Saturday, May 24, 2025
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समाज- साहित्य-संस्कृति और रवीन्द्रनाथ टैगोर

डॉ. वसुन्धरा मिश्र
भवानीपुर एजूकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता

मनुष्य की सारी मानसिकता, देश और काल के व्यवधान को चीरकर क्यों कहाँ और कैसे अपना सामंजस्य और आश्रय खोज लेती है और अनजाना अनदेखा क्षितिज सारी दूरी समाप्त कर अपने सतरंगी स्वरूप से जीवन को श्रीमंडित कर देती है। जॉन स्ट्रैची ने प्रसिद्ध दार्शनिक ह्यूम पर लिखते हुए मानवता के दो गुणों पर चर्चा करते हुए यही पाया कि किसी भी व्यक्ति को उसका व्यक्तित्व और कर्तृत्व की श्रेष्ठता ही उसे महान बनाता है और उसके जीवन – लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सर्वोत्तम समर्पण और गहरी लोकोत्तर मानवीय संवेदना। ये दोनों गुणों से ही निःस्पृहता, त्याग, संकल्प और प्रेम उद्भूत होते हैं जो अनासक्त और निष्काम कर्म का संपादन कर मनुष्य को वास्तविक उच्चता, गहनीयता और श्रेष्ठता से विभूषित करते हैं।
प्रसिद्ध चीनी दार्शनिक ताओ के शब्दों में मौन अस्तित्व और कर्तृत्व ही महानता की उज्जवल आभासें स्वतः युक्त होकर आलोक रेखा बन जाती है, वे ही वस्तुतः सारस्वत और महान हैं। उनका व्यक्तित्व न खंडित होता है और न विभक्त। सर्वात्म समर्पण और लक्ष्य पर लगी उनकी निर्मिमेष दृष्टि उन आदर्शों का सूत्रपात करती है जिनसे समाज अपना मार्ग निर्धारित कर आगे बढ़ता है।
शील, परोपकार, मानवीय संवेदना ही मनुष्यत्व है जिसके लिए महर्षि व्यास ने कहा है’ परोपकार :पुष्पाय पापाय पर पीडनम्’ सचमुच वही मनुष्य पुण्यव्रती होता है।
जब हम किसी साहित्यकार का मूल्यांकन करते हैं तो हम उसका आकलन उनकी उत्कृष्ट रचनाओं से करते हैं न कि विफलताओं से, जिनसे होकर वह गुजरता है।इतना ही नहीं, जब हम महान संस्कृतियों और सभ्यताओं की ओर देखते हैं तो हमें उनमें विश्वजनीन मूल्यों के तत्वों की खोज करनी चाहिए ताकि ये तत्व मानवता की सच्ची विरासत बन सकें।
मनुष्य प्रेम और सृजन के लिए पैदा हुआ है, न कि घृणा और विनाश के लिए। नये राष्ट्रों के अभ्युदय से, पराधीन लोगों की स्वातंत्र्य-संबंधी उत्कट भावना से, विश्व की संपदा में गरीब लोगों की अधिकाधिक हिस्सा पाने की मांग से, कतिपय राष्ट्रों द्वारा जातिभेद की नीति अपनाने से और गरीब तथा अमीर राष्ट्रों के बीच बढ़ती विषमता से यह संसार तनावों से भर गया है।
आज विश्व को आध्यात्मिक दृष्टि की ओर उन्मुख करने की आवश्यकता है। भारत ने संसार में इतने कार्य किए हैं, फिर भी हम किसी आशंका से भयभीत हैं। यही कारण है कि मनुष्य का स्वरूप द्वंद्वात्मक है। उसमें महान कार्य करने का भी सामर्थ्य है तो बुरे कार्य करने में भी उतना ही समर्थ है। आज मनुष्य की रचनात्मक भूमिका में कमी आती जा रही है, उसे फिर से अपनी शक्ति को सकारात्मक रूप देने की आवश्यकता है।
विज्ञान, उद्योग, शिक्षा और संस्कृति हमें भौतिक और बौद्धिक स्तरों पर जोड़ते हैं। हमें मानवीय मूल्यों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जिसमें मानव गरिमा और स्वतंत्रता के शाश्वत मूल्य अन्तर्ग्रथित हैं। मानवीकरण की ओर बढ़ते विश्व में सांस्कृतिक विविधता सौन्दर्य और रचनात्मकता को जन्म देती है।
साहित्य, धर्म, सौन्दर्य शास्त्र, शिक्षा, ग्रामोद्धार, राष्ट्रीयता, अंतर्राष्ट्रीयता, अंतर्जातीय संबंध श्रृंखला आदि सभी विषयों को साहित्य और संस्कृति में समेटने का महत्वपूर्ण कार्य किया है साहित्य मनीषी कवि रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने (१८६१-१९४१)।वे पूर्ण मानव कहे जाते हैं जिन्होंने दो राष्ट्रों के राष्ट्र गीत लिखे जो अपने-आप में ही विलक्षण बात है। उनकी उपस्थिति सिर्फ साहित्यिक ही नहीं बल्कि संस्कृति नायक की भी रही है। व्यक्ति से कवि को विच्छिन्न करना भी आसान नहीं है।
