कोच्चि । केरल की साइलेंट वैली में सदाबहार उष्णकटिबंधीय वर्षा वनों को विनाश से बचाने के लिए ऐतिहासिक जमीनी स्तर के आंदोलन में अग्रणी रहे प्रसिद्ध पर्यावरणविद् प्रोफेसर एम के प्रसाद का निधन हो गया। वह 89 वर्ष के थे। उनके सहयोगियों ने ये जानकारी दी।
उनके सहयोगियों के मुताबिक कोविड संबंधी जटिलताओं के बाद उपचार के लिये एक निजी अस्पताल में भर्ती प्रसाद ने वहीं अंतिम सांस ली। प्रसाद 1970 के दशक में पलक्कड जिले में ‘साइलेंट वैली’ में एक जल विद्युत परियोजना स्थापित करने के राज्य सरकार के कदम के खिलाफ राष्ट्रीय आंदोलन के पीछे एक मार्गदर्शक शक्ति थे।
पारिस्थितिकी विशेषज्ञों के अथक दबाव के आगे झुकते हुए सरकार को इस परियोजना को छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने पर्यावरण आंदोलनों के नेता के रूप में प्रसाद के योगदान को याद करते हुए उनके निधन पर शोक व्यक्त किया।
पूर्व पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश और राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वी डी सतीशन ने भी प्रसाद के निधन पर शोक व्यक्त किया।
प्रसिद्ध पर्यावरणविद् एम के प्रसाद का निधन
गोवा भारतीय पर्यटकों का पसंदीदा पर्यटन स्थल, मनाली दूसरे नंबर पर : ओयो सर्वे
नयी दिल्ली । इस साल भारतीय अंतरराष्ट्रीय के बजाय घरेलू पर्यटन स्थलों पर जाना पसंद करेंगे। गोवा भारतीय यात्रियों के लिए सबसे पसंदीदा पर्यटन स्थल है। ओयो ट्रैवलोपीडिया के सर्वे में यह तथ्य सामने आया है।
सर्वे के अनुसार, गोवा के बाद भारतीयों का दूसरा पसंदीदा स्थान मनाली है। ओयो ट्रैवलोपीडिया ओयो का वार्षिक उपभोक्ता सर्वे है। इसमें ओयो के प्रयोगकर्ताओं के बीच उनकी यात्रा के पसंदीदा स्थलों की जानकारी ली जाती है। सर्वे में 61 प्रतिशत भारतीयों ने कहा कि वे घरेलू गंतव्यों पर छुट्टियां बिताने जाना चाहेंगे। वहीं 25 प्रतिशत ने कहा था कि वे घरेलू के साथ अंतरराष्ट्रीय पर्यटक स्थलों की यात्रा भी करना चाहेंगे।
हालांकि, भारतीय यात्रा को लेकर रोमांचित हैं, लेकिन महामारी के बीच सुरक्षा अब भी उनके लिए सबसे बड़ी चिंता का विषय है। 80 प्रतिशत लोगों ने कहा कि सुरक्षा उनके लिए चिंता का विषय है। हालांकि, इसके साथ ही उनका मानना है कि टीके की बूस्टर खुराक से यात्रा की उम्मीदें बेहतर होंगी।
जहां तक पसंदीदा पर्यटक स्थलों की बात है, गोवा पहले स्थान पर रहा है। एक-तिहाई लोगों ने कहा कि वे गोवा जाना चाहेंगे। उसके बाद क्रमश: मनानी, दुबई, शिमला और केरल का नंबर आता है। ओयो ने कहा कि अंतरराष्ट्रीय गंतव्यों की बात की जाए, तो भारतीय मालदीव, पेरिस, बाली और स्विट्जरलैंड जाना चाहेंगे।
सर्वे में शामिल 37 प्रतिशत लोगों ने कहा कि वे अपने जीवनसाथी के साथ यात्रा पर जाना चाहेंगे। 19 प्रतिशत का कहना था कि वे अपने दोस्तों के साथ छुट्टियां बिताना पसंद करेंगे। वहीं 12 प्रतिशत ने अकेले यात्रा पर जाने की इच्छा जताई।
