Monday, April 21, 2025
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एनसीईआरटी की पाठ्यपुस्तकों में अब वेद और पुराण भी पढ़ेंगे बच्चे

 नयी दिल्ली ।  राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद यानि NCERT ने कक्षा 6 की सामाजिक विज्ञान की पुस्तक के पाठ्यक्रम में परिवर्तन किया है। पहले कक्षा 6 में सामाजिक विज्ञान की तीन अलग-अलग पुस्तकें थीं, लेकिन अब उन्हें मिलाकर एक ही पुस्तक में संकलित कर दिया गया है। इतिहास, भूगोल और नागरिक शास्त्र तीनों की अलग-अलग किताब को एक पुस्तक में कर दिया गया है। इस वर्ष कक्षा 3 और कक्षा 6 के छात्रों को नई किताबें मिलेंगी,इन किताबों के पाठ्यक्रम में भी बदलाव किया गया है।

महाभारत-पुराण का जिक्र – नई पाठ्यपुस्तक में एक विशेष अध्याय 5 को जोड़ा गया है, जो “इंडिया, दैट इज भारत” है, इस अध्याय में भारत की उत्पत्ति पर विस्तृत चर्चा की गई है। इसमें महाभारत और विष्णु पुराण जैसे प्राचीन भारतीय ग्रंथों का संदर्भ दिया गया है। महाभारत में कश्मीर, कुरुक्षेत्र , वंगा, कच्छ और केरल जैसे क्षेत्रों की सूची दी गई है। पुस्तक में कई संस्कृत शब्दों को सही उच्चारण सुनिश्चित करने के लिए विशेषक चिह्नों के साथ शामिल किया गया है। यह अध्याय छात्रों को भारत की ऐतिहासिक जड़ों से जोड़ने के लिए एक शैक्षिक उपकरण के रूप में कार्य करता है।

बी.बी. लाल का जिक्र – अध्याय 6, जिसका शीर्षक है ‘भारतीय सभ्यता की शुरुआत’ इसमे भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के पूर्व प्रमुख बी.बी. लाल के एक उदाहरण से शुरू होता है। जिन्होंने 1970 के दशक के मध्य में बाबरी मस्जिद में खुदाई का नेतृत्व किया था। उन्हें शुरू में हिंदू मंदिर का कोई निशान नहीं मिला, लेकिन बाद में उन्होंने दावा किया कि इस स्थल पर मंदिर के स्तंभ आधार थे।

वेदों को शामिल किया गया – पुस्तक के अध्याय 7 में वेदों पर विस्तृत टिप्पणी के साथ भारत की सांस्कृतिक जड़ों पर ध्यान केंद्रित किया गया है। पुराने पाठ में ‘छांदोग्य उपनिषद’ से एक कहानी शामिल थी, लेकिन नए संस्करण में ‘कठोपनिषद’ और ‘बृहदारण्यक उपनिषद’ से दो अतिरिक्त कहानियां शामिल हैं। रामायण के एक दृश्य को दर्शाती 18वीं सदी की एक पेंटिंग भी जोड़ी गई है।

प्राचीन साम्राज्यों को कम किया गया – नई पाठ्यपुस्तक में प्राचीन भारतीय साम्राज्यों पर सामग्री को काफी कम कर दिया गया है। अशोक, चंद्रगुप्त मौर्य, गुप्त, पल्लव, चालुक्य और कालिदास की रचनाओं जैसे साम्राज्यों का विवरण देने वाले चार अध्यायों को हटा दिया गया है। अध्याय 4 की समयरेखा में राजा अशोक का केवल एक ही उल्लेख है।

पुरानी किताब में ‘गांव, शहर और व्यापार’ से संबंधित अध्याय को हटा दिया गया है, जिसमें औजार, सिक्के, सिंचाई, शिल्प और व्यापार शामिल थे। कुतुब मीनार के लौह स्तंभ, सांची स्तूप, महाबलीपुरम मंदिर और अजंता गुफाओं की पेंटिंग जैसे ऐतिहासिक स्थलों के संदर्भ हटा दिए गए हैं।

एनसीईआरटी के निदेशक दिनेश सकलानी ने पुस्तक परिचय अध्याय में लिखा है, हमने ‘बड़े विचारों’ पर ध्यान केंद्रित करके पाठ को न्यूनतम रखने की कोशिश की है। इससे हम कई विषयों , इतिहास, भूगोल, राजनीति विज्ञान या अर्थशास्त्र को एक ही विषय में संयोजित किया है।

 

कॉलेज कैंटीन में नहीं मिलेंगे समोसा, कचौड़ी, नूडल्स, यूजीसी ने दिए निर्देश

नयी दिल्ली । देश के कॉलजों में बड़ी संख्या में छात्र पढ़ते हैं। ऐसे में छात्रों की सुविधा के लिए कॉलेजों में कैंटीन भी खुली रहती है। अगर आप भी कॉलेज कैंटीन से खाना खाते हैं, तो यह खबर आपके लिए ही है।दरअसल, यूजीसी ने हाल ही में विश्वविद्यालयों और डिग्री कॉलेजों की कैंटीन में मिलने वाले खाने को लेकर एक नोटिस जारी किया है। इस नोटिस में स्वास्थ्य के लिए हानिकारक आहार की बिक्री बंद करने के निर्देश दिए गए हैं।

इस नोटिस के बाद, जल्द ही आपको अपने कॉलेड की कैंटीन में समोसा, नूडल्स, ब्रेड पकौडा आदि जैसे कई अनहेल्दी फूड आइटम्स खाने को नहीं मिलेंगे। यूजीसी ने नोटिस में निर्देश दिया है कि उच्च शिक्षा संस्थानों में संचालित हो रहे कैंटीन द्वारा अब सिर्फ सेहतमंद भोज्य पदार्थ ही परोसे जाएंगे।

आधिकारिक नोटिस के अनुसार, “जैसा कि आप जानते हैं, नेशनल एडवोकेसी इन पब्लिक इंटरेस्ट (एनएपी|) पोषण पर एक राष्ट्रीय थिंक टैंक है, जिसमें महामारी विज्ञान, मानव पोषण, सामुदायिक पोषण और बाल चिकित्सा, चिकित्सा शिक्षा, प्रशासन, सामाजिक कार्य और प्रबंधन में स्वतंत्र विशेषज्ञ शामिल हैं। बढ़ते मोटापे, मधुमेह और अन्य गैर-संचारी रोगों (एनसीडी) पर चिंतित, सामान्य एनसीडी (2017-2022) की रोकथाम और नियंत्रण के लिए राष्ट्रीय बहु-क्षेत्रीय कार्य योजना (एनएमएपी) के त्वरित कार्यान्वयन के लिए एनएपी ने शैक्षणिक संस्थानों में अनहेल्दी फूड की बिक्री पर रोक लगाने और कैंटीनों में स्वस्थ भोजन विकल्पों को बढ़ावा देने का अनुरोध किया है।”

