससे महिला क्रिकेट में उनकी स्थिति मजबूत हुई। ईडेन गार्डन्स क्रिकेट स्टेडियम में रोमांचक फाइनल में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स ने मुर्शिदाबाद कुइंस को 5 रन से हराकर बंगाल प्रो टी20 लीग का उद्घाटन महिला खिताब अपने नाम किया। कप्तान मीता पॉल ने 24 रन बनाए, लेकिन मुख्य बल्लेबाजी इप्सिता मंडल ने की, जिन्होंने 32 गेंदों पर 37 रन बनाए। आखिरी ओवर में 13 रन चाहिए थे, ममता किस्कू ने पहली गेंद पर ही अद्रिजा का विकेट ले लिया। अगली दो गेंदों पर पांच रन आने के बाद, प्रियंका पर मुर्शिदाबाद को जीत दिलाने की जिम्मेदारी थी। लेकिन किस्कू ने धैर्य बनाए रखा और आखिरी गेंद पर प्रियंका का बेशकीमती विकेट हासिल किया और कोलकाता ने मैच 5 रन से जीत लिया। राज्य के एक प्रख्यात उद्योगपति लक्स कोज़ी के संस्थापक एवं क्रिकेट के शौकीन साकेत तोदी ने कहा, “महिला बंगाल प्रो टी-20 लीग 2024 के उद्घाटन संस्करण में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स की जीत से हम बेहद खुश हैं एवं गर्व का अनुभव कर रहे हैं। यह जीत हमारी टीम के खिलाड़ियों और कोचों से लेकर सहयोगी स्टाफ तक हमारी पूरी टीम के समर्पण और कड़ी मेहनत का नतीजा है। हमें उनकी इस उपलब्धि पर बेहद गर्व है। वहीं, स्टील उद्योग के जाने-माने उद्योगपति और श्याम स्टील के निदेशक और जाने-माने समाजसेवी ललित बेरीवाला ने कहा, महिला बंगाल प्रो टी- 20 लीग 2024 में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स की जीत टीम वर्क की शक्ति का जीता जागता उदाहरण है। पूरे टूर्नामेंट में टीम के हर खिलाड़ी ने अहम योगदान दिया। हम उनकी प्रतिबद्धता, दृढ़ता और एक-दूसरे के प्रति अटूट समर्थन के लिए बेहद आभारी हैं। यह जीत पूरी टीम की है और हम उनकी सफलता का जश्न मनाने के लिए उत्सुक हैं। वहीं दूसरी तरफ, कप्तान अभिषेक पोरेल की अगुआई में खेले गये पुरुष श्रेणी के टूर्नामेंट में लक्स श्याम कोलकाता टाइगर्स पुरुष क्रिकेट टीम के खिलाड़ी बंगाल प्रो टी- 20 लीग 2024 में सेमीफाइनल मैच तक पहुंच सकी। हालांकि इस वर्ष पुरुष श्रेणी में यह टीम फाइनल तक का सफर नहीं कर सकी, लेकिन इस पूरे टूर्नामेंट में पुरुष टीम का प्रदर्शन दमदार रहा। आगामी सीजन में टीम के खिलाड़ियों को इस प्रदर्शन का लाभ अवश्य मिलेगा।

56वें ​​गारमेंट बायर्स एंड सेलर्स मीट और बीटूबी एक्सपो में 1 हजार करोड़ का कारोबार 

2500 से अधिक व्यवसायियों ने किया पंजीकरण 
पश्चिम बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन ने किया आयोजन
कोलकाता । पश्चिम बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन की ओर से कोलकाता के विश्व बंगला (मिलन मेला) ग्राउंड में आयोजित तीन दिवसीय 56वें ​​गारमेंट बायर्स एंड सेलर्स मीट में 950 से अधिक राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों ने भाग लिया। यह प्रदर्शनी इस क्षेत्र के सबसे पुराने अयोजनों में एक है। हमेशा की तरह वृहद आकर में किया गया आयोजन एक बार फिर काफी सफल रहा। इस व्यवसायिक मीट में देश और विदेश से 2500 से अधिक आगंतुकों ने अपने ब्रांड का पंजीकरण कराया और थोक सौदों में लगभग 1000 करोड़ रुपये का व्यापार लेनदेन हुआ। यहां आए आगंतुकों ने यहां की अद्भुत सजावट और अविश्वशनीय माहौल के बीच एसोसिएशन द्वारा किए गए आतिथ्य सत्कार की काफी सराहना की। इस अवसर पर, पश्चिम बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एंड डीलर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष हरि किशन राठी ने कहा, यह औद्योगिक आयोजन वर्तमान में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से 55 लाख से अधिक लोगों को रोजगार प्रदान करने का जरिया बनता है, जो इसे दुनिया के सबसे बड़े उद्योगों में से एक बनाता है। इस बार तीन दिवसीय आयोजन में अनुमानित 1000 करोड़ रुपये का वाणिज्यिक सौदा हुआ। इस व्यवसायिक मीट में 950 घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय ब्रांडों ने भाग लिया। इस मीट ने बंगाल के रेडीमेड गारमेंट उद्योग को समर्थन देने की अपनी क्षमता का लगातार प्रदर्शन किया है। हम गारमेंट और विपणन को आगे बढ़ाने के लिए रेडीमेड कपड़े और कपड़ा उद्योग का समर्थन करने के लिए सरकार के प्रयासों के लिए वास्तव में आभारी हैं। राठी ने कार्यकारी समिति, प्रायोजकों और प्रतिभागियों की टीम के प्रति भी तहे दिल से आभार और प्रशंसा व्यक्त की, जिन्होंने इस आयोजन को शानदार तरीके से सफल बनाने में अहम भूमिका अदा की है। पश्चिम बंगाल गारमेंट मैन्युफैक्चरर्स एवं डीलर्स एसोसिएशन में उपस्थित अन्य प्रमुख समिति के सदस्यों में विजय करिवाला (वरिष्ठ उपाध्यक्ष, डब्ल्यूबीजीएमडीए), प्रदीप मुरारका (उपाध्यक्ष, डब्ल्यूबीजीएमडीए), देवेंद्र बैद ( मानद सचिव, डब्ल्यूबीजीएमडीए), कन्हैयालाल लखोटिया, (कोषाध्यक्ष), प्रेम कुमार सिंहल (संयुक्त कोषाध्यक्ष) के साथ अमरचंद जैन, तरुण कुमार झाझरिया, आशीष झावर, मनीष राठी, कमलेश केडिया, मनीष अग्रवाल, किशोर कुमार गुलगुलिया, विक्रम सिंह बैद, सौरव चांडक, साकेत खंडेलवाल, अजय सुल्तानिया, राजीव केडिया, संदीप राजा, बृज मोहन मुंधड़ा, भुवन अरोड़ा, मोहित दुगड़, सज्जन शर्मा और अनिल सोमानी, हरि प्रसाद शर्मा (कार्यकारी समिति के सदस्य और पूर्व अध्यक्ष) के आठ चांद मल लड्ढा इसे सफल बनाने में अहम भूमिका अदा की।