भारत के 10 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति 25 साल तक हर बच्चे को शिक्षा के लिए पर्याप्त: अध्ययन
नयी दिल्ली / दावोस । कोविड-19 महामारी के दौरान भारत के अरबपतियों की कुल संपत्ति बढ़कर दोगुने से अधिक हो गई और 10 सबसे अमीर लोगों की संपत्ति 25 साल तक देश के हर बच्चे को स्कूली शिक्षा एवं उच्च शिक्षा देने के लिए पर्याप्त है। एक अध्ययन में यह बात कही गई। अध्ययन के मुताबिक इस दौरान भारत में अरबपतियों की संख्या 39 प्रतिशत बढ़कर 142 हो गई।
वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए आयोजित विश्व आर्थिक मंच के दावोस एजेंडा शिखर सम्मेलन के पहले दिन जारी ऑक्सफैम इंडिया की वार्षिक असमानता सर्वेक्षण में कहा गया कि यदि सबसे अमीर 10 प्रतिशत लोगों पर एक प्रतिशत अतिरिक्त कर लगा दिया जाए, तो देश को लगभग 17.7 लाख अतिरिक्त ऑक्सीजन सिलेंडर मिल सकते हैं।
आर्थिक असमानता पर ऑक्सफैम की रिपोर्ट में आगे कहा गया कि 142 भारतीय अरबपतियों के पास कुल 719 अरब अमेरिकी डॉलर (53 लाख करोड़ रुपये से अधिक) की संपत्ति है। देश के सबसे अमीर 98 लोगों की कुल संपत्ति, सबसे गरीब 55.5 करोड़ लोगों की कुल संपत्ति के बराबर है।
रिपोर्ट में आगे कहा गया कि यदि 10 सबसे अमीर भारतीय अरबपतियों को प्रतिदिन 10 लाख अमेरिकी डॉलर खर्च करने हों तो उनकी वर्तमान संपत्ति 84 साल में खत्म होगी।
ऑक्सफैम ने कहा कि इन अरबपतियों पर वार्षिक संपत्ति कर लगाने से हर साल 78.3 अरब अमेरिकी डॉलर मिलेंगे, जिससे सरकारी स्वास्थ्य बजट में 271 प्रतिशत बढ़ोतरी हो सकत है।
रिपोर्ट के मुताबिक कोविड-19 की शुरुआत एक स्वास्थ्य संकट के रूप में हुई थी, लेकिन अब यह एक आर्थिक संकट बन गया है। महामारी के दौरान सबसे धनी 10 प्रतिशत लोगों ने राष्ट्रीय संपत्ति का 45 प्रतिशत हिस्सा हासिल किया, जबकि नीचे की 50 प्रतिशत आबादी के हिस्से सिर्फ छह प्रतिशत राशि आई।
अध्ययन में सरकार से राजस्व सृजन के अपने प्राथमिक स्रोतों पर फिर से विचार करने और कराधान के अधिक प्रगतिशील तरीकों को अपनाने का आग्रह किया गया।
लक्ष्य सेन ने विश्व विजेता लोह कीन यू को हराकर जीता इंडिया ओपन का खिताब
नई दिल्ली । भारत के लक्ष्य सेन पुरुष एकल फाइनल में सिंगापुर के मौजूदा विश्व चैंपियन लोह कीन यू पर सीधे गेम में शानदार जीत के साथ योनेक्स-सनराइज इंडिया ओपन बैडमिंटन के विजेता बने। यह 20 साल के इस भारतीय खिलाड़ी का सुपर 500 स्तर के प्रतियोगिता का पहला खिताब है। इससे पहले सात्विकसाईराज रंकीरेड्डी और चिराग शेट्टी की पुरुष युगल जोड़ी इंडोनेशिया के तीन बार के विश्व चैंपियन मोहम्मद अहसान और हेंड्रा सेतियावान की जोड़ी पर सीधे गेम में शानदार जीत दर्ज करते हुए इंडिया ओपन जीतने वाली देश की पहली जोड़ी बनी।