शिशिर कुमार घोष ने भारतीय साहित्य के निर्माता रवीन्द्र नाथ ठाकुर साहित्य अकादमी से (१९८६) प्रकाशित पुस्तक में लिखा है कि एक नहीं, उन्हीं के शब्दों में, रवीन्द्र नाथ अनेक हैं। वे राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय ख्याति के व्यक्ति थे। जीवन के उत्तरार्द्ध में उन्होंने कहा कि मैं आपमें से ही एक हूँ। पिता महर्षि देवेन्द्र नाथ की चौदहवीं संतान थे और नौकरशाही की छाया में पले बढे़। पिता के कठोर अनुशासन में बच्चे अपना जीवन बिताते थे। हर्ष और विस्मय के विशाल कैनवास में उन्होंने बचपन से ही अपने साहित्य, संगीत और भाषा के भावों को गढ़ लिया था। भानुसिंहेर पदावलि आदि उनकी बाल्यावस्था की रचनाधर्मिता के श्रेष्ठ नमूने हैं। उन्होंने निबंध, नाटक, कहानी, उपन्यास, गीत, दर्शन आदि सबपर लिखा।
रहस्यवादी, आध्यात्मिक यथार्थ की अनुगूँज उनके साहित्य की आंतरिक बनावट है। ‘विराट् लघु प्रतिच्छायित है, अनंत रूपों में’।
जमींदार घराने के राजकुमार के रूप में कई कार्य चाहे जमींदार का हो, शिक्षा का हो, संपत्ति के बंँटवारे का हो, बंगभंग का मामला हो, राजनीति का हो, ग्रामीण उत्थान का हो या एक विश्व के निर्माण के पक्षधर का हो, वे विविध विषयों के ज्ञाता थे। रवीन्द्र नाथ ठाकुर का जीवन तनावों और कौतूहलों से भरा था, लेकिन वह जीवन की अंतिम घड़ी तक न केवल रचनात्मक बल्कि जीवंत भी बने रहे।
रवींद्र नाथ मानते हैं कि भीतर के यथार्थ की चेतना जब बाहर के यथार्थ से संपर्क का माध्यम बनती है तो वह कल्पना और गहन अनुभूति से आती है। इसके लिए अहं के विस्तार को जाना जाए और अपनी अनंतता के साथ उस पार का भी दर्शन किया जाए। कहा जा सकता है कि कला पुल है, छोटे ‘अहं’ और बड़े ‘अहं’ के बीच का पुल। (पृष्ठ ७८, शिशिर घोष
)
कला ही हमारी मानवता को परिभाषित करती है, हमारे सामाजिक सरोकार बढ़ाती है और हमें ऊँचा तथा आगे बढ़ाती है। हमारे सच्चे स्वरूप का प्रतीक, यह सभ्यता और संस्कृति की हृदयस्थली भी है। कवि की ये पंक्तियाँ देखें – –
हे सुंदरता, स्वनामधन्य,
जगत तुम्हारा प्रकाशमय
हो उठेगा एक दिन,
और तुम्हारे बाद नहीं होगी किसी
देवता की स्तुति,
एक बार तुम्हें देखना, जानना काफ़ी है –
एक बार में फूंँक देती है मृत्यु
जीवन की लौ।
फिर भी आशिरसिंचित हैं हम सब। ‘(पृष्ठ ७९-८०,शिशिर घोष)
रवीन्द्र नाथ ठाकुर सिर्फ लेखक ही नहीं, संपूर्ण कलाकार थे। अनंत, विपुल और अनुपम कारयित्री प्रतिभा के पीछे जो व्यक्ति खड़ा है – उसके व्यक्तित्व और कृतित्व पर भरोसा करना ससीम – असीम के बीच की कोई अद्भुत लीला जैसा दीखता है! एक ख़ास रूमानी लक्षण।
क्षेत्रीय धारा से बढ़कर अनंत क्षितिज तक जा पहुँचने वाला व्यक्तित्व। उसकी निष्ठा किसके प्रति अधिक प्रगाढ़ थी :आकाश के प्रति कि नीड़ के, पंखों के प्रति कि जड़ों के?
अतिरेक और सुदूर का अन्वेषक यह कवि पृथ्वी का कवि भी था – दुनिया से जुड़ा हुआ, पर दुनियावी नहीं। धार्मिक कम, प्रकृति पूजक अधिक। पृष्ठ ९२, शिशिर घोष।
मैं का आँचल ढलने दो
आने दो चेतनता की शुद्ध ज्योति
कुहेलिका चीरती
दिखाती चेहरा
शाश्वत सत्य का। पृष्ठ ९६।
समाज साहित्य और संस्कृति एक दूसरे में गूँथी वे कड़ियाँ हैं जो मानवीय मूल्यों और आदर्श के नए शिल्प विधान गढ़तीं हैं। इस संदर्भ में रवीन्द्रनाथ ठाकुर को लेने का कारण यह है कि वे केवल बंगाल के ही नहीं बल्कि विश्व के कवि रचना के स्तंभ थे।
कॉपीराइट, डॉ वसुंधरा मिश्र, कोलकाता पश्चिम बंगाल

बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष : बौद्धिक और आध्यात्मिक आंदोलन की चरम परिणति बौद्ध धर्म : बुद्ध के उपदेश

डॉ. वसुंधरा मिश्र, भवानीपुर एजकेशन सोसाइटी कॉलेज, कोलकाता

प्रागैतिहासिक काल से ही भारत विभिन्न जातियों और संस्कृतियों का आश्रय रहा है। विभिन्न प्रवृतियों तथा जीवन विधाओं के संघर्ष और समन्वय के द्वारा भारतीय इतिहास की प्रगति और संस्कृति विकास हुआ है। आर्य तथा आर्येतर जातियों की सांस्‍कृतिक परंपराओं का समन्वय भारतीय सभ्यता के निर्माण की आधार शिला रही है जिसका प्रभाव एक ओर वैदिककालीन समाज रचना पर पड़ा और दूसरी ओर बौद्ध धर्म पर पड़ा जो बौद्धिक और आध्यात्मिक आंदोलन का चरम परिणाम है।
563 ईसा पूर्व के आसपास सिद्धार्थ गौतम का जन्म होता है और थेरवादी बौद्ध मत के अनुसार बुद्ध का परिनिर्वाण 544 ईसा पूर्व हुआ। बुद्ध के उपदेशों ने इस संसार को एक नया अध्याय दिया जो ‘बहुजन हिताय बहुजन सुखाय’ की भावना से परिपूर्ण है। यह युग भारतीय विचार जगत में उथल पुथल का युग था। सामाजिक एवं धार्मिक नव चेतना के लिए बुद्ध और महावीर जैसे महापुरुषों ने संसार को सत्य और अहिंसा का संदेश दिया जो भव व्याधि से पीड़ित मानव के लिए वरदान हो गया। धार्मिक जगत में संघीय जीवन पद्धति का प्रसार हुआ जिसका अवांतरकालीन संप्रदायों में बडा़ प्रभाव पडा़। इस युग में कई नये मतों का प्रदुर्भाव हुआ जिन्होंने तत्कालीन भारतीय समाज में व्याप्त रूढ़ियों, कुरीतियों तथा अंधविश्वासों के प्रतिकार का मार्ग प्रशस्त किया। जातिवाद का सर्वप्रथम विरोध करने वाले बुद्ध और महावीर ही थे। वेद और ब्राह्मणों को चुनौती दी। बुद्ध तथा महावीर के धर्मोपदेश जनता की भाषा में दिए गए अतः वे सभी बोधगम्य हो सके। ब्राह्मण ग्रंथ दुरूह होने के कारण जनता के लिए दुर्बोध हो गए थे। अतः नवीन विचारों का जन मानस पर बड़ा अनुकूल प्रभाव पड़ा। भगवान् बुद्ध के धर्मोपदेशों का राजा तथा जनता दोनों ने स्वागत किया। बुद्ध के समकालीन अनेक प्रमुख ब्राह्मणों ने बौद्ध धर्म को स्वीकार ही नहीं किया, इस मत के दार्शनिक आधार को सुदृढ़ बनाया। भगवान् बुद्ध ने सर्व बोधगम्य और सुधारक के रूप में समाज में अपने दर्शन को लोगों में प्रसारित किया। इसी कारण बौद्ध धर्म सर्वाधिक लोकप्रिय हुआ और वह अपने युग की चेतना को बहुत अधिक प्रभावित कर सका। बौद्ध मत के व्यापक प्रचार के फलस्वरूप बुद्ध निर्वाण के तुरंत बाद बुद्ध वचनों का संकलन राजगृह में प्रथम बौद्ध संगीति की बैठक में, फिर बुद्ध निर्वाण के एक शताब्दी बाद वैशाली में हुई बैठक में हुई ऐसा माना जाता है। सम्राट अशोक के समय पालि पिटक का संकलन कर सद्धर्म अथवा थेरवाद के सिद्धांतों को लिपिबद्ध किया गया जिसका प्रमाण दीपवंश और महावंश ग्रंथों में मिलता है। यह संगीति बैठक बुद्ध निर्वाण के 236 वें वर्ष में पाटलिपुत्र में मोग्गलिपुत्त तिस्स के सभापतित्व में हुई जिसमें एक सहस्र बौद्ध भिक्षु शामिल हुए। कुमार महेंद्र पालि पिटक की एक प्रति लंका ले गए थे। पांचवीं शताब्दी ईसा सन् में लंकाधिपति बट्टगामनी ने उसका पुनः संकलन करवाया जो बहुमूल्य निधि है।
उपनिषद युग के बाद बुद्ध का समय है। गौतम बुद्ध का महत्व संसार व्यापी है, उनके उपदेशों ने पश्चिमी एशिया में धार्मिक, सामाजिक एवं नैतिक क्रांति का सूत्रपात किया था। बुद्ध की ज्ञान एवं कर्म की विचारधारा ने प्रसिद्ध दार्शनिकों एवं शासकों को प्रभावित किया। गौतम बुद्ध के दिव्य आध्यात्मिक एवं नैतिक विचारों से प्रभावित होकर एक ओर अश्वघोष, बुद्ध घोष, कुमार लब्ध, दिंङ्नाग, असंग, वसुबंधु, नागार्जुन, शांति देव जैसे तार्किक और दार्शनिक पुरुष पैदा हुए तो दूसरी ओर अशोक, कनिष्क और हर्ष वर्धन संसार के कल्याण के लिए कर्म योगी पुरुष बने। बुद्ध के निर्वाण के 200 वर्षों के अंदर ही बौद्ध धर्म में हीनयान, महायान, वज्रयान, सहज यान चार संप्रदायों का और अट्ठारह निकायों स्थविरवाद,वज्जिपुत्तक, महीशासक, धर्मोत्तरीय, भद्रपाणिक, छन्नागरिक, सम्मितीय, धर्म गुप्तिक, सर्वास्तिवादी, काश्यपीय, सांक्रातिक, सूत्रवादी, (सौत्रांतिक), महसांघिक, व्यावहारिक, गोकुलिक, प्रज्ञप्तिवादी, बाहुश्रुतिक, चैत्यवादी का विकास हुआ। विभिन्‍न संप्रदायों और मतों के बावजूद भी बौद्ध धर्म आज पूरे विश्व में लोकप्रिय धर्म है। बौद्ध दर्शन का उदय बौद्ध धर्म से माना जाता है। विद्वानों और बौद्ध आचार्यों ने बौद्ध धर्म के दो रूप बताए हैं पहला शुद्ध धार्मिक रूप जिसमें आचार संबंधी नैतिक एवं सामाजिक आदर्शों का सरलतम प्रतिपादन किया गया है। भगवान् बुद्ध के उपदेश एवं शिक्षाएं इसी धार्मिक रूप में मिलती हैं। बौद्ध धर्म का दूसरा दार्शनिक रूप है जिसमें बुद्ध के उपदेशों की दार्शनिक रूपरेखा को आध्यात्मिक व्याख्या के रूप में स्पष्ट किया गया है।
बुद्ध के मूल सिद्धांत या विचार – –
बुद्ध के मूल वचनों या उपदेशों के सिद्धांतों को ही समझने की कोशिश की गई है जो बोधि उपदेश हैं।
बुद्ध के उपदेशों को जानने के लिए बुद्ध के मूल सिद्धांतो को जानना आवश्यक है जिनमें तीन अस्वीकारात्मक हैं और एक स्वीकारात्मक। ये चार सिद्धांत इस प्रकार हैं – –
1-ईश्वर को नहीं मानना अन्यथा मनुष्य स्वयं अपना मालिक है
2- आत्मा को नित्य मानना अन्यथा नित्य एक रस मानने पर उसकी परिशुद्धि और मुक्ति के लिए गुंजाइश नहीं रहेगी।
3-किसी अन्य को स्वतः प्रमाण नहीं मानना अन्यथा बुद्धि और अनुभव की प्रामाणिकता जाती रहेगी।
4- जीवन प्रवाह को इसी शरीर तक सीमित मानना अन्यथा जीवन और उसकी विचित्रताएं कार्य – कारण नियम से उत्पन्न न हो कर सिर्फ आकस्मिक घटनाएँ रह जाएंगी