एसोसिएशन ऑफ कॉरपोरेट एडवाइजर्स एंड एग्जीक्यूटिव्स का वार्षिक सम्मेलन 2024

कोलकाता । एसोसिएशन ऑफ कॉरपोरेट एडवाइजर्स एंड एग्जीक्यूटिव्स (एसीएई) की ओर से इग्नाइटिंग उत्कर्ष थीम के साथ वार्षिक सम्मेलन 2024 का आयोजन किया गया। यह संस्थान कॉर्पोरेट सलाहकार और कार्यकारी के क्षेत्र में उत्कृष्टता, प्रगति और समृद्धि को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। कोलकाता के धनो धान्यो ऑडिटोरियम में इस सम्मेलन का आयोजन किया गया। इस सम्मेलन में व्यावहारिक चर्चाओं, आकर्षक मुद्दों और विचारोत्तेजक बहसों के लिए मंच प्रदान किया गया। एसोसिएशन ऑफ कॉरपोरेट एडवाइजर्स एंड एग्जीक्यूटिव्स (एसीएई) द्वारा आयोजित वार्षिक सम्मेलन 2024 का उद्घाटन उत्सव पारेख, (अध्यक्ष, एसएमआईएफएस कैपिटल मार्केट्स लिमिटेड), रंजीत कुमार अग्रवाल (अध्यक्ष, द इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टर्ड अकाउंटेंट्स ऑफ इंडिया), साजिथ कुमार (सीईओ और एमडी, पी के, ग्रुप) ने संयुक्त रूप से किया। इस मौके पर राजदूत दीपक वोहरा ने इस सम्मेलन में परिवर्तन: इंडिया बिकम्स भारत विषय पर अपने विचार प्रस्तुत किए। एसीएई के अध्यक्ष सुमित बिनानी, सीए अनूप के संघई और सीए ऋषि खटोर (सम्मेलन के अध्यक्ष और सह-अध्यक्ष), सीए तरुण गुप्ता, सीए नीरज हरोदिया, एडवोकेट रमेश पटोदिया, सीए मोहित भूटेरिया, सीए कमल नयन जैन और सीए विवेक अग्रवाल के अलावा अन्य समिति सदस्यों ने कहा कि, वे एसीएई के वार्षिक सम्मेलन 2024 की सफलता से प्रसन्न हैं, यह हमारे सभी सम्मेलन समिति सदस्यों के सामूहिक प्रयासों का परिणाम है। इस कार्यक्रम में उद्यमियों और पेशेवरों के बीच एक विचारोत्तेजक वार्तालाप सम्मेलन में प्रमुख आकर्षण का विषय था। प्रख्यात उद्यमी मयंक जालान, सुश्री स्वाति गौतम, मेघदूत रॉय चौधरी और गौरव जालान ने प्रस्ताव के लिए अपनी बातें रखी, जबकि प्रख्यात पेशेवरों में नवशीर एच मिर्जा, श्री अनिकेत तलाटी, अशोक बारात और सुश्री शिवानी शाह ने प्रस्ताव के खिलाफ अपने विचार रखे।आईबीएमसी इंटरनेशनल डीएमसीसी, दुबई, यूएई में प्रोफेशनल ऑपर्च्युनिटी पर विचार-विमर्श किया वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए। प्रतिभागियों ने इस सम्मेलन में “लाइफ आफ्टर डेथ” नामक एक नाटक का भी भरपूर आनंद लिया, जिसे एसीएई के सदस्यों द्वारा वसीयत और उत्तराधिकार योजना के महत्व के केंद्रीय विषय पर प्रदर्शित किया गया था। सीए देबयान पात्रा के नेतृत्व में एक स्मारिका भी जारी की गई। एसीएई के पूर्व अध्यक्ष सीए जिनेश वंजारा, सीए आरएस झँवर , सीए आनंद चोपड़ा, सीए संतोष रूंगटा, सीए संजय भट्टाचार्य, सीए माधव सुरेका, सीए मुकेश झँवर, सीए अनूप लुहारुका, प्रियांशी अग्रवाल, सीए रोहित प्रसाद और सीए सिद्धांत जाजोदिया ने कहा, इस सम्मेलन में गतिशील चर्चाओं, आकर्षक नाटक और विचारोत्तेजक बहसों ने न केवल हमारे सदस्यों के ज्ञान को समृद्ध किया है, बल्कि सहयोग और नवाचार की भावना को भी बढ़ावा दिया है। सीए वासुदेव अग्रवाल, सीए पी डी रूंगटा, सीए जितेंद्र लोहिया, सीए राज के लखोटिया, सीए अनूप के बँका, सीए मनीष ढंढारिया, सीए चिम्पू अग्रवाल और सीए शिव खेमका ने कहा, एसीएई के वार्षिक सम्मेलन में हम कॉर्पोरेट सलाहकारों और अधिकारियों के अपने जीवंत समुदाय के साथ परिवर्तन और विकास की इस यात्रा को जारी रखने के लिए तत्पर हैं। आगे भी यह संस्था उद्यमियों और पेशेवरों की मदद में अहम कदम उठाएगा।

गर्मियों में इम्यूनिटी बूस्ट करें , मौसमी बीमारियों से होगा बचाव

गर्मी का मौसम आते ही हमारे शरीर को अतिरिक्त देखभाल की जरूरत होती है। इन दिनों आप कोशिश करें कि दोपहर की तेज धूप में घर से बाहर न निकलें और अगर निकलना पड़े को अपने सिर को कॉटन के कपड़े से ढककर निकलें।

नींद पूरी करें – अच्छी नींद न केवल आपको एक्टिव रखती है बल्कि यह आपके शरीर के इम्यून सिस्टम को बेहतर करने में भी सहायक हो सकती है। नींद के दौरान हमारा शरीर इम्यून सेल्स का निर्माण मरम्मत करता है, जो संक्रमणों से लड़ने में मदद करते हैं। इसके साथ ही अच्छी नींद लेने से कोर्टिसोल जैसे तनाव हॉर्मोन का स्तर कम होता है, जिससे इम्यून सिस्टम बेहतर हो सकता है। अच्छी नींद को बेहतर बनाती है, जिससे तनाव, एंग्जायटी और डिप्रेशन कम होता है।

प्लांट बेस्ड फूड – गर्मियों में इम्यूनिटी बूस्ट करने के लिए आप अपनी डाइट में फल, सब्जियां, मेवे, बीज और फलियां जरूर शामिल करें। इनमें मौजूद पोषक तत्व और एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता यानी बूस्ट करने में सहायक होते हैं। प्लांट बेस्ट फूड्स विटामिन, खनिज, एंटीऑक्सिडेंट और फाइबर से भरपूर होते हैं, जो हमारे शरीर को रोगों से लड़ने की क्षमता प्रदान करते हैं। प्लांट बेस्ड फूड्स में मौजूद एंटीऑक्सीडेंट्स शरीर में फ्री रेडिकल्स को न्यूट्रलाइज करने में भी सहायक होते हैं। संतरे, नींबू जैसे खट्टे फल विटामिन C से भरपूर होते हैं, जो इम्यूनिटी बूस्ट करते हैं।

व्यायाम करें – सेहतमंद रहने के लिए जरूरी है कि आप रोजाना एक्सरसाइज और योग के लिए समय जरूर निकालें। एक्सराइज करने से न सिर्फ शरीर की इम्यूनिटी बेहतर हो सकती है बल्कि आप कई तरह के बीमारियों से भी खुद को बचा सकते हैं। एक्सरसाइज से शरीर में ब्लड सर्कुलेशन बेहतर होता है, जिससे इम्यून सेल्स निर्माण में मदद मिलती है। एक्सरसाइज करने से शरीर में एंडोर्फिन रिलीज होता है जो तनाव के कारण रिलीज होने वाले कोर्टिसोल हार्मोन के प्रभाव को कम करने में मदद करता है।