पिछले महीने स्पेन में विश्व चैम्पियनशिप में कांस्य पदक जीतने वाले सेन ने 54 मिनट तक चले फाइनल मुकाबले में पांचवीं वरीयता प्राप्त शटलर को 24-22, 21-17 को हराया। विश्व रैंकिंग में 10वें स्थान पर काबिज इस भारतीय जोड़ी ने मजबूत मानसिकता और जज्बा दिखाते हुए शीर्ष वरीयता प्राप्त इंडोनेशिया की जोड़ी को 43 मिनट में 21-16 26-24 से हराकर नये सत्र की शानदार शुरुआत की। सेन और लोह के बीच इस मैच से पहले चार मुकाबलों में लक्ष्य ने दो मैच जीते थे।
पिछले साल डच ओपन के फाइनल में हालांकि पांचवीं वरीयता प्राप्त लोह ने बाजी मारी थी। डच ओपन के फाइनल से सीख लेते हुए इस बार लक्ष्य ने ज्यादा गलती नहीं की और शानदार खेल दिखाते हुए खिताब अपने नाम किया। यह सेन के कॅरियर का सबसे बड़ा खिताब है। उन्होंने 2019 में डच ओपन और सारलोरलक्स ओपन के रूप में दो सुपर 100 खिताब जीते है। इसी साल बेल्जियम, स्कॉटलैंड और बांग्लादेश में तीन इंटरनेशनल चैम्पियन का खिताब भी उन्होंने जीता है।
इसके बाद कोविड-19 के प्रकोप ने उनकी प्रगति को रोक दी थी। सात्विक और चिराग इस मैच से पहले इंडोनेशिया की इस जोड़ी के खिलाफ चार मुकाबलों में सिर्फ एक जीत दर्ज कर सके थे। कोविड-19 जांच में गलत पॉजिटिव नतीजे के कारण टूर्नामेंट से बाहर होने के खतरे का सामना करने के बाद इस जोड़ी ने खिताब जीतकर मजबूत मानसिकता का परिचय दिया है। इस जीत से वे व्यस्त सत्र से पहले महत्वपूर्ण रैंकिंग अंक हासिल करने में सफल रहे। यह रैंकिंग अंक राष्ट्रमंडल खेलों और एशियाई खेलों जैसे आयोजन के लिए क्वॉलिफाई करने के लिए अहम होंगे।
भारतीय जोड़ी ने मैच की सकारात्मक शुरुआत की लेकिन इंडोनेशिया की जोड़ी ने शानदार वापसी की। पहले ब्रेक के पास भारतीय जोड़ी के पास दो अंकों की बढ़त थी। उन्होंने इसके बाद अपनी बढ़त को 18-13 किया और फिर शुरुआती गेम अपने नाम कर लिया। दूसरे गेम में अहसन और सेतियावान ने 9-6 की बढ़त बना ली लेकिन ब्रेक के समय भारतीय जोड़ी ने 11-10 की बढ़त हासिल कर ली। सात्विक और चिराग ने अपनी बढ़त को 15-13 कर लिया। विश्व रैंकिंग में दूसरे स्थान पर काबिज जोड़ी ने इसके बाद स्कोर को 17-17 और 19-19 से बराबर किया। इसके बाद दोनों जोड़िया लगातार अंक जुटाने में कामयाब रही।
कड़े मुकाबले के बाद भारतीय खिलाड़ियों ने मजबूत मानसिकता दिखायी और जीत दर्ज करने में सफल रहे। दोनों की जोड़ी 2019 में थाईलैंड ओपन में जीत दर्ज करने के साथ फ्रेंच ओपन सुपर 750 (2019) के फाइनल में पहुंची थी। दोनों ने 2018 में हैदराबाद ओपन सुपर 100 टूर्नामेंट में जीत दर्ज की थी। इस जोड़ी ने सैयद मोदी इंटरनेशनल में उपविजेता रहने के अलावा गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों में रजत पदक अपने नाम किया था। भारतीय जोड़ी ने पिछले साल तोक्यो ओलिंपिक के लिए भी क्वॉलिफाइ किया था, लेकिन तीन में से दो मुकाबले जीतने के बावजूद वे ग्रुप चरण को पार नहीं कर पाए थे।
बिहार का ऐसा मंदिर, जहाँ पढ़कर छात्र लिख रहे कामयाबी की कहानी