ईश्वर को न मानना – – -बच्चे की उत्पत्ति के साथ उसके जीवन का आरंभ होता है।बच्चा शरीर और मन का समुदाय मात्र है। शरीर भी कोई एक इकाई मात्र नहीं बल्कि एक काल में भी असंख्य अणुओं का समुदाय है। अणु भी क्षण क्षण बदल रहा है और उनकी जगह दूसरे उनके समान ही अणु उत्पन्न हो रहे हैं। इस प्रकार शरीर भी परिवर्तित होता जाता है। शरीर की तरह मन भी परिवर्तित होता जाता है। मन का परिवर्तन सूक्ष्म रूप से होता है क्योंकि मन सूक्ष्म होता है और पूर्वापर रूपों का भेद भी सूक्ष्म होता है इसलिए उस भेद को समझना भी दुष्कर है। आत्मा और मन एक ही है और क्षण क्षण दोनों में परिवर्तन होता है। इस कार्य कारण का संबंध जन्म से मरण तक अटूट दिखाई पड़ता है। आकस्मिक रूप से कुछ घटित नहीं होता बल्कि कार्य कारण के सिद्धांत से भी इन्कार करना होता है जिसके बिना कोई बात सिद्ध नहीं की जा सकती। यदि कहें कि माता-पिता से उत्पन्न पुत्र का शरीर, मन उनके अनुरूप ही होगा तो यह पूरी तरह से ठीक नहीं है। प्रतिभाशाली माता-पिता के मंदबुद्धि और मंदबुद्धि माता-पिता के प्रतिभाशाली संतान कैसे होती। जिस प्रकार खान से निकला लोहा भी अलग अलग संस्कार लिए होता है उसी प्रकार प्रतिभाशाली बालक की बुद्धि फौलाद की तरह पूर्व जीवन के अभ्यास का परिणाम कहा जा सकता है। इस शरीर का जीवन प्रवाह एक सुदीर्घ जीवन प्रवाह का छोटा सा बीज का अंश है जिसका पूर्व कालिक प्रवाह चिरकाल से चला आ रहा है बाद के काल तक भी चिरकाल ही रहेगा। जीवन का यह प्रवाह इस शरीर से पूर्व से आ रहा है और पीछे भी रहेगा तो भी अनादि और अनंत नहीं है। इसका आरंभ तृष्णा या स्वार्थपरता से है। तृष्णा के क्षय के साथ ही इसका क्षय हो जाता है।
जीवन प्रवाह में प्रवाहित मनुष्य अपने जीवन को अच्छा बुरा बना सकता है। यह सिद्धांत व्यक्ति के लिए भविष्य को आशा मय बनाने के लिए सुंदर उपाय है।
बुद्ध की शिक्षा और दर्शन इन चारों सिद्धांतों पर अवलंबित है। प्रथम तीन सिद्धांत बौद्ध धर्म को दुनिया के अन्य धर्मों से पृथक करते हैं। ये तीनों सिद्धांत भौतिकवाद और बुद्ध धर्म में समान हैं किंतु चौथी अर्थात् जीवन प्रवाह के इसी शरीर तक परिसीमित न मानना, इसे भौतिकवाद से अलग करता है और साथ ही मनुष्य को अच्छा बनने के लिए विकसित करता है। मनुष्य परतंत्रता से मुक्त हो जीवन के प्रति आशावादी होता है और शील सदाचार के लिए नींव बनाता है। चारों सिद्धांतों का सम्मिलन ही बुद्ध धर्म और धर्म उपदेश है।