नोटिस में यूजीसी ने कहा है कि इस सम्बन्ध में उच्च शिक्षा संस्थानों को पहले भी, 10 नवंबर 2016 और 21 अगस्त 2018, एडवाइजरी जारी जा चुकी है। इस क्रम में संस्थानों को एक बार फिर से चेताया जाता है कि वे अपनी कैंटीन में हानिकारक आहार की बिक्री पर रोक लगाएं और सिर्फ हेल्दी फूड ही परोसे जाने को बढ़ावा दें। ऐसा करके हम गैर-संचारी रोगों की लगातार बढ़ रही महामारी पर रोक लगाने में सक्षम हो सकेंगे।

 

पेस और अमृतराज अंतरराष्ट्रीय टेनिस हॉल ऑफ फेम में शामिल

नयी दिल्ली । युगल में दुनिया के पूर्व नंबर एक खिलाड़ी लिएंडर पेस और टेनिस प्रसारक अभिनेता और खिलाड़ी विजय अमृतराज शनिवार को अंतरराष्ट्रीय टेनिस हॉल ऑफ फेम में शामिल होने वाले पहले एशियाई पुरुष खिलाड़ी बन गए। यह दोनों दिग्गज ब्रिटिश टेनिस पत्रकार और लेखक रिचर्ड इवांस के साथ हॉल ऑफ फेम में शामिल हुए। पेस ने टेनिस को बतौर करियर चुनने से पहले फुटबॉल और हॉकी में भी हाथ आजमाया था और अंततः ओलंपिक पदक विजेता के रूप में अपने हॉकी-कप्तान पिता का अनुसरण किया।

पेस बोले- मेरे लिए सम्मान की बात
पेस ने कहा, ‘इस मंच पर सिर्फ खेल के दिग्गजों के साथ ही नहीं, जिंदगी के हर दिन मुझे प्रेरित करने वाले लोगों के साथ होना मेरे लिए सबसे बड़ा सम्मान है। इसलिए नहीं कि आपने सिर्फ ग्रैंडस्लैम जीते हैं, इसलिए नहीं कि आपने हमारे खेल को आकार दिया बल्कि इनमें से हरेक व्यक्ति ने उस दुनिया को आकार दिया जिसमें हम रहते हैं।’

अमृतराज ने जीते कई खिताब
70 वर्षीय अमृतराज ने 1970 में डेब्यू किया था और 1993 में संन्यास ले लिया था। इस दौरान उन्होंने 15 एटीपी एकल खिताब और 399 मैच जीते और एकल में सर्वश्रेष्ठ 18वीं रैंकिंग भी हासिल की। उन्होंने भारत को 1974 और 1987 में डेविस कप फाइनल में पहुंचाने में मदद की थी।अमृतराज ने कहा, ‘मैं इस अविश्वसनीय और विशिष्ट समूह में शामिल होने पर सम्मानित महसूस कर रहा हूं। इस समूह ने इस खेल को गौरव दिलाया है।’

अभिनय भी कर चुके अमृतराज
अपने खेल के दिनों के बाद अमृतराज ने मानवीय कारणों में मदद की। साथ ही भारत में एटीपी और डब्ल्यूटीए कार्यक्रमों का समर्थन किया और जेम्स बॉन्ड और स्टार ट्रेक फिल्म सीरीज में अभिनय किया। अमृतराज ने कहा, ‘यह सिर्फ मेरे, मेरे परिवार, मेरे माता-पिता के लिए ही नहीं, बल्कि मेरे सभी साथी भारतीयों और मेरे देश के लिए जो पूरी दुनिया में रहते हैं, के लिए एक सम्मान है।’

पेस ने  18 ग्रैंडस्लैम जीते
पेस युगल और मिश्रित युगल में 18 बार के ग्रैंडस्लैम चैंपियन रहे हैं। उन्हें अमृतराज युवा अकादमी में खेलने के बाद खिलाड़ी वर्ग में चुना गया था। पेस और अमृतराज ने भारत को हॉल ऑफ फेम में प्रतिनिधित्व करने वाला 28वां राष्ट्र बनाया। पेस ने कहा, ‘मैं अपने हर एक देशवासियों को धन्यवाद देना चाहता हूं जिन्होंने मेरा समर्थन किया, जो उतार-चढ़ाव में मेरे साथ खड़े रहे। आप सभी मेरे लिए प्रेरणा थे, समर्थन थे, मेरा मार्गदर्शन करने की ताकत थे जब मुझे खुद पर विश्वास नहीं था।

पेस करियर ग्रैंड स्लैम भी जीत चुके
पेस ने पुरुष और मिश्रित युगल दोनों में करियर ग्रैंड स्लैम जीते। उन्होंने 2012 ऑस्ट्रेलियन ओपन जीतकर पुरुषों में और 2016 फ्रेंच ओपन पर कब्जा करके मिश्रित में यह उपलब्धि हासिल की। उन्होंने ब्राजील के फर्नांडो मेलिगेनी को 3-6, 6-2, 6-4 से हराकर 1996 अटलांटा ओलंपिक में कांस्य पदक जीता था। उनका एकमात्र एटीपी एकल खिताब 1998 में न्यूपोर्ट घास पर उसी स्थान पर आया था जहां उन्हें शामिल किया गया था।

पेस ने पिता की कही बातों को किया याद
पेस ने कहा, ‘जैसा कि मेरे पिता ने हमेशा मुझसे कहा कि अगर आप खुद पर भरोसा करते हैं, आप कड़ी मेहनत करते हैं, आप सिर्फ पुरस्कार राशि और ट्रॉफी जीतने के लिए ही नहीं बल्कि आप दुनिया को प्रेरित करने के लिए ऐसा करते हैं। सात ओलंपिक में देशवासियों के लिए खेलना, उन सभी डेविस कप में राष्ट्रगान के लिए खड़े होना और यह साबित करना कि हम एशियाई ग्रैंडस्लैम जीत सकते हैं और अपने क्षेत्र में नंबर एक भी बन सकते हैं मेरे लिए सम्मान की बात थी।

 