सासाराम । आमतौर पर धार्मिक स्थलों पर श्रद्धालु अपने आराध्य की पूजा और उनकी आराधना के लिए पहुँचते हैं, लेकिन बिहार का एक मंदिर ऐसा भी है, जहां लोग शिक्षा ग्रहण करने के लिए पहुँचते हैं। बिहार के रोहतास जिला मुख्यालय सासाराम में महावीर मंदिर है, जहाँ आस-पास के इलाकों और गांवों के छात्रों के समूह में पढ़ाई करने पहुंचते हैं। यहां आने वाले छात्र रेलवे, बैंकिंग सेवाओं, कर्मचारी चयन आयोग और अन्य सरकारी भर्ती परीक्षाओं की तैयारी करने आते हैं। यहाँ पहुँचने वालों छात्रों की पृष्ठभूमि आर्थिक रूप से कमजोर परिवार की रहती है।
महावीर मंदिर में ऐसे शुरू हुई छात्रों की क्लास
इस कोचिंग की सबसे बड़ी विशेषता है यह है कि यहां कोई शिक्षक नहीं है, सभी छात्र हैं और ये छात्र नियमित कक्षा, प्रश्नोत्तरी और मॉक टेस्ट में हिस्सा लेते हैं। बताया जाता है कि इसकी शुरूआत करीब 16 साल पहले साल 2006 में तब हुई जब आर्थिक रूप से कमजोर परिवार से आने वाले दो युवा छोटेलाल सिंह और राजेश पासवान अपनी पढ़ाई करने के लिए सासाराम पहुंचे। ये दोनों युवाओं ने यहां के कोचिंग संस्थानों में नामांकन कराने के लिए काफी प्रयास किया, लेकिन आर्थिक तंगी के इन महंगे कोचिंग संस्थानों में ये अपना नामांकन नहीं करा सके।
‘महावीर क्विज एंड टेस्ट सेंटर’ में अभी जुड़े है 700 छात्र
छोटेलाल सिंह बताते हैं कि इसके बाद हम दोनों सरकारी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने के लिए सासाराम के महावीर मंदिर में पहुंचने लगे और दिन भर वहीं रहकर पढ़ाई करते। फिलहाल रेल चक्का कारखाना, बेला, छपरा में कार्यरत छोटेलाल बताते हैं कि इसके बाद और कई छात्र हम लोगों से जुड़ते चले गए और फिर छात्रों का बड़ा समूह बनता चला गया। उन्होंने कहा कि फिलहाल ‘महावीर क्विज एंड टेस्ट सेंटर’ में 700 छात्र जुड़े हुए हैं, जो रोजाना कक्षाओं में हिस्सा ले रहे हैं। उन्होंने बताया कि राजेश पासवान वर्तमान में कोलकाता के पास भारतीय रेलवे में ही कार्यरत हैं।
छोटेलाल सिंह कहते हैं कि यहां पढ़ने वाले करीब 600 से 700 छात्र प्रतियोगी परीक्षा उत्तीर्ण कर सरकारी क्षेत्रों में कार्यरत हैं। वे हालांकि कहते हैं कि कोचिंग चलाने के लिए संसाधन जुटाना बड़ी चुनौती है, लेकिन यहां से निकलने वाले प्रत्येक छात्र कुछ न कुछ स्वेच्छा से दान करते रहते हैं, जिससे यह संस्थान चल रहा है। सिंह कहते हैं कि उन्होंने इस संस्थान में अधिक समय दे सके, इस कारण से लोको पायलट की नौकरी छोड़ दी और अब रेल चक्का कारखाने में काम कर रहे हैं। यहां शिक्षकों को काम पर नहीं रखा जाता है। प्रश्नोत्तरी और मॉक टेस्ट में प्रदर्शन के आधार पर, छात्रों को साथी छात्रों को पढ़ाने के लिए चुना जाता है। आंतरिक परीक्षा में टॉप करने वालों को ही एक मानदेय दिया जाता है, जिससे वे अपने पढ़ाई का खर्च निकाल सके।
यहां आने वाले कई छात्र कोचिंग का खर्च उठाने की स्थिति में नहीं