ऑपरेशन सिंदूर : जानिए रूसी S-400 एयर डिफेंस सिस्टम कैसे बना ‘सुदर्शन’ चक्र

नयी दिल्ली । राफेल जेट और रूसी S-400 मिसाइल सिस्टम भारत के लिए दो ऐसे अहम हथियार साबित हुए हैं, जिन्होंने ‘ऑपरेशन सिंदूर’ और मौजूदा भारत-पाकिस्तान संघर्ष में निर्णायक भूमिका निभाई है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने इन दोनों हथियारों को भारत के रक्षा बेड़े में शामिल करने के लिए न सिर्फ आंतरिक विरोध झेला, बल्कि अमेरिका समेत कई वैश्विक दबावों का भी डटकर सामना किया । 8 और 9 मई की दरम्यानी रात पाकिस्तान की सेना ने ड्रोन और मिसाइलों के ज़रिए भारत पर बड़ा हमला करने की कोशिश की। लेकिन भारत की वायु रक्षा प्रणाली—खासतौर पर S-400 और आकाश मिसाइल सिस्टम—ने इस हमले को पूरी तरह नाकाम कर दिया। पाकिस्तान द्वारा श्रीनगर, जम्मू और जैसलमेर जैसे कई स्थानों को निशाना बनाकर दागी गई मिसाइलों में से एक भी अपने लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाई। भारत ने 2018 में रूस से करीब 5 अरब डॉलर के सौदे में S-400 डिफेंस सिस्टम खरीदने का फैसला लिया था। उस वक्त अमेरिका ने खुले तौर पर इस सौदे का विरोध किया था और यहां तक कि प्रतिबंध लगाने की धमकी भी दी थी। ट्रंप प्रशासन और बाद में बाइडन प्रशासन, दोनों ही भारत को इस सौदे से पीछे हटने के लिए कहते रहे। मगर मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा को सर्वोपरि मानते हुए किसी भी दबाव को स्वीकार नहीं किया। अब तक एस-400 की तीन स्क्वाड्रन भारत में तैनात की जा चुकी हैं और कुछ और इस साल आनी बाकी हैं। यह सिस्टम 600 किलोमीटर तक के दायरे में कई हवाई लक्ष्यों को एकसाथ ट्रैक और नष्ट कर सकता है। भारतीय वायुसेना में इसे ‘सुदर्शन चक्र’ कहा जाता है, जो लड़ाकू विमान, ड्रोन और बैलिस्टिक मिसाइल जैसे खतरों को खत्म करने में सक्षम है। इसी तरह राफेल लड़ाकू विमान, जिन्हें भारत ने 2020 से फ्रांस से सरकारी समझौते के तहत हासिल किया, ने भारतीय वायुसेना की ताकत को कई गुना बढ़ा दिया। इन विमानों में लगी लंबी दूरी की एससीएएलपी मिसाइलों ने पाकिस्तान के बहावलपुर में स्थित आतंकी संगठन जैश-ए-मोहम्मद के मुख्यालय को निशाना बनाया, वो भी सीमा पार किए बिना। इस हमले में मोस्ट वांटेड आतंकी मौलाना मसूद अजहर का परिवार और उसका भाई अब्दुल रऊफ अजहर—जो IC-814 हाईजैकिंग का मास्टरमाइंड था—मार गिराया गया। हालांकि, राफेल डील को लेकर कांग्रेस पार्टी, खासकर राहुल गांधी ने 2019 के चुनावों में मोदी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाए थे। मगर सुप्रीम कोर्ट ने इस सौदे को पूरी तरह सही ठहराया और कीमत व प्रक्रिया में कोई गड़बड़ी नहीं पाई। आज ये दोनों हथियार भारत की सुरक्षा नीति की रीढ़ बन चुके हैं और मोदी सरकार के साहसिक निर्णयों का नतीजा हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा को किसी भी राजनीतिक या अंतरराष्ट्रीय दबाव से ऊपर रखा।

 

माध्यमिक परीक्षा परिणाम 86.56 प्रतिशत, रायगंज का आदृत सरकार अव्वल

-66 विद्यार्थी शीर्ष 10 में शामिल

-दूसरे स्थान पर मालदह और बांकुड़ा के विद्यार्थी

कोलकाता । पश्चिम बंगाल माध्यमिक शिक्षा बोर्ड ने शुक्रवार को माध्यमिक परीक्षा 2025 के परिणाम घोषित कर दिए। इस साल रायगंज करनेशन हाई स्कूल के अदृत सरकार ने राज्य में पहला स्थान हासिल किया है। आदृत ने कुल 696 (99.46%) अंक प्राप्त कर प्रदेश भर में अपनी मेधा का लोहा मनवाया है। दूसरे स्थान पर संयुक्त रूप से दो विद्यार्थी रहे। मालदह के रामकृष्ण मिशन विवेकानंद विद्यापीठ के अनुभव विश्वास और बांकुड़ा के विष्णुपुर हाई स्कूल के सौम्य पाल ने समान रूप से 694 अंक प्राप्त किए। अनुभव ने बताया कि वह भविष्य में डॉक्टर बनना चाहता है। उसने यह भी कहा कि वह दिल्ली बोर्ड से आगे की पढ़ाई करने की योजना बना रहा है। अनुभव को जासूसी कहानियां पढ़ना पसंद है। बांकुड़ा की ईशानी चक्रवर्ती ने 693 अंक प्राप्त कर तीसरा स्थान हासिल किया। चौथे स्थान पर पूर्व बर्धमान के मोहम्मद सलीम और पूर्व मेदिनीपुर के सुप्रतीक मन्ना रहे, जिन्होंने 692 अंक प्राप्त किए।