घुटनों की समस्या का समाधान करेगा रोबोट

कोलकाता । डॉ. सौम्य चक्रवर्ती ने फोर्टिस अस्पताल आनंदपुर में घुटने के प्रतिस्थापन के लिए अत्याधुनिक रोबोटिक-सहायता प्राप्त समाधान वेलेज के लॉन्च की घोषणा की। यह कोलकाता का पहला रोबोट है, जो कुल या आंशिक घुटने के प्रतिस्थापन की आवश्यकता वाले रोगियों के लिए महत्वपूर्ण लाभ का वादा करता है, निकट भविष्य में हिप प्रतिस्थापन के लिए सॉफ़्टवेयर लॉन्च करने की योजना है। ऑर्थोपेडिक रोबोटिक घुटने के प्रतिस्थापन सर्जरी में कई लाभ प्रदान करता है, जिसमें सभी हड्डियों को काटने और प्रत्यारोपण की स्थिति की गतिशीलता के कारण सटीक और सटीक सर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल हैं। मरीज़ बेहतर गति की उम्मीद कर सकते हैं, रिकवरी के दौरान कम से कम असुविधा और वसा एम्बोलिज्म जैसी जटिलताओं के कम जोखिम की उम्मीद कर सकते हैं। यह तकनीक बेहतर संरेखण और प्रत्यारोपण दीर्घायु को बढ़ावा देती है, उपचार प्रक्रिया को तेज करती है और अस्पताल में रहने को कम करती है। इसके अतिरिक्त, सर्जिकल प्रक्रिया सरल है क्योंकि इसमें इंस्ट्रूमेंटेशन की आवश्यकता नहीं होती है। 2021 में दुनिया भर के प्रमुख बाजारों में अपनी शुरुआत के बाद से, रोबोट ने कई उल्लेखनीय विशेषताओं का प्रदर्शन किया है।  यह प्री-सर्जिकल सीटी स्कैन की आवश्यकता को समाप्त करके रोगियों के लिए समय और लागत को कम करता है। इन्फ्रारेड कैमरा और ऑप्टिकल ट्रैकर्स जैसी उन्नत तकनीक का उपयोग करते हुए, रोबोट रोगियों की शारीरिक रचना के बारे में सटीक डेटा एकत्र करता है। इसकी अनुकूली ट्रैकिंग तकनीक सर्जिकल योजना के सटीक और सुसंगत निष्पादन के लिए एक उच्च गति वाले कैमरे, ट्रिपल-ड्राइव मोशन तकनीक और प्योर साइट ऑप्टिकल रिफ्लेक्टर के साथ वास्तविक समय का मुआवजा प्रदान करती है। प्राकृतिक नियंत्रण तकनीक कटिंग ब्लॉक की आवश्यकता के बिना सटीक, पुनरुत्पादित सर्जन-नियंत्रित कटौती के लिए आरी कट प्लेन को बनाए रखती है। एक्यूबैलेंस ग्राफ संयुक्त स्थिरता की भविष्यवाणी करने के लिए गति की पूरी श्रृंखला में संतुलन डेटा का प्री-रिसेक्शन विज़ुअलाइज़ेशन प्रदान करता है, जबकि प्रो एडजस्ट  प्लानिंग आसानी से मापदंडों को समायोजित करती है, जिससे सर्जन नरम ऊतकों के सापेक्ष संरेखण और संतुलन को वैयक्तिकृत कर सकते हैं। यह रोबोट एक आरी-आधारित प्रणाली है जिसे संभालना आसान है और यह सर्जिकल समय को नहीं बढ़ाता है, और यह सर्जिकल डेटा के दस्तावेज़ीकरण को सक्षम करता है जिसे रोगियों या उनके रिश्तेदारों को सौंपा जा सकता है।  यह सिस्टम अपग्रेड नी सिस्टम के साथ भी संगत है, जो उद्योग में सबसे अच्छे घुटने के सिस्टम में से एक है, जो उच्च गुणवत्ता वाले परिणाम सुनिश्चित करता है। रोबोट की शुरुआत के साथ, हमारा लक्ष्य अपने आर्थ्रोप्लास्टी देखभाल को अगले स्तर तक ले जाना है, जिसमें कौशल को सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीक के साथ जोड़कर रोगियों को अधिकतम लाभ प्रदान करना है। डॉ. सौम्या चक्रवर्ती ने लॉन्च के बारे में अपना उत्साह व्यक्त किया: “हम शहर में रोबोट को पेश करके रोमांचित हैं। यह अत्याधुनिक तकनीक घुटने की रिप्लेसमेंट सर्जरी में क्रांति लाएगी, जिससे हमारे रोगियों को बेजोड़ सटीकता, कम रिकवरी समय और बेहतर समग्र परिणाम मिलेंगे। हमारी विशेषज्ञता के साथ सर्वोत्तम उपलब्ध तकनीक का उपयोग करने की हमारी प्रतिबद्धता यह सुनिश्चित करती है कि हमारे रोगियों को उच्चतम स्तर की देखभाल मिले। रोबोट आर्थ्रोप्लास्टी में एक महत्वपूर्ण प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है, और हम अपने रोगियों के जीवन पर इसके सकारात्मक प्रभाव को लेकर उत्साहित हैं।”

तेजी से बदल रही राजनीति, टूट रहा है एक युग का तिलिस्म

सुषमा त्रिपाठी कनुप्रिया

तिलिस्म कैसा भी हो, किसी का भी हो, टूटता है…। जब आप निरंतर सफल होते जाते हैं तो आप एक तिलस्मी दुनिया में जीते हैं कि आपको कोई हरा नहीं सकता, आप हमेशा लोकप्रिय बने ही रहेंगे और जब ऐसा होता है तो आप इसे स्वीकार करना नहीं चाहते और नतीजा यह अपनी ही गढ़ी दुनिया से बाहर निकलने का साहस आप खो बैठते हैं, सच को सच नहीं मानते । एक प्रश्न यह भी कि एक समय के बाद राजनीति में या किसी भी क्षेत्र में सेवानिवृत्ति को इतने बुरे तरीके से क्यों देखा जाता है? सत्य यह है कि शरीर में उम्र के साथ बदलाव आते हैं, आपके आस – पास की दुनिया बदलती है मगर आप चाहते हैं कि समय वहीं का वहीं ठहर जाए जो असम्भव है । एक समय के बाद अपनी क्षमता के साथ सीमा को भी स्वीकार कर लेना चाहिए। यह बात जब लिख रही हूँ तो देश में एक बार फिर मोदी युग तो लौटा है मगर सीटें बुरी तरह घटी हैं, विरोधी मजबूत हो रहे हैं। गठबंधन की राजनीति का युग लौट आया है, तुष्टीकरण की राजनीति बरकरार है। कभी संन्यास न लेने वाले नेताओं से परेशान युवा नेता दल बदल रहे हैं और एक तिलिस्म टूटने का समय आ चुका है । ऐसा लग रहा है कि देश की राजनीति जैसे करवट लेने जा रही है। यह समय है कि जब सभी वरिष्ठ नेताओं को अपनी मोह –माया त्यागकर परिवार के हित से ऊपर उठकर उस दल के हित के बारे में सोचना चाहिए जिसे आपने अपनी मेहनत से खड़ा किया है । वैसे कांग्रेस की बात करें तो पार्टी की नींव ए ओ ह्यूम ने डाली थी..स्वाधीनता संग्राम में भी गांधी की छाया तले यह पार्टी सिमटकर रह गयी, इसके सरोकार सिमटकर रह गये । तब नेहरू और इंदिरा का तिलिस्म था और आज मोदी का युग एक तिलिस्म है । मेरा मानना है कि राजनीति में भी आयु सीमा होनी चाहिए और 75 के बाद नेताओं युवाओं के लिए अपनी सत्ता छोड़नी चाहिए। मैं जो कह रही हूँ, अभी यह यूटोपिया ही है मगर इसी देश में यह परम्परा रही है। सत्ता में रहते – रहते मोह हो जाना स्वाभाविक है। दूसरों को कोसने से अपने पाप नहीं धुलते। यह पहली बार है जब नरेंद्र मोदी राजनीतिक पारी में असफलता का स्वाद चख रहे हैं। यह समय है जब उनको खुद आत्ममंथन की जरूरत है । विपक्ष में रहकर राहुल गांधी ने लगभग यही करने का प्रयास किया और 99 पर रहकर भी प्रगति की गुंजाइश बताती है कि वह बदल रहे हैं और जनता को समझ भी रहे हैं । अगर बंगाल की बात करें तो ममता बनर्जी के दल में भी युवा और वरिष्ठ की जंग तेज हो चुकी है और भविष्य में अभिषेक बनर्जी उनकी जगह लें या ऐसा न होने पर अपने लिए नयी राह खड़ी कर दें तो आश्चर्य नहीं होगा..वैसे ममता ने भी तो कांग्रेस छोड़कर यही किया था ।