छोटेलाल सिंह ने आगे बताया कि कई छात्र यहां ऐसे भी हैं जो अपनी पढ़ाई पर आने वाला खर्च भी वहन नहीं कर सकते। भुवनेश्वर से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर यहां आकर बिहार लोक सेवा आयोग की तैयारी कर रहे अविनेश कुमार सिंह कहते हैं कि यह स्थान ज्ञान साझा करने का मंच बन गया है। इससे अच्छा ग्रुप डिस्क्शन कहीं और नहीं हो सकता है। यहां छात्र एक-दूसरे से सीखते हैं और अपनी कमियों पर काम करते हैं। हम एक-दूसरे के शिक्षक होते हैं।
पहले बिजली के चलते रात में होती थी पढ़ाई समस्या, फिर ऐसे हुई दूर
दारोगा सहित रेलवे की तैयारी कर रहे रीतेश कुमार बताते हैं कि यहां क्लास प्रतिदिन छह बजे से शुरू होती है और रात 9 बजे तक चलती है। बीच में कुछ समय का अंतराल दिया जाता है। उन्होंने बताया, छात्र बिना किसी फीस के लिखित और मौखिक परीक्षा में हिस्सा लेने के लिए आते हैं। करंट अफेयर्स पर प्रश्नों के अलावा, गणित, रिजनिंग और अन्य विषयों की आवश्यकताओं के अनुसार बताया जाता है। इधर, राजकमल बताते हैं कि रात में बिजली के कारण बीच में परेशानी हो रही थी, रात में बिजली आपूर्ति बंद हो जाने से पढ़ाई बाधित हो जाती थी, लेकिन एक पड़ोसी ने अपने घर से इंवर्टर की सुविधा यहां दे दी है, जिससे बिजली की समस्या दूर हो गई।
(साभार – नवभारत टाइम्स)
पूर्व नौसैनिक बना शौकिया वैज्ञानिक, खोजा बृहस्पति जैसा ग्रह
वॉशिंगटन । एक शौकिया खगोलविद ने बृहस्पति जैसे एक्सोप्लैनेट की खोज की है। इस एक्सोप्लैनेट का द्रव्यमान सूर्य के बराबर है। अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा ने बताया कि TOI-2180 b नाम का यह एक्सोप्लैनेट पृथ्वी से लगभग 379 प्रकाश वर्ष दूर है। इसका औसत तापमान लगभग 170 डिग्री फ़ारेनहाइट (76 डिग्री सेल्सियस) है। ऐसे में यह पृथ्वी समेत हमारे सौरमंडल के कई ग्रहों की तुलना मे अधिक गर्म है।
पूर्व नौसैनिक है ग्रह खोजने वाला शौकिया वैज्ञानिक
नासा के अनुसार, इस शौकिया वैज्ञानिक का नाम टॉम जैकब्स है। वे अमेरिकी नौसेना के पूर्व अधिकारी हैं, जो नासा की सिटिजन साइंटिस्ट प्रॉजेक्ट से जुड़े हुए हैं। इस प्रॉजेक्ट के जरिए एस्ट्रॉनमी और फिजिक्स में रूचि रखने वाले आम लोगों को नासा के शोधकर्ताओं की सहायता में लगाया जाता है। टॉम जैकब्स भी ऐसी ही एक प्रॉजेक्ट के साथ जुड़े हुए हैं। दूरबीनों से मिले डेटा के अध्ययन से की खोज
बताया जा रहा है कि इस शौकिया वैज्ञानिक ने नई खोज करने के लिए अलग-अलग दूरबीनों से मिले डेटा को कंप्यूटर एल्गोरिदम के जरिए स्कैन किया था। किसी भी एक्सोप्लैनेट को खोजने के लिए शोधकर्ता सितारों की चमक में बदलाव की तलाश करते हैं। इससे यह पता चलता है कि एक निश्चित तारे की परिक्रमा कोई ग्रह कर रहा है या नहीं। अगर ग्रह उस तारे के सामने से गुजरेगा तो तारे की रोशनी कुछ देर के लिए बाधित होगी।
कंप्यूटर एल्गोरिदम का किया इस्तेमाल