बोर्ड के अनुसार इस बार शीर्ष 10 में कुल 66 विद्यार्थी शामिल हैं, जिसमें लड़कियों की संख्या भी उल्लेखनीय रही है। इस बार माध्यमिक परीक्षा में उत्तीर्ण प्रतिशत में मामूली वृद्धि देखी गई है। बोर्ड अध्यक्ष डॉ. रामानुज गांगुली ने बताया कि इस साल पास प्रतिशत 86.56 फीसदी रहा है, जबकि पिछले साल यह 86.31 फीसदी था। पिछले वर्षों की तरह इस बार भी पास प्रतिशत के मामले में पूर्व मेदिनीपुर जिला सबसे आगे रहा। उसके बाद कालिम्पोंग। राजधानी कोलकाता तीसरे स्थान पर है और उसके बाद पश्चिम मेदिनीपुर ने उत्कृष्ट प्रदर्शन किया है। इस वर्ष माध्यमिक परीक्षा में कुल नौ लाख 12 हजार 598 परीक्षार्थियों ने हिस्सा लिया। परीक्षा राज्यभर में दो हजार 675 परीक्षा केंद्रों पर आयोजित की गई थी। परीक्षा शांतिपूर्ण ढंग से सम्पन्न हुई थी और बोर्ड ने सुरक्षा के लिए व्यापक इंतजाम किए थे।

कोलकाता में सभी रूफटॉप रेस्टोरेंट्स बंद करने का आदेश

मछुआ अग्निकांड के बाद बड़ा फैसला

कोलकाता । कोलकाता नगर निगम ने शहर के सभी रूफटॉप रेस्टोरेंट्स को तत्काल प्रभाव से बंद करने का आदेश दिया है। शुक्रवार को ‘टॉक टू मेयर’ कार्यक्रम के बाद मेयर फिरहाद हकीम ने यह जानकारी दी। मछुआ इलाके के ऋतुराज होटल में भीषण अग्निकांड में 15 लोगों की मौत के बाद नगर निगम ने यह सख्त कदम उठाया है। मेयर ने साफ कहा कि छत सार्वजनिक स्थल है और इसे किसी भी प्रकार के निजी व्यवसाय के लिए इस्तेमाल करना पूरी तरह से प्रतिबंधित है। उन्होंने कहा कि नीचे की जमीन जिस तरह बेची नहीं जा सकती, उसी तरह छत भी नहीं बेची जा सकती। यह आम जनता की सुरक्षा का सवाल है। नगर निगम ने इस संबंध में पहले ही एक दिशा-निर्देश जारी किया है, जिसमें स्पष्ट किया गया है कि किसी भी परिस्थिति में छत का व्यवसायिक उपयोग नहीं किया जा सकता। साथ ही सभी रूफटॉप रेस्टोरेंट्स को तत्काल हटाने का निर्देश दिया गया है।

मेयर ने कहा कि जिन रेस्टोरेंट्स का संचालन फिलहाल छत पर हो रहा है, उन्हें बंद करना अनिवार्य है। आग लगने की स्थिति में लोग छत पर जाकर शरण ले सकें, इसके लिए छत तक पहुंच का रास्ता हमेशा खुला रहना चाहिए। उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री ममता बनर्जी के निर्देश पर पहले ही एक कमेटी गठित कर दी गई है। इस कमेटी में अग्निशमन विभाग, पुलिस और नगर निगम के विभिन्न विभागों के प्रतिनिधि शामिल होंगे और जल्द ही बैठक कर अगली रणनीति तय की जाएगी। मेयर ने यह भी कहा कि हर चीज़ नगर निगम के अधिकार क्षेत्र में नहीं आती, लेकिन जहां-जहां हमारी जिम्मेदारी है, वहां हम पूरी सक्रियता से काम कर रहे हैं। इस बीच शहर के एक प्रमुख बहुमंजिला भवन ‘मैग्मा हाउस’ में स्थित रूफटॉप रेस्टोरेंट को नोटिस भेज दी गयी है। मेयर ने बताया कि बोरोज़ के आधार पर रिपोर्ट तैयार की जा रही है कि किन इलाकों में कितने रूफटॉप रेस्टोरेंट्स संचालित हो रहे हैं, ताकि जल्द से जल्द कार्रवाई की जा सके। उन्होंने कहा, “स्टेफन कोर्ट की घटना हम सभी को याद है, जहां कोलैप्सिबल गेट बंद होने के कारण दम घुटने से कई लोगों की जान चली गई थी। ऐसी स्थिति में छत ही अंतिम सहारा होती है, इसलिए वहां कोई बाधा नहीं होनी चाहिए।मछुआ के फलपट्टी में क्षतिग्रस्त भवन को लेकर मेयर ने कहा कि उस भवन का ऑडिट पहले ही किया जा चुका था। नागरिकों की भी जिम्मेदारी बनती है कि वे सतर्क रहें। लोकतांत्रिक देश में सिर्फ सरकार पर ही सारा बोझ नहीं डाला जा सकता।उन्होंने यह भी माना कि नगर निगम में कर्मचारियों की संख्या सीमित है, लेकिन फिर भी जिम्मेदारी निभाने में कोई कमी नहीं रखी जाएगी। वर्तमान में निर्माणाधीन इमारतों पर भी सख्त निगरानी रखी जा रही है। नगर निगम के सूत्रों के अनुसार, जहां भी बिल्डिंग प्लान स्वीकृत किया जा रहा है, वहां असेसमेंट विभाग के साथ समन्वय कर सभी जानकारियां रिकॉर्ड में लाई जा रही हैं।