समय के साथ बदलना किसी के लिए बहुत जरूरी है क्योंकि परिवर्तन प्रकृति का नियम है और समय की मांग भी है। घिसी – पिटी परम्पराएं और राजनीति जनता को बहुत लम्बे समय तक रास नहीं आतीं और इसके साथ एक बड़ी बात यह है कि परिवर्तन के लिए उठाए गए कदम कई बार समय से आगे के लिए होते हैं और यह ऐसी दोधारी तलवार है जो परिवर्तन लाने वाले का वर्तमान तो खत्म कर देती है मगर एक समय के बाद भविष्य उसका सम्मान जरूर करता है। सत्ता पाने का अर्थ शासक बन जाना नहीं होता अपितु जनता और सहयोगियों के साथ उन सबको साथ लेकर चलना भी होता है जिनको आप पसन्द नहीं करते । किसी भी प्रकार का परिवर्तन हो, क्रांति हो या इतिहास हो, अपने फायदे के लिए आप उसे रबर की तरह खींच नहीं सकते । यह सबसे बड़ा मिथक है कि कुर्सी पर बैठने वाला व्यक्ति बहुत ताकतवर होता है, सत्य तो यह है कि सिंहासन पर बैठने वाले व्यक्ति की अपनी कोई शक्ति नहीं होती, वह सबसे अधिक निर्भर होता है दूसरों पर…कई बार तो उससे अधिक लाचार कोई नहीं होता । ऐसे व्यक्ति की सबसे बड़ी परेशानी यह होती है कि वह चाहे भी तो खुलकर रो नहीं सकता, वह किसी को बता नहीं सकता कि उसे भी जरूरत है क्योंकि बताने के लिए झुकने की जरूरत होती है और झुकना उसके लिए हार मानने जैसा होता है और सिंहासन पर बैठने वाला या लोकप्रियता के शिखर छूने वाला मनुष्य कभी हार नहीं मानता। अहंकारियों की विवशता यह है कि अकेला हो जाना उसकी नियति है। कबीर की चदरिया..ज्यों की त्यों धर दीनी..वाली पँक्ति को अपनाना उनको नहीं आता । यह सृष्टि के नियमों में समाहित अटल सत्य है कि अगर आपने पर्वत की चढ़ाई की है तो आपको उतरना भी होगा..अगर आपके जीवन में सफलता है तो असफलता भी होगी । ईश्वर की प्रार्थना किसी के जीवन से कष्ट हटाती भले न हो मगर वह उस व्यक्ति को इतना सक्षम बना तो देती ही है कि वह उन परिस्थितियों का सामना डटकर कर सके और चुनौतियों से जूझ सके। ईश्वर जब परीक्षण करते हैं तो रक्षण भी वही करते हैं । आपमें इतना सामर्थ्य होना चाहिए कि शिखर को छूते हुए ही आप शांति से शिखर को विदा कर सकें और अपने लिए एक ऐसे जीवन का चयन करें जिनमें आप हों…आपकी वह सभी दमित इच्छाएं हों जो सफलता के पीछे – पीछे भागते आप भूल चुके हैं । जीवन की दूसरी पारी भी होनी चाहिए…जहां आप एक साधारण जीवन जी सकें…स्व विकास कर सकें। स्व विकास का अर्थ हमेशा यह नहीं होता कि आपको हर एक दौड़ में प्रथम ही आना है । इतनी सारी बातें मैंने राजनीति और मनोरंजन की मायावी दुनिया के सन्दर्भ में कही तो हैं पर लागू वह हम  सबके जीवन पर होती हैं । हर एक पेशे में सेवानिवृत्ति है…मगर राजनीति में नहीं क्यों?

जबकि आप अगर परम्पराओं की बात करें तो इसी भारतीय सनातन समाज में एक आश्रम वानप्रस्थ का भी है  मगर यहाँ इसे आधुनिक सन्दर्भ में जोड़कर देखने की जरूरत है । इस देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे कलाम ने अपनी लोकप्रियता के बावजूद दोबारा चुनाव नहीं लड़ने का निर्णय लिया और वापस अपनी शिक्षण की पुरानी दुनिया में लौटे । अगर आप इस देश के विकास की बात कर रहे हैं तो मैं यह मानती हूँ कि सेवानिवृत्ति का अर्थ निष्क्रिय हो जाना नहीं होता अपितु आप अपने अनुभवों को नयी पीढ़ी को तैयार करने में लगा सकते हैं मतलब सेवानिवृत्ति आपके जीवन का एक और अध्याय है…जहाँ विश्राम है और मन की शांति भी…जहां आप अपने लिए जी सकते हैं। अब यह कर पाना किसी के वश की बात नहीं होती क्योंकि हर कोई आचार्य विष्णुकांत शास्त्री नहीं हो सकता । इसके लिए जल में कमलवत रहकर निष्काम कर्म करना जरूरी है और वह भी बगैर किसी अपेक्षा के मगर हम जिस युग में और जिस संसार में जी रहे हैं, वहाँ आरम्भ और अंत का प्रतिफलन और मूल्यांकन का आधार ही परिणाम है और वह भी विशेषकर पेशेवर कॉरपोरेट संसार में, चुनावी राजनीति में, खेल के मैदान में..परिवार में जहाँ अपने शब्द का अर्थ सिमटकर अपना कुनबा रह गया है। बच्चे माता – पिता को सर्वस्व मानते हैं मगर उसके आगे एक और दुनिया है..सम्बन्ध है, वह नहीं समझना चाहते..उनके लिए सिर्फ वही सम्बन्ध अच्छा है जो उनके माता – पिता के लिए अच्छा हो, फिर भले ही उनके माता –पिता कितने ही गलत क्यों न हों…। क्या आपको लगता है कि जो परिवार में ही निष्पक्षता का अर्थ नहीं समझ पा रहा, वह समाज में क्या निष्पक्ष होना सीखेगा और अगर नहीं सीखेगा तो वह देश को सही नेतृत्व कैसे देगा । विश्वास होना और विश्वास करना अच्छी बात है मगर यह मान लेना कि हम जिस पर विश्वास कर रहे हैं, वह गलत हो ही नहीं सकता..यह खुद को धोखा देने वाली बात है।

