Friday, March 14, 2025
खबर एवं विज्ञापन हेतु सम्पर्क करें - [email protected]
Home Blog Page 3

कम हुआ निजी कम्पनियों पर कर्ज का बोझ और बढ़ा मुनाफा

आरबीआई ने निजी क्षेत्र की कंपनियों का जारी किया आंकड़ा

नयी दिल्ली । आरबीआई द्वारा जारी आंकड़ों के अनुसार, भारत में निजी क्षेत्र की कंपनियों के परिचालन लाभ मार्जिन के साथ-साथ शुद्ध लाभ मार्जिन में 2023-24 के दौरान प्रमुख क्षेत्रों में सुधार हुआ। जबकि इस वर्ष निजी क्षेत्र की कंपनियों के कर्ज का बोझ भी कम हुआ, जो मजबूत वित्तीय स्थिति को दर्शाता है।

आरबीआई की लेटेस्ट रिपोर्ट के अनुसार, “2023-24 के दौरान परिचालन लाभ में पिछले वर्ष की 4.2 प्रतिशत की वृद्धि की तुलना में 2023-24 में 15.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर के परिचालन लाभ में 2023-24 के दौरान क्रमशः 13.2 प्रतिशत और 15.5 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि 2022-23 में यह दोनों क्षेत्रों के लिए क्रमश: 3.9 प्रतिशत की गिरावट और 16.8 प्रतिशत की वृद्धि थी।”

कर के बाद लाभ में 2023-24 के दौरान 16.3 प्रतिशत की वृद्धि हुई; सर्विस सेक्टर की कंपनियों ने मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर के 7.6 प्रतिशत की तुलना में कर-पश्चात लाभ वृद्धि 38.1 प्रतिशत दर्ज की। रिजर्व बैंक ने 6,955 कंपनियों के ऑडिटेड वार्षिक खातों के आधार पर 2023-24 के दौरान गैर-सरकारी गैर-वित्तीय (एनजीएनएफ) सार्वजनिक लिमिटेड कंपनियों के वित्तीय प्रदर्शन से संबंधित डेटा जारी किया।रिपोर्ट के अनुसार, डेट-टू-इक्विटी रेशो द्वारा मापी गई इन कंपनियों का लीवरेज 2023-24 के दौरान मध्यम बना रहा। आरबीआई ने कहा कि सकल लाभ में वृद्धि ब्याज व्यय में वृद्धि से आगे निकल जाने के कारण ब्याज कवरेज अनुपात (आईसीआर) 2023-24 के दौरान 4.1 तक सुधर गया; मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों का आईसीआर 6.3 पर स्थिर रहा, जबकि सर्विस कंपनियों के लिए यह मामूली रूप से सुधरकर 3.2 हो गया। रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 2023-24 के दौरान सार्वजनिक सीमित कंपनियों के सैंपल सेट के कुल फंड में इंटरनल सोर्स का हिस्सा दो-तिहाई से अधिक था, जिसका मुख्य कारण रिजर्व और अधिशेष में वृद्धि थी। आरबीआई के अनुसार, इन सार्वजनिक सीमित कंपनियों की सकल अचल संपत्ति 2023-24 के दौरान 10 प्रतिशत बढ़ी; मैन्युफैक्चरिंग कंपनियों, रसायन, फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रिकल उपकरण, मोटर वाहन और अन्य परिवहन वाहन क्षेत्रों ने अचल संपत्तियों में उच्च वृद्धि दर्ज की।रिपोर्ट में आगे बताया गया है कि निजी सीमित कंपनियों, जो स्टॉक एक्सचेंजों में लिस्ट नहीं हैं, के परिचालन लाभ में भी 2023-24 के दौरान समग्र स्तर पर और साथ ही मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर में तेजी आई। नतीजतन, परिचालन लाभ और बिक्री के बाद कर के अनुपात से मापा गया लाभ मार्जिन 2023-24 के दौरान बेहतर हुआ।समग्र स्तर पर, इन कंपनियों के सैंपल का लीवरेज डेट-टू-इक्विटी रेशो के संदर्भ में मार्च 2024 में एक साल पहले के स्तर 45.2 प्रतिशत के करीब रहा। रिपोर्ट के अनुसार, समग्र स्तर पर, आईसीआर 2023-24 के दौरान पिछले वर्ष के 2.7 से सुधरकर 3.1 हो गया; मैन्युफैक्चरिंग और सर्विस सेक्टर का आईसीआर भी सुधरकर क्रमशः 8.3 और 2.7 पर आ गया।

महाशिवरात्रि पर विशेष : क्या हैं मां काली के चरणों के नीचे मुस्कराते भगवान शंकर का रहस्य ?

भगवती की दस महाविद्याओं में से एक हैं महाकाली जिनके काले और डरावने रूप की उत्पत्ति राक्षसों का नाश करने के लिए हुई थी। यह एकमात्र ऐसी शक्ति है जिनसे स्वयं काल भी भय खाता है। उनका क्रोध इतना विकराल रूप ले लेता है कि संपूर्ण संसार की शक्तियां मिलकर भी उनके गुस्से पर काबू नहीं पा सकती। उनके इस क्रोध को रोकने के लिए स्वयं उनके पति भगवान शंकर उनके चरणों में आकर लेट गए थे।
प्रकृति त्रिगुणमयी हैं। हमारे त्रिदेव ब्रह्मा, विष्णु, महेश … तीनो प्रकृति के तीन गुणों (अग्नि, जल, आकाश) का प्रतिनिधित्व करते हैं।वे सी क्यूब हैं ;अथार्त रचयिता, पालनकर्ता और विनाशकर्ता…। त्रिगुण ..जो वर्तमान में हैं, वही भविष्य में है,जो भविष्य में है, वही भूत में भी हैं।ये तीनों ही काल एक दूसरे के विरोधी हैं ,परन्तु आत्मतत्व स्वरुप से एक ही हैं।
मन के तीन अंग हैं- ज्ञानात्मक, भावात्मक और क्रियात्मक। इसीलिए इन तीनों अंगों के अनुरूप ज्ञानयोग, भक्तियोग, और कर्मयोग का समन्वय हुआ।जब तक तीनों तत्त्वों का समुचित योग नहीं होता तब तक साधक को सफलता नहीं मिल सकती ;अर्थात जब तक संसार में त्रिगुण के 6 प्रकार के मनुष्यो में शिव नहीं दिखता साधना(.5 ) में भी नहीं पहुंचती।वास्तव में,पहुंचना है तीनों के पार….साढ़े तीन में …3.5 में।त्रिगुण(.5 )हैं और दूसरा वह परब्रह्म (.5 ) हैं ;वह जहां कोई भी नहीं है, जहां तीनों नहीं हैं।यही हैं शक्तिसहित शिव अर्थात अद्वैत ब्रह्म। वह मूल शक्ति शिव ही हैं।
जीवन का मूल उद्देश्य है -शिवत्व की प्राप्ति।शक्ति के बिना ‘शिव’ सिर्फ शव हैं और शिव यानी कल्याण भाव के बिना शक्ति विध्वंसक।शक्ति जाग्रत करके शिव-मिलन कराना -यह क्रम समना तक चलता है।वास्तव में महाशिवरात्रि… रात्रि है,जाग्रत शक्ति को शिव भाव में मिलन कराने की। यही शिव और शक्ति साधना का रहस्य हैं।जो शक्ति जाग्रत करके शिवमिलन नहीं कराता वो रावण बनता हैं।और इस संसार में दोनों की ही आवश्यकता हैं..चाहे दिन और रात हो या श्रीराम और रावण।जीवन का मूल्य, मात्र सफलता में ही नहीं है।
सत्य के लिए हार जाना भी जीत है। क्योंकि उसके लिए हारने के साहस में ही आत्मा सबल होती है और इन शिखरों को छू पाती है, जो कि परमात्मा के प्रकाश में आलोकित हैं।सब कुछ शिव मय है। शिव से परे कुछ भी नहीं है। इसीलिए कहा गया है- ‘शिवोदाता, शिवोभोक्ता शिवं सर्वमिदं जगत्। शिव ही दाता हैं, शिव ही भोक्ता हैं। जो दिखाई पड़ रहा है यह सब शिव ही है। शिव का अर्थ है-जिसे सब चाहते हैं। सब चाहते हैं.. अखण्ड आनंद को। शिव का अर्थ है आनंद। शिव का अर्थ है-परम मंगल, परम कल्याण।
भगवान शंकर महाकाली के चरणों में आकर लेट जाते है अथार्त विध्वंसक महाऊर्जा को आधार देकर महाकल्याणकारी बना देते है।अब ये हम पर निर्भर करता है कि ‘हम क्या है’, क्या हम दक्ष है जो अपनी शक्ति का शिव से विवाह नहीं कराना चाहता या ‘हिमालयराज’?दक्ष का परिणाम भी हम सभी को मालूम है।तो महाशिवरात्रि का मूल उद्देश्य है अपनी ऊर्जा का शिव से मिलन कराने का /अपनी ऊर्जा को शिव का आधार देकर कल्याणकारी बनाने का…।

(साभार – वैदिक ऋषिकाएं फेसबुक पेज से)

महाशिवरात्रि पर विशेष : जानिए पावन पर्व महाशिवरात्रि का अर्थ एवं रहस्य

हर माह अमावस्या से पहले आने वाली रात को शिवरात्रि कहा जाता है। किंतु फाल्गुन मास की कृष्ण चतुर्दशी के दिन आने वाले शिवरात्रि को महाशिवरात्रि कहते हैं।
साल में होने वाली 12 शिवरात्रियों में से महाशिवरात्रि सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है।यह रात महीने की सबसे अँधेरी रात होती है।महाशिवरात्रि साल की सबसे अंधेरी रात है और इस रात्रि को महाशिवरात्रि कहा जाता है क्योंकि उत्तरायण या सूर्य की उत्तरी गति के पूर्वार्द्ध में आने वाली इस रात को पृथ्वी एक ख़ास स्थिति में आ जाती है, जब हमारी ऊर्जा में एक प्राकृतिक उछाल आता है।

2-शिवरात्रि बोधोत्सव है। ऐसा महोत्सव, जिसमें अपना बोध होता है कि हम भी शिव का अंश हैं, उनके संरक्षण में हैं।इस रात, ग्रह का उत्तरी गोलार्द्ध इस प्रकार अवस्थित होता है कि मनुष्य की भीतरी ऊर्जा प्राकृतिक रूप से ऊपर की ओर जाती है। यह एक ऐसा दिन है, जब प्रकृति मनुष्य को उसके आध्यात्मिक शिखर तक जाने में मदद करती है।

3-महाशिवरात्रि आध्यात्मिक पथ पर चलने वाले साधकों के लिए बहुत महत्व रखती है। यह उनके लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है जो पारिवारिक परिस्थितियों में हैं और संसार की महत्वाकांक्षाओं में मग्न हैं। पारिवारिक परिस्थितियों में मग्न लोग महाशिवरात्रि को शिव के विवाह के उत्सव की तरह मनाते हैं। सांसारिक महत्वाकांक्षाओं में मग्न लोग महाशिवरात्रि को, शिव के द्वारा अपने शत्रुओं पर विजय पाने के दिवस के रूप में मनाते हैं। परंतु, साधकों के लिए, यह वह दिन है, जिस दिन वे कैलाश पर्वत के साथ एकात्म हो गए थे।