देश की सुरक्षा के लिए पेगासस का प्रयोग गलत नहीं : सुप्रीम कोर्ट

नयी दिल्ली । सुप्रीम कोर्ट ने पेगासस मामले में सुनवाई के दौरान इस बात पर हैरानी जताई कि अगर सरकार आतंकियों की जासूसी करा रही हैं तो इसमें गलत क्या है? साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वे ऐसी किसी भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करेंगे, जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी हो। सुप्रीम कोर्ट ने ये भी कहा कि वे ऐसी किसी भी रिपोर्ट को सार्वजनिक नहीं करेंगे, जो देश की सुरक्षा और सुप्रभुता से जुड़ी हो। हालांकि उन्होंने संकेत दिए कि वे निजता के उल्लंघन की व्यक्तिगत आशंकाओं पर विचार कर सकता है। जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने कहा कि तकनीकी समिति की रिपोर्ट पर सड़कों पर चर्चा नहीं होनी चाहिए। एक याचिकाकर्ता की तरफ से पेश हुए वकील दिनेश द्विवेदी ने सुनवाई के दौरान कहा कि ‘सवाल ये था कि क्या सरकार के पास स्पाइवेयर सॉफ्टवेयर है और क्या वह इसका इस्तेमाल कर सकती है? अगर सरकार के पास ये है तो कोई भी उन्हें इसका इस्तेमाल करने से नहीं रोक सकता।’ इस पर पीठ ने कहा कि ‘अगर देश आतंकियों के खिलाफ स्पाइवेयर का इस्तेमाल कर रहा है तो इसमें गलत क्या है? स्पाइवेयर रखना गलत नहीं है, ये किसके खिलाफ इस्तेमाल हो रहा है, सवाल इसका है। देश की सुरक्षा से समझौता नहीं किया जा सकता। आम नागरिकों का संविधान के तहत निजता का अधिकार सुरक्षित किया जाएगा।’ पीठ ने कहा कि ‘कोई भी रिपोर्ट, जो देश की सुरक्षा और संप्रभुता से जुड़ी हो, उसे छुआ नहीं जाएगा, लेकिन व्यक्तिगत तौर पर अगर कोई यह जानना चाहता है कि वह रिपोर्ट में शामिल है या नहीं, उसे इसकी जानकारी दी जा सकती है। लेकिन रिपोर्ट को ऐसा दस्तावेज नहीं बनाया जाएगा कि सड़कों पर भी इसकी चर्चा हो।’ अदालत ने कहा कि वे इस बात की जांच करेंगे कि किस हद तक तकनीकी समिति की रिपोर्ट को संबंधित व्यक्ति के साथ साझा किया जा सकता है। इसके बाद पीठ ने मामले पर सुनवाई 30 जुलाई तक के लिए टाल दी।

आजादी के बाद पहली बार देश में होगी जाति जनगणना

नयी दिल्ली । देश में आजादी के बाद पहली बार जाति जनगणना कराई जाएगी। केंद्रीय कैबिनेट ने  जाति जनगणना को मंजूरी दी। केंद्रीय मंत्री अश्विनी वैष्णव ने बताया कि इसे मूल जनगणना के साथ ही कराया जाएगा। देश में इसी साल के आखिर में बिहार विधानसभा के चुनाव होने हैं। कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल जाति जनगणना कराने की मांग करते रहे हैं। ऐसे में कयास लगाए जा रहे हैं कि जाति जनगणना की शुरुआत सितंबर में की जा सकती है। हालांकि जनगणना की प्रक्रिया पूरी होने में एक साल लगेगा। ऐसे में जनगणना के अंतिम आंकड़े 2026 के अंत या 2027 की शुरुआत में मिल सकेंगे। देश में पिछली जनगणना 2011 में हुई थी। इसे हर 10 साल में किया जाता है। इस हिसाब से 2021 में अगली जनगणना होनी थी, लेकिन कोविड-19 महामारी के कारण इसे टाल दिया गया था। 2011 तक जनगणना फॉर्म में कुल 29 कॉलम होते थे। इनमें नाम, पता, व्यवसाय, शिक्षा, रोजगार और माइग्रेशन जैसे सवालों के साथ केवल एससी और एसटी श्रेणी से ताल्लुक रखने को रिकॉर्ड किया जाता था। अब जाति जनगणना के लिए इसमें अतिरिक्त कॉलम जोड़े जा सकते हैं। जनगणना एक्ट 1948 में एससी- एसटी की गणना का प्रावधान है। ओबीसी की गणना के लिए इसमें संशोधन करना होगा। इससे ओबीसी की 2,650 जातियों के आंकड़े सामने आएंगे। 2011 की जनगणना के अनुसार, मार्च 2023 तक 1,270 एससी, 748 एसटी जातियां हैं। 2011 में एससी आबादी 16.6 प्रतिशत और एसटी 8.6 प्रतिशत थी। मनमोहन सिंह सरकार के दौरान 2011 में सामाजिक-आर्थिक और जातिगत जनगणना करवाई गई थी। इसे ग्रामीण विकास मंत्रालय, शहरी विकास मंत्रालय और गृह मंत्रालय ने करवाया था। हालांकि इस सर्वेक्षण के आंकड़े कभी भी सार्वजनिक नहीं किए गए। ग्रामीण विकास मंत्रालय की वेबसाइट पर इसके एससी-एसटी हाउसहोल्ड के आंकड़े ही जारी किए गए हैं।
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राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड के अध्यक्ष बने आलोक जोशी