अब इस बात को अलग – अलग सन्दर्भ में समझा जाए…हमारा धर्म अच्छा है..यह अच्छी बात है मगर जब आप यह कहते हैं कि हमारा ही धर्म अच्छा है तो समस्या होती है । ठाकुर रामकृष्ण परमहंस ने कहा है कि जतो मत, ततो पथ…अगर इस मध्यमार्गी विचारधारा को हम साथ लेकर चलें तो जीवन की आधी से अधिक समस्याएं ही सुलझ जाएंगी । जब आप किसी पर हंसते हैं या किसी का मजाक बनाते हैं तो यकीन रखिए कहीं न कहीं, खुद को बहला रहे होते हैं, अपनी असुरक्षा को छिपा रहे होते हैं क्योंकि आप सत्य को स्वीकार करना ही नहीं चाहते…। जब आप सत्य को स्वीकार नहीं करते तो खुद से भागते हैं और हर उस मुद्दे को खारिज करते हैं जो हैं मगर वह आपके विरोध में हैं । अब इसे देश की राजनीति के सन्दर्भ में समझा जाए…यह राजनीति सिर्फ अस्वीकृति और एक दूसरे को खारिज करने पर तुली है जबकि सत्य यह है कि हर एक व्यक्ति में अच्छाई भी है, बुराई भी है, खूबियां भी हैं और खामियां भी हैं ।

यहां देश के हित में राजनीतिक स्तर पर वैचारिक संतुलन जरूरी है मगर सारे के सारे नेता एक दूसरे के दल को तोड़ने और नीचा दिखाने में व्यस्त हैं..फिर वह इस देश के माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हों या विपक्ष के नेता राहुल गाँधी हों । सोनिया गांधी हों या बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी हों..इनमें से कोई समझ नहीं पा रहा है कि आपके आचार – व्यवहार – आचरण पर इस देश की 140 करोड़ से अधिक जनता की ही नहीं बल्कि पूरे विश्व की नजर है । आपका आचरण इस देश की छवि और इतिहास, दोनों गढ़ रहा है। पक्ष – विपक्ष, दोनों ने ही संविधान और धर्म…दोनों को तमाशा बनाकर रख दिया है और यह भूल गये कि जो ऊपर बैठा है, वह रिश्वत नहीं लेता। आप उसकी पूजा करें या न करें….वह देगा वही….आप जिसके लायक होंगे । इस देश की जनता को धर्म चाहिए मगर रोटी भी चाहिए और सिर पर छत भी चाहिए । ऐसी स्थिति में आप राम, शिव और शक्ति की आड़ में जरूरी मुद्दों को खारिज नहीं कर सकते। विकास के नाम पर विकल्प दिए बगैर किसी से सिर की छत नहीं छीन सकते । इस देश में न्यायालय हैं मगर आप न्यायाधीश नहीं हैं…आप अपराधी को दंडित कीजिए..अवश्य कीजिए मगर उसके अपराध का दंड आप समूचे परिवार को नहीं दे सकते क्योंकि जब बुलडोजर चलता है तो निर्दोषों के घर भी गिरते हैं…वह जिनका उस अपराध में दूर – दूर तक कोई भी हाथ नहीं था । अगर किसी प्रदेश में या देश में आपको शासन करना है तो सबसे पहले आपको वहां संगठन अपने दम पर मजबूत करना होगा। उधार के हथियारों से युद्ध नहीं जीते जाते मगर एनडीए लगातार यही कर रही है जबकि उसकी सीटें लगातार घट रही हैं। अब जब अयोध्या के बाद बद्रीनाथ भी भाजपा गंवा चुकी है तो उसे मान लेना चाहिए जनता तिलिस्म से उभर रही है। तिलिस्म किसी दल का हो या नेता का…वह कुछ वर्ष ही रहता है…हमेशा नहीं…हर बाद नरेंद्र मोदी आपको जीत नहीं दिला सकते । यह भाजपा का मंत्र है कि 75 पार के नेता मार्गदर्शक मंडल में आते हैं, फिर दो साल बाद मोदी भी 75 के हो जाएंगे। ईमानदारी का तकाजा तो यही है कि मोदी अब अपने लिए उत्तराधिकारी के चयन की प्रक्रिया आरम्भ कर दें वरना आडवाणी, जोशी और वाजपेयी ने जिस तरह नेपथ्य में रहना चुना, वह एक स्वस्थ लोकतांत्रिक परम्परा की जरूरत है । भाजपा को अब एक युवा नेतृत्व की जरूरत है जो डंडे के जोर पर ननहीं बल्कि जनता को साथ लेकर काम करना चाहे । यह वही देश है जहां भरत ने अपने उत्तराधिकारी के रूप में अपने एक भी पुत्र को नहीं चुना और आज हजारों वर्ष बाद यह वही देश है जहां परिवार और संतान से आगे इस देश की राजनीति को कुछ दिखता ही नहीं । परिवारवाद हर जगह है, भाजपा से लेकर कांग्रेस तक, बसपा से लेकर तृणमूल तक…सब के सब परिवार प्राइवेट लिमिटेड में परिणत हो चुके हैं। निश्चित रूप से यह उन तमाम सर्मथकों और कार्यकर्ताओं के साथ इस देश की जनता का अपमान है जिनमें मेधा की कोई कमी नहीं । नेपोटिज्म हर जगह है, सिर्फ बॉलीवुड को दोष देना समस्या का समाधान नहीं है। यह बात बंगाल के नतीजों से भी स्पष्ट हो चुकी है मगर जो गलती एनडीए कर रही है, वही गलती ममता बनर्जी और राहुल भी कर रहे हैं।  जब आप हिंसा को हिन्दुओं से जोड़ते हैं तो चोट लगती है। जब आपके प्रदेशों में तुष्टीकरण के लिए अपराधियों को बढ़ावा दिया जा रहा हो और अपना पक्ष चुनने वालों को पीटकर मार दिया जाता हो, तो आप बम्पर जीत हासिल करके भी कुछ नहीं पाते । जिस प्रकार देश को संविधान हत्या दिवस की कोई जरूरत नहीं, उसी प्रकार देश को संविधान के नाम पर किसी तमाशे की जरूरत नहीं थी । जब आप सेना से आतंकी कार्रवाई को लेकर सबूत मांगते हैं तो वह पूरे देश का अपमान होता है । संसद आंखमिचौली और गलबहियां करने की जगह नहीं है। वह ऐसी जगह नहीं है कि आप हिन्दुत्व का मुद्दा जबरन उठाएं। आपको कोई अधिकार नहीं कि किसी के धर्मग्रंथ या किसी की संस्कृति की आड़ में परिहास करें जबकि संस्कृति और धर्म भारतीयता की आत्मा है । मीडिया पर हमला बोलने से आपकी अपनी गलतियां नहीं छुप सकतीं । आप स्वीकार कीजिए या नहीं कीजिए …मगर आपको स्वीकार करना होगा कि आप जिससे घृणा करते हैं, वह एक संवैधानिक पद पर आसीन है और उस पद का सम्मान करना आपका संवैधानिक दायित्व है मगर बंगाल में दीदी और राज्यपाल के बीच जिस प्रकार की खींचतान चल रही है, वह बेहद विकृत रूप ले चुकी है। राज्यपाल का चरित्र हनन करना किसी संवैधानिक पद पर बैठी नेत्री को शोभा नहीं देता और न ही अपराधियों को प्रश्रय देना ही सही है।