4-इसलिए साधक महाशिवरात्रि को स्थिरता की रात्रि के रूप में मनाते हैं।

आधुनिक विज्ञान अनेक चरणों से होते हुए, आज उस बिंदु पर आ गया है, जहाँ उन्होंने आपको प्रमाण दे दिया है कि आप जिसे भी जीवन के रूप में जानते हैं, पदार्थ और अस्तित्व के रूप में जानते हैं, जिसे आप ब्रह्माण्ड और तारामंडल के रूप में जानते हैं; वह सब केवल एक ऊर्जा है, जो स्वयं को लाखों-करोड़ों रूपों में प्रकट करती है। यह वैज्ञानिक तथ्य प्रत्येक योगी के लिए एक अनुभव से उपजा सत्य है।

5-हम किसी भी देवी – देवता या महात्मा आदि के जन्मदिन को रात्रि से नहीं जोड़ते। श्रीकृष्ण जी का जन्म रात्रि 12 बजे मनाते है फिर भी जन्म रात्रि शब्द का प्रयोग नहीं करते परन्तु इस रात्रि को शिव रात्रि कहा गया है। क्या इस दिन शिव जी का जन्म होता है या अवतार लेते है या अवतरण होता है।वास्तव में रात्रि का अर्थ अज्ञानता से है।

6-अज्ञान रूपी घोर रात्रि जब धरती पर पापा चार ,अत्याचार ,दुराचार फैलता है तब भक्त आत्माये दुखी होकर परमात्मा का आवाहन करती है। तब परमपिता परमात्मा शिव का इस धरती पर अवतरण होता है।आत्मा के अंदर जो अज्ञान रूपी अन्धेरा है वह ज्ञान सूर्य प्रकट होने से दूर हो जाता है।इसलिए इसी कलियुगी तमो प्रधान रूपी रात्रि पर अर्थात कलियुग के अंत और सतयुग के आदि के समय ( संगम पर) शिव आते है।यही समय है जो आत्मा परमात्मा का सच्चा कुम्भ मेला है ।

7-माना जाता है कि सृष्टि की शुरुआत में इसी दिन आधी रात में भगवान शिव का निराकार से साकार रूप में (ब्रह्म से महेश्वर के रूप में) अवतरण हुआ था। ईशान संहिता में बताया गया है कि फाल्गुन कृष्ण चतुर्दशी की रात आदि देव भगवान श्रीशिव करोड़ों सूर्यों के समान प्रभा वाले लिंगरूप में प्रकट हुए।प्रलय की बेला में इसी दिन प्रदोष के समय भगवान शिव तांडव करते हुए ब्रह्मांड को तीसरे नेत्र की ज्वाला से भस्म कर देते हैं। इसलिए इसे महाशिवरात्रि या जलरात्रि भी कहा गया है। इस दिन भगवान शंकर की शादी भी हुई थी। इसलिए रात में शंकर की बारात निकाली जाती है।

8-समुद्र मंथन अमृत का उत्पादन करने के लिए निश्चित तिथि थी, लेकिन इसके साथ ही हलाहल नामक विष भी पैदा हुआ था। हलाहल विष में ब्रह्मांड को नष्ट करने की क्षमता थी और इसलिए केवल भगवान शिव इसे नष्ट कर सकते थे। भगवान शिव ने हलाहल नामक विष को अपने कंठ में रख लिया था। जहर इतना शक्तिशाली था कि भगवान शिव बहुत दर्द से पीड़ित थे और उनका गला बहुत नीला हो गया था। इस कारण से भगवान शिव ‘नीलकंठ’ के नाम से प्रसिद्ध हैं। उपचार के लिए,देवताओं ने उनके मस्तक पर बेल-पत्र चढ़ाए और जल अर्पित किया तथा चिकित्सकों ने देवताओं को भगवान शिव को रात भर जागते रहने की सलाह दी। इस प्रकार, भगवान भगवान शिव के चिंतन में एक सतर्कता रखी। शिव के आनंद लेने और जागने के लिए, देवता अलग-अलग नृत्य और संगीत बजाने लगे। जैसे सुबह हुई, उनकी भक्ति से प्रसन्न भगवान शिव ने उन सभी को आशीर्वाद दिया। शिवरात्रि इस घटना का उत्सव है, जिससे शिव ने दुनिया को बचाया।

9-रात्रि के साथ शिव शब्द इसलिए जोड़ा गया क्योंकि शिव का अर्थ होता है – “वह जो नहीं है”। सृष्टि का अर्थ है – “वह जो है”। इसलिए सृष्टि के स्त्रोत को शिव नाम से जाना गया। शिव शब्द के अर्थ से ज्यादा महत्वपूर्ण है वह ध्वनि जो की शिव शब्द से जुडी है। यह ध्वनि एक ख़ास ऊर्जा उत्पन्न करती है जो हमें सृष्टि के स्त्रोत तक ले जा सकती है। इसलिए शिव एक शक्तिशाली मन्त्र भी है।

10-शिवरात्रि पर्व भगवान् शिव के दिव्य अवतरण का मंगलसूचक है। उनके निराकार से साकार रूप में अवतरण की रात्रि ही महाशिवरात्रि कहलाती है। वे हमें काम, क्रोध, लोभ, मोह, मत्सरादि विकारों से मुक्त करके परम सुख, शान्ति ऐश्वर्यादि प्रदान करते हैं।

समस्त भूतों का अस्तित्व मिटाकर परमात्मा (शिव) से आत्मसाधना करने की रात शिवरात्रि है। इस दिन जीवरूपी चंद्रमा का परमात्मारूपी सूर्य के साथ योग रहता है, अत: शिवरा‍त्रि को लोग जागरण कर व्रत रखते हैं।

11-शिव की हर बात निराली और रहस्यमय है।भोलेनाथ संहार के अधिष्ठाता होने के बावजूद कल्याण कारक कहलाते हैं।यह सभी जानते हैं कि भगवान शिव संहार शक्ति और तमोगुण के स्वामी है। इसीलिए रात्रि से उनका विशेष लगाव स्वाभाविक है। रात्रि को संहार काल माना जाता है।रात्रि के आते ही सबसे पहले प्रकाश पर अंधकार का साम्राज्य कायम हो जाता है। इसकी वजह यह है कि विनाश में भी सृजन के बीज छुपे रहते हैं। जब तक किसी वस्तु का विनाश नहीं होता है तब तक दूसरी वस्तु का सृजन नहीं होता है।

12-सभी जीव जंतुओं और प्राणियों की कर्म चेष्टाएँ खत्म हो जाती हैं और और निद्रा द्वारा चेतना का भी अंत होता है।पूरी दुनिया रात्रि के समय अचेतन होकर निद्रा में विलीन हो जाती

है।ऐसी परिस्थिति में प्राकृतिक दृष्टि से शिव का रात्रि प्रिय होना सहज होता है। इसी वजह से भोलेनाथ की पूजा-अर्चना इस रात्रि में और हमेशा प्रदोष काल में की जाती है।

13-शिवरात्रि का कृष्ण पक्ष में आने का भी एक विशेष अर्थ है।शुक्ल पक्ष में चंद्रमा अपना पूर्ण रूप ले लेता है और कृष्ण पक्ष में धीरे-धीरे चंद्रमा की रोशनी कम होती जाती है।

जैसे जैसे चंद्रमा बढ़ता है, वैसे वैसे संसार के सभी रसवान पदार्थों में वृद्धि और घटने पर सभी पदार्थ क्षीण हो जाते हैं। चंद्रमा के क्षीण होने का असर प्राणियों पर भी पड़ता है।

जब चंद्रमा क्षीण होता है तो जीव जंतुओं के अंतः करण में तामसी शक्तियां प्रबल होने लगती हैं। जिसके कारण उनके अंदर तरह-तरह की अनैतिक और आपराधिक गतिविधियां जन्म लेती हैं।

14- भूत प्रेत भी इन्हीं शक्तियों में से एक है, और शिव को भूत प्रेत का स्वामी माना जाता है। दिन में जब प्रकाश रहता है तब जगत आत्मा अपनी शक्तियों का इस्तेमाल नहीं कर पाती हैं, पर रात्रि के अंधकार में यही शक्तियां बलवान हो जाती हैं। इन्हीं शक्तियों का

नाश करने और इन्हें नियंत्रण में रखने के लिए शिव को रात्रि प्रिय माना गया है।जिस प्रकार पानी की गति को रोकने के लिए पुल बनाया जाता है, उसी प्रकार चंद्रमा के क्षीण होने की तिथि आने से पहले उन सभी तामसी शक्तियों का नाश करने के लिए शास्त्रों में शिवरात्रि की आराधना करने का विधान बनाया है।

शिव और महाशिवरात्रि

1-शिव शब्द का मतलब है ‘वह जो नहीं है’। सृष्टि वह है – “जो है”। सृष्टि के परे, सृष्टि का स्रोत वह है – “जो नहीं है’। शब्द के अर्थ के अलावा, शब्द की शक्ति, ध्वनि की शक्ति बहुत अहम पहलू है। हम संयोगवश इन ध्वनियों तक नहीं पहुंचे हैं। यह कोई सांस्कृतिक घटना नहीं है, ध्वनि और आकार के बीच के संबंध को जानना एक अस्तित्व संबंधी प्रक्रिया है। हमने पाया कि ‘शि’ ध्वनि, निराकार या रूपरहित यानी जो नहीं है, के सबसे करीब है। शक्ति को संतुलित करने के लिए ‘व’ को जोड़ा गया।

2-अगर कोई सही तैयारी के साथ ‘शि’ शब्द का उच्चारण करता है, तो वह एक उच्चारण से ही अपने भीतर विस्फोट कर सकता है। इस विस्फोट में संतुलन लाने के लिए, इस विस्फोट को नियंत्रित करने के लिए, इस विस्फोट में दक्षता के लिए ‘व’ है। ‘व’ वाम से निकलता है, जिसका मतलब है, किसी खास चीज में दक्षता हासिल करना।इसलिए सही समय पर

जरूरी तैयारी के साथ सही ढंग से इस मंत्र के उच्चारण से मानव शरीर के भीतर ऊर्जा का विस्फोट हो सकता है। ‘शि’ की शक्ति को बहुत से तरीकों से समझा गया है। यह शक्ति अस्तित्व की प्रकृति है।

3-शिव शब्द के पीछे एक पूरा विज्ञान है। यह वह ध्वनि है जो अस्तित्व के परे के आयाम से संबंधित है। उस तत्व – “जो नहीं है” – के सबसे नजदीक ‘शिव’ ध्वनि है। इसके उच्चारण से, वह सब जो आपके भीतर है – आपके कर्मों का ढांचा, मनोवैज्ञानिक ढांचा, भावनात्मक ढांचा, जीवन जीने से इकट्ठा की गई छापें – वह सारा ढेर जो आपने जीवन की प्रक्रिया से गुजरते हुए जमा किया है, उन सब को सिर्फ इस ध्वनि के उच्चारण से नष्ट किया जा सकता है और शून्य में बदला जा सकता है।