चीनी कम खाएं – शुगर यानी चीनी हमारी सेहत के लिए बेहद नुकसानदायक साबित होती है। खासकर, रिफाइंड शुगर का सेहत पर बुरा प्रभाव पड़ता है। शुगर न केवल वजन बढ़ाने के साथ क्रोनिक बीमारियों के जोखिम को बढ़ाता है, बल्कि इम्यून सिस्टम को भी कमजोर कर सकती है। ऐसे में अगर आप अपनी इम्यूनिटी को बेहतर करना चाहते हैं तो डाइट से शुगर को निकाल दें और इसकी जगह पर किशमिश, खजूर और गुड़ का सेवन सीमित मात्रा में कर सकते हैं।

फर्मेंटेड फूड्स – फर्मेंटेड फूड्स हमारे शरीर की इम्यूनिटी को मजबूत करने में सहायक हो सकते हैं। इनमें अच्छे बैक्टीरिया (प्रोबायोटिक्स) होते हैं जो गट हेल्थ को बेहतर बनाने में सहायक हो सकते हैं। प्रोबायोटिक्स पाचन तंत्र में अच्छे बैक्टीरिया को बढ़ाते हैं, जो सीधे तौर पर इम्यून सिस्टम को हेल्दी बनाने में सहायक है। फर्मेंटेड फूड्स में मौजूद पोषक तत्व, शरीर में फ्री रेडिकल्स को कम करते हैं और इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाते हैं।

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बालों की खूबसूरती बढ़ानी है, दूध है न

दूध पोषक तत्वों से भरपूर तरल पदार्थ है, जो कई स्वास्थ्य लाभों के लिए आवश्यक है। इसमें कैल्शियम, प्रोटीन, विटामिन डी और पोटेशियम सहित कई तरह के विटामिन और खनिज होते हैं। ये पोषक तत्व हड्डियों के स्वास्थ्य, मांसपेशियों के कार्य और समग्र शारीरिक कार्यों के लिए महत्वपूर्ण हैं।

बालों के लिए फायदेमंद प्रमुख घटक – माना जाता है कि दूध में मौजूद कई तत्व बालों के स्वास्थ्य के लिए लाभकारी होते हैं। इनमें शामिल हैं:

प्रोटीन: बालों की संरचना के लिए आवश्यक।

विटामिन: बी-विटामिन जैसे बी2 (राइबोफ्लेविन) और बी12 बालों के स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण हैं।

खनिज: कैल्शियम और जिंक मजबूत और स्वस्थ बालों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

बाल मुख्य रूप से केराटिन से बने होते हैं, जो एक प्रकार का प्रोटीन है। बालों की मजबूती और अखंडता बनाए रखने के लिए पर्याप्त प्रोटीन का सेवन बहुत ज़रूरी है।

दूध प्रोटीन कैसे योगदान करते हैं – दूध के प्रोटीन, जैसे कि कैसिइन और मट्ठा, बालों को मज़बूती प्रदान कर सकते हैं और क्षति की मरम्मत कर सकते हैं। वे केराटिन उत्पादन के लिए आवश्यक बिल्डिंग ब्लॉक प्रदान करते हैं, जो बालों के विकास और लचीलेपन के लिए आवश्यक है।

विटामिन और बालों पर उनका प्रभाव – दूध में मौजूद बी-विटामिन, विशेष रूप से बी2 और बी12, निम्नलिखित के लिए जाने जाते हैं: कोशिका वृद्धि और विभाजन को बढ़ावा देना, खोपड़ी के स्वास्थ्य का समर्थन करें. बालों के रोमों में रक्त परिसंचरण में सुधार करें।

विटामिन डी और बालों के रोम – विटामिन डी, जो फोर्टिफाइड दूध में पाया जाता है, बालों के रोम चक्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह बालों के विकास के चरणों को बनाए रखने में मदद करता है, संभावित रूप से बालों के झड़ने को रोकता है और बालों को घना बनाता है।

दूध में मौजूद खनिज और उनके लाभ – बालों की मजबूती के लिए कैल्शियम जरूरी है। कैल्शियम न केवल हड्डियों के लिए बल्कि बालों के लिए भी महत्वपूर्ण है। बालों के रोमों को मजबूत करता है। बालों को टूटने से बचाता है।

बालों के स्वास्थ्य में जिंक की भूमिका – दूध में मौजूद एक अन्य खनिज जिंक खोपड़ी में तेल उत्पादन को नियंत्रित करता है। ऊतक वृद्धि और मरम्मत का समर्थन करता है।

बालों की देखभाल के लिए दूध का उपयोग – बालों को धोने के लिए सीधे दूध लगाने से बालों को नमी और चमक मिलती है। दूध में मौजूद प्रोटीन और वसा बालों को चमकदार बनाते हैं।

दूध और शहद हेयर मास्क – दूध और शहद को मिलाकर बालों को पोषण देने वाला मास्क बनाया जा सकता है। यह मिश्रण बालों को गहराई से कंडीशन करता है।  चमक और कोमलता लाने के साथ बालों की जड़ों को मजबूत करें।

दूध-आधारित बाल उपचार – बालों की देखभाल के लिए दूध का उपयोग करके कई  नुस्खे बनाए जा सकते हैं। लोकप्रिय उपचारों में शामिल हैं:

दूध और अंडे का मास्क – मजबूती देता है और चमक लाता है।

दूध और केले का मास्क –  उलझे हुए बालों को नमी प्रदान करता है और उन्हें मुलायम बनाता है।

कई अध्ययनों से पता चलता है कि दूध में मौजूद पोषक तत्व बालों के स्वास्थ्य में योगदान दे सकते हैं। शोध से पता चलता है कि प्रोटीन और कैल्शियम का सेवन बालों की मजबूती और वृद्धि से जुड़ा हुआ है। विटामिन डी पर किए गए अध्ययनों से बालों के रोमों के स्वास्थ्य पर सकारात्मक प्रभाव देखने को मिलता है। कई त्वचा विशेषज्ञ बालों के लिए दूध के संभावित लाभों को स्वीकार करते हैं। दूध सहित पोषक तत्वों से भरपूर आहार बालों की स्थिति में सुधार ला सकता है। दूध का त्वचा पर प्रयोग अस्थायी चमक और कोमलता प्रदान कर सकता है।

मगर यह भी ध्यान रहे  – दूध से एलर्जी या लैक्टोज असहिष्णुता वाले लोगों को सावधान रहना चाहिए। सिर पर दूध लगाने से जलन या एलर्जी हो सकती है।जिनके बाल प्राकृतिक रूप से तैलीय होते हैं, उनके लिए दूध में मौजूद वसा की मात्रा बालों की चिकनाई को बढ़ा सकती है। नियमित रूप से बालों को साफ करने के साथ-साथ दूध के उपचार को संतुलित करना भी आवश्यक है।

स्वस्थ आहार के साथ संतुलन – बालों के स्वास्थ्य के लिए सिर्फ़ दूध पर निर्भर रहना ही काफ़ी नहीं है। विभिन्न पोषक तत्वों से भरपूर संतुलित आहार मज़बूत और चमकदार बालों को बनाए रखने के लिए बहुत ज़रूरी है।

वैकल्पिक दूध विकल्प – डेयरी उत्पादों से परहेज करने वालों के लिए बादाम, नारियल और सोया दूध जैसे पौधे आधारित दूध विकल्प हो सकते हैं। नारियल का दूध विशेष रूप से इसके लिए जाना जाता है: मॉइस्चराइजिंग गुण, उच्च वसा सामग्री जो बालों को गहराई से पोषण देती है।

अपने बालों की देखभाल की दिनचर्या में दूध को शामिल करें – सर्वोत्तम परिणाम प्राप्त करने के लिए, सप्ताह में एक या दो बार दूध आधारित उपचार का उपयोग करने की सलाह दी जाती है। अधिक उपयोग से बिल्ड-अप या चिकनाई हो सकती है।