हालांकि, इस कंप्यूटर एल्गोरिदम को एक ही तारे की परिक्रमा कर रहे अलग-अलग ग्रहों की पहचान करने के लिए डिजाइन किया गया है। इस शौकिया खगोलविद ने इसी तकनीक का इस्तेमाल कर नए एक्सोप्लैनेट की खोज की है। टॉम जैकब्स विजुअल सर्वे ग्रुप नाम की एक टीम का हिस्सा हैं, जो आंखों से टेलीस्कोप डेटा का निरीक्षण करता है।
तारे का प्रकाश कम होने से ग्रह का पता चला
1 फरवरी 2020 को TESS टेलीस्कोप से मिले डेटा का निरीक्षण करते हुए जैकब्स ने देखा कि TOI-2180 b नाम के एक तारे से प्रकाश आधे प्रतिशत से भी कम हो गया। फिर अगले 24 घंटे की अवधि में इस तारे का प्रकाश अपने पिछले चमक के स्तर पर वापस आ गया। फिर उन्होंने नासा के शोधकर्ताओं को अपनी खोज के बारे में सूचित किया।
नासा ने की दावे की पुष्टि
इसके बाद जैकब्स के दावे की पुष्टि के लिए कैलिफ़ोर्निया में लिक ऑब्जरवेटरी में ऑटोमेटेड प्लॉनेट फाइंडर टेलिस्कोप का इस्तेमाल किया गया। जिसके बाद वैज्ञानिकों ने तारे पर ग्रह के गुरुत्वाकर्षण का अध्ययन किया। इससे उन्हें तारे के द्रव्यमान की गणना करने और इसकी कक्षा के लिए संभावनाओं की जानकारी मिली। नासा के अनुसार, इस ग्रह में हाइड्रोजन और हीलियम से भारी तत्व हो सकते हैं।
शिक्षण संस्थानों में तेज हुआ विद्यार्थियों का टीकाकरण
बिड़ला हाई स्कूल औऱ सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल के विद्यार्थियों को लगी वैक्सीन
कोलकाता। कोविड -19 से बच्चों की सुरक्षा के लिए टीकाकरण अभियान आरम्भ हो चुका है। महानगर के स्कूलों में भी टीकाकरण तेज हो चुका है। हाल ही में बिड़ला हाई स्कूल और सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल के लिए एक टीकाकरण शिविर का आयोजन विद्या मंदिर सोसायटी द्वारा किया गया। गत 8 जनवरी को यह शिविर सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल में आयोजित किया गया। इस शिविर में 15 से 18 वर्ष के विद्यार्थियों को टीका लगाया गया। पहले दोनों स्कूलों के बोर्ड परीक्षार्थियों ने वैक्सीन की पहली डोज ली। इसके बाद 14 जनवरी को नौवीं और ग्यारहवीं कक्षा के विद्यार्थियों को पहली बार यह टीका लग रहा है । लगभग 112 विद्यार्थियों को यह टीका वेलव्यू क्लिनिक के सहयोग से लगाया गया। इस दौरान कोविड -19 सम्बन्धी सुरक्षा नियमों का पालन किया गया। इस दौरान मेडिकल टीम के अतिरिक्त दोनों ही स्कूलों के शिक्षक – शिक्षिकाएं, कोऑर्डिनेटर उपस्थित थे।
टीकाकरण को लेकर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए सुशीला बिड़ला गर्ल्स स्कूल की बारहवीं की छात्रा प्रणति चौधरी ने इस अभियान को सराहा और स्कूल का धन्यवाद किया।
वहीं दसवीं की छात्रा यशिका मोदी ने कहा कि इस टीकाकरण अभियान में सभी आवश्यक सुरक्षा नियमों का पालन किया गया। टीकाकरण के बाद छात्राओं को 30 मिनट तक निगरानी में रखा गया। बैठने की व्यवस्था भी कोविड -19 नियमों को मानते हुए ही की गयी थी।
द भवानीपुर गुजराती एडुकेशन सोसायटी स्कूल टीकाकरण शिविर