-रॉ के पूर्व चीफ रह चुके हैं
नयी दिल्ली। पाकिस्तान के साथ भारत के तनाव के बीच भारत ने बड़ा फैसला लिया है। सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड में बदलाव किया है। पूर्व रॉ प्रमुख आलोक जोशी को इसका अध्यक्ष नियुक्त किया गया है। बोर्ड में छह और सदस्यों को भी शामिल किया गया है। इसमें पूर्व पश्चिमी वायु कमांडर एयर मार्शल पीएम सिन्हा, पूर्व दक्षिणी सेना कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल एके सिंह और रियर एडमिरल मॉन्टी खन्ना सैन्य सेवाओं से रिटायर्ड अधिकारी को शामिल किया गया हैं। राजीव रंजन वर्मा और मनमोहन सिंह भारतीय पुलिस सेवा से सेवानिवृत्त दो सदस्य हैं। सात सदस्यीय बोर्ड में बी. वेंकटेश वर्मा सेवानिवृत्त आईएफएस हैं। यह फैसला पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद आया है, जिसमें एक नेपाली नागरिक सहित 26 निर्दोष नागरिकों की जान चली गई और कई घायल हो गए। पहलगाम आतंकवादी हमले के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उनके आवास पर बुलाई गई सुरक्षा मामलों की कैबिनेट समिति (सीसीएस) की बैठक में ये फैसला लिया गया। राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार बोर्ड (NSAB) में सरकार के बाहर के प्रतिष्ठित व्यक्ति शामिल होते हैं, जिसमें मुख्य कार्य राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद को एक विश्लेषण प्रदान करना तथा उनके द्वारा उठाए गए मुद्दों के लिए समाधान और नीति विकल्पों की सिफारिश करना है।

आईसीएसई और आईएससी परीक्षा के परिणाम घोषित

कोलकाता की सृजनी बनी आईएससी टॉपर
नयी दिल्ली । काउंसिल फॉर द इंडियन स्कूल सर्टिफिकेट एग्जामिनेशन (सीआईएससीई) ने बुधवार को आईसीएसई (कक्षा 10वीं) और आईएससी (कक्षा 12वीं) परीक्षा के परिणाम घोषित कर दिए हैं। आईएससी की परीक्षा में 400 में 400 अंक पाकर कोलकाता के फ्यूचर फाउंडेशन स्कूल की छात्रा सृजनी ने देश एवं राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया। वहीं आईसीएसई की परीक्षा में राजरहाट कालिकापुर डीपीएस मेगासिटी की देवत्री मजुमदार ने 500 में से 500 अंक पाकर प्रथम स्थान प्राप्त किया। ऋषिक बसु ने 500 में से 499 अंक पाकर आईसीएसई की परीक्षा में देश भर में दूसरा स्थान प्राप्त किया। वह कलकत्ता बॉयज स्कूल का छात्र है।
इस वर्ष आईसीएसई का कुल उत्तीर्ण प्रतिशत 99.09 प्रतिशत और आईएससी का कुल उत्तीर्ण प्रतिशत 99.02 प्रतिशत है। आईसीएसई परीक्षा में कुल 2,52,557 छात्र शामिल हुए थे, जिनमें से 2,50,249 छात्र पास हुए हैं। इसी तरह आईएससी परीक्षा में 99,551 छात्र शामिल हुए थे, जिनमें से 98,578 छात्र उत्तीर्ण हुए हैं। आईसीएसई में लड़कियों ने लड़कों से बेहतर प्रदर्शन किया है। लड़कियों का पास प्रतिशत 99.37 प्रतिशत और लड़कों का पास प्रतिशत 98.84 प्रतिशत है। आईएससी में भी लड़कियों ने लड़कों से बेहतर प्रदर्शन किया है, जहां उनका उत्तीर्ण प्रतिशत 99.45 प्रतिशत रहा तथा लड़कों का उत्तीर्ण प्रतिशत 98.64 प्रतिशत रहा। उल्लेखनीय है कि इस साल आईसीएसई कक्षा 10वीं की बोर्ड परीक्षाएं 21 फरवरी से 28 मार्च तक आयोजित की गईं, जबकि आईएससी कक्षा 12 वीं की बोर्ड परीक्षाएं 13 फरवरी से 5 अप्रैल तक चलीं।

न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई होंगे भारत के अगले मुख्य न्यायाधीश

नयी दिल्ली । न्यायमूर्ति भूषण रामकृष्ण गवई को मंगलवार को भारत का अगला मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। वे 14 मई को सीजेआई का पदभार ग्रहण करेंगे, एक दिन पहले ही मौजूदा सीजेआई न्यायमूर्ति संजीव खन्ना का कार्यकाल समाप्त हो रहा है। कानून मंत्रालय ने न्यायमूर्ति गवई की भारत के 52वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति की अधिसूचना जारी की। निर्धारित प्रक्रिया के अनुसार, सीजेआई खन्ना ने 16 अप्रैल को केंद्र सरकार को उनके नाम की अनुशंसा की थी।न्यायमूर्ति गवई का कार्यकाल छह महीने का होगा और वे 65 वर्ष की आयु प्राप्त करने पर 23 दिसंबर को पद से मुक्त हो जाएंगे। वे मौजूदा सीजेआई खन्ना के बाद सर्वोच्च न्यायालय के सबसे वरिष्ठ न्यायाधीश हैं।