अन्य प्राकृतिक अवयवों के साथ संयोजन – दूध को एलोवेरा, दही या एवोकाडो जैसी सामग्री के साथ मिलाकर पीने से इसके फायदे बढ़ सकते हैं। ये संयोजन बालों के स्वास्थ्य के लिए पोषक तत्वों की एक विस्तृत श्रृंखला प्रदान करते हैं।

उपचारों को निजीकृत करना – हर बाल का प्रकार अलग होता है। बालों की ज़रूरतों के हिसाब से दूध से बने उपचारों को चुनना ज़रूरी है, चाहे वह नमी देने के लिए हो, मज़बूती देने के लिए हो या चमक लाने के लिए हो।

मिथक और गलत धारणाएँ – दूध फायदेमंद तो है, लेकिन यह बालों की सभी समस्याओं का चमत्कारी समाधान नहीं है। बालों की नियमित देखभाल और संतुलित आहार से बालों में सुधार आना ज़रूरी है। धैर्य रखना बहुत ज़रूरी है। बालों की बनावट और मज़बूती में महत्वपूर्ण बदलाव देखने के लिए नियमित इस्तेमाल से कई हफ़्ते लग सकते हैं। एक व्यक्ति के लिए जो कारगर है, वह दूसरे के लिए कारगर नहीं हो सकता। अलग-अलग दूध-आधारित उपचारों के साथ प्रयोग करने से सबसे प्रभावी दिनचर्या खोजने में मदद मिल सकती है।

बालों पर दूध का उपयोग करने के व्यावहारिक सुझाव –  दूध को आसानी से लगाने के लिए स्प्रे बोतल का प्रयोग करें। संपूर्ण पोषण के लिए जड़ों से लेकर सिरों तक समान रूप से मास्क लगाएं। अवशेषों के जमाव से बचने के लिए दूध आधारित उपचारों का उपयोग करने के बाद हमेशा अच्छी तरह से धो लें।

भंडारण और तैयारी – सर्वोत्तम परिणाम सुनिश्चित करने के लिए ताज़ा दूध उपचार तैयार करें। किसी भी अप्रयुक्त मिश्रण को एक सप्ताह तक रेफ्रिजरेटर में रखें। दूध के उपचार को अन्य बाल देखभाल प्रथाओं, जैसे कि नियमित ट्रिमिंग, सुरक्षात्मक स्टाइल और अत्यधिक गर्मी से बचने के साथ संयोजित करने से बालों के समग्र स्वास्थ्य को बढ़ावा मिलेगा।

अपने बालों की ज़रूरतों को सुनें – इस बात पर ध्यान दें कि आपके बाल दूध के उपचारों पर कैसी प्रतिक्रिया देते हैं और उसके अनुसार समायोजन करें। हर व्यक्ति के बाल अलग-अलग होते हैं, और वैयक्तिकरण महत्वपूर्ण है।

दफ्तर देर से पहुंचने वाले कर्मचारियों पर केंद्र सख्त, 9.15 बजे तक पहुंचें , देर होने पर कटेगी छुट्टी

नयी दिल्ली । ऑफिस में देर से पहुंचने वाले कर्मचारियों पर रोक लगाने के लिए, केंद्र के कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग (डीओपीटी) ने वरिष्ठ अधिकारियों सहित देश भर के कर्मचारियों को सुबह 9.15 बजे तक कार्यालय पहुंचने और बायोमेट्रिक सिस्टम पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने का निर्देश दिया है। स्टाफ सदस्यों को चेतावनी दी गई है कि यदि वे निर्धारित समय के भीतर काम पर नहीं आते हैं तो उन्हें आधे दिन की आकस्मिक छुट्टी से वंचित कर दिया जाएगा।

कर्मचारियों को रजिस्टर पर साइन करके उपस्थिति दर्ज कराने के बजाय बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है। टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सर्कुलर में कहा गया है, “किसी भी कारण से, यदि कर्मचारी किसी विशेष दिन कार्यालय में उपस्थित नहीं हो पाता है, तो इसकी सूचना पहले से दी जानी चाहिए और आकस्मिक छुट्टी के लिए आवेदन किया जाना चाहिए।”

बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली का उपयोग करने का निर्देश दिया गया है। चार साल पहले कोविड के प्रकोप के बाद से अधिकांश स्टाफ सदस्य इसका उपयोग नहीं कर रहे हैं। डीओपीटी ने वरिष्ठ अधिकारियों को अपने अनुभागों में कर्मचारियों की उपस्थिति और समय की पाबंदी की निगरानी करने का निर्देश दिया है।

केंद्र सरकार के कार्यालय सुबह 9 बजे से शाम 5.30 बजे तक खुले रहते हैं। लेकिन स्टाफ के सदस्य काम पर देर से आने और जल्दी निकलने के लिए बदनाम हैं। इस रवैये से लोगों को असुविधा होती है। दूसरी ओर कर्मचारियों का कहना है कि हम तय कार्यालय समय के अलावा भी काम करते हैं, छुट्टियों के दिन भी काम करते हैं। वरिष्ठ अधिकारियों का तर्क है कि वे अक्सर अपने निर्धारित कार्यालय समय से ज्यादा काम करते हैं।

अधिकारियों का कहना है कि कोविड के बाद कार्यालय की फाइलें इलेक्ट्रॉनिक माध्यम से उपलब्ध होने के कारण, उन्हें अक्सर छुट्टियों या सप्ताहांत सहित घर से काम करना पड़ता है। 2014 में सत्ता संभालने के तुरंत बाद, मोदी सरकार कार्यालय समय को लागू करने के लिए आधार-सक्षम बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली लेकर आई। कोविड प्रकोप के दौरान सिस्टम को रोक दिया गया था। इस तंत्र को बाद में फरवरी 2022 में फिर से शुरू किया गया। नवीनतम कदम में सरकारी अधिकारियों द्वारा आदतन देर से आने और जल्दी कार्यालय छोड़ने के खिलाफ कार्रवाई की चेतावनी दी गई है। इस कदम से सरकारी कामकाज में बेहतर दक्षता आने की उम्मीद है।

 

यहां घर जमाई बनना शर्म नहीं सम्‍मान की बात, हंसी-खुशी होते हैं बेटे व‍िदा

शिमला । व‍िदाई शब्‍द का जब भी ज‍िक्र होता है तो हमारी आंखों के सामने जो तस्‍वीर उभरती है, वो एक लड़की की ही होती है। लाल सुर्ख जोड़े में हमेशा के ल‍िए बाबुल का घर छोड़कर ससुराल जाने वाली लड़की। ज‍िस घर में उसका बचपन बीता, गुड्डे-गुड़ि‍यों के खेल खेले..भाई से लड़ी, उसे नम आंखों के साथ व‍िदा कहना पड़ता है। लेक‍िन अगर हम आपसे कहें क‍ि हमारे देश में कुछ ऐसी जगह भी हैं, जहां कई बार लड़की नहीं बल्‍क‍ि लड़का भी व‍िदा होता है। नॉर्थ ईस्‍ट के खूबसूरत राज्‍य मेघालय की खासी जनजात‍ि के बारे में तो आपने सुना ही होगा। चल‍िए हम आपको आज ह‍िमाचल प्रदेश की इस अनूठी परंपरा से रूबरू कराते हैं।