4-स्थायी शांति, जिसे हम शिव कहते हैं, में जब ऊर्जा का पहला स्पंदन हुआ, तो एक नया नृत्य शुरू हुआ। आज भी, वैज्ञानिक रूप से यह सिद्ध हुआ है कि अगर खाली स्थान में या उसके आस-पास भी आप इलेक्ट्रोमैगनेटिक ऊर्जा का इस्तेमाल करते हैं, तो सूक्ष्म आणविक कण प्रकट होते हैं और नृत्य करने लगते हैं। तो एक नया नृत्य शुरू हुआ, जिसे हम सृजन का नृत्य कहते हैं।सृजन के इस नृत्य को – जो खुद ही स्थायी शांति से उत्पन्न हुआ – कई अलग-अलग नाम दिए गए। सृष्टि के उल्लास को प्रस्तुत करने की कोशिश में हमने उसे कई अलग-अलग रूपों में नाम दिया।

5-‘जो नहीं है’, उसका अर्थ है, अगर आप अपनी आँखें खोल कर आसपास देखें और आपके पास सूक्ष्म दृष्टि है तो आप बहुत सारी रचना देख सकेंगे। अगर आपकी दृष्टि केवल विशाल वस्तुओं पर जाती है, तो आप देखेंगे कि विशालतम शून्य ही, अस्तित्व की सबसे बड़ी उपस्थिति है। कुछ ऐसे बिंदु, जिन्हें हम आकाशगंगा कहते हैं, वे तो दिखाई देते हैं, परंतु उन्हें थामे रहने वाली विशाल शून्यता सभी लोगों को दिखाई नहीं देती। इस विस्तार, इस असीम रिक्तता को ही शिव कहा जाता है।

6-वर्तमान में, आधुनिक विज्ञान ने भी साबित कर दिया है कि सब कुछ शून्य से ही उपजा है और शून्य में ही विलीन हो जाता है। इसी संदर्भ में शिव यानी विशाल रिक्तता या शून्यता को ही महादेव के रूप में जाना जाता है। इस ग्रह के प्रत्येक धर्म व संस्कृति में, सदा दिव्यता की सर्वव्यापी प्रकृति की बात की जाती रही है। यदि हम इसे देखें, तो ऐसी एकमात्र चीज़ जो सही मायनों में सर्वव्यापी हो सकती है, ऐसी वस्तु जो हर स्थान पर उपस्थित हो सकती है, वह केवल अंधकार, शून्यता या रिक्तता ही है।

7-सामान्यतः, जब लोग अपना कल्याण चाहते हैं, तो हम उस दिव्य को प्रकाश के रूप में दर्शाते हैं। जब लोग अपने कल्याण से ऊपर उठ कर, अपने जीवन से परे जाने पर, विलीन होने पर ध्यान देते हैं और उनकी उपासना और साधना का उद्देश्य विलयन ही हो, तो हम सदा उनके लिए दिव्यता को अंधकार के रूप में परिभाषित करते हैं।

8-प्रकाश आपके मन की एक छोटी सी घटना है। प्रकाश शाश्वत नहीं है, यह सदा से एक सीमित संभावना है क्योंकि यह घट कर समाप्त हो जाती है। हम जानते हैं कि इस ग्रह पर सूर्य प्रकाश का सबसे बड़ा स्त्रोत है। यहाँ तक कि आप हाथ से इसके प्रकाश को रोक कर भी, अंधेरे की परछाईं बना सकते हैं। परंतु अंधकार सर्वव्यापी है, यह हर जगह उपस्थित है। संसार के अपरिपक्व मस्तिष्कों ने सदा अंधकार को एक शैतान के रूप में चित्रित किया है। पर जब आप दिव्य शक्ति को सर्वव्यापी कहते हैं, तो आप स्पष्ट रूप से इसे अंधकार कह रहे होते हैं, क्योंकि सिर्फ अंधकार सर्वव्यापी है। यह हर ओर है।

9-इसे किसी के भी सहारे की आवश्यकता नहीं है। प्रकाश सदा किसी ऐसे स्त्रोत से आता है, जो स्वयं को जला रहा हो। इसका एक आरंभ व अंत होता है। यह सदा सीमित स्त्रोत से आता है। अंधकार का कोई स्त्रोत नहीं है। यह अपने-आप में एक स्त्रोत है। यह सर्वत्र उपस्थित है। तो जब हम शिव कहते हैं, तब हमारा संकेत अस्तित्व की उस असीम रिक्तता की ओर होता है। इसी रिक्तता की गोद में सारा सृजन घटता है। रिक्तता की इसी गोद को हम शिव कहते हैं।

10-शिव शब्द या शिव ध्वनि में वह सब कुछ विसर्जित कर देने की क्षमता है, जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं। वह सब कुछ जिसे आप ‘मैं’ कहते हैं, फिलहाल आप जिसे भी ‘मैं’ मानते हैं, वह मुख्य रूप से विचारों, भावनाओं, कल्पनाओं, मान्यताओं, पक्षपातों और जीवन के पूर्व अनुभवों का एक ढेर है। अगर आप वाकई अनुभव करना चाहते हैं, कि इस पल में क्या है, अगर आप वाकई अगले पल में एक नई हकीकत में कदम रखना चाहते हैं, तो यह तभी हो सकता है जब आप खुद को हर पुरानी चीज़ से आजाद कर दें। वरना आप पुरानी हकीकत को ही अगले पल में खींच लाएंगे।

11-रोज, हर पल, कई दशकों का भार घसीटने का बोझ, जीवन से सारा उल्लास खत्म कर देता है।ज्यादातर लोगों के लिए बचपन की

मुस्कुराहटें और हंसी, नाचना-गाना जीवन से गायब हो गया है और उनके चेहरे इस तरह गंभीर हो गए हैं मानो वे अभी-अभी कब्र से निकले हों। यह सिर्फ बीते हुए कल का बोझ आने वाले कल में ले जाने के कारण होता है। अगर आप एक बिल्कुल नए प्राणी के रूप में आने वाले कल में, अगले पल में कदम रखना चाहते हैं, तो शिव ही इसका उपाय है।

12-तो जब हम शिवरात्रि कहते हैं जो कि माह का सबसे अंधकारपूर्ण दिन है, तो यह एक ऐसा अवसर होता है कि व्यक्ति अपनी सीमितता को विसर्जित कर के, सृजन के उस असीम स्त्रोत का अनुभव करे, जो प्रत्येक मनुष्य में बीज रूप में उपस्थित है।महाशिवरात्रि एक अवसर और संभावना है, जब आप स्वयं को, हर मनुष्य के भीतर बसी असीम रिक्तता के अनुभव से जोड़ सकते हैं, जो कि सारे सृजन का स्त्रोत है।

13-एक ओर शिव संहारक कहलाते हैं और दूसरी ओर वे सबसे अधिक करुणामयी भी हैं। वे बहुत ही उदार दाता हैं।उनकी करुणा के रूप विलक्षण और अद्भुत रहे हैं।महाशिवरात्रि को मानव शरीर में उर्जाएं कुदरती तौर पर ऊपर की ओर जाती हैं।इसलिए इस रात को हम सब जागें और अपनी रीढ़ सीधी रखें ताकि हम इस रात को मौजूद अद्भुत ऊर्जा के लिए उपलब्ध हो पाएं ।हम सभी इस रात को अपने लिए एक जागरण की रात बनाएं।

14-ब्रह्मा, विष्णु, शंकर (त्रिमूर्ति) की उत्पत्ति महेश्वर अंश से ही होती है। मूल रूप में शिव ही कर्ता, भर्ता तथा हर्ता हैं। सृष्टि का आदि कारण शिवहै।शिव ही ब्रह्म हैं। ब्रह्म की परिभाषा है – ये भूत जिससे पैदा होते हैं, जन्म पाकर जिसके कारण जीवित रहते हैं और नाश होते हुए जिसमें प्रविष्ट हो जाते हैं, वही ब्रह्म है। यह परिभाषा शिव की परिभाषा है। शिव आदि तत्त्व है, वह ब्रह्म है, वह अखण्ड, अभेद्य, अच्छेद्य, निराकार, निर्गुण तत्त्व है। वह अपरिभाषेय है, वह नेति-नेति है।

15-शिव का अर्थ ही है कल्याणकारी , मंगलकारी और वह सदा आत्माओं का कल्याण करनेवाला है इसलिए वह सदाशिव है।शिवरात्रि हम सभी की शुभरात्रि है।हम शिवरात्रि के समय उपवास रखते है और जागरण भी करते है लेकिन क्या उपवास ,जागरण करना ही इस शुभरात्रि का उद्देश्यहै। अगर हम मान भी ले तो उस दिन वॉच मेन भी जागते है तो क्या उनका जागरण नहीं हुआ। वास्तव में, आत्म जागृति की बात है जागरण की बात नहीं है ।

क्या अर्थ है आत्म जागृति का ?-

1-मनुष्य चेतना के दो आया है: एक मूर्च्छा, एक अमूर्च्छा। मूर्च्छा का अर्थ है सोये-सोये जीना; बिना होश के जीना। अमूर्च्छा का अर्थ है, होशपूर्वक जीना; जाग्रत, विवेकपूर्ण। मूर्च्छा का अर्थ है, भीतर का दीया बुझा है।अमूर्च्छा का अर्थ है, भीतर का दीया जला है।मूर्च्छा में रोशनी बाहर होता है।बाहर की रोशनी से ही आदमी चलता है। जहां इंद्रियां ले जाती हैं, वहीं जाता है।क्योंकि अपने स्वरूप का तो कोई बोध नहीं। लोग जो समझा देते हैं, समाज जो बता देता है, वहीं आदमी चल पड़ता है क्योंकि न तो अपनी कोई जड़ें होती हैं अस्तित्व में, न अपना भान होता है। ‘मैं कौन हूं,’ इसका कोई पता ही नहीं।

2-अमूर्च्छित चित्त, जागा हुआ चित्त बिलकुल दूसरे ही ढंग से जीता है। उसके जीवन की व्यवस्था आमूल से भिन्न होती है। वह दूसरों के कारण नहीं चलता, वह अपने कारण चलता है। वह सुनता सबकी है। वह मानता भीतर की है। वह गुलाम नहीं होता। भीतर की मुक्ति को ही जीवन में उतारता है। कितनी ही अड़चन हो, लेकिन उस मार्ग पर ही यात्रा करता है जो पहुंचायेगा। और कितनी ही सुविधा हो, उस मार्ग पर नहीं जाता, जो कहीं नहीं पहुंचायेगा।