अम्बानी के बेटे की शादी में व्यस्त मीडिया बहुत जरूरी मसलों को भूलती जा रही है। विज्ञापन किसी भी संस्थान की आवश्यकता होता है मगर आपकी प्राथमिकता आपकी जनता ही होनी चाहिए । खबरों के नाम पर किसी के व्यक्तिगत जीवन की धज्जियां उड़ा देना पत्रकारिता नहीं है । किसी का जबरदस्त महिमा मंडन और किसी निर्दोष को खलनायक बना देना पत्रकारिता नहीं हो सकता । किसी की पीड़ा आपके लिए तमाशा नहीं होनी चाहिए । यह एक मिथक है कि जनता जो चाहती है, वही हम छापते हैं । वस्तुतः जनता की रुचि को सात्विक बनाना आपके काम का हिस्सा है । हालांकि इस काम के खतरे बहुत हैं मगर एक बात तय है कि लोग अन्त में उसे ही चुनेंगे जो उनके हित की बात करेगा और उसे लागू करेगा ।

अगर आप मुफ्तखोर हैं और मुफ्त का राशन पाने के लिए वोट दे रहे हैं तो भूल जाइए कि आपको कोई अच्छी सरकार मिलेगी। अगर जाति और धर्म के नाम पर आप किसी अपराधी को मजबूत कर रहे हैं तो आप नागरिक नहीं बल्कि अपराधी हैं । अगर आप चुनाव को छुट्टी का दिन मानते हैं तो आप व्यवस्था पर उंगली उठाने का अधिकार खो चुके होते हैं इसलिए जब आपका मन मीडिया को, नेताओं को, व्यवस्था को गरियाने का करे तो एक बार आइने के सामने जरूर खड़ा हो जाइए और अपने गिरेबान में झांकने की कोशिश कीजिए क्योंकि व्यवस्था आम आदमी के विचारों का प्रतिबिम्ब है, और कुछ नहीं ।

लोकतंत्र में चयन और परिवर्तन का आधार सृजनात्मकता हो, प्रगतिशील सोच हो

बाधाएं हमारे जीवन का हिस्सा हैं..मुश्किलें आती हैं और चली भी जाती हैं मगर हर बार कुछ न कुछ सिखाती भी हैं। सही मायनों में देखा जाए तो कठिन परिस्थितियाँ हमारे जीवन को समृद्ध करने के लिए आती हैं। हम उनसे जूझते हैं, सीखते हैं और अपने एक बेहतर संस्करण के साथ सामने आते हैं । राजनीति या धर्म से परहेज है मगर इन दोनों के नाम पर जिस प्रकार का वितण्डावाद चलाया जाता है वह किसी भी समाज के लिए अच्छा नहीं है क्योंकि वह सृजनात्मकता की कसौटी पर खरा नहीं उतरता। हम इन क्षेत्रों में शोधपरक सामग्री आपके समक्ष रखना चाहते हैं अथवा किसी आवश्यक मुद्दे पर सोचने के लिए विवश करने वाले विषय शुभजिता लाना पसन्द करती है…किसी भी दल के पक्ष – विपक्ष से परे..।  प्रयास है कि अतीत के गलियारों में झाँककर देखा जाए जब नयी – नयी आजादी मिलने के बाद भारत का लोकतंत्र अपने पैरों पर खड़ा होने का प्रयास कर रहा था। तब से लेकर आज तक राजनीति, राजनीतिक परिस्थितियाँ और राजनेता बहुत बदल चुके हैं और इसके साथ ही पत्रकारिता भी बदल चुकी है। जीवन में परिवर्तन काम्य है मगर शर्त यही है कि देश हो या समाज.. लोकतंत्र में चयन और परिवर्तन का आधार सृजनात्मकता हो, प्रगतिशील सोच हो। देश और समाज को आगे ले जाने की भावना इसमें निहित हो…पर्यावरण के प्रति मैत्री और साहचर्य का भाव हो…। सम्भवतः यही कारण था कि नवजागरण काल आज भी हर क्षेत्र में उतना ही प्रासंगिक है, जितना अपने समय में था। मतदाता और एक नागरिक के रूप में हम सभी अपने दायित्व का निर्वहन कर सकें..अपनी भूमिका निभा सकें।

बिहार के हाजीपुर के जूते पहनकर जंग लड़ रहे रूसी सैनिक

पटना । जब भी बिहार की बात करते हैं तो लोग उसे काफी पिछड़ा हुआ जगह मानते हैं. लेकिन बिहार अब अपनी तस्वीर बदल रहा है। बिहार का शहर हाजीपुर अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी जगह बना रहा है । हाजीपुर मुख्य रूप से वर्षों से अपने केले के लिए मशहूर है, लेकिन अब यहां रूसी सैनिक के लिए निर्माण किए हुए जूते के लिए चर्चा में है।  यूक्रेन और रूस का युद्ध वर्ष 2022 से चल रहा है।  यह युद्ध एक बार फिर से चर्चा में है क्योंकि बिहार से बनकर जाने वाली जूते पहनकर ही रूसी सैनिक यूक्रेन के खिलाफ मैदान में लड़ते हैं। हाजीपुर की एक प्राइवेट लिमिटेड कंपनी कंबटेंस एक्सपोर्ट प्राइवेट लिमिटेड रूसी सैनिक के लिए जूते बना रही है। यह कंपनी चर्चा में इसलिए भी बनी हुई है क्योंकि इस कंपनी में काम कर रहे कर्मचारियों में से 70  प्रतिशत महिलाएं हैं। लोक जनशक्ति पार्टी रामविलास के युवा राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉक्टर विभय कुमार झा ने बताया कि हाजीपुर में बनने वाली जूते का उपयोग अब रूस की सेना करेगी। डॉ विवेक ने कहा बिहार तेजी से तरक्की की ओर बढ़ रहा है जिसमें पटना के बाद हाजीपुर बिहार का दूसरा सबसे तेजी से विकसित होने वाला शहर है।  इसकी सराहना केंद्र मंत्री चिराग पासवान से लेकर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक ने किया है. यह भारत के उद्योग के विकास में बड़ा कदम हो सकता है.

यह जूते सुरक्षा के लिए बनाए जाते हैं। यह जूते खासतौर से रूसी सैनिक के जरूरत के अनुसार बनाए जाते हैं।  रूसी सैनिक चाहते हैं कि जूता हल्का हो और आसानी से फिसलने वाला ना हो। साथ ही यह जूते बेहद कम तापमान जैसे -40 डिग्री सेल्सियस जैसे ठंडे मौसम की स्थिति का सामना आसानी से कर सके। यह जूते रूसी सैनिक के हर जरूरत पर खरे उतर रहे हैं। यह कंपनी 2018 में बिहार के हाजीपुर में शुरू की गई थी। इस कंपनी का मुख्य उद्देश्य बिहार में नए रोजगार पैदा करना है. यह कंपनी रूस के सबसे बड़े निर्यातकों में से एक है। कंपनी दिन प्रतिदिन नई ऊंचाइयों को हासिल कर रही है। बिहार की यह कंपनी कुल 300 कर्मचारियों पर चलती है. जिसमें से 70 प्रतिशत कर्मचारी महिलाएं हैं। पिछले वर्ष इस कंपनी ने करीब 100 करोड़ रुपए का रेवेन्यू जनरेट किया था. जिसमें से 1.5 मिलियन जोड़ी जूते का निर्माण किया गया था। हाजीपुर की यह कंपनी कई यूरोपीय बाजार के लिए डिजाइनर जूते का भी निर्माण करती है।