ह‍िमाचल की ऊंची पहाड़‍ियों पर स्‍थ‍ित है लाहौल-स्‍पीत‍ि। यहां ज‍िंदगी ब‍िल्‍कुल भी आसान नहीं है। साल के कई महीने तो यहां इतनी बर्फ होती है क‍ि घर से बाहर न‍िकलना भी मुश्‍क‍िल हो जाता है। बर्फ से ढंकी पहाड़‍ियों के बीच क‍िसी अजगर सी बहती स्‍पीत‍ि नदी। हवा में चारों तरफ ब‍िखरी बौद्ध धर्म की भीनी खुशबू। इस पूरे ज‍िले की आबादी महज 31 हजार (2011 की जनसंख्‍या के अनुसार) ही है। 15 हजार फीट की ऊंचाई पर बसे इस खूबसूरत इलाके की परंपराएं बेहद अनूठी हैं।

यहां की शादी की परंपराओं की बात करें तो बेहद अनूठी हैं। कहीं लड़के की बजाय उसकी बहन बारात लेकर जाती है और दुल्‍हन अपनी ननद के साथ व‍िदा होती है। तो कहीं बहु-व‍िवाह भी देखने को म‍िल जाता है। इन सब के बीच एक और परंपरा है, ज‍िसके पीछे की वजह जानकर यहां के लोगों के ल‍िए प्‍यार और भी बढ़ जाएगा। कई शाद‍ियां ऐसी भी होती हैं, ज‍िनमें लड़क‍ियां नहीं बल्‍क‍ि लड़के व‍िदा होते हैं और घर जमाई बनने के ल‍िए आते हैं।

कब होती है लड़के की व‍िदाई – दरअसल यहां के लोग भी अपने पर‍िवार के साथ काफी जुड़े रहते हैं और उन्‍हें क‍िसी भी कीमत पर छोड़ना नहीं चाहते हैं। ऐसे में अगर क‍िसी घर में कोई बेटा नहीं है और स‍िर्फ बेट‍ियां हैं तो क‍िसी एक बेटी के पत‍ि को घर जमाई बनना होता है। ऐसे ही एक पर‍िवार से मुलाकात हुई तो घर जमाई इशे ने बताया, ‘मैं घर में सबसे छोटा बेटा हूं और अपना घर छोड़कर पत्‍नी के साथ यहां इस गांव में आकर बस गया हूं। बड़े भाई वहां मम्‍मी-पापा के पास हैं’ पूछने पर कहा क‍ि यहां भी तो मां-बाप हैं, उनकी देखभाल कौन करता? फ‍िर बताया क‍ि हमारे यहां अगर कोई बेटा नहीं है तो फ‍िर बेटी की व‍िदाई नहीं होती। दामाद ही बेटा बन जाता है।

अनूठी परंपराएं – स्‍पीत‍ि में एक परंपरा यह भी है क‍ि यहां लड़के के बजाय उसकी बहन बारात लेकर जाती है और दुल्‍हन को व‍िदा कराके लाती है। यही नहीं लाहौल ज‍िले में तो अभी भी एक से ज्‍यादा शाद‍ियों की अनुमत‍ि है। संपत्त‍ि का बंटवारा न हो, इसल‍िए कई भाइयों की शादी एक ही लड़की से कर दी जाती। हालांक‍ि समय के साथ अब यह परंपरा खत्‍म होती जा रही है।

नेहरू के बाद मोदी ने बनाया रिकॉर्ड, लौटा गठबंधन का दौर

तीसरी बार ली प्रधानमंत्री पद की शपथ

लगातार तीसरी बार केंद्र में राजग यानी एनडीए की सरकार बन चुकी है। 2024 का चुनाव कई मायनों में अलग रहा। सीटें घटीं मगर राजग अपने सहयोगी दलों के साथ सबसे बड़ा गठबंधन बनकर सामने आया और सरकार बन भी गयी मगर जिस तरह से सीटें घटीं और जिन राज्यों में घटीं, उसे देखते हुए भाजपा को आत्ममंथन करने की जरूरत है। विपक्षी इंडिया गठबंधन सरकार नहीं बना पाया मगर कांग्रेस की सीटें दोगुनी हो गयीं। उत्तर प्रदेश में भाजपा को गहरा झटका लगा है। चुनाव परिणामों ने साफ संदेश दिया है कि इस बार विपक्ष मज़बूत भूमिका में होगा। इस मज़बूती का असर यह होगा कि सदन के बाहर और सदन के भीतर दोनों ही जगहों पर विपक्ष ज्यादा आक्रामक होगा। 10 बरसों में पहली बार नेता प्रतिपक्ष को सदन में जगह मिलेगी। नेता प्रतिपक्ष का कैबिनेट मंत्री का दर्जा और प्रोटोकॉल होता है। सभी बड़े फैसलों में उसकी भूमिका होगी। वहीं, विपक्ष के सदस्यों की संख्या ज्यादा है तो ऐसे में किसी गलत फैसले पर विपक्ष और मुखर होकर बोल पाएगा। चुनाव ने कांग्रेस समाजवादी पार्टी को संजीवनी दी है मगर यह याद रखने की जरूरत है कि लोकसभा और विधानसभा चुनाव के समीकरण अलग – अलग होते हैं। तृणमूल को बंगाल में जीतने के लिए बहुत पापड़  बेलने पड़े मगर आखिरकार वह जीती। यह बात अलग है कि भाजपा की हार के बावजूद उसकी बढ़त ने ममता बनर्जी की नींद हराम कर दी है और इसका एक बड़ा कारण यह है कि बंगाल में 2026 में ही चुनाव हैं।  बहरहाल 9 जून को नरेन्द्र मोदी ने लगातार तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने राष्ट्रपति भवन में रविवार को आयोजित समारोह में उनको पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई। इसी के साथ मोदी ने पंडित जवाहर लाल नेहरू के लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बनने के रिकॉर्ड की बराबरी कर ली है। पंडित नेहरू वर्ष 1952, 1957 एवं 1962 का आम चुनाव जीतकर लगातार तीन बार प्रधानमंत्री बने थे। वहीं मोदी वर्ष 2014 एवं 2019 का आम चुनाव जीतकर क्रमशः पहली एवं दूसरी बार प्रधानमंत्री बने थे। अब उन्होंने तीसरी बार शपथ ली है। प्रधानमंत्री मोदी की नई टीम में 30 कैबिनेट मंत्री, 5 स्वतंत्र प्रभार वाले राज्य मंत्री और 36 राज्य मंत्री शामिल हैं। मंत्रिमंडल में भारत के 24 राज्यों के साथ-साथ सभी क्षेत्रों का प्रतिनिधित्व है। सभी सामाजिक समूहों का नेतृत्व – 27 ओबीसी, 10 एससी, 5 एसटी, 5 अल्पसंख्यक – जिसमें मंत्रालयों का नेतृत्व करने वाले रिकॉर्ड 18 वरिष्ठ मंत्री भी शामिल हैं। 11 एनडीए सहयोगी दलों से मंत्री भी शामिल हैं। 43 मंत्री संसद में 3 या उससे अधिक कार्यकाल तक सेवा दे चुके हैं, 39 पहले भी भारत सरकार में मंत्री रह चुके हैं। कई पूर्व मुख्यमंत्री, 34 राज्य विधानसभाओं में सेवा दे चुके हैं, 23 राज्यों में मंत्री के रूप में काम कर चुके हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बाद राजनाथ सिंह, अमित शाह से लेकर जयशंकर और निर्मला सीतारमण ने भी एक बार फिर मंत्री पद की शपथ ली। इसके अलावा जेडीएस के कुमारस्वामी, हम के जीतनराम मांझी ने भी शपथ ली। मध्य प्रदेश से पूर्व मुख्यमंत्री और विदिशा से नवनिर्वाचित सांसद शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं। उन्होंने केन्द्र में कैबिनेट मंत्री के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ ली। विदिशा सीट से सांसद चुने गए शिवराज सिंह चौहान पहली बार केंद्रीय मंत्री बने हैं। हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में वे विदिशा से छठी बार सांसद चुने गए हैं। शिवराज सिंह चौहान प्रदेश में भाजपा के सबसे कद्दावर नेता हैं। वह मध्य प्रदेश के पहले ऐसे मुख्यमंत्री हैं, जिन्होंने सर्वाधिक समय तक मुख्यमंत्री पद का कार्यभार संभाला है। वह चार बार मप्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उनका कार्यकाल करीब 16.5 वर्ष का रहा। गुना के सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने  अरुणाचल प्रदेश से किरेन रिजिजू ने, गजेंद्र सिंह शेखावत ने और कोडरमा से जीतीं अन्नपूर्णा देवी ने मंत्री पद की शपथ ली। राज्यसभा सांसद अश्विनी वैष्णव, बेगूसराय से जीते गिरिराज सिंह, ओडिशा के जुएल ओरांव ने, असम के डिब्रूगढ़ से जीते सर्बानंद सोनोवाल समेत कई अन्य मंत्रियों ने शपथ ली।  शपथ ग्रहण समारोह में नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्पकमल दाहाल ‘प्रचंड’, बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना, भूटान के प्रधानमंत्री शेरिंग तोब्गे, श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे, मालदीव के राष्ट्रपति मोहम्मद मुइज्जू और मॉरीशस के प्रधानमंत्री प्रविन्द जगन्नाथ भी मौजूद रहे। इसके अलावा कार्यक्रम में देशभर के नेता, मुख्यमंत्री, विपक्षी नेता, सांसद, फिल्मी हस्तियां, उद्योगपति, साधु-संत और आमजन मौजूद रहे। उपराष्ट्रपति जगदीप धनकड़, पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, गठबंधन के सहयोगी दलों के नेता, उद्योगपति मुकेश अंबानी, गौतम अडानी, फिल्म अभिनेता रजनीकांत, शाहरूख खान, अक्षय कुमार, अभिनेत्री रविना टंडन जैसी जानीमानी हस्तियां मौजूद रही। उल्लेखनीय है कि मोदी शुक्रवार को राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के संसदीय दल के नेता चुने गए थे। हाल में संपन्न लोकसभा चुनाव में भाजपा-नीत राजग ने 295 सीटें जीती हैं। इसमें भाजपा 240, तेदेपा 16, जदयू 12, शिवसेना (शिंदे गुट) 07, लोजपा (राम विलास) 05, जनसेना पार्टी 02, रालोद- 02,, राकांपा (अजित पवार) 01, अपना दल (एस) 01 और हम (सेकुलर) की 01 सीट शामिल है।