3-अमूर्च्छित व्यक्ति अपने भीतर अपने जीवन की विधि खोजता है। अपने होश में अपने आचरण को खोजता है। अपने अंतःकरण के प्रकाश से चलता है। कितना ही थोड़ा प्रकाश हो अंतःकरण का प्रकाश, सदा पर्याप्त है।छोटे से छोटा दीया भी इतना तो दिखा ही देता है, कि एक कदम साफ हो जाए। एक कदम चल लो, फिर और एक कदम दिखाई पड़ जाता है। कदम-कदम करके हजारों मील की यात्रा पूरी हो जाती है।

4-जाग्रत स्‍वप्‍न और सुषुप्‍ति— इन तीनों अवस्थाओं को पृथक रूप से जानने से तुर्यावस्था का भी ज्ञान हो जाता है। तुर्या है -चौथी अवस्था। तुर्यावस्था का अर्थ है – परम ज्ञान।

तुर्यावस्था का अर्थ है कि किसी प्रकार का अंधकार भीतर न रह जाये, सभी ज्योतिर्मय हो उठे; जरा सा कोना भी अंतस का अंधकारपूर्ण न हो;सब ओर जागृति का प्रकाश फैल जाये।

अभी जहां हम हैं, वहां या तो हम जाग्रत होते हैं या हम स्‍वप्‍न में होते हैं या हम सुषुप्‍ति में होते हैं। चौथे का हमें कुछ भी पता नहीं है। जब हम जाग्रत होते हैं तो बाहर का जगत तो दिखाई पड़ता है, हम खुद अंधेरे में होते हैं; वस्तुएं तो दिखाई पड़ती हैं, लेकिन स्वयं का कोई बोध नहीं होता; संसार तो दिखाई पड़ता है, लेकिन आत्मा की कोई प्रतीति नहीं होती। यह आधी जाग्रत अवस्था है।

5- सुबह नींद से उठकर…जिसको हम जागरण कहते हैं ; वह अधूरा जागरण है। और अधूरा भी कीमती नहीं है; क्योंकि व्यर्थ तो दिखाई पड़ता है और सार्थक दिखाई नहीं पड़ता। कूड़ा -करकट तो दिखाई पड़ता है, हीरे अंधेरे में खो जाते हैं। खुद तो हम दिखाई नहीं पड़ते कि कौन हैं और सारा संसार दिखाई पड़ता है।दूसरी अवस्था है स्‍वप्‍न की। हम तो दिखाई पड़ते

ही नहीं स्‍वप्‍न में, बाहर का संसार भी खो जाता है। सिर्फ, संसार से बने हुए प्रतिबिंब मन में तैरते हैं। उन्हीं प्रतिबिंबों को हम जानते और देखते है – जैसे कोई दर्पण में देखता हो.. चांद को या झील पर कोई देखता हो ..आकाश के तारों को। सुबह जागकर हम वस्तुओं को सीधा देखते हैं; स्‍वप्‍न में हम वस्तुओं का प्रतिबिंब देखते हैं, वस्तुएं भी नहीं दिखाई पड़ती।

6-और तीसरी अवस्था है -जिससे हम परिचित है -बाहर का जगत भी खो जाता है; वस्तुओं का जगत भी अंधेरे में हो जाता है; और प्रतिबिंब भी नहीं दिखाई पड़ते; स्‍वप्‍न भी तिरोहित हो जाता है; तब हम गहन अंधकार में पड़ जाते हैं …उसी को हम सुषुप्ति कहते हैं। सुषुप्ति में न तो बाहर का ज्ञान रहता है,न भीतर का। जाग्रत में बाहर का ज्ञान रहता है। और जाग्रत और सुषुप्ति के बीच की एक मध्य कड़ी है: स्‍वप्‍न, जहां बाहर का ज्ञान तो नहीं होता, लेकिन बाहर की वस्तुओं से बने हुए प्रतिबिंब हमारे मस्तिष्क में तैरते है और उन्हीं का ज्ञान होता है।

7-चौथी तुर्या अवस्था है:वही सिद्धावस्था है। सारी चेष्टा उसी को पाने के लिए है। सब ध्यान, सब योग तुर्यावस्था को पाने के उपाय हैं। तुर्यावस्था का अर्थ है: भीतर और बाहर दोनों का ज्ञान; अंधेरा कहीं भी नहीं— न तो बाहर और न भीतर, पूर्ण जागृति;जिसको हमने बुद्धत्व कहा है, जिसमें न तो बाहर अंधकार है, न भीतर, सब तरफ प्रकाश हो गया है; जिसमें वस्तुओं को भी हम जानते हैं, स्वयं को भी हम जानते है। ऐसी जो चौथी अवस्था है, वह कैसे पाई जाए ..इसके ही सब सूत्र हैं।

(साभार – वैदिक ऋषिकाएं फेसबुक पेज से)

केंद्र ने अश्लील सामग्री पर ओटीटी प्लेटफार्मों के लिए जारी की एडवाइजरी

नयी दिल्ली । पॉडकास्टर रणवीर इलाहाबादिया के स्टैंड-अप शो इंडियाज़ गॉट लेटेंट पर विवादास्पद सरकार ने सभी ओटीटी और सोशल मीडिया चैनलों को उम्र के हिसाब के क्लासिफिकेशन करने और स्व-नियमन को सख्ती से लागू करने के निर्देश दिए हैं। 19 फरवरी को जारी ए़डवाइजरी के अनुसार ओटीटी प्लेटफॉर्म को कंटेंट प्रसारित करते समय कानूनों के विभिन्न प्रावधानों और आईटी नियम, 2021 के तहत निर्धारित आचार संहिता का पालन करना होगा, जिसमें नैतिक संहिता के तहत निर्धारित सामग्री के आयु-आधारित वर्गीकरण का कड़ाई से पालन करना भी शामिल है। एडवाइजरी में कहा कि गया है कि संसद सदस्यों, वैधानिक संगठनों के प्रतिनिधित्व और लोगों से प्राप्त शिकायतों के बाद अश्लील सामग्री के कथित प्रसार के संबंध में ऑनलाइन क्यूरेटेड कंटेंट (ओटीटी) और सोशल मीडिया के प्रकाशकों को एक एडवाइजरी जारी की है। एडवाइजरी में सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया, आचार संहिता) नियम, 2021 का हवाला दिया गया है, जो ओटीटी प्लेटफार्मों के लिए एक आचार संहिता और इसके उल्लंघन से संबंधित शिकायतों के निवारण के लिए एक तीन-स्तरीय संस्थागत तंत्र प्रदान करता है। आचार संहिता में अन्य बातों के अलावा ओटीटी प्लेटफार्मों को ऐसी किसी भी सामग्री को प्रसारित नहीं करने पर जोर दिया गया है जो कानून द्वारा निषिद्ध है। इसके साथ ए’ रेटेड कंटेंट को बच्चों के लिए निषेध करने का निर्देश दिया गया है ताकि बच्चों को अनुचित सामग्री से बचाया जा सके।उम्र-आधारित कंटेंट क्लासिफिकेशन को सख्ती से लागू करने के लिए कहा गया है। प्लेटफार्म्स को सामग्री चयन में सतर्कता और विवेक अपनाने की सलाह दी गई है।

मौसम विभाग में खुला देश का पहला “ओपन-एयर आर्ट वॉल म्यूजियम”

 50 साल की ऐतिहासिक यात्रा का प्रदर्शन

नयी दिल्ली । केन्द्रीय राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) विज्ञान और प्रौद्योगिकी, पृथ्वी विज्ञान मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने हाल ही में “मौसम भवन” में भारत के पहले “ओपन एयर आर्ट वॉल म्यूजियम” का उद्घाटन किया। इस म्यूजियम में भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) की 150 वर्षों की ऐतिहासिक यात्रा को प्रर्दशित किया गया है। यह पहल “दिल्ली स्ट्रीट आर्ट” के सहयोग से विकसित की गई है, जो आईएमडी के मुख्यालय की दीवारों को जीवंत बनाती है। डॉ. जितेंद्र सिंह ने समय पर सटीक मौसम पूर्वानुमान प्रदान करके भारत के सामाजिक-आर्थिक विकास में आईएमडी के स्थायी योगदान की सराहना की। उन्होंने कहा कि 150 वर्षों से भारत मौसम विज्ञान विभाग मौसम विज्ञान अनुसंधान के अग्रिम मोर्चे पर खड़ा है, जो गतिशील जलवायु की चुनौतियों का सामना करने के लिए अत्याधुनिक तकनीक का लाभ उठा रहा है। यह कलात्मक प्रयास आईएमडी की पहुंच को और बढ़ाता है, जिससे जनता को मौसम विज्ञान की कहानी को रोचक तरीके से जोड़ा जा सके। उन्होंने कहा कि “मौसम भवन” विशेष कला प्रदर्शनी में भारत के मौसम विज्ञान के इतिहास, मौसम पूर्वानुमान के विकास और कृषि, आपदा प्रबंधन और दैनिक जीवन पर इसके प्रभाव को दर्शाते हुए 38 अद्वितीय भित्ति चित्र शामिल हैं। यह महत्वपूर्ण मौसम विज्ञान घटनाओं, उपग्रहों और रडार जैसी प्रौद्योगिकी में प्रगति, और चक्रवातों, मानसूनों और चरम मौसम की स्थितियों के लिए पूर्व चेतावनियों के माध्यम से जीवन की सुरक्षा में आईएमडी की भूमिका को दर्शाता है।

डॉ. जितेंद्र सिंह ने दिल्ली स्ट्रीट आर्ट और इसके संस्थापक दिवंगत योगेश सैनी की रचनात्मकता की सराहना की, जिन्होंने दिल्ली के कई सार्वजनिक स्थानों को कलात्मक अभिव्यक्तियों में बदल दिया। जितेन्द्र सिंह ने कहा कि “कला एक शक्तिशाली माध्यम है। यह परियोजना विज्ञान और रचनात्मकता के बीच खूबसूरती से पुल बनाती है ताकि जटिल मौसम विज्ञान घटनाओं को इस तरह से संप्रेषित किया जा सके जो सभी आयु के लोगों के साथ गूंजता है।