वहीं द भवानीपुर गुजराती एडुकेशन सोसायटी स्कूल में कुल 153 विद्यार्थियों को कोविड -19 का टीका लगाया गया। आईएससी में 11 विद्यार्थियों को कोविशील्ड और 14 विद्यार्थियों को कोवैक्सीन लगी। आईसीएसई के 58 विद्यार्थियों को कोवैक्सीन का टीका लगाया गया।
ज़रूरतमंद छात्रों को फ़ेलोशिप देगा बंगीय हिंदी परिषद
कोलकाता । बंगीय हिंदी परिषद ने नए वर्ष में एक अभिनव संकल्प लिया है। परिषद ने निर्णय लिया है कि ऐसे छात्रों को, जो आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर परिवार से आते हैं और शिक्षा में जिनकी विशेष रुचि है, किंतु आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण उन्हें कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है और कभी-कभी वे बीच में ही पढ़ाई छोड़ने को बाध्य भी हो जाते हैं, परिषद की ओर से विविध अध्येतावृत्तियाँ प्रदान की जाएँगी ताकि उनकी शिक्षा में कोई भी व्यवधान न आए। परिषद ने निर्णायक मंडल द्वारा चुने गए योग्य छात्रों को निम्नलिखित अध्येतावृत्तियां प्रदान करने का निर्णय लिया है-
1. ज़ोया अहमद- आचार्य ललिता प्रसाद सुकुल फ़ेलोशिप
2. रोहित साव – श्री करुणाकान्त त्रिपाठी फ़ेलोशिप
3. अंजलि चौधरी – प्रो. रामचंद्र मिश्र फ़ेलोशिप
4. स्वाति यादव – डाॅ. रामनाथ तिवारी फ़ेलोशिप
5. अंजलि चौधरी- श्री लालबहादुर सिंह फ़ेलोशिप
6. वर्षा त्रिपाठी- आचार्य विष्णुकान्त शास्त्री फ़ेलोशिप
उक्त अध्येतावृत्तियां प्रति माह 500/- की दर से एक वर्ष तक दी जाएँगी। एक वर्ष के पश्चात पुनर्मूल्यांकन के आधार पर अध्येतावृत्तियों की अवधि बढ़ाई जाएगी। परिषद की इस नई पहल से आर्थिक दृष्टि से कमज़ोर बच्चों को अपनी पढ़ाई जारी रखने का अवसर मिलेगा। उक्त सूचना परिषद के मंत्री डॉ. राजेन्द्र नाथ त्रिपाठी ने एक विज्ञप्ति के माध्यम से दी।
उत्तरायण में सूर्य
उत्ताल सागर की तरंगों में झिलमिल करती रश्मियां
सागर के तट की लहरों को छू करतीं आंख-मिचौली
लाखों-करोड़ों वर्षों से सूर्य किरणों की अठखेलियाँ
संपूर्ण ब्रह्मांड की दिशाओं की चौकसी में
सूर्य का उत्तरायण होना
भीष्म पितामह का देह परित्याग
गंगा का धरती पर आना
सगर के साठ हजार पुत्रों का मोक्ष पा जाना
भगीरथ प्रयास में लीन
आज भी दिखाई देता है
कपिल मुनि के आश्रम में
आंखों से टपकते तप की प्रखरता।
खुशियां बांटता विशाल सागर तट
बुलाता रहता अपनों को
संवाद और परस्पर संबंधों को मजबूत बनाता
धर्म – जाति- रंग – लिंग से ऊपर उठकर सूर्य देव
समरसता के कई पाठ पढ़ाते
जप तप दान त्याग तपस्या के मूल में
प्रकृति और मनुष्य को एकजुट होने का बंधन बांधते
जीवन प्रदत्त रोशनी दे ऊर्जावान बनाते।
आधुनिकता की आंधी भी वहां फीकी ही रहती
कई युग आए और चले गए
अडिग सूर्य चमकता रहता
जीवन दान देता रहा
पृथ्वी की जिजीविषा को बनाए रखता
हस्तांतरित त्योहार बन हर वर्ष
धरती और अंबर के क्षितिज को एक करता।
धनु राशि से मकर राशि पर सूर्य का आ जाना