पश्चिम बंगाल में – तृणमूल ने बंगाल में फिर बाजी मारी अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) पार्टी यानी टीएमसी को आज बंगाल में उल्लखेनीय सफलता मिली है औऱ ममता की आंधी में विपक्ष जैसे कांपती रही। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि मुझे खुशी है कि प्रधानमंत्री ने बहुमत का आंकड़ा हासिल नहीं किया। प्रधानमंत्री अपनी साख खो चुके हैं, उन्हें तुरंत इस्तीफा देना चाहिए क्योंकि उन्होंने कहा था कि इस बार 400 पार। मैने आपसे कहा था कि 200 पार भी होगा या नहीं पता नहीं। मुख्यमंत्री ममता ने कहा है सीबीआई और ईडी के बावजूद भी नरेंद्र मोदी को पूर्ण बहुमत नहीं मिला है। अखिल भारतीय तृणमूल कांग्रेस (एआईटीसी) पार्टी यानी टीएमसी को आज बंगाल में उल्लखेनीय सफलता मिली है तो यहां भाजपा को लोकसभा में नुकसान हुआ है।

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नरेंद्र मोदी और भाजपा ने ‘टीम 72’ से क्या-क्या साधा, समझिए

नरेंद्र मोदी की कैबिनेट में 30 कैबिनेट मंत्री,पांच स्वतंत्र प्रभार वाले राज्यमंत्री और 36 राज्य मंत्रियों की पद और गोपनीयता की शपथ दिलाई गई।  नारायण राणे, परषोत्तम रूपाला और अनुराग ठाकुर को जीत के बावजूद मंत्रिमंडल में जगह नहीं मिली। इन लोगों को भाजपा संगठन में जिम्मेदारी मिलने की उम्मीद है। मोदी की पिछली सरकार से 17 मंत्री चुनाव हार गए हैं। इनमें कैबिनेट मंत्री स्तर की स्मृति ईरानी, ​​आरके सिंह, अर्जुन मुंडा और महेंद्र पांडे के नाम शामिल हैं। भाजपा उत्तर प्रदेश से आए चुनाव नतीजों से सबसे ज्यादा परेशान है. उसे उत्तर प्रदेश में 29 सीटों का नुकसान उठाना पड़ा है। इसके अलावा वाराणसी सीट जहां पीएम नरेंद्र मोदी उम्मीदवार थे, वहां वे डेढ लाख के अंतर से ही चुनाव जीत पाए हैं।भाजपा इसने  की परेशानी बढ़ा दी है.वहां 2026-2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इसका असर कैबिनेट में भी दिखाई दिया। मोदी कैबिनेट में उत्तर प्रदेश से 10 मंत्रियों को शामिल किया गया है। उत्तर प्रदेश से एनडीए का हर तीसरा सासंद मंत्री बना है. इससे पहले 2019 में  को भाजपा 80 में से 62 सीटें मिली थीं, तो यूपी से 12 लोगों को मंत्री बनाया गया था।

भाजपा का मिशन दक्षिण: भाजपा दक्षिण भारत में पैर जमाने की लगातार कोशिशें कर रही हैं. लेकिन उसे अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है। इस बार के चुनाव नतीजे भाजपा के लिए उत्साहवर्धक है। वामपंथ के गढ़ केरल में  पहली बार भाजपा कोई सीट जीत पाई है। वहीं कर्नाटक में उसकी सीटें 25 से घटकर 17 रह गई हैं, तो तेलंगाना में सीटों की संख्या चार से बढ़कर आठ हो गई हैं लेकिन दक्षिण के सबसे बड़े राज्य तमिलनाडु में भाजपा को कोई सफलता नहीं मिली है। इसके बाद भी भाजपा ने कैबिनेट में दक्षिण भारत को भरपूर जगह दी है। केरल से दो, तमिलनाडु से दो, तेलंगाना से दो, आंध्र प्रदेश से एक और कर्नाटक से चार लोगों को जगह दी गई है।

भाजपा और उसे समर्थन दे रहे दलों से भी कोई मुसलमान उम्मीदवार लोकसभा चुनाव नहीं जीता है। इसके अलावा इन दलों का राज्य सभा में भी कोई मुसलमान सदस्य नहीं है। यह तब है जब लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान मुसलमान को मुद्दा चर्चा में रहा। नरेंद्र मोदी की तीसरी सरकार में भाजपा ने जातीय गणित का भी ध्यान रखा है। मंत्रिमंडल में सामान्य वर्ग के 28 सदस्य हैं.इनमें आठ ब्राह्मण और तीन राजपूत शामिल हैं. इनके अलावा भूमिहार, यादव, जाट, कुर्मी, मराठा, वोक्कालिगा समुदाय से दो-दो मंत्री बनाए गए हैं। सिख समुदाय के दो लोगों को मंत्री बनाया गया है। कर्नाटक के लिंगायत समुदाय के साथ-साथ निषाद, लोध और महादलित वर्ग के एक-एक व्यक्ति को मंत्री बनाया गया है।  बंगाल के प्रभावशाली मतुआ समाज को भी जगह दी गई है। इनके अलावा अहीर, गुर्जर, खटिक, बनिया वर्ग को भी एक-एक बर्थ दी गई है। सवर्ण वर्ग को  भाजपा वोटर माना जाता है.इसलिए उनको प्रमुखता से कैबिनेट में जगह दी गई है। वहीं चुनाव में लगे झटके के बाद बीजेपी ने बाकी वर्गों को भी जगह देने की कोशिश की है।