बैंडल चीज का अस्तित्व खतरे में, जीआई टैग के लिए नहीं किया गया आवेदन

पश्चिम बंगाल सरकार की अनदेखी से 500 साल से भी अधिक पुरानी पाक विरासत बैंडल चीज़ (गाय के दूध का विशेष पनीर) का अस्तित्व खतरे में है। इसे बनाने वाले कभी सात से ज्यादा परिवार हुआ करते थे लेकिन आज केवल एक ही परिवार इसे बना रहा है और वो भी इस आर्थिक तंगी के कारण चीज को तैयार करने से बचने लगे हैं। हुगली के ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व रखने वाले बैंडल चीज का अस्तित्व बचाने के प्रयास में पश्चिम बंगाल सरकार ने कोई रुचि नहीं दिखायी है। इस विषय पर हाल ही में भाजपा के राज्यसभा सदस्य शमिक भट्टाचार्य ने संसद में जीआई टैग पर सवाल पूछा था। इस पर केन्द्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि राज्य सरकार या किसी भी हितधारक द्वारा बैंडल चीज़ के जीआई पंजीकरण के लिए कोई आवेदन प्रस्तुत नहीं किया गया है। सांसद भट्टाचार्य ने  बताया कि जीआई टैग इसकी प्रामाणिकता को बनाए रखने, स्थानीय उत्पादकों को बढ़ावा देने और इसकी विरासत को सुरक्षित करने के लिए महत्वपूर्ण है। फिर भी यह विरासत चीज़ आधिकारिक उदासीनता के कारण अनजान बनी हुई है। उन्होंने सवाल उठाया कि राज्य सरकार इस पर चुप क्यों है? स्थानीय उत्पादकों को संस्थागत समर्थन के बिना क्यों छोड़ा गया है? क्या सरकार अंततः पश्चिम बंगाल की अनूठी पाक विरासत की रक्षा के लिए कार्रवाई करेगी? बैंडल चीज़ को उसकी सही मान्यता मिलनी चाहिए। बंगाल के रसगुल्ले को जीआई टैग मिला है जबकि छेना बनाने की शुरुआत ही बैंडल से हुई है। सबसे पहले देश में पनीर बनाने की शुरुआत हुगली से हुई है।

अगर बैंडल चीज के इतिहास के बारे में बात करें तो इसका जिक्र ब्रिटिश सरकार के गजेटियर में भी मिलता है। इसके अलावा कुछ पुरानी इतिहास की किताबों में भी इसका जिक्र है। ब्लूमबर्ग बिजनेस पत्रिका ने 2017 में एक सर्वेक्षण में ‘बैंडेल चीज़’ को दुनिया के शीर्ष 12 चीज़ों में से एक बताया था, जो अब मिलना दुर्लभ है। इसके अलावा कुछ जाने माने शेफ को यह बैंडेल चीज़ पसंद है। हाल ही में जाने-माने मिशेलिन स्टार शेफ विकास खन्ना ने भी न्यूयॉर्क में अपने मिशेलिन स्टार रेस्तरां ‘बंगला’ में बैंडेल चीज़ का इस्तेमाल किया था। प्रसिद्ध फिल्म निर्देशक सत्यजीत रे को बैंडेल चीज़ खाना बहुत पसंद था।

बैंडल चीज या पनीर का इतिहास

बैंडल पनीर, एक इंच चौड़े और एक चौथाई इंच मोटे छोटे गोल आकार में बेचा जाता है। यह दो किस्मों में उपलब्ध है, स्मोक्ड और सादा। इसके संरक्षण के लिए दोनों में अत्यधिक नमक डाला जाता है। पश्चिम बंगाल में छेना या पनीर को सबसे पहले लाने वाले या यू कहिए परिचित कराने वाले पुर्तगाल से आए लोग जिम्मेदार थे। पुर्तगाली लोगों को पनीर बहुत पसंद था, जिसे वे दूध को अम्लीय पदार्थों के साथ फाड़ कर बनाते थे। भारत में तो दूध का फटना असुभ माना जाता था। यहां ज्यादातर मिठाई खोए से बनी होती थी। थॉमस बोउरे की पुस्तक जियोग्राफिकल अकाउंट ऑफ द कंट्रीज अराउंड द बे ऑफ बंगाल 1690-1780 के अनुसार, पुर्तगालियों ने घी और मक्खन के साथ पनीर को वर्तमान जावा में निर्यात करने का कारोबार किया। स्मोक्ड किस्म संभवतः डचों की देन है, उन्हें स्मोक्ड गौडा के प्रति गहरा प्रेम था। बैंडल चीज को बड़ी मात्रा में बनाने के लिए पुर्तगालियों ने पश्चिम बंगाल के स्थानीय लोगों को नियुक्त किया। इस तरह से बंगालियों को पनीर बनाने की प्रक्रिया से परिचित कराया गया। इस पुर्तगाली पाक विरासत पर अब कई शोध कार्य भी हो रहे हैं।

जीआई टैग से इस पाक विरासत का संरक्षण संभवः सौरभ गुप्ता

द होल हॉग डेली के संस्थापक और एक्टिविस्ट सौरभ गुप्ता बताते हैं कि बैंडल चीज की अनोखे स्वाद के साथ इसकी कहानी भी एकदम अनूठी है। इसका पूरा श्रेय कोरोना काल को जाता है। लॉकडाउन के दौरान बाकी दुकानदारों के साथ बैंडल चीज बनाने वाले पलाश घोष के परिवार पर भी असर डाला। उस समय दुकान बंद होने के कारण बैंडल चीज बनाने वाले पलाश घोष की दुकान में बनने वाले 1200 किलोग्राम पनीर खराब हो गया जिससे उन्हें काफी नुकसान हुआ। नौबत यहां तक आ गई कि उन्हें अपने परिवार के खर्च के लिए एक सिक्योरिटी गार्ड की नौकरी करनी पड़ी। थोड़ी मांग को देखते हुए उनके पिताजी बेहद कम पनीर ही बना पाते थे लेकिन उससे गुजारा नहीं हो पाता था। सौरभ गुप्ता बताते हैं कि इस पनीर के बारे में सुनकर उन्होंने पलाश घोष से मुलाकात की। पलाश ने बताया कि बैंडल चीज बनाने वाले उन परिवारों में से एक है जिसने पांच सौ साल से भी पुराने इस पाक विरासत को आज भी जिंदा रखा है। इनका परिवार पिछले 11 पीढ़ियों से बैंडल चीज बना रहा है। पलाश घोष की मदद के लिए आगे आए सौरभ गुप्ता बताते हैं कि बैंडल पनीर की मांग को देखते हुए उन्होंने पनीर को अपने ऑनलाइन बिजनेश द होल हॉग डेली के माध्यम से होटल और लोगों तक पहुंचाने लगे। मांग के अनुसार अब न केवल कोलकाता बल्कि पूरे देश में बैंडल चीज़ की डिलीवरी की जाने लगी है। अगर इसे जीआई टैग मिल जाता है तो इसे सरकार की तरफ से भी संरक्षण मिल जाएगा और दुनियाभर में लोगों को भी इसकी जानकारी मिल सकेगी। बैंडल पनीर का नाम उसके स्थान के नाम से मिला है। पश्चिम बंगाल के हुगली में बैंडल जगह है जहां पहले पुर्तगाली लोगों की कॉलोनी हुआ करती थी। उन्होंने इस जगह में रहने वाले ग्वालों को अपने साथ काम पर लगाया। चूंकि बैंडल चीज़ बनाने के लिए अच्छी गुणवत्ता वाले गाय के दूध की आवश्य़कता होती है इसलिए बैंडल पनीर बनाने वाले डेयरी किसान ही थे। इन्होंने पुर्तगाली लोगों से पनीर बनाने की कला सीखी थी। हुगली जिले में बैंडल चीज बनाने वाले सात परिवार के बारे में जानकारी मिलती है जिसमें अब एक ही परिवार बैंडल पनीर को बना रहा है। बंदेल चीज़ के पुनरुत्थान के लिए इसे सरकारी संरक्षण देने की जरूरत है।

(साभार – हिन्दुस्तान समाचार)

आदिवासी समाज के बीच एक अनूठा दिन

दिव्या गुप्ता

-दिव्या गुप्ता

टाटानगर की यात्रा जब शुरू हुई तो शुरुआत सामान्य ही थी । समय पर भागलपुर से ट्रेन हावड़ा के लिए मिल गई थी। हावड़ा से जनशताब्दी एक्सप्रेस में टिकट पहले से ही ले रखा था, पर सुबह 03.30 बजे हावड़ा पहुँचकर पता चला, वह देर से चलने वाली है । खैर, दूसरी ट्रेन में लड़ते-भिड़ते जनरल बोगी में जगह लेकर मैं जमशेदपुर पहुँच गई। जमशेदपुर पहुँचकर पता चला कि इस तरफ़ की ट्रेन हमेशा ही देर करती है । जमशेदपुर में ठंड बहुत थी। चूंकि स्टेशन से ‘विकास भवन’की ज़्यादा दूरी नहीं थी, इसलिए आसपास का बाज़ार ज़्यादा नहीं देख पाई। जमशेदपुर के ‘विकास भवन’ में कार्यशाला का प्रारंभ सामान्य तरीके से जैसे हर बार होता है, वैसे ही हुआ । विकास भवन के पीछे फल

और सब्ज़ियों का बगीचा था। इसमें टमाटर,मिर्च,पालक, लहसुन, लौकी, अमरूद, केला आदि लगे हुए थे। विकास भवन में जितने दिनों तक हम थे, हमने इसी बगीचे की सब्जियाँ खाईं।

तीसरे दिन हमलोग क्षेत्र-भ्रमण के लिए गए। जमशेदपुर एक शहर है जिसमें सामान्य शहर की तरह जो भी सुविधाएँ होनी चाहिए थीं, वे उपलब्ध थीं। परंतु उसका गाँव उससे थोड़ा अलग है। हमारा उद्देश्य गाँव की तरफ़ जाना था। मैं, ‘संवाद’संस्था की कार्यकर्ता श्रावणी आंटी के साथ ‘पटकीता’ गाँव गई। गाँव के रास्ते में सड़क के दोनों ओर पेड़-पौधे और झाड़ियाँ थे। मानो हम किसी जंगल की तरफ़ बढ़े जा रहे हैं। आसपास ज़्यादा लोग नहीं थे। फिर धीरे-धीरे आबादी और बसावट आते गये। बीच-बीच में सड़क के किनारे जंगल आता था। हम गाँव की तरफ बढ़ रहे थे तो हमने रास्ते में सड़क किनारे मिट्टी के घर में दो बहनों को दीवार पर रंग द्वारा सजावट करते हुए देखा । मैं उनके पास गई तो उनके चेहरे पर जिज्ञासा और एक मुस्कान थी। हमने उनका नाम पूछा, एक लड़की का नाम नेहा, दूसरी का नाम मोनिका और उसके भाई का नाम विशाल था। जब हमने उनसे इस सजावट का कारण पूछा तो उन्होंने बताया कि पाँच साल में एक बार एक त्योहार आता है। उसी की तैयारी चल रही है। दोनों ने कहा कि जितने भी रिश्तेदा रहैं, कल सभी आएँगे। जिन बहनों का विवाह हो चुका है, वह भी अपने पति के साथ और बुआ भी अपने परिवार के साथ आएँगी। मेरे लिए आश्चर्य की बात यह थी कि उनके पास रंग, तूलिका के अलावा किसी तरह का कोई भी साँचा न था। वे दीवार पर रेखाएँ भी धागे द्वारा बना रहीं थीं। उनकी उम्र बारह-चौदह वर्ष से अधिक न होगी। उनके साथ उनका भाई भी था जो छह-सात वर्ष का था। वे साथ मिलकर कलाकारी कर रहे थे। उन बच्चियों ने किसी शिल्पी से कुछ सीखा होगा, यह मुझे नहीं लगता। उन्होंने अपने जीवन में परिवार और आसपास के लोगों से ही सीखा होगा ‌ ।पहले पारम्परिक रंग फूल एवं मिट्टी से बनाया जाता था परंतु अब बाज़ार की सुविधा के कारण बना-बनाया रंग ही वे लेआते हैं और अपनी  मिट्टी की दीवार पर अपनी कला बिखेरते हैं।