मानवी मधु कश्यप बनीं देश की पहली ट्रांसजेंडर दरोगा

पटना । बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग ने दरोगा के 1275 पदों पर वैकेंसी का रिजल्ट जारी कर दिया है। इस परीक्षा में 822 पुरुष और 450 महिला समेत 3 ट्रांसजेंडर अभ्यर्थी भी चयनित हुए हैं। यह पहला मौका है, जब दारोगा भर्ती में ट्रांसजेंडर का चयन हुआ है, इनमें से दो ट्रांसमैन और एक ट्रांसवुमन है। बांका जिले की मानवी मधु कश्यप देश की पहली ट्रांसवुमन दरोगा बन गई हैं। अपनी इस उपलब्धि से उन्होंने अपने पंजवारा गांव समेत पूरे देश को गौरवान्वित किया है। इस कामयाबी के खास अवसर पर उन्हें रिश्तेदार, दोस्त, पड़ोसी सभी शुभकामनाएं दे रहे हैं।

उन्होंने बताया कि, समाज ने कभी ट्रांसजेंडरों को प्राथमिकता नहीं दी। हर जगह सिर्फ स्त्री और पुरुष नजर आते हैं। आपको किसी भी क्षेत्र में ट्रांसजेंडर नहीं दिखाई पड़ेंगे, इसलिए यहां तक का मेरा सफर बहुत चुनौतीपूर्ण रहा। मधु ने अच्छे अंक से इंटरमीडिएट की परीक्षा पास की। इसके बाद उन्होंने साल 2022 में भागलपुर तिलकामांझी यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया। फिर पुलिस विभाग की तैयारी करने के लिए वो पटना पहुंचीं और शिक्षक गुरु रहमान के मार्गदर्शन में तैयारी शुरू की।

मधु ने बताया कि, यह सफलता हासिल करने के लिए मुझे बहुत संघर्ष करना पड़ा। हमारी तरह और लोग भी हर काम के लिए सक्षम होते हैं, बस जरूरत है तो अवसर और सपोर्ट की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट, बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और अपने शिक्षकों को धन्यवाद दिया। उन्होंने कहा कि, इन सबके योगदान की वजह से मैं यहां तक पहुंच सकी हूं। मेरा लक्ष्य बीपीएससी और यूपीएससी कंप्लीट करना है।

मधु ने अपने जैसे और भी ट्रांसजेंडरों को सफलता का मंत्र दिया। उन्होंने कहा कि, आप अपने लक्ष्य को पाने के लिए पूरे शिद्दत से मेहनत कीजिए। सफलता का कोई भी शॉर्टकट नहीं होता है। मधु ने ट्रांसजेंडरों के माता-पिता से उन्हें सपोर्ट करने की भी अपील की। उन्होंने कहा कि आप अपने बच्चों को घरों से बाहर मत निकालिए, उन्हें पढ़ाइए-लिखाइए। ताकि वो एक दिन पुलिस विभाग और अन्य क्षेत्रों में चयनित होकर देश की सेवा कर सकें। बता दें, बिहार पुलिस अवर सेवा आयोग भर्ती में ट्रांसजेंडर के लिए पांच पद आरक्षित थे, लेकिन तीन ही योग्य उम्मीदवार मिल पाए। इससे इनकी बची हुई दो सीटों को सामान्य श्रेणी में शामिल कर दिया गया।

सूखी खांसी से राहत दिलाएंगे ये घरेलू उपाय

बदलते मौसम में आपके शरीर पर कई तरह के संक्रमण होने लगते है, जिसके बाद सूखी खांसी की परेशानी पेश आ सकती है। एक बार किसी को ये बीमारी हो जाए तो आसानी से पीछा नहीं छोड़ती, फिर आपको रातें खांस-खांसकर गुजारनी पड़ी है, जिसके कारण आप सुकून की नींद नहीं ले पाते और फिर अगले दिन थकान, सुस्ती और चिड़चिड़ापन होने लगता है। कई बार दवा और कफ सिरप भी तुरंत असर नहीं कर पाता है, ऐसे में आप कुछ खास घरेलू उपायों का सहारा ले सकते हैं. ये ऐसे नुस्खे हैं जो दादी-नानी के जमाने से चले आ रहे हैं.

सूखी खांसी से निजात पाने के लिए करें ये घरेलू उपाय

 गर्म पानी और शहद – बदलते मौसम में ठंडा पानी पीने से बचना चाहिए और गर्म पानी का सेवन बढ़ा देना चाहिए। अगर आप एक ग्लास गुनगुने पानी में 4 चम्मच शहद मिलाकर पी जाएंगे तो सूखी खांसी से पूरी तरह निजात मिल जाएगी। आप इसे नियमित भी पी सकते हैं, जिससे कई बीमारियों से बचाव हो जाता है।

अदरक और नमक – अदरक एक ऐसा मसाला है जिसका इस्तेमाल हमारे घरों में काफी ज्यादा होता है, ये सर्दी के खिलाफ किसी रामबाण से कम नहीं है। आप चाहें तो इसे कच्चा चबा सकते हैं या इसका रस भी पी सकते हैं, लेकिन चूंकि अदरक कड़वा होता है इसलिए इसकी कड़वाहट को कम करने के लिए अदरक और नमक को मिक्स करके खा जाएं। इससे सूखी खांसी छूमंतर हो जाएगी।

काली मिर्च और शहद – काली मिर्च और शहद का कॉम्बिनेशन सर्दी-खांसी का दुश्मन माना जाता है, इसके लिए आप 4-5 काली मिर्च के दाने ले लें और उसे पीसकर पाउडर की शक्ल दे दें । अब शहद के साथ मिलाकर इसको खा जाएं. अगर इसका दिन में 2 से 3 बार सेवन करेंगे तो ड्राई कफ से छुटकारा मिल जाएगा।

रथयात्रा विशेष : वह मुस्लिम भक्त, जिसकी मजार पर आज भी रुकता है भगवान जगन्नाथ का रथ

इस बार उड़ीसा के पुरी में भगवान जगन्नाथ की प्रसिद्ध रथयात्रा 7 जुलाई, रविवार से निकाली गयी । भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर अपने मुस्लिम भक्त सालबेग को दर्शन देने जाते हैं। हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है। ऐसी परम्परा तब शुरू हुई जब सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला।

ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है। सलाबेग मुस्लिम था लेकिन वह भगवान जगन्नाथ का बड़े भक्त था। मुख्य तीर्थ से गुंडिचा मंदिर तक की तीन किलोमीटर की यात्रा के दौरान सम्मान के रूप में ग्रैंड रोड पर स्थित सलाबेग की कब्र के पास स्वामी का रथ कुछ देर के लिए रुकता है। मुगल सूबेदार के पुत्र सलाबेग ओडिशा के भक्ति कवियों के बीच विशेष स्थान रखते हैं क्योंकि उन्होंने अपना जीवन भगवान जगन्नाथ को समर्पित कर दिया था। वह 17वीं शताब्दी के पूर्वार्ध में हुए थे। कहते हैं एक बार सालबेग मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव ठीक नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव ठीक हो चुके थे। भगवान के चमत्कास से जब सालबेग ठीक हो गए तो वो जगन्नाथ जी के दर्शन के लिए मंदिर गए लेकिन उन्हें किसी ने मंदिर में दाखिल नहीं होने दिया। सालबेग निराश नहीं हुए और मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, इस सबके बावजूद भी उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी मजार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