मोदी मंत्रिमंडल में महिलाएं – इस बार के चुनाव में 74 महिलाएं जीतकर संसद पहुंची हैं. ये महिलाएं भाजपा, तृणमूल और कांग्रेस समेत 14 दलों के टिकट पर मैदान में थीं। इनमें से 43 पहली बार चुनाव जीती हैं.सबसे अधिक 31 महिलाएं भाजपा के टिकट पर जीती हैं। इसके अलावा कांग्रेस की 13, तृणमूल की 11 और सपा की पांच महिला सांसद हैं। 18वीं लोकसभा में केवल 13.6 फीसदी महिला सांसद हैं।  यह महिला आरक्षण के लिए बने कानून से काफी कम हैं, हालांकि यह कानून अभी लागू नहीं हुआ है। नरेंद्र मोदी कैबिनेट में सात महिलाओं को मंत्री बनाया गया है. ये हैं निर्मला सीतारमण, अन्नपूर्णा देवी, रक्षा खड़से, सावित्री ठाकुर, अनुप्रिया पटेल, नीमूबेन बमभानिया और शोभा करंदलाजे। इनमें से अनुप्रिया पटेल को छोड़ सभी भाजपा की सदस्य है। भाजपा ने अपनी 31 महिला सांसदों में से छह को मंत्रिमंडल में जगह दी है. यह संख्या 20 फीसदी से भी कम है।

खाने-पीने पर बिहार के लोग करते हैं सबसे ज्यादा खर्च, केरल सबसे कम

-खाने-पीने में बिहार वाले करते हैं ज्यादा खर्च, केरल पीछे

-दूध और इससे बनी चीजों पर खर्च में हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी आगे

-सरकार ने जारी की हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे 2022-23 की विस्तृत रिपोर्ट

 

नयी दिल्ली ।  जीवनयापन के कुल खर्च में खाने-पीने की चीजों की हिस्सेदारी पूरे देश के स्तर पर पिछले 10 वर्षों में घटकर घटकर 50 प्रतिशत से नीचे आ गई है। हालांकि, बिहार और असम जैसे राज्यों में यह अब भी इससे अधिक है। बिहार और असम के लोगों के कुल खर्च में खाने-पीने की चीजों का हिस्सा सबसे अधिक है। तेलंगाना और केरल में यह सबसे कम है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और यूपी जैसे राज्यों के लोग खाने-पीने में दूध और इससे बनी चीजों पर सबसे अधिक खर्च कर रहे हैं। यह जानकारी हाउसहोल्ड कंजम्पशन एक्सपेंडिचर सर्वे 2022-23 की विस्तृत रिपोर्ट में सामने आई है। इसे स्टैटिस्टिक्स ऐंड प्रोग्राम इंप्लिमेंटेशन मिनिस्ट्री ने जारी किया है।

रिपोर्ट के मुताबिक, टोटल कंजम्पशन एक्सपेंडिचर में खाने-पीने की चीजों की हिस्सेदारी बिहार और असम में सबसे अधिक 54 प्रतिशत और केरल में सबसे कम 39 प्रतिशत है। शहरी इलाकों में भी यह आंकड़ा बिहार और असम में सबसे अधिक 47% रहा। सबसे कम 35 प्रतिशत हिस्सेदारी तेलंगाना में रही है। यूपी के ग्रामीण इलाकों में प्रति व्यक्ति कुल खर्च में फूड आइटम्स का हिस्सा 47 प्रतिशत और शहरी इलाकों में 41 प्रतिशत है। महाराष्ट्र में यह आंकड़ा क्रमश: 41 प्रतिशत और 37 प्रतिशत का है।

10 वर्षों में भोजन पर खर्च घटा – कुल मिलाकर पिछले 10 वर्षों में औसत मासिक स्तर पर कैपिटा कंजम्पशन एक्सपेंडिचर (एमपीसीई) में भोजन पर खर्च घटा है। 2011-12 में ग्रामीण इलाकों में कुल मासिक खर्च में खाने-पीने की हिस्सेदारी 52.9 प्रतिशत थी। 2022-23 में यह 46.4 प्रतिशत पर आ गई। शहरों में भी आंकड़ा 42.6 प्रतिशत से घटकर 39.2 प्रतिशत पर आ गया। गांवों में खाने-पीने पर प्रति व्यक्ति एक महीने का खर्च औसतन 1750 रुपये और शहरों में 2530 रुपये रहा।

हरियाणा में दूध, केरल में मांस-मछली पर खर्च सबसे अधिक – टोटल फूड कंजम्पशन में बेवरेजेज और प्रोसेस्ड फूड की हिस्सेदारी बढ़ी है और राष्ट्रीय औसत 9.6 प्रतिशत का है। अधिकतर राज्यों में सबसे अधिक खर्च इसी पर है है। दूध और इससे बनी चीजी की हिस्सेदारी का राष्ट्रीय औसत 8.3 प्रतिशत है। हालांकि हरियाणा (41.7 प्रतिशत), राजस्थान (35.5 प्रतिशत), पंजाब (34.7 प्रतिशत), गुजरात (25.5 प्रतिशत), यूपी (22.6 प्रतिशत) और एमपी (21.5 प्रतिशत) में दूध और दूध से बने उत्पादों का हिस्सा फूड कंजम्पशन में सबसे अधिक है। राजस्थान (33.2 प्रतिशत), हरियाणा (33.1 प्रतिशत), पंजाब (32.3 प्रतिशत) और यूपी (25.2 प्रतिशत) के शहरी इलाकों में भी मिल्क एंड मिल्क प्रोडक्ट्स का हिस्सा सबसे अधिक है। वहीं, खाने-पीने पर कुल खर्च में अंडे, मछली और गोश्त की सबसे अधिक 23.5 प्रतिशत हिस्सेदारी केरल के ग्रामीण इलाकों में है। इसके बाद असम (20 प्रतिशत) और पश्चिम बंगाल (18.9 प्रतिशत) का नंबर है। सबसे कम 2.1 प्रतिशत हिस्सेदारी हरियाणा के ग्रामीण इलाकों में है। 2.6 प्रतिशत हिस्से के साथ इससे ऊपर गुजरात और राजस्थान हैं। शहरी इलाकों के खान-पान में अंडे, मछली और गोश्त की हिस्सेदारी के मामले में केरल 19.8 प्रतिशत और पश्चिम बंगाल 18.9 प्रतिशत के साथ आगे हैं।