इससे थोड़ी दूर पर एक और घर मिला जिसमें एक गृहिणी अपने घर की दीवार पर पारम्परिक और आधुनिक मिश्रित कला बिखेर रही थीं। वे कुछ अधिक समृद्ध थे। घर मिट्टी का था, परंतु जगह अधिक थी। हमें घर के अंदर जाकर छत की खपरैल ठीक करते हुए  पुरुष दिखे। उनके रसोईघर में चूल्हे और मिट्टी के बर्तन थे। कई सुराहियाँ बाँस से लटकी हुई नज़र आईं जो वास्तव में कबूतर के घोंसले थे। जहाँ हम खड़े थे उसके पास एक अंधेरा कमरा था जिसमें बिना पूछे मैं चली गई। शायद वहाँ जाना निषेध था। उसमें एक ओर पत्ते से बने दोने और पत्तल रखे हुए थे। दूसरी तरफ चार-पाँच मिट्टी की सुराही थी। उसके अंदर चावल था जिसे सड़ाया जा रहा था। इसका प्रयोग अगले दिन के त्योहार में पुरुषों को प्रसाद के रूप में देने के लिए किया जाता है। इसे वहाँ की सामान्य भाषा में ‘हँड़िया’ कहा जाता है। इसे अधिक पीकर आदिवासी समाज में लोग नशा करते हैं। इस नशे ने ही कई तरह से आदिवासियों का जीवन नष्ट किया है। जिस गाँव हम जा रहे थे, उस गाँव में ज़्यादातर लोग खेती से अपना जीवन यापन करते हैं। खेती और हँड़िया ही इनके जीवन की दिनचर्या बनती जा रही है।

इस तरह हमलोग पटकिता गाँव पहुँचे ।इस‌ गाँव के प्रधान की मृत्यु होने के कारण सचिवालय में ताला लगा था। सचिवालय के बाहर गुनगुनी धूप में मासूम बकरी के बच्चे आपस में खेलते दिखे। गाँव में जाते ही मोबाइल का नेटवर्क गायब हो गया था। जब मैंने एक ग्रामीण महिला से पूछा कि ‘नेटवर्क किस तरफ आएगा?’ तो उन्होंने इमली के पेड़ की तरफ़ इशारा किया। मैं उस ओर नेटवर्क की तलाश में निकल पड़ी। नेटवर्क का तो ज़्यादा पता न चला पर इमली ज़रूर मिल गयी। वह ऊपर पेड़ पर लटक रही थी। मुझे आस‌पास झाड़ दिखे पर वैसा कोई डंडा नहीं दिखा जिससे मैं इमली तोड़ सकूँ। मैंने एक-दो पत्थर भी उठाकर मारा, पर असफल रही। तभी दो लड़कियाँ मेरी ओर आती हुई मुझे दिखाई दीं। एक लड़की विवाहित गृहिणी लग रही थी और दूसरी कॉलेज की विद्यार्थी। मुझे देखते ही उन्होंने यह‌ तो समझ लिया कि मैं बाहर से आई हूँ। उन्होंने पूछा आप यहाँ क्यों आईं हैं? मैंने अपने आने का उद्देश्य बताया। इसके साथ ही इमली पाने की लालसा भी ज़ाहिर की। उस लड़की ने अगल-बगल देखा और एक लकड़ी उठा लाई और एक से दो बार के वार  में ही उसने इमली तोड़कर मुझे दे दिया । उसने इमली तोड़ने से पूर्व मुझसे यह पूछा भी था कि आपको कितनी इमली चाहिए? ज़्यादा लेकर खराब नहीं करनी है। यही हमारे यहाँ का सिद्धांत है। इमली तोड़कर देने के बाद वह तो चली गई और जाते-जाते अपने अंदर के आदिवासी मन की एक सीख मुझे दे गई। मुझे लगा शहर ने ज़्यादा से ज़्यादा जमा करने की प्रवृत्ति दी है जबकि यहाँ किसी बात की लूट की कोई होड़ नहीं मची है ।

इमली खट्टी और कच्ची थी जिसे मैंने खा लिया। सामने एक सुंदर साफ-सुथरा तालाब था। मैं तालाब और उसमें खिले कमल देखने के लिए बढ़ चली। उसके आगे दूर एक पहाड़ था। प्रकृति की सुंदर छवि धूप में खिलखिला रही थी। जाने का मन न था पर देर ज़्यादा न हो इसीलिए मैं वापस लौट आई। लौटते ही एक स्थानीय निवासी से भेंट हुई। उनसे गाँव की व्यवस्थाए वं नियम के संबंध में मेरी काफ़ी बातचीत हुई। उस व्यक्ति ने स्वयं घर से भागकर विवाह किया था परन्तु आदिवासी महिलाओं को ऐसा अधिकार नहीं है। उसके तीन बच्चे थे। सारी बातचीत का विषय सगोत्रीय विवाह न होना ,पुरुषों का ज़मीन पर अधिकार, हल चलाने के अधिकार, छत छाने के अधिकार से संबंधित था। इन सारी व्यवस्था में जब मैंने बदलाव के संबंध में पूछा तो उन्होंने कहा कि इन सब के बीच कोई परिवर्तन करें तो संभव हो सकता है। अकेले हमारे करने से नहीं होगा। उन्होंने यह भी बताया कि आप आदिवासी हो या न हो। आप यहाँ रहना चाहें तो रह सकते हैं। खेतों में काम करना होगा और सामुदायिक तौर पर सहयोग के साथ रहना होगा।

जहाँ मैं बात कर रही थी उसी के ठीक सामने वाले घर की महिला गोबर से अपना आँगन लीप रही थी। वह चापाकल से पानी भरने आईं थीं। उनसे बात करते हुए पता चला कि यह इमली का पेड़ इनका ही है। उनके घर की तरफ़ बढ़ते हुए, उन्होंने अपने आँगन के बगीचे दिखाए। उनके घर के पुरुषों से भी काफ़ी बातचीत हुई। उन्होंने कहा कि सामाजिक व्यवस्था में पुरुष – वर्चस्व पर अकेले नहीं सोचा जा सकता है। सभी के सामुदायिक प्रयोग से परिवर्तन संभव हो पाएगा । वे अपने स्तर पर अपनी पत्नी की सहायता करते हैं। उनका पुत्र आठ-दस वर्ष का है जिसका नाम विष्णु है। वह मेरा दोस्त बन गया । जब मैंने उससे पीने के लिए पानी माँगा तो वह अंदर चला गया और थोड़ी देर से पानी लेकर आया। पानी गर्म था। उसमें मिट्टी की ख़ुशबू आ रही थी। उसने मुझे चूल्हे में लकड़ी जलाकर झरने का पानी गर्म करके दिया था। मेरे आश्चर्य का ठिकाना न था कि इतने छोटे लड़के को चूल्हा जलाने आता है। विष्णु के पिता ने बताया कि हम अपने बच्चों को साथ-साथ खेतों में ले जाते हैं। घरेलू कामों में सहयोग के लिए कहते हैं। यह उनके जीवन जीने का तरीका है। उनका मत है कि जैसे विद्यालयी शिक्षा आवश्यक है, वैसे ही घर, खेत, द्वार के काम जीवन में शिक्षा का हिस्सा है। इससे अपने परिवार, समाज, परंपरा और जीवनशैली के प्रति आस्था एवं विश्वास बच्चों में बढ़ते हैं। उनके आँगन में उबले धान सूखने के लिए रखे हुए थे जिसे कोई बच्चा हाथ नहीं लगा रहा था क्योंकि उसके सूखने का महत्त्व और ज़रूरत वे जानते थे।

इसके अलावा मैंने देखा। अंदर संयुक्त परिवार की गृहस्थी जमी हुई थी। भ्रमण का दिन बृहस्पतिवार था। इस दिन पूरे घर को गोबर से लीपकर चावल पीसकर आँगन, चौखट,द्वार पर अल्पना बनायी जाती है। उस घर की महिलाओं से बातचीत के दौरान उन्होंने यह बताया कि उन्हें समाज में नीचे और कम अधिकार की सहायिका माना जाता है। उनके जन्मगत इस भेद को दूर करने की नियति का इंतज़ार उन्हें भी है। इसके बाद मैंने एक-दो घरों के बगीचे से संतरे तोड़े। किसी प्रकार की कोई रोक-टोक नहीं थी क्योंकि शर्त यही थी कि आप चीज़ खराब न करें।

हम उस गाँव से आगे एक ‘बिदु-चाँदन पुस्तकालय’ भी गए। वह छात्रों के लिए प्रतियोगी परीक्षा से लेकर खेलकूद तक के प्रशिक्षण की व्यवस्था मुफ़्त में करता है। यह पुस्तकालय उस गाँव में नौकरी करने वाले लोग अपने सहयोग से चलाते हैं। इस पुस्तकालय को किसी प्रकार का कोई सरकारी अनुदान नहीं मिलता है। विद्यार्थियों से भी कोई राशि नहीं ली जाती है। लगभग सात-आठ वर्षो से यह चल रहा है। मिरजा हाँसदा पुस्तकालय के एक कार्यकर्ता हैं जिनसे हमारी मुलाक़ात हुई ।वे सरकारी विद्यालय के बच्चों को पढ़ाते हैं। ‘बिदु-चाँदन’आदिवासी समाज में सरस्वती की तरह माने जाते हैं। मान्यता है कि संथाली भाषा की ‘ओलचिकी’ लिपि इन्होंने ही बनाई थी। बिदु-चाँदन प्रेमी-प्रेमिका थे। वे गाँववालों से बचकर एक दूसरे से वार्तालाप के लिए दीवार पर कुछ प्रतीक चिह्न बनाते थे, जिसे केवल ये दोनों ही समझते थे। इस तरह‘ओलचिकी लिपि’का जन्म हुआ। पं. रामचंद्र मुर्मू ने सन् 1925 में संथाली भाषा की लिपि ‘ओलचिकी’ को सबके सामने प्रस्तुत किया था ।

इसके बाद हमने बगल के दूसरे गाँव में ग्रामसभा के प्रधान से मुलाक़ातकी। उनसे बातचीत के दौरान गाँव के बहुत पुराने और वृद्ध व्यक्ति ने ‘बिदु-चाँदन’ के गीतों को अपने पारम्परिक वाद्ययंत्र ‘बनम’ बजाकर सुनाया। ‘बनम’ के तार घोड़े की पूँछ के बाल से बनते हैं। गाँव की व्यवस्था और सामाजिक नियमों पर चर्चा करते हुए स्त्रियों की भागीदारी में परिवर्तन की संभावनाओं को भी कुछ लोगों ने स्वीकार किया। कुछ लोग बिफर गए। उनका मत था कि परंपरा में बहुत से परिवर्तन को स्वीकार किया है परंतु ज़मीन, छत, हल एवं गैर– आदिवासी से विवाह पर महिलाओं को अधिकार देने से उनकी सारी परम्परा का आधार ही नष्ट हो जाएगा। वास्तव में पुरुषों के वर्चस्व के कुछ अंश ही बचे हैं जिन्हें वे बचाए रखना चाहते हैं ।