शुक्र का उदय समृद्ध समय ले आता
अपनी रहस्यमयी स्वर्णिम रेखाओं से
ब्रह्मांड में अगणित गणनाएं बन जातीं
देवलोक के पथ खुल जाते
पिता- पुत्र के मिलन हो जाते
नई फसल और सकारात्मक ऊर्जा ले आते
ऋतु परिवर्तन प्रक्रिया बन खिल जाती
अन्न धन की बहार ले आती
भारत फिर से सकारात्मक ऊर्जा से भर जाता।
मकर संक्रांति विशेष – ऐसे शुरू हुई बिहार में दही चूड़ा खाने की परम्परा
मकर संक्रांति का पर्व बिहार में धूमधाम से मनाया जाता है। यहां दही-चूड़ा और खिचड़ी खाने की परंपरा है। संस्कृति की यह कड़ी दुनिया की सबसे शुरुआत की परंपरा है। इसे आरम्भ का प्रतीक माना गया है। पौष मास में जब सूर्य देव धनु राशि से मकर राशि में गमन करते हैं तब यह खगोलीय घटना संक्रांति कहलाती है। बहुत शुरुआत में यह महज एक खगोलीय घटना थी, लेकिन, वैदिक काल में कई घटनाओं ने इसे पवित्र बना दिया। पवित्रता का यह प्रतीक आज तक भारतीय समाज का अभिन्न अंग है।
वैदिक कथाओं का असर
बिहार में दही चूड़ा खाने की परंपरा यहां उपजी वैदिक कथाओं से प्रभावित है। अभी हाल ही में सामने आया है कि झारखंड का सिंहभूम समुद्र से ऊपर आने वाला सबसे पहला भूखंड था। कहते हैं कि जब मनु ने पृथ्वी पर बीज रोपकर खेती की शुरुआत की थी, तब अन्न उपजे. खीर सबसे पहले पकाया जाने वाला भोजन है, जिसे क्षीर पाक कहा गया।
महर्षि दधीचि ने शुरू की परंपरा
इसके बाद दूध से दही बनाने की परंपरा विकसित हुई तो धान के लावे को इसके साथ खाया गया। भोजन को तले जाने की व्यवस्था की शुरुआत तब नहीं हुई थी। महर्षि दधीचि ने सबसे पहले दही में धान मिलाकर भोजन की व्यवस्था की थी।
सारण जिला है साक्षी
बिहार के सारण जिले में स्थित है माँ अम्बिका भवानी मंदिर। सतयुग के समय में यही ऋषि की तपस्थली थी। एक बार अकाल के समय ऋषि ने माता को दही और धान का भोग लगाया था। तब देवी अन्नपूर्णा रूप में प्रकट हुईं और अकाल समाप्त हो गया।
मिथिला से जुड़ी हैं संस्कृति
दही-चूड़ा खाने की परंपरा मिथिला से भी जुड़ी हुई है। धनुष यज्ञ के समय मिथिला पहुंचे ऋषि मुनियों ने दही चूड़ा का भोज किया था। इतने बड़े आयोजन में ऋषियों के भोजन से इसे प्रसाद के तौर पर लिया गया, और फिर दही चूड़ा की परंपरा चल पड़ी।
दही-चूड़ा सम्पूर्ण आहार
जैसे दूध एक सम्पूर्ण पेय है, दही चूड़ा सम्पूर्ण आहार है। यह बिना पकाए, गर्म किये बनता है, इसलिए इसके प्राकृतिक पोषक तत्व नष्ट नहीं होते हैं।
बंगाल में दही चूड़ा
दही-चूड़ा की आधुनिक परम्परा को लाने का श्रेय बंगाल के गौड़ सिद्धों को भी जाता है। यह कहानी तब की है जब बिहार नहीं, बंगाल ही राज्य था। यहां चैतन्य महाप्रभु के शिष्य रघुनाथ दास ने बड़े पैमाने पर दही चूड़ा का प्रसाद बंटवाया था। उन्होंने यह उत्सव सज़ा के तौर पर किया था, क्योंकि उन्होंने छिप कर सतसंग सुना था. इसके बाद बंगाल में दही चूड़ा की एक परंपरा बन गयी, जो हर उत्सव की साक्षी है।
(साभार – जी न्यूज)