पश्चिम बंगाल में अनाज की खपत सबसे अधिक – अनाज के मामले में प्रति व्यक्ति हर महीने सबसे अधिक 11.23 किलो की खपत पश्चिम बंगाल के ग्रामीण इलाकों में है। इसके बाद ओडिशा (11.21 किलो), बिहार (11.14 किलो) और राजस्थान (10.55 किलो) का नंबर है। यूपी में 9.38 किलो और महाराष्ट्र में 8.31 किलो खपत है। सबसे कम 6.6 किलो खपत केरल में है। अनाज में भी चावल की सबसे अधिक 95.93 प्रतिशत हिस्सेदारी असम में है। इसके बाद छत्तीसगढ़ (92.24 प्रतिशत) और तेलंगाना (92.06 प्रतिशत) का नंबर है। यूपी में आंकड़ा 39.99 प्रतिशत और महाराष्ट्र में 36.39 प्रतिशत है। चावल की सबसे कम 3.19 प्रतिशत हिस्सेदारी राजस्थान के लोगों के फूड एक्सपेंडिचर में है। हरियाणा (88.56 प्रतिशत), पंजाब (87.54 प्रतिशत) और राजस्थान (84.77 प्रतिशत) के लोगों के खाने-पीने में गेहूं पर खर्च का हिस्सा अधिक है। नॉन-फूड आइटम्स पर खर्च के मामले में सभी प्रमुख राज्यों के ग्रामीण और शहरी इलाकों में कन्वेंस की हिस्सेदारी सबसे अधिक है। इसके बाद ड्यूरेबल गुड्स और एंटरटेनमेंट का नंबर है। नॉन-फूड आइटम्स में ड्यूरेबल गुड्स की सबसे अधिक हिस्सेदारी केरल में है।

शहरों और गांवों का अंतर घटा – सर्वे के मुताबिक, 2022-23 में ग्रामीण इलाकों में ऐवरेज मंथली पर कैपिटा कंजम्पशन एक्सपेंडिचर 3773 रुपये और शहरी इलाकों में 6459 रुपये रहा। 2010-11 में ये आंकड़े 1430 रुपये और 2630 रुपये पर थे। इस तरह रूरल एरिया में खर्च 2.6 गुना और अर्बन एरिया में 2.5 गुना बढ़ गया। इसके साथ ही रूरल-अर्बन गैप घटा है। 2010-11 में शहरों में औसत एमपीसीई गांवों से 84 प्रतिशत अधिक था। 2022-23 में फासला घटा और यह करीब 71% ही अधिक रह गया है।

कहानी एक्जिट पोल की : 88 साल पहले दुनिया में पहली बार अमेरिका में हुआ था

नयी दिल्ली ।  भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत से काफी पहले ही कई देशों में यह शुरू हो चुका था। अब तो अमेरिका, दक्षिण अमेरिका, दक्षिण एशिया, यूरोप और दक्षिण पूर्व एशिया समेत दुनिया के कई देशों में मतदान के बाद एग्जिट पोल होते हैं। इसकी शुरुआत का श्रेय वैसे तो संयुक्त राज्य अमेरिका को जाता है। साल 1936 में सबसे पहले अमेरिका के न्यूयॉर्क शहर में जॉर्ज गैलप और क्लॉड रोबिंसन ने चुनावी सर्वे किया था। तब पहली बार मतदान कर निकले मतदाताओं से पूछा गया था कि उन्होंने राष्ट्रपति पद के किस उम्मीदवार को वोट दिया है।

इस सर्वे से मिले आंकड़ों से अनुमान लगाया गया था कि फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट को चुनाव में जीत मिलेगी और वैसा ही हुआ भी था। हालांकि इस सर्वे ने अमेरिका के चुनाव परिणाम को बुरी तरह से प्रभावित किया था। इसके बावजूद तब इसे एग्जिट पोल न कहकर सर्वे ही कहा जाता था।

नीदरलैंड से चलन में आया एग्जिट पोल – अमेरिका के बाद दूसरे कई देशों में भी यह सर्वे लोकप्रिय हो गया। अमेरिका के बाद साल 1937 में ब्रिटेन में पहली बार ऐसा ही सर्वे किया गया। फिर अगले साल यानी 1938 में फ्रांस में पहली बार मतदाताओं से उनका मिजाज पूछा गया। तब तक एग्जिट पोल टर्म चलन में नहीं आया था। इसकी शुरुआत बहुत बाद में नीदरलैंड में हुई। 15 फरवरी 1967 को नीदरलैंड के समाजशास्त्री और पूर्व राजनेता मार्सेल वॉन डैम ने एग्जिट पोल की शुरुआत की थी। तब नीदरलैंड में हुए चुनाव के परिणाम को लेकर मार्सेल वॉन डैम का आकलन एकदम सटीक निकला था।

भारत में ऐसे हुई एग्जिट पोल की शुरुआत – जहां तक भारत की बात है तो यहां सबसे आजादी के बाद दूसरे आम चुनाव के दौरान साल 1957 में इंडियन इंस्टिट्यूट ऑफ पब्लिक ओपिनियन की ओर से पहली बार इसके मुखिया एरिक डी कॉस्टा ने सर्वे किया था। हालांकि, तब इसे एग्जिट पोल नहीं माना गया था. फिर साल 1980 और 1984 में डॉक्टर प्रणय रॉय की अगुवाई में सर्वे किया गया। औपचारिक तौर पर साल 1996 में भारत में एग्जिट पोल की शुरुआत सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) ने की थी। तब पत्रकार नलिनी सिंह ने दूरदर्शन के लिए एग्जिट पोल कराया था, जिसके लिए सीएसडीएस ने आंकड़े जुटाए थे। इस पोल में बताया गया था कि भाजपा लोकसभा चुनाव जीतेगी और ऐसा ही हुआ। इसी के बाद से देश में एग्जिट पोल का चलन बढ़ गया। साल 1998 में निजी न्यूज चैनल ने पहली बार एग्जिट पोल का प्रसारण किया था।

इस तरह से किया जाता है एग्जिट पोल – एग्जिट पोल वास्तव में एक तरह का चुनावी सर्वे ही है। यह मतदान के दिन ही किया जाता है. इसके लिए मतदान कर पोलिंग बूथ से निकले मतदाताओं से यह पूछा जाता है कि उन्होंने किस पार्टी या प्रत्याशी को अपना वोट दिया है। इससे मिले आंकड़ों का विश्लेषण किया जाता है, जिससे यह अनुमान लग जाता है कि चुनाव के नतीजे क्या होंगे.

एग्जिट पोल और ओपिनियन पोल में अंतर – एग्जिट पोल की ही तर्ज पर एक और सर्वे किया जाता है, जिसे ओपिनियन पोल कहा जाता है. इन दोनों में इतना फर्क है कि एग्जिट पोल केवल मतदान वाले दिन किए जाते हैं। इसमें मतदान करने वाले मतदाताओं को ही शामिल किया जाता है। वहीं, ओपिनियन पोल चुनाव से पहले ही किए जाते हैं। इनमें सभी तरह के लोगों को शामिल किया जा सकता है, भले ही वे मतदाता हों अथवा नहीं. एग्जिट पोल में मतदाताओं से सीधे पूछा जाता है कि किस पार्टी या प्रत्याशी को वोट दिया है। वहीं, ओपिनियन पोल में पूछा जाता है कि किसे वोट देने की इच्छा या योजना है.

नतीजे सटीक होने की कोई गारंटी नहीं – अब सवाल यह है कि भारत में एग्जिट और ओपिनियन पोल कितने सटीकता हो सकते हैं। आमतौर पर एग्जिट पोल 80 से 90 फीसदी के बीच सटीक निकलता हैं। हालांकि, ऐसा ही हो यह जरूरी नहीं है।  कुछ मामलों में ये बहुत सटीक नहीं होते हैं। इसमें यह आशंका बनी रहती है कि मतदान कर निकला मतदाता जरूरी नहीं कि यह सच बताए ही कि उसने किसे वोट दिया है। वहीं, ओपिनियन पोल के बाद तो मतदाताओं के पास अपनी राय बदलने का समय होता है और अंत में हो सकता है वे किसी और को वोट दे आएं।