वहाँ से हम भोजन के लिए गए। हमने पत्ते से बने पत्तल में भोजन किया। वहाँ किसी के भी घर बिना किसी की इजाज़त के जा सकते हैं। उनके सभी घर प्राय: मिट्टी के बने हुए थे। उन पर अपनी पारम्परिक कलाकृतियों द्वारा दीवार सजायी गयी थी । घर के बाहर मिट्टी का चबूतरा बना हुआ था। उन्होंने दीमक से बचाने के लिए पुआल और गोबर मिलाकर लीप रखा था। वे बैलों का प्रयोग छोटे-छोटे खेतों में करते हैं। ट्रैक्टर महिला चला सकती है परंतु पारम्परिक हल को हाथ लगाना भी अपराध माना जाता है। गाँव की मदईत व्यवस्था में नौकरी करने वाले युवाओं के कारण कमी आयी है। खेतों में काम करने वाले पुरुष उन महिलाओं की सहायता करते हैं, जिनके घर में पुरुष नहीं हैं। प्रत्येक घर में वृद्ध,युवा, बच्चे थे। सामूहिकता एवं संयुक्त परिवार थे। आदिवासी ग्रामीण पुरुष अपने ग्राम से जुड़े और खेती-बारी में रहना ज़्यादा पसंद कर रहे हैं। वह खेती का समय नहो होने पर दिहाड़ी मज़दूरी के लिए गुजरात, बंगाल, राँची, केरल, कर्नाटक कुछ महीनों के लिए चले जाते हैं। या सरकारी योजनाओं के तहत किसी काम में मज़दूरी करने लगते हैं, परंतु धन अर्जित करने के लिए पूरी तरह से शहरों का रुख़ नहीं करते हैं। वह खेती द्वारा जीविकोपार्जन चला रहे हैं। आँगन में ही सब्ज़ी उगाते हैं। केवल तेल, कपड़े और अन्य वस्तुओं के लिए बाज़ार की आवश्यकता महसूस करते हैं।

गाँव में सालगेजी के माता-पिता से भी मेरी मुलाक़ात हुई। वे नब्बे वर्ष से अधिक के हो गए हैं परंतु उनकी सक्रियता में बच्चों-सी चहक थी। उन्होंने बहुत स्नेह एवं प्रेम दिया। मुझे अपने आँगन के संतरे देते हुए उसे खाने का समय और शारीरिक उपयोगिता भी बताई। वे घर के बाहर तक छोड़ने भी आए। उन दोनों के चेहरे की चमक ने मुझे बहुत प्रभावित किया। उनकी हथेलियों को जब मैंने हाथ लगाया तब लगा काश, मेरे पास कोई जादू होता और उनके हाथों में श्रम के जो महाकाव्य बने हैं, उन्हें मैं खींच लेती।

ग्रामसभा के सदस्यों से भेंट के दौरान कई वृद्ध महिलाएँ किनारे बैठी थीं। उन सभी ने अपने नाम द्वारा अपना परिचय दिया। कई महिलाएँ अपना नाम भूल गई थीं, उनका सोचते हुए अपना नाम बताना इसी का परिचायक है। वे अपने परिवार और दूसरे के लिए करने में इतनी व्यस्त रहीं पूरे जीवन कि उन्हें अपना नाम तक याद नहीं । हम बाहर से जिस आदिवासी समाज को इतना सुंदर और सुसज्जित प्रगतिशील मानते हैं। उनके अंदर वास्तव में पुरुषों का नकारापन, महिलाओं का आश्रय पाने की मजबूरी है। वे काम करती हैं ताकि जीवन में पैसे की कमी कम हो सके। ज़मीनी हकीकत यह है कि हर हाल में पुरुषों का ही अधिकार है। उनकी मजबूरी है कि उन्हें पति, पिता, भाई के आश्रय में ही रहना है। उम्मीद है कि व्यवस्था कभी न कभी बदलेगी।

कई महिलाएँ अब अधिकार की और माँग नहीं कर रही हैं क्योंकि उन्हें घर-बाहर दोनों जगह अकेले काम करना पड़ रहा है। पुरुष नशे में पड़े रहते हैं। यदि हल, छत, ज़मीन का अधिकार भी मिल जाएगा तो पुरुष और भी कुछ नहीं करेंगे ।महिलाएँ पढ़ाई से लेकर काम,अपने परिवार और खुद की आत्मनिर्भरता के लिए करती हैं। ज़मीन पर अधिकार न होने के कारण उनकी सारी मेहनत किसी अन्य के हाथ चली जाती हैं। महिला की मृत्यु पर उन्हें दूर खेतों में दफ़न किया जाता है जबकि पुरुषों को अपने ही आँगन में दफ़नाया जाता है। यदि किसी लड़की ने विवाह नहीं किया है तब भी उसे दूर खेत में ही दफ़न किया जाता है। माना जाता है कि महिला का अधिकार नहीं है। वह दूसरे घर से आई है। उसका इस ज़मीन पर अधिकार नहीं पुत्र का ही संपत्ति पर अधिकार होता है। कमाल की बात है कि महिला राष्ट्रपति, मुख्यमंत्री, सांसद, विधायक होकर सत्ता संभालने का अधिकार प्राप्त कर लेती हैं परंतु उसे हल, छत, ज़मीन पर अधिकार नहीं है ।

संपर्क – 9279580842/

[email protected]

 

लिटिल थेस्पियन का 14वां राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव 28 फरवरी से

कोलकाता ।  लिटिल थेस्पियन, 28 फरवरी 2025 से 5 मार्च 2025 तक ज्ञान मंच में अपना 14वां राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव जश्न-ए-अज़हर आयोजित करने जा रहा है। संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार और अज़हर आलम मेमोरियल ट्रस्ट द्वारा वित्तीय सहायता प्राप्त इस महोत्सव को प्रसिद्ध नाटककार श्री प्रताप सेहगल को समर्पित किया गया है। प्रताप सहगल साहित्यिक जगत के सबसे प्रतिष्ठित व्यक्तियों में से एक हैं, जिन्होंने अपनी यात्रा विचारशील कविताओं और कहानियों से शुरू की थी। अपनी साहित्यिक यात्रा के दौरान, उनकी रुचि नाटक लेखन में बढ़ी, जिसके बाद उन्होंने नाटक लेखन और कविता पर विशेष रूप से समीक्षाएं और आलोचनाएं लिखना शुरू किया। इससे व्याख्या के कई स्तर खुल गए। नाटक में विज्ञान नाटकों के लेखन को पुनर्जीवित करने के लिए जिम्मेदार, उन्होंने अपनी अमिट छाप हर साहित्यिक विधा पर छोड़ी है जिसे उन्होंने लिखा है। नाटककार के रूप में उनके उत्कृष्ट योगदान के लिए, संगीत नाटक अकादमी, भारत सरकार ने उन्हें संगीत नाटक अकादमी अमृत पुरस्कार 2022 से सम्मानित किया है। महोत्सव में उनके द्वारा लिखित 9 नाटकों (लिटिल थेस्पियन के सहित) का मंचन किया जाएगा। सेहर, शांतिनिकेतन अपने नाटक कोई और रास्ता का मंचन करेगा, जिसके निर्देशक मृत्युंजय प्रभाकर हैं। दास्तान थिएटर स्टूडियो, ग्वालियर अपने नाटक अन्वेषक का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन आयाज़ खान ने किया है। संतोषपुर अनुचिंतन, कोलकाता अपना नाटक बच्चे बड़े हो रहे हैं, का मंचन करेगा, जिसके निर्देशन गौरव दास हैं । यूनिकॉर्न एक्टर्स स्टूडियो, नई दिल्ली अपना नाटक अंतराल का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन गौरी देवल ने किया है । अनुरगना थिएटर ग्रुप, नई दिल्ली अपने नाटक तीन गुमशुदा लोग का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन अशरफ अली ने दिया है । कमला शंकर धनवंती फाउंडेशन, दिल्ली अपना नाटक रामानुजन का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन हिमांशु हिमनिया ने किया है । समुख, नई दिल्ली अपना नाटक बुल्लेशाह का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन अरविंद सिंह और मंच रंग मंच, अमृतसर अपना नाटक रंग बसंती का मंचन करेगा, जिसका निर्देशन केवल धालीवाल ने किया है । नाट्य महोत्सव में दो दिनों का रंग संवाद होगा, जिसमें डॉ. अरुण होता (कोलकाता), डॉ. मोहम्मद काज़िम (दिल्ली), डॉ. ऋषि भूषण (कोलकाता), डॉ. विनय मिश्रा (कोलकाता) और श्री आयाज़ खान (ग्वालियर) ‘प्रताप सेहगल के नाटकों में ऐतिहासिक प्रासंगिकता’ विषय पर चर्चा करेंगे, जबकि डॉ. शुभ्रा उपाध्याय (कोलकाता), डॉ. इतु सिंह (कोलकाता), डॉ. रेश्मी पांडा मुखर्जी (कोलकाता), डॉ. कृष्ण कुमार श्रीवास्तव (आसनसोल), श्री अशरफ अली (दिल्ली) और श्री गौरव दास (कोलकाता) ‘प्रताप सेहगल के नाटकों में मानवीय अस्तित्व की खोज’ विषय पर अपने विचार साझा करेंगे। चौथा अजहर आलम मेमोरियल अवार्ड प्रताप सेहगल को प्रदान किया जाएगा। लिटिल थेस्पियन पांच रंगकर्मियों को उनकी रंगकला के प्रति समर्पित सेवा के लिए सम्मानित करेगा: श्री पवन मास्करा (रंग अभिनेता),जीतेंद्र सिंह (नाट्य निर्देशक), सीमा घोष (रंग अभिनेत्री), श्री ख़ुर्शीद इकराम मन्ना (रंग कलाकार) और डॉ. गगन दीप (नाट्य निर्देशक)।इस नाट्य महोत्सव में लिटिल थेस्पियन की दूसरी नाट्य प्रतियोगिता का अंतिम चरण भी होगा, जिसमें प्रतियोगिता के पहले चरण में चयनित तीन सर्वश्रेष्ठ टीमें अपने नाटक प्रस्तुत करेंगी और विजेताओं का चयन एवं उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। दूसरी आलेख लेखन प्रतियोगिता के विजेताओं की भी घोषणा की जाएगी और उन्हें पुरस्कृत किया जाएगा। कुल मिलाकर, जश्न-ए-अज़हर में रंगमंच के सभी पहलुओं को शामिल गया है।