सालबेग की मौत के बाद जब पहली बार रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी मशक्कत की लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब रथ यात्रा में शामिल एक शख्स ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाया जाए। उस व्यक्ति की सलाह मानकर राजा ने जैसे ही सालबेग का जयघोष करवाया रथ अपने आप चल पड़ा। दरअसल सालबेग की इच्छा के मुताबिक भगवान जगन्नाथ की जब रथ यात्रा निकलती है तब मजार पर उसे दर्शन देने जाते हैं। तभी से हर साल सालबेग की मजार पर कुछ समय के लिए रथ को रोका जाता है।

ओडिशा के पुरी में भगवान जगन्नाथ रथ यात्रा 23 जून 2020 को आयोजित होनी थी। प्रत्येक वर्ष इस रथ यात्रा में देश-विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भगवान का रथ खींचने के लिए आते हैं। भक्तों की इसी भीड़ को कोरोना संक्रमण के लिए बड़ा खतरा मानते हुए सुप्रीम कोर्ट ने इस वर्ष रथ यात्रा पर रोक लगा दी है। सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश पर 21 लोगों ने पुनर्विचार याचिका दायर की है। याचिकाकर्ताओ में ओडिशा के न्यागढ़ जिले का रहने वाला 19 वर्षीय बीए (अर्थशास्त्र) अंतिम वर्ष का छात्र आफताब हुसैन भी शामिल है। सोशल मीडिया पर उसकी तुलना भगवान जगन्नाथ के सबसे बड़े भक्त सालबेग से हो रही है। लोग उसे दूसरा सालबेग बता रहे हैं।

आफताब हुसैन के मुताबिक बचपन से ही वह भगवान जगन्नाथ के भक्त थे। उनके दादा मुल्ताब खान भी भगवान जगन्नाथ के बड़े भक्त थे। उसके दादा ने वर्ष 1960 में इटामाटी (Itamati) में भगवान ब्रह्मा, विष्णु व महेश के एक मंदिर का निर्माण कराया था, जिसे त्रिनाथ मंदिर के नाम से जाना जाता है। आफताब के अनुसार उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई किताबें पढ़ीं हैं। इसससे भगवान जगन्नाथ के प्रति उनकी आस्था और गहरी हो गई। आफताब बताते हैं कि उनके पिता इमदाद हुसैन, मां राशिदा बेगम और छोटे भाई अनमोल ने कभी उन्हें भगवान जगन्नाथ की अराधना करने से नहीं रोका। मीडिया से बातचीत में आफताब ने बताया कि उन्हें मंदिर में प्रवेश की अनुमति नहीं है, इसलिए वह कभी मंदिर के अंदर नहीं गए हैं। आफताब मानते हैं कि ब्रह्माण को बनाने वाले केवल एक हैं भगवान जगन्नाथ, जिसने सबको बनाया है।

सालबेग, 17वीं शताब्दी की शुरूआत में मुगलिया शासन के एक सैनिक थे, जिन्हें भगवान जगन्नाथ का सबसे बड़ा भक्त माना जाता है। सालबेग की माता ब्राह्मण थीं, जबकि पिता मुस्लिम थे। उनके पिता मुगल सेना में सूबेदार थे। इसलिए सालबेग भी मुगल सेना में भर्ती हो गए थे। एक बार मुगल सेना की तरफ से लड़ते हुए सालबेग बुरी तरह से घायल हो गए थे। तमाम इलाज के बावजूद उनका घाव सही नहीं हो रहा था। इस पर उनकी मां ने भगवान जगन्नाथ की पूजा की और उनसे भी प्रभु की शरण में जाने को कहा। मां की बात मानकर सालबेग ने भगवान जगन्नाथ की प्रार्थना शुरू कर दी। उनकी पूजा से खुश होकर जल्द ही भगवान जगन्नाथ ने सालबेग को सपने में दर्शन दिया। अगले दिन जब उनकी आंख खुली तो शरीर के सारे घाव सही हो चुके थे।

इसके बाद सालबेग ने मंदिर में जागर भगवान जगन्नाथ के दर्शन करने का प्रयास किया, लेकिन उन्हें प्रवेश नहीं दिया गया। इसके बाद सालबेग मंदिर के बाहर ही बैठकर भगवान की अराधना में लीन हो गए। इस दौरान उन्होंने भगवान जगन्नाथ पर कई भक्ति गीत व कविताएं लिखीं। उड़ीया भाषा में लिखे उनके गीत काफी प्रसिद्ध हुए, बावजूद उन्हें मंदिर में प्रवेश नहीं मिला। इस पर सालबेग ने एक बार कहा था कि अगर उनकी भक्ति सच्ची है तो उनके मरने के बाद भगवान जगन्नाथ खुद उनकी जमार पर दर्शन देने के लिए आएंगे। सालबेग की मौत के बाद उन्हें जगन्नाथ मंदिर और गुंडिचा मंदिर के बीच ग्रांड रोड के करीब दफना दिया गया।

ऐसी मान्यता है कि सालबेग की मृत्यु के बाद जब रथ यात्रा निकली तो रथ के पहिये मजार के पास जाकर थम गए। लोगों ने काफी कोशिश की, लेकिन रथ मजार के सामने से नहीं हिला। तब एक व्यक्ति ने तत्कालीन ओडिशा के राजा से कहा कि वह भगवान के भक्त सालबेग का जयकारा लगवाएं। उस व्यक्ति की सलाह मानकर जैसे ही सालबेग का जयघोष हुआ, रथ अपने आप चल पड़ा। ऐसी मान्यता है कि तभी से भगवान जगन्नाथ की इच्छा अनुरूप उनकी सालाना आयोजित होने वाली तीन किलोमीटर लंबी नगर रथ यात्रा को कुछ देर के लिए उनके भक्त सालबेग की मजार पर रोका जाता है।

मंदिर के पुजारी और शहरवासी बताते हैं कि सालबेग यहीं का रहने वाला था। उसकी मां हिंदू थी और पिता मुस्लिम थे। भक्त सालबेग सारा जीवन मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान जगन्नाथ जी के दर्शन की आस लगाए रहता था। वह रोज भगवान की जय-जयकार करता हुआ और भावों से भरा हुआ तुरंत जगन्नाथजी के मंदिर की तरफ उनके दर्शनों के लिए दौड़ पड़ता। मगर मुस्लिम होने के कारण उसे मंदिर में प्रवेश नहीं मिलता। ऐसे में वह मंदिर के बाहर बैठकर ही भगवान की भक्ति करने लगता है। प्रभु का नाम जपता है और उनके भजन लिखता है। धीरे-धीरे उसके भजन अन्य भक्तों की जुबान पर भी चढ़ने लगते। लोग बताते हैं कि सालबेग के बनाए भगवान के भजन लोगों को आज भी याद हैं।

(साभार – हिमालय गौरव उत्तराखण्ड)