चैंपियंस ट्रॉफी का प्रबल दावेदार है भारत : सौरभ गांगुली

वुरा के ब्रांड अम्बास्डर बने
कोलकाता । बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष एवं पूर्व भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली भारत को चैंपियंस टॉफी के मजबूत दावेदारों में से एक मानते हैं। गांगुली का मानना है कि आज भारत एक मजबूत टीम है और पाकिस्तान को बहुत अच्छा खेल दिखाना होगा। एक संवाददाता सम्मेलन में क्रिकेट, चैंपियंस ट्रॉफी और वर्तमान भारतीय टीम पर बातें करते हुए गांगुली ने पाकिस्तान में खेलने की अपनी यादें भी ताजा कीं । उन्होंने कहा कि 1996, 2004, 2007 में पाकिस्तान जाकर खेलना एक यादगार अनुभव रहा है। उन्होंने कहा कि भारत पाकिस्तान के साथ बहुत से मैच खेल चुका हूँ। बहुत से विश्व कप में खेल चुका हूँ। 1996 में इंडिपेंडेंस कप फाइनल जहां मैंने शतक बनाया था। 2004 में बतौर कप्तान मेरी पहली सीरीज पाकिस्तान के साथ थी जहां हमने टेस्ट में पाकिस्तान को हराया था । क्रिकेट को लेकर पाकिस्तान के साथ बहुत सी अच्छी यादें जुड़ी हैं। जावेद मियांदाद के छक्के मैंने देखे हैं और उसके बाद भारतीय टीम में वह बदलाव भी देखा है, जिसके बाद वह ऐसी टीम बनी जिसने पाकिस्तान को हर प्रारूप में हराया है। उन्होंने कहा, ‘भारत सीमित ओवरों की बेहद मजबूत टीम है। पाकिस्तान के खिलाफ उसके रिकॉर्ड से पता चलता है कि भारत ने लंबे समय से उसे पर दबदबा बना रखा है। भारत न सिर्फ पाकिस्तान के खिलाफ जीत का प्रबल दावेदार है बल्कि वह टूर्नामेंट जीतने का भी प्रबल दावेदार है।’
आज के समय में 15 -20 साल की बात करें तो यह मुकाबले काफी एकतरफा हो गये हैं और यह मैं पूरे आदर के साथ कह रहा हूँ कि भारतीय टीम आगे बहुत आगे निकल चुकी है। पाकिस्तान को भारत को हराने के लिए बहुत अच्छा खेलना पड़ेगा । मैं भारत को चैंपियंस टॅाफी की टीम नहीं बल्कि ट्रॉफी के मजबूत दावेदार के रूप में देखता हूँ।
चैंपियंस ट्रॉफी के चार दावेदार मेरी नजर में न्यूजीलैंड, जिसने पाकिस्तान को हराया है। अगर भारत पाकिस्तान को हरा देता है तो सम्भवतः पाकिस्तान मुकाबले से बाहर हो जाएगा तो मैं भारत और न्यूजीलैंड को एक ग्रुप से दावेदार के रूप में देख रहा हूँ ।
दूसरे ग्रुप में इंग्लैंड, दक्षिण अंफ्रीका, ऑस्ट्रेलिया और अफगानिस्तान हैं। ऑस्ट्रेलिया को लेकर जरा सा चिंतित हूं क्योंकि पैंट कमिंस नहीं हैं, मिचेश स्टार्क नहीं हैं। तीन तेज गेंदबाज नहीं हैं और पाकिस्तान में फ्लैट पिच पर गेंदबाजी करनी होगी। दक्षिण अफ्रीका, इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया में कोई दो टीम । सम्भवतः भारत और न्यूजीलैंड अंतिम दो टीमें फाइनल के लिए हो सकती हैं। ‘भारत बहुत मजबूत टीम है विशेष कर बल्लेबाजी में। पंत बहुत अच्छा खिलाड़ी है लेकिन राहुल का वनडे में शानदार रिकॉर्ड है। इसलिए मुझे लगता है कि गौतम गंभीर राहुल का समर्थन कर रहे हैं।’ उन्होंने कहा, ‘इन दोनों में से किसी एक का चयन करना बेहद मुश्किल काम है क्योंकि दोनों ही बेजोड़ खिलाड़ी हैं।’
भारत प्रतिभाओं से भरा पड़ा है। कोई भी अच्छा खेल सकता है। चयनकर्ता और कोच चुनने के लिए स्वतंत्र हैं। भारत के पास एक नहीं पांच शुभमन गिल हैं जो अच्छा खेल सकते हैं। जडेजा, हार्दिक पांडया, सूर्यकुमार यादव हैं। भारत एक मजबूत टीम है। अभिषेक शर्मा अच्छे खिलाड़ी हैं । गांगुली ने इसके साथ ही उम्मीद जताई कि विस्फोटक सलामी बल्लेबाज अभिषेक शर्मा जल्द ही वनडे क्रिकेट में डेब्यू करेंगे। उन्होंने कहा, ‘अभिषेक शर्मा ने इंग्लैंड के खिलाफ टी20 श्रृंखला में जिस तरह से बल्लेबाजी की वह बाएं हाथ के बल्लेबाज के लिए अविश्वसनीय थी। इसका कोई कारण नजर नहीं आता कि वह वनडे क्रिकेट नहीं खेल सकता है।अभिषेक शर्मा जैसा बल्लेबाज दुनिया की किसी भी टीम में जगह बना सकता है।’दुबई में स्पीनर की जरूरत है तो मोहम्मद शमी, हार्दिक पांडया, कुलदीप फ्लैट पिच पर अच्छा करेंगे।
बॉक्स
18-20 महीने में बंगाल में तीसरा स्टील प्लांट शुरू हो जाएगा
‎कोलकाता । सौरव गांगुली की तीसरी फैक्ट्री पश्चिम मेदिनीपुर जिले में लगाई जा रही है। 0.8 मिलियन टन प्रति वर्ष क्षमता वाले इस स्टील प्लांट की अनुमानित लागत 2500 करोड़ रुपये है। गांगुली ने कहा कि हम तीसरा स्टील प्लांट लगा रहे हैं। दिक्कत यह है कि सबको उम्मीद है कि स्टील प्लांट दो महीने में बनकर तैयार हो जाएगा पर ऐसा तो होता नहीं है। एक फैक्ट्री बनाने में समय लगेगा। उम्मीद है कि अगले 18-20 महीने में उत्पादन शुरू हो जाएगा। 2007 से ही हमारे दो प्लांट हैं जिनमें से एक आसनसोल में और दूसरा पटना में है। यह तीसरा और सबसे बड़ा प्लांट है जिसके लिए बहुत सी चीजों पर अनापत्ति प्रमाणपत्र और मंजूरी लेनी पड़ेगी। हमारे दो प्लांट में 10 हजार लोगों को काम मिला है और बहुत से और लोगों को रोजगार मिलेगा। वुरा से पश्चिम बंगाल को भी फायदा होगा।अहमदाबाद में भी वुरा के प्लांट हैं। वूरा के निदेशक अमित चौधरी ने कहा, “दादा के इस ब्रांड में शामिल होने से न केवल हमारे ब्रांड की मार्केट में उपस्थिति मजबूत होगी, वुरा एक वैश्विक अग्रणी कंपनी है निर्माण रसायनों का निर्माण करती है, जिसमें टाइल और पत्थर के चिपकने वाले, स्टोन केयर सीलर और क्लीनर, विशेष वॉटरप्रूफिंग और आईएसओ, आईएन और ईएन गुणवत्ता मानकों के अनुसार विश्व स्तरीय जर्मन तकनीक के साथ तैयार किए गए विभिन्न निर्माण रसायन शामिल हैं।

समुद्र में डूबी कृष्ण की नगरी द्वारका के साक्ष्य जुटाएगा एएसआई, खोज शुरू

नयी दिल्ली। समुद्र में डूबी भगवान कृष्ण की नगरी द्वारका के सभी पहलुओं और साक्ष्य जुटाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) ने खोज शुरू कर दी है। एएसआई के अतिरिक्त महानिदेशक (पुरातत्व) प्रो. आलोक त्रिपाठी के नेतृत्व में पांच पुरातत्वविदों की एक टीम ने मंगलवार को द्वारका तट पर पानी के नीचे खोज शुरू की। इस टीम में निदेशक (खुदाई एवं अन्वेषण) एचके नायक, सहायक अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. अपराजिता शर्मा, पूनम विंद और राजकुमारी बारबिना ने प्रारंभिक जांच के लिए गोमती क्रीक के पास एक क्षेत्र का चयन किया है। एएसआई के अनुसार इस अन्वेषण के माध्यम से द्वारका नगरी के सांस्कृतिक और ऐतिहासिक साक्ष्य जुटाया जाएगा। पानी के अंदर की जा रही खोज भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिए एएसआई के मिशन में एक महत्वपूर्ण कदम है। एएसआई के नवीनीकृत अंडरवाटर पुरातत्व विंग (यूएडब्ल्यू) को हाल ही में द्वारका और बेट द्वारका में अपतटीय सर्वेक्षण और जांच करने के लिए पुनर्जीवित किया गया है। यूएडब्ल्यू 1980 के दशक से पानी के नीचे पुरातात्विक अनुसंधान में सबसे आगे रहा है। 2001 से विंग बंगाराम द्वीप (लक्षद्वीप), महाबलीपुरम (तमिलनाडु), द्वारका (गुजरात), लोकतक झील (मणिपुर) और एलीफेंटा द्वीप (महाराष्ट्र) जैसे स्थलों पर अन्वेषण कर रहा है। इससे पहले अंडरवाटर पुरातत्व विंग ने 2005 से 2007 तक द्वारका में अपतटीय और तटवर्ती खुदाई की थी। नौसेना और पुरातत्व विभाग की संयुक्त खोज पहले 2005 फिर 2007 में एएसआई के निर्देशन में भारतीय नौसेना के गोताखोरों ने समुद्र में समाई द्वारिका नगरी के अवशेषों के नमूनों को सफलतापूर्वक निकाला। वर्ष 2005 में नौसेना के सहयोग से प्राचीन द्वारिका नगरी से जुड़े अभियान के दौरान समुद्र की गहराई में कटे-छंटे पत्थर मिले और लगभग 200 नमूने एकत्र किए गए। गुजरात में कच्छ की खाड़ी के पास स्थित द्वारिका नगर समुद्र तटीय क्षेत्र में नौसेना के गोताखोरों की मदद से पुरा विशेषज्ञों ने व्यापक सर्वेक्षण के बाद समुद्र के भीतर उत्खनन कार्य किया गया और वहां पड़े चूना पत्थरों के खंडों को भी ढूंढ निकाला।पुरातत्वविद् प्रो. एसआर राव और उनकी टीम ने 1979-80 में समुद्र में 560 मीटर लंबी द्वारिका की दीवार की खोज की। उस दौरान उन्‍हें वहां पर बर्तन भी मिले, जो 1528 ईसा पूर्व से 3000 ईसा पूर्व के हैं।  इसके अलावा सिन्धु घाटी सभ्‍यता के भी कई अवशेष उन्‍होंने खोजे। उस जगह पर भी उन्‍होंने खुदाई में कई रहस्‍य खोले, जहां पर कुरुक्षेत्र का युद्ध हुआ था।